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१२. [प्र. ] असोच्चा णं भंते ! केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलनाणं उप्पाडेजा? _ [उ. ] एवं चेव, नवरं केवलनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खए भाणियव्ये, सेसं तं चेव। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जाव केवलनाणं उप्पाडेज्जा। .
१२. [प्र. ] भगवन् ! केवली आदि से सुने बिना ही क्या कोई जीव केवलज्ञान उपार्जन कर लेता है ?
[उ. ] (गौतम !) पूर्ववत् यहाँ भी कहना चाहिए। विशेष इतना ही है कि यहाँ केवलज्ञानावरणीय कर्मों का क्षय कहना चाहिए। शेष सब कथन पूर्ववत् हैं। इसीलिए हे गौतम ! यह कहा जाता है कि फ़ यावत् केवलज्ञान का उपार्जन नहीं करता।
12. [Q.] Bhante ! Can a jiva (living being) acquire Keval-jnana (omniscience) even without hearing (the sermon) from the omniscient ... and so on up to... or his (self-enlightened omniscient's) female devotee si (upaasika)?
[Ans.] The aforesaid should be repeated here. The only difference is that in this case the destruction-cum-pacification is of Kevaljnanaavaraniya karma (karma that obscures omniscience). Gautam ! That is why it is said as aforementioned ... and so on up to... can not
acquire Keval-jnana (omniscience). ॐ ग्यारह बोलों की प्राप्ति और अप्राप्ति PERFECTION OF ELEVEN ACTS
१३. [प्र. १ ] असोच्चा णं भंते ! केवलिस्स वा जाव तप्पखियउवासियाए व केवलिपन्नत्तं धम्म म लभेज्जा सवणयाए १?, केवलं बोहिं बुज्झेज्जा २?, केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वएज्जा + ३?, केवलं बंभचेरवासं आवसेज्जा ४?, केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा ५?, केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा ६?, 卐 केवलं आभिणिबोहियनाणं उप्पाडेज्जा ७?, जाव केवलं मणपज्जवनाणं उप्पाडेज्जा १०?, केवलनाणं उप्पाडेज्जा ११?
[उ. ] गोयमा ! असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव उवासियाए वा अत्थेगइए केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्जा + सवणयाए, अत्थेगइए केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्जा सवणयाए १; अत्थेगइए केवलं बोहिं बुझेज्जा,
अत्थेगइए केवलं बोहिं णो बुज्झेज्जा २; अत्थेगइए केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वएज्जा, फ़ अत्थेगइए जाव नो पव्वएज्जा ३; अत्थेगइए केवलं बंभचेरवासं आवसेज्जा, अत्थेगइए केवलं बंभचेरवासं
नो आवसेज्जा ४; अत्थेगइए केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, अत्थेगइए केवलेणं संजमेणं नो संजमेज्जा ५; म एवं संवरेण वि ६; अत्थेगइए केवलं आभिणिबोहियनाणं उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए जाव नो उप्पाडेज्जा ७;
एवं जाव मणपज्जवनाणं ८-९-१०; अत्थेगइए केवलनाणं उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए केवलनाणं नो अ उप्पाडेज्जा ११।
| भगवती सूत्र (३)
(326)
Bhagavati Sutra (3)
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