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57. [Q.] Bhante ! Is a soul (jiva) infested with Naam karma (form i determining karma) also infested with Antaraya karma ? And is a soul 5 (iva) infested with Anturaya karma also infested with Naam karma ?
(Ans.] Gautam ! A soul (jiva) infested with Naam karma may and may not be infested with Antaraya karma. However, a soul (jiva) infested with Antaraya karma is also, as a rule, infested with Naam karma.
५८. [प्र. ] जस्स णं भंते ! गोयं तस्स अंतराइयं० ? पुच्छा। __ [उ. ] गोयमा ! जस्स णं गोयं तस्स अंतराइयं सिय अत्थि सिय नत्थि, जस्स पुण अंतराइयं तस्स गोयं नियमा अस्थि ७।।
५८. [प्र. ] भगवन् ! जिसके गोत्रकर्म होता है, क्या उसके अन्तरायकर्म होता है, और जिस जीव के अन्तराय कर्म होता है, क्या उसके गोत्रकर्म होता है ?
[उ. ] गौतम ! जिसके गोत्रकर्म है, उसके अन्तरायकर्म होता भी है, और नहीं भी होता, किन्तु है जिसके अन्तरायकर्म है, उसके गोत्रकर्म अवश्य होता है।
58. (Q.) Bhante ! Is a soul (jiva) infested with Gotra karma (form 4 determining karma) also infested with Antaraya karma (power 4 hindering karma) ? And is a soul (jiva) infested with Antaraya karma also infested with Gotra karma ?
[Ans.] Gautam ! A soul (jiva) infested with Gotra karma may and may not be infested with Antaraya karma. However, a soul (jiva) infested with Antaraya karma is also, as a rule, infested with Gotra karma.
विवेचन : कर्मों के परस्पर सहभाव की वक्तव्यता-प्रस्तुत १७ सूत्रों (सूत्र ४२ से ५८ तक) में ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का अपने से उत्तरोत्तर कर्मों के साथ नियम से होने अथवा न होने का विचार किया गया है। ___'नियमा' और 'भजना' का अर्थ-नियमा का अर्थ है-नियम से, अवश्य, और 'भजना' का अर्थ है-विकल्प से. कदाचित् होना. कदाचित् न होना।
किसमें किन-किन कर्मों की नियमा और भजना-मनुष्य में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय, इन चार घातिकर्मों की भजना है (क्योंकि केवली के ये चार घातिकर्म नष्ट हो जाते हैं), जबकि वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्रकर्म की नियमा है। शेष २३ दण्डकों में आठ कर्मों की नियमा है। सिद्ध भगवान में कर्म होते ही नहीं। इस प्रकार आठ कर्मों की नियमा और भजना के कुल २८ भंग समुत्पन्न होते हैं। ॥ यथा-ज्ञानावरणीय से ७, दर्शनावरणीय से ६, वेदनीय से ५, मोहनीय से ४, आयुष्य से ३, नामकर्म से २, और गोत्रकर्म से १ । (इनकी चर्चा मूल सूत्र में आ चुकी है। विस्तार के लिए व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, भाग २, पृष्ठ ४२० देखें) ॐ
| अष्टम शतक : दशम उद्देशक
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Eighth Shatak : Tenth Lesson
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