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४७. [प्र. ] भगवन् ! एकेन्द्रियावस्थागत जीव (एकेन्द्रियत्व को छोड़कर) नो-एकेन्द्रियावस्था के + (किसी दूसरी जाति) में रहकर पुनः एकेन्द्रियरूप (एकेन्द्रियजाति) में आये तो एकेन्द्रियॐ औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर कितने काल का होता है ?
[उ. ] गौतम ! (ऐसे जीव का) सर्वबन्धान्तर जघन्यतः तीन समय कम दो क्षुल्लकभव-ग्रहण काल 5 और उत्कृष्टतः संख्यात वर्ष-अधिक दो हजार सागरोपम का होता है।
47. What is the intervening period between one Ekendriya-audariksharira-prayoga-bandh (bondage related to earth-bodied one-sensed gross physical body formation) and the next in case of the one-sensed living being reborn as some other class of living being (no-ekendriya) and 4 taking rebirth again as one-sensed being ?
[Ans.] Gautam ! This intervening period for the bondage of the whole (sarva-bandh) is a minimum of three Samaya less than Kshullak-bhavagrahan (time taken in taking rebirths of shortest life-span specific to the body-type) and a maximum of countable years more than two thousand Sagaropam.
४८. [प्र. ] जीवस्स णं भंते ! पुढविकाइयत्ते नोपुढविकाइयत्ते पुणरवि पुढविकाइयत्ते के + पुढविकाइयएगिंदियओरालिय-सरीरप्पयोगबंधंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ? म [उ. ] गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं दो खुड्डाइं भवग्गहणाई तिसमयऊणाई; उक्कोसेणं अणंतं .
कालं, अणंता उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, ते ॐ गं पोग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जइभागो। देसबंधंतरं जहन्नेणं खुड्डागभवग्गहणं समयाहियं, उक्कोसेणं अणंतं कालं जाव आवलियाए असंखेज्जइभागो।
४८. [प्र. ] भगवन् ! पृथ्वीकायिक-अवस्थागत जीव नो-पृथ्वीकायिक-अवस्था में (पृथ्वीकाय को छोड़कर अन्य किसी काय में) उत्पन्न हो (वहाँ रह) कर, पुनः पृथ्वीकायिकरूप (पृथ्वीकाय) में आये, तो - पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर कितने काल का होता है ? ___ [उ. ] गौतम ! (ऐसे जीव का) सर्वबन्धान्तर जघन्यतः तीन समय कम दो क्षुल्लकभव-ग्रहण काल
और उत्कृष्टतः अनन्तकाल होता है। कालतः अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल है, क्षेत्रतः अनन्त लोक, ऊ असंख्येय पुद्गल-परावर्तन हैं। वे पुद्गल-परावर्तन आवलिका के असंख्यातवें भाग-प्रमाण हैं। ऊ + (अर्थात्-आवलिका के असंख्यातवें भाग में जितने समय हैं, उतने पुद्गल परावर्तन हैं।) देशबन्ध का ॐ अन्तर जघन्यतः समयाधिक क्षुल्लकभव-ग्रहण-काल और उत्कृष्टतः अनन्तकाल..... म यावत्- 'आवलिका के असंख्यातवें भाग-प्रमाण पुद्गल-परावर्तन है'; यहाँ तक जानना चाहिए।
48. What is the intervening period between one Prithvikaayikekendriya-audarik-sharira-prayoga-bandh (bondage related to earthbodied one-sensed gross physical body formation) and the next in case of
अष्टम शतक : नवम उद्देशक
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Eighth Shatak: Ninth Lesson
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