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4. [Q. 2] Bhante ! (When his wife become non-wife for him) then why do you say that the rogue enjoys the shravak's wife (jaaya) and not a f woman who is not that shravak's wife (ajaaya ) ?
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[Ans.] Gautam ! That shravak performing Samayik and other such activities has ideas that the mother is not mine, the father is not mine,
f the brother is not mine, the sister is not mine, the wife is not mine, the 5 son is not mine, the daughter is not mine, and the daughter-in-law (snusha) is not mine. However the bond of love between him and these relatives has not been broken. That is why, Gautam ! I say that the Frogue enjoys the shravak's wife (jaaya) and not a woman who is not that f shravak's wife (ajaaya).
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४. [ प्र. २ ] भगवन् ! (जब शीलव्रतादि-साधनाकाल में श्रावक की जाया 'अजाया' हो जाती है), तब आप ऐसा क्यों कहते हैं कि वह व्यभिचारी पुरुष उसकी जाया को भोगता है, अजाया को नहीं भोगता ।
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[उ. ] गौतम ! शीलव्रतादि को अंगीकार करने वाले उस श्रावक के मन में ऐसे परिणाम होते हैं कि माता मेरी नहीं है, पिता मेरे नहीं हैं, भाई मेरा नहीं है, बहन मेरी नहीं है, भार्या मेरी नहीं है, पुत्र मेरा नहीं है, पुत्री मेरी नहीं है, पुत्रवधू (स्नुषा ) मेरी नहीं है; किन्तु इन सबके प्रति उसका प्रेम बन्धन टूटा नहीं है । इस कारण, हे गौतम! मैं कहता हूँ कि वह पुरुष उस श्रावक की जाया को भोगता है, अजाया को नहीं भोगता ।
विवेचन : सामायिक, पौषधोपवास आदि अंगीकार किये हुए श्रावक ने यद्यपि वस्त्रादि सामान का त्याग कर दिया है, यहाँ तक कि सोना, चाँदी, धन, घर, दुकान, माता, पिता, स्त्री, पुत्र आदि पदार्थों के प्रति भी उसके मन में यही परिणाम होता है कि ये मेरे नहीं हैं, तथापि उनके प्रति उसके ममत्व का त्याग नहीं हुआ है, उनके प्रति प्रेमबन्धन रहा हुआ है, इसलिए वे वस्त्रादि तथा स्त्री आदि उसके कहलाते हैं। (वृत्ति, पत्रांक ३६८)
Elaboration-A shravak accepts the Samayik, Paushadhopavas and other vows and abandons clothes and other belongings to the extent that even for things like gold silver, wealth, house, shop, parents and relatives he thinks that they do not belong to him. However, as he has not yet been able to renounce his fondness and love for them, these things are considered to be belonging to him. (Vritti, leaf 368)
श्रावक व्रतों के उनचास भांगे FORTY NINE SUB-DIVISIONS OF HOUSEHOLDER'S VOWS
५. [ प्र. १ ] समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव धूलए पाणाइवाए अपच्चक्खाए भवइ, से णं भंते ! पच्छा पच्चाइक्खमाणे किं करेइ ?
[उ. ] गोयमा ! तीयं पडिक्कमइ, पडुप्पन्नं संवरेइ, अणागयं पच्चक्खाई।
अष्टम शतक : पंचम उद्देशक
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Eighth Shatak: Fifth Lesson
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