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strict restraint, (6) some jiva (living being) may and some other may not attain perfect blockage of inflow of karmas through sincere withdrawal, (7, 8, 9 ) some jiva ( living being) may and some other may not acquire Abhinibodhik jnana and so on up to... (10) Manah-paryav-jnana, and फ ( 11 ) some jiva ( living being) may and some other may not acquire Keval5 jnana (omniscience).
१३. [ प्र. २ ] से केणणं भंते ! एवं बुच्चइ असोच्चा णं तं चेव जाव अत्थेगइए केवलनाणं नो उप्पाडेज्जा ?
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[ उ. ] गोयमा ! जस्स णं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ १, जस्स 5 दरिसणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ २, जस्स णं धम्मंतराइयाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ ३, एवं चरित्तावरणिज्जाणं ४, जयणावरणिज्जाणं ५, अज्झवसाणावरणिज्जाणं ६, 5 आभिणिबोहियनाणावरणिज्जाणं ७, जाव मणपज्जवनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ ८-९-१०, जस्स णं केवलनाणावरणिज्जाणं जाव खए नो कडे भवइ ११, से णं असोच्चा केवलिस्स वा 5 जाव केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्जा सवणयाए, केवलं बोहिं नो बुज्झेज्जा जाव केवलनाणं नो उप्पाडेज्जा । जस्स णं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवति १, जस्स दरिसणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ २, जस्स णं धम्मंतराइयाणं ३, एवं जाव जस्स णं केवलनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खए कडे भवइ ११, णं असोच्चा केवलिस्स वा जाव केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए १, केवलं बोहिं बुझेज्जा २, जाव केवलणाणं उप्पाडेज्जा ११ ।
१३. [ प्र. २ ] भगवन् ! इस (पूर्वोक्त) कथन का क्या कारण है कि कोई जीव केवलि - प्ररूपित धर्मश्रवण-लाभ करता है, यावत् केवलज्ञान का उपार्जन करता है और कोई यावत् केवलज्ञान का उपार्जन नहीं करता ?
[उ. ] गौतम ! ( 9 ) जिस जीव ने ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (२) जिस जीव ने दर्शनावरणीय (दर्शनमोहनीय) कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (३) धर्मान्तरायिक कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (४) चारित्रावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (५) यतनावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (६) अध्यवसानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, (७) आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, ( ८- ९-१० ) इसी प्रकार श्रुतज्ञानावरणीय, अवधिज्ञानावरणीय और मनः पर्यवज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया, तथा (११) केवलज्ञानावरणीय कर्म का क्षय नहीं किया, वे जीव केवली आदि से धर्मश्रवण किये बिना धर्मश्रवण - लाभ नहीं पाते, शुद्ध बोधिलाभ का अनुभव नहीं करते, यावत् केवलज्ञान को उत्पन्न नहीं कर पाते । (१) जिस जीव ने ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम किया है, (२) जिसने दर्शनावरणीय कर्मों का क्षयोपशम किया है, (३) जिसने धर्मान्तरायिक कर्मों का क्षयोपशम किया है, (४-११) यावत् जिसने केवलज्ञानावरणीय कर्मों का क्षय किया है, वह केवली आदि से धर्मश्रवण किये बिना ही केवलि - प्ररूपित धर्मश्रवण लाभ प्राप्त करता है, शुद्ध बोधिलाभ का अनुभव करता है, यावत् केवलज्ञान को उपार्जित कर लेता है ।
भगवती सूत्र (३)
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Bhagavati Sutra (3)
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