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Illustration No. 7
चित्र-परिचय 7
आहार दान का फल तथारूप श्रमण-जो बाह्य और आभ्यन्तर रूप से साधु है, साधु के योग्य वस्त्र-पात्र आदि धारण किये हुये है और चारित्रादि गुण युक्त है, ऐसे श्रमण को श्रावक निर्दोष आहारादि का दान देता है तो एकान्त निर्जरा करता है। श्रमण आचारवंत है पर आहारादि में कोई दोष है, ऐसे दान देने वाले श्रावक को निर्जरा तो होती है, मगर थोड़ा पाप का बंध भी होता है
और असंयत, अविरत-तथारूप-अर्थात् अन्यतीर्थिक जो पाप कर्मों के निरोध और प्रत्याख्यान से रहित हैं उन्हें कोई भी वस्तु का दान देने वाले श्रावक को एकांत पाप का बंध होता है, ऐसा भगवान फरमाते हैं।
निर्ग्रन्थ की आराधकता किसी साधक से अगर कोई पाप-दोष हो गया हो और वह उसका प्रायश्चित्त लेने की भावना से अपने गुरु के पास जाने के लिये अग्रसर होता है। किसी कारणवश रास्ते में उसकी मृत्यु हो जाती है तो भी वह आराधक कहलाता है। उसने प्रायश्चित्त लिया नहीं परन्तु उसकी भावना प्रायश्चित्त लेने की थी, इसलिए वह विराधक नहीं आराधक होता है।
-शतक 8, उ. 6, सूत्र 1-7
FRUITS OF FOOD DONATION Tatharupa Shraman - By offering fault-free and acceptable food to an ascetic in prescribed garb and endowed with spirituality and other attributes like right conduct the donor exclusively sheds karmas. If the ascetic follows right conduct but the food is faulty then the donor does shed karmas but he also acquires some demerit-karmas. However, if donor gives to an indisciplined monk including a heretic in some other garb, he exclusively acquires demerit-karmas. This is what the Lord says.
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STEADFASTNESS OF ASCETICS
When an ascetic after appraisal of his fault proceeds to his guru to perform atonement but before he reaches his destination he dies on the way he is still called steadfast. Although he has not performed atonement he had the intention to do so, therefore he is called steadfast and not faltering in conduct.
- Shatak-8, lesson-6, Sutra-1-7
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