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45 (Utkrisht Darshan-araadhana) also have superlative practice of right 4 卐 knowledge (Utkrisht Jnana-araadhana) ?
[Ans.) Gautam ! A living being having superlative practice of right knowledge (Utkrisht Jnana-araadhana) may have either superlative or mediocre practice of right perception/faith. And, a living being having superlative practice of right perception/faith (Utkrisht Darshan
may have superlative, lowly or mediocre practice of right knowledge.
८. [प्र. ] जस्स णं भंते ! उक्कोसिया णाणाराहणा तस्स उक्कोसिया चरित्ताराहणा ? जस्सुक्कोसिया चरित्ताराहणा तस्सुक्कोसिया णाणाराहणा ? फ़ [उ. ] जहा उक्कोसिया णाणाराहणा य दंसणाराहणा य भणिया तहा उक्कोसिया णाणाराहणा य चरित्ताराहणा य भाणियव्वा।
८. [प्र. ] भगवन् ! जिस जीव की उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, क्या उसकी उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है और जिस जीव की उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, क्या उसकी उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? 3 [उ. ] गौतम ! जिस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानाराधना और दर्शनाराधना के विषय में कहा, उसी प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानाराधना और उत्कृष्ट चारित्राराधना के विषय में भी कहना चाहिए।
8. [Q.] Bhante ! Does a living being having superlative practice of i right knowledge also have superlative practice of right conduct (Utkrisht 455
Chaaritra-araadhana) ? And, does a living being having superlative practice of right conduct also have superlative practice of right knowledge ?
[Ans.] Gautam ! What has been said about superlative practice of right knowledge and that of right perception/faith should be repeated for superlative practice of right knowledge and that of right conduct.
९. [प्र. ] जस्स णं भंते ! उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्सुक्कोसिया चरित्ताराहणा ? जस्सुक्कोसिया चरित्ताराहणा तस्सुक्कोसिया दंसणाराहणा ?
[उ. ] गोयमा ! जस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्स चरित्ताराहणा उक्कोसा वा जहन्ना वा अजहन्नमणुक्कोसा वा, जस्स पुण उक्कोसिया चरित्ताराहणा तस्स दंसणाराहणा नियमा उक्कोसा।
९. [प्र. ] भगवन् ! जिसकी उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, क्या उसकी उत्कृष्ट चारित्राराधना होती + है; और जिसकी उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, उसकी उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है ? 卐 [उ. ] गौतम ! जिसकी उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसकी उत्कृष्ट, मध्यम या जघन्य + चारित्राराधना होती है और जिसकी उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, उसकी नियमतः (अवश्यमेव) उत्कृष्ट
दर्शनाराधना होती है।
भगवती सूत्र (३)
(278)
Bhagavati Sutra (3)
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