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5 82. [Q.] Bhante ! Of these beings with bondage related to transmutable body (Vaikriya-sharira-bandh) which are comparatively less, more, equal and much more -- those with bondage of a part (deshbandhak) or those with that of the whole (sarva-bandhak) or those with 5 no-bondage (abandhak) at all ?
[Ans.] Gautam Minimum are those with bondage of the whole (sarva-bandh), much more than these are those with bondage of a part (desh-bandh) and uncountable times more than these are those with no 5 bondage at all.
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विवेचन : वैक्रियशरीर- प्रयोगबन्ध के नौ कारण - औदारिकशरीर-बन्ध के सवीर्यता, सयोगता आदि आठ 5 कारण तो पहले बतला दिये गये हैं, वे ही ८ कारण वैक्रियशरीर-बन्ध के हैं, नौवाँ कारण है-लब्धि । वैक्रियकरणलब्धि वायुकाय, पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्यों की अपेक्षा के कारण बताई गई है। अर्थात् इन तीनों के वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध नौ कारणों से होता है, जबकि देवों और नारकों के आठ कारणों से ही वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध होता है; क्योंकि उनका वैक्रियशरीर भवप्रत्ययिक होता है।
वैक्रियशरीर- प्रयोगबन्ध के रहने की काल - सीमा - वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध भी दो प्रकार से होता है-देशबन्ध और सर्वबन्ध । वैक्रियशरीरी जीवों में उत्पन्न होता हुआ या लब्धि से वैक्रियशरीर बनाता हुआ कोई 5 जीव प्रथम एक समय तक सर्वबन्धक रहता है। इसलिए सर्वबन्ध जघन्य एक समय तक रहता है। किन्तु कोई औदारिकशरीर वाला जीव वैक्रियशरीर धारण करते समय सर्वबन्धक होकर फिर मरकर देव या नारक हो तो प्रथम समय में वह सर्वबन्ध करता है, इस दृष्टि से वैक्रियशरीर के 'सर्वबन्ध' का उत्कृष्ट काल दो समय का है। 5 औदारिकशरीरी कोई जीव, वैक्रियशरीर करते हुए प्रथम समय में सर्वबन्धक होकर द्वितीय समय में देशबन्धक होता है और तुरन्त ही मरण को प्राप्त हो जाये तो देशबन्ध जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट एक समय कम ३३ सागरोपम का है; क्योंकि देवों और नारकों में उत्कृष्टस्थिति में उत्पद्यमान जीव प्रथम समय में सर्वबन्धक होकर शेष समयों (३३ सागरोपम में एक समय कम तक) में वह देशबन्धक ही रहता है।
वायुकाय, तिर्यंचपंचेन्द्रिय और मनुष्य के वैक्रियशरीरीय देशबन्ध की स्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त की होती है। नैरयिकों और देवों के वैक्रियशरीरीय देशबन्ध की स्थिति जघन्य तीन समय कम १० हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम की होती है। - ( सूत्र ६६ - ७०, विशेष विवरण के लिए देखें. भगवतीसूत्र भाग - २, पृष्ठ ३८५)
Elaboration—Nine causes of Vaikriya-sharira-prayoga-bandh-Eight causes of Audarik-sharira-prayoga-bandh including available potency (saviryata) and available intensity of thought (sayogata) have already been mentioned. The same causes are also applicable to Vaikriyasharira-prayoga-bandh. There is one more cause in this case and that is labdhi or attaining of special power of body transmutation 5 (Vaikriyakaran labdhi ). Air-bodied beings, five-sensed animals and human beings acquire this. Thus these three acquire Vaikriya-sharira
भगवती सूत्र (३)
(240)
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Bhagavati Sutra ( 3 )
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