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卐 [२] एवं जाव अहेसत्तमाए, नवरं जा जस्स टिती जहनिया सा सव्वबंधंतरे जहन्नेणं अंतोमुहुत्तमभहिया कायव्वा, सेसं तं चेव।
[२] इसी प्रकार यावत अधःसप्तम नरकपृथ्वी तक जानना चाहिए। विशेष इतना है कि सर्वबन्ध का जघन्य अन्तर जिस नैरयिक की जितनी जघन्य (आयु) स्थिति हो, उससे अन्तर्मुहूर्त अधिक जानना चाहिए। शेष सर्वकथन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए।
[2] The same is true for living beings up to Adhah-saptmi Prithvi. The difference is that the minimum intervening period related to the bondage of the whole is one Antarmuhurt more than the minimum hellspecific life-span. Rest all is same as aforesaid.
७७. पंचिंदियतिरिक्खजोणिय-मणुस्साण जहा वाउक्काइयाणं। ॐ ७७. पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों और मनुष्यों के सर्वबन्ध का अन्तर वायुकायिक के समान जानना चाहिए।
77. Five-sensed animals and human beings follow the pattern of airbodied beings.
७८. असुरकुमार-नागकुमार जाव सहस्सारदेवाणं एएसिं जहा रयणप्पभागाणं, नवरं सव्वबंधंतरे म जस्स जा ठिती जहनिया सा अंतोमुहुत्तमभहिया कायव्वा, सेसं तं चेव।
७८. इसी प्रकार असुरकुमार, नागकुमार यावत् सहस्रारदेवों तक के वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध का ॐ अन्तर रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिकों के समान जानना चाहिए। विशेष इतना है कि जिसकी जो जघन्य के 卐 (आयु) स्थिति हो, उसके सर्वबन्ध का अन्तर, उससे अन्तर्मुहूर्त अधिक जानना चाहिए। शेष सारा कथन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए।
78. Divine beings including Asur Kumar, Naag Kumar ... and so on up to ... Sahasrar gods follow the pattern of infernal beings of the 4 Ratnaprabha-prithvi. The difference is that the minimum intervening
period related to the bondage of the whole is one Antarmuhurt more
than the minimum heaven-specific life-span. Rest all is same as $ aforesaid. म ७९. [प्र. ] जीवस्स णं भंते ! आणयदेवत्ते नोआणय० पुच्छा। __ [उ. ] गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं अट्ठारससागरोवमाइं वासपुहत्तमभहियाई; उक्कोसेणं अणंतं
कालं, वणस्सइकालो। देसबंधंतरं जहन्नेणं वासपुहुत्तं; उक्कोसेणं अणंतं कालं, वणस्सइकालो। एवं जाव ॐ अच्चुए; नवरं जस्स जा टिती सा सव्वबंधंतरे जहन्नेणं वासपुहत्तमब्भहिया कायव्वा, सेसं तं चेव।
७९. [प्र. ] भगवन् ! आनत देवलोक में देवरूप से उत्पन्न कोई देव, (वहाँ से च्यवकर) आनत देवलोक के सिवाय दूसरे जीवों में उत्पन्न हो जाये, (फिर वहाँ से मरकर) पुनः आनत देवलोक में ॐ देवरूप से उत्पन्न हो, तो इस आनतदेव के वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर कितने काल का होता है?
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अष्टम शतक : नवम उद्देशक
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Eighth Shatak : Ninth Lesson
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