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(conduct obscuring karma) cannot lead a life of strict celibacy without 卐 hearing it from (these ten) the omniscient ... and so on ... Gautam ! That 卐 is why it is said that ... and so on up to... cannot lead a life of strict)
celibacy. ॐ शुद्ध संयम का ग्रहण- अग्रहण ENDEAVOUR FOR ASCETIC-DISCIPLINE
६. [प्र. १ ] असोच्चा णं भंते ! केवलिस्स वा जाव केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा ?
[उ. ] गोयमा ! असोच्चा णं केवलिस्स वा, जाव उवासियाए वा जाव अत्थेगइए केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, अत्थेगइए केवलेणं संजमेणं नो संजमेज्जा।
६. [प्र. १] भगवन् ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही क्या कोई जीव शुद्ध संयम (निरतिचार संयम आराधना) द्वारा संयम-यतना करता है?
[उ. ] हे गौतम ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही कोई जीव शुद्ध 5 संयम द्वारा संयम-यतना करता है और कोई जीव नहीं करता।
6. [Q. 1] Bhante ! Can a jiva (living being) practice ascetic-discipline (samyam-yatana) through strict restraint even without hearing (the sermon) from the omniscient ... and so on up to... or his (self-enlightened omniscient's) female devotee (upaasika)?
[Ans.] Gautam ! Some jiva (living being) can and some cannot practice ascetic-discipline (samyam-yatana) through strict restraint even
without hearing it from (these ten) the omniscient ... and so on up to... or 'i his female devotee (upaasika).
६. [प्र. २ ] से केणटेणं जाव नो संजमेज्जा ?
[उ. ] गोयमा ! जस्स णं जयणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ से णं असोच्चा ण केवलिस्स वा जाव केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, जस्स णं जयणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ से णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव नो संजमेज्जा, से तेणटेणं गोयमा ! जाव अत्थेगइए नो संजमेज्जा।
६. [प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि यावत् कोई जीव शुद्ध संयम द्वारा संयम-यतना करता है और कोई जीव नहीं करता?
[उ. ] गौतम ! जिस जीव ने यतनावरणीय कर्म (चारित्र विषयक वीर्यान्तराय कर्म) का क्षयोपशम किया हुआ है, वह केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही शुद्ध संयम द्वारा म संयम-यतना करता है, किन्तु जिसने यतनावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया है, वह केवली आदि कसे सुने बिना यावत् शुद्ध संयम द्वारा संयम-यतना नहीं करता। इसीलिए हे गौतम ! पूर्वोक्त प्रकार से | में कहा गया है।
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| नवम शतक : इकत्तीसवाँ उद्देशक
(321)
Ninth Shatak : Thirty First Lesson
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