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)))) ))))))))))))) mentioned in seventh chapter, second lesson, aphorism 1)... and so on i to ... thus we are perfectly prudent (ekaant pundit).
१०. तए णं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी-केण कारणेणं अज्जो ! तुम्हे दिनं गेण्हह 5 जाव दिनं सातिजह, तए णं तुब्भे दिन्नं गेण्हमाणा जाव एगंतपंडिया यावि भवह ? ! १०. [वाद ] तब उन अन्यतीर्थिकों ने उन स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार कहा- 'तुम किस कारण i (किस प्रकार) दत्त का ग्रहण करते हो, यावत् दत्त की अनुमति देते हो, जिससे दत्त का ग्रहण करते हुए - यावत् तुम एकान्तपण्डित हो ?' ।
10. [Q.] The heretics further asked the senior ascetics-Why do you i say, Noble ones ! You accept things given to you (datt), you eat things i given to you and you allow accepting (etc.) of things given to you. This
way as you accept what is given ... and so on up to ... you are perfectly i prudent (ekaant pundit)?
११. तए णं ते थेरा भगवंतो ते अन्नउत्थिए एवं वयासी-अम्हे णं अज्जो ! दिज्जमाणे दिने, पडिगहेज्जमाणे पडिग्गहिए, निसिरिज्जमाणे निसट्टे। अहं णं अज्जो ! दिज्जमाणं पडिग्गहगं असंपत्तं एत्थ णं अंतरा केइ अवहरेज्जा, अहं णं तं, णो खलु तं गाहावइस्स, तए णं अम्हे दिन्नं गेण्हामो, दिनं भुंजामो, दिन्नं सातिजामो, तए णं अम्हे दिन्नं गेण्हमाणा जाव दिन्नं सातिज्जमाणा तिविहं तिविहेणं संजय जाव एगंतपंडिया यावि भवामो। तुब्भे णं अज्जो ! अप्पणा चेव तिविहं तिविहेणं अस्संजय जाव एगंतबाला यावि ॥ भवह।
११. [प्रतिवाद ] इस पर स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीर्थिकों से इस प्रकार कहा-'हे आर्यो ! हमारे सिद्धान्तानुसार-दिया जाता हुआ पदार्थ 'दिया गया'; ग्रहण किया जाता हुआ पदार्थ ‘ग्रहण किया'
और पात्र में डाला जाता हुआ पदार्थ ‘डाला गया' कहलाता है। इसीलिए हे आर्यो ! हमें दिया जाता हुआ पदार्थ हमारे पात्र में नहीं पहुँचा (पड़ा) है, इसी बीच में कोई व्यक्ति उसका अपहरण कर ले तो 'वह पदार्थ हमारा अपहृत हुआ' कहलाता है, किन्तु 'वह पदार्थ गृहस्थ का अपहृत हुआ', ऐसा नहीं कहलाता। इस कारण से हम दत्त को ग्रहण करते हैं, दत्त आहार करते हैं और दत्त की ही अनुमति देते हैं। इस प्रकार हम दत्त को ग्रहण करते हुए यावत् दत्त की अनुमति देते हुए हम त्रिविध-त्रिविध संयत, विरत यावत् एकान्तपण्डित हैं, प्रत्युत, हे आर्यो ! तुम स्वयं त्रिविध-त्रिविध असंयत, अविरत, यावत् एकान्तबाल हो।
11. [Ans.] The senior ascetics explained to the heretics-Noble ones ! 45 i According to us things in process of being given are said to be 'given',
things in process of being accepted are said to be accepted', and things being poured in a bowl are said to be 'poured'. As such, while being poured if a thing is snatched away by someone, we say - "Our thing has been snatched away." We do not say-"The thing belonging to the
अष्टम शतक : सप्तम उद्देशक
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Eighth Shatak: Seventh Lesson
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