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- families) (etc. as mentioned in Chapter 2)... and so on up to ... were free
of the desire for life and fear of death. With their knees up and heads 4 bent low, they sat immersed in meditation, enkindling (bhaavit) their
souls with ascetic-discipline and austerities in proximity of Shraman Bhagavan Mahavir.
४. तए णं ते अनउत्थिया जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ते थेरे भगवंते एवं वयासी-तुब्भे णं अज्जो ! तिविहं तिविहेणं अस्संजयअविरयअप्पडिहय जहा सत्तमसए बितिए उद्देसए (स.. ७, उ. २, सु. १ [ २ ]) जाव एगंतबाला यावि भवह।
४. एक बार वे अन्यतीर्थिक, जहाँ स्थविर भगवन्त थे, वहाँ आये। उनके निकट आकर वे स्थविर भगवन्तों से यों कहने लगे- 'हे आर्यो ! तुम त्रिविध-त्रिविध (तीन करण, तीन योग से) असंयत,
अविरत. अप्रतिहतपापकर्म (पापकर्म का निरोध नहीं किये) तथा पापकर्म का प्रत्याख्यान नहीं किये हए 卐 हो'; इत्यादि जैसे सातवें शतक के द्वितीय उद्देशक (सू. १/२) में कहा गया है, तदनुसार कहा; यावत् ॥ तुम एकान्त बाल (अज्ञानी) भी हो।
4. Once those heretics came where the senior ascetics (sthavirs) lived. * Approaching the senior ascetics they said-O noble ones ! You are devoid 卐 of restraint (asamyat), detachment (avirat), control on and renunciation +
of sinful indulgence (apratihat and apratyakhyan) towards all praan 47 (two to four sensed beings; beings)... and so on up to... all sattva (immobile beings; entities) through three means (karan) and three
methods (yoga). [As mentioned in seventh chapter, second lesson, 5 aphorism 1/2 up to you are also complete ignorant (ekaant baal)'). 卐 ५. [प्र. ] तए णं ते थेरा भगवंतो ते अनउत्थिए एवं वयासी-केणं कारणेणं अज्जो ! अम्हे तिविहं
तिविहेणं अस्संजय-अविरय जाव एगंतबाला यावि भवामो ? 卐 ५. [प्र. ] इस पर उन स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीर्थिकों से इस प्रकार पूछा-'आर्यो ! किस कारण से हम त्रिविध-त्रिविध असंयत, अविरत, यावत् एकान्तबाल हैं ?
[0.1 The senior ascetics responded by asking the heretics-Noble $iones ! Why do you say that we are devoid of restraint (asamyat),
detachment (avirat), control on and renunciation of sinful indulgence (apratihat and apratyakhyan) through three means (karan) and three
methods ... and so on up to ... are complete ignorant (ekaant baal)? ॐ ६. [ उ. ] तए णं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी-तुब्भे णं अज्जो ! अदिन्नं गेण्हह,
अदिन्नं भुंजह, अदिन्नं सातिज्जह। तए णं तुब्भे अदिनं गेण्हमाणा, अदिन्नं भुंजमाणा, अदिन्नं सातिज्जमाणा ॐ तिविहं तिविहेणं अस्संजय अविरय जाव एगंतबाला यावि भवह।
६. [उ. ] तदनन्तर उन अन्यतीर्थिकों ने स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार कहा-हे आर्यो ! तुम 5 अदत्त (किसी के द्वारा नहीं दिया हुआ) पदार्थ ग्रहण करते हो, अदत्त का भोजन करते हो और अदत्त
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भगवती सूत्र (३)
(140)
Bhagavati Sutra (3)
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