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[Ans.] Like the 147 alternative combinations ( 49 of censuring, 49 of refraining and 49 of renouncing) mentioned in context of killing, 147 alternatives should also be stated in context of falsehood (mrishavaad). In the same way 147 alternative combinations each should also be mentioned in context of gross stealing (adattadaan), gross libido (maithun) and gross possession (parigraha ) up to 'does not attest others doing (the act of killing) by body.'
विवेचन : तीन करण हैं-करना, कराना और अनुमोदन करना, तथा तीन योग हैं-मन, वचन और काया । इनके संयोग से विकल्प नौ और भंग उनचास होते हैं। उनका वर्णन किया जा चुका है।
भूतकाल के प्रतिक्रमण, वर्तमानकाल के संवर और भविष्य के लिए प्रत्याख्यान की प्रतिज्ञा, इस प्रकार तीनों काल की अपेक्षा ४९ भंगों को ३ से गुणा करने पर १४७ भंग होते हैं। ये स्थूलप्राणातिपात-विषयक हुए। इसी प्रकार स्थूल मृषावाद, स्थूल अदत्तादान, स्थूल मैथुन और स्थूल परिग्रह, इन प्रत्येक के १४७ भंग होते हैं। यों पाँचों अणुव्रतों के कुल भंग १४७ × ५ = ७३५ होते हैं। श्रावक इन ४९ भंगों में से किसी भंग से यथाशक्ति प्रतिक्रमण, संवर या प्रत्याख्यान कर सकता है। तीन करण तीन योग से संवर या प्रत्याख्यानादि श्रावक प्रतिमा स्वीकार किया हुआ श्रावक कर सकता है अथवा संथारा किया हुआ श्रावक तीन करण तीन योग (९ कोटि) भंग का आराधक है। (वृत्ति, पत्रांक ३७० ३७१ )
Elaboration-Three karans (methods) are — to do, to induce others to do, and to attest others doing. Three yogas (means) are mind, speech, फ्र and body. There are nine primary and forty-nine secondary alternative combinations of these detailed as aforesaid.
When applied to censure (pratikraman), refraining (samvar) and renouncing (pratyakhyan) of acts of gross killing in three sections of time (past, present and future) the total number of alternative combinations becomes (3x49) 147. In the same way there are 147 alternative combinations each for gross falsehood (mrishavaad), gross stealing (adattadaan ), gross libido (maithun) and gross possession (parigraha). Thus there are 147 x 5 = 735 alternative combinations for the five minor vows meant for shravak (Jain laity ). A shravak can choose any of the 49 combinations depending on his capacity. Only a shravak who is capable of accepting shravak pratima (special resolves meant for a lay follower) can stick to the ideal combinations of all three methods by all three means. (Vritti, leaf 370-371)
आजीविकोपासक और श्रमणोपासकों का आचार भेद
COMPARATIVE CONDUCT OF FOLLOWERS OF AJIVAK AND SHRAMAN
७. एए खलु एरिसगा समणोवासगा भवंति, नो खलु एरिसगा आजीवियोवासगा भवंति । ७. (उक्त स्वरूप वाले) श्रमणोपासक ऐसे होते हैं, किन्तु आजीविकोपासक ऐसे नहीं होते ।
अष्टम शतक : पंचम उद्देशक
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Eighth Shatak: Fifth Lesson
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