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५. [प्र. ४ ] अणागतं पच्चक्खमाणे किं तिविहं तिविहेणं पच्चक्खाइ ? [उ. ] एवं ते चेव भंगा एगूणपण्णं भाणियव्वा जाव अहवा करेंतं णाणुजाणइ कायसा।
५. [प्र. ४ ] भगवन् ! अनागत (भविष्यत्) काल का प्रत्याख्यान करता हुआ श्रावक क्या त्रिविधत्रिविध प्रत्याख्यान करता है ? (इत्यादि पूर्ववत्। समग्र प्रश्न समझें)।
[उ. ] गौतम ! पहले (प्रतिक्रमण के विषय में) कहे अनुसार यहाँ भी उनचास (४९) भंग कहने चाहिए; यावत् ‘अथवा करते हुए का अनुमोदन नहीं करता, काया से;'-यहाँ तक कहना चाहिए।
5.[Q.4] Bhante ! While renouncing killing (taking a vow not to kill) in the future does a shravak do so three ways (by karans or methods) and three ways (by yogas or means)? And all aforesaid questions.
[Ans.] Gautam ! (For a shravak renouncing from killing in the future) All the aforesaid (in relation to pratikraman) 49 alternative combinations (three methods and three means to one method and one means) ... and so on up to ... 'does not attest others doing (the act of killing) by body.' should be stated here.
६. [प्र. ] समणोवासगस्स णं भंते ! पुवामेव थूलए मुसावाए अपच्चक्खाए भवइ, से णं भंते ! पच्छा पच्चाइक्खमाणे ? 1 [उ. ] एवं जहा पाणाइवायस्स सीयालं (१४७) भंगसतं भणियं तहा मुसावायस्स वि भाणियध्वं । एवं + अदिण्णादाणस्स वि। एवं थूलगस्स मेहुणस्स वि। थूलगस्स परिग्गहस्स वि जाव अहवा करेंतं णाणुजाणइ कायसा।
६. [प्र. ] भगवन् ! जिस श्रमणोपासक ने पहले स्थूल मृषावाद का प्रत्याख्यान नहीं किया, किन्तु ॐ पीछे वह स्थूल मृषावाद (असत्य) का प्रत्याख्यान करता हुआ क्या करता है ?
[उ. ] गौतम ! जिस प्रकार प्राणातिपात (अतीत के प्रतिक्रमण, वर्तमान के संवर और भविष्य के प्रत्याख्यान; यों त्रिकाल) के विषय में कुल ४९ x ३ = १४७ (एक सौ सैंतालीस) भंग कहे हैं, उसी
प्रकार मृषावाद के सम्बन्ध में भी एक सौ सैंतालीस भंग कहने चाहिए। इसी प्रकार स्थूल अदत्तादान के क विषय में, स्थूल मैथुन के विषय में एवं स्थूल परिग्रह के विषय में भी पूर्ववत् प्रत्येक के एक सौ + सैंतालीस-एक सौ सैंतालीस त्रैकालिक भंग जानना चाहिए; यावत्-‘अथवा पाप करते हुए का के अनुमोदन नहीं करता, काया से; यहाँ तक कहना चाहिए।
6. (Q.) Bhante ! If a shravak has not initially renounced gross falsehood (mrishavaad) what does he do when he renounces the same later ?
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| भगवती सूत्र (३)
(112)
Bhagavati Sutra (3)
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