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७. [ प्र. २ ] से य संपट्ठिए असंपत्ते अप्पणा य पुव्वामेव अमुहे सिया, से णं भंते ! किं आराहए, विराहए ?
[ उ. ] गोयमा ! आराहए, नो विराहए।
७. [ प्र. २] ( उपर्युक्त अकृत्यसेवी निर्ग्रन्थ ने तत्काल स्वयं आलोचनादि कर लिया, यावत् यथायोग्य प्रायश्चित्तरूप तपकर्म भी स्वीकार कर लिया), तत्पश्चात् स्थविर मुनियों के पास ( आलोचनादि करके यावत् तपःकर्म स्वीकार करने हेतु ) निकला, किन्तु उनके पास पहुँचने से पूर्व ही वह निर्ग्रन्थ स्वयं (वातादि दोषवश ) मूक हो जाए, तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक ?
[ उ. ] गौतम ! वह (निर्ग्रन्थ) आराधक है, विराधक नहीं ।
7. [Q.] [2] Suppose the aforesaid ascetic after appraisal ( etc.) of his fault proceeds to senior ascetics but before he reaches his destination he himself becomes mute (due to some ailment and is unable to narrate). Bhante! Is such a nirgranth (a male ascetic) steadfast or faltering in conduct?
[Ans.] Gautam ! He (that ascetic) is steadfast and not faltering in conduct.
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७. [ प्र. ३ ] से य संपट्टिए, असंपत्ते थेरा य कालं करेज्जा, से णं भंते! किं आराहए विराहए ? [ उ. ] गोयमा ! आराहए, नो विराहए।
७. [ प्र. ३ ] (उपर्युक्त अकृत्यसेवी निर्ग्रन्थ स्वयं आलोचनादि करके) स्थविर मुनिवरों के पास आलोचनादि के लिए रवाना हुआ, किन्तु उसके पहुँचने से पूर्व ही वे स्थविर मुनि काल कर (दिवंगत हो जाए, तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक ?
[ उ. ] गौतम ! वह (निर्ग्रन्थ) आराधक है, विराधक नहीं ।
7. [Q.] [3] Suppose the aforesaid ascetic after appraisal ( etc.) of his fault proceeds to senior ascetics but before he reaches his destination the senior ascetics die. Bhante! Is such a nirgranth (a male ascetic) steadfast or faltering in conduct?
[Ans.] Gautam ! He (that ascetic) is steadfast and not faltering in conduct.
७. [ प्र. ४ ] से य संपट्ठिए असंपत्ते अप्पणा य पुव्यामेव कालं करेज्जा, से णं भंते ! किं आराहए विराहए ?
[उ. ] गोयमा ! आराहए, नो विराहए।
भगवती सूत्र (३)
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Bhagavati Sutra (3)
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