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EIGHTH SHATAK (Chapter Eight ) : SIXTH LESSON : PRASUK (FAULT-FREE)
छट्ठो उद्देसओ : 'फासुगं' अष्टम शतक : छठा उद्देशक : प्रासुक
आहार- दान का फल BENEFITS OF FOOD DONATION
१. [ प्र.] समणोवासगस्स णं भंते ! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासुएसणिज्जेणं असण- पाणखाइम - साइमेणं पडिला भेमाणस्स किं कज्जति ?
[उ. ] गोयमा ! एगंतसो से निज्जरा कज्जइ, नत्थि य से पावे कम्मे कज्जति ।
१ . [ प्र. ] भगवन् ! तथारूप ( श्रमण के वेश तथा तदनुकूल गुणों से सम्पन्न ) श्रमण अथवा माहन ( अहिंसाव्रती ) को प्रासुक एवं एषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार द्वारा प्रतिलाभित करने वाले श्रमणोपासक को किस फल की प्राप्ति होती है ?
[उ. ] गौतम ! वह ( ऐसा करके) एकान्त रूप से निर्जरा करता है; उसके पापकर्म नहीं होता ।
1. [Q.] What benefit does a Shramanopasak derive by offering faultfree and acceptable ashan, paan, khadya, svadya ahaar (staple food, liquids, general food, and savoury food) to an ascetic conforming to the description in Agams (tatharupa Shraman) or one who has taken the vow of non-violence (Mahan ) ?
[Ans.] Gautam! By doing so he exclusively sheds karmas; he does not acquire demeritorious karmas (paap karma).
२. [ प्र.] समणोवासगस्स णं भंते ! तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असण- पाण जाव पडिला भेमाणस्स किं कज्जइ ?
[उ.] गोयमा ! बहुतरिया से निज्जरा कज्जइ, अप्पतराए से पावे कम्मे कज्जइ ।
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२. [ प्र. ] भगवन् ! तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक एवं अनेषणीय आहार द्वारा प्रतिलाभित करते हुए श्रमणोपासक को किस फल की प्राप्ति होती है ?
[उ. ] गौतम ! उसके बहुत निर्जरा होती है, और अल्पतर पापकर्म होता है ।
2. [Q.] What benefit does a Shramanopasak derive by offering faulty and unacceptable staple food, liquids and so on up to ... savoury food
to an ascetic conforming to the description in Agams (tatharupa Shraman) or one who has taken the vow of non-violence (Mahan ) ?
भगवती सूत्र (३)
[Ans.] Gautam ! By doing so he sheds much karmas and acquires very little demeritorious karmas (paap karma).
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Bhagavati Sutra (3)
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