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___ [Ans.] Gautam ! Sharira-bandh (bondage related to body) is of two types—(1) Purva-prayoga-pratyayik (related to past application) and (2) Pratyutpanna-prayoga-pratyayik (related to present applicat
२२. [प्र. ] से किं तं पुवप्पओगपच्चइए ?
[उ. ] पुचप्पओगपच्चइए, जं णं नेरइयाणं संसारत्थाणं सव्वजीवाणं तत्थ तत्थ तेसु तेसु कारणेसु # समोहन्नमाणाणं जीवप्पदेसाणं बंधे समुप्पज्जइ। से तं पुब्बप्पयोगपच्चइए।
२२. [प्र. ] भगवन् ! पूर्व-प्रयोग-प्रत्ययिक-शरीरबन्ध किसे कहते हैं ?
[उ. ] गौतम ! जहाँ-जहाँ जिन-जिन कारणों से समुद्घात करते हुए नैरयिक जीवों और संसारस्थ सर्वजीवों के जीवप्रदेशों का जो बन्ध सम्पन्न होता है, वह पूर्व-प्रयोगबन्ध कहलाता है। यह है पूर्वप्रयोग-प्रत्ययिकबन्ध।
22. [Q.] Bhante ! What is this Purva-prayoga-pratyayik (related to past application) ? ___ [Ans.] Gautam ! The mutual bondage of soul-space-points (jivapradesh) of the infernal and all worldly beings that takes place while undergoing Samudghat wherever and for whatever reason is called Purva-prayoga-pratyayik Sharira-bandh (body related bondage caused by past application).
२३. [प्र. ] से किं तं पडुप्पन्नप्पयोगपच्चइए ?
[उ. ] पटुप्पन्नप्पयोगपच्चइए, जं णं केवलनाणिस्स अणगारस्स केवलिसमुग्घाएणं समोहयस्स, ताओ समुग्घायाओ पडिनियत्तमाणस्स, अंतरा मंथे वट्टमाणस्स तेया-कम्माणं बंधे समुप्पज्जइ। किं कारणं ?
ताहे से पएसा एगत्तीगया भवंति त्ति। से त्तं पडुप्पन्नप्पयोगपच्चइए। से तं सरीरबंधे। २३. [प्र. ] भगवन् ! प्रत्युत्पन्न-प्रयोग-प्रत्ययिक किसे कहते हैं ?
[उ. ] गौतम ! केवलीसमुद्घात द्वारा समुद्घात करते हुए और उस समुद्घात से प्रति-निवृत्त होते (वापस लौटते) हुए बीच के मार्ग (मन्थानावस्था) में रहे हुए केवलज्ञानी अनगार के तैजस् और कार्मणशरीर का वर्तमानकाल में जो बन्ध सम्पन्न होता है, उसे प्रत्युत्पन्न-प्रयोग-प्रत्ययिक-बन्ध कहते हैं। [प्र. ] (तैजस् और कार्मणशरीर के बन्ध का) क्या कारण है ? [ उ. ] उस समय (आत्म) प्रदेश एकत्रीकृत (संघात रूप) होते हैं, जिससे (तैजस्-कार्मण-शरीर का) बन्ध होता है। यह हुआ, उस प्रत्युत्पन्न-प्रयोग-प्रत्ययिकबन्ध का स्वरूप। यह शरीरबन्ध का कथन हुआ।
23. IQ.) Bhante ! What is this Pratyutpanna-prayoga-pratyayik (related to present application) ? ___ [Ans.] Gautam ! The mutual bondage of fiery (taijas) and karmic (harman) bodies of an omniscient ascetic (Keval jnani anagar) that
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अष्टम शतक : नवम उद्देशक
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Eighth Shatak : Ninth Lesson
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