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चित्र-परिचय 8
Illustration No. 8
अन्यतीर्थिक और स्थविर संवाद भगवान महावीर राजगृह नगर के गुणशीलक चैत्य में विराजमान थे। वहाँ भगवान के म ॐ बहुत-से स्थविर शिष्य थे। जाति सम्पन्न आदि गुणों से युक्त थे। राजगृह के गुणशीलक के
चैत्य के आसपास बहुत से अन्यतीर्थिक साधु भी रहते थे। वे भगवान के साधुओं के सम्पर्क में में आते रहते थे। उनमें आपस में वाद-प्रतिवाद भी होता रहता था। ऐसे ही एक प्रसंग का है यहाँ वर्णन किया गया है।
एक बार अन्यदर्शनी साधुओं ने स्थविर श्रमणों से चर्चा की और स्थविर श्रमणों ने अपने ज्ञान से उन्हें निरुत्तर कर दिया। भगवान के श्रमण अपने धर्म की श्रेष्ठता सिद्ध कर उन्हें निरुत्तर कर देते थे। “तुम अदत्त लेते हो" या "तुम बाल हो" आदि कथनों का यथोचित उत्तर देकर स्थविर बताते हैं कि हम किसी का दिया लेते हैं अर्थात् 'दत्त' ही लेते हैं। तुम अदत्त लेते हो। यावत् “तुम एकांत बाल हो, हम नहीं!" इस प्रकार भगवान के श्रमण इतने में ज्ञान सम्पन्न, श्रद्धा सम्पन्न थे कि अपने धर्म की श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए अन्य धर्मावलम्बी को निरुत्तर कर देते थे।
-शतक 8, उ. 7, सूत्र 1-24
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DISCUSSION BETWEEN HERETICS AND SENIOR ASCETICS
Bhagavan Mahavir was staying in Gunasheelak Chaitya in Rajagriha. Also with him were many senior ascetic disciples belonging to high castes and having many qualities. A little distance away from that lived many heretics (anyatirthik). They came in contact with Bhagavan's disciples and had discussions with them. One such incident is narrated
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here.
Once the heretics debated with the senior ascetics and were silenced by their profound knowledge. Often the ascetic disciples of Bhagavan silenced the heretics by proving that the Shraman religion was better. They gave convincing reply to accusations by heretics, such as “You take what is not given.'Or You are ignorant.'They logically refuted and proved that it was not them but the heretics who took what is not given. Thus it was the heretics that were ignorant and not they. Thus Bhagavan's disciples had so profound knowledge and faith that establishing the excellence of their own religion they silenced the followers of other religions.
- Shatak-8, lesson-7, Sutra-1-24
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