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Fi Starting from here Prayogapad, the whole sixteenth chapter of f Prajnapana Sutra, should be quoted here up to "This concludes the P_description of Vihaayo-gati'.
“Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and hso on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
विवेचन : गतिप्रपात के पाँच भेदों का स्वरूप-गतिप्रपात या गतिप्रवाद एक अध्ययन है, जिसका प्रज्ञापनासूत्र के सोलहवें प्रयोगपद में विस्तृत वर्णन है। उसके अनुसार संक्षेप में पाँचों गतियों का स्वरूप इस प्रकार हैA (१) प्रयोगगति-जीव के व्यापार से अर्थात् १५ प्रकार के योगों से जो गति (गमन क्रिया) होती है, उसे प्रयोगगति कहते हैं।
(२) ततगति-विस्तृत गति या विस्तार वाली गति को ततगति कहते हैं। जैसे-कोई व्यक्ति ग्रामान्तर जाने के के लिए रवाना हुआ, परन्तु ग्राम बहुत दूर निकला, वह अभी उसमें पहुँचा नहीं; उसकी एक-एक पैर रखते हुए
जो क्षेत्रान्तरप्राप्तिरूप गति होती है, वह ततगति कहलाती है। इस गति का विषय विस्तृत होने से इसे 'ततगति' । कहा जाता है।
(३) बन्धन-छेदनगति-बन्धन के छेदन से होने वाली गति। जैसे-शरीर से मुक्त जीव की गति होती है।
(४) उपपातगति-उत्पन्न होने रूप गति को उपपातगति कहते हैं। इसके तीन प्रकार हैं-क्षेत्र-उपपात, भवोपपात और नो-भवोपपात। नारकादि जीव और सिद्ध जीव जहाँ रहते हैं, वह आकाश क्षेत्रोपपात है, कर्मों के वश जीव नारकादि भवों (पर्यायों) में उत्पन्न होते हैं, वह भवोपपात है। कर्मसम्बन्ध से रहित अर्थात् नारकादि-पर्याय से रहित उत्पन्न होने रूप गति को नो-भवोपपात कहते हैं। इस प्रकार की गति सिद्ध जीव और पुद्गलों में पाई जाती है।
(५) विहायोगति-आकाश में होने वाली गति को विहायोगति कहते हैं। (वृत्ति, पत्रांक ३८१ एवं प्रज्ञापनासूत्र, पद १६)
॥ अष्टम शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त ॥ Elaboration-Gatiprapaat or Gatipravaad is the study of flow of movement discussed in detail in the sixteenth chapter, titled Prayogapad, of Prajnapana Sutra. According to it the brief description of five kinds of movement is as follows
Prayoga-gati-The intentional movement with 15 types of association (yoga).
Tat-gati-Extended or exploratory movement. For example a person starts walking towards a specific village and finds it to be far away. In
such situation the step by step movement of shifting from one area to. i another is called tat-gati. As this relates to movement in a large area it
is called tat-gati.
नामामामानामामामामामामामानामानानानागाना
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अष्टम शतक : सप्तम उद्देशक
(151)
Eighth Shatak : Seventh Lesson
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