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$$$$$$ $$步步步步步步步步步步%%%%%% and on reaching there he himself dies) as mentioned about ascetic not reaching the senior ascetics should be repeated for the ascetic reaching the senior ascetics ... and so on up to ... that ascetic (in all four alternative conditions) is steadfast and not faltering in conduct.
८. निग्गंथेण य बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा निक्खंतेणं अन्नयरे अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवति-इहेव ताव अहं०। एवं एत्थ वि, ते चेव अटु आलावगा भाणियव्या जाव नो विराहए।
८. (उपाश्रय से) बाहर विचार भूमि (नीहारार्थ स्थण्डिल भूमि) अथवा विहार भूमि (स्वाध्याय 5 भूमि) की ओर निकले हुए निर्ग्रन्थ द्वारा किसी अकृत्य स्थान का प्रतिसेवन हो गया हो, तत्क्षण उसके । ॐ मन में ऐसा विचार हो कि 'पहले मैं स्वयं यहीं इस अकृत्य की आलोचनादि करूँ,' इत्यादि पूर्ववत् सारा ॥
वर्णन यहाँ कहना चाहिए। यहाँ भी पूर्वोक्त प्रकार से असम्प्राप्त और सम्प्राप्त दोनों के (प्रत्येक के ॐ स्थविरमूकत्व, स्वमूकत्व, स्थविरकालप्राप्ति और स्वकालप्राप्ति, यों चार-चार आलापक होने से) आठ __ आलापक कहने चाहिए। यावत् वह निर्ग्रन्थ आराधक है, विराधक नहीं; यहाँ तक सारा पाठ कहना ॥ चाहिए।
8. Suppose a nirgranth (a male ascetic) (leaving his place of stay) goes to the place of excretion (Vichaar bhumi) or the place of study (Vihaar bhumi) and falls victim to a lapse (transgression of basic code of conduct). He at once becomes aware of his fault and thinks - ‘First of all right at this spot, I should appraise my action (alochana) ... and so on up to ... and court suitable penance for atonement.' Here eight alternatives (four alternatives related to the silence of self, silence of seniors, death of self and death of seniors in context of not reaching the destination and
four in context of reaching) as aforesaid should be repeated for each. 1 These alternatives should be repeated verbatim up to-such a nirgranth
(a male ascetic) is steadfast (araadhak) and not faltering in conduct (viraadhak)'.
९. निग्गंथेण य गामाणुगामं दूइज्जमाणेणं अन्नयरे अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवतिइहेव ताव अहं० । एत्थ वि ते चेव अट्ठ आलावगा भाणियव्या जाव नो विराहए।
९. ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए किसी निर्ग्रन्थ द्वारा किसी अकृत्य स्थान का प्रतिसेवन हो गया हो और तत्काल उसके मन में यह विचार स्फुरित हो कि 'पहले मैं यहीं इस अकृत्य की आलोचनादि । ॐ करूँ, इत्यादि सारा वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए। यहाँ भी पूर्ववत् आठ आलापक कहने चाहिए। यावत् ॐ है वह निर्ग्रन्थ आराधक है, विराधक नहीं; यहाँ तक समग्र पाठ कहना चाहिए।
9. Suppose a nirgranth (a male ascetic) (leaving his place of stay) moves about from one village to another and falls victim to a lapse (transgression of basic code of conduct). He at once becomes aware of his
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भगवती सूत्र (३)
(126)
Bhagavati Sutra (3)
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