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१७. एवं दंसणाराहणं पि। म १८. एवं चरित्ताराहणं पि।
१६. [प्र. ] भगवन् ! ज्ञान की जघन्य आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता फ़ है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ?
[उ. ] गौतम ! कितने ही जीव तीसरा भव ग्रहण करके सिद्ध होते हैं, यावत् सर्व दुःखों का अन्त 卐 करते हैं; परन्तु सात-आठ भव का अतिक्रमण नहीं करते।
16. [Q.] Bhante ! After how many rebirths does a living being 4 performing lowly practice of right knowledge (Jaghanya Jnana- $ 卐 araadhana) attain liberation to become Siddha ... and so on up to... end 卐 all miseries ?
(Ans.] Gautam ! Some living beings attain liberation to become Siddha ... and so on up to... end all miseries after three rebirths (one as a divine being and then again as a human being); however they are never reborn after their seventh or eighth rebirth.
१७. इसी प्रकार जघन्य दर्शनाराधना के (फल के) विषय में समझना चाहिए।
17. The same is true for (fruits of) lowly practice of right perception/faith (Jaghanya Darshan-araadhana).
१८. इसी प्रकार जघन्य चारित्राराधना के (फल के) विषय में भी कहना चाहिए। ___18. The same is also true for (fruits of) lowly practice of right conduct (Jaghanya Chaaritra-araadhana).
विवेचन : आराधना का स्वरूप-पाँच प्रकार के ज्ञान या ज्ञान के आधार श्रुत (शास्त्रादि) की, काल, विनय, बहुमान आदि आठ ज्ञानाचार-सहित निर्दोष रीति से पालना करना ज्ञानाराधना है। शंका, कांक्षा आदि अतिचारों ॐ को न लगाते हुए, निःशंकित, निष्कांक्षित आदि आठ दर्शनाचारों का शुद्धतापूर्वक पालन करते हुए दर्शन अर्थात् म सम्यक्त्व की आराधना करना दर्शनाराधना है। सामायिक आदि चारित्रों अथवा समिति-गुप्ति, व्रत-महाव्रतादि
रूप चारित्र का निरतिचार-विशुद्धपालन करना चारित्राराधना है। ज्ञानकृत्य एवं ज्ञानानुष्ठानों में उत्कृष्ट प्रयत्न करना उत्कृष्ट-ज्ञानाराधना है। इसमें चौदहपूर्व का ज्ञान आ जाता है। मध्यम प्रयत्न करना मध्यम ज्ञानाराधना है,
इसमें ग्यारह अंगों का ज्ञान आ जाता है और जघन्य (अल्पतम) प्रयत्न करना जघन्य ज्ञानाराधना है। इसमें * अष्टप्रवचनमाता का ज्ञान आ जाता है। इसी प्रकार उत्कृष्ट दर्शनाराधना में क्षायिकसम्यक्त्व, मध्यम दर्शनाराधना में - उत्कृष्ट क्षायोपशमिक या औपशमिक सम्यक्त्व और जघन्य दर्शनाराधना में जघन्य क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पाया
जाता है। उत्कृष्ट चारित्राराधना में यथाख्यातचारित्र, मध्यम चारित्राराधना में सूक्ष्मसम्पराय और परिहारविशुद्धिचारित्र तथा जघन्य चारित्रराधना में सामायिकचारित्र और छेदोपस्थापनिकचारित्र पाया जाता है।
आराधना के पूर्वोक्त प्रकारों का परस्पर सम्बन्ध-उत्कृष्ट ज्ञानाराधक में उत्कृष्ट और मध्यम दर्शनाराधना होती फ़ है, उत्कृष्ट दर्शनाराधक में ज्ञान के प्रति तीनों प्रकार का प्रयत्न सम्भव है। जिसमें उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, | भगवती सूत्र (३)
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