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५८. [प्र. १ ] असुरकुमारभवणवासिदेवपंचिंदियवेउब्विय०? [उ. ] जहा रयणप्पभापुढविनेरइया । [ २ ] एवं जाव थणियकुमारा। ५९. एवं वाणमंतरा। ६०. एवं जोइसिया।
५८. [प्र. १ ] भगवन् ! असुरकुमार--भवनवासी-देव-पंचेन्द्रिय- वैक्रियशरीर प्रयोगबन्ध किस 3 कर्म के उदय से होता है ?
[उ. ] गौतम ! इसका कथन भी रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिकों की तरह समझना चाहिए। __[२] इसी प्रकार यावत्-स्तनितकुमार-भवनवासी देवों तक कहना चाहिए।
५९. इसी प्रकार वाणव्यन्तर देवों के विषय में भी रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिकों के समान जानना चाहिए।
६०. इसी प्रकार ज्योतिष्कदेवों के विषय में जानना चाहिए।
58. [Q. 1] Same question about Asur Kumar Bhavanavasi devpanchendriya-vaikriya-sharira-prayoga-bandh (bondage related to
transmutable body formation of five-sensed Asur Kumar abode dwelling 4 gods)?
[Ans.] Gautam ! They follow the pattern of infernal beings of Ratnaprabha Prithvi.
[2] The same is true for divine beings up to Stanit Kumar abode dwelling gods.
59. The same is also true for Vanavyantar (interstitial) gods. 60. The same is also true for Jyotishk (stellar) gods. ६१. [१] एवं सोहम्मकप्पोवगया वेमाणिया। एवं जाव अच्चुय०। [ २ ] गेवेज्जकप्पातीया वेमाणिया एवं चेव। [ ३ ] अणुत्तरोववाइयकप्पातीया वेमाणिया एवं चेव।
६१. [१] इसी प्रकार (रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिकों के समान) सौधर्मकल्पोपपन्नक वैमानिक देवों यावत्-अच्युतकल्पोपपन्नक वैमानिक देवों तक के विषय में जानना चाहिए।
[२ ] ग्रैवेयक-कल्पातीत वैमानिक देवों के विषय में भी इसी प्रकार जान लेना चाहिए। [ ३ ] अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीत-वैमानिक देवों के विषय में भी पूर्ववत् जान लेना चाहिए।
भगवती सूत्र (३)
(230)
Bhagavati Sutra (3) 0555555555554554555555555555555555545454550
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