Book Title: Vinit Kosh
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Gujarat Vidyapith Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संस्कृत-गुजराती विनीत कोश संपादक गोपालदास जीवाभाई पटेल साधिधाय AME गूजरात विद्यापीठ अमदावाद-१४ . Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ગૂજરાત વિદ્યાપીઠના અન્ય કોશ અને પરિભાષા કૃષિ રાખ્મકોરા કચ્છ શબ્દાવલિ ખિસ્સાકોશ ચોધરીઓ અને ચોધરી શબ્દાવલિ ભીલી-ગુજરાતી શબ્દાવલિ ગણિતની પરિભાષા વિજ્ઞાનની પરિભાપા અર્થશાસ્ત્રની પરિભાષા વિનીત જોડણીકોરા હિંદી – ગુજરાતી કોરા ગુજરાતી – હિંદી કોરા ૨૧૦.૦૦ ૪.૦૦ ૮.૦૦ ૮.૦૦ ૧.૫૦ ૦.૫૦ ૦.૬૨ ૧.૫૦ ૬૦.૦૦ ૧૦૦,૦૦ (છપાય છે.) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गूजरात विद्यापीठ ग्रंथावली : पु० १२५ __संस्कृत-गुजराती विनीत कोश संपादक गोपाळदास जीवाभाई पटेल . गूजरात विद्यापीठ अमदावाद-१४ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्ति © सर्व हक गुजरात विद्यापीठने स्वाधीन छे पहेली आवृत्ति, प्रत ५,०००, जुलाई, १९६२ प्रथम पुनर्मुद्रण, प्रत ५,०००, नवम्बर, १९९२ मुद्रक जितेन्द्र ठा. देसाई . नवजीवन मुद्रणालय, अमदावाद - ३८००१४ प्रकाशकनुं निवेदन संपादकनुं निवेदन संकेतोनी समज सं० गु० विनीत कोश परिशिष्ट सो रूपिया प्रकाशक विनोद रेवाशंकर त्रिपाठी मंत्री, गूजरात विद्यापीठ मंडळ गूजरात विद्यापीठ. अमदावाद - ३८.०० ०१४ १ विशेषनाम सूची २ : न्यायसंग्रह ३ : संख्यावाचक शब्द रामलाल परीख ३ ४ १२ १ ५९७ ६३० ६३७ .६३९ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकनुं निवेदन विनोत कक्षाना विद्यार्थीओने संस्कृत भाषाना अभ्यासमां मददरूप थाय एवो संस्कृत - गुजराती शब्दकोप तैयार करवानुं गूजरात विद्यापीठे ठरावेलं. आपणा समृद्ध प्राचीन साहित्य साथै ऊगती पेढोनो संबंध साव न पाई जाय ते माटे संस्कृत भाषानो अभ्यास खूब जरूरी छे. ते अभ्यास करवा माटे विद्यार्थीओ अने सामान्य प्रजाजनने उपयोगी एवा आधारभूत संस्कृत- गुजरातो शब्दकोशनी घणौ आवश्यकता हती. ते आवश्यकता आ प्रकाशनथी पूरी थशे एवी आशा राखुं छं. आ काम घणो जहमत उठावाने करो आपवा माटे श्री. गोपाळदास पटेलनो आभार मानुं छं. कोश विभागना कार्यकरो अने अन्य सहु कोई जेमणे आ कार्यमां मदद करो छे, ते सहुनो आ तके आभार मानुं छं. आ ग्रंथना प्रकाशन - र - खर्च पेटे भारत सरकारना वैज्ञानिकसंशोधन अने सांस्कृतिक बाबतोना खाता तरफथी आर्थिक मदद मळी छे तेनो उल्लेख करतां आनंद थाय छे. ता. ६-७-६२ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपादकनुं निवेदन संस्कृत भाषा अने संस्कृति " भारतने पोतानुं अस्तित्व जाळवी राखवुं हशे अने साची प्रगति साधवी हो, तो संस्कृत भाषानुं आराधन चालु राख्या विना तेने चालवानुं नथी. कारण के तेनी संस्कृति ते भाषाना ताणावाणामां वणायेली छे. अने प्रजाकीय अस्मिता जोखममां नाख्या सिवाय, पहेरवानां कपडांनी जोडनी जेम, संस्कृतिने बदली के फगावी दई शकाती नथी. तेथी ज ज्यारे ज्यारे भारतना राष्ट्रीय उत्थान माटेनी कोई पण हिलचाल शरू थई छे, त्यारे संस्कृत भाषा अने भारतीय संस्कृति तरफ ते चळवळोना नेताओनी दृष्टि सहेजे गई छे. भाषा ए आखरे तो अव्यक्त एवा मानव आत्माना आविर्भावनुं एक व्यक्त साधन छे; एटले गीताकारे चेतवणी आपी छे ते अहीं पण लागु पडे छे. 'अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते माम् अबुद्धयः ' । व्यक्त एवा भाषा - साधनने आत्मा जेवुं के जेटलुं महत्त्व आपी देवानी भूल न करीए. परंतु आत्मा पण स्थूल शरीर विना आविर्भाव न पामी शके; एटले भाषारूपी स्थूल साधननुं महत्त्व ओछु तो न ज आंकी शकाय अलबत्त, ए भाषानो उत्तरोत्तर विकास - परिवर्तन थई जे नवी नवी लौकिक - प्राकृत भाषाओ रूढ थाय, ते पण भारतीय संस्कृतिना प्रवाहने वहन करती होय; एटले भारतना इतिहासना पुनरुत्थानना केटलाय तबक्काओ पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि अने ते बाद खीलेली अत्यारनी आपणी भाषाओने आधारे पण प्रवर्त्या छे. परंतु ए बधी जुदी जुदी भाषाओनी मणिमाळाना सूत्रात्मा रूपे मुख्यत्वे संस्कृत भाषानो प्राणतंतु रहे छे, ए भूलवुं न जोईए. प्राकृत भाषाओ प्रथम हती के संस्कृत भाषा, ए एक जुदो ऐतिहासिक सवाल छे. परंतु एक वात नक्की के, भारतवर्षना आत्मारूप मूळ संस्कृति संस्कृत भाषामां जेवी सर्वतोभद्र भावे प्रगट थई, तेवी आ स्थानिक - लौकिक भाषाओमां सर्वतोभावे नथी प्रगट थई. स्थानिक - लौकिक भाषाओमां तेनां अमुक अमुक अंगो ज जाणे एकांगीपणे फूल्यां - फाल्यां. परंतु ए बधां एकांगी अंगोनो समन्वय के शुद्धीकरण मूळ स्रोतनी मदद द्वारा थतां ज रहेवां जोईए. एटले शरूआतमां कयुं के, भारतवर्षने संस्कृत भाषानुं आराधन छोड्ये चालवानुं नथी. ४ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आधुनिक वहेणनी विश्म उपर कहयुं छे तेम, लौकिक - स्थानिक भाषाओ पण ए मूळ स्रोतने वहन करे ज छे. एटले प्रजानो मोटो भाग ए लौकिक - स्थानिक देशी भाषाओ द्वारा ज पोताना लोकात्माने ओळखीने संस्कार-रस मेळवतो रहेवानो. परंतु समग्र देशनी संस्कृतिना धारण-पोषण-संशोधननी रीते विचारीए, तो प्रजाना अमुक वर्गनो पेला मूळ स्रोत साथेनो संपर्क चालु रहेवो ज जोईए. __ तेथी ज स्वराजनी चळवळ वखते आपणी प्राचीन संस्कृति अने भाषा के भाषाओना स्रोतमां नाहीने शुद्ध - संस्कृत थवानो प्रयत्न विशेष तीव्र बन्यो हतो. परंतु आजे स्वराज आव्या पछी, ए बाबतमां ओट ज आव्यानां, एटलं ज नहि पण, विपरीत वहेण शरू थयानां लक्षण वरताय छे. आजे ए मूळ संस्कृत भाषा तो शं, पण आपणी लौकिक - देशी भाषाओनां मान पण छेक ज ओसरी गयां छ; अने केटलाक लोको समाजवादी संस्कृति साथे तेना वाहन रूपे अंग्रेजी भाषाने भारतवर्षमा कायम करवाना पोकार पाडे छे. अने ए अंग्रेजी भाषा द्वारा तेओ शुं जाळववा के लाववा मागे छ ? थोडीक यांत्रिक कसब के थोडु भौतिक विज्ञान. ए बे चीजोनो आपणे कशो उपयोग नथी एम न कहीए; तोपण ए बे विना जाणे भारतनो उद्धार नहि थाय एम मानवामां आवे छे, ए तो केवळ अतिरेक छे. भारतवर्षनो उत्कर्ष यांत्रिक - भौतिक संस्कृतिथी साधवानो प्रयत्न अत्यारे ज पहेलवहेलो थाय छे, एम नथी. आपणो प्राचीन इतिहास ए प्रयत्नो अने तेमने मळेली निष्फळतानां प्रकरणोथी अंकित छे. जूना ब्राह्मणग्रंथोथी मांडीने देव-असुर संग्रामना रूपकथी एवा प्रयत्नो वारंवार आपणा इतिहासमां नोंधाया छे. अने छेक छेवटे गीताकारे पण 'आसुरी संपत्' उपर पोताना सचोट चाबखा लगाव्या छे. एटलं ज नहि, पण ए आसुरी संपत् ज्यारे जोर पकडे छे, त्यारे त्यारे भगवान पोते अवतार लई तेनो विनाश करवा प्रवृत्त थाय छे, एम पण नोंध्युं छे. भारतवर्षनी भौतिक साधनसंपत्ति एवी छ के, आवी आसुरी संस्कृतिओ त्यां झट प्रवर्ती शके. परंतु एवी आसुरी संस्कृतिओने रवाडे चडी, केटलांय साम्राज्यो नामशेष थई गयां, ए पण भारतवर्षनो इतिहास कहे छे. आधुनिक युगमां पाछी विदेशोमांथी शरू थयेली प्रबळ भौतिक संस्कृतिनी संगठित चडाई सामे गांधीजीए सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह वगेरे बाबतोवाळी आध्यात्मिकरचनात्मक संस्कृतिनुं जोर ऊभुं कर्यु हतुं. तेनी साथे ज राष्ट्रभाषा अने मातृभाषानो नारो पण बुलंद थयो. अने आपणी मूळ संस्कृति (अने तेना वाहन संस्कृत भाषा) तरफ पण वहेण वळयु हतुं. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परंतु, गांधीजीनी विदाय बाद हवे फरी पाछी इजनेरी-दाकतरीयंत्रोद्योगी-विज्ञाननी प्रगति उपर भार मूकती समाजवादी संस्कृतिनी वातो जोर पकडवा लागो छे, अने राष्ट्रभाषा मातृभाषाने स्थाने अंग्रेजी भाषाने मूकीने तेने सौ गुणोना, सौ प्रगतिना, सौ संस्कारना अरे भारतीय एकताना आधार तरीके रजू करवानुं शरू थयुं छे. परिणामे, हवे अतिशयोक्तिनी रीते कहेवुं होय तो, ब्राह्मणनी छोकरीओ शाळा- महाशाळामां संस्कृत भाषाने बदले 'सायन्स'ने अभ्यासना विषय तरीके ले छे. अने राष्ट्रभाषा मातृभाषाने बदले अंग्रेजीमां ज उच्च शिक्षा मळे ए माटे अदालती हुकमो मेळववामां आवे छे. संस्कृत भाषाने अभ्यासना मुख्य विषय तरीके नारा तो गणित के विज्ञानमां न फावनारा 'बिचारा 'ओ ज गणाय छे, अने आधुनिक भारतमां तेमने माटे जूना काशी-पंडितो जेवी कंगाळ स्थिति ज निर्माण पण थवा लागी छे. अलबत्त, अंग्रेजी भाषा भणनारे लांचिया, दारूडिया के व्यभिचारी थयुं, एवो कोई शाप तो नथी ज; के संस्कृत अने देशी भाषा भणनारा सौ दैवी संपत्वाळा ज थशे एवं कोई वरदान पण नथी. परंतु संस्कृतिनो आत्मा ए एवी निरवयव, सूक्ष्म, अविनाशी चीज छे, के तेनी उपासना के 'आत्म हत्या - ए बेनो त्रीजो विकल्प नथी. आ संस्कृत कोश - आ संक्षिप्त 'विनीत' कोश एक रीते उपर जणावेली एवी भारतीय श्रद्धानं प्रतीक छे के, भारतीय संस्कृतिए पोतानो आत्मा खोवो न होय, तो संस्कृत भाषानो संपर्क छोडये नहीं चाले; तेथी तेना अभ्यासने माटे जरूरी सामग्री - आ कोश जेवी - उपलब्ध करवी जोईए, एम विद्यापीठे विचार्य. अलबत्त, अत्यारे अभ्यासक्रममां अंग्रेजीने ज बार-बार कलाको (पीरियड) आपवाना के तेने पांचमा धोरणथी, त्रीजा धोरणथी के बाळपोथीथी शरू करवाना जे प्रयत्नो थाय छे, ते जोतां आजनी भारतीय शाळाओमां आ भाषाना अभ्यासने घटतुं स्थान के समय मळवां शक्य नथी. छतां 'सर्वनाशे समुत्पन्ने' जेवी दशामां डहापण वापरी, संस्कृत - भाषाना अभ्यासने जेटलो टेकवाय तेटलो टेकवी आपवो जोईए. अने ते माटे उपयोगी एवं नानुं सुलभ साधन गणीने आ कोश तैयार करेलो छे. मॅट्रिक - विनीतना विद्यार्थीने जे कक्षाना संस्कृत फकराओ अभ्यासक्रममां भणवाना आवे छे, तेमने मुख्यत्वे लक्षमां राखी आ कोशना शब्दो संघर्या छे. अलबत्त, ए फकराओथी पांच के सात गणा कदनी ' गाइडो' एटली बधी सुलभ होय छे के, ते परीक्षा माटे तो ए 'गाइड' ज सौथी वधु उपयोगी थाय. परंतु, मॅट्रिक जेटलुं संस्कृत भण्या पछी ए विद्यार्थीने संस्कृत साहित्यना मूळ ग्रंथो Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरफ जवा मन थाय, (अने थवं पण जोईए,) तो तेने उपयोगी एवो एक कोश तैयार मळवो जोईए. तो ज ते एटला भणतरने उपयोगमा लई, आगळ अभ्यास जारी राखी शके. मॅट्रिक-विनीत कक्षामा सामान्य रीते रामायण, महाभारत, पंच महाकाव्य, प्रसिद्ध संस्कृत नाटको, अने कादंबरी, कथासरित्सागर, हितोपदेश, पंचतंत्र आदि कथासाहित्यने आवरवामां आवे छे. एटले आ कोशमां मुख्यत्वे ए साहित्यना शब्दो आवी जाय अने ए शब्दोना पण ए साहित्यमां वपरायला अर्थो आवे, ए लक्षमा राख्यं छे. बाकी, संस्कृत भाषाना शब्दोना अर्थो तो प्राचीन कोशकारोए अनेक अनेक नोंध्या होय छे. संस्कृत भाषानी खबी ज एवी छे के तेना शब्दोना (खास करीने धातुओना) अनेक अर्थो थाय. अने तेथी ज ए भाषामा एकी साथे रामायण, अने महाभारतनी जुदी जुदी वात चालती होय एवां काव्यो अरे, महाकाव्यो जोवा मळे छे. आ कोशने विनीत कक्षाना विद्यार्थीने दृष्टिमा राखीने संक्षिप्त बनाववो, एम नक्की कर्यु तो खरे. परंतु ए शब्दोनी पसंदगी करवानें तो छेवटे ए कोश तैयार करनार सेवकवर्गना वैयक्तिक धोरणने आधारे ज थाय. उपरांत ए कोश अमुक पानांनो ज (अंदाजे ७०० पाननो) करवो एवी कांईक मर्यादा पण होवी घटे अने ते नक्की करवामां पण आवी हती. एटले शरूआतमां संक्षेप करवा उपर ज वधु ध्यान अपातुं जाय ए स्वाभाविक छे. कोश अर्थो छपायो त्यारे कंईक अंदाज मेळवी शकाय तेवू थयुं. त्यार पछी शब्दो लेवानी बाबतमां अमुक निश्चित धोरण अपनावी शकायु. एटले कोश पूरो थतां, पाछळथी अपनावेला ए धोरणने आगळना भागने पण लागु पाडवं जरूरी लाग्यु, तेम ज शक्य पण बन्यु. एटले कोशने अंते पूर्ति रूपे ए शब्दो उमेरी लीधा छे. एम जोके आवा नाना कोशमां, बे जगाए शब्द शोधवानु विद्यार्थीने मुश्केल लागशे खरे, पण बीजी आवृत्ति वेळा पूर्तिना ए शब्दो योग्य क्रममां भेगा करी लेवाशे; अने ए रीते सळंग एक संक्षिप्त कोश उपलब्ध थशे. आ कोशमां कुल २६,६०९ शब्दोना अर्थों आपेला छे. आगळनो तबक्को उपर जणाव्यु ते प्रमाणे आ कोशमां जाणीता काव्य-नाट्य कथाग्रंथोना ज शब्दो लेवाया छे. पण आपणी भारतीय संस्कृतिनां मूळ स्थानो सुधी पहोंचवा इच्छनारने पुराण-स्मृति-दर्शन-उपनिषद ए साहित्यना ग्रंथोना शब्दो पण मळवा ज जोईए. जाणीता साहित्यना ग्रंथोनो अभ्यास करी चूकेलाने अत्यारे बधी देशी Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाओमां उपलब्ध भाषांतरो द्वारा ए ग्रंथोनो अभ्यास मुश्केल तो न ज पडे; पण एक कोश एवो पण तैयार थवो जोईए के जेमां आ बधा शब्दो आवे. वेद-ब्राह्मण ग्रंथोना शब्दो ए तो जाणे एक प्रकारे जुदी भाषाना शब्दो गणाय. ए बधा शब्दो साथेनो बृहत् कोश पण गुजराती भाषामां होवो जोईए. पण आ बधी तो बहु आगळनी वात थाय. __परंतु पुराण-स्मृति-दर्शन-उपनिषद तथा वैदक-ज्योतिषना ग्रंथोना शब्दोवाळो कोश तो तैयार करवानुं शरू थवं ज जोईए. तो ज आ संक्षिप्त कोशे आरंभेलं काम आगळ चाले.मोनियर विलियम्स, आप्टे, वगेरेना कोशो उपरथी ए शब्दो तारवी काढवान काम बहु मुश्केल पण न गणाय. एटले आ कोश ए बीजा आगळना कोशनी आवश्यकता जाणे पुरवार करवा माटेनो बनी रहे छे ! अलबत्त, आ कोशने पण तेनी मर्यादामां आवता साहित्यना बधा शब्दोनो तेमां समावेश थाय ए रीते (पान के शब्दनी मर्यादा विना) पूरो करवो बाकी रहे छ ज. पण ए तो आवृत्तिए आवृत्तिए सुधारा वधारा जेवू काम गणाय. अने ए चालतुं ज रहेवान. आ कोशनी गोठवणी आ कोश जे कक्षाना विद्यार्थीओना उपयोग माटे विचारायो छे, तेमने शब्दोना अर्थो शोधवान सुलभ थाय ते रीते एनी गोठवणी विचारी छे. अलबत्त व्याकरण-पद्धतिथी जरा पण न भण्यो होय तेवा विद्यार्थीने आ कोशनो के कोई पण कोशनो उपयोग करवो शक्य न होय. जेम के गुजराती भाषाना कोशमां पण ‘गयो' ए प्रयोगनो अर्थ 'जवू' धातुमां शोधवा जेटलं व्याकरण- ज्ञान विद्यार्थीने होवं जोईए ज. तेम, गच्छति, चकार, अनन्, धुक्ष्व, अमृष्ट, अतृण्ड, बिभ्यति, बिभराणि, जहीहि, धत्स्व वगेरे रूपो साहित्यमां वपरायेलां मळे, तो ते माटे कोशमां अनुक्रमे गम्, कृ, हन्, दुह, मृज, तृह, भी, भू, हा, धा, ए धातुओमां अर्थ शोधवो जोईए, एवी तो विद्यार्थीने खबर होवी घटे. कोई पण कोश व्याकरणनी रीते बदलायेलां रूपोनो पण शब्द-क्रममां अर्थ न आपी शके. सद्भाग्ये संस्कृत भाषाना शिक्षणनी बाबतमां आपणी शाळाओमां व्याकरण-पद्धतिने छेक ज छोडी देवामां आवी नथी. आ कोशना शब्दोनी गोठवणीमां अनुसरवामां आवेला बे मुख्य मुद्दाओनी समज अहीं ज जणाववी घरे : (१) उपसर्गो साथे वपराता धातुओनो अर्थ उपसर्गोना क्रममा आप्यो छे, मूळ धातुना ज पेटामां नहि. जेम के अधिगम्, अभ्यागम्, निगम्, निर्गम्, प्रत्यागम्, संगम् ए धातुओने ए शब्दना क्रममां ज गोठव्या छे; सामान्य रीते संस्कृत कोशमां गम् धातुना पेटामां ज तेमने बधाने नंखाय छे. पण तेथी 'अयो' धातुनो अर्थ 'इ' धातुना पेटामां मळशे एवी खबर न होय, तेने मुश्केली पडे. अहीं तो 'अधी' धातु तरीके ज Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेना क्रममा एनो अर्थ मळी जशे. ज्यां जरूर मानी त्यां ए उपसर्गने छटो पाडी कौंसमां फरीथी लख्यो छे. जेम के 'अधी' (अधि + इ); 'व्यपे' (वि + अप + इ). (२) संस्कृत कोशमां बीजी मुख्य मुश्केली अनुनासिकना उपयोगवाळा शब्दोनो क्रम शोधवामां पडे छे. जेम के सामान्य संस्कृत कोशमां अंश, अंस, अंहस् वगेरे शब्दो अ अक्षरथी शरू थता शब्दोनी छेक ज शरूआतमां आप्या हशे, अने अंड, अंत, अंध, वगेरे शब्दो अण्ड, अन्त, अन्ध, ए प्रकारे क्रम कल्पीने ए क्रममा मूक्या हशे. आ कोशमा विद्यार्थीनी सगवड विचारी, गूजरात विद्यापीठना गुजराती जोडणोकोशनी रीते बधा अनुनासिकोने अवश्य अनुस्वाररूपे ज लखीने, दरेक स्वर ने अंते ज एक साथे आप्या छे. अर्थात् 'अ' अक्षर पूरो थतां अं थी शरू थता शब्दो, 'आ' पूरो थया पछी आं थी शरू थता शब्दो, ए प्रमाणे. __दरेक धातुनुं त्रीजी विभक्ति एकवचननुं रूप आप्यु होय तो उपयोगी थाय खलं; पण एनाथी मूळ धातुने शोधवा माटे कशी मदद न मळे. एटले ज्यां आदेशने कारणे धातुनुं जुरूप थतुं होय, त्यां ज चोरस कौंसमां ते रूप आप्युं छे. जेम के, गम् १ प० [गच्छति]. ___ दरेक धातुनी साथे तेनुं भूतकृदंत रूप पण अपाय छे. पण तेने मूळ धातु शोधवामां उपयोगी न मानीने भूतकृदंतनो शब्द आवे त्यारे ते जे धातुन भूतकृदंत होय ते कौंसमां बताव्युं छे. जेम के गूढ ('गुह, ' नुं भू० कृ०). (उपसर्ग सार्थना धातुन भूतकृदंत होय, त्यां ते आ प्रमाणे जुदुं नथी बताव्युं. संस्कृतमां भूतकृदंतो कर्मणि भूतकृदंतो मुख्यत्वे होय छे. एटले कर्मणि भू० कृ० न लखतां संक्षेपमा मात्र भू० कृ० ज लख्यं छे. केटलांक बहु ओछां भूतकृदंतो कर्तरि पण होय छे. जेम के 'हतवत् '. ज्यां शब्दनी अंदर इ के उनी पछी स् आववाथी स् नो ष् थई गयो होय छे, तेवे स्थळे कौंसमां ते जुदं दर्शाव्यं छे. जेमके, निषिध, (नि + सिध्), निषेव् (नि + सेव् ). जे शब्दो बहुवचनमां ज वपराय छे, तेमनां प्रयमा विभक्ति बहुवचननां रूप ज मूळ शब्द तरीके मूक्यां छे. जेम के, पौरजानपदाः पुं० ब० व०. परन्तु केटलाक शब्दोना मात्र द्वि० व० के ब० व० मां जुदा अर्थ थता होय, तेवाओने मूळ तो एकवचनमांज मकीने पछी अर्थोमां वचन दर्शावी जुदो अर्थ आप्यो छे. जेम के, पूर्वदेव पुं० (३) (द्वि० व०) नर अने नारायण ; पूर्वपूर्व (२) पुं० (ब० व०) पूर्वजो. नामधातुओर्नु त्रीजा पुरुष एकवचननुं रूप ज मूळ शब्द तरीके मूक्यं छे, अने अर्थ धातुनी रीते कौंसमां दर्शाव्यो छे. तेवी जगाए गण के पद ज्यां मूळ आधारकोशोमांथी मळ्यां त्यां ज दर्शाव्यां छे.जेम के प्रकटयति प० (दविवं, प्रगट करवू). Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च्चि रूप साथेनां क्रियापदोना गण माटे पण तेम ज समजवं. जेम के क्रोडीकृ आलिंगनमां लेवू; भेटवू. धातुनां प्रेरक अने कर्मणि रूपोना अर्थ ज्यां आपवा जेवा लाग्या त्यां जुदो फकरो पाडीने -प्रेरक० के -कर्मणि० एम लखीने स्वतंत्र संख्याक्रम दर्शावीने आप्या छे. जेम के, जुओ स्था धातु. ___अर्थो आपवामां मूळ व्युत्पत्तिने लक्ष्यमा राखीने अर्थ आप्यो छे. मधुसूदन एटले मात्र श्रीकृष्ण अर्थ न आपतां, " (मधु राक्षसने हणनार) श्रीकृष्ण" एम लख्य छे; जेथी ए नाम शाथी पड्युं छे ते पण लक्ष्यमां आवे. ते ज प्रमाणे जुओ गुडाकेश. चार, सात, आठ वगेरे संख्याओवाळा शब्दोमां बने त्यां लंबाण करीने पण ते चार, सात, के आठ वस्तुओ कई ते गणी वतावी छे. जेम के, जुओ चतुर्दशरत्नानि' के सप्तसमुद्राः, जेथी एटलं जाणवा बीजा ग्रंथो सुधी दोडवू न पडे. केटलाक शब्दोना अर्थो एकबीजाना संबंधमां वधु जाणीता होय छे. त्यां पण साथे कौंसमां ते बीजो शब्द दर्शाव्यो छे. जेम के पूर्व एटले वाव कूवा इ० बंधाववाथी थतुं पुण्य. ते शब्द, यज्ञयागादिथी थता पुण्यवाचक 'इष्ट' शब्द साथे ज (' इष्टापूर्त') वधु वपराय छे. एटले पूर्त शब्दना अर्थमा 'इष्ट ' ने पण कौंसमां नोंध्यो छे. तहेवार वगेरेना दिवसोनी तिथि के महिनो ज्यां निश्चित रूपे जणावी शकाय, त्यां ते जणाववा प्रयत्न कर्यो छे. पण एक बावतमा लाचारी कबूल करवी आवश्यक छे. संस्कृत साहित्यमां वनस्पति के पशु-पंखी सृष्टि साथे एटलो बधो गाढ परिचय प्रगट थाय छे, के जाणे ए बधी वनस्पतिओ, पशु, पंखी, फूल-फळ, पण मनुष्योना जीवनसाथी-- सहबंधुओज होय. तेथी ए साहित्यमां वृक्षो, पशुओ, पंखीओ, फूल-फळ वगेरेना उल्लेखो घंणा आवे छे. अंग्रेज कोषकारोए ए बधाने लॅटिन परिभाषानां नामोमां मूकवा प्रयत्न कर्यो छे. पण आपणा देशी कोशकारोए मोटे भागे अर्थमा ‘एक वृक्ष', ‘एक फूल', 'एक पंखी' एम कहीने चलाव्यु छे. ते बधाना देशी भाषाना अर्थो शोधीने आपवा जोईए. हवे वनस्पतिशास्त्र तथा पंखीवर्णन इत्यादिनां पुस्तको घणां बहार पड्यां छे. तेमाथी योग्य चोकसाई करी अर्थो निश्चित करीने मोगरो, जाई, जुई, बटेर, लावरी वगेरे जेवा परिचित अर्थों आपीए, तो ज ते बधा शब्दोना उपयोग पाछळनी उपमा के काव्य आपणे वधु माणी शकीए. आ कोशन काम जुदे जुदे हाथे थयुं छे. एम एकठी थयेली सामग्री परथी हस्तलिखित प्रत तैयार करीने छपाववा प्रेसमां मोकलवानुं थयुं त्यारे जणायु के शब्दोनी पसंदगीमां तथा अर्थ आपवानी रीतमा एकरूपता लाववानी जरूर छे; अने घणुं बीजं करवानुं रहे छे. समय साथे होड बकीने ए बधुं झटपट आटोपवानुं Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ थयुं छे. तेमां मुख्य दृष्टि आ कोश वापरनार वर्गने वधुमां वधु उपयोगी थवानी राखी छे. ते वर्गने जे प्रमाणमां आ कोश उपयोगी नीवडशे, तेटले अंश आ कोश तैयार करवामां हिस्सो लेनार सौनी महेनत लेखे लागशे, ए कहेवानी जरूर न होय. छेवटे, कोशने सळंग तपासी जई प्रेस माटे तैयार करवानुं काम धारी झडपथी आटोपी शकायुं, तेनो यश विद्यापीठना श्री. शिवबालक बिसेनना मने माग्या मळेला सहकारने आभारी छे. तथा पूर्ति माटे शब्दो तारवी आपी तैयार करी आपवानुं झंझटवाळं काम श्री. नारणभाई जीभाईदास पटेले झडपथी पार पाडी आप्युं न होत, तो आ आवृत्ति वखते ए शब्दो कोशमां उमेरी लेवानुं शक्य बन्युं न होत. ते बने मित्रो आपेली मददनी हुं अहीं साभार नोंध लउं छं. अंते, बधा पुरुषार्थोमां पंचम तरीके सदासर्वदा व्यापी रहेनार पिता - गुरु परमात्मानी कृपा याद करीने, मारे माटे कंईक मोटी 'फाळ' गणाय तेवुं काम मने सोंपी मने सळंग प्रेरणा आपनार ते वखतना गूजरात विद्यापीठना महामात्र श्री. मगनभाई प्रभुदास देसाई प्रत्ये कृतज्ञता प्रगट करूं छं. २३—३—'६२ गोपाळदास जीवाभाई पटेल Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० अव्यय ( क्रियाविशेषण इ० ) अ० क्रि० अकर्मक क्रियापद आ० आत्मनेपदी धातु इच्छा० इच्छादर्शक रूप उ० परस्मैपदी तेम ज आत्मनेपदी - एम उभयपदी धातु उदा० उदाहरण तरीके, जेम के कर्मणि० कर्मणि रूपमा अर्थ गणित गणितशास्त्रनो शब्द ज्यो० ज्योतिषशास्त्रनो शब्द द्वि० व० द्विवचन न० नपुंसक लिंग नाट्य० नाट्यशास्त्रनो शब्द न्या० न्यायदर्शननो शब्द प० परस्मैपदी धातु पुं० पुंलिंग प्रेरक० प्रेरक रूपमा अर्थ ब० व० बहुवचन बौद्ध० बौद्ध ग्रंथोनो शब्द भू० कृ० भूतकृदंत ( कर्मणि ) संकेतोनी समज १२ योग० योगदर्शननो शब्द ला० लाक्षणिक अर्थ व० कृ० वर्तमान कृदंत वि० विशेषण वि० [स्त्री० विशेषण स्त्रीलिंग वेदान्त० वेदांतदर्शननो शब्द व्या० व्याकरणशास्त्रानो शब्द स० ना० सर्वनाम ( ते विशेषण पण गणाय एटले साथ वि: पण मूक्युं छे ) . ० संगीत संगीतशास्त्रनो शब्द सांख्य० सांख्यदर्शननो शब्द स्त्री० स्त्रीलिंग - अक्षरनी आगळनी आ निशानी ते अक्षरनो विकल्प दर्शावे छे, जेम के तुंब (बी) एटले तुंब अने तुंबी बने समजवानां छे. १-२-३-४-५-६-७-८-९-१० धातुना अर्थनी शरूआतमां मूकेला आ आंकडा ते या गणनो छे ते दर्शावे छे. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संस्कृत-गुजराती विनीत कोश अ संस्कृत वर्णमाळानो पहेलो अक्षर; एक ह्रस्व स्वर (२) पुं० विष्णु (३) अ० नकारार्थ दर्शावतो पूर्वग; उदा० अभाव (४)दया, निंदा, ठपको, संबोधन, निषेध -ए बतावतो उद्गार न होय तेवू अऋणिन वि० करज विनानं; देवादार अक न० सुखनो अभाव ; दुःख (२)पाप अकच वि० माथे वाळ वगरनु; टालियुं (२) पुं० केतु ग्रह अकथ्य वि० न कहेवा लायक अकरण वि० स्वाभाविक; अकृत्रिम (२) सर्व इंद्रियोथी रहित (परब्रह्म) (३) न० कामकाज न करवू ते अकरणि स्त्री० निराशा; निष्फळता अकर्ण वि० कान वगरनु; बहेरं (२) पुं० साप अकर्मक वि० जेने कर्म नथी तेवू अकर्मण्य वि० कर्म करवाने शक्तिमान नहि तेवू (२) न करवा लायक अकर्मन् वि० काम वगरनुं; आळसु (२) अकुशळ (३) अकर्मक (व्या०) (४) न० कर्मनो अभाव (५)अयोग्य कर्म ; गुनो; पाप अकल वि० अंश-भाग विनानुं अकल्प वि० निरंकुश(२)निर्बळ(३)जेनी तुलना न थई शके तेवं [भाविक अकल्पित वि० कृत्रिम नहि तेवं; स्वाअकल्य वि० अस्वस्थ रोगी(२)साचु;खरुं अकस्मात् अ० एकाएक; अणधारी रीते (२) निष्कारण अकाम वि० इच्छारहित(२)कामपीडा- रहित (३) हेतुरहित; इरादा वगरनुं अकामतः अ० अनिच्छाए (२) इरादा वगर; असावधपणे ग्रह अकाय वि० शरीर वगरनुं (२)पुं० राहु अकारण वि० कारण विनानुं (२) प्रयो जन विनानुं निष्कारण ; व्यर्थ अकारणम्, अकारणात्, अकारणे अ० अकार्पण्य वि० कृपणता विनानुं (२) दीनता दाखव्या विना मळेलू अकार्य वि० नहि करवा योग्य (२) न० अयोग्य कार्य; खोटुं कार्य अकाल वि० कवखतर्नु; अयोग्य वखतनुं (२) पुं० अयोग्य समय; कवखत अकालज, अकालजात वि० अकाळे जन्मेलं; कवखते उत्पन्न थयेलं अकालसह वि० विलंब सहन न करतुं: __ अधीरु (२)लांबो वखत टकी न शके तेवं अकालिकम् अ० अचानक (२)तरत ज अकांड वि० अणधार्यु ; आकस्मिक (२) अवसर विना- (३) थड विनानुं अकांडपात पुं० अकस्मात् बनेलो बनाव अकांडे अ० अचानक; अकस्मात् अकिल्बिष वि० निष्पाप । अकिंचन वि० निर्धन; गरीब अकिंचनता स्त्री० दरिद्रता (व्रत) अकिचिज्ज्ञ वि० थोडं पण नहि जाणनारुं; अज्ञानी अकिंचित्कर वि० कशुं न करी शकनारं (२) निरुपयोगी Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकुतः अकुतः अ० कोई ठेकाणेथी नहि; क्यांयथी नहि (समासमां)। अकुतोभय वि० क्यांयथी भय विना-; निर्भय (२) सुरक्षित । अकुप्य न० हलकी धातु नहि ते - सोनु रू' (२) कोई पण हलकी धातु अकुशल वि० कुशळ के होशियार नहि तेवू (२) अमंगळ (३) अणगमतुं (४) न० अनिष्ट ; दुःख अकुह वि० न छेतरे तेवं; प्रमाणिक अकुंठ वि० बर्छ नहि थयेलं (२) प्रतिबंध विनानुं (३) स्थिर (४) समर्थ अकुंठित वि० प्रतिबंध-रुकावट विनानु अपार वि० जेनो अंत खराब नथी तेवू (२)पार विना- (३)पुं० समुद्र (४) सूर्य (५) काचबो (कूपने न तजतो) अकृच्छ्र वि० सहेलु; मुश्केली वगरनुं अकृत वि० नहि करेलु (२) खोटी रीते करेलु (३) तैयार नहि थयेलं (अन्न) (४) अपरिपक्व ; अशिक्षित (५) नहि सरजायेलु (६)न० नहि करायेलु काम (७) कार्य नहि करवू ते (८) पूर्वे न सांभळेलं कार्य न जाणनाएं अकृतज्ञ वि० कृतघ्न; करेलो उपकार अकृतबुद्धि वि० काची बुद्धिवाळं अकृतात्मन् वि० अज्ञानी; मूर्ख (२) ईश्वरदर्शन नहि पामेलं अकृतिन् वि० अकुशळ; अक्षम अकृत्य न० खोटुं काम (२) न करी शकाय ते काम अकृत्रिम वि० स्वाभाविक खिंचायेलं अकृष्ट वि० नहि खेडायेलं (२) नहि अक्का स्त्री० मा; माता अक्त ('अंज'न भू० कृ०)वि० खरडायलं; लेपायेलू (घणुं करीने समासने अंते वपराय छ; उदा० तैलाक्त; घृताक्त) अक्त्र न० कवच ; बख्तर अऋतु वि० यज्ञरहित (२)संकल्परहित (परमात्मा) अक्षमाला ___ अक्रम वि० क्रमरहित (२) गतिरहित (३) पुं० क्रम-परिपाटी-शिष्टाचारनो अभाव अक्रिय वि० क्रियारहित (२) निष्क्रिय अक्रिया स्त्री० निष्क्रियता (२) कर्तव्यनी उपेक्षा [रहितता अक्रोध वि० क्रोधरहित (२) पुं० क्रोधअक्लिष्ट वि० नहि थाकेलं (२) नहि मूंझायेलं (३) खंडित- दूषित नहि तेव (४) श्रमपूर्वक नहि थतुं - सहज अक्लिष्टकर्मन् वि० कर्म करवामां न __ थाकनारं अक्लीब वि० साचुं; अफर अक्लीबम् अ० भय विना ___ अक्ष १, ५, प० पहोंचवू (२) व्यापवू (३) एकळु करवं अक्ष पुं० धरी (२) पासो (३) पै९ (४) रथ; गाडु (५) विषुववृत्तथी उत्तरदक्षिण कोई पण जगानुं गोलीय अंतर (६)त्राजवांनी दांडी (७) जेना मणका बने छे ते बीज (८) रुद्राक्ष (९) १६ मासानुं एक वजन (कर्ष) (१०) न० ज्ञानेंद्रिय (११) नेत्र कु शळ अक्षकुशल वि० पासा रमवानी विद्यामां अक्षकूट पुं० आंखनी कीकी अक्षत वि० ईजा पाम्या विना- (२) अखंड; भाग्या विनानुं (३) पुं० (ब० व०) धार्मिक क्रियामां वपराता वगर भांगेला चोखा अथवा न छडेलां जव, डांगर वगेरे (४)न० कोई पण धान्य (५) हानि न थवी ते; उत्कर्ष अक्षतयोनि स्त्री० जेनुं कौमार खंडित नथी थयुं तेवी स्त्री मुनि अक्षपाद पुं० न्यायदर्शनना प्रणेता गौतम अक्षम वि० अशक्त; असमर्थ (२) सहन न करे तेवू; असहिष्णु अक्षमा स्त्री० ईर्षा (२)अधीराई(३)क्रोध अक्षमाला स्त्री० मणकानी माळा (२) वसिष्ठपत्नी- अरुंधती Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अक्षय अक्षय वि० क्षय न पामतुं;अविनाशी(२) अखूट (३) पुं० परमात्मा [अखूट अक्षय्य वि० क्षय के नाश न पामे तेवु(२) अक्षर वि० अविनाशी; शाश्वत (२) पुं० परमात्मा (३)न० वर्णमाळानो प्रत्येक वर्ण (४) मोक्ष (५) परब्रह्म अक्षरन्यास पुं० वर्णमाळा (२) लखाण अक्षरशः अ० अक्षरे अक्षर; शब्दे शब्दना अर्थ प्रमाणे ज्ञान अक्षहृदय न० पासानी विद्यार्नु रहस्य के अक्षांति स्त्री० क्षमानो अभाव (२) ईर्षा (३) क्रोध अक्षांश पुं० विषुववृत्तथी उत्तर के दक्षिणतुं अंतर-अक्ष बतावनार १८० अंश छे ते अक्षि न० आंख (२) 'ब'नी संख्या अक्षिगत वि० प्रत्यक्ष ; दृष्टिगोचर (२) आंखमां खूचतुं; अप्रिय [पापण अक्षिपक्ष्मन्, अक्षिलोमन् न० आंखनी अक्षिश्रवस् पुं० साप अक्षुण्ण वि० वटायेलुं नहि तेवू (२) अजित; फतेहमंद अक्षेत्र वि० खेतर विनानु; खेड विनानुं (प्रदेश) (२) न० खराब खेतर (३) कुपात्र शिष्य अक्षौहिणी स्त्री०२१८७०हाथी,२१८७० रथ, ६५६१० घोड़ा, तथा १०९३५० पायदळनी बनेली महासेना अखर्व वि० ठींगणुं नहि एवं (२) मोटुं अखंड, अखंडित वि० खंडित न थयेलं; अग्नितनय अगति स्त्री० उपाय के मार्ग न होवो ते (२)प्रवेश के पहोंच नहीं ते (३) अवगति अगतिक, अगतीक वि० निराधार (२) छेवटनुं (उपाय) अगद वि० नीरोगी (२) न बोलतुं के कहेतुं (३) पुं० ओसड (४) तंदुरस्ती अगम्य वि० ज्यां जई न शकाय तेवू (२) समजी न शकाय तेवू; गूढ; __ अज्ञेय (३) तजवा जेवू; निषिद्ध अगम्या स्त्री० जेनी साथे संग निषिद्ध होय तेवी (स्त्री) अगम्यागमन न० निषिद्ध स्त्री साथे व्यभिचार अगरु पुं० एक जातनुं चंदन [खाडो अगाष वि० घणुं ऊंडु(२) पुं०, न० ऊंडो अगार न० रहेठाण; आवास; घर अगुण वि. निर्गुण (परमात्मा) (२) सारा गुणो विनानु; निरुपयोगी (३) पुं० दोष अगुरु वि० वजनदार नहि एवं; हलकुं (२) ट्रॅकु; ह्रस्व (पद्यमां) (३) जेने गुरु न होय तेवू; नगुरुं (४) न० अगरु अगृह पुं० घर वगरनो- वानप्रस्थ अगोचर वि० इंद्रियातीत; अगम्य अग्नि पुं० अग्नि; आग (२) अग्निदेव (३) जठराग्नि (४) पित्तनो अग्नि (५) सोनुं (६) 'त्रण'नी संख्या अग्निकर्मन् न० अग्निमां होम करवो ते अग्निकुमार पुं० कार्तिकेय अग्निकोण पुं० अग्निखूणो (दक्षिण-पूर्व) अग्निक्रिया स्त्री० प्रेत-संस्कार; शबने अग्निदाह देवो ते अग्निक्रीडा स्त्री० आतशबाजी अग्निगर्भ वि० जेमांथी अग्नि जन्मे एवं (२) सूर्यकांत मणि (३) अरणी अग्निज वि० अग्निमांथी उत्पन्न थयेलं (२)पुं० कार्तिकस्वामी (३) न० सोनुं अग्निजिह्वा स्त्री० अग्निनी ज्वाळा अग्नितनय पुं० कार्तिकस्वामी आखु अखिल वि० आखू; बधुं; समस्त अल्यात वि० अप्रसिद्ध (२) न कहेलु अग वि० चाली न शके तेवू (२) जेनी पासे न जई शकाय तेवू (३) पुं० वृक्ष (४) पर्वत (५)साप (६) सूर्य (७) 'सात'नी संख्या अगण्य वि० गणी न शकाय तेटलुं (२) गणनामां न लेवाय तेवू - तुच्छ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्रे अग्नित्रय अग्नित्रय न० त्रण प्रकारना अग्नि (दक्षिण, गार्हपत्य, आहवनीय) अग्निदातृ वि० अग्निसंस्कार करनारुं अग्निदीपन वि० जठराग्नि प्रदीप्त करनारं पणानी परीक्षा अग्निपरीक्षा स्त्री० अग्नि वडे साचाअग्निपर्वत पुं० ज्वाळामुखी पर्वत । अग्निप्रवेश पुं० (स्त्रीतुं) सती थq ते अग्निमंथ पुं० घर्षणथी अग्नि उत्पन्न करवो ते अग्निमांद्य न० जठराग्निनी मंदता अग्निमुख पुं० देव (२) ब्राह्मण (३) अग्निहोत्री अग्निवर्धक वि० जठराग्नि वधारनारं अग्निवाह पुं० धुमाडो (२) बकरो अग्निवाहन न० बकरो अग्निशाला स्त्री० अग्निहोत्रनुं स्थान अग्निशिखा स्त्री० ज्वाला अग्निष्टोम पुं० एक प्रकारनो यज्ञ अग्निसंस्कार पुं० प्रेतक्रिया अग्निहोत्र न० शास्त्रोक्त अग्निमां सवारसांज होम करवानुं कर्म अग्निहोत्रिन् पुं० अग्निहोत्र करनार अग्न्यस्त्र न० अग्नि वरसतुं अस्त्र अग्न्याधान न० मंत्रपूर्वक अग्निनं स्थापन (२) अग्निहोत्र अग्न्युत्पात पुं० आकाशमां देखातो अनिष्टसूचक प्रकाशवाळो उपद्रव (उल्का, धूमकेतु इ०) अग्न्युपस्थान न० अग्निनी पूजा (२) अग्निहोत्र अग्र वि० सौथी आगळ ; पहेलु (२) पुं० अस्ताचल (३) न० टोच उपरनोछेडानो भाग (४) ध्येय; हेतु (५) शिखर (६) कोई पण वस्तुनो श्रेष्ठ भाग (७) उत्कर्ष (८) प्रारम्भ (९) आधिक्य अप्रग पुं० आगेवान अग्रगण्य वि० गणतरीमां पहेलु; श्रेष्ठ अग्रज वि० प्रथम जन्मेलुं (२) पुं० मोटो भाई (३) ब्राह्मण अग्रजन्मन् पुं० मोटो भाई (२)ब्राह्मण अग्रजा स्त्री० मोटी बहेन अप्रणी वि. आगेवान (२) पुं० अग्नि अग्रतः अ० सौथी आगळ ; मोखरे (२) हाजरीमां जनार दूत अग्रदूत पुं० आगळथी समाचार लई अग्रदेवी स्त्री० पटराणी पूजानुं मान अग्रपूजा स्त्री० श्रेष्ठ पुरुषने अपातुं प्रथम अग्रबीज वि० डाळखी रोपवाथी ऊगे तेवू (२) जेनी कलम थई शके तेवू अग्रभाग पुं० प्रथम भाग; श्रेष्ठ भाग(२) शेष भाग अग्रभुज वि० जमवामां पहेलु (२)खाउधरूं अग्रभूमि स्त्री० अंतिम ध्येय; महत्त्वा कांक्षानुं ध्येय (२) टोचनो भाग अग्रमहिषी स्त्री० पटराणी । अग्रयान वि० सौथी आगळ चालनारं (२) न० मोखरानुं सैन्य अग्रयायिन् वि० आगळ जनाएं अनयोधिन् पुं० मुख्य योद्धो अग्रवात पुं० ताजो पवन अग्रसर पुं० अग्रेसर; आगेवान अग्रहस्त पुं० हाथनो आगलो भाग (२) आंगळीओ (३) सूंढनो आगलो भाग (४) जमणो हाथ मास अग्रहायण पुं० वर्षारंभ (२) मार्गशीर्ष अग्रहार पुं० राजा तरफथी (ब्राह्मणोने) अपायेल जमीन अग्राणीक न० आगळ- सैन्य अग्रासन न० प्रथम स्थान ; माननुं स्थान अग्राह्य वि० ग्रहण न करी शकाय तेवं (२) स्वीकारी न शकाय तेवू अग्रिम वि० अनुक्रममा प्रथम (२) मुख्य (३) उत्तम (४) पुं० मोटो भाई अग्ने अ० आगळ; पहेलां (२)समक्ष; सामे (३) हवे पछी Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजया अप्रेसरः मप्रेसर वि. आगळ जनार (२) पुं० आगेवान; नेता अग्न्य वि० सौथी आगळy (२)प्रथम; श्रेष्ठ (३) पुं० मोटो भाई अध वि० पापी;दुष्ट(२)न० पाप; दुष्कर्म (३)दुःख; संकट (४) सूतक; अशीच अघनाशन वि० पापनो नाश करनारं अघमर्षण न० पापनाशक सूक्त -मंत्र अधर्म वि० ठंड; शीतळ अघायु वि० पापी जीवन गाळनाएं अघासुर पुं० एक राक्षसनुं नाम-बक राक्षसनो भाई अघोर वि० भयंकर नहीं तेवू (२)पुं० शिव (३) शिवनो भक्त अघोष वि० अवाज वगरनु; शांत (२) कठोर उच्चारवाळ (३) पुं० वर्णमाळामां मुख्य पांच उच्चारस्थानोना पहेला बे वर्णो तथा श्, ष, स्-एम तेरमांनो प्रत्येक बळद अघ्न्य वि० नहि मारवा योग्य (२) पुं० अध्न्या स्त्री० गाय मिद्य अघ्रय वि० न संघवा लायक (२) न० अच पुं०संस्कृत व्याकरणमां स्वरनं नाम अचक्षुस् वि० आंधळं; आंख वगरनुं; अंध (२)न० बगडेली आंख अचर वि० स्थिर; स्थावर अचरम वि० छेल्लुं नहि तेवं; वचलुइ० अचल वि० स्थिर; निश्चल; कायमनुं (२)पुं० पर्वत (३) शंकु;खीलो (४) 'सातनी संख्या अचलपति पुं०हिमालय पर्वत; मेरु पर्वत अचला स्त्री० पृथ्वी अचलाधिप पुं० हिमालय पर्वत अचित्त वि० अतळ ; अचिंत्य (२) समजण वगरनु; जड़; मूर्ख अचिर वि० अल्पजीवी; क्षणिक (२) हमणांनु; तरतर्नु [स्त्री० वीजळी अधिरघुति, अधिरप्रभा, अचिरमास अचिरम्, अचिरस्य, अचिरात, अधिराय, मचिरेण अ० बहु पहेलां नहि तेम; हमणां; तरत; जलदी अचितनीय वि० चितवी न शकाय तेवू; विचारमा न आवे तेवू अचितित वि० ओचितुं अचित्य वि० जुओ 'अचिंतनीय' अचेतन वि० चेतन वगरनुं निर्जीव (२) भान विनानु; बेशुद्ध [चित्त वगरनुं अचेतस् वि० चेतन वगरनु; अचेतन(२) अचेष्ट वि० चेष्टारहित; क्रियारहित अच्छ वि० स्वच्छ; निर्मळ; शुद्ध (२) पुं० रीछ (३) स्फटिक अच्छंदस् वि. वेद भणी न शके तेवू - यज्ञोपवीत-रहित (२) वेदाध्ययन माटे अनधिकारी (३) गद्यात्मक अच्छिद्र वि० दोष वगरनुं (२) काणा वगर, (३) न० दोषरहित कार्य (४) दोषनो अभाव अच्छिन्न वि० अखंड अच्छेद्य वि० टुकड़ा न करी शकाय तेवू अच्छोद न० हिमालयना एक सरोवरनुं नाम अच्छोदन् वि० स्वच्छ पाणीवाळ अच्युत वि० च्युत न थाय तेवू (२) अविनाशी (३) पुं० विष्णु (४) कृष्ण अज वि० नहि जन्मेलं; अनादि; सनातन (२) पुं० परमात्मा; विष्णु; शंकर; ब्रह्मा (३) जीवात्मा (४) चन्द्र (५) कामदेव (६) बकरो अजगर पुं० एक मोटो साप अजन्मन् वि० जन्म विनानु; शाश्वत (२) पुं० मोक्ष अजपा स्त्री० वगर प्रयले - श्वासोच्छ्वासथी थतो जाप (हंस) अजपाल पुं० भरवाड अजय वि० अजेय (२) पुं० पराजय अजया स्त्री० भाग Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजव्य अजय्य वि० अजेय अमरपाल पार्य तेवं (२) अविनाशी (३) पुं० देव अजय वि०जुओ 'अजर' (२) न० मित्रता अजस्त्र वि० न अटकतुं; कायम रहेतुं अजस्रम् अ० सतत; कायम अजा स्त्री० बकरी अजागलस्तन म्वनि गळे लटकतो अधिळ १२) तेवी निरुपयोगी वस्तु अजात वि० नहि जन्मेल(२)अविकसित अजातशत्रु वि० जेने कोई शत्रु नथी तेवू (२) पुं० युधिष्ठिरनुं नाम अजाति स्त्री० अनुत्पत्ति अजानि पुं० पत्नी विनानो पुरुष; विधुर अजानिक वि० घेटां-बकरी चरावनार भरवाड अजानेय पुं० जातवान घोडो अजि वि० गतिशील; चालतुं (२) स्त्री० गति (३) फेंकवू ते शकाय तेवं अजित वि० नहिं जितायेल(२) जीती न अजिन न० आसन तरीके वपरातुं वाघ वगेरेनुं चामडुं (खास करीने काळा अकित अज्ञातचर्या स्त्री०, अज्ञातवास पुं० कोई न जाणे तेम गुप्त रहेवू ते ; गुप्तवास अज्ञान वि० अज्ञानी; मूर्ख (२) न० ज्ञाननो अभाव (३) अविद्या अशामिन् वि० जुओ 'अज्ञ' अज्ञेय वि० न जाणी शकाय ते, अट् १५० फरवू; रखडवू; भटकवू अट वि० भटकनार; रखडनार अटन न० फरवू-रखडवू-भटकवू ते अटनि, अटनी स्त्री० धनुष्यनो खांचा वाळो छेडो अटल वि० दृढ़; स्थिर अटवि वि० जंगल ; अरण्य अटविक पुं० वनेचर; वनमां फरनार अटवी स्त्री० जुओ ‘अटवि' अट्ट वि० ऊंचु; मोटुं(२)पुं०, न० अटारी; झरूखो(३)किल्ला उपरतुं सैन्यगृह (४) महेल (५) क्षोमवस्त्र (६) न० अन्न अट्टहसित न०, अट्टहास पुं०, अट्टहास्य न० मोटेथी खडखड हस, ते अट्टाल, अट्टालक पुं० अटारी; झरूखो अट्टालिका स्त्री० हवेली; महेल अणक वि० तुच्छ; अधम अणि पुं० सोयनी अणि (२) सीमा; हद (३) गाडानी धरीनो खीलो अणिमन् पुं० सूक्ष्मता; नानापणुं (२) नानुं रूप धारण करवानी एक सिद्धि अणिष्ठ वि० सौथी नानू अणी स्त्री० जुओ 'अणि' अणीयस् वि० वधारे नानुं अणु वि० घणुं नानु (२) पु० परमाणु (३) नानामां नानो समयविभाग अतट वि० तट वगरनु; सीधुं; ऊ, (२) पुं० पर्वतनी ऊभी भेखड अतनु वि० नानु के पातळु नहि तेवू (२) अनंग; कामदेव असंयमी अतपस्, अतपस्क वि० तप विनानु; अतकित वि० अकल्पित; ओचितुं मृगर्नु) अजिर वि० उतावळ (२) न० आंगणुं; फळियु; रमतगमत वगेरे माटे रोकेली जगा [(३) पुं० देडको अजिह्म वि० सरळ;सीधुं (२) प्रमाणिक अजिह्मग वि० सीधुं जनार - चालनार (२) पुं० बाण अजीगर्त पुं० साप अजीर्ण वि० नहि पचेलं (२)जीर्ण नहि थयेलु (३) न० अपचो; अजीर्ण अजीव वि० जीव विनानं; निर्जीव अजेय वि० न जीती शकाय तेवं अज्जुका,अज्जूका स्त्री० वेश्या (नाटकमां) अज्ञ वि० नहि जाणतुं (२) अज्ञानी; मूर्ख अज्ञात वि० नहि जाणेलं; अजाण्यु (२) अणधार्यु Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सात अतर्य अतयं वि० समजी न शकाय तेवू अतल वि० तळिया विनानुं; अगाध (२) न० सातमांनु एक पाताळ अतस् अ० आथी; तेथी (२) अहींथी; आमांथी (३) अत्यारथी । अतसी स्त्री० शण (२) अळसी [कुश अतंत्र वि० तंतु विनान(वाद्य)(२) निरंअतंद्र, अतंद्रित, अतंद्रिल वि० आळस विनानु; चपळ (२) सावध; जाग्रत अति अ० अतिशय, अमर्याद,हद बहारनु, -थी आगळ जतुं, ए अर्थमां वपराय छ अतिकथ वि० न मानवा जेवु(२)न कहेवा जेवू (३) नष्ट ; मृत अतिकथा स्त्री० अतिशयोक्तिवाळी वात (२) नकामी- अर्थ वगरनी वात अतिकल्य न० वहेली सवार अतिकाय वि० असाधारण कदनुं अतिकृच्छ वि० घणुं मुश्केल (२) पुं०, न० एक कठिन व्रत अतिक्रम् १ उ० [अतिक्रामति - क्रमते], ४५० [अतिक्राम्यति हद बहार ज; उल्लंघन करवू (२) चडियातुं थ; श्रेष्ठ थर्बु (३) उपेक्षा करवी (४) बातल करवू (५) व्यतीत थq; पसार थर्बु (समयनुं) (६) दबावq; पकडवू अतिक्रम पुं० ओळंगवू ते उल्लंघन (२) आक्रमण (३)पसार थर्बु ते (समयनु) (४) दबावq ते - चडियाता थर्बु ते अतिक्रमण न० मर्यादानुं उल्लंघन (२) अपराध; दोष(३)समयनुं व्यतीत थर्बु ते अतिक्रमणीय वि० ओळंगवा जेवू (२) उपेक्षा करवा जेवू अतिक्रांत वि० हद ओळंगी गयेलु (२) चाल्युं गयेलं (३) वीती गयेलुं (४) न० भूतकाळमां बनी गयेलुं ते अतिक्रांति स्त्री० उल्लंघन अतिग वि० (समासमां)चडियातु:श्रेष्ठ (२) घणुं आगळ गयेलं;-थी वधारे अतिपात अतिगम् १५० [अतिगच्छति] वीतवं (समयनु) (२)-थी वधी जq (३) मटी जq (४) उपेक्षा करवी (५)छटकी जर्बु अतिगुण वि० उत्तम गुणवाळु; श्रेष्ठ (२) गुणहीन अतिचर् १ प० उल्लंघन कर, (२) बेवफा नीवडवू (३) उपेक्षा करवी (४) चडियाता थq अतिचार पुं० उल्लंघन; अतिक्रम (२) ग्रहोगें एक राशिमांथी बीजी राशिमां जवू ते; ग्रहोनो गतिमार्ग अतिच्छत्र पुं० बिलाडीना टोप अतिजीव १५०-नी पछी जीवता रहेवू (२) वधु सरस रीते जीववं अतितमाम् अ० सौथी वधारे; अत्यंत (२) सौथी ऊंचु (पदवीमां) अतितराम् अ० घणुं वधारे (२) घj ऊंचु (पदवीमां) अतित १५० ओळंगी जदूं अतिथि पुं० महेमान; परोणो अतिथिदेव वि० अतिथिने देव गणतुं अतिनिद्र वि. अत्यंत निद्रावाळु (२) निद्वारहित अतिपत् ११० उल्लंघन करवू -प्रेरक० मोडु कर, (२) उपेक्षा करवी; अनादर करवो (३) पसार थाय तेम कर, (४)बिनअसरकारक करवू (५) खेंची जवू; आंचकी जदूं अतिपतन न० वही जq ते (समय-) (२) उल्लंघन (३) उपेक्षा; अनादर अतिपत्ति स्त्री० वही जवु-वीती जq ते (समयनु) (२) उल्लंघन (३) निष्पत्ति न थवी ते अतिपद् ४ आ० अतिक्रमवू(२)उल्लंघन करवू -संबंध अतिपरिचय पुं० वधारे पडतो परिचय अतिपात पुं० वही जq ते (समय) (२) उल्लंघन (३) उपेक्षा; अनादर (४) Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अतिपातिन् अतिव्याप्ति आवी पडबुं ते (जेम के दुःख-) (५) मतिरिच् (घणुंखरुं कर्मणि प्रयोगमा) विरोध (६) नाश (समासमा) -थी वधी जq (२) वधारानुं होवू मतिपातिन् वि० वेगमां पाछळं पाडी देतुं अतिरूप वि० अति रूपाळं(२)रूप वगरनु अतिप्रबंध पुं० अतिवेगथी के एक पछी (३) पुं० निराकार (ब्रह्म) एक जलदी आव ते अतिरेक पुं० अधिकता; अतिशयता (२) अतिप्रवद्ध वि० अतिशय वधी गयेलं भिन्नता (३) वधारो; नकामो वधारो (२) प्रबळ के आक्रमक बनेल अतिरोमश,अतिलोमश वि० घणा वाळअतिप्रश्न पुं० मर्यादा बहारनो प्रश्न (२) वाळू (२)पुं० मोटो वानर (३)जंगली पूरतो जवाब मळवा छतां फरी करातो बकरो प्रश्न अतिवर्तन न० क्षमा करवा योग्य अपराध अतिप्रसंग स्त्री. अत्यंत आसक्ति (२) अतिवतिन् वि० चडियातु; श्रेष्ठ (२) अति निकटता (३) तोछडापणुं उल्लंघन करनार अतिभू १५० नीकळवू; ऊ, थर्बु (२) अतिवह १ प० पार लई जर्बु -थी वधी जवं -प्रेरक० पसार करवू (समय) (२) अतिभूमि स्त्री० पराकाष्ठा ; अंतिम हद -थी छटकवू (३) उपाडीने लावq; (२) मर्यादानुं उल्लंघन खसेडवू (४) अनुसरवू (मार्ग) अतिमर्त्य वि० जुओ अतिमानुष अतिवाद पुं० कठोर वाणी; निंदा;ठपको अतिमर्याद वि० मर्यादा बहारनुं (२) वधारीने बोलवू ते (३) वधारे अतिमात्र वि० प्रमाण बहारनु; अतिशय बोलवू ते अतिमात्रम् अ० वधारे पडतुं होय तेम अतिवादिन् वि० वधु बोलनार(२)वीजानुं अतिमानुष वि०माणसथी न थई शके तेवू __ तोडी पाडी पोतानी वात कहेनार अतिमाय वि० मायाथी पर; मुक्त । अतिवाहक पुं० जीवना सूक्ष्म शरीरने अतिमुक्त वि० संसारनी मायाथी मुक्त दोरी जनार देव (२) मोती (- ना हार) थी चडियातुं अतिवाहन न० पसार करवू - व्यतीत (३) पुं० एक लता (माधवी लता) करवू ते (२) अत्यंत परिश्रम करवो ते; (४) एक वृक्ष वृक्ष भारे बोजो ऊंचकी जवो ते (३) दूर अतिमुक्तक पुं० माधवी लता (२) एक करवू ते अतिमृत्यु वि० मृत्युने तरनारु (२)पुं० अतिवाहित वि० पसार करेलु ; व्यतीत मोक्ष अतिविष्ठित वि० वीरताथी लडनारं२) अतिया २ प० उल्लंघन करवू ; आज्ञानो __ मर्यादानुं उल्लंघन करनारं भंग करवो (२) चडियातुं थर्बु अतिवृत् १ आ० ओळंगी जवू; उल्लंघन अतियात वि० वेगवंतुं करवू (२)पसार थर्बु (समयनु) (३) अतिरथ पुं० बिनहरीफ योद्धो (रथमां उपेक्षा करवी बेसी लडनारो) अतिवृष्टि स्त्री० वधारे पडतो वरसाद अतिरभस पुं० अतिशय वेग अतिवेल वि० मर्यादाने ओळंगी गयेलू अतिरंहस् वि० घणुं झडपी - वेगीलं अतिवेलम् अ० अत्यंत (२) कवखते अतिरिक्त वि० श्रेष्ठ- चडियातुं (२) अतिव्याप्ति स्त्री० लक्ष्य न होय तेवी जुईं; भिन्न (३) खाली (४) अतिशय वस्तुनो समावेश थवोते (२)नियमनो (५) वधारे पडतुं; वधारानुं गमेतेम खेंचीने विस्तार करवो ते करेल Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतिशय अतिशय वि० अधिक; घj(२) श्रेष्ठ(३) पुं० आधिक्य (४) श्रेष्ठता अतिशयित वि०अधिक(२)ओळंगी गयेलु अतिशयिन् वि० अधिक; श्रेष्ठ अतिशयोक्ति स्त्री० अत्युक्ति ; वधारीने कहे ते (२) ए नामनो अलंकार अतिशी २ आ० चडियातुं थq; श्रेष्ठ थर्बु (२)हदथी वधारे ऊंघ (जवू -प्रेरक० [अतिशाययति] -थी वधी अतिसर्ग वि. नित्य(२)मुक्त(३)पुं०दान (४)परवानगी; रजा (५)काढी मूक, ते अतिसर्जन न० आपी देवु ते(२)उदारता (३)मारी नाखवू ते (४) वियोग अतिसंघा ३ उ० छेतरवू अतिसंधान न० छेतरपिंडी अतिसार पुं० संग्रहणीनो व्याधि असिसृज ६५० आपq; आपी देवु (२) स्याग करवो;काढी मूकद्(३)परवानगी आपवी अतिस्नेह पुं० अति प्रेम अती (अति+इ)२५० उल्लंघन करवू; ओळंगी जq (२)पराजय करवो (३) श्रेष्ठ थq (४) उपेक्षा करवी (५)समयपसार थQ- वही जq (६) वधी जवं; वधारे होवु (७) मरण पामवं अतीत वि० ओळंगी गयेलु (२) वीतेलु (३) समाप्त थयेलु (४) मृत अतीव अ० घणुंज (२) न० मन अतीप्रिय वि० इंद्रियथी पर- अग्राह्य अतुल, अतुल्य वि० जेनी तुलना न थई शके तेवू; अनुपम अतुपार वि० उष्ण ; गरम अतुवारकर, अतुहिनकर पुं० सूर्य अत्यय पुं० व्यतीत थर्बु ते ; अंत; नाश (२)विपत्ति; जोखम; मुश्केली (३) दोष; अपराध (४) हुमलो (५) समजवू - समजावq ते (६) उपर थईने चालवू -जq ते अथर्व अत्यर्थ वि० प्रमाण बहार-; अतिशय अत्यर्थम् अ० घणु वधारे होय तेम अत्यंकुश वि० निरंकुश अत्यंत वि० घणुं वधारे (२) अनंत; शाश्वत (३) संपूर्ण; पूरेपूरु अत्यंतगत वि० हमेशने माटे गयेखें अत्यंतम् अ० घणुं वधारे होय तेम (२) मरता सुधी (३) संपूर्णपणे अत्यंताभाव पुं० संपूर्ण अभाव अत्याचार पुं० शास्त्रविरुद्ध कार्यनिषिद्ध कार्य अत्याहट वि० अतिशय वधी गयेलं अत्यारूटि स्त्री. अति ऊंचुं स्थान -प्रसिद्धि [(३) साहसे अत्याहित न० संकट; विपत्ति(२)दुर्भाग्य अत्युक्ति स्त्री० अतिशयोक्ति अत्र अ० अहीं अत्रत्य वि० आ स्थळy अत्रप वि० शरम वगरनुं अत्रभवत् वि० 'मान्य', 'पूज्य', 'आपश्री' -ए अर्थमां (सामे ऊभेल माटे) मानवाचक संबोधन (स्त्री० अत्रभवती) अत्रस्त वि० बीक वगरन; निर्भय अत्रस्थ अ० अहीन; आ स्थळy (२) स्थानिक अत्रांतरे अ० आ दरम्यान अत्रि पुं० ब्रह्माना पुत्र अत्रि ऋषि; सप्तर्षिओमांना एक अथ अ० ग्रंथारंभे वपरातो मंगल शब्द (२) पछी; अनंतर (३) 'जो एम मानीए तो'- एम बीजो पक्ष बतावे(४)अने(५) प्रश्न बतावे (६) तमाम - संपूर्ण एवो अर्थ बतावे (७) संशय - विकल्प बतावे अप किम् अ० 'हा', ‘एम ज' - एवो __ अर्थ बतावे बताये अब च अ० ते ज प्रमाणे - एवो अर्थ अथ तु अ० 'पण', 'तेथी ऊलटुं' - एवो अर्थ बतावे अपर्व न० अथर्व बेद Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - अथर्वण अथर्वण पुं० शंकर भगवान(२)अथर्व वेद अथर्वन् पुं० एक ब्राह्मण (२) एक मुनि (३) अथर्व वेद (४)शंकर (५)वसिष्ठ अथवा अ० किंवा; के बितावे अथातः अ० 'मार्ट' 'हवे' - एवो अर्थ अयो अ० ('अथ' शब्दना जेवा घणाखरा अर्थमां) करवो अद् २ प० खावं; खाई जq (२) नाश अदक्षिण वि०डाबं(२)होशियार-चालाक नहि तेवू (३) दक्षिणा वगरनु (यज्ञ इ०) अदत्त वि० नहि अपायेलं (२) अयोग्य रीते अपायेलु (३) नहि परणावेलु अदत्ता स्त्री० नहि परणावेली कन्या अदत्तादायिन् वि० जे लेवानी अनुमति न होय ते लेनार (चोर) अदभ्र वि० पुष्कळ अदय वि० क्रूर; निर्दय अदयम् अ० खूब ज तीव्रताथी-जुस्साथी अदर्शन न० जोवु नहि ते (२) दर्शननो अभाव - लोप (३) गेरहाजरी अदस् वि० (स० ना०) पेलं अदायाद वि० वारस वगरनु (२) वारस थवानो जेने हक न होय तेवू अदिति स्त्री० कश्यप ऋषिनी पत्नी; -देवोनी माता (२) पृथ्वी(३) वाणी(४) गाय [(२) पैसादार अदीन वि० दीन नहि तेवू; जुस्सादार अवश्य वि० देखी न शकाय तेवू अदृष्ट वि० नहि जोयेलं (२) अणधायु (३) न० भाग्य; नसीब (४) नहि कल्पेली आफत अदृष्टि वि० आंधळू (२) स्त्री० क्रूर दृष्टि; वक्र दृष्टि (३) न देखावं ते अदेय वि० न आपवा के आपी देवा जेवू अदेश पुं० अयोग्य के अनुचित स्थान अद्धा अ० यथार्थ होय तेम (२) स्पष्ट होय तेम (३) नक्की होय तेम (४)आम; आ प्रमाणे अपरस्मात् अद्भुत वि० आश्चर्यकारक (२) अलौकिक (३)पुं० अद्भुत रस (४) न० आश्चर्य (५) आश्चर्यकारक बनाव अमर वि० अकरांतियुं खानाएं अध अ० आज; आजे अब वि० खावा लायक [आधुनिक अद्यतन वि० आजने लगतुं; आजY (२) अद्यपूर्वम् अ. आज पहेलां अद्यप्रभृति अ० आजथी मांडीने अद्यापि अ० हजु पण अद्यावधि अ० आजथी मांडीने अद्रव्य न० नकामी वस्तु अद्रि पुं० पर्वत (२)सूर्य(३)वृक्ष(४) इंद्रनुं वन (५) वादळ; वादळांनो समूह (६) एक जातनुं परिमाण-माप (७) सात' -नी संख्या अद्रिकन्या स्त्री० पार्वती अद्विपति पुं० हिमालय पर्वत अद्रिसार पुं० लोढुं अद्रिसुता स्त्री० पार्वती अद्रिहन पुं० इन्द्र अद्रोह पुं० द्रोहनो अभाव अद्वय वि० एक (२) अद्वितीय (३) न० ऐक्य; अद्वैत अद्वितीय वि० अजोड सर्वश्रेष्ठ(२)एकलं अद्वैत वि० द्वैतभाव-रहित (२) न० ऐक्य; अभेद अद्वतवादिन् पुं० वेदांती अवैध वि० जुदाईना भाव विनानुं अधम वि० नीच; हलकुं (२) दुष्ट अधमर्ण, अषणिक पुं० देवादार अघमांग न० पग अधर वि० नीचे- (२) हलकू; नीच (३) आगळD के पाछळy (४) पुं० नीचलो होठ अधरतः,अपरतात् अ० नीचे;तळेतळिये अधरपान न० होठ उपर चुम्बन अघरस्तात्, अधरस्मात् अ० नीचे तळे; तळिये Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधरात् अपरात् अ० नीचे; तळिये अधरीकृ ८ उ० पाछळ पाडी देवूहराव, अपरीभू १५० खोटुं ठरवू (अदालतमां) अघरेयः अ० आगले दिवसे (२) गई कालने आगले दिवसे अषरोत्तर वि० श्रेष्ठ अने कनिष्ठ (२) दूरनुं अने नजीकर्नु (३) हमणांनुं अने पछी, (४) अधिक अने न्यून (५)वहेलु अने मोडु (६) ऊलटी रीते अपरौष्ठ पुं० नीचलो होठ अधर्म पुं० शास्त्रविरुद्ध आचरण (२) . अनीति (३)पाप अपमिन् वि० धर्म विरुद्ध वर्तनाएं; पापी अधर्म्य वि०धर्मविरुद्ध (२) गेरकायदेसर अधवा स्त्री० विधवा अधश्चर पुं० चोर अबस् अ० नीचे; तळे ते अपस्करण न० हरावq ते(२)नीचुं पाडवू अषस्तन वि० नीचे आवेलु- रहेलु अपस्तल न० नीचेनुं तळ ; नीचेनो भाग अपस्तात् अ० नीचे; तळे [अधोगति अषःपात पुं० नीचेनी तरफ पडवं ते; अधि अ० उपर, ऊंचे, अधिक,श्रेण्ठ, -ने लगतुं, वधारानु, ए अर्थमां वपराय छे अधिक वि० वधु ; वधारे (२)मोटु (३) प्रख्यात(४)वधारानु(५)न० वधारो(६) नकामापणुं(७)अ० वधारे; वधारे पडतुं अधिकरण न० अधिकारे-पदे नियुक्त ..करवं ते (२) स्थान (३) आश्रय (४) वाक्यमां शब्दनो संबंध (५) विषय; प्रकरण; खंड (६) अधिकार; हक (७) पूर्णस्वामित्व (८) न्यायमंदिर (९) सरकारी खातुं अधिकद्धि (अधिक+ऋद्धि) वि० अतिशय 'वैभवसंपन्न अधिकाम वि० अतिशय कामनावाळू अधिकार पुं० सत्ता, पदवी (२) सोंपेलुं काम(३)राज्यव्यवस्था (४)स्वामित्वनो अपित्यका हक (५) ग्रंथविभाग-प्रकरण (६)मुख्य नियम, जे बीजा नियमो पर अधिकार चलावे छे (७) शब्दनो वाक्यमां संबंध अधिकारवत्, अधिकारिन् वि० अधिकारवाळु; सत्तावाळू (२)योग्य;उचित (३) पुं० व्यवस्थापक; अधिकारी (४) हकदार; वारसदार अधिकृ ८ उ० अधिकार होवो-आपको (२) संबंध होवो; अनुलक्षq (३) सहन करवू; अनुभवतुं (४) वश करवू; चडियाता थq अधिकृत वि० अधिकार पामेलं ; नीमेल (२) पुं० अधिकारी; निरीक्षक अधिकृत्य अ० उद्देशीने; संबंधमां अधिक्रम् १ उ० [अधिक्रामति-क्रमते ऊंचे चडवु (२) आक्रमण करवू अधिक्षिप् ६ प० अपमान करवू (२)निंदा करवी; गाळ देवी (३) उपर नाखवूफेंक (४)-थी चडियाता थq; पाछळ पाडी देवू अधिक्षेप पुं० अपमान; निंदा; गाळ (२) काढी मूकवू ते (३) फेंक - नाखवू ते अधिगण् १० उ० गणतरी करवी (२) ऊंची किंमत आंकवी अधिगत वि० जाणेलं (२) प्राप्त करेलु अधिगम् १ ५० [अधिगच्छति प्राप्त करवं; मेळव, (२) नजीक पहोंचवू - जवं (३) जाणवू (४) संग करवो । अधिगम पुं०, अधिगमन न० ज्ञान (२) प्राप्ति; लाभ (३) अभ्यास (४) स्वीकार (५) संग; समागम अधिगण वि० उत्कृष्ट;अधिक गुणवाळू (२)सारी रीते खेंचेलु (जेमके धनुष्यनी पणछ) अधिज्य वि. पणछ चडावेलुं (धनुष्य) अधिज्यकार्मुक,अधिज्यधन्वन् वि. जेणे धनुष्यनी पणछ चडावी छे तेवू अधित्यका स्त्री० पर्वतनी ऊंची भूमि Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अधिदेव अभिदेव पुं०, अधिदेवता स्त्री०, अधिवैव, अधिदैवत न० श्रेष्ठ देव (२) अधिष्ठाता देव [अमलदार अधिप, अधिपति पुं० राजा ( २ ) उपरीअधिपांशुल वि० उपरथी धूळवाळं अधिप्रज वि० घणां संतानवाळु अधिप्रजम् अ० प्रजा -- संततिनी बाबत मां अधिभू पुं० स्वामी; श्रेष्ठ व्यक्ति अधिभूत वि० पंचभूत वगेरेने लगतुं (२) न० जड सृष्टि (३) परमतत्त्व अधिमात्रम् अ० अत्यंत; अमाप अधियज्ञ वि० यज्ञने लगतुं ( २ ) पुं० सर्व यज्ञना अभिमानी विष्णु ( ३ ) मुख्य यज्ञ अधिरथ वि० रथारूढ ( २ ) पुं० सारथि अधिराज्, अधिराज पुं० सार्वभौम राजा; चक्रवर्ती राजा [सर्वोपरी राज्य अधिराज्य, अधिराष्ट्र न० साम्राज्य; अधिरुह् ११० उपर चडवु ( २ ) सवारी करवी - प्रेरक ० [ अधिरोह ( प ) यति] उपर चडावj ( २ ) फरी पार्छु स्थापित कर (३) पणछ चडाववी ( ४ ) अर्पबुं अधिरूढ वि० उपर चडेलु; आरूढ थयेलु (२) अत्यंत वृद्धि पामेलु अधिरोहण न० उपर चडवुं ते अधिवस् १ प० रहेवास करवो ( २ ) २ आ० पहेरवुं (वस्त्र) अधिवास पुं० निवासस्थान; निवास ( २ ) खुशबो (३) यज्ञना आरंभमां देवतानुं स्थापन (४) जन्मस्थान ( ५ ) भूख्या बेसी करेलुं धरणं अधिवासित वि० स्थापित करेलुं (देवता) (२) सुगंधयुक्त करेलुं [ युक्त अधिवासिन वि० रहेलु; वसतु (२) सुगंधअभिविद् ६ उ० [ अधिविन्दति - ते ] एक उपर बीजुं परणवं अधिवेद, अधिवेदन पुं० एक जीवती उपर बीजी स्त्री परणवी ते १२ अवृति अधिशी २ आ० - नी उपर सूवुं (२) रवास करवो ( ३ ) - मां बेसवुं अधिष्ठा (अधि + स्था ) १ प० [ अधितिष्ठति ] ऊभुं रहेवुं (२) उपर बेसवुं (३) आचरबुं; -नुं अनुष्ठान करवु ( ४ ) - मां वसवुं - रहेवुं ( ५ ) - ना स्वामी बनवु; जीतबुं - वश करवुं (६) दोरखं; शासन करवुं (७) उपयोग करवो अधिष्ठातृ वि० नियममां राखनाएं; नियामक ( २ ) पुं० अध्यक्ष ; उपरी अमलदार अधिष्ठान न० स्थान; निवासस्थान ( २ ) आश्रय ( ३ ) सत्ता (४) राज्यसत्ता (५) पैडु (६) आशीर्वाद (७) बेठक; आसन; शय्या अधिष्ठित वि० रहेलुं (२) उपरी थईने रहेलुं ( ३ ) स्थापेलु; नीमेलुं ( ४ ) वसेलुं अधिस्यन्दम् अ० वधु वेथ arit (अधि + इ ) २ आ० अभ्यास करवो; भणवुं शीखवं ( २ ) २ १० याद कर - प्रेरक० भणाववुं शीखववुं अधीकार पुं० जुओ 'अधिकार' अधीत वि० शीखेलुं (२) जाणेलं (३) न० अध्ययन; अभ्यास अधीति स्त्री० अभ्यास ( २ ) याद अधोतिन् वि० जेणे अभ्यास कर्यो छे तेवुं; निपुण अधीन वि० पराधीन; परतंत्र अधीयान पुं० विद्यार्थी ( २ ) वेदनो अभ्यासी अधीर वि० उतावळं (२) चंचळ (३) क्षुब्ध; गभरायेलु ( ४ ) बीकण अधीरा स्त्री० कलहप्रिय स्त्री ( २ ) वीजळी अधीवास पुं० लांबो डगलो [सम्राट अधीश, अधीश्वर पुं० सार्वभौम राजा; अधुना अ० हमणां; हवे; आ समये अधुनातन वि० आधुनिक अवृति स्त्री० धैर्य - धारणानो अभाव Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्य अघृष्य वि० अजेय; जेना उपर आक्रमण न थई शके एवं (२)नम्र; शरमाळ (३) गर्विष्ठ अगोचर) अधोक्षज पुं० विष्णु (इंद्रियज्ञानथी अधोगति स्त्री. दुर्दशा; अवनति अधोगमन न० नीचे जq ते(२)अवनति; पडती अधोदृष्टि स्त्री० नीची नजर अधोद्वार न० गुदा अघोऽयस् अ० वधु ने वधु नीचे अधोमुख वि० नीचा मुखवाळु; नीचुं मुख करेलु अपोलोक पुं० नीचेनी दुनिया- पाताळ अपोवायु पुं० अपानवायु अध्यक्ष वि० दृष्टिगोचर (२) उपर । नजर राखनार; नियंता (३) पुं० प्रमुख; मुख्य अधिकारी अध्यक्षर न० 'ॐ' ए अक्षर-पद अभ्यय पुं०, अध्ययन न० अभ्यास अध्यवसान न० प्रयत्न; उद्योग; खंत (२) तादात्म्य; तद्रूपता अध्यवसाय पुं० प्रयत्न; उद्योग; खंत(२) निश्चय (३) उत्साह उत्साहवाळू अध्यवसायिन वि० निश्चयवाळ (२) अध्यवसो ४ प० निश्चित करवू (२) उत्साहवाळा थर्बु (खरं मानी लीधेलं अध्यस्त वि० आरोपण करायेलं;खोटाने अध्याक्रम १ उ० [अध्याक्रामति-क्रमते हुमलो करवो (२)जईने बेसवू- रहे, अध्याक्रांत वि० कबजो लेवायेलं; प्रवेशायेलं अध्यागम् १५० [अध्यागच्छति जडवू; मळवू अभ्याचरित वि० वपरायेलु (परब्रह्म अध्यात्म वि० आत्मा संबन्धी (२) न० अध्यात्मचेतस् पुं० आत्मानुं चिंतन कर वेदांतनुं ज्ञान अध्यात्मज्ञान न० आत्मज्ञान; ब्रह्मज्ञान; अध्युषित अध्यात्मम् अ० आत्माने लगतुं होय तेम अध्यात्मयोग पुं० आत्मानुं ध्यान अध्यात्मरति वि० आत्मचिंतनमा मग्न रहेनाएं विद्या अध्यात्मविद्या स्त्री ब्रह्मविद्या; आत्मअध्यात्मिक वि० आत्मा संबंधी अध्यात्मने लगतुं अध्यापक पुं० शिक्षक, विद्या आपनार अध्यापन न० शिक्षण; शीखवतुं ते अध्यापयित पुं० शिक्षक ; भणावनार अध्याय पुं० अध्ययन; अभ्यास (२) प्रकरण; सर्ग; परिच्छेद (३) अभ्यासनो योग्य समय अध्यायिन वि० भणनाएं (विद्यार्थी) अध्यारह १ प० उपर चडq (२)-थी अधिक थवं -प्रेरक० [अध्यारोपयति ] उपर चड़ावद् (२) आरोपण करवू (३)जेवू न होय ते तेने मानवं [(३) दबायेलं अध्यारुढ वि० उपर चडेलं (२)चडावेलु अध्यारोप पुं० आरोपq ते - वस्तुमां अवस्तुनु आरोपण करवु ते; भूल भरेलु ज्ञान अध्यास २ आ० रहे;स्थित थq;स्थिति करवी (२)होद्दानो स्वीकार करवो (३) प्रवेश करवो; कबजो लेवो (४)समागम करवो अध्यास पुं० खोटुं आरोपण; मिथ्याज्ञान (२)उप-प्रकरण (३)उपर बेसवु-रहेQ ते (४) उपर मूकवू ते अध्यासित वि० बेठेलं; रहेलु (२)न० उपर बेसबुं ते अध्याहरण न०, अध्याहार पुं० अर्थना स्पष्टीकरण माटे अनुक्त पद उमेर ते (२) अनुमान; तर्क अध्याहृ १ उ० अध्याहार करवो अध्यषित ('अधि+वस्'- भू० कृ०) वि० घास करायेखें नालं Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अध्युषिते अभ्युषिते च मळसके; प्रभात समये अध्युष्ट वि० ० साडा ऋण अध्यूढ ( 'अधि + वह ' नुं भू० कृ० ) वि० अवलंबित ( २ ) घणी समृद्धि के वृद्धि - वाळु (३) पुं० कन्यावस्थामां थयेलो पुत्र | कर्तुं छे ते स्त्री अध्यूढा स्त्री० जेना पतिए बीजुं लग्न अध्येत पुं० विद्यार्थी; शिष्य अध्येत्री स्त्री० विद्यार्थिनी [चंचळ अध्रुव वि० अनिश्चित (२) क्षणिक ; अध्वग पुं० मुसाफर; वटेमार्ग (२) सूर्य अध्वगामिन् वि० मार्गे जनारुं; मुसाफरी करनारुं [ आकाश अध्वन् पुं० मार्ग; रस्तो (२) काळ (३) अध्वर पुं० यज्ञ [ जाणनार ब्राह्मण अध्वर्यु पुं० यज्ञ करावनार; यजुर्वेद अध्वांत न० परोढ के संध्याकाळनो प्रकाश (२) मुसाफरीनो अंत अनक्षर वि० मूंगं; अवाचक ( २ ) अभण (३) बोलवाने अयोग्य (शब्द) अनगार वि० घर विनानुं अनग्नि वि० अग्निहोत्र विनानुं ( २ ) संन्यासी (३) न परणेलुं अनघ वि० पाप वगरनुं; पवित्र ( २ ) दोष विनानुं; सुन्दर ( ३ ) आपत्ति के विपत्ति विनानुं अनडुह पुं० बळद अनति अ० घणुं वधारे नहि तेम अनतिक्रम पुं० अतिक्रम - उल्लंघननो अभाव; मध्यमसरता अनतिक्रमणीय वि० उल्लंघन न करी शकाय के न करवा जेवुं अनद्यतन वि० आजनुं नहि तेवुं अनधिकारचर्चा स्त्री० अधिकार - लायकात विना चर्चा करवी ते अनधिगत वि० न मेळवेलुं (२) नहि भणेलुं अनधिगतमनोरथ वि० जेना मनोरथ पूर्ण नथी थया तेवुं - निराश १४ अनर्गल अनध्ययन न०, अनध्याय पुं० न भणवु ते; रजानो दिवस अनन्य वि० बीजुं नहि तेवुं - अभिन्न ( २ ) अद्वय अपूर्व ( ३ ) एकाग्र ; एकनिष्ठ अनन्यगति स्त्री० एक ज मार्ग; एक ज [ उपाय विनानुं अनन्यगतिक वि० बीजा आश्रय के अनन्यचित्त, अनन्यचेतस् वि० एकाग्र चित्तवाळु आश्रय अनन्यपूर्व पुं० बीजी पत्नी विनानो पुरुष अनन्यपूर्वा स्त्री० कदी बीजानी नथी थई तेवी स्त्री - कुमारिका अनन्यभाज् वि० बीजा कोईने न भजतु; वफादार अनन्यमनस् वि० जुओ 'अनन्यचित्त' अनन्यविषय वि० बीजा कोईने लागु न पडतुं अनन्यसाधारण वि० असामान्य अनन्वय पुं० संबंधनो अभाव अनन्वित वि० संबंध विनानुं ( २ ) असंगत (३) साथे न होय तेवुं; विनानुं अनपकार पुं० कोईनुं अहित न करवुं ते अनपग वि० स्थिर; दृढ़ अनपत्य वि० निःसंतान; वांझियुं अनपत्रप वि० शरम विनानुं अनपराध, अनपराधिन् वि० अपराध विनानुं; निरपराधी [ शाश्वतपणुं अनपाय वि० अविनाशी; अक्षय ( २ ) पुं० अनपायिन् वि० शाश्वत; स्थिर अनपेक्ष, अनपेक्षिन् वि० अपेक्षा - दरकार विनानुं ( २ ) लालसा वगरनुं ; निःस्पृही (३) संबंधथी पर अनपेत वि० दूर नहि गयेलं ( २ ) युक्त; सहित ( ३ ) छूटुं न पडतुं; वळगी रहेतुं अनभिज्ञ वि० अज्ञानी; मूर्ख ( २ ) अपरिचित; अजाण्य अनय पुं० अव्यवस्था (२) अनीति (३) दु:ख, विपत्ति (४) छळ ; कपट अनर्गल वि० निरंकुश; छूटुं Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनर्घ वि० अमूल्य (२) पुं० खोटी के अयोग्य किंमत अनय वि० अमूल्य(२)सौथी वधु पूज्य अनर्थ वि०निरुपयोगी;नकामुं(२)अभागी (३) नुकसानकारक; अनिष्ट (४) अर्थ वगरनुं (५) पुं० निरुपयोगिता (६) प्रयोजन के उपयोग विनानी वस्तु (७) अनिष्ट ; आफत अनर्थक, अनर्थ्य वि० अर्थ वगरनुं (२) प्रयोजन विनानु; लाभ वगरनुं (३) दुर्भागी (४) न० निरर्थक प्रलाप । अनर्ह वि० अयोग्य; लायक नहि तेवू अनल पुं० अग्नि (२) जठराग्नि (३) क्रोधाग्नि तम अनलम् अ० बस नहि तेम; पूरतुं नहि अनलस वि० आळस विनानु; उद्योगी अनल्प वि० घj; पुष्कळ विनानुं अनवकाश वि० अवकाश-प्रसंग-तक अनवगीत वि० निदित नहि तेवं अनवग्रह वि० काबूमां न रहे तेवू अनवच्छिन्न वि० छुटुं पाडेलुं नहि तेवू (२) सीमा के मर्यादा नहि करायेलु (३) निश्चित नहि करायेलु [अनिंदित अनवद्ध वि० दोष -खोड विना; अनवरत वि० सतत; निरंतर अनवसर वि० अवकाश-फुरसद वगरन (२) उचित काळ विनानुं अनवसित वि० पूरुं न थयेलं; असमाप्त अमवस्थ वि० अस्थिर; चंचळ अनवस्था स्त्री० अस्थिरता (२) अनिश्चितता (३) निर्णय अथवा छेडो न आववो ते; एक तर्कदोष राखवी ते अनवेक्षण न० काळजी-तपास न अनशन न० उपवास (२) आमरणांत उपवास विनानुं अनसूय, अनसूयक वि० असूया-अदेखाई अनंग वि. अंगरहित (२) पुं० कामदेव अनंगलेख पुं० प्रेमपत्र अनंगशत्रु पुं० शंकर भगवान अनापद अनंजन वि० आंजण दिनानुं (२) दोष विनानुं (३) कशा संबंध विनानुं अनंत वि० अपार (२) शाश्वत (३) पुं० शेषनाग अनंतर वि० पछी- (२) नजीकचें (३) अंतर वगरनुं - सतत; अखंड अनंतरम् अ० तरत ज (२) पछीथी अनंतराय वि० अंतराय-बाधा विनानं अनंतरीय वि० क्रममा तरत ज पछीनुं अनंद वि. आनंदरहित; दुःखपूर्ण अनागत वि० नहि आवेलु(२)नहि मळेलु (३) भावि; भविष्यकाळनु माणस अनागतविधात पुं० अगमचेतीवाळो अनागस् वि० निर्दोष ; निरपराधी । अनाघ्रात वि० नहि संघेलं नहि भोगवेलं अनाचार वि० शास्त्रविहित आचारो न आचरनारं; निषिद्ध आचार आचरनारं अनात्मन् वि० आत्मा,मन वगेरे विनानं (२) शरीरने लगतुं (३) जेणे आत्मा जीत्यो नथी तेवू; अजितेंद्रिय (४) पुं० शरीर वगेरे जड वस्तु अनात्मक वि० आत्मा जेवी स्थिर वस्तु विनानु; क्षणिक अनाथ वि० आश्रय वगरनु; असहाय (२) माबाप-स्वामी वगेरे विनानुं अनादर वि० आदर विनानु (२) पुं० तिरस्कार; अपमान तेवं अनादि वि० जेनो आरम्भ के जन्म नथी अनादिनिधन वि० आदि तथा अंत विनानुं विनानुं अनादिमध्यान्त वि० आदि-मध्य-अंत अनावीनव वि० दूषण वगरन . अनादृत वि० अनादर करायेलु;अनादर पामेलं नथी तेवू; शाश्वत अनाद्यनंत वि. जेनो आरम्भ के अंत अनाधृष्ट, अनाधृष्य वि० न जीती के दबावी शकाय तेवं अनापद् स्त्री० आपत्तिनो अभाव Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनाप्त मनाया मेळलेला समेळवधामा निष्फळ गयेल (३) अकुशळ (४) पुं० अजाण्यो पुं०, न० आरोग्य; सुख अनामय वि० नीरोगी; दु:खरहित (२) अनामा,अनामिका स्त्री०टचली आंगळी पासेनी आंगळी अनायत वि० असंयत (२) ट्रॅक.. अनायत्त वि० परवश नहि तेवू; स्वतंत्र अनायास वि० प्रयत्न वगरनुं (२) सहेलुं; मुश्केल नहि तेवू (३) पुं० मुश्केलीनो अभाव (४) सुगमता तेवू अनायुष्य वि० आयुष्यने हितकर नहि अनारतम् अ० अनवरत; सतत. अनारंभ पुं० (कार्यनो) आरंभ नहि करवो ते अनारंभण वि० आलंबन विनानुं अनारोग्य वि०आरोग्यने प्रतिकूळ (२) न० मांदगी; मंदवाडकन्या अनातवा स्त्री० रजस्वला न थयेली अनार्य वि. आर्यने न छाजे तेवू; हलकुं (२) असभ्य (३) आर्यो विनानु (४) आर्य नहि ते जाति- सेवेलं अनार्यजुष्ट वि० आर्योए न आचरेलंअनालंब वि० आलंबन वगरनु:निराधार अनातिन् वि० फरीथी पार्छ न फरतुं अनाविद्ध वि० अणवींध्यु अनाविल वि० स्वच्छ ; निर्मळ अनावत वि० नहीं ढंकायेलं; खुल्लु अनावृत्त वि० पहेली वारनु; फरीवारनहि तेवं मोक्ष अनावृत्ति स्त्री० पार्छ नहि फरवू ते (२) । अनावृष्टि स्त्री० वरसाद नहि थवो ते; दुष्काळ नाशरहित । अनाश वि० आशा विनान; निराश (२) अनाशक वि० यथेच्छ भोग के भोजन रहित (२) नाशरहित (३)न० उपवास; आमरणांत उपवास रहित अनाश्रव वि० न सांभळतुं (२) कर्मबंधअनाश्वस् वि० भूख्यु; उपवासी अनिशम् अनाश्वास वि० आधार लई न शकाय तेवू (२) अ० विश्रांतिरहितपणे अनास्था स्त्री० अनादर (२) अश्रद्धा अनाहत वि० नहि हणायेल-घवायेलं (२)कोरु; नवं; न वापरेलु (३) वगाड्या विना एनी मेळे थतुं (ध्वनि) तेवू अनाहूत वि० बोलावेलु के निमंत्रेलुं नहि अनिकेत वि० घरबार विनानुं ; एक ज स्थळे न रहेनारु (२) पुं० संन्यासी अनिच्छ वि० इच्छारहित (२) इच्छा न करतुं अनिच्छा स्त्री० नाखुशी; नामरजी अनित ('अन्'- भू० कृ०) वि० साथे न होय तेवं अनित्य वि० अशाश्वत; नाशवंत (२) अस्थिर (३) प्रासंगिक अनिभृत वि० गुप्त नहि तेवू (२) अविवेकी; धृष्ट (३) अस्थिर; चंचळ अनिमित्त वि० अकारण; सहज (२) न० योग्य कारणनो अभाव (३) अपशुकन अनिमिष,अनिमेष वि०आंखना पलकारा वगरन; स्थिर (२) जाग्रत ; सावधान (३) खिलेलं; खुल्लु (आंख, फूल इ०) (४) पुं० देव (५) माछलुं अनियत वि० निरंकुश (२) अनिश्चित अनियम पुं० नियमनो अभाव (२) अनिश्चितता अव्यवस्थित अनियंत्रित वि० स्वच्छंदी (२) अनिराकरण न० निवारण न करवू ते अनिर्दिष्ट वि० निर्देश नहि करायेलं अनिर्देश्य वि० निर्देश न थई शके तेवं अनिर्वचनीय वि० अवर्ण्य ; अवर्णनीय अनिल पुं० पवन (२) वायुदेव अनिलसल, अनिलसारथि पुं० अग्नि अनिलाशन वि० उपवास करनारुपवन ज खानारुं (२) पुं० साप अनिवार्य वि० निवारी न शकाय तेवं अनिशम् अ० निरंतर; सतत Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . [थवू अनिष्ट अनिष्ट वि० नहि इच्छेलु (२) नहि इच्छवा जोग; बूरु (३) न० संकट; दुःख; आपत्ति आवे तेQ अनिष्टानुबंधिन् वि० पाछळ अनिष्टो अनिष्टापत्ति स्त्री० न इच्छेलं मळवू के आवी पडवं ते अनिद्रिय न० बुद्धि (२) मन अनोक पुं०, न० लश्कर; सेना (२) युद्ध (३) समूह पहेरेगीर अनीकस्य पुं० सैनिक (२) सशस्त्र अनीकिनी स्त्री० सेना; लश्कर (अक्षौहिणीनो दशमो भाग) अनीति स्त्री० नीति विरुद्ध आचरण अनीप्सित वि० नहि इच्छेलं अनीश वि० स्वामी के उपरी विनानुं (२) सत्ता के काबू वगरनु; अस्वतंत्र अनीश्वर वि० जेनो कोई स्वामी नथी तेवू- स्वतंत्र (२) असमर्थ (३) ईश्वर संबंधी नहि तेवू (४) ईश्वरमां न मानतुं अनीश्वरवाद पुं० ईश्वर नथी एवो वाद अनीह वि० निःस्पृह (२) आळसु अनु अ० पाछळ, साथे, परिणामरूपे, नीचे, नानु, तरफ, नजीक, पछीनु, जेवू --एवा अर्थमां वपराय छे लगोलग अनुकच्छम् अ० भेजवाळा भागनी अनुकरण न० नकल करवी ते अनुकंप १ आ० दया बताववी अनुकंपा स्त्री० दया; सहानुभूति अनुकंपित वि० अनुकंपा दर्शावायेलं अनुकंप्य वि० अनुकंपा करवा योग्य अनुकार पुं० अनुकरण [आवतुं अनुकारिन् वि० अनुकरण करतुं ; मळतुं अनुकीर्ण वि० व्याप्त; पूर्ण जाहेरात अनुकीर्तन न० कहेवं ते; वर्णन (२) अनुकूल वि० फावे तेवं; सगवडवाळू (२)हितकर; माफक; रुचतुं; पथ्य अनुकृ ८ उ० अनुकरण करवू; नकल करवी (२) बदलो आपवो अनुगै अनुकृत वि० अनुकरण करायेलं;-नी समान करायेलं (२) न० वळतो घा अनुकृति स्त्री० अनुकरण करवू ते __ अनुक्त वि० नहि कहेवायेलु (२)अपूर्व; सांभळवामां न आवेलं अनुक्रम् १ उ० [अनुक्रामति - क्रमते, ४ प० [अनुक्राम्यति ] पाछळ पाछळ जवू; अनुसरवु (२) गणतरी आपवी अनुक्रम पुं०. एक पछी एक आवq ते; क्रम (२)पुस्तकादिना विषयोनी अनुक्रमणिका (३) रोजनो अभ्यास अनुक्रमणिका, अनुक्रमणी स्त्री० सांकळियु; अनुक्रम अनुक्रुश १ प० -नी तरफ के पाछळ बूम पाडवी "-प्रेरक० शोक दाखववामा सामेल अनुक्रोश पुं० दया; सहानुभूति अनुग वि० अनुसरनारु (२)पुं० अनुचर अनुगत वि० अनुसरतुं; पाछळ जतुं (२) युक्त; सहित (३) व्याप्त; पूर्ण अनुगति स्त्री० अनुसरयूँ - अनुकरण करवू ते (२) संमति अनुगम् १५० [अनुगच्छति ] पाछळ पाछळ जवू; अनुसरवु (२) आचर; अमल करवो (३) -मां शोधq; -मां रखड, (४) अनुकरण करवू; मळतुं आवq (५) आवी पहोंचq (समय) अनुगम पुं०, अनुगमन न० पाछळ जवू ते ; अनुसरण (२)समजवु-पकडवू ते (३)पतिनी पाछळ स्त्रीन सती थवं ते अनुगजित न० गर्जनानो पडघो अनुगामिन् वि० अनुसरनाएं; अनुयायी अनुगिरम् अ० पर्वतनी बाजुए अनगुण वि० सरखा गुणवार्छ; अनुरूप (२) अनुकूळ; प्रिय अनुगुणम् अ० सानुकूळ होय तेम अनुगै १ प० गावामां साथ आपको (२) (काव्यमां) गाईने प्रसिद्ध करवू Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ अनुग्रह अनुग्रह, ९ प० अनुगृह्णाति] कृपा करवी; उपकार करवो (२) टकावी राखq (३) अनुसरवु; मळता आवद् अनुग्रह पुं०, अनुग्रहण न० कृपा;उपकार अनुग्राह्य वि० अनुग्रह करवा योग्य अनुचर १५० पाछळ पाछळ जवू (२) सेवा करवी अनुचर पुं० सेवक ; अनुयायी अनुचरी स्त्री० दासी गेरवाजबी अनुचित वि० अयोग्य (२) खोटुं; अनुचित् १०प० चितववं अनुच्छिष्ट वि० भोगवेलुं नहि तेवू; ताजु (२) छांडेलु नहि तेवू; शुद्ध । अनुजन् ४ आ० अनुजायते –नी पछी जन्मवू (२) -ना जेवा थर्बु भाई अनुज वि० पछी जन्मेलु (२) पुं० नानो अनुजात वि० पछी जन्मेल (२) -ना जैq थयेलु (३) पुं० नानो भाई अनुजीव १५० --ने आधारे जीववं (२) -नी समान जीव, अनुजीविन वि० –ने आधारे जीवतुं (२) पुं० सेवक; नोकर अनुजीव्य वि० सेववा योग्य (२) जीवनमां अनुसरवा योग्य अनुज्ञा ९ उ० अनुजानाति-जानीते | रजा आपवी; संमति आपवी (२) क्षमा आपवी (३) आजीजी करवी (४) विवाह करवो अनुज्ञा स्त्री० परवानगी (२) संमति अनुज्ञात वि० परवानगी - संमति आपेलु अनुज्ञापन न० परवानगी आपवी ते अनुतप १५० पश्चात्ताप करवो (२) दिलगीर थq; दुःखी थQ अनुताप पुं० पश्चात्ताप (२) खेद अनुत्क वि० उत्कंठा विनानु; स्वस्थ अनुतम वि० सर्वोत्तम ; श्रेष्ठ अनुत्तर वि० मुख्य (२) उत्तम; श्रेष्ठ (३) । हलकुं; नीच (४) चूप; उत्तर विनान अनुपधि अनुत्थान न० उद्यमनो अभाव अनुत्सेक पुं० गर्वनो अभाव; विनय अनुत्सेकिन वि० निरभिमानी; विनयी अनुदर्शन न० अवलोकन; देखरेख (२) विचार; चितवन अनुदिनम्, अनुदिवसम् अ० दररोज अनुदृश् १५० अनुपश्यति नजर सामे राखवू; निहाळ अनुद्घात वि० खाडाटेकरावाळु नहि तेवू; सरखं अनुव १ प० पाछळ पाछळ दोडवू अनुद्वेग वि० उद्वेगनो अभाव (२) पुं० उद्वेग के भय विनाना होवू ते अनुधाव १५० -नी पाछळ दोडवू (२) -नी पासे पहोंचवू (३) साफ करवं अनुधावन न० पाछळ दोडवं ते (२) साफ करवू ते अनुध्यान न० ध्यान; स्मरण; चिंतन अनुध्यै १५० चितवq (२) शुभ इच्छवं अनुनद् १५० -नी तरफ आवाज करवा -प्रेरक पड्धो पडे तेम करवु (२) अवाजथी भरी काढवू अनुनय वि० सांत्वना आपनाएं; शांत पाडनारु (२)पं० सांत्वन ; शांत पाडव ते (३) नम्रता; आदरभाव (४) आजीजी; विनंती अनुनाद पुं० अवाज; पडघो अनुनासिक वि० नाकमांथी उच्चारातुं अनुनी १५० समजाव; शांत पाडव (२) विनंती करवी (३)प्रेम दर्शाववी (४) संमानवू अनुपत् १५० -तरफ ऊडवू(२) -नी पाछळ दोडवू - जq (३) हुमलो करवो अनुपद् ४ आ० अनुसरवु (२)आसक्त थर्बु (३) नीचे पडद् (४) लागु थवं; मंडq (५) शोधी काढवू अनुपक्म् अ० पगले पगले (२) शब्दे शब्द अनपधि वि. निटोर - Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुपपत्ति अनुपपत्ति स्त्री० तर्क-युक्तिनो अभाव; असंगति शिकाय तेवु अनुपम वि० अनन्य ; उपमा न आपी अनुपयुक्त वि० अयोग्य ; निरुपयोगी अनुपलब्ध वि० नजरे न पडेलुं; न मळेलु अनुपहत वि० नहि वपरायेलु; कोरंनवु (वस्त्र) अनुपा २ प० -नी पछी पीq (२)-नी साथे पीयूँ (३) जुओ "अनुपाल" । अनुपात पुं० पाछळ जवू ते (२) एक पछी एक जवू ते (३) हुमलो अनुपातम् अ० एक पछी एक एवा क्रममा अनुपान न० औषधनी साथे के पछी लेवानुं मददरूप प्रवाही के बीजी दवा अनुपाल १० प० संरक्षq (२) मानवू; पाळवु अनुपूर्व वि० क्रम प्रमाणे-(२)प्रमाणसर अनुपेत वि० रहित ; विनानुं (२) जेन यज्ञोपवीत अपायुं नथी तेवू . अनप्रविश ६५० -मां प्रवेशवं ; जोडावं (२) -ने बंधबेसतुं थवं अनुप्रवेश पुं० अंदर पेसवं ते (२) -ने बंधबेसतु थर्बु ते (३) अनुकरण . अनुप्रसादन न० प्रसन्न करवं ते अनुप्राप् ५५० जई पहोंचवु(२)अनुकरण करवू अनुप्रास पुं० एकनो एक अक्षर जेमां वारंवार आवे तेवो शब्दालंकार अनुप्लव पुं० अनुचर; नोकर . अनुबद्ध वि० जोडायेलु; बंधायेलु (२) परिणामरूपे आवतुं (३) सतत; चालु अनुबंध् ९५० बांधवं; जोड, (२) पाछळ पाछळ आवq (३) आग्रह करवो (४) चालु राखq अनुबंध पुं० बंधन; संबंध (२) चालु अनुक्रम; सांकळ (३) परिणाम; फळ(४) वेदांतमां-विषय, प्रयोजन, अधिकारी अने संबंध ए चारनो समूह अनुयात्र अनुबंधिन् वि० संबंधवाळु; जोडायलं (२) परिणामे आवतुं (३) सतत चालतुं अनुबष् ४ आ० बोध थवो; जाणवू (२) जागवू ३) याद करवू देवराव -प्रेरक० बोध आपवो (२) याद भनुभव पुं० प्रत्यक्ष ज्ञान(२)जाते-पोते जाणवू ते (३) परिणाम [थयेलु अनुभवसिद्ध वि० अनुभवथी पुरवार अनुभाव मुं० प्रभाव; तेज; महत्ता (२) पराक्रम; सामर्थ्य (३) दृढ निश्चय (४) मनोगत भावनो बाह्य विकार अनुभुज ७ आ० भोगवq; अनुभव, अनुभू १ ५० अनुभव; भोगववं अनुभूति स्त्री० अनुभव (२) इंद्रियज्ञान अनुमत वि० संमत (२) सहमत (३) इष्ट ; प्रिय (४) पुं० प्रेमी (५) न० संमति; मंजूरी अनुमति स्त्री० संमति ; अनुज्ञा; रजा अनुमन् ४ आ० संमत थq; रजा आपवी; मंजूर करवू अनुमरण न० -ना मरण पाछळ (साथे ज) मरी जq ते ; स्त्री- सती थर्बु ते [अटकळ करवी अनुमा २५०, ३ आ० अनुमान करवं; अनुमान न० अटकळ (२) तर्क (३) तुलना (४) न्यायशास्त्रमांनां चार प्रमाणोमां, एक - अनुमितिनुं साधन अनुमिति स्त्री० अनुमान प्रमाणथी ·थयेलुं ज्ञान अनुमुद् १ आ० अनुमोदन आपq;समर्थन करवू (२) आनन्द पामवं अनुम ६ आ० [अनुम्रियते]-नी पाछळ मरी जq; (स्त्री-) सत्ती थq अनुमेय वि० अनुमान करी शकाय तेवू अनुमोदन न० समर्थन (२) संमति अनुया २५० पाछळ पाछळ जवु (२) अनुकरण करवू अनुयात्र न० अनुयायी वर्ग Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० अनुयायिन् अनुयायिन् वि० पाछळ पाछळ जना; अनुसरनार (२) समान ; सरखं (३) पुं० अनुसरनार; अनुयायी । अनुयुज ७ आ० प्रश्न पूछवो (२) परीक्षा लेवी (३)शिक्षण आपq (४)आजीजी करवी अनुयोक्त पुं० परीक्षक (२) शिक्षक । अनुयोग पुं० प्रश्न (२) तपास (३) विनंती (४)निंदा; ठपको (५)उद्यम (६)योग- ध्यान (७) टीका;समजूती अनुयोज्य पुं० सेवक; नोकर अनुरक्त वि० रंगायेल; लाल रंगवाळु (२) आसक्त अनुरक्ति स्त्री० आसक्ति; प्रेम अनुरणन न० रणकार अनुरथ्या स्त्री० पगथी; 'फूटपाथ' अनुरसित न० पडघो अनुरहसम् अ० खानगीमां; एकान्तमा अनुरंज् ४ उ० [अनुरज्यति-ते] लालाश धारण करवी (२) आसक्त थq अनुरंजन न० प्रसन्न करवू ते; आनन्द आपवो ते अनुराग पुं० प्रेम; स्नेह (२) लालाश अनुरागिन् वि० प्रेमवाळ; आसक्तिवाळू अनुरु २५० सहानुभूतिमां साथे रडवू अनुरुध् ७ उ० अवरोध, (२)पाळवं; मानवु (३) चाहq (४) आग्रह करवो अनुरूप वि० -ना जेवू (२) तुल्य (३) अनुव्रत अनुलोमज वि० शास्त्रमान्य क्रमे, ऊतरता वर्णनी स्त्रीना उच्च वर्णना पुरुष साथेना लग्नथी जन्मेलु अनुवचन न० पाठ; अभ्यास ; पुनराववर्तन (२) खंड; प्रकरण अनुवद् १५० बोलेलानु अनुकरण करवू (२) १ उ० रणकार करवो; पडघो पडवो (३) फरी बोली जवं अनुवर्तन न० अनुसरण; आज्ञापालन अनुवतिन् वि० अनुसरनारं; आज्ञा पाळनाएं अनुवंश पुं० वंशवृक्ष अनुवाक पुं० वेदनो भाग-प्रकरण (२) अभ्यास; पुनरावर्तन अनुवाद पुं० पुनरुक्ति (२) कहेली वात समजूती साथे फरी कहेवी ते अनुवादिन् वि० अनुवाद करनारु (२) संवादी; सुसंगत अनविद्ध वि० वींधेलं (२) पूर्ण; व्याप्त; युक्त (३) (रत्नथी) जडेलु-जडित अनुविधा ३ उ० विधान करवू (२) अनुसरवू; अनुकरण करवू अनुवत् १ आ० अनुसरवू अनुवृत्ति स्त्री० संमति(२)-नी मरजीने - के आनाने अनुसरयू ते (३) पुनरावर्तन अनुवेध पुं० वींधवू ते (२) संस्पर्श (३) मिश्रण अनुवेलम् अ० हर वेळा अनुवेश्य वि० पडोशी अनुध्यध् ४ ५० अनुविध्यति | वींधवं; फरी वींधवू (२) व्यापq; मिश्रित थवू अनुव्याध पुं० जुओ ‘अनुवेध' अनुव्याहरण न०, अनुव्याहार पुं० पुनरावृत्ति ; पुनरुच्चार (२) शाप । अनुवज १५० वळाववा पाछळ जवु (२) अनुसर अनुव्रत वि० वफादार (२)व्रत नियमनु यथोचित पालन करनारुं योग्य अनुरोष पुं० संमति; स्वीकार (२) विनंती; आग्रह (३) नियमनुं पालन अनुरोधिन् वि० अनुसरतुं; पाळतुं अनुलग्न वि० लागेल; वळगेलं अनुलिप् ६ प० [अनुलिपति लेप करवो; खरडवू अनुलेप पुं०, अनुलेपन न० लेप करवो ते (२) लेपनो पदार्थ; मलम अनुलोम वि० अनुकूळ ; क्रमने अनुसरतुं Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुशय अनुशय पुं० पश्चात्ताप (२) दुःख ; खेद (३) आसक्ति (४) हाडवेर; आदवेर (५) संस्कार; वासना अनुशास् २५० समजाव; शीखवतुं । (२) हुकम करवो (३) राज्य करवू (४)शिक्षा करवी (५) प्रशंसा करवी अनुशासक वि० अनुशासन करनाएं अनुशासन न० शिक्षा उपदेश(२)नियम; कायदो (३) विवरण; समजूती (४) अमल करवो ते; राज्य चलावq ते अनुशासित, अनुशासिन्, अनुशास्तु वि० अनुशासन करनारं अनशिष्ट वि० शिक्षित ; विनीत (२) पुछायेखें (३) दर्शावायेलु अनुशी २ आ० साथे सूर्बु (२) पस्तावो करवो अनुशीलन न० सतत अभ्यास अनुच् १५० शोक करवो; पश्चात्ताप करवो मळेल अनुभविक वि० शास्त्रमाथी जाणवा अनुप ५ प० [अनुशृणोति सांभळवू (२) परंपराथी सांभळता आववं अनुवक्त वि० जोडायेल; वळगी रहेलं अनुवंग पुं० गाढ संबंध (२) साहचर्य (३) पूर्वापर संबंध (४) शब्दोनो परस्पर संबंध (५) अवश्य परिणाम अनुषंगिन् वि० वळगेलं, जोडायेलु (२) परिणामरूपे साथे जनारं-साथे रहेलु अनुषंज् ( अनु + संज् ) १ प० [अनुषजति जोडावं; वळगी रहे। -कर्मणि अनुषज्यते, अनुषज्जते] (उपरनो ज अर्थ) अनुष्टुभ् स्त्री० एक छंद अनुष्ठा (अनु + स्था) १५० [अनुतिष्ठति] करवू; आचरवु (२) नजीक । ऊभा रहेवु; सेवामां रहे, (३)अनुसरवू; अनुकरण करवू (४)शासन कर, (५) शास्त्रोक्त कार्य विधिपूर्वक करवू अन्त अनुष्ठान न० क्रिया करवी ते(२)धार्मिक क्रिया (३) कार्यनो आरंभ ; पूर्वतयारी अनुष्ठित वि० करेलु; आचरेलु अनुष्ठेय वि० करवा जेवू; करवान अनुसरण न० अनुसरवू ते अनुसंतन् ८ उ० फेलावं(२) चालु रहे, अनुसंधा ३ उ० शोध; तपासवु (२) शांत पाडवू (३)अनुलक्षवू; विचार (४)अनुसरवू;साथे रहेQ (५)योजवं तैयारी करवी अनुसंधान न० चोकसाई ; बारीक तपास (२)योग्य संबंध (३ योजना; पूर्वतैयारी अनुसार पुं० अनुसरवं ते (२) रूढि ; रिवाज (३) परिणाम अनुसारणा स्त्री० पीछो पकडवो ते; पाछळ जq ते अनुस १५० पाछळ जवू- अनुसरवू अनुस्मृ १ प० स्मरण करवू अनुस्यत वि० -नी साथे जोडायेलंगूंथायलं- सीवेलं - वणायेखें अनुस्वार पुं० स्वरनी पाछळ उच्चारातो अनुनासिक वर्ण के तेनुं चिह्न () अनुह १५० अनुकरण करवु (२)१ आ० . मळता आव_ नम्र; विवेकी अनचान वि० विद्वान (२)वेद भणेलं (३) अनूदक न० वरसाद न पडवो ते ; सूको काळ संपूर्ण (२) घणुं मोटुं अनून वि० न्यून के हलकुं नहि तेवुअनूप वि० पुष्कळ पाणीवाळु; भेजवाळू (२) पुं०, न० पुष्कळ पाणीवाळी के भेजवाळी जगा (३) नदीनो किनारो अनूरु वि० जांघ विनानुं (२)पृ० अरुण; सूर्यनो सारथि अनूरुसारथि पुं० सूर्य अनूह वि० अविचारी अनृण, अनुणिन् वि० ऋणमुक्त अन्त वि० मिथ्या; असत्य (२) न० असत्य; जूठ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - अनेक अन्योन्यम् अनेक वि० एक नहि - बहु । अन्यतरेधुस् अ० बेमांथी कोई पण दिवसे अनेकगुण वि० घणा प्रकारनु ; विविध अन्यतस् अ० बीजा तरफथी; बीजी अनेकचित्त वि० अस्थिर मनवाळं बाजुएथी (२)बीजा कारणसर ; बीजा अनेकधा अ० अनेक प्रकारे हेतुथी (३) बीजी बाजु; ऊलटुं (४) अनेकरूप वि० घणा प्रकारच्(२)विविध बीजी नरफ रूपवाळं (३)अनिश्चित; अस्थिर मननुं अन्यत्र अ० बीजे ठेकाणे; बीजे प्रसंगे अनेकवचन न० द्विवचन अथवा बहु- (२) सिवाय (३) बीजा अर्थमा । वचन (व्या०) अन्यथा अ० बीजी रीते; जुदी रीते (२) अनेकशः अ० वारंवार (२ अनेक प्रकारे खोटी रीते (३) ऊलटुं (३) मोटी संख्यामा अन्यथाख्याति स्त्री० (होय तेनाथी) अनेकसाधारण वि० घणांनुं सहियारु अन्य रूपे ज्ञान थवं ते अनेकांत वि० अनिश्चित (२) अनेक अन्यथावृत्ति वि० बदलायेली वृत्तिवाळं बाजुवालु अन्यदा अ० बीजे वखते; बीजे प्रसंगे अनेकांतवाद पुं० वस्तुना अनेक पासां अन्यपुष्टा स्त्री० कोयल परत्वे जुदी जुदी रीते ज्ञान थाय छे - अन्यभृत् पुं० कागडो एवो जैन वाद अप्रस्तुत ; गौण अन्यभूता स्त्री० कोयल अनेकांतिक वि० अनिश्चित (२) अन्यमनस्, अन्यमनस्क, अन्यमानस वि० अनोकह पं० वृक्ष जेनु मन बीजे लागेलं छे तेवू; बेध्यान; अनौचित्य न० अनुचितता; अयोग्यता व्यग्र मनवाळू (२) अस्थिर मनवाळू अन्न न० (रांधेलु) अनाज – खोराक अन्यरूप वि० बीजं रूप लीधेलं; वेशअन्नकट पुं० रांधेला चोखानो ढग पलटो करेलु सहियाएं अन्नदोष पुं० निषिद्ध खोराक खावाथी अन्यसाधारण वि० बीजां घणांनु लागतुं पाप अन्यावृक्ष,अन्यादृश,अन्यादृश वि० बीजा अन्नपूर्णा स्त्री० दुर्गा देवी प्रकार- बीजा जेवू २)जुदं; असाधारण अन्नप्राश पुं०, अन्नप्राशन न० नाना अन्याय वि० अयोग्य (२)न्याय विरुद्ध छोकराने पहेलवहेलं अन्न खवडाववानो (३) अप्रमाणिक (४)पुं० न्यायविरुद्ध संस्कार कृत्य ; गेरइनसाफ अन्नमय वि० अन्नन बनेलं अन्याय्य वि० न्यायविरुद्ध; अयोग्य अन्नमयकोश (-1) पु० स्थल शरीर . अन्येद्युस् अ० बीजे दिवसे (२) एक अन्य वि० बीजु (२) जुद् ; निराळ (३) दिवम; एक बार असामान्य; विलक्षण (४) अधिक; अन्योक्ति स्त्री० एक अर्थालंकारवधारानुं दुराचरगी बोलवू एकने उद्देशीने अने लागु पाडवं अन्यग, अन्यगामिन् वि० व्यभिचारी; कोई बीजाने, एवं वाणी- चातुर्य (२) अन्यचित्त वि० जेनं मन बीजा पर लागु स्तुतिना गब्दोमां निंदा, अने निंदाना थयं छे तेवं उपरांत शब्दोमां स्तुति दविवी ते अन्यत् वि० बीजु (२) अ० फरीथी; अन्योढा स्त्री० परस्त्री अन्यतम वि० घणांमांन एक अन्योन्य वि० परस्पर; एकमेक अन्यतर वि० बेमांनुं एक अन्योन्यम् अ० परस्पर Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्वक अ० पाछळ पाछळ (२)पाछळथी अन्वक्षम् अ० तरत ज पछी अन्वय पुं० वंश; संतति (२) पाछळ पाछळ जq ते (३) संबंध (४) वाक्यमां शब्दोनो स्वाभाविक क्रम (व्या०) (५) कार्यकारण संबंध (६) पाछळ पाछळ जनार- अनुचर वर्ग (७) नित्य साहचर्य (न्या०) अन्वयज्ञ पुं० वंशावली जाणनार अन्वयागत वि० वंशपरंपरागत अन्वर्य वि० यथार्थ; अर्थने अनुसरतुं अन्वहम् अ० दररोज अन्वास् २ आ० पासे बेस; पासे रहे (२)-नी पछी बेसवं (३)सेवा करवी (४) धर्मक्रिया करवी अन्वि (अनु+इ) २ प० पाछळ पाछळ जवू; अनुसर, अन्वित. ('अन्वि'न भू० कृ०) वि० युक्त; सहित (२) मन वडे समजायेलु (३) उचित ; लायक अन्विष् (अनु+इष) ६ ५० [अन्विच्छति , ४ प० अन्विष्यति] शोध; शोध करवी; तपास करवी अन्वीश् १ आ० बारीकीथी जोवूतपासवं तपास अन्वीक्षण न०, अन्वीक्षा स्त्री० बारीक अन्वीत वि० जुओ 'अन्वित' अन्वेषक वि० निरीक्षक ; बारीक तपास करनारुं तपास अन्वेषण न०, अन्वेषणा स्त्री० बारीक अप स्त्री० पाणी (ब० व० मां ज विपराय छे) अप अ० दूर- अळगुं, खोटुं- खराब, (ऊलटापणुं-विरोध, निर्देश-उदाहरण, मजाक-मश्करी,बातल करवू,छुपावq, - ए अर्थमां वपराय छे अपकर्त वि० नुकसान करनाएं; विरोधी (२) पुं० शत्रु अपक्ष अपकर्मन् वि० खराब आचरणवाळू (२) न० ऋण चुकवq ते (३) अनुचित कार्य; खराब कृत्य अपयश अपकर्ष पुं० अवनति: हास(२)नामोशी; अपकर्षण वि० लई लेनाएं; खेंची जनारु (२) न० लई लेवू ते; दूर करवू ते (३) हलकुं पाडवू ते अपकार पुं० अपकृत्य; हानि द्रोह दुष्टता (२) अनिष्ट चिंतवq ते अपकारक, अपकारिन् वि० खोटुं करनालं; नुकसान करनारुं (२) कृतघ्नी अपकोति स्त्री० अपयश; बदनामी अपक ८ उ० खोटुं करवू;अपकार करवो (२)दूर करवु (३)ईजा करवी; नुकसान करवू अपकृत न० अपकार; हानि; नुकसान अपकृष् १ ५०, ६ उ० पार्छ खेंची लेवू; दूर खेंची जq (२) लई लेवू; लई जर्बु (३) खेंची काढवू; सत्त्व काढवू (४) ओछु करवू (५)हलकुं पाडवू; अपमान करवू (६) वाळवं; खेंचवू (धनुष्य) अपकृष्ट वि० खेंची लेवायेलु; दूर करायेलु (२) हलकुं; नीच (३)निषेध करायेलुं; रोकायेलं (४) पुं० कागडो अपक ६ प० [अपकिरति] वेरवु; विखेरवं; उछाळवू (२) ६ आ० [अपस्किरते पगथी खणq - खोतरवू (पशुआनंदमां) अपक्रम् १ प० [अपक्रामति दूर जq; नासी जq (२) समयनुं वीत, अपक्रम पुं० दूर जq - नासी जq ते (२) समयनुं वीतवं ते (३) मनो अभाव; खोटो क्रम अपक्रिया स्त्री० नुकसान; ईजा (२) दोष अपक्रोश पुं० निंदा; गाळ अपक्ष वि० पांख वगरनुं (२) पक्ष के मित्र वगरनु (३) एके पक्षनुं नहि तेवं (४) विरुद्ध Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अपक्षपात · अपध्वंस अपक्षपात पुं० निष्पक्षपातपणुं अपटीक्षेप पुं० पडदो उछाळवो ते अपक्षय पुं० क्षय थवो ते; क्षीण थवं ते (उतावळमां के गभराटमां) अपगत वि० चाल्युं गयेलं; खसी गयेल; अपत्य न० संतान; बाळक '-थी रहित; -विनानुं अपत्रप् १ आ० शरमावू अपगति स्त्री० दुर्गति ; दुर्दशा । अपत्रप वि० बेशरम अपगम् १ प० अपगच्छति जतुं रहेQ अपनपा स्त्री. शरम (२) पसार थQ - वीतQ (समयनु) अपथ वि० मार्गरहित (२) पुं०, न० मार्गनो अभाव (३) कुमार्ग अपगम पुं० जतुं रहेq ते;वियोग २ मृत्यु अपघात पुं० हणवू ते (२) निवारवु ते अपथ्य वि० अयोग्य ; अहितकर (२) (३) कुमरण कुपथ्य अपचय पुं० ओछु थq ते (२) नुकसान अपद वि० पग वगरन (२) स्थान के अपचर १५० विदाय थर्बु (२) उल्लंघन होद्दा विनानु (३)पु० सापनी पेठे पेटे चालनार प्राणी (४) न० अयोग्य स्थळ करवू; आडे मार्गे जq अपचरित वि० गयेलं; मृत (२) न० (५) स्थाननो अभाव (६) आकाश अपदश वि० दशथी दूर- (२) छेडोअपराध ; दोष किनारी (‘दशा') विनानु (वस्त्र) अपचायिन् वि० योग्य संमान न करतुं अपदान न० परिशुद्ध आचरण; महान अपचार पुं० विनाश;अभाव २ अपराध; दोष (३) कर्मना लोपथी प्राप्त थनारो कृत्य (२) भूतकाळ के भविष्यकाळनां तेवां सत्कृत्योर्नु वर्णन करतो ग्रंथ दोष(४) अपकार; खराब आचरण (५) अपदार्थ पुं० मिथ्या-असत् वस्तु (२) कुपथ्य शब्दार्थ नहीं ते अपचि ३५० सन्मानवू; आदर करवो अपदांतर वि० तरत पछीनुं (२) ५ उ० एकळु करवू; वीणवू अपदिश् ६५० उल्लेख करवो; दर्शाव -कर्मणि० क्षीण थq; ओछु थर्बु (२) बहानुं काढवू; ढोंग करवो (२) -थी रहित बनवं अपदेश पुं० कथन; उल्लेख(२)मिष;बहार्नु अपचित वि० क्षीण थयेलु (२) आदर (३) हेतु दर्शाववो ते (४) खराब स्थान पामेलु; संमानित अपदेश्य वि० दर्शाववा- उल्लेखवा अपचिति स्त्री० क्षय; क्षीणता; नुकसान; लायक (२) छळथी कहेवा लायक नाश (२) खर्च (३)वसूलात; बदलो; अपत न० मीचा वळी नासी जq ते प्रायश्चित्त (४) मान; आदर; पूजा अपध्यान न० खोटो विचार; अहित अपच्छाय वि० छाया विनानु(२) प्रकाश इच्छq ते(२)न चितववा योग्य चिंतन विनानु; झा (३) अपशुकनियाळ अपध्ये १५० खोटो विचार करवो; पडछायावाळं (४) पुं० देव (जेने अहित इच्छq पडछायो न होय) अपध्वस्त वि० निंदित (२) तजेलं (३) अपजात पुं० खराब संतान; माबाप चूर्ण करेलु करतां ऊतरता गुणोवाळ संतान अपध्वंस् १ आ० खसी जवं; चाल्या अपज्ञा ९ आ० [अपजानीते संताडवू; जवं (२) वढवं; ठपको आपवो छुपाव, (२) ना कहेवी अपध्वंस पुं० अधःपात; अधोगति Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपनय अपनय पुं० लई लेवं ते (२) दूर करवं ते (३) खंडन करवं ते (४) दुर्वर्तन; अनीति (५) हानि ; अपकार अपनयन न० लई लेवं ते (२) दूर कर, ते (३) देवामांथी मुक्त करवु - थर्बु ते (४) अन्याय अपनी १५० लई लेवं (२दूर करवं. ३) खेंचवू; खेंची काढवू (तेल, बाण इ०) (४) उतारवू (कपडां, घरेणां इ०) (५)बाकात राखq (६) दुर्वर्तन करवू अपनीत वि० लई लीधेलु; काढी नाखेलं (२) विरुद्धन; ऊलटु (३) चूकवी दीधेलं (४) दुर्वर्तनवाळ (५) न० दुर्वर्तन (६) छळ; कपट अपनुति स्त्री० दूर करवू ते ; खसेडवं ते अपनु ६५० दूर करवू; खसेडवू अपभाष १ आ० अपशब्द बोलवा; गाळ देवी; निंदा करवी अपभाषण न० अपशब्द; गाळ (२) निंदा अपभ्रष्ट वि० नीचे पडेलु (२) अपभ्रंश पामेलु अपभ्रंश् १ आ० दूर पडवू ; सरी पडवू -प्रेरक० खसेडवु; दूर करवू अपभ्रंश पुं० नीचे पडवू ते (२) विकृत थयेलो शब्द (३) संस्कृतने हिनाबे अपभ्रष्ट थयेली एक भाषा अपमर्द पुं० कूडो; कचरो अपमर्श पुं० स्पर्श करवो - घसावं ते अपमान पुं० अनादर; तिरस्कार अपमार्जन न० लूछी काढq ते; साफ करवू ते अपमृत्यु पुं० आकस्मिक मृत्यु ; कमोत अपयशस् न० अपयश; अपकीर्ति अपया २ प० जतुं रहे; नासी जq अपर वि० जेनाथी श्रेष्ठ बीजं कांई नथी तेवू;उत्तम (२)बीजं अन्य वधारानुं (३) बीजानु (पोतानुं नहि तेवू) (४) पछीन; पाछळy (काळस्थळमां) (५) पश्चिमनुं अपरिच्छद (६)निकृष्ट ; हलको जात, (७) पुं० हाथीनो पाछलो पग (८) शत्रु अपरक्त वि० रंग वगरन (२) लोही वगरनुं; निस्तेज (३) असंतुष्ट अपरत्र अ० बीजे ठेकाणे अपरम् अ० वळी; भविष्यमां; विशेषमां अपररात्र पं० रात्रीनो उत्तर भाग अपरस्पर वि० एक पछी बीजं होय तेवू; सतत जारी रहेतुं (२) अन्योन्य अपरंज् (कर्मणि०) [अपरज्यते विरक्त थर्बु (२) असंतुष्ट थर्बु अपरा स्त्री० पश्चिम दिशा अपराग पुं० असंतोष;वैर स्नेहनो अभाव अपराजित वि० नहि जितायेलं; अजेय अपराजिता स्त्री० दशेराने दिवसे जेनुं पूजन थाय छे ते - दुर्गादेवी (२) मादळियामां बंधाती एक वनस्पति (टुचका तरीके) तेवू अपराजेय वि० अजेय; न हरावी शकाय अपराद्ध वि० अपराधी (२) लक्ष केलं (बाण इ०) (३) उल्लंघन थq ते (वेळा इ० नु)(४,न० गुनो;अपराध दोष;ईजा अपराध ४, ५ ५० अपराध करको; दोष करवो अपराध पुं० दोष ; गुनो (२) पार अपराधिन् वि० गुनो करनालं; अपराधी अपराविद्या स्त्री० वेद-वेदांग (ब्रह्मविद्या सिवायनी विद्याओ) पहोर अपराल पुं० सांज; दिवसनो पाछलो अपरांत वि० पश्चिम सरहदे रहेतुं (२) पुं० पश्चिम सरहदे आवेलो देश अपरांतक पुं० सह्याद्रि पासेनी पश्चिम सरहदनो प्रदेश अथवा तेनो रहेवासी अपरिग्रह वि० घरबार के परिवार विनानुं (२) पुं० धननो परिग्रह - स्वीकार न करवो ते (३) निर्धनता अपरिच्छद वि० निर्धन ; गरीब (परिवार - वस्त्र वगेरे विनानु) Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपरिच्छिन्न अपरिच्छिन्न वि० स्पष्ट समजण विनानुं (२) सतत विच्छेद विनानुं अपरिच्छेद पुं० स्पष्ट समजनो अभाव (२) सातत्य (३) विभाग के वैशिष्ट्यनो अभाव अपरिमाण, अपरिमित, अपरिमेय वि० मापी न शकाय तेवुं; अनंत अपरिहार्य वि० टाळी न शकाय तेवं; अनिवार्य अपरेद्युस् अ० बीजे दिवसे अपरोक्ष वि० प्रत्यक्ष ; दृष्टिगोचर थाय तेवुं ( २ ) दूर नहि तेवुं अपरोक्षम् अ० हाजरीमां; नजर आगळ अपर्णा स्त्री० पार्वती ( पांदडां पण खावानां छोडी तप कर्तुं होवाथी ) अपर्याप्त वि० पूरतुं नहि तेवु; थोडं (२) असमर्थ ; अशक्तिमान अपर्याप्ति स्त्री० न्यूनता; अधूरापणं अपर्युषित वि० ताजु, वासी नहि ते अपलप् १ प० होवा छतां नथी एम कहेवुं (२) छुपाववुं - प्रेरक० छेतरखुं [ ना पाडवी ते अपलाप पुं० छुपाववुं ते ( २ ) होवा छतां अपवचन न० भूडुं बोलवु ते अपवद् १५० निंदा करवी ; गाळ देवी (२) विरोध करवो; इनकार अपवरक पुं० घरनो खानगी ओरडो (२) हवानुं बाकुं अपवर्ग पुं० अंत पूर्णाहुति (२) मोक्ष (३) त्याग ( ४ ) फेंकवुं ते (बाण इ० ) अपवजित वि० तजेलुं ( २ ) चूकते करेलु ( देवूं ) ( ३ ) रहित - विनानुं अपवह् १५० ऊंचकीने लई जबुं ( २ ) हांकी काढ दूर करवुं ( ३ ) छोडी देवं; त्याग करवो ( ४ ) बाद करवुं अपवारित वि० ढांकेलं (२) छुपावेलुं अपवारितकेन, अपवार्य अ० (नाटकमां) बाजुए; बीजाने ('प्रकाशम् ' थी ऊलटं ) २६ अपसारणा अपवाह पुं० लई जनुं ते; दूर करवुं ते (२) बाद करते अपविद्ध वि० तजी देवायेलं (२) दूर करायेलुं उपेक्षित (३) नीच; हलकुं अपवृ ५ उ० उघाडवु; खुल्लुं मूकवु - प्रेरक० ढांकवुं छुपाववु अपवृज् ७ आं० टाळवु ; दूर करवुं (२) खेंची काढ - प्रेरक ० तजवुं (२) वेरं ( ३ ) भरपाई करवु ४) कापी नाखवुं; छूटुं पाडवुं (५) ॐधुं पाडं (६) दान आपवु (७) संमानवु अपवृत् १ आ० पार्छु फरवु; नीकळी ज - प्रेरक ० पाछु वाळत्रु; हांकी काढव अपवृत्त वि० पार्छु फरेलुं (२) ऊंधुं वळेलु - वाळेलुं ( ३ ) समाप्त करेल (४) नीचे मुखे रहेलुं अपव्यध् ४ ० [ अपविध्यति ] भोंकवुं (२) फेंकी देवु (३) त्याग करवो; नाखी दे अपव्यय पुं० खोटुं खर्च करवुं ते; उडाउपणु अपशकुन न० माठो शुकन अपशब्द पुं० नियम विरुद्धनो शब्द ( व्या० ) (२) निंदा (३) गाळ (४) ग्राम्य भाषा अपश्चिम वि० जेनी पाछळ कांई न होय तेवुं ( २ ) आगळनुं - पहेलुं ( ३ ) अत्यंत ; अतिशय अपसद पुं० नीच के हलकी वर्णनो मनुष्य (२) नीच वर्णनी स्त्रीथी जन्मेलो मनुष्य - प्रतिलोमज ( ३ ) अधम; नीच (समासमा छेडे आवे छे; उदा० सूतापसद ) अपसरण न० पार्छु जनुं ते; नासी जबुं ते अपसर्प, अपसर्पक पुं० गुप्तचर अपसव्य वि० डाबुं नहि तेवुं - जमणुं (२) ऊलटं; विपरीत अपसारण न०, अपसारणा स्त्री० दूर करवुं - काढी मुकबुं ते; हटाव ते Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ अपसू अपस १५० दूर जवु; जतुं रहेवू (२) अदृश्य थर्बु छोडेलु (बाण) अपसृत वि० गयेलु (२) पार्छ फरेलं (३) अपसृप १५० सरकी जवू (२) नासी जQ (३) छानुमानुं जो __-प्रेरक० हांक; खसेडवू अपस्मार पुं० भूली जq ते (२) फेफरानो व्याधि ; वाई अपह वि० (समासने छेडे)निवारनारं; दूर करनारं; नाश करनारु अपहन २ प० निवारवं; दूर करवं (२) हुमलो करवो (रोगे)(३)छडg(डांगरने) अपहरण न० उपाडी जq ते; काढी जवं ते (२) चोरी जq ते करवी अपहस् १५० मश्करीमा हसवू; मश्करी अपहसित न० जुओ 'अपहास' अपहस्त पुं० हांकी काढवा गळे हाथ मूकवो ते (२) लई लेवु ते; फेंकी देवु ते अपहस्तित वि० काढी मूकेलं; फेंकी दीधेलं; तजी दीधेलं अपहा ३५० छोडी देव; त्याग करवो (२) चूकते कर (देवू) अपहाय अ० तजीने (२)विना; सिवाय अपहार पुं० अपहरण (२) हानि (३) गुप्त राख ते (४) (बीजानुं धन) अपावृत्ति अपाकीर्ण ( 'अपाक'न भू० कृ०) वि० तरछोडायेलं; तजायेखें अपाकृ ८ उ० दूर करवू; निवारवं (२) तरछोडवू; तजवं अपाकृति स्त्री० दूर करवू - निवारवू ते अपाक ६ प० । अपाकिरति ] फेंकी देवू (२)अस्वीकार करवो; ना कहेवी अपात्र न० नकामुं वासण (२) नकामुं के नालायक माणस (दान इ० माटे) अपादान न० लई लेवं ते; दूर करवू ते (२)पंचमी विभक्तिनो अर्थ (व्या०) अपान पुं० पांच प्राणवायुओमांनो एक (जे गुदा वाटे नीकळे छे) .. अपाप, अपापिन् वि० पापरहित; पवित्र अपाय पुं० विघ्न ; हरकत (२) वियोग (३) अदृश्य थq ते;अभाव (४) हानि; नाश (५) दुर्भाग्य ; दुःख अपायिन् वि० क्षणिक; नाशवंत अपार वि० किनारा विनानु (२) अंत विनान; पार विनानु (३) दुलंध्य; दुर्गम (४) पुं० समुद्र (५) न० नदीनो सामो किनारो अपारवार वि० मर्यादा विनानुं अपार्थ, अपार्थक वि० निरर्थक ; अर्थ विनानं अपार्थिव वि० अलौकिक ; पृथ्वीन नहि अपावरण न० उघाड - खुल्लु करवू ते (२) ढांकQ - संताडवू ते । अपावर्तन न. पार्छ फरवू ते;पार्छ काढवं ते (२) (जमीन पर) आळोटवू ते (३) मों पार्छ फेरवी लेवं ते ; अस्वीकार अपावृ ५ उ० उघाडवू; खुल्लु करवू (२) ढांक अपावृत वि० खुल्लं करायेल(२)ढंकायेलं अपावृत्त वि० पार्छ फरेलु (२) पार्छ काठी मूकेलं; हरावेलु (३) (कर्तरि अर्थमां) काढी मूकेलं; अनादर करेलु अपावृत्ति स्त्री० जुओ ‘अपावर्तन' तेवू खर्च करवू ते अपहास पुं० अकारण हसवं ते (२) मश्करीमां हवं ते अपह १ उ० लई ले, झूटवी लेवू; चोरी लेवं ; लंटी लेवं ; नाश करवो (२) फेरवी लेव; खमेडी लेवं (मों) (३) आकर्षण कर; वश करवू अपहृत वि० लई लेदायेल - छीनवी लेवायेलं; चोरायेलं प्रेम ; स्नेह अपह्नव पुं० छुपाववं ने; संताडवं ते (२) अपहनु २ आ० छुपाववं; संताडवू (२) इन्कारखं (३) बहानु काढQ अपहनुति स्त्री० छुपावq ते Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपोह - अपामय २८ अपाश्रय वि० आश्रय रहित ; निराधार अपीत ('अपि+ इ'भू० कृ०) वि० (२) पुं० आशरो; आधार (३) प्रवेशेलं (२) खोवायेलु (३) मृत । चंदरवो; छत (४) माथु अपीति स्त्री० विलय; प्रलय (२)युद्धमा अपाधि १ उ० आशरो लेवो सामसामा आवी जq ते अपास् ४ उ० फेंकी देवं (२) त्याग अपुत्र, अपुत्रक वि० पुत्र के वारस वगरनुं करवो; हांकी काढq (३)अस्वीकार अपुनर् अ० एक ज वार(२) कायमनु करवो; ना पाडवी अपुनर्भव पुं० फरी न जन्मवं ते; मोक्ष अपासु वि० निष्प्राण; मृत अपुनरावृत्ति स्त्री० मोक्ष (२) मृत्यु अपास्त वि० फेंकी देवायेलं; तजायेलं अपुष्ट वि० दूबछं; पोषण विनानुं अपांग, अपांगक वि० जेनुं अंग विकृत (२) मंद-धीन (अवाज) के खंडित छे तेवू (२) पुं० आंखनो अपूप पुं० वडं; पूडो (२) पूडो खूणो (३) कामदेव (४)अंत ; छेडो __ (मधमाखनो) अपांगनेत्र वि० सुन्दर खुणावाळी आंखो अपूर्ण वि० पूरुं नहि थयेलु; अधूरुं वाळू (स्त्री) (२) कटाक्ष नाखती अपूर्व वि० पहेलां नहि तेवू; असामान्य आंखोवाळं (२) विलक्षण; नवं; अद्भुत (३) अपि अ० नाम अथवा धातुनी साथे अपरिचित (४)न० पाप अने पुण्य (जे नीचेना अर्थमां वपराय छे :- नजीक; भावि सुख के दुःखनु कारण थाय छे) समीप; तरफ (२) क्रि० वि० अथवा (५) कर्मनु भावि परिणाम-फल उभयान्वयी तरीके :- अने, पण, वळी, अपे ( अप + इ ) २ प० जq; जुदा तदुपरांत,विशेषमां,-ए अर्थे(३)जो के- पडQ (२) अदृश्य थवं; नाश पामवं तोपण (४) प्रश्नार्थमां वाक्यारंभे (३) छूटा पडवू; -विनाना थर्बु (५) आशा, इच्छा, अपेक्षा दशवि अपेक्ष १ आ० आशा राखवी (२) राह (विध्यर्थ साथे) (६)प्रश्नार्थ सर्वनाम __ जोवी (३) जरूर होवी ; इच्छा होवी 'किम्' नी साथे अनिश्चिततानो अर्थ (४) नजरमा होवू (५) ख्याल राखवो दर्शावे; उदा० कोऽपि बाल: (७)शंका, अपेक्षणीय वि०इच्छवा-आशा राखवा अनिश्चितता, संभव, तिरस्कार,उपेक्षा जेवू ; ख्यालमा लेवा जेवू दर्शावे (८) भार दईने कथन करवा अपेक्षा स्त्री० आशा; इच्छा (२) जरूर; माटे वपराय (अद्यापि =आज पण) अगत्य (३) उद्देश; ख्याल (४)संबंध अपिधा ३ उ० बंध करवू(२)ढांकवृं; (५) काळजी छुपाव ढांकण ; आच्छादन अपेक्षित वि० इच्छेलु(२) आशा रखायेलु अपिधान न० ढांक-छुपावq ते (२) (३)आवश्यक (४) ख्यालमा लेवायेलं अपिनड वि० पहेरेलु अपेक्षितव्य, अपेक्ष्य वि० जुओ 'अपेअपि नाम अ० कदाच ; संभव छे के ; एम क्षणीय' -थी रहित होय तो केवू सारुं? अपेत वि० गयेलु (२) -थी जुदुं पडेल; अपिहित वि० बंध करेलु (२) ढांकेलं; अपेय वि० न पीवा लायक छुपावेलु (३) नहि छुपायेखें; स्पष्ट अपोढ ('अप + वह 'नुं भू० कृ०) दि. अपी (अपि +इ) २५० प्रवेश करवो (२) लई जवायलं; दूर करायल पामवं; भोगवq (३) जोडावू; एक थवं अपोह (अप + उह अथवा ऊह ) १ उ० Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपोह हांकी काढ; दूर करवुं ( २ ) तजवुं (३) विरोध करवो; दलील करवी अपोह पुं० दूर करवुं ते (२) तर्कथी शंकानुं निवारण करवुं ते ( ३ ) विपरीत तर्क अपोहन न० जुओ 'अपोह' (२) तर्कशक्ति अपौरुष, अपौरुषेय वि० कायर; बीकण (२) मनुष्यथी नहि करायेलु; ईश्वरकृत (३) न० कायरता; निर्वळता ( ४ ) ईश्वरी शक्ति अप्यय पुं० पासे जवुं - जोडावुं - मळवु ते (२) लय; नाश [ (२) अप्रस्तुत अप्रकृत वि० मुख्य नहि तेवु; प्रासंगिक अप्रगल्भ वि० अनुद्धत; नम्र ( २ ) शरमाळ (३) बीकण; कायर अग्रज वि० निःसंतान ( २ ) नहि जन्मे लुं (३) प्रजा वगरनुं ( राज्य ) अप्रजाता स्त्री० वांझणी स्त्री अप्रणीत वि० विधि - संस्कारथी पवित्र न करेलुं ( २ ) न रचेलुं अप्रतिकर्मन् वि० अजोड कर्म के सिद्धिवाळं (२) सामनो के उपाय न थई शके बुं अप्रतिकार वि० जेनो उपाय नथी तेव (२) सामनो न करवो ते अप्रतिपक्ष वि० बिनहरीफ ( २ ) असदृश अप्रतिपत्ति स्त्री० अस्वीकार; नहि लेवु ते (२) अक्रिया (३) उपेक्षा ( ४ ) समजणनो अभाव (५) अनिश्चय ( ६ ) तरतबुद्धिन स्फुरवी ते बिनान अप्रतिभ वि० शरमिंदं (२) प्रतिभा अप्रतिम वि० अनुपम ; बिनहरीफ अप्रतिरथ वि० जेनो सामनो करे तेवरे बीज योद्धो नथी ते अप्रतिरूप वि० जेना समान रूपवाळु बीजुं नथी तेवुं ( २ ) सरखामणी न थई शके ते अप्रतिष्ठ वि० प्रतिष्ठा - आधार विनानुं (२) अस्थिर; चंचल (३) ख्याति विनानुं २९ अप्राप्तकाल अप्रतिष्ठित वि० प्रतिष्ठारहित; अस्थिर (२) ख्याति विनानुं; अप्रसिद्ध अप्रतिहत वि० अटकावी के रोकी न शकाय ते ( २ ) रुकावट विनानुं; निर्विघ्न ( ३ ) निराश नहि थयेलुं अप्रतीकार वि० जुओ 'अप्रतिकार' अप्रतीत वि० असंतुष्ट (२) अस्पष्ट अर्थवाळं (३) जेनी पासे जवुं मुश्केल छे बुं अप्रतीति स्त्री० समजावुं नहि ते ( २ ) अविश्वास अप्रत्यक्ष वि० नजरे न पडतुं; परोक्ष अप्रत्यय वि० अविश्वासु ( २ ) अज्ञानी (३) पुं० अविश्वास ( ४ ) न समजावुं ते अप्रधृष्य वि० अजेय ; अजित अप्रमत्त वि० प्रमाद रहित; सावध अप्रमद वि० आनन्द के हर्ष वगरनुं अप्रमाण वि० अपरिमित; पुष्कळ (२) आधार, पुरावो के साबिती वगरनुं (३) अविश्वसनीय अप्रमेय वि० जेनी तुलना न थई शके तेवुं ( २ ) अपरिमित अगाध ( ३ ) स्पष्ट न समजी शकाय तेवुं; अगम्य अप्रवृत्ति स्त्री० प्रवृत्तिनो अभाव; निष्क्रियता ( २ ) प्रेरणानो अभाव - निरुत्साह अप्रशस्त वि० प्रशंसा करवा योग्य नहीं ते; तिरस्कार करवा योग्य अप्रसक्त वि० अनासक्त अप्रसंग पुं० आसक्तिनो अभाव ( २ ) अयोग्य समय ( ३ ) संबंधतो अभाव अप्रस्तुत वि० असंबद्ध (२) अर्थ वगरनुं (३) आकस्मिक ( ४ ) तैयार नहि ते बुं अप्राकृत वि० ग्राम्य नहि तेवुं ( २ ) मौलिक नहि तेवुं ( ३ ) असामान्य अप्राप्त वि० नहि मेळवेलुं (२) नहि आवेलुं (३) नहि पहोंचेलु अप्राप्तकाल वि० अयोग्य समयनं; Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिय ३० अभिकम् प्रसंगने अनुकूळ नहि तेवू (२) वयमा अब्रह्मण्य वि० ब्राह्मणने माटे अयोग्य नहि आवेलुं-पुख्त वयनु नहि तेवू .. (२) ब्राह्मणोन विरोधी (३) न. अप्रिय वि० न गमतु; प्रतिकूळ (२) न० दुष्कृत्य ; पापकर्म प्रतिकूळ वर्तन (३)पुं० शत्रु; विरोधी अभक्ष्य वि० नहि खावा योग्य; शास्त्रमा अप्सरस स्त्री० अप्सरा;स्वर्गनी वारांगना जे खावानो निषेध छ तेवू (२) न० अप्सरस्तीर्थ न० अप्सराओने नाहवानं अभक्ष्य पदार्थ पवित्र स्थळ - तीर्थ अभद्र वि० अमंगळ ; अशुभ (२) न. अप्सरा स्त्री० जुओ 'अप्सरस्' पाप; दुष्टता (३) शोक अफल वि० निष्फळ ; व्यर्थ ; निरुपयोगी अभय वि० भयरहित (२) पुं० भय(२) वंध्य (३) पुरुषत्वहीन मांथी मुक्ति अफलाकांक्षिन् वि० फळनी इच्छा विना अभयदान न० सलामती बक्षवी ते; काम करनाएं अभयवचन अबद्ध वि० नहि बंधायेलं; छूटुं ; स्वतंत्र अभयवचन न० संरक्षण- वचन आपq ते (२) अर्थशून्य ; असंबद्ध (३) पुं० अभव पुं० उत्पत्तिनो अभाव; जन्मनी अशक्य वस्तु; अनुचित वस्तु ___ अभाव (२) विनाश । अबला स्त्री० स्त्री अभव्य वि० न बनवान ; न बनवा जेवं अबाध वि० प्रतिबंधरहित; निर्विघ्न (२) दुर्भागी; अभागियु (३) अशिष्ट (२) दुःख रहित अभागिन् वि० जेनो भाग न होय तेवू अबाधित वि० प्रतिबंध -विघ्न विनानुं (२) अभागी; दुर्भागी (२) जेनुं खंडन नथी थयुं तेवू अभाव वि० भाव -प्रेम विना (२) अबुद्ध वि० नहि जाणनारूं; मूर्ख (२) अस्तित्व विनानु (३)पुं० न होवु ते न० चेतनरहित - जड तत्त्व (३) अज्ञान (४) नारा; मृत्यु अबुद्धि स्त्री० अविद्या; अज्ञान(२)मूर्खता अभि अ० तरफ, -नेमाटे, -नी सामे, अबुध स्त्री० अज्ञान; बुद्धिहीनता । उपर, चारे बाजु, घणु, अधिक, उत्तम, अबुध (-ध) वि० अज्ञानी; मूर्ख (२) नजीक, पासे, -ना संबंधमां, -एक पुं० अज्ञानी - मूर्ख माणस पछी एक - एवा अर्थमां वपराय छ अबोध वि० अज्ञानी; मूर्ख (२) पुं० अभिक वि० विषयासक्त; कामी (२) अज्ञान ; मूर्खता; बुद्धि न होवी ते पुं० प्रेमी; आशक अब्ज वि० पाणीमां जन्मेलु (२) पुं० । अभिकम् १० आ० प्रेम करवो ; इच्छवं धन्वंतरि (३) चन्द्र (४) कपूर (५) शंख अभिकाम वि० आसक्त ; प्रेमी ; इच्छा (६) न० कमळ (७) अबजनी संख्या राखनार (२) पुं० प्रेम (३) इच्छा अब्जभव,अब्जयोनि पुं० ब्रह्मा (कमळमां अभिकांक्ष १ उ० आशा राखवी (२) जन्मेला) इच्छवं अब्द वि० पाणी आपनाएं (२) पुं० अभिकांक्षा स्त्री० आशा ; इच्छा वादळ (३) पुं०, न० वर्ष अभिकृ ८ उ० कर; रचवू (२) -ने अब्धि पुं० समूद्र (२) भंडार (ला) अर्थे करवं अब्धिज पुं० चंद्र (२)शंख (३)न० मीठु अभिक्रम् १ उ० [ अभिक्रामति-क्रमते] अब्धिजा स्त्र लक्ष्मी (२) सुरा; मद्य जवू ; पासे जर्बु (२) ४ प० [अभि Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिक्रम काम्यति भटकQ (३) हुमलो करवो (४) आरंभ; तैयारी करवी अभिक्रम पुं० आरंभ (२) नजीक जq ते (३) हुमलो; आक्रमण (४) उपर चडवू ते (५) आरंभेलु - माथे लीधेलं ते अभिक्रुश् १५० बूम पाडवी (२)विलाप करवो; शोक करवो (३) ठपको आपवानी रीते कहेवू अभिक्रोश पुं० बोलावयु - वूम पाडवी ते (२) विलाप करवो ते (३) निंदा करवी ते चिडियाता थवू अभिक्षिप् ६ प० सामे फेंकव (२)-थी अभिख्या स्त्री० शोभा; सौन्दर्य (२) कहे, ते; जाहेर करवू ते (३) बोलावq ते (४) नाम (५) शब्द ; पर्यायशब्द (६) कीर्ति (खोटा अर्थमा) अभिख्यात वि० प्रसिद्ध थयेलं अभिगम् १ प० । अभिगच्छति पासे जवू; मुलाकात लेवी (२)-नी पाछळ जवु (३) मळवू ; जडवू (४) संभोग करवो (५) माथे लेवू (६) समजवू अभिगम पुं०, अभिगमन न० पासे जवू ते (२) संभोग; सेवन अभिगम्य वि० पासे जवा योग्य (२) भय के संकोच विना पासे जई शकाय तेवू अभिगंत वि० संभोग करनारु (२) समजनाएं संभोग करनारं अभिगामिन् वि० पासे जनारु (२) अभिगीत वि० गीतमां गवायेखेंप्रशंसायेलु (२) सारी रीते गायेलु। अभिगुप्त वि० संरक्षायेलु (२) छुपावेलु अभिग्रह ९ उ० लेवं; स्वीकारव (२) झूटवी लेवु(३)जोडवू (हाथ)(४)धारण करवू; प्रगट करवू (फूल, फळ इ०) अभिग्रह पुं० लई लेवु - लूटी लेबु ते (२) हुमलो (३) युद्धन आह्वान (४) फरियाद (५) सत्ता; वजन अभिघात पुं० प्रहार करवो ते (२) अभितराम् सामो प्रहार करवो ते (३) मारी नाखवू - नाश करवो ते अभिचर १५० बेवफा नीवडवं ; कोई प्रत्ये खोटी रीते वर्तवू (२) मेला काम माटे मंत्रनो प्रयोग करवो अभिचरण न०, अभिचार पुं० मेला काम माटे मंत्रप्रयोग करवो ते अभिजन् ४ आ. अभिजायते| उत्पन्न थq; जन्मवू (२) फरी उत्पन्न थर्बु (३) वारसदार तरीके जन्मवू (४) बनी जवू; -मां रूपांतर थर्बु अभिजन पु० वंश; कूळ (२) उत्पत्ति; जन्म (३) उच्च कुळमां जन्म, ते (४) पूर्वज (५) कुळनो मुख्य माणस (६) जन्मस्थळ (७) कीर्ति ; यश अभिजात वि० उत्पन्न थयेलु; जन्मेलं (२)-ना हकदार तरीके जन्मेल (३) -ने परिणामे जन्मेलु (४) उच्च कुळमां जन्मलं; कुलीन (५) प्रिय ; अनुकूळ (६) मनोहर (७) योग्य; लायक (८) पंडित (९) न० ऊंचा कुळमां जन्म ; कुलीनता (१०) जातकर्म अभिजित् वि० पूरेपूरो विजय मेळवनाएं (२) विजय मेळववामां मदद करनारु अभिजुष्ट वि० सेवायेलु निष्णात अभिज्ञ वि० जाणीतुं; अनुभवी (२) अभिज्ञा ९ उ० (अभिजानाति-जानीते ओळखवु; पिछानवू (२) जाणवू समजवू ; परिचित होवू (३) गणव; मानवु (४) कबूल राखवु(५) याद कर अभिज्ञा स्त्री० ओळखाण; स्मरण; स्मृति (२) एक सिद्धि (मनगमतुं रूप धरवं, दूरथी सांभळवू - जोवु - विचार जाणवा इ०नी) अभिज्ञान न० ओळखाण; स्मरण (२) याददास्त माटे चिह्न अभितप्त वि० तपेलु (२) दुःखी थयेल अभितराम् अ० नजीक; पासे Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभितस् ३२ अभिप्लुत अभितस् अ० नजीक; पासे (२) मों अभिनिवेश पुं० भक्ति;प्रेम(२) आसक्ति आगळ ; सामे (३) बने बाजुए (४) (३)निश्चय; संकल्प (४)अज्ञानजन्य बधी बाजुए (५) संपूर्ण रीते; सर्वथा ___ मृत्युनो भय ते (२) संन्यास (६) जलदी हुमलो अभिनिष्क्रमण न० बहार नीकळी जवं अभिनव पुं०, अभिद्रवण न० आक्रमण; अभिनिष्पत्ति स्त्री० समाप्ति; सिद्धि अभिब्रु १५० आक्रमण करवू; हुमलो अभिनी १५० नजीक लई जर्बु (२) करवो अभिनय करवो अभिधर्म पुं० परम सत्य ; तत्त्व (बौद्ध) अभिनीत वि० नजीक लवायल- लई अभिषा ३ उ० संबोध; जणाव जवायेलु (२) भजवायेलु (३)सुन्दर; (२) नाम आपq सुशोभित वनावायेलु (४) उत्तम; अभिवा स्त्री० नाम (२) शब्द ; ध्वनि श्रेष्ठ (५)योग्य ; अनुकूळ (६)क्षमा(३) शब्दनी अर्थ बताववानी शक्ति शील (७) कृपाळु अभिधाम न० नाम (२) होद्दो; पदवी अभिनेत पुं० अभिनय करनार; नट (३) कहेवू ते ; दर्शावq ते (४) कथन ; अभिनेत्री स्त्री० नटी संभाषण (५) शब्द (६) शब्दकोश अभिन्न वि० नहि भांगेलं; अखंड (२) अभिधेय वि० कहेवा योग्य (२) नाम असर नहि पामेलु; नहि बदलायेलं (३) देवा योग्य (३)अर्थ (४) विषय ; वस्तु जुदु नहि तेवं अभिध्या स्त्री० इच्छा ; लोभ (२)पारकुं अभिपत् १५० नजीक जq (२)हुमलो धन लेवानी इच्छा करवो (३) नीचे पडवू अभिध्यान न० इच्छा; लोभ (२)चिंतन; अभिपद् ४ आ० पासे जवू (२) मानी अभिध्ये १५० इच्छg; लोभ करवो (२) लेईं; कल्पवु (३) मदद करवी (४) ध्यान करवू ; चितववं हुमलो करवी; ताबे करवु (५)-मां अभिनय पुं० शरीरनां अंगोनुं मनोभाव- जोड़ा; मग्न थर्बु (६) स्वीकारवू दर्शक हलनचलन (२) नाटकमां वेष अभिपन्न ('अभिपद्' न भू० कृ०) वि. भजववो ते पासे आवेलुं - गयेलु(२)नासी आवेलु; अभिनव वि० तद्दन नवु (२) जुवान; शरणे आवेलु (३) पीडायेलं; ग्रस्त ग्वीलतं (३) अनुभव विनानु; काचुं (४) दुर्भागी; दुःखी (५) अपराधी अभिनह ४ ५० बांधी देव; मजबूत बांधवं (६) स्वीकारायेलु अभिनंद १ प० प्रसन्न थर्बु (२) मुबारक- अभिप्राय पुं० हेतु; आशय ; उद्देश (२) बादी आपवी (३)प्रशंसा करवो (४) इच्छा (३) शब्दनो अर्थ; भावार्थ; इच्छा करवी; मरजी बताववी फलितार्थ (४) संबंध (५) मंतव्य अभिनंदन न० संतोष ; प्रशंसा (२) अभिप्रे (अभि + प्र + इ) २ प० पासे प्रोत्साहन ; उत्तेजन ज, (२) इरादो होवो अभिनंदनीय,अभिनंद्य वि० स्तुति करवा अभिप्रेत वि० इच्छेलु (२ स्वीकारायेलु; योग्य; आवकारवा योग्य । पसंद करायेलु (३) प्रिय; अनुकूळ अभिनियोग पुं० मन परोव, ते; लीन अभिप्लव ० दुःख ; पीडा(२) ऊभरावू थर्बु ते आसक्त थर्बु ते; पूर (३) जळप्रलयः । अभिनिविश् ६ आ० प्रवेश करवो (२) अभिप्लुत वि० व्याप्त थयेलं; दबायेलं Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिभव अभिभव पुं० पराभव; पराजय (२) अपमान; तिरस्कार (३) मानहानि (४) उत्कर्ष; प्रचार अभिभावक, अभिभाविन् वि० पराजय करनारुं ; जीतनारु (२) चडियातुं । अभिभाषण न० वातचीत अभिभू १५० हरावq; जीत; श्रेष्ठ थएँ (२) हुमलो करवो (३) अपमान करवू; मानभंग करवू अभिभूत वि० हरावायेलं; अपमानित अभिभूति स्त्री० पराजय (२) अपमान; मानभंग; अनादर अभिमत वि० इष्ट ; प्रिय (२) पसंद करायेलं (३) संमानित (४) पुं० प्रियजन ; प्रेमी (५) इच्छा अभिमन् ४ आ० इच्छवं ; लोभ करवो (२) पसंद करवू (३)संमत थर्बु (४) विचारवं : धार; कल्पना करवी; ध्यानमा लेव अभिमर्द पुं० मर्दन कर ते (२) कचरी नांखबु ते (३) युद्ध; संग्राम अभिमर्श (-र्ष) पुं० स्पर्श (२) हुमलो; बळात्कार; संभोग अभिमंत्र १० आ० (क्यारेक प० पण) मंत्रपूर्वक संस्कारवाळं कर (२) बोलावg : मंत्र वडे तेडवू (३) मसलत करवी अभिमान पुं० अहंकार; स्वमान; गर्व (२ पोताने ज अनुलल ते ३,मान्यता; कल्पना ; अभिप्राय (४)प्रेम ; इच्छा अभिमानिन वि० अहंकारयुक्त; गर्विष्ठ (२) पोताने ज अनुलसनारु (३) माननारु: कल्पनालं; -नो देखाड करनारु (३) अनुकूळ अभिमुख वि० संमुख ; नजीक (२)तत्पर । अभिमुखम् अ० -नी तरफ;पमुख नजीक अभिमश ६ प० स्पर्श करतो; संबंध थवो (२) धीमेथी घस अभिरूप अभिया २५० नजीक जवू (२) हमलो करवो (३) रच्यापच्या रहे; लीन थई जवू अभियान न० नजीक जवू ते (२) कूच; प्रयाण (३) हुमलो करवो ते अभियायिन् वि० पासे जतुं (२)-नी सामे कूच करतुं; हुमलो करतुं अभियुक्त वि० उद्योगी; तत्पर; निश्चयी ; सावध (२)निष्णात; कुशळ (३) जेना उपर आरोप मुकायेलो छ तेवं (४) जेना उपर हमलो करायेलो छे तेवू (५) नियुक्त (६) कहेवायेल; बोलायेलं (७) विश्वास मूकतुं अभियुज ७ आ० जोडावं; उद्योग करवो (२) आक्रमण कर (३) आरोप मूकबो (४) हक करवो (५) अधिकार सोपवो; नीम (६) कहे अभियोक्त वि० हुमलो करनारुं (२) आरोप मूकनारं; फरियादी अभियोग पुं० उद्योग; खंत (२) तीव्र अभ्यास (३) आक्रमण (४) आरोप; फरियाद मीठु; मधुर अभिरक्त वि० लीन ; आसक्त (२) अभिरत वि० अत्यंत आसक्त ; निमग्न अभिरति स्त्री० अत्यंत आसक्ति ; प्रेम अभिरम् १ आ० (कदीक प० पण) आनन्द पामवं -प्रेरक० आनन्द पमाडवु;खुश करवू अभिराद्ध वि० आराधेलं; प्रसन्न करेल अभिराम वि० मनोहर ; प्रिय; अनु कूळ (२) सुन्दर; आकर्षक अभिरामम् अ० सुन्दर रीते;मनोहर रीते अभिरु १ आ० गमवू (२) इच्छq अभिरुचि स्त्री० अत्यंत रुचि;प्रीति;शोख अभिरुत न० अवाज; घोंघाट; बूम अभिरूप वि० योग्य ; अनुकूळ (२) सुन्दर; रम्य (३) मानीतुं (४) विद्वान ; माणु Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिल‍ अभिल १ प० वातचीत करवी अभिलषु १, ४ उ० इच्छा राखवी; अभिलाषा राखवी अभिलषित न० अभिलाषा; उत्कट इच्छा अभिलाप पुं० कहेवुं ते; कही बताववुं ते अभिलाष पुं० उत्कट इच्छा, अभिलाषा अभिलुलित वि० क्षुब्ध; चंचळ अभिवद् १० - कांई कहेवुं (२) दर्शावनुं; उल्लेख करवो ( ३ ) प्रणाम करवा - प्रेरक० मानपूर्वक प्रणाम करवा के कराववा (२) वार्जित्र वगाडवु अभिवंद् १ आ० मानपूर्वक प्रणाम करवा अभिवादन न० आदरपूर्वक प्रणाम अभिविनीत वि० केळवायेलु, संस्कारी अभिवीक्ष १ आ० जोवुं; तपासवुं ( २ ) परीक्षा करवी ( ३ ) -नी तरफ लक्ष राख - ढळ अभिवृत् १ आ० पासे जवुं; तरफ जब; सामे ऊभा रहेवुं (२) हुमलो करवो; धसी जत्रुं ( ३ ) शरू थवु देखावु बनवुं ( ४ ) - नी तरफ फेलावु अभिवृव् १ आ० वधनुं ( २ ) वधारो थवो; समृद्ध थ अभिव्यक्त वि० स्पष्ट करायेलुं; दर्शा वालुं ( २ ) स्पष्ट ; उघाडुं अभिव्यक्ति स्त्री० व्यक्त थवुं - प्रगट थबुं - स्पष्ट थवं ते अभिव्यंज् ७प० दर्शाववुं स्पष्ट करबुं अभिव्याप ५० व्यापवुं; समाववुं अभिव्याप्ति स्त्री० व्यापवुं ते; समावेश अभिशस्ति स्त्री० शाप (२) अनिष्ट ; आपत्ति (३) निंदा तहोमत अभिशंस १प० निंदा करवी; आरोप मूकवो ( २ ) प्रशंसा करवी अभिशाप पुं० शाप ( २ ) आरोप; तहोमत अभिषव पुं० यज्ञनी पूर्व तैयारी रूपे नाहवं ते ( २ ) निचोवीने रस काढवो ते ( ३ ) अर्क काढवो ते (४) मोमरस पीवो ते ३४ अभिसंषि अभिषंग पुं० संबंध आसक्ति ( २ ) आलिंगन; संभोग (३) पराभव; तिरस्कार ( ४ ) अणधार्यु संकट ( ५ ) शाप, निंदा (६) खोटुं तहोमत (७) शपथ (८) भूत-प्रेतनी बाधा अभिषज् ( अभि + संज्) ११० ( अभिजति | संबंधमां आवबुं ( २ ) आसक्त थवुं अभिषिक्त ( 'अभि + सिच्' नुं भू० कृ० ) वि० जळथी छंटायेलु; अभिषेक करायेलुं; राज्याभिषेक करायेलुं अभिषिच् ( अभि + सिच्) ६ उ० (अभिपिचति - ते ] सींच (२) अभिषेक करवो; गादीए बेसाडवुं अभिषेक पुं० जळसिंचन के तेनो विधि ( मूर्ति अथवा नवा राजा उपर ) अभिष्ट ( अभि+स्तु) २ प० स्तवन करवु; स्तुति करवी अभिष्यंद् (अभि+स्यंद्) १ आ० झरवु; टपकj (२) ऊभरावुं (स्नेह, दया इ० थी) अभिष्यंद पुं० झरवुं - टपकवं ते (२) आंख झम्या करवी ते (रोग) (३) अतिशय वृद्धि; वधारानो - वधारे पडतो भाग अभिष्वंग पुं० संबंध; अत्यंत आसक्ति अभिसमापद् ४ आ० प्रवेशवं अभिसमापन वि० संमुख आवेलुं अभिसरण न० मळवा जवु (२) प्रेमीओनुं संकेतस्थानमां मळवा जवं ते । अभिसंधा ३ उ० छेतरवुं (२) ताकवं; लक्ष्य करवुं (३) उद्देश राखवो ( ४ ) संधि करवी मित्रता करवी ( ५ ) वचन आपवुं; कबूल राखवुं ( ६ ) आक्षेप करवो; कलंक चडाववुं अभिसंधा स्त्री० वाणी; वचन (२) कपट अभिसंधान न० वाणी; वचन; विचार (२) हेतु; लक्ष्य ( ३ ) छेतरपिंडी; छळ ( ४ ) संधि करवी ते (५) आसक्ति ; रस अभिसंधि स्त्री० वाणी; वचन ( २ ) Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिसंपत् हेतु आशय; लक्ष्य ( ३ ) अभिप्राय ( ४ ) करारनी शरत ( ५ ) छेतरपिंडी भिसंपत् १ प० -नी तरफ ऊडवुकूद ( २ ) आसपास ऊडवुं अभिसंपत्ति स्त्री० - ना रूप बनी जवुं ते अभिसंपद् ४ आ० -तुं रूप धरबुं (२) प्राप्त कर (३) जई पहोंच बुं अभिसंपन्न वि० - पूरेपूरुं बनलं भराई गयेलु; छवाई गयेलुं अभिसंपात पुं० भेगा मळवु ते युद्ध; विग्रह ( ३ ) शाप अभिसंरंभ पुं० वेरनी लागणी अभिसंहित वि० साथेनुं; सहित; जोडायेलुं ( २ ) (२) अभिसार पु० संकेत प्रमाणे प्रेमीने मळवा जवं ते (२) प्रेमीनुं मिलनस्थान ( ३ ) हुमलो; 1; युद्ध (४) साथी; सोबती (५) बळ; सामर्थ्य ईजा हणायेलु अभिसारिका स्त्री० संकेत प्रमाणे नियत स्थळे प्रेमीने मळवा जनारी स्त्री अभि १५० जवुं; पासे जनुं (२) संकेत प्रमाणे मळवा जवुं ( ३ ) हुमलो करवो [ तैयार कर रचवुं अभिसृज् ६ प० आपत्रं; बक्षत्रं ( २ ) अभिहत वि० प्रहार पामेलु पामेलु (२) पीडायेलु (३) गुणायेलुं ( गणित ) अभिहन २५० प्रहार करवो; मारखुं; नाश करवो (२) रोकवुं; हांकी काढवु (३) वगाडनुं ( ढोल वगेरे) अभिहरण न० पासे लाववुं ते (२) लूंटी लेवं ते | न० नाम; शब्द अभिहित विo बोलाये लुं; कहेवायेलुं (२) अभि १ उ० लई जत्रुं; खेंची जवं (२) पासे लाव अभी वि० भय विनानुं अभी ( अभि + इ ) २ प० नजीक जनुं (२) पहोंचवु प्राप्त करवुं; (३) सेवा करवी; अनुमखं ३५ अभेद्य अभीक वि० अत्यंत उत्सुक ( २ ) कामुक; विषयी (३) भयंकर क्रूर (४) पासे गयेलं ( ५ ) बीक वगरनुं ( ६ ) पुं० पति ; स्वामी ( ७ ) कवि अभीक्ष्ण वि० वारंवार थतुं ( २ ) सतत रहेतुं ; कायम (३) अतिशय अभीक्ष्णम् अ० वारंवार; फरी फरी; सतत ( २ ) अत्यंत ( ३ ) जलदीथी अभीघात पुं० जुओ 'अभिघात ' अभीप्सित वि० इच्छेलुं (२) प्रिय (३) न० इच्छा अभीप्सु वि० अभिलाषावाळु इच्छावां अभीमान पुं० जुओ 'अभिमान' अभीर पुं० गोवाळ, भरवाड अभीशाप पुं० जुओ 'अभिशाप' अभीशु पुं० लगाम (२) किरण अभी ६ प० । अभीच्छति | इच्छं; अत्यंत इच्छा राखवी अभीषु पुं० जुओ 'अभीशु ' अभीष्ट वि० इच्छेलु; इष्ट; प्रिय ( २ ) पुं० प्रिय जन ( ३ ) न० इच्छित वस्तु अभुक्त वि० नहि खाधेलं; नहि भोगवेल (२) जेणे खाधुं नथी तेव अभुजिष्या स्त्री० दासी के गुलाम न न होय तेवी - स्वतंत्र स्त्री अभूत वि० नहि थयेलुं; अस्तित्वमां न होय तेवुं ( २ ) असत्य, मिथ्या अभूतपूर्व वि० अपूर्व; लोकोत्तर अभूति स्त्री० अस्तित्वनो अभाव ( २ ) गरीबाई ( ३ ) असामर्थ्य ( ४ ) नाश अभूमि स्त्री० अनुचित स्थान के विषय (२) -ना क्षेत्रनी, शक्यतानी के मर्यादानी बहार होवुं ते अभेद वि० अविभक्त भेदरहित; एक ज ( २ ) पुं० अभिन्नता; ऐक्य भेदनो अभाव ( ३ ) निकट संबंध अभेद्य वि० भांगी तोडी न शकाय ते (२) जेना भागला न थई शके ते (३) न० हीरो Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभ्या अभ्यग्र वि० नजीकच् (२) नवं; ताजूं अभ्यधिक वि० वधारे (२)श्रेष्ठ; उत्तम अभ्यनुज्ञा ९ उ० [अभ्यनुजानाति'जानीते | संमति आपवी (२) विदाय आपवी अभ्यनुज्ञा स्त्री० संमति ; अनुमति (२) हुकम; आज्ञा (३) छूटी- रजाविदाय आपवी ते करवी अभ्यर्च् १,१०प० अर्चन करवं; स्तुति अभ्यर्ण वि० समीप; नजीक (२) न० सांनिध्य अभ्यर्थ १० आ० विनंती करवी; आजीजी करवी (२) इच्छा करवी अभ्यर्थन न०, अभ्यर्थना स्त्री० विनंती आजीजी; अरज (२) अरजी अभ्यर्दन न० पीडा; त्रास अभ्यई, १, १० प० पूजq; संमानवू अहित वि० पूजित ; पूज्य ; मानवंत (२) योग्य ; उचित अभ्यवहार पुं० खावं पीवं ते (२) भोजन अभ्यवहार्य वि० खावा माटे योग्य; खावा लायक (२) न० खावं ते ( ३ ) भोजन अभ्यवह १ उ० खावु (२) फेंक ; नाखी देवु (३) एकळं करवं; मेळवq अभ्यस् ४ उ० अभ्यास करवो; टेव पाडवी (२) वारंवार कर, (३) शीखg (४) फेंक ; ताकवु (बाण) अभ्यसन न० अभ्यास; वारंवार आवर्तन करवू ते अभ्यसूयक वि० ईर्ष्याळ ; द्वेषी अभ्यसूया स्त्री० ईर्ष्या; अदेखाई; द्वेष; क्रोध अभ्यस्त वि० वारंवार करी जोयेलं (२) महावरावाळु; टेवायेलु (३) द्वित्व पामेल - बेवडायेल (व्या०) अभ्यंग पुं० शरीरे तेल वगेरे पदार्थ चोळवा ते (२) लेप अभ्यंज ७ प० खरडवू; चोपडवं अन्याहार्य अभ्यंजन न० शरीरने तेल वगेरे चोळवू ते (२) आंखमां काजळ आंजq ते अभ्यंतर वि० अंदरनं (२) अंदर समावेश पामेल (३) परिचित; निष्णात (४) निकटनुं (५) न० अंदरनो भाग (वस्तु, स्थळ के समयनो) अभ्यंतरीकृ ८ उ० परिचित थq; प्रवेश पामवो (२) दाखल करवू (३) निकटन मित्र बनाव अभ्यागत वि० नजीक आवेलं; आवी पहोंचेलं (२) अतिथि तरीके आवेलं (३) पुं० अतिथि; महेमान अभ्यागम् १५० [अभ्यागच्छति] नजीक आवq; आवी पहोंचq (२) -म जई पडवू (स्थितिमां) अभ्यागम पुं० आवी पहोंचवं ते; आगमन; मुलाकात (२) सांनिध्य (३) ऊभा थQ (आवकार माटे) (४) मारवू - हणवू ते (५)वेर (६) युद्ध अभ्यादा ३ आ० लई लेवु; झूटवी लेवू (२) धारण करवु ; पहेरवु (माळा) (३) उपाडी लेवु (वातचीतनो तंतु) अभ्यातिन् वि० वारंवार आवतुं अभ्याश पुं० समीपता; नजीकपणु (२) त्वरा;झडप (३)व्यापq - पहोंचवू ते अभ्यास पुं० वारंवार पुनरावृत्ति (२) महावरो; टेव (३) भणq ते ; गोखq ते (४) सामीप्य ; नजीकपणुं (५) द्विरुक्ति पामेला धातुनो पूर्व भाग (व्या०) (६) ध्रुवपद (संगीत) अभ्यासद् १५० [अभ्यासीदति प्राप्त थवं; पहोंचवू (२) -मां बेसवू ___ -प्रेरक० हुमलो करवो अभ्याहत वि० हणायेलु; प्रहार करायेलं (२) रुकावट पामेलु; अटकावायेलं (३) भूलभरेलु लिंटी लेवं ते अभ्याहार पुं० लावी आपq ते (२) अभ्याहार्य वि० खावा Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मम्माहित अम्माहित ('अभि + आ +धा' भू० कृ०) वि० मूकेलं; उमेरेलु (बळतण इ०) अन्याह १ प० लई आवq; लावीने आपq (२)उपाडी जवू ; लूटी जर्बु अभ्युक्षण न० जळ छांटवू ते; जळ छांटीने पवित्र करवं ते मुजबर्नु अभ्युचित वि० चालतुं आवेलं; रिवाज अभ्युच्चय पुं० वृद्धि; समृद्धि अभ्युच्छित वि० उच्च ; उन्नत अभ्युत्था (अभि + उद् + स्था) १५० [अभ्युत्तिष्ठति | सामे ऊठीने मानआपq (२) मळवा माटे ऊठवू - ऊभा थव अभ्युत्थान न० स्थान परथी ऊठीने मान आपव॑ ते (२) प्रयाण करवू ते; प्रयाण माटेनी तैयारी (३) उन्नति; उत्कर्ष; वृद्धि अभ्यत्थित वि० ऊ, थयेलं; ऊठेलं (२) तैयार थयेलं; तत्पर थयेलु अभ्युत्पत् १५० --उपर कूदको मारवो अभ्युत्पतन न० कूदको मारवो ते; हुमलो करवी ते अभ्युदय पुं० उन्नति ; वृद्धि ; आबादी (२) उत्सव (३) उदय थवो ते; ऊगवु (सूर्यादिनु) (४) इच्छित वस्तु सिद्ध थवी ते (५) आरंभ अम्युदि (अभि + उद्+इ) २ प० (सूर्यादिनु) ऊगर्बु (२) ऊंचे चडवं (३) उन्नत थq; आबाद थ, (४) बनवू; थर्बु (५) सामे थर्बु अभ्युदित ('अम्युदि'भू० कृ०) वि. ऊगेलं (२) बनेल; थयेलु (३) उन्नत - आबाद थयेलु (४) सूर्य ऊगी जाय छतां सूई रहेनाएं (५) सामे थयेलं (युद्धमां) (६) ('अभिवद् 'नुं भू० कृ०) वाणीमां बोलायेल- उच्चारायेलं अभ्यूह, अभ्युद्गत वि० मळवा सामु गयेलु (२) व्यापेलं (कीर्ति) अभ्युद्यत वि० ऊंचु करेलु (२) सज्ज थयेलं; तत्पर थयेलं (३) सामे रजू करेलु; वगर माग्ये आपेलं (४) उदय पामेलं; प्रगट थयेलं अभ्युन्नत वि० ऊंचु; उन्नत अभ्युम्नति स्त्री० उन्नति; आबादी। अभ्युपगत वि० स्वीकारेल; कबूल राखेखें (२)पासे गयेलु ; सामु आवेलु अभ्युपगम् १ प० । अभ्युपगच्छति] पासे जवू ; आवी पहोंचq (२) मददे आव (३) मेळवq; प्राप्त करवू (४) कबूल करवू; कबूल राखवू अभ्युपगम पुं० आवी पहोंचवू ते (२) कबूल राखवू ते (३) वचन; करार (४) मान्यता; अभिप्राय अभ्युपपति स्त्री० मददे जवं ते (२) सांत्वन ; रक्षण (३) अनुग्रह; कृपा (४) वचन; करार अभ्युपपद् ४ आ० (आपत्तिमाथी) छोडाव; बचाव, (२) आश्वासन आपq (३)मदद मागवी; शरणे जर्बु अभ्युपपन्न वि० शरणागत; भरणे आवेलु (२) बचावेलं; मंरक्षेलं अभ्युपाय पु० वचन; करार (२) उपाय; साधन अभ्युपायन न० लांच ; रुशवत अभ्युपे (अभि + उप+ इ)२५० पासे जवू; आवी पहोंचवू; प्रवेश करवो (२) स्थिति प्राप्त करवी-पामवी (३) वचन आपq; कबूल करवू; स्वीकार (४) संमत थवू; मान्य राखq (५)ताबे थq; शरणे जर्बु अभ्युपेत वि० पासे आवेलं; सामे __ आवेलं (२) स्वीकारेलु अभ्यूह १ उ० दलील करवी; तर्क करवो . Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुर्भागी अम्यूह अभ्यूह पुं० वादविवाद ; चर्चा; दलील (२) तर्क; अनुमान अध्र १५० जर्बु (२) रखडवू अभ्र न० वादळु (२) आकाश ; वाता वरण (३) अबरक अभ्रक न० अबरक अभ्रपुष्प न० आकाशकुसुम (अमंभवित वस्तु) अभ्रम स्त्री० ऐरावतनी सहचरी अभ्रंकष, अभ्रंलिह वि० वादळांने अडके तेवु; घणुं ऊंचु (२) पुं० पवन अधित वि० वादळथी घेरायेलं अम् अ० जराक (२) जलदी अमनस , अमनस्क वि. विचारहीन (२) बुद्धिहीन (३) बेदरकार; लक्ष विनानुं (४) मन उपर काबू विनानुं (५) प्रेमरहित अमम वि० ममतारहित (२)निरभिमानी अमर वि० अविनाशी (२) पुं० देव अमरगुरु पुं० देवोना आचार्य-बृहस्पति अमरतटिनी स्त्री० गंगा नदी अमरतर पुं० कल्पवृक्ष (२) देवदार अमरपति पुं० इंद्र अमरपुर न० स्वर्ग अमराडि पुं० मेरु पर्वत अमराषिप पुं० इन्द्र अमरापगा स्त्री० गंगा नदी अमरालय पु० स्वर्ग अमरावती स्त्री० इंद्रनी नगरी अमरांगना स्त्री० देवनी स्त्री(२)अप्सरा अमरेश्वर पुं० देवोनो राजा - इन्द्र । अमर्याद वि० मर्यादा बहार-; मर्यादानुं उल्लंघन करतुं (२) मर्यादा न जाळवतु; अनादर करतुं (३) हद बहारनु; अनंत अमर्ष पुं० असहिष्णुता (२) क्रोध (३) अदेखाई अमर्षण, अमर्षित, अविन् वि० क्रोधी; असहिष्णु (२) अदेखाईवाळू अमृत अमल वि० निर्मळ ; शुद्ध (२) श्वेत; प्रकाशित अमंगल, अमंगल्य वि० अशुभ (२) अमा वि० अमाप (२) अ० सार्थ; -नी साथे (३)स्त्री० चन्द्रनी सोळमी कळा (४) अमावास्या अमात्य पुं० प्रधान; सचिव अमात्र वि० अमाप; मर्यादारहित अमानन न०, अमानना स्त्री० अपमान; तिरस्कार; अवगणना अमानिता स्त्री नम्रता; निरभिमानीपणुं अमानुष, अमानुष्य वि० अलौकिक; अद्भुत (२) दिव्य अमायिक, अमायिन् वि० निष्कपटी अमावसी, अमावस्या, अमावासी, अमावास्या स्त्री० अमास अमित वि० अमाप ; अनंत (२) अज्ञात अमिताभ वि० अत्यंत तेजस्वी अमित्र पुं० शत्रु; विरोधी; हरीफ अमिष वि० छळ विनानुं (२) पुं० लौकिक भोग पदार्थ (३) मांस अमुक वि० कोई एक ; फलाणुं अमतः अ० त्यांथी (२) परलोकमांथी अमुत्र अ० त्यां; ते स्थळे (२)परलोकमां; बीजा जन्ममा अमुष्यकुल न० खानदान कुळ; प्रसिद्ध अमुष्यपुत्र पुं० कुळवान पुत्र अमूर्त वि० मूर्त रूप विनानु; निराकार अमूल, अमूलक वि० मूळ वगरनुं (२) उपादानकारण रहित (३) प्रमाण रहित; आधार विनानुं अमल्य वि० जेनी किंमत आंकी न ___शकाय तेवू; घणुं ज कीमती अमृत वि० नहि मरी गयेलु (२) अविनाशी; अमर (३) अमरपणुं निपजावनाएं (४) सुन्दर; इष्ट (५) पुं० देव (६) शिव; विष्णु (७) न० अमरपणुं; मोक्ष (८) स्वर्ग (९) अमर Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ P अमृतदीषिति ३९ करे नेवो रस (१०) पाणी (११) घी (१२) दूध (१३) मिष्टान्न (१४) यज्ञमां वधेलं ते (१५) वगर माग्ये मळेलु ते (१६) मनगमती वस्तु अमृतदीधिति, अमृतधुति पुं० चन्द्र अमृतप पुं० विष्णु (२) देव अमृतभुज पुं० देव मंथन अमृतमंथन न०अमृतप्राप्ति अर्थे (समुद्रन) अमृतलता,अमृतलतिका स्त्री० अमरवेल अमृतसार वि०अमृतमय;अमृत जेवू मधुर अमृता स्त्री० सुरा;मद्य (२) तुलसी,हरडे, गळो इ० केटलीक वनस्पतिनुं नाम अमृतांशु पुं० चन्द्र अमेषस् वि० बुद्धिहीन; मूर्ख । अमेध्य वि० यज्ञने माटे अयोग्य (२) अपवित्र (३) न० विष्टा अमेय वि० अपरिमित; मापी न शकाय तेवू (२) अज्ञेय (अचूक; सफळ अमोष वि० कदी निष्फळ न नीवडतं; अम्ल वि० खाटुं (२) पुं० खटाश; खाटो रस (३) न० छाश अम्लान वि० नहि करमायेलं (२) झांसुं नहि तेवू (३) स्पष्ट; चोखं अय १ उ० जq अय पुं० जनार (ममासने अंते; उदा० 'अस्तमय') (२) सद्भाग्य अयज्ञ वि० यज्ञ न करनारुं . अयति वि० पूरो प्रयत्न न करनारं; यत्नमां मंद अयतिन वि० अनिग्रही; असंयमी अयत्न वि० यत्न न करवो पडे तेवू (२) पुं० यत्ननो अभाव अयया अ० जेम होवू जोइए, के जेवुधार्यु होय तेवू नहि तेम नहि एम अयथावत् अ० खोटी रीते; यथायोग्य अयन वि० जतुं (समासने अंते) (२) न० गति (३) मार्गः (४) व्यूहनो प्रवेशमार्ग (५) आश्रयस्थान (६) अयुग्म विषुववृत्तनी उत्तरमा अने दक्षिणमा देखाती सूर्यनी गति (७) ए गतिने लागतो वखत (छ मास) (८) मोक्ष अयमित वि० काबूमां नहि राखलु के रहेलु (२) नहि कापेलं; संस्कारेलु नहि तेवु (नख इ.) अयशस् वि० अपकीर्तिवार्छ; बेआबरू थयेल (२) न० अपयश ; अपकीर्ति अयस् न० लोढुं (२) पोलाद (३) कोई पण धातु अयस्कांत,अयस्कांतमणि पुं० लोहचुंबक अयःशंकु पुं० भालो (२) लोढानो अणी दार खीलो माग्ये मळेलुं दान अयाचित वि० नहि याचेलं (२) नवगर अयाचितवत न० वगर माग्ये जे मळे ते वडे जीववानुं व्रत अयाज्य वि• यज्ञ करवानुं अधिकारी नहि तेवू; जेने माटे यज्ञ न करी शकाय तेवू के नबळू नहि थयेलं अयातयाम वि० ताजु; वापरवाथी जीर्ण अयि अ० 'हे' एवा अर्थ- एक प्रेमसंबोधन (२) प्रार्थना, विनंती, सौम्य प्रश्न इ०नो भाव दर्शावे छे अयुक्त वि० नहि जोतरेलू (२) नहि जोडेलु (३)चंचळ ; असावध; बेध्यान (४) नहि रोकेलु-योजेलं (५) अनुचित ; अयोग्य (६)खोटुं; जूळू अयुक्ति स्त्री० जोडायलं न हो, ते (२) अयोग्यता (३) युक्तिपुरःसर न होवू ते; असंबद्धता अयुग वि० एकलं (२)एकी संख्यावाळू अयुगपद् अ० एक साथे नहि तेवी रीते; एक पछी एक अयुगल वि० जुओ 'अयुग' अयुगाचिस् पुं०(सात ज्वाळावाळो)अग्नि अयुग्म वि० जोडीमां नहि तेवं ; एकलं; छु? (२)एकी संख्यावाळं (३,५,७,३०) Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० अयुग्मनेत्र अयुग्मनेत्र, अयुग्मलोचन पुं० (त्रण आंखवाळा) शंकर अयुग्मशर पुं०(पांच बाणवाळो कामदेब अयुत वि० जुएं करायेल; नहि जोडा येलु (२) न० दश हजारनी संख्या । अये अ० 'हे' ए अर्थन प्रेमसंबोधन (२) आश्चर्य, विस्मय, क्रोध, शोक, भय, स्मरण, थाक इ० नो भाव दर्शावे छे अयोग्य वि० अघटित; अनुचित (२) नकामुं; निरुपयोगी (३) प्रतिकूळ; बंध न बेसतुं अयोधन पुं० हथोड़ो; घण। अयोजाल न० लोढानी जाळी अयोध्य वि० हुमलो के सामनो न करी शकाय तेवू अयोनि वि० अनादि; उत्पत्तिरहित (२) योनि द्वारा न जन्मेलं (३)शास्त्रविधि प्रमाणेना लग्नथी नहि जन्मेलं (४) जेना कुळनी खबर नथी तेवं अयोनिज, अयोनिजन्मन् वि० सृष्टिक्रम प्रमाणे गर्भमांथी नहीं जन्मेलु अयोनिजा, अयोनिसंभवा स्त्री० सीता । अयोमुख पुं० बाण क्रूर ; निर्दय अयोहृदय वि० लोढा जेवा हृदयवाळं; अर वि० उतावळं; वेगी (२) अल्प; थोडु (३) जतुं ; जनाएं (समासने छेडे) (४) पुं० पैडानो आरो अरघट्ट, अरघट्टक पुं० रेंट अरज, अरजस्, अरजस्क वि० धूळ वगरनु (२) मेलुं नहि तेवू; स्वच्छ (३) रजोगुण विनानु (४) ऋतुस्राव प्राप्त न थयो होय तेवु पथ्थर अरणि पुं० सूर्य (२) अग्नि(३) चकमकनो अरणि पुं०, स्त्री०, अरणी स्त्री० घसीने अग्नि उत्पन्न करवा वपरातो .. लाकडानो टुकडो (शमी वृक्षनो) अरणीसुत पुं० शुकदेव (२) अग्नि . अरण्य न० जंगल; वन । अरिष्ट अरण्यचर वि० जंगली अरण्यचंद्रिका स्त्री० (अरण्यमां चांदनी जेवी) व्यर्थ शोभा अरण्यरुदन, अरण्यरुदित न० (अरण्यमां रडवा-बूम पाडवा जेवो,व्यर्थ विलाप; व्यर्थ प्रवृत्ति (२) वानप्रस्थ अरण्यवासिन् वि० अरण्यमां रहेनालं अरण्यौकस वि० जंगलमा रहेनारुं (२) वानप्रस्थ अरति वि० असंतुष्ट; उद्विग्न (२) निरुत्साही; मंद (३) स्त्री० अप्रीति; अणगमो (४) उद्वेग ; शोक (५) असंतोष ; चित्तनी अस्वस्थता अरनि पुं०, स्त्री० कोणी (२) एक हाथर्नु माप (कोणीथी टचली आंगळीना छेडा सुधी-) (३) हाय अरम् अ० जलदी; तरत ज; हमणां ज अरर न० बारj (जोडमांनु दरेक) अरविंद न० कमळ (लाल के नील) अरविंदिनी स्त्री० कमलिनी (२) कमलसमह (३) कमलनं सरोवर के तलाव अरसिक वि० नीरस (२) लागणी वगरन (३) रसनी कदर न करी शके तेवू अराजक वि० राजा विनानं; अंधा धूंधीवाळं अरात् अ० तत्काळ ; जलदी अराति पुं० शत्रु; दुश्मन अराल वि० वांकुंकु (२) वांकवाळू (३) पुं० वांको वळी गयेलो हाथ (४) मदोन्मत्त हाथी अरालकेशी स्त्री० वांकडिया वाळवाळी अरि पुं० शत्रु; दुश्मन अरित्र न० हलेसु (२) सुकान अरिष्ट वि० सुरक्षित; कुशळ (२) शुभ (३) अशुभप्रद (४) अविनाशी (५) पुं० शत्रु (६) अरीठान झाड (७) लीमडानुं झाड (८) मद्य; आसव (९) न० दुर्भाग्य ; संकट Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अरिसूदन (१०) अनिष्ट सूवक उत्पात (११) मोती निशानी ( १२ ) सुवावडीनो ओरडो (१३) मद्य; आसव अरिसूदन पुं० शत्रुनो नाश करनार अरुचि स्त्री० अनिच्छा; नामरजी; अगम (२) भूख न लागवी ते अज वि०नीरोगी (२) रोग दूर करनाएं ( ३ ) स्वस्थ : दुःखरहित अरुण वि० संध्याना रंगनु; रताश पडतु; काळाश मिश्रित लाल वर्णनुं ( २ ) पुं० सवारनो लालाश पडतो रंग ( ३ ) सूर्यनो सारथि ( ४ ) सूर्य अरुणप्रिय, अरुणसारथि, अरुणाचिस् पुं० सूर्य | रंगायेलु अरुणित वि० लाल थयेलं; लाल रंगे अरुणोदय पुं० प्रातःकाळ; परोढियुं असंतुद वि० मर्मवेधक; तीव्र व्यथा करना अरुप्रती स्त्री० वसिष्ठ ऋषिनी पत्नी अरु वि० क्रोधरहित अरूप वि० आकाररहित ( २ ) कुरूप (३) भिन्न असमान ( ४ ) न० खराब रूप; रूपनो अभाव अरे अ० ऊतरता दरज्जाना माणसने संबोधवानो उद्गार ( २ ) आश्चर्य, दुःख, चिता, क्रोध इ० सूचक उद्गार अरेरे अ० क्रोध, शोक, तिरस्कार दर्शाववा वपरातो उद्गार अरोग वि० नीरोगी; तंदुरस्त ( २ ) पुं० तंदुरस्ती; आरोग्य अरोगिन्, अरोग्य वि० नीरोगी अरोचक वि० न प्रकाशतु; तेजस्त्री नहि तेनुं ( २ ) अणगमतुं ; कंटाळो आपना (३) अरुचि उत्पन्न करे ते (४) पुं० अरुचि कंटाळो [गमे ते करूं अरोचिष्णु वि० तेजस्वी नहि तेवुं (२) न अर्क वि० अर्चनीय ( २ ) पुं० सूर्य ( ३ ) अग्नि ( ४ ) स्फटिक (५) आकडो ४१ अर्णव अर्क, अबांध पुं० शाक्यमुनि बुद्ध अर्को वल पुं० लाल चूती ( २ ) सूर्यकांत मणि अर्गल पुं०, न०, अर्गला, अर्गली स्त्री० आगळो; भृंगळ; जलाळो (२) रुकावट - विघ्न करनार वस्तु अघु १५० मूल्य बेस अर्ध पुं० किंमत मूल्य (२) देव अथवा महापुरुषनी पूजा माटेनो सामान अर्ध्य वि० पूजवा योग्य; मान आपवा योग्य ( २ ) न० पूजन; पूजा (३) पूजनसामग्री अर्च १ उ० पूजन करवुं ; मान आपवु; सत्कार ( २ ) प्रकाशबुं ( ३ ) १०५० पूजन करवु; सत्कारवु अर्चन वि० पूजा करतु; सत्कारतुं ( २ ) न० पूजन; पूजा अर्चना स्त्री० पूजन; अर्चन अर्चा स्त्री० पूजा अर्चन ( २ ) पूजा करवा माटेनी मूर्ति अचिष्मत् वि० ज्वाळावाळु; प्रकाशतुं ( २ ) पुं० अग्निदेव ( ३ ) सूर्य अचिष्मती स्त्री० अग्निनी नगरी अथवा लोक नाम अचिस् न० प्रकाशनुं किरण; ज्वाळा (२) प्रकाश ; तेज ( ३ ) पुं० अग्नि (४) प्रकाश किरण अर्ज १५० मेळवj; कमावुः प्राप्त कर (२) उपाडवुं लेवुं (३) १० ५० मेळव; प्राप्त कर अर्जन न० मेळवं - कमावुं ते अजित वि० मेळवेलु, प्राप्त करेल; कमायेलु अर्जुन वि० श्वेत; शुभ्र ( २ ) पुं० पांडु राजानो त्रीजो पुत्र - अर्जुन ( ३ ) कार्तवीर्य – सहस्रार्जुन (४) एक वृक्ष अर्जुनध्वज पुं० हनुमान अर्जुन स्त्री० गा अर्णव पुं० समुद्र ( २ ) प्रवाह; मोजुं ; पूर Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अति अति स्त्री० दु:ख, पीड़ा; शोक अर्स् १० आ० मागवु; याचवुं (२) मेळवावा प्रयत्न करवो; इच्छवं अर्थ पुं० हेतु: ध्येय; इच्छा (२) - 'ने माटे' -'ने लीधे' - 'ना हेतु थी' एवा अर्थमा समासने छेड़े आवे छे (अने विशेषण पेठे वपराय छे ) ; ए ज अर्थमां - 'अर्थम्' 'अ' अने ' अर्थाय ' रूपें अव्यय पेठे वपराय छे (३) कारण; निमित्त; हेतु (४) शब्दनो मायनो ( ५ ) वस्तु; पदार्थ; विषय ( ६ ) कामकाज ; बाबत ; कार्य (७) धन संपत्ति (८) धर्मादि चार पुरुषार्थमांनो बीजो (९) फरियाद; दावो (१०) लाभ; फायदो (११) गरज; उपयोग; प्रयोजन (१२) फल; परिणाम अर्थकर वि० धन प्राप्त करावनाएं (२) उपयोगी ; लाभदायक अर्थकाम वि० धननी इच्छावाळु अर्थकृच्छ्र न० घननुं संकट ( २ ) मुश्केल बाबत अर्थकृत वि० जुओ 'अर्थकर ' अर्थगौरव न० अर्थनुं ऊंडाण अयंजात न० वस्तुओनो समूह ( २ ) अढळ संपत्ति ( ३ ) बधी बाबतो अयं तत्त्व न० साधुं रहस्य; साची वात; साचो हेतु; साचुं स्वरूप अर्थतः अ० अर्थी बाबतमां; अर्थ प्रमाणे ( २ ) वास्तविक रीते (३) पैसा के लाभने माटे ( ४ ) - ने कारणे ; -ना हेतुथी [ (२) उदार अर्थव वि० धन आपनाएं; लाभकारक अर्थदूषण न० उडाउपणुं ( २ ) पारकुं धन दबावी बेस ते (३) अर्थमां भूल काढवी ते [ नजर राखवी ते अर्थदृष्टि स्त्री० लाभ नफा तरफ ज अर्थना स्त्री० विनंती; याचना अर्थनिबंधन वि० धन पर आधार राखतुं अर्थपति पुं० धननो स्वामी कुबेर ( २ ) राजा - ४२ अर्थार्थी अर्थपर वि० लोभी; कंजूस अर्थबंध पुं० शब्दोनी गोठवणी - रचना (२) काव्य; निबंध अर्थबुद्धि वि० स्वार्थी; आपमतलबी अर्थमात्र न०, अर्थमात्रा स्त्री० अढळक धन ( २ ) निश्चित अर्थ अर्थयुक्त वि० अर्थवाळु; सार्थ अर्थलाभ पुं० धननो लाभ; धनप्राप्ति अर्थलुग्ध वि० धननो लोभी ( २ ) कंजूस अर्थवत् वि० अर्थवाळु, सार्थक (२) श्रीमंत; धनवान अर्थवाद पुं० ( वेदनां) विधिरूप वाक्यमां रुचि उपजाववा ते विधिओनी स्तुति, तेमनुं पालन न करवाथी थती हानि, तथा तेने लगतां अंतिहासिक दृष्टांत इ० आपवां ते (२) स्तुति; तारीफ (३) ग्रंथमां मुख्य विषयने स्पष्ट करवा के तेनुं गौरव दर्शाववा (लखातो) भाग (४) जीवनमा अर्थ-संपत्तिने महत्व आपनार बाद अर्थविद् वि० समजदार ; डाहचुं अर्थविपत्ति स्त्री० लक्ष्य चूकवं ते अर्थशास्त्र न० संपत्तिशास्त्र ( २ ) राजनीति ( ३ ) व्यवहारनीति अर्थशौच न० प्रामाणिकता ति अर्थसंपद् स्त्री० इच्छित वस्तु सिद्ध थवी अर्थसंबंध पुं० अर्थप्राप्ति ( २ ) वाक्य के शब्द साधे अर्थनो संबंध ( व्या० ) अर्थसार पुं० पुष्कळ द्रव्य अर्थसिद्धि स्त्री० इच्छित अर्थ सिद्ध थवो अर्थहीन वि० अर्थ वगरनु निरर्थक (२) धनहीन; दरिद्र अर्थागम पुं० धननी प्राप्ति अर्थात् अ० एटले [ते अर्थायिन् वि० धनलोभी ( २ ) गरजवाळु (३) स्वार्थी अर्थार्थी वि० धननी इच्छावाळं (२) कोई पण वस्तुनी इच्छावाळु Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवांतर अांतर न० बीजो अर्थ (२) बीजो हेतु (३) नवो विषय ; नवी बाबत के बनाव अयित वि० मागेलं; याचेलं (२) इच्छेलं (३) न० विनंती; याचना । अथिता स्त्री०, अथित्व न० याचकपणुं (२) विनंती; याचना (३)इच्छा अथिन् वि० याचनारु (२) इच्छनारुं; इच्छावाळू (३) भिक्षुक; याचक (४) फरियादी; वादी अर्थोय वि० (समासमां) -ने माटे नियत थयेलु (२) ने माटेनें; -ना संबंधी अर्योल्मन् पुं० धननी गरमी अयं वि० मागवा लायक (२) वाजबी; न्यायी (३) सार्थक ; सप्रयोजन (४) साचु (५) समृद्ध (६) पैसा प्राप्त करवामां चतुर अई १५० दुःख देवू; ईजा करवी; मारी नाखवू (२) विनंती करवी; याचवं (३)ज; खसर्बु (४) क्षुब्ध थq (५) वेरावु (६) १०प० पीडा आपवी; दुःख आपर्व (७) हणव: मारवं;मारी नाखवू (८) क्षुब्ध करवू; जोरथी डखोळवं अर्वन वि० दुःख देनारु (२) नाश करनालं अदित वि० ठार मारेलं; पीडेलु (२) गयेलं (३) याचेलं अर्घ वि० अर्धं (२) पं०, न० अधों भाग अर्घचंद्र वि० बीजना चंद्रना आकारन (२) पुं० बीजनो चंद्र (३) पंजानो अर्धचन्द्र जेवो आकार (कशुं पकडवा करातो) (४) अर्धचंद्राकृति बाण अर्धचंद्र दा ३ उ० बोची पकडीने काढी अर्धाग न० अर्धं शरीर अघदू पं० अर्धचंद्र; बीजनो चंद्र अदुमौलि पुं० शंकर अर्थोक्त वि० अर्बु उच्चारेलू- कहेलु अर्थोदित वि० अर्धं ऊगेलं-ऊंचं आवेलं (२) अर्बु उच्चारेलु अर्पण न० –नी उपर मूकवू ते; अंदर मूकवू ते (२) समर्पण करवू ते (३) पाछु आपq ते अर्पित वि० मूकेलं; खोसेलु (२) अपायेलं; सोपेलु(३) पाछु अपायेल (४) कोतरेल; चीतरेल (५) वींधायेलु; भोंकायेलु (६) लुप्त थयेलं; जतुं रहेलं अर्बुद पुं०, न आबु पर्वत (२) वादळ (३) दस करोड (४) मांसना लोचा जेवी स्थिति अर्भ पुं० बाटक अर्भक वि० नानु; ट्रंकु (२) मर्ख; बालिश (३) पुं० बाळक (४) पशुतुं बच्चुं अर्य वि० श्रेष्ठ; उत्तम; संमाननीय (२) वफादार (३) प्रिय; ममता. वाळ (४) पुं० स्वामी; मालिक अर्यमन् पुं० सूर्य (२) पितृओनो राजा अर्वन् पुं० घोडो अकि अ० आ बाजुए (२) अमुक बिंदुथी (३) पहेला; प्रथम (४)नीचेनी बाजु (५) पछीथी (६) अंदर; नजीक अर्वाच वि० आ तरफk; आ तरफ वळत (२) -नी तरफ वळेलं;-ने मळवा आवतुं (३)आ किनारा उपरतुं (४)नीचे-; पाछळनुं (समय के स्थळमां) (५) पछीनु अर्वाचीन वि० आधुनिक; हाल- (२) ऊलटुं; विरुद्ध (३) पछीनु; पाछळन (४)आ बाजुनु (५)पछी जन्मेलु अर्श पं०, अर्शस् न० हरस अर्ह १५० योग्य होवू ; लायक होवू (२) अधिकार होवो (३) कई करवानी फरज होवी(४) शक्य होवू; मकg अर्घनाराच पं० अर्धचंद्राकार बाण अर्घनारीश, अर्धनारीश्वर पुं० शंकर अर्धमागधी स्त्री० जूना जैन धर्मग्रंथो जेमां लखाया छे ते भाषा अर्षि पुं०, न० एक चतुर्थांश अर्धासन न० अर्धं आसन (२) अति मानपूर्वक सत्कार करवो ते Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शक्तिमान हो, (५) -नी किंमतनुं होवू (६) १०प० मान आप ; पूजवं अहं वि० पूज्य; संमाननीय (२)योग्य; लायक; अधिकारवाळ (३) किंमतन: कीमती (४) समर्थ ; शक्तिमान (५) पुं० मूल्य ; किंमत (६) योग्यता अहंण न०, अर्हणा स्त्री० पूजन कर ते; मान आपq ते (२) पूजनसामग्री; भेट; बक्षिस (४)पुं० बुद्ध (५) तीर्थंकर अर्हत वि० पूज्य (२) योग्य (३) विख्यात अहंत वि० पूज्य ; माननीय (२) योग्य (३) पुं० बुद्ध (४) बौद्ध भिक्षु अर्हा स्त्री० पूजा; अर्चना अी वि० पूज्य (२) स्तुत्य (३) उचित (४) मेळववा लायक अलक पुं०, न० वाळनी लट-गुच्छो (२) कपाळ उपरना वांकडिया वाळ अलकनंरा स्त्री० गंगा (२) तेने मळती अलकापुरी अलका स्त्री० कुबेरनी राजधानीअलकाधिप, अलकेश्वर पुं० कुबेर अलक्त, अलक्तक पुं० अळतो अलक्षण वि० शुभ चिह्नो विनानुं (२) विशेष चिह्न के लक्षण विना- (३) अपशुकनियाळ;अभागी (४) समजमां न आवे तेवू लक्षण विनानुं अलक्षित वि० नहि जोयेलं (२) चिह्न के अलक्ष्मी स्त्री० दुर्भाग्य ; दारिद्रय अलक्ष्य वि० नजरे न पडतुं; अज्ञात; अदृश्य (२)चिह्न के लक्षण विनानुं अलघु वि० भारे; वजनदार (२) ह्रस्व नहि तेवू ; दीर्घ (मात्रा) (३) गंभीर (४) तीव्र अलम् अ० पूरतुं - जोई। तेटलं होय तेम (२) शक्तिमान - समर्थ होय तेम (३) तुल्य-समान होय तेम (४) बस करो, जरूर नथी-एवा अर्थमां (५)पूरेपूरुं - खूब -पुष्कळ होय तेम नदी अलीक अलर्क पुं० आठ पगवाळू एक कल्पित प्राणी (तीक्ष्ण दंष्ट्रा अने कांटाळा वाळवाळू) अलस वि० आळसु (२) सौम्य ; मंद (३) थाकेलं (४) धीमु; जड . अलस्य वि. आळसु अलंकरण न० सुशोभित करवं ते (२) शोभा; शणगार (३) आभूषण ; घरेणु अलंकामता स्त्री० संपूर्ण तृप्ति अलंकार पुं० शोभा; सौन्दर्य (२)घरेणु कोई पण शोभीती वस्तु (३). शब्द अथवा अर्थनी चमत्कृतिवाळी रचना. अलंक ८ उ० शणगार; सुशोभित करवू (२) रोकg; बस करावई . अलंकृत वि० विभूषित ; शगगारेलं अलंकृति स्त्री० शोभा; गणगार (२) घरेणुं (३) शब्द के अर्थनी चमत्कृतिवाळी रचना - अलंकार अलंक्रिया स्त्री० शणगारवानी क्रिया अलंघनीय, अलंध्य वि० ओळंगी न शकाय तेवं (२)जेने पहोंची न शकाय तेवू (३) सुरक्षित अलंभूष्णु वि० समर्थ; शक्तिमान अलात पुं०, न० खोरणुं; खोरियु अलाबु(-) स्त्री० तुंबडु अलाभ पुं० न मळवू ते (२) हानि अलि पुं० भमरो अलिक न० कपाळ ; ललाट अलिकुल न० भमराओनो समूह अलिन पुं० भमरो अलिनी स्त्री० भ्रमरसमूह अलिंग वि० चिह्न विनानु (२) खराब चिह्नवाळू अलिंजर पु० माटी- मोटुं वासण; माण अलिंद पु० मुख्य बारणा परनु छ (२) बारणा आगळनो चोक अलीक वि० अप्रिय; प्रतिकूळ (२) खोटुं; जूलु (३) न० कपाळ (४) अप्रिय - प्रतिकूळ एq ते Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अबक्लप मलोक अलोक वि० अदृश्य (२) निर्जन (३) मरण पछी (सुकृत्यना अभावे) जेने कोई पण लोकनी प्राप्ति थती नथी तेवू (४)अवकाशनी पारनु (५) पुं०, न० लोकनो अंत -विनाश (६) पाताल (७)अभौतिक - आध्यात्मिक जगत अलोकसामान्य वि० असामान्य अलोक्य वि० परलोक-स्वर्ग न प्राप्त करावनालं अलोमक, अलोमिक वि० वाळ वगरनुं अलोल वि० शांत; अक्षुब्ध (२) स्थिर; दृढ; चंचळ नहि तेवू (३)तृष्णा वगरनुं अलोलुत्व,अलोलुप्त्व न० लोलुपतानो अभाव; विषयो प्रत्ये निरपेक्षता अलौकिक वि० असामान्य; विलक्षण (२) दिव्य ; अद्भुत (३) दुर्लभ अल्प वि० नजीवु:क्षुल्लक(२) थोडु नानुं अल्पक वि० सूक्ष्म ; नानुं (२) नीचुं; हलकुं; तुच्छ अल्पज्ञ वि० थोडं जाणनाएं अल्पधी वि० आछी बुद्धिवाळू; मूर्ख अल्पप्राण पुं० उच्चार करतां ओछो प्रयत्न करवो पडे तेवो वर्ण (व्या०) अल्पभाषिन् वि० थोडं बोलनारुं; मितभाषी अल्पमेधस् वि० ढूंकी बुद्धि के समजवाळु अल्पसत्त्व वि० अल्प वळ के हिंमतवाळू अल्पसार वि० थोड़ी किंमतनुं अल्पात् अ० जुओ 'अल्पेन' अल्पाल्प वि० बह थोडं अल्पित वि० ओर्छ करायेलु (२)हलकुं पाडेलु; अपमानित अल्पीभू १५० ओछु थq; नाना थवं अल्पेतर वि० मोटुं; वधारे अल्पेन अ० थोडा माटे ; अल्प कारणथी (२) बहु सहेलाईथी; मुश्केली वगर अल्ला स्त्री० मा; माता अव १५० रक्षण कर (२) प्रसन्न करवू; आनन्द आपवो (३) पसंद करइच्छ, अव अ० उपसर्ग तरीके - दूरता, ओछापणुं, नीचापणुं, एवा अर्थमां वपराय छे (२) क्रियापदना धातुनी पूर्वे-निश्चय, व्यापकता, लघुता, अवज्ञा, आश्रय-आधार, शुद्धि, पराभव, अभाव, आज्ञा, नीचापणुं, ज्ञान, एवा अर्थमां वपराय छे अबकर पुं० पूंजो; कचरो अवकर्ण १०प० सांभळवं अवकर्तन न० कापq ते ; फाडवं ते (२) रणभूमि [बेसतुं अवकल्पित वि० -ने मळतुं आवतुं ;बंध अवकाश पुं० प्रसंग ; तक; योग्य समय (२) स्थान; जगा (३) आकाश; खाली जगा (४) वच्चेनो समय ; वचगाळो (५) छिद्र ; बाकोरुं अवकीर्ण वि० वेरायेलं; छवायेलु (२) भांगलु-चो करेल (३)नाश करेल (४) व्रतभंग करेलं; व्रात्य बनेलं (५) वेरविखेर थतुं; भागी पडतुं अवकुंचन न० संकोचन (२) वांकू वळवं-वाळवं ते अवकुंठित वि. चारे तरफ घेरायेलं (२) खेंचायेलं; आकर्षायेलु अवकृत् ६५० कापी नाखवू; फाडी लेवू अवकृत वि० नीचं वळेलु अवकृष् १५० जोरथी खेंच, (२) खेंची काढवु (३) दूर करवू अवकृष्ट वि० खेंची काढेलु (२) दूर करायेलु (३) काढी मूकेलु (४) नीचुं; हलकुं; अधम अवक ६ प० [अवकिरति] वेरवू; विखेरवु; पाथरवू (२) छाई देवं ; भरी काढवू (३) बहार काढ, (४) खंखेरी काढ; तजवू (५) ६ आ० ( अवकिरते ] फेला (७) छुटुं पडवू; खरी पडवू (८) बेवफा नीवडवू अबक्लय् १ आ० -ना समान होवू ; योग्य Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अबक्रमण होवू; शक्य होवु (२) परिगमवू; सिद्ध करवू; मदद करवी -प्रेरक० तैयार करवू (२) शक्य मानवू (३) योग्य रीते वापर अवक्रमण पुं०, अवक्रान्ति स्त्री० नीचे ऊतर ते; ऊतरी आवq ते (२) गर्भमां प्रवेश करवो ते । अवक्रोश पु० गाळ ; निंदा (२) शाप (३) बेसूरो- कर्कश अवाज अवक्षय पुं० क्षय ; नाश अवक्षिप् ६५० काढी नाखवं; फेंकी देवू (२)ठपको आपवो; निंदा करवी अवक्षत वि० छींक खावाथी के थूक्याथी अपवित्र थयेलुं आक्षेप अवक्षेप पुं० ठपको; निंदा (२) वांधो; अवगण १० उ० अवगणना करवी; उपेक्षा करवी अवगत वि० जाणेलु; समजेलु (२) जाणीतुं प्रसिद्ध (३) अवगति पामेल (४) स्वीकारेलं; कबूल राखेखें अवगति स्त्री० जाणवू ते; समजवू ते (२) निश्चित ज्ञान अवगम् १५० [अवगच्छति ] जाणवू समजवु (२) मानवं; गणवू (३) खातरी थवी समजण; निश्चित ज्ञान अवगम पुं०, अवगमन न० ज्ञान; भवगाढ ('अवगाह 'न भू० कृ०) वि० अंदर पेठेलं; डूबेलु (२) नीचु; ऊंडु (३) जेमां स्नान करवामां आवतुं होय तेवू अवगाह, १ आ० स्नान करवू ; नाहवू; डूबकी मारवी (२) प्रवेशवं ; व्यापवू अवगाह पुं०, अवगाहन न० स्नान करवं ते (२) डूबकी मारवी ते; प्रवेशवं ते (३) विषयनो पूरो अभ्यास करवो ते (४) नाहवानुं स्थान अवगीत वि० बेसूरुं गायेलु (२)निदित; लोकापवाद पामेलु (३) दुष्ट ; गर्हित; नीच (४) वारंवार जोयेलु (५) न० निंदा-काव्य (६) ठपको ; निंदा (७) बेसूरु गायन अवगुण पुं० दोष ; खामी अवगुर् ६ उ० धमकी माथे हुमलो करवो; शस्त्र उगामवं अवगुह, १ उ० [अवगृहति-ने] ढांक; छुपावq (२) आलिंगन करवू । अवगुंठन न० बुरखो (२) मावरणी अवगुंठित वि० बुरखो नास्त्रेलु ; ढांकेल; छुपावेलं अवगुंफित वि० गूंथेलं अवग्रह, ९ उ० [अवगृह्णाति-गृह्णीते ] ढीलु मूक (लगाम) (२) छूटुं पाडवू (३) शिक्षा करवी (४) पकडावं-रूवावं (५) केद पकडवं ; ताबे कर (६) सामनो करवो; रुकावट करवी (७) पकडq (पगधी) अवग्रह पुं० समासना अवयवो इ० छूटा पाडवा ते (२) 'अ'नो लोप थयो होय, त्यारे 'अ' ने बदले मुकातुं आवं '5' चिह्न (३) संधिनो अभाव (४) शिक्षा; दंड (५) अनावृष्टि (६) अंकुश (हाथी माटेनो) (७) विघ्न; अंतराय (८) भावना; कल्पना (९) हठ; आग्रह अवघट् १ आ० धकेली काढ, (२) तोडवू; भांगवू (३) स्पर्श करवो; घसद् (४) हलाव अवघात पुं० हणवू-मार-प्रहार करवो ते (२) (अनाज) खांडवु ते (३) अकाळ-मरण अवघुष १ प० ढंढेरो पिटावी जाहेर करवु (२) बोलाव; तेडाववं (सभा) (३) अवाजथी भरी काढवू अवघुष्ट वि० ढंढेरो पिटावी जाहेर करेलु (२) बोलावेलु अवपूर्ण १ उ० चक्राकार फरवु - फेरवद्; आम तेम डोलवं Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Yo अवपूर्ण अवधून वि० क्षुब्ध अवधूत १ उ० घसी नाखवू; भूको करवो अवघ्रा १५० [अवजिघ्रति सूंघवं (२) चुंबवू (माथे) अवघ्रात वि० सूंघेलु (२) बेलु प्रवचन वि० बोल्या वगरनुं; चूप (२) न० कथननो अभाव ; मौन (३)निंदा; ठपको योग्य (२) अनिंद्य मवचनीय वि० अश्लील; न बोलवा अवचय पुं० एकळु करवू ते; वीण, ते अवचि ३५० पूजq; सन्मान (२) ५ उ० वीणकुं; चूंटवू (३) तपासवू; पसंद करवु (४) उतारी नाखवु (कपडु) अवचिवीषा स्त्री० वीणवानी इच्छा अवचूड पुं० ध्वज़- निशाननी नीचे लटकतो रखातो वस्त्रनो पटको (२) ध्वजनी टोच उपर रखाती चमरी वगेरे शणगार अवचूडा स्त्री० माळा; हार अवचूर्ण १० प० चूर्ण वगेरे छांटवु अवचूल पुं० जुओ ‘अवचूड' अवच्छन् १० प० आच्छादन करवू अवच्छाद पुं० आच्छादन; ढांकण अवच्छिद् ७ उ० कापवू; फाडवू (२) सीमित कर (जेमके स्थळ-काळ इ० थी) (३) जुईं पाडवू (विशिष्ट लक्षणोथी) अवच्छिन्न वि० कापी नाखेलं; जदं पाडेलु (२) मर्यादित ; निश्चित (३) विशिष्ट गुणोने लीधे जुदुं तरी आवतुं अवजि १५० जीती लेवू (२) पार्छ मेळव, (३) रोकवू; अटकावq। अवजिति स्त्री० विजय अवज्ञा ९ उ० [अवजानाति-जानीते ] उपेक्षा करवी; तिरस्कार करवो अवज्ञा स्त्री०, अवज्ञान न० तिरस्कार; अनादर; अपमान [(२) कूवो अवट पुं०, अवटि (-टी) स्त्री० खाडो अबदात मबटुन पुं० माथानी पाछळना वाळ। अवीन न० पंखी- ऊड, ते (नीवेनी तरफ) अवतत वि० छवायेलं; ढंकायेलं (२) ढीलु करेलु - छोडी नाखेलु अवतन् ८ उ० नीचेनी बाजुए फेलावू (२) उपर छायूँ (३) ढीलु करवू; छोडी नाखवू (पणछ) अवतर पुं० ऊतरवू ते; अवतरण अवतरण न० नीचे ऊतर, ते (२) स्नान माटे जलाशयमां ऊतर ते (३) अवतार - जन्म (४) नदीमा ऊतरवानां पगथियां (५) नाहवान तीर्थस्थान (६) उतारो; टांचण अवतरणिका स्त्री० ग्रंथने आरंभे ट्रंकी प्रार्थना (२) प्रस्तावना . अवतंस पुं०, न० हार (२) कान, घरेणुं 'एरिंग' (३) माथा- घरेणुं; कलगी (४) भूषणरूप कोई पण वस्तु । अवतान पुं० धनुष्यनी पणछ चडाववी ते (२) फेलावो; लता वगेरेनो विस्तार अवतार पुं० नीचे ऊतर, ते (२) . उत्पत्ति; प्रादुर्भाव (३) पृथ्वी पर देव के ईश्वरनुं अवतर ते (४) रूप; आकृति (५) जळाशय; तीर्थस्थान (६)ऊतरवानी जगा; ओवारो अवतीर्ण वि० नीचे उतरेलु ; प्रवेशेलु (२) अवतार पामेलु (३) ओळंगी गयेलं; पार करी गयेलु अवत् १५० नीचे ऊतरवू (२)-मां वहेवू - भळी जवु (३) प्रवेशद् (४) शरू करवु (५) प्रादुर्भाव थवो (६) मर्त्य रूपे अवतरवू (७)पार करवू अवदंश पुं० मद्यपान वगेरेनी तलप वधारे तेवू उत्तेजक खाद्य अवदात वि० निर्मळ; शुद्ध (२) उज्ज्वळ ; तेजस्वी; श्वेत (३) सुन्दर (४) शुभ; पुण्यदायक Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवदान ४८ अवदान न० पराक्रम; यशस्वी कृत्य (२) दंतकथानुं वस्तु (३) खंडन अवदारण न० फाडवू- चीरतुं ते (२) कोदाळी अवदीर्ण वि० फाडेलं; चीरेलु (२) प्रवाही करेलु; ओगाळेलं (३) मूझायेलं; गूंचवायेलं अवद ९५० चीरी नाखवू ; फाडी नाखवू अवध वि० नहीं प्रशंसवा योग्य (२) हलकुं; नीचं (३) निंद्य (४) दूषित; खामीवाळु (५) पापयुक्त (६) न० । दोष; खामी; अपूर्णता (७) दुर्गुण ;. पाप (८) निंदा; ठपको अवद्यत् वि० भागो नाखतुं अवधा ३ उ० मूकबुं (२) ध्यान आपवू; मन लगाड, (३)बंध करवु; वासवू अवधान न० ध्यान; लक्ष ; काळजी अवधार पुं०, अवधारण न०, अवधारणा स्त्री० निर्णय ; निश्चय (२) मर्यादा बांधवी ते अवधारणीय वि० निश्चय करवा योग्य अवधारित वि० निश्चित करेल अवधार्य वि० जुओ 'अवधारणीय'. अवधि पुं० ध्यान; लक्ष (२) मर्यादा; मीमा (स्थळ के समयनी) (३)छेडो; पराकाष्ठा; समाप्ति (४) समयनो गाळो (-थी मांडीने -- सुधी) (५) ठराव; संकेत ; वायदो (६) प्रमाण ; धोरण अनादर करवो अवषीर् १० आ० अवगणना करवी; अवधीरणा स्त्री० उपेक्षा; तिरस्कार अवधीरित वि० अनादर करेलु; अव गणना करेलु अवधू ५ उ० हलाव; कंपाव, (२) दूर करवू; खंखेरी नाखवं (३) तिरस्कार; अवगणवू अवधूत वि० हलावेल; कंपावेल (२) खंखेरी काढेलं; तजेलं (३) अनादृत; अवबोष तिरस्कृत (४) पाछळ पाडी देतु; चडियातुं; पराजित करेलु (५)सांसारिक आसक्तिथी छुट थयेलं (६) पु. संसारी संबंधो के आसक्ति त्यागनारो संन्यासी (३) क्षोभ अवधूनन न० हलाव, ते (२) उपेक्षा अवधु १० उ० निश्चय करवो (२) खातरी करवी (३)विचारवू; मानवू अवषेय वि० मूकवा योग्य (२) लक्ष आपवा योग्य; मानवा योग्य (३) समजवा योग्य (४)न० ध्यान ; लक्ष अवध्य वि० वध नहि करवा योग्य अवध्य १५० ध्यान न आपg; अवगणना करवी अवन न० रक्षण अवनत वि० नीचुं नमेलं अवनति स्त्री० नीचुं नमवू ते (२) वंदन ; नमन अवनद्धं वि० 'बांधेलु (२) मढेलु (३) न० मृदंग; ढोल अवनम् १५० नीचे नमी पडq (२) नमन करवं दोरडु अवनाह पुं० बांधवं ते (२) बांधवानुं अवनि स्त्री० पृथ्वी अवनिज पुं० मंगळ ग्रह अवनिभृत् पुं० पर्वत (२) राजा अवनिरह पुं० वृक्ष अवनी स्त्री० जुओ 'अवनि' अवपात पुं० पडवं ते (२) खाडो (३) हाथी पकडवानो खाडो अवपीड् १०प० दाबवू; चांपवू अवप्लु १ आ० कूदईं; कूदको मारवो अवबुध् ४ आ० जागवू (२) जाणवू (३) ओळख - प्रेरक० जगाडवू (२) याद कराबवु (३) बोध आपवो; उपदेशवु अवबोध पुं० जागते (२) जाणवू ते; ज्ञान (३) विवेकज्ञान (४) उपदेश Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवबोषक अवबोधक वि० दर्शावनाएं; सूचवनाएं (२) बोध - ज्ञान आपनाएं (३) पुं० जगाडनार - सूर्य (४) वैतालिक; चारण (५) गुरु; अध्यापक (६) इरादो; विचार अवभास् १ आ० प्रकाश ; प्रगट थर्बु अवमास पुं० प्रकाश; तेज (२) ज्ञान (३) आविर्भाव (४) मिथ्या ज्ञान अवभुग्न वि० वांकुं वळेलं अवभृथ न० यज्ञनी पूर्णाहुति (२) यज्ञनी पूर्णाहुति वखते करातुं स्नान अवम वि० पापयुक्त; दुष्ट (२) नीच; अधम (३) हलकुं; ऊतरतुं (४) पछी-; नजीक- (५) सौथी नानुं-छेवट, (६)क्षय पामतुं; घटतुं अवमत वि० उपेक्षित (२)तिरस्कृत अवमन् ४ आ० उपेक्षा करवी; तिरस्कार करवो (२)हलकुं पाडवू; हलकुं ते; विध्वंस अवमर्द पुं० कचरी नाख, ते ; उजाडवू अवमर्श पुं० स्पर्श अवमर्ष पुं० आलोचना; विचारणा अवमर्षण न० असहिष्णुता (२) भूमी काढवं ते; भूली जवु ते अवमान पुं० अवमानन न०, अवमानना स्त्री० अवगणना; अपमान; तिरस्कार अवमश ६५० स्पर्श करवो (२)विचारवं -प्रेरक० अडके एम करवू (२)ध्वंस करवो अवयव पुं० आखी वस्तुनो एक विभाग - अंश (२) शरीरनो भाग (३) साधन - उपकरण (४) शरीर अवर वि० नानुं (वयमां) (२) पछी-; पाछल (समय के स्थळमां) (३) नीचु; हलकुं; सौथी नीचं (४) पश्चिमनु (५) छेल्लु (६) अत्यंत श्रेष्ठ । अवरज वि० पाछळथी जन्मेलं :नानं अवरत वि० थोभेलं; अटकेलं (२) विश्रांति करतुं अवलंबित अवरति स्त्री० थोभq-अटकवू ते (२) विश्रांति अवरुद्ध वि० अटकावायेलं; रूंधायेलु (२) गोंधी राखेलं; पूरी राखेलु (३) छूपा वेशवाळू अवरुध् ७ उ० अटकाव रुकावट करवी (२) पूरी राख; घेरी लेवू अवरह, प० नीचे ऊतरवू; नीचे जर्बु -प्रेरक० [अवरोहयति,अवरोफ्यति नीचे उतार के स्थाप, (२) गादी उपरथी उठाडी मूकवू(३)रोपवु (वृक्ष) अवरुद्ध वि० नीचे ऊतरेलु (२) मूळमाथी उखाडेलु अवरेण अ० नीचे अवरोध पुं० विघ्न; अटकाव ; अंकुश (२) अंतःपुर (३) वाड; वाडो; पूरी राखवानी जगा(४) ढांकण (५) चोकीदार (६) घेरो (७) खाडो अवरोपण न० उपाडी-उखेडी नाखवं ते (२) नीचे उतारी पाडवू ते (३) रोपवू ते अवरोह पुं० नीचे ऊतर ते (२)वृक्षने वींटायेलो वेलो (३) स्वर्ग (४) ऊंचा स्वर परथी नीचा स्वरमा आवq ते (संगीत) (५) उपर चडवू ते (६) वडवाई जेवू मूळ अवर्ण वि० रंग विना- (२) हीन; सारा गुण वगरनु (३) पुं० अपवाद - कलंक (४) निंदा अवर्ष पुं० अनावृष्टि अवलंब १० आ० लटकवू; वळगवं (२) आधार - टेको लेवो (३) विलंब करवा; मोडा थर्बु अवलंब पुं०, अवलंबन न० आश्रय ; आधार; टेको अवलंबित वि० आश्रये रहेलं (२) लटकतुं (३) आधीन (४) शीघ्र; उतावळु (५) नीचे ऊतरेलु Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० अवलिप्त अवसायक अवलिप्त वि० अभिमानी; गर्विष्ठ पामेलु; अटकावायेलुं (४) बांधेलं; (२) लेपायेलं; खरडायेलं जोडेलं (५) जक्की; हठीलु (६) अवलीढ वि० चाटेलं (२) खाधेलं पाछळ पाडी देवायेलु अवलुंचन न० खेंची काढवू ते; उपाडी अवष्टंभ ५,९५० टेको लेवो; आधार नाखवं ते (२) लूटी लेवू ते लेवो (२) रोकवू (३) ढांक आवरवं अवलंठन न० आळोटवू के गबडवं ते (४)टेको आपवो; पकडवु; वळगवु अवलुपन न० एकदम धसी आवq ते । अवष्टंभ पुं० अभिमान; गर्व (२) आश्रय; अवलेप पुं०, अवलेपन न० लेप (२) टेको(३) धैर्य ; दृढ़ निश्चय (४) लकवो; अहंकार; गर्व (३) संग; ऐक्य (४) जकडाई जq ते (५) उत्तमता शोभा; भूषा अवसक्त वि० वळगेलं ; संलग्न अवलेह पुं० चाटq ते (२) चाटण अवसक्थिका स्त्री० केड अने ढींचणनी अवलोक १ आ०, १० प० जोवू; आसपास कपडं बांधीने बेसबुं ते निहाळवू; नीरखवू अवसथ पुं० रहेठाण; निवास (२) अवलोक पुं०, अवलोकन न० जोवू ते; गाम (३) पाठशाळा; मठ निहाळवं ते (२)जोवानी शक्ति ; नेत्र अवसद् १५० [अवसीदति] बेसी पडवू; अवलोकित वि० जोयेलं; तपासेलु (२) खिन्न थ; मूर्छित थर्बु (२) निराश न० दृष्टि ; नजर [-चुंबवू ते थq; थाकी जवू (३) नाश पामवं अवलोप पुं० कापी लेवू ते (२) करडवू बरबाद थ, अवश वि० स्वतंत्र; स्वाधीन (२) कोईने अवसन्न वि० खिन्न; निराश; हताश; वश न थाय तेवू; असंयत (३) परवश; नाउमेद (२)नष्ट ; रहित; दूर थयेलं पराधीन (४) निश्चित ; आवश्यक (३) पोतानुं कार्य करवाने अशक्त अवशिष ७५० (घणे भागे कर्मणिरूप अवसर पुं० प्रसंग; तक; समय (२) वपराय छे) बाकी रहे; अवशेष रहेQ __योग्य समय (३) जगा; अवकाश अवशिष्ट वि० बाकी रहेलं; शेष रहेलु (४) समय; फुरसद अवशीर्ण वि० भांगेलं; फुरचा ऊडी अवसर्ग पुं० स्वतंत्रपणुं ; पोतानी मरजी __ गया होय तेव प्रमाणे चालवानी छूट अवश ९५० भागी जq; फुरचा ऊडी अवसं १ प० [अवसजति] वळग, (२) जवा (२) चोतरफ ऊडवू-बीखरावं वळगाडवू; मूकवू अवशेष पुं० बाकी रहेलो-बचेलो भाग अवसाद पुं० बेसी पडवू ते ; बेहोश थर्बु अवश्य वि० वश न करी शकाय तेवू; ते (२) अंत; नाश (३) कामकाज दुर्दान्त (२)अनिवार्य (३)आवश्यक करवानी अशक्ति अवश्यम् अ० निःसंशय ; नक्की ; खचित अवसादन न० विनाश (२)पोतानुं काम अवश्यंभाविन् वि० अनिवार्यपणे थवानुं ___करवानी अशक्तिहोय तेवू (२) थवाने निर्मायेलं अवसान न० विराम; समाप्ति; अंत अवश्याय पुं० हिम; धूमस ; झाकळ (२) मृत्यु (३) सीमा; हद (४) (२) गर्व; अभिमान थोभq ते [(३) निश्चय अवष्टब्ध वि० पकडेलं; टेको लीधेलं अवसाय पुं० अंत; समाप्ति (२)अवशेष (२) नजीकचें; पासेनुं (३) रुकावट अवसायक वि. विनाश करनारं Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवसि अवसित वि० पूर्ण थयेलु (२) जाणेलं; निश्चित ; खातरी करेलु (३) सारी रीते बांधेलं अवसृज् ६५० फेंकवू (२) काढी मूकवू; छुटुं करवू (३) तजवू पडतुं मूकवू (४) सर्जq; घडवू [आपेलं (२)त्यागेलं अवसष्ट ('अवसृज् 'न भू० कृ०) वि० अवसेक पुं० अभिषेक करवो ते; पाणी छांट ते अभिषेकनुं जळ अवसेचन न० पाणी छांट, ते (२) अवसो ४५० [अवस्यति पूरुं करवू;सिद्ध करवू (२)निश्चय करवो; समजवू (३) ऊतरवू; मुकाम करवो (४) नाश करवो (५) निष्फळ जवू; अंत आववो (६) जाणवू (७) मुक्त करवू; छोडवू (८) दृढ रहेवू; आग्रही रहे अवस्कर पुं० विष्टा (२) गुह्य भाग (३) कूडोकचरो मारवो अवस्कंद १५० हुमलो करवो (२) कूदको अवस्कंद पुं०, अवस्कंदन न० आक्रमण; हुमलो (२) ऊतरवू ते (३) लश्करनी छावणी (४) आरोप ; आक्षेप अवस्क ६ उ० [अवस्किरति-ते] खणq; खोतरवू अवस्तरण न०, अवस्तार पुं० ढांकण; आच्छादन (२) पाथर| अवस्तु न० नकामी- तुच्छ वस्तु (२) सत् न होवू ते; मिथ्यापणुं अवस्तु ९ प० [अवस्तृणाति ] पाथर (२) ढांकवु (३) व्यापवू अवस्था १ आ० [अवतिष्ठते रहेQ (२) वळगी रहेवू; अनुसर (३) जीवता रहेQ (४) स्थिर ऊभा रहेवू; थोभवू (५) अळगा थर्बु- रहे, -प्रेरक० [अवस्थापयति-ते मूकवू; राखवू; स्थापित करवू (२) स्थिर करवू; दृढ करवू; आश्वासन आपq (३) छूटुं पाडवू; जुदुं करवू अवाक् अवस्था स्त्री० स्थिति; हालत (२) परिस्थिति (३) दशा; भूमिका (४) स्वरूप; आकार (५) प्रमाण (६) स्थिरता; दृढता अवस्थाचतुष्टय न० बाल्य, कौमार, यौवन अने वार्धक्य, ए चार दशाओ अवस्थात्रय न० जागृति, स्वप्न अने सुषुप्ति, ए त्रण अवस्थाओ। अवस्थाद्वय न० जीवननी बे स्थितिओ -सुख अने दुःख अवस्थान न० रहे ते (२) रहेठाण; निवास (३) स्थिति (४) दृढता; स्थिरता (५) आधार ; टेको अवस्थित वि० रहेढुं; वसेलुं (२) दृढ ; स्थिर (३) सज्ज; तत्पर (४) स्थिर; निश्चेष्ट (५) व्यवस्थित अवस्थिति स्त्री० रहे, ते (२)निवास अवहन् २ प० मारी नाखवू नाश करवो; दूर करवू (२) झूडवू; छड अवहार पुं० चोर (२) झूड; मगरमच्छ ; ग्राह (३) युद्धविराम ; लश्करने रणमेदानमांथी खसेडी लेवं ते (४) बोलाव-निमंत्रq ते (५) थोभqअटकवू ते अवहार्य वि० लई जवा योग्य (२) दंडसजा करवा योग्य (३) पूरुं करवा योग्य (४) पाछु आपवा योग्य ; भरपाई करवा योग्य मश्करी (३) ठेकडी अवहास पुं० स्मित; हास्य (२) मजाक; अवहित वि० मूकेलं (२) एकाग्र; सावधान (३) प्रख्यात अवहेल पुं०, अवहेलन न०, अवहेलना, अवहेला स्त्री० अपमान; अनादर; तिरस्कार अवंति (-ती) स्त्री० माळवानी प्राचीन राजधानी-हाल- उज्जन अवंध्य वि० सफल; फलोत्पादक अवाक अ० नीचे (२) दक्षिण तरफ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ अविरल अविक्रिय वि० फेरफार - विक्रिया विनानुं अवाग्मुख अवाग्मुख, अवाङ्मख वि० नीचा मुखवाळु; नीचे मोए जोतुं अवाच् वि० गुं अवाच वि० जुओ 'अवांच्' अवाची स्त्री० दक्षिण दिशा (२)पाताळ अवाचीन वि० अधोमुख (२) नीच; निंद्य (३) विपरीत; प्रतिकूळ (४) दक्षिण दिशा तरफनुं अवाच्य वि० न कहेवा लायक न बोलवा लायक(२)शब्दमांन वर्णवी शकाय तेवू अवाच्य वि० दक्षिण तरफ अवाप् ५५० प्राप्त करवू ; मेळव, (२) पहोंचवू (३) सहन करवू; वेठवू अवाप्त वि० प्राप्त करेल; मेळवेल अवाप्ति स्त्री० प्राप्ति ; मेळवq ते अवार पुं० आ तरफनो किनारो अवारपार पुं० समुद्र अवारितद्वार वि० खुल्लां वारणांवाळू अवारितम् अ० विघ्न के रुकावट विना; मरजी मुजब अवांच वि० नीचे वळेलं ; नीचे नमेल (२)-थी नीचे आवेलु (३) दक्षिणअवांचित वि० नीचे नमावेलु (२) नीचे टपकतुं अवांतर वि० वच्चे- (२) समाविष्ट ; अंदर आवेलु (३) गौण (४) बाह्य ; आगंतुक दिशाओ वच्चेनो खणो अवांतरदिश, अवांतरदिशा स्त्री० बे अविकत्थन वि० बड़ाई - आत्मश्लाघा न करनारुं विसंवादी नहि तेवू अविकल वि० सकल; संपूर्ण; आखु (२) अविकल्प पुं० शंकानो अभाव (२) विकल्पनो अभाव अविकल्पम् अ० निःशंक अविकार वि० फेरफार न थाय ते, अविकार्य वि० विकार न पामे एवं; विकाररहित अविक्रम वि० पराक्रम - बळ विनानुं अविघ्न वि० हरकत-विघ्न विनानुं (२) न० विघ्ननो अभाव ; कल्याण अविचारित वि० बराबर नहि विचारलं (२) जेमां विचारवापणुं बाकी नथी तेवू - निश्चित; स्पष्ट अविचारिन् वि० विचार न करे तेवू; अविचारी; उतावळं अवितथ वि० असत्य नहि तेवू - सत्य (२) निष्फळ नहीं तेवू - सफळ अविदग्ध वि० कुशळ नहि तेवू; बिनअनुभवी; मूर्ख अविदूषक वि० निर्दोष अविद्य वि० विद्या वगरनु; अज्ञानी अविद्या स्त्री० अज्ञान (२) ईश्वर संबंधी अज्ञान - माया पोकार अविधा अ० 'धाजो' एवो मदद माटेनो अविधेय वि० अनियंत्रित; प्रतिकूळ; काबूमां न राखी शकाय तेवू अविनय पुं० अविवेक ; असभ्यता (२) दुर्वर्तन ; उद्धताई (३) अभिमान (४) दोष ; अपराध अविनाभाव पुं० एकबीजा विना रही के होई न शके तेवो भाव के लक्षण अविनीत वि० अशिक्षित; असंस्कारी (२)असभ्य ; अविनयी (३) उद्धत अविभक्त वि० संयुक्त; भागला नहीं पडेलु (२) अखंड; एकरूप (३)भिन्न नहि तेवू अविभाव्य वि० नजरे न देखी शकाय तेवं अविमृष्य वि० शंका वगरनुं; निश्चित अविरत वि० न अटकेलं; सतत चालु रहेतुं ; अखंड अविरतम् अ० सतत; निरंतर (२) गाढपणे; अखंडितपणे (ऊंघ) अविरल वि० जाडु; घट्ट(२)सतत चालतुं (३) नजीकच्; पासे, (४) स्थूळ; मोटुं Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अविरलम् अविरलम् अ० गाढपणे ( २ ) सतत ; निरंतर [ नहि तेवुं अविरहित वि० छूटुं न पडेलुं; - विनानु अविरामम् अ० सतत ; निरंतर अविलक्ष्य वि० निष्कपट; बहाना विनानुं (२) उद्देश विनानुं ( ३ ) लक्ष विनानुं (४) उपाय - प्रतीकार विनानुं अविलंबितम् अ० उतावळे; जलदीथी अविवेक वि० विवेक - विचार विनानुं (२) पुं० अविचारीपणु; उतावळियापणुं; साहस ( ३ ) जुदुं न पाडवुं ते अविशेष वि० समान; तुल्य (२) पुं०, न० समानता ( ३ ) ऐक्य तादात्म्य अविशेषज्ञ वि० भेद नहि जाणनारुं ; विवेक नहि करनाएं [विना अविशेषतः अ० भेद पाडया के समज्या अविश्रान्त वि० विश्रांति माटे थोभ्या विनानुं न अटकेलुं अविश्रान्तम् अ० सतत अविषक्त वि० लागेलुं - वळगेलुं नहि वुं (२) नियंत्रित नहि तेवुं अविषय वि० अगोचर; अदृश्य ( २ ) विषयो तरफ न वळेलुं - न वळगेलुं (३) पुं० अभाव न देखावुं ते ( ४ ) गोचर न होवु ते; थी पर होवु ते ( ५ ) इंद्रियोना विषयो तरफ उपेक्षा अविषह्य वि० सहन न करी शकाय तेवुं (२) बीजाओथी पराभव न पामे तेवुं दुर्धर्ष ( ३ ) निश्चय न करी शकाय तेवुं ( ४ ) अगोचर अविष्कर पुं० कूकडो अविसंवादिन् वि० बराबर मळतुं आवतुं (२) जूठ न पडतुं अति वि० विरोध के रुकावट विनानुं अविहा अ० अरेरे! [ निषिद्ध अविहित वि० शास्त्रोक्त नहि तेवुं ; अवी स्त्री० रजस्वला स्त्री अवीचि वि० मोजां विनान् ५३ अव्यलीक अवृत्ति वि० निर्वाहना साधन विनातुं ( २ ) अविद्यमान ( ३ ) स्त्री० निर्वाहना साधननो अभाव ( ४ ) वेतन अथवा मजूरीनो अभाव अवे ( अव + इ ) २ प ० जाणवुं; समजवु अवेक्ष १ आ० जोवुं; तपासवुं (२) लक्षमां लेवु; नजर समक्ष राखवु ( ३ ) संभाळ राखवी; रक्षण करवुं (४) विचारखुं (५) आशा राखवी अवेक्षण न० जोवुं ते (२) तपास; देखरेख ; काळजी अवेद्य वि० न जाणी शकाय तेवु; गूढ ( २ ) न प्राप्त करी शकाय तेवुं अवेलम् अ० समय विना; कसमये अवैध वि० शास्त्रमान्य नहि तेवुं ; विधि - कानून मुजबनुं नहि तेनुं अव्यक्त वि० अस्पष्ट ; अप्रगट ( २ ) अदृश्य; अगोचर ( ३ ) न० परब्रह्म (४) अज्ञान ; अविद्या ( ५ ) सूक्ष्म शरीर ( ६ ) मूळ प्रकृति ( सांख्य ० ) अव्यक्तम् अ० अस्पष्टपणे अव्यग्र वि० व्यग्र नहि तेवुं ; स्वस्थ ; शांत (२) कामकाजमां के धंधामां नहि लागेलुं ( ३ ) निःस्पृह; उदासीन (४) लक्ष - काळजीवाळं अव्यग्रम् अ० स्वस्थताथी; आरामथी अव्यभिचार पुं० नित्य साहचर्य ( २ ) एकनिष्ठा; वफादारी अव्यभिचारिन् वि० अनुकूळ (२) सद्गुणी पवित्र; नीतिमान ( ३ ) एकनिष्ठ; वफादार ( ४ ) बधी वखते एकसरखुं; अपवाद रहित अव्यय वि० न बदलाय एवं; शाश्वत; अविनाशी (२) न खरचेलुं ( ३ ) करकसरवाळु (४) अविनाशी फळ आपनाएं (५) न० सर्व जाति, वचन अने विभक्तिमान बदलानार शब्द ( व्या० ) अव्यलीक वि० सत्य (२) प्रिय; अनुकूळ Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अव्यवधान अव्यवधान वि० समीपर्नु; पासे- (२) खल्ल (३) असावध ; बेदरकार अव्यवसायिन् वि० उद्यम रहित (२) अनिश्चयी अव्यवस्थ, अव्यवस्थित वि० चंचळ ; अस्थिर(२)व्यवस्था वगरन अनियमित (३) कायदो के व्यवहारने न अनुसरतुं अव्यवहित वि० लगोलगर्नु; तद्दन पासेनुं अव्याकृत वि० प्रगट नहि थयेलं;अव्यक्त (२) समजमां न आवे तेवू ; अतयं अव्याज वि० निष्कपट ; कृत्रिम नहि तेवं; स्वाभाविक (२) पुं०, न० स्वाभाविकता; अकृत्रिमता अव्यापार वि० काममां न रोकायेलं; काम विनानुं (२) पुं० कामकाज न होवू ते (३) पोतानुं काम नहि ते अव्याहत वि० जेनो भंग - विरोध के रुकावट न करातां होय तेवू;जेनुं पालन थतुं होय तेवू अव्युत्पन्न वि० अकुशळ; अप्रवीण; अनुभव विनानुं (२) व्युत्पत्तिथी' सिद्ध नहि थयेलु (व्या०) अश् ५ आ० व्यापq (२)पहोंचवू (३) मेळवq; भोगवq; अनुभव (४) एकळु थकुं भोगवq अश् ९५० (कदीक आ०) खावु (२) अशक्त वि० असमर्थ ; अशक्तिमान अशक्ति स्त्री० निर्बळता; नबळाई अशक्य वि० शक्य नहि तेवू ; असंभव अशन न० व्यापq ते (२) खावू ते; भोगवतुं ते (३) अन्न इच्छा अशना, अशनाया स्त्री० भूख ; खावानी अशनि पुं०, स्त्री० इंद्रनुं वज्र (२) वीजळी (३) अस्त्र अशब्द वि० शब्दमां प्रगट नहि करेलु (२) शास्त्रमा नहीं दर्शावायेलं (३) पुं० निंदा; गाळ आश्रयरहित अशरण, अशरण्य वि० निराधार; अश्मसार अशरीर वि० शरीर रहित; अमूर्त (२)पुं० परमात्मा (३) कामदेव अशरीरिन् वि० शरीर विनानु (२) दैवी; शरीरधारी वडे न बोलातुं अशर्मन् वि० दुःखी (२) न० दुःख । अशंक, अशंकित वि० निर्भय (२) शंकारहित नीतिविरुद्ध अशास्त्रीय वि० शास्त्रविरुद्ध (२) अशित ('अश्' न भू० कृ०) वि० खाधेलु (२) भोगवेलं अशिव वि० अशुभ; अकल्याणकारी (२) कमनसीब (३) उग्र (४)न० दुर्भाग्य अशिशिर वि० ठंडु नहि तेवं - गरम अशिष्ट वि० असंस्कारी; ग्राम्य (२) शास्त्रमा नहि उपदेशेलं ; शास्त्रविहित नहीं एवं [अपवित्र अशुचि वि० स्वच्छ नहि तेवु; गंदूं; अशुद्ध वि० अपवित्र (२) खोटुं; भूलवाळू अशुभ वि० अमंगळ; अपशुकनियाळ (२) पापी (३) कमनसीब (४) न० पाप; शरमभरेलु कृत्य (५) कमनसीबी अशून्य वि० खाली नहि तेवं (२) सूनुं नहि तेवं तमाम अशेष वि० शेष विनानु; संपूर्ण; पूरेपूरुं; अशेषतः, अशेषम्, अशेषेण अ० पूरेपूरु होय तेम ; कई पण बाकी न रहे तेम अशोक वि० शोकरहित (२)पुं० लाल पुष्पवाळं एक वृक्ष (३) सुख अशोच्य वि० शोक नहि करवा योग्य अशोभन न० दोष; अपराध ; भूल अशौच न० अपवित्रता ; अशुद्धि ; गंदकी (२) सूतक अशौंडीर्य न० कायरता; असामर्थ्य (२) स्वाभिमाननो अभाव अश्मन् पुं० शिला; पथ्थर (२) चकमक अश्मवर्ष पुं० करानो वरसाद अश्मसार वि० लोढा के पथ्थर जेवू (२) पुं०, न० लोढुं (३) करवत Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अश्मंतक अश्मंतक पुं० एक वृक्ष (अम्लोटक, कोविदारक इ०) (२) एक घास अश्र पुं० खूणो (मोटे भागे समासने छेडे) (२) न० आंसु (३) लोही अश्रद्दधान वि० श्रद्धा न करतुं अश्रद्धा स्त्री० अविश्वास; अनास्था अश्रद्धेय वि० विश्वास न करवा योग्य अश्राव्य वि० न सांभळवा लायक; न सांभळी शकाय तेवू अधांत वि० नहि थाकेलं (२) अ० थाक्या विना; सतत अश्रि, अश्री स्त्री० खणो (घर के ओरडानो) (२) धारवाळी बाजु (शस्त्र इ० नी) अश्री स्त्री० दुर्भाग्यनी देवी अश्रीक वि० दुर्भागी; समृद्ध नहि तेवू अश्रीमत् वि० दुर्भागी; कमनसीब अधील वि० जुओ 'अश्रीक' अश्र न० आंसू अश्रुत वि० नहि सांभळेलु (२) वेदथी विरुद्धy (३) शास्त्र नहीं भणेलं; अशिक्षित [असभ्य ; ग्राम्य अश्लील वि० बीभत्स; नठारु (२) अश्व पुं० घोडो अश्वतर पुं० खच्चर अश्वतरी स्त्री० खच्चरी अश्वत्थ पुं० पीपळानुं वृक्ष • अश्वपाल पुं० घोड़ानो खासदार अश्वमुख पुं० किन्नर अश्वमुखी स्त्री० किन्नरी अश्वमेध पुं० एक यज्ञ, जेमां दिग्विजय करी आवेलो घोडो होमवामां आवे छे अश्वशाला स्त्री० घोडानो तबेलो अश्वसाद, अश्वसादिन् पुं० घोडेसवार सैनिक अश्वस्तन, अश्वस्तनिक वि० कालन नहि -आज- (२) कालने माटे संघरो न करनारं अष्टमूर्ति अश्वहृदय न० अश्वविद्या अश्वा स्त्री० घोडी टुकडी अश्वारोहणीय न हयदळ;घोडेसवारोनी अश्विनीकुमारी, अश्विनौ पुं० (द्विवचन) देवोना वैद्य गणाता बे देवो अषाढ पुं० असाड महिनो अष्टक वि० आठ भागनुं बनेलं (२) न० ऋग्वेदना आठ भागमांनो दरेक (३) आठनो कोई पण समुदाय अष्टधा अ० आठ प्रकारे अष्टधातु पुं० आठ धातुओ (सोनुं, रू', तांबु, कथीर, पीतळ, सीसुं, लोढुं, पारो) अष्टन् वि० आठ अष्टपद पुं० करोळियो (२) शरभ नामनुं आठ पगवाळू एक कल्पित प्राणी (३) कैलास पर्वत (कुबेरनुं धाम) (४) पुं०, न० सोगठांबाजीनो पट अष्टभुजा स्त्री० महालक्ष्मीदेवी अष्टभोगाः पुं० (ब० व०) आठ भोगो (अन्न, उदक, तांबुल, पुष्प, चंदन, वसन, शय्या, अलंकार) अष्टम वि० आठमुं अष्टमहासिद्धयः स्त्री० (ब० व०) आठ सिद्धिओ (अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशिता, वशिता) अष्टमंगल पं० चार पग, कपाळ, छाती खांध, तथा पूंछडी जेनां धोळां होय तेवो घोडो अष्टमी स्त्री० आठमी तिथि ; आठम (२) न० राज्याभिषेक वखतनी आठ शुकनियाळ वस्तुओनो समूह : सिंह, वृषभ, गज, कलश, पंखो, निशान, वाद्य, दीप (३) शुकनियाळ गणाती आठ वस्तुओ (ब्राह्मण, अग्नि, गाय, सुवर्ण, घृत, सूर्य, जळ, राजा) अष्टमूर्ति पुं० शंकर (पृथ्वी, जळ, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्र, ऋत्विज - एवां आठ रूपवाळा) Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टरसाः अष्टरसाः पुं० ब० व० श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत - ए आठ रसो अष्टविवाहाः पुं० ब० व० ब्राह्म, दैव, आर्ष, गांधर्व, राक्षस, प्राजापत्य, आसुर अने पैशाच - ए आठ विवाहो अष्टसिद्धयः स्त्री० ब०व० जुओ 'अष्टमहासिद्धयः ' अष्टाध्यायी स्त्री० पाणिनी - रचित व्याकरण (आठ अध्यायवाऴु) अष्टापद पुं० जुओ 'अष्टपद' पुं० (२) पुं० न० सुवर्ण अष्टावक पुं० एक ऋषि ( तेमनां आठ अंग वांकां हतां तेथी) अष्टांग वि० आठ अंगवाळु (२) न० शरीरनां आठ अंग - बे हाथ, बे पग, बे ढींचण, छाती तथा कपाळ ( के वाचा तथा मन ), अथवा हाथ, पग, ढींचण, छाती, माथु, मन, वाणी अने दृष्टि – जेमना वड़े दंडवत् प्रणाम करवामां आवे छे ते अष्टि, अष्ठि स्त्री० बीज ( २ ) ठळियो अस् २ प० थ; होवुं (२) ४५० फेंकवु ( ३ ) दूर हांकी काढवुं ( ४ ) डरावी काढवु (५) तजवुं; छोडवु (६) १ उ० जवुं (७) ग्रहण करवुं (८) प्रकाशवु, दीपवु असकृत् अ० वारंवार असक्त वि० आसक्ति के संग विनानुं (२) फलेच्छारहित असक्तम् अ० आसक्ति विना ( २ ) तरत ज ( ३ ) सतत रुकावट विना असक्ति स्त्री० अनासक्ति; संगरहितता असच्चेष्टित न० नुकसान; पीड़ा; दुःख असत् वि० अस्तित्वमां न होय तेवुं (२) असत्य ( ३ ) दुष्ट; खराब (४) अव्यक्त; अप्रगट ( ५ ) कशुं परिणाम लावी न शके ते ५६ असहाय असती स्त्री० व्यभिचारिणी स्त्री असत्कृत वि० अपमान करायेलुं असत्ता स्त्री० अस्तित्वनो अभाव ( २ ) असत्यता (३) दुष्टता; दुराचरण असत्य वि० खोटं ठं ( २ ) काल्पनिक ; अवास्तविक (३) जेनुं परिणाम निश्चित नथी बुं असदृश वि० ० असमान (२) अनुचित असग्रह, असद्ग्राह पुं० बालिश इच्छा (२) खराब अभिप्राय ; पूर्वग्रह असद्भाव पुं० न होवुं ते; अभाव ( २ ) दुष्ट के खराब अभिप्राय (३) खराब स्वभाव असद्वृत्ति वि० दुष्ट वृत्तिवाळु; दुष्ट विचारवाळु (२) स्त्री० खराब धंधो ; हलको धंधो ( ३ ) दुष्टता असन् न० लोही (बीजी विभक्ति बहुवचन पछी 'असृज् ' नां रूपोमां ज ) असम वि० समान नहि तेवं; असमान (२) बेकी (संख्या) (३) अजोड (४) खाडा करावाळु [ आगंतुक असमवायिन् वि० जुदुं पाडी शकाय तेवु; असमंजस वि० अस्पष्ट समजी न शकाय तेवुं ( २ ) अनुचित; अयोग्य (३) मूर्खाईभ रेल असमीक्ष्य अ० वगर विचायें असमीक्ष्यकारिन् वि० वगर विचार्यं काम करना असमेल वि० न आवेलुं; गेरहाजर असम्यंच वि० ठीक नहि तेवुं; अघटित ( २ ) अपूर्ण अधूरुं असह, असहन वि० असहिष्णु; अधी ( २ ) सहन न करी शके तेनुं (३) ऊंचकी न शके ते असहन पुं० शत्रु (२) न० असहिष्णुता असहनीय वि० जुओ 'असह्य' असहाय वि० मित्र के साथी विनानुं; एकलुं मददगार विनानुं Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असहिष्णु असांप्रत असहिष्णु वि० सहन न करे तेवू (२) असंभृत वि० अकृत्रिम; स्वाभाविक (२) द्वेषी; ईर्ष्याळु शक्य नहीं तेवू सारी रीते नहि पोषेलं असह्य वि० सहन न थई शके तेवू (२) असंभ्रम पुं० क्षोभ के गभराटनो अभाव; असंख्य, असंख्यात, असंख्यय वि० शांति ; स्थिरता अगणित ; गणी न शकाय तेवू असंमत वि० परवानगी न होय तेवू (२) असंग वि० संसारमा आसक्ति विनानु न गमतुं (३) जुदा अभिप्रायवाळं (४) (२) अकुंठित; बाधारहित; (३) पुं० शत्रु लेना; चोर संग – संबंध रहित; एकलुं असमतादायिन् वि० परवानगी वगर असंगत वि० न जोडायेलु; असंबद्ध (२) असंमूढ वि० मोहरहित; भ्रांतिरहित मेळ न खाय तेवू; असमान(३)अनुचित; ___ असंमोह पुं० मोहनो अभाव (२) यथार्थ अशिष्ट (४) बाधारहित; अकुंठित । ज्ञान असंगति स्त्री० संगत - सोबत- मेळनो असंयत वि० संयमरहित (२) बंधनमुक्त अभाव (२) असंभव असंरंभ पुं० निर्भयता असंज्ञ वि० मूच्छित ; बेभान असंशय वि० संशय विनानु; संदेह वगरनुं असंज्ञा स्त्री० मतभेद; विवाद असंशयम् अ० निःशंक रीते; नक्की असंदिग्ध वि० संदेहरहित; निश्चित असंस्कृत वि० संस्कार नहि पामेलं; असंनद्ध वि० शस्त्रसज्ज नहि थयेल (२) प्राकृत (२) शुद्ध नहि करायेलं पोते पंडित छे एम माननाएं असंस्तुत वि० अपरिचित; अजाण्यं (२) असंनिधान न०, असंनिधि पुं० दूर विसंवादी; प्रतिकळ । होवापणुं (२) अभाव असंस्थित वि० अव्यवस्थित;अनियमित असंनिवृत्ति स्त्री० फरी पार्छ न फरवू (२) स्थिर नहि तेवू; चंचळ । ते; कायम माटे जq ते असाधन वि० साधन वगरनुं (२) न० असंपात पुं० निष्क्रियता; कामकाज सिद्ध न करवू ते बंध करवं ते वगरनुं असाधनीय वि० सिद्ध न करी शकाय असंबद्ध वि० संबंध वगरनुं (२) अर्थ तेवू (२) उपचार न थई शके तेवू असंबाध वि० भीड वगरनु (२) खुल्लं; असाधारण वि० असामान्य ; खास; अवर जवर थई शके तेवू (३) पीडा अनोखं (२) सहियारं नहि तेवू; आगवू विनानुं असाधु वि० सारं नहि तेवू; न गमे तेवू असंभव वि० अशक्य ; असंभवित (२) (२) दुष्ट ; दुराचारी पुं० अशक्यता (३)अस्तित्व न होवू ते असाध्य वि० जुओ 'असाधनीय' असंभावना स्त्री० असंभव (२)कल्पवानी। असामयिक वि० कसमयनु; कवेळानुं मुश्केली के अशक्यता (३) अनादर असामंजस्य न० अघटितता; अनुचितता असंभावनीय वि० असंभवित (२) कल्पी असामान्य वि० असाधारण ; विशेष ; न शकाय तेवं खास; अनोखं असंभावित वि० -ने लायक नहि तेवू असार वि० सार वगरनु; निःसत्त्व(२) असंभाव्य वि० जुओ 'असंभावनीय' निरर्थक (३) तुच्छ (४) अशक्त; असंभूति स्त्री० उत्पत्तिनो अभाव (२) निर्वळ (५) गरीब ; दरिद्र विनाश (३) फरी न जन्मवू ते । असांप्रत वि० अयोग्य; अघटित Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असि ५८ अस्त्रमंत्र असि पुं० तरवार असूर्य वि० सूर्य वगरन;प्रकाश वगरनुं असित वि० धोळं नहि तेवू - काळू (२) असूर्यपश्या स्त्री० सूर्यने पण न जोती पुं० काळो रंग (३) कृष्णपक्ष -- पतिव्रता स्त्री (२) राजानी स्त्री असितगिरि पुं० ए नामनो पर्वत असृक्पात पुं० रक्तपात असितग्रीव पुं० अग्नि (२) मोर असग्धारा स्त्री० लोहीनी धारा असितपक्ष पुं० कृष्णपक्ष छोड़ असृज् न० लोहीन दीधेलं असिता स्त्री० यमुना नदी (२) गळीनो असृष्ट वि० न सर्जेलं (२) न तजेल (३) असिद्ध वि० सिद्ध नहि थयेलु (२) असौष्ठव वि० सुन्दरता वगरनु; कदरूपुं अपरिपक्व; काचु (३) अपूर्ण अस्खलित वि० अडग; स्थिर (२) असिद्धि स्त्री० सिद्ध - साबित न थर्बु रुकावट - भंग विनानुं (३) सुरक्षित ; ते (२) अपूर्णता; निष्फळता (३) सहीसलामत(४)स्खलन - भूल विनानुं अपरिपक्वता अस्त (अस् 'नुं भू० कृ०) वि० फेंकेलं ; असिधारावत न० तलवारनी धार उपर मोकलेलं (२) समाप्त थयेलं ऊभा रहेवानुं व्रत (अति कठिन व्रत) अस्त पुं० जुओ 'अस्ताचल' (२) सूर्याअसिपत्र वि० तलवारनी धार जेवां स्त (३) पडती; अवनति पांदडांवाळं (२) पुं० शेरडी (३) एक अस्तगमन न० सूर्यन आथमवू ते नरकनुं नाम (४) न० तलवार- म्यान अस्तमन न० सूर्यास्त थवो ते असु पुं० श्वास ; प्राण (२) (ब० व०) अस्तमय पुं० सूर्यास्त (२)अस्त ; पडती; पांच प्राण (प्राण, अपान इ०) नाश (३) ढांकी देवू ते असुख वि० दुःखी; दिलगीर (२) अस्ताचल पुं० पश्चिम तरफनो एक कठिन ; दुर्लभ (३)न० बेचेनी; दुःख कल्पित पर्वत, जेनी पाछळ सूर्य असुर वि० अलौकिक; दैवी आथमतो मनाय छे असुर पुं० दैत्य (२) पिशाच अस्ति अ० हयाती अने स्थिति बतावे असुरगुरु पुं० दैत्योना गुरु - शुक्राचार्य (२) कथा के वार्ताना आरंभे वधाराना असुररिपु, असुरसूदन पुं० विष्णु । शब्द तरीके आवे असुराचार्य पु० असुरोना गुरु-शुक्राचार्य अस्तित्व न होवू ते; हयाती असुराधिप पुं० दैत्योनो राजा-बलि । अस्तु अ० 'हो''थाओ' 'भले', 'खेर'असुरारि पुं० असुरनो शत्रु; देव (२) एवा अर्थोमां वपराय(२)अनुज्ञा, पीडा, इन्द्र (३) विष्णु भगवान तिरस्कार, असूया, प्रकर्ष, अंगीकार, असुरेंद्र पुं० असुरोनो राजा-बलि प्रशंसा, लक्षण, असूयापूर्वक अंगीकार असुर्य वि० असुरोनुं - ए अर्थो बतावे असुसम वि० प्राणप्रिय; प्रेमी अस्तेय न० चोरी न करवी ते असुहृद् पुं० शत्रु अस्तोक वि० थोडु नहि तेवू असूति स्त्री० वंध्यत्व; न जन्मवू ते ।। अस्तोदयौ पुं० द्वि० व० चडती अने असूयक वि० ईर्ष्याळ; द्वेषी (२) असंतुष्ट; पडती; अस्त अने उदय नाखुश अस्त्र न० फेंकवानुं हथियार (२)कोई पण असूया स्त्री० ईर्ष्या; द्वेष (२) बीजाना हथियार खिंचतां भणवानो मंत्र गुणमां दोष जोवा ते (३) क्रोध अस्त्रमंत्र ० अस्त्र फेंकतां के पाछु Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्त्रलाघव अस्त्रलाघव न० अस्त्र फेंकवानी कुशळता अस्त्रागार न० हथियारखानु अस्थन् न० हाडकुं अस्थाग, अस्थाध वि० अथाग ; घणुं ऊंडु अस्थान न० खराब स्थान; खोटु स्थान (२) अयोग्य स्थळ, विषय के प्रसंग अस्थाने अ० अयोग्य स्थाने-प्रसंगे अस्थि न० हाडकु (२) फळनी अंदरनो ठळियो अस्थिति वि० स्थिर नहि तेवू (२) निश्चित मर्यादा विनानु (२) स्त्री० स्थिरतानो के मर्यादानो अभाव अस्थिपंजर पु० हाडपिंजर अस्थिर वि० स्थिर नहीं तेवू; चंचळ (२) अनिश्चित ; शंकास्पद अस्थिसंभव पुं० मज्जा अस्नेह वि० तेल के चीकट विनानुं (२) स्नेह विनानुं अस्पर्शन न० न अडकव ते अस्पंद वि० हलन-चलन विनानुं अस्पृश्य वि० स्पर्श न थई शके तेवू अस्पृह वि० स्पृहा विनानु; नि:स्पृह अस्फट वि० अस्पष्ट अस्पद स० ना० हुँ' नां रूप जेनां बने छे ते मूळ (२) तेनुं पांचमी विभक्ति एकवचन रूप अस्मदीय वि० अमारं; आपणं अस्मि अ० 'हुँ' (एवा अर्थमां वपराय छे) अस्मिता स्त्री० अहंता अस्त्र पुं० खूणो (२) न० आंसु (३) लोही अस्त्रप पुं० राक्षस अस्नु न० अश्रु; आंसु अस्व वि० धनहीन; गरीब (२) पोतानु नहि तेवं - पारकुं अस्वप्न वि० जागतुं; निद्रारहित (२) पुं० देव (३) निद्रारहितता अस्वर्य वि० स्वर्गप्राप्ति न करावे तेवं अस्वस्थ वि० बेचेन ; मांदु अहःपति अस्वास्थ्य न० व्याधि; रोग (२) अस्वस्थता; बेचेनी अह १ आ० [अंहते ], १० उ० [अंहयति-ते) जq (२) प्रकाशवु (३) ५ प० व्यापवू (४) कहे ; जणाव (मात्र नीचेनां पांच ज रूपो.मळे छ - आत्थ, आहथुः, आह, आहतुः, आहुः) अह अ० स्तुति, निश्चय, वियोग, निषेध, दूर करवू, मोकलवू, रूढिथी विरुद्ध वर्तत्रु - अशिष्टाचार इ० अर्थो दर्शावे अहत वि० नहि घवायेलं; नहि हणायेलं (२) धोया वगरनु ; नवं; कोरं अहन न० दिवस; दिवसनो समय (२) दहाडो (रात अने दिवस बंने मळीने) (३) आकाश (समासना आरंभे 'अहन्'ने बदले - 'अहस्' के 'अहर्' अने समासने अंते 'अहः' 'अहम् ' के 'अह्न' थाय छे) एकवचन) अहम् स० ना० हुँ' ('अस्मद्' - प्रथमा अहमहमिका स्त्री० स्पर्धा; चडसाचडसी अहरहः अ० दिवसे दिवसे अहरागम पुं० दिवसनु आवq ते अहर्निश न० दिवस अने रात; एक आखो दहाडो अहर्पति पुं० सूर्य अहल्या स्त्री० गौतमऋषिनी पत्नी अहस्कर, अहस्पति पुं० सूर्य । अहह, अहहा अ० खेद, दुःख, थाक, आश्चर्य, संबोधन, दया, वगेरे दर्शावे (२) अरेरे! अहोहो! अहंकार पुं० अभिमान ; गर्व अहंकारिन् वि० अभिमानी ; गविष्ठ अहंकृत् वि० 'हुं कर्ता छु' एवा अहंकारवाळु (२) गर्विष्ठ ; अभिमानी अहंपूर्विका, अहंप्रथमिका स्त्री० प्रथम __ आववानी इच्छा; हरीफाई। अहंभाव पुं०, अहंमति स्त्री० अभिमान अहःपति पुं० सूर्य Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहःशेष अहःशेष पुं०, न० सायंकाळ अहार्य वि० न लई लेवा योग्य (२) मेळवी न लेवाय तेवू - वफादार अहि पुं० साप (२)वृत्रासुर (३) मेघ अहित वि० नहि मुकायेलं (२) अयोग्य (३) अपथ्य ; नुकसानकारक (४) प्रतिकूल ; शत्रुता धरावनाएं (५) पुं० शत्रु (६) न० नुकसान; हानि अहिQह अहिद्विष पुं० गरुड (२) नोळियो । (३) मोर (४) कृष्ण (५) इन्द्र अहिनिर्मोक पुं० सापनी कांचळी अहिपति पुं० शेषनाग (२)वासुकि नाग अहिफेन पु०, न० अफीण अहिम वि० उष्ण ; गरम आहमकर, अहिमकिरण, अहिमतेजस्, अहिमधामन्, अहिमरुचि, अहिमांशु पुं० सूर्य (उष्ण किरणोवाळो) अहिंसा स्त्री० कोईने मारवं नहि ते (२) मन, वाणी के कर्मथी कोईने दुःख न देवं ते तेवं अहिंस्र वि० अहिंसक; कोईने दुःख न दे अहीन वि० आखं ; संपूर्ण (२) ऊतरतुं नहि तेवू (३) - विनानुं नहि तेवू अहीर पुं० गोवाळ; गोप होमेलं अहुत वि० नहि होमायेलं (२) खोटी रीते अहेतुक, अहैतुक वि० हेतु विनान; अकारण आपमेळे अहैतुकम् अ० बीजानी मदद विना; . अहो अ० शोक, धिक्कार, विषाद, दया, संबोवन, विस्मय, प्रशंसा, वितर्क, असूया वगेरे दर्शावे (२) पादपूरक तरीके वपरायबळनी प्रशंसा अहोपुरुषिका स्त्री० आपवडाई;पोताना अहो बत अ० संबोधन, दया के थाक बतावे अहोरात्र पुं०, न० दिवस अने रात अह्नाय अ० जलदी; एकदम; सत्वर अह्रीक वि० शरम वगरन ; निर्लज्ज अंग अंक १० उ० आंकवं; निशानी करवी (२) लांछन लगाडवू अंक पुं० आंको; चिह्न (२) संख्याचिह्न; आंकडो (३) डाघो; कलंक (४) खोळो (५) नाटकनो विभाग (६) वांको आंकडो के ओजार (७) बाजु; पडखं; सामीप्य (८) वांक; वळांक (९) स्थळ ; स्थान अंकगत वि० जुओ 'अंकागत' अंकन न० निशानी; निशानी करवी ते (२) निशानी करवानं साधन अंकपरिवर्त पुं० खोळामां आळोटq ते; गाढ आलिंगन धात्री; आया अंकपालि (-लो) स्त्री० आलिंगन (२) अंकभाज वि० खोळामां लीधेलं के केडे तेडेलु (२) हाथमां आवे तेवू; जलदी मळे तेवू अंकमुख न० अंकना जे भागमां वस्तुन बीज तथा अंत निरूपायां होय ते (नाट्य०) अंकागत वि० खोळामां-हाथमां आवी पडेलु; प्राप्त थयेलं अंकित वि० निशानी अथवा छापवाळं (२) गणवामां आवेलु अंकुर पुं०, न० फगगो (२)थोडं खीलेलं फूल (३) समासमा 'अणिया' अर्थमां; (उदा० नखाङ्कुर)(४) संतति-वंशज (उदा० कुलांकुर) अंकुरित वि० फणगा फूटया होय तेवू अंकुश पुं०,न० हाथीने हांकवानुं लोढार्नु साधन (२) काबू ; दाब; नियमन अंकर पु० जुओं 'अंकुर' अंकरित वि० जुओ 'अंकुरित' अंकूष पुं० जुओ 'अंकुश' अंकोट, अंकोठ, अंकोल पुं० एक छोड (२) अखरोट अंग अ० 'ठीक', 'वार', 'खरेखर' (२) 'किम् ' नी साथे केटल बधु वधारे' Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - के 'केटलुं बधुं ओर्छ' अर्थमां वपराय छ अंग न० शरीर (२) शरीरनो अवयव (३)एक आखी वस्तुनो भाग;विभाग; खातुं (४) उपाय (५)मुख्य वस्तुनो गौण भाग (६) प्रत्यय लागे ते पूर्व- शब्दनु रूप (व्या०) अंगक न० शरीर (२) अवयव अंगज वि० शरीरमां अथवा शरीर उपर उत्पन्न थयेलु; शरीर-; शरीरमांनुं (२) पुं० पुत्र (३) कामदेव (४) केश ; वाळ (५) रोग (६) न० लोही (७) केश; बाळ अंगजा स्त्री० पुत्री अंगण न० आंगणु अंगद पुं० वालिना पुत्रनं नाम (२) न० हाथ- घरेणुं; का अंगन न० जुओ 'अंगण' अंगना स्त्री० स्त्री (२) सुन्दर स्त्री अंगप्रत्यंग न० नानो मोटो प्रत्येक अवयव अंगभंग पुं० पक्षाघात; लकवो (२) (ऊंघमाथी ऊठया पछी करे छे तेम) अंगोने लांबां पहोळां करवां ते । अंगभू पुं० छोकरो (२) कामदेव अंगरक्षक पुं० अंगनी रक्षा करनार खास सैनिक अंगरक्षणी स्त्री० बख्तर अंगराग पुं० शरीरे सुगंधीदार वस्तु ओनो लेप करवो ते (२) सुगंधी लेप अंगरह न० वाळ; केश अंगविक्षेप, अंगहार पुं० भावने व्यक्त करवा शरीरना अवयवोनी चेष्टा (२) एक जात, नृत्य अंगहारि पुं० अंगचेष्टा (२) नृत्य माटेनो मंच अंगार पुं०, न० कोलसो (सळगेलो के 'न सळगेलो) (२) मंगळनो ग्रह अंगारक पुं०, न० सळगतो कोलसो अंजन (२) मंगळनो ग्रह (३) मंगळवार (४) न० अग्निनो तणखो अंगारकमणि पुं० प्रवाळ; परवाळू अंगांगिभाव पुं० गौण अने मुख्यनो संबंध अंगिन् वि० शरीरवाळू; मूर्तिमंत (२) जेने गौण विभागो छे तेवू – मुख्य अंगीकरण न०, अंगीकार पुं० स्वीकार अंगीकृ ८ उ० अंगीकार करवं स्वीकारवं अंगुल पुं० आंगळी (२) अंगूठो (३) एक आंगळनुं माप अंगुलि स्त्री० आंगळी (२)अंगूठो (३) ___ हाथीनी सूंढनो अग्रभाग (४) एक आंगळy माप अंगुलिका स्त्री० आंगळी अंगुलिमुद्रा स्त्री० महोर करवानी - सील करवानी वीटी अंगुली स्त्री० जुओ 'अंगुलि' अंगलीक, अंगुलीय, अंगुलीयक न० आंगळीनी वीटी अंगुष्ठ पुं० अंगूठो (२)अंगूठा माप अंघस् न० पाप अंघ्रि पुं० पग (२) वृक्षनुं मूळ अंघ्रिप पुं० वृक्ष अंच १ उ० जQ (२) वळवू; वाळवू (३) पूजवू; सत्कारवू (४) पामवं (५) १० उ० प्रगट कर, अंचल पुं०, न० वस्त्रनो छेडो; कोर (२) खणो (जेमके आंखनो) अंचित वि० वळेलु; वाळेलु (२) वांकडियु; सुंदर (जेम के भमर) (३) सन्मानेलं; पूजेलं (४) सुशोभित करेल; गूंथेलु (५) गयेलं अंज ७ उ० आंजर्बु (२) जवू; जई पहोंचर्चा (३) दर्शावq; प्रगट करवू (४) शोभq; प्रकाशq (५) संमानवू (६) शणगारवं अंजन न० आंजवं ते; लेप करवो ते (२) आंजण ; मेश (३) शाही (४) पुं० आठ दिग्गजोमांनो एक Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतराराम (३)वस्तुताए (४)अंदर (५) अंतिम रीते ('मुख्यतः' -थी ऊलटु)(६)अंशतः अंतपरिच्छद पुं० ढांकवानुं वासण । अंतपाल पुं० सरहदनुं रक्षण करनार (२) द्वारपाळ अंजनशलाका अंजनशलाका स्त्री० आंजवानी सळी अंजना स्त्री० हनुमाननी माता अंजलि पुं० खोबो; पुष्प के जळथी भरेलो खोबो (२) आदर के नमस्कार दर्शाववा हाथ जोडवा ते अंजसा अ० सीधेसीy (२) वास्तविक रीते; खरेखर (३) जलदी अंड पुं०, न० इंडं (२) वृषण (३) पेळनी कोथळी (४) मगनी नाभिमांनी कस्तूरीनी कोथळी अंडकोश (-) पुं० वृषण; पेळनी कोथळी अंडज वि० ईंडामांथी जन्मेलु अंत वि० नजीकनुं (२) छेल्लं (३) सौथी नानुं (४) सौथी हलकुं; खराब (५) रम्य ; मनोहर (६) पुं० छेडो (७) कोर; किनार; शिरोभाग (८) सामीप्य ; सांनिध्य (९) अंत; छेवट (१०) मरण ; नाश (११) निश्चय ; निर्णय (१२) अंदरनो भाग; तळियानो भाग (१३) कुल संख्या के परिमाण (१४) स्वरूप ; स्वभाव (१५)विभाग (१६) सीमा; हद (१७) छेवटनो भाग; शेष अंतक वि० नाश करनाएं (२) पुं० मृत्यु ; यम (३) सीमा; हद अंतकर, अंतकरण, अंतकारिन् वि० नाश करनारुं; अंत लावनाएं अंतकाल पुं० मरणनो समय । अंतकृत् वि० अंत लावनार-मरण लावनाएं (२)पुं० मृत्यु; यम अंतग वि० अंत सुधी जनारं; पार पामनाएं; निष्णात अंतगति वि० जुओ 'अंतगामिन् ' अंतगमन न० कार्यनी पूर्णता (२) मरण अंतगामिन् वि० मरण पामनाएं; नाशवंत अंतचर वि० सरहदे फरनारूं; सरहदे जनाउँ(२) कार्यना अंतने पहोंचनाएं अंततस् अ० अंते; आखरे (२) छेल्लेथी अंतर् अ० अंदर, बच्चे, मध्ये, अंदरना भागमां, छानु होय तेम, -बगेरे अर्थमां वपराय (समासमां अघोष व्यंजन पहेलां 'र' नो विसर्ग थई जाय) अंतर वि० अंदरन (२) नजीकन (३) निकट संबंधवाळं (४) जुएं; बहारनुं (५) न० अंदरनो भाग (६) अंतःकरण; मन; आत्मा (७) भेद; तफावत (८) वचगाळो; वच्चेनो भाग (९) आड; व्यवधान (१०) छिद्र; नबळी बाजु(११) हेतु (१२)प्रवेश (१३) समयनो गाळो (१४) अवकाश; जगा (१५) गेरहाजरी; वियोग (१६) वस्त्र (१७) प्रसंग; तक (१८) (समासमां अंते) बीजु; जुदं (उदा० 'अवस्थान्तर') (१९) -ने लगतु, -ने विष, -ना संबंधे होवु ते (२०) क्रममा एक पगथियुं वेगळु होवू ते (२१)उत्तमता;श्रेष्टता(२२)प्रतिनिधिपणु; अवेज (२३) विशिष्टता; जुदापणुं (२४) खातरी; जामीन अंतरंग वि० अंदरन (२) नजीकच् (३) अत्यंत प्रिय (४) न० चित्त ; अंतःकरण (५) निकटनो मित्र (६) अगत्यनो भाग अंतरा अ० अंदर; अंदरखाने(२)मध्यमां; वच्चे (३) मार्गमां (४)-ने मळतु,-नी बरोबरीनुं होय तेम (५) दरम्यान; वचगाळे (६) विना; सिवाय अंतरात्मन् पुं० जीव; अंतःकरण; मन अंतरापण पुं० शहेरनी मध्यमां आवेलु बजार अंतराय पुं० विघ्न ; मुश्केली ; हरकत अंतराराम वि० अंतरमां शांति के सुख __ मेळवनाएं Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतराल अंतराल न० वचली जगा; वचगाळो (२) अंदरनो भाग; वच्चेनो भाग अंतरि (अंत+इ) २५० वच्चे आवq; जु, पाडवू (२) आडे आवq; न देखाय तेम करवू अंतरिक्ष न० स्वर्ग अने पृथ्वी वच्चेनी जगा; अवकाश; वातावरण अंतरित वि० वच्चे आवेलं; आडमां आवेलु; छूटुं पडायेखें; न देखाय तेम करायेलु (२) ढंकायेलं; छुपायेलं; रक्षायेलं (३) अटकावायेलं; रुकावट करायेलं (४) प्रतिबिंबित (५) दबायेखें; झांखं पडेलु (६) दूर करायेलु अंतरीक्ष न० जुओ 'अंतरिक्ष' अंतरीप पुं० द्वीप अंतरीय न० अंदरनं वस्त्र अंतरे अ० अंदर; वच्चे अंतरेण अ० सिवाय; विना (२) संबंधमां; विषे (३) वच्चे; मध्ये (४) दरम्यान (५) अंतरमां; हृदयमां अंतर्गडु वि० निरर्थक; निरुपयोगी अंतर्गत, अंतर्गामिन वि० वच्चे पेठेलं (२) अंदर आवेलु (३) ढंकायेलं; छुपायेलु (४) भूली जवायेलु (५) अदृश्य थयेलु (६) नाश पामेलु अंतर्गढ वि० अंदर छुपायेलं ; गुप्त अंतर्ज्ञान न० अंदरनुं गूढ ज्ञान अंतर्योति वि० अंतरमा ज्ञानप्रकाश वाळं अंतर्दशा स्त्री० ( माणसनी स्थिति उपर) एक ग्रहनी महादशामां आवती बीजा ग्रहोनी ट्रंकी दशा (ज्यो०)। अंतर्वहन न०, अंतह पु० अंदरनी (बळतरा-पीडा) (२) सोजो। अंतार न० अंदरनुं द्वार; गुप्तद्वार अंतर्धा ३ उ० अंदर मूक-राख, (२) अंदर समावी लेवू-लई लेवू (३) दर्शावq; देखाडवू (४) छुपाव; अंतश्चर ___ नजरे न पडq (५) ढांकी देवू ; नजरे न पडे तेम कर ___-प्रेरक० अन्तर्धापयति अदृश्य करवं -कर्मणि अदृश्य श्रवं अंतर्धा स्त्री० छुपाएँ - ढंकावू ते अंतर्धान न० अदृश्य थq ते अंतनगर न० राजानो किल्लो अंतनिवेशन न० घरनी अन्दरनो भाग अंतनिहित वि० अंदर छुपायेलं अंतर्बाष्प वि० जेणे आंसु दबाव्यां छे एवं (२) आंसुथी भरेलु अंतर्भाव पुं० अंदर होवापणुं ; समावेश (२)अंतरनी वृत्ति के भाव (३) अदृश्य थर्बु ते छिन्नभिन्न थयेलं अंतभिन्न वि० वींधेलं; आंतरिक कलहथी अंतर्भत वि० समाविष्ट ; -मां समायेलं (२) अंदर रहेलं अंतर्भेद पुं० आंतरिक कलह; कुसंप अंतीम वि० जमीननी अंदरनु अंतर्मुख वि० अंदर वळेलु (२) आत्मचिंतनपरायण अंतर्यामिन् पुं० जीवात्मानुं के आंतरिक वृत्तिओनुं नियंत्रण करनारे; परब्रह्म अंतर्लोन वि० अंदर छुपायेलु (२)अंदर रहेलं अंतर्वती, अंतर्वत्नी स्त्री० गर्भिणी स्त्री अंतर्वश, अंतर्वशिक पुं० कंचुकी ; अंत: पुरनो रक्षक यज्ञभूमिनी अंदर अंतर्वेदि वि० यज्ञभूमिनी अंदर- (२)अ० अंतर्वेदि (-दी) स्त्री० गंगा-यमुना वच्चेनो दोआब [खाने हसवू ते अंतर्हास पुं० दबावी राखेखें हास्य; अंदरअंतर्हित वि० वच्चे मुकायेलं; छुटुंपडा येलं (२) ढंकायेलं; छुपायेलुं (३) ___ अदृश्य थयेलं अंतवत् वि० अंतवाळु; नाशवंत ; नश्वर अंतवेला स्त्री० मरणनो समय अंतश्चर वि० अंदर व्यापेलं; अंदर रहेलु Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतसद् अंतसद् पुं० शिष्य; अंतेवासी अंतस्ताप वि० अंदरथी तपेलुं; अंदरथी वळतुं (२) पुं० आंतरिक ताप के ताव अंतस्तोय वि० अंदर पाणीवाळु अंतःकरण न० अंदरनी इंद्रिय; मनबुद्धिचित्त अहंकार अंतःकोप पुं० अंदरनो क्रोध; गुप्त क्रोध अंतःपातिन् वि० अंदर आवेलुं अंतःपुर नं० राणीवास; स्त्रीओनो आवास ( २ ) अंतःपुरमा रहेती स्त्रीओ के राणीओ अंतःपुरिक पुं० कंचुकी; अंत: पुरनो रक्षक अंतःप्रकोप न० अंदरनो ( प्रजानो) असंतोष अंतःसत्वा स्त्री० सगर्भा - गर्भिणी स्त्री अंतःसलिल वि० जमीननी अंदर ( वहेता) पाणीवाळं अंतःसंज्ञ वि० अंदरथी चैतन्ययुक्त; अंदर जेने संज्ञा - भान छे तेवुं ( वृक्ष इ० ) अंतःसार वि० अंदरना बळ के जोम वाळं (२) वजनदार ( ३ ) पुं० अंदरनुं तत्त्व; अंदरनी वस्तु [माणनारु अंतःसुख वि० अंतरमां- आत्मामां सुख अंतःस्थ वि० वच्चे रहेलुं (२) पुं० य् र् ल् व् - ए चारमांनो दरेक व्यंजन ( व्या० ); अर्धस्वर ( स्वर अने व्यंजन बनेना धर्मवाळो ) [ सान्निध्य अंतिक वि० पासेनुं ; नजीकनुं ( २ ) न० अंतिकचर पुं० हरियो अंतिम वि० छेल्लुं ( २ ) तरत ज पछीनुं अंते अ० छेवटे; छेडे (२) अंदर (३) समीपे अंतेवासिन् पुं० शिष्य ( गुरुनी समीपे रहेनारो) (२) चांडाळ ( गामने छेडे रहेनारो) अंत्य वि० छेल्लुं (२) तरत ज पछीनुं (३) हलकुं; नीचुं ( ४ ) नश्वर ( ५ ) पुं० म्लेच्छ; यवन (६) चांडाल ( ७ ) शब्दनुं छेल्लुं पद ( ८ ) न० एकडा उपर पंदर मींडां गोठवतां थती संख्या ६४ अंबुज अंत्यकर्मन् न०, अंत्यक्रिया स्त्री० प्रेतसंस्कार; अग्निसंस्कार अंत्यज, अंत्यजन्मन्, अंत्यजाति, अंत्यजातीय वि० हलकी वर्णनुं शूद्र अंत्याहुति, अंत्येष्टि स्त्री० प्रेतसंस्कार; मरणसंस्कार अंत्र न० आंतरडुं अंदु ( टू ) स्त्री० सांकळ (२) हाथीना पगे बांधवानी सांकळ (३) पगे पहेरवानुं घरेणुं [थवुं अंध् १० उ० आंधळं करवुं ( २ ) आंधळु अंध वि० आंधळं (२) आंधळं करे तेवुं; अतिगाढ (अंधा) (३) अत्यंत पीडायेलुं (४) मेलुं करायेलुं (५) न० अंधारु (६) अज्ञान, अविद्या (७) पाणी; मेलं पाणी अंधक वि० आंधळं अंधकार पुं० अंधारुं अंधकूप पुं० झाड-झांखरांथी ढंकाई, न देखाती होवाथी, फसाई पडाय तेवो कूवो (२) मूढता ; मोह अंधतमस, अंधतामस न० पूर्ण अंधकार; गाढ अंधारुं अंधतामित्र पुं० न० पूर्ण अंधारुं ( २ ) मानसिक अंधकार - अज्ञान ( ३ ) एक नस्क (४) मरण अंधस् न० अन्न अंधु पुं० कूवो अंबक न० आंख ( उदा० त्र्यंबक ) अंबर न० आकाश (२) वस्त्र ( ३ ) एक सुगंधी पदार्थ अंबरिष, अंबरीष पुं० एक विष्णुभक्त राजानुं नाम (२) सूर्य (३) तावडी; कढाई अंबरौकस् पुं० स्वर्गमां वसनार - देव अंबा स्त्री० माता; मा अंबालिका, अंबिका स्त्री० मा; माता अंबु न० जळ; पाणी अंबुज वि० जळमां उत्पन्न थयेलुं (२) पुं० शंख (३) न० कमळ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंबुद, अंबुधर पुं० वादळ अंबुषि, अंबुनिधि पुं० महासागर ; समुद्र अंबुप पुं० समुद्र (२) वरुण अंबुपति पुं० वरुण अंबुमुच पुं० वादळ; मेघ अंबुरय पुं० प्रवाह अंबुराशि पु० समुद्र अंबुरुह, न०, अंबुरुह पुं०, न० कमळ (दिवसे खीलतुं) अंबुवाह पुं० वादळ; मेघ (२) सरोवर (३) पागो वहेनारो अंभस् न० पाणी (२) आकाश अंभोज वि• जलोत्पन्न (२) न० कमळ अंभोजिनी स्त्री० कमळनो छोड़ (२) कमळनो समूह (३) कमळतुं सरोवर के तळाव अंभोद, अंभोधर पुं० वादळ अंभोधि, अंभोनिधि, अंभोराशि पुं० महासागर; समुद्र अंभोरुह, न०, अंभोरुह पुं०, न० कमळ अंश पुं० भाग; हिस्सो (२) मिलकतमा हिस्मो (३) वर्तुळनो ३६० मो भाग (४) खभो आकरिन् अंशावतार पुं० जेमां ईश्वरनी विभूति नो मात्र अंश होय तेवो अवतार अंशिन वि० भागीदार; हकदार (२) अवयवी; जेने अंशो होय तेवू अंशु पुं० किरण (२) अणी के छेडो (३) नानामां नानो भाग; अणु (४) वेग (५) वस्त्र (६) पातळो दोरो अंशक न० वस्त्र (२) बारीक अथवा रेशमी वस्त्र (३) झीणुं के श्वेत वस्त्र (४) उत्तरीय अंशुमत् वि. किरगवाळु; तेजस्वी; प्रकाशित (२) अणीवाळ (३) पुं० सूर्य (४) चंद्र अंशुमालिन् पुं० सूर्य अंस पुं० भाग; हिस्सो (२) खभो अंसल वि० मजबूत खभावार्छ; बळवान अंसवितिन् वि० खभा तरफ वळेलं अंह, १ आ० जर्बु (२)१०प० मोकलवं (३) बोलg (४) प्रकाश, अंहस् न० पाप अंहि पुं० जुओ 'अंघ्रि' आ आ संमति, दुःख, शोक, अनुकंपा, स्मरण अने पादपूरण अर्ये वपराय(२)सामीप्य, चारे बाजाए, सर्व बाजुए, -ए अर्थमां नाम अने धातुनी पूर्वे आवे (३) गतिवाचक क्रियापदो साथे ऊलटो अर्थ दविवा वपराय (उदा० 'आगच्छति' =आवे छे ; 'आनयति' = लावे छे) (४) जुदा लखाता उपसर्ग तरीके, '-थी मांडीने - सुधी' ए जातनी मर्यादासीमा दावे (उदा० ‘आ जन्मनः' = जन्मथी ज; 'आ परितोषाद 'संतोष थाय त्यां सुधी) (५) 'सुधी'-'पर्यंत' -एवा अर्थमां समासमां पण जोडाय (उदा० 'आबालम्', 'आमरणम्') (६) विशेषणनी साथै अल्पता दर्शावे (उदा० 'आरक्त' = थोडं लाल) आकच् १ आ० बांध आकथन वि० बडाई मारनाएं आकर वि० श्रेष्ठ; उत्तम (२) पुं० खाण (३) समूह; ढगलो आकरग्रंथ पुं० कोई विषयनी माहितीनो प्रमाणभूत ग्रंथ आकरिन् वि० खाणमां पेदा थयेलं (२) सारी जातर्नु; उत्तम ओलादन Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ आकर्ण आकर्ण १० प० सांभळवं; ध्यानथी सांभळवू आकर्णन न० ध्यानथी सांभळवं ते आकर्ष पुं० पोता तरफ खेंचवू ते (२) पाछं खेंची लेवं ते (३) धनुष्य खेंचवं ते (४) आकर्षण ; मोह (५) लोहचुंबक (६) कसोटीनो पथ्यर (७) पासा वडे रमवं ते लोहचुंबक आकर्षक वि० आकर्षे तेवू (२) पुं० आकर्षण न० खेंचाण (२) मोह आकल १०प० पकडवं; हाथमा लेवू (२) मानवं; गणवु (३) विचारवं; लक्षमा लेवू (४) बांधवू ; जकडवू (५) हलाव; डोलावQ (६) समर्पण कर, (७) फेंक (८) मापवू आकलन न० पकड - ग्रहण करत ते (२)बंधन; निग्रह (३)गणना; गणतरी (४) तपास (५) समजण आकल्प पुं० भूषण; शणगार (२) वेशरचना करवू ते आकल्पक पुं० उत्कंठापूर्वक याद कर्या आकल्पम्, आकल्पांतम् अ० कल्प पूरो थाय (१००० युग) त्यां सुधी; महाप्रलय थाय त्यां सुधी कारण विनानुं आकस्मिक वि० ओचितुं; अणधार्यु (२) आकार पुं० आकृति; घाट (२) देखाव; चहेरो (३) निशानी; लक्षण आकारण न०, आकारणा स्त्री० बोलावq ते; निमंत्र ते । आकारित वि० बोलावेल; निमंत्रेलु (२) कबूलेलु (३) मागेल; पडावेलु आकालिक वि० क्षणिक (२) कसमयनु आकाश पुं०, न० आकाश (२) पंचमहाभूतोमांनु एक महाभूत (३) खाली जगा; अवकाश (४) स्थान; स्थळ (५) प्रकाश (६) ब्रह्म आकाशग पुं० पक्षी; पंखी आकाशगंगा, आकाशगा स्त्री० स्वर्गगंगा आकूति आकाशभाषित न० रंगभूमि बहारनी कोई व्यक्ति साथे जाणे वात करतो होय ते रीते नटे करेली उक्ति आकाशयान न० आकागमां गति करतुं वाहन (२) आकाशमां थईने गति करवी ते आकाशवाणी स्त्री० आकाशमां उच्चारायेली – दैवी वाणी आकाशशयन न० खुल्लामां सूवं ते आकाशेश दि० जेने आकादा विना बीजी मिलकत नथी तेवू; निराधार (बाळक, स्त्री, भीखारी, पंगु वगेरे) (२) पुं० इंद्र आकांक्ष १ उ० इच्छ; अभिलाषा राखवी (२) जरूर होवी आकांक्षा स्त्री० इच्छा ; अभिलाषा (२) हेतु; इरादो (३) -नी सामे नजर करवी ते ; अपेक्षा (४) तपास (५) सांभळनारने बीजा पदनी अपेक्षा रहे तेवी प्रथम पदनी अपूर्णता (व्या०) आकांक्षिन् वि० आकांक्षा -- अपेक्षा -अभिलापा राखनाएं गरीबाई आकिंचन, आकिंचन्य न० दारिद्रय ; आकीर्ण वि०विखरायेलु; वेरायेल (२) व्याप्त ; पूर्ण (३) न० भीड ; टोळ आकुल वि० व्याकुळ क्षुब्ध (२) अस्वस्थ; व्यग्र (३) न० भीडवाळं स्थान आकुलम् अ० गभराटमां; {झवणमा आकुलित वि० क्षुब्ध; व्यग्र (२) गूंचवायेलु; मृझायेल आकुंच १ आ०, ६ प० वांका वळवं -प्रेरक० वांकुं वाळवं; संकोचबु आकुंचित वि० वळेलु; वाळेलु (२) संकोचेलु (३) वांकडिय (वाळ) आकणित वि० सहेज संकोचायेलं आकूत न० हेतु; अभिप्राय; इरादो (२) मनोभाव ; लागणी (३)आश्चर्य आकृति स्त्री० कर्मेंद्रिय (२) क्रिया (३) इरादो; आशय Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आकृ ६७ आकृ८ उ०, ५ प० नजीक लावईं; हांकीने पासे लाव -प्रेरक० बोलाववू; निमंत्र (२) प्रेरवु (३) पडकार (४) कोई पासे कांई मांगवं आकृति स्त्री० आकार; रूप (२) शरीर; शरीराकृति (३) बाह्य देखाव आकृष १ उ०, ६ उ० खेंचवू; आकर्षण करवू (२) खेंचीने वाळवू (धनुष्य) (३) खेंचवं; बहार काढवं (४) वीणg; एकत्रित कर (५) लई ले; पडावी लेवू आकृष्ट वि० खेचायेलं; आकर्षायेलं आक्रम् १ उ० पासे जवं.-पहोंचवू (२) व्यापq (३) हुमलो करवो (४) जीतवू; ताबे करवू (५) श्रेष्ठ थq; झांखु पाडवू (६) ऊंचे चर्बु (सूर्यनुं आकाशमां) (७) माथे लेबु; शरू कर (८) वजन मूकईं; दबाव आकम पुं०, आक्रमग न० पासे जवंपहोंच ते (२) हुमलो (३) ओळंगवू ते; वटी जवू ते (४) व्यापवं ते (५) दवाव ते (भार वडे) आकंद १ उ० रडव - विलाप करवो (२) बूम पाडवी; बोलाववं आकंद पुं० रुदन; विलाप (२) बोलाववं ते; बम (३) युद्ध; लड़ाई (४) वाता; रक्षक (५) रडवानुं स्थान ते आक्रंदन न० रुदन; विलाप (२) बोलाव आनंदित वि० बोलावेलु (२) विलाप करतुं (३) न० पोकेपोक मूकीने रडवू ते (४) बम; गर्जना बोलावतुं आनंदिन वि० विलाप करतां करतां आक्रांत वि० पकडायेलं; प्राप्त करायेल; पराभव पमाडेलं (२) छवायेलं; व्याप्त (३) रोकायेल (४) दबायेलं; कचरायेलू (५) सवारी करेलु आक्रांति स्त्री० उपर चडवं ते; पग आक्षेपण मूकवो ते (२) वजन मूकवू ते ; दबाववू ते (३) ऊगर्बु ते (४) बळ ; जोर आक्रोड पुं०, न० क्रीडा; रमत (२) क्रीडोद्यान आक्रुश १५० मोटेथी बूम पाडवी (२) ठपको देवो; वढवू (३) निंदा करवी (४) शाप आपवो आक्रुष्ट वि० ठपको अपायेलं; निंदायेलं (२) वूम पाडेलु (३) शाप आपेलु आक्रोश पुं०, आक्रोशन न० मोटी बूम ; बूम पाडीने बोलाव ते (२) निदा; गाळ (३) शाप (४) सोगंद आक्लिन्न वि० भीनुं (२) क्या आक्षिप् ६ प० फेंक; पछाडवू (२) लोभाव; आकर्षy (३) अस्त्र वडे प्रहार करवो (४)वच्चेयी रोकq (५) पार्छ खेंची लेवू; झूटवी लेवु (६) हांकी काढg (७) लटकाव; फरकाववू (ध्वज इ०) (८) सूचववू; दर्शाववं (९) उपेक्षा करवी ; नकार (१०) वांधो उठाववो (११) अपमान करवं (१२) चडियाता थg; झांखु पाडवू (१३) कटाक्षमां कहे (१४) पसार करवू (समय) आक्षिप्त वि० फेंके लु; नाखेलु (२) झूटवी लेवायेलु (३) निंदित; अपमानित (४) पराभूत (५) गूंचवायेलं; मूंझायेलं (६) आकर्षायेलु; लोभायेलं आक्षिप्तिका स्त्री० रंगभूमि पर आवती वखते पात्र वडे गवातुं गीत आक्षेप पुं० फेंकवं ते; खेंची काढते; झंटव ते (२)निंदा; ठपको; तिरस्कार (३)नाखी देवू ते ; छोडी देवू ते (४) प्रलोभन ; आकर्षण (५) चोपडवू - लगाववं ते (६) वांधो; गंका (७) अनुमान; तर्क (८) उल्लेख ; सूचना (९) न्यास ; थापण आक्षेपण वि० आकर्षक; मनोहर (२) Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आक्षेपिन् न० फेंक - नाखवु - उछाळवुं ते ( ३ ) गाळ भांडवी - तिरस्कार करवो ते (४) वांधी उठाववी ते आक्षेपित् वि० आकर्ष नारु; खेचनाएं आखंडल पुं० इंद्र आखु पुं० उंदर आखुपत्र, आवाहन पुं० गणपति ( उदरना वाहनवाळा ) आखेट पुं० शिकार आखेटक पुं० शिकारी ( २ ) न० शिकार आल्य वि० कहेनारुं वर्णन करनारुं आख्या २५० कहेवुं ( २ ) - नामे कहे - ओळखवं | प्रतीति आल्या स्त्री० नाम (२) शोभा (३) भास; आख्यात वि० कहेवायेलुं ( २ ) प्रसिद्ध कराये (३) न० क्रियापद आख्याति स्त्री० कहेवुं ते ( २ ) नाम (३) कीर्ति प्रसिद्धि आख्यान न० कहेवुं - वर्णवत्रु ते (२) पूर्वनुं वृत्तांत कहे ते (३) कथा; वार्ता (४) पौराणिक के ऐतिहासिक महाकथा ( महाभारत इ० ) ( ५ ) तेनो सर्ग के खंड ( ६ ) प्रत्युत्तर आख्यानक न० नानी कथा; दंतकथा आख्यायिका स्त्री० वार्ता; कथा आख्येय वि० कहेवा योग्य आगत वि० आवेलं, आवी पहोंचलुं (२) बनेलुं ( ३ ) प्राप्त थयेलु ; पामेलु आगति स्त्री० आवी पहोंच ते ( २ ) प्राप्ति ( ३ ) उत्पत्ति; मूळ ( ४ ) पार्छु आवबुं ते (४) अकस्मात बनाव आगम् १ प० | आगच्छति । आवकुं ; आवी पहोंचj ( २ ) प्राप्त थवुं ; पामनुं - प्रेरक० लई जवुं ( २ ) - तुं आगमन जाहेर करवं (३) समाचार मेळववा; माहितगार थवुं ( ४ ) भणवुं शीखवं (५) आ० धीरज राखवी; राह जोवी आगम पुं० आगमन; आवी पहोंचवुं ते; ६८ आग्रह देखावुं ते (२) लाभ; प्राप्ति (३) उत्पत्ति; जन्म ( ४ ) वृद्धि; वधारो (५) प्रवाह (६) ज्ञान; विद्या (७) शास्त्र (८) शास्त्राभ्यास ( ९ ) पुं०, न० तंत्रशास्त्र (१०) नदीनु मुख. (११) मार्ग; मुसाफरी आगमन न० आववुं ते (२) पाछा फरबुं ते ( ३ ) लाभ; प्राप्ति (४) उत्पत्ति आगमापायिन् वि० उत्पत्ति अने विनाशवाळु आवनाएं अने जनाएं आगमित वि० भणावेलुं (२) जाणेलुं; अभ्यासेलं आगमिन् वि० नजीकना भविष्यमां आवनाएं (२) आगमशास्त्र भणेलं ( ३ ) आगंतुक; घूसी गये लुं [ शिक्षा आगस् न० अपराध; गुनो ( २ ) पाप ( ३ ) आगस्त्य वि० दक्षिण तरफ नुं ( २ ) अगस्त्य ऋषि संबंधी [ माणस; अतिथि आगंतु पुं० नत्रो आवेलो - अजाण्यो आगंतुक वि० पोतानी मेळे - वगर बोला आवेलुं ( २ ) रखडतुं - फरतुं (ढोर इ० ) (३) आकस्मिक; हमेशानुं नहि एवं ( ४ ) घूसी गयेलु - मूळनुं नहि एवं (पाठ इ० ) ( ५ ) पुं० अतिथि ; अजायो ( ६ ) घूसणियो ( ७ ) घूमी गयेलो पाठ आगामिक वि० आवनाएं; भविष्यनुं आगामिन् वि० जुओ आगमिन् ' आगामुक वि० आवनाहं ( २ ) भावि आगार न० घर; निवासस्थान आग्नेयकीट पुं० अग्निमां झंपलावतुं एक पतंगियु (चोर लोको दीवो बुझाववा मोकले छे ) [कराती यज्ञ आग्रयण पुं० नवं अन्न आववाने निमित्ते आग्रह, ९ उ० पकडवं; जोरथी पकडवं (२) जोरथी खेंचबुं ( लगाम) (३) आग्रह करवो + आग्रह पुं० पकडवं - लेवुं ते ( २ ) धार्यं करवानी वृत्ति; खंत ; निश्चय ( ३ ) हठ; जीद; ममत Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आग्रहायण आग्रहायण पुं० मार्गशीर्ष मास आघट्ट १० प० अथडावू आघट्टना स्त्री० घर्षण ; अफळावू ते आघर्ष पुं०, आघर्षण न० परस्पर घर्षण आघात पुं० प्रहार (२)घा (३) हिंसा; नाश (४) कतलखानु; वधस्थान आघूर्ण १ आ०, ६५० चकर चकर फरवू के फेरवद्नाम ; ढंढेरो आघोषण न०, आघोषणा स्त्री० जाहेरआघ्रा १५० [आजिघ्रति संघg (२) माथु चूमव (३) हुमलो करवो; खाई जवं (ला०) आघ्रात वि० संघेलं (२) तप्त आचश् २ आ० बोलवू; कहे; जणावq; वर्णववं आचम् १५० [आचामति ] आचमन करवू (२) चाटी जवु; पी जवू आचम पु० आचमन आचमन न० धार्मिक विधिनी शरूआतमां के जमतां पहेलां अने पछी हथेळीमां पाणी भरी पी जq ते (२) ते माटेनुं पाणी आचर् १५० आचरवू; वर्तवू (२) वारंवार अवरजवर करवो । आचरण न० आचारमा मूकवू ते; अनुष्ठान (२) वर्तन (३) आचार; व्यवहार; रिवाजयोग्य आचरणीय वि० आचरवा योग्य ; करवा आचरित वि० आचरेलुं; करेल (२) रूढि – परंपराथी आचरायेल (३) नियमथी नक्की करेलु (४) वसाहत करायेलु (५) न० वर्तन ; आचार आचार पुं० वर्तन ; आचरण (२) सदाचरण (३)परंपराथी आचरवामां आवतो व्यवहार; शिष्टाचार आचारपूत वि० सदाचरणथी पवित्र बनेलु आचार्य पुं० विद्या आपनार; गुरु (२) धर्मगुरु (३) जुदो सिद्धान्त प्रतिपादन करनार शास्त्रकार (४)विद्वान ; पंडित आजीव आचार्यक न० आचार्य- कर्म ; शिक्षण (२) आचार्य- पद (३) आचार्यनी पूजा (४) भाष्य करवू-समजाव ते आचार्यानी स्त्री० आचार्यपत्नी; गुरुपत्नी आचि ५ उ० एकळु करवू; ढगलो करवो (२) पाथरी देवं; भरी काढq आचित वि० भरी काढेल; पाथरी दीधेलं (२) बांधेलु ; गूथेलु (३) संगृहीत आचीर्ण वि० खवाई गयेलु (जंतु इ० थी) (२) आचरायेलं आच्छद् १० प० ढांकवु (२) संताडवू; गुप्त राखg (३) पहेर आच्छद् स्त्री० ढांकण (२) म्यान आच्छन्न वि० ढंकायेलु (२)पहेरेलु आच्छाद पुं० वस्त्र ; कपडां आच्छादन न० ढांकण; आवरण (२) वस्त्र ; कपडां (३) झम्भो; डगलो (४) चादर (५)छापरानुं छाज आच्छिद् ७ उ० छेदq (२) टवी लेवू; खेंची लेवु (३) अवगणवू ; ध्यानमां न लेवु (कथन) (४) अळगुं करवू आच्छिन्न वि० छीनवी लीधेलु (२) सारी रीते दूर करेलु ; खसेडी नाखेलं आच्छोटित वि० खेंची काढलं; तोडी नाखेलु (२) टचाका बोलावेलु आंगळी) आज वि० बकराआजनन न० श्रेष्ठ जन्म (२) अ० जन्मथी मांडीने आजन्म, आजन्मम् अ० जन्मथी मांडीने आजात वि० कुलीन ; कुळवान आजानु अ० ढींचण सुधी आजानेय वि० सारी जातनु (घोडो इ०) आजि पुं०, स्त्री० युद्ध; लडाई (२) दोडवानी के लडवानी हरीफाई (३) रणभूमि (४) मेदान (शरतनुं) आजिमुख न० लडाईमां पहेली हरोळ आजीव १५० -ना वडे, -ने आधारे जीव, Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० आत्मजा ' प्रेर आजीव आजीव पुं०, आजीवन न० निर्वाह (२) निर्वाहन साधन; धंधो आजीवनिक वि० आजीविका शोधतुं आजीविक पुं० गोशाल मंखलिपुत्ते स्थापेल भिक्षुसंप्रदायनो साधु आजीविका स्त्री०धंधो; निर्वाहन साधन आजीव्य वि० आजीविका आपनाएं (२) न० आजीविकानुं साधन आज्ञप्त वि० आज्ञा करायेलु ; प्रेरायेलं आज्ञप्ति स्त्री० आज्ञा; हुकम आज्ञा ९ प० [आजानाति | जाणवू; समजवु -प्रेरक० {आज्ञापयति हुकम करवो; आज्ञा स्त्री० हुकम (२) रजा; परवानगी (३) आण आज्ञापक वि० हुकम आपनाएं आज्ञापन न० हुकम करवो ते (२) जाहेर करवू ते आज्य न० घी आज्यभुज पुं० अग्नि (२) देव आटविक पं० अरण्यवासी आटोप पुं० गर्व; अभिमान (२) फलवाथी के पहोळा थवाथी थतो विस्तार (३) आडंबर; भपको; देखाव आडंबर पुं० अहंकार; दर्प (२) दबदबो; भपको; ठाठ (३) गर्जना (मेघ के हाथी इ० नी) (४)पांपण (५)आवेश; क्रोव (६) युद्धनुं नगारुं आढक पुं०, न० अनाजन एक माप (१६ कुडव के ६४ प्रस्थ बराबर) आढय वि० श्रीमंत (२) युक्त ; पूर्ण (३) मिश्रित आतत वि० पथरायेलं; फेलायेलु (२) खेंचेल (धनुष्य) आततायिन् वि० खूनी (२) घोर पातक करनालं; महापापी आतन् ८ उ० ढांक; बिछावq; पाथरव (२) विस्तरवू ; व्यापवू ; फेलावं (३) उत्पन्न करवं; पेदा कर (४) आचरवं ; करवू (५) खेंच (धनुष्य) आतप् १ प० तप; तपाव, (२) संताप पामवो आतप पुं० तडको; ताप आतपत्र न० छत्री आतपात्यय पुं० सूर्यास्त आतपापाय पुं० उनाळो पूरो थवो ते आतंक पुं० व्याधि (२) ज्वर (३) संताप (४) भय; भीति । आतिथ्य, आतिथ्य वि० अतिथिने योग्य; अतिथि माटेतुं (२) आतिथ्यमा कुशळ (३) न० परोणागत माटे) आतुद् ६ उ० मारवं; भोंक (हांकवा आतुर वि० -थी पीडातुं; पीडायेलु (२) बीमार; मांदलं (३) अधीरु; आकर्छ (४) उत्सुक (५) पुं० रोगी; दरदी (६) रोग आतोद्य न० एक वाद्य (वीणा जेवं) आत्त ('आ + दा', भू० कृ०)वि० लीधेलं (२) स्वीकारेलु (३) खेंची लीवेलं; आकर्षेलु (४) ग्रहायेलं; दबायेलु आत्तगंध वि० जेनो गर्व हणाई गयो छे तेवं कर्यो छे एवं आत्तदंड वि० जेणे राजदंड धारण आत्तमनस्क वि० हर्षथी भरायेला मनवाळ [छे तेवं आत्तलक्ष्मी वि० जेनुं धन हराई गयु आत्मक वि० -तुं बनेलं;-ना स्वभावन (ए अर्थमां समासने अंते) आत्मकाम वि० अहंकारी; अभिमानी (२) परब्रह्ममां ज आसक्ति वाळं आत्मगत वि० मनमां उत्पन्न थयेलं आत्मगतम् अ० स्वगत बोलवू ते (नाटकमां सूचना रूपे आवे छे) आत्मघात पुं० आपघात ; आत्महत्या आत्मज पुं० पुत्र (२) कामदेव (३) वंशज आत्मजा स्त्री० पुत्री (२) बुद्धि Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१ आत्मज्ञान आत्मज्ञान न० पोताना संबंधी ज्ञान (२) आध्यात्मिक ज्ञान; आत्मानो साक्षात्कार संतुष्ट आत्मतृप्त वि० आत्मतत्त्वमां तृप्त - आत्मत्याग पुं० स्वार्थत्याग (२) आत्महत्या आत्मदर्श पुं० अरीसो आत्मज्ञान आत्मदर्शन न० आत्मसाक्षात्कार (२) आत्मन् पु० आत्मा; जीव ; प्राण (२) पोते-पोतानी जात (३) परमात्मा (४)स्थूळ शरीर ; देह (५) मन (६) बुद्धि (७)समज (८)आकृति; स्वरूप (९)जोम; वीर्य; यत्न (१०)वायु (११) पुत्र (१२)स्वभाव; प्रकृति(१३)विशिष्ट गुण (१४) ध्येय (१५) समासने अंते '-न बनेलु' ए अर्थमां वपराय छे आत्मना अ० पोते; जाते (२) 'द्वितीय,' 'तृतीय' वगेरे क्रमवाचक शब्दो साथे 'पोताने गणतां' एवो अर्थ थाय छे आत्मनिवेदन न० पोतानी जात के पोतानु बधु ईश्वरनां चरणोमां समी देवं ते आत्मनीन वि० पोतानुं (२) पोताने माटे उचित एवं (३) प्राणधारी; जीवतुं (४) पुं० पुत्र (५) साळो (६) विदूषक आत्मप्रत्ययिक वि० जातअनुभवथी जाणनारं आत्मप्रभव पुं० जुओ 'आत्मज' आत्मप्रशंसा स्त्री० पोतानी जातनां वखाण आत्मभू पुं० ब्रह्मा (२) विष्णु (३)शंकर (४) कामदेव (५) पुत्र वफादार आत्मभूत वि० पोतामांथी जन्मेल (२) आत्ममानिन् वि० अभिमानी; गर्वित (२) सर्व प्राणीने आत्मवत् माननाएं आत्मयोनि पुं० जुओ ‘आत्मभू' आत्मवत् वि० पोताने वश चित्तवाळं (२) डाहयु; समजणु (३) अ० पोतानी जेम आत्म्य आत्मवश्य वि० आत्माना-पोताना काबमां होय तेवू (२) पोतानी जात उपर काबूवाळ ब्रह्मज्ञानी आत्मविद् वि० आत्माने ओळखना; आत्मविद्या स्त्री० ब्रह्मविद्या आत्मवृत्ति वि० आत्मामां स्थिर वृत्तिवाळं २) स्त्री० पोतानो धंधो के कर्तव्य आचरवां ते (३) हृदयनी लागणी (४) पोताना संजोग मुजबर्नु कार्य आत्मशुद्धि स्त्री० आत्मानी-पोतानी जातनी शुद्धि आत्मस्तुति आत्मश्लाघा स्त्री० आत्मप्रशंसा; आत्मसंपन्न वि० जितेंद्रिय; जात उपर काबूवाळ (२) बुद्धिशाळी आत्मसंभव पुं० पुत्र (२) कामदेव (३) परमात्मा स्वाभिमान आत्मसंभावना स्त्री० आत्मश्लाघा; आत्मसात् अ० संपूर्ण रीते पोताने स्वाधीन -पोतार्नु होय तेम आत्मसिद्धि स्त्री० मोक्ष (२) पोताना हेतुनी सिद्धि - प्राप्ति आत्मस्थ वि० स्वाधीन आत्महत्या स्त्री० आपघात आत्महन् वि० आत्मघाती आत्मादिष्ट वि० आपमेळे सूझेलु आत्मानुरूप वि० पोताने योग्य तेवू आत्मापहार पुं० जातने छुपाववी ते आत्माराम वि० आत्मज्ञान माटे प्रयत्न करनाएं (२) आत्मा ए ज जेने __ आनंदवें स्थान के साधन छे तेवू आत्माश्रय वि० स्वाश्रयी आत्मीक ८ उ० जीत आत्मीय वि० पोतार्नु काबूवाळं आत्मेश्वर वि० पोतानी जात उपर आत्मोद्भव पुं० पुत्र (२) कामदेव आत्मौपम्य न० पोताना जेवू मानवं ते आत्म्य वि० पोतानु; पोतानी जात(२) (समासने अंते)-ना गुणधर्मवाळं Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्ययिक आत्ययिक वि. विनाशक (२) अनिष्ट (३) अगत्यनुं; उतावळy (४) मोड़ें (५) न० आफत; विपत्ति; संकट आत्यंतिक वि० अनंत ; सतत (२) खूब; पुष्कळ (३) सर्वश्रेष्ठ (४) आखरी; अंतिम; कायमनुं आथर्वण वि० अथर्ववेद संबंधी (२)पुं० अथर्ववेद (३) अथर्ववेद भणनार (४) न० अभिचार वगेरे कर्म आदर पुं० समान; मान (२) काळजी (३) उत्सुकता; आतुरता (४) प्रयत्न (५) आरंभ (६) आसक्ति (७) स्वीकार आदर्श पुं० अरीसो; दर्पण (२) असल अथवा मूळ प्रत (३) नमूनो (४) टीका; टिप्पणी (५) नकल आदा ३ आ० लेवू; स्वीकार (२) पकडQ; कबजे लेवू (३)पहेर धारण करवू (४) (खान-पान तरीके) वापरतुं (५) लई जवू; पडाव, (कर, धन) (६) तोडी लेवू; चूंटी लेवं (७) वहन करवू (८) धरपकड करवी (९) ('वाच्', 'वचस्' - एवा शब्दो साथे) बोलवू; उच्चार आदान न० ग्रहण ; स्वीकार (२) मेळवदूं ते (३)व्याधिनुं लक्षण ; रोगर्नु निदान . (४) बांधवू; केद पकड आदि वि० पहेलु (२) मुख्य (३) मूळy; पहेलांनुं (४) पुं० प्रारंभ; शरूआत (५) मूळ कारण (६)प्रथम भाग-हिस्मो । (७) समासमां 'वगेरे', एवा अर्थमां अंते आवे छे आदिकर्तृ पुं० सरजनहार(ब्रह्मा के विष्णु) आदिकवि पुं० ब्रह्मा (वेदोना गानार) (२)वाल्मीकि ऋषि रामायण गानार) आदित्य वि० सूर्यवंश- (२) पुं० देव (अदितिनो पुत्र) (३) सूर्य आदित्यबंधु पुं० शाक्यमुनि ; गौतम बुद्ध आदिम वि० प्रथम - मूळ आधान आदिश् ६ उ० दर्शाव; सूचवq (२) हुकम करवो (३) उपदेश; जणावQ (४) भविष्य भाख, (५) पडकारवू (६) अजमावq; प्रयोग करवो आदिष्ट वि० हुकम करेलु (२) उपदेशेलं; दर्शावलं (३) कहेलं ; भाखेलं (४) न० हुकम ; आज्ञा (५)सलाह; सूचन; उपदेश आद६ आ० [आद्रियते] आदर आपवो; संमानवू (२) मन उपर लेवू; ध्यान उपर लेवू (३) -मां लागवू; मंडq (४) इच्छq; उत्सुक थQ आदृत वि० आदर करेलं; सत्कारेलु (२) आदरवाळ (३) लक्षवाळं; प्रयत्नशील आदेश पुं० आज्ञा; हुकम (२) उपदेश ; शिखामण (३) हकीकत ; वर्णन (४) शास्त्राज्ञा ; विधि (५) भविष्यकथन (६) संकल्प (व्रतादिनो) आदेशिक पुं० जोषी; भविष्य भाखनार आदेशिन वि० हुकम करनार;प्रेरनाएं आद्य वि० प्रथम ; मूळy (२)श्रेष्ठ (३) तरत पहेलांनु(४)खाद्य(५)समासने अंते '-थी शरू करीने, वगेरे' -ए अर्थमां (६) न० शरूआत (७)अन्न ; अनाज आद्यंत वि० आदि अने अंतवाळू (२) पहेलं ने छेल्लं आधुपांतम् अ० पहेलेथी छेडे सुधी आधून वि० (बेशरमपणे) खाउधर आधर्षित वि० अपमानित; अवमानित (२) तिरस्कृत; खंडन करेलु आधा ३ उ० मूक (२)लगाववं; स्थिर कर (३) लेवू; धारण करवु (४) उत्पन्न करवू; प्रेरवु (५) पूरुं पाडवू; अर्पq (६) नीम आधात वि० आपनाएं; मूकनारं आधान न० मूकते(२)लेवं - स्वीकारवू ते (३) अमल करवो-पार पाडवू ते (४) संस्कारपूर्वक अग्निनुं स्थापन ARTHA Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ आधार (होम माटे) (५) अर्प; प्रेर; उपदेश (६) रचवू ; उत्पन्न करवं (७) प्रयत्न; उद्यम (८) थापण; अनामत (९) मैथुन ; गर्भाधान आधार पुं० टेको; अवलंबन (२)आश्रय; मदद (३) पात्र; वासण (४) झाडना मूळनी आसपासनो क्यारो आधि पुं० मानसिक पीडा (२) शाप; आपत्ति; दुर्भाग्य (३) घरेणे मकवं ते;गीरो मूकवं ते (४)स्थळ; स्थान आधिकरिणक पुं० न्यायाधीश आधिक्य न० वधारो (२) श्रेष्ठता आधिदैविक वि० अधिष्ठाता देवोने । लगतुं (२) दैवकृत (सुख-दुःख) आधिपत्य न० अधिपतिपणुं; उपरीपणुं आधिभौतिक वि० पंचमहाभूतने लगतुं (२, भूतप्राणीने लगतुं स्वामित्व आधिराज्य न० साम्राज्य; संपूर्ण आधुनिक वि० हालन; वर्तमान समयनुं आधूत न० हलावेलु (२) क्षुब्ध ; धूजतुं आधृ १०प० धारण करवु (२) टेको आपवो आधोरण पुं० हाथीनो महावत अथवा आध्मा १५० [आधमति] धमण धमवी; फुलावq (२) फूंकवू (शंख इ०) -कर्मणि फुलावं आध्मात वि० लेलु; भरपूर ; व्याप्त (२) घणुं वधी गयेलं (३) अवाजथी भरायेलु (४) बळी गयेलु; दग्ध आध्मान न० धमq ते; फूंकवं ते (२) वधी के फूली जq ते (३) बडाई आध्यात्मिक वि० आत्मा संबंधी; आत्मतत्त्व संबंधी (२) मन वडे थयेलु (दुःख, शोक, मोह इ०) आध्यायिक वि० वेदाध्ययनमां रत आध्ये १५० ध्यान धरQ (२) स्मरण करवू (३)चिंतन करवं; याद करवं आध्वनिक वि० प्रवासी; वटेमार्ग आनण्य आनक पुं० ढोल ; नगारुं (युद्धमुं) (२) गर्जना करतुं वादळ आनत वि० नमेलं; प्रणाम करेलु (२) नीचे नमेलुं (३) नम्र आनति स्त्री० नमवू ते (२) नमस्कार; प्रणाम (३) नम्रता आनद्ध वि० बांधेलु (२) मढेलं आनन न० मुख; चहेरो (२) पुस्तकनो विभाग-खंड आनम् १५० प्रणाम करवा (२) नमवू; नमी पडवू (३) नीचा पडवं आनयन न० लावद् - आणवू ते (२) यज्ञोपवित (जनोई) आपq ते आनंतर्य न० तरत ज पछी आववं ते. (२) छेक निकटता; (देश-काळनी) वचगाळो न होवो ते आनंत्य न० अनंतता (२) शाश्वतता (३) उत्तम लोकनी प्राप्ति । आनंद १५० आनन्द पामवं; खुश थवं आनंद पुं० हर्ष; प्रसन्नता (२) परब्रह्म (३) न० परब्रह्म आनंदन वि० आनंददायक;सुखकारक आनायिन् पुं० माछीमार आनी १५० लई आव; लावद् (२) उत्पन्न करवू (३) (स्थितिने)पमाड, आनीति स्त्री० पासे लई जq ते आनुकूल्य न० अनुकूलता ; सगवड (२) कृपा; महेरबानी आनुजीव्य न० सेवकनो आचार आनुपूर्व न०, आनुपूर्वी स्त्री०, आनुपूर्वी न० परिपाटी; क्रम आनुयात्रिक पुं० अनुचर : अनुयायी आनुषंगिक वि० अमुकना संबंधवाळु; सहवर्ती (२) गौण ; प्रासंगिक (३) सूचित; ध्वनित (४) अनिवार्य; अपरिहार्य (५) आसक्त; वारंवार जतुं आवतुं (६) समान; सरखं आनृण्य न० देवामांथी मुक्त थर्बु ते [सवार Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानृशंस आनृशंस, आनृशंस्य वि० दया; मायाळु (२) न० दयाळूपणुं; दया आन्वीक्षिकी स्त्री० आत्मविद्या (२) तर्कशास्त्र आप ५ प० मेळवदूं; पामq (२)पासे पहोंचq (३) व्यापवू आपगा स्त्री० नदी आपण पुं० बजार; दुकान (२) वेपार आपणक, आपणिक वि० बजार संबंधी; व्यापार संबंधी (२) बजारमाथी प्राप्त थयेलं (जकात) (३) पुं० दुकानदार; वेपारी (४) दुकानो उपरनो कर आपत् १५० हुमलो करवो; तूटी पडवू (२) पहोंचवू ; पासे आवq (३) वेगे घस, (४) थर्बु ; बनवु (५) माथे आवी पडवु (६) स्फुर; लागवं आपत्काल पुं० दुःखनो - संकटनो समय आपत्ति स्त्री० -ना रूप थई जq - बनी जq ते (२) प्राप्ति (३)आफत; विपत्ति (४) भंग; उल्लंघन ; दोष आपद् ४ आ० नजीक जq (२) -ना रूप बनवू;-नुं रूप प्राप्त कर (३) विपत्तिमां आवी पडवू (४) बनवू; थवं आपद् स्त्री० संकट; विपत्ति (२) दुर्भाग्य आपदा स्त्री० आपत्ति (२) दुर्भाग्य आपद्गत, आपद्ग्रस्त वि० दुःखमां आवी पडेलु; दुःखी (२) दुर्भागी । आपद्धर्म पुं० आपत्तिना समयनो धर्म; आपत्तिना समय न छूटके धर्मशास्त्रे जे करवानी रजा आपी होय ते आचार । आपन्न वि० पामेलं; प्राप्त (२) -मां जई पडेलु; -ने प्राप्त थयेलं (३) दुःखमां आवी पडेलु (४) आवी पडेलु आपन्नसत्त्या स्त्री० गर्भिणी; सगर्भा स्त्री आपस्कार न० शरीरन थडियं आपा १५० [आपिबति पी जq (२) (कान के आंख वडे) खूब ध्यानथी जोवू के सांभळवं आप्तकाम आपात पुं० उपर तूटी पडq ते - धसी जवू ते (२) नाखवू ते; पाडवं ते (३) चालु क्षण; चालु समय (४) अचानक आवq ते आपाततः अ० नजर पडतां ज; तत्काळ आपात्य वि० धसी आवत:हमलो करतुं आपाद पुं० प्राप्ति (२) फलप्राप्ति आपादन न० थाय एम करवू ते; कोई स्थितिमां लावq ते आपान न० (दारू) पीवानी महफिल (२) दारूनुं पीठं (३) हवाडो आपिंजर वि० रताश पडतुं आपीड् १० प० दाबवू ; भार देवो (२) पीलवू; कचर आपीड वि० दुःख आपतुं; ईजा करतुं (२) कचरतुं; पीलतुं (३) पुं० माथे बंधाती कलगी ; तोरो (४)झरj आपीत वि० पीळाश पडतुं (२) थोडं पीधेलु [आउ; आंचळ आपीन वि० जाडु (२,पुं० कुवो (३)न० आपूर पुं० प्रवाह; पूर (२) भरी काढवू ते आपूरण वि० भरी काढतुं; पूर्ण करतुं (२) न० भरी काढवू ते आपूर्यमाण वि० भरी कढात; पूर्ण करातुं आपूष न० कलाई नमस्कारायेलु आपृष्ट वि० पुछायेलु (२) सत्कारायेलं; आप ९ उ० भरवू; पूर्ण करवू आपेक्षिक वि० अपेक्षा ऊभुं करतुं आप्त ('आप'नुं भू० कृ०) वि० प्राप्त (२) विश्वासपात्र (३) यथार्थ ज्ञानवाळू (४) युक्ति - दलीलवाळु (५) कुशळ (६) संपूर्ण ; पुष्कळ (७) परिचित; संबंधी (८)पहोंचेलं ; व्याप्त (९) पुं० स्नेही ; मित्र ; संबंधी (१०) विश्वासपात्र माणस आप्तकाम वि० जेनी इच्छा पूर्ण थई छे तेवू (२) जेणे सर्व सांसारिक वासनाओनो त्याग कर्यो छे एवं Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप्तकारिन् आप्तकारिन पुं० विश्वासु नोकर के कर्मचारी आप्तवचन न० विश्वासपात्र के प्रमाणभूत माणसनुं वचन (२) वेद के शास्त्रनुं प्रमाणभूत वचन आप्तवाच् वि० जेनुं वचन प्रमाणभूत गणा तेवं (२) स्त्री० जुओ 'आप्तवचन' आप्ति स्त्री० प्राप्ति; लाभ ( २ ) संयोग; संबंध (३) समाप्ति; परिपूर्णता आप्याय पुं० जाडा के पूर्ण आप्यायन न० पूर्ण के जाडुं करवुं ते; (२) प्रसन्न - तृप्त करवुं ते; प्रसन्नता; तृप्ति ( ३ ) वृद्धि विकास; पुष्टि आप्ये १ आ० जाडा धनुं पूर्ण थ - प्रेरक० जाड़ कर पूर्ण कर (२) संतुष्ट करवुं खुश कर आप्रच्छ् ६ आ० | आपृच्छते ] विदाय मागवी; विदाय लेवी ( २ ) पूछबुं (३) प्रशंसा करवी | (वस्त्र, माळा इ० ) आपदीन वि० पगना छेडा सुधी पहोंचतुं आप्लव पुं०, आप्लवन न० डूबकुं मारखुं ते; नाहवं ते ( २ ) बधी बाजुए पाणी छांटते आपला पुं० स्नान; डूबकी ( २ ) महापूर (३) जळ छांटवुं - उछाळवुं ते आलु १ आ० कूदवु ; ऊछळबुं (२) नाहवं; डूबकुं मारखुं - प्रेरक० नवराववुं ( २ ) धोबु; छांटवु; पलाळ (३) छलकावत्रुं; ऊभराववु (४) - ना उपर रेलाववुं (पूर ) आप्लुत वि० नाहेतुं ( २ ) छांटेलु; भीनुं करेलुं (३) –श्री रेलायेलुं; ऊभरायेलु (४) ग्रस्त छवायेलुं आप्लुष्ट वि० थोडं दाझेलुं के बलेलुं आफलक पुं० आड; वाड आबद्ध वि० बांधेलु - बंधायेलुं ( २ ) रचायेलु - रचेलु (अंजलि, कूंडाळं इ० ) (३) स्थिर करेल ७५ आभीर आब ९ प ० [ आबध्नाति ] बांधवुं (२) रचवं (३) वळवं आबंध पुं०, आबंधन न० दृढ बंधन ( २ ) जोत; जूंसरानुं बंधन आबाध पुं० पीडा ; ईजा (२) उपद्रव; हरकत; विघ्न तापरूप क्लेश आबाधा स्त्री० पीडा ( २ ) त्रण प्रकारना आब्दिक वि० वर्षनुं; वर्षने लगतुं आभरण न० अलंकार (२) पोषण आभा २ प ० प्रकाशवुं (२) देखावुं आभा स्त्री० प्रकाश कांति; प्रभा (२) शोभा सौंदर्य ( ३ ) सादृश्य ( ४ ) छाया प्रतिबिंब आभाणक पुं० लोकोक्ति; कहेवत आभाष १ आ० वात करवी; संभाषण करवुं; कहेवुं ( २ ) मोटेथी बूम पाडवी आभाष पुं०, न० संभाषण; वातचीत (२) प्रस्तावना; उपोद्घात ( ३ ) कहेवत आभाषण न० संबोधन ( २ ) वातचीत आभाष्य वि० संबोधवा - कहेवा लायक आभास स्त्री० प्रकाश; तेज आभास १ आ० प्रकाशित करवु; प्रकाश (२) देखावुं; -ना समान देखावुं ( ३ ) आभास थवो आभास पुं० प्रकाश; तेज ( २ ) प्रतिबिंब ; छाया (३) सादृश्य; -ना जेवु देखावु ते ( ४ ) भ्रम; खोटो देखाव ( ५ ) इरादो; स्याल | वगेरेथी करेलुं आभिचार, आभिचारिक वि० मंत्र तंत्र आभिजन वि० वंशने कारणे मळेलं; वंश संबंधी ( २ ) न० कुलीनता अभिजात्य न० कुलीनता; खानदानी (२) पांडित्य ( ३ ) सौन्दर्य अभिमुख्य न० - नी तरफ, होतुं ते ( २ ) तत्परता; प्रवणता आभिरामिक वि० प्रिय; सुन्दर; मनोरम अभिषेचनिक वि० अभिषेक संबंधी आभीर पुं० अभीर; गोवाळ -ती संमुख Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ आभील आभील वि० भयंकर(२)न० दुःखपीडा आभुग्न वि० थोडं वांकुं वळेलं आभृत वि० उत्पन्न करेलु; सरजेलु (२) पूर्ण; स्थिर आभोग पुं० वांक; बळांक (२)विस्तार; आसपासनो भाग (३)नागनी फेलावेली फणा (४) भोग ; तृप्ति आभ्यंतर वि० अंदरन; मांहेलं आभ्यासिक वि० अभ्यास के महावरामांथी परिणतुं (२) निकटर्नु आभ्युदयिक वि० उन्नति, आबादी के कल्याण करनारु (२) कशाना उदय के शरूआतने लगतुं आम् अ० 'हा'; 'हां'; 'हे' (स्वीकार, संमति, स्मृति, निश्चय दवि छे) आम वि० काचु; अपरिपक्व (२) नहि रंधायेलु (३) नहि पचेलं (४) पुं० रोग (५) अजीर्ण (६)न०काचं के कूणुं होवू ते (७) कबजियात; पराणे के खराब झाडो थवो ते आमय पुं० व्याधि; रोग (२) हानि; नुकसान; नाश (३) अजीर्ण आमरणांत, आमरणांतिक वि०" मरण पर्यंतनुं -दबाव ते आमर्द पुं० कचर, ते (२) चोळी नांखवू आमर्श पुं०, आमर्शन न० गाढ स्पर्श (२) लूछवं ते (३) सलाह; विचारणा (४) मनोवृत्ति [(२) अधीराई आमर्ष पुं०, आमर्षण न० क्रोध ; गुस्सो आमलक पुं० आमळू आमंजु वि० सुन्दर; रमणीय आमंत्र १० आ० बोलावq ; आमंत्रण आपq - नोतरवू (२)संबोधवं; कहे; वातचीत करवी (३) विदाय लेवी आमंत्रण न०, आमंत्रणा स्त्री० संबोधन; बोलाववं ते (२) वातचीत; कहेवं ते (३) निमंत्रकुं ते आमंत्रित वि० आमंत्रेलु आम्नाय आमंद्र वि० थोडी घेरी गर्जनावाळं आमिष न० मांस (२) शिकार; भोग्य पदार्थ (३) लांच (४) लोभ (५) लोभाववा माटेनी वस्तु (६) मोह उपजावनार पदार्थ आमील १०प० मीच (आंख) आमुक्त वि० छूटुं करेलु (२) पहेरेलु (३) छोडेलु ; फैकेलं; काढी नाखेलु। आमुख न० आरंभ; शरूआत (२) ग्रंथनी प्रस्तावना आमुच् ६ उ० आमुचति-ते] जवा देवं; छोडी देवु (२)पहेरवू;धारण कर, (३) छोडवू; फैकवू (४) काढी नांखवू; फेंकी देवं (वस्त्र) आमुष्मिक वि० परलोक मंबंधी आमुष्यायण पुं० जुओ 'अमुष्यपुत्र' आमृद् ९ प० चोळी नाखवू (२) निचोवी नाखवू आमश् ६ प० स्पर्श, मर्दन करवू (२) पकड; खावू (३) हुमलो करवो (४) घस; लूछी नाखवु (५)विचार करवो आमृष्ट वि० स्पर्गेलु (२) पकडेलं; हुमलो करेलु (३) मर्दन करेलु (४)लूछेलं आमोक्षण, आमोचन न० छूटुं करवं ते (२)छोडवु ते फेंकवु ते (३) पहेरवुधारण करवु ते आमोटन न० भूको के चूर्ण करवं ते आमोद पुं० आनंद (२) सुगंध आमोदिन् वि० हर्षित (२) सुगंधित आम्ना १ प० । आमनति ] शास्त्रवाक्यरूपे कहे; प्रवर्तित करवू (२) याद करवं; अभ्यास आम्नात वि० सारी पेठे अभ्यासेलु (२) कहेलं; उपदेशेल; शास्त्रवाक्य रूपे प्रवर्तावेल (३) मानेलं ; गणेलं आम्नाय पुं० परंपराथी चालतां आवेल वेद वगेरे शास्त्र (२) परंपराथी चालतो आवेलो आचार (३) शास्त्रोपदेश Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आन अत्र पुं० आंबा वृक्ष ( २ ) न० केरी आम्रवण न० आंबानुं वन आम्ल वि० खाटुं ( २ ) न० खटाश आय पुं० आववुं ते ( २ ) लाभ; प्राप्ति (३) आवक, नफो ( ४ ) उपाय ; साधन आयत् १ ० प्रयत्न करतो (२) आधार राखवो आयत वि० दीर्घ; लांबु (२) मोटुं विशाल (३) खेलुं खेंचायेलु (४) नियंत्रित ( २ ) दूरनुं भविष्यनुं आयतन न० स्थान; ठेकाणुं ( २ ) निवासस्थान ( ३ ) यज्ञस्थान ( ४ ) देव वगेरेनुं स्थान आयतम् अ० लांबुं - दीर्घ होय तेम आयति स्त्री० लंबाई (२) विस्तार ( ३ ) भविष्यकाळ ( ४ ) फळ ; परिणाम ( ५ ) प्रभाव; तेज ( ६ ) संयम; निग्रह ( ७ ) वंश; संतति [करना; थाकेलु आयत्त वि० आधीन तावे ( २ ) प्रयत्न आयदर्शिन् वि० महेसुल उघरावनाएं आयम् १ उ० लंबावं; लांबु करवुं ( २ ) निग्रह करवो; अंदर खंचवुं (श्वास) (३) पकडवुं ; लेबुं ( ४ ) - नी तरफ दोखुं - लावत्रु आघस् ४ १० उद्यम करतो; प्रयत्न करवी (२) थाकी जं - प्रेरक पीडवु; त्रास आपको (२) raaj (३) पण चडाववी आयस लोढा के धातुनुं बनेलुं (२) लोढाना रंगनुं ( ३ ) न० लोखंड ( ४ ) लोखंड बने कई पण शस्त्र; ओजार आया २प० आवj ( २ ) पामवुं; पहोंचबुं (कोई दशाने ) ( ३ ) परिणमनुं आयात वि० आवेलुं (२) पामेलु; पहोंचेलु (दशाने ) (३) न० उद्रेक आयाम पुं० लंबाई, विस्तार ( २ ) लांबु करते; विस्तारवुं ते ( ३ ) नियमन आस पुं० अति यत्न प्रयास ( २ ) थाक ७७ आरात्रिक आयुक्त वि० नियुक्त ( २ ) जोडायेलं आयुज् ७ आ० जोडवु; जोतरवु; बांधवु (२) नीमबुं आयुध पुं०, न० शस्त्र; हथियार आयुर्वेद पुं० वैदक शास्त्र आयुष न० आयुष्य आयुष्कर fro आयुष्य वधारनाएं आयुष्मत् वि० जीवतुं ( २ ) लांबा आयुष्यवाळु [ जीवनशक्ति आयुष्य a० आयुष्यवर्धक ( २ ) न० प्राण; आयुस् न० आयुष्य ; जीवन (२) प्राण आयोग पुं० निमणूक; सोंपणी ( २ ) संबंध आयोजन न० जोडवं ते (२) उद्योग; प्रयत्न ( ३ ) लेवुं ते; एकठ्ठे करवुं ते आयोधन न० युद्ध (२) रणभूमि आरक्ष पुं०, आरक्षा स्त्री० रक्षण ( २ ) हाथीना कुंभस्थळतो नीचलो भाग (३) लश्कर; सैन्य [न० जंगल; वन आरण्य वि० अरण्यनुं; जंगली (२) पुं०, आरण्यक वि० जंगली ; जंगलमां उत्पन्न येलु (२) पुं० अरण्यवासी (३) न० अरण्यमां रचायेलो के अरण्यवासीना धमों के तेमनां चिंतनो निरूपतो ग्रंथ आरत वि० थोभेलुं; अटकेलं आरति स्त्री० निवृत्ति; उपरति ( २ ) आरती उतारवी ते आरब्ध वि० शरू करेलुं आरम् १ आ० शरू करवुं; आरंभ करो (२) उद्यम करवो आरम् १ १० आनंद माणवो; रमवुं (२) विरमवं; अटकवुं (३) थाक खावो आरंभ पुं० प्रारंभ; शरूआत (२) त्वरा (३) उद्यम (४) कार्य; क्रिया; व्यापार (५) वध; हिंसा आरा स्त्री० चमारनी आरी आरात् अ० नजीक; पासे (२) दूर आराति पुं० शत्रु दुश्मन आरात्रिक न० आरती Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आराष् ७८ आराध ५, १० प० प्रसन्न करवू (२) पूजा करवी; आदर करवा आराधन न० प्रसन्न करवू ते; साधq ते (२) प्रसन्नता; संतोष (३) पूजा; उपासना; संमान आराधनीय वि० आराधवा योग्य (२) साधवा योग्य आराधयित वि० पूजक; उपासक; सेवक आराषयिष्णु वि० प्रसन्न करवा प्रयत्न करतुं; सेववानी इच्छा राखतुं आराध्य वि० जुओ 'आराधनीय' आराम पुं० आराम ; विश्रांति (२) आनंद (३) बाग ; बगीचो आराव पुं० बूम ; गर्जना (२) गुंजारव आराविन् वि० अवाज करतुं आरास पुं० चीस ; बुमाटो आरु २५० बूम पाडवी आरुज वि० पीडा करतुं; त्रास आपतुं आरुत न० अवाज; ध्वनि । आरध् ७ उ० घेरो घालवो (२) दूर राखवू; अटकावq आरुरुक्षु वि० उपर चडवानी के -ने प्राप्त करवानी इच्छावाळू आरह, १ प० ऊंचे चडवू (२) सवारी करवी (३) लेवू; माथे लेवु (प्रतिज्ञा इ०) (४) पामकुं; पहोंचवें -प्रेरक० [आरोहयति, आरोपयति] ऊंचे चडाववृं; उपर चडाव_ (२) सवारी कराववी; बेसाडवु (३) पहोंचाडवु (४) स्थिर करणे ; मूकवं (५)आरोपवू (६) पणछ चडाववी आरूढ वि० उपर चडेलु ; सवार थयेल आरूढि स्त्री० चडती; उन्नति आरेचित वि० खाली करेल (२) भेळवेल (३) संकोचेलु आरोग्य न० तंदुरस्ती; कुशळता आरोध पुं० घेरो आरोप पुं० मूकवू ते; लादq ते (२) आर्य आरोप मूकवो ते (३) एक वस्तुना गुणन बीजी वस्तुमा आरोपण करवू ते आरोपण न० मूकवू ते; स्थापवं ते; चडाव ते (२) वावq ते (३) धनुष्यनी पणछ चडाववी ते आरोह पुं० ऊंचे चडवं ते ; मवारी करवी ते (२) चडनार ; सवारी करनार (३) ऊंची जगा; ऊंचाण: चडाव (४)पर्वत; ढगलो (५) गर्व; अभिमान (६)स्त्रोतो नितंब (२) हांकनार आरोहक पुं० सवारी करनार; सवार आरोहण न० ऊंचे चडवू ते (२) - उपर सवार थर्बु ते (३) निसरणी (४) नृत्य माटेनी ऊंची रंगभूमि करना आरोहिन वि० ऊंचे चडना (२)जगारी आर्जव न० सरलता; मीयामj (२) नम्रता (३) प्रामाणिकता। आर्त वि० -थी पीडित (२) रोगी आर्तनाद पुं० दुःखनो अवाज । आर्तव वि० ऋतु मंबंधी (२) स्त्री ओना मासिक ऋतुस्राव संबंधी (३) __ न० स्त्रीओनो मासिक ऋतुमात्र आर्तस्वर पुं० जुओ 'आर्तनाद' आति स्त्री० दुःव ; पीडा (२) गाधि (३) नाग (४) मानसिक दुःख; विता आर्थ वि० शब्दार्थ संबंधी (२) पदार्थ मंबंधी आर्थिक वि० अर्थयुक्त; शब्दार्थने लगत (२) डायु (३) संपत्तिमान (४) वास्तविक ; खरु आर्द्ध न० समृद्धि; विपुलता आर्द्र वि० भीन: भेजवाळं (२) गीलं; सूकुं नहि तेवू (३) ताजु (४) पोगळो गयेलं (स्नेह, दया इ० थी) आर्ध वि० अर्ध (समासना प्रारंचनां; उदा० आर्धमानिक) आर्य वि. आर्य जातिन (२) आर्य ने छाजे तेवू (३) संमाननीय ; लायक; Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आली आर्यक ७९ शिष्ट (४) उच्च ; श्रेष्ठ (५) पु० प्राप्त करवु (३) वध करवो; कापq (४) आर्य जातिनो मनुष्य (६) ब्राह्मण, पकडवु; झालq (५) जीती लेवू; मेळवी क्षत्रिय के वैश्य (७) संमाननीय पुरुष लेवं [गाम (४)निवासस्थान (८) श्रेष्ठ कुळमां जन्मेलो माणस आलय पुं०, न० स्थान; धाम (२) घर (३) (९) ससरो (जेम के 'आर्यपुत्र' मां) आलयम् अ० मृत्यु पर्यंत (१०)न० पुण्य ; शील (११)विवेक आलर्क वि० हडकायेला कूतरानुं आर्यक पुं० दादो (२) समाननीय पुरुष आलवाल न० (वृक्षनी आसपासनो) आर्यगृह्य वि० आर्यपक्षनें __ क्यारो आर्यजुष्ट वि० आर्योए सेवेल - अनु- आलस्य न० आळस सरेलु; आर्यने छाजतुं आलंब १ आ० आधार राखवो; टेको आर्यदेश पुं० आर्य लोकोनो देश लेवो (२) लटकवु (३)पकडवू; लेवू आर्यपुत्र पुं० समान्य पुरुषनो पुत्र (२) आलंब वि० लटकतुं (२) पुं० आश्रय; पतिनुं संबोधन (नाटकमां) आधार (३) पात्र आर्यमिश्र वि० पूज्य ; संमाननीय पुरुष आलंबन न० आधार; टेको (२)कारण; हेतु (३) पात्र टेको आपेल (२) पुं० सद्गृहस्थ ; सज्जन पुरुष । आर्यवृत्त न० आर्यपुरुषनो सदाचार आलंबित वि० लटकतुं (२) पकडेलु; आलंबिन वि० लटकतुं (२) -ना आर्यसत्य न० आर्य-बुद्धे बतावेलु सत्य (दुःखनो उपाय वगेरे बाबत) आधारवाळं; -ने आश्रये रहेल (३) टेको - आधार आपतु हिंसा आर्या स्त्री० पूज्य के समाननीय स्त्री आलंभ पुं०, आलंभन न० स्पर्श (२) (२) सासु (३) पार्वती आलान न० हाथीने बांधवानो थांभलो; आर्यावर्त पुं० आर्यो- मूळस्थान(उत्तरमा ते माटेर्नु दोरडु (२) बंधन हिमालय, दक्षिणमां विध्य, तथा आलाप पुं० संभाषण; वातचीत (२) पश्चिम अने पूर्वमा महासागरथी कही बताव ते घेरायेलो प्रदेश) आलापन न० संभाषण ; वातचीत (२) आर्ष वि० ऋषि संबंधी; ऋपिन (२) स्वस्तिवाचन; आशीर्वचन पवित्र ; अलौकिक (३) वेद संबंधी; आलि पुं० भमरो (२) वींछी वेदन (४) पुं० विवाहनो एक प्रकार आलि स्त्री० सखी; सहचरी (२) हार; (वर पासेथी गायनी एक-बे जोड आवलि (३) खणq; स्पर्श लईने कन्या आपे) आलिख ६ प० लखवू (२)चित्र काढवू आलक्ष १० उ० जोवू देखातुं आलिप ६ प० [आलिंपति ] लेप आलक्ष्य वि० नजरे पडतुं (२) थोडं करवो; चोळवू ; खरडवू आलजाल न० छळकपटरूपी जाळ आलिप्त वि० लेप करेलु; खरडेलु (२) आलप् १ प० बोलवू; कहे ; वातचीत लीपेलं; धोळेलं आलिंग १ उ०, १० प० भेटवू आलब्ध वि० स्पर्शायेलं; संयुक्त (२) आलिंगन न० भेटवं ते आवलि मेळवेलं; जीती लीधेलु (३) वध आली स्त्री० सखी ; सहचरी (२)हार; करायेलं; हिसित आली ४ आ० उपर बेस; अंदर घूसी * आलभ् १ आ० स्पर्श करवो (२) मेळव; जq (२) मूछित थवं करवी Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० आलोढ आलीट वि० चाटेल; चाखेल (२)ईजा पामेलुं (३) न० लक्ष ताकती वखते जमणो ढींचण आगळ करी, डाबो पग पाछळ करी, भरातो पेंतरो आलीन वि० भेटेलु ; वळगेलु ; चोटेखें आलुङ १ प०, -प्रेरक० डखोळवं; हलाव आलुलित वि० थोडं क्षुब्ध थयेलु आलंचन न० चीरी नाखवू - फाडी नाखवं ते आलून वि० चूंटेलु; तोडेलु; छेदेखें आलेख पुं० लखवू ते (२)पत्र ; खत आलेखन न० खोतर ते (२) चीतर ते (३) लखवते आलेखनी स्त्री० पीछी; कलम आलेख्य न० चित्र (२) लेख ; लखाण । आलेख्यशेष वि० मृत (जेनु चित्र ज बाकी रहयुं छे तेवं) आलोक १ आ०,१०प० जोवू; निहाळवं (२) गणवू; मानवू (३)अभिनंदवू आलोक पु० जो ते (२) देखावू ते; नजरे पडq ते (३) प्रकाश; तेज (४) दृष्टिमर्यादा (५) ग्रंथविभाग (६) प्रशंसावचन आलोकक पुं० द्रष्टा; जोनार आलोकन न० आलोक - जो ते आलोकनीय वि. जोवा योग्य (२) विचारवा योग्य आलोकित न० नजर; कटाक्ष आलोच् १ आ०,१० उ० जोवू; विचारवं. आलोचित वि० जोयेलु; विचारेल भालोडित वि० डखोळेलं; हलावेलु १२) मिश्रित करेलं; भेळवेलं आलोल वि० चंचळ (जेमके आंख) (२) हालतुं; क्षुब्ध आवपन न० वावq ते ; वेरवु ते (२) मुंडन; वाळ कपाववा ते आवरण वि० ढांकनारुं (२) न० ढांक, ते (३) आवरण; ढांकण (४) रुकावट आवह (जेम के लज्जानी)(५) वंडो; भीत; कोट (६) बख्तर (७) चामडानुं मोजें (धनुष्य वापरती वखते पहेरवान) आवर्जन न० नमावQ ते ; वाळवू ते (२) आप ते (३) जीती लेवु ते आजित वि० नमेलु; वळेलु (२) वहेवगवेलु; रेडेलु (३) नमावेलं; वश करेलु आवर्त पुं० चक्राकारे गोळ फरवू ते (२) पाणी- वमळ ; भमरो (३) मनमां वारंवार चितवq ते;चिंता -विचारणा (४) घोडाना शरीर परनो गूंबळिया वाळनो गुच्छो शुभ गणाय छे) (५) संशय आवर्तक पुं० बार प्रकारना मेघोमांनो एक (२) भमर उपरनो खाडो (३) चक्राकारे फरवू ते (४) मनमां आवर्तन - करवं ते ५ पाणीनु वमळ फरवू ते आवर्तन न० पार्छ फरवु ते (२) चक्राकारे आवलि स्त्री० हार ; ओळ (२)परंपरा आवलित वि० थोडं वळेल आवली स्त्री० जुओ आवलि' आवल्गित वि० ऊछळत आवल्गिन् वि० कूदतु ; नाचतुं आवश्यक वि० जरूरनु ; अगत्यनु (२) __ अनिवार्य आवस् १५० रहे, (२) प्रवृत्त थव ; प्रवेश करवो (३) व्यतीत कर; गाळ (रात) आवसति स्त्री० रात्रि; मध्यरात्रि आवसथ पुं० घर; निवासस्थान विश्रांतिस्थान (२) विद्यार्थीओ के भिक्षुओ माटेनं निवासस्थान (३)गामडं (४) यज्ञनो अग्नि राखवानं स्थान । आवह. १५० लावयु (२) आणुं करवू (नवोढार्नु) (३) उपजावq; पेदा करवं (शरम इ०) (४) दोरी जवू; लई जवू (५) पहेर ; धारण कर (६) अखत्यार कर Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवह ८१ आशय आवह वि० लावनाएं; उत्पन्न करनाएं (उदा० दुःखावह) आवाप पुं० खेतरमां बीज वाववां ते (२) वृक्षनी आसपासनो क्यारो (३)शत्रु के परराष्ट्र अंगे विचारणा (४) कंकण आवास १० प० सुगंधित करवू भावास पुं० निवासस्थान ; घर (२) आश्रयस्थान वाह पुं० एक धार्मिक विधि वाहन न० बोलाव-निमंत्र ते(२) देवनं आवाहन न ऊन- वस्त्र गविक वि० ऊन- (२) घेटा संबंधी (३) विद् २ उ०, -प्रेरक० जणावq; निवेदन कर, (२) अगाउथी जाण करवू (३) बक्षिस आपवी विद्ध ('आव्य 'न भू० कृ०) वि० वोंधायेल; छेद पडायेलु (२) वांकु; वळेलु (३) जोरथी फेंकेलं (४) एकबीजा पासे नाखेलते (२) अवतार विर्भाव पुं० प्रकट थq ते ; प्रकट करवं विk १ प० प्रकट थy; देखावू पविल वि० दुषित;मलिन (२) अस्वच्छ; गं, (३)अगुद्ध (४) काळाश पडतुं (५) झांखु ; अस्पष्ट विश् ६ प० प्रवेश करवो (२) पासे जव (३) कबजो लेवो (भय, क्रोध इ० लागणीओए) (४)अमुक स्थिति प्राप्त करवी (सुख, दुःख इ०) आविष्करण न०, आविष्कार पुं० प्रकट थवले; प्रकट करवं ते विष्कृ ८ उ० खुल्ल करव; प्रकट कर गाविष्कृत वि० प्रकट करायेलं-थयेल (२) प्रसिद्ध थयेलं माविष्ट वि० प्रवेशेलु (२) ग्रस्त (भूतप्रेतादियो के भयक्रोधादिथी) (३) तत्पर; मग्न विस् अ० प्रकट ; खल्लं; नजर सामे हावुक पुं० पिता; बाप (नाटकनी भाषामां) आधुत्त पुं० बनेवी आव ५, ९, १०, उ० ढांकवु (२) वर; पसंद करवू (३) व्याप; भरी काढवू (४) रोकवू; निवारवू आवृज १ आ० आपq (२) तरफ वळवं (३) पसंद कर -प्रेरक० वाळवू; नमाव (२) जीती लेवू; मनावी लेवू; खुश करवू (३) भेगु करवू; लाव (४) आपy; वरसावq (५) खेंची लेवू; काढी लेवू (६) ठालव, आवत् १ आ० गोळ फरवू (२) पार्छ फरवू; पार्छ वळवू (३) तरफ जर्बु -प्रेरक० फेरवयु (२) गबडावq; उलटावद् (३) रेलावद् (आंसु) (४) पुनरावृत्ति करवी आवृत्त वि० गोळ फरेलु (२)पार्छ फरेलु के फेरवेल (३) पुनरावृत्ति करेल (४) गोखलं (५) नासी गयेलं आवृत्ति स्त्री० पुनरागमन ; पाछा फरवू ते (२) पलायन (३) गोळ फरवं ते ; आसपास फरवू ते (४) फरी फरीने जन्म-मरण पामवां ते (५)फरी फरीने अभ्यास (६) एकनी एक क्रिया फरी फरीने करवी ते आवेग पुं० जुस्सो; आवेश (२) क्षोभ ; व्यग्रता (३) त्वरा; उतावळ आवेश पुं० प्रवेश (२) जुस्सो; ऊभरो (३) गुस्मो (४) अभिमान; अहंकार (५) अभिनिवेश; आसक्ति (६) वळगाड (भूत बगेरेनो) आवेष्ट १० प० ढांक; बिछावq (२) - आमळवू आवेष्टन न० ढांकण (२) वींटq - बांधवू ते (३) वाड; कोट आश पं० खावू ते; भोजन आशय पु० अभिप्राय; इरादो (२)विभव; समृद्धि;मिलकत(३)वासनारूप संस्कार ()भाग्य; अदृष्ट (५) चित्त (६) शयन Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशंक ८२ आश्वास स्थान (७) सूर्बु ते - शयन (८)निवास- आशुतोष वि० जलदीथी प्रसन्न थाय एवं स्थान; आधारस्थान ; आधार (९) (२) पुं० शंकर पशने पकडवा माटे करातो खाडो आशुशुक्षणि पुं० पवन (२) अग्नि आशंक १ आ० शंका करवी; वहेम आश्चर्य वि० अद्भुत; विलक्षण (२) लाववो (२) बीवू; डर (३) कल्पवू न० आश्चर्यकारक वस्तु के बनाव (३) आशंका स्त्री० शंका; संशय (२) भय (३) अचंबो; विस्मय अविश्वास; वहेम आश्मन वि० पथ्थरनुं बनेलं आशंस् १ आ० (कदीक प०) आशा आश्यान वि० सुकाईने गठ्ठो थयेलु राखवी;इच्छा राखवी (२) शुभ इच्छवं आश्रम पुं० साधु-तपस्वीनो निवास; (३)प्रशंसा करवी (४) डर (५) कहेवू - झूपडी (२) तपोवन (३) जीवननो आशंसा स्त्री० इच्छा (२) आशा (३) विभाग (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ कल्पना (४) कथन अने संन्यास -ए चारमांनो कोई पण) आशंसु वि० आशावाळू; इच्छावाळं। आश्रमधर्म पुं० तपस्वीनो धर्म (२) आशा स्त्री० उमेद; धारणा (२)दिशा दरेक आश्रममुं कर्तव्य आशातंतु पुं० आशानो तांतणो आश्रमपद न० आश्रम अने तेनी आजुआशाबंध पुं० आशानुं बंधन; आसानो बाजुनो प्रदेश; तपोवन आधार; आश्वासन [वस्त्रवाळं) आश्रय पुं० आधार (२) निवासस्थान(३) आशावासस् वि० नग्न (दिशाओ रूपी आश्रयस्थान (४) बाण राखवा, भा) आशास् २ आ० आशीर्वाद आपवो (२) आश्रयण वि० आश्रय लेतुं - शोधतुं इच्छq; आशा राखवी (३) हुकम (२)-ने लगतुं; -ता संबंधी । करवो; आज्ञा करवी (४) प्रशंसा करवी आश्रव वि० आज्ञांकित ; नम्र (२) पुं० आशास्य वि० आशीर्वादथी प्राप्त करवा वचन (३) करार (४)दोष ; क्लेश योग्य (२) आशीर्वाद आपवा योग्य (३) आश्रि १ आ० आधार लेवो; आश्रय इच्छवा योग्य (४) न० इच्छा (५) लेवो (२) अनुभवq (३) चोटवू; आशीर्वाद [खाउधरुं वळगवू (४) पसंद करवं आशित वि० भोजनथी तृप्त थयेलु (२) आश्रित वि० आशरे रहेल-आवेलं (२) आशिन वि० खानारुं ; खातुं (समासमां; -मां रहेतुं -वसतुं; उपर रहेढुं-बेठेलु उदा० 'फलाशी') - आवेलं (३) -ने उपयोगमा लेतुं (४) आशिस स्त्री० आशीर्वाद (२) इच्छा -ने आचरतुं (५) संबंधी; ने लगतुं (६) (३) सापनी दाढ पं. आशरे रहेलो सेवक - दास आशी २ आ० उपर सूवं (२) सूवामां आश्लिष ४ प० भेटवं (२) चोटवू पसार करवू (३) इच्छq;प्रार्थQ (४) आश्लिष्ट वि० आलिंगन करेलुं; भेटेलु वसवं; रहेवू (२) वळगेलं; चोटेलु आशीविष, आशीविष पुं० (जेनी दाढमां आश्लेष पुं० आलिंगन; भेटवू ते (२) विष छे तेवो) झेरी साप निकट संबंध आशु वि० उतावळ; वेगयुक्त (२) अ० आश्वस् २ प. श्वास लेवो (२) जलदीथी; त्वराथी पुं० बाण __आश्वासन पामवं; विश्वास राखवो आशुग वि० जलदी जनाएं; उतावळू (२) आश्वास पुं० श्वास लेवो ते (२)सांत्वन Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आश्वासन ८३ आश्वासन ; हिमत; धीरज (३) ग्रंथविभाग; सर्ग (४) समाप्ति आश्वासन न० दिलामो; सांत्वन (२) छटकारानो-निवत्तिनो श्वास लेवोते आश्वामिन् वि० सांत्वना लेतुं-- पामतुं आश्विन पुं० आसो महिनो (२) द्वि०व० अश्विनी कुमारो आषाढ पुं०अमाड महिनो(२)ब्रह्मचारीने आपवामां आवतो खाखरानो दंड आस् अ० जुओ ‘आ:' आस् २ आ० वेस, (२) रहे; बमवं (३) शांत बेसी रहे; विरोध न करवो; निष्क्रिय रहे. (४) होवू (५) अमुक स्थितिमा चालु रहे(६)बाजुए राखg; जतुं करवं धनुष्य आस पं० वेठक ; आसन (२)पु०, न० आसक्त वि० चोटेलं; अनुरक्त (२) तल्लीन ; तत्पर (३) अनवरत ; अखंड आसक्ति स्त्री० अतिशय स्नेह -प्रीति (२)तत्परता ; चोटी - वळगी रहे ते आसत्ति स्त्री० गाढ संबंध; संयोग (२) प्राप्ति ; लाभ (३) वे शब्दो वच्चेनो संबंध - अर्थसंबंध आसद् १५० आसीदति नजीक वेसवं (२) नजीक पहोचवू- जq - मळवू (३)पामवं; जडवं (४) हमलो करवो; मामनो थवो (५) शरू करवं; माथे लेवू (६) मूकवू आसन न० मों ('आस्य' नां रूपोमां द्वितीया द्विवचन पछी विकल्पे मुकातो शब्द) आसन न० बेसवु ते (२)बेसवानी वस्तु (३) वेमवा वगेरेनी रीतोमांनी एक (४) थोभवं -पडाव नाखवो ते आसन्न वि० नजीकन; पासेन (२)आवी पहोंचेलं; प्राप्त करेल; पामेल आसन्नमृत्यु वि० जेनु मृत्यु नजीक आवेलु आस्था आसंग पु० आसक्ति (२) तल्लीनता; तत्परता (३) संबंध; संयोग (४) पहेर-बांधवू ते आसंज् १५० आसजति] बांधg;जोडव; पहेरवु (२)वळगी रहे;आधारे रहे; चोटवू आसंदिका स्त्री० नानी खुरशी आसादन न० पासे मूकवू ते ; स्थापन (२) प्राप्ति (३)आक्रमण हुमलो आसादित वि० प्राप्त; मेळवेल (२) गयेलु ; पहोंचेल (३)सामनो करायेलु ; हुमलो करायेलु आसार पुं० धोधमार वरसाद (२) घेरी वळवू ते (३) मित्र राजानुं सैन्य (४) खाद्यसामग्री आसिधार न० 'असिधारा' व्रत आसीन वि० बेठेल आसुर वि० असुरोने लगतुं (२) दैवी; आध्यात्मिक (३) पुं० राक्षस (४) विवाहना आठ प्रकारोमांनो एक (द्रव्य वडे कन्या खरीदवी ते) आसेक पुं० पाणी छांटवू-सीचवू ते आसेव् १ आ० तत्परताथी आचर, - अमल करवो (२) माणवं ; भोगव (३) सेवा करवी आस्कंद १५० हुमलो करवो; आक्रमण करवु (२) उपर कूदवू आस्कंद पुं० हुमलो; अत्याचार (२) उपर थईने चालवू ते; उपर चडव ते (३) कुदव, ऊछळ ते पाथर| आस्तर पुं० ढांकण;चादर (२) शेतरंजी; आस्तरण न० पाथरवं ते (२) पाथर| (३) ओशिकु; रजाई ; पथारी; तरंजी आस्तिक वि० ईश्वर अने परलोकना अस्तित्वमा माननारु (२)श्रद्धाळ आस्तिक्य न० आस्तिकपणं आस्तीर्ण वि० पाथरेलु (२)पथरायेलं आस्तु (-स्त) ५, ९ उ० पायर आस्था १ उ० आतिष्ठति-ते ऊभा छ तेवं आसव पु० सत्त्व; अर्क (२) गाळेलो दारू Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहूत - -- आस्था ८४ रहेQ (२) उपर चडवू (३)आचरकर क्रियापदनुं त्रीजो पुरुष एकवचन(४) पक्ष लेवो (५) स्वीकार; माथे लेवू रूप ('बोल्यो', 'का' ए अर्थ) आस्था स्त्री० काळजी; दरकार (२) आहत वि० प्रहार करायेलं; घवायेलं आदर; मान (३) श्रद्धा; आशा (२) पग तळे कचरायेल (३) मारी आस्थान न० सभा (२)श्रद्धा (३)आदर नाखवामां आवेलु (४) नष्ट करायेलं; (४) विश्रातिस्थान दूर करायेलु (५) गुणायेलं आस्थित वि० रहेलं (२)प्रवृत्त; आचरतुं आहति स्त्री० वध (२) प्रहार (३) (३) पामेलं; पहोंचेलं (४)रोकेलु; व्याप्त गुणाकार (४) आगमन आस्पद न० स्थान; जगा (२) आश्रय- आहन् २१० मारवं; प्रहार करवो(२) स्थान; निवासस्थान (३) पदवी; वगाडवू (घंट अथवा ढोल) (३)मारी अधिकार (४) पात्र; विषय नाखवं आस्पंदन न० कंपवू; फरकवू आहर वि० लावनाएं (२) लेनाएं(३) आस्फल १०प० अफाळवू; पछाडq (२) पुं० लावq ते; एकळु करी लाव ते फफडावq (३ टंकार करवो (धनुष्यनो) (४) श्वास लेवो ते (४) झणझणावq (वीणा इ०) (५) आहरण न० लावq ते (२)लेQ ते (३) फाडी नाखवू; चीरी नाखवू काढवं ते (४) अनुष्ठान (यज्ञy) (५) आस्फालन न० अफाळवू ते; पछाडवं ते कन्याने लग्न समये अपाती भेट (२) फफडावq ते आहर्तृ वि० लेनाएं (२)लावनाएं (३) आस्फुट १५० ध्रुजावq; फफडावq (२) __ अनुष्ठान करनाएं फाडवू (३) दळी नाखवू । आहव पुं० युद्ध; लडाई (२) युद्ध माटे आस्फोट पुं०, आस्फोटन न० थाबडवू आह्वान-पडकार होमनो अग्नि ते; पोला हाथे (कोणीती उपरना भाग आहवनीय वि० होमवा योग्य (२) पुं० उपर) ठोक ते (२) ऊपणq ते (३) आहार वि० लावनारे; मेळवनाएं(२) प्रगट - जाहेर करवं ते लेवा जनाएं (३) पुं० लावq ते (४) आस्य न० मुख; मों वापरतुं ते (५) खोराक लेवो ते (६) आस्यंदन न० झरवू ते ; वहेवू ते खोराक आल न० लोही आहारवृत्ति स्त्री० आजीविका; निर्वाह आसप न० लोही पीनार राक्षस आहार्य वि० लाववा योग्य (२)लई जवा आत्रव पुं० क्लेश; दुःख, पीडा (२)स्राव योग्य (३) खावा योग्य (४) कृत्रिम (३) पाप; दोष (५) न० नाटकनी वेशसजावट वगेरे आस्वद् १ आ० चाखवू ; खावू (२) सुख बाबत भोगवq आहाव पुं० पाणीनो हवाडो -प्रेरक० चाखवू; भोगवयूँ (२) आहित वि० मुकायेलु (२) करायेलं छेतरावं ; लूटावं (ला.) आहिताग्नि पुं० अग्निहोत्री ब्राह्मण आस्वाद पुं० चाखवू ते; खावं ते (२) । आहु ३ प० होम करवो; होमवू स्वाद (३) भोगवq ते आहुत वि० होमेलु आस्वाद्य वि० मीठु; स्वादु आहुति स्त्री० होमवू ते (२) होमवानी आह अ० ठपको, हुकम, नाखवू- मोक- वस्तु - बलिदान लवू - ए अर्थ बतावे (२) एक अपूर्ण आहूत वि० बोलावेलु Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाह ८५ . माह १ उ० लावq (२)नजीक लावq; आपq (३) पार्छ लावQ (४) प्राप्त करवू, मेळवद् (५)धारण करवु (६)-नुं कारण बनवू; उत्पन्न करवु (७) परणीने लावq (कन्या)(८)यज्ञ करवो (९)खेंची जवं; आकर्षण कर (१०) जुएं करवू; दूर करवू (११) आहार करवो माहृत वि० आणेलं; लावेलु (२)लीधेलं (३) खाधेलु (४) बोलायेलं उच्चारायेलु आहेय वि० साप संबंधी [उद्गार आहो अ० संशय, प्रश्न के गर्वदर्शक आहोस्वित् अ० 'शंका', 'संभव' दर्शावे पाह्निक वि० दिवसचें; दररोजन (२) न० दररोज करवानुं काम के विधि (३) ग्रंथनो विभाग आह्लाद् १० उ० आनंद पमाडवो पाह्लाद पुं० आनंद ; हर्ष आलादन न० खुश करवू ते ; आनंद पमाडवू ते आह वि० नामर्नु; नामवाळ, आह्वय पुं० नाम (समासने अंते) आह्वयन न० नाम आह्वान न० बोलावतुं ते (२) देव आवाहन करवू ते (३) कचेरीमा हाजर थवानो हुकम; 'समन्स' (४) पडकार (५) नाम आह्वायक पुं० दूत आहे १५० बोलाव, (२) आवाहन करवू (३) (युद्ध माटे) आह्वान करवू आंगिक वि० शरीर- (२) अवयवना हावभावथी दर्शावायेलं आंजन वि० अंजनने लगतुं (२) पुं० हनुमान (३) न० अंजन; नेत्रांजन आंजनी स्त्री. मेश; नेत्रांजन (२) मेशनी दाबडी आंजनेय पुं० हनुमान (अंजनाना पुत्र) आंतर वि० अंदरनु; छार्नु; गुप्त (२) छेक अंदरनुं; आंतरिक आंतरिक्ष, आंतरीक्ष वि० अंतरिक्षने. लगतुं (२) स्वर्गीय ; दैवी आंत्र न० आंतरडु आंदोलन न० हींचका खावा ते (२) झुलावq ते ; ढोळ ते (चामर) (३) कंप; ध्रुजारी आः अ० स्मरण, क्रोध, शोक, दुःख, विरोध दर्शावे छे इ इअ. क्रोध, निंदा, दया, दुःख, दाझ अने विस्मयसूचक चित्कार (२) पुं० कामदेव ; मदन इ २ प० जq; पासे जवू; पहोंचर्चा (२) प्राप्त करवू; पामवं (३) पार्छ जवू (४) वीतq-पसार थर्बु (समय) (५) उत्पन्न थQ (६) विनंती करवी; माग, (७) होवू; देखावं १ उ० जुओ 'अय्' १४ आ० आवळू; देखावू (२)दोडवं; घटक (३) जलदी जq; वारंवार ज, (४) याचवू इक्षु पुं० शेलडी इक्ष्वाकु पुं० अयोध्यामां थई गयेला सूर्यवंशी राजानुं नाम इच्छा स्त्री० मरजी (२) कामना इच्छासंपद् स्त्री० इच्छा सफळ थवी ते इज्य वि० पूजवा योग्य (२)पुं० गुरु; अध्यापक इज्या स्त्री० यज्ञ (२) दान; भेट (३) पूजा (४) प्रतिमा; मूर्ति इडा स्त्री० जुओ 'इला' इत ('इ'नुं भू० कृ०) वि० गयेलु (२) पार्छ फरेलु (३) याद करेलु (४) पामेलं Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतर इतर स० ना०, वि० बीजं; वेमांनुं बीजु(२)बाकीना बीजा (ब०व०मां)(३) -श्री जुदुं ४)-थी ऊलटु (५)क्षुद्र; नीच इतरतस, इतरत्र अ० जुदी रीते ; बीजी रोते (२) अन्यत्र ; बीजे ठेकाणे इतरथा अ० बीजी रीते; ऊलटी रीते (२) नहि तो इतरेतर सन्ना०, वि० परस्पर; अन्योन्य इतरेधुस् अ० वीजे दिवसे इतस् अ० अहींथी ; आथी; आ समयथी; आ स्थळथी; आ बाजुथी (२) अहीं; आ बाजु; मारे पक्षे (३) आ कारणथी (४) आ दुनियामांथी इतस्- इतस् अ०एक वाजु-बीजी वाजु इतस्ततः अ० अहीं नहीं ; आम तेम इति अ० प्रकार, उद्देश्य, कारण, आधार, दृष्टांत, अभिप्राय तथा वाक्यसमाप्ति दवे (२) उतारो करेलो भाग दर्शाववा अंते मुकाय (अवतरणचिह्नमा अर्थमां) इतिकथ वि० विश्वास न मूकवा लायक (२) नष्ट-भ्रष्ट इतिकथा स्त्री० निरर्थक वात इतिकर्तव्य वि. अमुक विधि प्रमाणे करवा योग्य (२) न० कर्तव्य : फरज इतिकर्तव्यता स्त्री० आवश्यक कर्तव्य (२) करवं जोईए ते कार्य . इतिवृत्त न० वनाव; हकीकत; वृत्तान्त (२) कथा; वार्ता इतिह अ० आ प्रमाणे; परंपरा प्रमाणे इतिहास पुं० दंतकथा के परंपराथी चालती आवेली वात (२) बीरकथा (३) तवारीख ; भूतकाळनुं वृत्तांतः इस्थम् अ० आ प्रमाणे ; ते प्रमाणे .. इत्थंभूत वि० आ प्रकारे बनेलं इत्यर्थ पुं० तात्पर्य ; भावार्थ ; टूको सार इत्यर्थम अ० आहेतुथी इत्यादि वि० वगेरे. इदम् स० ना०, वि० 'आ' (२) अ० आ प्रकारे; आ प्रमाणे इदंतन वि० आ समयन; वर्तमान इदानीम् अ० हवे; हमणां; आजकाल (२) आ समये पण इदानींसन वि० हमणांनं; आधुनिक इद्ध ('इंध्'न भू० कृ.०) वि० सळगावेलु प्रदीप्त (२) प्रकाशित; तेजस्वी (३) चोख्खं; स्वच्छ (४) पळायेलं; अनुसरायेलु (आज्ञा) (५) न० ताप; तडको (६) तेज; दीप्ति (७) आश्चर्य इद्धदीधिति पुं० अग्नि इद्धा अ० उघाडु; खुल्लं; स्पष्ट इध्म पुं० बळतण; इंधण इन पुं० सूर्य (२) राजा; स्वामी इनकांत पुं० सूर्यकांत मणि इभ पुं० हाथी इभ्य वि० श्रीमंत ; धनिक (२) पुं० राजा (३) हाथीनी महावत इयत वि० आटलं; एटलं इयत्ता स्त्री० आटलापणुं (२) प्रमाण; परिमाण (३) सीमा; हद प्रकामा इरम्मद पुं० वीजळीना कडाका साथेनो इरा स्त्री० पृथ्वी (२) वाणी (३) सरस्वती (४) जळ (५) अन्न इरावत् वि० खानपानथी सुखी इरिण न० खारवाळी जमीन इरेश पुं० परब्रह्म ; विष्णु फेंकवं इल ६५०, १० उ० जर्बु (२) ऊंध, (३) इला स्त्री० पृथ्वी (२) गाय (३) वाणी इलाधर पुं० पर्वत इलावृत्त न० पृथ्वीना नत्र खंडो (वर्प) मांनो एक खंड इव अ० पेठे ; जेम (२) जाणे के (३) कदाच ; क्यांक ; थोडुक (४) (प्रश्नार्थ शब्दो साथे) खरेखर -- शु'? इष ६५० इच्छति इच्छवं (२) पसंद कर (३) प्राप्त करवा यत्न करवो Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इष (४) संमत थवुं ( ५ ) अपेक्षा राखवी (६) याचबुं इष पुं० आसो महिनो इषिका स्त्री० मुंज घासनी वचली सळी (२) शर (बरु) नुं राडुं इषु पुं० बाण इकार पुं० बाण बनावनार इषुधि पुं० बाणनो भाथो इष्ट ('इष' नुं भू० कृ० ) वि० इच्छेलुं (२) हितावह (३) प्रिय; मनगमतुं (४) योग्य (५) पूजेलुं (६) यज्ञ वडे पूजेलुं (७) कल्पेलुं ( गणित ) ( ८ ) पुं० प्रियजन; प्रेमी ( ९ ) पति ( १० ) मित्र (११) न० इच्छा (१२) यज्ञ इष्टका स्त्री० ईंट इष्टकामदुहू वि० इच्छित फळ. आपना इष्टदेव पु०, इष्टदेवता स्त्री० प्रिय - पोतानी आस्थानो देव (२) कुळदेव इष्टभागिन् वि० पोतानुं इच्छेलुं जेने मळधुं छे तेवुं इष्टापत्ति स्त्री० इच्छेलं बनवुं ते (२) विरुद्ध पक्ष तरफथी अनुकूळ कार्य के दलील इष्टापूर्त न०, इष्टापूर्ति स्त्री० यज्ञयागथी तथा वावकूवा कराववाथी थतुं पुण्य इष्टि स्त्री० एक जातनो यज्ञ इष्यत् वि० भविष्यनुं ; भावि इब्वसन, इष्वस्त्र न० धनुष्य इष्वास पुं० धनुष्य ( २ ) धनुर्धारी योद्धो इस अ० क्रोध, दुःख के शोक दर्शावे इह अ० अहीं (२) आ दुनियामां (३) आ समये इहत्य वि० अहीं; आ दुनियानुं इहलोक पुं० आ दुनिया; आ जीवन इहामुत्र अ० आ लोकमां अने परलोकमां इंग् १ उ० हालवु; कंपवुं ( २ ) जवुं इंग वि० जंगम; अस्थिर इंगित ('इंग्' नुं भू० कृ० ) वि० हालेलुं; ८७ इंद्रियसुख कंपेलु (२) न० इशारों; संकेत ( ३ ) मनोविकारनुं बाह्य चिह्न - चेष्टा (४) मननो गुप्त भाव इंगुदी स्त्री० एक वृक्ष; इंगोरियो इंदिरा स्त्री० लक्ष्मी ( २ ) शोभा ; कांति इंदिवर न० भूरुं कमळ इंदिदिर पुं० मोटो भमरो इंदीवर न० भूरुं कमळ इंदु पुं० चंद्र ( २ ) कपूर इंदुकांत पुं० चंद्रकांत मणि इंदुमती स्त्री० पूर्णिमा (२) अज राजानी इंदुमौलि पुं० शंकर; शिव इंदुशेखर पुं० जुओ 'इंदुमौलि' इंदूर पुं० उंदर पत्नी इंद्र पुं० देवोनो राजा (२) मेघोनो राजा (३) अधिपति; शासक ( ४ ) राजा (५) आत्मा; जीव (६) ते ते वर्गमां 'श्रेष्ठ', 'उत्तम' एवो अर्थ दर्शावे (उदा० नरेंद्र मृगेंद्र ) इंद्रकील पुं० मंदर पर्वत इंद्रचाप पुं० मेघधनुष्य इंद्रजाल न० जादु; नजरबंधी इंद्रनील पुं० नीलम इंद्रमह पुं० इंद्रनी पूजा माटेनो उत्सव (२) वर्षाऋतु इंद्रमह - कामुक पुं० कूतरो इंद्रलोक पुं० स्वर्ग इंद्रशत्रु पुं० प्रह्लाद (२) वृत्र इंद्रानुज पुं० विष्णु; उपेन्द्र इंद्रायुध न० वज्र ( २ ) इंद्रधनुष्य इंद्रारि पुं० असुर राक्षस इंद्रासन न० इंद्रनुं सिंहासन इंद्रिय न० शरीरनुं ज्ञान तथा कर्म माटेनुं (बाह्य के आंतर) साधन इंद्रियगोचर वि० इंद्रियोथी जोई शकाय के समजी शकाय एवं (२) पुं० इंद्रियनो विषय इंद्रियग्राम न० इंद्रियोनो समूह इंद्रियसुख न० विषयभोगनुं सुख + Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईषत् इंद्रियाराम इंद्रियाराम वि० विषयासक्त इंद्रियार्थ पुं० शब्द, रूप, रस, गंध अने स्पर्श-ए पांच इंद्रियोना विषयोमानो दरेक इंध ७ आ० सळगावq; प्रदीप्त करवू इंधन न० सळगावq ते (२) लाकडां; बळतण Cho ई पुं० कामदेवनुं नाम; मदन (२) स्त्री० लक्ष्मी (३) अ० निराशा, दुःख, शोक, क्रोध, अनुकंपा तथा संबोधननो अर्थ दर्शावे ई ४ आ० जq (२) २ प० जq (३) पहोंचवू (४) व्याप ईक्ष् १ आ० जोवू ; अवलोकवू(२)गणवं - मानवू (३) ध्यानमा लेव; काळजी राखवी (४) विचार (५) जरूर होवी (६)सारं के खोटु भाग्य जोg ईक्षण न० जोवु ते (२) आंख (३) दृष्टि ; दर्शन (४) दरकार ; काळजी ईक्षा स्त्री० दृष्टि ; नजर (२) अव लोकन ; विचारणा ईक्षिका स्त्री० दृष्टि ; नजर (२) आंख ईक्षित ('ईक्ष् 'न भू० कृ०) वि० जोवायेल; अवलोकायेलु (२) न० दृष्टि (३) आंख ईड २ आ० स्तुति करवी;प्रशंसा करवी ईड्य वि० प्रशंसा - स्तुति करवा योग्य ईति स्त्री० अतिवृष्टि, अनावृष्टि, उंदर, तीड वगेरेनो उपद्रव ईदकता स्त्री० जात गुणवत्ता(इयत्ता' - "जयो' थी ऊलटुं) ईदक्ष, ईदश वि० आवं; आ प्रकारनं ईप्सा स्त्री० प्राप्त करवानी इच्छा (२) इच्छा न० इच्छा ईप्सित वि० इच्छेलं ; प्रिय ; इष्ट (२) ईर् २ आ०, १५० ज; हालq (२) १० उ० फेंकवु (३) उश्केरवू; प्रेर (४) उच्चार; कहेवू (५)हलाव; गतिमान करवू (६) खेंच ; आकर्षव ईरिण न० ऊखर - वेरान जमीन ईरित ('ईर् न भू० कृ.०) वि० मोकलायेलु (२) उच्चारायेलू ईर्या स्त्री० भिक्षुचर्या ईर्षा स्त्री० जओ ईर्ष्या' ईषित न० ईईये १५० ईर्ष्या करवी ईर्ष्या स्त्री० अदेखाई ईर्ष्यालु वि० अदेख्नु ईश २ आ० राज्य करवं; अधिकार चलाववो (२) शक्तिमान होवु (३) उपरीपणुं कर (४) परवानगी आपवी (५) मालिक होवू ईश वि० मालिक - स्वामी होय तेवं (२) शक्तिमान (३) पुं० अधिपति (४) पति ; स्वामी (५)शंकर (६)परमेश्वर ईशान पुं० शंकर (२) राजा; स्वामी ईशितव्य वि० अधीन ( जेना उपर ईशपणु चाले) ईशिता स्त्री० प्रभुता - श्रेष्ठता (२) आठ सिद्धिओमांनी एक ईशित ५० परमेश्वर ईश्वर वि० सत्ताधीश (२) धनवान; श्रीमंत (३) पुं० राज्य करनार - राजा; अधिपति (४) श्रीमंत माणस (५)पति (६) शंकर (७) परमेश्वर ईश्वरभाव पुं० प्रभुता; राज्यकापणु ईषत् अ० थोडु; जरा Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईषत्कर ईषत्कर वि० थोडं करनाएं (२) सहे- लाईथी थई शके तेवू(३)न थोडं; अल्प ईषत्पुरुष पुं० हलको-नीच माणस ईषदुष्ण वि० थोडं गरम ईषदून वि० पूरु नहि तेवू; थोड़े ओछु। ईषा स्त्री० गाडी के गाडानी ऊव (२) हळनो धोरियो [(३) बाण ईषिका स्त्री० पीछी (२) जुओ इषिका' उच्छल ईषिर पुं० अग्नि ईह, १ आ० इच्छवं (२) मेळववा यत्न करवो ईहा स्त्री० इच्छा (२) प्रयत्न (३)चेष्टा ईहामृग पुं० वरु (२) बनावटी मृग (३) एक जात, नाटक ईहित ('ईह,'नुं भू० कृ०) वि० इच्छेलं (२) न० इच्छा (३) यत्न (४)चेष्टा उ अ० क्रोध, अनुकंपा, आशा, दया, संमति, निश्चय, आश्चर्य, अनुमान तथा संबोधनना अर्थमां वपराय (२) 'अथ' 'न' अने 'किम्' साथे मुख्यत्वे आवे छे (जुओ 'अथो', 'नो', 'किमु') उ-उ अ० एक तरफ - बीजी तरफ उक्त ('वच्'- भू० कृ०)वि० बोलायेलं; कहेवायेलु (२) न० कथन उक्ति स्त्री० भाषण; कथन (२) कहेवत उक्थ न० स्तोत्र उक्ष १, ६, उ० छांटq (२) बहार फेंकवं उक्षण न० छांटq ते (२) जल छांटीने पवित्र करवू ते उक्षन् पुं० बळद उप वि० आकरूं; जलद (२) क्रोधी (३) बिहामणु (४) जबलं उचित ('उच्' न भू० कृ०)वि० योग्य; घटित (२) रोजर्नु; परिचित ; टेवायेलं उच्च वि० ऊंचु; उन्नत (२) मोटुं; तीव्र उच्चकैः अ० ऊंचेथी उच्चट १५० चाल्या जवू; अदृश्य थवू -प्रेरक० डरावी काढवू; हांकी * काढq (२) निर्मूळ करवं; नाश करवो उच्चय पु० समूह; ढगलो (२) उन्नति; आबादी (३) वस्त्रनी गांठ (४) वीणवू - एकळु कर, ते (फूल) उच्चर् (उद् + चर्) १५० ऊंचे चडवू (२) नीकळवू (अवाज) (३) उच्चारवं (४) १ आ० तजवं (५) बेवफा नोवडवू (६) उल्लंघन करवू (७) –नी उपर चडQ उच्चल १ प० चालवा मांड; जवा नीकळवू (२) दूर चाल्या जवू; नीकळी पडवू उच्चाटन न० दूर करवू ते (२) खेंची काढ, ते (३) एक अभिचार-प्रयोग उच्चार पुं० उच्चार ते; उच्चारण (२) विष्टा उच्चावच वि० ऊंचं अने नीचं उच्चि (उद्+चि) ५ उ० एकळु करवू (२) वीण उच्चद्विष् वि० सबळ शत्रुओवाळं उच्चर्वाद पुं० मोटी प्रशंसा उच्चस् अ० ऊंचे (२) मोटा अवाजथी (३) जोरथी (४) (विशेषणना अर्थमां) ऊंचुं; खानदान; विख्यात उच्चैःशिरस् वि० उदात्त मनवाळू; उच्च पदवीवाळू उच्चैःश्रवस् पुं० इंद्रनो घोडो उच्छन्न वि० नाश करायेलं (२) लप्त उच्छल (उद्+शल्) १ उ० ऊछळवू Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्छादन . उत उच्छादन न० आच्छादन (२) सुगंधी पदार्थोथी शरीरनं मार्जन । उच्छास्त्र वि० शास्त्रविरुद्ध (२) शास्त्रनुं उल्लंघन करनारं उच्छिख वि० ऊंची शिखा-कलगीवाळू (२) ऊंची शग-ज्वाळावाळं उच्छिखंड वि० पीछां ऊंचां कर्यां होय तेवू (मोर) उच्छिद् ७ उ० उच्छेद करवो -कर्मणि न मळवं; अभाव होवो उच्छिन्न वि० उच्छेद करेल (२) नीच; अधम प्र तापी; खानदान उच्छिरस् वि० ऊंचा माथावाळू (२) उच्छिलीध्र वि० बिलाडीना टोप ऊंचा थया होय-ऊग्या होय तेवू उच्छिष्ट वि० ए©; बोटेलं (२) खातां वधेलु (३) न० यज्ञ के भोजनमाथी वधलं उच्छून वि० सूजी गयेलु; फूली गयेलं उच्छृखल वि० उद्धत (२) स्वेच्छाचारी; निरंकुश ते (२) समूळ नाश उच्छेद पुं०, उच्छेदन न० छेदवू-कापवं उच्छोफ पुं० फूली जq ते उच्छोषण वि० सूकवी नाखनाएं। उच्छ्य, उच्छ्राय पुं० ऊगवं ते (२) ऊंचु करवं ते (३) ऊंचाई; उन्नति (४) वृद्धि ; आधिक्य उच्छित वि० ऊंचु (२) उन्नत (३) समृद्ध (४) गर्विष्ठ उच्छवस् २५० श्वास लेवो (२) धीरज धरवी; निरांतनो श्वास लेवो (३) खोलवू (४) निसासो नाखवो (५) ढील थq; छूटी जq (गांठy) उच्छ्वसित वि० श्वास लेतुं (२) खीलेलं; स्फुरतुं; ताजु थयेलं (३) आश्वासन पामेलं (४) पींखाई गयेलं (वाळ) (५) भंसाई गयेलं (६) न० श्वास ; प्राण (जीवित) (७)निसासो उच्छवास पुं० श्वास; प्राण (२) निसासो (३) आश्वासन (४) मरण वखतनो श्वास चालवो ते (५) चोपडीतुं प्रकरण के विभाग (६) वधवं ते; ऊंचं आवq ते उच्छवासित वि० आश्वासित करेलु (२) ऊंचु करेल (३) ढीलं थयेलं; छूटी गयेलु वध करवो उज्जस् ४ ५०, -प्रेरक० विनाश करवो; उज्जागर वि० उश्केरायेलं उज्जिघ्र वि० सूचनाएं उज्जिहान ('उद्धा' ३ आ० नुं व.कृ रूप) वि० तजतुं (२) ऊंचु करतुं - चडावतुं उज्जूंभ १ आ० बगासु खावं (२) विकास पाम ; खीलq (३) भानमां आवq उज्जूंभण न०, उज्जृभा स्त्री० बगासुं खावं ते (२) वध-विकास पाम ते उज्ज्वल १ प० प्रकाश -प्रेरक० उजाळd; प्रकाशित करवू उज्ज्वल वि० ऊजळं; देदीप्यमान उज्झ ६ प० त्याग करवो (२) फेंकवं; नाखवं उज्झित ('उज्झ्' नुं भू. कृ.) वि० तजेलं (२) नाखेलं; रेडेलु उटज पुं०, न० झुपडी; पणशाळा उढेंकन न० टांकवू ते; छापवं ते उडु स्त्री०, न० तारो; नक्षत्र (२) न० पाणी उडुप पुं०, न० होडी; होडकुं उडुप, उडुपति, उडुराज पुं० चंद्र उड्डयन न० ऊंचे ऊडवू ते भीषण उड्डामर वि० श्रेष्ठ; संमाननीय (२) उड्डी (उद् + डी) १ आ० ऊंचे ऊडवू उड्डीन वि० ऊडतुं (२)न० ऊंचे ऊडवू ते उत् अ० प्रश्न, तर्क, संशय, अतिपणुं, उपर -ए अर्थ बतावनार उद्गार Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत उत्सात उत अ० प्रश्न, संशय, अनिश्चितपणुं, विरोध,समुदाय, अति तथा विकल्प-ए अर्थ दशवि (२)पादपूरण अर्थ वपराय उत ('वे' न भू० कृ०) वि० वणायेखें। (२) सिवायेलं उत वा अ० अथवा; अने; वळी उताहो, उताहोस्वित् अ० संशय के । प्रश्ननो भार दर्शावे। उत्क वि० उत्कंठित (२) उद्विग्न (३) शून्यमनस्क (४) पुं० इच्छा उत्कच वि० वाळ ऊभा थया होय तेवू (२)वाळ विनानु (३)पूरेपूरुंखीलेलं उत्कट वि० मोटु (२)तीव्र ; प्रबळ (३) नजरे पडे तेवं; स्पष्ट (४) मत्त; उन्मत्त (५) गर्विष्ठ (६) विषम ; मुश्केल । उत्कर पुं० समूह; ढगलो (२)कचरानो ढगलो ; उकरडो (३)लूमखं ; झूमखं उत्कर्ष पुं० ऊंचे खेंचवू ते (२) अभिवृद्धि; अधिकता (३) बडाई; आत्मश्लाघा [अत्यंत उत्कल वि० दया उपजावे तेवू (२) उत्कलाप वि० पीछांनो कलाप ऊंचो को होय तेवू उत्कलिका स्त्री० चिंता; अस्वस्थता (२) आतुरता (३) कळी (४) तरंग; मोजूं उत्कषण न० खेडवं ते उत्कंठ वि० आतुर; उत्सुक आशा उत्कंठा स्त्री० तीव्र इच्छा; आतुरता (२) उत्कंधर वि० डोकुं ऊंचुं करेलु उत्किर वि० ऊंचे उराडनारुं (समासने अंते) [(२) कोतरेलु उत्कीर्ण वि० ऊंचु उराडेलु; ढगलो करेलु उत्कुल वि० कुलने कलंक लगाडनारुं उत्कर्दन न० ठेकडो; कुदको उत्कूल वि० किनारा उपर थईने वहेतुं उत्कृत् ६५० कापवू; कतल करवू उत्कृष १५० ऊंचे खेंचq (२)वद्धि करवी (३) आकर्षण कर, (४) खेंची काढवू उत्कृष्ट वि० खेंची काढेलं; उपर खेंचेलं (२) श्रेष्ठ (३) घj; वधारे (४) खेडेलं (५) खणेलं (६)उखाडी काढेलु (७) आकर्षेलं उत्क ६५० [उत्किरति ] उराडq (२) ढगलो करवो (३) खोदवू (४) कोतरवू उत्कृत १० १० [उत्कीर्तयति ] जाहेर करवू; विख्यात करवु ; प्रशंसा करवी उत्कोच पुं० लांच ; रुशवत उत्कोटि वि० अणीवाळू उत्क्रम् १ उ०[उत्क्रामति-क्रमते, ४५० उत्क्राम्यति ] ऊंचे जq - चडवू (२) उदय पामवं (३) उल्लंघन कर, (४) नीकळी जq; चाल्या जई (५) मरण पाम उत्क्रांत वि० बहार नीकळी गयेलं (२) ओळंगी गयेलं (३) ऊडी गयेलु (रंग) उत्क्रांति स्त्री० ऊंचे अथवा बहार जq ते (२) मरण पाम ते उत्क्रुश् १५० मोटेथी बूम पाडवी (२) पोकारवु (३) जाहेर करवू उत्क्रोश पुं० पोकार; बूम; चीस (२) जाहेरात उत्क्षिप् ६५० फेंकवं; फेंकी देवं (२) ऊंचुं करवू; टटार करवू उत्क्षिप्त वि० ऊंचं फेंकेलं (२) ऊंचं टेकवेलं-करेलु (३) अभिभूत थयेलु (४) उखाडी नाखेलं; फैकी दीधेलं; काढी नाखेलं उत्क्षेप पुं० ऊंचे फेंकवं ते ; ऊंचु करवू ' ते (२)मोकलबुं ते (३) फेंकी देवं ते । उत्खन् १५० खोदी काढ, (२) उखेडी नाखवू-निर्मूळ करवू (३) खेंची काढवू (४) बहार काढवू (जेमके, म्यानमांथी तलवार) उत्खात वि० खोदेखें (२) खेंची काढेलु (३) निर्मूळ करायेलु (४) न० खाडो-खैयो Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तट उत्तट वि० किनारा उपर थईने वहेतुं उत्तप् (उद् + तप्) १५० तपावq (२) संताप, [थयेल (३)संतापेलं उत्तप्त वि० तपावेलु ; तपेलु (२) गुस्से उत्तम् ४ प० चिंतातुर थq; व्याकुळ थएँ; संताप पामवो उत्तम वि० श्रेष्ठ (२) मुख्य (३)प्रथम उत्तमर्ण पुं० लेणदार उत्तमांग न० शरीरनुं मुख्य अंग - माथु उत्तर वि० उत्तर दिशान (२) उपरन - ऊंचु (३)श्रेष्ठ; मुख्य (४) (समयना क्रममां) पछी, (५) भविष्य-; अंतन (६) अधिक; वधारे (७) चडियातुं;-थी पर;-थी बहार (८) डाबु (९) युक्त; सहित; -नुं मुख्यत्वे बनेलु ; अनुसरातुं (१०) पुं० भावि परिणाम ; भविष्यकाळ (११) न० उत्तर; जवाब (१२)बाकीनुं - शेष ते (१३) आच्छादन (१४) उत्तर दिशा (१५)श्रेष्ठता; चडियातापणु (१६) परिणाम (१७) आधिक्य उत्तरकाय पुं० शरीरनो उपरनो भाग उत्तरकाल वि० भविष्य- (२) पुं० भविष्यनो समय क्रिया उत्तरक्रिया स्त्री० मरण पछीनी अंतिम उत्तरत्र अ० पछीथी; आगळ (२) बीजी बाजु ('पूर्वत्र' थी ऊलटुं) (३) उत्तर तरफ तेवं; उद्धत उत्तरदायक वि० सामो जवाब आपे उत्तरपक्ष पुं० उत्तर अथवा डाबी बाजु (२) कृष्णपक्ष (३) वादमां पछीनोजवाबरूप भाग ('पूर्वपक्ष'थी ऊलटुं) उत्तरपथ पुं० जुओ 'उत्तरापथ' उत्तरपश्चिमा स्त्री० वायव्य खूणो उत्तरपूर्वा स्त्री० ईशान खुणो उत्तरम् अ० उपर (२) पछी उत्तरमीमांसा स्त्री० वेदांतदर्शन (पूर्वमीमांसा पछी-) THARTH उत्तार उत्तरवयस् न० वृद्धावस्था; घडपण उत्तरंग वि० ऊछळतां मोजांवाळू (२) ऊछळतुं उत्तरंगि वि० हांफतं [वारसो उत्तराधिकार पुं० वारस तरीकेनो हक; उत्तरापथ पुं० उत्तरनो मार्ग, दिशा के प्रदेश राशिषट्कमा जq ते उत्तरायण न० सूर्यनुं उत्तर तरफना उत्तरार्ध पुं०, न० शरीरनो उपरनो अर्ध भाग (२) ग्रंथनो पाछलो अर्ध भाग उत्तरासंग पुं० उत्तरीय वस्त्र उत्तराहि अ० उत्तरे; उत्तर बाजुए उत्तरीय, उत्तरीयक न० उपर ओढवानु वस्त्र उत्तरेण अ० उत्तर तरफ; उत्तरे उत्तरेधुस् अ० बीजे दिवसे; पछीने दिवसे उत्तरोत्तर वि० अधिकाधिक; वधु ने वधु; हमेश वधतुं जतु (२) न० प्रत्युत्तर उत्तरोत्तरम् अ० वधारे ने वधारे (२) सतत उत्तंभ (उद्+स्तंभ्) ५, ९, प० टेको आपवो -प्रेरक० वधारवं (२) उश्केर, उत्तंभ, पुं०, उत्तंभन न० टेको आपबो ते (२) आधार उत्तंस पु० घरेणुं (२) शिरोभूषण; कलगी (३) कर्णभूषण [करेल उत्तंसित वि० शिरोभूषण तरीके धारण उत्तान वि० विस्तृत; पहोळं करेलु (२) मों ऊंचं रहे तेम - चत्तुं - पीठ उपर सूतेलु (३) उघाडेलं ; ऊंचु करेलु (४) खुल्लु; संकोच विनानुं (५) छीछरुं उत्तानहृदय वि० खुल्ला हृदयवाळं उत्ताप पुं० खूब गरमी (२) संताप; त्रास (३) जुस्सो (४) गुस्सो (५) चिंता उत्तार पुं० उपर थईने लई जq ते (२) पार करवं ते (३) किनारे ऊतरवू ते (४) बचाव ते (५) –थी अळगा थQ - छूटq ते Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तारण ९३ उत्पिजल उत्तारण वि० पार करावनाएं; बचाव- उत्थापन न० उत्थान करवू ते (२) नाएं (२) न० पार ऊतरवु ते (३) समाप्ति बचाव ते (४)पार लई जर्बु ते । उत्थित ('उत्था'नुभू० कृ०)वि०ऊठेलु; उत्ताल वि० मोटुं; जबलं (२) भारे; ऊथयेलु (२) ऊंचु थयेलु (३) बचावेलु तीव्र (अवाज) (३) भयंकर; झनूनी (४) पेदा थयेलु (५) उद्यमी (६)पार्छ (४) मुश्केल; कठिन (५) प्रगट; ऊछळेलु (७) ऊंचुं; उच्च स्पष्ट (६) श्रेष्ठ; उत्तम (७) ऊंचं उत्पक्ष्मन्, उत्पक्ष्मल वि० पापण ऊंची उत्तावल वि० उतावळं करी होय ते, उत्तिज -प्रेरक० प० प्रेर; उश्केरवं उत्पट् १०प० उखाडी नाखवू; उपाडी उत्तीर्ण वि० पार ऊतरेलु (२) बची गयेलु नाखवु (२) खेंची काढq (३) दूर करवं (३) अभ्यास पूरो करेलु; अनुभवी; उत्पत् १५० ऊडवू; ऊछळवू ; नीकळवू कुशळ (४) उपकारमांथी मुक्त थयेलु (२) कूदQ (३) उत्पन्न थq; पेदा थq उत्तुंग वि० ऊंचु; घणुं ऊंचं उत्पतन न० ऊछळवू ते; ऊडवू ते; उत्तु (उद्+त) १५० तरी जर्बु (२) नीकळवू ते (२) कूदq ते (३) उत्पत्ति बहार नीकळी आव (पाणीमांथी) उत्पताक वि० पताकाओ फरकती होय (३)पार करवु (मुश्केली) (४) नीचे - ऊंची चडावी होय तेवू ऊतरवू (५) छोडी देवू उत्पत्ति स्त्री० जन्म ; पेदाश ; प्रादुर्भाव उत्तेजन न० प्रोत्साहन; उश्केरणी;प्रेरणा (२) मूळ कारण (३) लाभ ; पेदाश (२)धार काढवी ते (३) मोकलवू ते उत्पथ पुं० खोटो मार्ग ; अवळो मार्ग उत्तेजित वि० उश्केरेल (२) मोकलेलं उत्पद् ४ आ० जन्मकुं; उत्पन्न थq (३) वार काढेलु शणगारेलू (२) बनवं; थवं उत्तोरण वि० ऊंचा तोरण-कमानथी उत्पन्न वि० जन्मेलं (२)नीपजेलं ; बनेलं उत्थ वि० (समासने अंते) उत्पन्न थयेलं; (३) प्राप्त थयेलु ; मेळवेलु ; कमायेलं ऊठेलु; नीपजेलं (२) ऊभंथतु; नीकळतुं उत्पल न० कमळ; भूरु कमळ उत्था (उद्+स्था) १५० [उत्तिष्ठति] उत्पलाक्ष वि० कमळ जेवी आंखोवाळू ऊभा थ; ऊठवू (२) ऊगर्बु (सूर्यन) (३) उत्पाटन न० निर्मळ करवं ते छोडी देवु ; विरमद् (४) पार्छ ऊछळवू उत्पात पुं० ऊछळवू ते (२) कूदq ते (५)मळवू; हांसल थq ( ६ ) सबळ थर्बु (३) अनावृष्टि, रोगचाळो वगेरे उत्पन्न (७) फरी सजीवन थQ (८) सक्रिय थवानुं सूचन करतो अनिष्ट बनाव (४) बनवू; यत्नवान थवं (९) चडियाता थर्बु आफत ; विपत्ति -प्रेरक० उत्थापयति] ऊंचे करवू; उत्पाद पुं० उत्पत्ति ऊभं करवु (२) उराडवू (धूळने) (३) उत्पादक वि० उत्पन्न करनारु (२)प्राप्त उश्केर; प्रेरत (४) सजीवन करवू करावनाएं (३)पं० पिता (५) टेको आपवो ; पुष्ट कर उत्पादिन् वि० उत्पन्न थयेलु (२) उत्पन्न उत्थान न० ऊठवू ते ; ऊ, थq ते (२) करतुं (समासमां छेडे) उदय पाम ते; ऊगवू ते (३) जागवू उत्पाद्य वि० उत्पन्न करवा योग्य; ते (४)पेदा थq ते ; उत्पत्ति (५) फरी उत्पन्न कराय एवं सजीवन थर्बु ते (६) उद्यम ; पुरुषार्थ उत्पिजर, उत्पिजल वि० पांजरामाथी (७) युद्ध माटेनी तैयारी छूटेलु (२) गाभलं; व्याकुळ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्पीड उत्पीड १० प० दबाववं (२)निचोव (३) पीलवु (४) क्लेश आपवो उत्पीड वि० - नी साथे दबातुं (२) पुं० दबाव- निचोवq ते (३) धसी आवतो प्रवाह - जथो(४) उपर थाने वहेतो वधारानो प्रवाह (५) फीण उत्प्रबंध वि० सतत; अविरत । उत्प्रास पुं०, उत्प्रासन न० मश्करी; कटाक्ष; ठठ्छो उत्प्रेक्ष (उद् + प्र + ईक्ष् ) १ आ० ऊंचे जोवू (२) आशा राखवी (३) जोवू (४) कल्पना करवी (५)याद करवू उत्प्रेक्षा स्त्री० धारणा; कल्पना (२) बेदरकारी उत्प्लव पुं० कूदको उत्प्लु १ आ० कूदवु (२)ऊछळवू (३) उपर तरी आवq-तरवू उत्फाल पुं० कूदको; छलंग उत्फुल्ल वि. खीलेलं; विकसेलं उत्स पुं० फुवारो; झरj उत्सक्त वि० आबाद-समृद्ध थतुं उत्सद् ११० उत्सीदति नाश पामवं उत्सन्न वि० उच्छिन्न ; नष्ट उत्सर्ग पुं० तजवं ते; छोडवू ते (२) रेडवू ते (३) बक्षिस ; भेट (४) छूटुं मूकवु ते (उदा० वृषोत्सर्ग) (५) बलिदान; मानतामां मानेली वस्तु आपवी ते (६) खर्च कर ते (७) मळमूत्रनु विसर्जन (८) समाप्ति (व्रत के अभ्यासनी) (९) सामान्य नियम ('अपवाद'थी ऊलटुं) उत्सपिन् वि० उपर सरकतु (२) ऊंचे ऊडतुं; ऊंचु (३) ओळंगी जतुंपारर्नु (४) आगळ आवतुं- देखातुं । उत्सव पुं० उजाणी; ओच्छव; आनंदनो दिवस (२) खुशी; आनंद (३) उत्कट इच्छा उत्सह, १ आ० शक्तिमान थर्बु (२) हिंमत करवी; प्रयत्न करवो (३) उमंग दाखववो उत्संग पुं० खोळो (२) संबंध; संसर्ग (३) अंदरनो भाग; मध्य भाग (४) उपरनो भाग (५)नितंब (६)पर्वतनी किनारी उत्साद पुं०, उत्सादन न० विनाश (२) मालिश ; गदडवू ते (पग वडे) । उत्सारण न० (रस्ता परथी) बाजुए खसेडवू ते; हटाव ते उत्साह पुं० उद्योग; उद्यम (२) उमंग; होश (३) प्रयत्न; खंत उसिक्त वि० सींचायेलं-छंटायेलं (२) अभिमानी; घमंडी (३) छलकातुं (४) गांडियु; अस्थिर उत्सिच् ६ प० [उत्सिचति] सींच; छांटवं (२) अभिमान कर उत्सुक वि० आतुर; होशील (२) अधीरु; बेचेन (३) आसक्त (४) चिंतातुर उत्सूत्र वि० (दोरामांथी)छूटुं पडी गयेलं (२) नियमथी बहार जतुं उत्स -प्रेरक० काढी मूकवू; दूर करवू; बाजुए खसेडवू उत्सृज् ६ प० बहार काढवू; फेंकवृं (२) तजवू; छोडी देवं (३)वाव; रोपवू (४)आप ; बक्षवं (५) (कोई स्थळे) मोकलवु (६) काढी मूक उत्सप १५० पासे सरकवू - जवं उत्सृष्ट वि० त्यजी दीधेलु (२) आपेलु (३)वापरेलं; उपयोगमा लीधेलं (४) रेडेलु; छोडेलु उत्सेक पुं० सींचq-छांटq ते ; अभिषेक (२) छलका ते (३) अभिमान; घमंड उत्सेध वि० ऊंचु (२) पुं० ऊंचाई (३) जाडापणुं ; फूलेला होवापणुं (४) शरीर (५) महानता; भव्यता करवी उत्स्मि १ आ० हसी काढ; मजाक उद् अ० श्रेष्ठता, उच्चता, वियोग, अभाव, लाभ, प्रसिद्धि, आश्चर्य, चिंता, Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदास मुक्ति, शक्ति - वगेरे अर्थमां वपराय (नाम अने क्रियापद पूर्वे) उद, उदक न० जळ ; पाणी उदककार्य न० देहशुद्धि (२) पितृतर्पण; श्राद्ध वारसदार उदकदातृ वि० श्राद्ध करना९ (२) उदकांत पुं० जळागयनो किनारो । उदकुंभ पुं० पाणीनो घडो । उदन वि० ऊंची अणीवाळु (२) ऊंचु (३) मोटुं; विस्तृत (४) उदार;भव्य ; उत्कृष्ट (५) वयोवृद्ध (६) तीव; भयंकर; असह्य (७) उश्केरायेलु; झनूनी उदनप्लुतत्व न० ऊंची छलंग के कूदको उदङमुख वि० उत्तर तरफ मोवाळं उदच वि० ऊंचे जनारु (२) उपरवास आवेलु (३) उत्तर तरफनु (४) पछीजें; पाछलु उदधि पुं० समुद्र ; महासागर उदधिकन्या स्त्री० लक्ष्मी उदधिमेखला स्त्री० पृथ्वी उदधिसुता स्त्री० लक्ष्मी जाय) उदन् न० पाणी (समासमां न्' ऊडी उदन्या स्त्री० तरस उदन्वत् पुं० महासागर उदपात्र न० जळपात्र उदपान पुं०, न० नानुं खाबोचियु (२) कवा पासेनी कुंडी; कूवो उदपीति स्त्री० पाणी पीवान स्थळ उदप्लव पुं० जळप्रलय उदबिंदु पुं० पाणी टी' उदभार पुं० मेघ (२) पूर उदय पुं० चडवू ते, ऊगवू ते; वृद्धि, उन्नति (२)प्रगट थर्बु ते ; उत्पत्ति (३) संपत्ति; लाभ ; उत्कर्ष (४)परिणाम ; फळप्राप्ति ; सिद्धि (५) व्याज (६) आमदनी; महेसूल (७)एक कल्पित पर्वत, जेनी पाछळथी सूर्य उदय पामे छ एम मनाय छे (८) प्रारंभ उदयन न० ऊगवू ते ; उदय उदर न० पेट (२) अंदरनो भागमध्यभाग (३) युद्ध - मारामारी; वध - कतल उदरंभरि वि० पोतानुं पेट भरनाएं; स्वार्थी (२) अकरांतियुं खानाएं उदर्क पुं० अंत (२) परिणाम (३) भविष्य -- भविष्यकाळ (४) चडियाता होवू ते उचिस् वि० सळगतुं; प्रकाशित; तेजस्वी (२) पुं० अग्नि उदवास पुं० पाणीमां रहे ते ; पाणीमां रही तप करवू ते उदवाह पुं० मेघ उदश्रु वि० आंसु सारतुं; रडतुं उदस् ४ प० ऊंचुं करवं - धरवं. (२) नीचे फेंकवं (३)दूर कर;नाबूद करवू उदहार वि० पाणी वही लावनारु (२) पुं० वादळ उदंच वि० जुओ 'उदच' उदंच १ उ० ऊंचं करवू; ऊंचु चडाव, (२) उच्चार (३) अ० क्रि० ऊंचे चडवू; उपर धसवं पाणीनुं वासण उदंचन न० पाणी काढवानी डोल; उदत पुं० समाचार; खबर उदंभस् वि० पाणीथी भरेलं उदात्त वि० उच्च ; श्रेष्ठ (२) उदार (३) प्रख्यात (४) ऊंचु (स्वर) उदान पुं० श्वास उपर खेंचवो ते (२) शरीरमांना पांच प्राणवायुओमांनो एक (३) आनंदनो उद्गार (बौद्ध०) उदायुध वि० शस्त्र उगाम्यां होय तेवू उदार वि० सखी दिलनुदानशील (२) खुल्ला मननु; निखालस (३) प्रमाणिक (४) सुंदर; मनोरम (५) उचित; योग्य (६) पुष्कळ (७) मोटुं; भव्य उदारम् अ० मोटेथी; मोटे अवाजे (२) दलीलो वडे उदास् २ प० उदासीन रहेवं; वेकिकर रहे (२ तटस्थ रहेव (३)निष्क्रिय रहेब Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उदास उद्ग उदास, उदासीन वि० निरपेक्ष ; तटस्थ ; बेफिकर (२) विरक्त; विषयो तरफ अप्रीतिवाळं दृष्टांत उदाहरण न० कहे ते ; बोलवू ते (२) उदाह १५० कहे; उच्चारQ (२) दृष्टांत तरीके टांक उदाहृत वि० कहेलुं; कहेवायेलु (२.) नाम दईने बोलावेलु (३) दृष्टांत तरीके टांकेलं उदि १५० उदय पामवं; ऊगवं उदि २ प० ऊंचं आवq; ऊगवू (२) उत्पन्न थर्बु (३) बहार जq; चाल्या जवू (४) सामा ऊभा रहेg; सामा थर्बु (५) उन्नत थq; वध उदित ('उदि' - भू० कृ०) वि० ऊगेलं; ऊंचे चडेलु (२) उन्नत; ऊंचु (३) वृद्धि पामेलु (४) उत्पन्न थयेल (५)विख्यात (६) शरू थयेलं; आरंभायेलं (७) जागेलं; ऊठेलं (८) सज्ज; तैयार उदित ('वद्'न भू० कृ०) बोलायेल; उच्चारायेलं उदित्वर वि० ऊगतुं; ऊगेलुं (२)चडियातुं उदीक्ष १ आ० ऊंचे जोवू; तरफ जोवू (२) अपेक्षा राखवी; राह जोवी उदीची स्त्री० उत्तर दिशा तरफन उदीचीन वि० उत्तर दिशान उत्तर दिशा उदीच्य वि० उत्तर दिशामां आवेलं (२)पुं० सरस्वती नदीनी उत्तर तथा पश्चिम तरफनो प्रदेश उदीर २ आ० ऊंचे चडवू; ऊठवू (अवाज) (२) ऊपडवं (जवा के आववा) (३) उपर चड, (४) उत्पन्न थर्बु -प्रेरक० ऊंचु करवू (२) उच्चार,; बोलवू (३) नाम पाडवू (४) फेंकवु; नाखवू (५) प्रगट करवू (६) प्रेर; उत्तेजवू (७) परिणमावq उदीरण न० उच्चार ते ; बोलवू ते; कहे ते (२) फेंकवु ते (अस्त्र) उदीर्ण ('उदीर्'- भू० कृ०) वि० उदय पामेलं; ऊंचु चडेलु (२) परिणमेलु (३) उद्धत (४) उश्केरायेलं; उत्तेजित (५) घj; मोटुं; तीव (६)सज्ज करेलु; तैयार करेलु (७) कहेवायेलं; बोलायेलु उदुंबर पुं० उमरडा- वृक्ष (२) घरनो ऊमरो नीकळी गयेलु उद्गत वि० नीकळेलं ; ऊंचे चडेलु (२) उद्गति स्त्री० ऊंचे चडवू ते ; नीकळवू ते (२) देखावू ते; उत्पन्न थq ते उद्गम् १५० [उद्गच्छति ऊंचे चडqजq (२)प्रगट थवू; देखावु (३)नीकळवू; पेदा थq (४) चाल्या जवू; विदाय थQ (प्राण इ०) (५) प्रख्यात थर्बु उद्गम पुं० ऊंचे जq ते; चडवू ते (२) ऊंचा- ऊभा थर्बु ते (रोमावलीनु) (३) बहार जq ते; नीकळवू ते (प्राण) (४) उत्पत्ति; पेदा थq ते (५) ऊंचाई उद्गमनीय वि० उपर चडवा योग्य (२) न० धोयेलां कपडांनी जोड उद्गंधि वि० सुगंधीदार (२) तीव्र गंधवाळ ब्राह्मण उद्गात पुं० सामवेदनी ऋचाओ गानार उद्गार पुं० बहार काढवू ते ; धुंकवू ते; ओकवू ते ; झम ते; वहेवू ते (२) उच्चार;बोल; शब्द; अवाज (३)फरी फरी बोलवू ते; वर्णव ते (४) बहार काढेली वस्तु (५) थूक ; लाळ (६) ओडकार [(२) बहार काढतुं उद्गारिन् वि० ऊंचु जतुं; बहार कढातुं उद्गीथ पुं० ॐकार (२) सामवेदना मंत्र बोलवा ते उद्गीर्ण ('उद्ग' नुं भू० कृ०) वि० बहार काढेलु (२)ओकी काढेलु (३) उपजावेलं; निपजावेल. उद्ग ६ प० [उगिरति] थूकवू; ऊलटी करवी (२) बहार काढy-नाखवु (३) मोमांयी काढवं ; बोलवू; उच्चार (४) ओडकार आववो Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उबुर्ग उद्ग १५० मोटेयी गावुं ( २ ) जाहेर करवं; जणाववुं (गाईने ) उद्ग्रथ् १, ९ उ० बांधj; जूथमां बांधव (२) गूंथ; परोवबुं (३) छोडवु; उकेलव (गांठ) (अंबोडो) उग्रथन न० गूंथवुं ते; वाळवं ते (वेणी, उद्ग्रह, ९ प० [ उद्गृह्णाति | ऊंचं लेवुः ऊंचुं करवुं (२) खेंची काढवु; पाछु hai ( ३ ) ग्रहण करवुं; स्वीकारखुं उद्ग्राह पुं० ऊंचु करीने लेवुं ते उद्यीव वि० डोक ऊंची करी होय एवं उद्घट् १ आ० ऊडवुं - प्रेरक ० उघाडवु (२) कोटलं काढी नाखवं; फोडवु (३) खुल्लुं करवुं ; उघडु पाडवुं (४) प्रारंभ करवो उद्घट्टन न० घसावुं ते; अफळावुं ते (२) फाटी नीकळ ते उद्घाटक पुं० चावी; कूंची उद्घाटन वि० उघाडनाएं ( २ ) प्रगट · खुल्लु करनाएं (३) न० खोलवु ते; उघाड ते ( ४ ) खुल्लुं करवुं ते; स्पष्ट - उद्घात पुं० आरंभ ( २ ) उपोद्घात ; उल्लेख (३) प्रहार ( ४ ) ( गाडानुं) ऊछळ ते के तेनाथी पछडावुं ते (५) ऊंचाण; ऊंचाई ( ६ ) प्रकरण ; विभाग उद्घातिन् वि० खाडाखैयावाळु उद्धुषु ९, १० प० मोटेथी बोलीने जाहेर कर; घोषित कर उद्घष्ट (' उद्घुष् ' नुं भू० कृ० ) वि० जाहेर करेलु; घोषणा करेलुं (२) न० अवाज; घोष उद्घुष्ट वि० घसेलुं उद्घोष पुं० मोटेथी जाहेर करवुं ते (२) लोकमां प्रचलित वात (३) अवाज उद्दंड वि० दंड के दंडो ऊंचो कर्यो होय बुं ( २ ) भयंकर, प्रचंड उद्दाम वि० अंकुश के बंधन विनानुं ; अनियंत्रित (२) उग्र ; जहाल (३) गर्विष्ठ ९७ उद्धत उद्दामम् अ० जोरथी; जुस्साथी उद्दांत वि० उत्साही; प्रयत्नशील ( २ ) नम्र; ताबे थयेलुं उद्दिश् ६ ० दर्शावनुं कहेवुं ( २ ) -ने उद्देशाने कहेवुं (३) समजाववु शीaaj ( ४ ) इरादो राखवो (५) ने अर्पण करवुं ( ६ ) भविष्य भाखवु उद्दिश्य अ० उद्देशीने; संबंधमां उद्दिष्ट वि० दर्शावायेलं ( २ ) उद्देशीने कहेवायेलुं (३) इच्छेलुं ( ४ ) शीखवेलु; उपदेशेलं उद्दीप् ४ आ० सळगवु; सळगी ऊठबुं - प्रेरक ० सळगाव (२) उत्तेजवं; उश्केरवुं ; उद्दीपक वि० उकेरतुं; वधु तीव्र करतुं (२) प्रकाशित करतुं सळगावतुं उद्दीपन न० सळगाववुं - प्रगटाववुं - प्रज्वलित करवुं ते (२) उत्तेजन; उश्केरणी उद्दृश ११० [ उत्पश्यति ] ऊंचं जोवु (२) भविष्यमा जोवुं; अपेक्षा राखवी (३) शंका करवी उद्देश पुं० उद्देश ते ( २ ) उदाहरण ( ३ ) हेतु धारणा; इरादो ( ४ ) उल्लेख ; संक्षिप्त कथन ( ५ ) स्थळ ; प्रदेश ( ६ ) शोव; तपास 1 उद्देश्य वि० समजाववा योग्य (२) लक्ष्य करवा योग्य ( ३ ) न० हेतु प्रयोजन (४) जेने उद्देशीने कई कहेवायुं होय ते; कर्ता पक्ष ( व्या० ) उद्देहिका स्त्री० ऊध उद्युत् १ आ० बळ; प्रकाशवु - प्रेरक ० प्रकाशित करवुं ; शोभाववुं उद्योत वि० प्रकाशित; तेजस्वी ( २ ) पुं० प्रकाश; तेज ( ३ ) ग्रंथविभाग उद्धत ( 'उद्धन्' नुं भू० कृ० ) वि० ऊंच करेलु; ऊंचं थयेलु ( २ ) . अतिशय ( ३ ) उच्छृंखल (४) पूर्ण (५) भव्य ; तेजस्वी Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्यत उद्धति उद्धति स्त्री० ऊंचापणुं (२) उच्छृखलता (३) ठोकर उद्धन् (उद् + हन्) २ प० ऊंचे चडवू चडावq (२)२ आ० आत्महत्या करवी उद्धरण न० खेंची काढवू ते; काढी नाखवं ते (२) उद्धार करवो ते; बचायतुं ते (३) निर्मूळ करवू ते; उखाडी नाखवू ते (४)ऊंचुं करवु ते उद्धर्तृ वि० ऊंचुं करनारे (२) बचावनाएं उद्धर्ष वि० हर्षित (२) पुं० अति आनंद (३) उमंग (४) उद्रेक करनाएं उद्धर्षण वि० आनंदकारक ; रूंवां ऊभां उद्धा (उद् + हा) ३ आ० ऊंचे ऊडवू; ऊंचु चडवु; ऊंचु करवं (२) विदाय थq; दूर थq. उद्धार पुं० खेंची काढq ते (२)बचाववं ते; छूटको करवो ते (३)ऊंचं करवू ते (४)टांकवू ते (फकरो) (५) मुक्ति; मोक्ष(६)वधेलु ते(७)जुदो काढेलो भाग उद्धर वि० झूसरीमाथी मुक्त ; अनि यंत्रित (२) स्थिर; दृढ (३) मोटुंभारे उद्धू ५, ९ उ० हलावq (२) खंखेरी नाखवु (३) उश्केर ; जाग्रत करवु , उद्धृत वि० हलावेलु; ऊछळेलु (२) ऊंचु; मोटु (३) उन्नत (४)खीलेलं उद्भूलन न० चूर्ण छांटव ते (२) मसालो उद्ध १, १० प० उपर खेंचवू; ऊंचं लावq (२) बचाव; उद्धार करवो (३) उखेडी नाखवू (४) चूंटq; वीणवू (५) वहन करQ उद्धृत वि० उपर खेंचेलं; ऊंचं करेलु; उद्धारेलु (२) उखेडी नाखेलु (३) पसंद करेलु(४) अवतरण तरीके लीधेलु उद्धृषित वि० रूंवां खडां थयेलु उबद्ध वि० बांधेलु; जकडेल उबंध ९ ५० बांधवू; जकडq (२) लटकाव उबंध वि० छोडी नाखेलं उबंष पुं०, उबंधन न० बांधवू ते; लटकावq ते (२)फांसो खावो ते उद्वाष्प वि० आंसु भरेलं. उद्बाहु वि० हाथ ऊंचा करेलु उद्बुद्ध वि० जगाडेलु उद्दीप्त(२)खीलेलं (३) स्मृतिमां ताजु करेलु उद्बोष पुं०, उद्बोधन न० जगाडर्बु ते; याद कराव ते उद्भट वि० उत्तम ; श्रेष्ठ उद्भव पुं० उत्पत्ति ; जन्म (२) मूळ; जन्मस्थान उद्भावन न० कल्पना करवी ते; उत्प्रेक्षा (२) उत्पादन (३)चिंतन | उद्भास् १ आ० प्रकाशवू(२)नजरे पडवू -प्रेरक० प्रकाशित करवु (२) नजरे पडे तेम करवू तेजस्वी उद्भासिन्, उद्भासुर वि० प्रकाशित; उद्भिज्ज पुं० छोड; वनस्पति (बीज के जमीन फोडीने नीकळे ते) उद्भिद् ७ उ० फाड -प्रेरक० प्रगट करवू ; विकसाव । -कर्मणि ० फूटवू; नीकळवू ; देखा, उद्भिन्न वि० पेदा थयेलु (२) अंकुर रूपे नीकळेलं; फूटेलु (३) विकसेलु; खीलेलं (४) पकडावी दीधेलु उद्भू १५० उत्पन्न थQ (२) बनवू; थQ (३) ऊंचे चडवू (४) सामु थq; बंड करवं उद्भूत वि० उत्पन्न थयेल; जन्मेलं (२) उन्नत (३) नजरे पडेलु उद्भूति स्त्री० उत्पत्ति; जन्म (२) उन्नति ; आबादी उभेद पुं०, उभेदन न० (भेदीने) बहार आवद् ते; ऊगवू ते (२) विकसित थq ते (३) देखावं ते उद्भ्रांत वि० क्षुब्ध ; गाभरं; व्याकुळ (२)बीनेलं;छळेलु(३)वींझेलं धुमावेलु उद्यत वि० ऊंचु करायेलु ; उपाडेलु (२) सज्ज; तत्पर (३) उद्योगी Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्यम् उद्यम् आ० [उद्यच्छते] (कदीक प० पण) ऊंचे चडावQ; ऊंचु करवु (२) आपq; अर्पण करवू (३)तैयार थ; सज्ज थq (४) उद्योग करवो (५)नियंत्रण करवू उद्यम पुं० उद्योग; प्रयत्न (२) उपाडवू ते (३)दृढ निश्चय (४)तत्परता; तैयारी उद्या २५० ऊंचे चडवू; ऊंचु थq (२) उत्पन्न थq उद्यान न०, पुं० बाग उद्यापन न० धर्मकर्म के व्रतादिनी समाप्तिनी विधि; तेनी उजवणी उद्युक्त वि० काममां परोवायेलं; उद्यमी (२) तत्पर उद्युज ७ उ० प्रयत्न करवो -प्रेरक प्रयत्न करवा प्रेर उद्योग पुं० महेनत; प्रयत्न (२) काम; धंधो रोजगारखिंतीलुं उद्योगिन् वि० उद्योगी; प्रयत्नशील; उद्योत पुं० प्रकाश ; तेज उद्रिक्त वि० अतिशय ; अधिक (२) देखाय तेवू; स्पष्ट उबिच् (मुख्यत्वे कर्मणि०मां अने पंचमी साथे) चडियाता थवं उद्रेक पुं० पुष्कळता; अतिशयता(२) चडियातापणुं उद्वर्त पुं० अधिकपणुं (२) लेप करवो ते (३)प्रलय काळ (४)छोडवू ते । उद्वर्तन न० ऊंचु थq ते ; वधवू ते (२) उन्नति (३) ऊछळवं ते (४) एक बाजुथी बीजी बाजु फरवु ते (५) दळवू-खांडवं ते (६)शरीरे सुगंधीदार लेप करवो ते उद्वस् प्रेरक० देशनिकाल करवं; काढी मूकवू उद्वह, १५० परणवू (२)वहन करवं; धारण करj (३) लई जq; उपाडी जq (४)पूरुं करवं; अंत सुधी लई जर्बु उवह वि० लई जनाएं (२) चालु राखनाएं (वंशने) (३) मुख्य ; श्रेष्ठ उन्नद्ध (४) पुं० पुत्र (५) लग्न (६) वंश __ के कुळनो मुख्य आगेवान उद्वहन न० लग्न; विवाह (२)ऊंचकवं - टेकवद् ते (३) सवारी करवी ते (४) धारण करवू ते (लज्जा इ०) उद्वाह पुं० लग्न; विवाह उद्विग्न (उद्विज् नुं भू० कृ०) वि० व्याकुळ ; खिन्न त्रास पामवो उद्विज ६ आ० उद्वेग करवो (२) बीवु; उद्वीः १ आ० ऊंचुंजोवु (२)निहाळवू उद्वीक्षण न० ऊंचे जोवू ते (२) दृष्टि; नजर [फूंकवो उद्वीज १०प० पंखो नाखवो (२)वायु उद्वत् १ आ० ऊंचे चड, (२) फाटी जवू; तूटी जq (३) गबडी पडq (४) अभिमान करवं (५) छलकावं. -प्रेरक० निर्मूळ करवु (२)ऊंचे फेंकवू - चडाव (३) घुमावदूं; फेरव, (आंख) (४) लेप करवो उदवत्त वि० ऊंचु करेलु (२) छलकातुं; वधी गयेलु (३) तोछडु; अभिमानी उद्वेग पुं० कंपq ते; व्याकुळता;गभराट (२) चिंता; दुःख ; शोक उद्वेदि वि० ऊंची बेठक के सिंहासनवाळं उद्वेल वि० किनारा परथी वही जतुं (२) हद - मर्यादा ओळंगतुं उद्वेल्ल् १ प० हालवू ; ऊछळवू (२) गोळ वीटळावं उद्वेष्टन वि० छुटुं करेलु ; बंधनमुक्त उद्वेष्टनीय वि० छोडी नाखवा योग्य उन्नत वि० ऊंचु; महान; प्रख्यात (२) पूर्ण; भरावदार (३) खुशमिजाज उन्नति स्त्री० ऊंचाई (२) चडती; आबादी (३) मोटाई; महत्ता उन्नद् ११० गर्जना करवी उन्नद्ध ('उन्नह'न भू० कृ०) वि० बांधेलं; गांठेलु (२) ऊछळतुं (३) छूटुं थयेलुं (४) उत्कट Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकर्तृ १०० उन्नम् १५० ऊंचुंआवq (२)घेराई रहे; उन्माथिन् वि० वलोवतुं; डखोळतुं (२) तोळाई रहेवू (३) ऊंचुं करवं त्रास आपतुं; पीडतुं उन्नमित वि० ऊंचु करेलं; उपाडेलु (२) उन्माद वि० गांडु (२) पुं० गांडापणुं; ऊंचु; चडियातुं घेलछा (३) प्रबळ आवेश उन्नयन वि० ऊंची करेली आंखोवाळू उन्मार्ग वि० आडे के खोटे मार्गे चडेलं उन्नयन न० ऊंचे लई जवू ते (२) ऊंचे- (२) पुं० खोटो के ऊंधो रस्तो (३) सीधुं करवु ते कुमार्ग; अनीतिनो मार्ग उन्नह ४ प० बांधवं (२) खेंची काढवं उन्मिष ६ प० आंख उघाडवी (२)खीलवं (३) बंधनमाथी छटुं थर्बु -करवू (३)चमकवं द ष्टि; नजर उन्नाम पुं० टटार थर्बु ते उन्मिषित वि० खुल्लं; ऊघडेलु (२)न० उन्नाह पु० ऊंचु नीकळवू ते (२) अति- उन्मील १५० उघाडवू (आंख) (२) शयता; अधिकता (३) उद्धताई खीलवू ; खूलवू उन्निद्र वि० निद्रारहित (२) खीलेलं उन्मील पुं०, उन्मीलन न० ऊघडवू ते उन्नी १५० ऊंचुलाव; ऊंचु करवं (२) (आंख); जागवु ते (२) खूलq ते; निचोवQ (३) वितर्क करवो; कल्पना विकसते (३) देखावू ते; प्रगट थq ते करवी (४)छूट पाडव:एक बाजु लई जवं उन्मुख वि० मुख ऊंचु करेलु सामे मुखउन्मज्जन न० पाणीमांथी बहार वाळं (२) सज्ज; तैयार (३) तत्पर; नीकळवू ते आतुर (४) -ना मुखे बोलतुं उन्मत्त वि० गांडु; (भूतादिना) आवेश- उन्मुच ६ उ० काढी नाखवूछोडी नाखवं वाळ (२) नशो करेलु; छाकटुं (३) (२) मुक्त करवु (३) काढवं (अवाज) अहंकारी; गर्विष्ठ ; उद्धत (४) छोडवू; फेंक क र उन्मथ् १,९५० डखोळवू (२)मारवं; उन्मल १० उ० उखेडी नाखवू ; निर्मळ मारी नाखवू; नाबूद करवु (३) उतरडी उन्मूलन न० निर्मूळ करवु ते । नाखवु उन्मृष्ट ('उन्मृज्'- भू० कृ०) वि० लछी उन्मथन न० डखोळी नाखवू ते; वलोववं; नाखेल; भूसी नाखेलु ते (२) खंखेरी नाखवू ते (३) वध; कतल उन्मेष पुं०, उन्मेषण न० आंखन ऊघडवं उन्मद् ४ प० उन्मत्त थर्बु ते; आंखनो पलकारो (२) खुलव - उन्मद वि० उन्मत्त (२) मद उपजावनाएं खीलवू ते (३) प्रकाश ; झबकारो उन्मदन वि० कामावेशथी युक्त उप अ० सामीप्य, सामर्थ्य, दोष-खामी, उन्मदिष्णु वि० मदमत्त ; उन्मत्त (२) अंत, अध्ययन - उपदेश, मान, आरंभ, उन्मत्त करनाएं प्रयत्न, व्याप्ति, दान - ए अर्थमा उन्मनस्, उन्मनस्क वि० क्षुब्ध ; अस्वस्थ वपराय छ; खास करीने लघुता के (२) खिन्न (३) उत्सुक (४)चिंतातुर गौणत्व दर्शावे छे उन्मयूख वि० प्रकाशित; तेजस्वी उपकथा स्त्री० नानी वार्ता (२) मुख्य उन्मस्ञ् ६ प० उन्मज्जति] बहार कथामां आवती आड-कथा । नीकळवं उपकरण न० सहाय; मदद (२) साधन उन्मथ् १, ९ प० जुओ ' उन्मथ् (३) साधन-सामग्री उन्मयन न० जुओ 'उन्मथन' उपकर्तृ वि० उपकार करनाएं Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपकल्पन १०१ उपचय उपकल्पन न० तैयार करवू ते (२) उपक्षय पुं० नुकसान ; हानि (२) खर्च अवेजीमां मूक ते उपक्षिप् ६५० फेंकवु (२)ठपको देवो; उपकंठ वि० समीप; नजीक (२) पुं०, न० आळ मुकवू (३) सूचवq; इशारो सांनिध्य (३)गामनी नजीकनो भाग करवो (४) मांडवू; आरंभq उपकंठम् अ० गळे (२) नजीक उपक्षेप पुं० सामे फेंकवु ते (२)सूचन; उपकार पुं० भलं करवं ते ; कल्याण (२) । इशारो; उल्लेख (३)आक्षेप ; धमकी; मदद ; सहाय (३) शोभा; शणगार . आळ (४) आरंभ पामनाएं उपकार्या स्त्री० राजमहेल ; शाही तंबू उपग वि० (समासने अंते) पासे जनालं; उपकीर्ण वि० उपर विखरेलुं होय तेवू; उपगत वि. पहोंचेलपासे आवेलु;मळेलु छवायेलं (२) अनुभवेलु (३) बनेल (४) युक्त; उपकलम् अ० किनारे; किनारा उपर सहित (५) स्वीकारेल (६) मरण पामेलु उपकृ ८ उ० [उपकरोति, उपकुरुते] पूरुं उपगम् १५० [उपगच्छति पासे जq; पाडवू; लावी आपq (२) उपकार आववं (२)पामवं; मळवू;प्राप्त कर करवो; मदद करवी; सेवा करवी (३) (३) माथे लेवू; स्वीकार | उपस्करोति, उपस्कुरुते ] पूरुं पाडवं उपगम पुं०, उपगमन न० नजीक जबुं ते (४) सेवा करवी (५) शणगारवं; शोभा (२) ज्ञान; परिचय (३)प्राप्ति (४) करवी उपकार वचन; करार (५) संग; समागम (६) उपकृत न०, उपकृति स्त्री० मदद ; स्वीकार (७) अनुभव - सहवं ते उपगीत वि० चारणोए गायेलू - वखाणेलं उपक ६ ५० उपकिरति वेर (२) [उपस्किरति कापवं; चीरवं उपगुह, १ आ० [उपग्रहते ] भेटवं; आलिंगन करवू (२) संताडवू उपक्लप १ आ० योग्य होवू (२) तैयार उपगूढ वि० छुपायेलु (२) आलिंगेलं; होवू (३)-मां परिणम ; फळ आवq पकडेलु (३) न० आलिंगन (४) थq; बनवू उपग १५० कोईने गाई संभळाववं (२) -प्रेरक० तैयार करवू (२) नियत गीतमा गाईने वखाणQ। करवं; नक्की करवं (३) कल्पवु; मानवू उपग्रह, ९ प० [उपगृह्णाति - गृह्णीते) उपक्लुप्त वि० नजीक लवायेलु (२) पकडq; लेवू ; मेळवद् (२)ताबे करवं; तैयार करेलु ; बनावेलु (३) गौण । समजाव;मेळवी लेवु (३)कबूल राखq उपक्रम् १ आ० [उपक्रमते), ४ प० उप उपग्रह पुं० केदमां नाखवू ते (२) पराभव क्राम्यति नजीक जवु (२)आचरवू; (३) केदी (४) समाधान; संधि (५) करवा मांडवु (३) आरंभ करवो (४) अनुकूळता; सहानुभूति (६)प्रोत्साहन; हुमलो करवो- सामु थवं उपक्रम पुं० आरंभ; शरूआत (२)पासे - उपग्रहण न० पकडवं ते (२) स्वीकारवं ते आगळ आवद् ते (३)योजना; उपाय(४) उपग्राह पुं० उपहार; भेट माहस के योजनापूर्वक आरंभेलं कार्य उपघात पुं० ईजा; हानि (२)नाश (३) उपक्रमणिका स्त्री० प्रस्तावना (ग्रंथनी) रोग(४)पोतानुं कार्य करवानुं असामर्थ्य उपक्रांत वि० प्रारंभेलु उपघ्न पुं० लगोलगनो आधार - आश्रय उपक्रोश पुं०, उपक्रोशन न० ठपको उपचय पुं० संचय; वधारो; उमेरो (२) उपक्रोष्ट्र वि० ठपको आपतुं; निंदा करतुं जथो; ढगलो (३)आबादी; उन्नति । मदद Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपवा उपचर् उपचर १५० सेवा करवी(२)पूजा करवी (३) वर्त; वर्तन राखq (४) शुश्रूषा करवी (रोगीनी) उपचर्या स्त्री० सेवाशुश्रुषा (रोगीनी) उपचार पुं० सेवाशुश्रूषा (२)सारवार; चिकित्सा (३) शिष्टाचार; सम्यता (४) समान ; सत्कार (५) व्यवहार; अनुष्ठान (६) पूजा-सत्कारनो विधि; तेनी साधन-सामग्री (७) लक्षणा द्वारा अर्थबोध थवो ते उपचारिक वि० उपयोगी; साधनरूप उपचि ५ उ० संग्रह करवा;वधारवू (२) एकळु करवं-वीणq (३) उपर एकळु थq; छवावं उपचित वि० एकळु करेलु ; संचित (२) वधेलं; मोटु थयेलु (३) मजबूत थयेलं; शक्तिमां वधेलु (४) खूब लगाडेलुचोपडे लं [उन्नति उपचिति स्त्री० संग्रह ; वृद्धि (२) लाभ; उपच्छंद् १० प० समजाव;लोभाव; मनाव उपच्छंदन न० फोसलावq ते; मनाव ते उपजन् ४ आ० उपजायते जन्म'; उत्पन्न थq (२) बनवु;यq (३) फरीथी जन्मवं उपजल्पित न० वातचीत उपजल्पिन् वि० सलाह - उपदेश आपतुं उपजात वि० जन्मेलु; थयेलं; बनेल उपजाप पुं० कानमां गुसपुस करवी ते (२) छानी मसलतथी उश्केर ते उपजीव १ प० -ने आश्रये जीवq - निर्वाह करवो (२)-नो आधार लेवो; -माथी आधार मेळववो उपजीवन न०, उपजीविका स्त्री० आजीविका; निर्वाह उपजीविन् वि० -ने आधारे जीवनाएं उपजुष्ट वि० सेवायेलं उपजोष पुं०, उपजोषण न० प्रीति; मरजी (२) उपभोग; सेवन उपजोषम् अ० मरजी मुजब; खुशी प्रमाणे (२) चूपकीथी; मौन रहीने उपज्ञा स्त्री० कोईए शीखव्या विना पोते नवं विचारी काढेलु ज्ञान (समासमां; ते पछी नपुंसक जातिनुं नाम गणाय छे; उदा० 'स्वोपज्ञ') (२) पहेलां न करायेली वस्तु शरू करवी ते करवू उपढौक -प्रेरक० नजराणा तरीके रज उपतप १५० गरम करव:तपावq (२) 'दुःख दे, (३) तप ; दुःखी थवु उपताप पुं० ताप; गरमी (२) दुःख ; क्लेश ; संकट ; बीमारी ( ३ ) उतावळ उपतापिन वि० गरम करनारूं; संताप आपनाएं (२) ताप सहन करनारे; संताप पामनाएं (३) बीमार ; मांदु उपतीर्थ न० ओवारो; किनारो उपत्यका स्त्री० पर्वतनी तळेटीनी नीचाणनी जमीन उपदर्शक वि० बतावना; देखाडनाएं उपदंश पुं० भूख के तरस उत्तेजनार चटणी वगेरे स्वादु पदार्थ (२) दंश; डंख (३) एक रोग - चांदी उपदा स्त्री० भेट ; नजराणु उपदिश ६ प० उपदेश करवो; शीख व (२) दर्शावq; कहेवू (३) विधान करवु; [(३) कहेलु उपदिष्ट वि० उपदेशेलं (२) दर्शावेलं उपदेश पुं० बोध; शिखामण (२)शिक्षण (३)निर्देश ; सूचन (४) बहानु; मिष उपदेष्ट पुं० उपदेशक ; गुरु; आचार्य उपद्रव पुं० संकट ; आपत्ति (२) ईजा पीडा ; नुकसान (३) सार्वजनिक संकट (आसमानी के सुलतानी) (४) हुल्लड उपद्रष्ट वि० नजीकमां रहीने जोनारूं; साक्षी हुमलो करवो उपद्रु १ प० –नी तरफ दोडवू (२) उपवत वि० उपद्रवथी पीडित उपधा ३ उ० उपर, नीचे के अंदर मूकवं Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपधा १०३ उपपन्न (२) मोकलवू; उत्पन्न करवू (३) सोंपवू पहोंचाडवू- लई जq (४) सिद्ध कर; (काम के अधिकार) (४) छेतर पेदा करवू (५) यज्ञोपवीत आपवू उपधा स्त्री० उपर स्थापq ते (२)छळ; उपनीत वि० पासे लवायेलु (२)जनोई कपट; यक्ति; उपाय (३) परीक्षा दीधेलु (३) जाणेलु (४) मेळवेलु (५) उपधान न० समीप मकवू ते (२) ओशीकुं बक्षिस करायेलं (३) विशेषता; श्रेष्ठता (४)प्रणय;प्रेम उपनुन्न वि० हंकायेलं; धकेलायेलु उपधाव १ उ० –नी तरफ दोडवू (२) उपनेत वि० पासे लई जना के लावनाएं मदद लेवा माटे दोडवू (२) पुं० यज्ञोपवीत आपनार आचार्य उपधि स्त्री० छळ ; कपट उपनेत्र न० चश्मां उपध्मानीय पुं० 'प्' अने 'फ्' नी वच्चे उपन्यस ४ प० नजीक - उपर-नीचे आवतो महाप्राण विसर्ग (व्या०) मूकवू (२) अनामत मूकवू; सोंपवू उपनगर न० मुख्य नगरनु परुं; 'सबर्ब'. (३) रजू करवू; सूचव; दर्शाववू उपनम् १५० आवी पडवू ; वळवू (२) (४) समजाववं; वर्णन करवू बनवू; घटवू उपन्यस्त वि० पासे लवायेलं; मकायेलं उपनत वि० नजीक आवेलं;प्राप्त थयेलं; (२) कहेवायेलं; रजू थयेल; सूचवायेलु आवी पडेलं (२)बनेलं:थयेल (३) रज (३) थापण तरीके सोंपायेलं करेलं; अलु (४)ताबे थयेलु, नमेलु उपन्यास पुं० नजीक मूकवू ते (२) उपनति स्त्री० नमन (२) नजीक पहोंचर्चा थापण; गीरो (३) सूचन; कथन (४) ते (३) वलण प्रस्तावना ; रजूआत (५) समाधान उपनद्ध वि० मढेलं; ढांकेलं उपपति पुं० यार उपनयन न० नजीक लई जवं - लाववं ते उपपत्ति स्त्री० उत्पत्ति; जन्म (२) (२) अर्पq ते (३) यज्ञोपवीत आपq ते । कारण; हेतु (३)तर्क ; दलील; युक्ति उपनिषा ३ उ० नजीक मूक-लई जर्बु (४) पुरावो; प्रमाण (५) उपाय ; (२) अर्पवु; सोंपवू (३) उत्पन्न करवू इलाज ; साधन (६)औचित्य' ; योग्यता उपनिपातिन वि० अचानक आवी पडतुं (७) अंत (८) संबंध (९) स्वीकार उपनिबद्ध वि० लखेल; रचेलुं (२) चर्चेलं (१०)सिद्धि ; प्राप्ति (११) अणधार्यु उपनिर्झर पुं० हमलो - अकस्मात एवं ते उपनिविष्ट वि० रहेवास करीने रहेल उपपद् ४ आ० पासे जq; पासे आवर्बु (२) घेरो नाखेलं 'कॉलोनी' (२)प्राप्त करवु (३) बनवू; थq (४) उपनिवेश वि० संस्थान; वसाहतं; संभवित होवू (५) छाजवू; शोभवू उपनिषद् स्त्री वेदनी अंतर्गत गणातो, (६) हुमलो करवो (७) रजू करवू तेना गूढ अर्थाने स्पष्ट करतो, तथा उपपद न० पूर्वे बोलायेलो के आगळ ब्रह्मविद्यानुं प्रतिपादन करतो तात्त्विक मुकायेलो शब्द (२) समासनो पहेलो ग्रंथ (२) गूढ रहस्य ; गूढ विद्या (३) शब्द (३) उपाधि; अटक ब्रह्मज्ञान उपपन्न वि० मेळवेलु ; प्राप्त करेलु (२) उपनिहित वि. नजीक मूकेलु (२)वक्षेलं -नी साथे आवेलुं - रहेलं (३)योग्य; उपनी १५० पासे लई जवू ; पासे लावQ सुसंगत (४) साबित - सिद्ध थयेलं (२) अर्पण करवु (३) -नी स्थितिए (५) संभवित; शक्य Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपपात उपपात पुं० अकस्मात आवी पडवुं ते (२) संकट; आपत्ति ( ३ ) नाश उपपादन न० युक्तिपूर्वक साबित कर ते ( २ ) उत्पन्न करवुं - सिद्ध करवुं ते उपपीड़ १० प० दबाववु ; कचडवुं ( २ ) पीडवु ; दुःख देवु ( ३ ) ढांकी देवु ; प्रसवु उपप्रदान न० भेट; नजराणुं ( २ ) लांच उपप्लव पुं० उपद्रव; पीडा ( २ ) संकट; राहु विघ्न ( ३ ) भय ( ४ ) दुर्भाग्य ( ५ ) उत्पात (६) (सूर्य चंद्रनुं ) ग्रहण (1 प्रलय; नाश ( ८ ) क्षोभ ( ९ ) ग्रह (१०) अंधेर ; विप्लव उपप्लु १ आ० उपर तरं (२) उपर फरी वळवु ( ३ ) हल्लो करवो; पीडवुं (४) उपर कूद [ग्रसायेलुं उपप्लुत वि० हुमलो करायेलु;पजवायेल; उपबृंहण न० वधारो; वृद्धि उपबृंहित वि० वृद्धिंगत थयेलुं; विस्तार पामेलु (२) सहित ; युक्त उपभुज् ७ उ० उपभोग करवो; भोगववुं उपभृत वि० नजीक आणेलुं; -ने माटे मेळवेलुं उपभोग पुं० भोगववुं ते ( २ ) माणवुं - मजा लेवी ते (३) अनुभव; लहावो उपभोग्य वि० भोगववा योग्य १०४ उपमर्द पुं० चोळवु - दाबवु - मर्दन करवुं ते ( २ ) नाश; वध ( ३ ) तिरस्कार उपमा ३, ४ आ०, २५० तुलना करवी : उपमा आपवी. उपमा स्त्री० सरखामणी (२) मळतापणुं उपमान न० सरखामणी; तुलना ( २ ) सरखामणी माटेनुं धोरण ; जेने आधारे सरखामणी थाय ते उपमिति स्त्री० उपमा; सरखामणी ( २ ) तेथी थतुं ज्ञान ( न्या० ) उपमेय वि०तुलना के सरखामणी करवा योग्य (२) न० जेने उपमा आपवामां आवी होय उपरि उपयम् १ उ० | उपयच्छति - ते | परणवं (२) पकडवु; धारण करवुं (३) स्वीकार ( ४ ) सूचवतुं उपयंत पुं० पति [प्राप्त करवी उपया २५० जवुं ; पहोंचवुं ( २ ) स्थिति उपयान न० नजीक जवुं ते (२) पामबुं ते; प्राप्ति [छाजतु; बंधबेस उपयुक्त वि० उपयोगी ( २ ) योग्य; उपयुज् ७ आ० कामे लागवुं; कामे लगाडवु (२) उपयोग करवो; वापरखु (३) भोगववु; अनुभववुं ( ४ ) आसक्ति राखवी (५) (वाहने) जोडवुं उपयोग पुं० वापर; वपराश ( २ ) खप ; जरूरियात उपयोगिन् वि० उपयोगमां आवे एवं; खपनुं ; कामनुं (२) उपयोगमा लेनाएं उपरक्त वि० संकटग्रस्त ( २ ) ग्रहणमां सपडालुं (३) रंगायेलुं ( ४ ) पुं० ग्रहणमा ग्रस्त सूर्य के चंद्र उपरत वि० थोभेलु; अटकेलु; विरमेलुं (२) मृत ( ३ ) खसी गयेलं; पार्छु हठेलु ( ४ ) संसारमाथी विरक्त थयेलुं उपरति स्त्री० विरमवुं - थोभवुं - अटकवं ते (२) मृत्यु (३) उपेक्षा; विरक्ति उपरम् १ आ० अटक; विरमवु; थोभवु (२) शांत थकुं उपरम पुं० अटक - विरमबुं ते ( २ ) निवृत्त थवं - विमुख थवं ते ( ३ ) मृत्यु उपरंज् ४ उ० [ उपरज्यति - ते | रातुं aj (२) ग्रहणमा सपडावुं उपराग पुं० ग्रहण (२) लालाश ; रंग (३) संकट; विपत्ति ['वाईसरॉय' उपराज पुं० राजा पछीनो अधिकारी; उपराम पुं० उपरम; निवृत्ति ( २ ) विराम; अटकवुं ते (३) मृत्यु उपरि अ० उपर, तरफ, आगळ, वधारे, उपरांत, संबंधमां, पछी, ऊंचे, तरत ज - एअर्थमां वपराय छे Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपरितन १०५ उपसदन उपरितन वि० उपरखें; वधु उपरनु उपविष्ट वि० बेठेलु (२)आवी पहोंचेलं उपरिष्टात अ० उपर; ऊंचे; पछी; (३) -मां लागेलं - मंडेलु। पछीथी ; पाछळथी; आगळ उपर उपवीत न० यज्ञोपवीत - जनोई (२) उपरिष्ठ वि० उपर रहेल यज्ञोपवीत आपवानी धार्मिक क्रिया उपरुष ७ उ० अटकाव; हरकत करवी उपवृंहण न० जुओ 'उपबृंहण' । (२) घेरो घालवो (३) त्रास आपवो उपवेद पुं० गौण वेद (आयुर्वेद, धनुर्वेद, (४) केद कर (५) छुपावq गांधर्ववेद, स्थापत्यवेद) उपरोध पुं० रुकावट; प्रतिबंध; विघ्न उपवेश पुं०, उपवेशन न० बेसबुं ते (२) (२) घेरवं ते (३) त्रास ; पीडा -मां लागq ते (३) मूकवू ते (४)ताबे उपल पुं० पथ्थर; खडक (२) रत्न । थq ते उपलभ १० प० तपासवू ; जोवू (२) उपशम पुं० शांत पडवू-विराम लेवो लक्षमा लेवू; विचार (३) आंकवू; ते; शमवू ते (२)शांति ; निवृत्ति (३) निशानी करवी इंद्रियनिग्रह उपलक्षण न० निहाळवू ते; जोवू ते (२) उपशमन न० शांति ; निवारण ; शमन चिह्न ; विशेष लक्षण उपशय पुं० नजीक सूवं ते (२) उपलब्ध वि० मळेलु; मेळवेलं (२) संतावानुं स्थान ; भराई रहेवानी जगा जाणेलं; समजेल जान _ (शिकारीनी) (३) रोगनुं शमन उपलब्धि स्त्री० प्राप्ति; लाभ (२)बोध; उपशल्य न० गामनी भागोळ उपलभ् १ आ० जोवू; जाणवू (२) उपशांति स्त्री० शांत थवं ते; शांत प्राप्त करवं; मेळवद् पाडवं ते (२) निवृत्त थर्बु ते उपलल १०प० लाड लडाववां उपश्रुत वि० सांभळेलु (२) स्वीकारेलुं; उपलंभ पुं० प्राप्ति (२) बोध ; अनुभव वचन आपेलं (३)जाणवू ते;खातरी करवी ते (४) उपश्रुति स्त्री० सांभळवू -कान मांडवा जोवू ते ; दर्शन खरडावं ते (२) ज्यां सुधीनुं संभळाय ते अंतर(३) उपलिप् ६ प० लेप करवो (२)लेपाईं; एक अलौकिक वाणी; वनदेवतानी उपलेप पुं० लेप करवो ते (२) लीपवं भविष्यसूचक वाणी (४) वचन; ते; लीपण स्वीकारनुं वचन उपवन न० बगीचो; वाडी उपश्लिष् ४५० आलिंगवु (२) नजीक उपवर्तन न० प्रदेश (२) राज्य (३) जवं- पहोंचवू व्यायामशाळा (४) भेजवाळी जगा -प्रेरक० नजीक स्थापq - राख उपवास पुं० व्रत के नियम तरीके न खाएं उपश्लिष्ट वि० नजीकर्नु; नजीक मूकेलु ते (इंद्रियभोगमात्रनो त्याग करवो ते) उपश्लोकयति (श्लोक बडे स्तुति करवी) उपवाहन न० नजीक लावधू के लई उपष्टंभ पुं० टेको; आधार; उत्तेजन जवू ते उपसक्त वि० आसक्त उपवाह्य पुं०, उपवाह्या स्त्री० राजानो उपसद् १५० [उपसीदति पासे बेसवं हाथी (नर के मादा) (२) राजानुं वाहन (२) सेवा करवी (३) (मेळववा) उपविश् ६ प० वेसवू; नीचे बेसवु (२) प्रयत्न करवो (४) हमलो करवो पडाव नाखवो (३) आथम उपसदन न० नजीक आववं के जq ते Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपसन्न १०६ उपस्थित (२) गुरु पासे बेस ते; शिष्य थq उपसृप १५० नजीक जवू-पहोंच, ते (३) पाडोश उपसष्ट वि० छोडेलं; त्यागेलं (२) उपसन्न वि० हाजर थयेलं; नजीक (ग्रहण इ० जेवा) उपद्रवथी ग्रस्त (३ आवेलु (२) नजीक मूकेलं; उपर मूकेलं पिशाचग्रस्त (४)पीडित (५)व्याप्त उपसर्ग पुं० मंदवाड; व्याधि (२) उपसेव १ आ० सेवq; भोगवद् (२) दुर्भाग्य ; दुःख ; संकट ; हानि (३) विघ्न आसक्ति राखवी; भजq (४)दुश्चिह्न ; उत्पात (५) ग्रहण (६) उपसेविन् पुं० सेवक; नोकर धातुओ अने धातुओ उपरथी बनेलां उपस्कन्न वि० क्षुब्ध; त्रस्त नामोनी पहेलां जोडातो तथा तेमना उपस्कर पुं० साधनसामग्री; साहित्य मूळ अर्थमां विशेषता आणतो शब्द (२) घरखटलो (३) मसाला वगेरे (व्या०) पदार्थों (४) निंदा; ठपको (५) घरेणु उपसर्पण न० पासे जq ते । उपस्करण न० हिंसा; वध (२)शोभा उपसंक्षेप पुं० सार; तात्पर्य . शणगार (३) मूळ गुणमां फेरफार उपसंग्रह पुं०, उपसंग्रहण न० निभाव करे तेवो संस्कार (४) साधन (हिंसा ते; खुश राखवं ते (२) पग पकडीने के शणगारनु) नमस्कार करवा ते (३) स्वीकारवू ते उपस्कृ८ उ० जुओ 'उपकृ' (४) संग्रह करवो ते उपस्कृत वि० तैयार करेलु; पूर्ण करेल उपसंपद् ४ आ० जई पहोंचवू; आवी (२) ठपको अपायेलु (३)हणायेलं (४) पहोंच मिळवी आपq एकळं करायेलं (५) शणगारेलु (६) -प्रेरक० नजीक लई जq (२) आपवू; गुणांतर करेलु उपष्टंभ उपसंपन्न वि० प्राप्त थयेलं (२) पहोंचेलु उपस्तंभ पुं०, उपस्तंभन न० जु (३) संपन्न ; युक्त (४)परिचित (५) उपस्थ पुं० मध्य भाग (२) खोळो (३) मृत (६) यज्ञमां मारेलु (७) रांधेलु (८) पुं०, न० जननेंद्रिय (४) गुदा । न० मसालो उपस्था १ उ० [उपतिष्ठति-ते ] पारे उपसंस्कृ ८० तैयार करवू ; रांधवू (२) ऊभा रहेवू; सेवा करवी (२) सत्कार शोभाववू; शणगारवु (३) पवित्र करवू करवो (३) उपासना करवी (४) नजीव उपसंहार पुं० एकत्र थq ते; एकत्रित आवq (५) मळवू; जोडावं (नदी)(६ करवं ते (२) पाछु खेंची लेवं ते (३) मित्रता करवी (७) हाजर थर्बु (८) संचय ; संग्रह (४)ट्रंकामां आटोपी लेवू बनवू; थर्बु (९) आशरे रहेQ ते; समाप्त करवू ते (५)ढूंकाण; संक्षेप; उपस्थान न० पासे ऊभा रहे£ ते (२) सार (६) संहार; नाश(७) हुमलो करवो पासे आवq ते (३) उपासना; पूज ते; आक्रमण (४)नजीक मूकवं ते (५) उपासनागृह उपसंह १५० एकत्रित करवू (२)उपसंहार (६) अनुसंधान; स्मरण; चिंतन (७) करवो; समाप्त करवू (३)संकोची लेवू; मेळक्यूँ ते ; प्राप्ति पार्छ खेंच, (४) निग्रह करवो उपस्थित वि० आवी पहोंचेलं; नजीव उपसाष -प्रेरक० प० वश करवू (२) आवेलु; हाजर (२)आवी पडेलु (३) रांधवं बनेलु (४) ज्ञात ; प्राप्त (५) उपासेलं उपसृ १ प० पासे जवू; नजीक जq पूजेलं Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माने उपस्पर्शन १०७ उपालभ उपस्पर्शन न० आचमन (२)स्नान (३) उपात्त वि० मेळवेलं ; प्राप्त करेलु (२) कोगळाथी मुखशुद्धि करवी ते(४) दान; लई लीधेलं; ग्रहण करेलु (३)गणेलं; बक्षिस (२) भ्रष्ट ; अशुद्ध मानेलु (४) उपयोगमा लीधेलु उपहत वि० हणायेल; ईजा पामेलं; नष्ट उपादा ३ आ० लेवू; स्वीकारवु (२)प्राप्त उपहतक वि० अभागी; दुर्भागी करवं (३)-ने आपq (४) धारण करवू उपहस् १ प० हसवू ; मश्करीमा हसवं; (५)पकडवं; वळगवं (६) उपाडी जवू मश्करी करवी (७) अनुभवq (८)मानवू;गणवू (९) उपहसित वि० हसी काढेलं (२) न० माथे लेवू; शरू करवु (१०)रूप धारण मश्करी; मरकरीमा हसवू ते करवू (११) उपयोगमा लेवू उपहा ३ आ० ऊतरवू; उपर आवी पडवं उपादान न० अंगीकार; स्वीकार (२) -कर्मणि० [उपहीयते घटवू; ओछं लई लेवं ते; पडावी लेवू ते (३) कारण; त माटेनी वस्तुओ समवायी कारण उपहार पुं० भेट ; बक्षिस (२)बलिदान; उपादेय वि० लई शकाय तेवू (२) उपहास पं० मश्करी; ठेकडी। स्वीकार्य (३) पसंद करवा योग्य (४) उपहित वि० अंदर - नजीक - उपर उत्तम ; वखाणवा जेवू मुकायेलं (२) जोडायेलं (३) उपाधियुक्त (४) कामे लीधेलु (५) आपेलं उपाधा ३ उ० नजीक मूकवू; उपर मूकवू उपहत वि० बोलावायेलं (२) आपq (३,पहेरवु (४) उत्पन्न करवू उपहूति स्त्री० बोलाव - तेडq ते (५) पकडq; पकडी राखq (६) करवू; उपह १ प० नजीक लई जq; नजीक बनावq (७) फोसलावq (स्त्रीने) लावq (२) भेट आपवी (३) बलिदान उपाधि पुं० छळ ; कपट ; वंचना (२) आपq (४) पीरसवं; वहेंचवू (५) एकळु विशिष्टता; विशेष गुण (३)पदवी; करवं (६) लई लेवं ; नाश करवो खिताब (४) मर्यादा; निमित्त; हेतु उपाकृ ८ उ० नजीक लाव, (२) (५) संज्ञा; चिह्न (६) कारण ; हेतु बोलाव; आमंत्र (३) अर्प; बक्षवू उपाध्याय पुं० गुरु; शिक्षक (४) प्राप्त कर (कीर्ति) (५)माथे उपानह, स्त्री० जोडो; पगरखं ले; शरू करवं (६) (वधे रवा माटे उपाय पुं० इलाज; युक्ति (२) साधन; के विधि माटे) तैयार करवं __ रस्तो (३)आरंभ; शरूआत (४)पासे उपाख्यान, उपाख्यानक न० नानुं _आवते; आवी पहोंच ते आख्यान(२)सांभळेलो वात कहेवी ते उपायन न० भेट; बक्षिस उपागत वि० आवेलु (२) बनेल (३) उपारत वि. विरत थयेलं; विरमेलुं (२) अनुभवेलु ; पामेलु निवृत्त (३)-मां लागेलं; मग्न । उपागम् ( उप + आ + गम् ) १५० उपारम् १ प० आनंद माणबो (२) उपागच्छति पासे जवं; पासे आव, थोभवू; विरमवू (२) (अमुक स्थिति) पामवी; अनुभववू उपारूढ वि० वृद्धि पामेलु (३) आवी पडQ; बनवू (४)प्राप्त कर उपार्जन न० प्राप्त करवू ते ; कमावू ते उपाचर् १५० नजीक जवू(२)सेवा करवी उपाजित वि० मेळवेलु; कमायेलं (३)आसक्त थर्रा (४) उपचार करवो उपालभ् १ आ० ठपको आपवो; वांक (मांदानो) काढवो (२) काप; वधेरवु Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - उपालंभ १०८ उपालंभ पुं०, उपालंभन न० ठपको; थर्बु (३) स्वीकार; आचरb; धारण महेणुं ते; आळोटबुं ते करवू; पाम, (स्थिति) उपावर्तन न० पार्छ फरवू ते (२)गबडवू उपेक्ष १ आ० उपेक्षा करवी ; अवगणना उपावृत् १ आ० पार्छ फरवू (२) पासे करवी (२) बेदरकार रहेQ (३) जवु (३) आपवं (४) आळोटवू; गबडवू तिरस्कार करवो (४) त्याग करवो उपाश्रय पुं० आशरो; आधार (२) (५) जोवू; विचारवं आश्रयस्थान उपेक्षण न०, उपेक्षा स्त्री० अनादर; उपाधि १ उ० आश्रय लेवो तिरस्कार (२) त्याग (३) अनपेक्षा उपाश्रित वि० आशरो लेनाएं (२) उदासीनता (४) बेदरकारी धारण करनारुं; वहन करनारं उपेत ('उपे' नुं भू० कृ०) वि० नजीक उपास २ आ० पासे बेसवं (२) उपासना __ आवेलु (२) युक्त; सहित करवी; सेवQ (३) पसार करवू (समय) उपेय वि० पासे जवा योग्य (२) पाळव (४) पहोंचवें; जवु (५) रहे; पासे रहे लायक (३) उपायथी साधवा लायक (६) घेरो घालवो सेवक उपद्र पुं० विष्णु (वामन अवतारम उपासक पुं० भक्त; साधक (२)अनुयायी; इंद्रना नाना भाई होवाथी) उपासन न०, उपासना स्त्री० आराधना; उपोढ वि० एकळु थयेलं; संग्रहायल सेवा; भक्ति (२) ध्यान-चिंतन (३) (२) नजीक लावेल - आवेलु (३) धनुर्वेदनो अभ्यास आरंभायेलु (४) परणेलं उपाहार पुं० अल्प आहार; नास्तो उपोद्घात पुं० आरंभ (२) ग्रंथनी प्रस्तावना (३) प्रसंग; साधम उपाहित वि० मूकेलं (२)अनामंत मूकेलं उपोषण, उपोषित न० उपवास (३)पहेरेलु (४) युक्त उपोह, (उप+ऊह.) १ प० धकेल; उपाह १ उ० लई आवq; लावq (२) -नी तरफ खसेडवू आपवू; अर्पण कर उप्त ('वप्' न भू० कृ०) वि० वावेलु उपांग पुं० कपाळे करवामां आवतुं (२) नाखेल (३) मूंडेलु चंदननुं टीलु (२) न० मुख्य विषयनो उप्ति स्त्री० वावणी पेटा भाग ; गौण अंग-अंगनुं अंग (३) उभ् ६ प० [उभति, उभति, ७ प० वेदांग जेवां चार शास्त्र (पुराण,न्याय, [उनप्ति, ९ ५० उभ्नाति| भरवू ; मीमांसा, धर्मशास्त्र) [(पाणी) छाई देवं मां ज वपराय) उपांच (उप+अंच्) १ उ० ऊंचे चढाववं उभ स० ना०, वि० बंने ; बे (द्वि०व० उपांत वि० छेडानी नजीकच् (२) पुं० उभय स० ना०, वि० बन्ने (अर्थम नजीकनो भाग – प्रदेश (३) कोर; द्विवचनी छतां एकवचन के बहुवचन छेडो; सीमा; हद (४) आंखनो खूणो मां ज वपराय) (५) निकटता; नजीकपणु उभयतस् अ० बन्ने बाजुएथी उपांत्य वि० छल्लानी पहेलानु (२) उभयथा अ० बन्ने रीते न० सांनिध्य गप्त रीते उभयान्वयिन् वि० उभय (पद अथवा उपांशु अ० खानगीमां; धीमेथी (२) वाक्य) -ने जोडनारुं (व्या०) उपे (उप+इ)२५०पासे आवq ; आवी उम् अ०प्रश्न, सांत्वन, संमति, स्वीकार पहोंचवु (२) गुरु पासे जवू; शिष्य क्रोध - ए भाव दर्शावे Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उमा मा स्त्री० पार्वती (२) तेज; प्रभा (३) कीर्ति ( ४ ) रात्रि उमापति पुं० शंकर उमासुत पुं० कार्तिकेय अथवा गणपति उमेश पुं० शंकर उरग पुं० साप (पेटे चालनार) उरगराज पुं० शेषनाग (२) वासुकिनाग उरगारि, उरगाशन पुं० गरुड (२) मोर उरगेंद्र पुं० शेषनाग (२) वासुकिनाग उरण, उरभ्र पुं० घेटो उररी अ० संमति के स्वीकार दर्शावे ( आ अर्थमां ते सामान्य रीते 'कृ', 'भू' अने 'अस्' धातु पूर्वे वपराय छे) (२) विस्तारai अर्थ दर्शावे उररी ८ उ० स्वीकारखं; कबूल राखवु उर वि० श्रेष्ठ; उत्तम (२) न० छाती उरसिज, उरसिरुह पुं० स्तन उरस्त्राण न० कवच; बस्तर ( छाती उपरनुं) उरस्य वि० परणेली स्त्रीथी थयेलुं (संतान) (२) उत्तम ; श्रेष्ठ उरी ८ उ० जुओ 'उररीकृ' उरु वि० विशाळ ; मोटु ; विस्तृत (२) श्रेष्ठ (३) अत्यंत ( ४ ) पुष्कळ उर्णा स्त्री० ऊन उरोज, उरोभू पुं० स्तन उर्वरा स्त्री० फलद्रुप जमीन उर्वरित वि० अधिक; अतिशय ( २ ) वधेलु; शेष रहेलुं उर्वशी स्त्री० स्वर्गनी एक अप्सरा उर्वंग पुं० पर्वत ( २ ) समुद्र उव स्त्री० पृथ्वी ( २ ) जमीन उर्वोपति पुं० राजा उर्वोरुह पुं० वृक्ष (२) कोमळ तृण उलप पुं० जमीन पर फेलाती एक वेल उलूक पुं० घुवड ( २ ) इंद्र उलूखल न० खांडणियो ( लाकडानो ) उल्का स्त्री० रेखाना आकारे पडतो १०९ उल्लोल तेजनो ढगलो; आकाशनो अग्नि ( २ ) खरतो तारो (३) मशाल (४) ज्वाळा उल्कामुख पुं० एक जातनुं प्रेत (ज्वाळायुक्त मुखवाळे) (२) एक जातनुं शियाळ उल्ब न० गर्भ उपरनुं आवरण; ओर उल्बण वि० जाडु; घट्ट (२) घणुं; अत्यंत ( ३ ) मजबूत; मोटं ( ४ ) प्रगट; स्पष्ट ( ५ ) भपकादार ( ६ ) भयंकर ( ७ ) पापयुक्त उल्मुक पुं० मशाल; खोरियुं उल्लघु १५० दूर करवु; टाळवं उल्ललित वि० कंपतुं धूजतुं क्षुब्ध (२) ऊछळतुं; ऊंचे जतुं उल्लस् १ प० कूदवं; ऊछळवु; फरफरवु (२) चळकवुं चमकबुं (३) प्रगट थवं; देखावुं (४) प्रतिबिंबित थबुं (५) खीलवं, खूलबुं उल्लसित वि० तेजस्वी; स्फुरतुं ( २ ) उल्लासयुक्त (३) खेचेलु; वीझेलु ( तरवार इ० ) उल्लंघ् १ आ०, १० प० उल्लंघन कर उल्लंघन न० ओळंगवुं ते अतिक्रम उल्लाप पुं० वाणी; उद्गार ( २ ) कटाक्ष के तिरस्कारनुं वचन; वक्रोक्ति ( ३ ) घांटो पाडीने बोलाववुं ते (४) दु:खभय-शोक वगेरेथी स्वरमां पडतो फरक उल्लास पुं० आनन्द ( २ ) प्रकाश ; भपको (३) प्रकरण उल्लिख ६ प० छेकवुं ( २ ) वलूखं (३) खोतरवु; कोतवुं (४) घसवु मांजवुं (५) चीतरबुं; लखवं उल्लिह्, २ उ० [ उल्लेढि, उल्लीढे ] घसीने चकचकित करवुं उल्लिगित वि० प्रसिद्ध; जाणीतुं ( २ ) प्रगट थयेलुं (विशिष्ट लक्षणोथी ) उल्लीढ वि० घसेलुं; धार काढेलुं उल्लेख पुं० निर्देश ; सूचन (२) कथन; वर्णन (३) घसवुं - वलूरखं - खोतरखुं ते उल्लोल वि० अति चंचळ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० उल्व उल्व न० जुओ 'उल्ब' उल्वण वि० जुओ 'उल्बण' उशत् वि० सुन्दर (२) प्रिय (३) निर्मळ (४) बीभत्स ; अमंगळ उशती स्त्री तीखी वाणी उशनस् पुं० दैत्योना गुरु शुक्राचार्य उशी स्त्री० इच्छा उशीर पुं०, न० वीरणनो वाळो उष् १५० बळवं ; बाळ (२) शिक्षा करवी (३) मार; मारी नाखवं उषस् न परोढ;प्रात:काळ (२) परोढ वखतनुं तेज (३) परोढनी देवता उषसी स्त्री० सायंकाळनुं तेज उपस्कर पुं० चंद्र उषःकाल पुं० परोढनो समय उषा स्त्री० परोढ (२) प्रातःकाळy तेज (३) रात्रि (४) बाणासुरनी पुत्री अने अनिरुद्धनी पत्नी उषित ('वस्'न भू० कृ०) वि० वसेलु (२) ('उप'न भू० कृ०) बळेलं उषीर पुं०, न० जुओ 'उशीर' उष्ट्र पुं० ऊंट माटीनुं वासण उष्ट्रिका स्त्री० ऊंटडी (२) तेवा घाटगें ऊर्ज उष्ण वि० गरम (२) सखत; कडक (३) पुं०, न० उनाळो (४) गरमी; ताप; तडको (५) निसामो उष्णकर पुं० सूर्य उष्णग पुं० उनाळो (२) वर्षाऋतु उष्णगु, उष्णदीधिति पुं० सूर्य उष्णबाष्प पुं० आंसु (२) वराळ उष्णरहिम पु० सूर्य उष्णागम पुं० उनाळो उष्णांशु पुं० सूर्य उष्णीष पु०, न० पाघडी ; फेंटो; मुगट उष्म, उष्मक पुं० उष्णता (२) उनाळो (३) क्रोध (४) उत्साह; खंत उष्मन् पुं० उप्णता; गरमी (२) ग्रीष्म ऋतु; उनाळो उष्मागम पुं० उनाळो उन पुं० किरण (२) बळद उस्वित् अ० अथवा ; किंवा उंछवृत्ति वि० खेतरमा पडेला दाणा वीणीने जीवनाएं उंदरु, उंदुर, उंदुरु, उंदूरु पुं० उंदर उभ् ६,७,९५० जुओ 'उन्' ऊ अ० दया, रक्षण, संबोधननो अर्थ बतावे (२) वाक्यारंभे वपरातो उद्गार ऊढ ('वह'न भू० कृ०) वि० वहम करायेलु (बोजो); ऊंचकी जवायेलु; लई जवायेलं (२)परिणीत (३)न० लग्न ऊत ('अव्' नुं भू० कृ०)वि० रक्षायेलं; मदद करायेलु (२) ('वे'न भू० कृ०) वणायेल; सिवायलं ऊति स्त्री० लीला (२)सीवq - वणवं - गूंथवं ते (३) कृपा; मदद ऊधन्य न० दूध ऊधस् न० आउ; बावलं ऊधस्य न० दूध ऊन वि० [; ओछु; अपूर्ण (२) ऊणपवाळं; नबळं (३) बाद (संख्यावाचक शब्द साथे, उदा० ‘एकोनविशति') उद्गार ऊम् अ० प्रश्न, निंदा के स्पर्धा बतावतो ऊररी अ० जुओ 'उररी' . ऊरु पुं० साथळ; जांघ ऊरुस्तंभ पु० जांधनो संधिवा; जांघ वाळा भागनुं अकडाई जव ते ऊर्ज स्त्री० शक्ति; बळ; उत्साह (२) अन्न (३) रस (४) जळ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्ज कर्ज पुं० शक्ति ; ताकात (२) उत्साह (३) ताण (४) प्रजोत्पादन शक्ति (५) कार्तिक मास (बळ आपनार) ऊर्जस् न० सामर्थ्य (२) अन्न ऊर्जस्वल, ऊर्जस्विन् वि० शक्तिमान; पराक्रमी; तेजस्वी ऊजित वि० समर्थ; बळवान (२) श्रेष्ठ ; उच्च ; भव्य (३) वृद्धियक्त; चडियातुं (४) न० सामर्थ्य ; शक्ति ऊर्ण न० ऊन (२) ऊन- वस्त्र ऊर्णनाभ, ऊर्णनाभि, कर्णपट पुं० करोळियो वच्चेनी वाळनी रेखा ऊर्णा स्त्री० ऊन (२) आंखनी भमरो ऊर्णायु वि० ऊन- (२) पुं० घेटो (३) करोळियो (४) ऊननो कामळो ऊर्गु २ उ० ढांक; संताडवू; वींटाळवं ऊर्ध्व वि० ऊभु; ऊंचु; उपरतुं (२) सीधुं; टटार (३) ऊंचु करेलु; उन्नत (४) न० उच्चता; ऊंचाई ऊर्ध्वकाय पुं०, न० शरीरनो उपलो भाग ऊर्ध्वग, ऊर्ध्वगति, ऊर्ध्वगामिन् वि० ऊंचे जनारं; चडनाएं ऊर्ध्वजानु, ऊर्ध्वज्ञ, ऊर्ध्वजु वि० ढींचण ऊंचा करीने बेठेलू ऊर्ध्वदेह पुं० मरण पछी थनारो देह (२) मरण पछी करवानी एक क्रिया ऊर्ध्वबाहु वि० ऊंचा हाथ करेलु ऊर्ध्वम् अ० ऊंचे (२) मोटेथी; मोटा ___ अवाजे (३) पछी; पछीथी। ऊर्ध्वमुख वि० ऊंचा मोवाळु; उपरनी बाजुए ऊघडतुं ऊर्ध्वरेतस् वि० जेना वीर्य- पतन थतुं नथी एवं; नित्य ब्रह्मचर्य पाळनारं ऊमि पु० स्त्री० भोजु ; तरंग (२)प्रवाह (३) लागणीनो तरंग; उत्कंठा; संकल्प ऊर्मिमालिन् पुं० समुद्र; महासागर (तरंगो रूपी माळाओवाळो) ऊर्व पुं० वडवानल (२) वादळ (३) समुद्र (४) पितृओनो एक वर्ग ऊर्वरा स्त्री० जुओ 'उर्वरा' ऊलूक पुं० जुओ 'उलूक' ऊपर वि० खाराशवाळं (जमीन) (२) पुं०, न० ऊष्म, ऊष्मन् पुं० जुओ 'उष्म', 'उष्मन्' ऊष्मोपगम पुं० उनाळो कह १ उ० तर्क करवो (२) मानवं; धारवू; अपेक्षा राखवी (३)विचारणा करवी अह पुं० तर्क ; कल्पना (२) परीक्षण; _ विचारणा (३) अध्याहार ऊहापोह पुं० चर्चा; विचारणा ऋ. १५० [ऋच्छति जQ (२) ३ ५० [इति] जवु (३) मळवू; मेळव, (४) ऊंचं चडावQ (अवाज) (५) ५ प० ऋणोति] ईजा करवी(६)हुमलो करवो -प्रेरक० [अर्पयति] नाखवू ; फैकवू; मकवू (२) आप; सोपवू (३) पार्छ आपq (४) वींधवं ऋक्थ न० धन; मिलकत ऋक्ष पुं० रीछ (२) पुं०, न० नक्षत्र (३) पुं० ब० व० सप्तर्षिना तारा ऋक्षराज पुं० रीछोनो राजा; जांबुवान (२) चंद्र (नक्षत्रोनो राजा) ऋग्वेद पुं० चार वेदोमांनो पहेलो वेद ऋग्वेदसंहिता स्त्री० ऋग्वेदनी ऋचा ओनो व्यवस्थित संग्रह ऋच् स्त्री० ऋग्वेद (२) ऋग्वेदनी ऋचा; मंत्र (३) स्तुति ; स्तोत्र (४) पूजा (५) शोभा Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ऋच्छ ११२ ऋच्छ ६ प० जर्बु (२) अकडाई ज; ऋतुकाल पुं० स्त्रीओना मासिक जड थई जर्बु (३) मूर्छा पामवी अटकावनो समय (२) ऋतुप्राप्ति ऋज् १ आ० [अर्जते जवू (२) प्राप्त पछीनो १६ दिवसनो गर्भाधाननो करवं; मेळवएँ (३) स्थिर थर्बु (४) समय तंदुरुस्त थQ - बळवान थq (५) १५० ऋतुपति पुं० वसंत ऋतु अर्जति कमावू ऋतुमती स्त्री० रजस्वला स्त्री (२) ऋज, ऋजुक वि० सीधुं; सरळ (२) परणवा योग्य उमरनी कन्या प्रमाणिक (३) अनुकूळ ऋतुराज पुं० वसंत ऋतु ऋजुता स्त्री० सरळता; प्रमाणिकपणुं ऋतुसंहार पुं० ऋतुओनो समूह (२) ऋण न० देवू; करज कालिदासना एक काव्यनुं नाम ऋणमुक्त वि० देवामांथी छटेलं ऋतुस्नाता स्त्री० अटकाव पछी (चोथे ऋणमुक्ति स्त्री०, ऋणशोधन न० दिवसे) नाहीने शुद्ध थयेली स्त्री देवामांथी छुटवू ते ऋते अ० सिवाय ; वगर ऋणिक, ऋणिन् वि० देवादार ऋत्विज पुं० यज्ञ करावनार ब्राह्मण ऋत वि० साचुं; खरं (२) योग्य (३) ऋद्ध वि० समृद्ध प्रमाणिक (४)न० दैवी नियम ; अचळ ऋद्धि स्त्री० समृद्धि; वृद्धि (२) आबादी; नियम (५) मोक्ष (६) सत्य उत्कर्ष (३) सिद्धि ऋतधामन् वि० शुद्ध के साचा स्वभाव- ऋध् ४,५५० वधवं ; समृद्ध थर्बु (२) वाळू (२) अविनाशी पदवाळू खुश करवं ऋतम् अ० खरे ज; साचे ज ऋभुक्ष पुं० इंद्र (२) स्वर्ग (३) वज्र ऋतंभर पुं० परमेश्वर (सत्यने टकावी ऋषभ पु० सांढ; आखलो (२) उत्तम, राखनार) श्रेष्ठ -ए अर्थमा समासने छेडे वपराय ऋतंभरा स्त्री० सत्य प्रज्ञा (विपर्यास (उदा० 'पुरुषर्षभ') विनानी) ऋषभध्वज पुं० शंकर ऋति स्त्री० गमन (२)मार्ग (३)निंदा ऋषि पुं० मंत्रद्रष्टा; नबुं दर्शन पामनारी (४) समृद्धि (५) आक्रमण (६)स्पर्धा (२) मुनि ; तपस्वी; साधु (७) दुर्दैव (८) रक्षण ऋषिकुल्या स्त्री० पवित्र नदी ऋतु पुं० बे महिनानो नियत काळ (छ ऋष्टि स्त्री० तलवार ; बेधारी तलवार ऋतुओमांनी दरेक) (२) स्त्रीओनो (२) कोई पण शस्त्र (भालो इ०) मासिक स्राव (३) जुओ 'ऋतुकाल' ऋष्य पुं० धोळा पगवाळं हरण ऋ, लु, ल Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए ए अ० संबोधन, स्मृति, दया, ईर्ष्या, तिरस्कार - ए भाव दर्शाव ए ( आ + इ ) २प० आवबुं ( २ ) पामवुं ( दशा इ० ) एक स० ना०, वि० एक (२) एकलं (३) ए ज; जुदुं नहि तेवुं ( ४ ) स्थिर; न बदलायेलुं (५) अद्वितीय; असामान्य (६) मुख्य; श्रेष्ठ (७) बे अथवा arini एक ( ८ ) समासमां बच्चे 'फक्त' एवा अर्थमां वपराय ( उदा० china) (९) ब०व० बीजा; केटलाक एकक वि० एकलुं ( २ ) ए ज एककार्य वि० एक ज कार्य करनाएं (साथीदार) (२) एक ज उपयोगवाळु एकचक्र वि० एक ज पैडावाळु (सूर्यनो रथ) (२) एक ज. राजाना अमल हेळनुं एकच वि० एकलुं फरतुं के रहेतुं (२) पुं० संन्यासी एकचारिणी स्त्री० पतिव्रता स्त्री एकचित्त, एकचेतस् वि० एकाग्र चित्तवाळुं; एक ज लक्षमां तल्लीन थयेलुं एकछत्र वि० एक ज राजावाळु एकजाति पुं० शूद्र [एक ज कुटुंब एकजातीय वि० एक ज जातनुं अथवा एकतम वि० घणांमांथी एक एकतर वि० बेमांथी एक; बेमानं एक एकतस् अ० एक बाजुएथी; एक तरफथी (२) एके एके एकता स्त्री० एैक्य एकतान वि० जुओ 'एकचित्त' एकत्र अ० एक स्थळे (२) बधां मळीने एकत्र - अपरत्र अ० एक बाजु - बीजी बाजु एकदंडिन् पुं० संन्यासी ११३ ए एकवेणी एकदा अ० एक वार; एक वखत ( २ ) एक समये; एक सा [होय एवं एकदृश्य वि० जोवा माटेनं एकमात्र पात्र एकदृष्टि स्त्री० स्थिर नजर एकदेश विo एक ज जगाए रहेतुं (२) पुं० एक भाग - अवयव (आखानो) एका अ० एक रीते (२) एकले हाथे (३) एकदम; एक ज वखते (४) कोईक वार एकनिष्ठ वि० एक ज वस्तुमां निष्ठा के वफादारीवाळं (२) एक ज वस्तुमां mata ra एकपत्नी स्त्री० पतिव्रता स्त्री एकपदी स्त्री० केडी ; पगरवट एकपार्थिव पुं० एकमात्र - सर्वसत्ताधीश राजा एकभक्ति वि० एक ज देवमां भक्ति के निष्ठावाळु (२) स्त्री० रोज एक टंक खा एकभार्या स्त्री० जुओ 'एकपत्नी' एकभाव पुं० एक ज भावना के निष्ठा होवी ते एकभुक्त न० रोज एक वखत खावुं एकमनस् वि० एक ज - समान विचारवाळु (२) एकाग्र ; एकचित्त एकरस वि० एक ज वस्तुमां रस के आनंदवाळु (२) एक ज रस - प्रीतिवाळु (३) स्थिर; दृढ; वफादार एकल fao एकलु; एकाकी एकवाक्य न० एकमती; सर्वानुमति एकवारम् अ० एकदम तरत ज (२) एक वखत; एक ज वखत एकवीर पुं० श्रेष्ठ योद्धो; मुख्य योद्धो एकवेणी स्त्री० ( पतिना वियोगमा) वाळने एक ज जूडा रूपे राखवा ते Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकशः ११४ एष्टव्य एकशः अ० एक एक करीने एकांते, एकांतेन अ० जुओ 'एकांततस्' एकहायन वि० एक वर्षनी वयनुं एकिक वि० एकलं एकाकिन् वि० एकलं एकीकृ ८ उ० एकळु करवु (२) जोडवू एकाक्ष वि० एक धरीवाळू (२) एक एकैक वि० एक एक ; दरेक आंखवाळू (३) पुं० कागडो एककशः अ० जुईं जुईं; एके एके एकाक्षर वि० एक अक्षरवाळू (२) न० एकोदर पुं० सगो भाई गूढ मंत्र ॐ एकोदरा स्त्री० सगी बहेन एकाप वि० एकलक्षी (२) तल्लीन एकोन वि० एक ओछु होय तेवू एकातपत्र वि० एकछत्र ; सार्वभौम एज् १ आ० धूजवं; कंपq (२) गतिएकायन वि० मात्र एकथी ज जवाय मान थर्बु (३) १५० प्रकाशq एवं (सांकडु) (२) एकाग्र ; एक ज एडक पुं० घेटो अवलंबनवाळु (३) न० एकांत स्थळ एडुक, एडक पुं०, न० हाडकां वगेरे (४, मळवानुं संकेतस्थान (५) एकमात्र जेवा अवशेष उपर रचेलं मंदिर लक्ष के ध्येय (६) एक ज प्रकार; एण, एणक पुं० एक जातनो काळो मृग समानता (७) व्यावहारिक नीति एतद् स० ना०, वि० आ; ए; पेलं एकार्णव पुं० सघळु महासागर रूप थई (बोलनारनी नजीकन) रहे ते; प्रलय एतवीय वि० आनु; एन; पेलानुं एकार्थ वि० एक ज अर्थ के हेतुवाळू एतहि अ० हवे; हमणां एकांत वि० कोईना अवरजवर विनानुं एतादृक्ष, एतादृश् (-श) वि० आवृं; (२) एक बाजुनें; एकाकी (३) एक आ प्रकारज बाजु अथवा वस्तुने लगतुं; एतावत् वि० आटलं; एटलं 'अनेकांत'थी विरुद्ध एवं (४) अतिशय; एथ् १ आ० वध, (२) आबाद थq अत्यंत (५) एकनिष्ठ (६) निश्चित; एष पुं०, एषस् न० बळतण; ईंधण अटळ (७) पुं० एकांत स्थान (८) एनस् न० पाप बीजा सौथी अलगपणुं (९) निश्चित - एरंड पुं० दिवेलो अटळ नियम के सिद्धान्त (१०) एक एला स्त्री० एलचीनो छोड (२)एलची ज लक्ष्य के मर्यादा (११) न० एक एव अ० मात्र; फक्त; ज ज निश्चित नियम के सिद्धांत एवम् अ० आ प्रमाणे; आ रीते एकांततस्, एकांतम् अ० चोक्कसपणे; एवंविष वि० एवं; ए जातवें मात्र ; फक्त (२) अत्यंत ; तद्दन (३) एषण न०, एवणा स्त्री० चाहना; इच्छा अलग होय तेम; एकल ज होय तेम (२) आजीजी; विनंति एकातर वि० वच्चे एक आंतरो पडे तेवू एषणीय वि० इच्छवा योग्य क्रममां वच्चे एक मूकीने आवतुं एषा स्त्री० इच्छा एकातिक वि० छेल्लं; छेवट, एषिन् वि० इच्छावाळू एकातिन् वि० एकनिष्ठ एष्टव्य वि० इच्छवायोग्य (२) न०इच्छा Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T ऐ अ० संबोधन, आमंत्रण के स्मृति दर्शावतो उद्गार ऐकमत्य न० एकमत होवुं ते ऐकागारिक पुं० चोर (एकला - सूना घरमा पेसनार) ऐकाय न० एकाग्रता ऐकात्म्य न० एकात्मता; अभेद; एकस्वरूपत्व (२) परमात्मा साथ अभेद (३) आत्मानुं एक होवापणुं ऐकांतिक वि० संपूर्ण; पूरेपूरुं ( २ ) निश्चित ; चोक्कस; अवश्यंभावी ( अलग; खानगी ऐकांत्य न० सख्य; मित्रता (२) निश्चितता; अलगता ऐक्य न० एकता ( २ ) एकमती ( ३ ) अभेद (आत्मा अने परमात्मानो) ऐक्ष्वाक वि० इक्ष्वाकु राजाना वंशनुं poor fao वैकल्पिक; मरजियात (२) स्वेच्छानुसारी; पोतानी मरजी मुजबनुं ऐणेय वि० मादा काळियारनुं (२) पुं० काळियार [ परंपरागत ऐतिहासिक वि० इतिहासने लगतुं (२) ऐतिह्य न० परंपरागत वात के वर्णन ओ अ० संबोधन, स्मरण, अनुकंपा -ए भाव दर्शावे ओक पुं० घर; निवासस्थान ( २ ) आश्रय ओकस् न० घर ( २ ) आश्रयस्थान ओघ पुं० पूरनुं पाणी; प्रवाह ( २ ) जळतो वेग (३) ढगलो; जथो ओज, ओजस् न० प्रकाश; तेज (२) बळ; प्रतिभा; पराक्रम (३) जीवनशक्ति; जननशक्ति; पौरुष ( ४ ) ११५ ऐ ओ ओम् एवंपर्य न० मुख्य तात्पर्य ऐन वि० सूर्यनुं ऐभि वि० हाथीनुं; हाथी संबंधी ऐरावण, ऐरावत पुं० इंद्रनो हाथी ऐलविल पुं० कुबेर ऐश वि० शंकर संबंधी (२) राजा संबंधी ऐशान वि० शंकरनं ऐशानी स्त्री० ईशान खूणो ऐश्वर वि० ईश्वरनुं ; ईश्वरी (२) शंकरनं ऐश्वर्य न० ईश्वरपणुं ( २ ) सर्वोपरीपणुं (३) मोटाई; साहेबी (४) विभूति; संपत्ति ऐहलौकिक वि० आ लोकनुं; आ दुनिया ; सांसारिक ऐहिक वि० आ दुनियानुं ; आ लोकनुं ; सांसारिक (२) स्थानिक ऐंबव वि० चंद्रनुं [अर्जुन के वालि ऐंद्र वि० इंद्रनु, इंद्र संबंधी ( २ ) पुं० ऐंद्रजालिक वि० मायावी; जादुई; इंद्रजाल संबंधी (२) पुं० जादुगर ऐद्रि पुं० ( इन्द्रनो पुत्र ) जयंत, अर्जुन के वालि (२) कागडो इंद्रियों ऐंद्रिय, ऐंद्रियक वि० इंद्रियग्राह्य ( २ ) ऐंत्री स्त्री० पूर्व दिशा (२) इंद्राणी शुक्र धातुमाथी कांति अने प्रभावरूपे विराजती शरीरनी एक धातु ओजस्वत्, भोजस्विन् वि० तेजस्वी ओत (' आ + वे' नुं भू० कृ० ) वि० वणेलुं ओतप्रोत वि० एकबीजानी साथे परोवायेलुं - वणायेलुं [(२) खीर ओवन पुं०, न० भात; रांधेला चोखा ओम् पुं० वेदनो पहेलो अने पवित्र उच्चार, प्रणव - ॐ (२) अ० संमति, Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ ओषधि स्वीकार, आज्ञा, आरंभ, निवारण, कल्याण -ए भाव दर्शावे ओषधि स्त्री. वनस्पति (२) औषधिमां वपराती वनस्पति औषम्य ओषषिनाथ, ओषधिपति पुं० चंद्र ओषषी स्त्री० जुओ 'ओषधि' ओष्ठ पुं० होठ बोलातुं (व्या०) ओष्ठप वि० होठy; होठनी मददथी औ औ अ० बोलावामां, विरोध दर्शाववामां के निर्णय बताववामां वपरातो उद्गार औचिती स्त्री०, औचित्य न० उचितपणुं; योग्यता औज्ज्वल्य न० उज्ज्वळता (२)अजवाळू औत्पातिक वि० अनिष्ट, उत्पात के दुर्भाग्य सूचवनाएं औत्सुक्य न० अत्यंत आतुरता; उत्सुकता (२) उत्कट इच्छा (३)चिंता (४)खंत औदरिक वि० खाउधरु औदार्य न० उदारता; भव्यता (२) श्रेष्ठता; महत्ता (३) अर्थगांभीर्य औदासीन्य, औदास्य न० बेदरकारी; उपेक्षा (२) विराग ; उदासीनता (३) एकलापणुं औद्धत्य न० उद्धतपणुं; धृष्टता औद्वाहिक वि० लग्न संबंधी (२) लग्नमां मळेलु (३) न० कन्याने मळेली भेट औधस्य न० दूध औपकार्या स्त्री० तंबू; मंडप औपचारिक वि० गौण; लाक्षणिक; आलंकारिक (२) उपचारने लगतुं - उपचार पूरतुंज औपदेशिक वि० उपदेश करीने निर्वाह चलावनाएं (२) न० उपदेश करीने मेळवेलुं धन. औपपत्तिक वि० तैयार(२) योग्य (३) उपपत्तिवाळ; तर्कशुद्ध औपम्य न० उपमा (२) सादृश्य;समानता (३) तुलना पू र्वक मेळवेलं औपयिक वि० योग्य; घटित (२) प्रयत्नऔपवाद्य वि० सवारी माटेनं (२)पं० राजानो हाथी (३) राजानुं वाहन औपायिक वि० जुओ 'औपयिक' औरस वि० पोतानी परणेली स्त्रीथी थयेलं (संतान) (२) शारीरिक (३) कुदरती; स्वाभाविक बनावेलु और्ण, और्णक, औणिक वि० ऊन ऊनर्नु औलदेह न० प्रेतसंस्कार; मरणसंस्कार और्ध्वदेहिक,औदैहिक वि० प्रेत संबंधी (२) परमात्मा संबंधी (३) न० प्रेतसंस्कार (४) परलोक माटे उपयोगी एवं यज्ञ-दान आदि कर्म और्व पुं० वडवानल औशन, औशनस वि० शुक्राचार्यशुक्राचार्य संबंधी औशनसी, औशनी स्त्री० देवयानी औशीर न० शय्या; पथारी (२)आसन (३) वीरणवाळानो बनावेलो लेप औषध न० वनस्पति (२)ओसड ; दवा औषधि (-धी) स्त्री० जुओ 'ओषधि' औषस वि० प्रातःकाळ संबंधी औष्ट्रक न० ऊंटोनो समूह औष्ट्रिक वि० ऊंटन(२) पुं० घांची-तेली औष्ठय वि० जुओ 'ओष्ठय' औष्ण्य, औष्म्य न० गरमी; उष्णता Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७ कटाह क नाम के विशेषणने लागतो तद्धित प्रत्यय-अल्पता के वहाल बतावे छे; अर्थमां कशो फेर कर्या वगर पण लागे छे (उदा० बालक) (२) पुं० ब्रह्मा (३) न० सुख ; आनंद (४) पाणी ककुद् स्त्री०, ककुद पुं०, न० पर्वतर्नु शिखर; टोच (२) खूध (३) राजचिह्न (छत्र, चामर वगेरे) (४)मुख्य ; श्रेष्ठ (व्यक्ति) ककुदिन् वि० श्रेष्ठ; मुख्य ककुपत्, ककुमिन् वि० खूधवाळू (२) पुं० पर्वत (३) आखलो ककुभ स्त्री० दिशा (२) शोभा; सौंदर्य (३) शिखर कक्ष पुं० बगल; काख (२)पासुं; पडढें (३)स्त्रीनो कंदोरो (४) वननो अंतर्भाग (५) सूकुं घास (६) राजानुं अंतःपुर (७)आसपास आवेली भींत (८) ग्रहनो भ्रमणमार्ग (९) कछोटो (१०) न० नक्षत्र ; तारो (११) पाप | कक्षा स्त्री० कमर; केड (२) कमरपटो; कंदोरो (३) उत्तरीय वस्त्र (४) भींत; आसपासनी भींत (५) वाडो; चोक; आंगणुं (६)सादृश्य (७)धरनो मध्यभाग; एकांत भाग (८) पासुं; पडलु (९) स्पर्धा (१०) वस्त्रनी किनारी; कोर (११) अंतःपुर कक्षाग्नि पुं० दावानळ [जंगल कक्ष्य न० वाजवा- पल्लू (२)सूका घासतुं कक्ष्या स्त्री० तंग;दोरडु(हाथी के घोडा-) (२) कंदोरो (३) महेलन अंतःपुर (४) दीवाल; भींत (५)कछोटो (६) समानता कच् १ उ० बांधवू (२) प्रकाशवं (३) १५० अवाज करवो कच पुं० केश; वाळ कचग्रह पुं० वाळ खेंचवा ते लडq ते कचाकचि अ० एकबीजाना वाळ पकडीने कचाचित वि० छूटा केशवाळू कच्चित् अ० 'इष्ट उत्तर आपशे' ए अर्थमां प्रश्न पूछवामां वपराय छे (२) हर्ष, विकल्प, हेतु अने मंगलप्रसंग -एवो भाव दर्शावे कच्छ पुं०, न० किनारो; किनारानो प्रदेश; भेजवाळो भाग (२) कछोटो कच्छप पुं० काचबो कच्छपी स्त्री० काचबी (२) सरस्वतीनी वीणा (३) वीणा कच्छु (-च्छु) स्त्री० खस (रोग) कज न० कमळ [अंजन (३) शाही कज्जल न० काजळ ; मेश (२) आंखनु कट पुं० एक तृण; तेनी सादडी (२) हाथीनुं गंडस्थळ-लमणो (३) द्यूतमां पासा फेंकवानी एक रीत (४)श्रोणी; नितंब (५) कटाक्ष (६) शब के तेनी ठाठडी (७) अतिशयता कटक पुं०, न० कडु; हाथ, धरेणुं (२) कमरपटो; कंदोरो (३) सादडी (४) पर्वतनी खीण आगळनो सपाट भाग (५) पर्वतनी भेखड के धार (६) हाथीना दंतूशळ उपरनुं कडु (७)सैन्य (८) छावणी कटकिन् पुं० पर्वत कटन न० घरनुं छापरु के छाज कटप्रभेद पुं० मद झरवा मांडवो ते कटाक्ष पुं० वक्रदृष्टि ; तीरछी आंखे जोवू ते (प्रेम, संकेत के क्रोधमां) कटारिका स्त्री० नानी कटार कटाह पुं० कढाई (२) घडार्नु ठीकरूं Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कटि ११८ कथानक कटि स्त्री० कमर; केड (२) गंडस्थळ कणिक पुं० जुओ ‘कण' (३) थापो; कूलो कणीका स्त्री० नानो कण; नानुं बिंदु कटितट पुं० नितंब प्रदेश कतम स. ना०, वि० कयं -कोण कटित्र न० घूघरीवाळो कंदोरो (२) (अनेकमांथी) -कोण केड उपर वींटवानुं वस्त्र कतर स० ना०, वि० (बेमांथी) कयु कटिशंखला स्त्री० घरीवाळो कंदोरो कति स० ना०, वि० केटली संख्या कटिसूत्र न० केडनो पटो- कंदोरो (ब०व०मां ज) (२) 'चित्त', 'चन कटी स्त्री० जुओ 'कटि' अने अपि' साथे वपरातां 'केटलुक' एम कट वि० कडवं (२) तीखं (३) तीव्र अनिश्चितार्थ बतावे वासवाळ (४) दुर्गंधवाळ (५) ईर्ष्याळ; कतिपय वि० केटलाक; थोडाक (अमुक मत्सरवाळु (६)विकराळ; उग्र ; दारुण निश्चित संख्या-एवो भाव बतावे) (७) प्रतिकूळ, दुःखद (८) न० अकार्य; कतिविष वि० केटला प्रकारनुं दुराचरण (९)ठपको; दूषण ; आरोप कत्ताशब्द पुं० पासा फेंकवानो अवाज कटुक वि० कडवू (२)ती (३) अप्रिय, कत्थ् १ आ० बडाई मारवी (२) वखाणवू प्रतिकूळ [जलि (२) हाथीनो मद (३) निंदा करवी कटोदक न० मरण पाछळ अपाती जलां- कत्थन वि० बडाईखोर (२)न० बडाश कठिन वि० कठण; सखत (२) कठोर; कथ् १० उ० कहेवू(२)वातचीत करवी निर्दय (३) दुःखदायक ; असह्य (४) (३) जणाव; दर्शाववं (४) वर्णन सखत; तीव्र (५) अघरु; मुश्केल (६) न० करवू; वखाणवू (५) खबर आपवी; तपेलं; दोणी (२) टचली आंगळी फरियाद करवी कठिनिका, कठिनी स्त्री० खडी; चाक कथक वि० कहेनाएं बोलनारुवर्णवनाएं कठोर वि० कठण; सखत (२) निर्दय (२) पुं० वक्ता (३) पुराणी (४) नट (३) विकसित; पूर्ण अने गायक कडंकरीय,कडंगरीय वि० गोतर खवडा- कथन वि० कहेनाएं; वातोडियु (२)न० ववा योग्य (२) पुं० गाय, भेंस इ० ढोर कहेवू ते ; बोल (३) वर्णन कडार वि० पीळाश पडतुं; बदामी (२) कथम् अ० केवी रीते; कई रीते; क्याथी गर्विष्ठ (३) पुं० नोकर (२) 'शु', 'हे', एम आश्चर्य दर्शावे कण १५० जq (२) नाना थ, (३) (३) 'इव', 'नाम', 'नु', 'वा','स्वित्' रोवू; अनाज करवो(४)१०प० आंख साथे ‘एवं ते शी रीते होय?', 'एम ते मींचवी केम होय?'-एवो अर्थ दर्शावे (४) कण पुं० दाणो (२) लेश; सूक्ष्म भाग 'चित्', 'चन' अने 'अपि' साथे 'जेम (३)धूळनी रजकण (४)जळबिंदु (५) तेम करीने', 'गमे तेम' - एवो अर्थ अल्प संख्या (६) घान्य- कणसलु (७) दर्शावे (५) भाग्ये ; विरल ज । अग्निनो तणखो कथंकारम् अ० केवी रीते; केम करीने कणप पुं० भाला जेवू एक हथियार (२) कथा स्त्री० वार्ता; कहाणी (२)वृत्तांत अग्निबळथी लोढानी गोळीओ छोडतं (३) वर्णन; उल्लेख (४) वातचीत; हथियार [-दाणे दाणे संभाषण (५) विवाद ; चर्चा कणशस् अ० नाना कणमां-टीपे टीपे कथानक न० नानी वार्ता Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कथाप्रबंध कथाप्रबंध पुं० वार्ता; कथा कथाप्रसंग पुं० वातचीतनो प्रसंग (२) मांत्रिक; विषवैद्य कथामात्र, कथाविशेष, कथाशेष वि० मरी गयेलं (जेनी मात्र वात ज बाकी रही होय तेवू) प्रसंग कथांतर न० बीजी कथा (२) वातचीतनो कथित ('कथ्'- भू०कृ०) वि० कहेलं; वर्णवेलुं (२)न० कथन ; वातचीत कथीकृत वि० जुओ 'कथामात्र' कद् अ० 'कु'ने बदले समासना प्रथम पद तरीके 'दुष्टता', 'अल्पता', 'नीचता', 'अपूर्णता', 'दोष', 'खामी' -ए अर्थोमा लागे कवक न० छत; चंदरवो कवन न० नाश; कतल [जुलम कदर्थन न०, कदर्थना स्त्री० पीडा; त्रास; कथित वि० तिरस्कृत;अपमानित (२) त्रास पमाडेलु (३)निरुपयोगी कदर्य वि० कंजूस; कृपण (२) तुच्छ; हलकुं (३)अणगमतुं; खराब (४) पुं० कंजूस माणस कदल, कदलक पुं० केळ कदलिका स्त्री० धजा (२) केळ कदली स्त्री० केळ (२)एक जातनुं हरण (३) हाथी उपरनी धजा कदंब पुं० कदंब वृक्ष (मेघगर्जनाथी तेने कळीओ बेसती मनाय छे) (२) न० समूह फूल (३) समूह कदंबक पुं० कदंब वृक्ष (२)न० कदंबन कदा अ क्यारे (२) 'अपि', 'चन' अने "चित्' साथे 'कोई वार', 'एक वार' -एवो अर्थ बतावे कदाचार पुं० खराब बर्तन कदापि अ० कोई वार; कोईक वार कदुष्ण वि. थोडं गरम ; नवशेडु (२) कठोर (शब्द) का(-1) वि० पीळाश पडता बदामी रंग- (२) काबरचीतरुं (३) स्त्री० कश्यपनी पत्नी (नागोनी मा) कनक न० सोनुं कनकदंड न० राजछत्र कनकपट्ट न० जरीनुं वस्त्र कनकपत्र न० सोनानु एरिंग; एरिंग कनकपर्वत पुं० सुमेरु पर्वत कनकमय वि० सोनानुं बनेलं कनकसूत्र न० सोनानो हार, कंठी कनकाचल पुं० सुमेरु पर्वत कनकांगद न० सोनानं कड़ कनिष्ठ वि० सोथी नान; सौथी ओछु (२) उमरमां सौथी नानुं कनिष्ठिका स्त्री० टचली आंगळी कनीयस् वि० वधारे नानुं (बेमां) कन्यका स्त्री० कन्या (२) दस वर्षनी छोकरी कन्यस् वि. नानु (उमरमां) (२)नीच; कन्या स्त्री० छोकरी; कुंवारी छोकरी (२) दस वर्षनी छोकरी कपट पुं०, न० छळ ; प्रपंच कपटप्रबंध पुं० छेतरवानी युक्ति; प्रपंच कपर्व, कपर्दक पुं० कोडी (२) जटा कपर्दिका स्त्री. नानी कोडी कदिन पुं० (जटाधारी) शंकर कपाट पुं०, न० बार[; कमाड कपाटवक्षस् वि० (कमाड जेवी) पहोळी छातीवाळू कपाल पुं०, न० खोपरी; खोपरीनुं हाडकुं (२) घडा, ठीकरूं (३) एक जातनी संधि (सरखी शरतोवाळी) कपालपाणि, कपालभृत्, कपालमालिन्, कपालशिरस् पुं० शंकर कपालिका स्त्री० माटीना वासणनो टुकडो-ठीकरुं कपालिन् वि० खोपरीवाळं(२)खोपरीओ पहेरतुं (३)पुं० शंकर कपि पुं० वानर Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कपिकेतन १२० करटिन् कपिकेतन पुं० जुओ कपिध्वज' कमनीय वि० सुंदर; मनोहर (२) इच्छवा कपित्थ पुं० कोठानुं झाड (२)न० कोठं योग्य ; इष्ट कपिध्वज पुं० अर्जुन (धजा उपर हनुमान कमल न० कमळ (२) जळ होवाथी) कमलज पुं० ब्रह्मा कपिरथ पुं० रामचंद्र (२) अर्जुन कमलपत्राक्ष वि० कमळदळ जेवी कपिल वि० घेरा बदामी रंगनुं (२) आंखीवाळू - इंद्र पुं० सांख्यदर्शनना प्रणेता मुनि कमलभवाह पुं० मेघ जेनुं वाहन छे ते कपिश वि. रतूमडु; बदामी रंगनुं कमला स्त्री० लक्ष्मी (२)सुंदर स्त्री कपिजल पुं० चातक (२) तेतर कमलाकर पुं० कमळनो समूह (२) कपींद्र पुं० हनुमान (२) सुग्रीव (३) कमलपूर्ण सरोवर स्त्री जांबुवान पण पंखी कमलाक्षी स्त्री० कमळ जेवां नेत्रवाळी कपोत पुं० कबूतर (२)होलो (३) कोई कमलापति पुं० विष्णु । कपोतवृत्ति स्त्री० आजीविकानो एक कमलालया स्त्री० लक्ष्मी प्रकार (उपयोग जेटलू मेळवीने संचय कमलासन पुं० ब्रह्मा न करवो ते) कमलिनी स्त्री० कमळनी वेल (२) कपोतहस्त पुं० (भिक्षा) मागवा माटे कमळनो समूह (३) कमळथी भरेलु के भयथी अमुक रीते हाथ जोडवा ते सरोवर कपोल पुं० गाल (२)हाथीनुं गंडस्थल । कमली स्त्री० कमळनो समूह कपोलकाष पुं० जेनी साथे गाल के कमलेक्षणा स्त्री० जुओ 'कमलाक्षी' गंडस्थळ घसवामां आवे ते कमंडलु पुं०, न०, कमंडलू स्त्री० कपोलताडन न० ( भुलनी कबूलात कमंडळ ; संन्यासीनुं जळपात्र । तरीके) गाल उपर तमाच मारवी ते । कमा स्त्री० शोभा; सौंदर्य कपोलपालि (-ली) स्त्री० गालनी कम्र वि० सुंदर; मनोहर (२) कामासक्त बाजु विशाळ गाल के लमणा कर वि० करनाएं(समासने अंते ; उदा० कपोलभित्ति स्त्री० गाल अने लमणा (२) 'सुखकर') (२) पुं० हाथ (३) हाथीनी कफ पुं० वात, पित्त अने कफ ए त्रण सूंढ (४) कर; खंडणी (५) किरण (६) धातुओमांनी एक (२) खांसी; उधरस करो (वरसादनो) (३) गळफो; बळखो [स्त्री० कोणी करक पुं० संन्यासी, जळपात्र (कमंडलु) कफणि, कफोणि पुं०, स्त्री०, कफोणी (२) पुं०, न० करो (वरसादनो) कबर वि० मिश्रित (२) जोडेलु जडेलु करकमल न० कमळ जेवो सुंदर हाथ (३) काबरचीतरुं (४)पुं० लट ; वेणी करका स्त्री० करो (वरसादनो) कबरी स्त्री० लट; वेणी कर्राकसलय पुं०, न० कूपळ जेवो कबंध पुं०, न० माथा वगरनुं धड (२) कोमळ हाथ (२) आंगळी पुं० राहु (३) एक राक्षस करकुड्मल न० आंगळी कम् १० प० चाहवू (२)अत्यंत इच्छवू करज पुं० नख (हाथ उपरनो) कमठ पुं० काचबो करट पुं० हाथीनुं गंडस्थल (२) कागडो कमन वि० सुंदर (२) कामुक (३) करटक पुं० कागडो इच्छावाळ (४) पुं० प्रेमी; पति करटिन् पु० हाथी Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - करण १२१ कर्कटक करण वि० करनारुं (२) पुं० लहियो (३) करंक पुं० हाडपिंजर (२)खोपरी (३) न० करवू ते (४) कार्य ; कर्म ; कृत्य (५) ___ना- पात्र (नाळियेरीना काचलानु) कारण; हेतु (६) कोई पण क्रियानुं (४) (पान. राखवानी)पेटी; एक पात्र साधन (७) इंद्रिय (८) शरीर (९) करंड पुं० कडियो दस्तावेज; खत; लेख(१०)ताल आपवो करंडिका स्त्री. नानो कंडियो ते (संगीत०)(११) दिवसनो भाग तिवां करंभ वि० मिश्र गंधवाळु (२) सेकेलं; ११ करण होय छे) (१२) त्रीजी भुजेलु (३)पुं० दहीं मिश्रित लोट (४) विभक्तिथी दर्शावातो अर्थ (व्या०)। कादव [एक शिक्षा) करतल पुं०, न० हथेळी । करंभवालुका स्त्री० गरम रेती (नरकनी करतलगत वि० हाथमा रहेलू; हाथमांगें करंभा स्त्री० दहीं वलोववानी गोळी करतलामलक न० हाथमा रहेलं आमळं कराग्र न० हाथनो आगलो भाग (तेनी जेम स्पष्ट जोई शकाय तेवू)। कराघात पुं० हाथ वडे करेलो प्रहार करताल पुं०, करतालक न० हाथथी कराल वि० भयंकर बिहाम"(२)मोट; ताळी पाडवी ते (२) एक वाद्य - ऊँचु (३)तीव्र, उग्र (४)तीक्ष्ण; तीj करताळ (५) विशाळ (६) दांत करतालिका, करताली स्त्री० ताळी । कराला स्त्री० दुर्गा बिहामणु करेल (२) ताल आपवा माटे अपाती ताळी करालित वि० भयभीत; त्रस्त (२) (संगीत०) आपनाएं-सहायक करिका स्त्री० नखनो वलूरो । करद वि० कर आपतुं ; खंडियु (२) हाथ करिकुंभ पुं० हाथीनुं गंडस्थळ करपत्र न० करवत [आंगळी करिणी स्त्री० हाथणी करपल्लव पुं० कोमळ हाथ (२) कोमळ करिवंत पुं० हाथीदांत करपाल पुं० तलवार (२) गदा करिन् पुं० हाथी करपीडन न० पाणिग्रहण । करीर पुं० वांसनो फणगो- अंकुर (२) करपुट पुं० अंजलि; खोबो (२) ढांकण- रणमां थतो एक कांटाळो छोड़ वाळी पेटी करीष पुं०, न० छाj करभ पुं० हाथीनी सूंढ (२)हाथी-बच्चुं करींद्र पुं० श्रेष्ठ हाथी (३) ऊंटनं बच्चु (४) ऊंट (५) कोणीथी करण वि० दयाजनक ; शोककारक (२) कांडा सुधीनो हाथनो भाग पुं० करुणा; दया करभिन् पुं० हाथी करुणा स्त्री० दया; अनुकंपा । करभोर स्त्री० करभ (एटले के हाथीनी करुणामय वि० करुणाथी भरेल सूंढ के हाथनो पाछलो भाग -तेना) करुणाई वि० दया; दयाळु जेवी सुंदर जांघवाळी स्त्री करुणाविमुख वि० निर्दय ; निष्ठुर कराह पुं० हाथनो नख (२).तरवार करेणु पुं० हाथी करवाल पुं० तरवार करेणु (-) स्त्री० हाथणी करवीर, करवीरक पुं० कणेर; करेण करोट न०, करोटि स्त्री० खोपरी (२) तरवार (३) स्मशान कर्क पुं० काचबो (२) धोळो घोडो करस्वन पुं० ताळी पाडवी ते कर्कट, कर्कटक पुं० करचलो (२) वर्तुल करहाट पुं० कमळनुं मूळ के दांडो काढवानुं साधन; कंपास Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मन् कर्कटि १२२ कर्कटि(टी) स्त्री० काकडी; चीभड़ें। - कमळकोश (३) न० कर्णिकार वृक्षकर्कर वि० कठण; मजबूत (२) पुं० पुष्प (सुंदर रंगवाळु होवा छतां गंध हाडकुं (३) मरडियो विनानुं होवाथी अणगमतुं गणातुं) कर्करी स्त्री० नाळचावाळू पात्र ; झारी कर्णेजप पुं० जुओ 'कर्णजप' कर्कश वि० कठोर; कठण (२) निर्दय कर्णोपकणिका स्त्री० ऊडती वात (३) अत्यंत; तीव्र (४) मजबूत; दृढ कर्तन न० कापq ते ; छेदन (२) कांतवू ते (५)अति आसक्त (६)व्यभिचारी कर्तनी स्त्री० कातर कर्कशा स्त्री० कंकासियण ; वढकारी कर्तरिका, कर्तरी स्त्री० कातर (२) ककंधु (-धू) स्त्री० बोरडी झाड छरी; चप्पु (३) नानी तरवार कर्कारुक पुं० तरबूचनो वेलो (२) न० कर्तव्य वि० करवा योग्य (कार्य) (२) तेनुं फळ . कापवा योग्य (३) न० कार्य; कर्म कर्नूर न० सोनुं (२) हरताळ (४) फरज कर्ण पुं० कान (२)सुकान (३)वासणनो कर्तृ वि० करनारुं कानो, हाथो के कडु (४) त्रिकोणमां कर्दम पुं० कादव (२) कचरो(३)पाप काटखूणानी सामेनी बाजु कर्पट पुं०, न० जून के फाटेलु वस्त्र कर्णगोचर वि० सांभळवामां आवे तेवू; (२) कापड सांभळी शकाय ते कर्पण पुं० एक शस्त्र कर्णजप, कर्णजाप पुं० चुगलीखोर कर्पर पुं० खोपरी (२) कढाई (३) कर्णताल पुं० हाथीए कान फफडाववा ते ' माटीनुं वासण (४) भांगेला घडानुं कर्णधार पुं० सुकानी । कलेडु-ठीबु कर्णपथ पुं० सांभळी शकवानी मर्यादा कसि पुं०,न०, कसी स्त्री० कपासनो कर्णपरंपरा स्त्री० एक कानेथी बीजे कर्पर पुं० कपूर कर्बुर वि० काबरचीतरुं (२) राखोडियु काने सांभळवामां आवर्बु ते कर्णपाश पुं० सुंदर कान कर्बुरित, कर्बर वि० काबरचीतरुं कर्मकर पुं० मजूर; कारीगर कर्णपूर पुं० काननी आसपास पहेरातुं कर्मकार पुं० कारीगर; मजूर (२) लुहार (फूल इ०र्नु) घरेणुं कर्मकांड पुं०, न० धर्मकार्यो अने धर्मकर्णवेष्ट पुं०, कर्णवेष्टन न० एक जातनुं क्रियाओने लगतो वेदनो भाग कान, घरेणुं; एरिंग कर्मक्षम वि० कार्य करवाने समर्थ कर्णशष्कुली स्त्री०काननो बहारनो भाग कर्मठ वि० कार्यकुशळ (२) धार्मिक कर्णाकणि अ० एक कानेथी बीजे काने कर्मकांडमां मची रहे। (३) उद्योगी कर्णातिक वि० काननी नजीकर्नु कर्मण्य वि० कार्यकुशळ; होशियार (२) कणिक वि० कानवाळू (२) जेना हाथमां न० उद्योग; प्रवृत्ति सुकान छे तेवू (३) पुं० सुकानी कर्मन् पुं० विश्वकर्मा (२) न० कार्य; कणिका स्त्री० काननुं धरेणुं (२) वचली क्रिया; काम (३) धंधो; प्रवृत्ति (४) आंगळी (३) हाथीनी सूंढनो अग्रभाग धर्मकर्म (नित्य-नैमित्तिक-काम्य)(५) (४) कमळनो बीजकोश नसीब ; पूर्वकर्म (६) परिणाम; फळ कणिकाचल पुं० सुमेरु पर्वत (७) जेनी उपर क्रिया थती होय ते कर्णिकार पुं० एक वृक्षतुं नाम (२) (व्या०) [छोड Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ कर्मपाक पुं० जुओ कर्मविपाक कर्षण न० खेडवू ते (२) खेंचq ते (३) कर्मफल न० कर्मनुं फळ - परिणाम दुःख देवं ते (४)एक शस्त्र (५)खेड;खेती कर्मबंध पुं०, कर्मबंधन न० कर्मनुं बंधन कर्षित वि० खेडायेलू (२) आकर्षायेलु (२) कर्मना फळरूपे मळतो पुनर्जन्म (३)पीडा करायेलु (४) घसाई गयेलं कर्मभूमि स्त्री० कर्म करवानें क्षेत्र (२) कर्षिन् वि० खेंचनारु (२)आकर्षक (३) धर्मकर्म करवानो देश (भारतवर्ष) पुं० खेडूत कर्मयोग पुं० उद्योग (२) यज्ञादि कर्मने कहि अ० क्यारे? कये वखते? अनुसरवा द्वारा मोक्ष मेळववानो मार्ग कहिचित्, कहिस्वित्, कपि अ० कदी कर्मविपाक पुं० करेलां कर्मनुं फळ पण; क्यारे पण मळवू ते कल् १ आ० अवाज करवो (२) गणवू कर्मसचिव पुं० मंत्री; प्रधान (३) १० उ० पकडवू; लेवू; धारण कर्मसंग पुं० सांसारिक कर्मो अने तेमनां कर (४) गणतरी करवी; मापवू फळो प्रत्येनी आसक्ति (५) धारवं; मानवं; गणवं; समजवू कर्मसाक्षिन् पुं० नजरे जोनार साक्षी (६) प्रेर, (७) १० प० हांकवू; (२) माणसनां सारांनरसां कर्म जोनार धकेलq (८) नाखवू; फेंक (सूर्य, चन्द्र, यम, काल अने पंच- कल वि० अस्पष्ट ; मधुर (२) मिष्ट; महाभूतो) कार्यमा सफळता। धीमुं; हळवू (३)झंकार करतुं; रणकतुं कर्मसिद्धि स्त्री० कर्मफळनी प्राप्ति (२) (४) पूर्ण कलबल; घोंघाट कर्मायतन न० इंद्रिय; कमद्रिय कलकल पुं० कलरव ; गुंजारव (२) कार पुं० सराणियो; लुहार कलकंठ वि० मधुर अवाजवाळू कर्माशय पुं० (सारांमाठां) कर्मोनो कलत्र न० पत्नी; भार्या (२) नितंब संचय के तेनुं स्थान । कलधौत न० चांदी ; रू' (२)सोनुं कर्मात पुं० कार्यनो अंत; कर्मनी समाप्ति कलन वि० करनारु (समासने अंते) (२)धोरोजगार (३) कार्यकर; सेवक (२) न० चिह्न (३) दोष (४) ग्रहण कर्मातर न० चालु धर्मकार्य थोभ्यु होय करवू ते (५) ज्ञान ते वचगाळो (२) अन्य कर्म । कलना स्त्री० ज्ञान (२) ग्रहण करवू कर्मातिक पुं० मजूर; कारीगर ते (३)पहेर -धारण कर ते (४) कमिन् वि० उद्योगी (२)फळना हेतुथी उतारी नाखवू - काढी नाखवू ते धार्मिक कार्यों करनारु (३) पुं० कलभ पुं० हाथी के ऊंटनुं बच्चु (२) कारीगर [(२) कार्यकुशळ त्रीस वर्षनी वयनो हाथी कमिष्ठ वि० कर्म करवा उपर प्रीतिवाळू कलम पुं० एक जातनी डांगर (२) लेखणी कमेद्रिय न० कर्म करवानी इंद्रिय (हाथ, कलरव पुं० मधुर ध्वनि पग, वाणी, गुदा अने उपस्थ) कलविक पुं० चकलो महासागर कर्वट पुं० जिल्लानी राजधानी जेवू के कलश पुं०, न० लोटो; कळश (२) बजार, मोटुं शहेर कलशि(-शी) स्त्री० घडो; गोळी कर्वर वि० काबरचीतरं कलस पुं०, न० जुओ 'कलश' कर्शन वि० कृश बनावतुं ; पीडा करतुं कलसि (-सी) स्त्री० जुओ 'कलशि' कर्षक पुं० खेड करनार; खेडूत कलह पुं० कजियो; कंकास (२) युद्ध Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलहप्रिय कलहप्रिय वि० कलह जेने प्रिय छे तेवुं (२) पुं० नारद ऋषि कलहंस पुं० राजहंस ( २ ) बतक कलहांतरिता स्त्री० पति साथ कलह करी रूसणुं लई बेठेली स्त्री ( पण अंतरथी पस्ताती) कलंक पुं० चिह्न; डाघ (२) बट्टो ; लांछन (३) दोष; अपूर्णता कलंकित वि० कलंकवाळु; कलंक पामेलुं कला स्त्री० अंश; भाग ( २ ) सोळमो भाग ( चन्द्रनो ) ( ३ ) समयतो विभाग ( १ मिनिट, ४८ सेकंड, के ८ सेकंड ) (४) मूडी उपरनुं व्याज (५) ललित कौशल्य के शिल्प ( नृत्य, गीत वगेरे ) कलाधर, कलानिधि पुं० चन्द्र कलाप पुं० जूडो; समूह ( २ ) मोरना पीछांनो समूह (३) कटिमेखला ; कंदोरो (४) भूषण (५) जटा ( ६ ) बाणनो भाथो कलापक पुं० जूडो; समूह ( २ ) कंदोरो (३) एक घरेणुं ( ४ ) न० चार श्लोके भाव पूरो थतो होय तेवुं काव्य कलापिन् वि० बाणना भाथावाळु (२) कळा करेलुं (मोर) (३) पुं० मोर कलाय पुं० वटाणा कलालाप पुं० अव्यक्त मधुर अवाज (२) मधुर प्रिय वातचीत कलावत् वि० कळाकुशळ ( २ ) पुं० चन्द्र कलि पुं० कजियो; कलह ( २ ) युद्ध (३) कळियुग (४) पासानी एक टपकावाळी बाजु (५) स्त्री० कळी कलिका स्त्री० कळी (२) चंद्रनी कळा कलिकार पुं० नारदऋषि कलित वि० लीधेलुं; पकडेलु (२) भागेल (३) वीणेलु; एकठु करेलु (४) रचेलुं; बनावेलु (५) भेळवेलं; मेळवेलुं ( ६ ) प्राप्त करेलुं ( ७ ) गणेलु (८) छूटुं पाडेल (९) जाणेलुं १२४ कल्पन कलिद्रुम पुं० बहेडानुं वृक्ष ( २ ) देवदार कलिल वि० व्याप्त; पूर्ण (२) मिश्रित; युक्त ( ३ ) गहन ; अभेद्य ( ४ ) न० गोटाळा (५) ढगलो कलिंद पुं० यमुना नदीनुं उत्पत्तिस्थान - कलिंद पर्वत [स्त्री० यमुना नदी कलिंदकन्या, कलिंदतनया, कलिंदसुता कलुष वि० कादववाळु ; मेलुं; गंदु (२) रूंधायेलुं; झंखवायेलुं (३) क्षुब्ध (४) दुष्ट; घातकी (५) विपरीत ( ६ ) न० पाप ( ७ ) मेल; गंदकी; कादव कलुषित वि० मेलं (२) कचवायेलुं; रिसायेलुं ( ३ ) दुष्ट; घातकी कलेवर पुं०, न० शरीर; देह कल्क वि० दुष्ट; पापी (२) पुं०, न० तेल वगेरेनो कचरो ( ३ ) कचरो ; मेल (४) दंभ; छेतरपिंडी ( ५ ) वाढीने बनावेलो लोंदो; लुगदी ( ६ ) पाप (७) घूंटीने करेलुं बारीक चूर्ण कल्कि, कल्किन् पुं० विष्णुनो दशमो छल्लो अवतार www कल्प वि० शक्य ; व्यवहारु ( २ ) योग्य; साधुं ( ३ ) दृढ; शक्तिमान ( ४ ) पुं० शास्त्रनियम ( ५ ) सूचना; दरखास्त ( ६ ) अभिप्राय ( ७ ) धर्मकर्मनो विधि (८) विहित विकल्प ( ९ ) आचार (१०) एक वेदांग जेमां यज्ञक्रिया इ० नो उपदेश छे ( ११ ) महाप्रलय (१२) ब्रह्मानो दिवस (१००० युगनो) (१३) 'जेवुं', 'सदृश', 'थोडंक ज ओछु' - एवा अर्थमा नाम के विशेषणने अंते (उदा० 'प्रभातकल्पा' ) कल्पक वि० विश्व-नियम प्रमाणेनुं कल्पक्षय पुं० सृष्टिनो अंत - प्रलयकाळ कल्पतरु, कल्पद्रुम पुं० इच्छेलु बधुं आपतुं मनातुं स्वर्गनुं वृक्ष कल्पन न० रचना ( २ ) विधान ( ३ ) करवुं – आचरवुं ते (४) कातरवुं ते Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पना कल्पना स्त्री० निश्चित कर, ते (२) आचरQ-अनुष्ठान करवू ते(३) रचना; गोठवण (४) शणगारवं ते (५) धारणा; ख्याल (६) कोई पण बाबतनी मनमां थती प्रथम रचना कल्पपादप पुं० जुओ 'कल्पतरु' कल्पलता, कल्पवल्ली स्त्री० कल्पवृक्षनी जेम इच्छेलुं आपती मनाती लता कल्पविद् वि० शास्त्रविधि जाणनाएं कल्पवृक्ष पुं० जुओ 'कल्पतरु' कल्पादि पुं० सृष्टिनो आरंभकाळ कल्पांत पुं० कल्पनो अंत - जगतनो प्रलयकाळ कल्पिक वि० योग्य; उचित कल्पित वि० गोठवेलं; रचेलु (२) नक्की करेलु (३) तैयार करेलु; सज्ज करेलु (४) अटकळ करेलु; कल्पेलं कल्मष वि० पापी ; दुष्ट (२) मेलं; गंदूं (३)पुं०, न० डाघो; मेल (४)पाप कल्माष वि० रंगबेरंगी (२) धोळा अने काळा रंगकल्माषी स्त्री० यमुना नदी कल्य वि० नीरोगी; तंदुरस्त (२)सज्जा तैयार (३) दक्ष; कुशळ (४) शुभ ; अनुकूळ (५) न० परोढ (६) आवती काल (७) पुं० उपाय (८) (अस्त्र) फेंक ते तुच्छ वस्तु कल्यवर्त पुं० सवारनो नास्तो (२) न० कल्याण वि० सुखी; सुभागी (२) मंगळ ; शुभ (३) सुन्दर (४) उत्कृष्ट ; श्रेष्ठ (५) प्रमाणभूत; साचुं (६) न० सुख ; सौभाग्य (७)सत्कर्म ; पुण्य कल्याणकृत् वि० कल्याण आचरनाएं (२) शुभ (३) पुण्यशाळी कल्लि अ० काले कल्लोल पुं० मोटुं मोजु (२) आनंद कल्लोलिनी स्त्री० नदी कल्हार न० धोळं कमळ कवाय कव् १ आ० प्रशंसा करवी (२) काव्य रचवू; वर्णन करवू (३) चीतरवू । कवच पुं०, न० बख्तर (२) तावीज (३) मूठ-चोटमांथी रक्षण करतो मनातो मंत्रोच्चार (हुम्-हूम) कवर वि० जुओ कबर' कवरी स्त्री० जुओ 'कबरी' कवल पुं०, न० कोळियो कवलित वि० कोळियो करायेलं कवाट पुं०, न० जुओ ‘कपाट' कवि वि० सर्वज्ञ; क्रांतदर्शी (२) पुं० ज्ञानी; विद्वान (३) कविता रचनार (४) शुक्राचार्य कविका स्त्री० (घोडाना) मोढामां रहेतो लगामनो भाग कविता स्त्री० काव्य; पदबंध कवोष्ण वि० कोकरवायु; नवसेकुं कव्य न० पितृओने अपातो बलि कव्यवाह (-ह) पुं० अग्नि कश पुं० (मुख्यत्वे ब० व०मां) चाबुक कशा स्त्री० चाबुक कशिक पुं० नोळियो कश्मल वि० मेलु; गं, (२) अकीर्तिकर (३) न० खेद; निराशा (४) पाप कश्मीरज पुं० केशर कष् १ उ० खण; घसवं (२) परीक्षा करवी (कसोटीना पथ्थर उपर) (३) ईजा करवी; नाश करवो । कष पुं० खणवू- घस, ते (२) कसोटी नो पथ्थर कषण न० घसq ते; खणवू ते (२) कसोटी करवी ते (सोनानी) कषा स्त्री० जुओ कशा' कषाय वि० तूरुं; कडूचुं (२) सुवासित (३) गेरुवा रंगर्नु; रंगेलुं (४) मधुर अवाजवाळं (५) पुं०, न० कटाणोकडूचो स्वाद (६) गेरुवो-भगवो रंग (७) काट ; मेल (८) कावो; उकाळो Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कषायित १२६ कंबली (९)आसक्ति; वासना (१०)विलेपन घोच (३) कोई पण वस्तुनी अणी (११)जडता; मूर्खता (१२)पुं० राग (४) विघ्न ; नडतर (५) रोमांच कषायित वि० रंगवा ; लाल रंगनुं (६) नख (७) कटु वचन (८) कष्ट वि० दुःखमय; दुःखकर (२) - माछलीनो कांटो कठण ; गहन (३) दुर्जय (४) न० कंटकित वि० कांटावाळू (२) रोमांचित दुःख; संताप (५) महेनत; श्रम कंटकिन् वि० कांटावाळू (२) पीडा कष्टम् अ० अरेरे! अफसोस! करनारुं के देनाएं कष्टसंश्रय वि० कष्टयुक्त कंठ पुं०, न० गळं (२) डोक (३) कष्टि स्त्री० दुःख ; पीडा (२) कसोटी वासणनो कांठो (४) अवाज (५) कस्तुरिका, कस्तूरिका, कस्तूरी स्त्री० सामीप्य ; निकटपणुं अमुक जातनां हरणनी डूंटीमाथी कंठगत वि० कठे आवेखं (प्राण) (२) मळतो सुगंधी पदार्थ कंठ सुधी गयेखें- जतुं कह लार न० धोळं कमळ कंठाभरण न० गळा-आभूषण (हार इ०) कंक पुं० जेनां पीछां शरपुंख तरीके कंठाश्लेष पुं० गळे आलिंगन वपराय छे ते बगला जेवू पक्षी कंठी स्त्री० डोकमां पहेरवान सेरवाळू कंकट, कंकटक पुं० बख्तर (२) अंकुश एक घरेणुं [(३) कबूतर (हाथीनो) कंकणदोरो कंठीरव पुं० सिंह (२) मद झरतो हाथी कंकण पुं० हाथे पहेरवा, कडु (२) कंठच वि० गळानु; कंठनुं कंकणधर पुं० वरराजा [वाळु घरेणुं कंडन न० (फोतरां काढवा) खांडवू ते कंकणी स्त्री० नानी घूघरी (२) घूघरी- कंडनी स्त्री० खांडणियो (२.) सांबलं कंकत पुं०,न०, कंकतिका, कंकती स्त्री० कंडिका स्त्री० नानो विभाग (२) फकरो कांसको पक्षीनां पीछांवाळु बाण कंडिल वि० मदमत्त (२) धृष्ट कंकपत्र, कंकपत्रिन्, कंकवासस् पुं० कंक कंडु पुं०, स्त्री०, कंडू, कंडूति स्त्री० कंकाल पुं०, न० हाडपिंजर वलूर; खंजवाळ कंकालशेष वि० हाडपिंजर ज मात्र कंड्यन न० वलूर ते ; खंजवाळवू ते रहथु होय तेवू कंड्रल वि० खंजवाळ ऊपडी होय तेवू कंचुक पुं० सापनी कांचळी (२) कमखो; (२)खूजली करे तेवू चोळी (३) कवच; बख्तर (४) शरीरने कंतु पुं० कामदेव (२) हृदय बराबर बंधबेसतो जम्भो कंथा स्त्री० चीथरां सीवीने बनावेलं कंचुकित वि० बस्तर पहेरेलु वस्त्र (तपस्वीओ पहेरे छे ते) कंचुकिन् वि० बख्तरवाळ (२) पुं० कंथाधारिन् पुं० कथा पहेरनार तपस्वी अंतःपुरनो द्वारपाळ (३) साप कंद पुं०, न० जेमां खावानो गर होय कंचुकीय पुं० कंचुकी (नाटय०) तेवू मूळ - गांठ कंचुलिका, कंचुली स्त्री० चोळी;कांचळी कंदर पुं०, न० गुफा ; खीण कंज पुं० केश (२)ब्रह्मा (३)न० कमळ कंदरा(-री) स्त्री० गुफा कंजर, कंजार पुं० हाथी (२) सूर्य कंदर्प पुं० कामदेव; मदन (२) प्रेम (३) ब्रह्मा (४) पेट (५) मोर कंदल पुं०, न० नवो अंकुर (२) गाल कंटक पुं०, न० कांटो (२) भोंक; कंदली स्त्री० केळ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कावंद १२७ कंदु पुं०, स्त्री० भठ्ठी (२) दाणा काकपक्ष पुं० जूलफु; कानशेरियुं yजवानुं पात्र काकपद न० (लखतां रही गयेल) कंदुक पुं० दडो (२) ओशिकू शब्द वगेरे उमेरवान चिह्न (A) कंदोट पुं० नील कमळ वादळं काकपुष्ट पुं० कोयल कंधर पुं० गरदन; गर्छ; डोक (२) काकपेय वि० छीछरुं कंधरा स्त्री० गळं; गरदन; डोक काकरक, काकरूक वि० कायर; बीकण कंप १ आ० कंप; भ्रूजवू (२) पुं० स्त्रीवश पुरुष कंप पुं० कंपारो; ध्रुजारो काकलि (-ली)स्त्री० कोमळ अने मधुर कंपन वि० धूजतुं; कंपतुं (२)पुं० शिशिर अवाज (२) मंद अवाजवाळु एक ऋतु (३) एक अस्त्र (४)न० धूजवुते वाद्य (चोरो ऊंघता-जागतानी परीक्षा कंपित ('कंप'नुं भू० कृ०) वि० धूजतुं माटे वापरता कहेवाय छे) (२) कंपावेलू; हलावेलु (३) न० । काकवंध्या स्त्री० जेने एक ज वार प्रसव कंपवं ते थाय तेवी स्त्री कंप्र वि० कंपतुं; हालतुं काकारि पुं० घुवड कंबर वि० रंगबेरंगी; चित्रविचित्र काकिणि, काकिणिका, काकिनी स्त्री० कंबल पुं० कामळो कोडी (२) कोडी जेटली किंमतनो कंब वि० रंगबेरंगी; चित्रविचित्र रंगनुं सिक्को (२) पुं०, न० शंख (३) कंकण । काकी स्त्री० कागडी कंडकंठी स्त्री० गळे शंखना जेवी त्रण काकु स्त्री० क्रोध, शोक के भयमां बोलतां रेखावाळी स्त्री (भाग्यशाळी गणाय) स्वरमां थतो फेरफार (२) करडाकी कंबुग्रीवा स्त्री० शंखना आकारनी डोक के व्यंगमां बोलवू ते (२) जुओ 'कंबुकंठी' काकुत्स्थ पुं० ककुत्स्थनो वंशज; सूर्यकंब वि० चोरी करना; लुच्चु (२) वंशी राजाओने लगाडातुं उपनाम पुं० चोर (३) कडु; कंकण काकोदर पं० साप कंबोज पुं० शंख (२)एक जातनो हाथी काकोल पुं० कागडो कंस पुं०, न० कांसुं (२) प्यालो काच पुं० काच कंसक न० कांसु काठिन, काठिन्य न० कठण होवापणुं कंसविष, कंसहन, कंसारि पुं० कंसने (२) कठोरता (३) अघरापणुं मारनार (श्रीकृष्ण) काण वि० एक आंखवाळु (२) काणाका स्त्री० पृथ्वी वाळू; फूटेलं काक पुं० कागडो (२) निंद्य - हलको कालीमात पुं० कुंवारी मानो दीकरो माणस (३) पाणीमां मात्र माथु कातर वि० बीकण (२) व्याकुळ ; बोळीने नाहq ते क्षुब्ध (३) उत्सुक (४) भयथी चंचळ काकणी स्त्री० जुओ 'काकिणी' बनेलं (आंख इ.) काकतालीय वि० आकस्मिक; अणधार्यु । कातर्य न० भीरुता; बीकणपणुं (काग बेसे ने ताड पडे' - तेना जेवू) कात्कृत वि० तिरस्कृत कालनिद्रा स्त्री० कागडा जेवी-जलदी कावंब पुं० कलहंस (२) बाण (३) न० जागी जवाय तेवी -निद्रा । कदंब वृक्ष- फूल Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कादंबर अधम - कादंबर न० कदंबना पुष्पनो दारू कादंबरी स्त्री० कदंबना पुष्पनो दारू (२) मद्य; दारू कादंबिनी स्त्री० मेघपंक्ति कानन न० अरण्य; जंगल कानीन पुं० कुंवारी कन्याने थयेलो पुत्र कापथ पुं० खराब मार्ग ( २ ) कुमार्ग (ला० ) कापाल, कापालिक वि० कपाळनुं (२) पुं० खोपरीनी माळा पहेरनार तथा पात्र तरीके वापरनार एक भिक्षु कापुरुष पुं० बीकण - बायलो पुरुष ( २ ) - तुच्छ पुरुष काय वि० वानरनुं ( २ ) न० वानरवेडा काबंध्य न० कबंध – धड मात्र रहेनुं ते काम पुं० इच्छा; वासना ( २ ) प्रेम; स्नेह (३) कामनानो विषय ( ४ ) विषयसुखनी इच्छा - लालसा (५) चार पुरुषार्थमानो त्रीजो (६) कामदेव कामकाम, कामकामिन् वि० विषयेच्छु कामकार वि० इच्छानुसार वर्तनारं; स्वेच्छानुसारी (२) पुं०ऐच्छिक कार्य; स्वेच्छाथी करेलुं कार्य (३) फळनी इच्छाथी प्रेराईने कर्म करते कामग वि० स्वेच्छाचारी कामगति वि० इच्छेले स्थळे जई शके तेवुं; इच्छा मुजब गति करनाएं कामचर, कामचार वि० इच्छा मुजब फरनाएं ; बाधा विना जई शकनारुं कामचार वि० अनियंत्रित ( २ ) पुं० पोतानी मरजी मुजब वर्तवुं ते;स्वेच्छाचार ( ३ ) विषयीपणुं ( ४ ) स्वार्थीपणुं कामठ वि० काचबानुं कामतस् अ० स्वैरपणे ( २ ) जाणी जोईने; स्वेच्छाथी (३) कामवासनापूर्वक कामद वि० इच्छेलुं आपनाएं कामदा, कामदुह, कामदुहा स्त्री० कामधेनु कामदेव पुं० कामवासनानो देव; मदन १२८ कामिन कामधेनु स्त्री० मनकामना पूरी करनारी मनाती अलौकिक गाय कामना स्त्री० वासना; इच्छा; अभिलाषा कामनीय, कामनीयक न० रमणीयता कामभोग पुं० कामवासना तृप्त करवी ते कामम् अ० इच्छा प्रमाणे ( २ ) तृप्ति थाय त्यां सुधी ( ३ ) खुशीथी ( ४ ) भले ! हशे ! (५) धारो के ; मानो के (६) निःसंशय; खरेखर ( अनिच्छा के विरोधमा ) पण ए कामम् - न अ० 'आ सारं .. सारूं नहीं' - एवो अर्थ बतावे काममूढ, काममोहित वि० कामवासनाने वश बनेलुं; कामवासनाथी मूढ बनेलुं कामयमान, कामयान, कामयितृ वि० कामी ; कामासक्त कामरूप वि० इच्छानुसार रूप धारण करनाएं(२)सुंदर; खूबसुरत [सक्त कामवत् वि० कामी ; प्रेमी ( २ ) विषयाकामवृत्त वि० विषयी विषयासक्त ( २ ) स्वेच्छाचारी [स्त्री० स्वेच्छाचार कामवृत्ति वि० स्वेच्छानुसार वर्ततुं (२) कामसख पुं० वसंतऋतु (२) चैत्रमास कामसखी स्त्री० चांदनी कामसू वि० इच्छा पूर्ण करनाएं कामसूत्र न० प्रेमप्रसंग ; प्रेमप्रकरण (२) काम - पुरुषार्थ विषयक एक ग्रंथ काम हैतुक वि० विषयभोगना हेतुवाळु कामातुर वि० कामवासनाथी पीडित कामात्मन् वि० ० कामातुर कामारि पुं० (कामदेवने बाळनार ) शिव कामार्त वि० कामवासनाथी पीडित कामांध वि० कामवासनाथी मूढ बनेलुं कामिक वि० इच्छेलुं (२) इच्छा तृप्त करे ते कामित वि० इच्छेलुं (२) न० इच्छा कामिन् वि० विषयी ; विषयासक्त ( २ ) इच्छावाळु; इच्छतुं (३) पुं० कामी पुरुष; प्रेमी Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कामिनी १२९ कार्मण कामिनी स्त्री प्रेमी स्त्री(२) सुंदर स्त्री कारणकारितम् अ० –ने कारणे (३) कोई पण स्त्री कारणभूत वि० कारणरूप - सावनरूप कामुक वि० इच्छुक (२)विषयी ; कामी बनेल (३) पुं० यार (४) कामी पुरुष कारणशरीर न० स्थूल-सूक्ष्म शरीरना कामेप्सु वि० भोगनी इच्छावाळू मूळ कारणरूप देह (वेदांत०) काम्य वि० इच्छवा योग्य (२) ऐच्छिक; कारणा स्त्री० तीव्र वेदना (२) प्रेरणा खास हेतुथी करेलु ('नित्य'थी ऊलटु) कारणांतर न० विशेष कारण (२) (३) सुंदर; रमणीय निमित्त कारण काम्या स्त्री० इच्छा; कामना; धारणा कारंड, कारंडव पुं० एक जातनी बतक काय पुं०, न० शरीर (२) वृक्षतुं थड कारा स्त्री० केद (२) केदखानुं । (३) समूह [करीने आवेलु कारागार, कारागृह, कारावेश्मन् न० कायवत् वि० अवताररूपे - देह धारण केदखानु [क्रिया; कार्य कायस्थ पुं० ए नामनी ज्ञातिनो माणस कारि पुं० कारीगर; शिल्पी (२) स्त्री० (क्षत्रिय पुरुष अने शूद्र स्त्रीथी जन्मेल) कारिका स्त्री० व्याकरण, दर्शनशास्त्र कायिक वि० शरीरने लगतुं ; शरीरनुं इ० ना सिद्धांतोतुं श्लोकबद्ध विवरण कायिका स्त्री० व्याज कारित वि० करावेलु कायिका वृद्धि स्त्री० गीरो मकेल ढोर के मुद्दलना उपयोगथी व्याजरूपे मळतुं कारिन् वि० करना; बनावनाएं (समासने छेडे) (२) पुं० कारीगर जे कई ते कायिन् वि० मोटा शरीरवाळू कारु वि० शिल्पी; कारीगर कार वि० करनालं; रचनारुं (समासने कारुणिक वि० दयाळु छेडे) (२) पुं० वर्णने अंते 'ते वर्ण के कारुण्य न० करुणा; दया कार्कश्य न० कर्कशता; कठोरता (२) तेनो उच्चार' एवा अर्थमां (उदा० 'अकार') (३) रवानुकारी शब्दने अंते निर्दयता; क्रूरता 'ते रव' एवा अर्थमां (४) कार्य; कर्म कार्तस्वर न० सोनुं (५) बल; यत्न काातिक पुं० ज्योतिषी कारक वि० करनारूं; करावनारुं कार्तिक पुं० कारतक मास (समासने छेडे) (२) न० वाक्यमां कार्तिकी वि० कारतक मासरों नाम अने क्रियापद वच्चेनो अथवा कातिकेय पुं० शंकरना पुत्र - स्कंद नामनी साथे विभक्तिनो संबंध कात्यं न सघळापणुं; सकळपणुं धरावता शब्दो वच्चेनो संबंध (छठ्ठी कार्दम वि० कादववाळं सिवायनी बधी विभक्ति) कार्पटिक पुं० यात्राळु (२) संघ कारण न० कार्यनी उत्पत्ति के प्रवृत्तिनुं कार्पण्य न० गरीबाई; दीनता (२) मूळ - बीज (२) हेतु; उद्देश (३) दया; अनुकंपा (३) कृपणता साधन (४) उत्पन्न करनार; जनक कार्पास वि० कपास- बनावेलु; सुतराउ (५) मूळ तत्त्व (६) इंद्रिय (७) (२)पुं०, न० कपासबनावेलु वस्त्र शरीर (८) पूर्व वासना कार्मण वि० कर्मकुशळ (२) न० जादुकारणकारण न० आदि कारण; मूळ विद्या; मंत्र-औषधादिथी वशीकरण कारण (२) परमाणु वगेरे करवू ते Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्मुक १३० कालागर कार्मुक न० धनुष्य काल वि० काळु (२)पुं० काळो रंग (३) कार्य वि० करवा योग्य (२) न० करवानुं समय (४) योग्य समय (५) समयहोय ते ; कामकाज (३) कर्तव्य ; फरज विभाग (६) संहारकर्ता देव - रुद्र; (४) धंधो; प्रवृत्ति ; साहस ; जरूरी शंकर (७) मृत्यु (८) मृत्युसमय (९) काम (५) धर्मकार्य (६)जरूर; गरज यम (१०) ईश्वर (११) देव; नसीब (७)प्रयोजन; हेतु (८)फरियाद (९) (१२) आबोहवा; मोसम अनिवार्य परिणाम कालकर्मन् न० मृत्यु (२) विनाश कार्यकर्तृ पुं० -ना हितमा काम करनारं कालकंठ वि. काळी डोकवाळू (२) कार्यकारण न० कार्यनो खास हेतु- पुं० मोर (३) शंकर प्रयोजन (२) (द्वि० व०) कार्य अने कालकूट न० एक जात, तीव्र विष कारण ; हेतु अने प्रयोजन (२) समुद्रमंथनमांथी नीवळेलुं विष कार्यकाल पुं० कोई कार्य माटेनो उचित कालक्रम पुं० समय व्यतीत थर्बु ते काळ; तक (२) समय व्यतीत थवानो क्रम कार्यगौरव न० कोई पण कार्यनी के कालचक्र न० काळनुं सतत फरतुं रहेतुं प्रसंगनी अगत्य - महत्ता चक्र (२) जिदगीना वाराफेरा। कार्यचितक वि० विचारशील; डाहयु कालज्ञ वि० योग्य समयने जाणनाएं कार्यपदवी स्त्री० कार्यसरणी; कार्य (२) पुं० दैवज्ञ ; जोषी करवानी रीत के क्रम कालदंड पुं० यमराजनो दंड; मृत्यु ; मरण कार्यवशात् अ० हेतुसर; प्रयोजनथी कालधर्म, कालधर्मन् पुं० समयने योग्य कार्यवस्तु न० अभिप्राय; उद्देश एवं कर्तव्य (२) काळनो नियम (३) कार्यविपत्ति स्त्री०, कार्यव्यसन न० अमुक समये अमुक परिणामो नीपजवां असफळता; निष्फळता ते (४) मोत; यम कार्यहंत पुं० कार्यमां विघ्न करनार; कालधौत न० सोनू के रूप काम बगाडनार कालनियोग पुं०नियतिनो लेख -निर्णय कार्याकार्य न० करवा योग्य अने न कालपर्यय पुं० कालक्रम (२) कालाति करवा योग्य - सारं अने नरसुं काम क्रम; समयनुं वीती जवं ते (३) कार्यार्थ न० कार्य- निमित्त; कार्यनो हेतु कालनी विपरीतता कार्याथिन् वि० काम पार पाडवानी कालपाशिक पुं० फांसी देनारो इच्छा राखनारुं (२) फरियाद करनारूं। कालयाप पुं०, कालयापन न० कालक्षेप; कार्य न० कृशता; दुर्बळता (२)ओछा- __ढील - विलंब करवां ते पणुं (३)अल्पपणुं (उदा० अर्थकार्य') कालयोग पुं० नसीब कार्षापण पुं० एक सिक्को (२) एक वजन कालरात्रि (-त्री) स्त्री० घोर अंधारी काणं वि० कृष्णर्नु; विष्णु संबंधी (२) रात (२) सृष्टिना प्रलयनी रात कृष्ण-द्वैपायन व्यासमुं (दुर्गानुं स्वरूप)(३) दिवाळोनी रात कार्णायस वि० लोखंडन बनावेलं (२) कालविप्रकर्ष पुं० बहु लांबो काळ जवो ते न० लोखंड कालसमन्वित, कालसमायुक्त वि० मृत काष्णि पुं० कामदेव ( कृष्णना पुत्र कालहरण न०, कालहानि स्त्री० विलंब प्रद्युम्न तरीके) (२) शुकदेव कालागर न० Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालाजिन १३१ कांत कालाजिन न० काळा हरण, चामडु काषाय वि० लाल; भगवू (२) न० कालातिक्रम पुं०, कालातिक्रमण न०, रातुं के भगवू वस्त्र कालातिपात, कालातिरेक पुं० मोडु काष्ठ न० लाकडु (२) सोटी (३) बळतण करवू ते; विलंब काष्ठकुट,काष्ठकट पुं० लक्कडखोद पक्षी कालातीत वि० जेनो समय बीती गयो काष्ठप्रदान न० चिता तैयार करवी ते होय तेवू; जूनुं थई गयेलु काष्ठा स्त्री० दिशा (२) मर्यादा; हद कालात्यय पुं० विलंब;वेळा वीती जवी ते (३)पराकाष्ठा; अंतिम हद कालायस वि० लोखंडनुं बनेल (२) काष्ठिक पुं० कठियारो न० लोखंड समज कास् १ आ० प्रकाश, (२) उधरस खावी कालावबोध पुं० समय अने संजोगनी कास पुं० उधरस ; खांसी कालांतक पु० यम कासार पुं० तळाव; सरोवर कालांतर न० वचगाळो; समयनो गाळो काहल न० अव्यक्त अवाज (२)एक वाद्य (२) बीजो समय काहलम् अ० अत्यंत कालिका स्त्री० दुर्गा (२) काळं वादळ; कांक्ष १ आ० आकांक्षा- इच्छा राखवी काळां वादळोनो समुदाय कांक्षा स्त्री० आकांक्षा; इच्छा कांक्षित ('कांक्ष'न भू० कृ०) वि० कालिमन् पुं० काळाश इच्छित (२)न० इच्छा ; आकांक्षा कालिंदी स्त्री० यमुना नदी कांक्षिता स्त्री० इच्छा; आकांक्षा काली स्त्री० दुर्गा कांक्षिन् वि० आकांक्षा राखतुं कालुष्य न० मलिनता; गंदापणं कांचन वि० सोनार्नु; सोना- बनावेलु कालेय, कालेयक न० एक सुगंधी लाकडु; (२)न० सोनुं (३)धन; समृद्धि कालागरु कांचि स्त्री०, कांचिकलाप पुं०, कांची काल्पनिक वि० मात्र कल्पनामा रहेलं; स्त्री०, कांचीकलाप पुं० स्त्रीनो कल्पित (२) कृत्रिम कंदोरो; घूघरीवाळो कंदोरो काल्य वि. कालोचित (२) शुभ ; कांड पुं०, न० भाग; विभाग; प्रकरण अनुकूळ (३) न० परोढ ; परोढियु (२)बे पिराई वच्चेनो भाग; पेरी काव्य न० रसात्मक वाक्य के पदबंध (३) डाळी (४) तीर (५) ढगलो; (२) पद्य ; कविता (३) पुं० असुरोना जथो (६) अवसर; समय ; प्रसंग गुरु शुक्राचार्य कांडपट पुं० तंबूनी आसपासनी कनात काश् १ आ० प्रकाश; चळकवू (२) कांडपात पुं० बाण- ऊडवू -- पडवं ते देखावू (३) -ना जेवू देखावू (२)बाण जई शके तेटलं अंतर काश पुं० एक जातनुं घास (सादडी कांडपृष्ठ पुं० सैनिक; शस्त्रोपजीवी वगेरेमां वपरातुं) (२)न० तेनुं फूल (२)पोताना कुळ के वर्णने वफादार काशिन् वि० (समासने अंते)-नी समान न रहेनारो (गाळ) देखातुं - शोभतुं - चळकतुं कांडीर पुं० धनुर्धारी ('कांडपृष्ठ'नी पेठे काश्मीर, काश्मीरज न० केसर गाळ रूपे पण वपराय छे) काश्यपी स्त्री० पृथ्वी कांत पुं० इच्छित ; प्रिय (२) सुंदर; काष पुं० घसवं ते (२) जेनी साथे मनोहर (३) सुखद; अनुकूल (४) कशु घसवामां आवे ते पुं० प्रीतम (५) वर; पति Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कांता कांता स्त्री प्रिया (२) सुंदर स्त्री कांतार पुं०,न० अरण्य ; मोटुं-निर्जन वन (२) दुर्गम रस्तो-खाडो इ० कांति स्त्री० शोभा; सौंदर्य ; मनोहरता (२) तेज; नूर; दीप्ति कांतिभृत् पुं० चंद्र कांतिमत् वि० सुंदर ; मनोहर (२) भव्य कांदविक पुं० कंदोई कांदिशीक वि. नासभाग करवा मांडेलं भयभीत कांसुं (३)घंट कांस्य वि० कांसानुं बनेलं (२) न० कांस्यकार पुं० कंसारो कांस्यताल पुं० झांझ; कांसीजोडां कांस्यदोहन वि० कांसानु पात्र भरीने दूध आपे तेवू किट्ट, किटक न० काट (२) शरीरमांथी झरतो के नीकळतो मेल, मलमूत्र इ० (३)तेलमां ठरतो कचरो (४) कीटुं। किण पुं० घसारो पडीने (हाथ वगेरेमां) जामती गांठ ; घानुं चार्छ कितव पुं० शठ; लुच्चो; कपटी किम् स० ना०, वि० कोण ? कयो?शं? (२)न० 'शो उपयोग'? 'शुप्रयोजन'? (ते ते नामनी तृतीया साथे; उदा० धनेन किम्) किम् अ० 'कु' ने बदले, 'खराब','हलकं', 'नीचुं' -ए अर्थमां (उदा० 'किंपुरुष') किमपि (किम्+अपि) अ० कईक अंशे; कंईक (२) (जथो-गुण - स्वभाव अंगे) निश्चितरूपे न कही शकाय तेम (३) घणुय; केटलंय किमर्थम् (किम्+अर्थम् )अ० शा माटे? किमंग अ० 'तो पछी ...नी तो वात ज शी करवी?' - एवो अर्थ बतावे किमिति (किम्+इति) अ० शा माटे? शा हेतुथी? [शके' ? किमिव (किम् + इव) अ० 'शं होई किमु, किमुत अ० शुंआ के ते? (२) किंचित् शा माटे; वळी (३) केटलं वधारे; केटलं ओछु। कियत अ० केटलु? केटलुं मोटुं ? केटले दूर? (२) शी विसात? (३) केटलुक किरण पुं० तेजनी रेखा; रश्मि । किरात पुं० पहाड़ी-जंगली लोकोनी एक जात (२) वेपारी; वाणियो किरीट पुं०, न० मुगट (२)पुं० वेपारी किरीटिन् वि० मुगटवाळू किल अ० खरेखर; नक्की (२) 'कहे छे के','सांभळवामां आव्यु छे के' -एवो अर्थ बतावे (३) कृत्रिमता, ढोंग, आशा, अणगमो, तिरस्कार, हेतु, कारण -एवो अर्थ दर्शावे किलकिल पुं०, किलकिला स्त्री० हर्ष के __ आनंदनो ध्वनि किल्विष न० पाप (२) अपराध ; दोष (३) विपत्ति ; दुःख (४) कपट (५)वेर किशोर पुं० नानो छोकरो(पंदरथी ओछी वयनो)(२) सूर्य (३) तरुण (४) वछेरो किशोरी स्त्री० नानी छोकरी; कन्या किसलय पुं०, न० कुंपळ ; पल्लव किंकणी स्त्री० घंटडी (२)घूघरी किंकथिका स्त्री० आनाकानी; संशय किंकर पुं० सेवक; नोकर किंकर्तव्यता स्त्री० मझवण ; 'शुं करवू' -एवो प्रश्न थाय तेवी परिस्थिति किकिणिका, किंकिणी, किंकिणीका स्त्री० जुओ 'किंकणी' किंकिरात पुं० एक जातनो पोपट (२) कोयल (३) मदन (४) अशोकवृक्ष (५) कदी न करमातुं मनातुं एक फूल (लाल के पीळू) [विनानुं किक्षण वि० आळसु; समयनी किंमत किंच अ० अने; वळी किंचन अ० कांईक अंशे; कंईक (२) कोई पण रीते नहि ; जरा पण नहि किंचित् अ० कंईक; थोडंक Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किज किज वि० गमे त्यां जन्मेलं (खानदान नहि तेवुं ) [वगेरेनो केसरतंतु किज न०, किंजल, किंजल्क पुं० कमळ किंतु अ० पण; परंतु दास पुं० खराब नोकर किनर पुं० तुच्छ - कदरूपो माणस (२) भानुं शरीर अने अश्वनुं मुख - ए आकारतो कुबेरनो गण; एक देवजाति कुटिल कौर पुं० पोपट कोर्म ('कु' नं० भू० कृ० ) वि० दिखरायेलु ( २ ) छवायैल कीर्तन न० कहेवु - वर्णव ते (२) वाते (३) मंदिर; कलामय मकान कोर्तनीय वि० वखाणवा योग्य कीर्ति स्त्री० ख्याति; नामना; यश sto, free पुं० खीलो ( २ ) फाचर कीलित वि० जडायेलु, खीलो ठोकायेलं (२)शूलीए दीर्घलं (३) रोपायेलुं कु स्त्री० पृथ्वी o कु अ० नाम पूर्व लागीने खराब, हलकुं, निंदित, पापी - एत्रो अर्थ बतावे; ठपको, [ थोडुं ? दुष्टता, नीचता, लघुता, अपूर्णता दर्शा [वि० दुराचरणी कुकर्मन् न० दुष्ट कार्य; दुराचरण ( २ ) कुकुर पुं० कूतरो [तेनो अग्नि कुकूल पुं०, न० डूगसां; फोतरां (२) कुक्कुट पुं० कूकडो कुक्कुर पुं० कूतरो कुक्षि स्त्री० कुख ( २ ) पेट (३) गर्भाशय (४) अंदरनो भाग (५) खाडो (६) गुफा कुक्षिभरि वि० पेट भरवानी ज परवावाळं; स्वार्थी; खाउघरुं ( २ ) अंदर व्यापी रहेलुं अ० आ के ते ? (२) केटलुं वधारे ? केटल ओछु ? (३) शुं वळी ? (४) परंतु; छतां किं नु खलु अ० शाथी ते ? शुं कारण होई शके ? (२) एम हशे खरं ? किपाक पुं० झेरकचोलु कि पुनर् अ० केटल वधारे ? केटलं किपुरुष पुं० अधम- हलको माणस (२) माणसानं माथु अने घोडानुं शरीर - ए आकारतो एक देव प्रभु पुं० खराब मालिक के राजा कियत् वि० तुच्छ दिति (ती) स्त्री० लोकबायका fear पुं० उडाउ माणस ( कोडीनी ते शी विसात ?' - एम माननार ) किंवा अ० शुं ? ( २ ) के पछी किंशुक पुं० पलाशवृक्ष ; खाखरो ( २ ) न० खाखरानुं फूल; केसूडानुं फूल किंसखि पुं० खराब मित्र (प्रथमा एकवचन 'किंसखा' ) कि स्वित् अ० शुं वळी; क्यांक कीचक पुं० पोलो बांस कीट पुं० कीडो ( २ ) 'क्षुद्र' - 'निंद्य' - अर्थमा समासने छेडे कीटन पुं० गंधक कीटज न० रेशम कीटोत्कर पुं० कीडीनो राफडो कीवृक्ष, कीदृश् ( - श ) वि० कई जातनुं ? har प्रकार ? [ ( ४ ) कसाई कीनाश पुं० खेडूत ( २ ) यम ( ३ ) कंजूस १३३ कुग्राम पुं० ( ज्यां कोई राज्याधिकारी, वैद्य के नदी न होय तेतुं ) नानुं गामडुं कुच पुं० स्तन फुज पुं० वृक्ष ( २ ) मंगळनो ग्रह कुटु ६ प० वांकुं वाळवूं - वळवुं (२) छेतर ( ३ ) ४ प ० फाडवु; भागवु; कूटवुं; चूरो करवो कुट पुं०, न० घडो लोटो (२) पुं० किल्लो (३) हथोडो (४) वृक्ष (५) घर (६) पर्वत कुटज पुं० एक वृक्षनुं नाम ( ' इन्द्रजव ' ) कुटि स्त्री० झंपडी (२) वळांक कुटिर न० झुंपडी कुटिल वि० वक्र; वांकुं; वांकुं चूंकुं (२) कपटी; अप्रमाणिक Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुटी १३४ कुटी स्त्री० झुपडी (२) लतागह कुतुप पुं०, कुतू स्त्री० चामडानी थेली कुटीर पुं०, न० झुपडी (तेल वगेरे भरवानी) कुटुंब पुं०, न० परिवार; वंश (२) कुतूहल वि० आश्चर्यकारक (२) श्रेष्ठ बैरी छोकरां वगेरे घरनां माणसोनो (३) वखणायेलु (४)न० उत्सुकता; समूह (३) घरसंसार; तेनी उपाधि इंतेजारी (५) आश्चर्यकारक वस्तु (६) कुटुंबिक, कुटुंबिन पुं०परणेलो-कुटुंब- आनंद; सुख वाळो माणस; जेना उपर घरनी जवाब- कुतोऽपि अ० क्यांयथी पण दारी होय ते मुख्य स्त्री; गहिणी कुत्र अ० क्या? (२)क्यांय (३)आ क्यां कुटुंबिनी स्त्री० कुटुंबवाळी - कुटुबनी ने ए क्या ? केटलुं जुएं -विरोधी ? कुट्ट १० उ० कापq (२) कूटवू; कुत्रचन अ० क्यांक खांडवु (३) गाळ भांडवी कुत्रचित् अ० कोईक ठेकाणे ; क्यांक कुट्टन न० कापवू ते (२) खांडवु ते (३) कुत्रत्य अ० क्या होनाएं? क्यां रहेनारुं? गाळ देवी ते कुत्रापि अ० कोई ठेकाणे ; क्यांक कुटनी स्त्री० कूटणी कुत्स् १० आ० निंदा करवी कुट्टाक बि. कापनाएं; छेदनाएं। कुत्सन न०, कुत्सा स्त्री० निंदा (२) कुट्टिम वि० फरसबंध; पथ्थर जडेलु तिरस्कार (३) गाळ ; अपशब्द कुठार पुं० कुहाडो कुत्सित वि० निद्य; तिरस्कार करवा कुठारिका स्त्री० नानी कुहाडी योग्य (२) नीच; क्षुद्र कुडप (-व) पुं० बार मूठी जेटलं अनाजनुं कुथ् ४ प० सडq; गंधावू एक माप (२) पुं० कळी कुथ पु०, न०, कुथा स्त्री० हाथी उपर कुडमल वि० खीलतुं; विकसतुं; ऊघडतुं नाखवानी झूल (२)पाथरणु; जाजम कुडमलित वि० कळीओ बेठी होय तेवू कुदृष्टि स्त्री० खोटो मत (२)खोटा के (२) अर्धं मींचायेलु (कळी जेम) खराब ख्यालथी जोवु ते कुडघ न० भींत कुदाल पु० कोदाळो कुणप पुं०,न० मडईं; शब (२)पं०भालो कुमल न० कळी कुतश्चन, कुतश्चिद् अ० क्यांयथी कुधी वि० मूर्ख (२) दुष्ट (अनिश्चितता बतावे) कुनदिका स्त्री० नानी नदी; वहेळो कुतस् अ० क्याथी? (२) क्या? (३) कुनीत पुं० खोटी दोरवणी के सलाह शा माटे ? (४) कया कारणथी? कई कुप ४ ५० क्रोध करवो ; गुस्से थर्बु (२) रीते? (५) कारण के (६) 'किम्'ना उश्केरावू; वकर पांचमी विभक्तिना 'कस्मात्' अर्थमां कुपथ पुं० कुमार्ग (२) वेदविरुद्ध मार्ग पण वपराय छे (उदा० 'कुतः कालात्') कुपथ्य वि० शरीरने हानिकारक एवं कुतस्त्य अ० 'क्यांथी आवेलं', 'केवी (२) न० पथ्य के चरी न पाळवा ते रीते बनेलं' -एवो अर्थ बतावे कुपरीक्षक वि० योग्य मूल्य न ठरावतुं कुतीर्थ पुं० खराब शिक्षक - न जाणतुं थियेलं; वकरेलु कुतुक न० उत्सुकता; इंतेजारी (२) कुपित ('कुप्' नुं भू० कृ.) वि० गुस्से होंस ; इच्छा कुप्य न० हलकी धातु (सोना-रूपा कुतुकित, कुतुकिन् वि० कौतुहलयुक्त सिवायनी) Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुरंगाक्षी स्त्री० जुओ 'कुरंगनयना' कुरु पुं० (ब०व०) अत्यारना दिल्हीनी आसपासनोप्रदेश (२) ए देशना चंद्रवंशी राजाओ कुरुक्षेत्र न. दिल्ही नजीकर्नु, पांडवो अने कौरवोना युद्ध स्थळ कुरुवृद्ध पुं० भीष्मपितामह कुरूप वि० कदरू'; वेडोळ कुकुंट पुं० कूकडो (२) कचरो कुकुर पु० कूतरो कुई १ उ० जुओ 'कुर्दु कुर्दन न० जुओ 'कूर्दन' कुपर पुं० जुओ 'कर्पर' कुल न० कुटुंब; वंश (२) कुटुंबनुं निवासस्थान (३) ऊंचे कुळ (४) टोळं; जूथ (५) गोत्र; जाति; ज्ञाति कुलक न० समूह (२) सळंग वाक्यसंबंधवाळा पांचथी पंदर श्लोकोनो समूह कुबेर पुं० धननो अधिपति देव ; यक्षो अने किन्नरोनो राजा; उत्तर दिशानो दिक्पाल (ते कदरूपो मनाय छे : त्रण पग, आठ दांत तथा आंखने ठेकाणे मात्र एक ज पीळा चाठावाळो) कुब्ज वि० खूधं; कूबडु कुमार पुं० नानो छोकरो (पांच वर्षनी अंदरना) (२) युवराज (३)कातिकेय । कुमारक पुं० कुमार (२)आंखनो डोळो कुमारभत्या स्त्री० नाना बाळकनी के गर्भिणीनी सार-संभाळ । कुमारवत न० अखंड ब्रह्मचर्यन वत कुमारिका स्त्री० दसथी बार वर्षनी वयनी छोकरी (२) कुंवारी कन्या (३) दीकरी; पुत्री कुमारिकापुर न० कन्याओन अंतःपुर कुमद् न० सफेद पोयj (२) रातुं कमळ कुमुद पुं०, न० सफेद पोयण (चंद्रोदये खीलतुं) (२) रानु कमळ कुमुदनाथ, कुमुदबांधव पुं० चंद्र कुमुदाकर पु. कमलपूर्ण सरोवर कुमुदिनी स्त्री० सफेद पोयणांनी वेल (२) कमळसमूह (३) ज्यां कमळ घणां होय ते स्थळ कुमद्वत् वि० घणां कमळवाळं कुमद्वती स्त्री० पोयणांनी वेल (२) कमळपमूह (३)घणां कमळवाळं स्थान कुरब, कुरबक पुं० जुओ 'कुरव' कुरर पुं० क्रौंच पक्षी कुररी स्त्री० मादा क्रौंच पक्षी कुरल पुं० जुओ ‘कुरर' तिनुं फूल कुरव, कुरवक पुं० एक फूलझाड(२)न० कुरंग, कुरंगक पुं० मृग; हरण (२) चंद्रन कलंक [वाळी स्त्री कुरंगनयना स्त्री॰हरण जेवां चपळ नेत्रकुरंगनाभि स्त्री० कस्तूरी कुरंगम पुं० जुओ 'कुरंग' [वाळो) कुरंगलांछन पुं० चंद्र (हरणना चिह्न कुलकन्यका स्त्री० ऊंचा कुळनी कन्या कुलक्षण वि० अमंगळ लक्षणोवाळू कूलजन पं० सारा कुळमां जन्मेलो कुलजात. वि० ऊंचा कुळy (२) वंश परंपरागत कुलटा स्त्री० व्यभिचारिणी स्त्री कुलदेवता स्त्री० कुळनो इष्ट देव के देवी कुलधन वि० कुळनी कीर्ति ए ज जेन धन छ तेवं (२) न० कुटंवे - कुळे मानेली मोंघी मिलकत कुलधुर्य पुं० मोटी उमरनो पुत्र (जे कुटुंबनी धुरा वहन करी शके) कुलनंदन वि० कुळनी कीति वधारनारु कुलपति पुं० कुटुंबनो मुख्य पुरुष (२) दश हजार शिष्योने आश्रममा राखीने भणावनार आचार्य कुलपर्वत पुं० जुओ 'कुलाचल' कुलपांसन वि० कुळने बट्टो लगाडनाएं कुलपुत्र पुं० ऊंचा कुळमां जन्मेलो युवान Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुलपुरुष १३६ कुलपुरुष पुं० ऊंचा कुळमां जन्मेलो पुरुष कुशाग्र वि० तीव्र ; सूक्ष्म (दाभनी (२) पूर्वज अणी जेवू) कुलपूर्वक (-ग) पुं० पूर्वज कुशीलव पुं० चारण; भाट (२) नट कुलस्थिति स्त्री० कुळाचार कुशूल पुं० भंडार; कोठार कुलाचल पुं० मुख्य पर्वत ; भारतवर्षमा कुशेशय न० कमळ [अर्क खेंचवो सात दिशाए आवेला सात मुख्य पर्वतो कुष ९ प० काढवू; खेंची काढवू (२) मांनो दरेक (मलय, सह्य, विध्य इ०) कुष्ठ पुं०, न० कोढ (व्याधि) कुलापीड पुं० कुळना मुगटरूप पुरुष कुष्मांड पुं० कोळं कुलाय पुं०, न० पक्षीनो माळो कुसरित् स्त्री० नानी नदी कुलाल पुं० कुंभार कुसोद पुं० व्याजखाउ माणस (२) न० कुलालंबिन् वि० कुळनुं भरणपोषण व्याज उपर धीरेलु नाj (३) व्याजे करनारु (२) कुळनुं आधारभूत एवं पैसा धीरवानो धंधो कुलांगना स्त्री० कुळवान स्त्री; ऊंचा कुळनी स्त्री कुसुम न० फूल कुळद्रोही कुलांगार वि० कुळने कलंक लगाउनाएं; कुसुमकार्मुक, कुसुमचाप पुं० कामदेव कुलिर पुं०,न० करचलो कुसुमप्रवृत्ति, कुसुमप्रसूति स्त्री० फूल बेसवां ते कुलिश पुं०, न० इन्द्रनुं वज्र कुलिंग पुं० पंखी (२) चकलो (३) साप कुसुमबाण पुं० कामदेव कुलीन वि० कुळवान; ऊंचा कुळनुं कुसुमस्तबक न० फूलोनो गुच्छो कुलीर, कुलीरक पुं०, न० जुओ 'कुलिर' कुसुमंधय पुं० मधमाख कुलीश पुं०, न० जुओ 'कुलिश' कुसुमाकर पुं० वसंत ऋतु कुलोद्वह पुं० वंशवेलो टकावी राखनार कुसुमापचय पुं० फूल वीणवां -- चूंटवां ते - कुळनो अग्रणी कुसुमापीड पुं० कामदेव (२) फूलनी कुल्य वि० ऊंचा कुळ, (२) कुळने लगतुं कलगी (३)न० हाडकुं (४) मांस कुसुमायुध पुं० कामदेव कुल्या स्त्री० सद्गुणी स्त्री (२) नानी कुसुमांजलि पुं० फूलथी भरेलो खोबो नदी ; नहेर (३)खाई [वरसाद कुसुमित वि० फूल खील्या होय तेवू कुवर्ष पुं० अचानक पडेलो के धोधमार कुसुमेषु पुं० कामदेव कुवलय न०. नील कमळ कुसुमोच्चय पुं० फूलनो गुच्छ कुवलयिनी स्त्री० नील कमळनो छोड कुसुंभ पुं०, न० कसुबानुं वृक्ष (२)न० (२) कमळसमूह (३) घणां कमळ सोनु (३) कसुंबानो रंग वाळं स्थान कुसूल पु० कोठार; भंडार कुविद पुं० वणकर कुसृति स्त्री० छळकपट ; शठता कुश पुं० दर्भ (२) न० पाणी कुहक पुं० शठ; ठग (२) जादुगर कुशल वि० शुभ ; कल्याणकारी (२) (३) न० ठगाई; जादु आरोग्यवान (३) प्रवीण; होशियार कुहकचकित वि० सावचेत ; शंकाशील; (४) न० कुशळता -सुख (५) कौशल्य छेतरावाथी डरतुं कुशलप्रश्न पुं० 'कुशळ तो खरा?' कुहका स्त्री० ठगाई (२) जादु --एवी पूछपरछ कुहर न० गुफा ; बखोल Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ कुहु स्त्री० कोयलनो अवाज (२) अमावास्या कुंभी स्त्री० नानो घडो (२) दोणी कुहुकंठ, कुहुरव पुं० कोयल (रांधवानी) कुहू स्त्री० जुओ 'कुहु' कुंभीनस पुं० एक जातनो झेरी साप कुहेडिका, कुहेडी, कुहेलिकास्त्री०धुम्मस कुंभीपाक पुं० एक नरक कुंकुम न० केशर कुंभीर बुं० लांबा मोवाळो मगर (गंगानो) कुंचन न० वांकुं- त्रांसुं वळवू ते कुंभीरक, कुंभील, कुंभोलक पुं० चोर कुंचिका स्त्री० कूत्री [वळेलु; वांकु कूकुर पुं० कूतरो कुंचित ('कुंच्'न भू० कृ०) वि० वांकु कूच पुं० स्तन [(दुःखनो) कुंज १५० कूजq [स्थान; लतामंडप कूज् १५० कूजर्बु (२) ऊहकारो करवो कुंज पुं०, न० वेला वगेरेथी छवायेलु कूज, कूजन, कूजित न० कूजर्बु ते । कुंजकुटीर पुं० लतागृह; लतामंडप कूट वि० खोटुं; मिथ्या (२) पुं०, न० कुंजर पुं० हाथी (२) (समासने छेडे) कूड; ठगाई; छेतरपिंडी (३)पर्वतनी ते ते वर्गमां सर्वथी श्रेष्ठ (उदा० टोच ; शिखर (४ ) ढगलो; समूह (५) 'नरकुंजर') न समजाय ते जे कई होय ते (रहस्य, कुंठ वि० बुर्छ (२) आळसु (३) मूर्ख कोयडो इ०) (६) हरणने पकडवानो कुंठित ('कुछ'नु भ००)वि० बुर्छ (२) फांदो - जाळ (७) छुपावेलु हथियार शिथिल ; निर्बळ [कुंडी; पात्र --गुप्ति (८)हयोडो; घण (९) शहेरनो कुंड पुं०, न० होज (२) यज्ञनी वेदी (३) दरवाजो कुंडक पुं०, न० माटीनी कुंडी (पात्र) कटक न. कपट ; छेतरवं ते (२) ऊंचाण कुंडल पुं०, न० काननू घरेणुं (२) (३) हळ, फळ - कोश गळानुं घरेणु (३) हाथर्नु घरेणुं (४) कूटकार पुं० जूठो साक्षी दोरडानो वींटो कूटकृत् वि० छेतरनारे; कपटी (२) कुंडिका स्त्री० कूडी; कुंडु (२) कमंडळ खोटो दस्तावेज बनावनाएं कुंत पुं० भालो कूटच्छपन् पुं० ठग कुंतल पुं० माथाना वाळ ; झूल'; लट कूटतुला स्त्री० खोटां त्राजवां । कुंद पुं०, न० एक जातनो मोगरो (२) कूटपालक पुं० कुंभार (२) कुंभारनो न० तेनुं फूल [एक राशिनुं नाम निमाडो-भट्ठी कुंभ पुं० घडो (२) हाथी, गंडस्थळ (३) कूटपाश, कूटबंध पुं० फांदो; फांसो कुंभक पुं० प्राणायाम वखते श्वास रूंधी कूटमान न० खोटां काटलां राखवो ते कूटयुद्ध न० कपटी युद्ध ; अधर्मर्नु युद्ध । कुंभकार पुं० कुंभार कूटरचना स्त्री० जाळ ; फांसो (२) कुंभज, कुंभजन्मन्, कुंभयोनि, कुंभसंभव कपटजाळ के युक्ति पुं० अगस्त्य ऋषि (२) वसिष्ठ ऋषि कूटसाक्षिन् पुं० जूठो साक्षी (३) द्रोणाचार्य कटस्थ वि० टोच पर - ऊंचामां उंचा कुंभा स्त्री० वेश्या स्थळे ऊभेलं (वंशावळीमां) (२)श्रेष्ठ कुंभिका स्त्री० नानो घडो (३)सर्व काळे एकरूप रहेनारुं; अचळ कुंभिन् पुं० हाथी (४)पुं० परमात्मा ___ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ कृतनामषेय कूटागार न० उपरनी मेडी कृफवाकु पुं० कूकडो कूणित वि० मींचेलं (२) संकोचेलु कृच्छ वि० कष्टसाध्य (२) दुःखद; कूप पुं० कूवो (२) पोलाण; खाडो कष्टकारक (३) दुष्ट ; अनिष्ट (४) कूपदंड पुं० कूवाथंभ (वहाणनो) कष्टकारक दशामां आवी पडेलु (५) कूपमंडूक पुं० कूवामांनो देडको (२) पुं०, न० संकट ; पीडा; मुश्केली (६) बिनअनुभवी माणस (ला.) उपवासादि शारीरिक कष्ट ; तप कृपयंत्रघटिका स्त्री० रेंट कृच्छम,कृच्छात्,कृच्छग अ० मुश्केलीथी कूपार पुं० महासागर कृत् ६५० [कृतति] काप कूपिका स्त्री० नदी वच्चेनो खडक कृत् वि० (समासने अंते) करनाएं कबर पुं०, न०, कबरी स्त्री० गाडानो (उदा० पापकृत्') (२)पुं० धातुमाथी घोरियो .. नाम, विशेषण आदि बनाववा वपरातो कूर पुं०, न० भात (रांधेलो) | प्रत्यय (व्या०) (३)ए प्रत्यय लागीने कूर्च पुं०, न० दाढी (वाळ) (२) चूंटी . बनतो शब्द (व्या०) (३)कुचडो; पीछी; झूडो कृत ('कृ'न भू० कृ०) वि० करेलु; कूई १ उ० कूदq (२) खेलकुं आचरेलु (२) बनावेलु; रचेल (३) कूर्दन न० कूदq ते (२)खेल हणायेल (४) मेळवेलु;खरीदेखें (५) कर्पर पुं० कोणी (२)ढींचण नीमेल (६) न० कार्य; कर्म; करेलु ते कूर्पास, कूसिक पुं० चोळी ; कांचळी (७) उपकार; सेवा; लाभ (८) कूर्म पुं० काचबो सत्ययुग (१७२८००० वर्षनो) (९) कूल न० किनारो; तीर; तट चार चिह्नवाळी पासानी बाजु कूलमुव्रज वि० किनारोतोंडी नाखनाएं कृतक वि० बनावेल ('नैसगिक'थीऊलट) (नदी, हाथी इ०) नाखनाएं (२)दत्तक लीधेलं (३) ढोंगथी करेलं; कूलमुबह, कलंकष वि० किनारो धोई देखाव पूरतुं कूलंकषा स्त्री० नदी [(२)चतुर; कुशळ कूष्मांड पुं० कोळं कृतकर्मन् वि० जेनु कार्य पूर्ण थयु छ तेवू कृतकाम वि० जेनी कामनाओ पूर्ण थई कृ० ८ उ० करवं; काम करवू (२) बनावq (३) रचवू; बांधवू; तैयार छे तेवू ; परितृप्त कर (४) गोठवq (५) उत्पन्न कर, कृतकृत्य वि० पोताचं कार्य - पोतानी (घडो; अवाज) (६) कहे; वर्णन फरज पूरी करी चूक्यु होय तेवु (२)तेना करवु (७) परिणाम लावq (८)अमल संतोषवाळं जेने तक मळी छे तेवं करवो; आचर, (९)त्यागq; काढवू कृतक्षण वि० अधीराईथी राह जोतुं (२) कृतघ्न वि० बीजाए करेलो उपकार (मळ-मूत्र) (१०)धारण करवू (११) मूक ; राखq (१२) नीम, (१३) भूली जाय तेवं रांधh; पाक करवो (१४) गणवं; कृतज्ञ वि० सामाना उपकारनी कदर मानवू (उदा० 'तृणीकृत') (१५) करनारु (२)साचुं कर्तव्य जाणनारुं वितावq; पसार करवु (समय) (१६) कृतषी वि० संस्कारेली बुद्धिवाळू (२) -तरफ वळवू ; निश्चय करवो (उदा० बुद्धिशाळी; शाणुं; विचारवंत 'मति करोति') (१७) उपयोगमा आवदूं कृतनामधेय वि० नामवाळु; -ना नामे कु० ५ उ० ईजा करवी; मारी नाखवू ओळखातुं Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृतपरिश्रम कृतपरिश्रम वि० अभ्यास करेलु -नी पाछळ महेनत लोधी होय तेवुं कृतबुद्धि वि० स्थिर - निश्चयी बुद्धिवाळू, डाहधुं; शाणुं; शिक्षित कृतम् अ० 'बस करो'; ' बंध करो' (तृतीया साथे ) कृतयुग न० सत्ययुग [होय ते कृतरूप वि० परंपरागत विधिओ जागतुं कृतलक्षण वि० चिह्नित; अंकित ( २ ) गुणवडे विख्यात कृतवत् वि० जेणे कर्तुं होय तेव कृतविद्य वि० विद्वान पंडित कृतवेदिन् वि० कृतज्ञ कृतवेश वि० वस्त्राभूषणथी अलंकृत कृतहस्त वि० प्रवीण (२) चतुर कृतागस् वि० अपराधी, पापी कृतात्मन् वि० संस्कारेला - शिक्षित - शुद्ध अंतःकरणवाळु कृतान्न न० रांधेलुं अन्न कृतापराध वि० गुनेगार; अपराधी कृताभिषेक वि० जेनो राज्याभिषेक करवामां आव्यो छे तेवुं कृतार्थ वि० जेनुं कार्य सफळ थयुं छे ते ( २ ) संतुष्ट ; मुखी [करवुं कृतार्थीकृ ८ उ० सफळ करवुं ( २ ) संतुष्ट कृतालय वि० जेणे घर बांध्युं छे के मांडच् छे ते [नाख्युं छे ते कृतावमर्ष वि० जेणे स्मृतिमांथी भूसी कृतास्त्र वि० अस्त्रविद्यामां पारंगत कृतांजलि वि० ( याचना करवा ) जेणे हाथ जोडेला छे कृतांत पुं० यमराज ( २ ) दैव; नसीब (३) साबित थयेलो सिद्धांत रचना कृति स्त्री० करवुं ते; आचरबुं ते (२) कार्य; कृत्य ( ३ ) सर्जन; ( साहित्यनी ) ( ४ ) जादु ( ५ ) वध कृतिन् वि० कृतार्थ; कृतकृत्य ( २ ) सुखी संतुष्ट (३) सुभागी (४) १३९ कुशांगी चतुर; कुशळ (५) सद्गुणी ; पवित्र (६) ताबेदार कृते, कृतेन अ०, ने माटे ; नी खातर; -ने निमित्ते (छठ्ठी विभक्ति साथे ) कृतोद्वाह वि० परणेतुं कृति स्त्री० चामडुं ; मृगचर्म (२) भोजपत्र कृत्तिका स्त्री० एक नक्षत्र कृत्तिकापुत्र, कृत्तिकासुत पुं० कार्तिकेय कृत्तिवास, कृत्तिवासस् पुं० शिव (चामडुं ओढनार ) कृत्य विo करवा योग्य; कर्तव्य ( २ ) न० कर्तव्य फरज ( ३ ) कार्य; काम ( ४ ) हेतु प्रयोजन - इच्छावाळं कृत्यका स्त्री० जादुगरणी; डाकण कृत्यवत् वि० कंईक प्रयोजन - याचना [मेली शक्ति कृत्या स्त्री० क्रिया (२) मेली विद्या; कृत्रिम वि० कुदरती के स्वाभाविक नहि तेवुं; बनावटी, ऊभुं करेलुं ( २ ) दत्तक (३) शणगारेलुं कृत्वस् अ० '- गणुं', 'वार', '-वखत' (उदा० अष्टकृत्वस् ) कृत्स्न वि० आखुं; बधुं; संपूर्ण कृपण वि० दीन; गरीब, दयापात्र ( २ ) विवेक विचार करवा अशक्तिमान (३) नीच; अधम ( ४ ) कंजूस कृपा स्त्री० दया; अनुकंपा कृपाण पुं० तरवार; खड्ग कृपालु वि० दयाळु कृमि पुं० कीडो; जीवडो कृश् ४ प० ओछं थवुं ; घटवु; दुबळं थवं कृश वि० दुबळं; पातळं (२) अल्प; थोडुं (३) क्षुद्र कृशानु पुं० अग्नि कृशानुरेतस् पुं० शंकर कृशाश्विन् पुं० नट; 'एक्टर' कृशांग वि० कृश शरीरबाळं; पातळं कृशांगी स्त्री० पातळा - नाजुक बांधावाळी स्त्री Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शोदर १४० केशहस्त कृशोदर वि० कमर के पेटनो भाग क्लप्ति स्त्री० सिद्धि (२) युक्ति (३) पातळो होय तेवू रचना; गोठवण कृष ६ उ० खेडवू (२) १५० खेंचवू; केकर वि० बाडु खेंची जq; खेंची लq (३) दोर, केका स्त्री० मोरनो अवाज (४) वश करवं; जीतवं केकावल, केकिन पुं० मोर कृषक पुं० खेडूत केतक पुं० केतकीनो छोड; केवडो (२) कृषि स्त्री० खेतीवाडी; खेती ध्वज (३)न० केतकी, फूल कृष्ट ('कृष्'- भू० कृ०) वि० खेंचेलं केतकी स्त्री० केतकीनो छोड; तेनु फूल (२) आकर्षित (३) खेडेलु केतन न० घर; निवासस्थान (२) ध्वज कृष्ण वि. काळू (२) दुष्ट; खराब (३) स्थान (४) संज्ञा (५) तेडु; (३) पुं० काळो रंग (४) कृष्णपक्ष निमंत्रण (६) अवश्य करवानुं कर्म (५) व्यासमुनि (६) श्रीकृष्ण केतु पुं० ध्वज; निशान (२)श्रेष्ठ व्यक्ति; कृष्णद्वैपायन पुं० व्यासमुनि आगेवान (समासने छेडे) (३) एक कृष्णपक्ष पुं० वद पक्ष; अंधारियुं ग्रह; धूमकेतु (४)दीप्ति ; प्रकाश कृष्णवर्त्मन् पुं० अग्नि केतुष्टि स्त्री० धजानो दंड कृष्णसार पुं० काळो मृग केदार पुं० क्यारानी जमीन; क्यारो कृष्णसारथि पुं० अर्जुन केयूर पुं०, न० हाथना कोणी उपरना कृष्णा स्त्री० द्रौपदी (२) यमुना नदी भागमा पहेरातुं वरेणुं; कहूं कुंतन न० कापवू ते केलि पुं०, स्त्री०, केली स्त्री० क्रीडा; के ६५० [किरति] वेरवू ; विखेरवु (२) रमत (२) रतिक्रीडा पाथरवु; छाई देवु (३)९ उ० [कृणाति, केवल वि० विशिष्ट ; असाधारण (२) कृणीते] ईजा करवी; वध करवो एकल; मात्र (३) संपूर्ण ; समग्र (४) कृत् १० उ० [कीर्तयति-ते] उल्लेख अनाच्छादित ; खुल्लु (५) शुद्ध; साहूँ करवो; बोलवू (२)कहे; वर्णववं; (६)निष्णात जाहेर करवू(३)प्रशंसा करवी केवलज्ञान न० भ्रांतिशून्य, विशुद्ध ज्ञान क्लुप् १ आ० [कल्पते ] करवा माटे केवलम् अ० मात्र; फक्त (२) संपूर्ण शक्तिमान के लायक होवू (२) थq; रीते; पूरेपूरुं बनवू (३) तैयार - सज्ज थq के होवू केश पुं० वाळ (२)माथाना वाळ (४) उपजावq केशकर्मन् न० वाळ ओळवा ते -प्रेरक० तैयार करवू (२) नक्की केशकलाप पुं० वाळनो गुच्छो के समूह करवू; इरादो राखवो (३) सजवू केशपाश पुं० केशनो जथो (४)पूरुं पाडवू (५) मानवं; धार, केशर पुं०, न० जुओ 'केसर' (६)कापवू; भाग पाडवा (७)अमलमां केशरचना स्त्री० वाळ जुदी जुदी रीते मूकवू; निपजावq; बनाववं (८) ओळवा ते रचवू (ग्रंथ) (९) स्वीकार केशरिन् पुं० जुओ केसरिन्' क्लुप्त ('क्लुप्'- भू००) वि० नक्की; केशव पुं० विष्णु (सुंदर केशवाळा) निश्चित; तैयार; सज्ज (२) कापेलुं केशव्यपरोपण न० केश खेंचवा ते (३) उपजावेलु (४)मानेलं; कल्पेलं केशहस्त पुं० जुओ केशपाश' Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४१ केशाकेशि केशाकेशि अ० परस्पर वाळ खेंचीने (लडवू) [राक्षस केशिन् पुं० सिंह (२)श्रीकृष्ण (३)एक केशिनिवदन पुं० केशीनो वध करनार - श्रीकृष्ण केसर पुं०, न० केशवाळी (२)हरकोई फूलनी अंदर थतो तंतु (३) बकुल वृक्ष केसरिन् पुं० सिंह (२) घोडो (३) ते ते वर्गमां श्रेष्ठ (समासने अंते) केंद्र न० मध्यबिंदु कैटभ पुं० एक राक्षस कैटभजित्,कैटभरिपु,कैटभहन , कैटभारि पुं० विष्णु (कैटभने मारनार) कैतव न० दावमां मूकेली वस्तु (२) जुगार (३)कपट ; ठगाई (४)पुं०शठ; ठग (५)जुगारी खोलतुं) कैरव न० श्वेत कमळ ; पोय[ (चंद्र ऊग्ये कैरवबंधु पुं० चंद्र करविणी स्त्री० पोयणी(२)धणां पोयणां वाळं जळाराय (३)पोषणांनो समूह कैलास पुं० हिमालय पर्वतर्नु एक शिखर (शंकर अने बुबेर निवासस्थान) १. मनाथ पुं० शंकर (२) कुबेर कैवत, कंवर्तक पुं० माछी कैवल्य न० केवल स्वरूप - ब्रह्म स्वरूप थर्बु ते (२)निलिप्तपणुं; मोक्ष कैशिक न० केशसमूह कैशोर न० किशोर अवस्था कैश्य न० केशसमूह कोक पुं० वरु (२) चक्रवाक (३) कोयल कोकनद न० रातुं कमळ कोकबंधु पुं० सूर्य कोकिल पुं० नर कोयल कोकिला स्त्री० मादा कोयल कोजागर पुं० शरद पूनमनो उत्सव कोटर पुं०, न० वृक्षमांनी बखोल कोटि स्त्री० छेडो (२)धनुष्यनो अग्रभाग (३)हथियारनो अग्रभाग (४) कोदा पराकाष्ठा; अंतिम हद (५) चंद्रनी कळानी बे अणीओमांनी दरेक (६) शिखर(७) वर्चास्पद बाबतनी एक बाजु (८)करोड (संख्या) (९)वर्ग ; जाति कोटिमत् वि० धारवाळं; अणीवाळं कोटिशस् अ० करोडोथी; करोड रीते कोटी स्त्री० जुओ 'कोटि' कोटीर पुं० मुगट (२) जटा-गुच्छ कोटीश्वर पुं० करोडपति कोट्ट पुं० किल्लो; कोट कोण पुं० खूणो (२)खड्ग के शस्त्रनी तीणी धार (३)लाकडी के दंडो (४) सारंगी बगेरेनुं कामठु (५) ढोल वगाडवानो डंडूको कोणप पुं० राक्षस [इ० नो) ध्वनि कोणाघात पुं० अनेक वाचोनो(ढोल,भेरी कोदंड पं०, न० धनष्य । कोद्रव पुं० कोदरा कोप पुं० गुस्सो; क्रोध (२)वकर ते कोपन वि० क्रोधजनक (२)गुस्सावाळं (३)वकरावनाएं कोपिन् वि० गुस्से थनारुं (२) गुस्सो करनारं (३)वकरावनाएं कोमल वि० कुमळं; नाजुक; सुकुमार (२) नरम, मृदु (३)मधुर कोरक पुं०, न० कळी (२) कळीना आकार- जे कई होय ते कोरकित वि० कळीओथी छवायेलु कोल पुं० डुक्कर (२) तरापो; होडी (३)आलिंगन (४) खोळो कोलाहल पुं०, न० घोंघाट; शोरबकोर कोविद वि० अनुभवी ; निपुण; कुशळ कोविदार पुं०, न० एक वृक्षनुं नाम कोश पुं०, न० पाणी भरवानुं वासण; डोल (२) पेटी ; कबाट ; कबाटनुं खानुं (३) म्यान (४) ढांकण; आवरण (५) कोठार; भंडार (6) खजानो; तिजोरी (७) धन; संपत्ति (८) Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोशक १४२ कोल्य शब्दकोश (९) बिडायेलु फूल (१०) लग्न पहेला हाथे दोरो बांधवानो विधि दडो; गोळो (६)आनंद; सुख कोशक पुं० ईंडु कौतुकक्रिया स्त्री० लग्नक्रिया कोशकार पुं० म्यान बनावनार (२) कौतूहल न० कुतूहल; इंतेजारी रेशमनो कीडो(३)शब्दकोश रचनार कौपीन न० गुह्यांग; उपस्थ (२)लंगोटी कोशकारक पुं० रेशमनो कीडो (३) फाटेल वस्त्र (४) कफनी (५) कोशकृत् पुं० शेलडी पाप; दुष्कर्म कोशगृह न० तिजोरी; संग्रहस्थान कौबेर वि० कुबेरनु; कुबेरने लगतुं कोशचंचु पुं० बगलो [खजानची कौबेरी स्त्री० उत्तर दिशा कोशनायक, कोशपालक पुं० कोशाध्यक्ष, कौमार वि० जुवान; कुंवारुं (२)नाजुक कोशलिक पुं० लांच (३)युद्धना देव - कार्तिकेयने लगतुं कोशवासिन् पुं० कोशमा रहेनार कीडो (४) न० बाळपण (५) कुंवारा रहेवू ते कोशवृद्धि स्त्री० संपत्तिनो वधारो (२) कौमारक न० वाळपण; नानपण अंडवृद्धि कौमारभृत्य न० नानां बाळकोने उछेकोशवेश्मन् न० भंडार;कोठार; तिजोरी रवाते; बाळकोनी संभाळ राखवी ते कोशशायिका स्त्री० तरवार (२)छरी कौमारराज्य न० युवराजनुं पद कोशशद्धि स्त्री० अग्निपरीक्षा जेवी कौमारव्रत न० कुंवारा - ब्रह्मचारी कसोटीथी शुद्ध ठरवू ते रहेवान व्रत कोशागार पुं०, न० धनभंडार; तिजोरी कौमुद पुं० कार्तिकमास (२)कोठार कौमवी स्त्री० ज्योत्स्ना; चांदनी (२) कोशाध्यक्ष पुं० खजानची (२) कुवेर तेना जेवी शीतळ मुखप्रद वस्तु (३) कोष पुं०, न० जुओ 'कोश' । कार्तिक पूर्णिमा (४) अश्विन-पूर्णिमा कोष्ठ पुं० पेटनो मध्यभाग; कोठो (२) (५) उत्सव (रोशनी करवानो) कोठार (३) घरनो मध्यभाग (४) कौमोदकी, कौमोदी स्त्री विष्णुनी गदा न० कोट ; भींत (५) कोटलुं कौरव वि० कुरुवंशोत्पन्न ; कुरुवंशन कोष्ठागार पुं० कोठार; भंडार कौरव्य पुं० कुरुनो वंशज (२) कुरुओनो कोष्ण वि० थोडुगरम; हशेकुं राजा कौक्षेय वि० कूखनु; पेटमांनुं (२) केडे। कौल वि० वंशपरंपरानु; कुळतुं () ऊंचा बांधेलु; म्यानमां रहेलं कुळy (३)पुं० वाममार्गी; शाक्त (४) कौक्षेयक पुं० तरवार न० वाममार्ग; शाक्त पंथ कौटिल्य पुं० चाणक्य (२) न० कुटिलता; कौलिक वि० वंशपरंपरागत (२)कुळनं; वक्रता (३) कपट कुटुंबन (३)पुं० शाक्त (४) वणकर कौटुंबिक वि० कुटुंबचें; कुटुंबने लगतुं कौलीन वि० कुलीन ; ऊंचा कुळy (२) (२) कुटुंबनो मुख्य माणस पुं० शाक्त (३)न० लोकापवाद ; आळ कोणय पुं० राक्षस (४)दुष्कर्म ; कुकर्म (५) कुलीनता कौतुक न इच्छा; आतुरता; अधीराई कौलीन्य न० कुलीनता; कुळवानपणुं (२)जिज्ञासा (३)कुतूहल जाग्रत करे कौल्य वि० कुलीन ; ऊंचा कुळमां जन्मेलु एवं कई पण (४) उत्सव ; क्रीडा (५) (२) न० कुलीनता Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कौशल १४३ क्रियाविशेषण कौशल न० क्षेमकुशळ होवापणु (२) क्रमागत, क्रमायात वि० अनुक्रमे - वंशकुशळता; निपुणता परंपराथी चालतु आवेलु कौशलिक न० लांच क्रमेलक पुं० ऊंट कौशलेय पुं० कौशल्याना पुत्र - राम क्रय पुं० खरीदq ते; खरीदी कौशल्य न० जुओ कौशल ऋयिक वि० खरीदनारं कौशल्यायनि पुं० जुओ 'कौशलेय' । क्रव्य न० काचुं मांस कौशिक वि० म्यानमां रहेलु (२)रेशमी ऋव्यभुज, ऋव्याद् (-4) पुं० वाघ वगेरे (३)कुशिकना वंशनु (४)पुं० विश्वामित्र हिंस्र प्राणी (२) राक्षस (५) इंद्र (६) घुवड (७) नोळियो कंद १५० बम पाडवी; रडवू; विलाप (८) गारुडी (९) न० रेशमी वस्त्र करवो (२)दयाजनक रीते बोलाव कौशिकाराति, कौशिकारि पं० कागडो क्रंदन, कंदित न० दुःखनो विलाप के कौशिको स्त्री० पृथ्वी (२) दुर्गा पोकार (२) पडकार कौशेय, कोषेय न० रेशम(२)रेशमी वस्त्र काकचिक पुं० लाकडां वहेरनारो कौसुम वि० फूलन; फूल संबंधी क्रांत ('कम्'- भू.कृ.)वि० गयेलु (२) कौसुंभ वि० कसूबी ; लाल रंगर्नु । हुमलो करायेलु (३)आरूढ (४) अतीत कौस्तुभ पुं० समुद्रमंथनमांथी नीकळेला (५)व्यापेलं (६)उल्लंघन करेलु १४ रनोमान एक; एक मणि तिने कांतशिन वि० सर्वज्ञ विष्णु धारण करे छे) क्रांति स्त्री० जq ते; आगळ वध ते कौंजर वि० हाथी- [अर्जुन) (२) ओळंगी जq ते (३)पगलं (४) कौंतेय पुं० कुंतापुत्र (युधिष्ठर, भीम, हुमलो करवो ते; ताबे करवं ते क्रकच पुं० करवत (२) एक वाद्य । क्रिमि स्त्री० जंतु; कीडो ऋतु पुं० यज्ञ (२)विष्णु (३)संकल्प । क्रिया स्त्री० करवू ते; पार पाडवं ते (२) क्रम् १ उ० [कामति; क्रमते],४५० कर्म; कार्य (३) प्रवृत्ति; शारीरिक [काम्यति] जq; चालवू (२) पासे क्रिया; मजूरी (४) शिक्षण (५) ज, (३) ओळंगी जवु (४) कूदq नृत्य-संगीत आदि कळा (६)अमल; (५) ऊंचे चड, (६) चडियातुं थर्बु आचरण ('शास्त्र' थी ऊलटुं) (७) (७) माथे लेबु (काम) (८) सिद्ध साहित्य-कृति (८) धार्मिक क्रिया; कर-पार पाडवु (९)वृद्धि पामवी; प्रायश्चित; श्राद्ध (९) व्याधिनो विकास थवो उपचार (१०)गति (११)क्रियापद क्रम पुं० पगलं; डगलं (२) पग (३) क्रियापद न० क्रिया बतावनारंपद(व्या०) जवू ते; पसार थq ते (४) पद्धति; क्रियापर वि० कार्य करवाने तत्पर; अनुक्रम; परिपाटी (५) आचरण; कार्यमा प्रवृत्त आरंभ (६) पकड (७) हुमलो करता कियामाधुर्य न० शिल्पकळानं सौंदर्य पहेलांनी तैयारी (पशुनी) कियावत् वि० आचरणमां लागेलं; कमण न० जq ते; डग भरवू ते (२) व्यवहारकुशळ. (२) योग्य विधिथी डगलं; पगलं क्रियाओ करनारं क्रमतस् अ० क्रमे कमे; धीमे धीमे क्रियाविशेषण न० क्रियापदना विशेषण क्रमशस् अ. क्रम प्रमाणे तरीके वपरातो शब्द (व्या०) पानी) Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की ९उ० खरीद ( २ ) विनिमय करवो कीड् १५० रमवु; खेलबुं कीडन न० रमवुं ते; क्रीडा ( २ ) रमकडु क्रीडनक पुं० न०, क्रीडनीय, क्रीडनीयक न० रमकडुं क्रीडा स्त्री० रमत ( २ ) मश्करी क्रीडावेश्मन् न० क्रीडागृह क्रीडित न० रमतगमत क्रीडोद्देश पुं० रमतगमतनुं मेदान क्रीत ( ' की 'नुं भू० कृ० ) वि० खरीदे क्रुद्ध ('क्रुश्रू'नुं भू० कृ० ) वि० गुस्से थल, कुपित क्रुध् ४ प० क्रोध करवो; गुस्से थवुं क्रुध् स्त्री० कोप; गुस्सो [करवो ऋश् ११० बूम पाडवी (२) रडबुं विलाप क्रुष्ट ('क्रुश' नुं भू० कृ० ) वि० बोलावालु, पोकारेलु (२) न० पोकार; बूम (३) विलाप उग्र क्रूर वि० निर्दय ( २ ) कर्कश; कठोर (३) क्रोड पं० डुक्कर, वराह (२) छाती (३) वृक्षनी बखोल (४) मध्यभाग न० बे खभा वच्चेनो भाग - छाती (६) अंदरनो भाग - पोलाण (७) खोळो कोडपत्र न० पूर्ति; वधारो (ग्रंथ इ० नो) कोडीकरण न० आलिंगन, भेटवुं ते क्रोध पुं० कोप; गुस्सो कोन वि० झट गुस्से थई जाय तेनुं (२) न० कोप; क्रोध कोधनीय वि० गुस्सो उपजावे तेव क्रोधेद्ध वि० कोपथी सळगी ऊठेलं कोश पुं० बूम; विलाप ( २ ) कोस ; योजननो चोथो भाग ु क्रोष्टु, क्रोष्टु पुं० शिथाळ क्रौर्य न० क्रूरता ( २ ) भयंकरता क्रौंच पुं० एक पक्षी ( २ ) एक पर्वत ( हिमालयनो पौत्र ) क्लम् १ प० [ क्लामति ], ४ प० [क्लाम्यति] थाकी जनुं थाक लागवो (२) खेद करवो; शोक करवो १४४ क्वण् क्लम, क्लमथ ( - थु) पुं० थाक; परिश्रम क्लांत ( 'क्लम् ' नुं भू० कृ० ) वि० थाकी गयेलं (२) निराश; खिन्न ( ३ ) कृश; करमाई गयेलं क्लांति स्त्री० परिश्रम; थाक क्लिद् ४ ५० भीनुं थवं; पलळवं क्लिन्न ( 'क्लिद्'नुं भू० कृ० ) वि० आर्द्र; भीनुं क्लिश् ४ आ० (केटलाकने मते प० पण ) क्लेश करवो; दुःखी थवं; दुःख पामवु (२) दुःख दे; जुलम करवो (३) ९ १० दुःख देवं; पीडवं ( ४ ) दुःख वेठव् क्लिशित, क्लिष्ट ('क्लिश्' नुं भू० कृ० ) वि० क्लेश पामेलु; दुःख पामेलुं ( २ ) झांखु थयेलु ( ३ ) असंबद्ध - अस्तव्यस्त (४) परस्पर विरोधी (वाक्य) (५) अर्थनी खेचताण करवी पडे तेवुं ; स्पष्ट नहि ते (६) पजवणी करे तेवुं ; पीडा करे ते क्ली १ आ० कायर बनवु ; निर्वीर्य होवु (२) १० आ० बीकण - भीरु थवुं क्लब वि० नपुंसक ( २ ) कायर ; निर्वीर्य ( ३ ) भीरु; बीकण (४) अशक्त ; उत्साह वगरनुं (५) पुं०, न० नपुंसक (६) नान्यतर जाति ( व्या० ) क्लेद पुं० भीनाश; भेज ( २ ) उपद्रव क्लेश पुं० दु:ख; त्रास ( २ ) परिताप (३) क्रोध (४) संसारव्यवहार के तेनी चिता (५) पाप [ भीरुता क्लैब्य न० कायरता (२) निर्बळता (३) क्व अ० क्या ? क्यारे ? कये ठेकाणे ? क्व - क्व अ० 'क्यां आ .ने क्यां ते' क्वचित् अ० कोईक दाखलामां; ठेकाणे कोई क्वचित् - क्वचित् अ० 'एक स्थळे आ ने बीजे स्थळे पेल'; 'कदीक - कदीक' क्वण् १प० अस्पष्ट अवाज करवो (२) गणगणवं (३) वगाड (वांसळी) Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षत्रिय क्वणित १४५ क्षयरोग क्वणित न० अवाज; वाद्यनो अवाज क्षतृ पुं० सारथि (२) द्वारपाळ (३) क्वय् १ प० उकाळवु __क्षत्रिय स्त्रीने शूद्रथी थयेलो पुत्र (४) क्वाण पुं० ध्वनि दासीपुत्र क्वाथ पुं० उकाळो - काढो क्षत्र पुं०, न० क्षत्रिय जातिनो पुरुष क्वापि अ० क्यांक; कोई ठेकाणे (२) क्षत्रिय जाति (३) सैनिक (४) क्षण ८ उ० ईजा करवी; घायल करवू ___ सामर्थ्य ; शक्ति; सत्ता (५) हिंसा (२) भांगीने ककडा करवा क्षत्रबंधु पुं० नामनो ज क्षत्रिय ; अधम क्षण पुं०, न० वखतनुं एक माप;सेकंडनो [वर्णनो पुरुष १ भाग; पळ (२) विश्रांति; फुरसद (३) क्षत्रिय पुं० चार वर्णोमांना बीजा क्षत्रिय योग्य समय; तक; अवसर (४) उत्सव; क्षप् १० उ० फेंकबुं आनंद; पर्व (५) निश्चय ; नियम क्षपणक पुं० बौद्ध के जैन भिक्ष क्षणकर पुं० चंद्र क्षपा स्त्री० रात्रि क्षणक्षेप पुं० क्षणनो विलंब सपाकर पुं० चंद्र क्षणचर पु० राक्षस अपावर पुं० राक्षस: निशाबर क्षणदा स्त्री० रात्री शपानाय पुं० चंद्र करेलु क्षणदाकर पुं० चंद्र अपित वि० नाश करेल; घटाडेलं क्षीण क्षणदाचर पुं० निशाचर; राक्षस जम् १ आ० क्षमते, ४ प०क्षिाम्यति अणधुति, क्षणप्रकाशा, अणप्रभा स्त्री० क्षमा करदी (२) सहन करा (३) धैर्य वीजळी नाशवंत राखg: राह जोगी (४) शक्तिमान क्षणभंगुर वि० क्षणमां नाश पामे तेवं; थg - हो (५) सामं थq भणमात्रम् अ० क्षण वार माटे क्षम वि० क्षमाशील (२) सहनशील (३) अणषिध्वंसिन वि० क्षणभंगर समर्थ ; शक्तिमान (४) अनुकूळ (५) क्षणिक वि० क्षण सुधी चालतुं; क्षणमां योग्य ; लायक (६) सहन थई शके तेवू नाश पामतुं क्षमणीय वि० सहन करवा योग्य (२) क्षणेक्षणे अ० हरघडी; दरेक पळे क्षमा करवा योग्य अत् स्त्री० मारी नाखवू ते; वध (२) क्षमा स्त्री० खामोशी; दरगुजर करवू ईजा; पीडा ते; माफी (२) पृथ्वी क्षत ('क्षण'नें भू० कृ०) वि० जखमी; क्षमान्वित वि० क्षमावान; क्षमायुक्त घवायेलं (२) फाडी नाखेलं; भागी क्षमापन न० शमा - माफी मागवी ते नाखेलु; कचरी नाखेलं; क्षीण करेलु समाभृत् पुं० पर्वत (२) राजा (३) न० जखम ; व्रण (४) वलूरो क्षमिन् वि० क्षमाशील; धैर्यवान (५) पीडा; संकट क्षय पुं० घर; निवास (२) घसारो; क्षतज न० रक्त; लोही क्षीण थq ते ; घटq ते (३) एक रोग; मतवृत्ति वि० आजीविकानुं कांई साधन घासणी (४)अंत; नाश; ह्रास (५)प्रलय रहेवा देवामां न आव्यु होय ते, क्षयकाल पुं० प्रलयकाल क्षति स्त्री० प्रहार; ईजा (२) व्रण; क्षययु पुं० खांसी; उधरस; छींक जखम (३) नाश (४) हानि ; नुकसान क्षयपक्ष पुं० कृष्णपक्ष ; अंधारियु (५) प्रमाद ; भूल (६)पडती;क्षय क्षयरोग पुं० एक रोग; घासणी Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षयिन् क्षयिन् वि० नाशवंत; घटतु; ओछु थनाएं (२) क्षयना रोगवाळु क्षयिष्णु वि० क्षय -नाश पामनाएं क्षर् १ प ० वहेवुं (२) टपकवु झवुं (३) क्षय पामवो; क्षीण धनुं ( ४ ) ओगळवु (५) सरवु; सरकी जवं क्षर वि० क्षीण थतुं ; नाशवंत ( २ ) जंगम (३) न० देह; शरीर ( ४ ) प्रकृति क्षरण न० झरवुं ते; वहेदुं ते (२) परसेवो वळवो ते - क्षल १० उ० धोवुं धोई काढवु (२) लूछी नाखवुं क्षंतव्य वि० क्षमा करवा योग्य क्षंतु वि० क्षमाशील (२) सहनशील क्षा स्त्री० पृथ्वी (२) निद्रा क्षात्र वि० क्षत्रियनुं (२) न० क्षत्रिय जाति ( ३ ) क्षत्रियना गुणधर्म ( शौर्य, पराक्रम वगेरे) क्षाम वि० कृश; क्षीण; दूबळु ( २ ) अल्प; नानुं ; ओछं ( ३ ) निर्बळ; अशक्त ( ४ ) न० नाश क्षामा स्त्री० पृथ्वी क्षाग्य वि० सहन करवुं पडे तेवुं (२) क्षमा करवी पडे ते १४६ क्षार वि० खाएं (२) तीखुं ( ३ ) कडवुं (४) क्षारना गुणवाळं (५) पुं० मोठं; खार; कोई पण क्षारधर्मी पदार्थ क्षारित वि० खोटं आळ मुकायेलु क्षाल, क्षालन न० धोवुं ते; धोई काढवु ते क्षालित ('क्ष' नुं भू० कृ० ) वि० धोयेलुं (२) धोई नाखेलुं; लुछी काढलं क्षांत ('क्षम् ' नुं भू० कृ० ) वि० सहन करेलुं (२) क्षमा करेलुं ( ३ ) सहनशील; सहिष्णु ( ४ ) न० धैर्य; क्षमा शांति स्त्री० क्षमा (२) सहनशीलता क्षि १ प० घसाई जवुं ; ओछु थवं ; क्षय पामवो ( २ ) १,५,९१० नाश करवो; क्षीण करवु; ईजा करवी ( ३ ) विताववु (४) ६ प ० [ क्षियति ] रहेवुं; वसवुं क्षीव क्षित् वि० राज्य करनारु; शासक क्षित ( 'क्षि'नुं भू० कृ० ) वि० मारी नाखेलुं (२) क्षीण करेलुं क्षिता स्त्री० पृथ्वी क्षिति स्त्री० पृथ्वी; जमीन ( २ ) निवासस्थान; घर ( ३ ) नुकसान; हानि ( ४ ) महाप्रलय ( ५ ) समृद्धि क्षितिकंप पुं० धरतीकंप क्षितिक्षित् पुं० राजा क्षितिज पुं० वृक्ष (२) न० क्षितिज; क्षितिजा स्त्री० सीता [दृष्टिमर्यादा क्षितितल न० पृथ्वीनी सपाटी - तल क्षितिषर पुं० पर्वत क्षितिनाथ, क्षितिप, क्षितिपति, क्षितिपाल, क्षितिभुज् पुं० राजा क्षितिभृत् पुं० राजा ( २ ) पर्वत क्षितिरह पुं० वृक्ष क्षितिस्पृश् वि० पृथ्वीनो निवासी; मनुष्य क्षितीश पुं० राजा क्षिप् ६ उ० फेंकवु; नाखबुं (२) उपर मूकवुं (३) फेंकी देव; उतारी नाखबुं (४) दूर करवु; नाश करवो (५) मारी नाखवु ( ६ ) तिरस्कार करवो (७) पीडवुं क्षिप्त ( ' क्षिप् ' नुं भू० कृ० ) वि० फेंकालु नखायेलु (२) तजेलुं (३) उपेक्षित अनादृत ( ४ ) मुकायेलं (५) विक्षिप्त; गांड [मनस्क क्षिप्तचित्त वि० व्यग्र चित्तवाळु अन्यक्षिप्र वि० उतावळं; त्वरित क्षिप्रकारिन् वि०चालाक ; त्वरायी काम करनाएं क्षिप्रम् अ० एकदम ; जलदी क्षीण वि० कृश; दुबळं; घसाई गयेलुं; जीर्ण थई गयेलुं (२) नाजुक (३) नानुं; अल्प ( ४ ) गरीब ( ५ ) निर्बळ; अशक्त ( ६ ) नाश पामेलुं क्षीणमध्य वि० पातळी कमरवाळु क्षीब वि० जुओ 'क्षीव ' Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षीर क्षीर पुं०, न० दूध (२) पाणी क्षीरकंठ पुं० (घावतुं) बाळक क्षीरज न० दहीं क्षीरधात्री स्त्री० धाव; धवडावनारी स्त्री क्षीरधि, क्षीरनिधि, क्षीरवारिषि, क्षीरसमुद्र, क्षीरसागर, क्षीराब्धि पुं० क्षीरदूधनो महासागर क्षोरिन् वि० दूधवाळु; दूध देतुं क्षीरोद, क्षीरोदधि पुं० जुओ 'क्षीरधि' क्षीव वि० उन्मत्त; दारू पीधेलुं (२) उरकेराई गयेलुं क्षु २ प० छींक खावी ( २ ) उधरस खावी ( ३ ) ९ उ०, प० कूदको मारवो; ठेकडो मारवो क्षुण्ण ('क्षुदु' नुं भू० कृ० ) वि० पग तळे रोळेल; कचरेलु (२) खांडेल; पीसेलुं ( ३ ) जेना उपर घणी अवरजवर होय तेनुं (मार्ग) ( ४ ) घणां जणे आचरेलु अनुसरेलुं (५) उल्लंघायेलु; भंग करेलुं (व्रत) (६) जितायेलं क्षुण्णमनस् वि० पश्चात्ताप पामेलु क्षुत् स्त्री० छींक शुत्क्षाम वि० भूखथी कृश थयेलुं क्षुत न०, क्षुता (-ति) स्त्री० छींक क्षुद् स्त्री० जुओ 'क्षुधा ' क्षुद् ७ उ० कचरी नाखबुं; पग तळे रोळवु (२) पीसवुं; खांडवु क्षुद्र वि० नीच; हलकुं ( २ ) नानुं; तुच्छ (३) दरिद्री; गरीब ( ४ ) कृपण (५) दुष्ट; क्रूर क्षुद्रधान्य न० हलकुं अनाज (सामो वगेरे) क्षुद्रा स्त्री० मधमाखी ( २ ) वेश्या; नाचनारी ( ३ ) कर्कशा क्षुष ४ प० भूख्या थवं क्षुधा स्त्री० भूख क्षुषान्वित, क्षुधार्त, क्षुधाबित, भुषालु वि० भूख्यं; क्षुधातुर क्षुषित ( 'क्षुष' नुं भू० कृ० ) वि० भूख्यु १४७ क्षम क्षुप पुं० झाडवं ['क्षुभित' क्षुब्ध वि० ['क्षुभ्'नुं भू० कृ० ] जुओ शुभ ४ प० कंपवु क्षोभ पामवो क्षुभित ( 'क्षुभ्' नुं भू० कृ० ) वि० कंपेलु क्षोभ पामेलुं; खळभळेलुं (२) बीनेलं क्षुर पुं० अस्त्रो (२) बाण (३) खरी क्षुरक्रिया स्त्री० हजामत करवी ते क्षुरप्र पुं० एक प्रकारनुं बाण क्षुरिका स्त्री० छरी; कटार क्षुरिन् पुं० वाळंद; हजाम क्षुरी स्त्री० जुओ "क्षुरिका' क्षुल्ल वि० नानुं; अल्प क्षुल्लक वि० नानुं; अल्प (२) तुच्छ (३) दुष्ट; हलकुं क्षेत्र न० खेतर ( २ ) स्थान; स्थळ (३) तीर्थक्षेत्र ( ४ ) देह ( ५ ) उत्पत्तिस्थान ( ६ ) पत्नी क्षेत्रज्ञ वि० कुशळ; चतुर (२) पुं० आत्मा (३) परमात्मा (४) खेडूत क्षेत्रपाल पुं० खेतरनो रखेवाळ क्षेत्रविद् वि० क्षेत्रज्ञ ( २ ) पुं० खेडूत (३) आत्मज्ञानी; ऋषि ( ४ ) आत्मा क्षेत्रिन् पुं० खेडूत ( २ ) पति; स्वामी (३) जीवात्मा (४) परमात्मा क्षेत्रीकृ ८ उ० नुं क्षेत्र बनाववुं (२) मालिक बनवु क्षेप पुं० फेंकवुं ते; नाखवु ते; आमतेम हलाववुं ते (२) मोकलवु - छोडवुं ते (३) अनादर ( ४ ) उल्लंघन (५) विलंब (६) व्यतीत करवुं ते (समय) क्षेपक वि० नाखना; फेंकना (२) वषारानुं उमेरेलुं (ग्रंथमां ) क्षेपण न० फेंकवुं ते ( २ ) व्यतीत करवुं ते (समय) (३) गाळ; तिरस्कार क्षेपणि (-णी) स्त्री० जाळ (२) हलेसुं (३) गोफण क्षेम वि० सुख-शांति आपनाएं (२) सुख-शांतिवाळु आबाद ( ३ ) पुं०, Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षेमशूर १४८ न. सुख-शांति (४) कल्याण; श्रेय आणि स्त्री० जओ क्षोणि' (५) सुरक्षितता; सहीसलामती औणिधर, क्षौणिभृत् पुं० पर्वत क्षेपशूर वि० सुरक्षित स्थळे पराक्रमी; क्षौणी स्त्री० जुओ'शोणि' घरमां शूरु क्षौद्र न० क्षुद्रता; अल्पता (२) मध म्य वि. मुखशांतिवाळु (२)आबाद (३) पाणी (४) धूळनी रजकण मोड पुं० हाथीने बांधवानो थांभलो. क्षौम वि० शणनुं बनेलु (२) पुं०, न० शोणि स्त्री० पृथ्वी शण, वस्त्र (३) वंडो कोट (४) मेडी शोणिपति, क्षोणिभुज पुं० राजा (५) न० रेशमी वस्त्र (६) अळसी भोणी स्त्री० पृथ्वी क्षीर न० हजामत भोद पुं० खांडवं ते (२) जेनी उपर सौरिक पुं० वाळंद; हजाम वाटयामां आवे छे ते पथ्थर (३) भमा स्त्री० पृथ्वी सूक्ष्मांश; रजकण .... क्षमाप, क्षमापति, क्षमाभुज ० राजा क्षोदीयस् वि० घणुं नानु (२) तुच्छ श्माभृत् पुं० राजा (२) पर्वत क्षोद्य वि० पग तळे कवरी नाखवा श्देड पुं० अवाज ; गरबड (२) विष ; झेर योग्य; उपर पग मूकत्रा योग्य । स्वेडित पुं०, न० सिहनी • जना (२) क्षोभ पुं० कंपवं ते; ऊछळवु ते (२) युद्धनी गर्जना खळभळाट (३) गभराट ; व्यग्रता (४) श्वेल १५० कूद, उश्केरणी खळभळाट करनारं ते वेलन न०, श्वेला, श्वेलि, वेलिका क्षोभण न० उश्केरणी करनारं ते; स्त्री० खेल; रमत (२) सश्करी सन० आकाश (२) इंद्रिय (३) शरीरनुं छिद्र (मों, कान, आंख, नाक बगेरे) (४)बिंदु; अनुस्वार; शून्य । अग पुं० पक्षी (२) सूर्य (३) वायु (४) ग्रह खगपति पुं० गरुड !' खगाधिप, सगेस, खगेंद्र पुं० गरुड खच् १५० देखावं; बहार नीकळवं (२) १०प० बांधवू; जकड, (३) जडवू (मणि वगेरेने) पुं० पक्षी खचर वि० आकाशमां गति करतुं (२) . खचित ('खच्'- भू००)वि० बांधेलु; जकडेलु (२) सज्जड बेसाडेलु; जडेलू खज, खजक पुं०, खजा स्त्री० रवैयो; मंथनदंड .. . खट्वा स्त्री० खाटलो खदवारूढ वि० आळसु (खाटले. सूई रहेतुं) (२)नीच ; अधम (३) मूर्ख खट्वांगपुं०खाटलाना पायाना आकारनी -माथे खोपरीवाळी गदा (शिव इ०नी) खड्ग पुं० तरवार ... खड्गपत्र न० तरवारनुं फळ खद्योत पुं० आगियो (२) सूर्य सन् १ उ० खोदg; खोदी काढy खनक पुं० खाणमां खोदनार - खाणियो (२) चोर (३) उंदर खनन न० खोदवं ते खनि स्त्री० खाण खनित्र न० कोदाळी खनी स्त्री० खाण . वस्तु खपुष्प न० आकाशकुसुम - असंभवित खर वि० कठण; कर्कश ; नक्कर (२) तीक्ष्ण ; तीव्र (३)अणीदार; धारवाळू Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरकुटी १४९ (४)तीखं(५) उष्ण (६)निर्दय (७) पूछडी सतत हाल्या करे छे) व्यथाकारक (शब्द)(८)पुं० गधेडो खंड १ प० भांगq; कापq; टुकडा खरफुटी स्त्री० हजामनी दुकान ; करवा (२) पराजय करवो; हराहजामनी थेली व (३) दूर करवू; माबूद करवू खरम् अ० तीव्रपणे; तीक्ष्णपणे खंड वि० भांगेलु (२) तूटक (सतत खरांशु पुं० सूर्य नहि तेवू) (३) पुं०, न० भाग ; टुकडो खर्जन न० वलूर ते (४) पुस्तकनो विभाग; प्रकरण (५) ख— स्त्री० वलर; खुजली समूह (६) पृथ्वीनो विभाग। खजूर पुं० खजूरीनुं वृक्ष (२)न० खजूर खंडक पुं०, न० टुकडो; भाग खर्पर पुं० खोपरी (२)भिक्षापात्र (३) खंडन वि० भांगनाएं; तोडनाएं; नाश ठीकलं; कलाडु करनाहं (२) न० भांगवू - तोडq ते खर्म न० रेशम (२) पुरुषातन; मरदाई (३) ईजा करवी-करडते (४) खर्व वि० ठीगणुं ; वामj (२) पुं०, न० दलीलने तोडवी - जवाब आपवो ते खर्वनी संख्या (१०,००,००,००,०००) (५) निराश करते। (३) कुबेरनो एक निधि खंडपरशु, खंडपशु पुं० शंकर (२) खवंट पुं०, न० पर्वतनी तळेटी आगळ परशुराम टुकडा आवेलं शहेर (२) बसो गामडां वच्चे- खंग्शस् अ० ककडे ककडे (२) टुकडे मुख्य शहेर खंडशः कृ८ उ० टुकडा करवा खवित वि० वामणुं बनेलु खंडित ('खंड्' नुं भू० कृ०) वि० भांगेलं; खल पुं० शठ; दुर्जन (२) पुं०, न० तूटेलु; नाश पामेलुं (२) तोडेलु अनाजनुं खळु - खळी (३) तेलनो (दलील); जवाब आपेलु (३)निराश नीचे जामतो कचरो (४) खरल थयेलं; छेतरायेलं खलक पुं० घडो (२) लोटो खंडितवृत्त वि० भ्रष्टचरित्र; पतित खलति वि० टालवाळु; टालियु खंडिता स्त्री० बेवफा प्रेमी के पतिथी खलि(-ली) स्त्री० तेलनो कचरो (२) छतरायेली अने तेथी रूठेली स्त्री खोळ तिरस्कार; अपमान । खंडीकृ ८ उ० टुकडा करवा खलोकार पुं०, खलीकृति स्त्री० भत्सर्ना ; खात ('खन्' न भू० कृ०) वि० खोदेखें; खलीन पुं०, न० लगामनो मोढामा खोदी काढेलु (२) न० खाडो; खाई रहेतो भाग - चोकडं खाद् १५० खावू खलु अ० खरेखर ; नक्की (२) वाक्या- खादक वि० खानाएं (२) पुं० देवादार लंकार तरीके पण वपराय छ खादन न० खोराक (२) खावू ते खल्ल पुं० पथ्थरनो खल (२) चामड्; खादिर वि० खेरना लाकडान खाल (३) मशक ; पखाल . खाद्य वि० खावा लायक; खावानुं खल्वाट वि० बोडा माथावाळं ; टालियं खानि स्त्री० खाण [एक माप खष्प पं० क्रोध : गुस्सो (२) निर्दयता खार पुं०, खारि(-री) स्त्री० अनाजनुं खस पुं० चामडीनो एक रोग खांडव न० कुरुक्षेत्रनुं एक बन (तेने खंज् १५० लंगडावं अग्निए बाळी नाख्यं हतुं) खंज वि० लूलु; लंगडु खिद् ४,७ आ० दुःखी थर्बु (२) खिन्न खंजन, खंजरीट पुं० एक पक्षी (जेनी थ; थाकी जवू सं.ग.-१० Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिन्न १५० खिन्न ('खिद्' नुं भू० कृ०) वि० खेद खेद पुं० थाक (२) हताशा; निराशा पामेल (२) थाकी गयेलु (३) दुःख ; पीडा (४) दिलगीरी खिल न पडतर जमीन; खेड्या खेदित वि० खेद पामेलं; त्रासेलु वगरनुं खेतर (२) खाली जगा (३) खेल १५० हालवू; कंपवू; झूलq (२) पूर्तिरूपे उमेरेलु (४) अवशेष रम, खिलीकृत वि० बरबाद करेलु ; उजाडेलु खेल वि० रमतियाळ (२)हालतुं; कंपतुं (२) अवरोधेलं; रुकावट करेलु खेलन न० हलाव ते (२) खेल; खिलीभूत वि० पसार न थई शकाय क्रीडा (३) नाटक; प्रयोग तेवू; रुकावटवाळू (२) अशक्य बनेलं; खेला स्त्री० क्रीडा; खेल; रमत बंध पडेलु खेलि स्त्री० रमत; क्रीडा खुर पुं० खरी खेसर पुं० खच्चर खुरक्षेप पुं० जुओ 'खुरापात' खोड १५० लंगडा खुरन्यास पुं० खरीनी छाप पडवी ते । खोड वि० लूलु; लंगडु; खोडु खुरली स्त्री० शस्त्रास्त्रनी कसरत के खोल न० माथान रक्षण करवा अभ्यास पिछडावी ते (२) लात पहेरातो टोप (सैनिकनो) खुराघात पुं० (चालवाथी) पगनी खरी ख्या २ प० कहेवू (२) वर्णवq खुल्ल वि० नानुं (२) नीच; क्षुद्र । __-प्रेरक० [ख्यापयति प्रसिद्ध करवू खेचर वि० आकाशमां गति करतुं (२) (२) वर्णवयु (३) प्रशंस, पुं० पक्षी (३) आकाशचारी विद्या- ख्यात (ख्या' नुं भू० कृ०) वि० घर के गांधर्व (४) ग्रह कहेवायेलु (२) प्रख्यात (३) वर्णवेलं खेचरी स्त्री० दुर्गा (२)विद्याधरी (३) (४) वगोवायेलं आकाशमां ऊडी काय तेवी सिद्धि ख्याति स्त्री० कीर्ति (२) प्रसिद्धि खेचरोत्तम पुं० सूर्य (३) प्रशंसा (४) नाम (५) वर्णन खेट पुं० गामडु (२) पुं०, न० ढाल (६) ज्ञान; समज (३) न० चामडु (४) (समासने छेडे) ख्यापन न० प्रसिद्ध करवू ते; जाहेर दुःखी, हलकुं, तुच्छ -एवो भाव बतावे करवू ते (२) कबूल करवु ते । (उदा० 'नागरखेट' = तुच्छ शहेर) ख्यापित वि० जाहेर थयेलं; वर्णवायेलं खेटक पुं० नानुं गामडं (२)पुं०, न० ढाल (२) वगोवायेलु ग वि० (मात्र समासने छेडे) जनाएं, जतुं, रहेतुं, समागम करतुं -ए अर्थमां गगन न० आकाश; आभ [वस्तु गगनकुसुम न० आकाशकुसुम असंभवित गगनगति पुं० देव (२) ग्रह गगनचर वि. आकाशमां जेनी गति छे एवं (२) पुं० पक्षी (३)ग्रह (४) देव गगनलिह, वि० गगनचुंबी; घj ऊंचु गगनविहारिन् वि० आकाशचारी गगनसद् वि० आकाशमां रहेनाएं (२) पुं० देव गगनसिंधु स्त्री० आकाशगंगा गगनांगना स्त्री० अप्सरा गगनेचर वि० जुओ 'गगनचर' गज पुं० हाथी (२) लंबाईनुं एक माप (सामान्य ३० आंगळ जेटलु) Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गजगति गजगति स्त्री० हाथीना जेवी चाल गजगामिनी स्त्री० हाथीना जेवी चालवाळी स्त्री गजता स्त्री० हाथीओनुं जूथ गजदन वि० हाथी जेटलु ऊंचुं गजदंत पुं० गणपति (२) हाथीदांत (३) भीतमांनी खीली; खींटी गजद्वयस वि० जुओ 'गजदघ्न' गजनिमीलिका स्त्री०, गजनिमोलित न० हाथीनी पेठे कशा तरफ आंख बंध करवी ते; जोता होवा छतां, जोयानो ढोंग करवो ते गजपुंगव पुं० मोटो - श्रेष्ठ हाथी गजमुक्ता स्त्री०, गजमौक्तिक न० हाथीना कुंभस्थळमां पेदा यतुं मनातुं मोती गजयूथ न० हाथीनुं टोळं गजस्नान न० हाथीना स्नान जेवी निरुपयोगी प्रवृत्ति ( हाथी नाह्या पछी शरीर उपर धूळ फेंके छे ) गजानन पुं० गणपति गजापसद पुं० हलको हाथी ; तुच्छ हाथी गजारि पुं० सिंह गजारोह पुं० महावत गजेंद्र पुं० श्रेष्ठ हाथी; मोटो हाथी गडि पुं० वाछडो; जुवान आखलो (२) आळसु बळद गड्डर (-ल) पुं० घेटुं गडरिका स्त्री० घेटांनी हार गरिकाप्रवाह पुं० गाडरियो प्रवाह गण् १० उ० गणवुं; गणतरी करवी (२) किंमत आंकवी (३) दरकार राखवी ( ४ ) मानवुं -मां गणना करवी (५.) ध्यानमा लेबुं गण पुं० समूह; समुदाय; टोळं (२) वर्ग ; मंडळ ( ३ ) शंकरनो अनुयायी वर्ग गणक पुं० गणितशास्त्री ( २ ) ज्योतिषी गणन न० गणवुं ते; गणतरी करवी ते (२) मानवुं - धारखं ते गताषि गणना स्त्री० गणतरी ( २ ) लेखं गणपति, गणाधिपति पुं० शंकर (२) गजानन - गणेश [शास्त्रज्ञ गणि स्त्री० गणवुं ते; गणतरी (२) पुं० गणिका स्त्री० वेश्या ( २ ) हाथणी गणित ( 'गण' नुं भू० कृ० ) वि० गणेलं (२) ध्यानमा - गणतरीमा लेवायेलु न० गणितशास्त्र १५१ गणिन् वि० गण - टोळं जेने छे तेवुं (२) पुं० आचार्य गणेश पुं० गणपति गण्य वि० गणनामां लेवा जेवुं ( २ ) ( समासने अंते ) - ना वर्गनुं गत ('गम्' नुं भू० कृ० ) वि० गयेलुं (२) मृत ( ३ ) नष्ट (४) जाणेलु; समजेलुं (५) (दशा) पामेलुं ( ६ ) -ने लगतुं; -ने विषेनुं ( समासमा ) (७) न० गमन; जबुं ते ( ८ ) गति;चाल गतत्रप वि० निर्लज्ज; शरम वितानुं गतदिनम् अ० गई काले गतप्रभ वि० शोभारहित; कांतिरहित गतप्राय वि० लगभग पूरुं थयेलुं - गये लुं गतभर्तृका स्त्री० विधवा (२) जेनो पति परदेश गयो होय तेबी स्त्री गतमनस्क वि० नो विचार कर गतवयस् वि० वृद्ध; प्रौढ गतव्यथ वि० जेनुं दुःख दूर थयुं छे तेबुं [करतुं गतश्रम वि० श्रम के दुःखनो विचार न गतसत्त्व वि० मृत; निर्जीव (२) नीच गतसंग वि० आसक्ति विनानुं ( २ ) - थी विमुख; -ना प्रत्ये उपेक्षावाळं गतस्पृह वि० स्पृहा बिनानुं ( २ ) दया • माया विनानुं 1 गतागत न० जनुं आववुं ते (२) वारंवार जन्म-मरण ( ३ ) स्थळ बदलवु ते ( ४ ) भूत-भविष्यनुं वर्णन ताधि वि० चिंतामुक्त Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गताध्वन् गताध्वन् वि० जेणे मुसाफरी पूरी करी तेषु (२) अनुभवी ; रहस्यने पामेलुं गतानुगतिक वि० बीजानुं अंध अनुकरण करनाएं; आगळ जनारने अंधपणे अनुसरना गतायुस् वि० वृद्ध अशक्त ( २ ) मृत गतार्तवा स्त्री० वृद्ध के वंध्या स्त्री' - गतार्थ वि० निर्धन ( २ ) अर्थ विनानं गतासु वि० मृत; प्राणहीन गतांत वि० अंतनी नजीक आवेलुं गति स्त्री० जनुं ते; हालवु-चालवं ते (२) चाल ( ३ ) प्रवेश ( ४ ) अवकाश ( ५ ) प्रवृत्ति क्रम (६) स्थिति; दशा ( ७ ) पहोंच ते ; पामवुं ते ( ८ ) मार्ग; रस्तो; उपाय ( ९ ) आशरो; शरणुं (१०) डहापण; समज ( ११ ) जीवननी अवस्था (१२) कर्मफळरूपे मरणोत्तर प्राप्त थती स्थिति गतिभंग पुं० अटकवुं ते; थोभवु ते गतिहीन वि० आशरा के शरण विनानुं गतोत्साह वि० उत्साह नाश पामेलुं गत्वर वि० जंगम (२) क्षणभंगुर गद् १५० बोलवु (२) गणतरी करवी गद पुं० भाषण; वाक्य ( २ ) व्याधि; रोग (३) बळराम (४) न० झेर गदा स्त्री० लडाईनुं एक हथियार गदाग्रज पुं० गद - बळरामना मोटाभाई - श्रीकृष्ण गदाधर पुं० विष्णु गदित वि० कहेलुं वर्णवेलुं 1 गदिन् वि० ( हाथमां ) गदावाळं (२) व्याधिग्रस्त गद्गद वि० गळगळं (२) पुं०, न० गळगळं बोल गद्गदम् अ० गळगळं थईने गद्य वि० बोलवानं; कहेवानुं ( २ ) न० Tara नहि एवं (पद्यथी ऊलटं) ते गभस्ति पुं०, स्त्री० प्रकाशनुं किरण १५२ गरिमन् गभस्तिमत्, गभस्तिमालिन् पुं० सूर्य गंभीर वि० कुंडु (२) घेरुं (अवाज ) (३) गाढुं (जंगल) (४) गंभीर (५) चतुर; प्रवीण ( ६ ) अगम्य ; रहस्यमय गम् १ प० [गच्छति ] गमन करवुं; जवं (२) पहोंचवुं; पासे जबुं (३) जुदुं पडवुं; विदाय थj ( ४ ) पसार थवुं - वीतवुं ( समयनुं ) ( ५ ) स्थिति - दशाने पामबुं ( ६ ) स्त्री-समागम करवो –प्रेरक० पहोंचाडवु; पमाडं ( २ ) समजाववुं ; स्पष्ट करवुं ( ३ ) अर्थ थवो - करवो (४) (स्थळे) लाववुं (५) आप बक्ष गम वि० (समासने अंते ) -- जतु, पहोंचतु, - पामतुं (उदा० 'हृदयंगम ) ( २ ) पुं० जव ते ( ३ ) कूच करवी ते ( ४ ) स्त्रीसंग गमक वि० सूचक ; पुरावारूप ( २ ) खातरी करावनाएं गमन न० जवं ते; गति; चाल ( २ ) पासे आववुं ते (३) आक्रमण माटे कूच ( ४ ) प्राप्त करवुं ते (५) ज्ञान; समज ( ६ ) सहन करवुं ते (७) स्त्रीसमागम गमनीय वि० पासे जई शकाय तेनुं (२) गोचर; पात्र ( ३ ) सुबोध; समजी शकाय एवं (४) अनुकूळ; इष्ट; उचित (५) संग माटे योग्य ( स्त्रीपुरुष) (६) मटी शके तेवुं (दर्द) गमागम पुं० जवुं अने आवं ते ( २ ) समाधाननी मंत्रणा गम्य वि० जुओ 'गमनीय' गर पुं० रोग ( २ ) पुं०, न० झेर गरण न० गळं ते (२) छांट विष ते (३) [झेर गरद वि० शेर आपनाएं (२) पुं०, २० गरल पुं०, न० विष; झेर गरिमन् पुं० महत्त्व; मोटाई ( २ ) भार; वजन ( ३ ) श्रेष्ठता ( ४ ) योग्यता ; किंमत (५) आठ सिद्धिओमांनी एक Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गरिय . गरिष्ठ वि० सौथी भारे (२) सौथी अगत्यन । ( २ ) वषु अगत्यनुं गरीय वि० ( बेमा) वधु वजननुं गरुड पु० पक्षीओनो राजा; विष्णुनु वाहन गरुडकेतु, गरुडध्वज पुं० विष्णु गरुडाग्रज पुं० अरुण ( सूर्यनो सारथि ) rosis पुं० विष्णु गरुत् पुं० पंखीनी पांख [ (३) पक्षी गरुत्मत् वि० पांखोवाळु (२) पुं० गरुड गर्गर पुं० गागर; दहीं वलोबवानुं पात्र गर्ज १ ५०, १० उ० गर्जना करवी (२) गाजवुं गर्जन न०, गर्जना स्त्री० गर्जबुं ते; तेथी तो के तेना जेवो ध्वनि - अवाज गजित वि० गाजेलुं (२) बडाश मारेलुं (३) न० वादळांनो गडगडाट गर्त पुं०, न०, गर्ता स्त्री० खाडो; खाई (२) गुफा गर्दभ पुं० गधेडो गर्ष पुं० उत्कट इच्छा; लोभ गर्धन, गति, गधिन् वि० लोभी; लालचु गर्भ पुं० गर्भाशय ( २ ) माना पेटमा रहेलुं जीवनुं रूप ( ३ ) गर्भधारण (४) अंदरनो भाग ; मध्यभाग गर्भगृह न० जुओ 'गर्भागार' गर्भवास पुं० जन्मथी ज दास - गुलाम गर्भपात पुं० गर्भस्राव; चोथे महिने गर्भ गळी जवो ते गर्भभवन न० जुओ 'गर्भागार ' गर्भवती स्त्री० सगर्भा स्त्री गर्भवास पुं० गर्भनो उदरमां वांस गर्भवेश्मन् न० जुओ 'गर्भागार' गर्भस्राव पुं० जुओ 'गर्भपात' गर्भागार न० गर्भाशय ( २ ) अंतःपुर (३) मंदिरनो गभारो गर्भाधान न० गर्भ मूकवो ते के धारण करवी ते (२) एक संस्कार गर्भिणी स्त्री० सगर्भा स्त्री १५३ मवान गर्भित वि० गर्भवाळु (२) पी पूर्ण गर्भतृप्त वि० जन्मथी ज संतोषी (२) धनथी के संततिथी तृप्त (३) आळसु गर्भशूर वि० बाय ; जुस्सा विनामुं गर्भेश्वर पुं० गर्भश्रीमंत गर्व पुं० अभिमान; गुमान गावित ( 'गर्स्' नुं भू० कृ० ) वि० गर्वबाळु अभिमानी गर्ह, १, १० आ० ठपको देवो; तिरस्कारवुं ( २ ) आरोप मूकवो; आळ मूकबुं ( ३ ) दिलगीर थबुं गर्हण न०, गर्हणा, गर्हा स्त्री० ठपको; तिरस्कार गर्हित ( 'गर्ह' नुं भू० कृ० ) वि० निंदेलु; तिरस्कारेलुं ( २ ) अधम ; हलकुं (३) न० तिरस्कार करवा योग्य कृत्य गर्ह्य वि० निंद्य; तिरस्कारवा योग्य गल् १५० झरवु; टपकवुं; गळवुं (२) नीकळी पडवु; पडी जवं (३) अदृश्य थबुं; नाश पामबुं ( ४ ) गळबु; खाबुं गल पुं० गळु; डोक [दबाववी ते गलहस्त पुं० गळं पकडबुं ते; गळची गलित ('गल्' नुं भू० कृ० ) वि० पड़ी गयेलु; नीचे पडेल (२) टपकेलं; झरेलु; गळेलुं (३) पीगळेलु (४) अदृश्य थयेलुं; जतुं रहेलं (५) छूटुं थयेलुं; ढीलु थयेलुं (गांठ) (६) खाली थयेलु टपकी गयेलुं (७) गळेलुं - गाळेलु (पाणी वगेरे ) ( ८ ) बगडी गयेलुं ( ९ ) ओछु थयेलु; घटी गये लुं [पाछली उमरनुं गलितवयस् वि० वृद्धावस्थामां आवेलु गल्ल पुं० गाल गल्लर्क, गलवर्क पुं० दारू पीवानुं पात्र Tar पुं० गलकंबल विनानुं, बळदना आकारनुं पशु गवाक्ष पुं० पवन आववा माटेनुं बाकुं (२) जाळियुं; जाळी Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गवांपति गवांपति पुं० गोवाळ (२) सांढ (३) अग्नि ( ४ ) सूर्य गवेषु १ आ०, १० प० शोधवं; शोध करवी ( २ ) अत्यंत इच्छा करवी; प्राप्त करवा प्रयत्न करवो गवेष वि० शोधतुं (२) पुं० शोध गवेषण न०, गवेषणा स्त्री० शोध; तपास गवेषित वि० शोधेलं; तपास करायेलुं गवोद्ध पुं० उत्तम गाय अथवा सांढ गव्य वि० गायनुं; गाय संबंधी ( २ ) गायमाथी उत्पन्न ययेलुं (दूध, छाण इ० ) ( ३ ) गायने योग्य - हितकर ( ४ ) न० गायनुं धण; गोसमूह ( ५ ) दूध ( ६ ) गोचर जमीन (७) गोरोचन ( ८ ) धनुष्यनी पणछ - दोरी गव्यूत न०, गव्यूति स्त्री० बे कोश जेटलं अंतर (२) गोचर; चरो गहन वि० गाढुं; ऊंडु (२) दुर्गम (३) दुर्बोध; कठिन ( ४ ) गंभीर ; भव्य (५) न० दुर्गम जंगल गह्वर वि० ऊंड; दुर्गम (२) मनमां गूंचवायेलुं (३) न० ऊंडो खाडो (४) जंगल; झाडी (५) गुफा (६) दुर्गम स्थान (७) समस्या ; कोयडो ( ८ ) पुं० निकुंज; लतामंडप हरित वि० विचारमां खोवाई गयेलुं (२) संतायेलं; छुपायेलुं गंगा स्त्री० गंगानदी गंगाज पुं० भीष्म (२) कार्तिकेय गंगाद्वार न० हरिद्वार गंगापुत्र पुं० भीष्म (२) कार्तिकेय गंगावतार पुं० गंगानुं स्वर्गमांथी पृथ्वी पर आव [ति स्थान गंगासागर पुं० गंगा ज्यां समुद्रने मळे छे गंगासुत पुं० भीष्म (२) कार्तिकेय गंगोद्भेद पुं० गंगानुं मूळ गंगोल पुं० एक मणि ( गोमेद ) गंज पुं०, न० खजानो; भंडार; कोठार (२) दाणापीठ गंधर्व गंजन वि० चडियातुं (२) विजयी गंड पुं० गाल (२) हाथीनो गंडस्थळ (३) गूमडुं ( ४ ) गेंडो (५) गांठ गंडक पुं० गेंडो (२) गांठ ( ३ ) गूमडुं (४) अंतराय; विघ्न [ नाम ( २ ) गेंडी गंडकी स्त्री० उत्तर हिंदनी एक नदीनुं गंडग्राम पुं० मोटुं गाम गंडभित्ति स्त्री० भींत जेवो पहोलो गाल (२) हाथीनो मद झरे छे ते भाग गंडभेद पुं० चोर गंडमाल पुं०, गंडमाला स्त्री० गळानी गांठ उपर सोजो आववो ते गंडल पुं० भूकंप वगेरेथी गबडी गयेलो मोटो पथ्थर [कुंभस्थळ गंडस्थल न० हाथीना लमणानो भाग; गंडीर पुं० शूरवीर ( २ ) पहेलवान (३) बीजाने बचाववा माटे लडनार गंड पुं०, स्त्री०, गंडू स्त्री० ओज़ीकुं; तकियो (२) गांठ (३) सांधो गंडूष पुं० कोळो (२) खोबो ( पाणीनो) isोपधान न० गालमसूरियुं गंतव्य वि० जवा लायक; जवा माटेनुं गंत्री स्त्री० बळदगाडी गंध पुं० सोड; वास (२) सुवास (३) सुगंधी पदार्थ ( ४ ) गंधक (५) गर्व ; अभिमान (६) चंदननो लेप ( ७ ) संबंध; सगाई (८) पाडोशी (९) सरखापणुं (१०) (समासमा ) ' बहु ओछु' - एवो अर्थं बतावे (उदा० 'घृतगंधि') (११) न० सोडम; वास ( १२ ) अगरु गंधक पुं० एक खनिज पदार्थ गंधकाली स्त्री० व्यासमाता - सत्यवती गंधगज, गंधद्विप पुं० उत्तम जातिनो हाथी गंधन न० सतत प्रयत्न; खंत ( २ ) हिंसा; वध (३) प्रगट करं ते; सूचन गंधर्व पुं० देवोनो गवैयो; एक देवजाति (२) गायक (३) घोडो (४) मूआ पछीनी अने जन्म्या अगाउनी जीवनी स्थिति १५४ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गंधर्वनगर गंधर्वनगर, गंधर्वपुर न० आकाशमां गंधर्वोनुं कल्पित नगर; मृगजळ पेठे आकाशमा देखाती नगरनी आकृति गंधर्वविद्या स्त्री० संगीतशास्त्र गंधर्वविवाह पुं० विवाहनो एक प्रकार (जेमां वर-कन्या पोतानी मेळे छानी ते देहसंबंध करी परणी जाय छे) गंधवह, गंधवाह पुं० पवन गंधहस्तिन् पुं० जुओ 'गंधगज' गंधाढध न० चंदन गंधि, गंधिक वि० ( समासने अंते ) - ना गंध वाळु (२) मां गंधमात्र छे - बहु ओछु प्रमाण हे एवं (३) पुं० सुगंधी पदार्थ वेचनारो गंधोली स्त्री० पीळी भमरी गंभीर वि० जुओ 'गंभीर' गा १, २ आ०, ३प० जवुं (२) स्तुति करवी ; वखाणवुं (३) कोई स्थिति के दशाने पाम गाढ ( 'गाह' नुं भू० कृ० ) वि० डूबकी मारेलु; प्रवेशेलुं (२) खूब वसवाट - वाळु, भीडवाळु (३) चपसीने बेठेलु ; खूब दबायेलं (४) घट्ट ; गाढुं (५) ऊंडु ; दुर्गम (६) अत्यंत; तीव्र गाढतरम् अ० वधु चपसीने; वधु दबावी; वधु तीव्रताथी [चपसीने गाढम् अ० अत्यंत भार दईने; तीव्रपणे; गाढमुष्टि वि० कंजूस; लोभी गाढवचस् पुं० देsको मात्र न० देह ( २ ) शरीरनो अवयव गात्रक न० शरीर गात्रयष्टि स्त्री० पातळी - नाजुक काया गायक पुं० गवैयो गाथा स्त्री० स्तोत्र ( वेदनुं नहीं एवं ) (२) श्लोक (३) कथा; आख्यान ( ४ ) ते गीत ( ५ ) एक प्राकृत भाषा गायक पुं० जुओ 'गाथंक' गाथिका स्त्री० गीत; स्तोत्र १५५ गालि गाव १ आ० रहेवु; ऊभा रहेवुं (२) जबा नीकळवं; प्रवेशj ( ३ ) तपासबु शोध (४) गूंथ रचवुं ( ग्रंथ इ० ) गाध वि० छीछरुं; पार करी शकाय एवं (२) न० छीछरा पाणीवालुं स्थान; उतार ( ३ ) लोभ ; तृष्णा ; कामना ( ४ ) तळियुं; तळ [ ( गाधि राजाना पुत्र) गाषिनंदन, गाषिपुत्र पुं० विश्वामित्र गान न० गीत ( २ ) स्तुति (३) ध्वनि गानीय न० गीत [ जतुं (मार्ग) गामिक वि० (समासने अंते ) - जतुं ; लई गामिन् वि० ( समासने अंते ज ) जनाएं ( २ ) - नी उपर सवारी करनाएं (३) लई जतुं; दोरी जतुं (४) ने लागु पडतुं ; -ना संबंधी गाय पुं० गायन; गावुं ते गायक पुं० गानारो (२) नट गायत्री स्त्री० एक वैदिक छंद (२) एक प्रसिद्ध मंत्र (संध्या वखते जपातो) (३) ब्रह्मानी पत्नी (४) दुर्गा गायन पुं० गायक ( २ ) न० गावं ते ( ३ ) गावानो धंधो सापनो मंत्र गाड वि० गरुड जेवुं ( २ ) गरुड संबंधी (३) पुं०, न० मरकत मणि ( ४ ) सापना झेरनो मंत्र ( ५ ) एक व्यूह गारुडक पुं० गारुडी ; जाणनार (२) मदारी गारुत्मत वि० गरुडना आकारनुं ( २ ) गरुडनी शक्तिवाळं (अस्त्र) गार्घ्यं न० लोभियापणुं गार्हकमेधिक पुं० गृहस्थनुं कर्तव्य - धर्म गार्हपत्य पुं० गृहस्थे राखवाना ऋण अग्निमांनो एक (२) ते अग्निनुं स्थान गार्हस्थ्य न० गृहस्थाश्रम; गृहस्थधर्म (२) घरखटलो गालन न० गाळवुं ते ( प्रवाहीने) (२) ओगाळवु ते (३) गाळ भांडवी ते गालि स्त्री० गाळ; अपशब्द Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाह १५६ गाह. १ आ० डूबकुंमारबुं; नाहQ (२) गिरिकंदर पुं० पर्वतनी गुफा ऊंडु पेस; चोतरफ फरवु (३) हला- गिरिजा स्त्री० पार्वती (२) गंगा वq; वलोवq (४)तल्लीन थर्बु (५) गिरिजातनय पुं० कार्तिकेय (२)गणपति छुपाईं [मारवं ते गिरिजाधव, गिरिजापति पुं० शिव गाह पुं०, गाहन न० नाहवं ते ; डूबकुं गिरिज्वर पुं० इंद्रनुं वन गांग, गांगेय वि० गंगा नदीन; गंगा गिरितनया स्त्री० पार्वती उपरनु (२)पुं० भीष्म (३) कार्तिकेय । गिरिदुर्ग पुं० पर्वत उपरनो किल्लो गांडिव पुं०, न० अर्जुन- धनुष्य गिरिध्वज पुं० इंद्रनुं वज नदी गांडिवधन्वन् पुं० अर्जुन गिरिनंदिनी स्त्री पार्वती (२) गंगा (३) गांडोग पुं०, न० जुओ ‘गांडिव' गिरिप्रस्थ पं० पर्वत उपरनो सपाट भाग गांडीवधन्वन् पुं० जुओ 'गांडिववन्वन' गिरिभिद् पुं० इंद्र (२) स्त्री० नदी गांडोविन् पुं० अर्जुन गिरिराज् (-ज) पुं० हिमालय गांत्री स्त्री० बळदगाडी गिरिव्रज न० मगधनी राजधानी - गांदिनी स्त्री० गंगा राजगृह गांदिनीसुत पुं० भीष्म (२) कार्तिकेय गिरिश पुं० शिव (कैलासे रहेनार) गांधर्व वि० गंधर्व-; गंधर्वने लगतुं (२) । गिरिशंग पुं० गणपति पुं० गंधर्व ; स्वर्गनो गायक (३) आठ गिरिसुता स्त्री० पार्वती लग्नप्रकारामांनो एक ; गंधर्व विवाह गिरीश, गिरीद्र पुं० शंकर (२)हिमालय (४) एक उपवेद - संगीतशास्त्र (५) गिर्वाण पुं० देव [खाधेलु घोडो (६) न० संगीतशास्त्र । गिलित ('गिल्'- भू० कृ०) वि० गळेलु; गांधर्वक पुं० गयो गीत ('गै' - भू० कृ०) वि० गायेलं; गांधर्वकला, गांधर्वविद्या स्त्री० संगीत गवायेलु (२) कहेवायेलु (३) न० गांधविक पुं० गवैयो (२) दुर्योधन गावं ते; गीत गांधारि पुं० दुर्योधननो मामो- शकुनि गीतक न० गीत; गायन गांधारी स्त्री० गांधार देशना राजानी गीतबंधन न० गावा माटेनुं महाकाव्य पुत्री- धृतराष्ट्रनी पत्नी - दुर्योधनः- गीता स्त्री० केटलाक धार्मिक पद्यग्रंथोने दिनी माता - शकुनिनी बहेन आपवामां आवेलुं नाम ; खास करीने गांधिक पुं० सुगंधी पदार्थो वेचनारो श्रीमद् भगवद्गीता (२) कारकुन (३)न० सुगंधी द्रव्य .. गीति स्त्री० गीत (२) गावं ते (३) एक गांभीर्य न० ऊडाण (पाणीनुं के अवाज-) छंद (४) साममंत्र (२) गंभीरता (अर्थनी के चारित्र्यनी) गीतिका स्त्री० नानू गीत (३) उदारता गीर्ण ('ग'नुं भू० कृ०)वि० गळी जवायेलु गिर् स्त्री० भाषा; वाणी; शब्द (२) (२) वर्णवायेलू वाणीनी देवता - सरस्वती गीर्वाण पुं० देव गिरा स्त्री. वाणी; भाषा (२)स्तुति गुच्छ, गुच्छक पुं० गोटो; झूडो (२)फूलनो गिरि वि० पूज्य ; सन्माननीय (२) गुच्छो (३) मोरना पीछांनो झुडो पुं० पर्वत; खडक गुटिका, गुटी स्त्री० नानी गोळी(२)मोती गिरिक पुं० शिव गुड पुं० गोळ (खाद्य) (२) गोळो; दडो Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुडाकेश गुडाकेश पुं० शंकर ( २ ) अर्जुन ( जटियां 'जेवा वाळ 'गुडा' उपरथी ) गुण १० उ० गुणाकार करवो (२) आमंत्रण आप (३) शिखामण आपवी वि० गुणवान ( २ ) पुं० मूळ लक्षण ; धर्म ( ३ ) सद्गुण; सारो गुण ( ४ ) लाभ; उपयोग (५) असर; परिणाम (६) दोरी; दोरो; दोरडी ( ७ ) धनुष्यनी दो; पण (८) वीणा वगेरे बाद्यना तार (९) दीवानी वाट; दिवेट ( १० ) अधिकता; उत्कर्ष ( ११ ) प्रकृतिना घटक गणाता - सत्व, रजस् अने तमस् एत्रण गुणोमांनो दरेक गुणकार पुं० गौण वस्तुओ रांधनार रसोइयो (२) भीमसेन गुणकृत्य न० पणछ तरीकेनो उपयोग गुणगान न० गुण गावा ते; गुणनुं वर्णन कर [गुणोथी आकर्षा बुं गुण वि० गुणोनी कदर करनाएं; गुणगौरी स्त्री० शील-गुणवती स्त्री गुणग्रहीत वि० गुणनी कदर करनाएं गुणग्राम न० सद्गुणोनो समूह गुणग्राहक, गुणग्राहिन्, गुणज्ञ वि० कदर करनाएं गुणनी गुणतः अ० गुण प्रमाणे; गुण अनुसार गुणता स्त्री०, गुणत्व न० गौणपणं ( २ ) उत्तमपणं; योग्यता (३) दोरडी होवापणं गुजन न० गुणाकार (२) गणतरी (३) vij कीर्तन गुणनिका स्त्री० अभ्यास ; पुनरावर्तन (२) माळा; हार (३) नृत्यकळा गुणपूग न० गुणसमुदाय गुणप्रकर्ष पुं० गुणोनी उत्तमता गुजरान पुं० बीजाना गुणोमां आनंद - आसक्ति १५७ गुणवत्ता स्त्री० सारा गुणोवाळा होवापणुं (२) उत्तमता; श्रेष्ठता गुणसंख्यान न० सांख्यशास्त्र गुप्तवर गुणसंपद् स्त्री० गुणसमृद्धि गुणाकर पुं० गुणोनी खाण - सर्व सद्गुणो वाळो मनुष्य ( २ ) शिव गुणागुण पुं० पाप-पुण्य; धर्म-अधर्म गुणाय न० उत्तम गुण; मुख्य गुण गुणाढच वि० सारा गुणोयुक्त गुणातीत वि० सत्त्व वगेरे त्रण गुणोने - तेमनां कार्योने ओळंगी गये लुं (परमात्मा; मुक्त ) गुणानुबंधित्व न० सद्गुणो साथेनो संबंध गुणाश्रय पुं० सद्गुणी गुणांतर न० बीजो ( सारो) गुण गुणित वि० गुणेलुं (२) ढगलो करेलुं; गुणिन् वि० गुणयुक्त; सद्गुणी ( २ ) शुभ गुणीभूत वि० गौण बनेलुं; मूळ अर्थ के अगत्य विनानुं थयेलुं (२) गुणरूप बनेलुं गुणोत्कर्ष पुं० गुणोनी बाबतमां श्रेष्ठता; उत्तम गुणोनी प्राप्ति गुणोपेत वि० गुणयुक्त; सारा गुणबाळं गुणौघ पुं०, न० गुणोनो समूह गुव न०, गुदा स्त्री० शरीरमांथी विष्ठा नीळवानुं द्वार गुप् १प० [ गोपायति ] रक्षण करवु; बचावj (२) संताडवु; छुपावं (३) ४५० गंभराई जवं; व्याकुळ थवः व्यग्र थवुं ( ४ ) १० उ० प्रकाशवुं (५) बोलबुं (६) संताडवुं (७) १ आ० [गोपते] संता: छुपावबुं (८) १ आ० [जुगुप्सते] धिक्कार, तिरस्कार (९) निद ( द्वितीया के पंचमी साथे ) गुप्त ('गुप्' नुं० भू० कृ० ) वि० रक्षायेलं; बचावेलुं (२) गुप्त राखेलुं; संताडेलु (३) खानगी; छानुं ( ४ ) नजरे न पडतुं; अदृश्य गुप्तगति पुं० गुप्तचर; जासूस गुप्तचर वि० गुप्त रीते जनारुं ( २ ) पुं० जासूस Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुप्ति १५८ गृह गुप्ति स्त्री० रक्षण ; बचाव (२)छुपाववं गुवंगना स्त्री० गुरुपत्नी ते (३) ढांकतुं ते; म्यानमां मूकवू ते (४) गुविणी, गुर्वी स्त्री० सगर्भा स्त्री बंधन; केद (५) भोयरुं (६)किल्लो गुलिका स्त्री० दडो; मणको (२) गुरु वि० भारे; वजनदार (२) मोटुं; गोळी (३.) मोती विशाळ (३) दीर्घ; लांबु (४) महत्त्वनुं गुल्फ पुं० चूंटी; टण (५) दुःसह; तीव्र (६) पूज्य (७) गुल्म पुं०, न० झाडी (२) किल्लो (३) पचवामां भारे (८) अभिमानी (९) सैन्यविभाग (४) बरोळ ; ते वधवानो श्रेष्ठ ; उत्तम (१०) सामे न थई शकाय रोग (५) छावणी (६) तंबू तेवू; प्रबळ (११) अमूल्य (१२) पुं० गुह, १ उ० संताडवू; ढांकवं पिता; पूर्वज; ससरो (१३) पूज्य के गुह पुं० कार्तिकेय वडील माणस (१४) शिक्षक; अध्यापक गुहा स्त्री० गुफा (२) खाडो (३) (१५) आचार्य; धार्मिक संस्कार अंतःकरण; बुद्धि (४) छुपावधूते आपनार (१६) स्वामी; उपरी (१७) गुहाशय वि० गुफामा रहेनाएं; गुफामां बृहस्पति (१८) द्रोणाचार्य सूनारु (२) हृदय के अंतःकरणमा गुरुक वि. थोडंक भारे रहेनाएं गुरुकुल न० गुरुनु घर; विद्यापीठ गुह्य वि० संताडवा योग्य ; गुप्त राखवा गुरुकृत वि० पूजेलं (२) घणुं महत्त्व योग्य (२) गूढ (३) न० गुप्त वात; आपेलु; मोटुं - उत्तम मानेलं रहस्य (४) एकांत स्थळ (५) पुं० दंभ; गुरुक्रम पुं० गुरु द्वारा चाल्यं आवेलं पाखंड (६) काचबो दिवजाति परंपरागत शिक्षण - उपदेश गुह्यक पुं० कुबेरना भंडारनो रक्षक; एक गुरुचर्या स्त्री० गुरुसेवा गुंज १ प० गुंजवं; गुंजारव करवो गुरुजन पुं० वडील के पूज्य पुरुष गुंज पुं० गुंजारव (२) गुच्छो गुरुतर वि० वधु अगत्य, (२) वधु गुंजन न० गुंजवू ते; गुंजारव पूज्य (३)वधु भारे(४)वधु मुश्केल गुंजा स्त्री० चणोठीनो छोड (२) चणोठी गुरुता स्त्री० वजन; भारेपणुं (२)मुश्केली गुंजित न० गुंजारव; गणगणाट (३) महत्ता (४) पूज्यता (५) अगत्य गुंठन न० ढांकवं ते; छुपावq ते (२) गुरुदक्षिणा स्त्री० अभ्यास पूरो कर्या चोपडवू - चोळवू ते पछी गुरुने आपवानी दक्षिणा गुंठित वि० घेरायेलं; ढंकायेखें गुरुलाघव न० ओछु-वत्तुं मल्य के अगत्य । गुंफ ६ प० परोववं, गूंथQ गुरुवतिता स्त्री० गुरु के वडील प्रत्येनू गुंफित ('गुंफ्नुं भू० कृ०) वि० गूंथेलं; आज्ञांकितपणुं परोवेलु गुरुवतिन् पुं० गुरुने घेर रहेतो विद्यार्थी गूढ ('गुह 'न भू० कृ०) वि० संताडेलु गुरुवृत्ति स्त्री० गुरु के वडील प्रत्ये ढांकेलं (२) गुप्त; छा- राखेलु (३) आज्ञांकितपणे वर्तवं ते खानगी (४) नजरे न पडे तेवू गुरुष्यथ वि० भारे व्यथायुक्त गूढचार, गूढचारिन् पुं० जासूस गुरुष्व (गुरु + स्व) न० गुरुनी मिलकत गूर्जर पुं० जुओ 'गुर्जर' गर्जर पुं० गुजरात देश के तेनो वतनी गर्द पुं० कूदको । गुर्वर्थ वि० अगत्य, (२) पुं० गुरुदक्षिणा गृद्ध ('गृध्' नुं भू० कृ०) आसक्त Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गध गोकर्ण गृप ४५० लोभ करवो; अत्यंत तृष्णा गृहीतिन् वि० शीखेलु; भणेलं राखवी गृहेज्ञानिन् वि० घरमां डाहयु; बिनगृध्नु वि० लोभी ; इच्छावा ; आतुर ___ अनुभवी; मूर्ख [राचरचीलु गृध्य न० लोभ ; तृष्णा गृहोपकरण, गृहोपस्कर न० घरगध्र वि० लोभी; विषयेच्छु; कामी (२) गृह्य ('गृह' उपरथी) वि० आकर्षवा पुं०, न० गीध योग्य;-थी प्रसन्न थतुं (२) घेर पाळेलं; ध्रपति, गृध्रराज पुं० जटायु घरमा राखलं (३) आधार राखतुं (४) गृष्टि स्त्री० एक वार वियायेली-जुवान -नी बहार रहेलु (५)-ना पक्षy (६) गाय (२) जुवान पशु-मादा (समासमां) न० घरमां करवानो विधि - गह न० घर (२)पत्नी (३) गृहस्थाश्रम गृह्य ('ग्रह,' उपरथी) वि० लेवा लायक; पकडवा लायक (२) जोवा लायक (३) गृह पुं० ब०व० निवासस्थान ; घर (२) पत्नी (३) गृहस्थाश्रम; घरखटलो कबूल राखवा लायक । ग९५० बोलवू; बोलावq (२) जाहेर गृहक न० वाटिका गृहकर्तृ पुं० घर बांधनार; सुतार करवू घोष करवो (३) वर्णन करवू (४) स्तुति करवी (५) ६५० गळी गृहगोधा स्त्री० घरोळी गृहकलह जवू; खाई जर्बु (६) काढी नाखवू काढवू गृहच्छिद्र न० घरनी गुप्त वात (२) गहदारु न० घरनो थांभलो स्त्री गेय वि० गावाने योग्य (२) न० गीत गेह न० घर; निवासस्थान गृहदीप्ति स्त्री०घरनी शोभारूप सद्गुणी गहिन वि० गृहस्थाश्रमी गृहपति पुं० गृहस्थ ; गृहस्थाश्रमी (२) गेहिनी स्त्री० गहिणी; भार्या घरनो मुख्य माणस (३) गामनो मुखी गेहेक्ष्वेडिन्, गेहेनदिन, गेहेशूर पुं० घरमां - आगेवान शूरो-बीकण माणस [ओशीकुं गृहमणि पुं० दीपक; दीवो गेंडुक, गेंदुक पुं० रमवानो दडो (२) गृहमेघ पुं० घरोनो समुदाय गै १५० गावू (२) वर्णन करवू(गीतमां) गृहमेधिन् पुं० गृहस्थ ; गृहस्थाश्रमी गरिक पुं०, न० गेरु गृहयंत्र न० ध्वजदंड गो पुं०, स्त्री० पशु; ढोर (२) गायर्नु गृहसार पुं० मिलकत जे कई होय ते (दूध, मांस, चामडुं इ०) गृहस्थ पुं० गृहस्थाश्रमी पुरुष (३) इंद्रनुं वज्र (४) प्रकाश, किरण गृहस्थाश्रम पुं० चार आश्रमो पैकी बीजो (५) बाण (६) आकाश (७) स्त्री० आश्रम (जेमा विद्याभ्यास पूरो करीने, गाय (८) पृथ्वी (९) वाणी; शब्द लग्न करी, गृहस्थनां कर्तव्य बजावे छे) (१०) सरस्वती; वाणीनी देवता (११) गृहिणी स्त्री० गृहस्थनी स्त्री; घर- दिशा (१२)पुं० बळद; सांढ (१३)इंद्रिय धणियाणी [-प्रतिष्ठा (१४)शरीरनो वाळ (१५) सूर्य गृहिणीपद न० गृहिणी तरीकेनी पदवी । गोकर्ण वि. गायना कानना आकारनु गृहिन् पुं० मृहस्थाश्रमी पुरुष (२) पुं० गायनो कान (३) साप गृहीत ('ग्रह 'न भू० कृ०) वि० लीधेलु; (४) खच्चर (५) एक जातनुं बाण पकडेलु (२) स्वीकारेलुं; कबूल करेलु (६) एक जातनो मृग (७) अंगूठाना (३) मेळवेलु (४) शीखेलु; समजेलं; टेरवाथी अनामिका सुधी, अंतर (८) जाणेलं (५) पहेरेलु एक तीर्थ (दक्षिण-) Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोकुल गोकुल न० गायोनुषण (२) गायनी कोड (३)श्रीकृष्ण ऊछा हता ते गाम गोचर वि० ढोर जेना पर चरवा फरतां होय तेवु (२) वारंवार जतुं- रहेतुं (३) -ना क्षेत्रमा आवतुं; -नी शक्तिनी मर्यादामां आवतुं (४) पृथ्वी उपर फरतुं (५)-वडे प्राप्त थई शके तेवू (६) पुं० चरो; चरवानी जगा (७) क्षेत्र; निवासस्थान (८) इंद्रिय पहोंची शके ते क्षेत्र (९) मर्यादा; क्षेत्र ; विषय (१०) काबू; सत्ता (११) दृष्टिमर्यादा; क्षितिज गोणी स्त्री० धान्य भरवानी गुण गोत्र न० गायनी कोढवाडगे (२) कुटुंब; वंश (३) नाम (४)समुदाय(५) पुं० पर्वत गोत्रज वि० एक ज गोत्रमा जन्मेलं उत्पन्न थयेलं गोत्रपट पुं० वंशवृक्ष गोत्रभिद् पुं० इंद्र गोत्रस्खलन, गोत्रस्वलित न० नाम देवामां भूल करवी ते गोदा स्त्री० गोदावरी नदी गोदाम न० गायोन दाम (२) वाळनी बाधा उतराववानो विधि गोदुह, (-ह) पुं० गोवाळ गोधर पुं० पर्वत गोषा स्त्री० धनुष्यनी पणछ न वागे माटे डाबे हाथे बांधवानो पटो (२)घो गोधुम, गोषम पुं० घउं गोधूलि स्त्री० संध्याकाळ ; गायोनो चरीने पाछी आववानो समय गोध्र पुं० जुओ 'गोधर' गोन पुं० सारस पक्षी (२) शिव (आखलानी पेठे गर्जना करता) गोप पुं० गोवाळ (२) रक्षण करनार (३) गुप्त राखq ते गोपचाप पुं० मेघधनुष्य गोपति पुं० गायोनो मालिक(२)आखलो; । सांढ (३) सूर्य (४) इंद्र (५)श्रीकृष्ण (६) शंकर (७) वरुण गोलक गोपन न० रक्षण (२) गुप्त राखवू ते; संताड ते गोपनीय वि० रक्षण करवा योग्य (२) छुपाववा योग्य (३) छानु गोपाटषिक पुं० गोवाळियो गोपाध्यक्ष पुं० श्रीकृष्ण गोपामती स्त्री० छापरानुं लाकडं गोपाल पुं० गोवाळ (२)श्रीकृष्ण (३) राजा (४) शंकर गोपालपानी स्त्री० गायोनी कोढ गोपालि पुं० शंकर करनार स्त्री गोपिका स्त्री० गोवाळण (२) रक्षण गोपित वि० छुपावेलु; गुप्त राखेल गोपी स्त्री० जुओ 'गोपिका' गोपुत्र पुं० बळद (२)कर्ण (सूर्यनो पुत्र) गोपुर न० नगरनो दरवाजो (२) मंदिरनो दरवाजो (३) मुख्य दरवाजो गोपेंद्र पुं० श्रीकृष्ण [(३) विष्णु गोप्त पुं० रक्षण करनार (२) संताडनार गोप्य वि० रक्षण करवा योग्य (२) छुपाववा योग्य शिके तेवू स्थान गोप्रतार पुं० गायो ज्यां नदी ओळंगी गोमतल्लिका स्त्री० उत्तम गाय गोमय पं. गोवाळियो गोमय पुं०, न० छाण गोमायु पुं० शियाळ गोमुख पुं०, न० एक वाद्य (२) न० गोमुखी; माळा फेरववानी थेली गोयान न० बळदगाडु गोयुत न० बे कोसनुं अंतर गोरस पुं०(गायनां)दूध, दही, माखण इ० गोल्त न० जुओ ‘गोयुत' गोरोचना स्त्री. गायना माथामांथी मळती के तेना पित्त या मूत्रमाथी बनावाती पीळी औषधि गोल पुं०, न० दडो; गोळो (२) वर्तुळ गोलक पुं० गोळो; दडो (२)विधवानो जारज पुत्र (३) गोळो; गोळ घडो Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोबर गोवर न० गोबर; गायनुं छाण गोबाट पुं० गायोनी कोढ ; वाडो गोविसर्ग पुं० परोठियं (गायो घरवा छूटी मुकाय छे ते वेळा) गोविद पुं० गायोने पाळनार (२)श्रीकृष्ण (३) बृहस्पति गोवृंद न० गायोनो समूह गोवज पुं० गायोनो वाडो गोष्ठ पुं०, न० गायोनी कोढ (२)निवास स्थान (३) पुं० सभा गोष्ठि (-ठी) स्त्री० सभा (२) समाज; मंडळ (३)संभाषण; चर्चा (४)समूह; समुदाय (५) कौटुंबिक संबंध गोष्पद न० गायनो पग (२) गायना पगलानो पडेलो खाडो (३) नानूखाबोचियुं (गायना पगलाथी पडेला खाडामां समाय तेटला पाणीवाळू) गोसंख्य पुं० गोवाळियो गोस्तन पुं० गायनुं अडण - बावलं गोस्थान न० गायनी कोढ . गोस्वामिन् पुं० गायोनो मालिक (२) (इंद्रियनिग्रही) साधु (३)नामनी आगळ लगाडातो सन्मानदर्शक शब्द गौड वि० गोळनुं बनावेलू (२) गौड देशने लगतुं (३) पुं० एक प्रदेशनुं नाम (प्राचीन बंगाळ) (४)न० मीठाई गोडी स्त्री० गोळनो दारू गौण वि० मुख्य नहि तेवू; पेटामां आवतुं (२) औपचारिक ; लाक्षणिक गौतमी स्त्री० द्रोणाचार्यनी पत्नी (२) गोदावरी नदी (३) (गौतम) बुद्धनो सिद्धांत (४) न्यायदर्शन (गौतम मुनि प्रतिपादित) (५) दुर्गा गौर वि० गोरु; धोळु (२)पीळाश पडतुं लाल (३) चकचकित; प्रकाशित (४) स्वच्छ ; सुंदर गौरक्ष्य न० गायना पालन- काम गौरव न० भार; वजन (२) मोटाई; महत्ता (३) मान; आदर गौरी स्त्री पार्वती (२) रजोदर्शन नहि पामेली छोकरी (आठ वर्षनी) (३) गौर रंगना चहेरावाळी स्त्री (४)पृथ्वी (५) गोरोचना गौरीकांत पुं० शंकर गौरीगुरु पुं० हिमालय (पार्वतीना पिता) . गौरीनाथ, गौरीपति पुं० शंकर प्रथ् १ आ० [ग्रथते, ग्रंथते] वांकुं थएँ; वांकुं वाळवू (२) दुष्ट थर्बु अथित ('प्रथ्' तथा 'ग्रंथ्' नुं भू० कृ०) वि० बांधेलं ; गूंथेलं (२) रचेलं; लखेलु (३) गोठवेलु (४)गंठायेल; घट्ट थयेलु (५)कठण थयेलुं (६) हरावेलु; पकडेलु (७) ईजा पामेलं प्रस् १ आ० गळी जq; कोळियो करी जवो (२) पकडQ (३) ग्रहण करवू (सूर्यचंद्रने) (४) १ प०, १० उ० खाई जq; कोळियो करवो असिष्णु वि० गळी जनाएं ग्रस्त ('ग्रस्' नुं भू० कृ०) वि० गळी जवायेलुं (२) पकडायेलं (३) ग्रहण थयेलु (सूर्य के चंद्र) ग्रह ९ उ० [गृह्णाति-गृह्णीते] पकडवू (२)लेवू; स्वीकार करवो (३) केद करवू (४) काबूमा लेवं; अटकाव (५) आकर्षq; वश करवू (६) समजावq; पक्षमा लेवू (७) खुश करवू; संतोषवू (८)धारण करवु (९) जाणवु; समजवु (१०)मानवं; धारQ (११) इंद्रियथी ग्रहण करवू (सांभळवू इ०)(१२)उल्लेखवू; उच्चारवं (नाम) (१३) हरण करवू; लई लेवं (१४)खरीदवू (१५) पहेरवु (वस्त्र) (१६) धारण करवू (गर्भ) (१७) पालन करवू (व्रत, उपवास इ०) (१८)काम माथे लेवू ग्रह पुं० लेवू - ग्रहण करवू ते; लई लेवं ते (२) पकड (३) स्वीकार करवो ते (४) ग्रहण (सूर्यनुं के चंद्रन) (५) चोरी; लूट Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रवेय ग्रहमामणी १६२ (६) उच्चार ते; लेवू ते (नाम)(७)नव प्रामिक वि० गामडानु; ग्राम्य ; असभ्य ग्रहोमांनो दरेक (८) राहु (९)अटकाव; (२)पुं० गामडियो(३)गामनो मुखी विघ्न (१०) मगर (११) भूत, पिशाच ग्रामीण वि० गामडियु; असभ्य (२) वगेरे (१२)इंद्रिय (१३) इंद्रियथीथतुं गामडानु (३)पुं० गामडानो माणस ज्ञान (१४) दया; कृपा (१५) उद्योग ग्रामेय वि० गामडा-; गामडियुं खंत (१६) धनुष्यनो मध्य भाग-पकड ग्राम्य वि० गामडान; गामडामा रहेतुं (१७)हेतु; उद्देश (१८)केद (२) पाळेलू (जानवर) (३) खेडेलं ग्रहग्रामणी पुं० सूर्य ('वन्य' थी ऊलटुं) (४) असभ्य; ग्रहण न० लेवु - पकडq ते (२) स्वी अश्लील (५) पुं० गामडियो (६) न० कार (३) उल्लेखq ते; उच्चारवं ते ग्राम्य भाषा (७) प्राकृत वगेरे भाषा . (४) (वस्त्र)पहेरवू ते (५)जाणवू - ('संस्कृत'थी जुदी) (८) कामभोग समजवू ते (६) शीखवू ते ; अभ्यास, प्रावन् पुं० पथ्थर; खडक (२)पर्वत ते (७) इंद्रिय (८) आकर्षण (९) पास पुं० कोळियो (२) अन्न ; खोराक लग्न (१०) केदी (११) पडघो (३)गळवू-गळी जq ते (४)ग्रहण ग्रहपीडन न० ग्रहण (सूर्य-चंद्रनुं) ग्रहानेसर पुं० चंद्र प्राह वि० पकडनाएं; ग्रहण करनालं; प्रहालुंचन न० शिकारने फाडी खावो ते लेनारुं (२) पुं० पकडवं ते (३)स्वीकार अहिल वि० लेवानी इच्छावाळू (२) (४) केदी (५) मगर (६)ज्ञान; समज(७) जक्की; हठीलु (३) भूतपिशाचना । दुराग्रह; हठ (८) निर्णय; निश्चय वळगाडवाळू दिवादार ग्राहक वि० लेनाएं; ग्रहण करनारं; ग्रहीत वि० लेनाएं(२)खरीदनाएं (३) पकडनारु (२) समजावनाएं (३) ग्रंथ् ९ प०, १० उ० गूंथq; परोवq खरीदनाएं (४) समावेश करतुं (२) गोठवq (३) रचवू. प्राहकत्व न० ग्रहणशक्ति; समजशक्ति ग्रंथ पं० बांधवू-ग्रंथवं ते (२)पुस्तक; प्राहम् अ० (समासने अंते) पकडीने साहित्यकृति (३) मिलकत ग्राहित वि० पकडवा के लेवा फरज पडी ग्रंथि स्त्री० गांठ (२)वस्त्र के दोरडानी होय ते, (२) शीखवाडायेखें गांठ (३) शरीरनो सांधो पाहिन् वि० पकडनारु; लेनाएं (२) ग्रंथिक पुं० ज्योतिषी; जोषी चूंटनाएं; वीणनाएं (३)समावतुं (४) ग्रंथिछेदक पुं० सीसाकातर आकर्षतुं (५) मेळवतुं (६)पसंद करतुं प्रथित वि० जुओ 'ग्रथित' (७)देखतुं; जाणतुं(८)खरीदतुं प्रथिन् पुं० पुस्तको वांचनार; पुस्तकियो ग्राह्य वि० लेवा-पकडवा योग्य (२) (२) विद्वान बांधेलं समजवा योग्य (३)स्वीकारवा योग्य ग्रंथिमत् वि० गांठोवाळू (२) गांठ वडे ग्रीवा स्त्री० डोक; गळं प्राम पुं० गामडं (२) समुदाय; समूह ग्रीष्म वि० उष्ण; गरम (२) पुं० (३) मूर्छनाना आश्रयरूप स्वरसमूह उनाळो (३) ताप; गरमी । ग्रामचैत्य पुं० गामनो पवित्र पीपळो । ग्रीष्मवन न० गरमीमां सेवाती कुंज प्रामणी वि० श्रेष्ठ; मुख्य (गाम के प्रैव, प्रैवेय वि० कंठy; गळा, (२) ज्ञातिमां) (२)पुं० गामनो मुखी (३) न० कंठभूषण; हार (३) हाथीना आगेवान; नेता गळानी सांकळ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैवेयक मैवेयक न० गळानुं भूषण (२) हाथीना गळानी सांकळ ग्लपन न० थाक; ग्लानि ( २ ) करमावुं ते ग्लपित वि० थाकेलुं (२) करमायेलुं (३) कपायेलुं ग्लह १, १० उ० जुगार रमवो; जुगारमां जीतवुं (२) लेवुं; स्वीकारखुं म्लह पुं० जुगारी ( २ ) पासो ( ३ ) होड घ वि० (समासने अंते ) हणनारुं ; नाश करनाएं (उदा० 'जीवध' ) घट् १ ० उद्योग करवो; प्रयत्न करवो (२) बनवु थवुं शक्य होवुं ( ३ ) पहोंचj; आववुं (४) जोडावुं; संबंधमां आवj (५) १० उ० मारी माखबुं; ईजा करवी ( ६ ) साथे लावं; मोड (७) प्रकाश - प्रेरक ० जोडवु; भेगुं करवु; संबंधमां लावुं (२) सिद्ध करवुं; बने तेम करवुं (३) बनावबुं रचवुं; घडवुं ( ४ ) प्रेरवुं घट पुं० घडो (२) हाथीनुं गंडस्थळ घटक वि० उद्यमी; प्रयत्नशील ( २ ) योजनाएं ; सिद्ध करना; रचनाएं (३) वस्तुना अंशरूप (४) पुं० वरकन्यानुं लग्न गोठवी आपनार घटकर पुं० भांगेला घडानुं कलाडुं घटन न०, घटना स्त्री० प्रयत्न ( २ ) बनाव; बुं - बनवुं ते ( ३ ) सिद्ध करवुं ते करवुं ते; घडवु ते ( ४ ) जोडवु ते (५) गति ( ६ ) कलह; कंकास घटयोनि, घटसंभव पुं० अगस्त्य ऋषि घटस्थापन न० नवरात्रि वगेरे समये 1 १६३ कळशनी दुर्गारूपे स्थापना घटा स्त्री० प्रयत्न; उद्यम ( २ ) समूह (३) हाथीनुं लश्कर (४.) सभा घ घन ग्लान ('ग्लै' नुं भू० कृ० ) वि० श्रमित; थाकी गयेलुं ग्लानि स्त्री० थाक; सुस्ती ; मंदता (२) पडती (३) नबळाई (४) अणगमो ग्लुच् १ प० जवं (२) चोखुं (३) लई लेवं छीनवी लेवं 1 ग्लै १५० अणगमो होवो (२) थाकी जबुं ( ३ ) निराश थबुं ( ४ ) करमाई जबुं घटाटोप पुं० रथ, गाडी के बीजा सरसामान उपरनुं आच्छादन घटिका स्त्री० नानो घडो (२) २४ मिनिट जेटलो समय ; घडी घटिकायंत्र न० जुओ घटीयंत्र घटित ( 'घट्' नुं भू० कृ० ) वि० जोडेलं; मेळवेलुं (२) घडेलुं; करेलुं घटी स्त्री० घडो (२) घडी (२४ मिनिट) घटीयंत्र न० रेंट ( २ ) घडी मापवानं यंत्र घटोदर पुं० गणपति घटोस् (घटोधनो रूप थाय ) स्त्री० घडा जेवा मोटा आउवाळी गाय घट्ट, १ आ०, १० उ० हलाववुं (२) घसवुं ( ३ ) तिरस्कार करवो (४) सताववुं (५) दबाववुं ; सरखं करव घट्ट पुं० नदीनो घाट - ओवारो (२) हलाववुं ते; क्षुब्ध करवुं ते घट्टन न० हलाववुं ते; छंछेडवुं ते (२) बनाववुं ते; रचवुं ते घट्टित वि० हलावेलुं (२) रचेलुं (३) दबावेलुं; सरखं करेल घन वि० कठण; नक्कर ( २ ) घाडुं; गाढ (३) जाडुं; भरेलुं; पूर्ण विकसित (४) ऊंड्डु ; गंभीर (अवाज) (५) अखंड (६) दुर्भेद्य (७) तीव्र (८) पूर्ण ; व्याप्त ( ९ ) Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनधनि शुभ (१०)पुं० वादळ; मेष (११) गदा; घण (१२) न० झालर वगेरे वाद्य घनध्वनि पुं० मेघगर्जना घनपदवी स्त्री० आकाश (वादळनो मार्ग) घनम् अ० गाढपणे घमवर्मन् न० जुओ ‘धनपदवी' घमवाहन पुं० शंकर (२) इंद्र घनवीथि स्त्री० जुओ ‘धनपदवी' घनव्यपाय पुं० शरद ऋतु घनश्याम वि० वादळांना जेवू काळु (२) पुं० मेघ (३) श्रीकृष्ण घनसमय पुं० वर्षाऋतु घनसार पुं० कपूर (२) पाणी (३) पारो (४) मोटुं वादळ घनागम पुं० वर्षाऋतु घनाघन वि० दुष्ट ; घातकी (२)सांधा वगरनुं; घट्ट; एकसरखं (३) पुं० इंद्र (४) मदोन्मत्त हाथी (५)गाईं के वर्षतुं वादळ (५)एकबीजा साथे संगठन घनात्यय, घनांत पुं० जुओ 'धनव्यपाय' घनांबु न० वरसाद घनोपल पुं० (वरसादमां पडतो) करो घनौष पुं० मेघघटा [पुं० तेवोअवाज घर्घर वि० अस्पष्ट - 'घरघर' एवं (२) घर्घरा स्त्री० घूघरी (आभूषणनी) (२) एक जातनी वीणा [दाणा घरिका स्त्री० जुओ 'घर्घरा (२)भूजेला घर्घरी स्त्री० जुओ 'घर्घरा' धर्म पुं० उष्णता; गरमी (२) ग्रीष्म ऋतु (३)प्रस्वेद; घाम [दूर करवी ते धर्मछेद पुं० तडको दूर करवो ते; गरमी धर्मजल न० परसेवो धर्मदीधिति, धर्मधुति पुं० सूर्य धर्मपयस् न० परसेवो (२)गरम पाणी घात पुं० वर्षाऋतु धर्माबु, घभिस् न० परसेवो धर्माश पुं० सूर्य धर्मोदक न० परसेवो घोणा घर्ष पुं०, घर्षण न० घसq ते; घसावं ते (२) दळवू-खांडवं ते चर्षित वि० घसेलु (२)दळेलं; वाटेलु घस् १, २ प० खावू; खाई जQ घस्मर वि० खाउधरूं (२) भक्षक; नाशक बन्न पुं० दिवस घंट पुं० शिव घंटा स्त्री० घंट घंटिका स्त्री० घंटडी; धूधरी घात पुं० वध ; नाश (२)प्रहार; घा घातक वि० नाश करनाएं घातन न० मारी नाखवं ते; वध घातिन् वि० घात करनारं घात्य वि० घात करवा योग्य घातिक पुं० अनारसुं; एक पकवान घास पुं० अन्न (२) चारो घुष १५०, १० उ० अवाज करवो; बूम पाडवी (२) घोषणा करवी; जाहेर करवु (३)प्रशंसा करवी (४) १ आ० चकचकित थवू; खूबसूरत थर्बु (५) १५० ठार मार घुसूण न० केसर घूक पुं० धुवड [चक्राकार भमकुं घूर्ण १ आ०, ६५० गोळ गोळ फरवू; घूर्णन न०, घूर्णना स्त्री० चक्राकारे फरवू ते [अणगमो (३)ठपको घृणा स्त्री० दया; अनुकंपा(२)तिरस्कार; घृणिन् वि० दयाळु (२)घृणायुक्त (३) लज्जाळु घृत न० घी (२) तेज घुतपूर, घृतवर पुं० घेबर ; एक पकवान घष १५० घसद् (२)घसीने साफ करवू (३) कचर; खांडवू; पीसवं घृष्ट ('घृष्'- भू० कृ०) वि० घसेलं; दळेलं ; वाटेल घुष्टि पुं० रानी डुक्कर घोट, घोटक पुं० घोडो घोणा स्त्री० नाक (२) नसकोरं (३) Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चक्रवाल (धुवडनी)चांच (४)धरी जेमा रहे छे ते पैडानो भाग गोर वि० भयंकर; भयानक (२) उग्र; कराल गोरदर्शन वि० भयंकर आकृतिवाळु (२) पुं० घुवड गोष पुं० ध्वनि; अवाज (२) गरबड (३) मेघगर्जना (४) जाहेरनामुं; ढंढेरो (५) अफवा (६) भरवाडनो वाडो; गोवाळोनो पडाव (७) मृदु व्यंजननो उच्चार (व्या०)(८)पुं० कांसु पोषण न०, घोषणा स्त्री० ढंढेरो घोषवती स्त्री० वीणा घोषवृद्ध पुं० भरवाडोनो मुखियो घ्न वि० (समासने अंते)नाश करनारं; मारी नाखनारुं (उदा० 'वातघ्न') घ्रा ३ प० [जिघ्रति ] सूंघq; सूंघीने पारखवु (२) चुंबन कर घ्राण ('ब्रा' मुं० भू० कृ०) वि० सूंघेलं (२)न० सूंघते (३)वास (४)नाक घ्राणेंद्रिय न० नाक घ्रात ('ब्रा' नुं भू० कृ०) वि० सूंघेलं घ्रय वि० संघवा योग्य (२) न० सूंघवानो पदार्थ (३) गंध; वास [ कंठस्थानीय अनुनासिक वर्ण; आ व्यंजनथी शरू थतो शब्द नथी।]. 10 च अ० संयोग, समुच्चय, समाहार, निश्चय, शरत, पक्षांतर, अवधारण, के पादपूरण तरीके वपरातो अव्यय (२) अने, तथा, पण, परंतु, वळी, सिवाय, खरेखर, नक्की -ए अर्थ बतावे चकास् २ प० प्रकाशQ (२) सुखी थq; समृद्ध थर्बु कित वि० भयथी कंपतुं (२) बिवरावेलु (३) भयभीत (४) न० कंपवं ते; भ्रूजवू ते (५) भय ; भीति कितचकितम् अ० खूब बीनीने दकितम् अ० भयभीतपणे कोर पुं० चकोर पक्षी कोरदश, चकोरनेत्र, चकोराक्ष वि० (चकोर जेवी) सुंदर आंखवाळं बक पुं० चक्रवाक पक्षी (२) समुदाय कन० गाडी, पैडु (२) एक शस्त्र (उदा० सुदर्शन चक्र) (३) कुंभारनो चाक (४)घाणी (५) कुंडाळु (६) समूह (७) राज्य; सत्ता; साम्राज्य (८) व्यूहरचना (९) सैन्य (१०) काळy चक्र (११) क्षितिज (१२) पाणीन वमळ (१३) प्रांत; जिल्लो; तालुको चक्रगति स्त्री० चक्राकारे फरवं ते चक्रचक्र न० चक्रवाक पक्षी, टोळं चक्रधर पुं० विष्णु (२) सम्राट चक्रनेमि स्त्री० चक्रनो परिघ-घेरावो चक्रपाणि पुं० विष्णु चक्रभ्रमि स्त्री० सराण चक्रवतिन् पुं० सार्वभौम राजा (२) श्रेष्ठ; उत्तम (पोताना वर्गमा) चक्रवाक पुं० चको पक्षी चक्रवात पुं० वटोळियो चक्रवाल पुं०, न० वर्तुल (२) समूह; ___समुदाय (३) क्षितिज (४)पुं० चक्रवाक (५) लोकालोक पर्वत Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चक्रव्यूह चक्रव्यूह पुं० (चक्राकारे) सैन्यनी एक रचना - व्यूह चसाह्वय पुं० चक्रवाक हस्त पुं० विष्णु [श्रीकृष्ण; विष्णु चक्रायुध पुं० (चक्र जेनुं आयुध छे तेवा ) चकार पुं०, न० पैडानो आरो चक्रावर्त पुं० चक्राकारे भमवुं - फरवुं ते चाह्न, चक्राह्वय पुं० चक्रवाक चत्रांग पुं० हंस ( २ ) चक्रवाक चक्रिन् पुं० विष्णु; श्रीकृष्ण (२) चक्रवर्ती राजा (३) चक्रवाक चक्रेश्वर पुं० विष्णु (२) जिल्लानो अधिकारी - शासक [त्याग करवो चक्ष् २ आ० कहेवुं; बोलवु (२) जोत्रं (३) चक्षुविषय पुं० दृष्टिमर्यादा ( २ ) आंखनो विषय दृश्य ( ३ ) क्षितिज चक्षुष्पथ पुं० दृष्टिमर्यादा चक्षुष्मत् वि० आंखवाळं; जोवानी शक्तिवाळं ( २ ) अगमचेतीवाळु चक्षुष्य वि० सुंदर; प्रियदर्शन ( २ ) आंखने हितकर (३) पुं०, न० नेत्रांजन चक्षुस् न० आंख (२) दृष्टि; नजर चक्षुःश्रवस् पुं० साप [नजर 'वक्षूराग पुं० आंखनी लालाश (२) प्रेमभरी चट् १प० [ चटति ] भांगवु; जुदुं पाडवु (२) १० उ० वींधवं; मारी नाखवु ( ३ ) हरकत करवी चटक पुं० चकलो चटका, चटिका स्त्री० चकली चटु पुं० प्रिय भाषण; खुशामत चटुल वि० चंचळ ; अस्थिर ( २ ) सुंदर; मनगमतुं aण वि० (समासने अंते ) प्रख्यात; निष्णात (उदा० ' अक्षरचण,' 'मायाचण ' ) चण, चणक पुं० चणा चतस्रः ( 'चतुर् ' नुं स्त्री० ब०व०) चार चतुर् वि० ( ब० व० ) चार (संख्या) (२) अ० चार वखत १६६ चतुर्वर्ण चतुर वि० चालाक; कुशळ (२) उतावळं; चपळ (३) सुंदर; मनोहर चतुरश्र (-त्र) वि० चार खूणावाळं (२) Tai अंगोमा प्रमाणसर; सुंदर चतुरंग वि० चार अंगवाळुचार विभागवाळं ( २ ) न ० ( हाथी, घोडा, रथ, पायदळ - एवा पूरा चार विभागवाळी) सेना चतुरंगिणी स्त्री० चार अंगो पूरा होय तेवी ( 'चतुरंग') सेना चतुरंत वि० चार छेडा के सीमावाळूं चतुरंता स्त्री० पृथ्वी चतुरानन पुं० ब्रह्मा (चार मुखवाळा ) चतुर्गुण वि० चारगणुं; चोपट चतुर्थ वि० चोथुं ( २ ) न० चोथो भाग चतुर्थाश्रम पुं० संन्यास आश्रम चतुर्दशभुवनानि न० ब०व० चौद लोक; समग्र विश्व चतुर्दशरत्नानि न ० ब० व० समुद्रमंथन वखते नीकळेलां चौद रत्नो (लक्ष्मी, कौस्तुभ, पारिजातक, सुरा, धन्वंतरि, चंद्रमा, कामदुघा गाय, ऐरावत हाथी, रंभा वगेरे अप्सरा, सात मुखबाळो घोडो ( उच्चैःश्रवा), हलाहल विष, शार्ग धनुष्य, पांचजन्य शंख, अमृत ) चतुर्दत पुं० ऐरावत हाथी चतुर्दिश न० चार दिशाओनो समूह चतुर्दशम् अ० चारे बाजुए चतुर्धा अ० चार प्रकारे; चार रीते चतुर्बाहु, चतुर्भुज् ( - ज ) पुं० विष्णु चतुर्मास न० अषाड शुक्ल एकादशीथी कार्तिक शुक्ल एकादशी सुधीनो समय - चातुर्मास चतुर्मुख पुं० ब्रह्मा चतुर्युग न० सत्य, त्रेता, द्वापर, कलिए चार युगनो समूह चतुर्वर्ग न० धर्म, अर्थ, चार पुरुषार्थोनो समूह चतुर्वर्ण न० ब्राह्मण, क्षत्रिय, वश्य, शुद्र - ए चार वर्णोनो समूह काम, मोक्ष - ए - Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुविद्य चतुविद्य वि० चारे वेद जाणनारुं चतुश्शाल न० जुओ 'चतुःशाल' चतुष्क न० चारनो समूह (२) चार रस्ता मळे ते स्थळ - चकलुं (३) चार खूणावाळं आंगणुं - चोक (४) चार स्तंभवाळो मंडप ( ५ ) चार पायावाळी बेठक (६) चार सेरवाळो हार चतुष्कर्ण वि० चार काने सांभळेलुं ( बे माणसे जाणेलं ) चतुष्काष्ठम् अ० चारे दिशामां चतुष्कोण वि० चार खूणावाळं चतुष्टय वि० चार अवयववाळु (२) चार प्रकारनुं (३) न० चारनो समूह (४) चतुष्कोण चतुष्पथ पुं०, न० जुओ 'चतुःपथ' चतुष्पद् ( - द ) वि० चार पगवाळं (२) पुं० चोपगुं प्राणी चतुष्पाणि पुं० विष्णु ['चतुष्पद्' चतुष्पाद् ( - द ) वि० (२) पुं० जुओ चतुःपथ पुं०, न० जुओ ' चत्वर'; चकलु चतुःशाल न० चार मकानोथी बनेलो चोक; चार मकानोवाळी खडकी चत्वर न० चार रस्ता मळे तेवुं स्थळ चकलुं (२) चोक चत्वारः ('चतुर्'नुं पुं० ब० व० ) चार चत्वारि ( ' चतुर्' नुं न० ब० ब० ) चार चत्वारिंशत् स्त्री० चालीस (संख्या) चपल वि० हालतुं; अस्थिर ( २ ) क्षणिक; नाशवंत ( ३ ) त्वरित; शीघ्र ( ४ ) साहसिक; अविचारी चपला स्त्री० वीजळी (२) लक्ष्मी (३) जीभ (४) व्यभिचारिणी स्त्री (५) सुरा चपेट पुं०, चपेटिका स्त्री० तमाच चम् ११० पीवुं ( २ ) खावुं चमत्करण न०, चमत्कार पुं०, चमत्कृति स्त्री० आश्चर्य; नवाई ( २ ) आश्चर्यकारक बनाव के देखाव - चमर पुं० चमरी गाय (२) पुं०, न० तेना पूछडाना वाळनी बनती चमरी १६७ चरणामृत चमरी स्त्री० चमरी गाय (२) मंजरी चमस पुं०, न० एक पात्र ( सोमरस पीवानुं) (२) जव-चोखा वगेरेनुं वडुं चमू स्त्री० सैन्य ( २ ) एक सैन्यविभाग चमूचर पुं० सैनिक चमूनाथ, चमूप, चमूपति पुं० सेनापति चमूरु पुं० एक मृग चय पुं० समूह; ढगलो (२) एकटुं करवुं -- वीणवुं ते (३) मकानना के किल्लाना पाया माटे जमीन खोदीने करेलो माटीनो ढगलो (४) गोठववुं ते; खडकवुं ते (५) स्थापवुं ते (अग्नि) चयन न० ढगलो करवो ते; एकठ्ठे करवुं ते व ते ( २ ) अग्नि स्थापवो ते चर् १ प० चालवुं; जवुं ; फरवुं; भटकवुं (२) आचरवुं; करवुं (३) चरवुं (घास इ० ) ( ४ ) वर्तवुं - वर्तन राखवु (कोई साथै ) ( ५ ) फेलावुं (६) जीववुं चर वि० चालतुं, फरतु, चरतुं इ० (२) आचरतुं (समासने अंते) (३) जंगम (४) पहेलां हतुं तेवुं (उदा० 'आढयचर' = पहेलां पैसादार हतुं तेवुं) (५) पुं० गुप्तचर चरक पुं० गुप्तचर; दूत ( २ ) भटकतो भिक्षुक (३) प्रसिद्ध वैद्य मुनि चरण पुं०, न० पग ( २ ) स्तंभ ; थांभलो (३) चोथो भाग ( ४ ) वेदनी शाखा ( ५ ) श्लोकनी एक पंक्ति ( ६ ) न० भटकवुं ते (७) आचरवुं ते (८) कोई पण वर्गनो रूढ आचार चरणकमल न० कमळ जेवा पग चरणप पुं० वृक्ष चरणपतन न० पगे पडवुं ते चरणपात पुं० पग मूकवो ते (२) पगे पडवुं ते (३) पगलांनो अवाज चरणयोधिन् पुं० कूकडो चरणशुश्रूषा, चरणसेवा स्त्री० पगे पडवुं ते ( २ ) सेवा; भक्ति [जळ; चरणोदक चरणामृत न० ऋषि इ० ना पग धोयेलुं Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरणायुध चरणायुध पुं० जुओ 'चरणयोधिन् ' चरणारविंद न० जुओ 'चरणकमल' चरणोदक न० जुओ 'चरणामृत' चरणोपधान न० पग टेकववानो बाजठ चरम वि० छेवटनं; छेल्लुं ( २ ) पश्चिम तरफनुं (३) पाछलुं; पछीनुं चरमकाल पुं० मृत्युकाल; अंतिमकाल चरमम् अ० छेवटे; अंते चरमवयस् वि० घरडुं; वृद्ध चराचर वि० स्थावर अने जंगम ( २ ) हालतुं, कंपतुं (३) इच्छेलुं (४) न० स्थावर अने जंगमनो समूह; आखी दुनिया (५) स्वर्ग; अंतरिक्ष चरित ('र्' नुं भू० कृ० ) वि० गयेलं; भटकेलुं (२) आचरेलुं; करेलुं (३) जाणेलुं ( ४ ) प्राप्त करेलुं (५) आपलं; अपायेलं ( ६ ) न० जवुं - चालबुं ते (७) आचरण; वर्तन ( ८ ) जीवन - चरित्र इतिहास १६८ चरितार्थ वि० कृतार्थ ; कृतकृत्य; सफळ (२) परितृप्त ( ३ ) सिद्ध ( ४ ) सार्थक ; अर्थ अनुसार ( ५ ) योग्य; उचित चरित्र न० आचरण; वर्तन ( २ ) जीवन चरित्र (३) स्वभाव चरिष्णु वि० गतिमान; जंगम चरु पुं० होमार्थे दूधमां रांधेलो भात (२) ते माटेनुं वासण चर्च् ६ ५० निंदा करवी (२) चर्चा विचारणा करवी ; विवाद करवो ( ३ ) लेप करवो [सुगंधी लेप करवो ते चर्चेन न० अभ्यास; पठन ( २ ) शरीरे चर्चरिका, चर्चरी स्त्री० एक जातनुं गीत ( २ ) संगीतमां हाथ वडे ताल आपको ते; ताळी (३) आनंदोत्सव चर्चा, चचिका स्त्री० अभ्यास ; पठन (२) विचारणा; वादविवाद ( ३ ) शरीरे सुगंधी द्रव्यनो लेप करवो ते चर्चित ('चर्च्' नुं भू० कृ० ) वि० लेप - चलित करायेलुं; खरडायेलुं (२) चर्चायेलुं; विचारायेलुं चर्पट पुं० तमाच; लपडाक (२) चींथरु चटी स्त्री० चीभडी के तेनुं फळ चर्मकार, चर्मकारिन्, चर्मकृत् पुं० मोची (२) चमार [चौडियं चर्मचटक पुं०, चर्मचटिका स्त्री० चामाचर्मन् न० त्वचा; चामडी ( २ ) चामडुं (३) स्पशेंद्रिय ( ४ ) ढाल चर्ममय वि० चामडानुं बने लुं के बनावेलुं चर्मयष्टि स्त्री० चाबूक चर्मावर्तन पुं० मोची चमन् वि० चामडानं बनावेलुं (२) ढालवाळु (३) पुं० ढालवाळो योद्धो चर्या स्त्री० चालवु ते; फरवुं ते (२) सवारी करीने जवुं ते (३) आचरण; वर्तणूक ( ४ ) विधिपूर्वक आचरवुं ते; अनुष्ठान चर्च् १ १०, १० उ० चाववुं ; खावुं (२) चूस (३) चाखवु ; स्वाद लेवो चर्वण न०, चर्वणा स्त्री० चाववुं ते; खावुं ते (२) चूसवं ते ( ३ ) चाखवं ते चवित ( 'च' नुं भू० कृ० ) वि० चावेलु; खालुं (२) चाखेलुं afanaण न० चावेलुं फरी चाववुं ते (२) निरर्थक पुनरुक्ति चर्षणि पुं० माणसजात चर्षणी स्त्री० छिनाळ स्त्री चल् १ १० हालवु; कंपवु ; धबकं (२) जवु; चालवं (३) चलित थवुः क्षुब्ध थवं चल वि० हालतु; कंपतुं (२) चपळ; चंचळ (३) अस्थिर; जंगम ( ४ ) नाशवंत चलचित्त वि० अस्थिर मननुं चलन न० हालवु ते ; कंपवुं ते ( २ ) फर ते; भटकते चला स्त्री० लक्ष्मी ( २ ) वीजळी चलाचल वि० अस्थिर; अति चंचल (२) स्थावर अने जंगम चलित ( ' चल्नुं भू० कृ० ) वि० कंपेलुं; Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चलुक क्षुब्ध (२) खसेडेलु (३) गयेलु (४) न० चालवू ते (५)हालवूते (६) एक नृत्य चलुक पुं० हाथनो खोबो (कोगळो करवातुं पाणी लेवा माटे) चषक पुं०, न० दारू पीवानुं पात्र चषति पुं० भक्षण (२)वध ; नाश चंक्रमण न० आम तेम फरवू ते चंग वि० सुंदर (२)निपुण (३)तंदुरस्त चंच १५० हालवू (२)कूदवं; ऊछळवू चंचक वि० कूदतुं (२) हालतुं चंचरिन्, चंवरीक पुं० मोटो भमरो चंचल वि० कंपतु; हालतुं (२) अस्थिर चंचला स्त्री० लक्ष्मी (२) वीजळी चंचु वि० प्रख्यात; जाणीतुं (२) चतुर चंचु (-च) स्त्री० चांच चंचूर्यमाण वि० बीभत्स चाळा करतुं चंड वि० क्रोधी (२) उष्ण (३) भयंकर चंडम् अ० तीव्रपणे; भयंकर रीते; गुस्साथी चंडा स्त्री० दुर्गा (२) क्रोधी स्त्री चंडाल वि० निर्दय ; घातकी (२) पुं० एक जातनो अंत्यज चंडांशु पुं० सूर्य चंडि, चंडिका स्त्री० दुर्गा चंडिमन् पुं० क्रोध ; गुस्सो (२)गरमी चंडी स्त्री० दुर्गा अथवा तेनो लेप चंदन पुं०, न० सुखडनुं वृक्ष, लाकडु चंदनगिरि पुं० मलयाचल पर्वत चंदनसार पुं० उत्तम चंदन चंदनाचल, चंदनाद्रि पुं० मलय पर्वत (ज्यां चंदननां वृक्षो बहु थाय छे) चंदिर पुं० चंद्र (२) हाथी चंद्र पुं० चांदो (२)(समासने अंते) श्रेष्ठ (उदा० 'पुरुषचंद्र') चंद्रक पुं० चंद्र (२) आंगळीनो नख (३) मोरना पीछामांनी टीलडी चंद्रकला स्त्री० चंद्रबिंबनो सोळमो भाग चंद्रकवत् पुं० मोर चंद्रकांत पुं० एक मणि (जेना उपर चंद्रनां चाटुक्ति किरण पडतां तेमांथी पाणी झमे छे) (२) पुं०, न० (रात्रे चंद्रथी खीलतुं) पोयj चंद्रकिन् पुं० मोर चंद्रचूड, चंद्रचूडामणि पुं० शंकर चंद्रद्युति स्त्री चंद्रनुं तेज (२) चांदनी चंद्रपाद पुं० चंद्रकिरण चंद्रप्रभा स्त्री० जुओ'चंद्रद्युति' [ओरडो चंद्रप्रासाद पुं० घरनी टोचे आवेलो चंद्रमस् पुं० चंद्रमा; चांदो चंद्रमुख वि० चंद्र जेवा सुंदर मुखवाळं चंद्रमौलि पुं० शंकर चंद्र-किरण चंद्ररेखा, चंद्रलेखा स्त्रीचंद्रनी कळा(२) चंद्रवदन वि० चंद्र जेवा सुंदर मुखवाळ चंद्रशाला स्त्री० अगासी (२) चांदनी चंद्रशेखर पुं० शंकर चंद्रहास पुं० चमकती तरवार (२) रावणनी तरवारनुं नाम चंद्रातप पुं० चांदनी; चंद्रिका चंद्रात्मज पुं० बुध (ग्रह) चंद्रानन वि० चंद्र जेवा सुंदर मुखवाळू (२) पुं० कार्तिकेय चंद्रापीड पुं० शिव चंद्रार्धमौलि, चंद्रार्धशेखर पुं० (अर्धचंद्र जेना मस्तके छे ते) शिव चंद्रिका स्त्री० चंद्रनो प्रकाश ; चांदनी चंद्रोदय पुं० चंद्रनो उदय चंद्रोपल पुं० चंद्रकांत मणि चंपक पुं० चंपो (२) न० तेनुं फूल चंपू स्त्री० गद्य अने पद्यवाळी, परिश्रमसाध्य एवी एक साहित्यकृति चाकचक्य न० चकचकितपणुं चाक्षुष वि० चक्षु संबंधी; (२) दृश्य; जोवा लायक (३) न० प्रत्यक्ष ज्ञान चाक्षुषज्ञान न० प्रत्यक्षज्ञान (२)पुरावो चाट पुं० धूर्त ; ठग स्पिष्ट वाणी चाटु पु०, न० मधुर वाणी; खुशामत (२) चाटुकार वि० खुशामत करनारं चाटुक्ति स्त्री० मधुर वचन; खुशामत Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चातक १७० चातक पुं० एक पक्षी (वरसादनां टीपां ज पीतुं मनाय छे) चातकानंदन पुं० वर्षाऋतु (२) मेघ चातुर वि. चतुर; डाहपुं; शाणुं (२) चार वडे खेंचातुं (वाहन) चातुरंत वि० (चारे बाजुए समुद्रथी वीटळायेली) आखी पृथ्वीनुं मालिक चातुरी स्त्री० चतुराई चातुर्य न० कुशलता; चतुराई चातुर्वर्ण्य न० ब्राह्मणादि चार वर्ण (२) चारे वर्णनां कर्तव्य चातुविद्य न० चार वेदनो समूह चाप पुं० धनुष्य (२) मेघधनुष्य चापल, चापल्य न० चपळता; चंचळता (२) साहस (३) अस्थिरता चामर पुं०, न० चमरी चामीकर न० सोनुं चामुंडा स्त्री० दुर्गानुं विकराळ स्वरूप चाय १ उ० निहाळवू (२) संमानवू चार पुं० जq - चालवू ते ; गति ; संचार (२) गुप्तचर (३) करवू- आचरते वारक वि० जनाएं; संचार करनारुं; आचरनारु (२) पुं० गुप्तचर (३) कारागृह ; जेल [(राजा) चारचक्षुस् वि० जासूसरूपी आंखवाळू चारण पुं० भाट; चारण; स्तुतिपाठक (२) नट; विदूषक ; नाचनार (३) प्रवासी; यात्राळ (४) जासूस चारदृश् वि० जुओ 'चारचक्षुस्' चारभट पुं० वीर सैनिक चारिका स्त्री० परिचारिका; दासी चारित्र, चारित्र्य न० चरित्र; वर्तन; आचरण (२) सदाचरण (३) स्त्रीशील (४) स्वभाव (५) कुलाचार चारिन् वि० (समासने छेडे) जतुं; फरतुं; जीवतुं; आचरतुं (२) पुं० । पायदळनो सैनिक चारु वि० सुंदर (२) प्रिय; रुचिकर । चारुदर्शन वि० सुंदर; स्वरूपवान चिकित्सु चारवक्त्र वि० सुंदर मुखवाळू चारवर्षना स्त्री० स्त्री करनार स्त्री चारुलता स्त्री० एक मासना उपवास चारशिला स्त्री० रत्न चारशील वि० सुंदर चरित्रवाळू चार्या स्त्री. मार्ग; रस्तो चावंगी स्त्री० सुंदर स्त्री चार्वाक पुं० नास्तिक मतनो प्रवर्तक चार्वी स्त्री० सुंदर स्त्री (२) कुबेरनी पत्नी (३) बुद्धि (४) प्रभा; तेज(५) चांदनी; चंद्रिका चालन न हलावतुं ते (२) चाळवं ते (चाळणीथी) (३) ढीलु करवं ते चालनी स्त्री० चाळणी चाष (-स) पुं० चास पक्षी (२) शेरडी घांचल्य न० चंचलता; अस्थिरता (२) क्षणिकता चांडाल पुं० जुओ 'चंडाल' चांद्र वि० चंद्रनुं; चंद्र संबंधी (२) न० चांद्रायण व्रत चांद्रमस वि० चंद्रनु; चंद्रमानुं चांद्रायण न० (खावामां रोज कोळियो वधारता-घटाडता जवानु) एक व्रत चांद्री स्त्री० चांदनी; चंद्रिका चि ५ उ० वीणq; एकळु करवू (२) संग्रह करवो; ढगलो करवो (३) शोध, (४) जडवू; चोटाडq (मणि-रत्न वगेरे) . (५) ढांकी देवू; भरी काढq '-कर्मणि० फळ बेसवु; सफळ थर्बु (२) वधq; समृद्ध थर्बु चि ३५० निहाळq (२)निरीक्षण करवू; तपासवं (३) निश्चय करवो चि १ आ. धिक्कारQ (२) वेर लेवू चि १ उ० [चायति-ते-थी बीवू (२) मान आपq (३) निहाळवू चिकतिषु वि. कापवा इच्छतुं चिकित्सक पुं० वैद्य ति; वैदूं चिकित्सा स्त्री रोगनो उपचार करवो चिकित्सु वि० वैदकीय उपचार करनाएं Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिकिल चिकिल पुं० कादव; कीचड चिकीर्षा स्त्री० करवानी इच्छा ( २ ) जाणवानी इच्छा चिकीर्षु वि० करवानी इच्छावाळं चिकुर वि० अस्थिर; चंचळ (२) अविचारी (३) पुं० माथाना वाळ चिकुरकलाप, चिकुरनिकर, चिकुरपक्ष, चिकुरहस्त पुं० केशनो समूह - जूडो चिक्कण वि० स्निग्ध; चीकणुं ( २ ) सुं (३) चीकटवाळु चिच्छक्ति स्त्री० चैतन्य चित् १ १०, १० आ० जोबुं; निहाळवं (२) जाणवं; समजवुं (३) भानमां आवबुं ; चेतना आववी ( ४ ) चितवबुं ; लक्ष राखवु (५) गणवुं ; धारवुं ( ६ ) araj ( ७ ) शीखव भरेलु चित् स्त्री० विचार (२) बुद्धि; समज (३) मन; अंत:करण ( ४ ) ज्ञान (५) चैतन्य; आत्मा (६) ब्रह्म चित ( चि' नुं भू० कृ० ) वि० एकठं करेलु; वीणेलं;संग्रहेलुं(२)मेळवेलुं(३)ढंकायेलु; [लाकडांनो ढगलो; चेह चिता स्त्री० ( मुडदुं बाळवा गोठवेलां ) चिति स्त्री० ढगलो (२) चिता (३) संग्रह करवो ते; वीणवं ते (४) गोठवणी; रचना चितिका स्त्री० चिता; चेह चित्त ( 'चित् ' नुं भू० कृ० ) वि० जोयेलुं; जाणेलु; विचारेलुं; इच्छेलुं (२) न० अंतःकरण; मन ( ३ ) विचार; चिंतन (४) बुद्धिशक्ति; ज्ञान चित्तचारिन् वि० पोतानी मरजीने अनुसरनाई [प्रीति; प्रेम चित्तज, चित्तजन्मन् पुं० कामदेव (२) चित्तज्ञ वि० बीजानुं मन जाणनाएं चित्तनिर्वृति स्त्री० संतोष; सुख चित्तप्रमाथिन् वि० चित्तने मथी नाखना; चित्तमा तीव्र कामना ऊभुं करनाएं ferfarea, चित्तविभ्रम, चित्तविभ्रंश पुं० गांडपण; उन्माद १७१ चित्रविचित्र चित्तविश्लेव पुं० मैत्री तूटी जवी ते चित्तवृत्ति स्त्री० चित्तनी वृत्ति चित्तवैकल्य न० चित्तनी व्याकुळता चित्तहारिन्, चित्ताकर्षिन् वि० चित्तने हरी लेना; आकर्षक [ अनुसरनाई चित्तानुवर्तिन् वि० पोतानी मरजीने चित्तापहारक, चित्तापहारिन् वि० चित्तने हरी लेना; सुंदर चित्तापित वि० चित्तमां धारण करेलुं चित्ति स्त्री० विचार; चिंतन (२) ज्ञान; [अग्नि चित्य वि० चिता संबंधी ( २ ) पुं० चितानो चित्या स्त्री० चिता (२) यज्ञस्थान चित्र दि० चित्रविचित्र (२) विविध (३) रम्य; सुंदर (४) आश्चर्य कारक (५) नजरे पडे तेवुं ( ६ ) पुं० चित्रविचित्र रंग (७) न० चीतरेलु ते ; छबी (८) घरेणुं (९) आश्चर्य; अद्भुत वस्तु चित्रक पुं० चितारो (२) वाघ के चित्तो समज (३) ख्याति (३) न० चंदननुं तिलक चित्रकर पुं० चितारो; चित्रकार चित्रकर्मन् न० अद्भुत कृत्य (२) चीतरखुं ते (३) चित्र (४) जादु (५) पुं० जादुगर (६) चितारो चित्रकार पुं० चितारो चित्रग, चित्रगत वि० चीतरेलुं चित्रगुप्त पुं० मनुष्यना पापपुण्यनो हिसाब राखनार यमराजानो अधिकारी चित्रन्यस्त वि० चीतरेल चित्रपट ( - ) पुं०चित्र (२) चीत रेलो पट चित्रफलक न० चित्र दोरवानुं पाटियुं चित्रभानु पुं० सूर्य ( २ ) अग्नि चित्रम् अ० केवी नवाई ! अद्भुत ! चित्ररथ पुं० सूर्य ( २ ) गंधवोंनो राजा चित्रलिखित वि० चीतरेलु ( २ ) मूंगुं ; हाल्याचाया विनानुं चित्रलेखा स्त्री० चित्र ( २ ) बाणपुत्री उषानी सखी चित्रविचित्र वि० रंगबेरंगी Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्रा १७२ चित्रा वि० एक नक्षत्र चिरेण अ० जुओ ‘चिरात्' चित्रिणी स्त्री० चार प्रकारनी स्त्रीओ- चिर्भटि स्त्री० चीभडी (२) चीभडुं मांनी एक(पद्मिनी, चित्रिणी, शङ्खिनी, चिल्ल पुं० चील; समडी हस्तिनी) चिह्न न० निशानी; छाप (२) लक्षण चित्रित वि० चीतरेलु(२)रंगबेरंगी रंगनुं चिचा स्त्री० आमली चित्रिन वि० रंगबेरंगी (२) आश्चर्य- चित् १० उ० चिंतन करवू; मनन करवू कारक (३) काबरचीतरा वाळवाळू (२) संभाळ राखवी; चिंता राखवी चिद्घन, चिदात्मन् पुं० परब्रह्म (३)विचारी काढवू; शोधी काढवू चिदाभास पुं० जीवन० परब्रह्म चिंतक वि० चितवनाएं; विचारनारं चिन्मय वि० ज्ञानमय; चेतनमय (२) (समासने छेडे) चिन्मात्र न० शुद्ध चेतन . चितन न०, चिंतना स्त्री० चितवq ते; चिपिट वि० चपटुं विचार ते (२) चिंता; फिकर चिबुक न० हडपची; दाढी चितनीय वि० जुओ 'चित्य' फिकर चिर वि० दीर्घकालिक; लांबा समयनुं चिता स्त्री० विचारणा; विचार (२) (२) न० लांबो समय चिताकुल वि० व्यग्र ; चिंतातुर चिरकार, चिरकारिफ, चिरकारिन् वि० चितापर वि० चितामां पडेलु - डूबेलु काम करवामां विलंब करनारं चिंतामणि पुं० इच्छेलं आपनार मणि चिरकालिक, चिरकालीन वि० लांबा चितित ('चित्'- भू० कृ०) विचारेखें; समयनु; जून चितवेलं (२)न० विचार; धारणा चिरजीविन वि० चिरंजीवी; दीर्घजीवी चितितोपनत, चितितोपस्थित वि० (२) पुं० अश्वत्थामा, बळिराजा, विचारतांवेंत हाजर थयेलं व्यासमुनि, हनुमान, विभीषण, चित्य वि० विचारवा-चितववा योग्य कृपाचार्य, परशुराम -ए सातमांथी चीत्कार पुं० (हाथी, गधेडु इ०नी) चीस दरेक (३) मार्कंडेय मुनि चीन पुं० चीन देश (२)पुं० (ब०व०) चिररात्र पुं० लांबो वखत चीन देशना लोको के राजाओ चिररात्राय अ० लांबा वखत सुधी;लांबा चीनपिष्ट न० सिंदूर वखत बाद रहे तेवं चीनांशुक न० रेशमी वस्त्र; चीनमां चिरस्थायिन् वि० लांबा समय सुधी टकी बनेलं बारीक वस्त्र चिरंजीव वि० दीर्घायुषी; लांबुजीवनाएं चौर न० फाटेलुं वस्त्र; चीथरूं (२) वस्त्र; चिरंटी स्त्री० युवावस्था पछी पण बापने कपडु (३) बौद्ध भिक्षुनुं वस्त्र (४) घेर रहेती स्त्री वल्कल [(२) कथाधारी चिरंतन वि० पुराणुं; पुरातन चीरपरिग्रह,चोरवासस वि०वल्कलधारी चिरात्, चिराय अ० लांबा समय सुधी; चीर्ण वि. आचरेलं [चीथरूं; कपडूं लांबा समय पछी; अंते; छेवटे चीवर न० भिक्षुक वगेरेनुं वस्त्र (२) चिरायुस् वि० दीर्घायुषी चुन् १० उ०प्रेर; धकेलवू; हांकवू (२) चिरि पुं० पोपट; शुक त्वरा करवी (३) आग्रहपूर्वक विनंति चिरिकाक पुं० एक जातनो कागडो करवी (४) (दलील के वांधो) रजू चिरिबिल्व पुं० करंज वृक्ष । करवू; धरवू चिरिटी स्त्री० जुओ 'चिरंटी' चुप् १ प० धीमेथी- चूपकीथी चालवू Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चुबुक १७३ चैत्य चुबुक पुं० हडपची; दाढी चेटि, चेटिका, चेटी स्त्री० दासी चुर् १० उ० चोरवू; लई लेवं चेतक वि० चेतावनाएं (२)चेतनयुक्त चुरि(-री) स्त्री० चोरी चेतन वि० चेतनयुक्त; सजीव (२) चुलुक पुं० कोगळो (२) प्रवाही भरवा नजरे पडे के देखाई आवे तेवू (३) करेलो खोबो पुं० प्राणी; मनुष्य (४)जीव ; आत्मा चुल्लि (-ल्ली) स्त्री० चूलो चेतना स्त्री० चेतनपणु; चैतन्य (२) चुंचु वि० (समासने छेडे) विख्यात शूधबूध ; डहापण; समज (२) निष्णात चेतस् न० चेतना; शुद्धि; भान (२) चुंब १, १० उ० चुंबन कर, जीव;प्राण (३)बुद्धिशक्ति (४) चित्त; चुंबक पुं० चुंबनार (२) लोहचुंबक मन ; अंतःकरण चुंबन न० चूमवू ते चेतोजन्मन्, चेतोभव, चेतोभू पुं० कामचुंबित ('चुंब्नु भू० कृ०) चुंबेलु देव (२) प्रेम; प्रीति चुंबिन् वि० चुंबन करतुं (२) स्पर्शतुं चेद् अ० जो (वाक्यारंभे वपरातो नथी) चुचुक, चूचूक न० स्तननी दींटडी चेदिपति, चेदिराज् (-ज) पुं० चेदि चूडा स्त्री० चोटली (२) कलगी देशनो राजा-शिशुपाल (मोर इ० नी) (३) कलगी (शणगारनी) चेय वि० भेगुं करवा - वीणवा योग्य (४)शिखर; टोच (५)चूडो; चूडी (२) ढगलो करवा योग्य; गोठववा चूडाकर्मन् न०वाळ उतराववानो संस्कार -स्थापना योग्य चूडापाश पुं० वाळनी लट- गुच्छो चेल न० वस्त्र (२) (समासने अंते) चूडामणि पुं०, चूडारत्न न० माथे खराब - दुष्ट (उदा० 'भार्याचेल' पहेरातो मणि (२) (समासमां) ते खराब पत्नी) वर्गमां श्रेष्ठ - उत्तम चेलिका स्त्री० चोळी; 'बॉडिस' चराल वि० चूनायुक्त; शिखावालु चेष्ट् १ आ० हालवू; क्रिया करवी; चूत पु० आम्रवृक्ष; आंबो गति करवी; चेष्टा करवी (२) यत्न चूर्ण १० उ० चूरो करवो; खांडवू करवो (३) आचरb; वर्तवू चूर्ण पुं०, न० भूको (२)पुं० खडी; चूनो चेष्ट न० चेष्टा; चाळो चूर्णक पुं० एक वृक्ष (शीमळानी जातनुं) चेष्टा स्त्री० हालचाल; गति (२) चाळो; चूणि स्त्री० चूरो करवो ते; भूको (२) हावभाव (३)प्रयत्न (४)वर्तन; वर्तणूक भाष्य ; टीका चेष्टित न० आचरण; वर्तन (२) चूर्णित वि० चूरो करायेलं हालचाल ; चाळो; चेष्टा चूर्णी स्त्री० जुओ 'चूणि' चैतन्य न० चेतना; चेतनपणुं(२) समज; चूल पुं० केश ज्ञान (३)आत्मा (४) परमात्मा चूला स्त्री० कलगी चत्त वि० चितने लगतुं; मानसिक चूलिका स्त्री० कूकडाना माथानी कलगी चैत्य वि० चिताने लगतुं (२) पुं० (२) नाटकमां बनवानी बाबतोनी जीवात्मा (३) न० कीडीनो राफडो नेपथ्यमांथी सूचना (४) (बुद्धना अवशेष उपर बांधेल) चूष १ प० चूसवू; पीवं स्तूप (५)स्मरणस्तंभ ; पाळियो (६) चूष्य न० चूसवानो भोज्य पदार्थ देवालय(७) यज्ञमंडप (८) पूजाने स्थाने चेट, चेटक पुं० नोकर; सेवक ; गुलाम ऊगेलुं पीपळानुं के बीजं कोई वृक्ष Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यपाल १७४ छदिस् चैत्यपाल पुं० चैत्यनो रखेवाळ चोल पुं०, चोली स्त्री० चोळी; कबजो चैत्यमुख पुं० यतिनुं कमंडलु (२) पग सुधी पहोंचे तेवू वस्त्र चैत्यवृक्ष पुं० पूजाने स्थाने ऊगेलो पीपळो चोष्य वि० चूसवा योग्य (२) न० चैत्र पुं० ते नामनो मास __ चूसवानो पदार्थ चैत्ररथ न० कुबेरनु उपवन चौक्ष वि० जुओ 'चोक्ष' चैत्रसख पुं० कामदेव चौर पुं० जओ 'चोर' राखq ते चैद्य पुं० चेदिराज ; शिशुपाळ चौर्य न० चोरी; लूट (२)गुप्तता; गुप्त चैल न० वस्त्र; कपडु चौल न० चूडाकर्म चोक्ष वि० शुद्ध; स्वच्छ (२) प्रमाणिक च्यवन न० च्युत थवं ते (३) सुंदर; देखावडु (४) कुशळ च्यादन वि० च्युत करना; (२) न चोच न० तज (२)छाल (३) चामडु काही मूक ते; पदच्युत करवु ते । चोदना स्त्री० प्रेरवं-मोकल-धकेल :- च्यु १ आ० नीचे पडी जवू; च्युत थर्बु हांक, ते (२)विधि; आज्ञा (२)वहार नीकळवं-झरवु-टाकवू चोदित ('चुद्'- भू०कृ०)वि० प्रेरेलं; (नळवं; खसी जवू;च्युत थर्बु (४) मोकलेलं; आज्ञा करेलुं (२) दलील लर थ; अदृश्य थर्बु तरीके रजू करेलु च्युत् १५० टपकवू; झर (२) सरी चोद्य वि० प्रेरवा योग्य : मोकलवा योग्य पडg; नीकळी पडवू (२) उल्लेखवा योग्य (३) न० प्रश्न च्युत ('च्यु' भू० कृ) वि० पडी गोमु; शंका (४) आश्चर्य च्यवेलुं (२) नष्ट (३) भट (४) चोर पु० चोरी करनार, चोरी जनार खोवायेखें चोरिका स्त्री० चोरी; लूट च्युति स्त्री० च्यवq ने रात थर्बु ते (२) चोरिकाविवाह पुं० गुप्त लग्न झरतुं ते; टपकचं ते (३) अदृश्य थQ चोरित वि० चोरेलु (२) न० चोरी ते; नाश (४) -विनाना थर्बु ते छग. छगल पुं० बकरो छटा स्त्री० समुदाय;पंक्ति; परंपरा (२) तेजपुंज; तेजनो चमकार [छत्तर छत्र पुं० बिलाडीनो टोप (२) न० छत्री; छत्रघर, छत्रधार पुं० छत्र धारण करनार छत्रपति पुं० सम्राट ; चक्रवर्ती राजा छत्रिका स्त्री० नानुं छत्र (२) बिलाडीनो टोप [(२) पुं० हजाम छत्रिन वि० छत्रवाळू छत्र धारण करनारं छत्वर पुं० घर (२) लतामंडप छद् १, १० उ० ढांकवु (२)ओढवू (३) संताडवू छव पुं०, छदन न० ढांकण ; आच्छादन (२) पांख (३) पांदडु (४) म्यान छदि स्त्री०, छदिस् न० छापरुं के छाज छान् न० वेष ; स्वांग (२)बहानुं (३) कपट; युक्ति (४) घरनुं छापरुं छारूपेण अ० वेश धरीने ; छूपे वेशे छपिन् वि० कपटी; ढोंगी (२) (समासने __ अंते)-नो वेश लेनाएं छन्न ('छद्'- भू० कृ०)वि० ढंकायेखें; __ ढांकेलं (२) छुपावेल (३) खानगी छर्द पुं०, छर्दन न०,छर्दि,छर्दिका,छर्दिस् स्त्री० ऊलटी Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छेतु १७५ छल पुं०, न० छळ ; कपट ; (२)बहानुं; छायातर, छायाद्रुम पुं० गाढ छायावाळू मिष (३) शठता; लुच्चाई झाड (२) 'नमेरु' वृक्ष छलन न०, छलना स्त्री० छळकपट छायाद्वितीय वि० एकल (पोतानी छाया छलिक न० गीत-अभिनय साथेनुं गीत ज साथमा छे एवं) छलित वि० छेतरायेलं; ठगायेलं छायापथ पुंआकाशगंगा छल्लि (-ल्ली) स्त्री० छाब छांदस वि. वैदिक (२)वेद भगेलं (३) छवि स्त्री० चामडीनो वर्ण; रंग (२) छंद संबंधी (४)पुं० वेद भणेलो ब्राह्मण शोभा; कांति (५) वेद छंद् १० उ० खुश - संतुष्ट करवू (२) छिक्का स्त्री० छींक समजाव - पटावQ (३) ढांकवू (४) छिद् ७ उ० कापवूछेदQ; फाडवू; चीर -मां राचवं स्वच्छंद; मनस्वीपणुं (२) खलेल करवी; हरकत करवी छंद पुं० इच्छा; स्वेच्छा; रुचि (२) (निद्रादिमां) (३) दूर करवू छंदस् न० इच्छा; स्वेच्छा; रुचि (२) छिन् वि० (समासने छेडे) कापनाएं स्वच्छंद; मनस्वीपणुं (३.) वेद (४) छेदनाएं; नाश करना वृत्त ; छंद (५)एक वेदांग; छंदशास्त्र छिदा स्त्री० कापवू ते; छेदन छंदानुवृत्त न०, छंदानुवृत्ति स्त्री० छिदुर वि० जलदी भागे तेवू; बरड (२) बीजाना छंदने अनुसरयूँ - अनुकूळ कापतुं; छेदतुं; भाग पाडतुं (३)छिन्न; थर्बु ते संतुष्ट थयेलं-करेलं भागेल; तूटेलु [(३) दोष;भूल;खामी छंदित ('छंद्'- भू० कृ०) वि० खुश; छिद्र वि० छिद्रवाळ (२)न० काणुं छेद छाग पुं० बकरो छिद्रदर्शन,छिद्रदशिन वि० छिद्र जोनाएं; छागमुख पुं० कार्तिकेय दोषद्रष्टा छागरथ पुं० अग्निदेव छिद्रानुजीविन,छिद्रान्वेषिन् वि० बीजाछागल पुं० बकरो नां छिद्र शोधनाएं; निंदाखोर छागवाहन पुं० जुओ 'छागरथ' छिद्रित वि० छिद्रवाळू; काणावार्छ छात ('छो'नुं भू० कृ०) वि० छिन्न छिन्न ('छिद्नु भू० कृ०) वि० कापेलुं; (२) दुर्बळ ; कृश __ छेदेलं; भांगेल तोडेलं दूर करेलू छात्र पुं० शिष्य; विद्यार्थी छिन्नभिन्न वि० कापीने जुएं करायेलं छात्रव्यंसक वि० जडसु शिष्य छिन्नमूल वि० मूळमाथी कापी नाखेलं छाद पुं० छापरुं; छाज छिन्नसंशय वि० संशय नाश पामेलं छादन न० ढांकण (२) न० छुपावq ते छुर् १५० कापq (२) कोतरवु (३) छादित ('छद्'- भू० कृ०) वि० ढांकेलं ६५० खरडवू; लेप करवो (२) छुपावेलु -प्रेरक० खरडवू छाया स्त्री० छायो; छांयडो (तत्पुरुष छुरण न० लेपq ते; खरडवं ते समासने अंते 'गाढ छाया' अर्थमां छुरित न० काप; कापो 'छायम्' थाय छे) (२) प्रतिबिंब (३) छुरी, छूरिका, छूरी स्त्री० छरी; चप्पु कांति; तेज (४) सौंदर्य ; शोभा (५) छक वि० पाळेलु (पशु) (२) शहेरनी वर्ण; रंग (६) सादृश्य (७) भ्रमः चतुराई के दुर्गुणवाळं भास (८)प्राकृतनुं संस्कृत रूपांतर छेतृ वि० कापनाएं (२) दूर करनारं Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जघन्य १७६ छेद पुं० कापq - छेदq ते (२) भाग; चीरवू ते; भाग पाडवा ते (५) भाग; हिस्सो (३) खंड ; टुकडो (४)दूर करवू टुकडो; खंड (६) दूर करवू ते ; नाश ते; अंत ; नाश (५)न होवू ते - न रहे, करवो ते [करनारुं इ० छेदिन वि० कापनारु:तोडनाएं:चीरनारुं छेदक वि० कापनारुं; भाग -- खंड छेद्य वि० छेदवा - कापवा योग्य ; कापी छेदन वि० कापनाएं; छेदनाएं (२) - छेदी शकाय तेवं नाश करनारं (३) टुकडा करनारं; छो ४ प० [छचति कापवू; कापी नाखवू फाडनारु (४)न० काप - छेदq ते ; छोटिका स्त्री० चपटी; चपटी वगाडवी ते ज वि० (समासने छेडे) जन्मेलं; उत्पन्न थयेलु;-थी पेदा थयेलं;-मांथी बनेलं जश् २ प० [जक्षिति] खावू ; खाई जर्बु जगच्चक्षुस् पुं० सूर्य जगच्चित्र न० जगतनी अद्भुत वस्तु (२) जगतरूपी आश्चर्य [जगदंबा - दुर्गा जगज्जननी स्त्री० जगतनी माताजगत् वि० गतिमान; जंगम (२) न० दुनिया; विश्व (३)शरीर ; देह जगती स्त्री० पृथ्वी (२) लोको (३) विश्व (४) एक छंद जगती न० द्वि० व० स्वर्ग अने पाताळ जगतीधर पुं० पर्वत जगतीपति पुं० राजा जगतीरुह, पुं० वृक्ष जगतीश्वर पुं० राजा जगत्कर्तृ पुं० जगत्कर्ता परमेश्वर (२) ब्रह्मा [अने पाताळ जगत्त्रय न० स्वर्ग, मृत्युलोक (पृथ्वी) जगत्पति पुं० जुओ 'जगदीश' जगत्यधीश्वर पुं० राजा जगत्सेतु पुं० परमात्मा जगत्स्रष्ट्र पुं० जगतनो सरजनहार (२) ब्रह्मा (३) शिव जगदंबा, जगदंबिका स्त्री० दुर्गा जगदात्मन् पुं० परमात्मा । जगदाधार पुं० काळ (२) वायु जगदायु पुं० पवन जगदीप पुं० सूर्य जगदीश पुं० जगतनो स्वामी (विष्णु; शिव) शिव (४)नारद (५)ब्रह्मा जगद्गुरु पुं० परमात्मा (२) विष्णु (३) जगद्योनि पुं० परमात्मा (२) विष्णु; शिव ; ब्रह्मा (३) स्त्री० पृथ्वी जगद्वंद्य पुं० श्रीकृष्ण जगन्नाथ पु० जगतनो नाथ - स्वामी (२) विष्णु ; दत्तात्रेय (३) जगन्नाथनी मूर्ति (पुरीमा आवेली) (४) (द्वि०व०) विष्णु अने शिव [-ईश्बर; विष्णु जगनिवास पुं० जगतमा व्यापी रहेनार जगन्मात स्त्री० दुर्गा (२) लक्ष्मी जग्ध ('अद्' तथा 'ज'न भू० कृ०) वि० खाधल जग्धि स्त्री० भोजन; भक्षण जघन न० केड; कमर; कूलो (२) लश्करनो पाछलो - अनामत भाग जघनगौरव न० (मोटा) कुलानो भार जघनचपला स्त्री० व्यभिचारिणी (२) नृत्यमां चपळ स्त्री जघन्य वि० हलकुं; निंद्य (२) अंतिम छेल्लु (३) हलका कुळ के पदवाळू (४) पुं० शूद्र; अंत्यज Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जघन्यज १७७ जनित्री जघन्यज पुं० नानो भाई (२) शूद्र जनक वि० उत्पन्न करनारु (२) पुं० जटा स्त्री० बावाओ माथे राखे छे ते के पिता (३) विदेह - मिथिलाना राजा तेवू केशनुं झूड (२) वडवाई जेवू मूळ -सीताना पिता जटाजूट पुं० जटानो जूडो । जनकतनया, जनकनंदिनी, जनकसुता, जटाधर वि० जटा धारण करनारु (२) जनकात्मजा स्त्री० जनकपुत्री सीता पुं० शंकर (३) तपस्वी जनचक्षुस् न० सूर्य जटामंडल न० जटानो जूडो जनता स्त्री० जन्म (२) जनसमाज जटामौलि पुं० जटानो मुगट जनन वि० उत्पादक (२) न० जन्म; जटाल वि० जटावाळु; जटाधारी (२) उत्पत्ति (३) उत्पन्न करवू ते जटानी पेठे गूंथायेखें जननी स्त्री० माता जटि स्त्री० जटा (२)वड (३) समूह जनपद पुं० जाति ; प्रजा (२) देश; जटिन् पुं० शंकर (२) पीपळो प्रदेश; राज्य (३) (पुर - नगरथी जटिल वि० जटाधारी; जटावाळं (२) ऊलटुं) गामडानो भाग; देश अटपटुं; गूंचवायेलु (३)पुं० शिव (४) जनप्रवाद पुं० अफवा; लोकोक्ति जनयितृ वि० उत्पन्न करनारुं (२) पुं० जटी स्त्री० जुओ 'जटि' पिता (३) ब्रह्मा जठर वि० कठण (२) घरडु; वृद्ध (३) जनयिष्णु पुं० उत्पन्न करनार बांधेलं (४) पुं०, न० पेट; उदर (५) जनलोक पु० सात लोकमांनो पांचमो गर्भाशय (६) बखोल ; अंदरनो भाग जनवाद पुं०, जनश्रुति स्त्री० अफवा; जठराग्नि पुं० खाधेलं पचावनारो लोकोक्ति (२) आळ ; कलंक जठरनो अग्नि - जठरनी शक्ति जनसंबाध वि० लोकोनी भीडवाळं। जड वि० ठंडु; अकडाई गयेलं (२) जनस्थान न० दंडकारण्यनो एक भाग निश्चल ; स्तब्ध (३) मूर्ख; ठोठ जनंगम पुं० चांडाल । जडता स्त्री०, जडत्व न० आळस ; काम जना स्त्री० जन्म ; उत्पत्ति तिवं करवानो अणगमो (२) मूर्खपणुं; जनाकीर्ण वि० लोको टोळे वळ्या होय बेवकूफाई (३) मूर्छा; बेभानपणु जनातिग वि० असामान्य'; अलौकिक जडिमन् पुं० जडता; ठंडापणुं (२) जनाधिप पुं० राजा मूर्खता; बेवकूफाई (३) मूर्छा जनार्णव पुं० मोटो जनसमुदाय ; काफलो जडीकृ ८ उ० जड, हिलचाल विनानुं जनार्दन पुं० विष्णु ; कृष्ण के मूछित बनावी देवू जनांत पु० निर्जन स्थान (२) प्रदेश जतु न० लाख (२) अळतो (३) यम (४) संमुखता; सान्निध्य जतुगह न० लाख वगेरेनुं बनावेलुं घर जनांतिकम् अ० बीजा न सांभळे तेम; (पांडवोने सळगावी मूकवा) एक बाजुए (नाटकमां) जत्रु न० हांसडीनुं हाडकुं; हांसडी । जनि स्त्री० जन्म ; उत्पत्ति (२)माता जन् ४ आ० [जायते ] जन्म; उत्पन्न जनित वि० जन्मेल (२) जन्म आपेलं थएँ (२) ऊगg; फूटवू (३) बनवू (३) बनेलं; थयेलं जन पुं० प्राणी; मनुष्य ; व्यक्ति (स्त्री जनित पुं० पिता के पुरुष) (२) लोको; जनसमुदाय जनित्री स्त्री० माता Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जनी १७८ जरायु जनी स्त्री० जुओ 'जनि जपमाला स्त्री० जप करवानी माळा जनुस् न० उत्पत्ति; जन्म (२) जीवन जपा स्त्री० एक फूलछोड; तेनुं फूल जनौव पुं० लोकोनुं टोळं जप्य वि० जप करवा योग्य (२) पुं०, जन्मकील पुं० विष्णु न० जप; जपनो मंत्र जन्मकुंडली स्त्री० जन्मपत्रिका जभ् १ आ० बगासुं खावं जन्मतिथि पुं०, स्त्री०, जन्मदिन न०, जम् १ प० भोजन करवू ; जमवू जन्मदिवस पुं० जन्मनो दिवस जमदग्नि पुं० परशुरामना पिता जन्मन् न० जन्म ; उत्पत्ति (२) आयुष्य; जमन न० खावं ते जिंदगी (३) पिता; जन्म आपनार जय पुं० विजय ; जीत; फतेह (२) निग्रह जन्मपादप पुं० वंशवृक्ष ; वंशावळी (इंद्रियादिनो) (३) सूर्य (४) इंद्रनो जन्मभाज् पुं० जन्मेलं ते ; प्राणी पुत्र; जयंत (५) युधिष्ठिर (६) विष्णुनो जन्मभाषा स्त्री० स्वभाषा; मातृभाषा द्वारपाळ (७) अर्जुन (८) महाभारतजन्मभूमि स्त्री० स्वदेश; वतन नाम (९)जयजयकार (१०)वीररस जन्मभूत् पुं० जओ 'जन्मभाज्' जयकुंजर पुं० विजयी नीवडेलो हाथी जन्मसाफल्य न० जन्मनी सफळता; जयमंगल पुं० राजाने सवा माटेनो कृतकृत्यता उत्तम हाथी जन्महेतु पुं० जन्मनुं कारण जयलक्ष्मी स्त्री० विजयनी देवी जन्माष्टमी स्त्री० श्रीकृष्णनी जन्मतिथि जयलेख पुं० विजयनो दस्तावेज - श्रावण वद आठम जयशब्द पुं० जयजयकार; चारणो वडे जन्मांतर न० पुनर्जन्म ; बीजो जन्म (२) करातो 'जय' एवो पोकार परलोक जन्ममां करेलु जयश्री स्त्री० विजयनी देवी जन्मांतरीय वि० बीजा जन्मनु; बीजा जयस्तंभ पुं० विजय के जीतनी यादगीरी जन्मांध वि० जन्मथी आंधळं माटे ऊभो करेलो स्तंभ जन्मिन् पुं० प्राणी जयंत वि० विजयी (२)पुं० इंद्रनो पुत्र जन्य वि० उत्पन्न थयेलं; जन्मेलं (२) जया स्त्री० दुर्गा (समासने अंते) -वडे पेदा थयेलं; जयिन् वि० विजयी; फतेहमंद (२) -मांथी जन्मेलं (३) जाति, वंश के मनोहारी; चित्ताकर्षक कुटुंबD (४)पुं० वरनो संबंधी, मित्र के जय्य वि० जीतवा योग्य (२) जीती साथी (५) सामान्य माणस (६) न० शकाय एवं जन्म ; उत्पत्ति (७) जन्मेलुं ते (८)देह जरठ वि० वृद्ध; जीर्ण (२) कठण; (९) युद्ध; लडाई (१०)प्रजा; लोक कर्कश (३) विकसेल; परिपक्व जन्या स्त्री० मातानी सखी (२)कन्यानी जरत् वि० वृद्ध; जीर्ण; अशक्त सखी (३) हाट (४) लोक जरतिका, जरती स्त्री० वृद्ध स्त्री जप १५० जपवू; मनमा बोलवू; रटवू जरद्गव पुं० वृद्ध बळद (२) मंत्रनो जाप करवो जिपवी ते जरा स्त्री० वृद्धावस्था; घडपण जप पुं० मंत्र इत्यादिनुं रटण (२) माळा जराजीर्ण वि० वृद्धावस्थाथी अशक्त जपत् पुं० तपस्वी जरायु न० सापनी कांचळी (२) गर्भाशय जपन न० जप; जप करवो ते (३) गर्भने वोटीने रहेतुं पातळू पड Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जरायुज १७९ जवा जरायुज पुं० गर्भाशयमांथी उत्पन्न थतुं जलवाहक पुं० पाणी भरनारो प्राणी (मनुष्य, पशु वगेरे) जलाय, जलशयन, जलशायिन् पुं० जरित वि० वृद्ध; अशक्त विष्णु तळाव; जळाशय जर्जर, जर्जरित वि० वृद्ध (२) जीर्ण जलस्थान न०, जलस्थाय पुं० सरोवर; थयेलु (३) पीडित; त्रस्त; घायल जलाकर पुं० झरो जल वि० जड; बेवकूफ जलागम पुं० वर्षाऋतु जल न० पाणी जलात्यय पुं० शरद ऋतु जलकुक्कुट पुं० जळकूकडी जलाधिप पुं० जळनो देव - वरुण जलकेलि पुं०, स्त्री० पाणीमां के पाणी जलाई वि० भीनुं (२)न० भीनुं वस्त्र वडे रमवू ते अंजलि जलावर्त पुं० पाणी- वमळ - भमरो जलक्रिया स्त्री० पितृओने अपाती जलाशय वि० जळमां सूनाएं - आराम जरपीडा स्त्री० धुओ 'जलकेलि' करनारु (२) मूर्ख; बेवकूफ (३) पुं० जलचर, जलचारिन् पुं० जळचर प्राणी सरोवर; तळाव; समुद्र (४)माछलं जलज वि० पाणीमां जन्मेलं - उत्पन्न जलाश्रय पु० तटाव (२) पाणीमां बांधेलु थयेलु (२) पुं० जळचर प्राणी; माछलुं घर पितृओने अपाती जलांजलि (३) चंद्र (४)शेवाळ (५)पुं०,न० शंख जलांजलि पुं० पाणीनी अंजलि (२) जलजंतु पुं० माछलं वगेरे जळचर प्राणी जलका स्त्री० जळो जलजीविन पुं० माछीमार जलेश पुं० वरुण जलतरंग पुं० पाणी, मोजें जलेशय पुं० विष्णु जलद पुं० मेघ; वादळ जलेश्वर पुं० वरुण जलदागम पुं० वर्षाऋतु जलोका, जलौका स्त्री० जळो जलवर पुं० मेघ (२) समुद्र जल्प १५० बोलवू; वात करवी (२) जलधि पुं० समुद्र (२) एक संख्या बडबडवू; अस्पष्ट बोलवू (एकडा उपर पंदर मींडां जेटली) जल्प पुं० कथन; वातचीत (२) बकजलधिज पुं० चंद्र वाद (३)तत्त्वनिर्णयनी इच्छाथी नहि जलनिधि पुं० समुद्र पण परपक्ष-खंडन अने स्वपक्ष-मंडननी जलपटल न० मेघ; वादळ इच्छाए करेलो वाद (न्याय०) जलप्रदान न० पूर्वजोने जलांजलि जल्पक वि० बोल बोल करनारु (२) जलप्रपात पुं० धोध बकवाद करनारं जलमुच पुं० मेघ; वादळं जल्पन वि० बोलतुं (२) बकवाद करतुं जलयंत्र न० पाणीनो फुवारो (२) रेंट (३) न० कथन (४) बकवाद जलयंत्रमंदिर न० पाणीमां बांधेलं जल्पित वि० बोलेलं; कहेलु (२) न० अथवा फवारावाळं मकान ; ग्रीष्मगृह वातचीत (३) बकवाद जलयात्रा स्त्री० दरियाई मुसाफरी जव पुं० त्वरा; उतावळ; वेग जलयान न० नौका; वहाण जवन वि० वेगीलं; झडपी (२) न० जलराशि पुं० महासागर; समुद्र त्वरा; वेग जलरुह, (ह) न० कमळ जवनिका, जवनी स्त्री० पडदो; चक जलवाह पुं० मेघ (२)पाणी भरनारो जवा स्त्री० जुओ 'जपा' Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जविन् १८० जाति जविन् वि० झडपी; वेगील (३) औषधोपचार जहत् वि० तजतुं; छोडी दतुं जंभद्विष, जंभ दिन, जंभरिपु पुं० इंद्र जहत्स्वार्था, जहल्लक्षणा स्त्री० एक जंभा स्त्री० बगाएं जातनी लक्षणा,जेमां शब्दना वाच्या जंभारि पुं० इंद्र [जागता रहे ते र्थनो त्याग थतो होय छे (व्या०) जागर पुं०, जागरण न० जागवू ते; जह न पुं० एक प्राचीन राजा (तेणे जागरूक वि० जागतुं; सावध गंगाने पुत्री तरीके ग्रहण करी हती) जागुड पुं० जेनुं केसर वखणाय छे ते जह नुकन्या, जह नुतनया स्त्री० गंगा देश (२) न० केसर जंग पुं० युद्ध; लडाई जाग २ प० जागवू (२) सावध रहेवू जंगम वि० (स्थावरथी ऊलटुं) गतिशील; जाग्रत् वि० जागतु (२) सावध खसी शके तेवू (२) सजीव प्राणीओ जाघनी स्त्री० साथळ (२) पूछडी संबंधी (३) न० बीजे ठेकाणे लई जई जाजिन वि० योद्धो; लडवैयो शकाय तेवी वस्तु जाठर दि० जठरतुं; पेटन (२) पुं० जंगल वि० उज्जड ; वेरान ; निर्जन (२) पाचनशक्ति (३) छोकरो न० अरण्य ; वन; झाडी जाडय न० जडता; मूर्खपणुं जंघा स्त्री० जांघ; साथळ जात ('जन्'न भू० कृ०) वि० जन्मेल; जंघापथ पुं० रस्तानी बाजुए पगपाळा उत्पन्न थयेलं (२) पुं० छोकरो; बेटो चालवा माटेनो भाग; 'फूटपाथ' (३) प्राणी (४) न० जन्म; उत्पत्ति जंघाबल न० नासी जळू ते (५)वर्ग ; जाति ; समूह (६) बाळक। जंजपूक पुं० अतिशय जप करनारुं जातक वि० जन्मेलुं (२)पुं० नवं जन्मेलु जंत पं० प्राणी (२) जीवात्मा (३) लोक; बाळक (३) न० जन्मपत्री (४) जन्म जनता (४) तुच्छ कोटीप्राणी समये करवामां आवतो संस्कार जंतुमती स्त्री० पृथ्वी जातकर्मन् न० 'जातक' (संस्कार) जंपती पुं० द्वि० व० दंपती जातकौतूहल वि० तीव्र इच्छावाळं जंबाल पुं० कादव (२) लील जातप्रत्यय वि० विश्वारा उत्पन्न थयो जंबालिनी स्त्री० नदी होय तेवू जंबीर पुं० बिजोरानं झाड जातप्रेत वि० जन्मलं अने मरी गयेलं जंबु स्त्री० जांबुडानुं वृक्ष (२) जांबु जातमन्मथ वि० प्रेममां पडेलं जंबुक पुं० शियाळ (२)नीच मनुष्य । जातमात्र वि० तरतनुं जन्मेलु जंबुखंड, जंबुद्वीप पुं० मेरु पर्वतनी आजु- जातरूप वि० सुंदर; तेजस्वी (२) न० बाजु आवेला सात खंडोमांनो एक सोनुं (३) नग्नावस्था । (जेमां भारतवर्ष आवेलो छे) जातवासक न० जुओ 'जातवेश्मन्' जंभ १ आ० बगासु खाएं जातवेदस् पुं० अग्नि -प्रेरक० नाश करवो; दूर करवू जातवेश्मन् न० सुवावडीनो ओरडो जाता स्त्री० पुत्री; दीकरी जंभ पुं० जडq (ब०व०मां) (२) दांत जाति स्त्री० जन्म; उत्पत्ति (२) वर्ण के (३) भक्षण; चावq ते (४) इंद्रे मारेला न्यात तथा योनिना भेदसूचक वर्ग; एक राक्षस, नाम (५) बगासु समुदाय (३) वर्गनी जुदी जुदी व्यक्तिजंभ क वि० भक्षण करतुं; चावतुं ओमां रहेलो समान धर्म (४) सप्तकना (२) पु० दगाबाज माणस सात स्वरोमांनो दरेक (संगीत०) ___ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जातिक्षय जातिक्षय पुं० पुनर्जन्ममांथी मुक्ति जातिधर्म पुं० वर्णाश्रम धर्म; वर्णधर्म जातिमत् वि० उच्च कुळमां जन्मेलुं जातिमह पुं० जन्मदिवसनो उत्सव जातिमात्र न० मात्र जन्म (जाति) थी ज प्राप्त थयेली स्थिति ( कर्म थी नहीं ) जातिसंपन्न वि० उच्च कुळनुं जातिस्मर वि० पूर्वजन्मनी स्थिति याद करी शकनारुं १८१ जातिहीन वि० नीच जातिनुं; अधम जाती स्त्री० एक फूलनी वेल के तेनुं फूल ( मालती ) [समुदाय जातीय न० अमुक प्रकारनां वासणोनो जातु अ० कदी पण; जरा पण ( २ ) कदाचित् ; कदीक; संभव छे के जातुधान पुं० राक्षस जात्य वि० एक ज जातिनुं ; संबंधी (२) कुलीन (३) सुंदर, मनोहर जात्यंध वि० जन्मथी ज आंधळं जानकी स्त्री० जनकपुत्री - सीता जानपद पुं० गामडियो ( २ ) देश; गामडां बगेरे वाळो भाग (३) प्रजाजन जानि स्त्री० जाया; पत्नी ( बहुव्रीहि समासने छेडे 'जाया' ने बदले ) जानु न० ढींचण; घूंटण जाप पुं० जप मंत्र जपवो ते जापक वि० जप करनारुं ( २ ) जपने लगतुं; जपथी मळेलुं (पुत्र) जामदग्न्य पुं० परशुराम ( जमदग्निनो जामा स्त्री० पुत्री ( २ ) पुत्रवधू जामातृ पुं० जमाई जामि स्त्री० बहेन (२) पुत्री ( ३ ) पुत्रवधू ( ४ ) नजीकना सगपणवाळी स्त्री जामित्र न० लग्नथी सातमुं स्थान ( ज्यो० ) ( पोतानी पत्नीनी बाबतमां भावि सद्भाग्य सूचवे ) जामेय पुं० भाणेज जाया स्त्री० पत्नी; भार्या सं. ग- १२ जांबूनद जायापती पुं० द्वि० व० पतिपत्नी; दंपती जार पुं० परस्त्रीनो प्रेमी; यार जारज पुं० व्यभिचारथी जन्मेलो पुत्र जारण न० जीर्ण करवुं ते (२) जीर्ण करनार वस्तु के मंत्र प्रयोग जारिणी स्त्री० व्यभिचारी स्त्री जारूथ्य वि० प्रशंसापात्र ( २ ) जेमा दक्षिणादि खूब अपातां होय तेबुं जाल न० पंखी, माछलां वगेरे पकडवा माटेनी जाळ (२) करोळियानुं जाळु (३) जाळीवाळं बख्तर ( ४ ) भीतमांनु जाळियु; बारी (५) समूह; समुदाय (६) इंद्रजाळ (७) अणविकस्युं फूल जालक न० जुओ 'जाल' (२) वाळमां परवानुं एक घरेणुं जालकर्मन् न० माछीमारनो धंधो जालकारक पुं० करोळियो जालग्रथित वि० जाळाथी जोडायेलुं ( पंजानी आंगळीओ इ० ) जालपाद ( - द) पुं० जाळाथी जोडायेला गना पजावाळु प्राणी (जेमके, बतक) जालाक्ष पुं० नानुं जाळियुं; गवाक्ष जालिक पुं० माछीमार (२) शिकारी (३) ठग; शठ ( ४ ) करोळियो ( ५ ) प्रांतनो सूबो (६) मदारी; जादुगर जालिका स्त्री० जाळ (२) सांकळी वाळु बस्तर (३) जळो (४) लोढुं (५) करोळियो ( ६ ) विधवा स्त्री ( ७ ) जाळीदार बुरखो (८) समूह जाल्म वि० क्रूर; घातकी ( २ ) अविचारी (३) पुं० चोर; शठ (४) नीच - पामर माणस जाल्मक वि० नीच; हलकुं जाह्नवी स्त्री० गंगानदी जांगल वि० जंगली ( २ ) न० शिकार करी आणेलुं मांस जांबूनद वि० सोनानुं (२) न० सोनुं (३) सोनानुं घरेणुं Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ जीवन्मुक्ति जि १५० जीतवं;हरावq (२) चडियाता नियोधिन् वि० अप्रामाणिक रीते थएँ (३) जीतीने मेळवq (४) निग्रह लडनारुं (२) पुं० भीम करवो; संयममा राखवू जिमित वि. वांकु वळेलू - वाळेलं जिगीषा स्त्री० जीतवानी इच्छा (२) जिह्व पुं०, जिह्वा स्त्री० जीभ स्पर्धाहरीफाईमां ऊतरेलु जिह्वालौल्य न० जीभनी लोलुपता जिगीषु वि० जीतवानी इच्छावाळू (२) जीन वि० वृद्ध; जीर्ण (२) पुं० जिघत्सा स्त्री० खाचानी इच्छा; भूख चामडानी कोथळी जिघांसा स्त्री० मारी नाखवानो इरादो जीमूत पुं० मेघ ; वादळ जिघांसु वि० हणवानी इच्छा राखनालं जीर्ण ('ज'- भू० कृ०) वि० जूनू ; प्राचीन (२) पुं० शत्रु [इच्छा (२) घसाई गयेलं; फाटी गयेलं जिघृक्षा स्त्री० पकडवानी- लेवानी (३) पाचन थयेलं जिज्ञासा स्त्री० जाणवानी इच्छा जीर्णोद्धार पुं० जीर्ण थयेला मंदिर जिज्ञासु वि० जाणवानी इच्छावाळु वगेरेने फरी समरावq ते जित् वि० (समासने छेडे) जीतनाएं जीव १५० जीववं (२) सजीवन थर्बु जित ('जि'नुं भू० कृ०) वि० जितायेलं: (३)-ना वडे निर्वाह चलाववो । ताबे करेलु (२)जीतीने मेळवेलुं (३) जीव वि. जीवतुं; हयात (२)पुं० प्राण -थी वश थयेलं (४) न० विजय (३) जीवात्मा (४) जीवन ; आयुष्य जितकाशि पुं० दृढ मूठी - मुक्को (५) प्राणी (६) व्यवसाय; धंधो जितकाशिन् वि. विजय वडे शोभतं; जीवक वि० जीवतुं (२) -ना वडे विजयोन्मत्त जितश्रम वि० न थाके तेवू आजीविका चलावतुं (३)लांबो वखत जीवतुं (४)पुं० प्राणी (५)नोकर (६) जितात्मन्, जितेंद्रिय वि० जात उपर बौद्ध भिक्षु (७) गारुडी (८) व्याजे के इंद्रियो उपर विजय मेळवनाएं; नाणां धीरनार शाहुकार आत्मनिग्रही जित्वर वि० जीत मेळवनाएं; विजयी जीवजीवक पुं० चकोर पक्षी जिन वि० विजयी (२) पुं० बौद्ध के जीवत् वि० जीवतुं जैन संत (३) विष्णु जीवधानी स्त्री० पृथ्वी जीवन वि० सजीवन करनारुं (२) पुं० जिष्णु वि० विजयी (२) -ना करतां परमात्मा; परब्रह्म (३) न० जीवq ते चडियातुं (समासने छेडे) (३) पुं० (४)आयुष्य; जिंदगी(५) जीवन-शक्ति; सूर्य ; इंद्र ; विष्णु; अर्जुन प्राण (६) पाणी (७) आजीविकानुं जिहान वि० जतुं; -नी तरफ जतुं (२) साधन (८) सजीवन करवू ते मेळवतुं; पामतुं जीवनिकाय पुं० जीवधारी प्राणी जिह्म वि० वक्र; वांकु (२) कपटी;कुटिल; जीवनीय वि० निर्वाहोपयोगी (२) अप्रमाणिक (३) मंद; सुस्त (४) झांखं; __ जीववा योग्य (३) न० पाणी (४) अंधारियु(५) न० कपट; अप्रमाणिकता ताजं दूध [आजीविका जिह्मग वि० वांकुंकुं जनारु (२) धीमे जीवनोपाय पुं० निर्वाहनुं साधन; चालनारु (३) पुं० साप जीवन्मुक्त वि० छते देहे मुक्त थयेलं जिह्मगति वि० वांकुंकुं चालनारं जीवन्मुक्ति स्त्री० जीवन्मुक्त दशा Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवपुत्रा trayer स्त्री० जेनो पुत्र जीवतो होय तेवी स्त्री [प्राणीओ जीवलोक पुं० मृत्युलोक ( २ ) जीवतां जीवशेष वि० मात्र जीव ज बाकी रहे मनासी छूटे लुं [होय तेवी स्त्री जीवसू स्त्री० जेनां बधां बाळको जीवतां जीवंजीव पुं० चकोर पक्षी जीवा स्त्री० धनुष्यनी पणछ ( २ ) पृथ्वी (३) जीवन ( ४ ) आजीविका जीवातु पुं०, न० जीवन ; अस्तित्व (२) पुनर्जीवन आप - सजीवन करते जीवात्मन् पुं० जीवात्मा; जीव जीवांतक पुं० पारधी; शिकारी ( २ ) खूनी; वध करनार जीविका स्त्री० निर्वाह; निर्वाहसाधन (२) जीवन (३) पाणी जीवित ('जीव् ' नुं भू० कृ० ) वि० जीवतुं; हयात ( २ ) सजीवन करेलुं (३) न० जीवन (४) आयुष्य ( ५ ) निर्वाह ; आजीविका साधन जीवितज्ञा स्त्री० रक्तवाहिनी; नाडी जीवितनाथ पुं० पति जीवितव्य जीववा - जीवाडवा योग्य (२) न० आयुष्य; जीवन ( ३ ) जीववानी के जीवता थवानी आशा जीवितसंशय पुं० प्राणसंकट; जीवनुं जोखम ( २ ) जीववानी अनिश्चितता जीविताशा स्त्री० जीववानी आशा जीवितेश पुं० पति प्रेमी ( २ ) यमराज जीविन् पुं० ( घणुंखरु समासने अंते ) जीवतुं ( २ ) - ना वडे जीवतुं (उदा० 'शस्त्रजीविन्) (३) पुं० जीवतुं प्राणी जीवोत्सर्ग पुं० प्राणत्याग करवो ते; जीव आपवो ते 1 जुगुप्सन न०, जुगुप्सा स्त्री० आरोप; निंदा गाळ; ठपको (२) अणगमो; तिरस्कार बुब् ६ आ० संतुष्ट थवु; प्रसन्न थवुं ( २ ) १८३ जंह म्य अनुकूळ थवं (३) गमबुं; भोगववु; माणवुं (४) सेववुं (५) रहेवुं; वारंवार जवुं (६) १५०, १० उ० विचारखुं; तर्क करवो (७) तपासवुं ( ८ ) तृप्त थवुं जुष वि० (समासने अंते ) आनंद पामतु; रस लेतुं (२) पासे जतुं ; सेवतुं ( ३ ) पामतुं; पहोंचतुं जुष्ट ( ' जुष्' नुं भू० कृ० ) वि० संतुष्ट; प्रसन्न ( २ ) सेवेलुं ( ३ ) युक्त (४) प्रिय; अनुकूळ ( ५ ) प्रशंसायेलुं जूट पुं० जटा; केशसमूह जंभ १ आ० बगासुं खावुं ( २ ) विकसवुं; खील; फूलवं ( ३ ) विस्तरवु; फेलावु (४) प्रगट थवं; देखावुं जृंभ पुं०, न० बगासुं खावुं ते (२) खील ते ; विकस ते जृंभकास्त्र न० ऊंघमां नाखनार अस्त्र जृंभण न० बगासु खानुं ते (२) (आळस खावा) अवयवो लांबा करवा ते (३) खील ते (४) घेनमां नाखी देवं ते (५) जृम्भकास्त्र जंभा स्त्री० जुओ 'जृम्भ' jfभका स्त्री० बगासुं भित ( 'जंभू' नुं भू० कृ० ) वि० बगासुं खालुं (२) खीलेलं; विकसेलुं ( (३) पणछ उतारी नाखेलुं (४) न० बगासुं (५) खीलबुं - विकसवुं ते १० [ जरति ], ४ प० [ जीर्यति ], ९० [ नृणाति ], १० उ० [जारयति - ते ] जीर्ण थवुं; वृद्ध थवु; करमावु (२) नाश पावुं ( ३ ) पची जवुं जेतृ वि० विजयी; जीतनारुं ( २ ) पुं० विजेता जेमन न० जमवुं ते [न० विजय जैत्र वि० विजयी ( २ ) पुं० विजेता ( ३ ) जैन वि० जैन मतनुं अनुयायी जैवातृक वि० दीर्घायुषी ( २ ) पुं० चंद्र जैहम्य न० कुटिलता; वक्रता Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानवं जोटिंग १८४ ज्योत्स्ना जोटिंग पुं० शिव (२) उग्र तपस्वी ज्ञानेंद्रिय न० ज्ञान ग्रहण करनार इंद्रिय जोष पुं० संतोष; तृप्ति सुखे; निरांते (त्वच्, रसना, चक्षुस्, कर्ण ने घ्राण) जोषम् अ० चूपकीथी; छानामाना (२) ज्ञापक वि० जणावनाएं; कहेनालं; रजू ज्ञ वि० जाणनाएं; परिचित (समासने करनारुं (२) पुं० गुरु ; शिक्षक (३) अंते) (२) डाहयुं (३) पुं० विद्वान राजदरबारनो एक अधिकारी (जे (४) जीवात्मा स्तुति आवेदनपत्र रजू करे छे) ज्ञप्ति स्त्री० जाणवू ते (२) बुद्धि (३) ज्ञेय वि० जाणवा के तपासवा योग्य ज्ञा ९ उ० [जानाति ; जानीते जाणवु; ज्या स्त्री० धनुष्यनी पणछ परिचित थq (२) शोधी काढq (३) ज्यानि स्त्री० जीर्णपणुं; वृद्वता (२) समजवू; अनुभवq (४) कसोटी करवी; तजq ते (३) हानि । परीक्षा थवी (५) ओळखq (६) गणवू; ज्यायस वि० वधारे मोटं के चडियातुं ज्यायिष्ठ वि० उत्तम; श्रेष्ठ -प्रेरक० [ज्ञापयति, ज्ञपयति] ज्येष्ठ वि० सौथी मोटुं (उमरमां) (२) जणाव; जाहेर करवू सौथी उत्तम ; श्रेष्ठ (३) पुं० मोटो ज्ञात ('ज्ञा'- भू० कृ०) वि० जाणेलं; भाई (४) जेठ मास समजेलु (२) न० ज्ञान ज्येष्ठा स्त्री० मोटी बहेन (२) वचली ज्ञाति पुं० पिता(२)पितातरफनो संबंधी; आंगळी (३) गंगा नदो (४) अढारमुं पित्राई;ते आखो वर्ग (३) सगुं माणस । नक्षत्र ज्ञातिभाव पुं० सगाई; सगापणुं ज्योतिर्मय वि० ताराओन बनेलं जातिभेद पुं० सगांमां कुसंप ज्योतिविद् पुं० ज्योतिषी; जोषी ज्ञातृ वि० जाणनारुं; डाहयु; विद्वान ज्योतिविद्या स्त्री० ज्योतिषशास्त्र (२) ज्ञान न० जाणवू ते; समजवू ते (२) खगोळशास्त्र विद्या (३) ब्रह्मज्ञान (४) खबर; ज्योतिश्चक्र न० राशिचक्र माहिती (५) भान; प्रतीति (६) ज्योतिष पुं० ज्योतिषी; जोपी (२) बद्धिशक्ति (७) अभिप्राय; मत न० ज्योतिर्विद्या ज्ञानकृत वि० जाणी ब्रूजीने करेलु ज्योतिषिक पुं० जोषी ज्ञानचक्षुस् न० ज्ञानरूपी आंख ज्योतिषी स्त्री० तारो ज्ञानतस् अ० जाणी जोईने; इरादापूर्वक ज्योतिष्क पुं० ग्रह, नक्षत्र, सूर्य इ० ज्ञानद पुं० गुरु; आचार्य आकाशना तेजस्वी पदार्थमांनो दरेक ज्ञानदा स्त्री० सरस्वती ज्योतिष्मत् वि० तेजस्वी; प्रकाशित ज्ञानमय वि० ज्ञानरूप ; ज्ञाननुं बनेलं (२) तारा, ग्रह वगेरेथी युक्त ज्ञानयोग पुं० मोक्ष माटे ज्ञान-चिंतन ज्योतिष्मती स्त्री० रात्रि रूपी साधनमार्ग ज्योतिस् न० प्रकाश ; तेज (२) वीजळी ज्ञानवृद्ध वि० ज्ञानमां आगळ वधेलं; (३) ग्रह, नक्षत्र वगेरे तेजस्वी पदार्थ ज्ञानमां मोटुं- श्रेष्ठ (४) ज्योतिषशास्त्र (५) सूर्य अने ज्ञानित्व न० भविष्य भाखवू ते चन्द्र (द्वि० व०मां) ज्ञानिन् वि० ज्ञानी; डाह्यं (२) पुं० ज्योतिःशास्त्र न० जुओ 'ज्योतिर्विद्या' भविष्य भाखनार; ज्योतिषी (३) ज्योत्स्ना स्त्री० चांदनी; चंद्रप्रकाश आत्मज्ञानी (२) चंद्रप्रकाशवाळी रात Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८५ ज्योत्स्नी ज्योत्स्नी स्त्री० चंद्रप्रकाशवाळी रात ज्वर १५० ताव आववो; बीमार थर्बु (२) आवेशथी तप, ज्वर पुं० ताव ज्वरित वि० ताव वडे बीमार थयेलं ज्वल १५० सळगq; बळवू; प्रकाश (२) सळगी जq; बळी जq (३) बळतरा थवी झिल्ली ज्वलन पुं० अग्नि (२) न० बळवू - सळगq ते । ज्वलित ( 'ज्वल'नुं भू० कृ०) वि. __ सळगेलं; सळगतुं (२) प्रकाशित । ज्वाल वि० बळतुं; सळगतुं (२) पुं० ज्वाळा; प्रकाश ज्वाला स्त्री० ज्वाळा; प्रकाश ज्वालामुखी स्त्री० ज्वाळामुखी पर्वत झगति, झगिति, झटिति अ० एकदम ; जलदी; झट झणझण न०, झणझणा स्त्री०, झणत्कार पुं० रणकार; खणखण अवाज झर पुं०, झरा (-री)स्त्री० झरो; झरणं झर्झर पुं० झांझ (वाद्य) (२) कांसीजोड (३) डाखलं (४) नेतरनी सोटी (५) कळियुग अझरिन् पुं० शिव सहरी स्त्री० झांझ (वाद्य) मला स्त्री० छोकरी; पुत्री (२)पतंगियु (३) तडको; प्रकाश अलि स्त्री० सोपारी कांसीजोड सल्लक न०, झल्लकी स्त्री० झांझ (२) सल्लरी स्त्री० झांझ (२) डाखलं सल्लो स्त्री० डाखलं अष पुं० माछलु (२) मोटो मत्स्य सषकेतन, सषकेतु पुं० कामदेव; मदन झषांक पुं० कामदेव ; मदन झषोदरी स्त्री० व्यासमुनिनी माता - सत्यवती झंकार पुं० गुंजारव; गणगणाट झंकारिणी स्त्री० गंगा झंकृत न० जुओ 'झंकार' झंकृति स्त्री० धातुनां घरेणांना जेवो खणखणाट झंझा स्त्री० झंझावात ; वावाझोडु (२) धातुनो रणकार; खणखणाट झंझानिल, झंझामरुत्, झंझावात पुं० वरसाद साथेनो वंटोळ । संप पुं०, संपा स्त्री० कूदको झांकारिन् वि० कर्कश अवाज पेदा करतुं सांकृत न० झांझरनो झणकार (२) झरणानो अवाज झिल्ली स्त्री० तमरु (२) झांझ (वाद्य) (३) दिवेट (४) सूर्यप्रकाश [ज तालुस्थानीय अनुनासिक; आ व्यंजनथी शरू थतो शब्द नथी।] Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ टंक १० उ० टांको मारवो; सीवq; जोडवू (२) टांकवृं; कोतरवू टंक पुं०, न० कुहाडी; छीणी (२) तरवार (३) तरवारनं म्यान (४) टोच; शिखर (५)न० चलणी सिक्को । टंकण न० टंकणखार टंकशाला स्त्री०टंकशाळ टंकार पुं० धनुष्यनो टंकारव (२)बूम; पोकार; चीस टंकिका स्त्री० कुहाडी टंकृत न० टंकार टंग पुं० टांग ; पग (२)पावडो; कोदाळी टंगा स्त्री० टांग; पग टिट्टिभ पुं० टिटोडो (एक पक्षी) टिटिभी स्त्री० टिटोडी टिप्पणी (-नी) स्त्री० ट्रंकी नोंध; टीप टीक १ आ० जq; पहोंचवं; रहे। टीका स्त्री० समजूती आपवा करेलु विवरण ठक्कुर पुं० मूर्ति ; प्रतिमा; देवता(२) संमान दर्शाववा प्रतिष्ठित माणसना नामने लगाडातो शब्द ठिठा स्त्री० जुगारनो अड्डो डमर पुं० हुल्लड; धांधळ डमरु पुं० एक वाद्य; डाखलुं डयन न० ऊडवू ते (२)पालखी; डोळी डंबर वि० प्रसिद्ध;प्रख्यात(२)० समूह; समुदाय (३) सादृश्य ; सरखापणुं (४) आडंबर; देखाव (५)मोटो अवाज उंबरनामन् वि. आडंबरी नामवाळं डाकिनी स्त्री० डाकण; स्त्रीपिशाच डात्कृति स्त्री० जुओ 'डांकृति' डामर वि० भयंकर (२) सदृश; अनुरूप (सुंदर) (३) पुं० हुल्लडनो अथवा उत्सवनो घोंघाट ; धांधळ डांकृति स्त्री० घंटानाद [भिखारी डिडिक पुं० चित्रविचित्र वेशवाळो डिडिम पुं० ढोल (दांडी पीटवानो) डिडिर, डिंडीर पुं० फीण डिंब पुं० हुल्लड; दंगो; तोफान (२) बाळक; बच्चु (३) दडो; गोळो (४) दडा जेवो गोळ फूल-गुच्छ (५) भयनो घोंघाट (६) शरीर; देह (७) घूमतो भमरडो डिभ पुं० छोकरो; बाळक (२) पशुनु बच्चु (३) फणगो; अंकुर डिभक पुं० नानुं बच्चु (२) बाळक डी १ आ० ऊडवू (२) जवं डीन ( 'डी'न भू० कृ.) वि० ऊडेलु (२) न० ऊडवं ते डुडुभ (-म) पुं० झेर विनानो साप डोम, डोंब पुं० एक हलकी मनाती जातिनो मनुष्य Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८७ ततस्ततः ढक्का स्त्री० मोटुं नगाएं। ढाल न० प्रहार - झाटको झीलवानुं चामडानुं एक साधन ढुंढन न० ढूंढवं ते ढुंढि पुं० गणपति ढोक १ आ० पासे जवं -प्रेरक० पासे लावq (२) रजू करवू; अर्पवू ढोकन न० अर्पq ते (२) बक्षिस ; लांच ढोल पुं० ढोल; नगारु [ण मूर्धस्थानीय अनुनासिक; आ व्यंजनथी शरू थतो शब्द नथी।] तक न० छाश तक्रसार न० माखण तम १, ५ प० छोलवू; चीर (२) घडवू (छोलीने) (३) घायल करवू । तक्षक पुं० सुथार के कठियारो (२) विश्वकर्मा (३) एक नाग । तक्षण न० कापq ते ; छोलवू ते तगर पुं० एक वनस्पति (२) न० तेनुं बनतुं सुगंधी चूर्ण तज्ज्ञ वि० --जाणनाएं; विद्वान (२) पुं० डाह्यो माणस; तत्त्वज्ञानी तट पुं., न० डोळाव; कराड (२) किनारा तटस्थ वि० नदीकिनारे आवेलुं (२) निष्पक्ष (३) बेदरकार; परायु; निष्क्रिय (४) पुं० मित्र के शत्रु नहि तेवो- निष्पक्ष माणस तटा स्त्री० जुओ 'तटी' तटाक पुं०, न० जुओ 'तडाग' तटाकिनी स्त्री० मोटुं तळाव तटाघात पुं० किनारा के भेखड सामे प्रहार करवो ते तटिनी स्त्री० नदी तटी स्त्री० भेखड; किनारो (२) ढोळाववाळी बाजु तड् १० उ० मार; प्रहार करवो (२) वगाडq (ढोल ; तंतुवाद्य इ०) तडाग पुं०, न० तळाव तडित् स्त्री० वीजळी तडित्वत् वि० वीजळी साथेनुं ; वीजळी वाळं (२) पुं० वादळ; मेघ तडिन्मय वि० वीजळी जेवू चमकतुं तडिल्लता स्त्री० फांटावाळी वीजळी तडिल्लेखा स्त्री० वीजळीनो लिसोटो तत ('तन्'- भ० कृ०) वि० पथरायेलं: विस्तृत (२) ढांकेलं ; पाथरेलु (३) खेंचेलं ; चडावेलु (धनुष्य) (४)न० तंतुवाद्य (५) पुं०, न० संतान ततस् अ० त्यांथी; तेमांथी (२) त्यां (३) त्यारथी; पछीथी (४) तेथी; ते कारणे (५) ते उपरांत ; तेना करतां वधारे (६) तो; तो पछी ततस्ततः अ० अहीं तहीं (२) पछी national Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ततस्त्य १८८ आगळ चालो; आगळ शुं? (वात- तत्पूर्वम् अ० पहेली ज वार करतुं चीतमां) तत्प्रथम वि० पहेली ज वार ते काम ततस्त्य वि० त्यांनुं तत्प्रथमम् अ० पहेली ज वार ततःकथम् अ० पण, तो पछी शी रीते ? तत्र अ० त्यां; ते स्थळे (२)ते प्रसंगे; ततःकिम् अ० तेथी शं? तेथी शो ते बाबतमा ठिकाणे ठेकाणे लाभ ? (२) पछी शं? पछी तत्र तत्र अ० अहीं तहीं; दरेक स्थळे ; ततःक्षणम्, ततःक्षणात् अ० तरत ज तत्रत्य वि० ते स्थळy; त्यांनुं ततःपरम् अ० तदुपरांत तत्रभवत् वि० तेओश्री (गेरहाजर ततःप्रभृति अ० त्यारथी मांडीने व्यक्तिने माटेनुं मानवाचक संबोधन) ततामह पुं० पितामह तत्रभवती स्त्री० (गेरहाजर) स्त्रीने तति स० ना०, वि० तेटला (पहेली- __ माटे वपरातुं मानवाचक संबोधन बीजी विभक्ति ब० व० नुं रूप) तत्रस्थ वि० त्यांन; त्यां रहेलु तति स्त्री० हार; ओळ ; समुदाय तत्समनंतरम् अ० ते पछी तरत ज तत्काल पुं० ते समय (२) वर्तमान समय । तथा अ० तेम ; ते प्रमाणे ; आ प्रमाणे तत्कालम् अ० तरत ज ; ते पछी तरत ज (२) अने ; वळी; तेम ज (३) बराबर तत्क्षण पुं० वर्तमान समय (२)ए जसमय तेम ज; साचे; खरेखर तत्क्षणम्, तत्क्षणात् अ० तरत ज तथागत वि० तेवी स्थितिमां आवेलं; तत्त्व न० वस्तुस्थिति ; सत्य (२) साचं ते स्थिति पामेल (२) ते जातनं (३) स्वरूप (३) मूळ तत्त्व (४) ब्रह्म; पुं० गौतमबुद्ध (४)जिन ; केवळ ज्ञानो परमात्मा (५) शरीर तथा च अ० अने वळी (२)तेम ज (३) तत्त्वज्ञ वि० तत्त्वज्ञानी एवं कहेवामां आव्युं छे के। तत्त्वज्ञान न० यथार्थ ज्ञान (२) आत्म तथापि अ० तोपण ; तेम छतां ज्ञान; परम तत्त्व, ज्ञान तथाभाव पुं० ते दशा - स्थिति (२) तत्त्वतस् अ० वास्तविक रीते; यथार्थपणे सत्य स्वरूप पामेलं तत्त्वशिन्,तत्त्वदृश् वि० सत्य जाणनाएं तथाभूत वि० ते स्वरूप, (२)ते दशाने तत्त्वनिकषनावन् पुं० सत्य जाणवानी तथाविध वि० तेवं (२) ते प्रकारन कसोटी तथाविधम् अ० ते ज प्रमाणे ; तेमज तत्त्वन्यास पुं० विष्णुनी पूजामां मंत्रो- तथाविधान, तथावत वि० -ए विधि च्चारपूर्वक जुदां जुदां अंगोए जुदी के व्रतने अनुसरतुं जुदी मुद्राओ लगाववानी क्रिया तथाहि अ० दाखला तरीके (२)तेम ज तत्त्वविद् वि० जुओ 'तत्त्वज्ञ' तथैव अ० ते ज प्रमाणे तत्त्वशुद्धि स्त्री० यथार्थ ज्ञान- शोधन तथ्य वि० यथार्थ; साचुं; खरं (२) - निर्णय न० सत्य; वास्तविकता तत्त्वसंख्यान न० सांख्य सिद्धांत तद् स० ना०, वि० ते (पुं० प्रथमा तत्वार्थ पुं० सत्य; सत्य स्वरूप एकवचनमा ‘सः'; स्त्री० प्रथमा एक तत्पर वि० ते पछीनुं (२) अत्यंत वचनमा 'सा'; न०प्रथमा एक वचनमां उत्सुक ; तत्परायण ति पहेलांनु 'तत्') (२) ते - प्रसिद्ध (३)ते ज; तत्पूर्व वि० पहेली ज वार बनतुं (२) हतुं ते ज (४) बे वखत वपरातां Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८९ तन्मात्र 'अनेक' एवो अर्थ थाय (उदा० 'तेषु तनय पुं० पुत्र; वंशज तेषु स्थानेषु') (५)न० परब्रह्म (६) तनया स्त्री० पुत्री आ लोक; आ दुनिया तनिका स्त्री० बांधवा माटेनुं दोरडुं तद् अ० त्यां; ते स्थळे (२) तो; पछी तनिमन् पुं० कृशता; अल्पता ; सूक्ष्मता (३) त्यारे; ते समये (४) तेथी; ते तनु वि० कृश; क्षीण; दूब©; पातळ कारणथी (२) नाजुक (३) सूक्ष्म (४) क्षुल्लक; तदनंतरम् अ० त्यार पछी; तरत ज नजीबुं (५) छीछरु (६) स्त्री० देह; तदनु अ० पछीथी; त्यार बाद शरीर (७) मूर्ति (८) स्वरूप तदर्थ वि० जुओ तदर्थीय' तनुच्छद पुं० बख्तर तदर्थम् अ० तेथी करीने; ते कारणे; तनुज पुं० पुत्र (२) शरीर उपरनो वाळ ते माटे हितुवाळू तनुजा स्त्री० पुत्री तदर्थीय वि० ते माटेनें; ते ज अर्थ के तनुता स्त्री० कृशता; सूक्ष्मता; अल्पता तदर्ह वि० तेने योग्य ; तेने लायकनुं तनुत्यज् वि० शरीर छोडतुं (मरण तदवधि अ० त्यां सुधी काळे) (२) साहसी तदवस्थ वि० ए दशाने पामेलं; ए तनुत्याग वि० कंजूस (२) पुं० पोतानो स्थितिमां मुकायेलं जीव जोखममां नाखवो ते तदंत वि० ए-आ प्रमाणेना अंतवाळू तनुत्र, तनुत्राण न० बख्तर तदा अ० त्यारे; ते समये तनुधी वि० अल्प बुद्धिवाळू तदीय वि० तेनुं लगनीवाळू तनुप्रकाश वि० झांखा प्रकाशवाळू तदेकचित्त वि० तेमां ज चित्त के तनुभृत् पुं० प्राणी; मनुष्य तद्गत वि० ते तरफ वळेलं तेमां आसक्त तनुमध्य वि० पातळी-नाजुक कमरवाळू तद्देश्य पुं० एक ज देशनो - देशबंधु । तनुरुह, (-ह) न० वाळ (२) पीछे तद्धित वि० तेने माटे सारं - हितकर तनुलता स्त्री० नाजुक -पातळ शरीर (२) पुं० नाम, सर्वनाम, विशेषण के तनुवार न० बस्तर अव्ययने लागीने नवो शब्द बनावतो तनुस् न० देह; शरीर प्रत्यय (व्या०) तन स्त्री० शरीर (२) अवयव तद्भव वि० तेमांथी थ] - जन्मतं (२) तनकृ ८ उ० ओछु करवू; पातळु कर, संस्कृतमाथी उद्भवेल (शब्द) तनूज पुं० पुत्र (२)पीछु तप वि० ए ज स्वरूपy के गुणवाळं तनूजा स्त्री० जुओ 'तनुजा' तद्वत् अ० तेनी पेठे; ते प्रमाणे तनूताप पुं० देहकष्ट तद्विद् वि० ते जाणनारं (२) सत्य तनूद्भव पुं० जुओ 'तनूज' जाणनाएं तनूद्भवा स्त्री० जुओ 'तनुजा' तद्विध वि० ते प्रकार तनूनपात् पुं० अग्नि (२) न० घी तन् ८ उ० विस्तार; लंबावq; लांबु तनूरह न० शरीर उपरनो वाळ (२) कर (२) पाथर; फेलावQ (३) पांख ; पीछु (३) पुं० पुत्र (४) वाळ छाई देवू; भरी काढवू (४) उत्पन्न तन्मय वि० तल्लीन (२) तेनुं बनेलं करवं; अर्प (५) अनुष्ठान करवू (३) तेनारूप बनेलं (यज्ञ इ० ) (६) रचवु (पुस्तक इ०) तन्मात्र वि० मात्र ए ज; शुद्ध (२) (७) वाळवू (धनुष्य) न० मात्र ते ज; मात्र एटलं ज; बहु Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तन्वंग अल्प - तुच्छ (३) पंचमहाभूतनुं शुद्ध सूक्ष्म रूप तन्वंग वि. नाजुक अवयववाळं तन्वंगी स्त्री० नाजुक -संदर स्त्री तन्वी स्त्री० नाजुक -सुकुमार स्त्री तप् १, ४ प० प्रकाश ; तप (२) संताप पामवो; कष्ट वेठवू; तप करवु (३) तपावq; कष्ट आपq तप पुं० ताप; गरमी (२) सूर्य (३) ग्रीष्म ऋतु (४) तपश्चर्या तपती स्त्री० सूर्यनी पुत्री (संवरणनी पत्नी अने कुरुनी माता) तपन वि० तपतुं; प्रकाशतुं (२) पुं० सूर्य (३) न० संताप ; दुःख तपनतनय पुं० यम; कर्ण; सुग्रीव तपनद्युति वि० सूर्य जेवू तेजस्वी (२) स्त्री० सूर्यप्रकाश तपनसुता स्त्री० यमुना नदो तपनीय न० सोनुं (तपावीने शुद्ध करेलु) तपतु पुं० उनाळो करवू ते तपश्चरण न०, तपश्चर्या स्त्री० तप तपस् न० प्रकाश (२) दुःख ; ताप (३) तपश्चर्या (४) सप्तलोकमांनो छछो लोक (५) स्त्री० माघ महिनो तपस पुं० सूर्य (२) चंद्र (३) पक्षी तपस्य पुं० फागण महिनो (२) अर्जुन तपस्या स्त्री० तपश्चर्या तपस्विन् वि० तप करनारुं (२) बिचाएं; बापडं (३) पुं० तपस्वी तपस्विनी स्त्री० तप करती स्त्री (२) कंगाळ के दरिद्र स्त्री तपःसमाधि पुं० तपश्चर्या; तपश्चरण तपःसुत पुं० युधिष्ठिर तपात्यय, तपांत पुं० उनाळानो अंत - चोमासानी शरूआत तपोधन वि० तपरूपी धनवाळू; तप स्वी (२) पुं० तपस्वी तपोनिधि पुं० तपस्वी तमोगुण तपोबल न० तपनुं बळ [बनेलं तपोमय वि० तप आचरतुं (२) तपनुं तपोभूति पुं० तपस्वी (२) परमात्मा तपोराशि पुं० तपस्वी (२) विष्णु तपोवन न० तप करवाने अनुकूळ एवं उपवन; तपस्वीओवाळं पवित्र वन तपोवद्ध वि० अत्यंत तपस्वी तप्त ('तप्'- भू० कृ०) वि० तपेलं; ___ तपावेलु (२) दुःखी; संताप पामेलं (३) आचरेलु (तप) तम् ४५० [ताम्यति थाकी जq (२) इच्छ, (३) पीडावु (मन के शरीरथी); झूर (४) श्वास रूंधावो । तम एक तद्धित प्रत्यय ; नाम, अने विशेषणने लागतां 'सौथी श्रेष्ठ ' एवो अर्थ बतावे (उदा० सुहृत्तम') तमस न० अंधकार (२)मर्छा; निद्रा (३)अज्ञान (४) क्रोध; मोह; दुःख ; पाप; शोक (५) तमोगुण तमस पुं० अंधकार (२) कुवो तमस्कांड पुं०, न० भारे अंधकार तमस्तति स्त्री० अंधकारनो फेलाव तमस्विनी, तमा स्त्री० रात्री तमाम् क्रियापद अने अव्ययने 'सौथी सारी रीते'-ए अर्थमां लागतो तद्धित प्रत्यय (उदा० पचतितमाम्') तमाल पुं० काळी छालबाळं एक वृक्ष तमालपत्र न० तमालवृक्ष, पांदडु (२) तमालफळना रसथो करातुं तिलक तमि स्त्री० रात्री; अंधारी रात तमिस वि० अंधकारवाळं; काळं (२)न० अंधकार (३) क्रोध; मोह तमित्रपक्ष पुं० कृष्णपक्ष तमिशा स्त्री० रात्री; अंधारी रात्री तमी स्त्री० जुओ 'तमि' तमोगुण पुं० अज्ञान-अंधकार (प्रकृतिना सत्त्व, रजस्, तमस् -ए त्रण गुणोमांनो एक) (सांख्य०) Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समोनुद् १९१ तर्जना तमोनुद् (-द) पुं० सूर्य (२) चंद्र (३) तराम् क्रियापद अने अव्ययने लागतां __ अग्नि (४) दीप 'बेमांथी वधु सारी रोते'-ए अर्थमां तमोपह वि० अज्ञान - अंधकार दूर __ लागतो तद्धित प्रत्यय नौका करनारु (२) पुं० सूर्य (३) चंद्र तराल, तरांधु पुं० सपाट तळियावाळी तमोमय वि० अंधकारथी व्याप्त (२) तरि स्त्री० नौका; नाव अज्ञानमय तरिणी स्त्री०, तरित्र न०, तरित्री स्त्री० तमोरि पुं० सूर्य (२) चंद्र (३) अग्नि नौका; होडी तय १ आ० जq (२) रक्षण करवू तरी स्त्री० जुओ'तरि' । तय पुं० रक्षण (२) रक्षक तरीष पुं० होडी; मछवो (२) समुद्र (३) तर एक तद्धित प्रत्यय; विशेषण अने प्रवीण अथवा योग्य पुरुष (४) स्वर्ग नामने लागतां 'बेमां वधु सारं' एवो (५) काम ; धंधो (६) शोभा-शणगार अर्थ बतावे तर पुं० वृक्ष तर वि० ओळंगनाएं; पार करनारु तरुकोटर न० झाडनी बखोल (२) चडियातुं; जीतनारु (३) पुं० तरखंड पुं०, न० झाडनुं झुंड ओळंगवू - पार करवू ते (४) होडी; तरजीवन न० वृक्ष- मूळ तरापो (५) मार्ग (६) नूर; भाडु तरुण वि० जुवान (२) नवू; ताजु; तरक्ष (-क्ष) पुं० एक हिंसक जानवर; कुमळू (३) तरतमां ज ऊगेलुं (सूर्य तरस (२) वाघ इ०) (४) तरवराटवाळं; जीवतुं तरण न० ओळंगq ते [स्त्री० होडी (५) पुं० युवक ; जुवान माणस तरणि पुं० सूर्य (२)होडी; तरापो (३) तरुणिमन् पुं० किशोरावस्था; जुवानी तरणितनया स्त्री० यमुना नदी तरुणी स्त्री० युवती; जुवान स्त्री तरपण्य न० होडीनुं नर तरुतल न० झाडनां मूळ पासेनी जगा तरल वि० चपळ; चंचळ (२)अस्थिर; तरुमंडप पुं० झाडोनी घटा - मंडप क्षणिक (३) चमकतुं; प्रकाशित (४) तर्क १० उ० कल्पना करवी; अटकळ प्रवाही (५) पुं० कंठीनो मध्य-मणि करवी; अनुमान करवू (२)विचारणा तरलता स्त्री. चंचळता; चपळता; करवी (३) मानवं; धारदुं (४) इरादो अस्थिरता (२) चमक; तेज करवो (५) नक्की करवू; खातरी करवी तरवारि पुं० तरवार तरस् न० वेग (२) बळ ; पराक्रम तर्क पुं० कल्पना; अटकळ; अनुमान (२) विचारणा (३)न्यायशास्त्र (४) इरादो तरस न० मांस तरस्विन् वि० झडपी; वेगीलु (२) तर्कविद्या स्त्री०, तर्कशास्त्र न० न्यायबळवान; पराक्रमी शास्त्र; 'लॉजिक' तरंग पुं० मोजु (२) ग्रंथनो भाग; अध्याय तकित वि० तर्क करेलु; शंका करेलु (३) घोडा, ठेकडा भरतां चालवू ते (२) चर्चेलं; विचारलं तरंगिणी स्त्री० नदी तर्कु पुं०, स्त्री० रेंटियानी त्राक तरंगित वि० मोजांथी ऊछळतुं (२) तर्ख पुं० तरस; एक हिंसक प्राणी चंचळ (३)न० चकळ वकळ थर्बु ते तर्ज १५०, १० उ० धमकी आपवी(२) तरंड पुं०, न०, तरंडा, तरंडी स्त्री० ठपको आपवो (३) तिरस्कार करवो होडी; तरापो तर्जन न०, तर्जना स्त्री० धमकी (२) Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तर्जनी १९२ तंडि ठपको (३) शरमिंदं करवू ते ; पाछळ तस्थु वि० स्थावर ; स्थिर पाडी देवु ते (४) गुस्सो तंच ७ प० संकोचावं; संकुचित करवू तर्जनी स्त्री० अंगठा पासेनी आंगळी तंडुल पुं० चोखा (२) छडेलु धान्य जित ('तर्जुन भ००) वि० धमका तंति स्त्री० पंक्ति; हार (२) दोरी; वेलु (२)ठपको अपायेलु (३)शरमिदं दोरडु (३) गाय (४) वणकर करायेलं (४) न० धमकी तंतिपाल पुं० गोवाळ (४)संतति तर्ण, तर्णक पुं० वाछरडु तंतु पुं० तांतणो (२) दोरो (३) पाश तर्पण न० तृप्त करवू ते (२) तृप्ति; तंतुक पुं० दोरो; दोरडु (समासने अंते) संतोष (३) रोज करवाना पंच तंतुकीट पुं० रेशमनो कीडो महायज्ञोमांनो एक-पितृयज्ञ तंतुनाभ पुं० करोळियो तर्पित वि० तृप्त थयेलं तंतुवाद्य न० तारवाळू वाद्य तर्ष पुं०, तर्षण न० तृषा; तरस (२) तंतुवाय पुं० करोळियो (२) वणकर इच्छा [अभिलाषावाळं तंत्र १० उ० शासन करवू; राज्य तषित, तर्षुल वि० तरस्युं (२) चलावq (२) व्यवस्थित राखq तह, १५० ईजा करवी (२) कतल कर, तंत्र न० साळ (२) दोरो(३) हार; ओळ तहि अ० ते समये; त्यारे (२) तो; (४) मुख्य मुद्दो (५) सिद्धांत (६) ए बाबतमा परिवार (७) शास्त्र (८) अधीनता तल पुं० न० तळियु ; नीचेनो भाग (२) (९) प्रकरण; भाग (१०) साधना के सिद्धि माटे मंत्रतंत्रादिना प्रयोग सपाटी (समासने छेडे घणी वार अर्थमां निरूपतो ग्रंथ (११)कुळ ; वंश (१२) कशा फेरफार विना पण वपराय छे; औषध; तेने लगतो मंत्र (१३) व्यवउदा० 'भूतल') (३) झाड के कोई पण स्था; प्रबंध; नियमन (१४) सैन्य वस्तुनी नीचेनो भाग; तेनी छाया के आशरो (४) न० अरण्य ; वन (५) (१५) समूह (१६) वस्त्र (१७) कुटुंबपोषण (१८) शासन; सत्ता हेतु; मूळ (६) तळाव (७) डाबा (१९) कांई पण कार्य करवानो साचो हाथे पहेरातुं चामडा मोजें क्रम के युक्ति तलातल न० सप्त पाताळोमांनुं चोथु तंत्रक पुं० धोया विनानुं कोरं वस्त्र तलिन वि० पातळं; सूक्ष्म (२)नीचेगें; तंत्रण न० कुटुंबपोषण (२) शासन; तळेनु (३) न० बिछानु; पथारी नियंत्रण; प्रबंध तलिनोदरी स्त्री० पातळी केडवाळी स्त्री तंत्रि स्त्री० तंतु; दोरो; तार (२) तल्पपुं०,न० शय्या; पथारी (२) पत्नी धनुष्यनी पणछ (३) वीणा (३) मिनारो (४) संरक्षक तंत्रिन् वि० तंतुनु; तंतुवाळू तल्पल न० हाथीनी पीठy हाडकुं तंत्रिल वि० राजकाजमां मग्न तल्लिका स्त्री० कुंची तंत्री स्त्री० जुओ 'तंत्रि' तस्कर पुं० चोर (२) (समासने अंते) तंद्रा स्त्री० आळस ; सुस्ती ; थाक (२) तुच्छ -तिरस्कार पात्र (उदा० 'जलद- ऊंघणशीपणुं थाकेलं तस्कर') (३) कान तंद्रालु वि० ऊंघणशी; तंद्रावाळे (२) तस्करता स्त्री० चोरी (२) सांभळवू ते तंद्रि स्त्री० आळस ; सुस्ती; घेन (२) तस्थिवस् वि० ऊभेलु; स्थिर; स्थावर थाक; मी Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तंद्रित १९३ तार तंद्रित वि० जुओ 'तंद्रालु' सूर्य (३) ग्रीष्म ऋतु (४) न० तंद्री स्त्री० जुओ 'तंद्रि' संतापवू ते (५) मूंझवण (नाटकमां) ताजिक (-त) पुं० ईराननो वतनी (२) तापनीय वि० सोना-; सोनेरी उत्तम घोडानी एक जात तापस वि० तप के तपस्वी संबंधी (२) ताटस्थ्य न० तटस्थपणु पुं० तपस्वी ताटक पुं० काने पहेरवानुं मोटुं एरिंग तापसक पुं० खराब तपस्वी ताड पुं० प्रहार; मार (२) अवाज; तापसी स्त्री० तपस्विनी नाद (३) घासनु पूळियु (४) पर्वत तापस्य न० तपस्वीपणुं ताडन न० मार ते; मार तापिच्छ पुं० तमाल वृक्ष के तेनुं फूल ताडनी स्त्री० चाबुक । तापित वि० संतप्त ताडि स्त्री० ताडवृक्ष (२) एक आभूषण तापिन् वि० ताप - पीडा उत्पन्न करतुं ताडित ('तड्'- भू० कृ०) वि० मारेलु तापी स्त्री० तापी नदी (२) यमुना ताडी स्त्री० जुओ 'ताडि' । ताम पुं० ग्लानि के भय ऊभो करनार ताड्यमान वि० मरातुं; हणातुं वस्तु (२) दोष (३) ग्लानि तात पुं० पिता (२) पुत्रो, शिष्यो तामर न० पाणी (२) घी वगेरेने संबोधवामां वपरातो प्रेमदर्शक तामरस न० रातुं कमळ । शब्द (३) पूज्योने के वडीलोने तामरसी स्त्री० कमळोवाळी तळावडी लगाडातो संमानसूचक शब्द तामस वि० अंधकारमय (२) तमोताति पुं० दीकरो; वंशज (२) स्त्री० गुणी (३) अज्ञानी (४) दुर्गुणी; दुष्ट सतत चालु रहेवू ते; परंपरा (उदा० तामसिक वि० तमोगुण संबंधी 'अरिष्टताति') तामिस्र पुं० क्रोध; धिक्कार; द्वेष तात्कालिक वि० एक ज समये थनारुं (२) एक नरक (३) कृष्णपक्ष थयेलु (२)तरतनुं ज; ते ज समय ताम्र वि. तांबा- (२) तांबाना रंग तात्त्विक वि० वास्तविक; सत्य ; खरं जेवू लाल (३) न० तांबु (४) तांबाना तात्पर्य न० हेतु; मतलब (२) भावार्थ जेवो लाल रंग तादर्थ्य न० समान इरादो के अर्थ होवो ताम्रक पुं० तांबुं ते (२) -ने उद्देशीने होवू ते ताम्रकार, ताम्रकुट्ट पुं० कंसारो तादात्म्य न० समानता; एकरूपता ताम्रगर्भ न० मोरथूथु तादृक्ष, तादृश (-श) वि० तेना जेवू ज । ताम्रचूड पुं० कूकडो तान पुं० तंतु; तांतणो (२) आलाप ताम्रपट्ट पुं०, ताम्रपत्र न० तांबा- पतरूं (संगीत०) (३) न० विस्तार (२) तेना परनो लेख तानव न० कृशता; अल्पता; तनुत्व ताम्रपर्णी स्त्री० मलय पर्वतमांथी ताप पुं० तडको; गरमी (२) पीडा; नीकळती एक नदी (मोती माटे मशहूर) दुःख; संताप ताम्राक्ष पुं० कागडो (२) कोयल तापत्य पुं० कुरुराजा (२) अर्जुन ताम्राश्मन् पुं० पद्मराग मणि तापत्रय न० त्रण प्रकार- दुःख (आध्या- ताम्रोपजीविन् पुं० कंसारो त्मिक; आधिदैविक ; आधिभौतिक) तार वि० ऊंचुं; तीव्र (स्वर) (२) तापन वि० प्रकाशित करतुं (२) पुं० देदीप्यमान; चळकतुं (३) पुं० मोतीनी Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तारक १९४ स्वच्छता के पारदर्शकता (४) मोटुं के सुंदर मोती (५) तंतु; तांतणो (६) पुं०,न० ग्रह अथवा तारो (७) आंखनी कीकी (८) न० रू' (९) बीजकोष (खास करीने कमळनो) तारक वि० तारनाएं; उद्धारनारुं; रक्षण करनारुं (२) पुं० सुकानी (३) तारो (४) कीकी [कीकी तारका स्त्री० तारो; खरतो तारो (२) तारकिणी स्त्री० ताराओवाळी रात्रि तारकित वि० ताराओथी भरेलु तारण वि० उद्धारनारं; पार लई जनारु (२) न० जीतनार ते (३) उद्धारनार ते तारणि (-णी) स्त्री० होडी; मछवो । तारतम्य न० तफावत; विशिष्टता (गुण, प्रमाण, मूल्य वगेरेनी सापेक्षता के चढता-उतरतापणुं) तारा स्त्री० ग्रह के तारो (२) कीकी ताराधिप, तारापति पुं० चंद्र (२) वालि (३) बृहस्पति तारापथ पं० आकाश; अंतरीक्ष तारामैत्रक न० आंख मळतां ज ऊभी थती प्रीति; आकस्मिक प्रेम तारित वि० पार करेलु ; उद्धारेलू तारुण्य न० जुवानी तारेय पृ० बुधनो ग्रह (२) वालिनो ताराथी थयेलो पुत्र - अंगद ताकिक पुं० नैयायिक (२) तत्त्ववेत्ता तार्भ पुं० कश्यप ऋषि [(४) पक्षी ताऱ्या पं० गरुड (२) अरुण (३) रथ तार्तीय, तार्तीयीक वि० त्रीचं ताल पुं० ताडवृक्ष (२) ताळी (३) फडफडाट (जेमके, हाथीना काननो) (४) ताल आपवो ते (संगीत) (५) कांसीजोड (६) ताळू (७) शंकर (८) अंगूठो अने वचली आंगळी वच्चेनो टूको गाळो (९) ऊंचाई- अमुक माप तांतव तालकेतु पुं० भीष्म पितामह तालपत्र न० ताडपत्र (लखवा माटे वपरातुं) (२) कान, एक घरेणुं । तालफल न० ताडफळ [एक ओजार तालयंत्र न० ताळंकूची (२) वाढकापर्नु तालवन न० ताडनुं वन तालवृंत न० पंखो तालव्य वि० तालुस्थानी तालापचर, तालावचर पुं० नर्तक; नट तालिक पुं० हाथनो खुल्लो पंजो (२) ताळी (३) ग्रंथ के हस्तप्रत बांधवानुं ढांकण ताली स्त्री० एक जातनोताड (२)ताळी तालीपट्ट न० एक जातनुं कर्णभूषण तालीवन न० ताडनुं वन तालु न० ताळवू तालुस्थान वि० ताळवाना प्रदेशने लगतुं - त्यांथी उच्चारातुं तावक, तावकीन वि० तारुं तावत् वि० तेटलं; तेटलं मोटुं; तेटलुं वधारे (२) तमाम; समूचुं (३) थोडंक; जरा (४) अ० प्रथम; पहेलां (५). दरम्यान; त्यां सुधी (६) हमणां ज; तरत ज (७) 'ज' (भार बताववा) (८) खरेखर; नक्की (९) सर्वथा; संपूर्णपणे तावत्कृत्वस् अ० तेटली वार (गणतरी) तावत्फल वि० एवा फळवाळं तावन्मात्रम् अ० तेटलं ज । तावन्मात्रे अ० तेटला. स्थळे तांडव पुं०, न० नृत्य; नर्तन (२) शंकरर्नु भयंकर नृत्य (३) नृत्यकळा तांडवित वि० नचावेलं; नाचतुं (२) जोसथी नाचतां चक्राकारे फरतुं तांत ('तम्'- भू००) वि० थाकेलं (२) पीडित (३) करमाई गयेलं तांतव वि० तंतु - तांतणानुं बनेलं (२) न० कांतवूते; वणवू ते Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तांत्रिक तांत्रिक वि० तंत्रशास्त्रने लगतुं (२) तंत्र के सिद्धांतमां पारंगत ( ३ ) पुं० तंत्रशास्त्रने माननार तांबूल न० पान (२) सोपारी तांबूलकरंक पुं० पाननी पेटी तांबूलवल्ली स्त्री० नागरवेल तांबूलिक स्त्री० तंबोळी ; पान वेचनारो तांबूली स्त्री० नागरवेल तिक्त वि० कडवुं (२) तीखुं (३) सुवासित ( ४ ) पुं० कडवो स्वाद तिक्तगंधा स्त्री० राई तिक्ततंडला स्त्री० लींडी पीपर तिग्म वि० तीक्ष्ण; उग्र तिग्मकर, तिग्मतेजस्, तिग्मदीधिति, तिग्मद्युति, तिग्मरश्मि पुं० सूर्य तिग्मांशु पुं० सूर्य ( २ ) अग्नि तिज १ आ० सहन करवुं ( २ ) १० उ० के प्रेरक ० धार काढवी ; तीक्ष्ण करवुं (३) उश्केरवुं; क्षुब्ध करवुं तितिक्षा स्त्री० सहनशीलता; धैर्य तितिक्षु वि० सहिष्णु; सहनशील ( २ ) तजवानी इच्छावाळूं तितिर पुं० तेतर पक्षी तितीर्षा स्त्री० तरवानी इच्छा तितीर्षु वि० तरवानी इच्छावाळं तित्तिर, तित्तिरि पुं० जुओ 'तितिर ' तिथि पुं०, स्त्री० चांद्रमासनो कोई पण दिवस ( दरेक पक्षमां पंदर गणाय ) तिथिपत्री स्त्री० पंचांग तिथिप्रणी पुं० चंद्र तिथी स्त्री० जुओ 'तिथि' तिनिश पुं० एक झाड (सीसमनी जातनुं) तिम् १ प० भीनुं करवुं (२) ४ ५० भीनुं थवुं ( ३ ) शांत थवुं तिमि पुं० समुद्र ( २ ) वहेल - मगर - मच्छ (३) माछलुं तिमिघातिन् पुं० माछी मार तिमित ( 'तिम् ' नुं भू० कृ० ) वि० भीनुं (२) निश्चल ( ३ ) शांत तिर्यक् तिमिध्वज पुं० शंबर राक्षस तिमिर वि० अंधकारमय (२) पुं०, न० अंधकार ( ३ ) अंधत्व तिमिरारि पुं० सूर्य तिमिंगल पुं० (तिमिने पण गळी जाय तेवो) मोटो मगरमच्छ तिमी स्त्री० जुओ 'तिमि' तिरश्ची स्त्री० पशुनी मादा तिरश्चीन वि० त्रांसु ; तीरछु; वांकुं तिरस् अ० वांकी रीते (२) गुप्त रीते; अदृश्य होय म बख्तर तिरस्करिणी स्त्री० पडदो; बुरखो ( २ ) अदृश्य थवानी विद्या तिरस्कार पुं० तुच्छकार; अनादर ( २ ) ठपको; गाळ; निंदा (३) टंकाई जबुं - अदृश्य थवुं ते (४) छातीनुं [चडियातुं तिरस्कारिन् वि० पाछळ पाडी देतुं; तिरस्कृ ८ उ० तिरस्कार करवो ( २ ) ठपको आपको; निदधुं ( ३ ) ढांकी देव, संताडवु ( ४ ) चडियाता थवुं (५) दूर करवु; खसेडी मूकवुं तिरस्कृत वि० तिरस्कार पामेलुं (२) ठपको पामेलुं (३) गुप्त ; ढंकायेलुं (४) पाछळ पाडी देवायेलुं तिरस्कृति, तिरस्क्रिया स्त्री० जुओ 'तिरस्कार' १९५ तिरोधा ३ उ० अदृश्य थ; देखाता बंध थj (२) छुपाववुं ( ३ ) चडियाता थवुं ; पाछळ पाडी देवु ( ४ ) हराववुं ; जीतवुं ( ५ ) खसेडवुं ; दूर करवुं तिरोधान न० अदृश्य थवुं ते (२) पडदो; ढांकण; बुरखो तिरोभाव पुं० अदृश्य थवुं ते तिरोभू १ प० अदृश्य थवुं तिरोहित वि० अदृश्य थयेलं (२) संता डेलु ढंकाई गये लुं तिर्यक अ० त्रासुं तीरछु- वांकुं होय तेम } Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिर्यग्योनि तिर्यग्योनि स्त्री० पशुप्राणीनी सृष्टि तिर्यच्, तिथंच वि० तीरछु; त्रांसु (२) वांकुं (३) पुं०,न० पशु; जानवर (४) पंखी; पक्षी तियंची स्त्री० पशुनी मादा तिल पुं० तलनो छोड; तल (२) कोई पण पदार्थनो सूक्ष्म कण (३) शरीर उपर तल जेवो डाघो तिलक पुं० सुंदर फूलवाळु एक झाड (२) पुं०, न० चांल्लो; टीखें (३) समासने अंते 'ते ते वर्गमां श्रेष्ठ - शणगाररूप' -एवा अर्थमां वपराय छे । तिलका स्त्री० एक जातनो हार तिलकित वि० तिलक करेलु (२)शोभित तिलखलि (-ली) स्त्री० तलनो खोळ तिलपीड पुं० घाणी फेरवनारो; घांची तिलशः अ० तल जेवडा नाना अंशमां तिलोत्तमा स्त्री० एक अप्सरा तिलोदक न० पितृतर्पण अर्थे अपातुं तिलयुक्त जल तिष्ठद्गु अ० गायो (दोहवा माटे) सांजे ऊभी रहे त्यारे (संध्या पछी कलाक जेटले समये) तिष्य वि० पुष्य नक्षत्रमा जन्मेलुं (२) भाग्यशाळी; शुभ (३) पुं० पुष्य नक्षत्र (४) न० कळियुग तितिड पु०, तितिडिका, तितिडी, तितिलिका, तितिली स्त्री० आमली तीक्ष्ण वि० धारवाळु; तीव्र (२) ती (३) गरम (४) कठोर; कडक (५) तोछडु (६) होशियार; जोशील; उत्साही (७) पवित्र; धार्मिक; तपस्वी (८) हानिकारक; प्रतिकूळ तीक्ष्णधार पुं० तरवार वाळू तीक्ष्णबुद्धि वि० होशियार; तीव्र बुद्धितीक्ष्णमार्ग पुं० तरवार तीक्ष्णांशु पुं० सूर्य (२) अग्नि तीर न० किनारो (२) कोर; कोराण तीरित वि० फैसलो आपेलं; चुकादो आपेलं (२) न० समाप्ति; परिपूर्णता तीर्ण ('तु'न भू००) वि. ओळंगी गयेलं; तरी गयेलु (२) चडियातुं (३) पराभव पामेलु (४) नाहेलं; नाहवा ऊतरेखें तीर्थ वि० पवित्र (२) तारनारु (३) न० मार्ग; रस्तो; घाट ; ओवारो (४) जळाशय (५) यात्रा, धाम ; पुण्यक्षेत्र (खास करीने नदीने किनारे आवेलु) (६) उपाय ; साधन (७) पूज्य के पवित्र माणस (८) आचार्य; गुरु (९) प्रधान; मंत्री (१०) शिखामण; बोध (११) योग्य समय (१२) पुं० शंकराचार्य संन्यासीओना स्थापेला दस वर्गोमांनो एक (१३) संन्यासीना नाम पाछळ लगाडातो मानवाचक शब्द तीर्थकर पुं० जैनधर्मनो प्रवर्तक (चोवीस छे) (२) साधु ; तपस्वी (३) नवो सिद्धांत प्रवर्तावनार आचार्य तीर्थकाक पुं० लोलुप मनुष्य (तीर्थ स्थानना कागडा जेवो) तीर्थचर्या स्त्री० तीर्थयात्रा तीर्थध्याक्ष पुं० जुओ 'तीर्थकाक' तीर्थभूत वि० पवित्र ; पावनकारी तीर्थयात्रा स्त्री० तीर्थनी यात्रा तीर्थराज पुं० प्रयागराज तीर्थराजि (-जी) स्त्री० काशी तीर्थवायस पुं० जुओ 'तीर्थकाक' तीर्थकर पुं० जुओ 'तीर्थकर' तीथिक पुं० जात्राळु (२) तपस्वी ब्राह्मण (३) अन्य संप्रदायनो अनुयायी के आचार्य करनारु) तीर्थोदक न तीर्थस्थान- जळ (पवित्र तीव्र वि० उष्ण; तीखं; कठोर; दुःसह तु अ० (वाक्यारंभे कदी न आवे) पण; परंतु (२) बीजी बाजु - ऊलटुं Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुक्खार (३) हवे (४) पादपूरण अर्थे के भार दर्शाववा पण वपराय छे तुक्खार, तुखार पुं० विध्यमां रहेती एक जाति (२) 'तुखार' घोडो तुच्छ वि. तुच्छकारने पात्र; माल वगरनुं (२)नजीवं; अल्प (३) कंगाळ ; दीन (४) त्यजायेलं तुच्छदय वि० दयाहीन तुद् ६ उ० मारवं; ईजा करवी (२) परोणाथी गोदावq (३) पीडवू तुद वि० पीडतुं; दुःख देतुं तुन्नवाय पुं० दरजी तुम् ४,९५० ईजा करवी; मारवं तुमुल वि० घोंघाटवाळ (२) भयंकर; दारुण; उग्न (३) गूंचवायेलु; क्षुब्ध (४) पुं०, न० घोघाट (५) युद्ध तुर् स्त्री० वेग; झडप तुरग पुं० घोडो (२) मन ; विचार तुरगिन् पुं० घोडेसवार तुरंग, तुरंगक पुं० घोडो तुरंगकांता स्त्री० वडवा ; घोडी तुरंगवक्त्र पुं० किनर तुरंगसादिन, तुरंगिन् पुं० घोडेसवार तुरायण वि० नि:स्पृह; निरिच्छ (२) न० एक प्रकारनो यज्ञ (३) एक व्रत तुरासाह पुं० इंद्र तुरि (-री) स्त्री० साळवीनो कांठलो के कूचडो (२) पींछी (चित्रकारनी) तुरीय वि० चोथु (२) चार भागनुं । बनेलं (३) न० चोथो भाग (४) तुर्य अवस्था (वेदांत०) तुर्य वि० चो, (२)न० चोथो भाग (३) (जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति पछी) आत्मानी चोथी अवस्था- जेमां परमात्मा साथे अभेद थाय छे (वेदांत०) तुल १५०, १० उ० तोळवू; मापवू (२) (मनमां)तुलना करवी; विचार, (३) सरखामणी करवी (४) ऊंचं सुधारगौर कर(५) टेको करवो (६) शंका करवी (७) कसोटी करवी तुलन न० ऊंचु करवं ते; ऊंचकवू ते (२) तोळवू ते; वजन (३) तुलना, सरखामणी के परीक्षा करवी ते । तुलना स्त्री० सरखामणी (२) वजन करवू ते (३) ऊंचक, ते (४) मूल्य आंकवू ते ; परीक्षा- तपास करवी ते तुलसी स्त्री० तुळसीनो छोड तुला स्त्री० वाजवू; त्राजवानी दांडी (२) वजन; माप (३) तोळवू ते (४) सादृश्य (५) तुला राशि तुलाकोटि (-टी) स्त्री० नुपूर; कडलं तुलादान न० पोताना वजन जेटलुं सोनु-रूपुंदानमां आपq ते तुलाधिरोहण न० समानता; सरखामणी तुलापुरुष, तुलाभार पुं० माणसना वजन जेटलं सोनु-रू' (तुलादान माटे) तुलामान न०, तुलायष्टि स्त्री० त्राजवांनी दांडी तुलित वि० तोळेलु (२) सरखं ; समान तुल्य वि० समान; सरखं (२) योग्य तुल्यकक्ष वि० समान कोटीन तुल्यनक्तंदिन वि० रात अने दिवसनो फेर न समजतुं (२)सरखां दिवस अने रातवाळं तुल्यम् अ० एक साथे ज (२)समानपणे तुवर वि० तुरुं (२) पुं० तुवेर तुष ४५० संतुष्ट थq; प्रसन्न थर्बु (२) शांत थर्बु (३) संतोष आपवो तुष पुं० अनाजनुं फोतलं; ढूणसुं तुषानल पुं० फोतरांनो अग्नि (२) ते वडे अपराधीने देहांतदंड देवानी सजा तुषार वि० ठंडं; शीतळ (२)० हिम; बरफ (३)झाकळ ; ओस (४)ठंडी तुषारकिरण पुं० चंद्र तुषारगौर वि० बरफ जेवू श्वेत (२) बरफ वडे श्वेत थयेलुं (३) पुं० कपूर Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुषाररश्मि तुषाररश्मि पुं० चंद्र तुषाराद्रि पुं० हिमालय तुषित पुं० गणदेवतानो एक प्रकार तुष्ट ( 'तुष्' नुं भू० कृ० ) वि० संतुष्ट तुष्टि स्त्री० संतोष; प्रसन्नता (२) तृप्ति तुहिन वि० शीतळ; ठंडु (२) न० बरफ (३) झाकळ [बरफनो कण तुहिनकण पुं० झाकळनुं बिंदु (२) तुहिनयुति, तुहिनरश्मि पुं० चंद्र तुहिनाचल, तुहिनाद्रि पुं० हिमालय तुहिनांशु पुं० चंद्र तुंग वि० ऊंचं; उन्नत ( २ ) मुख्य; प्रधान (३) उम्र ( ४ ) पुं० पर्वत ( ५ ) ऊंचाण; ऊंचाई; टोच तुंगमन् पुं० ऊंचाई तुंज पुं० राक्षस तुंड न० मुख; मों ( २ ) चांच ( ३ ) सूंढ तुंद न० पेट; फांद चुंदपरिमृज् ( - ज ) वि० पेट उपर हाथ फेरव्या करतु; एदी तुंदि स्त्री०, न० पेट (२) डूंटी लुंदिक, तुंदित, तुंदिन, तुंदिभ, तुंदिल वि० मोटा पेटवाळु फांदवाळं (२) भरेलु (३) मोटुं दिलित वि० फांदवाळं तुंब पुं० तुंबडुं बरु पुं० एक गांधर्व तुंबा स्त्री. लांबुं तुंबडुं (२) तांबडी ; दूधनुं वासण तुंबुरु पुं० एक गांधर्व - तुंबरु तूण पुं० भाथो (बाणनो ) तृणमुख न० भाथानुं मों तूणि पुं०, तूणी स्त्री०, तूणीर पुं०, न० बाण राखवानो भाथो तूर्णम् अ० वेगथी सूर्य पुं० न० एक जातनुं वाद्य १९८ तूल पु०, न०, तूलक न० कपास तुलकार्मुक न०, तुलचाप पुं० पींजण तृषित तुलदाहम् अ० रू बळे के बाळे तेम तूलधनुष न० पींजण तूलपीठी, तूललासिका स्त्री० त्राक तूलसेचन न० कांत ते तुला स्त्री० कपासनो छोड (२) दिवेट तूलि स्त्री० चित्रकारनी पछी तूलिका स्त्री० चित्रकारनी पींछी (२) "दिवेट (३) रजाई (४) मूस तुली स्त्री० कपास ( २ ) दिवेट (३) पछी ( वणकर के चित्रकारनी ) तूवर वि० जुओ 'तुवर' तूष्णीक वि० चूप; मूंगुं तूष्णीम् अ० चूपकीथी; बोल्या विना तूं (बी) स्त्री० तुंबडुं तृण न० घास; खड (२) तरणं (३) तुच्छ वस्तु (तरणा जेवी) तृणगणना स्त्री० तृण समान गणवुं ते तृणद्रुम पुं० ताड (२) खजूरी (३) नाळियेरी (४) सोपारीनुं झाड तृणधान्य न० वाव्या वगर ऊगतुं धान्य तृणावर्त पुं० वंटोळ [पार्छु पाडी देवु तृणीकृ ८ उ० तणखला जेवुं गणवुं (२) तृतीय वि० त्रीभुं [विभक्ति तृतीया स्त्री० त्रीज ( तिथि) (२) त्रीजी तृद् १, ७ १० चीरखुं; फाडवुं (२) नाश करवु; वध करवो तृप् ४, ५, ६ प० तृप्त थवुं; संतुष्ट थवुं ( २ ) तृप्त करवुं ( ३ ) १५०, १० उ० तृप्त करवु; खुश करवुं तृप्त ( ' तृप्' नुं भू० कृ० ) वि० संतोष पामेलु ; धरायेलुं तृप्ति स्त्री० तृप्त - संतुष्ट थवं तृषु ४ प० तरस्या थवुं ( २ ) उत्सुक आतुर थवं [आतुरता; तृष्णा तृषु ( - बा ) स्त्री० तरस ( २ ) अत्यंत तृषार्त वि० तरसथी पीडायेलं; तरस्युं तृषित ( 'तृष्' नुं भू० कृ० ) वि० तरस्य (२) अत्यंत उत्सुक Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृष्णा त्यवतलज्ज तृष्णा स्त्री तृषा (२) तीव्र इच्छा तष्णाक्षय पुं० शांति; तृप्ति तृह ७ प०, १० उ०, ६ प० मारवू; . मारी नाखवू तुंह ६ प० मारवू; मारी नाखवू तुंहण न० मारी नाखवू ते त १ प० तरी जवु; ओळंगवू (२) तर, (पाणीमां) ., तेज पुं० तीव्रता (२) तीक्ष्णता; धार (३)जुस्सो (४) प्रकाश तेजन न० वांस (२) धार काढवी ते (३) प्रज्वलित करवू ते (४)शस्त्रनी अणी के धार तेजनी स्त्री० सादडी (२)वाळनो गुच्छो तेजस न० तीक्ष्णता; धार (२) शगनी अणी (३) प्रकाश; उष्णता (४) तेजस्विता; शोभा; सौंदर्य (५) जोम; उत्साह; पराक्रम (६) पंचमहाभूतोमांनुं एक- अग्नि (७)बळ ; प्रभाव (८) वीर्य (९) सत्त्व; अर्क (१०) अधीराई; क्रोध (११) सूर्य के तेवो बीजो आकाशनो तेजस्वी पदार्थ तेजस्विन् वि० प्रकाशित (२) बळवान; पराक्रमी (३) भव्य तेजोभंग पुं० अपमान; अनादर तेजोमय वि० तेजस्वी ; प्रकाशित (२) प्रतापी; जुस्सावाळं; शक्तिमान तेजोमंडल न० तेजनुं कुंडाळं (तेज स्वी पदार्थनी आसपासनू) तेजोमूति पुं० सूर्य तैक्ष्ण्य न० तीक्ष्णता तेजस वि० तेजोमय ; प्रकाशित (२) उग्र ; बळवान ; पराक्रमी तैथिक वि० तीर्थ संबंधी (२) पुं० तपस्वी (३) नवो सिद्धांत प्रतिपादन करनार (४) न० तीर्थोदक तैल न० तेल तैलाभ्यंग पुं० शरीरे तेल चोळवू ते तैलिक, तैलिन् पुं० तेली; घांची तोक न० बाळक तोकवती स्त्री० बाळकोवाळी स्त्री तोत्र न० परोणो (२) अंकुश तोद पुं० दुःख ; वेदना (२) हांक - गोदाव, ते तोमर पुं०, न० लोढानी गदा (२) भाला जेवू एक अस्त्र ; ऊंधा अर्धचंद्रना फळावाळं बाण तोय न० पाणी तोयकर्मन न० शरीरना जुदा जुदा भागोने पाणी वडे शुद्ध करवा ते (२) पितृओने जलांजलि अर्पवी ते तोयक्रीडा स्त्री० जळक्रीडा तोयद, तोयधर पुं० मेघ; वादळ तोयधि, तोयनिधि पुं० महासागर तोयमुच पुं० वादळ ; मेघ तोयराशि पुं० महासागर (२) सरोवर तोयवाह पुं० वादळं तोयव्यतिकर पुं० नदीओनो संगम तोरण पुं०, न० कमानवाळो दरवाजो (२) शोभा माटे बनावेली कमान (३)न० गर्छ; गरदन तोल पुं०, न० माप; वजन (२) एक तोलो (वजन) [ऊंचकवू ते तोलन न० तोळवू - जोखq ते (२) तोष वि० संतोष आपनाएं (२) पुं० संतोष ; तृप्ति [संतोष ; तृप्ति तोषण वि० संतोष आपनारुं (२) न० तोषित वि० संतुष्ट ; प्रसन्न तोषिन् वि० (समासने अंते)-थी संतुष्ट थयेलं (२) संतोष आपनाएं त्मन् पुं० पोतानी जात ('आत्मन् ') त्यक्त ('त्यज्' नुं भू० कृ०) वि० त्यजेलं छोडेलु; त्यागेलुं (२) आपी दीधेलं त्यक्तजीवित, त्यक्तप्राण वि० जीवितनो त्याग करवा तत्पर थयेलं त्यक्तलज्ज वि० निर्लज्ज ; शरम वगरनुं Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्य २०० त्रिवशंद्र त्यज् १५० तजवं; छोडी देवू (२) त्रिक वि० तेवडु; त्रणगणुं (२) न. आपq (३)थी अळगा रहेQ-थर्बु त्रिपथ; त्रिभेटो (३) त्रिपुटी त्याग पुं० तजq ते ; छोडी देवं ते (२) त्रिकाल न० वर्तमान, भूत, भविष्य - दानमां आपी देवं ते (३) औदार्य ए त्रण काळ (२)प्रातःकाळ, मध्याह्न, त्यागिन् वि० त्याग करनारु (२) दानी सायंकाळ -ए त्रण काळ (३) फळनी आशा त्यागनारु । त्रिकालज्ञ, त्रिकालदशिन् वि० त्रणे त्याजित वि० त्याग करावायेलु (२) काळना ज्ञानवाळं; सर्वज्ञ उपेक्षा करावायेलु (३)-विनानुं थयेलु त्रिकालम् अ० त्रण वखत ; त्रण वार त्याज्य वि० त्यागवा योग्य त्रिकूट पुं० लंकानो एक पर्वत त्रप् १ आ० शरमावू त्रिकोण पुं० त्रण खूणावाळी आकृति त्रपा स्त्री० शरम; लज्जा त्रिगण पुं० धर्म-अर्थ-काम -ए त्रण अपु न० कलाई (२) सीसुं पुरुषार्थोनो समुदाय त्रय वि० त्रण प्रकार- (२) त्रण गणुं त्रिगुण वि० (सत्त्व, रजस्, तमस् -ए) (३) न० वणनो समूह त्रण गुणवाळं (२) त्रण दोरानुं बनेलं त्रयस् ('त्रि' नुं प्रथमा ब० व०) वि. (३) त्रणगणुं (४) पुं० ब० व० त्रण त्रण (संख्यावाचक शब्दनासमासमां; गुणो (सत्त्व, रजस्, तमस्) (५) उदा० 'त्रयोदश', 'त्रयश्चत्वारिंशत्) न० प्रकृति ; प्रधान (सांख्य०) त्रयी स्त्री० त्रण वेदोनो समूह (ऋग- त्रिचतुर वि० (ब० व०) त्रण के चार यजुर्- साम) (२) त्रणनो समूह त्रिजगत् न०, त्रिजगती स्त्री० स्वर्गअयोधर्म पुं० वेदोमां उपदेशेलो धर्म मृत्यु-पाताळ -ए त्रण लोक के कर्तव्य (यज्ञकर्म) त्रिणता स्त्री० धनुष्य प्रस् १, ४ प० वासवू; कंपवू; धूजवू त्रिणाक पुं० स्वर्ग (२)बीवू; डरवु (३)-थी दूर नासवू त्रितय न० वणनो समुदाय त्रस वि० जंगम [ऊडतुं देखातुं) त्रिदश पुं० देव प्रसरेणु पुं० रजकण (सूर्यना हेरियामां त्रिदशगोप पुं० गोकळगाय ; इन्द्रगोप त्रस्त ('त्रस्' नुं भू० कृ०) वि० बीनेलं; त्रिदशपति पुं० इंद्र त्रासेलं; भयभीत त्रिदशपुंगव पुं० विष्णु त्रस्न वि० भयभीत; भयथी धूजतुं त्रिदशवधू, त्रिदशवनिता स्त्री० अप्सरा त्राण ('त्रै' ने भू० कृ०) वि० रक्षेलं त्रिदशवर्मन् न० आकाश रक्षित (२) न० रक्षण; बचाव (३) त्रिदशाचार्य पुं० बृहस्पति आधार; आश्रय न० रक्षण त्रिदशाधिप पुं० इंद्र त्रात ('त्रै'नुं भू० कृ०) वि० रक्षेलं (२) त्रिदशाधिपति पुं० शिव त्रातृ वि० रक्षण करनारुं । त्रिदशाध्यक्ष पुं० विष्णु त्रास पुं० भय; डर त्रिदशायुध न० वज्र (२) मेघधनुष्य त्रासन वि० भयप्रद (२) न० भय त्रिदशालय, त्रिदशावास पुं० स्वर्ग पमाडवो ते (३) डराववानुं साधन । (२) मेरु (३) देव त्रासित वि० भय पमाडेलु; डरावेलु त्रिदशांकुश न० वज़ त्रि वि० त्रण त्रिदशेंद्र पुं० इंद्र (२) शिव Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रिदंड २०१ त्रिनोतस् त्रिदंड पुं० संन्यासी धारण करे छे ते त्रिमार्गा स्त्री० गंगानदी -त्रण दंडनो समुदाय (२) मन,वाणी त्रिमूर्ति पुं० ब्रह्मा, विष्णु, शंकर -ए अने कर्मनो निग्रह [संन्यासी त्रणेनुं भेगुं स्वरूप त्रिदंडिन् पुं० त्रिदंड धारण करनार- त्रियामा स्त्री० रात्री त्रिदिव न० स्वर्ग (२)अंतरीक्ष ; आकाश त्रिलिंग वि० नर-नारी-नान्यतर -ए त्रिदिवगत वि० स्वर्गवासी - मृत त्रण जातिवाळं (विशेषण) (व्या०) त्रिदिवालय पं० स्वर्ग त्रिलोक न० त्रण लोकनो समूह (स्वर्गत्रिदिवौकस् पुं० देव मृत्यु-पाताळ) त्रिदोष न० वात, पित्त तथा कफना बिलोकनाथ पुं० इंद्र (२) शिव प्रकोपथी थतो रोग - सनेपात त्रिलोकरक्षिन् वि० त्रणे लोकतुं रक्षण त्रिधा अ० त्रण प्रकारे; त्रण भागमां करनारं त्रिधामन् पुं० विष्णु (२) व्यास (३) त्रिलोकी स्त्री० जुओ 'त्रिलोक' शिव (४) अग्नि (५) मृत्यु (६) त्रिलोचन पुं० त्रिनेत्र - शिव न० स्वर्ग त्रिवर्ग पुं० धर्म, अर्थ अने काम -ए त्रण त्रिनयन, त्रिनेत्र पुं० शंकर पुरुषार्थनो समूह (२) सत्त्व, रजस् त्रिपथ न० स्वर्ग, मृत्यु, पाताळ -ए अने तमस् -ए त्रण गुणनो समूह त्रणनो समूह (२) त्रण रस्ता मळे त्रिवलि (-ली) स्त्री० पेट उपरना त्रण तेवू स्थान - त्रिभेटो वाटा (सुंदर स्त्री- लक्षण) त्रिपथगा, त्रिपथगामिनी स्त्री० गंगानदी त्रिवारम् अ० त्रण वार; त्रण वखत त्रिपदिका स्त्री० त्रण पायावाळी बेठक त्रिविक्रम पुं० विष्णु (वामनावतारमा) के घोडी (३) हाथीनो तंग त्रिविष्टप न० स्वर्ग [करीने करेलु त्रिपदी स्त्री० त्रिपाई (२)गायत्री छंद त्रिवत् वि० त्रण गणुं करेल; त्रण भेगां त्रिपाद् वि० त्रण पाद के चरणवाळू त्रिवृत्ति स्त्री० यज्ञ-अध्ययन-भिक्षा -ए (२) त्रण चतुर्थांश (३) पुं० विष्णु त्रण वडे प्राप्त कराती आजीविका (वामनावतारमा) त्रिवेणि (-णी) स्त्री० गंगा, यमुना त्रिपिटक न० सुत्त-विनय-अभिधम्म -ए __अने सरस्वतीनं संगमस्थान त्रण प्रकारना बौद्ध धर्मग्रंथोनो समूह त्रिवेणु पुं० संन्यासीनो त्रिदंड (२). त्रिपुर पुं० त्रिपुरासुर (२)न० तेनी त्रण रथनो धोरियो - ऊध नगरीओनो समूह [शंकर त्रिशंकु पुं० एक सूर्यवंशी राजा. त्रिपुरष्न, त्रिपुरवहन, त्रिपुरारि पुं० हरिश्चंद्रनो पिता त्रिपुंड, त्रिपुंडक पुं० त्रण लीटीनुं तिलक त्रिशिख न० त्रिशूळ त्रिफला स्त्री० हरडां, बहेडां अने त्रिशूल न० त्रण अणीओवाळु एक आ. आमळां -ए त्रणनो समुदाय त्रिस् अ० त्रण वार; त्रण वखत त्रिभंग न० त्रण ठेकाणेथी वळेलं होय त्रिसरक न० त्रण वार मद्य पी है। एवी शरीरनी मुद्रा त्रिस्थली स्त्री० काशी, प्रयाग अने वा त्रिभुज न० त्रिकोण - ए त्रण धाम [त्रणनो स) ५५ त्रिभुवन न० त्रण लोकनो समूह त्रिलोक त्रिस्थान न० माथु, गळं अने छार त्रिभुवनगुरु पुं० शिव त्रिस्रोतस् स्त्री० गंगानदी ___ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ त्रिंशत् त्रिंशत्, त्रिंशति स्त्री० त्रीस (संख्या) त्रुट ४, ६५० तूटवू; फूटवू त्रुटित ('त्रुट' नुं भू० कृ०)वि० तूटेखें; भांगेलं; तोडेलु; फोडेलु त्रेता स्त्री० चार युगोमांनो बीजो (२) पासानो एक दाव (त्रणनी निशानीवाळो) (३)अग्निहोत्रना त्रण पवित्र अग्नि(गार्हपत्य,दक्षिण अने आहवनीय) त्रेधा अ० त्रण प्रकारे; त्रण रीते । त्रै १ आ० रक्षण करवं; बचाव कालिक, काल्य वि. वर्तमानभूत-भविष्य -ए त्रण काळ संबंधी (२) न० त्रण काळ (वर्तमान, भूत, भविष्य अथवा सूर्योदय, मध्याह्न अने सूर्यास्त) त्रैगुण्य न० सत्त्व-रजस्-तमस् -ए त्रण गुणोनो समूह (२)त्रण गुणनुं बनेलं के त्रण गुणवाळ होवू ते त्रैमातुर पुं० लक्ष्मण त्रैलोक्य न० स्वर्ग, मृत्यु, पाताळ -ए त्रण लोकनो समुदाय त्रैलोक्यप्रभव पुं० राम त्रैलोक्यबंधु पुं० सूर्य [त्रणने लगतुं त्रैवर्गिक वि० धर्म, अर्थ, काम -ए वणिक वि० प्रथम त्रण वर्णने लगतुं त्रैविक्रम वि० विष्णु संबंधी (२)विष्णुए भरेलांत्रण पगलां संबंधी विद्य वि० त्रणे वेद जाणनाएं (२) त्रण वेदोए प्रवर्तावेलु (३) न० त्रण वेदोनो समूह त्रोटक न० नाटकनो एक प्रकार त्रोटि (-टी) स्त्री० चांच त्रोत्र न० हांकवानो परोणो त्र्यक्ष पुं० शंकर (त्रण आंखवाळा) त्र्यंग न० त्रण विभाग (रथ, अश्व, पदाति)-वाळं लश्कर त्र्यंबक पुं० शिव (त्रण आंखवाळा) त्वकत्र न० बख्तर त्वच्, त्वचा स्त्री० चामड़ी (२)छाल (३) स्पर्शद्रिय (४) कोई पण वस्तुनो उपरनो ढांकण जेवो भाग त्वत् (-द्) केटलाक समासोनी शरू आतमां बीजा पुरुष सर्वनाम (युष्मद्')नुं रूप (उदा० 'त्वदधीन'; 'त्वत्सादृश्यम्') (२) 'तारी पासेथी' ('युष्मद् ' नुं पांचमी विभक्ति एकवचन- रूप) त्वदीय वि० तारु त्वद्विध वि० तारा जे त्वर् १ आ० उतावळ करवी ___-प्रेरक० उतावळ कराववी (२) । उतावळथी बोलावी लेवू त्वरता, त्वरा स्त्री० उतावळ ; झडप त्वरित वि० उतावळु; शीघ्र (२) न० त्वरा; उतावळ त्वरितम् अ० उतावळथी; वेगे त्वष्ट्र पुं० सुथार (२) देवोनो सुथार - विश्वकर्मा (३) प्रजापति । त्वंकार पुं० तुकारो; तुं' थी बोलावते त्वंग १५० जq; चालवू (२) कूदको मारवो (३) धूजर्बु समान त्वादृश् (-श) वि० तारा जेवू ; तारी त्विष १ उ० प्रकाश; चळक; बळवं विष् स्त्री० प्रकाश; तेज; चळकाट (२) सौंदर्य ; कांति (३) तीव्रता सरु पुं० तरवार वगेरेनी मूठ त्सारक वि० तरवार वापरवामां कुशळ थुत्कार, थूत्कार पुं०, थूत्कृत न० धुंकवानो अवाज थे थे अ० एक वाद्यना ध्वनिनी जेम Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ द वि० (समासने छेडे) आपनाएं; वधारनारुं (उदा० 'जलद') दक न० पाणी; उदक दक्ष १ प० बीजाने संतोष थाय तेम वर्तवं (२) १ आ० शक्तिमान थवं (३) जलदी करवं (४) वधवं (५) जवू (६) वध करवो -प्रेरक० खुश कर दक्ष वि० प्रवीण ; कुशळ (२) योग्य (३) सावध ; तत्पर (४) पुं० जमणी बाजु (५) एक प्रजापति (शिवना ससरा- सतीना पिता) दक्षकन्या, दक्षतनया, दक्षसुता स्त्री० सती (बीजे जन्मे पार्वती) (२)नक्षत्र (२७ नक्षत्र-कन्याओ जेमने चंद्र साथे परणावी हती तेमांनी दरेक) दक्षिण वि० चतुर; कुशळ (२) जमणं; जमणी तरफ आवेलुं (३) दक्षिण दिशा तरफ४ (४) प्रमाणिक (५) योग्य (६) अनुकूळ ; वश (७) सभ्य (८)पुं० जमणो हाथ (९) अग्निहोत्रना त्रण अग्नि पैकी एक (१०) पुं०, न० जमणी बाजु (११) दक्षिण दिशा दक्षिणपश्चिमा स्त्री० नैर्ऋत्य खूणो दक्षिणपूर्वा स्त्री० अग्नि खूणो दक्षिणा अ० जमणी बाजुए (२) दक्षिण तरफ (३) स्त्री० धर्मकार्यमां ब्राह्मणने अपातुं दान (४०)प्रजापतिनी पुत्री अने यज्ञनी पत्नी (५) महेनतना बदलामां अपातो पुरस्कार (६) दक्षिण दिशा (७) दुधाळी गाय दक्षिणाचार वि० प्रमाणिक; सदाचारी वक्षिणापथ पुं० दक्षिणदेश दक्षिणायन न० सूर्य, कर्क राशिमां जq ते (२) न० कर्कसंक्रांतिथी मकरसंक्रांति सुधीनो समय दक्षिणार्ह वि० दक्षिणा आपवा लायक दक्षिणावर्त वि० डाबीथी मांडीने जमणी बाजु तरफ वळतुं (शंख) (२) पुं० तेवो शंख (३) दक्षिणदेश दक्षिणीय वि० दक्षिणाने योग्य दक्षिणेतर वि० डाबु (हाथ के पग) दक्षिणेन अ० जमणी बाजुए। दक्षिण्य वि. जुओ 'दक्षिणीय' दग्ध ('दह,' नुं भू० कृ०) वि० अग्निथी बळी गयेलं (२) शोकथी संतप्त (३) अशुभ (४) दुष्ट ; निंद्य दग्धजठर न० भूख्यु पेट; बळयु पेट दघ्न वि० सुधी पहोंचतुं, -जेटलं ऊंचं के ऊडु -ए अर्थमां नामने छेडे जोडाय छे (उदा० 'उरुदघ्न') दच्छद (दत् + छद) पुं० होठ दत् पुं० ('दंत' ने बदले विकल्पे वपराय छ; एना पहेलां पांच रूपो नथी) दांत दत्त ('दा' नुं भू० कृ०) वि० अपायेलं; भेट अपायेलु (२) मुकायेलुं (३) रक्षायेलु (४) पुं० दत्तकपुत्र (५) दत्तात्रेय (६) न० दान; बक्षिस दत्तक पुं० शास्त्रविधि प्रमाणे पोतानो करेलो (बीजानो) पुत्र दत्तदृष्टि वि० तरफ जोतुं दत्तहस्त वि० टेका माटे हाथ आपेलु (२) मदद करायेलं दत्तावधान वि० एकाग्र; लक्षवाळू दत्ति स्त्री० बक्षिस; भेट दद् १ आ० आपq; बक्षिस आपवी दद्रु पुं० दादर; खरजवू (२) एक जातनो कोढ दधि न० दहीं Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ दधीच दधीच पुं० एक प्रख्यात ऋषि (वज बनाववा पोतानां हाडकां आपनार) दधीचास्थि न० इन्द्रनुं वज्र (२) हीरो दधीचि पुं० जुओ 'दधीच' दधृष् वि० बेशरम; धृष्ट [माता दनु स्त्री० कश्यपनी पत्नी - दानवोनी दनुज पुं० राक्षस ; दानव दनुजद्विष्, दनुजारि पुं० देव दभ्र वि० अल्प; थोडं दम् ४५० शांत करवू; वश करवू (२) दमन करवू; निग्रह करवो (३)पळावं (पशु-) (४) शांत पडq - थर्बु दम पुं० दमन करवू ते ; निग्रह करवो ते (२) इंद्रियनिग्रह (३) चित्तने पापप्रवृत्तिमांथी निवार, ते दमन वि० दमन करनारुं; वश करनारं (२) इंद्रियनिग्रही (३) न० इंद्रियनिग्रह; आत्मसंयमन (४) शिक्षा; सजा (५) नाश; वध दम्य वि० केळववा योग्य (काची उमरखें) (२) शिक्षा करवा योग्य (३)पुं० वाछरडो; जुवान बळद (जेने केळववानी जरूर छे) दय् १ आ० दया आववी; दया करवी (२) चाहवू (३) रक्षण करवू दया स्त्री० कृपा; करुणा दयालु वि० दयावाळं; कृपाळु दयित वि० प्रिय (२) पुं० पति; प्रेमी दयिता स्त्री० पत्नी; प्रिया दर वि० फाडनाएं; चीरनारं (समासने अंते) (२) अल्प; थोडु (३) पुं०, न० गुफा ; बखोल; बाकुं (४) शंख (५) पुं० बीक; डर दरतिमिर न० बीकरूपी अंधारुं दरम् अ० थोड़क; जराक दरमंथर वि० थोडुक धीमुं दरि स्त्री० गुफा; पर्वतनी बखोल दरिद्र पुं० गरीब; निर्धन दर्शनपथ दरिद्रता स्त्री० निर्धनता; गरीबाई दरिद्रा २ प० निर्धन - गरीब होवू (२) दुःखी होवू (३) अल्प - आर्छ थर्बु दरिभृत् पुं० पर्वत दरिमुख न० गुफा जेवू मों (२) मों जेवी गुफा (३) गुफानुं मों दरी स्त्री० जुओ 'दरि' दर्दुर पुं० देडको (२) मोरली - वांसळी जेवू वाद्य (३) दक्षिणनो एक पर्वत दर्दुरपुट पुं० पावो वगेरे वाद्यनुं मुख दर्बु (-) पुं० खरजवू; दादर दर्प पुं० अभिमान ; गर्व दर्पक पुं० कामदेव (२) गर्व दर्पकल वि० मधुर तथा अभिमानभर्या शब्दवाळू दर्पण पुं० अरीसो, दर्पित वि० अभिमानी; गर्विष्ठ दर्भ पुं० कुश; दरभ दर्भाकुर न० दर्भनी धारदार अणी दवि(-:) स्त्री० कडछी; पळी (२) __ सापनी फेलावेली फेण दर्श पुं० दृश्य ; देखाव (घणुं खरं समासमां उदा० 'दुर्दर्श') (२) अमावास्या (३) दर पडवे करातो यज्ञ-होम दर्शक वि० दर्शावनाएं; बतावनाएं (२)जोतुं; निहाळतु (३) समजावतुं दर्शन वि. जोतं; निहाळतं (समासने अंते) (२) दर्शावतुं ; शीखवतुं (३) न० जोवू ते; निहाळवं ते (४) जाणवू – समज ते (५) नजर ; दृष्टि (६) आंख (७) तपास; निरीक्षण (८) दर्शाववं ते (९) देखावू ते; नजरे पड, ते (१०) दर्शन करवा के मुलाकाते जर्बु ते (११) देखाव; स्वरूप (१२) तत्त्वज्ञाननो सिद्धांत (१३) अभिप्राय ; मत (१४) दर्पण दर्शनपथ पुं० नजर पहोंची शके तेटलो प्रदेश; दष्टिमर्यादा Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्शनीय २०५ वहर दर्शनीय वि० सुंदर; जोवा योग्य (२) दशमुख पुं० रावण चंद्रना पिता बताववा-रजू करवायोग्य (अदालतमां)। दशरथ पुं० अयोध्याना राजा; रामदर्शयित वि० दर्शावनाएं (२) दोरनारु दशरूपक न० नाटकना दश प्रकार दर्श-दर्शम् अ० दरेक नजरे दशवक्त्र, वशवदन पुं० रावण दर्शित वि० दर्शावेलु; बतावेलु (२) दशविध वि० दश प्रकारनुं समजावेलं; साबित करेलं दशशतनयन, दशशताक्ष पुं० इंद्र (हजार वशिन् वि० (समासने अंते) जोतुं; आंखवाळो) समजतुं; नजर राखतुं; दर्शावतुं (२) दशहरा स्त्री० गंगानदी (दश पापनो -लेवानी ज पेरवी राखतुं नाश करनारी) (२) दशेरा दल १५० तोडq; फोडवू; चीरवं; दशा स्त्री० वणेला ताकानी दशी फाडवू (२)खीलवू; विकसQ - आंतरी (२) वस्त्रनो छेडो (३) -प्रेरक० फाडवू; चीरवु(२)कापवू; दिवेट (४)जीवननी अवस्था-स्थिति टुकडा करवा (३)करमाई जर्बु (बाल्य, यौवन इ०) (५) कर्मफळ दल पुं०, न० भाग; टुकडो (२)पांखडी; रूपे प्राप्त थती स्थिति कुमळू पान करवो ते दशानन पुं० रावण दलन न० भांगवु-फोडq-तोडq-चूरो । दशाभाग पुं० खराब दशा दलित ('दल्'नुं भू००)वि० भांगेलं; दशार्ष न० पांच (संख्या) तुटेलु ; फोडेलु; फूटेलु (२) विकसेल; दशावताराः पुं० ब० व० विष्णुना दश खीलेलं (३) पग तळे रोळेलु अवतार (मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, दव पुं० जंगल (२) दावानळ वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध दवथु पुं० ताप (२) संताप ; गुस्सो अने कल्कि ) अंत दवदहन पुं० दावानळ दशांत पुं० दिवेटनो छेडो (२)जीवननो दवाग्नि, दवानल पुं० जुओ 'दवदहन' दशांतर न० जीवननी जुदी-जुदी (सुखदविष्ठ वि० सौथी वधारे दूर ('दूर' नुं दुःखवाळी) स्थिति श्रेष्ठतात्मक रूप) दशांश (दशन् + अंश) पुं० दशमो भाग दवीयस् वि० वधारे दूर ('दूर' नुं तुल- दशांश (दशा + अंश) पुं० खराब नात्मक रूप) अवस्था; दुःखना दहाडा शक न० दशनो समूह दशेरक पुं० नानुं ऊंट (२) गधेडो दशकंठ, दशकंधर, दशग्रीव पुं० रावण दष्ट ('दंश्' नुं भू० कृ०) वि० दंशित; वशधा अ० दश प्रकारे; दश रीते करडायेलं वशन् वि० दश; दस (संख्या) दसेरक पुं० जुओ 'दशेरक' दशन पुं०, न० दांत (२) करडवू ते दस्यु पुं० चोर (२)आवश्यक संस्कार दशनच्छद पुं० होठ न कर्या होवाथी बहिष्कृत माणस (३) दशनपद न दांत बेठा होय तेनुं चिह्न राक्षस (४) शत्रु (५) जुलमी माणस दशनांशु पुं० दांतनो चळकाट दह, १५० बळवं; बाळq (२) नाश दशम वि० दशम करवो (३) दुःख देवं; पीडबुं दशमी स्त्री० दशमी तिथि (२) दहन वि० बाळनारुं (२)विनाशक (३) आयुष्यनो दशमो दशको (३)सकानां पुं० अग्नि [पुं० हृदयाकाश छेल्लां दश वर्ष दहर वि० नाचें; सूक्ष्म ; झीj (२) Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दंड् दंड १० उ० शिक्षा करवी; दंड करवो दंड पुं०, न० दंडो; लाकड़ी; सोटी (२) राजदंड (३) ब्रह्मचारी के संन्यासीनो दंड (४) दांडो (कमळनो) (५) हाथो ( छत्र इ० नो ) ( ६ ) शिक्षा; सजा ( ७ ) शिक्षा तरीके लेवातुं नाणुं (८) सेना; लश्कर (९ ) नियंत्रण; निग्रह (१०) राजनीतिशास्त्र दंडक पुं०, लाकड़ी; काठी (२) ध्वजस्तंभ (३) हार; ओळ दंडक पुं०, न०, दंडका स्त्री० नर्मदा अने गोदावरी नदी वच्चेनो प्रदेश दंडकारण्य न० दंडक वन ( दक्षिणमां ) दंडग्रहण न० संन्यास लेवो ते दंडच पुं० सैन्यनो विभाग दंडधर, दंडधार वि० शासन करनाएं; शिक्षा करनाएं ( २ ) पुं० राजा ( ३ ) सेनापति ( ४ ) यमराज दंडन न० शिक्षा करवी ते ; दंड करवो ते दंडनायक पुं० दंड करवानो अधिकार जेने छे ते ( न्यायाधीश, फोजदार, राजा) (२) सेनापति दंडनीति स्त्री० राजनीतिशास्त्र ( २ ) न्याय आपको ते (३) दुर्गा दंडपाणि पुं० यमराजा ( २ ) पोलीस दंडपाल, दंडपालक पुं० मुख्य न्यायाधीश (फोजदारी गुनानो) (२) द्वारपाळ दंडपाशक, दंडपाशिक पुं० मुख्य पोलीस अधिकारी ( २ ) फांसी आपनारो वंडमाणव, दंडमानव पुं० दंडधारी संन्यासी के ब्रह्मचारी (२) आगेवान; नायक [ ( नमस्कार करवा ते ) दंडवत् अ० दंडनी पेठे लांबा पडीने दंडाघात पुं० लाकडीथी मारवुं ते दंडादंडि अ० सामसामा लाकडीएलाकडीए (लडवुं ते) दंडाधिप पुं० मुख्य न्यायाधीश (फोजदारी गुनानो) २०६ दंत्य दंडानीक न० लश्करनो विभाग दंडार पुं० रथ; गाडी (२) (कुंभारनो) चाकडो ( ३ ) होडी (४) मदमां आवेलो हाथी (५) धनुष्य दंडिका स्त्री ० लाकड़ी; दंडो ( २ ) मोतीनी माळा; कंठहार ( ३ ) दोरडुं (४) ओळ; पंक्ति दंडिन् वि० दंडधारी (२) पुं० संन्यासी istan पुं० धमकी आपवी ते (२) सत्तानुं जोर अजमाव ते दंत पुं० दांत ( २ ) दंतूशळ ( ३ ) दंष्ट्रा वंतक पुं० दांत (२) शिखर ( ३ ) खूंटी ( ४ ) छाजली; अभराई दंतकार पुं० हाथीदांतनुं काम करनार दंतकाष्ठ न० दातण दंतकूर पुं० संग्राम; युद्ध तच्छद पुं० होठ [ते ( २ ) दातण दंतधाव पुं०, दंतधावन न० दातण क दंतपत्र न० एक कर्णभूषण तपत्रिका स्त्री० एक कर्णभूषण (२) कांसकी (३) कुंद पुष्प inपांचालिका स्त्री० हाथीदांतनी पूतळी वंतप्रक्षालन न० दांत साफ करवा ते दंतवस्त्र, दंतवासस् न० होठ दंतवीणा स्त्री० एक तंतुवाद्य (२) दांत ककडवा ते (टाढथी) दंतव्यापार पुं० हाथीदांतनो हुन्नर दंतालिका, दंताली स्त्री० लगाम वंतावल, दंतिन् पुं० हाथी दंतुर वि० लांबा अने बहार नीकळता दांतवाळं (२) ऊंचं नीचुं (३) कांटा ऊभा थया होय तेवुं; रोमांचित दंतुरित वि० दांत (२) ऊंच नीचुं; खरबचड़ (३) खरडायेलुं; छवायेलुं दंतोलूखलिक पुं० भरडया - खांडया विनानुं धान्य खानारो अरण्यवासी के तपस्वी दंत्य वि० दंतस्थानी (वर्ण) ( व्या० ) Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बंदशूक वंदशक वि० करडकणुं ; झेरीलुं ( २ ) पुं० साप ( ३ ) राक्षस चंद्रम्यमाण वि० जुदे जुदे रस्ते जतुं दंपती पुं० द्वि० व० पति अने पत्नी बंभ पुं० डोळ; ढोंग; छळकपट दभिन् पुं० दंभी ; ढोंगी वंश १५० [ दशति ] डंख मारवो; करडवु (२) १प० [ दंशति ], १० उ० [ शयति - ते ] बोलवु ( ३ ) प्रकाशवुं वंश पुं० डंख मारतो ते ; करडवुं ते (२) सर्पदंश ( ३ ) दंशनी जगा ( ४ ) दांत (५) बगाई [ ( २ ) बख्तर वंशन न० करडवु ते ; डंख मारतो ते वंशित वि० करडायेलुं; जेने कई कर होय तेवुं ( २ ) बस्तरधारी ( ३ ) तत्पर; सज्ज; एक लक्षवाळु दंष्ट्रा स्त्री० मोटो दांत (२) दाढ वंष्ट्राल वि० मोटी दंष्ट्रावाळु बंष्ट्रिन् वि० जुओ 'दंष्ट्राल' (२) पुं० जंगली डुक्कर (३) साप दा १५० [ यच्छति ] आपबुं; आपी देवु (२) २प० [दाति ] कापवु : तोडवुं ( ३ ) ३ उ० [ ददाति, दत्ते ] आप ( ४ ) भेट आपवी (५) सोंपवुं (६) पार्छु आपवुं (७) लग्नमां आपवुं (८) - देव; रजा आपवी दाक्षायण पुं० दक्ष प्रजापतिनो वंशज (२) न० सोनुं; सोनानुं घरेणुं दाक्षिणात्य वि० दक्षिण दिशानुं; दक्षिण तरफ रहेलुं (२) पुं० दक्षिणनो वतनी दाक्षिण्य न० कौशल्य; प्रवीणता (२) सभ्यता; विनय; शिष्टता (३) वधारे पडतो - देखावनो - विनय ( रूठेली प्रेमिकाने मनाववा बतावातो) (४) दक्षिण दिशा संबंधी वाक्ष्य न० दक्षता; कुशळता; चतुराई (२) प्रमाणिकता (३) उद्यम ; उद्योग बाघ पुं० बळवंते; दाह २०७ दायित् दाडिम, दाडिंब पुं० दाडमडी ( २ ) न० दाङम दाढा स्त्री० दंतूशळ; दाढ दात ('दा' नुं भू० कृ० ) वि० कापेलुं; लणेलुं (२) ('दै' नुं भू० कृ० ) स्वच्छ करेलु; धोयेलं [आपवानुं दातव्य वि० आपवा योग्य (२) पार्छु दातु वि० आपनाएं ; देनारुं ( २ ) दाता ; उदार (३) पुं० दाता दात्यूह पुं० एक पंखी ( कालकंठक, जलकाक, चातक इ० ) दात्र न० दातरडा जेवुं एक ओजार दाद पुं० बक्षिस दान दान न० देवं ते; आपवुं ते (२) शीखवबुं ते (३) लग्नमां आपवुं ते ( ४ ) बक्षिस ; भेट ( ५ ) हाथीना गंडस्थळमांथी झरतो मद ( ६ ) लांच दानभिन्न वि० लांचथी फोडेलुं दानव पुं० राक्षस; असुर दानवषिन् पुं० मदमां आवेलो हाथी दानवारि न० मद ( हाथीनो) दानवारि पुं० देव (दानवोनो दुश्मन ) दानवीर पुं० मोटुं दान करनार माणस दानशील, दानशूर, दानशौंड वि० अत्यंत उदार; दान करवामां तत्पर वाम न० ( समासने अंते ) हार; माळा दामन् वि० दानशील दामन् न० दोरडुं; दामण ( २ ) माळा दामनी स्त्री० पगे बांधवानुं दोरडुं दामांचल न० घोडाने पगे बांधवानुं दोरडं दामिनी स्त्री० वीजळी दामोदर पुं० श्रीकृष्ण दाय पुं० बक्षिस ( २ ) भाग; हिस्सो दायक वि० (समासने अंते ) आपनाएं (उदा० 'पिंडदायक') दायभाग पुं० वारसानी वहेंचणी दायाद पुं० वारसदार ( २ ) सगो वायिन् वि० ( समासने अंते ) आपनाएं; उत्पन्न करनाएं (उदा० 'क्लेशदायिन् ' ) Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ दिग्गज वार पुं० चीरो; फाट (२)पुं० ब०व० दाशार्ह पुं० श्रीकृष्ण जुओ 'दाराः' पुं० पुत्र दाशेयी स्त्री० जुओ 'दाशनंदिनी' दारक वि० चीरनाएं; फाडनारु (२) वाशेर पुं० माछीमार (२) ऊंट दारकर्मन् न० लग्न [बाळक ; बच्चुं दाशेरक पुं० माछीमार (२) मालवदेश दारकी स्त्री० पुत्री; दीकरी (२) दास पुं० चाकर; नोकर (२) आर्य दारक्रिया स्त्री० लग्न नहि तेवी जातिनो माणस दारण न० फाडवू-कापq-चीरवू ते दासानुदास पुं० दासनो पण दास (अति वारपरिग्रह पुं० लग्न नम्रता बताववा वपराय छे) दारव वि० लाकडा, बनावेलं दासी स्त्री० नोकरडी (२) माछण वारवी ('दारव' विनुं स्त्रीलिंग) दासेर, बासेरक पुं० दासीनो पुत्र (२) लाकडानी बनावेली माछीमार (३) ऊंट दारसंग्रह पुं० लग्न दास्य न० दासपणुं; गुलामी दाराः पुं० ब० व० पत्नी दास्याःपुत्र पुं० वेश्यानो पुत्र (गाळ) दारिका ('दारक' विनु स्त्रीलिंग) वाह पुं० बळवं ते; बाळवं ते (२) फाडनारी; चीरनारी संताप ; बळतरा; गरमी (३) स्मशान दारिका स्त्री० पुत्री (२) फाट; चीरो वाहक वि० बाळनारं (२) पुं० अग्नि दारित वि० फाडेलु; चीरेलु दाहन न० बाळी नाखवू ते दारिद्र, दारिद्रप न निर्धनता; गरीबाई दाहात्मक वि० बाळवानी शक्तिवाळू दाहिन वि० बाळनारं (२) संतापनारं दार न० लाकडं सारथि दारुक पुं० देवदार वृक्ष (२)श्रीकृष्णनो दाह्य वि० बळी शके तेवू (२) बाळी नाखवा योग्य कारकर्मन् न० जुओ 'दारुकृत्य' दारुका स्त्री० लाकडानी पूतळी दांडिक पुं० शिक्षा करनार दारकृत्य न० लाकडानी कारीगरी (२) दांत ('दम्' नुं भू० कृ०) वि. निग्रह लाकडानु बनाववानुं ते करेलु; वश करेलं; नालु (२) निग्रहवाळं; संयमी दारण वि० भयंकर (२) कठण ; कठोर दांतिक वि० हाथीदांतनुं बनेलं (३) निर्दय (४) तीव्र दांपत्य न० पतिपत्नी-संबंध दारोदर वि० जुगारने लगतुं दांभिक वि० दंभी; ढोंगी (२) कपटी दाढर्ष न० दृढता; मक्कमता (२) दिककन्या स्त्री० दिशारूपी कन्या समर्थन करवू ते (३)बळ ; ताकात दिकचक्र न० क्षितिज (२) समग्र जगत दार्भ वि० दर्भनं बनावेलू दिकपाल पुं० दिशानो रक्षक देव दार्शनिक पुं० दर्शनशास्त्र जाणनारो दिगंत पुं० दिशानो छेडो; क्षितिज दाव पुं० दावानळ ; दव दिगंतर न० बीजी दिशा (२)अंतरीक्ष दावाग्नि, दावानल पुं० दावानळ; दव (३) बीजो देश; दुरनो देश दावित वि० दूभवेलं; दुभायेलं दिगंबर वि० दिशारूपी वस्त्रवाळ - नग्न दाश पुं० माछीमार (२) दास; नोकर (२) पुं० नग्न भिक्षु (जैन के बौद्ध) दाशनंदिनी स्त्री० सत्यवती ; व्यास-माता दिगीश, दिगीश्वर पुं० जुओ 'दिक्पाल' दाशरथ, दाशरथि पुं० दशरथनो पुत्र दिग्गज पुं० दिशाओगें रक्षण करनार (२) राम आठ हाथीओमांनो दरेक Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०९ दिग्दर्शन दिग्दर्शन न० मात्र दिशा दर्शाववी ते (२) सामान्य रूपरेखा दिग्दतिन् पुं० जुओ ‘दिग्गज' दिग्दाह पुं० दिशाओ बळती देखावी ते (एक उत्पात गणाय छे) दिग्ध ('दिह, 'नुं भू. कृ०) वि० लेपायेलु; लेपेलं ; खरडायेलुं (२) झेर पायेलं; झेरी बनावेलु (३) पुं० लेप (४) विष पायेलं बाण दिग्नाग पुं० जुओ ‘दिग्गज' दिग्भ्रम पुं० दिशा न जडवी - सम जावी ते दिग्मात्र न० जओ 'दिङमात्र' दिग्मुख न० जुओ ‘दिङमुख' दिग्मोह न० जुओ ‘दिग्भ्रम' दिग्वधू स्त्री० दिशारूपी स्त्री दिग्यासस् वि० जुओ 'दिगंबर' दिग्विजय पुं० चार दिशाओनो विजय; संपूर्ण विजय दिनाग पुं० जुओ ‘दिग्गज' दिलमात्र न० मात्र सूचन - इशारो दिनुख न० आकाशनो भाग- दिशा दिमोह पुं० जुओ ‘दिगभ्रम' दित ('दो' नुं भू० कृ०) वि० कापेलं; कपाई गयेलं; जुदुं पडेलु दिति स्त्री० कश्यप ऋषिनी स्त्री; दैत्योनी माता (२) कापq ते दितिज, दित्य पुं० दैत्य ; असुर; राक्षस । दित्सा स्त्री० आपवानी इच्छा विदक्षा स्त्री० जोवानी इच्छा दिदक्ष वि० जोवानी इच्छावाळं दिन पुं०, न० दिवस (२) दिवस अने रात्रि (२४ कलाक) दिनकर पुं० सूर्य दिनकर्तव्य न० जुओ 'दिनकृत्य' दिनकर्तृ, दिनकृत् पुं० सूर्य . दिनकृत्य न० रोज करवानुं धर्मकर्म दिनचर्या स्त्री० दररोजनो कार्यक्रम दिग्ध दिनपाटिका स्त्री० रोजनी मजूरी; रोजी दिनमणि पुं० सूर्य विनमुख न० प्रातःकाळ दिनागम पुं० सवार; उषःकाळ दिनात्यय पुं० सांज; सूर्यास्त दिनादि, दिनारंभ पुं० सवार; उष:काळ दिनावसान न०, दिनांत पुं० सायंकाळ दिलीप पुं० एक सूर्यवंशी राजा; भगीरथ नो पिता (२) (कालिदासना मते) रघुनो पिता विव ४ प० [दिव्यति] प्रकाशवं; चळकवू (२) फेंकद् (बाण'; अस्त्र) (३) पासाथी जुगार खेलवो (४) होडमां मूकवं. दिवस दिव् स्त्री० स्वर्ग (२) आकाश (३) दिव न० स्वर्ग (२) आकाश दिवस पुं०, न० दहाडो दिवसकर, दिवसनाथ पुं० सूर्य दिवसमुख न० प्रातःकाळ ; परोढ दिवसविगम, दिवसांत पुं० सायंकाळ दिवसेश्वर पुं० सूर्य दिवस्पति पुं० इंद्र दिवा अ० दिवसे दिवाकर पं० सूर्य दिवातन वि० दिवसर्नु; दिवस संबंधी दिवानक्तम् अ० रातदिवस दिवाभीत, दिवाभीति पुं० घुबड दिवावसान न० सांज दिवाशय वि० दिवसे सूनारु दिवास्वप्न, दिवास्वाप पुं० दिवसे सूवं ते दिवांध वि० दिवसे आंधळु(२)पुं० घुवड दिविषद, दिविष्ठ, दिविसद्, दिविस्थ पुं० स्वर्गमा रहेनार - देव दिवोकस्, दिवौकस् (-स) पुं० स्वर्गनो निवासी -- देव दिव्य वि० स्वर्गीय (२) देवी; अलौकिक (३) तेजस्वी (४) कोई गुनेगार छे के नहि ते नक्की करवा अग्नि वगेरे द्वारा कराती परीक्षा Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश्चक्षुस् दिव्यचक्षुस् वि० दिव्यदृष्टिवाळ दिव्यधुनी स्त्री० भागीरथी दिव्यस्त्री, दिव्यांगना स्त्री० अप्सरा दिशु ६ उ० बताववु; दर्शाववुं ( २ ) -ने हिस्से नाखवु; आपकुं; सोपवु (३) आज्ञा करवी; हुकम करवो (४) संमति आपवी; अनुज्ञा आपवी - प्रेरक० दर्शाववु; कहेवुं; जणाववुं (२) हुकम करवो (३) अर्पव दिश स्त्री० दिशा ( २ ) सूचन ( ३ ) पद्धति ( ४ ) स्थळ प्रदेश ; दिशा स्त्री० पूर्व वगेरे चार दिशाओमांनी दरेक (२) बाजु; तरफ दिष्ट ( 'दिश्' नुं भू० कृ० ) वि० बतावायेलं; निर्देशायेलं; सूचवायेलु; वर्णवायेलुं ( २ ) विधाताए नियत करेलु (३) निश्चित थयेलु (४) न० दैव; नसीब ( ५ ) हुकम ; आज्ञा दिष्टभाव, दिष्टांत पुं० मरण; मृत्यु दिष्टि स्त्री० निर्देश; आज्ञा (२) सद्भाग्य ( ३ ) नसीब दिष्टधा अ० सारे नसीबे दिष्टा वृ ' - ना बदल अभिनंदन घटे छे' ( - अर्थमां ) दिह २ उ० लेपवु ; खरडवुं दी ४ आ० क्षीण थवु; नाश पामवु दीक्ष १ आ० दीक्षा लेवी के आपवी (२) समर्पित थ - प्रेरक ० प्रेवु; फरज पाडवी दीक्षा स्त्री० यज्ञ व्रत नियम माटे विधिपूर्वक संकल्प करवो ते (गुरु पासे) (२) यज्ञोपवीत धारण करवुं ते (३) कोई कार्य समर्पित थवुं ते दीक्षाश्रम पुं० वानप्रस्थाश्रम दीक्षांत पुं० यज्ञने अंते दोषनिवारणार्थे रातो वधारानो यज्ञ ( २ ) अवभृथस्नान दीक्षित वि० दीक्षा लीघेलुं (२) यज्ञ माटे संकल्प कर्यो होय तेवुं (३) अभिषेक करेलु २१० वीर्घदृष्टि afafत स्त्री० प्रकाशनुं किरण ( २ ) तेज; प्रकाश ( ३ ) पराक्रम; बळ दीधितिमत् पुं० सूर्य दीन वि० निर्धन; गरीब (२) दुःखी (३) कंगाळ; क्षुद्र (४) भयभीत (५) पुं० गरीब माणस; दुःखी माणस (६) न० दु:ख, कंगालियत दीनार पुं० चलणी सिक्को (२) सोनामहोर ( ३ ) सोनानुं घरेणुं दीपू ४ आ० दीपवु; प्रकाशवुं ( २ ) सळावं; प्रज्वलित थनुं ( ३ ) प्रदीप्त थवं; वधवुं ( ४ ) गुस्से थवुं ( ५ ) प्रसिद्ध थ दीप पुं० दीवो दीपक वि० प्रकाशक (२) उत्तेजक; वधारनाएं (३) जठराग्निने प्रदीप्त करना (४) पुं० दीवो दीपन वि० दीपक; प्रकाशक; उत्तेजक (२) न० प्रदीप्त करवुं ते; सळगावबुं ते (३) उत्तेजक औषधि दीपपात्र, दीपभाजन न० कोडियं दीपमाला स्त्री० दीपमाळ दीपर्वात स्त्री० दिवेट दीपवृक्ष पुं० दीवी (२) दीपमाळ दीपशिखा स्त्री० दीवानी ज्योत दीपालि ( - ली), दीपावली स्त्री० दीवानी पंक्ति - हार (२) दिवाळी दीपांकुर पुं० दीवानी ज्योत दीपिका स्त्री० दीवी; दीवो दीपिन् वि० प्रदीप्त - उद्दीपित करनाएं (२) प्रकाशित; तेजस्वी दीप्त ( 'दीप' नुं भू० कृ० ) वि० सळ गेलं; प्रदीप्त ( २ ) प्रकाशित; तेजस्वी दीप्ति स्त्री० तेज; प्रकाश ( २ ) सौंदर्य; अतिशय कांति दीप्र वि० तेजस्वी ; प्रकाशित दीर्घ वि० लांबु (२) विस्तृत ( ३ ) ऊंडु दीर्घदर्शन, दीर्घदशन्, दीर्घदृष्टि वि० दूरदर्शी अगमचेतीवाळु डाहघुं Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुरुदर्क वीर्घ निद्रा २११ दीर्घनिद्रा स्त्री० लांबी ऊंघ (२) मृत्यु दुरवाप वि० प्राप्त करवं मुश्केल दीर्घबाहु वि० लांबा हाथवाळू दुरंत वि० जेनो अंत पामी शकाय नहि दीर्घम् अ० लांबा समय सुधी (२) एवं (२) खराब अंतवाळं (३) दुर्जेय ऊंडे सुधी (३) दूर सुधी। (४) मुश्केलीथी ओळंगी शकाय तेवू दीर्घसत्र न० लांबो यज्ञ (२) पुं० तेवो दुराक्रम वि० अजेय (२) मुश्केलीथी यज्ञ करनार पसार करी शकाय तेवू करतुं दीर्घसूत्र, दीर्घसूत्रिन् वि. नकामो दुराकंद वि० दयाजनक रीते विलाप लांबो विचार कर्या करनारं; नकामी दुरागम पुं० अन्यायथी करेली प्राप्ति वार लगाडनाएं दुराग्रह पुं० खोटो आग्रह; हठ दीर्घायु, दीर्घायुष्, दीर्घायुष्य वि० दीर्घा- दुराचार वि० दुराचारी (२) दुर्वर्तनयुषी - लांबु जीवनाएं। वाळ (३) पु० दुराचरण ; दुष्टता दीधिका स्त्री० लांचं जळाशय (२) दुरात्मन् वि० दुष्ट ; पापी सामान्य कुवो के तळाव दुराधर्ष वि० जुओ 'दुर्धर्ष' दीर्ण ('द' नुं भू० कृ०) वि० फाडेलु; दुराधि पुं० चिता (२) गुस्सो तेवं चीरेलु (२) भयभीत ; बोनेलं दुरानम वि० खेंची के वाळी न शकाय दु ५ प० बाळी नाखवू (२)दुःख देवू; दुराप वि० दुष्प्राप (२) मुश्केलीथी पोडवू (३) दुःखी थq; दुःख पामवं पासे जई शकाय ते, -कर्मणि पीडावू; दुःखी थर्बु दुरामोद पुं० दुर्गंध दुकल न० रेशमी वस्त्र (२) बारीक वस्त्र दुराराध्य वि० खुश के वश करवू मुश्केल दुग्ध ('दुह, 'भू० कृ०) वि० दोहेलु; दुरारोह वि० चडवू मुश्केल दोही लीधेलु (२) न० दूध दुरालोक वि० जो मुश्केल (२) आंजी दुग्धदा स्त्री० दूझणी गाय नाखे तेवू दुघ वि० देनारं; आपनाएं (समासने छेडे; उदा० 'कामदुघ') पीडित दुरावर, दुरावार वि० भरी के ढांकी दुत ('दु' नुं भू० कृ०) वि० दुःखित ; न शकाय तेवू (२) रोको के पूरी न दुर् अ० 'दुस्' ने बदले स्वर तथा घोष शकाय तेवू [लिंगदेह व्यंजनो पूर्वे 'खराब', 'मुश्केल', 'कठण' दुराशय वि० दुष्ट आशयवाळु (२)पुं० -ए अर्थमां मुकाय छे दुराशा स्त्री० दुष्ट आशा (२) व्यर्थ दुरक्षर न० अनिष्ट - अप्रिय शब्द आशा [शकाय तेवू दुरतिक्रम वि० अजेय; अनुल्लंघनीय ; दरास वि० मुश्केलीथी संबंध राखी दुस्तर (२) अनिवार्य दुरासद वि० मुश्केलीथी पासे जवाय दुरत्यय वि० दुर्जय (२)अगाध ; दुष्प्राप तेवु (२) दुष्प्राप (३) अजेय । दुरधिग, दुरधिगम वि० दुष्प्राप; दुर्जय दुरित न० पाप (२) संकट (२) दुर्जेय दुरुक्त न०, दुरुक्ति स्त्री० कडवो बोल ; दुरध्यय वि० शीखवू कठिन (२) दुष्प्राप खोटुं लागे तेवी वाणी (२)निंदा; गाळ दुरध्यवसाय पुं० मूर्खाईभरेली प्रवृत्ति दुरुत्तर वि० जवाब न आपी शकाय तेवू दुरध्व पुं० दुर्गम मार्ग ; खराब रस्तो । (२) पार न करी शकाय तेवू दुरन्वय वि० दुर्जेय (२) अयोग्य ; अनुचित दुरुदर्क वि० खराब परिणामवाळ (२) (३) मुश्केलीथी अनुसरी शकाय तेवू कशा परिणाम विनानुं । Lees LİLLLLLLLLL LLL HILLETLFELISE Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ दुर्दष दुरुवाहर दुरुदाहर वि० मुश्केलीथी उच्चाराय तेवू दुरुद्वह वि० ऊंचकी न शकाय तेवू दुरुपसद, दुरुपस्थान वि० पासे न जई शकाय तेवू तिवू दुरूह वि० मुश्केलीथी तर्क करी शकाय दुरोदर पुं० जुगारी (२) पासानी पेटी (३) होड (४) न० जुगार दुर्ग वि० दुर्गम (२) दुर्जेय (३) दुष्प्राप (४) खोटे मार्गे वळेलुं (५) पुं०, न० किल्लो (६) दुर्गम मार्ग (७) संकट; विपत्ति (८)पु० गूगळ दुर्गत वि० कमनसीब (२) खराब अवस्थाने पामेलं, मुश्केलीमां आवी पडेल (३) दरिद्र ; कंगाळ दुर्गति स्त्री० दुर्दशा (२) दुःखदारिद्रय दुर्गम वि० मश्केलीथी जई शकाय एवं (२) दुष्प्राप (३)दुर्बोध; दुर्जेय (४) न० दुर्गम स्थान [खराब गंध दुर्गध वि० खराब गंधवाळं (२) पुं० दुर्गा स्त्री० पार्वती दुर्गानवमी स्त्री० कार्तिक सुद नोम दुर्गणित वि० बराबर अभ्यास न करेलं दुर्ग्रह वि० दुःसाध्य; दुष्प्राप (२) मश्केलीथी जिताय तेवू (३) दुर्गम; दुर्बोध (४) पुं० हठ; जीद; धून । दुर्जन वि० दुष्ट ; शठ (२) पुं० दुष्ट माणस; शठ दुर्जय वि० अजेय; अजित दुर्जर वि० हमेशां जुवान रहेनारुं (२) पची न शके तेवू (३) भोगवी न शकाय तेवू दुर्जात वि० खराब कुळमां जन्मेलं; नीच (२) खराब स्वभावमुं; दुष्ट (३) दुःखी; कंगाळ (४) खोटुं; जूळू (५) न० संकट ; विपत्ति ; दुर्भाग्य दुर्जाति वि० खराब -दुष्ट स्वभावनुं (२) स्त्री० कमनसीबी दुर्जेय वि० मुश्केलीथी जाणी शकाय एवं दुर्णीत वि० असभ्य ; अशिष्ट ; धृष्ट (२) न० दुश्चरित्र ; दुराचरण दुर्दम, दुर्वमन, दुर्दम्य वि० दमन करवू ___ मुश्केल ; वश – ताबे करवं मुश्केल दुर्दर्श वि० मुश्केलीथी जोई शकाय एवं (२) आंजी नाखे तेवू दुर्दर्शन वि० कदरू' दुर्दशा स्त्री० खराब - माठी दशा दुर्दात वि० दमन न थई शके तेवू (२) गर्विष्ठ; तुमाखीवाळ दुदिन न० खराब दिवस (२) वादळां के वरसादना तोफानवाळो दिवस (३) वरसाद (कोई पण वस्तुनो) (४)गाढ अंधकार [दिवस दुर्दिवस पुं० अंधारियो के वरसादवाळो दुर्दश वि० जोवू न गमे तेवू (२) मुश्केलीथी जोई शकाय ते, दुर्दैव न० दुर्भाग्य ; कमनसीब दुर्धर वि० निवारी - रोकी न शकाय तेवू (२) असह्य (३) मुश्केलीथी सिद्ध करी शकाय तेवू (४) मुश्केलीथी याद करी शकाय तेवं दुर्घर्ष वि० हुमलो न थई शके तेवू (२) पासे न जई शकाय तेवू (३) भयंकर (४) तुमाखीभर्यु [उद्धतपणुं दुर्नय पुं० खराब नीति (२) अनीति (३) दुनिग्रह वि० निग्रह न करी शकाय तेवं दुनिमित वि० बेदरकारीथी फावे तेम जमीन उपर मूकेलं - नाखेलु दुनिमित्त न० भावी अनिष्ट सूचवनाएं खराब निमित्त (२) खोटु बहानुं दुनिवार, दुनिवार्य वि. निवारण न थई शके तेवू [कमनसीब दुर्नीत न० दुष्ट वर्तन; दुराचरण (२) दुर्नीति स्त्री० अव्यवस्था; अंधेर दुय॑स्त वि० खराब रीते गोठवेलु दुर्बल वि० निर्बळ ; अशक्त दुर्बुद्धि, दुर्बुध वि० दुष्ट (२) मूर्ख Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुर्बोध दुष्काल दुर्बोध वि० न समजी शकाय एवं दुर्वार, दुर्वारण वि० रोकी के निवारी दुर्भग वि० कमनसीब (२) कदरू' न शकाय एवं दुर्भगा स्त्री० पतिने न गमती स्त्री (२) दुर्वासस् वि० योग्य पोशाक न पहेरेलं कर्कशा (३) विधवा (२) नग्न (३) पुं० एक ऋषि (महादुर्भर वि० मुश्केलीथी वहन करी क्रोधी तरीके जाणीता) करनाएं शकाय तेवू; अति भारे लदायेल (२) दुर्विदग्ध वि० मूर्ख (२) खोटो गर्व मुश्केलीथी पोषी शकाय - टेकवी । दुविध वि० कंगाळ (२) दुष्ट ; नीच शकाय तेवू नसीब. दुविनीत वि० खोटी केळवणी पामेलं; दुर्भाग्य वि० अभागी (२) न० कम- अशिष्ट ; अविनयी (२) तोफानी; दुर्भिक्ष न० दुष्काळ ; दुकाळ । उद्धत (३) जक्की; जिद्दी दुर्भिद, दुर्भेद, दुर्भध वि० अभेद्य दुर्विपाक वि० माछं परिणाम लावनाएं दुर्मति वि० दुष्ट (२) मूर्ख ; अज्ञ (३) (२) पुं० मार्छ परिणाम (३) पूर्वे स्त्री० दुष्ट बुद्धि ; कुमति करेल कर्मर्नु मा फळ । दुर्मनस् वि० उदास; अस्वस्थ ; व्याकुळ दुविभाव्य वि० कल्पी के चितवी न दुर्मर न० खराब मोत; कुमरण शकाय तेवू [असभ्यता दुमंत्र पुं०, दुमंत्रणा स्त्री०, दुर्मत्रित · दुर्विलसित न० तोफान; उद्धताई; न० खोटी सलाह; अवळी सलाह दुविलास पुं० दुर्दैव; दुर्भाग्य दुर्मुख वि० कदरू' (२) गाळ बोलनारुं दुर्विष पुं० शिव खराब वर्तन दुर्मेधस् वि० मुर्ख ; मंदबुद्धिवाळं दुर्वृत्त वि० दुष्ट वर्तनवाळं (२) न० दुर्योध, दुर्योधन वि० जेनी साथे लडQ दुर्व्यसन न० धून ; लत (२) दुष्ट वलण कठिन छे तेवं; अजेय । दुल १० उ० आम तेम हलाव; ऊंचुंदुर्योधन पुं० धृतराष्ट्रनो मोटो पुत्र नीचुं करQ के उछाळवं दुर्लक्ष वि० जोवू मुश्केल (२) न० दुश्चर वि० आचरवं मुश्केल (२) पासे खोटुं लक्ष - ध्येय न जई शकाय तेवू (३)दुराचारी दुर्लभ वि० दुष्प्राप (२) विरल दुश्चरित, दुश्चेष्टित वि० दुराचरणी दुर्ललित वि० अति लाडमां ऊछरेलु ; (२) न० दुराचरण तोफानी (२) हठीलं; जिद्दी (३) दुष ४ प० दूषित थq; अपवित्र थवं न० तोफान; अवळचंडाई (२) खराब थवं; गंदं थव (३) दोष दुर्वच वि० अवर्णनीय (२) कही न करवो; पाप करवू; भूल करवी (४) शकाय एवं (३) गाळ बोलतुं; अप- व्यभिचारी बनवू; बेवफा नीवडवू शब्द बोलतुं (४) न० गाळ ; अपशब्द ___-प्रेरक० गंदं करवू; अपवित्र करवु; दुर्वचस् न० निंदा (२) अपशब्द दूषित करवु (२) भ्रष्ट करवु (स्त्रीने) दुर्वर्ण पुं० खराब रंग (२) अशुद्धि (३) (३) दोष आरोपवो; निंदवू न० रू (४) एक जातनो कोढ दुष्कर वि० मुश्केलीथी थई शके एवं दुर्वसति स्त्री० दुःखभर्यो रहेवास (२)न० कठिन कार्य ; मुश्केली दुर्वह वि० भारे ; ऊंचकी शकाय नहि तेवू दुष्कर्मन् वि० पापकर्म करनारु (२) दुर्वाच्य न० गाळ ; निंदा (२) अप- न० दुष्कृत्य ; पाप कीति (३) कठोर शब्द (४) माठा दुष्काल पुं० खराब समय (२)प्रलयनो समाचार समय (३) दुकाळ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुष्कुल दुष्कुल न० हीन कुळ; निंदित कुळ दुष्कुह वि० अश्रदाळ; शंकाशील दुष्कृत् पुं० पापी दुष्कृत न०, दुष्कृति स्त्री० पाप दुष्कृतिन् पुं० दुष्ट; पापी दुष्ट ('दुष्' नुं भू० कृ० ) वि० गंदु, भ्रष्ट के दूषित थयेलुं - करायेलुं (२) अधम; दुराचरणी; हीन (३) न० दोष ; अपराध ; पाप २१४ दुष्टता स्त्री०, दुष्टत्व न० दुष्टपणं दुष्टात्मन् वि० दुष्ट अंतःकरणवाळु दुष्ठु अ० खोटी रीते ; खराब रीते दुष्परिग्रह वि० पकडी राखवं मुश्केल दुष्पूर वि० मुश्केलीथी भरी शकाय के संतोषी शकाय एवं दुष्प्रणीत वि० खराब रीते गोठवेलुं; खराब व्यवस्थावाळं (२) न० दुर्व्यवहार दुष्प्रतर वि० तर के समजवं मुश्केल दुष्प्रतीक वि० ओळखवं मुश्केल दुष्प्रद वि० दु:ख के शोक आपनाएं दुष्प्रधर्ष, दुष्प्रधृष्य वि० मुश्केलीथी आक्रमण थई शके एवं; अजेय दुष्प्रवाद पुं० आळ; बदगोई दुष्प्रवृत्ति स्त्री० खोटा समाचार दुष्प्रसह वि० ० असह्य ( २ ) सामनो न थई शके तेव दुष्प्राप, दुष्प्रापण वि० दुर्लभ दुष्यंत पुं० एक चंद्रवंशी राजा; शकुंतलानो पति; भरतनो पिता स् अ० नाम (अने कोई वार क्रियापद) पूर्वे 'दुष्ट' 'खराब', 'मुश्केल' वगेरे अर्थमा लागे छे [शकाय तेवुं दुस्तर वि० मुइकेलीथी पार करी दुस्सह वि० जुओ 'दुःसह ' वुह २ उ० दोहवुं ( २ ) दोही लेबुं; -मांथी खेंची लेवुं ( ३ ) -मांथी लाभ मेळवat ( ४ ) इच्छित वस्तु आपवी दुहितृ स्त्री० दुहिता; पुत्री दुःसाध्य दुंदुभ पुं० एक जातनुं नगारुं (२) पाणीनो साप ( ३ ) एक जातनी माळा बुंदुभि पुं०, स्त्री० एक जातनुं नगारुं बुंदुमायित न० नगारानो अवाज दुःख वि० दु:खदायक; प्रतिकूळ; अप्रिय (२) मुश्केल; कठिन (३) न० पीडा ; कष्ट (४) मुश्केली दुःखकर वि० दु:खी करनाएं दुःखगत न० आपत्ति ; विपत्ति दुःखच्छेद्य वि० महामुश्केलीए कापी के दूर करी शकाय ते दु:खदुःख न० महामुश्केली दुःखम् अ० दुःखे ; महामुरकेलीए दुःखशील वि० झट उश्केराई जाय तेवं; चीड (२) राजी करवुं मुश्केल (३) - दुःख सहन करवा टेवायेलुं दुःखाकृत वि० पीडित ; दलित दुःखान्वित, दुःखार्त वि० दुःखित; दुःखी दुःखित वि० दु:ख पामेलं; पीडायेलुं (२) न० दु:ख, पीडा दुःखिन् वि० दु:खित ( २ ) मुश्केल; दुःखदायक (३) कंगाळ दुःखेन अ० महामुरकेलीथी दुःशासन वि० जेना पर शासन चलाववु मुइकेल छे तेवं ( २ ) पुं० धृतराष्ट्रनो एक पुत्र दुःषम, दुःसम वि० विषम ( २ ) असमान (३) प्रतिकूळ; अनिष्ट; खराब दुःसह वि० सहन न थई शके तेवुं (२) सामनो न थई शके तेबुं दुःसंचार वि० जेमां थईने चालवुं के पसार थवुं मुश्केल छे तेवुं दुःसंधान, दुःसंधेय वि० सांधी न शकाय तेवुं (२) समाधान न थई शके ते दुः संस्थित वि० कदरूपुं दुःसाध ( - ध्य ) वि० मुश्केलीथी सिद्ध थई शके तेवुं ( २ ) मुश्केलीथी उपचार थई शके ते Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुःस्थ दुःस्थ वि० दु:खी; विपद्ग्रस्त ( २ ) गरीब ; कंगाळ (३) मूर्ख; अज्ञ दुःस्थम् अ० अस्वस्थ - बीमार होय तेम दुःस्थित वि० जुओ 'दुःस्थ' दुःस्मर वि० याद करवुं मुश्केल के दुःखदायक होय तेवुं ४ आ० (केटलाकने मते 'दु' नुं कर्मणि रूप ) दुःखी थबुं; पीडा पामवी; खिन्न थवुं ( २ ) दुःख आपवुं दूत, इतक पुं० दूत; कासद ( २ ) परराज्यमां मोकलातो प्रतिनिधि दूतिका, दूती स्त्री० संदेशो लई जनार स्त्री दून ( 'दु'नुं भू० कृ० ) वि० दु:खी ; पीडित; खिन्न दूर वि० आघेनुं ; लांबा समयनुं; ऊंचं (२) अतिशय; घणुं ( ३ ) न० अंतर; छेटु (स्थळ के काळमां ) दूरग, दूरगत वि० दूर गयेलुं ; दूरनुं (२) खूब वध गयेलुं दूरतः अ० दूरथी; छेटेथी; आघेथी दूरदर्शिन् वि० दीर्घदृष्टिवाळं (२) पुं० (३) क्रांतदर्शी ऋषि ( ४ ) विद्वान दूरदृष्टि स्त्री० दीर्घदृष्टि (२) दूरनं जो ते [तोडी पाडे तेव दूरपात, दूरपातिन् वि० दूरथी ताकीने दूरपात्र वि० पहोळा पात्रवाळु (नदी) दूरपार वि० बहु पहोळु (नदी) (२) मुश्केलीथी पार करी शकाय तेव दूरबंषु वि० पत्नी अने सगांसंबंधीथी अळ पडेल दूरम् अ० आघे ; छेटे दूरवर्तिन् वि० दूर रहेलुं; दूरनुं दूरविलंबिन् वि० खूब नीचुं झझूमतुं दूरसंस्थ, दूरस्थित वि० दूर रहेलुं दूरात् अ० दूरथी; आघेथी ( २ ) मोटा प्रमाणमा ( ३ ) दूरना समयथी दूरापेत वि० तद्दन अप्रस्तुत दूरारूढ वि० ऊंचे चडेलुं (२) खूब वधी गयेलुं; तीव्र; जोरदार २१५ बुतमन्यु o दूरीकृत वि० दूर खसेडेलुं (२) छूटुं पाडेलु; लई लीलु (३) निवारेल (४) पार्छु पाडी दीधेलुं दूरे अ० आधुं; छेटे दूरेण अ० दूरथी (२) मोटा प्रमाणमां दूरोत्सारित वि० दूर खसेडेलुं दूर्वा स्त्री० एक घास - दरो दूष वि० ( समासने छेडे ) दोषित कर - नारुं (उदा० 'पंक्तिदूष' ) दूषक वि० अपवित्र के भ्रष्ट करनाएं (२) दोषजनक (३) उल्लंघन करनारुं (४) अधार्मिक; अपराधी दूषण वि० दूषित करनाएं; भ्रष्ट करना (२) न० दूषित करवुं ते (३) उल्लंघन करवुं ते (४) दोष ; कलंक (५) ( दलीलनुं ) खंडन ; विरोध करवो ते (६) दोष ; अपराध ; पाप दूषित वि० दोषयुक्त करायेलुं; अपवित्र के भ्रष्ट करायेलुं (२) खंडित ; भंग थयेलुं के कराये (३) निंदित; कलंकित (४) मेलुं थयेलुं; खरडाये लुं (५) न० दोष ; अपराध दूष्य न० कपास ( २ ) वस्त्र (३) तंबू वृ ६ आ० [द्रियते] (मुख्यत्वे 'आ' उपसर्ग साथै वपराय छे ) जुओ 'आदृ' वृक्पथ पुं० दृष्टिमर्यादा वृक्पात पुं० दृष्टि - नजर नाखवी ते वृक्संगम पुं० नजरे जोवुं तथा भळवु ते दृग्गोचर वि० दृश्य; दृष्टिमर्यादामां आवतुं ( २ ) पुं० दृष्टिनी मर्यादा - हद दृढ वि० स्थिर; निश्चळ ( २ ) मजबूत; सखत ( ३ ) अत्यंत ( ४ ) निश्चित वृढनाभ पुं० अस्त्रने रोकवानो मंत्र वृढप्रत्यय पुं० दृढ विश्वास - खातरी बृढम् अ० सखत - मजबूत होय तेम (२) अत्यंत ; जोसथी ( ३ ) पूरेपूरुं दृढमन्यु वि० खूब गुस्सावाळं ( २ ) खूब शोकबाळं Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दृढसोहद २१६ देवदत्त दृढसौहृद वि० दृढ मित्रतावाळु दृष्टिगत न० सिद्धांत; मत वृढानुताप पुं० भारे पस्तावो । दृष्टिगोचर वि० जोई शकाय एवं; दृति पुं०, स्त्री० पाणीनी मसक ; पखाल दृष्टिनी मर्यादामां आवी शके एवं (२) लुहारनी धमण दृष्टिपथ पु० दृष्टिमर्यादा दृप ४५० गर्व करवो; तुमाखी करवी दृष्टिपात पुं० नजर करवी ते; जो ते (२)मदमत्त थर्बु (३) अति हर्षित थवं दृष्टिपूत वि० आंखथी जोयेलु-तपासेलं दृप्त ('दप्' नुं भू.कृ.) वि० गर्विष्ठ; (जेथी गंदकीमां न पडाय) अभिमानी (२) प्रमत्त ; मदमत्त । दृष्टिप्रसाद पुं० दृष्टि करवा जेटली कृपा दब्ध वि० बांधेलं; गंथेल (२)बीनेलं दृष्टिराग पुं० आंखमां प्रगट थतो भाव दृश् १ प० [पश्यति] जोवू ; निहाळवू दृष्टिविक्षेप पुं० कटाक्ष (२)मळवा जq (३) समजवू; जाणवू दृष्टिविभ्रम पुं० प्रेमकटाक्ष (४) शोध करवी; तपासवू (५) दृष्टिसंभेद पं० परस्पर नजर करवी ते अंतर्दृष्टिथी जाणवू व ४ प० [दीर्यति ], ९५० [दृणाति] दृश् वि० (समासने छेडे) जोनारुं (२) फाडवू, चीरवु (२) टुकडा करवा जाणनारु (३) -ना जेवू देखातुं (४) -कर्मणि० फाटी जवू; चिराई जर्बु स्त्री० जोवू ते (५)दृष्टि ; आंख (६) -प्रेरक० फाडवू; चीर; खोदवं ज्ञान; बुद्धि (२)विखेर चकित दृश्य वि० जोवा योग्य ; जोई शकाय देदीप्यमान वि० अति तेजस्वी; चकतेवू(२) मनोहर ; सुंदर (३)न० दृश्य देय वि० आपवा योग्य (२) भेट पदार्थ; दृश्य जगत __ आपवा योग्य (३)पार्छ आपवान (४) दृश्यतर वि० अदृश्य ; न देखी शकाय तेवू परणवा योग्य (५) न० दान; बक्षिस दृश्वन वि० (समासने अंते) जोनाएं देव वि० दिव्य (२) तेजस्वी (३) पं० (२) समजनारं; परिचित सुर; देवता (४) इंद्र; मेघ (५) राजा दृश्वर वि० जेणे जोयं छे तेवं माटे वपरातु संबोधन ( ६ ) न० इंद्रिय दृषत्सार न० लोढुं देवकर्मन्, देवकार्य न० धर्मकृत्य ; दृषद् स्त्री० शिला; पथ्थर धार्मिक क्रिया (२) देवपूजा । दृष्ट ('दृश्'नुं भू० कृ०) वि. जोयेलं; देवकीनंदन, देवकीसून पुं० श्रीकृष्ण निहाळेलु (२) जोई शकाय तेवु (३) देवकुल न० मंदिर (२) देवोनो समूह जाणेलं; समजेलु (४) निश्चित देवगति स्त्री० देवलोकनो मार्ग दृष्टदोष वि० दोषी; अपराधी देवगर्भ पुं० जुओ 'हिरण्यगर्भ' दृष्टव्यतिकर वि० दुर्भाग्य अनुभव्यु देवगुरु पुं० देवोना पिता-कश्यप (२) होय तेवू (२)अगाउथी अनिष्ट जोनारु देवोना गुरु -बृहस्पति दृष्टांत पुं०, न० उदाहरण (२) शास्त्र देवगृह न० मंदिर (२) राजानो महेल दृष्टि स्त्री० जोवू ते (२) नजर (३) देवता स्त्री० देव (२) देवनी मूर्ति आंख (४) जाणवू ते; ज्ञान (५) मत; देवतात्मन् वि० दिव्य प्रकृतिवाळं; अभिप्राय ; सिद्धांत; वाद दिव्य स्वरूपवाळं दृष्टिक्षम वि. जोवालायक देवदत्त वि० देवे आपेलं (२) देवने दृष्टिक्षेप पुं० नजर नाखवी ते माटे अपायेलं (जमीन इ०) (३)पुं० Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवदार अर्जुननो शंख (४) 'अमुक' - 'फलाणों' एवो अर्थ दर्शाववा माटे वपरातो शब्द देवदारु पुं०, न० देवदारनुं वृक्ष देवबुंदुभि पुं० देवनुं नगारुं देवदेव पुं० शंकर ( २ ) विष्णु ( ३ ) ब्रह्मा (४) गणेश देवघानी स्त्री० इंद्रनी नगरी बेवन् पुं० दियर बेवन पुं० पासो (२) न० पासा खेलवा ते देवनदी स्त्री० गंगा ( २ ) पवित्र नदी देवना स्त्री० द्यूतक्रीडा देवनागरी स्त्री० संस्कृत भाषा जेमां लखाय छे ते लिपि देवनिकाय पुं० स्वर्ग (२) देवोनो समूह देवपथ पुं० स्वर्ग ; आकाश (२) आकाशगंगा २१७ देवपादाः पुं० ब० व० राजाने माटे वपरातुं मानवाचक' संबोधन देवपुर न०, देवपुरी स्त्री० इंद्रनी राजधानी - अमरापुरी देवप्रिय पुं० शिव देवभूमि स्त्री० स्वर्ग देवभोग पुं० देवोने लायक भोग देवमणि पुं० कौस्तुभ मणि ( २ ) सूर्य (३) घोडानी डोक उपरनो वाळनो भमरो देवमातृक वि० वरसाद उपर आधार राखतुं (नहेर वगेरे उपर नहीं ) देवयजन न० यज्ञ करायो होय ते भूमि देवयज्ञ पुं० पंच महायज्ञोमांनो एक देवयज्य न०, देवयज्या स्त्री० देवनी मूर्तिनो वरघोडो देवयान वि० मोक्ष आपनारुं ( २ ) न० विमान (३) पुं० मोक्षनो मार्ग देवयुग पुं० सतयुग बेवर पुं० दियर ( २ ) पति देवराज ( - ज ) पुं० देवोनो राजा इंद्र देव पुं० नारद (२) (भृगु, अत्रि वगेरे ) देवतुल्य ऋषि देशीय [मिलकत देवलोक पुं० स्वर्ग देवस्व न० देवोनी मिलकत; धार्मिक देवागार पुं०, न० देवालय; मंदिर देवाधिप पुं० इंद्र देवानांप्रिय पुं० देवोने प्रिय ( २ ) बकरो (३) मूर्ख; गमार ( ४ ) तपस्वी देवायतन पुं० मंदिर; देवालय देवारण्य न० देवोनुं उपवन - नंदनवन देवारि पुं० देवोनो शत्रु - दानव देवालय पुं० मंदिर ( २ ) स्वर्ग देवांगना स्त्री० अप्सरा देवित, देविन् पुं० जुगारी देवी स्त्री० देव स्त्री (२) देवता ( दुर्गा, सरस्वती, सावित्री इ० ) ( ३ ) राजानी पटराणी देव पुं० दियर देश पुं० स्थळ; स्थान ( २ ) प्रदेश ; विभाग; राष्ट्र ( ३ ) आखानो अंश के बाजु (४) गोचर - क्षेत्र देशक पुं० राजा ( २ ) आचार्य (३) भोमियो; मार्गदर्शक देशकंटक पुं० जाहेर आफत देशकालज्ञ वि० योग्य स्थळ अने समय जाणनारुं [आचार देशधर्म पुं० देशनो धर्म; स्थानिक देशना स्त्री० सूचना; निर्देश; आज्ञा देशरूप न० योग्यता; औचित्य देशाचार पुं० स्थानिक आचार-रिवाज देशाटन न० प्रवास; मुसाफरी देशांतर न० अन्य देश देशिक वि० स्थानिक (२) पुं० गुरु (३) प्रवासी (४) भोमियो देशित वि० कहेलुं; सूचवेलुं आज्ञा करेलुं (२) उपदेशेलुं; सलाह आपेलुं देशीय वि० स्थानिक; प्रांतिक ( २ ) -तुं रहेवासी (समासने छेडे ; उदा० 'मगधदेशीय') (३) लगभग; नजीकतुं (उदा० " अष्टादशवर्षदेशीया " ) Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोवा देश्य २१८ देश्य वि. सिद्ध करवा योग्य ; बताववा दैवतपति पुं० इंद्र योग्य (२) स्थानिक ; देशीय (३) दैवतस् अ० नसीबजोगे लगभग; नजीकनुं देवदत्त वि० सहज; कुदरती देह पुं०, न० शरीर दैवदुर्विपाक पुं० नसीबनी प्रतिकूळता देहकर पुं० पिता [(३) पिता दैवयोग पुं० नसीबनो जोग देहकृत् पुं० पंचमहाभूत (२)परमेश्वर देवरक्षित पुं० देवोए रक्षेलं देहत्याग पुं० मृत्यु (२) आपमेळे शरीर देवसिक वि० एक दिवसमांथतुं त्यागवू ते निद्रा इ.) दैवहत पुं० दुर्भागी; कमनसीब देहधर्म पुं० देहनो सहज धर्म (आहार, वैवाधीन, दैवायत्त वि० प्रारब्धने आधीन देहबद्ध वि० देहधारी; मूर्तिमंत देवोपहत वि० कमनसीब; दुर्भागी देहबंध पुं० शरीरनुं माळखं दैशिक वि० स्थानिक (२) राष्ट्रीय (३) देहभान वि० देहधारी ते स्थळ» परिचित (४)शीखवनाएं; देहभृत् पुं० प्राणी (खास करीने मनुष्य) दर्शावनाएं (५) पुं० गुरु (६) भोमियो देहयात्रा स्त्री० मरण; मृत्यु (२) भोजन दैहिक वि० देहने लगतुं ; देह संबंधी (२) (३) आजीविका देहमा थनारूं-होनाएं देहयापन न० शरीरने पोषण आपवं ते दो ४५० [धति कापवू; भाग पाडवा देहलि (-ली) स्त्री० उमरो (२)लणवू देहवत् पुं० देहधारी; प्राणी दोग्ध पुं० दूध दोहनार (२) वाछरडु देहावरण न० बख्तर दोर पुं० दोरडु देहांतर न० पुनर्जन्म ; बीजो देह दोदंड पुं० दंड जेवो मजबूत हाथ देहिन् पुं० देहधारी प्राणी; मनुष्य (२) दोर्मूल न० बगल; काख जीवात्मा (शरोरमां बद्ध) दोर्युद्ध न० हाथोहाथनी लडाई दै १५० स्वच्छ करवू; शुद्ध कर, दोल पुं० हीचको; झूलो (२)हींचq ते दैतेय, दैत्य पुं० दितिनो पुत्र - राक्षस दोला स्त्री० पालखी; डोळी (२) दैन, दैनंदिन, दैनिक वि. दररोजन हीचको; झलो (३) अनिश्चितता दैन्य न० दीनता; गरीबाई; कंगालियत दोलायमान वि० हीच; डोलतुं (२) दैर्घ्य न० दीर्घता; लंबाई अनिश्चित; अस्थिर; संशयग्रस्त देव वि० देव संबंधी; दैवी (२) पुं० दोलायुद्ध न० विजयनी अनिश्चितताआठ विवाह-प्रकारमांनो एक (जेमां वाळु युद्ध . [ग्रस्त ; अनिश्चित यज्ञ वखते, यज्ञ करावनार ऋत्विजने दोलारूढ वि० हींचका खातुं (२) संशयकन्या परणावी देवाय छे) (३) न० दोष पुं० भूल; चूक (२)खोड; खामी भाग्य; नसीब (४) धर्मकृत्य (५) (३) गुनो; वांक (४) लांछन (५) देव (६) राजानुं कर्तव्य पाप (६) नुकसान; ईजा; बीमारी देवगति स्त्री० नसीबनुं फरवू ते दोषग्रस्त वि० अपराधी; गुनेगार (२) देवचितक, दैवज्ञ पुं० ज्योतिषी; जोषी दोष के खामीथी भरेलु दैवत वि० देवी; दिव्य (२) (समासने दोषनाहिन वि० मात्र दोष जोनाएं; छेडे ) -ने इष्टदेव मानतुं (उदा० __ दोषदृष्टिवाळू 'सूर्यदैवत') (३) न० देवता; देव (४) दोषज्ञ वि० दोषने जाणनाएं (२) पुं० देवोनो समूह (५)मूर्ति विद्वान माणस; डाह्यो माणस Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोषत्रय २१९ द्यूतक्रीडा दोषत्रय न० त्रिदोषनो व्याधि- सनेपात दौर्जन वि० दुर्जन संबंधी दोषदृष्टि वि० मात्र दोष जजोनारं दौर्जन्य न० दुर्जनता । दोषन् पुं०, न० हाथ (आनां द्वितीया दौर्बल्य न० दुर्बळता; कंगालपणुं ब०व० थी अगाऊनां पांच रूपो नथी) दौर्मनस्य न० अणबनाव (२) खेद; दोषभाज् वि० दोषी; अपराधी (२) बेचेनी; निराशा खोटुं करना (३) दुष्ट ; बदमाश दौमंत्र्य न० खोटी सलाह दोषल वि० दोषयुक्त; दूषित दोहद न० वेर; अणबनाव (२)सगर्भादोषस् स्त्री० रात्री (२)न० अंधकार वस्था (३)गर्भिणीनो दोहद दोषा स्त्री० रात्रि; रातनुं अंधारु (२) दौवारिक पुं० द्वारपाळ अ० राते; सांजे दोश्चर्य न दुर्जनता; दुष्टता (२) दुष्कर्म दोषाकर पुं० चंद्र दौष्कुल,दौष्कुलेय, वौष्कुल्य वि० हलका दोषातन वि० रातर्नु; राते थतुं कुळमां जन्मेलं दोषिक वि० दोषवाळू ; खामीवाळु (२) दौष्यंति पुं० दुष्यंतनो पुत्र पुं० व्याधि; रोग दोहदिक पुं० वृक्षोनो-उपवननो माळी दोषिन् वि० दोषवाळु ; खामीवाळु (२) (२) तीव्र अभिलाषा दुष्ट ; खराब काढनाएं दौहित्र पं० पुत्रीनो पुत्र ; दोहितर दोषकदृश् वि० मात्र दोष ज जोनाएं के दौहित्री स्त्री० पुत्रीनी पुत्री दोस् पुं०, न० हाथ ; बाहु (द्वितीया ब० । दौहृद न० जुओ 'दौहृद' व० पछी 'दोषन्' विकल्पे मुकाय छे) दौःशील्य न० दुःशीलता दोह पुं० दोहवं ते (२) दूध (३) दोहवानुं दौःसाधिक पुं० द्वारपाळ पात्र द्यावापृथिव्यौ (द्यो+पृथिवो) स्त्री० द्वि० दोहद पुं०, न० सगर्भा स्त्रीने थतो अभि- व० स्वर्ग अने पृथ्वी धसवू लाष (२) तीव्र अभिलाष छु २५० [द्यौति] हुमलो करवो;-तरफ वोहदिन वि० तीव्र अभिलाषावाळू धु पुं० अग्नि (२)न० दिवस (३) गगन बोहन वि० दूध आपनाएं (२) इच्छित (४)स्वर्ग (व्यंजनथी शरू थता प्रत्ययो वस्तु आपनाएं (३) न० दोहवं ते पहेला तथा समासमां 'दिव्' स्त्री० ने (४) दोहवानुं वासण बदले 'धु' मुकाय छे) दोहल पुं० जुओ 'दोहद' घुत् ११० प्रकाशवू; शोभवू वोःशालिन् वि० मजबूत बाहुवाछं; -प्रेरक० प्रकाशित करवू (२) बहादुर; लडायक समजाव, (३) स्पष्ट-प्रगट करवू बोस्य पुं० नोकर (२) सेवा (३) क्रीडा धति स्त्री. प्रकाश; कांति (२)किरण दौत्य न० दूत, कार्य; संदेशो लई धुमत् वि० तेजस्वी; कांतिमान जवो ते (२) संदेशो धुम्न न० तेज ; कांति (२) बळ; पराक्रम दौरात्म्य न० दुरात्मापणुं; दुष्टता । धुयोषित् स्त्री० अप्सरा दौरधरी स्त्री. चंद्रनो गुरु अने शुक्र खुसरित स्त्री० गंगा नदी साथेनो योग (जन्मकाळ तरीके उत्तम धूत पुं०, न० जुगार; जूगटुं गणाय छे) छूतकर पुं० जुगारी वोर्गस्य न० दुर्गति; कंगालियत द्यूतक्रीडा स्त्री० जुगार खेलवो ते Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्यूतमंडल द्यूतमंडल न० जुगार रमवानुं स्थान (२) हारेलो जुगारी पैसा न चुकवे त्यां सुधी तेनी आसपास आण तरीके दोरातुं कूंडाळ (जेने छोडी ते बहार जई शके नहीं ) यो स्त्री० स्वर्ग; अंतरीक्ष (प्रथमा ए० व० नुं रूप 'द्यौः' थाय; द्वंद्वसमासमां " द्यो' नुं ' द्यावा' थाय छे ) द्योतक वि० प्रकाशित करनारुं ( २ ) समजावतुं ; प्रगट करतु; दर्शावतुं द्योतन वि० प्रकाशित; तेजस्वी ब्रढिमन् पुं० दृढता ( २ ) समर्थन ब्रम् १५० चोतरफ दोडवुं ब्रम्म न० एक जूनो सिक्को द्रव वि० झमतुं टपकतुं ( २ ) प्रवाही ('कठिन' थी ऊलटं) (३) पुं० ओगळवं ते (४) ओगळीने थयेलुं प्रवाही (५) पलायन ; नासी जबुं ते द्रविण न० धन; पैसो ( २ ) सोनुं (३) सामर्थ्य ; बळ ( ४ ) वीर्य, पराक्रम द्रविणाधिपति, द्रविणेश्वर पुं० कुबेर द्रविणोदय पुं० धनप्राप्ति द्रवीभू १ प० पीगळी जवं (दया इ०थी) द्रवेतर वि० घन ( प्रवाही' थी ऊलटुं ) द्रव्य न० वस्तु; पदार्थ (२) कोई वस्तुनो घटक पदार्थ ( ३ ) योग्य पात्र ( ४ ) धनसंपत्ति ; मालमिलकत द्रष्टव्य वि० जोई शकाय तेवुं (२) सुंदर; मनोहर (३) जोवा, विचारवा के समजवा योग्य द्रष्टुकाम वि० जोवानी इच्छावाळु द्रष्टुमनस् वि० जोवानी मरजीवाळु द्रष्टृ वि० जोनारुं ( २ ) साक्षात्कार करना ( ३ ) पुं० न्यायाधीश ब्रह पुं० ऊंडु सरोवर ( २ ) धरो ब्रा २ प० दोडी जवुं ( २ ) ऊंघवं वाक् अ० जलदी; तरत ज द्राक्षा स्त्री० द्राक्ष २२० द्रोहिन् ब्राघ् १ आ० लांबुं करवुं खेंचबुं - प्रेरक ० लांबु करवुं (२) मोडुं करवुं द्राघिष्ठ वि० अत्यंत लांबू द्राघीयस् वि० वधारे लांबु द्रावण वि० नसाडी मूकनारुं ब्रु १ प० दोडवु; वहेवु; नासी जवुं (२) धसवुं; हुमलो करवो ( ३ ) ओगळं द्रववुं (४) ५ १० ईजा करवी पुं० वृक्ष (२) डाळ (३) पुं०, न० लाकडुं (४) गति व्रत ( 'द्रु'नुं भू० कृ० ) वि० शीघ्र ; उतावळ (२) पीगळेलुं; द्रवेलु (३) नासी गयेलं ( ४ ) न० नासी जनुं ते द्रुतम् अ० जलदीथी; त्वराथी ब्रुति स्त्री० द्रववुं ते ( २ ) नासी जनुं ते तुम पुं० वृक्ष द्रुमवासिन पुं० वानर ब्रह, ४ प० द्रोह करवो; द्वेष करवो (२) ईजा के नुकसान करवा इच्छवुं ब्रह, वि० ( समासने छेडे ) ईजा करतु; शत्रुवट राखतुं द्रोग्ट वि० द्रोह करना; हानि करना द्रोण पुं० मुसळधार बरसता मेघनो एक प्रकार (२) द्रोणाचार्य ( ३ ) पुं०, न० एक माप (३२ शेर के ६४ शेरनुं) ( ४ ) न० लाकडानुं एक पात्र द्रोणदुधा स्त्री० एक 'द्रोण' जेटलुं ( ३२ के ६४ शेर ) दूध आपती गाय द्रोणमुख न० चारसो गामो वच्चेनुं मुख्य शहेर [ भारे वृष्टि दोणवृष्टि स्त्री० (द्रोणमेघनी ) अतिशय ब्रोणि ( - णी) स्त्री ० लाकडानुं अंडाकार पात्र ( २ ) पर्वतो वच्चेनी खीण ब्रोह पुं० द्वेष, अनिष्ट करवा इच्छवं ते (२) विश्वासघात; दगो ( ३ ) बंड; बळवो (४) अपराध; गुनो ब्रोहिन् वि० द्रोह करना; अनिष्ट इच्छना (२) बंड करना Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रोणायन २२१ द्विरेफ द्रोणायन, द्रोणायनि, द्रौणि पुं० द्विगु वि० बे गायना बदलामां मळेलं द्रोणाचार्यनो पुत्र - अश्वत्थामा (२)पुं० एक समास (व्या०) द्रौपदी स्त्री० द्रुपद राजानी पुत्री- द्विगुण, द्विगुणित वि० बेवडु; बमणुं पांडवोनी पत्नी [राजानो पुत्र द्विज पुं० ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य - एत्रण द्रौपदेय पुं० द्रौपदीनो पुत्र (२) द्रुपद वर्णोमांनो दरेक (उपनयन-संस्कार रूप द्वय वि० बेवडुं; बमणुं (२)बे प्रकारनुं बीजो जन्म पामेलो) (२) ब्राह्मण (३) (३)न० युग्म; जोडु पक्षी; कोई पण अंडज प्राणी (४) वयवादिन्.वि० अप्रमाणिक (२)द्वैतवादी दांत (५)तारो यस वि० '-सुधी पहोंचतुं'; जेटलुं द्विजपति, द्विजराज पुं० चंद्र ऊंचु के ऊंडु' (उदा० 'नितंबद्वयस') द्विजाति पुं० जुओ 'द्विज' द्वंद्व पुं० एक समास (व्या०) (२) द्विजिह्व पुं० साप (२) चाडियो; चुगलीखोर न० जोडु; जोडकुं (३) बे जण वच्चेनुं गरुडपक्षी द्विजेश, द्विजेंद्र पुं० चंद्र (२)कपूर (३) युद्ध (४) एकांत - गुप्त स्थळ द्वितय वि० बने; बेउ (२) न० जोडकुं द्वंद्वचर पुं० चक्रवाक पक्षी । द्वंद्वदुःख न० शीत-उष्ण, सुख-दुःख द्वितीय वि० बीजं (२)पुं० पुत्र ; दीकरो वगेरे द्वंद्वोथी उत्पन्न थतुं दुःख (कुटुंबमां पिता पछी बीजुं स्थान भोगवतो) (३) साथी; सोबती द्वंद्वयुद्ध न० बे जण वच्चे- युद्ध (समासने छेडे) (४)न० अर्को भाग द्वंद्वशस् अ० बब्बेना जोडकामां द्वितीयम् अ० बीजी वार; फरीथी द्वादशात्मन् पुं० सूर्य द्वितीयवत् वि० सोबती-साथी साथेनुं द्वापर पुं०, न० चारमांनो श्रीजो युग द्वितीया स्त्री० बीज (तिथि) (२)पत्नी; (२) बे टपकांवाळी पासानी बाजु सहचरी (३) बीजी विभक्ति (व्या०) द्वार स्त्री० द्वार; दरवाजो; बारj द्वितीयाश्रम पुं० गृहस्थाश्रम द्वार न० बारj (२)साधन ; उपाय द्वित्र वि० (ब० व०) बे के त्रण द्वारका स्त्री० द्वारिका नगरी द्वित्व न० युगल ; जोडु (२)द्वैत ; बेपणं द्वारप, द्वारपाल पुं० दरवान (३) बेवडायेलोप्रयोग (व्या०) द्वारपिधान पुं० बारणानो आगळो (२) द्विध वि० बे प्रकारनं; बेरीतनुं समाप्ति; अंत द्विधा अ० बे प्रकारे; बेरीते द्वारवती, द्वारावती स्त्री. द्वारिका द्विप पुं० हाथी द्वारिक पुं० द्वारपाळ द्विपद् वि० बे पगवाळं द्वारिका स्त्री० द्वारका द्विपद पुं० (बे पगवाळो) माणस द्वारिन् पुं० द्वारपाळ वापर, द्विपाद वि० बे पगवाळू द्वारीकृ८ उ० माध्यम के साधन तरीके द्विपाद पुं० (बे पगवाळो) माणस (२) वास्थ, द्वाःस्थित पुं० द्वारपाळ पक्षी (३) देव बांधेला वाळ द्वि वि० (द्वि० व०) बे; बन्ने (पहेली द्विफालबद्ध पुं० सेंथी पाडीने बे भागमा विभ० 'द्वौं पुं०, 'द्वे' स्त्री०, द्वे' न०) द्विरद पुं० हाथी शरभ प्राणी द्विक वि० बे संख्यावाळू (२)बीजु (३) । द्विरदाराति, द्विरदांतक पुं० सिंह (२) बीजी वार बनतुं (४) सेंकडे बै टका द्विरुक्ति स्त्री० पुनरुक्ति जेटलुं(५)पुं० कागडो (६) चक्रवाक विरेफ पुं० भमरो (बे 'र'-कार वाळो) Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्विलय द्विलय पुं० ( गीत अने वाद्य पेठे) बे वस्तुओनुं साम्य (२) बेवडो लय ( ? ) द्विवचन न० बेने माटेनुं वचन ( व्या० ) द्विवर्ग पुं० बेनुं जोडकुं ( प्रकृति-पुरुष ; काम-क्रोध इ० ) द्विविध वि० बे प्रकारनुं द्विशस् अ० बब्बे ; जोडकामां द्विष् उ० द्वेष करवो; शत्रुता राखवी द्विष् वि० द्वेषयुक्त; शत्रुतावाळु ( २ ) पुं० शत्रु, वेरी द्विष, द्विषत् पुं० शत्रु द्विषंतप वि० शत्रुने पीडनारुं द्विष्ट ('द्विष्' नुं भू० कृ० ) franraj ( २ ) वेरी; विरोधी द्विस् अ० बेवार वि० द्वीप पुं०, न० बेट ( २ ) आश्रय-स्थान ( ३ ) पृथ्वीनो खंड ( मेरुनी आसपास तेवा चार, सात, नव के तेर गणाय छे) द्वीपवती स्त्री० पृथ्वी (२) नदी द्वीपिन् पुं० वाघ (२) चित्तो द्वेषा अ० बे प्रकारे; बे वार द्वेषाक्रिया स्त्री० बे भाग करवा ते द्वेष पुं० अणगमो; धिक्कार ( २ ) शत्रुता द्वेषण वि० द्वेष करनारुं ( २ ) पुं० शत्रु (३) न० शत्रुता ; वेर द्वेषिन्, द्वेष्टृ पुं० शत्रु; दुश्मन द्वेष्य पुं० द्वेष करवा योग्य ( २ ) अप्रिय ; प्रतिकूल (३) पुं० शत्रु वक् अ० ( गुस्सानो उद्गार) धगिति अ० एक क्षणमा; एकदम धत्तूर पुं० धंतूरो धन न० द्रव्य; मिलकत; खजानो (२) अत्यंत मूल्यवान के प्रिय वस्तु धनक पुं० लोभ ; तृष्णा धनक्षय पुं० धननो नाश २२२ ध धनपति बेणुं भिन्नता द्वैत न० द्वैतवाद पुं० प्रकृति-पुरुष, जीवात्मापरमात्मा, ब्रह्म-जगत - ए जुदां भिन्न छे एम माननारो वाद द्वैतीयोक वि० बीजूंं द्वैध वि० बे प्रकारनुं (२) बेवडुं; बमणुं (३) न० बे होवापणुं ( ४ ) संशय ; अनिश्चितता ( ५ ) विरोध; भेद द्वैधीभाव पुं० बे प्रकारे वुं - होते (२) द्वित्व; भेदभाव ( ३ ) संशय; अनिश्चतता ( ४ ) वेर (५) प्रतिवाद ( ६ ) अंदरथी एक अने बहारथी भिन्न एवो भेदभाव द्वैधीभू १५० बे भाग पडवा ( २ ) अनिश्चितता थवी द्वैपायन पुं० वेदव्यास ( द्वीपमा जन्मेला ) द्वैप्य वि० द्वीप संबंधी; द्वीपमां रहेतुं द्वैमातुर पुं० (बे माताओवाळु) गणपति (२) जरासंध द्वैमातृक वि० नदीना तेम ज वृष्टिना एम बे जळथी पाक थतो होय तेवो देश द्वैरथ पुं० प्रतियोद्धो; शत्रु (२) न० बे रथीओनुं युद्ध द्वैराज्य न० बे राजाओ वच्चे वहेंचायेलो देश ( २ ) सरहद द्वघर्थ वि० बे अर्थवाळु (२) बे हेतुओवाळु दूधवर वि० ओछामा ओछु बे द्वाहिक वि० दर बे दिवसे आवतो धनजात न० कुल मिलकत; समग्र कीमती वस्तुओ धनद पुं० कुबेर धनदानुज पुं० रावण ( कुबेरनो नानो भाई) धनधानि स्त्री० खजानो; तिजोरी धनपति पुं० कुबेर Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म बनप्रयोग २२३ वनप्रयोग पुं० व्याजे पैसा धीरवानुं काम धन्वंतरि पुं० देवोनो वैद्य (समुद्रमंथन बनहर पुं० वारस (२)चोर वखते नीकळेलां चौद रत्नोमांनुं एक) बनहार्य वि० धनथी वश कराय तेवू धन्विन् पुं० बाणावळी धनंजय पुं० अंर्जुन (२)अग्नि (३)विष्णु घम् १ प० फूंकवृं धनाढच वि० धनवान ; श्रीमंत धमघमायते (भभूकवू; सळगवू) धनाधिप, धनाधिपति, धनाध्यक्ष पुं० धमनि (नी) स्त्री० नंगळी; फूंकणी कुबेर (२) खजानची करेलु (२) रक्तवाहिनी; नस पनाचित वि० कीमती बक्षिसोथा खुश धम्मल, धम्मिल, धम्मिल्ल पुं० पुष्प पनिक पुं० धनवान; श्रीमंत वगेरेथी गूंथेलो अंबोडो । पनिन् वि० श्रीमंत; धनवाळं धय वि० (बहुधा समासने छेडे) धावधनु पुं० धनुष्य नालं; पीनारुं (उदा० 'स्तनंधय') धनुर्गुण पुं० धनुष्यनी दोरी धर वि० (बहुधा समासने छेडे) पकडधनुर्ग्रह, धनुहि पुं० बाणावळी धनुर्ध्या स्त्री० धनुष्यनी पणछ नारु; लई जनाएं; धारण करनारुं (उदा० 'गदाधर') (२) पुं० पर्वत; धनुर्धर,धनुर्भूत् पुं० बाणावळी धनुर्विद्या स्त्री० बाणविद्या पर्वत उपरनो किल्लो धनुर्वेद पुं० धनुर्विद्या (यजुर्वेदनो उपवेद) धरण वि० धारण करनारुं (२) न० धनुष्कांड न० धनुष्य अने बाण धारण करवू ते (३) आश्रय ; आधार धनुष्खंड न० धनुष्यनो एक हिस्सो धरणि स्त्री० पृथ्वी (२) भूमि धनुष्पाणि वि० हाथमां धनुष्यवाळं धरणिधर पुं० शेषनाग (२) पर्वत धनुष्मत् पुं० बाणावळी धरणिधरसुता स्त्री० पार्वती धनुस् न० धनुष्य (बहुव्रीहि समासमां धरणिधृत् पुं० पर्वत (२) शेषनाग 'धन्वन्' थई जाय छ; उदा० 'अधिज्य- घरणिपुत्र पुं० मंगळ ग्रह (२)नरकासुर धन्वन्') (२) चार हाथ, माप धरणिभूत् पुं० राजा (२) पर्वत (३) अनुःकांड न० धनुष्य अने बाण विष्णु (४) शेषनाग धनु:खंड न० धनुष्यनो खंड - भाग धरणिसुत पुं० जुओ 'धरणिपुत्र' बन स्त्री० धनुष्य धरणी स्त्री० जुओ 'धरणि' बनैषिन् वि० धननी इच्छा राखनाएं धरा स्त्री० पृथ्वी (२) पुं० पैसा मागतो लेणदार धराधर पुं० पर्वत (२) शेषनाग बनोष्मन् पुं० धननी गरमी-हूंफ (२) घराधरेंद्र पुं० हिमालय धननी तीव्र इच्छा घराधिप पुं० राजा अन्य वि० धन आपनाएं (२) श्रीमंत घराभत् पुं० पर्वत (३) सुखी ; सद्भागी (४) उत्कृष्ट ; धरित्री स्त्री० पृथ्वी (२) जमीन सद्गुणी (५) आरोग्यप्रद ; पथ्य (६) धर्म पुं० कर्तव्य ; आचार (२) कोई पण पुं० सुखी के सद्भागी मनुष्य वर्ग के पंथनो परंपरागत आचार (३) धन्यवाद पुं० आभार दर्शाववो ते (२) शास्त्रोक्त विधान-आचार (४) चार शाबाशी आपवी ते पुरुषार्थोमांनो एक; पुण्य कर्म के तेनुं चन्वन् पुं०, न० जळरहित प्रदेश ; रण उपार्जन (५) न्याय; प्रमाणिकता; (२) धनुष्य (३) आकाश नीति (६) निष्पक्षता (७) स्वभाव; Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मकाम खासियत ; विशिष्ट गुणधर्म ( ८ ) युधि - ष्ठिर ( ९ ) यम (१०) कुशळता; प्रवीणता [आचरवा इच्छतुं धर्मकाम पुं० धर्मपरायण; धर्म ज धर्मक्षेत्र न० भारतवर्ष (२) कुरुक्षेत्र धर्मचक्र पुं० धर्मनुं चक्र - साम्राज्य धर्मचर्या स्त्री० धर्माचरण धर्मचारिणी स्त्री० पत्नी ( २ ) सद्गुणी पत्तो [परायण धर्मचारिन् वि० धर्म आचरनारुं ; धर्मधर्मज पुं० युधिष्ठिर; धर्मराजानो पुत्र (२) कायदेसर जन्मेलो पुत्र धर्मज्ञ वि० धर्म जाणनारुं ( २ ) शास्त्र [ पत्नी अथवा कायदो जाणनारुं घर्मदाराः पुं०ब०व० कायदेसर परणेली धर्म, वि० धर्मनुं उल्लंघन करनाएं धर्मध्वज, धर्मध्वजिन् पुं० धर्मनो ढोंग करनार; पाखंडी [ मालिक धर्मनाथ पुं० कायदेसर संरक्षक के धर्मनिष्ठ वि० धर्मपरायण धर्मपत्नी स्त्री० शास्त्रविधि प्रमाणे परणेली स्त्री २२४ धर्मपथ पुं० धर्मनो मार्ग धर्मपर वि० धर्मपरायण धर्मपाल पुं० दंड; शिक्षा (ला० ) धर्मपुत्र पुं० कायदेसर पुत्र ( २) धार्मिक क्रियाओ करवा माटे स्वीकारेलो पुत्र (३) युधिष्ठिर [वर्तनारु धर्मप्रधान वि० धर्मने मुख्य मानीने धर्मप्रवचन न० धर्मशास्त्र ( २ ) कायदो समजावतो ते धर्मप्रेक्ष्य वि० धर्माचरणी धर्मबाह्य पुं० धर्मथी विरुद्ध धर्मभगिनी स्त्री० कायदेसर बहेन ( २ ) गुरुकन्या (३) मानी लीवेली बहेन (४) समान धर्म आचरती होवाथी बहेन धर्मभागिनी स्त्री० सद्गुणी पत्नी धर्मभाणक पुं० धर्मग्रंथोनी कथा कहेनार षमिन् धर्मभृत् पुं० राजा ( २ ) धर्मपरायण, सदाचरणी माणस धर्ममहामात्र पुं० धार्मिक बाबतोनुं निरीक्षण करनार अधिकारी धर्ममूल न० वेद धर्मयुग न० कृतयुग; सत्ययुग धर्मरति वि० धर्माचरणमां प्रीतिवाळं धर्मराज् पुं० यम धर्मराज वि० धर्मशील ( २ ) पुं० यम (३) युधिष्ठिर ( ४ ) राजा ( ५ ) जिन धर्मराजन् पुं० युधिष्ठिर धर्मलक्षण न० वेद धर्मलोप पुं० अधर्म (२) कर्तव्यनुं उल्लंघन धर्मवाद पुं० धर्म के न्याय अंगे वादविवाद धर्मविप्लव पुं० धर्मनुं उल्लंघन धर्मवृद्ध वि० धर्मनी बाबतमां मोटुं धर्मशाला स्त्री० धर्मशाळा ( २ ) न्यायमंदिर; कचेरी धर्मशासन, धर्मशास्त्र न० कायदानो ग्रंथ धर्मसेतु पुं० धर्म के न्यायनो आधार (२) शिव धर्माक्षराणि न० ब० व० धर्मनां सूत्रो धर्माचार्य पुं० धर्मगुरु धर्मात्मन् वि० न्यायी; पुण्यशाळी धर्माधिकरण न० न्यायमंदिर ( २ ) न्याय चूकववो ते ( ३ ) पुं० न्यायाधीश धर्माधिकार पुं० धर्म अंगेनी देखरेख ; धार्मिक कार्योनी देख रेख (२) न्याय चूकववो ते ( ३ ) न्यायाधीशनो होहो धर्माधिकारिन् पुं० न्यायाधीश धर्माधिष्ठान न० न्यायनी अदालत धर्माध्यक्ष पुं० न्यायाधीश (२) विष्णु धर्मात वि० धर्मविहीन; अधर्मी धर्मारण्य न० तपोवन [शाळी धर्माश्रय, धर्माश्रित वि० धर्मी; पुण्यधर्मासन न० न्यायासन धर्मिन वि० धार्मिक; धर्मने अनुसरतुं (२) सद्गुणी (३) ना गुणधर्मवाळु ( समासने अंते ) Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मिष्ठ २२५ धारापात धर्मिष्ठ वि. अत्यंत धर्मनिष्ठ घटकोमानो दरेक (रस, रक्त, मांस, धर्मीपुत्र पुं० नट मेद, अस्थि, मज्जा अने शुक्र) (४) धर्मेद्र पुं० यमराज वात-पित्त-कफ ए त्रणमांथी दरेक धर्मोत्तर वि० न्यायी; निष्पक्ष (२) (५) खनिज धातुओमांनी दरेक (६) सद्गुणी; धर्मपरायण . क्रियापदनु मूळ रूप (७) इंद्रिय धर्मोपचायिन् वि० धर्मपरायण; मिष्ठ धातुमत् वि० धातुओथी समृद्ध धर्म्य वि. कायदेसर (२) धार्मिक; धातु पुं० उत्पादक; कर्ता (२)संरक्षक; शास्त्रोक्त (३) अमुक गुणधर्मवाळू पालक (३) ब्रह्मा (४) विष्णु (५) वर्ष पुं० गर्व; उद्धताई; धृष्टता (२) सप्तर्षि (६) विधाता; नसीब अधीरता; असहिष्णुता (३) बळात्कार धात्री स्त्री० दाई; उपमाता (२)माता (४) ईजा; नुकसान (३) पृथ्वी (४)आमळी (वृक्ष) घर्षण न० उद्धतता; अभिमान (२) धात्रेयिका, धात्रयी स्त्री० धाव-मातानी अपमान; अनादर (३) हुमलो; पुत्री -- बहेन (२) दाई; धाव बळात्कार (४)पराभव धान न०, धानी स्त्री० ठेकाणुं; स्थान धर्षित वि० बळात्कार करायेलु (२) (उदा० 'राजधानी') पराभव पमाडेलु (३)अनादर करा धानुष्क पुं० बाणावळी येलं; अपमानित धान्य न० अनाज धामन् न० घर; निवासस्थान (२) घव पुं० हालवु-भ्रूज-कंप, ते (२) पुरुष (३)पति (४) मालिक (५)शठ; किरण; प्रकाश (३) प्रताप; बळ ठग (६)एक जातनुं वृक्ष-धावडो धामवत् वि० बळवान; शक्तिमान धवल वि० धोळु (२) सुंदर (३) निर्मळ धार वि० धारण करनारुं (२)वहेतुं (४) पुं० श्वेत रंग (५) उत्तम सांढ धारक, धारण वि० धारण करनालं धारणा स्त्री० धारण करवं ते (२) धवलपक्ष पुं० शुक्लपक्ष (२) हंस यादशक्ति (३) मनने एकाग्न राखq पवला स्त्री० श्वेत मुखवाळी स्त्री (२) ते (४) श्वास धारण करी राखवो धोळी गाय (३) बगली ते (५) धैर्य; दृढता (६) निश्चित पवलित वि० धोळं करेलु (२) धोळेलं सिद्धांत (७)खातरी(८)समजण घवलिमन् पुं० धोळापणुं; धोळो रंग धारयित्री स्त्री० पृथ्वी; धरित्री (२) फीकाश धारा स्त्री० धार; प्रवाह (२)जोरथी घा ३ उ० मूक; स्थापq; उपर मूकवू वरसाद पडवो ते (३)पंक्ति; परंपरा (२) -तरफ एकाग्र करवू- वाळवू (मन- (४) घोडानी गति (५) धार (चप्पु विचार) (३)आपी देवू; बक्षिस करवू वगेरेनी)(६)पर्वतनी ढळती बाजु (४)पकडवू; लेवु (५) धारण करवू; (७) रथ- पैडु अथवा तेनो परिघ । समावq (६)पहेर (७) दर्शाववू; धारागृह न० फुवाराओथी ऊडता पाणीदेखाव धारण करवो (८) टेकवq; वाळं स्नानागृह ऊंचकवू (९) उत्पन्न करवं धाराधर पुं० मेध धातु पुं० मूळ घटक; अगत्यनो अंश धाराधिरूढ वि० पराकाष्ठाए पहोंचेलं (२) मूळ तत्त्व (पृथ्वी-पाणी-तेज-वायु धारानिपात, घारापात पुं० मुशळधार -आकाश) (३)शरीरमांना अगत्यना वरसाद (२)पाणीनी धार Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पारायंत्र २२६ पारायंत्र न० फुवारो (२) झारी षिक अ० 'धिक्कार छे' -ए अर्थ धारावर्ष पुं०, न० मुशळधार के एकधारो बतावतो उद्गार पडतो वरसाद धिक्कार पुं० तिरस्कार; ठपको धारावाहिन् वि० सतत चालु रहेतुं धिक्क ८ उ० धिक्कार; ठपको आपवो धारासंपात पुं०, न० जुओ 'धारावर्ष' । विक्कृत वि. धिक्कारायलं; तिरस्कृत धारासार पुं० मुशळधार वरसाद । (२)न० धिक्कार; तिरस्कार पारांकुर पुं० वरसाद- फोरुं के करो धिक्रिया स्त्री० तिरस्कार; ठपको धारिणी स्त्री० पृथ्वी [राखनाएं। घिग्वाद पुं० ठपको; निंदा धारिन् वि० धारण करनारु (२) याद । पिप्सु वि० छेतरवा इच्छतुं; छेतरे तेवू धारोष्ण वि० ताजु दोहेलु-गरम । घिषण न० निवासस्थान धार्तराष्ट्र पुं० धृतराष्ट्रनो पुत्र (२) षिषणा स्त्री० बुद्धि (२) वाणी (३) काळी चांच अने काळा पगवाळू स्तुति (४) पृथ्वी हंस जेवू एक पक्षी षिष्ठित वि० बराबर गोठवायेखेंधार्मिक वि० धर्माचरण करनारु (२) स्थपायेलु (२) दृढ़ करेलु; स्थिर करेलु न्यायी (३)पुं० न्यायाधीश (४)धांध (३) बहादुरीथी सामे थयेलं माणस (५) मदारी; ऐंद्रजालिक विष्ण्य पुं० यज्ञना अग्निनुं स्थान (२) धार्य वि० धारण करवा योग्य (२) न० स्थान; निवासस्थान (३) नक्षत्र सहन करवा योग्य (३)पहेरवा योग्य घी ४ आ० अनादर करवो (२) (४) मनमां राखवा योग्य आराधq (३)धारण करवं; समावq धाष्ट्र्य न० धृष्टता; उद्धताई ; हिंमत (४) सिद्ध करवू [कल्पना धाव १५० दोडवू; आगळ वधवं (२) धी स्त्री० बुद्धि; मन (२) विचार; -नी तरफ घसवू; हमलो करवो (३) धीमत् वि० बुद्धिमान; विद्वान नासी जवू (४) १ उ० धोवू; साफ धीर वि० धैर्यवाळू; निर्भय (२)दृढ़; करवं (५) मांजवू; ऊजळू कर स्थिर (३) दृढ निश्चयी (४) शांत; घावक वि. दोडी जनारु (२) झडपी स्वस्थ (५)गंभीर (६)बुद्धिमान (७) (३) धोनारं (४) पुं० धोबी __ मंद; सौम्य पावन न० दोडवू ते (२) वहे ते (३) धीरचेतस् वि० दृढ निश्चयी आक्रमण करवं ते (४) धोवू ते; धीरता स्त्री०, धीरत्व न० धैर्य ; हिंमत स्वच्छ कर, ते (५) मांजवू ते (२)गंभीरता (३)पांडित्य ; डहापण धावल्य न० धोळाश (२) फीकाश धीरम् अ० दृढताथी; स्वस्थताथी घावित ('धा' नुं भू० कृ०) वि० धीरोदात्त पुं० (धीर अने उदात्त) धोयेलु (२) -नी तरफ दोडतुं (३) नायकनो एक प्रकार (नाटय०) जलदी जतु धीरोद्धत पुं० (धीर पण उद्धत) पावित पुं० वेगे दोडनार नायकनो एक प्रकार (नाटय०) षि ५५० खुश कर; संतुष्ट करवं धीवर पुं० माछीमार (२)६५० पासे होवू; धारण करवू धीवरी स्त्री० माछण घि पुं० (समासने छेडे) भंडार; निधि ५ ५ उ० जुओ 'धू' (उदा० 'जलषि') धुक्ष् १ आ० सळगाव Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२७ धुत ('धुनुं भू० कृ०) वि० हलावेलुं; धूपन न० धूप देवो ते (२) धूप कंपावेलुं (२) तजेलं धूपायित ('धूप'नुं भू.कृ.) वि० धूप धुति स्त्री० फफडाव ते दीधेलं (२)श्रमित; पीडित धुनि (-नी) स्त्री० नदी धूपिक पुं० धूप बनावनारो धुर स्त्री०(प्रथमा ए०व० 'धूः')●सरी; धूम पुं० धुमाडो (२) झाकळ धुरा (२) धोरियानो आगळनो भाग धूमकेतन, धूमकेतु पुं० अग्नि (२) (ज्यां जूंसरं बंधाय छे) (३) धरीने बे पूंछडियो तारो (३) खरतो तारो छेडे (पैडा आगळ) खोसाती खीली धूमग्रह पुं० राहु (४)धोरियो ऊध (५)बोजो;भार; धूमज पुं० वादळू जवाबदारी (ला०) (६) अग्रस्थान; धूमप पुं० धुमाडो पीने तपश्चर्या करनार उच्चस्थान (ला०)(७) गंगानदी। धूमपय पुं० कर्ममार्ग; यज्ञमार्ग (२) धुर पुं० (समासने छेडे) जूसरु; धोरियो धुमाडो बहार नीकळवानो मार्ग(२) भार; बोजो (३) धरीना छेडा जाळियुं वगेरे आगळनो खीलो धूमयोनि पुं० मेघ; वादळ धुरंधर वि० धुरा धारण करनारु (२) धूमायित वि० धुमाडाथी ढांकी काढेलं श्रेष्ठ; मुख्य; आगेवान -भरी काढेलं; अंधारियं करी दीधेलं धुरा स्त्री. भार; बोजो धूमित वि० धुमाडाथी काळु थयेलु धुरीण, धुरीय, धुर्य वि० धूसरी वहन धूमोद्गार पुं० धुमाडो नीकळवो ते करनारु (२) ●सरी नाखवा योग्य धूम्या स्त्री० गाढी धूणी; धूणीनुं वादळ (३)जवाबदारीवाळू (४) पुं० भार धूम्र वि०धुमाडाना रंग, (२)न० पाप वहन करनार पशु (५) जवाबदारी घूर्गत वि० धोरिया उपर ऊभेलु (२) वहन करनारो माणस; आगेवान । मुख्य ; आगेवान घू ६ प० [धुवति], १ उ०[धवति-ते], धूर्जटि पुं० शंकर ५ उ० [धूनोति, धूनुते; धुनोति, धूर्त वि० ठगारं; धुताई(२)विलासी; धुनुते], ९ उ० [धुनाति, धुनीते], स्वेच्छाचारी (३)पुं० शठ; जुगारी १० उ [धूनयति-ते] हालवू; कंपवू; (४) ठगारो प्रेमी हलावq; क पावतुं (२)हलावीने काढी धूर्तक वि० शियाळ (२)शठ नाखवू; फेंकी देवु (३) फूंकीने सळगा- पूर्वी स्त्री० गाडीनो धोरियो वq-प्रदीप्त कर धूलि (-ली) पुं०, स्त्री० धूळ; रज धूत ('धू'न भू० कृ०) वि० हलावेलु; (२)भूको कंपावेल (२) काढी नाखेलु के फेंकी धूसर वि० धूळिया के धोळा-पीळा रंगन दीधेलु (३)प्रदीप्त करायेलु (फूंकीने) ५ ६ आ० [ध्रियते] जीवता होवू; धूतकल्मष, धूतपाप वि० पाप खंखेरी जीवता रहे£ (२)टकी रहेवू; चालु नाख्यां होय तेवू; पापरहित रहेवू (३)निश्चय करवो (४) १५० घूनन न० हलावतुं ते [घरति], १०० [धारयति-ते] धूप १५० [धूपायति] तपq; तपावq कबजामा राखवू; मालिक होवू (२)१० उ० [धूपयति-ते धूप करवो (५) पहेरवु (६) रूप धारण करवं पूष पुं० सुगंधी द्रव्य (२)तेने बाळवाथी (७) अंकुश राखवो (८)स्थिर करवं नीकळती सुगंधी धूणी (९)-नुं देवू होवू; -नुं उधार होवू Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पक् धुक् वि० (समासने छेडे ) धारण करना; वहन करनाएं धृत् वि० (समासने छेडे ) धारण करनारुं घृत ( 'धृ' नुं भू० कृ० ) वि० पकडेलु; लीलु; धारण करेलुं (२) कबजामां राखेलुं (३) साचवी राखेलुं ( ४ ) पहेरेलुं (५) मूकेलुं (६) आचरेलु (७) निश्चयवाळु घृतवंड वि०सजा करनाहं (२) जेने सजा करवामां आवी होय तेबुं धृतमानस वि० निश्चयवाळु निश्चयी धृतराजन् वि० सारो राजा राज्य करतो होय तेवुं (देश) धृतात्मन् वि० दृढ़ निश्चयी; शांत; स्वस्थ धृति स्त्री० पकडवं ते; लेबुं ते (२) Thani होते (३) पोषबुं ते ; टेकवबुं ते ( ४ ) दृढ़ता, स्थिरता (५) धीरज ; धैर्य ( ६ ) तृप्ति ; संतोष ; आनंद धृतिमत् वि० दृढ; स्थिर ( २ ) तृप्त; सुखी; संतुष्ट धृतिमुष् वि० धैर्य हरी लेनाहं धृतैकवेणि वि० एक जूडामा ज वाळ राख्या होय ते (शोक-चिह्न तरीके) धृष १५०, १० उ० ईजा करवी ( २ ) अपमान कर (३) आक्रमण करवु; हरावं (४) भ्रष्ट करवुं (५) ५५० हिमत करवी; धृष्टता करवी (६) खातरी होवी (७) अधीरुं थवुं ( ८ ) अभिमान करवुं ( ९ ) सामनो करवो; पडकार करवो धृष्ट ('धृष्' नं भू० कृ० ) वि० हिंमतवान; बेशरम ; उद्धत (२) निष्ठुर (३) पुं० व्यभिचारी प्रेमी के पति धृष्टद्युम्न पुं० द्रुपद राजानो पुत्र ; द्रौपदीनो भाई [ निर्लज्ज; उद्धत धृष्णु वि० धैर्यवान; बहादुर ( २ ) घे १५० धाववुं; चूसवुं ( २ ) चुंबवुं धेनु स्त्री० गाय दूध देती गाय ( २ ) पृथ्वी (३) ते ते वर्गना नाम साथै ते २२८ ध्रुप वर्गनी मादा एवो अर्थ बतावे (उदा० 'वडवधेनु') (४) (समासने छेडे ) हलकापणुं - तुच्छपणुं बतावे (उदा० 'खड्गधेनु') धेय वि० पकडवा - लेवा योग्य (२) धवराववा - पोषवा योग्य (३) पीवाधाववा योग्य ( ४ ) आचरवा योग्य धैर्य न० धीरज; दृढता ; स्थिरता ( २ ) हिं धैर्यवृत्ति स्त्री० दृढता ; धीरज धोरण न० वाहन (घोडो, हाथी इ० ) ( 'धाव' नुं भू० कृ० ) वि० धोवायेलं; धोयेलं (२) मांजेलुं; चकचकित करेलु (३) प्रकाशित [ खूणावाळु धौतापांग वि० उज्ज्वळ थयेला आंखना घौति ( - ती) अ० हठयोगनी एक क्रिया धौरेय पुं० भारवाहक पशु (२) घोडो (३) आगेवान; अग्रणी ध्मा १ प० [ धमति ] श्वास बहार काढवो (२) फूंकवुं; धमवुं ( ३ ) फूंकीने अवाज करवो - वगाउबुं ( ४ ) फूंकने अग्नि प्रदीप्त करवो ध्मात ('ध्मा' नुं भू० कृ० ) वि० फूंकेलं; फूंकीने प्रज्वलित करेलुं (२) फुलाई गयेलुं; गर्विष्ठ [ ध्यान धरेलुं ध्यात ('ध्ये 'नु भू० कृ०) वि० चितवेलु; ध्यान न० चिंतन ( २ ) एकाग्रता; लक्ष (३) समाधि तें ध्यानगम्य वि० ध्यानथी ज जाणी शकाय ध्यानस्थ वि० ध्यानमां मग्न ध्यानिक वि० ध्यानथी मळी शकतुं ध्याम वि० मेलुं; गंदु [ योग्य ध्येय वि० ध्यान धरवा योग्य; चितववा ध्यं १ ५० चितववुं ( २ ) ध्यान करवुं ध वि० (समासने छेडे ) धारण करनाएं (उदा० 'महीघ्र ' ) ध्रुव वि० स्थिर; निश्चळ (२) निश्चित; नक्की (३) शाश्वत; हंमेश रहेनाएं Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध्रुवम् २२९ नक्षत्र (४) पुं० ध्रुवनो तारो (५) ध्रुवपद ध्वजिक वि० ढोंगी; दंभी (धर्म अंगे) (६) उत्तानपाद राजानो भक्त पुत्र ध्वजिन् वि० ध्वज धारण करनाएं ध्रुवम् अ० चोक्कस; नक्की (२)निशानीवाळु (३)पुं० ध्वजधारी ध्रौव्य न० स्थिरता; ध्रुवता (२) (४) कलाल (५)रथ (६) ढोंगी; दंभी निश्चितता ध्वजिनी स्त्री० सेना; लश्कर ध्वंस् १ आ० नीचे पडq (२) पडीने ध्वजीकृ ८ उ० धजा रोपवी (२) टुकडा थवा; चूर्ण-भूको थर्बु (३) बहाना तरीके वापर नाश थवो (४)निराश थर्बु (५) ढंकाई ध्वजोच्छय पुं० ढोंग; दंभ जवू; ग्रस्त थर्बु [(३)मरण ध्वन् १,१०प० अवाज करवो; उच्चार ध्वंस पुं० पडीने भागी जq ते (२) नाश करवो (२) गणगणवू ; गुंजारव करवो ध्वंसकारिन् वि० नाश करनारु (२) (३) गर्जवं (४) पडघो पडवो बळात्कार - व्यभिचार करनाएं। ध्वनन न० अवाज करवो ते (२) ध्वंसन वि० नाश करनारु (२) न० सूचवq ते (३) व्यंजना (अलंकार०) ध्वंस; नाश (३) पडी जq ते (४) ध्वनि पुं० अवाज (२) गर्जना (३) चाल्या जवू ते [पामनाएं व्यंग्यार्थ (अलंकार) ध्वंसिन् वि० नाश करनारु (२) नाश ध्वनित ('ध्वन्' नुं भू० कृ०) वि. ध्वज पुं० धजा; वावटो; पताका (२) ध्वनिवाळू (२) सूचित ; गर्भित (३) ध्वजस्तंभ (३) वावटा उपरतुं निशान न० ध्वनि (४) गर्जना (उदा० 'मकरध्वज') (४) (समासने ध्वस्त ('ध्वंस्' नुं भू० कृ०) वि० नीचे छेडे)ध्वजारूप-शोभारूप एवो माणस पडेलु (२) नाश पामेलु; खोवायेलं (उदा० 'कुलध्वज') (३)छवायेल (धूळ इ० थी) ध्वजपट पुं०, न० जुओ'ध्वजांशुक' ध्वस्ति स्त्री. नाश ध्वजयष्टि पुं० ध्वजनो दंड ध्वान पुं० ध्वनि (२) गुंजारव ध्वजारोह पुं० ध्वजा उपरनो एक ध्याक्ष पुं० कागडो(२) (समासने छेडे) शणगार च डाववो ते धिक्कार-तुच्छकार बताववा वपराय ध्वजारोहण न० ध्वज ऊंचो करवो- छे (उदा० 'तीर्थध्वांक्ष') (३) बगलो ध्वजांशुक न० धजा; वावटो ध्यांत न० अंधकार न अ० न; ना; नहि नकुल पुं० नोळियो (२)पांच पांडवो मांनो चोथो (माद्रीनो पुत्र) नक्त न० रात्री नक्तचारिन् पुं० घुवड (२) बिलाडी (३) चोर (४) पिशाच नक्तम् अ० राते; रात्रि दरम्यान नक्तंचर पुं० जुओ 'नक्तचारिन्' नक्तंचर्या स्त्री० राते भटकवू ते नक्तंतन वि० राते थतुं नक्तदिनम्, नक्तंविधम् अ० रातदिवस; दिवसे अने राते नक पुं० मगर नक्रकेतन पुं० कामदेव नक्षत्र न० तारो (२) तारानां अमुक निश्चित २७ झूमखांमांनु दरेक Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नक्षत्रनाथ २३० नदीमातृक नक्षत्रनाथ पुं० चंद्र [(३) विष्णु नम् पुं० नकार नक्षत्रनेमि पुं० चंद्र (२) ध्रुवनो तारो नट १ प० नृत्य कर (२) अभिनय नक्षत्रपथ पुं० ताराओ भरेलु आकाश करवो (३) १० उ० नीचे पडवू (४) नक्षत्रमाला स्त्री० ताराओ- नक्षत्रोनी प्रकाश (५) ईजा करवी माळा के समूह (२)२७ मोतीनी माळा -प्रेरक० अभिनय करवो (२)नकल (३) हाथीना गळानो हार करवी ; ना जेवा देखावं नक्षत्रराज पुं० चंद्र [ज्योतिःशास्त्र नट पुं० नटवो; नृत्य करनार (२) नक्षत्रविद्या स्त्री० खगोळशास्त्र; नाटकमां अभिनय करनार; ‘एक्टर' नख पुं०, न० हाथपगनां आंगळांनां नटवर पुं० मुख्य नट (२) नाटकनो टेरवां उपर वधतो रहेतो कठण भाग सूत्रधार (३)श्रीकृष्ण (२) नहोर नटित न० अभिनय नखपद पुं० नखनो उझरडो नटी स्त्री० स्त्री-नट (२) मुख्य स्त्रीनखर पुं०, न० नख ; नहोर नट (सूत्रधारनी पत्नी गणाय छे) नखत्रण पं. जुओ 'नखपद' नड पुं०, न० एक जात, नेतर नखंपच वि० नखने रांधी नाखनारु- नड्वल वि० बहु नेतर के बरुवाळू नबळो पाडी देनाएं [तेनी निशानी नत ('नम्' नुं भू० कृ०) वि० नमेलं; नखाघात पुं०, न० नखनो उझरडो; नमतुं (२) नमस्कार करतुं (३) नखानखि अ० सामसामा नख मारीने वळेलु; वांकु नखांक पुं० जुओ 'नखाघात' नतनाभि वि० पातळं; नाजुक नखिन् वि० नख - नहोरवाळू नतभ्र स्त्री० वांकी भमरोवाळं नग पुं० पर्वत (२) वृक्ष नतांगी स्त्री० नमेला अवयवोवाळी नगज पुं० पर्वतमा जन्मेलु स्त्री (२) स्त्री नगनदी स्त्री० जुओ 'नगापगा' नति स्त्री० नमवू - वांकुं वळवू ते (२) नगनिम्नगा स्त्री० जुओ 'नगापगा' वक्रता (३) प्रणाम; वंदन नगपति पुं० हिमालय नतोन्नत वि० ऊंचं ने नीचु ; विषम नगभिद् पुं० इंद्र ; जुओ 'नगारि' नत्यूह पुं० एक जातवें पक्षी नगर न० मोटुं शहेर नद् १५० अवाज करवो; पडधो पाडवो नगरंध्रकर पुं० कार्तिकेय (२) गर्जना करवी (३) बूम पाडवी नगरी स्त्री० नगर; शहेर नद पुं० मोटी नदी (सिंधु जेवी) (२) नगाधिप, नगाधिराज पुं० हिमालय प्रवाह ; वहेळो नगापगा स्त्री० पर्वतनी नदी नदपति, नदराज पुं० महासागर नगारि पुं० इंद्र (पर्वतोनी पांखोने नवी स्त्री० पर्वत इ० मांथी नीकळीने कापी नाखनार) वहेतो जळप्रवाह; सरिता नगेंद्र पुं० हिमालय नदीकल न० नदीकिनारो नग्न, नग्नक वि० नागू; वस्त्ररहित नदीज पुं० भीष्म (२) न० कमळ नग्नमुषितप्रख्य वि० लूटीने छेक ज नदीन (नदी + ईन), नदीपति पुं० नागुं करी नाखेलु समुद्र; महासागर (२) वरुण नग्नीकृत वि० नग्न करेलु (२) नागा नदीमातृक वि० नदीना पाणीथी सींचाई रहेता पंथमां भेळवेलं थती होय तेवू Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवीमुख नदीमुख न० नदी ज्यां समुद्रने मळे छे ते स्थान नदीश पुं० समुद्र ; महासागर नदीष्ण (-स्न) वि. नदीमा स्नान करनारु (२) नदीनी ऊंडाई वगेरे जाणनाएं (३) अनुभवी; कुशळ नख ('नह' न भू० कृ०)वि० बांधेलं; वींटेलं; जोडेलु (२) पहेरेलु ननंद, ननांदृ स्त्री० नणंद (२) साळी ननु अ० प्रश्न, खातरी, निश्चय, विनय, अनुनय,परवानगी, संभ्रम, आक्षेप-ए अर्थ बतावे('शु'; 'खरेखर'; 'रे'; 'अरे') नपात् पुं० पौत्र (२) वंशज नपुंस् (-स) पुं० नपुंसक नपुंसक पुं०, न० षंढ (२)न० नपुंसकलिंग (व्या०) नप्त पुं० पौत्र (पुत्रनो के पुत्रीनो पुत्र) नप्त्री स्त्री० पौत्री नभ् १ आ० ईजा करवी नभ वि० हिंसक ; ठार मारनारु (२) पुं० श्रावण मास (३) न० आकाश नभश्चर वि० आकाशमां फरनारु (२) पुं० देव (३) विद्याधर नभस् पुं० श्रावण मास (२)न० आकाश नभस्तल न० अंतरीक्ष; आकाशनुं तळ नभस्य पुं० भादरवो महिनो नभस्वत् वि० वादळांवाळु; धूमसवाळं (२) जुवान (३) पुं० पवन नभःसद् पुं० देव [घणुं ऊंचं नभःस्पृश् वि० आकाशने पहोंचे एवं; नभोमंडल न० गगनमंडल नम् १ उ० नमन - वंदन करवू (२) नीचुं नमवू - वळवू (३)नमी पडवू; ताबे थर्रा (४) वांकुं वळवू; वळी जवं -प्रेरक० नमावq; वाळवू (२)ताबे करवू; खंडियु बनाव [नमावनार नमन न० नमवू ते ; नमस्कार (२)पुं० नमस् अ० नमस्कार-वंदन (नाम जेवो अर्थ होवा छतां ते अव्यय गणाय छे) नयविशारद नमस वि० अनुकूळ नमस्करण न०, नमस्कार पुं० वंदन नमस्कृत वि० वंदित; पूजित नमस्कृति, नमस्क्रिया स्त्री० नमस्कार नमस्य वि० पूज्य; मान्य (२) नम्र नमस्यति प० (नमस्कार करवा) नमस्या स्त्री० पूजा; वंदना नमित वि० नमी पडेलं; नीचं नमेलं नमुचि पुं० इंद्रे हणेला एक राक्षसनुं नाम (२) कामदेव. नमुचिद्विष् पुं० इंद्र नमेरु पुं० रुद्राक्ष झाड नमोवाकम् अ० 'नमस्कार' एवो शब्द बोलीने; नमस्कार करीने नम्र वि० नीचुं नमेल; वळेलु (२)विनयी नय वि० दोरनारं; लई जनाएं; मार्ग दर्शावनाएं (२) उचित; न्याय्य (३) पुं० रीतभात ; वर्तन (४) सदाचार; नीति (५) अगमचेती; दूरदर्शिता (६) राजनीति (७)योजना; तरकीब (८)नियम (९)सिद्धान्त; मत नयचक्षुस् वि० राजनीतिज्ञ (२) अगम चेतीवाळू; डाहयु; समजणुं नयन न० दोरी जवू ते; लई जर्बु ते (२) व्यतीत करवू ते (समय)(३)आंख नयनज न० आंसु नयनपथ पुं० ज्यां सुधी आंख जोई शके ते मर्यादा; दृष्टिमर्यादा नयनपुट न० पापण नयनविषय पुं० कोई पण दृश्य पदार्थ (२) क्षितिज (३) दृष्टिमर्यादा नयनसलिल न० आंसु नयनाभिराम वि० मनोहर नयनांचल, नयनांत पुं० कटाक्ष (२) आंखनो खूणो नयनोपांत पुं० आंखनो खूणो नयवादिन्, नयविद्, नयविशारद पुं० राजनीतिमां कुशळ पुरुष; मुत्सद्दी Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नयशालिन २३२ नवद्वार नयशालिन् वि० सदाचारी; नीतिमान जयकार करेलु (३) पुं० पासानो नयशास्त्र न० राजनीतिशास्त्र (२) एक दाव (४) न० गर्जना नीतिशास्त्र नर्मगर्भ वि० मजाकवाळ (२) पुं० नर पुं० पुरुष (२) एक प्राचीन ऋषि यार; आशक [विदूषक (३) (ते ऋषिनो अवतार) अर्जुन नर्मद वि० आनंद आपनाएं (२) पुं० नरक पुं० नरकासुर राक्षस (२) पुं०, नर्मन् न० क्रीडा (२) मश्करी; ठट्ठो न० नरक; दोजख नर्मसचिव, नर्मसुहृद् पुं० विदूषक; नरकजित्, नरकरिपु पुं० श्रीकृष्ण आनंद माटे रखातो सोबती नरदेव पुं० राजा नर्मोक्ति स्त्री० मजाकमां कहेली वात नरद्विष् पुं० राक्षस; पिशाच नल पुं० एक जातनु बरु (२) निषध नरनारायण पुं० श्रीकृष्ण (२) द्वि०व० देशनो राजा; दमयंतीनो पति (३) बे प्राचीन ऋषिओ; तेमना अवताररूप एक वानर (तेणे लंकानो सेतु बांध्यो अर्जुन अने श्रीकृष्ण हतो) (४) चार हाथ जेटलं माप (५) नरपति, नरपाल पुं० राजा न० नील कमळ नरपुंगव, नरर्षभ पुं० नरश्रेष्ठ नलक न० शरीर- कोई पण लांबु हाडकुं नरवाहन पुं० कुबेर नलद न० सुगंधी वाळो; वीरण नरव्याघ्र, नरशार्दल पं० नरश्रेष्ठ नलमीन पुं० एक जातनुं मत्स्य नरसख पं० नारायण । नलिका स्त्री० नळी (२) नाडी शिरा नरसिंह, नरहरि पुं० विष्णुनो चोथो (३) बाणनो भाथो अवतार; नृसिंह नलिन पुं० सारस पक्षी (२) न० नराधम पुं० नीच-हलको माणस कमळ (३) पाणी नराधिप, नराधिपति पुं० राजा नलिनी स्त्री० कमळनो छोड़ (२) नराश पुं० राक्षस; पिशाच कमळसमूहः (३) कमळपूर्ण सरोवर नरांतक पुं० मृत्यु (४) इंद्रनी नगरी नरी स्त्री० स्त्री नलिनीखंड न० कमळनो समूह नरेश, नरेश्वर पुं० राजा नलिनीदल, नलिनीपत्र न० कमळ, पान नरेंद्र पुं० राजा (२)वैद्य ; विषवैद्य नलिनीषंड न० जुओ 'नलिनीखंड' नर्त पुं० नृत्य; नाच नव वि० नवं ; ताजु (२)आधुनिक नर्तक पुं० नाचनारो; नट (२) नृत्य नवग्रहाः पुं० ब० व० नव ग्रहो (सूर्य, शीखवनार (३)हाथी(४) शिवं चन्द्र, पांच ग्रह, राहु अने केतु) नर्तकी स्त्री० नाचनारी गानारी; नटी नवछिन्त्र न० शरीर (मुख, बे कान, नर्तन पुं० नाचनार (२)न० नृत्य बे आंख, बे नसकोरां तथा मल अने नर्तयितु पुं० नृत्य शीखवनार शिक्षक मूत्रनां बे द्वार - एम नव छिद्रवाळू) नतित वि० नचावेलं; नाचेल (२) नवता स्त्री० नवीनता (२)ताजापणं नाचतुं,ऊंचुनीचं थतुं नवति स्त्री० नेवं (संख्या) नई १ ५० गर्जना करवी नवदुर्गा स्त्री० (भद्रा, काली, चंडिका नर्दन न० गर्जना(२)जयजयकार इ०) नव रूपो धारण करनारी-दुर्गा नदित वि० गर्जना करेलु (२) जय नवद्वार न० जुओ 'नवछिद्र' Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवजा नवघा अ० नव प्रकारे नवन् वि० ( ब० व०) नव; ९ ( समासनी शरुआतमां अंत्य 'न्' ऊडी जाय ) नवन न० वखाणवुं ते [ भंडार नवनिधि पुं० ( ब०व०) कुबेरना नव नवनी स्त्री०, नवनीत न० ताजुं माखण नवपाणिग्रहणा स्त्री० जुओ 'नवोढा' नवम् अ० हालमां; तुरतमां नवमल्लिका, नवमालिका स्त्री० एक फूलझाड नवयौवन न० नवी जुवानी नवयौवना स्त्री० जुवान स्त्री नवरत्न न० नव रत्नो (मुक्ता, माणिक्य, वैदूर्य, गोमेद, वज्र, विद्रुम, पद्मराग, मरकत, नील) (२) विक्रमना दरबारां नव रत्न ( धन्वंतरि क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेताल, घटकर्पर, कालिदास, वराहमिहिर, वररुचि) नवरसाः पुं०ब०व० शृंगार, वीर, करुण, हास्य, अद्भुत, भयानक, बीभत्स, रौद्र ने शांत - ए नव रस ( काव्य ० ) नवरात्र न० आसो महिनाना शुक्लपक्षना प्रथम नव दिवसो ( दुर्गापूजाना ) नवशशिभृत् पुं० शिव ( चन्द्रकळा माथे धारण करनार ) नवसर पुं०, न० नव मोतीनुं एक घरेणुं नवांगी स्त्री० स्त्री नवांबु न० नवं पाणी; ताजुं पाणी नवीकृ ८ उ० ताजुं करवुं ( २ ) नवं करवुं नवीन वि० नवुं ( २ ) आधुनिक नवेतर वि० जून २३३ नवोढा स्त्री० तरतनी परणेली स्त्री नव्य वि० जुओ 'नवीन' नश् ४ १० नाश पामवुं ( २ ) अदृश्य थवं (३) नासी जनुं ( ४ ) निष्फळ जव - प्रेरक० भ्रष्ट करवुं (२) खोई नाखवुं ; खोई नंखाववुं (३) भूली जवुं नश्वर वि० नाशवंत ; क्षणिक ( २ ) विध्वंसक; विनाशक नंदिघोष नष्ट ('नश्' नुं भू० कृ० ) वि० नाश पामेलं (२) खोवायेलं (३) अदृश्य थलं (४) नासी गयेलुं (५) विनानुं; रहित ( समासमा ) (७) भ्रष्ट नष्टक्रिय वि० कृतघ्न नष्टचेतन, नष्टचेष्ट वि० मूर्छित नष्टरूप वि० अदृश्य नष्टसंज्ञ वि० मूर्च्छित नष्टातकम् अ० चिंता के भय विना नष्टात्मन् वि० बुद्धि के समज विनानुं नष्टार्थ वि० गरीब; धनहीन नष्टाशंक वि० भय के शंका विनानुं नस् स्त्री० नाक ( 'नासिका 'ना द्वितीया द्वि० व० पछी विकल्पे मुकाय छे) नस्या स्त्री० पशुना नाकमां परोवेली दोरी; नाथ नह ४ उ० बांधवं; वींटवुं (२) ( कपडां के बख्तर पहेरीने) सज्ज थवुं नहि अ० नहीं; नहीं ज नंं १ प० खुश थवुं; प्रसन्न थवं नंद पुं० आनंद; हर्ष ( २ ) श्रीकृष्णना पालक पिता (३) पाटलिपुत्रना नंदवंशनो स्थापक राजा नंदक वि० आनंद आपनारुं ( २ ) -मां आनंद लेनारुं (३)पुं० विष्णुनुं खड्ग नंद पुं० आनंद; हर्ष नंदन वि० आनंददायक; सुखकर ( २ ) पुं० पुत्र ( ३ ) न० इंद्रनुं उपवन (४) आनंद, हर्ष नंदनद्रुम पुं० नंदनवननुं वृक्ष नंदनवन न० इंद्रनुं उपवन नंदनंदन पुं० श्रीकृष्ण नंदना स्त्री० पुत्री नंदा स्त्री० आनंद (२) नणंद (३) समृद्धि (३) माटीनो नानो घडो (४) गौरी नंदात्मज पुं० श्रीकृष्ण नंदि पुं०, स्त्री० आनंद ( २ ) समृद्धि नंदिघोष पुं० अर्जुननो रथ ( २ ) आनंदनो अवाज Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंविन् नंदिन् वि० आनंदी, हर्षयुक्त ( २ ) आनंददायक (३) -मां सुख मानतुं (४) पुं० पुत्र ( ५ ) नाटकनो सूत्रधार (६) शंकरनो मुख्य अनुचर के पोठियो नंदिनी स्त्री० पुत्री (२) नणंद (३) ( कामधेनु जेवी) सुरभि गायनी पुत्री नंदीपटह पुं० एक वाद्य नंदीवर्धन पुं० पुत्र नहस पुं० भक्तो उपर कृपावंत देव ना अ० ना; नहि P नाक पुं० स्वर्ग (२) आकाश ( ३ ) न० सुख; अत्यंत सुख नाकनारी स्त्री० अप्सरा नाकसद् पुं० देव (२) गांधर्व नौकस् पुं० देव नाक्षत्र पुं० जोषी २३४ नाग पुं० साप (२) पाताळमां रहेतुं तथा मनुष्यनुं मों अने सापनी पूछडीवाळं एक अर्धदेवी प्राणी ( ३ ) हाथी ( ४ ) ते ते वर्गमां श्रेष्ठ (समासने अंते; 'पुरुषनाग ' ) (५) भीतमांनो खीलो; खींटी (कशुं टींगाववा माटे ) नागकेसर पुं० एक फूलझाड नागवंत, नागवंतक पुं० हाथीदांत ( २ ) भींतमांनी खींटी उदा० नागपति पुं० ऐरावत हाथी ( २ ) शेषनाग नागर वि० नगरने लगतुं ( २ ) नगरमां ऊछरेल; संस्कारी; चतुर ( ३ ) शहेरना दुर्गुणोवाळं (४) पुं० नागरिक; शहेरमा रहेनार पुरुष नागरक वि० जुओ 'नागरिक' नागरता स्त्री० चालाकी; चतुराई नागरिक वि० नगरमां ऊछरेलु (२) सभ्य; विवेकी (३) चतुर ( ४ ) पुं० नगरमा वसनार (५) चतुर प्रेमी (६) पोलीस अधिकारी नागरिकवृत्ति स्त्री० राजदरबारी रीत नागरिपु पुं० गरुड [ चतुर स्त्री नागरी स्त्री० देवनागरी लिपि (२) नाचवत् नागलोक पुं० पाताळ नागाशन पुं० गरुड (२) मोर (३) सिंह (हाथीने मारनार) नागेन्द्र पुं० श्रेष्ठ हाथी ( २ ) ऐरावत (३) शेषनाग नाट पुं० नृत्य; अभिनय नाटक पुं० नृत्यकार ; नट ( २ ) न० नाट्य नाटकाचार्य पुं० नृत्यशिक्षक नाटकीय वि० नाटक; नाटक संबंधी नाटकीया स्त्री० नाचनारी; नटी नाटिका स्त्री० नानुं नाटक नाटितक न० चेष्टा ; अभिनय नाटय न० नाटक (२) नृत्य ( ३ ) हावभाव; अभिनय ( ४ ) नृत्य के अभिनयनं शास्त्र के कळा (५) नटनो पहेरवेष नाटयप्रिय पुं० शंकर नाटघशाला स्त्री० रंगभूमि ; नृत्यशाला नाट्याचार्य पुं० नृत्य शीखवनार नाडि, नाडिका स्त्री० कोई पण छोड़नी गोळ दांडी (२) कमळ वगेरेनी पोली दांडी ( ३ ) शिरा ; नस ( ४ ) हाथ के पगनी नाडी ( ५ ) एक घडी ( चोवीस मिनिट) (६) नळी, वांसळी, कांठलो इ० नाsधम वि० नाडीओ उछाळे तेवुं ( भय इ० ) (२) पुं० सोनी नाडी स्त्री० जुओ 'नाडि' नाडीजंघ पुं० एक जातनो बगलो (२) गुडो (३) एक मुनि नाणक न० नाणुं; चलणी सिक्को नातिचिरे अ० ट्रंक समयमां नातिदूर वि० अति दूर नहीं एवं नातिवाद पुं० गाळागाळी त्यागवी ते नाथ् १ प० आजीजी करवी; याचवुं (२) १ आ. आशिष आपवी नाथ पुं० स्वामी; नायक ( २ ) रक्षक (३) पति ( ४ ) बळदना नाकमां परोवेली दोरी नाथवत् वि० मालिक के रक्षकवाळु (२) ताबेदार, गुलाम एवं Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाव नाद पुं० गर्जना बूम (२) ध्वनि नादिन् वि० गर्जना - अवाज करतुं नादेय वि० नदीमा जन्मेलुं - धतुं नाद्य न० कमळ नाना अ० जुदे जुदे प्रकारे; जुदे जुदे स्थळे (२) भिन्न- अलग होय तेम (३) समासनी शरुआतमां विशेषण तरीके) अनेक प्रकार ; विविध ( ४ ) विना नानारस वि० जुदा जुदा रसोवाळं नानार्थ वि० जुदा जुदा अर्थवाळं (२) जुदा जुदा हेतु के प्रयोजनवाळु नानाविध वि० अनेक प्रकारनुं नानुरक्त वि० अनुराग विनानुं नापित पुं० हजाम; वाळंद नाभि पुं०, स्त्री० डूंटी, डूंटी जेवो खाडो ( समासने छेडे 'नाभ' थई जाय छे; उदा० 'पद्मनाभ' ) (२) पुं० चक्र के पैडानो मध्य भाग (३) मध्यबिन्दु (४) नेता; आगेवान ( ५ ) संबंध; सगाई (६) सार्वभौम राजा ( ७ ) स्त्री० कस्तूरी नाभिगंध पुं० कस्तूरीनी गंध नाभिज, नाभिजन्मन् पुं० ब्रह्मा नाभिनाडी स्त्री०, नाभिनाल न० नाळ ( गर्भस्थ बालकनी डूंटी साथेनी) नाभी स्त्री० जुओ 'नाभि' नाभोग पुं० देव ( २ ) साप नाम अ० नामे ; नामे ओळखातुं ( २ ) खरेखर; खचित ( ३ ) कदाच ; रखेने ( ४ ) एम ते होय ? ( ठपको बताववा) (५) जाणे के; देखाव करीने ( ६ ) ( आज्ञार्थ साथे ) मानी लो; एम मानी लईए के (७) धमकी के गुस्सो दर्शावे (८) आश्चर्य दर्शावे नामकरण, नामकर्मन् न० नाम पाडवुं (विधि के संस्कार ) नामग्रह पुं०, नामग्रहण न० नाम लेवुं ते नामग्राहम् अ० नाम दईने - लईने २३५ नाल नामधारक, नामघारिन् वि० नामनुं ज; मात्र नामवाळं (तेवा गुण विनानुं) नामषेय न० नाम; संज्ञा ( २ ) वस्तुनी संज्ञारूप शब्द ( व्या० [o) नामन् न० नाम नाममात्र वि० मात्र नामवाळु (२) न० मात्र नाम के उल्लेख नाममुद्रा स्त्री० उपर नामवाळी वींटी (महोर- छाप देवामां वपराती) नामशेष वि० मात्र नाम ज बाकी रहधुं होय तेबुं; मृत नामांक वि० नामवाळं ; नाम लखेलुं नामित वि० नमावेलं; वाळेलु नाम्य वि०वाळी के नमावी शकाय तेव नाय पुं० नेता; आगेवान ( २ ) दोरखं ते (३) नीति (४) उपाय नायक पुं० नेता; आगेवान (२) मुख्य माणस; सरदार (३) नाटक के वार्तानुं मुख्य पात्र नायिका स्त्री० नाटकनुं मुख्य स्त्री पात्र (२) पत्नी ( ३ ) गणिका नार वि० माणसने लगतुं ( २ ) पुं० पाणी (३) मनुष्यनो समूह नारद पुं० एक प्रसिद्ध देवर्षि नाराच पुं० लोखंडी बाण (२) बाण नारायण पुं० विष्णु (२) 'नर' ऋषिना साथी प्राचीन ऋषि (जेमणे उर्वशीने जांघमाथी पेदा करी हती ) नारिकेर ( -ल) पुं०, नारिकेलि ( -ली ) स्त्री० नाळियेरनुं झाड के तेनुं फ नारी स्त्री० स्त्री [ केर' नारीकेलि ( - ली ) स्त्री० जुओ 'नारिनारीनाथ वि० स्त्री मालिक होय ते नाल वि० बरुनुं; बरुवाळं (२) पुं०, न० पोलो दंड (खास करीने कमळतो) (३) गर्भमां बाळकनी डूंटीए जोडायेलो नाडीसमूह ( ४ ) न० शिरा; नस (५) नीक; नहेर Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाला नाला स्त्री० पोलो डांडलो (कमळनो) नालि स्त्री० नस; नाडी ( २ ) पोलो sisलो (कमळनो) (३) २४ मिनिटनो समय; घडी (४) नीक नालिकेर पुं०, नालिकेलि ( -ली) स्त्री० नाये झाड के तेनुं फळ नाली स्त्री० जुओ 'नालि' नालीक पुं० बाण (२) भालो (३) बरछी (४) कमळदंड नावनीत वि० माखणनुं ( २ ) माखण जेवुं पोचुं - कोमळ (३) न० घी नाविक पुं० सुकानी (२) खलासी; वहाणवटी (३) नौकानो मुसाफर नाव्य वि० नौकामां बेसीने ओळंगी शकाय एवं (२) स्तुत्य, प्रशस्य ( ३ ) न० नवीनता; नवीनपणुं नाश पुं० अदृश्य थवं ते (२) संहार; पायमाली (३) मरण (४) दुर्भाग्य; आफत (५) नासी जवं ते नाशन वि० नाश करनाएं ; दूर करनाएं ( समासमा) (२) न० विनाश ( ३ ) दूर करवुं ते (४) मरण (५) विस्मरण नाशिन् वि० नाश पामनाएं ; नाशवंत (२) नाश करनाएं [ कुमा नासत्यो पुं० द्वि० व० बे अश्विनी - नासा स्त्री० नाक (२) सूंढ नासाग्र न० नाकनुं टेखूं नासारंध्र न०, नासाविरोक पुं०, नासाविवर न० नसकोरुं २३६ नासिका स्त्री० नाक (२) सूंढ नासिर, नासीर पुं० लश्करनो मोखरानो भाग ( २ ) मोखरे वसनार योद्धो नास्ति अ० न होय तेम नास्तिक वि० वेद, ईश्वर तथा पुनजन्मने न माननाएं नास्तिवाद पुं० नास्तिकवाद नाहुष पुं० ययाति राजा नांत वि० अंत विनानुं निकाय नांतरीयक वि० छूटुं न पाडी शकाय ते; कदी जुदुं न होय तेवी रीते संबद्ध नांदी स्त्री० हर्ष आनंद ( २ ) वैभव ; समृद्धि ( ३ ) ( धर्मविधि के नाटकना आरंभ) मंगळाचरणरूपे कराती देव के देवीनी ( आशीर्वचनयुक्त ) स्तुति (४) घणां वाद्योनो सामटो ध्वनि नांदीनाद पुं० आनंदनो ध्वनि नि अ० क्रियापद अथवा नामनी पूर्वे अधोगति, समूह, आज्ञा, सततता, बंधन, सामीप्य, अपमान, नुकसान आश्रय, कौशल्य, निश्चय, संशय, अंतर्भाव, उपराम, विरति, अतिशयता - ए अर्थ बतावे निकट वि० पासेनुं; नजीकनुं ( २ ) पुं०, न० सांनिष्य; पडोश निकम् १० आ० अत्यंत इच्छा राखवी निकर पुं० ढगलो (२) समूह; जथो निकर्तन न० कातरी के कापी नाख ते (२) निकंदन निकर्षण न० गाम पासेनी रमतगमत माटेनी खुल्ली जमीन ( २ ) आंगणुं निकष पुं० कसोटीनो पथ्थर ( २ ) कसोटी के परीक्षा करे तेवी कोई पण वस्तु ( ३ ) कसोटीना पथ्थर उपर करेली सोनानी रेखा " निकषप्रावन् पुं० कसोटीनो पथ्थर निकषण पुं० न० कसोटीनो पथ्थर (२) घसी काढवु ते निकषा अ० नजीक; पासे निकषोपल पुं० कसोटीनो पथ्थर निकाम वि० विपुल; यथेच्छ ; अत्यंत (२) नी इच्छावाळु (३) पुं०, न० इच्छा; मरजी यथेच्छ रीते; मरजी मुजब निकामम् अ० (२) पुष्कळ; अत्यंत निकाय पुं० ढगलो; समूह ( २ ) निवासस्थान ( ३ ) शरीर Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निकाम्य २३७ निगाल निकाय्य पुं० निवासस्थान निक्षिप्त वि० मूकेलं (२) नाखेल (३) निकार पु० अपमान; तिरस्कार (२) अनामत मूकेलं (४) तजी दीधेलं वध (३) गाळ (४) विरोध निक्षेप पुं० फेंकवं ते; नाखवू ते (२) निकारण न० वध; कतल थापण ; अनामत (३) काढी मूकवू ते; निकाश पुं० सांनिध्य ; नजीकपणुं (२) तजी देवं ते सरखापY(समासने अंते) (३)प्रकाश निक्षेपण न० नीचे मूकवं ते निकाष ० घस, ते (सराण इ० उपर) निक्षेपित वि० मुकावेलु (२) लखावेलं; निकास पुं० जुओ 'निकाश' कोतरावेलं निकुरंब, निकुरुंब न० टोळं; समूह निखन् १५० खोदवू (२) दाटq (३) निकुंज पुं०, न० लतामंडप (२)गुफा रोपवू (४) खोसवू; भोंक, निकुंभिला स्त्री० लंकाना पश्चिम दर निखनन न० खोदवं ते (२) रोपवू ते वाजे आवेली एक गुफा (२) ते तरफ निखर्व वि० वामणुं; ठीगणुं (२) आवेली भद्रकालीनी मूर्ति (३) ज्यां न० सो अबज बलिदान अपातां होय ते स्थान निखात वि० खोदेलं (२) रोपेलं निक ८ उ० अपमान करवं; हलकुं निखिल वि० आखं ; बधुं; तमाम पाडवू; ताबे करवू (२) ईजा करवी(३) निखिलेन अ० पूरेपूरुं; तमाम खराब वर्तन चलाव [नाखवू निगड वि० सांकळे बांधेलं (२) पुं०, निकृत् ६५० [निकृतति ] कापवं; कापी न० हाथीना पगे बंधाती सांकळ (३) निकृत वि० अपमानित ; तिरस्कृत सांकळ ; हेड; बेडी (२) पीडित (३) वंचित (४) दुष्ट ; नीच (५) न० तिरस्कार निगडन न० सांकळे बांध ते निकृति वि० दुष्ट ; नीच (२) स्त्री० निगडित वि० सांकळे बांधलं निगद् १ प० जाहेर करवू (२) दुष्टता; नीचता (३) अप्रमाणिकता; छेतरपिंडी (४) अपमान; तिरस्कार जणाववं; कहेवू (३) संबोधq (४) (५) दारिद्रय; दैन्य (६) पुं० शठ गणतरी करवी (५) नामथी ओळखवू निकृष् १, ६ प० ओछं करवू; बाद निगदित वि० कहेलु (२) प्रेरेलु करवू (२) खेंचवू; खेंची पाडवू निगम् १५० [निगच्छति ] पासे जq; निकृष्ट वि० नीच; अधम (२) नजीकनुं प्राप्त कर (२) -मां प्रवेश करवो निकृष्टयुद्ध न० हाथोहाथनी लडाई निगम पं० वेद ; वेदवाक्य (२) वेदना निकंतन वि० कापनारुं के कातरनार (२) अंगभूत के समजवामां सहायभूत न० कापq के कातरवू ते (३)निकंदन ग्रंथ (३) देव के संतनो उपदेश (४) (४) कापवानुं के कातरवार्नु साधन तर्कशास्त्र; नीतिशास्त्र (५) संघ; निकेत, निकेतक पुं० घर; रहेठाण काफलो (६) शहेर (७) निश्चय; निकेतन न० मकान; निवास प्रतिज्ञा ; खातरी (८) बजारनो मार्ग निक्वण, निक्वाण पुं० अवाज; रद निगमन न० तारवेलो निर्णय (२) निक्षिप् ६ प० नाखवू (२) नीचे मूकवू अंत; उपसंहार (३) सोंपवू; थापण तरीके मूकवू निगर पुं०, निगरण न० गळी जq ते (४) नीम; स्थापq (५) फेंकी निगल, निगाल पुं० गळी जq ते (२) देवं; तरछोडी काढवू घोडानुं गळं के डोक (३)सांकळ । Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निगी २३८ निदर्शन निगीर्ण वि० गळी जवायेलं; गळेलुं निचुलक न० छातीनुं बख्तर (२)पेटी (२)छुपायेलं; ढंकायेलं (धनुष्य इ० नी) निगूढ वि० संतायेलं; संताडेलु (२) निचुलित वि० पेटीमा मूकेलं छानु; गुप्त (३) गूढ़; रहस्यरूप निचोल पुं० ओछाड; ढांकण (२) बुरखो निगूढम् अ० गुप्त रीते निचोलक पुं० चोळी; कबजो (२) निगहन न० संताडवू के गुप्त राखq ते छातीनुं बख्तर [नाहq; शुद्ध थर्बु निगृहित वि० पकडेलु; अटकावेलं; निज् ३ उ० धोवं; स्वच्छ करवू (२) रोकेल (२)हरावेल (दलीलमां) निज वि० पोतार्नु (२) सहज (३) निगृहीति स्त्री० काबू; अंकुश (२) विशिष्ट ; खास पराभव; पराजय निटल, निटिल न० कपाळ निग्रह ९ प० [निगृह्णाति] निग्रह निडीन न० पक्षी- ऊडतां ऊडतां करवो; अंकुशमां राखq (२)रोकवू; नीचेनी तरफ वळवू ते अटकाव (३) सजा करवी (४) नितराम् अ० अत्यंत (२)पूरेपूरूं; तद्दन पकडवू; लेवु (५)वश करवू; हरावQ (३) चोक्कस; नक्की (४) सतत (६) बंध करवू; मींचq नितल न. एक पाताळ निग्रह पुं० काबू; अंकुश (२) निरोध; नितंब पुं० कूलो;थापो (स्त्रीनो) (२) रुकावट (३) वश के ताबे करवू ते (४) पर्वतनो ढोळाव - बाजु (३) नदीना दूर करवू ते (५) केद; बंधन (६) किनारानो ढोळाव [वाळी स्त्री उपचार; उपाय (रोगनो) (७) नितंबवती स्त्री० भारे अने ढळता नितंबशिक्षा; सजा (८) उल्लंघन नितंबिन् वि० सुंदर अने ढळता नितंनिग्राह पुं० एक प्रकारनो शाप (२)सजा बवाळू (२) सुंदर ढोळाव के बाजुनिघर्ष पुं०, निघर्षण न० घसवू ते; वाळं (पर्वत) घसावं ते नितंबिनी स्त्री० जुओ 'नितंबवती' निघंट (-) पुं०, शब्दसूचि; शब्दोनो नितांत वि० अतिशय ; असाधारण कोश (खास करीने यास्के समजावेला नितांतम् अ० अत्यंत; घणुंज वैदिक शब्दोनो) नित्य वि० शाश्वत ; अविनाशी; कायमनिघात पुं० प्रहार नुं (२) अवश्य करवान; वैकल्पिक निघ्न वि० ताबेदार; अधीन नहीं तेवू (३)रोजर्नु; सामान्य ('नैमिनिघ्नान वि० हणतुं; हणनारुं त्तिक'थी ऊलटुं) (४) (समासने अंते) निचय पुं० संग्रह; ढगलो (२) निधि; हमेशां रहेतुं (५)हमेशां रत रहेतुं भंडार (३) समूह (घटक भागोनो) । नित्यकर्मन् न० दररोज करवानुं निचयिन वि० -थी भरेलं; -थी पूर्ण धार्मिक कार्य निचि ५ उ० एकळु करवू; ढगलो नित्यजात वि. नित्य जन्मवावाळं करवो (२)पाथरवं; ढांक; छाएँ नित्यम् अ० हमेशा निचित वि० ढंकायेलं; छवायेलं (२) नित्यशस् अ० दररोज परिपूर्ण (३) ढगलो करायेलं निदर्शक वि. जोनाएं (२) दर्शावनाएं निचुल पुं० एक जातनुं बरु (२) कालि- निवर्शन वि० दर्शावनाएं; जाहेर करदासनो (समकालीन)कविमित्र नाएं (२) उपदेशनाएं (३) न० मन Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशन दर्शन; दृश्य ( ४ ) दर्शाववुं ते (५) पुरावो; साबिती (६) दृष्टांत निर्दोशन् वि० गमसुं; गोठे तेवुं (२) समजवाळं [(३) परसेवो २३९ निदाघ पुं० उष्णता ; गरमी ( २ ) उनाळो निदाघकर पुं० सूर्य निदाघकाल पुं० उनाळो निदाघधामन् पुं० सूर्य निदान न० दोरडुं (२) मूळ कारण; कारण ( ३ ) रोगना कारणनी तपास निदिध्यास पुं०, निदिध्यासन न० निरंतर चिंतन निदृश् - प्रेरक दर्शाववुं ( २ ) साबित करव्ं (३) समजाववुं; दृष्टांत आपवं निदेश पुं० आज्ञा; हुकम (२) कथन निद्रा स्त्री० ऊंघ (२) सुस्ती; आळस निद्रालस वि० ऊंघमां घेरायेलुं निद्रालु वि० निद्रायुक्त निद्रित वि० ऊंघमां पडेलं निधन वि० दरिद्री; गरीब (२) पुं०, न० मृत्यु (३) अंत निघनता स्त्री० गरीबाई निधा ३ उ० मूकवुं (२) सोंपवुं (३) दबावी देव (४) चितवनुं ( ५ ) संघ (६) याद राखवु निधान न० मूकवुं ते (२) राखवुं ते; साव ते ( ३ ) संग्रह; निधि ; भंडार निधि पुं० भंडार; खजानो; कोठार ( २ ) समुद्र ( ३ ) वंशानुक्रमशास्त्र निधिनाथ, निधीश पुं० कुबेर निधुवन न० कंपवुं ते; क्षोभ ( २ ) क्रीडा निध्य १ प० ध्यान धर; चितवबुं निध्वान पुं० ध्वनि; शब्द निनद् १ प० अवाज करवो; गर्जना करवी (२) पडघो पडवो निनद पुं० ध्वनि ( २ ) गुंजारव निनंक्षु वि० मरी जवा इच्छतुं (२) नासी जवा इच्छतुं निष निनाद पुं० जुओ 'निनद' निपत् १ प० नीचे पडवु; नीचे ऊत - खुं ( २ ) -नी तरफ फेंकावुं (३) पगे पडवु (४) हुमलो करवो (५) भाग्यमां आवी पडवुं + - प्रेरक० ० वध करवो; नाश करवो निपा २५० पीवुं ; चूसव (२) चुंबकुं (३) आंख के कान वडे रसपूर्वक जोवुं के सांभळवु निपात पुं० नीचे पडवुं ते; नीचे ऊतरखं ते ( २ ) आक्रमण हुमलो ( ३ ) फेंकते; नांखवं ते (४) अकस्मात (५) नाश; मरण ( ६ ) मिश्रित थवुं ते (७) अनियमित रूप; रूपाख्यान न थतुं होय तेवो शब्द ( अव्यय इ० ) निपातिन् वि० नीचे पडतुं के ऊतरतुं (२) विनाशक (३) नाश पामेलु निपान न० पीवुं ते (२) जळाशय (३) हवाडो ( ४ ) आधार निपीड़ १० उ० पीडवु; त्रास आपवो (२) दबाववुं (३) जोरथी पकडवुं निपीडन न० जोरथी दबाववुं ते (२) पीडवं ते; त्रास आपवो ते निपीडना स्त्री० पीडा; दुःख निपुण वि० प्रवीण; चतुर; अनुभवी (२) नाजुक ; सूक्ष्म ; तीव्र ( ३ ) पूरेपूरुं ; सचोट [ सचोट रीते निपुणम् अ० कुराळताथी ( २ ) पूरेपूरुं ; निबद्ध वि० बांधेलं (२) जोडेल; संबद्ध (३) जडेलुं; सज्जड बेसाडेल (४) अटकावेलु (५) व्यापेलुं निबर्ह १० उ० वध के नाश करवो निबर्हण वि० नाश करनारुं ( २ ) न० वध; नाश; कतल निबहत वि० नाश करेलुं निबंधू ९ प० बांधव (२) सांकळ वडे बांधवं (३) जोडवु; स्थिर करवुं (४) रचवुं; रचना करवी Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० निबंध निबंध पुं० बांधव-जोडवू-वळगाडवं ते (२) आसक्ति; राग (३) रचवू ते (४) ग्रंथ (५) अंकुश ; दाब निबंधन न० बांधवं ते (२) रचना करवी ते (३) अंकुशमा राखवू ते (४) बंधन; बेड़ी (५) गांठ बंध (६) आधार; टेको (७) मूळ ; कारण ; हेतु (८) आश्रयस्थान । निबंधिन् वि० बांधतुं ; जोडतुं (२) संबद्ध (३) उत्पन्न करतुं निबिड वि० गाढं (२) मुश्केल ; कठण निबिडित वि० गाढुं (२) भारे (३) जकडीने दबावेल निबिरीस वि० निबिड ; गाढं निबुध् १५० जाणवू ; समजवं; शीखवू (२) गणवू; मानवं निबह १, ६ प० नाश करवो निबोध पुं०, निबोधन न० जाणवू ते; समजवते (२) जणाव ते । निभ वि० (समासने अंते)-ना जेवू; सदृश (२)पु०, न० तेज ;प्रकाश (३) ढोंग; कपट (४) मिष ; बहानुं निभल १० उ० भाळवू; निहाळवू निभालित वि० जोयेल; निहाळेलं निभृत वि० नीचे मूकेलं (२) -थी भरेलं; पूर्ण (३) अदृश्य ; गुप्त (४) शांत; निश्चल; नीरव (५)विनयी; नम्र (६) दृढ निश्चयी (७)मींचेलं; बंध करेल (८) एकांत निभूतम् अ० छानी रीते; गुप्त रीते निमग्न वि० डूबी गयेलु (२) तल्लीन (३) आथमेल (४) ऊंडु निमग्ननाभि, निमग्नमध्या स्त्री० जेनी नाभि ऊंडी छे तेवी स्त्री (२) पातळी केडवाळी स्त्री निमज्जथु पुं० डूबकुं मारवू ते (२) पथारीमां पडवू ते; सूई जवु ते निमज्जन न० डूबकुं मारवू ते (२)डूबी जवू ते (३) लवलीन थर्बु ते । नियति निमस्ज ६ प० [निमज्जति डबी जवं; डूबकुं मार (२) अदृश्य थर्बु (३) तल्लीन थq [बोलावq निमंत्र १० आ० निमंत्रण आपq; निमंत्रण न० निमंत्रथु ते; बोलावq ते निमित्त न० कारण ; हेतु ; प्रयोजन (२) बाह्य कारण ('उपादान'-कारणथी ऊलटुं) (३) निशान; लक्ष्य (४) भविष्यसूचक चिह्न निमिष ६ प० आंखो मींचवी; पलकारो मारवो निमिष पं० आंखनो पलकारो (२) आंखना पलकारा जेटलो समय निमील १५० आंख बंध करवी (२) मरण पामवं (३) झांखु पाडQ (४) बिडाई जq (५) अदृश्य थq; आथमवं निमीलन न० आंख बंध करवी ते (२) __ आंख मींचावी ते; मृत्यु निमीलित वि० बंध करेलं; मींचेलं (२) ढांकी दीधेलं ; छाई दीधेलं । निमेष पुं० आंखनो पलकारो (२) पल कारा जेटलो समय [क्षण निमेषांतर न० पलकारा जेटलो समय; निम्न वि० ऊंडु; नीचुं (२)न० ऊंडाण; नीची जमीन (३) नीच कृत्य । निम्नगा स्त्री० नदी (२)पर्वत उपरथी ऊतरतो प्रवाह निम्ननाभि पुं० नाजुक ; पातळ निम्नाभिमुख वि० नीचेनी तरफ वहेतुं निम्नित वि० ऊडं; नीचं निम्नोन्नत वि० ऊंचं-नीचुं; विषम नियत वि० नियममां रखायेलु ; निग्रह करेलु; संयमित (२) निश्चित; नक्की (३) स्थिर; दृढ (४) अनि वार्य (५) दृढ रीते पाळलं (व्रत) नियतम् अ० हमेशां; सतत (२)नक्की; चोक्कस [कर्तव्यकर्म नियति स्त्री० संयम (२) नसीब (३) Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियम् नियम् ११० [ नियच्छति ] नियंत्रणमां राखवु निग्रह करवो (२) आपबुं (३) शिक्षा करवी ( ४ ) नियमन कर - प्रेरक० काबूमां राख निग्रह करवो (२) बांध; जकडवं (३) ओछु के हळ करवुं ( ताप इ० ) नियम पुं० अंकुश; दाब ( २ ) धारो; कायदो ( ३ ) रीत; चाल ( ४ ) व्रत ; प्रतिज्ञा (५) बंधन; नियंत्रण ( ६ ) योगनां आठ अंगोमांनुं एक नियमन न० निग्रह; शासन नियं(२) बांधते (३) नियम नियमविधि पुं० रोजनुं धर्मकृत्य नियमित वि० नियम के निग्रहमा रखायेलुं ( २ ) हळवु के मर्यादित करायेलुं ( ३ ) शासित ( ४ ) निश्चित ( ५ ) पाळेलुं (व्रत के तप ) नियंत पुं० सारथि ( २ ) शासक ; नियमन करनार [ नियमन; प्रतिबंध नियंत्रण न०, नियंत्रणा स्त्री० निग्रह; नियंत्रित वि० निग्रह के नियंत्रणमां रखायेलं [ शासन करनाएं नियामक वि० नियमन करनारुं ( २ ) नियुक्त वि० नीमेलं; योजेलुं (२) आज्ञा के परवानगी अपायेलं (३) जोडेल; (४) पुं० अधिकारी, अमलदार नियुज् ७ आ० नीमवुं; निमणूक करवी ( २ ) आज्ञा करवी (३) जोडवुं; बांध ( ४ ) नियम करवो - प्रेरक ० उपयोगमा लेवु नियुद्ध न० कुस्ती; मल्लयुद्ध नियोक्त पुं० स्वामी; मालिक नियोग पुं० विनियोग; उपयोग ( २ ) आज्ञा; हुकम ( ३ ) सोंपवामां आवेलुं काम; अधिकार; फरज ( ४ ) आवश्यकता; फरजियातपणुं ( ५ ) संतान वगरनी विधवाए दियर के पासेना सगा साथै संतान माटे शास्त्रमान्य संबंध करवो ते निरपेक्ष नियोगिन् पुं० अधिकारी; अमुक काम माटे निमायेलो अमलदार २४१ नियोजन न० योज के नीमनुं ते (२) हुकम करवो ते नियोजित वि० योजेलुं; नीमेलुं (२) जोडेल (३) प्रेरेलु (४) उपयोगमा लीघेलुं [ माणस, सेवक नियोज्य पुं० अमुक काम माटे नीमेलो निर्अ० ('निस्' नै बदले स्वर अने घोष व्यंजन पूर्वे ) - मांथी बहार', '-थी रहित, ' - थी विनानुं', 'थी दूर' - ए अर्थमां वपराय छे निरक्षर वि० अभण निरग्नि वि० यज्ञादि क्रिया सारु अग्नि हि राखनाएं; अग्निनो त्याग करनाएं निरत वि० अनुरक्त; आसक्त ( २ ) विश्रांत; थोभेलु निरति स्त्री० अत्यंत आसक्ति निरतिशय वि० अनुपम; अद्वितीय निरत्यय वि० सुरक्षित; भय विनानुं (२) दोषरहित; स्वार्थरहित ( ३ ) पूरेपूरुं सफळ निरनुक्रोश वि० निर्दय; कठोर निरनुरोध वि० प्रतिकूळ ( २ ) निर्दय निरन्वय वि० संततिहीन ( २ ) असंबद्ध ; असंगत ( ३ ) दृष्टि बहारनुं ( ४ ) आकस्मिक ( ५ ) परिजन विनानुं ( ६ ) पाछळ कशी अवशेष न रहे तेव निरपत्रप वि० निर्लज्ज; धृष्ट निरपराध वि० निर्दोष ; बेकसूर निरपवाद वि० दोष के कलंक विनानुं (२) अपवाद विनानुं निरपाय वि० विघ्न विनानुं ( २ ) अमोघ ; निष्फळ न नीवडे तेवुं निरपेक्ष वि० अपेक्षा विनानुं ( २ ) परवा विनानुं ( ३ ) इच्छा - आकांक्षा -विनानुं ( ४ ) निःस्वार्थ; अनासक्त (५) बेदरकार Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरभिभव २४२ निरातंक निरभिभव वि० पराभव न पमाडी निरहंकार, निरहंकृति वि० अभिमानशकाय तेवू ; पार्छ पाडी न शकाय तेवू रहित; नम्र [स्वतंत्र निरभिलाष वि० परवा के आकांक्षा निरंकुश वि० अंकुश के दाब वगरनु; विनानुं निरंग वि० अवयव विनानु (२) साधन निरमर्ष वि० क्रोध विनानं के युक्ति विनान निरय पुं० नरक (२) दुःख (३) पाप निरंजन वि० राग-द्वेष, पुण्य-पाप के निरर्गल वि० विघ्न के रुकावट विनानुं कलंक इ० रहित (२) मेश विनानु (२) अंकुश विनानु (३) मर्यादा विनानुं (नेत्र) (३) कृत्रिमता विनान; सहज निरर्गलम् अ० रुकावट विना निरंतर वि० सतत; अखंड (२) वच्चे निरर्थ वि० धन विनानु ; गरीब (२) अवकाश विनानु; खूब लगोलग आवेलु प्रयोजन वितान् ; अर्थहीन (३) गाढ (४) वफादार; साचं निरर्थक वि० उपयोग विनानु; लाभ (५) परिपूर्ण; व्याप्त (६) दृष्टि विनानु (२) अर्थहीन ; मतलब विनानुं बहार नहि तेवू निरवकाश वि० खाली जगा विनान निरंतरम् अ० अविरतपणे ; सतत (२) (२) अवकाश - फुरसद विनानुं गाढपणे ; दृढपणे (३) तरत ज निरंतराल वि० वच्चे अवकाश विनान; निरवग्रह वि० प्रतिबंध वगरनुं; काबू विनानुं (२) स्वच्छंदी (३) मनस्वी नजीक होय तेवू (२) सांकडु निरवद्य वि० दोष, खामी के वांधो निरंबर वि० वस्त्र विनान ; नग्न न काढी शकाय तेवं निराकरण न० इन्कार ते; रदबातल करवं ते (२) दूर करवं ते ; हांकी निरवधि वि० मर्यादा के अंत विनानुं काढव ते (३) खंडन; विरोध (२) सतत चालु रहेतुं निराकरिष्णु वि० इन्कारतुं; हांकी निरवलंब वि० आधार विनानु (२) काढत (२) तिरस्कार करतुं (३) आधार न आपतु (३)आधारे न रहेतु रुकावट करतुं (४) -विनानुं करवा निरवशेष वि० संपूर्ण ; पूरेपूरु इच्छत निरवसाद वि० आनंदी निराकुल वि० शांत; स्वस्थ ; गाभरुं निरस् ४ प० फेंकवं; फेंकी देवं नहि थयेल (२) भीड विनानं (३) (२) हांफी काढवू; दूर करवू अव्यवस्थित नहि तेQ (४) स्पष्ट (३) पराभव करतो; नाश करवो निराकृ ८ उ० हांकी काढ; काढी (४) इन्कार करवो; अस्वीकार मुकवू (२) खंडन करवं (३) तिरकरवो (५) खंडन करवू (दलील-) स्कार करवो (४) नाश करवो (६) ढांकी देवं ; झांख पाडवू (५) इन्कार (६) विरोध करवो निरसन वि० काढी मकतं ; हांकी काढतुं निराकंद वि० फरियाद के विलाप (२) न० काढी मूकवू ते (३) इन्कार विनानुं (२) अवाज न संभळाय तेवं (४) खंडन (५) नाश (३) संरक्षण न आपतुं ; संरक्षण विनानं निरस्त वि० फेंकी दीधेलं ; काढी मूकेलं; निरागम वि० वेदना आधार विनानं दूर करेल ; नाश करेलु ; त्यागेलं (२) निरागस वि० निर्दोष ; निरपराधी -विनानु; -रहित (३) खंडन करेलु निरातंक वि० नीरोगी (२) निर्भय (४) ओकी काढेलं (५) अप्रैल (३) विघ्न के रुकावट वगरनुं Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरापद् २४३ निर्गम निरापद् वि० विपत्ति विनानं निरुच्छ्वास वि० श्वास न चालतो होय निराबाध वि० पीडा के विघ्न विनानं तेवू (२) सांकडु (३) मृत (२) पीडा के हेरानगति न करतुं निरुत्सव वि० उत्सव विनानं निरामय वि० नीरोगी; तंदुरस्त (२) निरुदर वि० फांद विनानु ; पातळ खामी के कलंक विनानु (३) पुं०, न० निरुद्ध वि० अटकावेलं; रोकेलं (२) कल्याण ; कुशळता; क्षेम अंकुशमां रखायेलं (३) केद पूरेल निरामिष वि० मांस विनानू (२) (४) ढांकेल (५)-थी भराई गयेलं विषयेच्छा विनानु (३) पगार के लाभ निरुद्धति वि० ऊछळतुं नहि तेवू (रथ) विनानुं [(२) संकोचेलं निरुध् ७ उ० निरोध करवो; अटकानिरायत वि० खूब खेंचेल के लंबावेल व; रोकवू (२) केद पूर, (३) निरायति वि० जेनो अंत नजीक छे तेवू नियंत्रणमा राखवू निरायास वि० महेनत वगरनु ; सहेलु निरुपधि वि० माया -कपट विनानं । निरारंभ वि० कार्य के प्रवृत्ति रहित निरुपपद वि० कोई पण पदवी के निरालंब वि० आलंबन विनानुं (२) इलकाब विनानुं पोतानी जात पर ज आधार राखतुं; [करतुं निरुपप्लव वि० निर्विघ्न (२) पीडा न स्वतंत्र (३)सहाय विनानुं ; एकलं निरालोक वि० अंधकारमय ; प्रकाश निरुपस्कृत वि० शुद्ध ; भ्रष्ट नहि थयेलू निरूढि स्त्री० प्रसिद्धि (२)प्रवीणता वगरनु (२) दृष्टि विनानुं निराश वि० आशारहित; हताश निरूप् १० उ० बारीकाईथी जोवू के निराशा स्त्री० नाउमेदी; हताशा । तपासवं (२) निर्णय के निश्चय करवो निराशिस् वि० उदासीन; इच्छा के (३) पसंद करवं; नीमh (४)अभि नय करवो (५)विचारणा करवी तृष्णा विनानु (२) वरदान के लाभ विनानुं निरूपण न० जोवू के तपासवं ते (२) निराश्रय वि० आशरा विनानू (२) अवलोकन ; विवेचन (३)व्याख्या साथी के मित्र विनानु; एकल निरेभ वि० निःशब्द निरिंग वि० स्थिर; स्थावर निरोध पुं० अटकाववं ते; रोकवं ते निरीक्ष १ आ० निरीक्षण करवं; (२) केद पूरवं ते (३)घेरी लेवं ते ध्यानथी जोQ (२) तपास; शोधवू (४)निग्रह करवो ते (५) संपूर्ण नाश (३)चिंतन कर ; विचार करवो निरोधक वि० अटकावनाएं; रोकनाएं निरीक्षण न०, निरीक्षा स्त्री०, निरी निरोधन न० अटकावq ते (२) संयमन क्षित न० दृष्टि ; नजर; निहाळवू ते (३) कारागृहमां नाखवु ते । (२)शोधq ते (३)आशा (४) ख्याल; निऋति स्त्री० नाश; विनाश (२) विचार [पीडाओ विनानुं आफत; विपत्ति; दुर्भाग्य (३) मृत्यु निरीति वि० अतिवृष्टि वगेरेनी के बरबादीनी देवता; नैर्ऋत्य अर्थात् निरीह वि० इच्छा विनानु; निःस्पृह दक्षिण-पश्चिम खूणानी देवी । (२) निश्चेष्ट निर्गम् १ प० [निर्गच्छति] बहार निरुक्त न० एक वेदांग ; व्युत्पत्तिशास्त्र नीकळवू - जर्रा (२) फूटवू ; नीकळवू; निरुक्ति स्त्री० व्युत्पत्तिथी शब्द उत्पन्न थर्बु (३)जता रहेवू; दूर थर्बु समजाववो ते निर्गम पुं० बहार नीकळवं के जq ते Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निर्गध (२) दूर थवं के चाल्या जवं ते ( ३ ) बहार नीकळवानो मार्ग निर्गंध वि० गंध विनातुं निर्बंधन न० वध; कतल निर्गुण वि० पणछ विनानुं (धनुष्य ) (२) सारा गुणो विनानुं; नकाम् (३) सत्त्व, रजस् अने तमस् ए गुना लेश विनानुं निग्रंथ वि० बधा पाश के बंधनथी मुक्त निर्ग्राह्य वि० जोई शकाय तेव निर्घात पुं० वज्रपात; मेघगर्जना ( २ ) उत्पातसूचक शब्द (३) वावंटोळ निर्घुण वि० निर्दय; क्रूर निर्घोष पुं० मोटो ध्वनि निर्जन वि० अवरज़वर के वसवाट विनानुं ( २ ) परिवार विनानुं ( ३ ) न० वेरान स्थळ ( ४ ) एकांत स्थळ निर्जर वि० तरुण (२) अजर; अविनाशी (३) पुं० देव निजि १ प० जीतवं; हराववुं ( २ ) पाछळ पाडी देव 1 निर्मित वि० जितायेलं ( २ ) हरावेलुं निर्जीव वि० जीव वगरतु; मृत निर्झर पुं० न० झरो; पर्वतनो प्रवाह निर्झरिणी, निर्झरी स्त्री० ( पर्वतनी ) नदी [ चर्चा; विचारणा निर्णय पुं० निश्चय (२) फेंसलो (३) निणिक्त वि० धोयेलं; साफ करेलु (२) प्रायश्चित्त करेलु • निर्णी १ प० निर्णय करवो निर्णीत वि० नक्की करेल निर्णेत पुं० न्यायाधीश ( २ ) दस्तावेज निर्दय वि० दया वगरनुं ( २ ) गाढ; तीव्र ; अत्यंत [ जोरभेर निर्वयम् अ० दया विना ( २ ) अत्यंत ; निर्दर वि० कठण (२) निष्ठुर ( ३ ) निर्लज्ज ( ४ ) पुं० गुफा निर्वरि स्त्री० गुफा २४४ निर्मु निर्वहन वि० अग्नि विनानुं (२) बळतरा के दाह विनानुं (३) शीतळ; शांत ( ४ ) बळतं; बाळतुं (५) न० बळवंते, बाळवु [ विनानुं निर्दाक्षिण्य वि० विवेक के सभ्यता निर्धारित वि० फाडेलु; फोडेल निर्दिश् ६५० निर्देश करवो; सूचवनुं; दर्शाव ( २ ) उल्लेख करवो ( ३ ) सोंप, आप ( ४ ) भविष्य भाखवु (५) सलाह आपवी (६) कही बताaj; वर्णन करवुं ( ७ ) आज्ञा करवी निर्दिष्ट वि० दर्शावेलूं; सूचवेलुं (२) आज्ञा करायेलुं (३) वर्णवायेलुं निर्देश पुं० कथन ( २ ) सूचन ( ३ ) आज्ञा ( ४ ) वर्णन (५) उपदेश निर्देश्य वि० दर्शाववा, बताववा के जणाववा योग्य ( २ ) प्रायश्चित्तने योग्य निर्दोष वि० दोष के खामी विनानुं निद्वंद्व वि० सुख-दुःख वगेरे द्वंद्वोथी रहित ( २ ) नि:स्पृह (३) बीजा उपर आधार न राखतुं निर्धन वि० धनहीन; गरीब निर्धार पुं०, निर्धारण न० नक्की कर ते ( २ ) निश्चय; खातरी निर्धारित वि० निश्चित करेलुं निर्धाव ११० धोवुं; साफ करवुं (२) - मांथी नीकळव; वहेवुं ( ३ ) - नी पाथी नासी छूटवुं निर्घु ५, ९ प० दूर करबु; फेंकी देव ; खंखेरी नाखवु ( २ ) तिरस्कारबुं (३) त्याग करवो (४) इन्कार (५) पीडवं; त्रास आपवो ( ६ ) वझवु ; घुमाव निर्धूत वि० काढी नाखेलुं ; दूर करेलु ; खखेरी काढेलुं (२) त्यागेलुं; तिरस्कारेलुं (३) नाश करेलुं निर्धूनन न० ऊछळवं ते ( समुद्रनुं) निर्वृ ११०, १० उ० निरधार करवी Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निर्घौत निधत वि० स्वच्छ करेलु ; धोयेलुं निर्नमस्कार वि० अविनयी; उद्धत (२) जेनो कोई सत्कार नथी करतु तेव; तुच्छकारायेलं निर्माणक वि० पैसा विनानुं ; गरीब निर्नाथ वि० अनाथ असहाय, निर्नाभि वि० डूंटी खुल्ली रहे के डूंटी सुधी न पहोंचे ते (पहेरेलुं वस्त्र ) निर्बल वि० नबळं; अशक्त निर्बंध ९ १० आग्रह करवो; हठ करवी निर्बंध पुं० आग्रह; हठ ( २ ) आजीजी (३) भारे प्रयत्न निर्भग्न वि० भागेल तूटेलुं (२) वळेलं ( ३ ) हीन; कंगाल निर्भय वि० भयरहित; सुरक्षित निर्भर वि० अतिशय; गाढ; तीव्र ( २ ) ( समासने अंते ) पूर्ण ; भरेलु निर्भरम् अ० अत्यंत; गाढवणे निर्भ १० उ० ठपको आपको; धमकी आपत्री ( २ ) शरमात्री देतुं पाछु पाडी दे [ तिरस्कार; धमकी निर्भर्सन न०, निर्भर्त्सना स्त्री० ठपको; निर्भा २ प ० प्रकाशवुं; देखावुं ( २ ) प्रगट थबुं , निर्भिद् ७ उ० भांग फाडनुं ( २ ) aaj (३) प्रगट कर ; खुल्लं पाडवु निभिन्न वि० तोडेलं; फोडेलु (२) aaj (३) खोलेलं (४) खुल्लं करेलुं निर्भुग्न वि० वळेलुं (२) सीधुं ( ३ ) एकबीजा साथै खूब दबायेलुं निर्भेद ० भांग, फोड़ के फाड ते (२) चीरो, फाट (३) खुल्लुं के प्रगट करी देवें ते ( ४ ) नाश निर्भीग वि० भोगमां आसक्ति विनानुं निर्मक्षिक वि० माखो विनानुं ( २ ) दखल विनानुं एकांत निर्मथ पुं०, निर्मथन न० वलोव (२) घसवुं ते ( ३ ) विनाश २४५ निर्मूल निर्मद वि० मदमत्त नहि तेबुं; शांत (२) गर्विष्ठ नहि तेनुं; नम्र निर्मम वि० ममतारहित; विरक्त (२) निःस्वार्थ ; निःस्पृह निर्मर्याद वि० अनंत ; अमाप ( २ ) मर्यादानुं उल्लंघन करनाएं; दुष्ट; पापी (३) उद्धत नियंत्रण विनानुं निर्मल वि० स्वच्छ, शुभ्र ( २ ) निष्पाप (३) तेजस्वी ; प्रकाशित निर्मथ् १,९ प० मंथन करवुं ; वलोव ( २ ) घसीने अग्नि उत्पन्न करवो ( ३ ) arr; कूट ( ४ ) पूरेपूरो नाश करवा निर्मा ३ आ०, २५० निर्माण करवु; vij र (२) वसाववुं ( शहेर ) ( ३ ) रचबुं - लखवूं ( काव्य ) निर्माण न० मापवुं ते ( २ ) प्रमाण; मर्यादा (३) उत्पन्न कर के रच ते (४) सर्जन, सरजेली वस्तु ( ५ ) आकार ; घाट; रचना ( ६ ) ग्रंथ निर्मातृ वि० बनावना; रचनारुं (२) उत्पन्न करनारुं निर्माथ पुं० जुओ' निर्मथ ' निर्मानुष वि० निर्जन निर्माल्य वि० स्वच्छ निर्मळ ( २ ) न० स्वच्छता ( ३ ) देव उपर चडावेली के चडावोने उतारेली वस्तु ( फूल इ० ) ( ४ ) वापरीने काढी नाखेली वस्तु निर्मित वि० बनावेलु; सरजेलु; रचेलं (२) कृत्रिम ( ३ ) अनुष्ठित निर्मुक्त वि० छोडी मूकेलं; छूटुं करेलु (२) संसार के तेनी आसक्तिमाथी मुक्त ( ३ ) निचोवीने काढलं ( ४ ) पुं० जेणे पोतानी कांचळी तरत ज उतारी नाखी छे तेवो साप निर्मुच् ६ ० [ निर्मुचति] छोडी देत्रं ; छुटका करवी (२) त्याग करवो निर्मूल १० उ० निर्मूळ कर निर्मूल वि० मूळ विनानुं ( २ ) आधार के प्रमाण विनानुं ( ३ ) नाबूद करेलु Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निर्मूलन ૨૪૬ निर्वाण निर्मूलन न० समूळ विनाश; निकंदन रंगीन पट्टा के चाठां विनानु ; सादं निर्मुज २५० लूछी नाखवू; साफ करवू (४)पारखी न शकाय तेवं निर्मष्ट वि० लछी नाखेल निर्लक्ष्य वि० अदृश्य निर्मोक पुं० मुक्त करवं ते (२) चामडी; निर्लज्ज वि० शरम विनानुं चामडु (३) सापनी कांचळी निलठन न० लूंटवू ते; खेंची लेवं ते निर्मोक्ष पुं० मुक्ति; छुटकारो । निर्वचन वि० चूप (२) दोपरहित; निर्यत् १० उ० बदलो लेवो के वाळवो अनिंद्य (३)न० प्रसिद्धि ; ख्याति (४) (२)पार्छ वाळवू (३) क्षमा करवू ___ व्युत्पत्ति (५)प्रशंसा (४) बक्षिस करQ निर्वचनम् अ० चूपकोथी ; बोल्या विना -प्रेरक० झूटवी जवं; खेंची लेवू निर्वप् १ प० छांटवू; रेडवू (२) निर्यत् वि० बहार नकळतुं वेर (बीज) (३) अर्पण कर (४) निर्या २ प० बहार जवू (२) व्यतीत पितृओनुं तर्पण कर थQ; पसार थर्बु (समय) निर्वपण न० पितृतर्पण करवं ते (२) -प्रेरक० हांकी काढवू (२) अनुष्ठान अर्पण करवं ते (३) बक्षिस ; दान शरू कर निर्वर्ण १० उ० निहाळीने जोवू निर्याण न० जवा नीकळवते; प्रस्थान निर्वस् १५० बहार के परदेश वसवू (२) अदृश्य-लप्त थवं ते (३) मृत्यु (२) वसवाटनो समय पूरो करवो (४) मोक्ष (५) हाथीनी आंखनो -प्रेरक० देशनिकाल करवू खूणो (६)पगे बांधवानुंदोरडु (ढोरने) निर्वह १५० पार पडq; सफळ थर्बु निर्यात वि० बहार नोकळेलु (२) बाजुए (२) पूरुं थg (३)-थी निर्वाह करवो मूकेलु (धन) (३) पूरुं परिचित -प्रेरक० पूरे कर ; पार पाडवू (२) निर्यातन न० पाछं आपवं ते (थापण व्यतीत करवू (समय) इ०) (२) देवू पार्छ वाळवं ते (३) निर्वहण न० अंत; समाप्ति (२) छेवट वेर लेवु ते (४) मारी नाखवू ते सुधो नभावq ते (३) नाटकना वस्तुने निर्यातित वि० पाछं आपलं कटोकटी उपर के छेवटनी भूमिका निर्यास पुं०, न० वृक्ष वगेरेमाथी झरतो उपर लावq ते (नाटय०) रस (२)अर्क निर्वा २ प० फूक ; पवन नाखवो (२) नियुंह पुं० टोच उपरनी घुमटी (२) टाढा थq; टाढा पडवू (३) फूंक अर्क (३) खूटी (४) दरवाजो (५) मारीने ओलवी नाखवू; बुझाई जर्बु फूलनो कलगी (६) कबूतर वगेरेने (४) शांत पडवू - थर्बु बेसवा भीतमां रखातुं लाकडं निर्वाच्य वि० कहेवाने अयोग्य (२) निर्योग पुं० पोशाक; शणगार (२) अनिंद्य ; दोषरहित गायो बांधवानुं दामण निर्वाण ('निर्वा' न भू० कृ०) वि० निर्योगक्षेम वि० अप्राप्तनी प्राप्ति अने ओलवी नाखेलं (२) मुक्त (३) मृत प्राप्तनी रक्षानी इच्छामाथी मुक्त ; कई (४) आथमेल (५) शांत थयेलंमेळववा-साचववानी भांजगड विनानुं पडेलु (६) न० बुझाई जq ते (७) निर्लक्षण वि० शुभ लक्षणो विनानुं अदृश्य थवं ते (८) मृत्यु (९) अंतिम (२) अगत्यनु नहि तेवू; तुच्छ (३) मुक्ति (१०)संपूर्ण शांति - तृप्ति। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निर्वात निर्वात वि० पवन वगरनुं निर्वाद पुं० निंदा (२) लोकापवाद; आळ (३) अफवा (४) वादविवादनो अंत आववो ते २४७ निर्वाप पुं० तर्पण; श्राद्ध निर्वापण न० तर्पण; श्राद्ध ( २ ) बक्षिस ; दान ( ३ ) ओलवी नाखवुं ते (४) बीज विखेरवां के वाववां ते (५) शांत के ठंडुं पाडवुं ते ( ६ ) नाश; वध निर्वापयत वि० ओलवी नाखनाएं ( २ ) ठंड पाडनारुं ; शांत करनाएं निर्वापित वि० ओलवी नाखेलुं (२) ठंडु पाडे (३) वध करेलुं निर्वास पुं०, निर्वासन न० देशनिकाल कर के थते ( २ ) वध; कतल निर्वाह पुं० जुओ 'निर्वहण ' निविकल्प वि० कोई विकल्प के शंका न होय तेनुं ( २ ) ज्ञाता ज्ञेय-ज्ञान-ना भान विनानुं (समाधि) fafareपम् अ० आनाकानी विना निर्विकार वि० विकार के फेरफार विनानुं (२) उदासीन; निःस्पृह निर्विचार वि० अविचारी निविचारम् अ० अविचारीपणे निर्विघ्न वि० विघ्न के हरकत विनानुं निर्विण्ण ('निर्विद्' नुं भू० कृ० ) वि० खिन्न; कंटाळेलं (२) दुःखित; शोकग्रस्त निविद् ४ आ० - थी कंटाळव निविद्ध वि० घवायेलं; हणायेलुं (२) एकबीजाथी छुटुं पडेलुं निविमर्श वि० अविचारी निर्विवर वि० छिद्र के अवकाश विनानुं (२) गाढुं [ विनानुं निर्विवाद वि० विरोध के तकरार निविश् ६ प० भोगववुं; अनुभववं (२) शणगारखं (३) परणवुं निविशंक वि० शंका के भय विनानुं निर्व्यूढ निविशेष वि० भेद के तफावत विनानुं (२) तुल्य; समान निविशेषम्, निर्विशेषेण अ० तफावत कर्या विना; समान रीते निर्विषय वि० पोताना घर के उचित स्थानमांथी हांकी कढाये लुं निविष्ट वि० भोगवेलुं; अनुभवेलं (२) परणेलुं (३) पामेलु ; पहोंचेलु (४) पेठेलं (६) बेठेलं; पडाव नाखेलुं निर्वार्य वि० निर्बळ; पराक्रमहीन निर्वृ ५ उ० सुख पामवुं ; तृप्त थवुं निर्वृत् १ आ० समाप्त थ; अंत आववो (२) बनवुं ; थवु - प्रेरक० सिद्ध करवुं ; समाप्त कर निर्वृत वि० सुखी; स्वस्थ ; निश्चित ; संतुष्ट (२) समाप्त निर्वृति स्त्री० शांति ; तृप्ति; सुख (२) समाप्ति ( ३ ) नाश; मृत्यु ( ४ ) मोक्ष निर्वृत्त वि० सिद्ध; समाप्त ( २ ) मृत निर्वृत्तमात्र वि० तरतमां ज पूरुं थयेलं निर्वृत्ति स्त्री० सिद्ध थवुं - समाप्त थ ते (२) फळ; परिणाम ( ३ ) -थी निवृत्त थ के दूर रहेवुं ते (४) मोक्ष निर्वेद पुं० खेद; कंटाळो; निराशा (२) दुःख, शोक (३) मानभंग ( ४ ) विरक्ति; वैराग्य निर्वैर वि० वेररहित निर्व्यपेक्ष वि० निःस्पृह; उदासीन निर्व्यलीक वि० दंभ के जूठ विनानुं निव्यंजक वि० प्रगट - खुल्लुं करनाएं निव्यंजन वि० दंभ वगरनुं; प्रमाणिक निर्व्याज वि० निष्कपट प्रमाणिक (२) छळ के बनावट विनानुं (३) पराक्रमथी मेळवेलुं निर्व्यापार वि० चेष्टा के प्रवृत्ति विनान् (२) बेकार ; कामकाज विनानुं निर्व्यूढ वि० पूर्ण करेलुं; निष्पन्न करेलु (२) वघेलुं; विकसेलुं (३) साबित ' Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निव्यूह २४८ निविष्ट करेल; बतावी आपेल (४)त्यागेलं; निवर्हण वि० जुओ 'निबर्हण' पडतुं मूकेलं (५) व्यूहरचनामां गोठ- निवस् १५० रहेव (२) मोजूद होवू वायेल के गोठवेल (६) काढी मूकेल; (३)मुकाम करवो (४) २ आ० कपडां धकेली काढलं पहेरवां के बदलवां निषूह पु० खोटी (२) एक हथियार निवसन न० निवासस्थान (२) वस्त्र (३) टोच उपरनी घुमटी निवह १ उ० पासे लई जवं के लाव निर्वीड वि० निर्लज्ज; धृष्ट । (२) ऊंचकवू; वहन करवू निर्हाद पं० मळत्याग करवो ते निवह वि० उत्पन्न करतु; निपजावतुं निर्हार पु० लई जवू ते; दूर करवू ते (२) पं० समूह; ढगलो; जथो । (२) खेंची काढवू ते (कांटो इ०) निवात वि० पवनना झपाटा विनानुं (३) निर्मळ करवं ते (४) शबने (२) न० वायुरहित स्थान (३) अग्निदाह माटे बहार लई जवं ते वायुना झपाटा न होवा ते; शांति; (५) खानगी द्रव्यसंचय करवो ते निष्कपता(४) मजबूत बखतर (६) मळ-मूत्र विसर्जन करवं ते निवाप पुं० वाववानुं धान्य; बिया, निह १५० बहार खेंचो काढy (२) (२) पितृतर्पण (३)अर्पण ; बक्षिस हरण कर (३) शबने बाळवा बहार निवापांजलि पु०, निवापोदक न० काढg (४) दूर करवू (दोष इ०) पितओने पाणीनी अंजलि अर्पवी ते निदि पु० ध्वनि; अवाज (२) पक्षी- निवार पुं०, निवारण न० निवारवू ते ; ओनो कलरव रोकवं ते (२) अटकायत ; डखल निहीं, निहींक वि० निर्लज्ज ; बेशरम निवास पुं० रहे ते (२) निवासनिलय पुं० संतावानी जगा (२) स्थान ( ३ ) मुकाम करवो ते (४) वस्त्र निवासस्थान ; घर (३) विनाश (४) निवासन न० निवासस्थान (२) मुकाम आथम ते करवो ते [पहेयु होय तेवू निलयन न० निवासस्थान ; निवास (२) निवासिन् वि० रहेतुं ; वास करतुं (२) आश्रय स्थान ; आशरो । निविद् २ प० (मुख्यत्वे प्रेरक रूपे) निली ४ आ० चोंटQ (२) उपर बेस; निवेदन कर ; जणावq (२)जाहेर उपर ऊतरवू (३) संतावू ; भरावं करव; दर्शाववं (३) नजराणं करवं निलीन वि० संतायेलं; अदृश्य थयेलं (४)-नी संभाळमां सोंपवू (२) भळी गयेलं ; एकरूप थयेलं (३) निविश्६ आ० बेसवं (२) अटकवू; घेरायेलु (४) पूर्ण (५) बदलायेल; पडाव नाखवो (३)-उपर स्थिर करवू रूपांतर पामेल (६)नाश पामेलं (४) प्रवेश करवो (५) तल्लीन थर्बु निवप् १५० वावQ के विखेरवं (बीज) (६)परणवू (७) नीचे ऊतरवू (२) पितृतर्पण कर (३) वधेरवू -प्रेरक० स्थिर - एकाग्र करवू (प्राणी) (मनने) (२) मूकQ (३) बेसाडq; निवपन न० पितृतर्पण करवं ते (२) स्थापित कर (४) परणावq (५) वावg - वेर - विखेर ते पडाव नाखवो (६) चीतरवू (७) लखवू निवर्तन न० पाछु आव ते (२) पार्छ (८) सोंपy वाळg ते (३) न बनवं के थधु ते निविष्ट वि० बेठेलं (२) तल्लीन (३) (४)-मांथी विरमवू ते पडाव नाखेलु (४) प्रवेशेलं Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निश्चेष्ट निवृ ५, ९, १ उ० घेरी लेवू निशाकर पुं० चंद्र -प्रेरक० निवार; रोक निशागृह न० सूवानो ओरडो निवृत् १ आ० पार्छ फरवू (२) नासी निशाचर पुं० राक्षस (२) चोर जवू (३) विमुख थर्बु (४) अटकवं निशाचरी स्त्री० राक्षसी (२) अभि(५) अंत आववो; पूरे थq सारिका (३) वेश्या निवृत ('निव' न भू.कृ.)वि० चारे । निशाट, निशाटन पुं० राक्षस (२)धुवड बाजुथी घेरायेलं (२) निवारेखें; निशात वि० तीक्ष्ण; धारवाळं अटकावेलु (३)न० बुरखो; पडदो। निशात्यय पुं० रात्रिनो अंत - परोढ निवृत्त ('निवृत्'- भू० कृ०)वि० पार्छ निशानाथ पुं० चंद्र फरेलु (२)चाल्यु गयेलु (३) -मांथी निशामुख न० सायंकाळ विरमेल (४) पूरु- समाप्त थयेलं । निशाविहार पु० निशाचर; राक्षस निवृत्तकारण वि० कांई ज हेतु के। निशांत न० घर; निवास (२) अंतःपुर प्रयोजन न रझां होय तेवू (३) पुं० परोढ निवृत्तयौवन वि० जेनी जुवानी पाछी । निशित वि० धारवाळं; तीक्ष्ण आवी छे तेवं [विनानुं निशीथ पुं० मध्यरात्रि (२) रात्रि; निवृत्तलोल्य वि० इच्छा के लोलुपता सूवानो समय निवृत्तहृदय वि० विमुख थयेलु (२) निशुभ, निशुंभ ६ प० [निशुंभति] (पग अनुकंपावाळं बनेल तळे) रोळी नाखवू निवृत्ति स्त्री० पार्छ फरवु ते (२) अंत; । निशुंभ पुं० वध; कतल (२) (धनुबंध पडवं ते (३) प्रवृत्ति छोडी देवी ष्यने) वाळवू के भागवू ते ते (४) विमुख थवं ते निशंभन न० वध; कतल निवेदन न० जणावते (२)जाहेर करवं निश्चक्रम् अ० पूरेपूरुं; तमाम ते(३) रजूआत (४) अर्पण करवु ते । निश्चय पुं० तपास; खातरी (२) निवेद्य न० नैवेद्य निर्णय; ठराव (३)संकल्प; लक्ष्य निवेश पं० प्रवेश (२) मुकाम करवो ते ; निश्चर् १ प० बहार नीकळवू (२) पडाव (३)निवासस्थान (४) घेराव; उत्पन्न थर्बु विस्तार (५) मूकवू ते (६) परणवू निश्चल वि० अचळ; स्थिर ते (७) नगर स्थापq ते निश्चाय पुं० समुदाय निवेशन न० प्रवेश (२) निवासस्थान निश्चायक वि० निर्णायक (३) लग्न (४) नगर वसाव ते निश्चि ५ उ० निश्चय करवो (५) छावणी; पडाव (६) शहेर निश्चित वि० नक्की करेलु (२) न० निश स्त्री० रात्री ('निशा 'ना द्वितीया निश्चय; निर्णय द्वि०व०ना रूप पछी विकल्पे आवे छे) निश्चितम् अ० नक्की करीने ; निःसंशय निशठ वि० निष्कपट निश्चित वि० चिता विनानु (२) निशब्द वि० न बोलतुं; चूप __ अविचारी निशम् ४ ५०, १० उ० सांभळवं; निश्चेतस् वि० उन्मत्त; पागल ध्यान आपq (२)निहाळवू; अवलोकवू निश्चेष्ट वि० चेष्टा विनान; स्थिर निशा स्त्री० रात्रि (२) स्वप्न (२) शक्तिहीन; दूबळं Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निश्च्युत् निश्च्युत् १ आ० टपकवुं; झरवुं निश्रम पुं० सतत श्रम निश्रयणी स्त्री० निसरणी निश्राण पुं० धार काढवानो पथरो ( २ ) हथियार ( तरवार ) निश्रेणि ( - णी) स्त्री० निसरणी निश्वस् २ प० श्वास अंदर लेवो (२) निसासो नाखवो २५० निश्वास पं० निसासो निषक्त (" निषंज् 'नुं भू० कृ० ) वि० नाखेलुं; वळगाडेल (२) प्रतिबिंबित थलं (३) आसक्त निषण्ण ( 'निषद्' नुं भू० कृ० ) वि० बेठेलु अढेलीने बेठेलं (२) खिन्न निषद् ( नि + सद्) ११० [निषीदति ] बेसवु; अढेलीने बेसवुं ( २ ) खिन्न थबुं; निराश थवुं (३) रहेवुं (४) दुःखी थ [ खाटलो निषद्या स्त्री० हाट बजार ( २ ) नानो निषध पुं० नळराजाना देशनुं नाम ( उत्तरनो कुमाऊं प्रदेश ) निषंग पुं० आसक्ति; वळगवुं ते (२) संबंध (३) भाभुं निषंज् ( नि + संज्) १प० [निषजति ] वळगवं; चोटं (२) आसपास वीटळाव (३) प्रतिबिंब पडवुं ( ४ ) आसक्त थ निषाद पुं० पारधी, माछीमार वगेरेनुं काम करनार एक आदिवासी जात (२) चांडाल (ब्राह्मण अने शूद्रीयी जन्मेलो) (३) संगीत सप्तकनो छेल्लो के सातमो स्वर निषादित वि० बेसाडेलू निषादिन् वि० बेठेलं; आडुं पडेलु (२) पुं० महावत निषिक्त वि० सींचेलुं (२) रेडेलुं निषिच् ( नि+सिच्) ६ प० [निषिंचति] सिंचन करवु; रेडवुं; छांटवु ( २ ) वीर्यसिंचन करवु निष्काम निषिद्ध वि०अटकावायेलं; मना करायेलं निषिद्धि स्त्री० मनाई निषिध् (नि+सिध्) १ प० अटकाव ; वावु (२) मना करवी (३) सामु थ; विरोध करवो [ हणवुं निषूद् (नि+सूद्) १० आ० मारखं; निषूदन न० मारी नाखवुं ते (२) पुं० [(वीर्य) सिचव ते निषेक पुं० छांटवु ते; रेडवुं ते (२) निषेध पुं० मनाई ( २ ) इन्कार निषेध वि० निवारनारुं; अटकावनाएं मारनार (२) पार्छु पाडी देनारुं ; -थी चडियातुं निषेव् ( नि + सेव्) १ आ० सेववुं ; आचर (२) भोगनुं ( ३ ) रहेवुं (४) उपयोग करवो (५) अनुभववुं निषेवण न०, निषेवा स्त्री० सेववुं ते ( २ ) पूजा (३) अभ्यास; परिचय ( ४ ) उपभोग; उपयोग (५) आसक्ति (६) रहेवुं ते [वसवाट कराये लुं निषेवित वि० सेवायेलुं (२) रहेवायेलं; निष्क पुं०, न० सोनानो सिक्को (२) हार; कंठी निष्कपट वि० कपट वगरनु; सरळ निष्करुण वि० दया वगरनं; क्रूर निष्कर्ष पुं० सार; तात्पर्य ( २ ) न० कर लेवा प्रजा उपर जुलम करवो ते निष्कर्षण न० खेंची काढवुं ते ( २ ) निर्णय तारववो ते निष्कल १० प० दूर हांकी काढवु निष्कल वि० क्षीण; दुर्बळ (२) अव यव - भाग विनानुं ( ३ ) वंध्य ; षंढ निष्कल्मष वि० डाघ के कलंक विनानुं निष्कस् - प्रेरक० हांकी काढ; देशनिकाल कर ( २ ) खेंची काढ निष्कंटक वि० कांटा वगरनुं (२) शत्रु विनानुं भय के त्रास विनानुं निष्कंप वि० निश्चल; स्थिर निष्काम वि० कामना विनानुं ( २ ) फळनी इच्छा विनानुं ( ३ ) नि:स्वार्थ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निष्कारण २५१ निष्पत्ति निष्कारण वि० हेतुरहित; कारण वगर- निष्क्रिय वि० अक्रिय (२) यज्ञादि क्रिया नु (२)निरुपयोगी (३)निःस्वार्थ न करना। (३) तत्त्वज्ञानी (संन्यासी) निष्कारणम् अ० निरर्थक ; वगर कारणे (४)न० परब्रह्म निष्कालिक वि० जेतुं आयुष्य पूरं थवा निष्टन प० निसासो; दुःखनो उद्गार आव्यं छे तेवू (२) अजेय निष्टप १ प० तपाव (२) शेकवं; निष्कासित वि० काढो मूकेलं; हांकी तळवू (३) घसीने साफ करवं. काढेलु (२) बहार नोकळेल (३) निष्टानक पुं० गर्जना; घोंघाट (२) मूकेलं; स्थापेलं दुःखनो ऊहकार निष्किचन वि० गरीब; दरिद्री निष्टाप पं० सहेब तपाव ते निष्कुट पुं० घर पासेनो बाग (२)अंत: निष्ठ वि० (समासने अंते)-उपर के पुर (३) बारगुं; दरवाजो । -मां रहेल के आवेलु (२)-ना संबंधी निष्कुलाकृ ८ उ० छाल उतारवी के (३)-मां आसक्त;-मां रत;-मां काढो नाखवी (२)निवंश करवू तत्पर (४) -मां श्रद्धावाळू (५) निष्कुलीन वि० हलका कुळनुं उत्पन्न करनाएं निष्कुष् ९ १० फाडवू ; चूंथq (२) निष्ठा स्त्री० अवस्था; स्थिति (२) खेंची काढq (३)छोतरां काढवां निष्कुषित वि० खेंची काढेलु (२)फाडी पायो; आधार (३) स्थिरता ; दृढता (४) आसक्ति; भक्ति; श्रद्धा (५) नाखेलु (३) काढी मूकेलं (४) खवाई अंत; परिणाम; समाप्ति (६) गयेलं कुशळता; निपुणता (७) मृत्यु निष्कज वि० चूप; अवाज न करतुं निष्ठान न० चटणी; अथाणु (२) निष्कट वि० दयाहीन; क्रूर अधिष्ठान निष्क ८ उ० दूर करवू ; काढी मूकवू [वगेरे उमेरेलु निष्ठानित वि० स्वादिष्ट करवा मसाला (२)टुकडा करवा निष्कृति स्त्री० प्रायश्चित्त (२) उप निष्ठापित वि० पूरुं - सिद्ध करेल कारनो बदलो वाळवो ते (३)माफी; निष्ठित वि० -मां के -उपर आवेलं क्षमा (४) धुतकार ते (२) निष्ठावंत (३) पूरुं करेलु (४) निष्कृष १ प० खेंच ; खेंची काढवू स्थिर (५) निश्चित करेलु। (२) छीनबी लेवू (३) फाडवू ; चीरवू निष्ठिव १, ४, ५० बहार काढq (२) निष्कोषणक न० दांत खोतरवानी सळी धुंकवु [न० धुंकवं ते निष्क्रम् १ उ० जतुं रहे; विदाय निष्ठीव पुं०, न०, निष्ठीवन, निष्ठीवित थर्बु (२) बहार नोकळ (३) निष्ठुर वि० क्रूर (२) कठोर अटक; बंध थवं निष्ठत वि. बहार काढलं - फेंकेलं निष्क्रम पुं०, निष्क्रमण न० बहार (२) धुंकेल (३) उच्चारेल (४) नीकळg ते (२) विदाय थव ते न० थूक ; धुंकवं ते निष्क्रय पुं० मूल्य ; किंमत (२) बक्षिस निष्ण, निष्णात वि० प्रवीण ; चतुर (३) बदलो वाळवो ते (४) खरीदी (२) पार पाडेल (३) कबूलेलं (५) वेचाण (६) अदलोबदलो निष्पत् १५० बहार नीकळवं; ऊडवं निष्क्रांत वि० बहार गयेलं; विदाय निष्पत्ति स्त्री० उत्पत्ति (२) परिपाक थयेलं (२) ऊपसी आवेलं; ऊठेलु (३) पूर्णता; समाप्ति Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निष्पत्राक २५२ निस्तंति निष्पत्राकृ ८ उ० जोरथी बाण मारवू निष्फल वि० फळ विनान (२) व्यर्थ ; (जेयी बाण पीछां सुधी आरपार फोगट (३)निरर्थक; नका, (४)वेध्य नीकळी जाय) (२) खूब वेदना निष्यंद पुं० झर-टपकवू ते (२)स्राव; थाय तेम कर प्रवाह; टपकतो रस (३) परिणाम निष्पद् ४ आ० -मांथी नीकळवू (२) निस् अ० क्रियापद पूर्वे -थी दूर, –थी जन्मवं; उत्पन्न थर्बु बहार, खातरी, पूरेपूरु होवापणुं, निष्पन्न वि० उत्पन्न (२) सिद्ध ; समाप्त भोग, उल्लंघन वगेरे अर्थमां वपराय निष्परिकर वि० तैयारी वगरनुं छे (२) धातु-साधित नहि एवां निष्परिग्रह वि० परिग्रह के मालमत्ता नामो पहेला –थी बहार, -थी दूर, विनानुं (२) पुं० तपस्वी; त्यागी विनानु, रहित -एवा अर्थमां वपनिष्पर्याय वि० क्रम विनानुं राय छ (स्वरो अने घोष व्यंजनो पूर्वे निष्पंक चि० कादव विनानुं; स्वच्छ 'निस्' ना 'स्' नो 'र' थई जाय छे; निष्पंद वि० स्थिर; कंपरहित (२) ऊष्माक्षरो पहेलां तेनो विसर्ग थई पुं० स्नेहनी गांठ (३) समूह जाय छे; 'च', 'छ' पहेला 'श्' थाय छे निष्पाप वि० पापरहित ; निर्दोष अने 'क' तथा 'प्' पहेला 'ष' थाय छे) निष्पिष् ७ ५० भूको करवो; दळवू निसर्ग पुं० आपी देवू ते ; बक्षिस (२) (२) घसावं; छोला (३) हाथ मळत्याग करतो ते (३) तजी देवं ते चोळवा (४) दांत पोसवा। (४) सृष्टि (५)स्वभाव ; प्रकृति निष्पीडन न० दबावq ते ; निचोववं ते निसर्गज वि० कुदरती ; स्वभावसिद्ध निष्पीडित वि० दबावेलु; निचोवेल निसर्गनिपुण वि० कुदरती रीते ज कुशळ निष्पूर्त न० वाव-कूवा, धर्मशाळा वगेरे निसर्गभिन्न वि० कुदरती रीते ज जदं बंधाववां ते निसर्गसिद्ध वि० जुओ 'निसर्गज' निष्पेष पुं०, निष्पेषण न० खूब दबावर्चा निसूदन वि० नाश करतु (२) न० ते (२) कचरी नाखवु ते (३) दळी हिंसा ; वध [सोंप (३)आपी देव नाख ते (४) अफाळवू के पछाडवू ते निष्प्रतिकार, निष्प्रतिक्रिय वि० उपचार निसज ६५० छुटुं करवं; छोडवं (२) न थई शके तेQ (२) निर्विघ्न ; रुकावट निसृष्ट वि० आपेल (२) तजेल (३) विनानं परवानगी आपेल निष्प्रतिष वि० रुकावट विनानुं निसृष्टार्थ ३० एलची; दूत; वकील निष्प्रतिद्वंद्व वि० शत्रु के हरोक विनान निसष्टार्थदती स्त्री० नायक-नायिकाना निष्प्रतीकार वि० जुओ 'निष्प्रतिकार' मनोरथ जाणी से सफळ थाय तेवं कार्य निष्प्रत्याश वि० निराश; हताश पोतानो जाते ज करनारी निष्प्रत्यूह वि० विघ्न के रुकावट विनान निस्तमस्क वि० अंधारा विनानं ; निष्प्रभ वि० निस्तेज (२) कमजोर प्रकाशित (२)पापरहित निष्प्रयोजन वि० कारण वगरनु (२) निस्तल वि० तळिया विनान (२) प्रयोजन विनानु (३) निरुपयोगी वर्तुळाकार (३) चल ; हालतु निष्प्रवाण (-णि) न० नवं - कोरं वस्त्र निस्तंतु वि० संतान विनानु (२) ब्रह्मनिष्प्राण वि० मृत्यु पामेलु ; निर्जीव चारी चिपळ ; नोरोगी (२) नमाल; निर्बळ निस्तंद्र (-द्रि) वि० आळसु नहि तेवू (२) Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निःश्वस् निस्तार २५३ निस्तार पुं० पार करवू ते; ओळंगवू निह्न २ आ० छुपाव, (२) नामुकर जवू ते (२)-मांथी बचवू के छूटवू ते (३) निहत वि० छुपावेलु (२) नामुकर मोक्ष (४) देवू चूकवq ते (५) उपाय गयेलं [छुपावq ते निस्तिमिर वि० जुओ 'निस्तमस्क' निह्नति स्त्री० नामुकर जवं ते (२) निस्तीर्ण वि० बचावेल (२) पार निज् २' आ० धोएँ; स्वच्छ करवं करेल (३) पूर्ण करेलु निद १५० निंदा करवी; वखोडवं निस्तुष वि० फोतरां विना- (२) निदक वि० निंदा करनाएं; वखोडनाएं खोडखांपण विना- (३) साफ; स्वच्छ निंदन न०, निंदा स्त्री० बदगोई; निस्तृ. १५० पार करवं; ओळंगी जवू वगोवणी (२)ठपको (२) पसार करवं (समय) (३) निदित ('निंद्' न भू० कृ०) वि० नासी छूटवू; -माथी बचq (४) निंदा करायेलं (२) निषिद्ध (३) प्रायश्चित्त कर ; साटुं वाळवं नीच ; अधम [निषिद्ध निस्तेजस वि० तेजोहीन ; तेज विनानुं निद्य वि० निंदा करवा योग्य (२) निस्त्रप वि० शरम विनान; निर्लज्ज निब पं० लोमडो निस्त्रिंश वि० त्रीसथी वधु (२) क्रूर; निस् २ आ० चुंबवू दया विनानु (३) पु० तरवार निःक्षत्र, निःक्षत्रिय वि० क्षत्रियो विनानं निस्वैगुण्य वि० सत्त्व-रजस्-तमस् ए निःक्षिप् ६ प० जुओ 'निक्षिप्' - त्रण गुणोथी पर थयेलं निःक्षिप्त वि० फेंकेल के मोकलेलं (२) निस्पंद वि० चेष्टारहित; स्थिर (२) पसार करेल (समय) पुं० भ्रूजq ते; कंपq ते निःक्षेप पुं० फेंकी देवं ते (२) पसार निस्पृह वि० स्पृहा-इच्छा वगरनुं __ करवते (समय) (३) लूछq ते (आंसु) निस्पंद पुं० जुओ 'निष्यंद' निःशब्द वि० अवाज विनानु निस्यंदिन वि० झमतं ; झरतुं ; टपकतुं निःशस्त्र वि० शस्त्र विनानुं निसव, निस्राव पुं० प्रवाह ; झरणु (२) निःशंक वि० भय के शंका विनानं भातनुं ओसामण निःशंकम् अ० शंका के भय विना निस्वन पुं०, निस्वनित न०, निस्वान निःशिष् -प्रेरक० पूरेपूर नाबूद करवू पुं० शब्द ; अवाज (२) कशुं शेष न राखवू निहत वि० मारी नाखेलं ; हणेलं (२) निःशेष वि० संपूर्ण ; पूरेपूरु -मां ठोकेलं के खोसेलं निःशेषम्, निःशेषेण अ० पूरेपूरु होय तेम निहन् २ प० हणवू ; नाश करवो (२) निःश्रयणी, निःश्रयिणी स्त्री० निसप्रहार करवो; मारवु (३) जीतq (४) रणी ; दादर वगाडg (ढोल) (५) दूर करवं निःश्रीक वि० शोभा के सौंदर्य विनानं निहार पुं० जुओ 'नीहार' (२) कमनसीब ; दुःखी निहित वि० मूकेलं; स्थापेलु (२) निःश्रेणि (-णी) स्त्री० जुओ 'निःश्रयणी' अनामत मूकेलं; सोंपेलं निःश्रेयस न० मोक्ष निहीन वि० नीच; अधम निःश्वस् २ प० निसासो नाखवो (२) निह्नव पुं० नामुकर जवं ते (२) सिसकारो भरवो (३) (हाथीए) बराछुपाव ते (३) दरगुजर करवं ते । डवू (४) श्वास लेवो Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निःश्वसन २५४ नीरक्त निःश्वसन, निःश्वसित न०, निःश्वास निःस्वभाव पुं० गरीबाई ; दरिद्रता पुं० निसासो (२) श्वास बहार काढवो ते नी १ उ० दोरवू (२) लई जq (३) निःसत्त्व वि० सत्त्वहीन; निर्बळ (२) पसार करवू (समय) (४)-स्थितिए हीन (३) मिथ्या; भासरूप (४) पहोंचाडवू (५)तपासीने नक्की करवू अविद्यमान नी पुं० (समासने छेडे) दोरनार; निःसपत्न वि० शत्रु के हरीफ विनानु मार्गदर्शक ; नेता निःसमम् अ० कसमये (२) दुष्टताथी नीका स्त्री० सींचाई माटेनी नहेर निःसरण न० बहार नीकळवू ते (२) नीच वि० नीचु; नानु; वामणुं (२) मरण (३)निर्वाण ; मोक्ष (४) उपाय तळेनुं (३) धीम (अवाज) (४) अधम; निःसरणि वि० उपाय के मार्ग विनानं हलकू (५) तुच्छ निःसह वि० थाफेलं (२) असह्य नीचग वि० नीचाण तरफ जतुं - वळतुं निःसंग वि० संग के संबंध विनानू (२) (नदी) (२) अधम ; नीच निःस्पृह (३) निःस्वार्थ (४) निर्विघ्न नीचैस् अ० नीचे; तळे (२)नम्रताथी; निःसंचार पुं० हरवु-फरवु नहि ते नमीने (३) हळवेथी; धीमेथी (४) निःसंज्ञ वि० बेहोश - नानू - वामणुं होय तेम निःसंशय वि० संशय वगरनु; नक्की नीड पुं०, न० पक्षीनो माळो (२) पथारी निःसंस्कार वि० असंस्कारी (३) बखोल (४) वाहननो अंदरनो निःसाधारम् अ० टेका के आधार विना भाग के बेठक (४) आश्रयस्थान निःसार वि० सत्त्वहीन (२) तुच्छ नीडक पुं० पंखी (२) माळो (३) पुं० बहार जq ते (४) समूह नीत ('नी' न भू० कृ०) वि० लई निःसारण न० बहार काढ ते ; हांकी जवायेलं; दोरी जवायेलु (२) पमा काढवू ते (२) घरनी बहार नीकळ- डेलं ; पहोंचाडेलु (३) व्यतीत करेलं वानो मार्ग [काढेलं नीति स्त्री० दोरवं ते (२) वर्तवु ते; निःसारित वि० काढी मूकेलं; हांकी वर्तन (३) शिष्टता; शिष्टाचार (४) निःसीमन् वि० अमर्याद ; अपार डहापण (५) राजनीति (६) सदाचार निःसूत्र वि० दोरा विनानु (२)आधार नीतिकुशल, नीतिनिपुण वि० राज के मदद विनानुं [वहेवू ; झर नीतिज्ञ (२) शा[; डायु निःसृ १ प० बहार नीकळवू (२) नीतिमत् वि० राजनीतिज्ञ (२) डायुं ; निःस्नेह वि० चीकट के भेज विनानुं शाणु (३) धर्मनीति अनुसरतुं (२) लागणी विनानुं नीतिव्यतिक्रम पु० राजनीति के धर्मनिःस्पर्श वि० कर्कश; कठण । नीतिना नियमनुं उल्लंघन निःस्पंद वि० निश्चल; स्थिर नीतिसंधि पं० राजनीतिनी रीत निःस्पृह वि० स्पृहा के दरकार विनानुं नीध्र न० छापरानो छेडानो भाग निःस्रव पुं० सिलक ; बाकी नीप वि० नीचे आवेलं; ऊंडे आवेल निःस्राव पुं० व्यय ; खर्च (२) भात- (२) पुं० पर्वतनी तळेटी (३) एक ओसामण (३) बहार वहेवराव ते जातनं कदंबवृक्ष ; तेनं फल (चोमासानिःस्व वि० धनहीन'; गरीब मां थाय छे) (४) एक राजवंश निःस्वन वि० अवाज विनानुं (२) नीर न० पाणी [झांखं पुं० अवाज नीरक्त (नि+रक्त) वि० रंग विनानु; Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीरचर २५५ नीरचर वि० जळचर नीलीराग पुं० दृढ प्रेम नीरज (नि+रज) वि० धूळ विनानुं नीलोत्पल न० नील कमळ (२) वासना विनानुं नीवार पं० खेडया विना ऊगेली डांगर नीरज वि० पाणीमां थतुं (२) पुं० नीवि (-वी) स्त्री० स्त्रीओना वस्त्रनी वीरणवाळो (३)न०कमळ (४) मोती दूंटीए वळाती गांठ (२) मूळ मूडी नीरत (नि+रत) वि० आसक्त नहि तेवू नीहार पुं० बरफ; हिम (२) धुम्मस; नीरद, नीरधर पुं० मेघ ; वादळ झाकळ (३) मळत्याग नीरव वि० (निर+रव) अवाज विनानुं नु अ० प्रश्न, वितर्क, विकल्प, अनुनय, नीरस (नि+रस) वि० स्वाद विनानुं अपमान, पश्चात्ताप, आदेश - ए (२) रस विनान (३) निष्फळ ; नका, अर्थ बतावे (२) प्रश्नार्थ सर्वनामो नीरंध्र ( निरंध्र)वि० काणां विनानुं साथे 'खरेखर'? 'संभवित होई शके'? (२) खूब नजीक नजीक आवेलु -ए अर्थमां वपराय (३) हवे; तेथी नीराज -प्रेरक० चळके तेम करवू; करीने (४)-नी पेठे (५) जलदीथी प्रकाशित करवू (२) आरती उतारवी (६) आजथी मांडीने; हवे पछी नीराजन न०, नीराजना स्त्री० शस्त्रो नु २ प० वखाणवू ; प्रशंसा करवी । चळकतां करवां ते (२) आरती नुत ('नु' नुं भू० कृ०) वि० प्रशंसेलू नीरच् (निर्भरुच) वि० तेज विना-; नुति स्त्री० स्तुति ; प्रशंसा झांखं [रोग) वि० तंदुरस्त नुत्त ('नुद्' नुं भू० कृ०) वि० धकेनीरज (-ज), नीरोग (निर् + रुज्, ___ लायेलं; प्रेरायेलं (२) हांकी कढानील १५० नीलू रंगवू येलु; दूर करायेलं नील वि० भूरुं; श्यामल (२) पुं० नुद् ६ उ० हांकवू; आगळ चलावयूँ श्यामल रंग (३) (रामना सैन्यमांनो) (२) प्रेर; उश्केरवु (३) दूर कर एक वानर (४) एक पर्वत नुद वि० (समासने अंते') दूर करनारुं; नीलकंठ पुं० मोर (२) शिव हांकी काढनारुं ['नुत्त' नीलपटल न० काळं आवरण (२) । नुन्न ('नुद्' नुं भू० कृ०) वि० जुओ __ आंधळानी आंख उपरनो अंधारपडदो नू ६५० [नुवति ] वखाणवू । नीलमणि पुं०, नीलरत्न न० नीलम नूतन, नून वि० नवं (२) ताजु नीलराजि स्त्री० गाढ अंधारुं (३) विचित्र ; नवाईभरेलु नीललोहित वि० जांबुडा रंगनुं (२) नूनम् अ० खरेखर; चोकस (२) मोटे पुं० शिव भागे ; घणे भागे (३) हवे; तेथी करीने नीलस्नेह पुं० दृढ स्नेह नूपुर पुं०, न० झांझर नीलांजन न० सुरमो (काळो) न पुं० माणस (२) जण; व्यक्ति नीलि पुं० गळीनो छोड (स्त्री के पुरुष) (३) मानव जाति नीलिका स्त्री० गळीनो छोड (२)शेवाळ नृकेसरिन् पुं० नरसिंहावतार नीलिमन् पुं० भूराश; काळाश नृजग्ध वि० मनुष्यभक्षी नीलिराग पुं० दृढ प्रेम नत् ४ प० नाच करवो; नृत्य करवू नीली स्त्री० गळीनो छोड (२) रंगभूमि उपर अभिनय करवो नीलीभांड न० गळीतुं वासण नृत्त, नृत्य न० नाच Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ नैयायिक नृप, नृपति पुं० राजा नेमिवत्ति वि० –ता चोले चीले चालतं नपनीति स्त्री० राजनीति नेमी स्त्री० जुओ नेमि' तेवू नृपशु पुं० जानवर जेवो माणस नेय वि० दोरी जवा योग्य ; दोरी जवाय नृपसंश्रय पुं० राजानो आश्रय नेष्ट वि० नहि गमतुं (२) अप्रिय नपात्मज पुं० राजकुंवर (३) अनिष्ट (४) अनिष्टन साधन नपात्मजा स्त्री० राजकुंवरी नेष्टु पुं० माटीन ढेफु नृपाल पुं० राजा नैक वि० अनेक (२)विविध (३) एक नृपांगण (-न) न० राजदरबार पण नहि तेवू नपांश पुं० कररूपे राजाने अपातो भाग नै फटिक वि० नजीकच् (२)पुं० भिक्षु (अनाजनो छठ्ठो, आठमो इ०हिस्सो) नैकटय न० निकटता; समीपता नृशंस वि० क्रूर; घातकी (२) न० नेकधा अ० बहु प्रकारे; अनेक रोते घातकी कृत्य नैकशस् अ० घणी मोटी संख्यामां (२) नृशंसन न० क्रूरता वारंवार [क्रूर; घातकी नृषद्, नृसद् स्त्री० बुद्धि नैकृतिक वि० दुष्ट ; कपटी; नीच (२) नृसिंह पु० (विष्णुनो चोथो ) नरसिंह नैगम वि० वेद के शास्त्रने लगतुं (२) अवतार (२) मनुष्योमा श्रेष्ठ पुं० वेदन तात्पर्य बतावनार (३) नसोम पुं० महापुरुष उपाय; युक्ति (४) वेपारी (५) नहरि पुं० जुओ 'नृसिंह शहेरनो माणस नजन न० धोवं ते (२) धोबीघाट नज वि० पोतान; आत्मीय नेतव्य वि० दोरवा के लई जवा योग्य नैतल न० सात पाताळोमांनु एक नेतृ पुं० नायक ; आगेवान (२) गुरु (वितल) नेत्र न० आंख (२) रवैयानी दोरी; नैतलसमन् न० यम नेतरुं (३) रेशमी वस्त्र नैत्यक न० (रोज धरावातुं) नैवेद्य नेत्रगोचर वि० नजरनी मर्यादामां नैदाघ पुं० उनाळो आवेलं; नजरे पडे तेवू नंद्र वि० निद्राजनक (२)ऊंघे भरायेलं नेनिसिन वि० आंखने स्पर्शत (ऊंघ) (३)बिडायेलु (पांखडीओनी जेम) नेत्रांजन न० काजळ ; आंजण नपुण (-ण्य) न० निपुणता; कुशळता नेत्रोत्सव पुं० जोवी गमे तेत्री सुंदर वस्तु नैभृत्य न० नम्रता (२) गुप्तता (३) नेदिवस वि० अवाज करनारं चूपकीदी नेदिष्ठ वि० सौथी वधु नजीक नमय पुं० वेपारी नेदीयस् वि० वधु पासे नैमित्त वि० निमित्त (भविष्य-सूचक नेपथ्य न० आभूषण; शणगार (२) चिह्न)संबंधी (२)पु० ज्योतिषी वस्त्र ; पहेरवेश (३) नटनो पहेरवेश । नैमित्तिक वि० प्रसंगोपात्त ; आनुषंगिक (४) नटो वस्त्रपरिधान करे ते स्थळ (२)० भविष्य भाखनार (पडदा पाछळ) नैमिष वि० क्षणिक (२) न० नैमिनेपथ्यविधान न० नटोनां वस्त्राभषण षारण्य (ज्यां सौतिए महाभारतनी वगेरेनी गोठवण [परिघ कथा संभळावी हती) [नार नेमि पुं० पैडानो घेराव (२)धार (३) नैयायिक पुं० न्याय – तर्कशास्त्र जाण Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नरंतर्य नैरंतर्य न० सातत्य नैराश्य न० निराशा (२) इच्छा के अपेक्षानो अभाव नैर्ऋत पुं० राक्षस नैर्ऋती स्त्री० दुर्गा ( २ ) नैर्ऋत्य खूणो नैर्ऋत्य वि० दक्षिण-पश्चिम तरफनुं नैर्गुण्य न० गुणोनो अभाव (२) सारा गुणोनो अभाव निर्गुणता नर्घुण्य न० क्रूरता; घातकीपणुं नर्मल्य न० निर्मळता नैवेद्य न० देवने धरेलो भोज्य पदार्थ नैश, नैशिक वि० रात्रीनुं; रात्री संबंधी (२) राते देखातुं नैवध पुं० (निषध देशनो ) नळराजा नैषधीय वि० नळराजा संबंधी नैष्कर्म्य न० कर्मरहितता ( २ ) कर्म के कर्मनां फळोमांथी छुटकारो (३) आत्मज्ञान (४) मोक्ष नैष्किक विo एक निष्कना मूल्यनुं (२) पुं० टंकशाळनो उपरी नैष्ठिक वि० छेल्लु; छेवटनुं ( २ ) निश्चित ( ३ ) स्थिर; दृढ़ ( ४ ) उत्तम श्रेष्ठ; संपूर्ण (५) पूरेपूरुं माहितगार ( ६ ) मरण पर्यंत ब्रह्मचर्य धारण करनाएं (७) आवश्यक ; करवु ज पडे तेवुं (८) पुं० नैष्ठिक ब्रह्मचारी नष्ठुर्य न० निष्ठुरता; कठोरता नैसर्गिक वि० स्वाभाविक; कुदरती नो (न+उ) अ० नहि ; ना नो चेत् अ० नहि तो [ प्रेवुं ते नोदन न० काढी मूकवं ते (२) हांक के नोधा अ० नव प्रकारे नौ स्त्री० नौका; वहाण नौका स्त्री० वहाण; होडी नौक्रम पुं० होडीओतो बनावेलो पुल नौचर पुं० खलासी नौव्यसन न० मधदरिये वहाण डूबबुं ते नौसाधन न० नौकानो काफलो २५७ म्यून न्यक् अ० तिरस्कार - तुच्छकार बतावे ('कृ' के 'भू' धातु साथे ) न्यक्करण न०, न्यक्कार पुं० निंदा; तिरस्कार; अपमान न्यग्भाव पुं० नीचापणुं ( २ ) तिरस्कार न्यग्भावित वि० तिरस्कृत (२) हलकुं के पार्छु पाडेलु न्यग्रोध पुं० वड [ सुंदर स्त्री न्यग्रोधपरिमंडला स्त्री० सुविकसित - न्यस् ४ १० नीचे मूकवु ; नीचे फेंकवुं (२) दूर करवं; तजवुं (३) उपर के अंदर मूकव (४) -ने सोंपवुं (५) बक्षवुं; अर्पवुं (६) रजू करवुं (दलील) न्यस्त ( ' न्यस्' नुं भू० कृ० ) नाखेल; फेंकेलं (२)अंदर के उपर मूकेलं ( ३ ) चीतरेलु (४) सोंपेलं (५) तजेलुं (६) न्यासविधिथी स्पर्शेलु (७) धारण करेलु न्यस्तचिह्न वि० चिह्न के लक्षण विना न्यस्तशस्त्र वि० जेणे आयुधो छोडी दीघां छे तेवुं ( २ ) निःशस्त्र न्याय पुं० रीत; पद्धति; धारो; रिवाज ( २ ) योग्यता; वाजबीपणुं ( ३ ) कायदेसर - धर्मानुसार वर्तन (४) फरियाद ( ५ ) फेंसलो; चुकादी (६) दृष्टांत कहेवत ( ७ ) ( गौतमप्रवर्तित ) न्यायदर्शन न्यायतः अ० योग्य रीते; विधि प्रमाणे न्याय्य वि० यथार्थ; वाजबी; कायदेसर ( २ ) हरहमेशनुं न्यास पुं० मूकवं ते (२) चिह्न (३) थापण (४) चीतर के दोरखं ते (५) त्याग; संन्यास ( ६ ) मंत्र अने विधिसहित शरीरनां जुदां जुदां अंगोने देवताओने सोंपवा ते - एक धर्मविधि न्यासीकृ ८ उ० थापण तरीके मूकवुं (२) -ती संभाळमां मूकवं [ सूतेलुं न्युब्ज वि० नीचुं नमेलं; वळेलु (२) ऊंधुं न्यून वि० ओछु (२) हलकुं; ऊतरतु (३) खोडवाळं (४) विनानुं - रहित Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पट न्यूनता २५८ न्यूनता स्त्री० -ना करतां ऊतरतापणुं न्यूनाधिक वि० ओछंवत्तुं; असमान (२) ऊणप; ओछापणुं न्यज् (नि+एज् ) १ आ० भ्रूजवू; न्यूनभाव पुं० ओछु के ऊतरतुं होवापणुं कंपवू प वि० (समासने अंते) पीनारं; पीतु (२) पक्षपुट पुं० पांख रक्षण करनारुं [जंगलीओनो वास पक्षमूल पुं० पांखनुं मूळ पक्कण पुं० चांडालनुं झूपडं (२) पक्षवत् वि० पांखवाळू (२) पक्षने पक्ति स्त्री० रांधवं ते (२) पचाव ____ अनुसरना९(३) सारा कुळनु ते (३) परिपक्व थर्बु ते (४) पक्षहर पुं० पंखी (२) पक्षद्रोही प्रतिष्ठा; गौरव पक्षिणी स्त्री० पंखिणी . पक्व वि० रांधेलु (२) पचावेल (३) पक्षिन् वि० पांखवाळू (२) पक्षवाळू; परिपक्व थयेलं; तैयार थयेल (४) पक्षमा जोडायेल (३) पुं० पंखी (४) अनुभवी; चालाक (५) विनाशोन्मुख बाण (५) शिव [भाई) पक्वान्न न० रांधेलं अन्न पक्षिपति पुं० संपाति (जटायुनो मोटो पक्ष पूं० पांख (पंखीनी) (२) पींछु पक्षिपुंगव पुं० जटायु (२) गरुड (बाणने छेडे खोसेलु) (३) पडखं पक्षिराज (-ज) पुं० गरुड (२)जटायु (४) कोई पण वस्तुनी बाजु (५) पक्षीय वि० (समासने अंते)-ना पक्षy लश्करनी बाजु (६) पखवाडियं पक्षींद्र पुं० गरुड (शुक्ल के कृष्ण) (७) विभाग; पक्ष्मन् न० पापण (२) केसरतंतु (३) जूथ (८) वंश; कुळ (९) कोई पण फूलनी पांखडी (४) हरणना वाळ विभागनो पक्षकार - अनुयायी (५) मूछना वाळ पक्षक पुं० बाजुन खानगी बारj (२) पक्ष्मल वि० सुन्दर अने दीर्घ पापणोपक्ष ; बाजु (३)-ना पक्षनो माणस वाळू (२) वाळथी भरेलु पक्षचर पुं० टोळामांथी विखूटो पडेलो पक्ष्य पुं० पक्षनो अनुयायी हाथी (२) चंद्र (३) अनुचर पच् १ उ० रांधq; पकावq (२) पक्षच्छिद् पुं० इंद्र (पर्वतोनी पांखो भठ्ठीमां नाखी सेकQ (ईंट) (३) कापनार) पचावq (अन्न) (४)परिपक्व थर्बु पक्षता स्त्री० पक्ष लेवो के रजू करवो ते । पच वि० (समासने अंते) रांधनाएं पक्षति स्त्री० पांखनुं मूळ (२) सूद पडवो पचेलिम वि० पोतानी मेळे - स्वाभाविक पक्षद्वार न० बाजुन खानगी बारणं रीते पाकतुं(२)जलदी रंधातुं के पाकतुं पक्षपात पुं० एक पक्षनी तरफदारी । पटु १ प० जवू (२) १० उ० के पक्षपातिता स्त्री० पक्षपात (२) पांखो प्रेरक० फाडवू (३) बाकोरं पाडवू वडे ऊडवू ते (४) छेद पाडवो; वींधवू (५) पक्षपातिन् वि० पक्षपात करनारुं (२) उपाडी - खेंची काढq (६) १० उ० -ना पक्षमा जोडानारुं; अनुयायी गूंथवू; वणवू Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पट २५९ पण्यशाला पट पुं०, न० कपडु; वस्त्र (२)पडदो पट्टवस्त्र, पट्टवासस् वि० रेशमी के (३) बुरखो (४) लखवा के चीतरवा रंगीन कपडां पहेरेलु [राज्याभिषेक माटे, फलक (५) न० छाज; छापरुं पट्टाभिषेक पुं० मुगट पहेराववो ते; पटच्चर पुं० चोर (२)न० जीर्ण वस्त्र पट्टांशुक पुं० रेशमी वस्त्र (२) उत्तरीय पटच्छिदा स्त्री० कपडानी चींदरडी पट्टिका स्त्री० कपडानी पट्टी; चींदरडी पटभास पुं० जाळीदार बारीनुं बाकुं (२) दस्तावेज (३)सपाट पतरूं इ० पटमंडप पु० तंबू पट्टिश (-स), पट्टीश (-स) पुं० भाला पटल न० छापरु (२)आच्छादन (३) जेवू एक धारदार हथियार आंख उपरनी छावरी (४) ढगलो; पठ् १५० मोटेथी वांचq (२) भणवू जथो (५)पुस्तकनुं प्रकरण के खंड (३) टांकवू; उल्लेख करवो (४) जाहेर पटलक पुं, न० पडदो;आच्छादन;बुरखो करवु; वर्णव पटलिका स्त्री० ढगलो; जथ्थो (२) पठक पुं० वांचनार; भणनार नानी पेटी [आच्छादन पठन न० वांचवें ते; भणवं ते पटवास पुं० एक सुगंधी द्रव्य (२) पठित ('पठ्'न भू० कृ०)वि० भणेलं; पटवेश्मन् न० तंबू वांचेलं [असर करतुं पटह पुं० नगारं; ढोल पठितसिद्ध वि० मोढे बोली जवाथी ज पटहघोषक पुं० ढोलथी ढंढेरो पीटनार पण १ आ० सोदो करवो; विनिमय पटांचल पुं० वस्त्रनो छेडो करवो; वेपार करवो; खरीदq (२) पटि स्त्री० रंगभूमि उपरनो पडदो (२) होड बकवी; जुगार खेलवो (३) तंबूनी कनात १ आ०, १० उ० प्रशंसा करवी पटिमन् पुं० कुशळता; चतुराई पण पुं० होड के जुगार (२) होडमां पटी स्त्री० जुओ 'पटि' मूकेली वस्तु (३) शरत ; करार (४) पटीक्षेप पुं० जुओ 'अपटीक्षेप' वेपार; सोदो (५) धन; मिलकत पटीर पुं० चंदन (६) मजूरी; वेतन पटीरजन्मन् पुं० चंदन, झाड पणक्रिया स्त्री० होड बकवी ते । पटु वि० चतुर; होशियार (२)तीव्र ; पणबंध पुं० संधि करवी ते; करार जोरदार (३) नीरोगी; स्वस्थ । पणव पुं० नान ढोल पटुता स्त्री० कुशळता (२) चपळता पणाय पुं० नफो मेळववो ते पटोत्तरीय न० उत्तरीय वस्त्र पणायितृ पुं० वेचनार पटोल पुं० पंडोळं पणांगना स्त्री० वेश्या पट्ट पुं०, न० पाटला के तख्ता जेवू सपाट पणित पुं० वेपारी जे कई ते (२) मुगट (३)पाघडी ; फेंटो पण्य वि० वेचवा-खरीदवा लायक (२) (४)पाटो (५) रेशम (६) उत्तरीय पुं० वेचवानी चीज; वेपारनो माल पट्टक पुं० पतरं (लेख कोतरवार्नु) (३) वेपार (४) किंमत पट्टकर्मकर पुं० वणकर पण्यपति पुं० मोटो वेपारी पट्टदेवी स्त्री० पटराणी पण्यविलासिनी स्त्री० वेश्या पट्टन न० शहेर; नगर पण्यवीयी, पण्यशाला स्त्री० हजार; पट्टमहिषी, पट्टराशी स्त्री० पटराणी हाट (२) दुकान Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्यस्त्री २६० पथ पण्यस्त्री, पण्यांगना स्त्री० वेश्या पतिव्रता स्त्री० पतिव्रत पाळनारी-सती पत् १५० पडवू ; नीचे आवq; ऊतरवू पतिवरा स्त्री० पोतानी मेळे पति पसंद (२) ऊड (३) आथमवू (४) करनारी स्त्री योग्य स्त्री पतित थवं; अधोगति पामवी (५) पतीयंती स्त्री० पतिने इच्छतो के पतिने कंगाळ थ (६) नरकमां पडq (७) पत्काषिन् पुं० पायदळनो सैनिक;पदाती आवी पडवू (८) उपर पडवू पत्तन न० शहेर पत पुं० ऊडवं ते (२) नीचे ऊतर ते पत्ति पुं० पदाती; पायदळनो सैनिक पतग पुं० पंखी (२) सूर्य । (२) स्त्री० लश्करनी नानी टुकडी पतत् वि० ऊडतुं (२) ऊतरतुं; नीचे (जेमां एक रथ, त्रण घोडा, बे हाथी आवतुं (३) पुं० पक्षी अने पांच पदाती होय) . पतग्रह पुं० पिकदानी । पत्तिक वि० पगपाळ पतन न० नीचे आवq के ऊतर ते; पत्नी स्त्री०शास्त्रविधिथी परणेली स्त्री उपर पडवं ते (२) आथम ते (३) पत्र न० पांदडु (२)पांखडी (३) कागळ अधोगति थवी ते (४) भ्रष्ट थर्बु ते (लखेलो के लखवा माटेनो) (४) (५) पडती ('उदय' थी ऊलटुं) चोपडीनु पार्नु (५) धातुनुं पातळं पतनीय न० अधोगतिकारक पापकर्म पतरूं; वरख (६) पक्षीनी पांख (७) पतंग पुं० पक्षी (२) सूर्य (३) पतं- पोंछु (८) बाण, पीछु (९) वाहन गियु; तीड; तीतीघोडो (१०) छरीन के तरवारनुं पार्नु पतंगम पुं० पक्षी (२) पतंगियं (११) मों के शरीरना भाग उपर पतंगिका स्त्री० नानुं पंखी (२) नानी करेल लेप के चित्ररचना मधमाखी (३) धनुष्यनी पणछ पत्रपुट न० (पांदडांनो) पडियो पताका स्त्री० धजा; ध्वज-दंड (२) पत्रभंग पुं०, पत्रभंगि(-गी) स्त्री० प्रख्याति ; प्रसिद्धि (३) निशान ; चिह्न मों के शरीर उपर चंदन वगेरेथी पताकास्थान न० अपेक्षित वस्तुने करेली चित्ररचना बदले तेना जेवू बोजु वस्तु अकस्मात् पत्ररथ पुं० पक्षी रजू कराय ते (नाटय०) पत्ररेखा, पत्रलेखा, पत्रवल्लरी, पत्रपताकिन् वि० धजा पकडनाएं (२) वल्लि (-ल्ली) स्त्री० जुओ 'पत्रभंग' धजाथी शणगारेलु (३) पुं० धजा पत्रवाह पं० पक्षी (२) बाण पकडनारो (४) ध्वज (५) रथ . पत्रविशेषक पुं० जुओ 'पत्रभंग' पताकिनी स्त्री० सेना; लश्कर पत्रवेष्ट पु० काननुं एक घरेणु पति पुं० धणी; भर्ता (२) मालिक; पत्राट वि० लखेल स्वामी (३) राजा; हाकेम पत्रालंबन न० पडकार (वादविवादमा) पतित ('पत्' नुं भू० कृ०) वि० पडेलु; पत्रिका स्त्री० लखवा माटेनो कागळ नीचे ऊतरेलु (२) पतन पामेलु; (२) दस्तावेज (३) काननुं एक घरेणुं भ्रष्ट थयेलं (३) पराजय पामेलं पत्रिन् वि० पांखवाळं (२) पीछांवाळं (युद्धमां) (४) राखेलं; मूकेलं : (३) पांदडांवाळ (४) पृष्ठवाळु (५) पतितस्थित वि० जमीन उपर गबडेलं पुं० बाण (६)पंखी (७)बाज पक्षी पतिदेवता, पतिदेवा स्त्री० पतिने देव पत्रोर्ण न० रेशमनुं वस्त्र माननारी- पतिव्रता पथ पुं० मार्ग; रस्तो Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६१ पथदर्शक पथदर्शक पुं० मार्गदर्शक ; भोमियो पथिक पुं० मुसाफर; वटेमाणु (२) भोमियो; मार्गदर्शक [समुदाय पथिकजन पु० मुसाफर के मुसाफरोनो पथिकसार्थ पुं० संघ; काफलो पथिन् पुं० (प्रथमा ए०व० 'पंथाः'; समासने अंते 'पथ' थाय) रस्तो; मार्ग; वाट (२) मुसाफरी (३) गोचर-क्षेत्र - मर्यादा (४) प्रणाली; शिरस्तो पथ्य वि० हितकर; अनुकूळ (औषध, सलाह इ०) (२)न० हितकर खोराक (३) हित; कल्याण पद् ४ आ० जq (२) पासे जq (३) । पाम (४) आचर पद् पुं० (पहेलां पांच रूप नथी; 'पद' ना द्वितीया द्वि० व० पछी विकल्पे मुकाय छे) पग; चरण (२) चोथो भाग (श्लोक इ० नो) पद पुं० पग (२) डगलं ; पगलं (३) पगलानी छाप (४) निशानी; चिह्न (५) स्थान; पदवी; होहो (६) श्लोकन चरण (७) शब्द (विभक्ति इ. प्रत्यय साथेनो) (८)बहानु (९) शेतरंजना पट उपरतुं खानु (१०) सिक्को (११) रस्तो [होद्दो पदक न० डगलं; पगलं (२) पदवी; पदक्रम न० पगलां भरवां ते; चालवू ते पदगति स्त्री० चालवानी रीत पदच्छेद पुं० वाक्यना शब्दनो वर्ग कहेवो ते (२) पदनुं व्याकरण । पदन्यास पुं० पगलं; डगल (२)पगलानी छाप (३)अमुक रीते पग गोठववा ते (४) श्लोक के चरण रचवां ते पदपंक्ति स्त्री० पगलांनी पंक्ति (२) शब्दोनी गोठवणी पदभ्रंश पुं० होद्दा उपरथी दूर करावं ते पदवि (-वी) स्त्री० रस्तो; मार्ग (२) होहो; अधिकार पचालय पदशः अ० पगले पगले (२)शब्दे शब्दे पदस्थ वि० पगवाळू (२) ऊंची पदवीवाळं पदंक ८ उ० पग मांडवो; पग मूकवो (२)प्रवेश करवो पदाजि, पदात (-ति) पुं० पायदळ सैनिक (२) पगपाळं चालतुं पदातिन् वि० पायदळवाळ (२) पगे चालतु (३) पुं० पायदळ सैनिक । पदात्यध्यक्ष पु० पायदळनो सेनापति पदानुग पुं० अनुयायी; साथी पदार्थ पं० शब्दनो अर्थ (२) कोई पण वस्तु; द्रव्य [गोठवणी पदावली स्त्री० शब्दोनी हारमाळा के पदांतर न० बीजु पगलं (२)एक पगला जेटलं अंतर पद्धति (-ती) (पद् हति)स्त्री० रस्तो; मार्ग (२)हार ; पंक्ति (३)रीत पद्म पुं० एक दिग्गज (२) सापनी एक जात (३) रामनुं एक नाम (४) कुबेरना एक भंडारनुं नाम (५) एक आसन (योग) (६) न० कमळ (७) हाथीना मों के सूंढ उपर- चित्र (८) अबज (संख्या) पद्मक न० एक व्यूहरचना (२) हाथीनी सूंढ के मों उपरनी चित्रावली (३) पद्मासन (४) एक जात, काष्ठ पद्मखंड न० कमळनो समुदाय पद्मगुणा स्त्री० लक्ष्मी पद्मज पुं० ब्रह्मा पद्मनाभ(-भि) पुं० विष्णु पद्मभव, पचभू पुं० ब्रह्मा पद्मराग पुं०, न० माणेक । पद्मवर्चस् वि० कमळना रंगनुं . पाषंड न० कमळनो समुदाय पद्मा स्त्री० लक्ष्मी पनाकर पु. कमळोवाळं मोटुं सरोवर (२) कमळोनो समुदाय पद्मालय पुं० ब्रह्मा Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पत्रालया २६२ परभूत पमालया स्त्री० लक्ष्मी पर पु० अजाण्यो; पारको; परदेशी पद्मावती स्त्री० लक्ष्मी (२)एक नदी (२) शत्रु (३) न० पराकाष्ठा (४) पचासन न० कमळरूपी आसन (२) परब्रह्म (५) मोक्ष (६) परलोक योगनुं एक आसन परकलत्र न० परस्त्री पनिन् वि० चटापटावाळं (२) कमळ परकीय वि० पारकानु; बीजा-; पारकुं वाळं (३) पुं० हाथी (२) अजाण्यु; विरोधी पमिनी स्त्री० कमळनो वेलो (२) परकीया स्त्री० बीजानी स्त्री कमळनो समुह (३) कमळवाळू सरो परग्लानि स्त्री० शत्रुने दबाववो ते वर (४) स्त्रीओना चार वर्गमांना परचक्र न० शत्रुनुं सैन्य (२) शत्रुए प्रथम वर्गनी स्त्री (पचिनो, चित्रिणी, करेली चडाई [(३)शत्रुनुं शंखिनी, हस्तिनी) [समुदाय परज वि० अजाण्यं (२) हलकुं; ऊतरतुं परजित वि० बीजा वडे जितायेलं (२) पपिनीखंड, पमिनीवर न० कमळोनो बीजा वडे पोषायेलं (३) पुं० कोयल पद्य वि० पदनुं बनेलं; पद संबंधी (२) पगने लगतुं (३) चिह्नवाळं परतस् अ० बीजा पासेथी (२) शत्रु (४)न० कविता; काव्य (५) स्तुति पासेथी (३) -थी पार; -थी पछी पद्या स्त्री० मार्ग; केडी परतंत्र वि० पराधीन पर पुं० गाम; गामडं परतीयिक पुं० अन्य संप्रदायनो अनुयायी पनस पुं० फणस, झाड (२) कांटो परत्र अ० परलोकमां; बीजा जन्ममां पन्नग पुं० साप (२)न० परलोक धार्मिक माणस पन्नगनाशन, पन्नगारि पुं० गरुड परत्रभीर पुं० परलोकथी डरनार - पयस् न० पाणी (२) दूध परदाराः पुं० ब०व० परस्त्री पयस्विन् वि० दूधवाळु (२) रसवाळं परदेश पुं० विदेश (२) शत्रुनो देश पयस्विनी स्त्री० दूझणी गाय परधर्म पुं० बीजानो धर्म - कर्तव्य पयःपूर पुं० सरोवर परपक्ष पुं० शत्रुनो पक्ष । पयोज न० कमळ परपद न० श्रेष्ठ स्थान (२) मोक्ष पयोजन्मन् न० वादळ; मेघ परपरिग्रह वि० पराधीन; परतंत्र पयोजयोनि पुं० ब्रह्मा परपिंड पुं० पारकानुं अन्न पयोद पुं० वादळ; मेघ परपुरुष पुं० बीजो पुरुष; अजाण्यो पयोषर पुं० मेघ (२) स्तन (३)आंचळ माणस (२) अन्य स्त्रीनो पति (३) पयोषि, पयोनिषि पुं० महासागर; समुद्र विष्णु [पुं० कोयल पयोभत्, पयोमुच पुं० वादळ परपुष्ट वि० बीजा वडे पोषायेलं (२) पयोवाह पुं० वादळ; मेघ परप्रेष्य पुं० दास; नोकर पर वि० बीजं (२) दूरन (३) पार परब्रह्मन् न० परम तत्त्व; ब्रह्म आवेलु; सामी बाजुए आवेलु (४) परभाग पं० बीजानो भाग (२) उत्तमता पछी, (५) उत्तम; श्रेष्ठ (६) (३)सद्भाग्य ; समृद्धि (४)विपुलता; पारकुं; अजाण्युं (७) विरोधी; सामा अतिशयता (५) शेष भाग पक्षy (८) उपरांत ; वधारानु; परभृत् पुं० कागडो (कोयलने पोषनार) वधेलं (९) छेवटन (१०) परायण परभृत पुं० कोयल (नर) Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परभृता २६३ पर शत परभृता स्त्री० (मादा) कोयल (कागडी- परवत् वि० परतंत्र; पराधीन ना माळामां उछेराती होवाथी) परवत्ता स्त्री० पराधीनता परम् अ० -थी पार; -थी बहार; परवश, परवश्य वि० पराधीन; परतंत्र पछीथी (२) ते पछी; त्यार बाद (३) परवाच्य न० पारकानुं छिद्र परंतु (४) नहि तो (५) अत्यंत (६) परवाद पुं० अफवा (२) वांधो; तकरार घणी खुशीथी (७) फक्त (८)बहु तो परश पुं० पारसमणि (जेना स्पर्शथी लोढुं परम वि० श्रेष्ठ; उत्तम (२) बहु वगेरे सोनुं बनी जाय) दूरनु; छेल्लु (३) मुख्य (४)पूरतुं (५) परशु पुं० फरशी ; कुहाडो न० उत्तम -ऊंचो- मुख्य भाग (६) परशुराम पुं० जमदग्निना पुत्र ; विष्णुनो (समासने छेडे) -- मुख्यत्वे बनेलं छठ्ठो अवतार ते (७) -मां लवलीन एवं ते परश्वष पुं० कुहाडो; परशु परमगति स्त्री० मोक्ष (२) मुख्य आधार परश्वस् अ॰आवती काल पछीने दिवसे (ईश्वर देव इ०) परस् अ० -थी पार; -थी दूर (२) परमप्रख्य वि० प्रसिद्ध ; प्रख्यात बीजी बाजुए होय तेम परमम् अ० स्वीकृति के कबूलात-एवो । परसात् अ० हाथमां (सोंपेलं) अर्थ बतावे (२) संपूर्णपणे सफळ परस्तात् अ० पार; सामी बाजुए; -थी परमसमुदय वि० अति कल्याणकारी दूर (२)हवे पछी; पाछळथी (३)बाजुए परमहंस पुं० उत्तम कोटीनो संन्यासी । परस्त्री स्त्री० बीजानी परणेली स्त्री परमाणु पुं० वधु विभाग न थई शके परस्पर वि० एकबीजानु (२)(ब०व०) एवो नानामां नानो भाग एकबीजा समान (३) सना०, वि० परमात्मन् पुं० परमात्मा; परब्रह्म एकबीजूं (एकवचनमां ज) परमापद स्त्री० मोटामां मोटी विपत्ति परस्परम् अ० एकबीजाने परमायुध न० चक्र; एक हथियार परस्व न० बीजानी मिलकत परमार्थ पुं० परमसत्य; परमतत्त्व; परहित वि० बीजानुं हित करनाएं के परमज्ञान (२) साचं के खलं होय ते ताकनारु (२) बीजाने लाभ करनारं (३) कोई पण उत्तम के अगत्यनी वस्तु (३) न० पारकानुं भलं परमार्थतः अ० खरेखर; चोकसपणे परंज पुं० घाणी (२) तलवार- फळं परमार्थदरिद्र वि० खरेख९ दरिद्र (३) न० इंद्रनुं खड्ग परमिक वि० उत्तम ; श्रेष्ठ परंतप वि० शत्रुओने पीडनारं परमेश्वर पुं० परमात्मा परंपर वि० एक पछी एक क्रममा आवतुं परमेष्ठ वि. उत्तम ; श्रेष्ठ (२) पुं० प्रपौत्र परमेष्ठिन् वि० टोचे ऊभेलु; श्रेष्ठ (२) परंपरम् अ० अनुक्रमे ; एक पछी एक पुं० विष्णु, शिव, ब्रह्मा, गरुड के परंपरा स्त्री० सतत प्रवाह (२)पंक्ति; अग्निनुं नाम (३) गुरु (४) अर्हत समुदाय (३) योग्य क्रम (४) वंश । परमेष्वास पुं० उत्तम बाणावळी परंपरित वि० परंपरामां होय तेवं; चाल पररमण पुं० परणेली स्त्रीनो यार । परंपरीण वि० वंशपरंपरागत (२) परलोक पुं० मृत्यु पछीनो (स्वर्ग वगेरे। परंपरागत बीजो)लोक परःशत वि० सोथी वधु Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ परायन परःसहस्त्र परःसहस्र वि० हजारथी वधु परा अ० प्रधानपणुं, मुख्यत्व, मोकळापणु, मुक्ति,प्रतिलोमपण, त्याग, अनुक्रमनो अभाव, निंदा, घणापणं, अपमान, घर्षण, गति, भंग, अनादर अने अनावृत्ति बतावे परा स्त्री० वाणीनां चार रूपोमांनुप्रथम पराक पुं० एक तप पराकृ ८ उ० अवगणवू ; उपेक्षा करवी पराक्रम् १ उ० पराक्रम दाखवq (२) पार्छ फरवू (३) हुमलो करवो । पराक्रम पुं० बहादुरी; शूरातन (२) प्रयास; साहस (३) हुमलो; आक्रमण पराक्रांत वि० बहादुर; शूरवीर (२) __ आक्रमण करायेलु (.३)पार्छ फेरवायेलं पराग पुं० फूलमांनी रज (२) बारीक रज परागत वि मृत्यु पामेल (२) व्याप्त; छवायेलु (३) फेलायेलु परागम् १ प० [परागच्छति ] पार्छ फरवू (२) व्यापवं; छावू पराङमुख वि० विमुख ; पीठ फेरवी होय तेवं ; प्रतिकूल (२) परवा वगरनुं पराच वि० सामे पार - बीजी बाजुए आवेलु (२) पराङ्मुख ; विमुख (३) प्रतिकूल (४) बहारनी बाजु वळेलं (५) पार्छ वाळेलु (६) अ० दूर (७) बहारनी तरफ पराचीन वि० ऊंधी दिशामां वळेलं (२) विमुख ; परवा विनानु (३) पछोथी बनेल (४) बहिर्मुख (५) सामी बाजुए आवेलु [-थी हारवं ते पराजय पुं० जीतवं ते ; हरावq ते (२) पराजि १ आ० पराजय पमाडवू; हराव; जीतवू (२) -थी हारी जवू (३) -ने ताबे थव पराजित वि० हारेलं; जितायेलु पराडीन न० पाछळनी बाजुए ऊडवू ते परात्पर वि० उत्तमोत्तम (२) पुं० परमपुरुष; परमात्मा पराधीन वि० बीजाने आधीन; परतंत्र परान्न न० बीजानु अन्न [जीवनाएं परान्नभोजिन् वि० पारकानुं अन्न खाईने परापत् १ प० पासे आव (२) पार्छ फरवं (३) पडी ज; खोवा, परापर वि० दूरर्नु अने नजीकचें (२) पहेल अने पछीन (३) वहेल अने मोडं (४) उपरतुं अने नीचे पराभव पुं० पराजय; हार (२) अनादर; तिरस्कार (३) अलोप थवू ते (४) विनाश [मां होय तेवं पराभावुक वि० नाश पामवानी तैयारीपराभू १५० हराव (२) अलोप थई __ जवु (३) ताबे थq पराभूत वि० हारेलं; पराजित (२) अनादर - अपमान पामेलु पराभूति स्त्री० पराभव । परामर्श पुं० पकड के खेंचवू ते (केश) (२) नमावq - खेंचवू ते (धनुष्य) (३) बळात्कार (४) डखल ; विघ्न (५) विचार; चिंतन (६) हळवेथी स्पर्श करवो ते परामर ६ प० स्पर्श करवो (२) धीमेथी घसवं - दबावq (३) हुमलो करवो (४) भ्रष्ट करवं (स्त्री के मंदिर) (५) विचार करवो; चितवधू (६) स्तुति करवी। परामृष्ट वि० पकडायेलं ; स्पर्शायेलु (२) बळात्कार करेल (३) विचारेल; चितवेल (४) संबद्ध (५) पीडित परायण वि० अत्यंत आसक्त (२) -ना आधारवाळं; -नुं आश्रित (३) रक्षक; त्राता (४) -नी साथे संबंधवाळं (५) -नी तरफ लई जतुं (६) न० मुख्य के उत्तम ध्येय, आश्रय के प्रयोजन (७) सार; तत्त्व (८) दृढ भक्ति (९) सर्व रोगोनी रामबाण दवा परायत्त वि० परतंत्र; पराधीन परायन वि० जुओ 'परायण' Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परार्य २६५ परिकल्पना परार्थ वि० बोजा हेतु के अर्थवाळ (२) __हुमलो करवो (३) मारवं; ठोकवं बीजा माटेनं (३)पं० उत्तम प्रयोजन पराल पुं० बपोर पछीनो समय; के लाभ (४) बीजार्नु हित ('स्वार्थ' पाछलो पहोर थी ऊलटुं) (५) मोक्ष परांच् वि० जुओ ‘पराच्' परार्थम् , परार्थे अ० बीजाने माटे परि अ० (क्यारेक 'परी' पण) धातुओ पराध न० दश करोड अबज (एकडा अने धातुसाधित नामो आगळ : उपर सत्तर मीडां जेटली संख्या) आसपास, उपरांतमां - वधु, सामे - परार्ध्य वि० दूरनी के सामेनी बाजुनें विरोधमां, अत्यंत, -ए अर्थमा (२) (२) आगळनी अर्धी बाजुने लगतुं उपसर्ग तरीके : -नी तरफ, -नी (३) सर्वश्रेष्ठ (४) सौथी वधु सुंदर सामे, क्रमे -- एक पछी एक, भागे - के कीमती (५) दिव्य ; दैवी हिस्सामां, -मांथी, सिवाय - बाद परावर वि० दूरनं अने नजीकनं (२) करतां, वीत्या बाद, -ने परिणामे, पहेलांनुं अने पछी- (३) ऊंचं अने --थी वधु, -अनुसार, -नी प्रमाणे, नीचं (४) सौने व्यापतुं (५) न० --उपरांतमां-ए अर्थमां (३) धातुकार्य अने कारण (६) समग्र विश्व साधित नहि एवां नामो पूर्वे : घj, परावरज्ञ वि० भूत-भविष्य जाणनाएं अत्यंत, -ए अर्थमां (४) अव्ययरूप परावर्त पुं० पार्छ फरवू के वळवू ते समासोनी शरूआतमां : -सिवाय, (२) अदलोबदलो; विनिमय -ने बाद करतां, -थी वीटळायल के परावसथशायिन् वि० बीजाना घरमां घेरायेलं -ए अर्थमां (५) विशेषणसूई रहेनाएं रूप समासोने अंते : -थी थाकेल के परावृत् १ आ० पाछा फरवू के वळवू कंटाळेलु -एवो अर्थ बतावे परावृत्त वि० पार्छ फरेलु (२) चक्राकार परिकथा स्त्री० धार्मिक आख्यान फरेल (३) पाछु आपलं परिकर पुं० परिवार; अनुयायी वर्ग परावृत्ति स्त्री० पार्छ फरवं ते (२) (२) टोळं; समुदाय (३) प्रारंभ ; पलायन करवू ते (३) चक्राकारे फरवू शरूआत (४) केड बांधवी ते; सज्ज ते (४) अदलबदल करवू ते थर्बु ते (५) केडे बांधवानुं वस्त्र । परास् (परा + अस्) ४ प० तजवू परिकर्मन् पुं० सेवक; नोकर (२) न० (२) दूर करवु; काढी मूक (३) शरीरने शणगार, सुगंध वगेरेथी इन्कार संस्कार ते (३) पग रंगवा ते (४) परासिसिषु वि० हांकी काढवानी इच्छा- तैयारी (५) पूजा (६) मनने शुद्ध परासु वि० मृत; प्राणरहित करवानो उपाय [त्रास पमाडेलु परासुता स्त्री०, परासुत्व न० मृत्यु (२) परिकर्षित वि० खेंचेलं; ताणेलु (२) पराधीन जीवन परिकल् १० उ० आकलन करवू; परासेध पुं० केद [(३) इन्कारेलु समजवू (२) पकडq परास्त वि० फेंकी दीधेलं (२) पराजित परिकल्पन न०, परिकल्पना स्त्री० नक्की पराहत वि० पार्छ धकेली काढेलु (२) करQ - ठराव ते (२) गोठवणी मारेल; ठोकेलं करवी के रचq ते (३) पूरुं पाडवू पराहन् २ प० पार्छ धकेली काढ, (२) के मदद करवी ते [वाळ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिकल्पित परिकल्पित वि० ठरावेलु; कल्पेलु (३) वहेंचेलं (४) तैयार करेलुं (५) गोठवेलु; योजेलु २६६ परिकंप पुं० खूब धूजवं ते (२) भारे डर परिकीर्ण वि० वेरायेलं; विखरायेलुं (२) भीडवाळं. थलुं परिकीर्तन न० कहेवुं के जणाववुं ते (२) बडाश मारवी ते (३) बोलाववुं ते परिकृष् १ प० खेंचवं (२) दोरखं ( सैन्य ) ( ३ ) चिंतन करं परि ६ प० [परिकिरति ] घेवुं (२) आप, सोंपवु (३) विखेवुं परिकृत् १० उ० [ परिकीर्तयति - ते ] कही बताव; जणाववुं (२) वखाणवुं (३) बोलाव परिक्लप १ आ० परिणाम नीपजवुं; परिणाम लाववामां कारणभूत थवं (२) बक्षवं (३) विचारवं - प्रेरक नक्की करवुं ( २ ) मानवं; गणवं (३) तैयार थवुं ( ४ ) अर्पण करवुं (५) अमल करवो (६) सफळ कर ( ७ ) योज; गोठव परिकोप पुं० अत्यंत कोप के गुस्सो परिक्रम् १ उ० [ परिक्रामति, परिक्रमते ] फरवु; आम तेम फरकुं परिक्रम पुं० आमतेम फरवुं ते (२) प्रदक्षिणा करवी ते परिक्रय पुं०, परिक्रयण न० भाडुं; रोजी (२) खरीदवं ते (३) विनिमय ( ४ ) पैसा आपीने सुलेह खरीदवी ते परिक्रिया स्त्री० रक्षण माटे चारे तरफ वाड के खाई वडे घेरी लेनुं ते (२) ध्यान आपवुं ते; संभाळवु ते परिक्री ९ आ० खरीद ( २ ) ( थोडा वखत माटे) रोजीए राख; नोकरीए राखवं (३) पार्छु वाळवं; भरपाई करवं परिक्लांत वि० थाकी के कंटाळी गयेलं परिक्लिश् ९ प० क्लेश के त्रास आपको (२) ४ आ० त्रास पामवु; कंटाळवं परिग्रह परिक्लिष्ट वि० कंटाळेलुं (२) थाकेलुं परिक्लेश पुं० क्लेश; त्रास ( २ ) थाक परिक्षत वि० घायल थयेलुं; ईजा पामेलुं परिक्षय पुं० क्षय; नाश; हानि परिक्षाम वि० दुबळं थई गयेलुं परिक्षिप् ६ प० घेरी वळवुं (२) सांकळथी बांधj (३) ठेकडी उराडवी परिक्षिप्त वि० घेरायेलं; वींटळायेलं (२) वीखरायेलुं (३) तजी देवायेलुं परिक्षीण वि० क्षीण थयेलं (२) खूटी गयेलं ; ओछु थयेलं (३) नाश पामेलुं परिक्षेप पुं० वेरवुं - विखेरवुं ते ( २ ) घेरी लेबुं ते (३) चोगरदम घेरती हद (४) तजी देवं ते परिखा स्त्री० खाई परिख्यात वि० विख्यात परिख्याति स्त्री० प्रसिद्धि. परिगण् १० उ० गणतरी करवी ( २ ) गणनामां लेवु परिगणन न०, परिगणना स्त्री० गणतरी परिगत वि० व्याप्त; घेरायेलुं ( २ ) चोतरफ फैलायेलुं (३) समजेलु; जाणेल ( ४ ) - थी युक्त के पूर्ण ( ५ ) मेळवेलं (६) हरावायेलं ( ७ ) पीडित परिगम् १प० [ परिगच्छति ] चोतरफ फरवूं (२) घेरी वळ (३) चोतरफ व्यापवुं (४) प्राप्त करवुं (५) जाणबुं; समजवं ( ६ ) मरण पामवु परिगाढ वि० अत्यंत; घणुं परिगृहीत वि० ग्रहण करेलुं (२) आलिंगन करेलु (३) वींटळायेलं (४) स्त्रीकारेलुं (५) परणेलं परिग्रह ९ उ० भेटवुं (२) वींटळावं (३) पकडवु (४) माथे लेबुं; स्वीकारखुं (५) कृपा करवी (६) टेको आपको; मदद करवी (७) धारण करवुं; पहेरवं (८) परणवं ( ९ ) पाछळ पाडी देवु परिग्रह पुं० स्वीकारखं ते; ग्रहण करवुं ते (२) घेरी लेवं ते (३) वींट के पहेर Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिग्रहीत २६७ परिज्ञान ते (४) मिलकत (५) लग्न करवू ते (२) जाणोतु; ओळखाणवाळ (३) (६) पत्नी (७) पोताना रक्षणमां अभ्यासेल; शीखेल लेबु ते (८) अनुग्रह (९) दासदासी परिचिति स्त्री० ओळखाण; परिचय इ० परिवार (१०) राजानुं अंतःपुर परिचित् १० उ० चितवq; विचारवं (११) बक्षिस (१२) स्वागत करवू (२) याद कर ते (१३) शाप (१४) शरीर (१५) परिचुंब १५० खूब आवेशथी चुंबवू वहीवट; कारभार (१६) समजण परिचेतव्य वि० परिचय करवा योग्य (१७) शाप (१८) शासन परिच्छद् १० उ० ढांक; ओढवु; परिग्रहीत पुं० पति वींटाळ (२) संताडवू; छुपाव परिध पुं० आगळो; उलाळो (२)विघ्न परिच्छद स्त्री० परिवार; अनुयायीवर्ग (३) गदा (लोखंडना खोलावाळी) परिच्छद पु० आच्छादन ; ढांकण (२) (४) दरवाजो (५) त्यां लेवातो कर चंदरवो (३) वस्त्र; पोशाक (४) परिघगुरु वि० आगळा जेटलं भारे परिवार; अनुयायीवर्ग (५) छत्रपरिघट्ट १० उ० डखोळवू; हलावq चामर वगेरे बाह्य उपकरण (६) (२) दाबवू; घस वासण-कूसण वगेरे माल-मिलकत परिघट्टन न० हलाव_ - डखोळवं ते परिच्छन्न वि० ढांकेलं; ढंकायेलु (२) परिघस्तंभ पुं० बारसाख छायेल (३) वीटळायेलं परिचः २ आ. कहे ; जाहेर करवू परिच्छिद् ७ उ० कापी नाखवू; टुकडा परिचतुदर्शन वि० पूरुंचौद; चौदथी वधु करवा (२) छूटुं पाडवू; भाग पाडवो परिचय पुं० एकळं करवू ते; ढगलो (२) (३)निर्णय आपवो; निश्चित करवू; ओळखाण (३) अभ्यास; महावरो विवेक करवो (४) वसवाट परिच्छिन्न वि० कापी नाखेल (२) परिचयकरुणा स्त्री० वधती जती ममता निश्चित करेल (३)मर्यादित परिचयवत् वि० पराकाष्ठाए पहोंचेलं परिच्छेद पुं० कापवं ते; भाग पाडवो परिचर् १ प० विचर (२) सेवq ते; छुटै पाडवं ते (२)निश्चय ; निर्णय (३)पूजा करवो (४) सारवार करवी (३) सीमा; हद (४) प्रकरण ; खंड । परिचर पुं० नोकर; सेवक परिच्छेद्य वि० निश्चित करवा योग्य; परिचर्या स्त्री० सेवा; चाकरी (२) निश्चय करी शकाय तेवू (२) मापवा पूजा (३) आचार (४) प्रदक्षिणा के तोलवा योग्य परिचार पुं० सेवा; शुश्रूषा (२) सेवक परिच्युत वि० -मांथी च्युत थयेलं परिचारक पुं० सेवक (२) शूद्र परिजन पुं० सेवक वर्ग; अनुयायी वर्ग परिचारण न० सेवा (२) दासीओनो समुदाय (३) सेवक परिचारिका स्त्री० दासी परिजनता स्त्री० सेवा; सेवकपणुं । परिचि ५ उ० भेगुं करवू (२) जाणवू परिज्ञप्ति स्त्री० संवाद (२)ओळखाण (३) मेळवg (४)ववार (५)३५० परिज्ञा ९ उ० जाणवू; ओळखवू (२) अभ्यास करवो; परिचय करवो नक्की करवू; शोधी काढवू -कर्मणि० ववई परिज्ञा स्त्री०, परिज्ञान न० संपूर्ण परिचित वि० भेगुं थयेलं; एकळु थयेलं ज्ञान (२) ओळखाण क Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशेय परिज्ञेय वि० जाणी के समजी शकाय तेव (२) ओळखी शकाय तेवुं परिणत वि० वळेलं; नीचुं नमेलुं (२) परिपक्व पाकट वृद्ध (३) पूरेपूरुं विकसेलुं (४) पची गयेलुं (५) - मां रूपांतरित थयेलं ( ६ ) आयमेलं (७) पुं० दंतूशळ खोसवा नमेलो हाथी परिणतप्रज्ञ वि० पाकट बुद्धिनं परिणति स्त्री० वळवुं ते; नमवुं ते ( २ ) परिपक्वता विकास ( ३ ) रूपांतर; पलटो (४) परिणाम; अंत ( ५ ) वृद्धावस्था [विस्तृत पहोळं परिणद्ध वि० बंधायेलु; वीटळायेलं (२) परिणम् १ उ० वांका वळवु; नीचा नमवुं ( २ ) - मां रूपांतर थवं ; पलटावु (३) परिणमवु; बनवुं ( ४ ) परिपक्व rj; विकसित थवुं (५) घरडुं थवं (६) रंधावुं ( ७ ) आथमनुं ( ८ ) पूरुं थवुं ( ९ ) व्यतीत थवुं [ विवाह परिणय पुं०, परिणयन न० लग्न; परिणह ४ उ० चोतरफ वींटळावुं (२) चोतरंफथी बांधवुं २६८ परिणाम पुं० रूपांतर थवुं ते; फेरफार; विकार ( २ ) पाचन ( ३ ) असर (४) परिपक्वता विकास (4) अंत छेवट ( ६ ) वृद्धावस्था ( ७ ) व्यतीत थवं ते ( समयनुं) परिणामदर्शिन् वि० अगमचेतीवाळं परिणायक पुं० नेता; भोमियो ( २ ) पति परिणाह पुं० घेराव, विस्तार ; व्याप परिणाहिन् वि० मोटं; विशाळ परिणिष्ठा स्त्री० संपूर्ण कुशळता परिणिंसक वि० चाखतुं ; खातुं (२) चुंबतुं परिणी १५० दोरखं; लई जव (२) परणवं परिणी पुं० पति [ पार पाडेलु परिणीत वि० परणेतुं ( २) पूरुं करेलु; परिणीति स्त्री० लग्न; विवाह परिणीवित वि० ढंकायेलुं परिधान परिणेत पुं० पति परितप् १ प० तपाववुं; गरम कर (२) बाळबुं; सळगाववुं ( ३ ) दुःखपीडा वेठवां ( ४ ) तप आचरखुं परितर्क १० प० विचार; चितव (२) तपासवुं ( अदालते ) परितस् अ० चोतरफ; दरेक बाजुए ( २ ) - तरफ - दिशामां परिताप पुं० सखत ताप के तडको (२) दुःख, पीडा (३) विलाप; शोक परितापिन् वि० त्रास आपनाएं परितुष् ४५० संतोष पामवो; खुशी थबुं परितुष्ट वि० संतुष्ट; खुश परितृप् ४ प० तृप्त थवं; संतुष्ट थवं परितोष पुं० तृप्ति; संतोष ( २ ) रुचि परित्यज् १ प० त्याग करवो; तजवुं (२) बाद करवु; छांडव्ं परित्याग पुं० तजवं ते (२) छोडी देवुं ते; छांडव ते (३) उदारता परित्रस्त वि० बीनेलं; त्रासेलुं परित्राण न० रक्षण; बचाव परित्रास पुं० बीक; त्रास परि १ आ० रक्षण करवुं; बचाववुं परिदश वि० पूरं दश (२) दशथी वधु परिवहन न० बाळी नाखवं ते परिदंशित वि० बख्तरथी ढंकायेलं परिदा ३ उ० आपी देवं; सोंपवु परिदाह पुं० बाळी नाखवुं ते ( २ ) बळतरा; पीडा (३) संताप परिदेव पुं० शोक; आक्रंद परिदेवन न०, परिदेवना स्त्री०, परिदेवित न० विलाप; आक्रंद ( २ ) पस्तावो; शोक परिद्यून वि० खिन्न; दुःखी परिघा ३ उ० पहेवुं धारण कर ( २ ) आसपास मूकवुं ( ३ ) - नाख के वाळवं (नजर) परिधान न० पहेरवुं के धारण कर ते ( २ ) वस्त्र ( ३ ) म्यान -तरफ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६९ परिधारण परिधारण न० सहन करवं ते परिधारणा स्त्री० धीरज परिधाव ११० पाछळ पडवू परिधि पुं० वाड, भींत के तेवी आसपास आवेली वस्तु (२) सूर्य-चंद्रनी आसपासनं कुंडाळं ; तेजन कुंडाळ (३) क्षितिज (४) आच्छादन ; वस्त्र परिधूसर वि० झांटुं; मेलं; धूळियु परिध्वंसिन् वि० विध्वंस करनारु परिनिष्ठा स्त्री० संपूर्ण ज्ञान (२) पराकाष्ठा (३) मोक्ष परिनिष्ठित वि० पूरेपूरुं निष्णात (२) निश्चित; मुकरर (३) संपूर्ण थयेलु परिपक्व वि० पूरेपूरु रंधायेलं के शेकायेल (२) पूरेपूरुं पाकेलु के पाकट थयेलं परिपणन न० बांहेधरी आपवी ते (२) होड बकवी ते परिपत् १ प० गोळ फरवू; आंटा । मारवा (२) उपर तूटी पडq (३) चोतरफ धस (४)-मां पडवू परिपंथक पुं० शत्रु; दुश्मन परिपंथिन् वि० रुकावट के विघ्न करनारु (२)पुं० दुश्मन (३)वाटपाडु; लूटारो । परिपा १ प० [परिपिबति ] पीवू (२) २ प० [परिपाति] रक्षण करवू (३) पालन करवू (४) शासन करवू (५) राह जोवी परिपाक पुं० सारी रीते रंधावं ते (२) सारी रीते पाचन थवं ते (३) परिपक्वता (४) परिणाम (५)कुशळता परिपाटल वि० आछा लाल रंगनुं परिपाटि (-टी) स्त्री० पद्धति ; प्रणाली (२) अनुक्रम ; गोठवणी [कर ते परिपाठ पुं० गणतरी (२) वारंवार पठन परिपालन न० रक्षण करवू ते (२) निभावq ते (३) पोषq ते परिपीड़ १० उ० पीड; त्रास आपवो (२) निचोवq (३) आलिंगवू परिभुक्त परिपूत वि० शुद्ध करेलं; पवित्र (२) पूरेपूरुं ऊपणेलु [तपास करवी परिप्रच्छ् ६ प० [परिपृच्छति] पूछQ; परिप्रश्न पु० फरी फरीने पूछq ते परिप्रेष्य पु० चाकर; नोकर परिप्लव वि० तरतु (२) कंपतुं (३) अस्थिर (४) पुं० डूबकु (५) नौका परिप्लु १ आ० तरQ (२) डूबकुं मार (३)कूदq (४) पूर फरी वळवू परिप्लुत वि० डूबेल; मग्न परिप्लुति स्त्री० छोळ ; अतिशय होवू ते परिबर्ह पुं० परिवार; नोकरचाकर (२) सरसामान (३) भेट; बक्षिस (४) छत्र, चामर इ० राजचिह्न परिवाष १ आ० पीडवं; त्रास आपवो परिबाधा स्त्री० कष्ट ; पीडा (२) थाक; त्रास परिबंहित वि० वधेलं; समृद्ध थयेलु परिभव पुं० अपमान; अनादर; तिर स्कार (२) पराजय; हार परिभवास्पद न० अपमान के अनादरनुं पात्र थq ते परिभाव पुं० अनादर; अपमान परिभावन न० एकळु थवं ते; भळी जवू ते (२) चिंतन'; ध्यान परिभावना स्त्री० अनादर (२) चिंतन परिभाविन् वि० अनादर करनारं (२) पाछळ पाडी देनाएं; चडियातुं परिभाष १ आ० वातचीत करवी; कहेवं (२) समजावq (३) उपदेश आपवो; प्रेरवं (४)परंपरा नक्की करी आपवी परिभाषण न० वातचीत; संवाद (२) ठपको (३) विधि; नियम परिभाषा स्त्री० वातचीत ; संवाद (२) ठपको (३) खुलासो (४) कोई पण विद्यानी निश्चित संज्ञा के शब्द (५) सामान्य नियम परिभुक्त वि० खाधेलु (२) भोगवेलं Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिभुग्न परिभुग्न वि० वांकुं वळेलं; नमेलं परिभुज् ७ आ० खावुं (२) उपभोग करवो परिभू १५० हराववुं; जीतबुं ( २ ) अपमान करवुं ( ३ ) नाश करवो ( ४ ) ईजा करवी ( ५ ) पीडवु ; दुःख देवं - प्रेरक० चितव; विचारखुं (२) समावेश करवो (३) चडियाता थ ( ४ ) एकाग्र कर परिभूति स्त्री० पराभव ( २ ) अनादर परिभेद पुं० ईजा परिभोग पुं० उपभोग (२) संभोग (३) बीजानी वस्तुनो गैरकायदे उपभोग परिभ्रम् १प० [परिभ्रमति ], ४ प० [ परिभ्रम्यति, परिभ्राम्यति ] भमवु; भटकवुं (२) चक्राकारे फरवुं (३) आसपास गोळ फरवु परिभ्रम पुं० भमवुं के भटकवुं ते (२) चित्तभ्रम ( ३ ) प्रस्तुत विषयथी बहार जईने बोलवु परिभ्रष्ट वि० पडी गयेलुं; छूटुं पडेलुं (२) नासो गयेलुं ( ३ ) रहित; विनानुं ( ४ ) पदच्युत थयेलुं के करेलु परिभ्रंश पुं० नासी छूटवुं ते ( २ ) -थी २७० परिमर पुं० नाश; विनाश परिमल पुं० सुगंध ( २ ) सुगंधी पदार्थों थी करेलुं मर्दन (३)संभोग (४) डाघ परिमलन न० मर्दन [ मेलं थयेल परिमलित वि० खुशबोदार करेलुं (२) परिमंथर वि० सुस्त ; खूब धीमं परिमंद वि० झांखुं (२) धीमं; सुस्त (३) नबळं; कृश ( ४ ) अल्प; थोडुं परिमाण न० माप (२) तोल; वजन (३) संख्या परिमाथिन् वि० पीडतुं ; त्रास आपतुं परिमार्ग १० उ० शोधवं; खोळवु परिमार्ग पुं०, परिमार्गण न० शोधखोळ (२) स्पर्श; संबंध ( ३ ) लूछी काढवुं ते परिम्ले परिमार्जन न० लूछी नाखवुं ते; साफ कर [ मापेलुं ( ३ ) नियमित परिमित वि० मापसरनुं; मर्यादित (२) परिमितकथ वि० थोडुं के ट्रंकमा बोल परिमिति स्त्री० माप ( २ ) प्रमाण ; हद परिमिलन न० स्पर्श (२) संसर्ग परिमिलित वि० मिश्रित परिमुच् ६ उ० [ परिमुञ्चति - ते ] छोडी मूकव; मुक्त करवुं ( २ ) त्याग करवो (३) छोडवु; फेंक परिमुह ४ प० मोह पामवु (२) मूढ बनवु मूंझवणमां पडवु परिमूढ वि० मूंझायेल परिमृज् २ प० लुछी नाखवुं ; साफ करवु (२) मसळवं; दबाववं परिमृद् ९ प० दबाववु; मर्दन करवुं (२) कचरवुं ( ३ ) नाश करवो ( ४ ) लुछी नाखवं (५) १ प० पाछळ पाडी दे; चडियाता थ परिमृदित वि० कचरेलुं; छंदेल (२) आलिंगन करेलुं (३) चूर्ण करेलु परिमृश् ६ प० स्पर्श करवो ( २ ) पकडवं (३) चितववु ( ४ ) तपासबुं [करवी परिमृष् ४ प० गुस्से थवुं ( २ ) अदेखाई परिमृष्ट वि० धोयेल; साफ करेलू (२) स्पर्शेलु (३) आलिंगेल (४) छवायैलु परिमेय वि० मर्यादित ; अल्प (२) मापी शकायते परिमोक्ष पुं० दूर करवुं ते ( २ ) मुक्त करवुं ते (३) खाली करवुं ते (४) निर्वाण परिमोक्षण न० मुक्ति; मोक्ष ( २ ) बंधनमाथी छूटुं करवुं ते परिमोहन न० मोह पमाडे तेवुं परिम्लान वि० करमायेलु; चीमळायेलु (२) खिन्न ; हताश ( ३ ) घटेलु; ओछु थलुं (४) मेलुं थयेलुं परिम्ले १ प० करमाई जबुं ( २ ) झांखुं पडवुं ( ३ ) खिन्न के हताश थवुं ( ४ ) अलोप थ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परियंत्रणा परियंत्रणा स्त्री० नियमन परिरक्ष १५० रक्षण करवुं (२) छुपाववुं परिरब्ध वि० आलिंगेलु परिरम् १ आ० आलिंगन करवुं परिरंभ पुं०, परिरंभण न० आलिंगन परिरोध पुं० आडखीली; विघ्न परिलघु वि० अति हलकुं ( २ ) पचवामां हलकं (३) घणुं नानुं परिलंघन न० अहींथी तहीं कूदवुं ते परिलंबन न० विलंब करवो ते परिललित वि० कंपतुं ; ऊछळतुं परिवत्सर पुं० पूरुं एक वर्ष परिवद् १ प ० निंदा करवी परिवजित वि० तजेलुं (२) रहित (३) संपादित; अर्जित परिवर्त पुं० चक्राकार फरवुं ते (२) समयनो गाळो व्यतीत थवो ते (३) पुनरावर्तन ( ४ ) फेरफार ; पलटो (५) विनिमय; अदलबदलो (६) चकळ वकळ फरवुं ते (७) वारंवार जन्म २७१ परिवर्तन न० पडखुं बदलवुं ते (२) चक्राकार फरवुं ते (३) समयना गाळानो अंत (४) फेरफार ;. पलटो (५) विनिमय; अदलोबदलो परिवर्तित वि० चक्राकारे फरेलुं (२) अदलबदल करायेलुं (३) उलटावेलुं; पलटेलु (४)दूर करेलु ; खसेडेलु परिवर्तिन् वि० चक्राकारे फरतुं (२) पलटातुं; बदलातुं परिवर्धक पुं० घोडानो खासदार परिवषित वि० वधेलुं (२) उछेरेलुं परिवह पुं० सात वायु पैकी छट्ठो वायु (सप्तर्षि तथा स्वर्गंगाने वहन करनार ) परिवाद पुं० निंदा; आळ; कलंक (२) तहोमत; आरोप ( ३ ) वीणा वाडवानुं साधन परिवेशन परिवादिनी स्त्री० सात तारवाळी वीणा परिवार पुं० नोकरचाकरनो समुदाय (२) ढांकण ; आच्छादन ( ३ ) वाड (४) म्यान [ परिवार परिवारण न० वेष्टन - आच्छादन ( २ ) परिवारता स्त्री० दासता; परतंत्रता परिवारित वि० घेरायेलं; वींटळायेलुं परिवास पुं० वसवं ते (२) सुगंध परिवाह पुं० ऊभराईने वहेवुं ते ( २ ) धारानुं पाणी वही जवा माटेनो मार्ग परिवाहिन् वि० ऊभरातुं परिवीत वि० घेरायेलुं; वींटळायेलं (२) फेलायेलु; व्यापेलु परिवृ ५, ९, १० उ० घेरी लेवुं परिवृढ वि० गाढ; स्थिर ( २ ) मोटुं ; घणुं (३) पुं० मालिक; स्वामी परिवृत् १ आ० गोळ फरवुं (२) अहीं तहीं फरवु (३) बदलवु; ऊलटबुं (४) पार्छु फरवुं (५) थवुं; बनबुं (६) नाश पामवो; लुप्त थवं परिवृति स्त्री० घेरी वळवं ते परिवृत्त वि० चक्राकार फरेलुं (२) पार्छु फरेल (३) अदलबदलो करेलु परिवृत्ति स्त्री० चक्राकार फरबुं ते (२) पार्छु फरव ते (३) विनिमय; अदलोबदलो (४) अंत (५) चारेकोर वळा ते परिवृषु १ आ० वधवुं परिवेत्तृ परिवेदक पुं० मोटा भाई करता पहेला परणेलो नानो भाई परिवेदन न० लग्न ( २ ) मोटा भाईनी पहेलां नाना भाईनुं लग्न ( ३ ) संपूर्ण ज्ञान ( ४ ) प्राप्ति (५) दु:ख वेदना परिवेल्लित वि० वींटळायेलु; घेरायेलुं परिवेश पुं० पीरसनुं ते (२) तेजनुं कूंडाळ (सूर्यचंद्रनी आसपासनं ) परिवेशन न० पीरसवुं ते (२) घेरी वळवं ते ( ३ ) सूर्यचंद्रनी आसपासनं कूंडाळ Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिवेष २७२ परिस्पंद परिवेष पु० जुओ 'परिवेश' परिष्कर पुं० शणगार; अलंकार परिवेषक पुं० पीरसनारो नोकर परिष्कार पुं० अलंकार; शणगार (२) परिवेषण न० जुओ ‘परिवेशन' रांधवं ते (३) राचरचील परिवेष्ट १ आ० आच्छादन कर। परिष्कृ ८ उ० शणनार (२) साफ -प्रेरक० वीटळावं; वींटवू करवू; मांजवं परिवेष्टन न० वीटळावं ते (२) परिष्कृत वि० शणगारेल (२) संस्का आच्छादन (३) पाटो खेंची बांधवो ते रेलु (३) स्वच्छ करेलु (४) रांधेलु परिव १ प० परिव्रज्या लेवी (५) मांजेलं परिव्रज्या स्त्री० एक जगाएथी बीजी परिष्यंद पुं० रेलो; वहेळो (२)झमवू ते जगाए विचर - फरता रहेवू ते (२) परिष्वक्त वि० आलिंगेल; भेटेलु घर छोडी संन्यासी थर्बु ते परिष्वज १ आ० आलिंगवं परिवाज (-ज),परिव्राजकपं० संन्यासी परिष्वजन न०, परिष्वंग पुं० आलिपरिशब्दित वि० जणावेल; उल्लेखेल गन (२) स्पर्श ; संसर्ग परिशंक १ आ० शंका लाववी (२) परिष्वंज् १ आ० [परिष्वजते ] आलिंधारवं; कल्पवं (३) बीवं गन करवं; भेटवू परिशंका स्त्री० शंका; अविश्वास (२) परिष्वंजन न० जुओ ‘परिष्वजन' आशा; अपेक्षा परिसमाप्त वि० पूरुं थयेलु (२) परिशंकिन वि० बीतुं; डरतुं केन्द्रित थयेलं परिशिष् ७ प० बाकी रहेवा देवु (२) परिसर पुं० सीमा; हद (२) (नगर, (स्थळनो) त्याग करवो पर्वत वगेरेनी) आसपासनी भूमि परिशिष्ट वि० बाकी रहेल; वधेलं (३) नस; शिरा (४) पहोळाई। (२) समाप्त (३) न० पुरवणी परिसर्पण न० आसपास घूम के फरवू ते परिशीलन न० स्पर्श ; संसर्ग (२) गाढ परिसंख्या २ प० गणतरी करवी संपर्क; अभ्यास परिसंख्यान न० गणतरी परिशुद्ध वि० शुद्ध करेलु (२) मुक्त परिस. १ प० आसपास वहेवू (२) थयेलु के करेलु (३) चूकवी दीधेलु - चारेकोर फरवू परिशुद्धि स्त्री० पूरेपूरुं शुद्ध करवू ते परिस्कंद १ प० आमतेम कूदवू (२) साचापणु; खरापर्यु परिस्कंद वि० बीजाए उछेरेल (२) परिशुष ४ प० सुकाई जवं; शोषावू पुं० पालित संतान (३) नोकर (४) परिशुष्क वि० पूरेपूरुं सुकाई गयेलं अंगरक्षक परिशन्य वि० तद्दन खाली (२)-थी परिस्कंध पुं० समुदाय; समूह तद्दन रहित परिस्त ५ उ०, परिस्त ९ उ० पाथरवू परिश्रम पु० थाक; तकलीफ (२) (२) ढांक यत्न; उद्यम (३) परिणाम परिस्तोम पुं० हाथी उपर नाखवानी परिश्रय पुं० सभा (२) आश्रय झल (२) एक यज्ञपात्र परिश्रुत वि० सांभळेलु (२)विख्यात परिस्पंद पुं० फरकवू-भ्रूजवू ते (२) परिषद स्त्री० सभा; बेठक ; मंडळी वाळने फूल वगेरेथी शणगारवा ते (३) परिषेक पुं०, परिषेचन न० सींचq- शणगार (४) चालु राखq ते (५) छांटq - रेडवु ते पराक्रम; बहादुरी Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परेत परिस्फुरित २७३ परिस्फुरित वि० कंप; हालतुं (२) परीत वि० घेरायेलं; वीटळायेलं (२) चळकतुं; चमकतुं (३) खोलेलं विदाय थयेलु (३) वीतेलु (४) पकपरिस्थंद पुं० जुओ 'परिष्यंद' डायेल (५) प्रदक्षिणा करायेलं परिस्रव पुं० वहेवं ते; रेलो (२) सरी परीताप पुं० जुओ 'परिताप' के सरकी जq ते परीतोष पुं० जुओ 'परितोष' परिनुत वि० झमेलं; टपकेलं परीदाह पुं० जुओ 'परिदाह' परिहत वि० ढोलुं थयेलु – करेलु परीधान न० जुओ 'परिधान' परिहस् १ प० हसवं; मजाक करवी परीपाक पुं० जुओ 'परिपाक' (२) चडियाता थq; हसी काढवू । परीप्सा स्त्री० मेळववानी-प्राप्त करपरिहा ३ प० तजवं; छोडी देव वानी इच्छा (२) ताकीद; त्वरा --कर्मणि० -थी ऊतरता होQ (२) परीप्सु वि० संरक्षवानी इच्छावाळं -मां अधूरा होवू; -थी रहित होवू (२) शोधी काढवानी इच्छावार्छ (३) क्षीण थq; दुबळं थर्बु (४) परीभव पुं० जुओ परिभव' वीती जवं (५)-थी रहित करावं परीमाण न० जुओ 'परिमाण' परिहाणि (-नि) स्त्री० घटाडो (२) परीवर्त पुं० जुओ 'परिवर्त' क्षीण थq ते परीवाद पुं० जुओ 'परिवाद' परिहार पुं० छोडी देवू - छांडवं ते; परीवार पुं० जुओ 'परिवार' दूर करवू ते (२) निराकरण करवू ते परीवाह पुं० जुओ 'परिवाह परिहार्य वि० तजवा के छांडवा योग्य परीवेश (-) पुं० जुओ 'परिवेश' परिहास पुं० मजाक ; ठछो (२) हांसी परीष्ट वि० इच्छवा योग्य ; उत्तम परिहीण वि० -विनानु; रहित (२) परीष्टि स्त्री० शोध-खोळ ; तपास (२) ओछ; अधूरूं; खूटतु सेवा ; चाकरी (३) पूजा-आदर परिह १५० दूर करवू; वर्जg; तजवं परीहार पुं० जुओ परिहार' (२) खंडन करवू; जवाब आपवो परीहास पुं० जुओ 'परिहास' (आक्षेप के आरोपनो) (३)छुपाव परुत् अ० गये वर्षे; परार परिहत वि० त्यागेलं; छांडेल (२) परुष वि० कर्कश; खरबचई (२) दूर करेलं (३) लीधेलं; पकडेलु निष्ठुर; निर्दय (३) तीव्र ; तीj परी (परि + इ) २ प० प्रदक्षिणा परुषाक्षर वि० कठोर शब्दो बोलनारुं करवी (२) वीटळावं; घेराई वळवू परुषित वि० जेनी प्रत्ये कठोरताथी (३) विचारवं ; निरीक्षण करवं वर्तवामां आव्युं होय तेवू परोक्ष (परि + ईक्ष) १ आ० परीक्षा परुषेतर वि० कर्कश नहि तेवू; कोमळ करवी; चकासणी करवी परे (परा+इ) २ प० नासी जवं; परीक्षक पुं० परीक्षा करनार; तपासनार भागी छूटवू (२)पामवं; पहोंचवू (३) परीक्षण न० परीक्षा करवी ते मरण पाम परीक्षा स्त्री० तपास (२) कसोटी परे अ० त्यार पछी (२) भविष्यमां परीक्षित वि० परीक्षा करेलं ; चकासेलु परेण अ० दूर; पार (२) -ना करता परीणाम पुं० जुओ 'परिणाम' वधु (३) पछीथी परीणाह पुं० जुओ 'परिणाह' परेत वि० मृत (२) पुं० (भूत) प्रेत Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परेतकल्प २७४ पर्याकुल परेतकल्प वि० मृतप्राय (२) नका, खोवू ते (समय) (३) परेतकाल पुं० मृत्युसमय फेर; पलटो (४) नाश परेतभर्तु पुं० यमराजा पर्यवदात वि० तद्दन पवित्र ; शुद्ध (२) परेतभूमि स्त्री० स्मशान अति जाणीतुं परेतर वि० दुश्मन नहि तेवं (२)पोतान पर्यवष्टंभू ५,९ प० घेरो घालवो परेचवि, परेधुस् अ० बीज़े दिवसे पर्यवष्टंभन न० घेरो घालवो ते परेषित वि० बीजाए पाळेलुं के पोषेलं पर्यवसान न० अंत; समाप्ति (२) (२) पुं० दास; नोकर (३) कोयल निश्चय; निर्णय परोक्ष वि० अप्रत्यक्ष ; नजरे न पडतुं पर्यवसित वि० समाप्त थयेलं (२) (२) गेरहाजर (३) गुप्त; अजाण्यु नाश पामेलु (३) निश्चित करेलु (४) न० गेरहाजरी; नजर सामे न पर्यवसो (परि + अव + सो) ४ ५० होवू ते [मानतुं पूरुं करवं (२) नक्की करवू (३) परोक्षबुद्धि वि० निरपेक्ष (२) परोक्ष परिणाम आवq (४) नाश पामवं परोढा स्त्री० परपत्नी पर्यवस्कंद पुं० कूदको मारवो ते । परोपकार पुं० बीजा उपर उपकार पर्यवस्था (परि + अव+ स्था) १५० करवो ते; बीजानुं हित करवू ते [पर्यवतिष्ठति ] स्थिर थवं; स्वस्थ परोपदेश पुं० बीजाने उपदेश आपवो ते __ थर्बु (२) बधे होवू; व्यापवं परोरजस् वि० रागद्वेष विनानं पर्यधुं वि० आंसु भरेलु; आंसु ऊभपर्जन्य पुं० मेघ; वादळ (२) वर्षा; रातां होय तेवं पर्यस् (परि + अस्) ४ प० नाखवू; वरसाद (३) इंद्र फेंकवं (२) चोतरफ फेंकवू; विखेरवं पर्ण न० पांख (२) बाण- पीछु (३) (३) ऊधु वाळवू (४) गोळ फेरवq पान; पांदडु (४)नागरवेलन पान (५) छाई देवं; व्याप पर्णकुटिका, पर्णकुटी स्त्री० झुपडी पर्यस्त वि० चोतरफ फेंकायेलं; विखेपर्णचीरपट पुं० शंकर । रेलु (२) घेरायेलु (३)बंधायेलु (४) पर्णल वि० खूब पांदडांवाळं ऊंधु वळेल - वाळेल पर्णशाला स्त्री० पांदडांनी झंपडी पर्यक पुं० पलंग; खाटलो (२)म्यानो; पर्णसंस्तर पुं० पांदडांनी पथारीमा पालखी (३) घुटण वाळी केड साथे सूनारो बंधातुं वस्त्र (४) एक आसन (योगन) पर्णास (-सि) पुं० तुलसी पर्यकबंध पुं० केड साथे घुटण बंधाय पर्णाहार पुं० पांदडां खाईने जीवq ते एम कपडं बांधवू ते पणिन् पुं० वृक्ष (२)पलाश वृक्ष पर्यंच १ उ० गोळ फेरवद्; आमळवू पर्णोटज न० पांदडांनी बनावेली झुपडी पर्यत वि० -थी जेनी सीमा बंधाय छे पर्पट पुं० पापड तेवू; - सुधी- (२)पासेर्नु; नजीकनुं पर्यक अ० चोतरफ ; दरेक बाजुए (३) पुं० घेराव (४) छेडो; सीमा पर्यट १५० भटकवू; रखडवू (५) बाजु; पडखं (६)अंत ; समाप्ति पर्यटक पुं० रखडतो; भामटो पयंतदेश पुं० पडोशनो- नजीकनो प्रदेश पर्यटन, पर्यटित न० रखडवू-भटकवू ते पर्याकुल वि० डहोळायेलं (२) गभपर्यय पुं० पूरुं थq ते; समाप्त थर्बु ते रायेलु (३) वीखरायेलं अस्तव्यस्त Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्याक्षिप् (४) आकुळव्याकुळ थयेलुं (५) भरायेलं; पूर्ण [ वींटवु; बांध पर्याक्षिप् ( परि + आ + क्षिप् ) ६ प० पर्यागम् १ १० [ पर्यागच्छति ] नजीक जवं ( २ ) पूरुं थवं (३) जीतनुं ( ४ ) वळा घेवु (५) पाछु आववु पर्याण न० पलाण (घोडानुं) पर्याप् ५ प० पूरतु होवु हो ( २ ) परिपूर्ण होवुं ( ३ ) बचावभुं पर्यापतत् वि० आमतेम दोडतुं पर्याप्त वि० मेळवेलं (२) परिपूर्ण (३) बघु; आखु (४) समर्थ (५) पूरतुं (६) विशाळ (७) प्रचुर; अत्यंत (८) मर्यादित शक्तिमान पर्याप्तम् अ० मरजी मुजब ; धराईने पर्याप्ति स्त्री० प्राप्ति ( २ ) अंत; समाप्ति ( ३ ) परतुं होवु ते; परिपूर्णता (४) तृप्ति पर्याय पुं० गोळ फरवुं ते; कूंडाळ फरवु ते ( २ ) वीतनुं - पूरुं थवं ते ( समयनुं) (३) नियमित आवर्तन थवं ते ( ४ ) वारो; क्रम ( ५ ) व्यवस्था; गोठवण ( ६ ) रीत पद्धति ( ७ ) समानार्थ शब्द ( व्या० ) ( ८ ) तक; प्रसंग ( ९ ) उपाय (१०) अंत (११) रचना ( १२ ) विपरीतता; पलटो पर्यायत वि० घणुं लांबु [ करवी ते पर्यायसेवा स्त्री० वारा प्रमाणे सेवा पर्यायेण अ० अनुक्रमे; वारी प्रमाणे (२) अवारनवार ( ३ ) एकांतरे पर्यालोचित वि० विचारेलुं; तपासेलुं पर्याविल वि० कादववाळं; डहोळं पर्यावृत वि० ढांकेलं पर्यासन न० गोळ फरवुं ते ( २ ) विनाश पर्यासित वि० नीचे पटकेलं (२) विनष्ट पर्युत्सुक वि० खिन्न ; उदास ( २ ) अत्यंत उत्सुक; आतुर ( ३ ) क्षुब्ध पर्युदस् ४५० वार; निवार पलित पर्युपस्थान न० सेवाचाकरी [ लेवो पर्युपास २ आ० सेवा करवी ( २ ) आश्रय पर्युपासन न० सेवा ; उपासना पर्युषण न० सेवा; भक्ति पर्युषित वि० वासी; ताजुं नहीं तेवुं (२) रात रहेलुं [ शोष पर्येषण न०, पर्येषणा स्त्री० तपास; पर्वणी स्त्री० अमावास्या के पूर्णिमा (२) उत्सवनो दिवस २७५ पर्वत पुं० डुंगर; खडक पर्वतीकृ ८ उ० पर्वत जेवडुं मोटुं करवुं पर्वतीय वि० पर्वतनुं; पर्वत संबंधी पर्वतोपत्यका स्त्री० पर्वतनी तळेटी पर्वन् न० गांठ; सांधो ( २ ) अवयव, अंग के सांधी (३) भाग; विभाग; खंड ( ४ ) निसरणीनुं पगथियुं ( ५ ) आठम, चौदश, पूर्णिमा तथा अमावास्या ए चार दिवसो ( ६ ) पूर्णिमा के अमावास्यानो दिवस ( ७ ) ग्रहण ( सूर्य के चंद्रनं ) ( ८ ) उत्सवनो दिवस पर्वभाग पुं० कांडुं पर्श पुं० फरसी; कुहाडी पर्षद् स्त्री० परिषद; मंडळी करीने धर्मविचार माटे मळेली) पल न० मांस ( २ ) एक वजन के माप पलल पुं० राक्षस ( २ ) न० मांस (३) कादव; कीचड खास पलाय् १ आ० पलायन कर पलायन न० नासी जवुं ते पलाल पु०, न० पराळ पलाश पुं० खाखरानुं झाड (२) न० खाखरानुं फूल; केसूडुं (३) पांखडी पलाशन पुं० राक्षस ( मांस खानारो) पलांडु पुं० डुंगळी पलित वि० धोळं भूखरुं (२) धोळा वाळवाळं ; वृद्ध (३) नं० धोळो वाळ; पळियं (४) घणा के शणगारेला वाळ (५) केशपाश Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पलितछद्मन् २७६ पक्तिता पलितछमन् वि० पळियां पाछळ छुपा- पश्चात् अ० पाछळथी; पाछली बाजुए येलु (वृद्धावस्था) (२) पाछळ ; पाछली बाजु (३) पल्यंक पुं० पलंग पछीथी (४) छेवटे (५)पश्चिम बाजुपल्याणित वि० पलाणेलं एथी (६) पश्चिम तरफ पल्लव पुं०, न० कंपळ; नवं पान (२) पश्चात्कृत वि० पार्छ पाडी दीधेलं नवी डाळी (३) कळी (४) पालव; पश्चात्ताप पुं० पस्तावो वस्त्रनो छेडो [छल्लं (ज्ञान) पश्चादहस् अ० पाछले पहोरे पल्लवग्राहिन वि० उपरचोटियु ; उपर- पश्चार्य पुं० पाछलो भाग; पाछळनो पल्लवित वि० नवी कुंपळोवाळ (२) भाग (शरीरनो) (२) पछीनो अ? विस्तारित (३) अळताथी रंगेल (४) भाग (३) पश्चिम बाजु पुं० अळतो पश्चिम वि० पश्चिम दिशान; आथपल्लविन् वि० कुंपळोवाळं; अंकुरित मणुं (२) छेवटचें; छेल्लु (३) त्यार पल्लि (-ल्ली) स्त्री० नानुं गामडु (२) पछी-; पाछळ थनारुं । घरोळी पश्चिमरात्र पुं० रातनो छेवटनो भाग पल्वल न० नानुं तळाव; खाबोचियुं । पश्चिमा स्त्री० पश्चिम दिशा पयत् वि० पावन करनारु (२) वेगे पश्य वि० जोनाएं; जोत गति करतुं पश्यत् वि. जोतुं; देखतुं; निहाळतुं पवन वि० पवित्र; स्वच्छ (२) पुं० पश्यतोहर पुं० मालिक देखतो होय ने वायु; हवा (३) प्राणवायु; श्वास चोरनार (जेम के सोनी) (४) पावन करनार (वायु) पश्यंती स्त्री० वाणीनी चार स्थितिमांपवनतनय पुं० भीम (२) हनुमान नी बीजी (जुओ परा') (२) वेश्या पवनपदवी स्त्री० आकाश; अंतरीक्ष पंक पुं०, न० कादव; कीचड (२) पवनभू पुं० हनुमान (२) भीम तेना जेवो गाढ लोदो (३) पाप पवमान पुं० पवन; वायु; हवा (२) पंकच्छिद् पुं० डहोळू पाणी साफ करवा गार्हपत्य अग्नि जेनुं फळ वपराय छे ते झाड पवमानसख पुं० अग्नि पंकज न० कमळ पवि पुं० इंद्रनुं वज्र (२) गर्जना; कडाको पंकजकोश पं. कमळनो दोडो पवित्र वि० पावन; शुद्ध (२) पाप- पंकजनाभ पुं० विष्णु रहित (३)न० घी होमवामां वपराता पंकजन्मन् पुं० ब्रह्मा (बे) दाभ (४) जनोई पंकजिनी स्त्री० कमळनो छोड-वेल पशु पुं० जानवर; चोपगुं प्राणी (२) (२) कमळनो समूह (३) घणां कमळ यज्ञमां होमवानुं प्राणी (बकरुं इ०) ऊगतां होय तेवू स्थळ (३)जंगली जानवर पंकिल वि० कादव भरेलु पशका स्त्री० कोई पण नानू जानवर पंकेज, पंकेतह (-ह) न० कमळ पशुधात पुं० यज्ञ माटे पशुनो वध पंक्ति स्त्री० हार; पंगत; ओळ (२) पशुनाथ, पशुपति पुं० महादेव एक ज ज्ञातिना जमवा बेठला पशुमारम् अ० ढोरने मारे तेम लोकोनी पंगत (३) दशनी संख्या पश्च वि० पाछळy (२) पश्चिमनुं पंक्तिता स्त्री० हार; ओळ Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंक्तिपावन मूत्र पंक्तिपावन पुं० पवित्र ब्राह्मण (आखी पंगतने पवित्र करनार मनाय छे ) पंक्तिरथ पुं० दशरथ राजा पंगु वि० पांगळं, लुलुं पंचक वि० पांचनुं बनेलं; पांचने लगतुं (२) पुं० न० पांचनो समूह पंचगव्य न० गायनुं दूध, दही, घी, अने छाण - ए पांच वस्तुओ पंचगुणाः पुं० ब० व० इंद्रियोना पांच विषयो (रूप, रस, गंध, स्पर्श अने शब्द ) पंचगुणी स्त्री० पृथ्वी पंचतत्त्व न० पंचमहाभूत (पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, आकाश ) पंचतपस् पुं० पंचाग्नि तपनारो तपस्वी पंचत्वंगत वि० मृत ( पंचमहाभूतनी स्थिति पालुं ) पंच वि० ( ब०व०) पांच (समासनी शुरूआतमां आवे त्यारे न् ऊडी जाय छे) पंचनख पुं० पांच नखवाळु प्राणी (हाथी, ससल, काचबो, मगर, सिंह, वाघ इ० ) पंचनद पुं० हालनो पंजाब ( शतद्रु - सतलज, विपाशा - बियास, ईरावतीरावी, चंद्रभागा - चिनाब, वितस्ताजेलम, ए पांच नदीओनो प्रदेश ) पंचपदी स्त्री० पांच पगलां साथे भरवां ते पंचप्राणाः पुं० ब० व० शरीरना पांच वायुओ- प्राणो (प्राण, अपान, व्यान, उदान अने समान) २७७ तेज पंचबाण पुं० कामदेव (अरविंद, अशोक, आंबामोर, नवमल्लिका अने नीलोत्पल - ए पांच फूलरूपी बाणवाळो ) पंचभूत न० पृथ्वी, जल, वायु, आकाश - ए पांच महाभूत पंचम वि० पांचमुं (२) चतुर (३) सुंदर ( ४ ) पुं० संगीतना सप्तकमां पांचो स्वर (कोयलनो स्वर ) पंचवटी स्त्री० पींपळो, आमळी, आसोपालव, वड अने बीली - ए पांच वृक्षोनो पंचांग समूह (२) नाशिक पासे आवेल दंडकारण्यनो एक भाग (त्यां राम वनवास ह्या हता) [ इंद्रियोनो समूह पंचवर्ग पुं० पांचनो समूह ( २ ) पांच पंचवीरगोष्ठ न० सभामंडप पंचवृत्तिता स्त्री० पांच इंद्रियो उपर आधार राखवो ते पंचशर पुं० कामदेव (जुओ 'पंचबाण' ) पंचशाख पुं० हाथ ( २ ) हाथी पंचशिख पुं० सिंह [नीकोवाळं) पंचस्रोतस् न० मन (पांच इंद्रियो रूपी पंचाग्नि पुं० पांच पवित्र अग्निनो समुदाय ( दक्षिण, गार्हपत्य, आहवनीय, सभ्य अने आवसथ्य) (२) ए पांच अग्नि राखनार गृहस्थ पंचात वि० (चार बाजु) चार अग्नि अने उपर सूर्य ए पांच अग्नि वडे तप करनारुं पंचातिग वि० मुक्त पंचानन पुं० शिव (२) सिंह (पहोळं मुख होवाथी) (३) (समासने अंते ) ते ते विद्यामां पारंगत (उदा० 'तर्कपंचानन' ) पंचामृत न० दूध, दही, घी, मध, साकर - ए पांचनुं मिश्रण ( २ ) पंचमहाभूतोनो समूह पंचायतन न०, पंचायतनी स्त्री० ० गणपति, विष्णु, शंकर, देवी अने सूर्य - ए पांच देवोनो समुदाय पंचाली स्त्री० ढींगली; पूतळी पंचाशत्, पंचाशति स्त्री० पचास पंचास्य पुं० शिव ( २ ) सिंह पंचांग वि० पांच अंगवाळु (जेम के 'प्रणाम' : बाहु, जानु, शिर, वक्षस्, दृष्टि वडे करतो; अथवा 'अभिनय': चित्त, अक्षि, भ्रू, हस्त, पाद वडे करातो; अथवा 'राजनीति': कार्यारंभ, पुरुष अने द्रव्यनुं साधन, देशकाळ, मुश्केली Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचिका ओनो सामनो अने कार्यसिद्धि - ए पांच अंगवाळी) (२) न० टीपणुं ( तिथि, वार, नक्षत्र, योग, अने करण - ए पांच अंगवाळं ) पंचिका स्त्री० खातावही पंचोपचार पुं० पूजाना पांच पदार्थो (गंध, पुष्प, धूप, दीप अने नैवेद्य ) पंजर न० पांजरं ( २ ) पुं०, न० पांसळीओ पांज (३) हाड पिंजर (४) पुं० शरीर [ पोपट पंजरशुक पुं० पांजरामांनो (पाळेलो) पंजिका स्त्री० शब्दे शब्दना अर्थवाळी टीका (२) खातावही ( ३ ) पंचांग पंडा स्त्री० शाणपण ( २ ) विद्याभ्यास पंडित वि० डा; शाणुं (२) कुशळ ; होशियार ( ३ ) पुं० विद्वान पंडितजातीय वि० थोडुं घणुं होशियार पंडितमानिक, पंडितमानिन् वि० पोतानी जातने पंडित माननारुं [ करनाएं पंडितवादिन् वि० डाह्यं होवानो दंभ पंडितंमन्य वि० जुओ 'पंडितमानिक' पंपा स्त्री० एक सरोवर (दंडकारण्यमां) पा१प० [पिबति ] पीवुं ( २) चंजन करवु (३) अंदर लेबुं ( आंखथी, कानथी, श्वासयी इ० ) ( ४ ) मद्यपान कर पा २१० [ पाति ] रक्षण करवुं (२) २७८ शासन कर पालन - प्रेरक० [ पालयति - ते ] करवुं; रक्षतुं ( २ ) शासन करवुं ( ३ ) पाळ ; पूरुं करवुं ( प्रतिज्ञा इ० ) (४) उछेखं ( ५ ) - नी राह जोवी पावि० (समासने अंते) रक्षण करनाएं (२) पोनारुं (जेमके, 'सोमपा' ) पाक पुं० रांधते (२) पकवत्रुं ते ( ईंट इ० ) (३) पाचन करवुं - थत्रुं ते ( ४ ) परिपक्व थत्रु ते ( ५ ) सिद्ध - पूर्ण थधुं ते (६) परिणाम ( ७ ) परिणाम तरफ जबुं ते (८) वाळ धोळा थवा ते (९) एक राक्षस (जेने इंद्रे मा हतो ) पाठीन पाकाभिमुख वि० परिपक्वता के विकास माटे तैयार थयेलुं पाक्षिक वि० पखवाडियानुं; पखवाडियाने लगतुं (२) पक्षी संबंधी (३) पक्ष, वाद इ० ने लगनुं (४) वैकल्पिक पाखंड पुं० नास्तिक ( २ ) जैन के बौद्ध पागल वि० उन्मत्त; गांडु पाचक वि० रांधना (२) परिपक्व करनारुं ( ३ ) पंचावतारुं ( ४ ) पुं० रसोइयो पाचन वि० जुओ 'पाचक' वि० पाटच्चर पुं० चोर; डाकु पाटन न० फाडवु - चीरबुं - भेदवुं ते पाटल वि० आछु लाल; गुलाबी ; तांबाना रंगनुं (२) पुं० गुलाब अथवा तांबा जेवो लाल रंग ( ३ ) एक फूलझाड (४) न० तेनुं फूल पाटलित वि० लाल रंगनुं करायेलुं पाटलिपुत्र न० मगधनी राजधानी पाटलोपल पुं० एक मणि पाटव पुं० चतुरता; कुशळता ( २ ) चपळता (३) साहस पाटविक वि० प्रवीण; चतुर पाटित वि० फाडेलं; चीरेलु (२) वींधेलु; वधायेलं पाटी स्त्री० गणित ( शास्त्र ) पाटीर पुं० चंदन, सुखड पाठ पं० भणवं - पढनुं ते ( २ ) वांचबुं ते; अभ्यास ( ३ ) वेदोनुं पठन ( ४ ) ग्रंथ मूळ लखाण (५) पाठांतर पाठक वि० शिक्षक; अध्यापक ( २ ) पुराणी (३) विद्यार्थी पाठन न० शीखववुं - भणाववुं ते पाठशाला स्त्री० निशाळ; शाळा पाठांतर न० ग्रंथनी बीजी प्रतमां मळतो जुदो पाठ पाठित वि० भणावेलुं; शीखवेलुं पाठीन पुं० एक जातनुं माछलं (२) एक फूलझाड Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठप २७९ पावपूरण पाठच वि० पाठ करवा योग्य ; भणवा (२) -मां समाविष्ट थतुं (३) योग्य (२) शीखववा योग्य पाडनाएं; फेंकनारु पाण पुं० वेपार (२) वेपारी (३) पातिव्रत्य न० पतिव्रतापणुं रमतनो दाव (४) होड पातुक वि० पतनशील पाणि पुं० हाथ पात्र न० पीवानुं वासण (२) कोई पण पाणि स्त्री० पीठ; बजार वासण (३) जेमां कई मूकवामां आवे पाणिग्रह पुं०, पाणिग्रहण न० लग्न ते (४) योग्य के लायक माणस (दान पाणिग्रहीत, पाणिग्राह पुं० पति वगेरे माटे) (५) नट; अभिनेता पाणिष पुं० मृदंग वगाडनार (६) नदीना बे कांठा वच्चेनो भाग पाणिघात पुं० मुष्टियुद्ध करनार पात्रता स्त्री० योग्यता; लायकात पाणिज पुं० नख पानशेष पुं० भोजनन बचेलु - वधेलं ते पाणितल न० हथेली पात्री स्त्री० पात्र; वासण पाणिदाक्ष्य न० हाथचालाकी पात्री ८ उ० पात्र-योग्य बनाव पाणिनि पुं० संस्कृत भाषानुं व्याकरण पात्रेबहुल, पात्रेसमित पुं० कामना समये रचनार मुनि नहि पण मात्र भोजनना समये भेगो पाणिनीय वि० पाणिनिए रचेलं थनार (२) दंभी पुरुष पाणिपल्लव पुं० कूपळ जेवो कोमळ हाथ पात्रोकरण न० लग्न (२) आंगळी पायस न० पाणी पाणिपात्र वि० हाथने खोबे पाणी पाथस्पति पुं० समुद्र; महासागर पीनारं; हाथ रूपी पात्रवाळं पायेय न० मुसाफरीमा खावा माटेनुंभातुं पाणिपीडन न० पाणिग्रहण पायोषि, पायोनिषि पुं० सागर; समुद्र पाणिवाद पुं० ताळी पाडवी ते (२) पाद पुं० पग; चरण (२) किरण (३) ढोलक वगाडवू ते पायो (खाटला इ० नो) (४) पर्वतनी पाणीकरण न० परणq ते तळेटी नजीकनी टेकरी (५) चोथो पात पुं० ऊडवं ते (२) पडवू ते ; नीचे भाग (६) कडी के श्लोकनो चोथो आव, ते (३) विनाश (४) प्रहार भाग (७) थांभलो (८) तळियं (९) (५) नाखवू-रेडर्बु-फेंकवु ते (६) मोनानो एक सिक्को (एक तोलानो) बनवू-थर्बु ते पादग्रहण न० पग पकडवा ते (नमस्कार) पातक पुं०, न० पाप पादचार पुं० चालवू ते ; फरवू ते पातकिन् वि० पापयुक्त ; पापी पादचारिन् वि० पगे चालनारु (२)पगपातन वि० नीचे पाडनाएं (२) न० पाळं ऊ, रहीने लडनाएं (३) पुं० नीचे पाडवू ते; नाखवू ते मुसाफर; वटेमाणु पातंजल वि० पतंजलिए रचेलं पादत्राण न० जोडो; मोजडी पाताल न० पृथ्वीनी नीचे आवेला पादन्यास पुं० पगर्नु हलनचलन मनाता सात लोकमांनो छेल्लो पादप पुं० वृक्ष [पगवाट पातित वि० नीचे नाखेलं ; नीचे पाडेलं पादपद्धति स्त्री० पगलांनी पंक्ति (२) (२) नमावेल (३) नीचं करेलु पादपीठ पुं०, न० पग मूकवानो बाजठ पातिन् वि० नीचे आवतुं-जतुं-ऊतरतुं पादपूरण न० खूटती कडी उमेरवी ते Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पावप्रक्षालन २८० पावप्रक्षालन न० पग धोवा ते पापचर्य पुं० पापी (२) असुर पादप्रहार पुं० लात पापदर्शन, पापदशिन वि० बीजना दोषो पावमुद्रा स्त्री० पगलांनी छाप जोनाएं (२)बीजा- बूरुं ताकनारं पादमूल न० पगनी एडी (२) पर्वतनी पापभाज् वि० पापयुक्त तळेटी [वळगेलं पापम् अ० खोटी रीते; अधर्मथी पादलग्न वि० पग पासे पडेलु; पगे पापदि स्त्री० मृगया पादशौच न० पग धोवा ते । पापशील वि० स्वभावथी दुष्ट ; पापी पादान पुं० पगनो आगलो भाग पापात्मन् वि० पापी; दुष्ट पादाघात पुं० लात [पायदळ पापानुबंध पुं० खराब परिणाम पादात पुं० पायदळनो योद्धो (२) न० पापारंभ वि० दुष्ट ; पापी पादानत वि. पगे पडेलं पापिन् वि० पापयुक्त; पापी पादारविंद न० कमळ जेवो पग-चरण पापिष्ठ वि० अतिशय पापी (सौमां) पादावनाम पुं० पगे पडवू ते . पापीयस् वि० वधु पापी (बेमां) पादाहति स्त्री० उपर पग मूकवोते (२) पाप्मन् पुं० पाप लात; ठेस [(चालवाथी पडती) पामन् पुं० खसनो रोग पादांक पुं० पगना तळियानी छाप पामर पुं० मूर्ख (२) दुष्ट ; नीच पावांत पुं० पगनो छेडानो भाग पामा स्त्री० खसनो रोग पादांतरे अ०एक पगला पछी (२)नजीक पायस पुं०, न० दूवाक; खीर (२) पादुका स्त्री० पावडी; चाखडी न० दूध (३) अमृत पादोदक न० पग धोवानुं पाणी (२) पायसपिंडारक पुं० पायस खानार जेमां पग धोया होय ते पाणी पायिन् वि० पीतुं; पीनारं पाथ न० पग धोवा माटे- पाणी पायु पुं० गुदा पान न० पीवं ते (२) दारू पीवो ते पार् १०प० पूरुं कर, (२) ओळंगवू (३) शक्तिमान थQ (४) जीतवं (३) पीj (४) पीवानुं वासण पार पुं०, न० सामी बाजु के किनारो पानक न० पीj [स्थान (२) छेडो; अंत (३)पूरु- समग्रते पानभूमि स्त्री० दारू पीवानो ओरडो (४) पं० अंत; छेडो" पानागार पुं०, न० पीछं; दारूनी दुकान पानीय वि० पीवा योग्य (२) रक्षण पारक्य वि० पारकुं (२) विरोधी (३) पुं० शत्रु (४) न० (परलोकमां सुख करवा योग्य (३)न० पाणी (४)पीणं पमाडे तेवं) पवित्र आचरण पानीयवारिक पुं० मठमां पाणी भरनार पारग वि० सामे पार जनारुं (२) अंत पाप वि० दुष्ट ; पापी (२) नीच; सुधी जनारं; पूरेपूरुं निष्णात (३) अधम (३) अपशुकनियाळ (४) न० न० वचन पाळवं ते धर्म विरुद्धD कृत्य ; दुष्कृत्य (५) पु० पारगत वि० सामे पार पहोंचेलं पापी माणस पारग्रामिक वि० विरोधी- दुश्मन एवं पापगति पुं० कमनसीब; दुर्भागी पारण वि० पार लई जनारु (२) पापग्रह पुं० खराब ग्रह (मंगळ, शनि, उद्धारनारु (३) न० सिद्ध करवंराहु के केतु) पार उतारवं ते (४) उपवास पछी पापघ्न वि० पापनो नाश करनारुं भोजन कर, ते (५) गळी जवू ते Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पारणा २८१ पार्थिव पारणा स्त्री० उपवास पछी जमवू ते; पारिजात, पारिजातक पुं० स्वर्गनां पारj (२) जमवू ते पांच वृक्षोमांनु एक (समुद्रमंथनमांथी पारतंत्र्य न० परतंत्रता; पराधीनता एक रत्न तरीके नीकळेल) पारत्रिक, पारत्र्य वि० परलोक संबंधी; पारितोषिक वि० आनंदप्रद; संतोषप्रद परलोकमां उपयोगी (२) न० इनाम ; बक्षिस पारद पुं० पारो पारिपार्श्वक, पारिपाश्विक पुं० नोकर; पारदारिक पुं० परस्त्रीगामी हरियो (२) सूत्रधारनो मददनीश पारदार्य न० व्यभिचार; जारकर्म पारिप्लव वि० चंचल ; अस्थिर; कंपतुं पारवृश्वन् वि० डायु; समजणुं (२) (२) तरतुं (३) व्याकुळ ; क्षुब्ध पारंगत; प्रवीण (४) पुं० नाव; नौका (५) न० पारमार्थिक वि० परमार्थ - परम तत्त्वने अशांति ; व्याकुळता लगतुं (२) ययार्थ; वास्तविक ; सत्य पारिबह पुं० लग्न वखतनी भेट (२) (३) परमार्थनी परवा करतुं (४) परिजन-परिवार [परिभाषारूप अति उत्तम पारिभाषिक वि० चालु ; सार्वत्रिक (२) पारमिक वि० उत्तम; मुख्य ; श्रेष्ठ पारियोत्र पुं० सात 'कुलपर्वत'मांनो एक पारमित वि० सामे पार गयेलं (महेंद्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान्, पारमिता स्त्री० सिद्धि; परिपूर्णता ऋक्ष, विन्ध्य, पारियात्र) पारयिष्णु वि० आनंददायक (२) अंत पारिवाजक, पारिवाज्य न० भिक्षुपणुं सुधी जई शकनारं; यशस्वी पारिषद पुं० सभामां हाजर रहेलो सभ्य पारलौकिक वि० परलोकने लगतुं; पर- पारिषदाः पुं० ब०व० देवनो परिवार लोक माटे हितकर पारिहारिक पुं० माळा बनावनार-माळी पारस वि० ईरान देश पारिहार्य पुं० हाथर्नु घरेणुं- कडु पारसीक पुं० ईराननो वासी पारी स्त्री० पाणी पीवानुं पात्र (२) दूध पारंगत वि० पार गयेलं दोहवा- पात्र . पारंपर वि० आगळन; भविष्यन पारीण वि० सामे पार जतुं (२) (समास पारंपरिण, पारंपरीण वि० परंपराथी । ने छेडे) पारंगत ; प्रवीण चाल्यु आवतुं; वंशानुक्रमे चाल्यु आवतुं पारुष्य न० कठोरता; कर्कशता (२) पारंपर्य न० परंपराथी चाल्यू आववं ते निष्ठुरता (३.) अपशब्द पारंपर्येण अ० क्रमथी; अनुक्रमथी पारे अ० सामी बाजुए पारा स्त्री० एक नदी पार्थ पुं० पृथा-कुंतीनोपुत्र (युधिष्ठिर, पारापत पुं० कबूतर; पारे, भीम, अर्जुन) (२) राजा पारायण न० सामे पार जवू ते (२) पार्थक्य न० जुदाई; जुदापणुं सूक्ष्म अभ्यास (३)पूरेपूरु- समग्र ते पार्थसारथि पुं० अर्जुनना सारथि - पारावत पुं० कबूतर; पारेवं श्रीकृष्ण पारावार न० बंने किनारा; नजीक अने पार्थिव वि० पृथ्वीने लगतुं (२)माटीनुं दूरनो किनारो (२) पुं० समुद्र बनेलं (३) पृथ्वी उपर राज्य करतुं पाराशर, पाराशर्य पुं० पराशर ऋषिना (४) राजाने लगतुं (५) पुं० पृथ्वीनो पुत्र-व्यास वासी (६) राजा. Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पार्थिवी २८२ पाशन पाथिवी स्त्री० सीता (पृथ्वीनी पुत्री) पाल् १० उ० रक्षण करवू (२) पाळवं पार्य न० अंत (२) पार करवानुं साधन (वचन, प्रतिज्ञा इ०) पायंतिक वि० छल्लं; छेवटनं पाल पुं० पालक [अश्वपाल पार्वण वि० पर्व संबंधी; पर्वने दिवसे पालक पुं० रक्षक (२) राजा (३) आवतुं के होतुं पालन वि० रक्षण करनारु (२) न० पार्वत वि० पर्वत; पर्वत संबंधी रक्षण; पोषण (३) पाळg ते, पार पार्वती स्त्री० हिमालयनी पुत्री - दुर्गा पाडवं ते (वचन, प्रतिज्ञा इ०) (४) पार्वतीय पुं० पर्वतवासी एक जाति धार काढवी ते (शस्त्रनी) पार्वतीश पुं० शंकर पालनीय वि० रक्षण करवा योग्य (२) पार्वतेय वि० पर्वतमांथी जन्मेलं पाळवा योग्य (वचन इ०) पार्श्व वि० पडखेनुं ; नजीकचें (२) पुं०, पालयित वि० रक्षण करनारु न० बगल नीचेनोपांसळीओवाळो भाग पालि स्त्री० बूट ; अणी (काननी) (२) (३) पड; बाजु (४) नजीकपणुं छेडो; किनार (३) धार (४) हद; पार्श्वग, पार्श्वचर वि० नजीकन ; पडखे सीमा (५) पंक्ति; हार ऊभेलु (२) पुं० नोकर; हरियो पालित वि० रक्षायेल; पोषायेलं (२) पार्वतस् अ० पडखे; नजीकमां पूरुं करायेलु (वचन इ०) पार्श्वद पुं० सेवक; चाकर पाली स्त्री० जुओ ‘पालि' पार्श्ववतिन् वि० पडखे रहेतुं ; नजीकनुं पाल्य वि० जुओ 'पालनीय' (२) सेवा बजावतुं (३)पुं० हजूरियो पावक वि० पवित्र करनारुं; शुद्ध करनारं (४) साथी (२) पुं० अग्नि [अस्त्र पार्श्वस्थ वि० पडखे रहेलं; नजीकनुं पावकास्त्र न० अग्निदेवनी शक्तिवाळू (२) पुं० साथी (३) मददनीश पावन वि० पापमांथी मुक्त करनारुं; पाश्र्वानुचर पुं० नोकर; हरियो शुद्ध करनारं; पवित्र करनारं (२) पाश्र्वायात वि० नजीक आवेलं हवा उपर जीवनाएं पाश्र्वासन्न वि० पडखे ऊभेलु के बेठेलं पावर पुं० बेना अंकवाळी पासानी बाजु पाश्वोपपीडम् अ० पडखां दबाववां (२) ते पासानो दाव पडे ते रीते (हसवू) पावित्र्य न० पवित्रता पार्षत वि० पृषत्' - जातना काबर- पाविन् वि० शुद्ध - पवित्र करनारु चीतरा मृगने लगत पाव्य वि० शुद्ध-पवित्र करवा योग्य 'पार्षद पुं० साथी; सोबती (२)परिजन पाश पुं० बंध; दोरडु; फांसो (२) जाळ - परिवार (देवनो) (३) परिषदमां (पंखी-प्राणी वगेरेने पकडवानी) (३) हाजर सभ्य पासो (४) वरुणना हथियारनुं नाम पाणि पुं०, स्त्री० एडी (२) सैन्यनो (५) (समासने अंते) तिरस्कारपाछळनो भाग (३) कोई पण वस्तुनो तुच्छता बतावे (उदा० 'छात्रपाश'); पाछळनो भाग; पीठ (४) लात; पाटु प्रशंसा दर्शावे (उदा० 'कर्णपाश'); पाणिग्रह न० शत्रुने पूंठेथी दबाववो ते जथ्थो बतावे (उदा० 'केशपाश') पाणिघात पुं० लात [करवो ते पाशजाल न० संसाररूपी जाळ पाणिविग्रह पुं० शत्रुए पूंठेथी हुमलो पाशन न० जाळ ; फांसो Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाशभत् २८३ पितरौ पाशभृत् पुं० वरुण (२) पाश धारण पांग्याः पुं० ब० व. पांडप देश के करनार (योद्धो) तेना रहेवासीओ पाशव वि० पशु संबंधी पांथ पुं० मुसाफर; वटेमाणु पाशहस्त पुं० वरुण (२) यम पशिन वि० जुओ 'पांसन' पाशिन् पुं० वरुण (२) यम (३)पारधी पांशु पुं० जुओ 'पांसु' पाशी स्त्री० दोरडं; बंध पांशुल वि० जुओ 'पांसुल' पाशुपत वि० शिवन; शिव संबंधी (२) पांसन वि० (समासने छेडे) बट्टो के शिवे उपदेशेलु (३) पुं० शिवभक्त कलंक लगाडनाएं (उदा. 'कुलपांसन') पाश्चात्य वि० पाछळन; पछीन (२) (२) मेल करनारुं; बगाडनारुं पश्चिमन ; पश्चिम संबंधी पांसु पुं० धूळ (२) रजोटी पाषक न० पगमां पहेरवानो एक अलंकार पांसुकृत वि. धूळथी छवायेलं पावंड वि० वेदमां न माननारुं; नास्तिक पांसुक्रोडन, पांसुक्रीडा स्त्री० धूळमां (२) पुं० नास्तिक रमवू ते (बाळपणनी अवस्था) पाषाण पुं० पथ्थर पांसुल वि० धूळवाळ; मेलु (२) अपपाषाणशिला स्त्री० सपाट शिला वित्र; कलंकित (३) बट्टो के कलंक पाषाणहृदय पुं० पथ्थर जेवा कठोर लगाडनारं हृदयवाळं; क्रूर पांसुला स्त्री० रजस्वला स्त्री (२) पांचजन्य पुं० श्रीकृष्णनो शंख व्यभिचारिणी स्त्री (३)पृथ्वी पांचभौतिक वि० पंचभूतन बनेलं ; पंच- पिक पुं० कोयल [सुर गणाय छे) भूतवाळं पिकपंचम पुं० कोयलनो स्वर (जे पंचम पांचरात्र न० एक वैष्णव संप्रदाय पिकांग पुं० चातक पक्षी पांचाल वि० पांचालोना देश पिचुम, पिचुमंद पुं० लीमडो पांचालिका स्त्री० ढींगली; पूतळी पिच्छ न० पीछु (२) पीछांवाळ पुच्छ पांचाली स्त्री० द्रोपदी (२)पदरचनानी (मोरनुं) (३) बाण, पींछु चार शैलीमांनी एक (जुओ 'रीति' पिच्छल वि० लपसणं ; लपसी पडाय तेवं पांडर वि० फीकाश पडतुं घोळं पिच्छिका स्त्री० मोरना पीछांनी झंडी पांडव पुं० पांडु राजानो पुत्र (जादुगरो वापरे छे ते) पांडित्य न० पंडिताई; विद्वत्ता (२) पिच्छिल वि० चीकणं; (२) लपसी चालाकी ; कुशळता (३) डहापण पडाय तेवं (३) पीछांवाळं (४) पुं०, पांडिमन् पुं० धोळापणुं; फीकाश न० भातनु ओसामण पांडु वि० पीळाश पडतुं धोळ (२) पुं० पिटक पुं०, न० नेतरनो करंडियो (२) पोळाश पडतो धोळो रंग (३) कमळो लाकडानी पेटी(३)फोल्लो [फोल्ली (रोग) (४)पांडवोना पितानुं नाम पिटका स्त्री० पेटी; टोपली (२) नानी पांडुभाव पुं० फीकुं पडी जवू ते पिठर, पिठरक पुं०, न० तपेलं पांडर वि० फीकाश पडतुं धोळं पिठरी स्त्री० तपेली पांडुरोग पुं० कमळो (रोग) पिण्याक पुं०, न० खोळ पांडुलोह न० रू' पितरः ('पितृ') पुं० ब०व० पितृओ पांड्य पुं० दक्षिणना ते देशनो राजा पितरो ('पितृ')पुं० द्वि०व० मातापिता Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ पितामह पिड पितामह पुं० पितानो पिता (२) ब्रह्मा पिशाच पुं० भूत-प्रेत जेवी एक हीन योनि पितृ पुं० पिता पिशाचिका स्त्री० पिशाचणी पितकानन न० स्मशान [आदि क्रिया । पिशित न० मांस पितकृत्य न०,पितृक्रिया स्त्री० पिंडदान । पिशिताशन, पिशिताशिन् पुं० मांसभक्षी पितक्षय पुं० मृत्युतिथि (पितृनी) - राक्षस ; पिशाच (२) वरु पितृदेव वि०पिताने पूजनाएं। पिशुन वि० चाडियु; चुगलीखोर (२) पितदेवत्य न०पितओने निमित्त करातो चाडी खातुं; जणावतुं; याद करावतुं एक यज्ञ [पितानी मा-दादी (३) क्रूर ; घातकी (४) नीच;अधम पितृप्रसू स्त्री० सायंकाळ ; संध्या (२) । पिशुनयति प० ('दर्शावी दे छे') पितृवन न० स्मशान पिशुनित वि० कही दीधेलं; बतावी पितृव्य पुं० बापनो भाई - काको दीधेलु [करवो पितृसमन् न० स्मशान पिष् ७ प० पीस; दळg (२) नाश पितृस्वसृ स्त्री० फोई पिष्ट ('पिष्'- भू०कृ०) वि० दळेलु; पित्त न० शरीरनी त्रण धातुओमांनी । पीसेलु (२) दबावेलु; कचरेलु (३) एक (कफ-पित्त-वात) न० भूको चूरो;लोट व्यर्थ प्रवृत्ति पित्र्य वि. पिता संबंधी (२) पितृ- पिष्टपेषण न० (लोटने दळवा जेवी) संबंधी (३)पुं० मोटो भाई पिष्टसौरभ न० सुखड; चंदन । पिषा (अपि+धा) ३ उ० बंध करवू; पिष्टात पुं० अबील; सुगंधी चूर्ण ढांक; छुपावQ (२) रुकावट करवी पिष्टोदक न० लोटने पाणीमां ओगाळी पिषातव्य वि० बंध करवा योग्य; करेलं (दूध जेवं) प्रवाही ढांकवा योग्य पिस्पृक्षु वि० स्पर्श करवानी इच्छावाळं पिधान न० जुओ 'अपिधान' पिहित वि० जुओ 'अपिहित' पिनद्ध वि० जुओ 'अपिनद्ध' [ढांकQ पिंग वि० दीवानी ज्योत जेवा रातापिनह ४ उ० बांधवं (२) पहेरवं (३) पीळा रंगनुं पिनाके पुं०, न० शिवनुं धनुष्य पिंगल वि० पीळचटा-बदामी रंगनुं पिनाकधूक, पिनाकपाणि, पिनाकिन् पुं० (२)पुं० बदामी रंग (३)वांदरो(४) शिव ('पिनाक' धनुष्यवाळा) । एक ऋषि (छंदःशास्त्र रचनार) पिपासा स्त्री॰ तरस [तरस्यु पिंगलिमन् पुं० पीळचटो- बदामी रंग पिपासित, पिपासिन् , पिपासु वि० पिंगाक्ष वि. लालाश पडती आंखवाळं पिपील पुं० मकोडो (२)पुं० शिव(३)वानर [तेवो रंग पिपीलिक पुं० कीडी (२) न० एक पिंजर वि. लालाश पडतुं पीळं (२)पुं० जातनुं सोनू (कीडोओए भेगुं करेलु) पिंजरिक न० एक जातनुं वाद्य पिपीलिका स्त्री० कीडी (मादा) पिंजरित वि० पीळचटा- बदामी गर्नु पिप्पल पुं० पीपळो (२) न० तेनुं टेटुं। पिंड वि० धन; नक्कर (२) गोळो पिप्पलि (-ली) स्त्री० लांबी पीपर वाळेलं; पिंडो करेलु (३) पुं०, न० पिप्लु पुं० शरीर उपरनो तल गोळो (४) ढेडु (५) कोळियो (६) पिब वि० पीनारं; पीतुं श्राद्धमां पितओने अपातो भातनोगोळो पियाल पुं० एक झाड (७) अन्न; खोराक (८) आजीविका Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपवो ते पिंडक . २८५ (९) भिक्षा (१०) शरीर (११) ते (उदा. 'करपीडन') (४) ग्रसवू पगनी पिंडी (१२) एकळु गणी-कुल ते; ग्रहण [नुकसान जे थाय ते (१३) ढगलो; समुदाय पीडा स्त्री० व्यथा; दुःख (२) ईजा; पिंडक पुं० फोल्लो पीडाकर वि० दुःखकर; कष्टदायक पिंडद वि० अन्न के आजीविका आपनाएं पीडित ('पीड्'न भूकृ.) वि० पीडा (२) पिंडदान करवानुं अधिकारी। पामेलं (२) दबायेलं; कचरायेलु (३) पिंडदान न० श्राद्ध निमित्ते पितृने पिंड पकडेलु; ग्रहण करेलु (४) ग्रस्त । पीडितम् अ० सखत रीते; दबावीने पिडपात पं० भिक्षा आपवी ते पीत ('पा'- भू० कृ०) वि० पीधेलं पिंडमाज वि० पिंडमां भाग मेळववानुं (२)पाणी पायेलु (३)पीळा रंगनुं अधिकारी (२) पुं० (ब०व०)पितृओ पीतांबर पुं० श्रीकृष्ण (पीळां वस्त्र धारण पिंडालक्तक पुं० एक जातनो लाल रंग करनार) (२)पीळां वस्त्रधारी भिक्षु पिडि स्त्री० पिंडो; गोळो (२)घर पीय पुं० पीj (२)न० पाणी [दार पिंडिका स्त्री० गोळ आकारनो सोजो पीन वि० जाडु; पुष्ट (२)गोळ; भराव (२)पगनी पिंडी (३)गंडस्थळ पीयूष पुं०, न० अमृत (२) दूध पिडित वि० गोळो वाळेलु (२) एकत्रित पीयूषषामन्, पीयूषभानु पुं० चंद्र करेलु पीव, पीवर, पीवस वि० जाडु पिंडी स्त्री० जुओ 'पिंडि' पुच्छ पुं०, न० पूछडु (२)पानी भाग पिंडीशर पुं० कायर; बीकण (घरमां (३) मोरनुं पीछांवाळं पूछडं (४) शूरो के लाडु भागवामां शूरो) कोई पण वस्तुनो अंतभाग पिंडोदकक्रिया स्त्री० पितृओने पिंड, पुट पुं०, न० थर; पड (२) पोलाण; जळ वगेरे अर्पवां ते बखोल (३) पडियो (पांदडांनो) पी४ आ० पीवं (४) एना जेवं जे कंई ते (५) पीठ न० आसन; बेठक (२) दर्भासन आच्छादन; ढांकण (६) पोपचुं (३) देवन आसन(४)कोई पण वस्तुनी (७) पुं० करंडियो; टोपली (८) बेसणी; पडघी (५)प्रांत ; प्रदेश (६) एना जेवो कोई पण आकार (९) न० सिंहासन; राज्यासन औषधने भठ्ठीमां मूकवा माटे बे पात्र पीठक पुं०, न० एक जातनो म्यानो सामसामे जोडी करेली रचना; संपुट पीठग वि आसनेबेसी रहेनारुं (२) अपंग पुटक न० पडियो (२) एना जेवो करेलो पीठमर्द पुं० (नाटकमां)नायकने सहाय खोबो (३) कमळ [कमळ करनार साथी पुटकिनी स्त्री० कमळनो समूह (२) पीठसर्प वि० अपंग; लंगडु पुटपाक पुं० पांदडांमां वींटी कपडछाण पीठिका स्त्री० बेठक (२) बेसणी (३) करी भठ्ठीमां मूकी औषध तैयार पुस्तकनो विभाग करवानी रीत पीड् १० उ० पीड; त्रास आफ्वो (२) पुटभेद पुं० पोपचां उघाडवां ते (२) घेरो घालवो (३) दबाव; पीलवू शहेर (३)एक वाजिंत्र ; आतोद्य' पीडन न० पीडq -दुःख देवं ते (२) पुटभेदन न० शहेर दबावq ते ; कचर, ते (३) पकडवू पुण्य वि० पवित्र (२) पुण्य प्राप्त थाय Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुण्यकीर्ति २८६ पुनर्जन्मन् एवं (३) शुभ ; मांगलिक (४) सुंदर पहोंचतुं; वंशपरंपरा चालतुं (५) न० सत्कर्म (६) तेनुं फळ पुत्रप्रवर पुं० मोटो पुत्र । पुण्यकीति वि० जेनुं नाम लेतां के पुत्रवधू स्त्री० दीकरानी वहु सांभळतां पुण्य थाय तेवं (२) सुप्रसिद्ध पुत्रिका स्त्री० पुत्री (२)ढींगली; पूतळी पुण्यक्षेत्र न० पवित्र भूमि; तीर्थस्थान (३) (समासने अंते) ते ते वर्गनुं नानुं पुण्यगृह न० सदाव्रतनुं स्थान (२)मंदिर जे कंई ते (उदा० 'असिपुत्रिका') पुण्यजन पुं० सदाचारी मनुष्य (२) पुत्रिकाधर्म पुं० पुत्र वगरनो पिता राक्षस (३) यक्ष पोतानी पुत्रीने 'तमारो पुत्र मने मळे' पुण्यजनेश्वर पुं० कुबेर (यक्षोनो स्वामी) ए शरते परणावे ते पुण्यवर्शन वि० सुंदर देखाववाळु (२) पुत्रिणी स्त्री० पुत्रवाळी स्त्री जेना दर्शनथी पुण्य थाय तेवू पुत्रिन् वि० पुत्र के पुत्रोवाळं पुण्यभाज् वि० पुण्यशाळी पुत्री स्त्री० दीकरी पुण्यलक्ष्मीक वि० समृद्ध; वैभवशाळी पुत्री ८ उ० पुत्र तरीके ग्रहण कर, (२) मांगलिक पुत्रीय वि० पुत्र तरफनुं (२)पुत्र संबंधी पुण्यश्लोक वि० जेनुं नाम लीधाथी पुण्य पुत्रेष्टि स्त्री० पुत्र मेळववा करातो यज्ञ थाय तेवू (२) सारी कीर्तिवाळु (३) पुत्री पुं० द्वि०व० पुत्र अने पुत्री पुं० नळ, युधिष्ठिर के जनार्दन (कृष्ण) पुथ् ४ प० हानि करवी; ईजा करवी पुण्यश्लोका स्त्री० सीता (२) द्रौपदी (२) १० उ० दीपq; प्रकाशवं पुण्यानुभाव पुं० प्रसन्न करे तेवो प्रभाव -प्रेरक० नाबूद करवू (२) दबावी पुण्याह न० सुखनो के मांगलिक दिवस देवं (अवाजने) पुण्योदय पुं० संचित पुण्यकर्मोनुं फळ पुद्गल वि० सुंदर (२) पुं० परमाणु मळवानुं शरू थq ते (३) जीवात्मा (४) शरीर (५) भौतिक पदार्थ पुत् न० ते नामनुं नरक पुनर् अ० फरीथी; बीजी वार (२) पुत्तल पुं० पूतळं ऊलटु; विरुद्ध दिशामां (३) परंतु; पुत्तलक पुं०, पुत्तलिका स्त्री० ढींगली छतां (४) वधारामां; उपरांतमां (२) मूर्ति; आकृति पुनरागत वि० पाछु आवेलं पुत्तली स्त्री० पूतळी पुनरागम पुं०, पुनरागमन न० पाछु पुतिका स्त्री० नानी मधमाखी (२) आवq ते; फरीथी आवq ते ऊधई (३) ढींगली पुनरावतिन् वि० पुनर्जन्म पामनाएं पुत्र पुं० दीकरो (२) (समासने छेडे) पुनरावत, पुनरावृत्ति स्त्री० पुनरावर्तन ते ते वर्गनुं नानुं जे कंई ते (उदा० (२) पुनर्जन्म (३) नवी आवृत्ति 'असिपुत्र') पुनरुक्त वि० फरीथी बोलेलं- कहेलं पुत्रक पुं० नानो छोकरो (२) 'बेटा' (२) नकामुं; निरर्थक (३) न० एवो वहालसूचक उद्गार (३) ढींगली फरीथी कहे ते पुत्रका स्त्री० जुओ 'पुत्रिका' पुनरुक्ति स्त्री० फरीथी कहे ते पुत्रकाम्या स्त्री० पुत्रोनी कामना पुनरुपगम पुं० पाछु आवq ते पुत्रकृतक पुं० दत्तक पुत्र पुनर्जन्मन् न० फरी फरी जन्म धारण पुत्रपौत्रीण वि० पुत्रो अने पौत्रो सुषी करवो ते (२) नवो जन्म थवो ते Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुनर्भव पुनर्भव पुं० फरीथी जन्मनुं ते; पुनर्जन्म (२) वाळ (३) नख पुनर्भाव पुं० पुनर्जन्म पुनर्वसु पुं० ते नामनुं सातमुं नक्षत्र पुनववाह पुं० पुनर्लग्न पुनः प्रत्युपकार पुं० उपकारनो बदलो पुनीत वि० साफ करेल; पवित्र करेलु पुन्नामन् वि० 'पुत्' नामनुं (नरक) पुमर्थ (पुंस् + अर्थ ) पुं० पुरुषार्थ; मानव जीवननुं प्रयोजन ( धर्म-अर्थकाम-मोक्ष - ए चारमांनुं एक ) पुर् स्त्री० पुरी नगरी (२) किल्लो पुर वि० श्री भरेलु; पूर्ण (२) न० नगर शहेर ( ३ ) किल्लो; कोट ( ४ ) मकान, घर (५) शरीर ( ६ ) अंत:पुर (७) पुं० एक राक्षस पुरतस् अ० - नी समक्ष ; ती सामे; -नी आगळ (२) पछीथी ( ३ ) पहेला पुरद्वार न० नगरनो दरवाजो पुररिपु पुं० शंकर पुरशासन पुं० विष्णु ( २ ) शिव पुरश्चरण न० होम सहित देवना नामनो जप (२) पूर्व तैयारी रूपे करातो विधि पुरस् अ० ( स्थळ के काळमां ) आगळ; पहेलुं ( २ ) नी सामे; नी समक्ष (३) पूर्व दिशाए पुरस्करण न० आगळ - मोखरे स्थाापीने पूजा-सत्कार करवां ते पुरस्कार पुं० आगळ स्थापवुं ते (२) पसंद करते (३) सत्कार करवो ते (४) पूजा ( ५ ) साथे होवुं ते (६) गोठववुं - तैयार करवुं ते ( ७ ) प्रगट करते (८) हुमलो के आक्षेप करवो ते पुरस्कृ ८ उ० आगळ स्थापवं; आगेवान aaj (२) रजू कर ( ३ ) अतिथिसत्कार करवो (४) स्वीकारखुं ; अनुसरवुं ( ५ ) बहानुं धरनुं ( ६ ) दर्शाववुं पुरस्कृत वि० आगळ-मोखरे स्थापेलं २८७ पुरावृत्त पुरस्क्रिया स्त्री० पूजन-सत्कार करवां ते पुरस्तात् अ० पहेला; आगळ (२) खरे (३) प्रारंभमां (४) पहेलां; अगाउ (५) पूर्व बाजुए (६) पछी पुरंजन पुं० जीवात्मा (२) हरि पुरंदर पुं० इंद्र (२) शिव (३) विष्णु पुरंधि स्त्री० पति-पुत्रवाळी गृहिणी पुरंधिका स्त्री० पत्नी पुरंध्री स्त्री० जुओ 'पुरंधि' पुरःपाक वि० फळ आपवानी तैयारीमां होय एवं पुरः प्रहर्तृ पुं० मोखरे लडनार पुरः फल वि० जेनुं फळ नजीकमां ज - हाथवेंतमां होय तेवुं पुरःसर वि० -नी आगळ जतुं (२) पुं० आगळ जनार ( ३ ) सेवक; दास (४) अग्रेसर; आगेवान ( ५ ) ( समासने अंते ) साथे के आगळ जतुं पुरःसरम् अ० साथे; पछी पुरा अ० अगाउ; पूर्वे (२) अत्यार सुधी; अत्यार आमच ( ३ ) प्रथम तो ( ४ ) थोडा समयमां; ट्रंक वखतमां पुराकल्प पुं० जूनी वात ; भूतकाळनी कथा (२) जूनी सृष्टि; जूनो युग पुराकृत न० पूर्व जन्ममां करेलुं कर्म पुराण वि० प्राचीन जूनुं ( २ ) पुराणुं ; आद्य (३) जीर्ण थयेलु (४) न० प्राचीनकथा; दंतकथा ( ५ ) व्यासे रचेल १८ पुराणग्रंथमानुं दरेक पुराणपुरुष पुं० विष्णु (२) वृद्ध पुरुष पुरातन वि० प्राचीन; पुराणुं (२) जून; जीर्ण (३) पुं० ब० व० प्राचीन पुरुषो (४) न० प्राचीन कथा ( ५ ) पुराण ग्रंथ [ वाळ पुराधिप, पुराध्यक्ष पुं० नगरनो कोटपुराराति, पुरारि पुं० शिव पुराविद् वि० पुरातन वातोनुं जाणकार पुरावृत्त वि० प्राचीन समयने लगतुं (२) न० जूनुं वृत्तांत; इतिहास ; दंतकथा ; Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुरि २८८ पुलोमन् पुरि स्त्री० शहेर (२)नदी [शरीर पुरुहूतद्विष् पुं० इंद्रजित् (रावणनो पुत्र) पुरी स्त्री० नगरी;शहेर(२)किल्लो (३) पुरुरवस् पुं० चंद्रवंशनो स्थापक राजा पुरीष न० विष्टा; मळ पुरोग, पुरोगम वि० आगवान ; अग्रेपुरीषोत्सर्ग पुं० मळत्याग करवो ते । सर; श्रेष्ठ (२) (समासने अंते) पुरु वि० पुष्कळ ; घj(२)पुं० फूलनो -ना नेतृत्व हेठळनु पराग(३)स्वर्ग (४)चंद्रवंशी एक राजा पुरोगामिन् वि० आगळ जनाएं; आगळ (५)एक राक्षस (जेने इंद्रे हण्यो हतो) रहेनाएं (२) आगेवान; अग्रेसर पुरुष पुं० नर; मनुष्य (२) मनुष्य पुरोजव वि० वेगमां चडियातुं (२) जाति (३) आत्मा; जीवात्मा (४) पुं० दास; नोकर परमात्मा (५) बोलनार, सांभळनार पुरोडाश पुं० यज्ञमा होमवानो एक हवि अने ते सिवायनी व्यक्ति के पदार्थ- पुरोषस् पुं० कुळगुरु (राजानो) एत्रण माटे प्रथम, मध्यम अने उत्तम पुरोषा ३ उ० आगळ मूकवू; अग्रेसर 'पुरुष' एवो परिभाषा (व्या०) बनावq (२) पुरोहित बनावq (३) पुरुषक पुं०, न० घोडाए बे पग उपर (पदे) नीम ऊभा थई जवं ते पुरोभक्तका स्त्री० नास्तो; हाजरी पुरुषकार पुं० पुरुषप्रयत्न; उद्यम (२) पुरोभाग वि० डखलियु; घूसणियुं पुरुषपणुं; मरदानगी (२) दोष जोनारु (३) अदेखें (४) पुरुषकेसरिन् पुं० नरसिंह (अवतार) पुं० मोखरो; आगळनो भाग (५) पुरुषत्व न० मरदाई [पुरुष डखल; घूसणियावेडा (६) अदेखाई पुरुषपशु पुं० नरपशु; जानवर जेवो पुरोभागिन् वि० मनस्वी; स्वच्छंदी पुरुषपुंगव पुं० उत्तम पुरुष . (२) घूसणियु ; डखलियु (३) दोष पुरुषबहुमान पुं० माणसजात तरफथी जोनारु (४) अदेखें मळतुं समान [माननाएं । पुरोमारत पुं० सामो पवन पुरुषमानिन् वि० पोताने वीरपुरुष पुरोवर्तिन् वि० -नी समक्ष के आगळ पुरुषर्षभ पुं० उत्तम पुरुष (पुरुषोमां होय तेवं ऋषभ जैवो) पुरोवात पुं० जुओ 'पुरोमारुत' पुरुषव्याघ्र, पुरुषशार्दूल पुं० वीर पुरुष पुरोहित पुं० कुळगुरु; गोर (पुरुषोमां वाघ जेवो) [जेवो) पुलक पुं० रोम; रुवाटुं। पुरुषसिंह पुं० उत्तम पुरुष(पुरुषोमा सिंह पुलकित वि० रोमांचित [थवां ते पुरुषाद् (-द)पुं० राक्षस (मनुष्यभक्षी) पुलकोद्गम पुं० रोमांच ; रुवांटां ऊभां पुरुषाधिकार पुं० पुरुष तरीकेनुं कर्तव्य । पुलाक पुं०, न० तुच्छ धान्य (खाली के (२) पुरुष तरीकेनुं मूल्यांकन अपूर्ण दाणावाळं) (२)भातनो गोळो पुरुषार्थ पुं० मानव जीवननां धर्म-अर्थ पुलिन पुं०, न० भाठ; नदीनो रेतीवाळो काम-मोक्ष -ए चार प्रयोजनमांगें कांठो (२) नदी वच्चे थयेलो बेट प्रत्येक (२) पुरुषप्रयत्न ; उद्यम पुलिंद, पुलिदक पुं० एक जंगली के पुरुषायुष (-स्) न० माणसनुं आयुष्य पहाडी जाति; तेनोमाणस (२)पारधी पुरुषोत्तम पुं० उत्तम पुरुष (२) विष्णु पुलोमजा स्त्री० शची (इंद्राणी) पुरुहूत पुं० इंद्र पुलोमन् पुं० एक राक्षस (इंद्रनोससरो) Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुलोमारि २८९ पुंगव पुलोमारि पुं० इंद्र पुष्पमास पुं० चैत्रमास (२) वसंतऋतु पुष १, ४, ९५० पोषकुं; उछेर, (२) पुष्परजस् न० फूलनी रज; पराग पोषण कर (३)विकसाव; वधार, पुष्परथ पुं० मुसाफरी माटेनो रथ (४)प्राप्त करवु (५)दर्शावर्तु; प्रगट पुष्पराग पु० पोखराज कर, (६)खीलq (७)प्रकाशq पुष्परेणु पु० पराग पुष् वि० पोषतुं (२) व्यक्त करतुं पुष्पलावी स्त्री० माळण पुष्कर न० नील कमळ (२) हाथीनी पुष्पवती स्त्री० रजस्वला स्त्री सूंढनुं टेरवू (३) ढोल उपरनुं चामडं पुष्पवर्ष पु०, पुष्पवर्षण न० फूलोनो (४) तरवार- फळं (५) आकाश; वरसाद विाडी अंतरीक्ष (६)पुं० तळाव; सरोवर (७) पुष्पवाटिका, पुष्पवाटी स्त्री० फूलनी एक जातनं ढोल (८)एक जातनो मेघ । पुष्पवृष्टि स्त्री० फूलनो वरसाद (जे दुकाळ लावे छै) (९)पं०, न० पुष्पवेणी स्त्री० फूलमाळा विश्वना सात महा द्वीपोमांनो एक पुष्पशर, पुष्पशरासन पुं० कामदेव पुष्कराक्ष पुं० विष्णु [आवे छे) पुष्पाकर वि० फूल खूब थतां होय पुष्करावर्तक पुं० एक मेघ(जेनाथी दुकाळ तेवू (वसंतऋतु) पुष्करिणी स्त्री० हाथणी (२) कमळो- पुष्पागम पुं० वसंतऋतु वाळू तळाव (३) तळाव; सरोवर (४) पुष्पाजीव पुं० माळी कमळनी वेल [हाथी पुष्पायुध पुं० कामदेव पुष्करिन् वि० खूब कमळवाळु (२)पुं० पुष्पासव न० मध पुष्कल वि० पुष्कळ ; अति (२) पूर्ण; पुष्पासार पुं० पुष्पोनो वरसाद पूरेपूरु (३) समृद्ध; भव्य ; सुंदर पुष्पांजलि पुं० खोबो भरीने फूल (४) उत्तम ; श्रेष्ठ (अर्पवां ते) पुष्ट ('पुष्' न भू० कृ०) वि० पोषेढुं; पुष्पिणी स्त्री० रजस्वला पोषायेलु (२) जाडु; लठ्ठ; मोटुंभारे पुष्पित वि० फूलवाळं; फूल भरेलु पुष्टांग वि० हृष्टपुष्ट ; जाडं (२)खीलेलं (३) फूल जेवू (वाणी) पुष्टि स्त्री० पोषण; पोषवं ते (२) (४)-थी समृद्ध वृद्धि; समृद्धि (३) हृष्टपुष्टता पुष्पोद्गम पुं० फूल बेसवां ते पुष्टिद वि० पुष्टिकारक पुष्पोद्यान न० फूलवाडी पुष्प ४ प० विकस; खोलवू पुष्य पुं० पोष मास (२) एक नक्षत्र पुष्प न० फूल (२) स्त्री- रज (३) पुस्त न० चोपडवं ते; रंग करवो ते कुबेरनुं विमान (४) पोखराज (२) माटी, लाकडु के धातुमाथी पुष्पक न० फूल (२) कुबेरन विमान __करेली आकृति (३)पोथी; हस्तप्रत पुष्पकेतु, पुष्पचाप, पुष्पषनुस्, पुष्प- पुस्तक न० पोथी; चोपडी धन्वन् पुं० कामदेव पुस्तकर्मन् न० रंग के लेप करवो ते पुष्पधारण पुं० विष्णु पुंख पुं०, न० बाणनो पीछांवाळो छेडो पुष्पध्वज पुं० कामदेव पुंगव पुं० आखलो; सांढ (२) पुष्पपुर न० पाटलिपुत्र नगर (पटना) (समासने अंते) ते ते वर्गमां श्रेष्ठ पुष्पबाण पुं० कामदेव (उदा० 'मुनिपुंगव') Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संबंध पुंज पुंज पुं० ढगलो [ भेगुं दबायेलु पुंजित वि० ढगलो थयेलुं के करेलुं (२) पुंडरीक न० कमळ (२) सफेद कमळ (३) पुं० घोळो रंग (४) दक्षिण-पूर्व दिशानो दिग्गज (५) एक यज्ञ पुंडरीकाक्ष पुं० विष्णु पुंडक पुं० लाल शेरडी (२) तिलक पुंयोग (पुंस् + योग) पुं० पुरुष साथे [ ( व्या० ) पुंलिंग (पुंस् + लिंग) न० नरजाति पुंवत् अ० पुरुष पेठे पुंश्चल पुं० व्यभिचारी पुरुष पुंश्चली स्त्री० व्यभिचारिणी स्त्री पुंस् पुं० नर प्राणी ( २ ) मनुष्य ( ३ ) नरजाति ( व्या० ) (४) एक नरक पुंसवन (पुंस् + सवन) न० सगर्भाने पुत्र जन्मे ते माटे करातो संस्कार (२) गर्भ ( ३ ) ऋतुस्नान पछीनो समय पुंस्कोकिल पुं० नर कोयल पुंस्त्व न० पुरुषपणुं (२) नरजाति पू१, ४ आ०, ९ उ० पवित्र करवुं; शुद्ध कर ( २ ) साफ करवु; ऊपण पू वि० ( समासने अंते ) साफ करनारुं ; पवित्र करनारुं पूग पुं० समूह; ढगलो (२) मंडळ (३) सोपारीनुं झाड (४) न० सोपारी पूगी स्त्री० सोपारीनुं झाड पूगीफल न० सोपारी पूज् १० उ० पूजक वि० पूजन न०, पूजना स्त्री० पूजा करवी ते पूजा स्त्री० पूजन; आराधना; उपासना पूजार्ह वि० पूज्य; मानपात्र पूजासंभार पुं० जुओ 'पूजोपकरण' पूजित ( ' पूज्' नं भू० कृ० ) वि० पूजायेलुं; पूजा करायेलु [ सामग्री पूजोपकरण न० पूजा माटेनी साधनपूज्य वि० पूजवा योग्य पूजवुं ० पूजनाएं २९० पूरुष पूत ('पू' नुं भू० कृ० ) वि० शुद्ध करेल; पवित्र करेलुं (२) ऊपणेलुं (३) सडेलु; गंधातुं पूतक्रतायी स्त्री० शची; इंद्राणी पूतऋतु पुं० इंद्र पूतना स्त्री० एक राक्षसी पूतपाप, पूतपाप्मन् वि० पापमुक्त पूति वि० सडेलु; गंधातुं (२) स्त्री० पवित्रता; शुद्धि ( ३ ) दुर्गंध; बदबो; सडो (४) न० परु पूतिक वि० सडेलुं गंधातुं पूतिका स्त्री० कस्तूरी जेवुं द्रव्य पेदा करनार बिलाडी जेवुं प्राणी ( २ ) सोमवल्लीना अभावे वपराती एक वनस्पति पूतिवक्त्र वि० दुर्गंधी मुखवाळं पूप पुं० पूडो; अपूप पूय् १ उ० गंधावुं (२) भेदवुं ; तोडवु पूय पुं०, न० परु पूर् ४ आ० पूवुं; भरवु (२) खुश करवुं (३) १० उ० भरी काढवुं (४) फूंक ; हवा भरवी (५) ढांक; घेवु (६) संतोष ( कुतूहल इ० ) पूर पुं० भरी काढवुं ते ( २ ) खुश करवं "ते (३) पाणीथी ऊभरावु - छलकावु ते (४) घा भरावो ते (५) नाक वाटे श्वास भरवो ते पूरक वि० भरी काढनुं (२) पूर्ण करनारुं (३) संतोषनाएं (४) पुं० प्राणायाममां डाबे नसकोरेथी श्वास अंदर भरवो ते पूरण वि० पूरनाएं; भरनाएं (२) क्रमवाचक (उदा० द्वितीय, तृतीय ) (३) न० भरी काढवुं ते; पूर्ण करवुं ते पूरिक पुं०, पूरिका स्त्री० पूरणपोळी पूरित ( ' पूर्' नं० भू० कृ० ) वि० भरी पुरुष पुं० जुओ 'पुरुष' Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूरोत्पीड पूरोत्पीड पुं० पूर आवq के ऊभरावं ते पूर्ण ('पू' भू० कृ०) वि० पूरुं; संपूर्ण; भरेलु (२) आखं ; कुल (३) सिद्ध थयेलं (४) समाप्त थयेलं पूर्णक पुं० कूकडो (२) चास पक्षी । पूर्णकाम वि० जेनी कामनाओ पूर्ण थई छे तेई (२) पुं० परमात्मा पूर्णकुंभ पुं० पाणीथी भरेलो घडो (२) युद्धनो एक प्रकार (३) घडाना आकार- भीतमा पाडेलु बाकुं पूर्णपात्र न० पूरो भरेलो प्यालो के घडो (२) २५६ खोबानुं माप (३) उत्सव प्रसंगे के वधामणी अर्थे (वस्त्रो, घरेणां वगेरेथी भरेल) अपातुं पात्र (पेटी के करंडियो) (४) यज्ञने अंते चोखा भरीने अपातुं पात्र पूर्णमानस वि० संतुष्ट पूर्णमास पुं० पूनमने दिवसे करवानो एक यज्ञ (२) चंद्र पूर्णमासी स्त्री० पूनम पूर्णावतार पुं० पूर्ण कळा साथेनो (विष्णुनो चोथो, सातमो के आठमो) अवतार (नृसिंह, राम के श्रीकृष्ण तरीकेनो) पूर्णाहति स्त्री० पूरी कडछी भरीने आहुति (होमनी समाप्ति वखते) पूणि स्त्री० पूर्ण करवू ते; भर ते (२) पूनम पूणिका स्त्री० एक जातनुं पंसी पूर्णिमा, पूर्णिमासी स्त्री० पूनम पूर्णदु पुं० पूनमो चंद्र पूर्त न० वावकूबा, धर्मशाळा वगेरे बंधाववा रूपो पुण्यकर्म (अग्निहोत्रादिथो थतुं ते 'इष्ट') पूति स्त्री० पूर्ण करवं ते (२)तृप्ति पूर्व वि० पहेलं; प्रथम (२) पूर्व । दिशान; पूर्व दिशा तरफन (३)प्राचीन; अगाउनुं (४) प्राचीनकाळथी चालतुं पूर्वपूर्व आवेल (५)शरूआतनुं प्रारंभनु (६) पुं० पूर्वज (७)न० आगळनो भाग पूर्वक वि० (समासने अंते) -जेनी आगळ छे तेवू; - साथy (२) पहेलांनु; अगाउनुं (३) पूर्व; प्रथम (४) पुं० पूर्वज पूर्वकाय पुं० शरीरनो आगळनो भाग (२) माणसना शरीरनो उपरनो भाग पूर्वकालिक, पूर्वकालीन वि० प्राचीन; पहेलांनुं पूर्वक्रिया स्त्री० पूर्वतैयारी पूर्वज वि० पूर्वे जन्मेलु (२)पुं० मोटो भाई (३) पितृ पूर्वजन्मन् न० पहेलांनो जन्म (२) पुं० मोटो भाई पूर्वजा स्त्री० मोटी बहेन पूर्वजाति स्त्री० पूर्वजन्म पूर्वतस् अ० पूर्वमां; पूर्व तरफ (२) आगळ ; नी सामे (३)प्रथम ; पहेलां पूर्वत्र अ० पूर्वे; पहेलां पूर्वदिश स्त्री० पूर्व दिशा पूर्वदिष्ट न० पूर्व कर्मोनू फळ पूर्वदृष्ट वि० प्राचीनोए जणाघेलं पूर्वदेव पुं० असुर (२) पितृ (३) (द्वि० व०) नर अने नारायण पूर्वदेवता स्त्री० पित पूर्वनिविष्ट वि० पू" करेलु पूर्वपक्ष पुं० शुक्ल पक्ष (२) चर्चा के निर्णय माटे कोई शास्त्रीय विषयनी बाबतमा रजू करेलो पक्ष के प्रश्न (३) अदालतमां वादीए रजू करेली वात पूर्वपीठिका स्त्री० उपोद्घात पूर्वपुरुष पुं० ब्रह्मा (२) पिता, पितामह, प्रपितामह ए त्रणमांनो कोई पण (३) पूर्वज [आतमां पूर्वम् अ० अगाउ; पहेलां (२) शरूपूर्वपूर्व वि० एकएकथी पहेलांनुं (२) पुं० (ब० व०) पूर्वजो Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्वबंधु २९२ पचासून पूर्वबंषु पुं० उत्तम के प्रथम मित्र पृ ९५० रक्ष पूर्वभव आगळनो जन्म पृ ६ आ० [प्रियते] काममां रोकावू पूर्वभाव पुं० पूर्वजन्म (मोटे भागे 'व्या' उपसर्ग साथे) पूर्वमीमांसा स्त्री० जैमिनि रचित कर्म- -प्रेरक० कामे लगाडवं; काम सोपवू कांड प्रधान दर्शन ('उत्तर मीमांसा' (२) मूक ; प्रेरवं; नाखवू अर्थात् वेदांतथी जुएं) पृ १० उ० पार लई जवु (२) सामे पूर्वरंग पुं० नाटकनो मंगलाचरणवाळो पार जq; पूरुं करवू (३) शक्तिमान " भाग [जन्मेलो प्रेम थर्बु (४) उद्धार करवो; बचावq पूर्वराग पुं० प्रत्यक्ष भेगा मळ्या पहेलां पृ ५ प० प्रसन्न करवू (२)खुश थवं पूर्वरात्र पुं० रात्रीनो प्रथम भाग पृक्त ('पृच्' न भू००)वि० मिश्रित; पूर्ववयम् वि० जुवान (२)न० जुवानी भळेलं (२) स्पर्शायेल; संबद्ध (३) पूर्ववतिन् वि० पहेलांनु भरेलं; पूर्ण पूर्ववत न० पहेलां बनेलो बनाव (२) पच १५०,१० उ० स्पर्श करवो; संबंधपहेलांचें चरित्र मां आवq (२) विरोध करवो; रुकापूर्व संचित वि० अगाउ एकळु करेल वट करवी (३)२ आ० संबंधमां आवq "(जेमके, आगळना जन्ममां) (४) ७ प० जोड ; संबंध करवो पूर्वसागर पुं० पूर्व समुद्र पच्छक वि० तपास करनारं; पूछनाएं पूर्वगम वि० आगळ - पहेलां जनाएं पृच्छा स्त्री० पूछपरछ (२) प्रश्न पूर्वा स्त्री० पूर्व दिशा (भविष्यने लगतो) पूर्वाचल, पूर्वाद्रि पुं० उदयाचल पर्वत पत् स्त्री० लश्कर; सेना (पहेली पांच पूर्वापर वि० पूर्व- अने पश्चिम- (२) विभक्तिनां रूपो नथी; अने पछी पहेलं अने छेल्लु (३) प्रारंभर्नु अने 'पतना' शब्दने बदले द्वितीया द्वि० पछीन (४) न० पहेलां जे होय ते अने व० पछी विकल्पे उमेराय छे) पछी जे होय ते पृतना स्त्री० सेना (२) युद्ध पूर्वार्ष पुं०, न० प्रथमनो अर्थो भाग (२) पृथक् अ० जुएं जुएं; छूटुं छूटुं (२) शरीरनो उपरनो भाग भिन्न होय तेम (३) एक बाजुए; पूर्वाल पुं० बपोरनी पहेलांनो भाग अलग (४) सिवाय ; विना पूविक वि० पहेलांन; अगाउनु पृथक्करण न०, पृथक्रिया स्त्री० घटक पूर्वेतर वि० पश्चिमन तत्त्वो जुदां पाडवां ते [भिन्न) पूर्वेस अ० आगले दिवसे; गई काले पृथगात्मन् पुं० जीवात्मा ('परमात्मा'थी (२)दिवसना प्रारंभमां; सवारे । पृथग्जन पुं० असंस्कारी माणस (२) पूर्वोक्त, पूर्वोदित वि० आगळ कहेलं मूर्ख ; अज्ञ (३) दुष्ट ; पापी पूष पुं० पोष महिनो पृथग्विध वि० विविध प्रकारन पूषन् पुं० सूर्य पृथवी स्त्री० पृथ्वी पूषात्मज पुं० इंद्र (२) मेघ (३) कर्णन पथा स्त्री० कुंती पूषानुज पुं० वरसाद पृथाज, पृथातनय, पृथासुत, पृथासूनु प३५० पूर्ण कर (२)-मांथी बहार पुं० कुंतीना (युधिष्ठिर, भीम अने काढ; बचाव; रक्षण करवू (३) अर्जुन ए) पुत्रोमांनो दरेक (मुख्यत्वे पाळg; वृद्धिंगत करवू अर्जुन माटे वपराय छे) [नाम Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथिवी २९३ पेशी पृथिवी स्त्री पृथ्वी ; धरती (२)पृथ्वी पृष्ठग वि० पीठ पर सवारी करी होय तेवू तत्त्व (महाभूत) [राजा पृष्ठगामिन् वि० जुओ 'पृष्ठानुग' पृथिवीक्षित,पृथिवीपाल,पृथिवीभुज पुं० पृष्ठगोप पुं० लडता योद्धानी पूंठ पृथिवीभत् पुं० पर्वत साचवनार योद्धो पथिवीरह पुं० वृक्ष पृष्ठतस् अ० पाछळयी (२)पूंठे पूंठे (३) पृथिवीश पुं० राजा पीठ उपर (४)पीठ पाछळ ; गुप्त रीते पृथु वि० विशाळ; मोटुं; पहोळ (२) पृष्ठतः कृ ८ उ० पाछळ छोडवू ; तजवू पुष्कळ ; घY (३) मोटुं पृष्ठपीठी स्त्री० पहोळी पीठ पृथुक पुं०, न० पौंआ (२) पुं० बाळक पृष्ठभूमि स्त्री० मकाननो उपलो माळ पथकीति वि० विशाळ ख्यातिवाळू पृष्ठमांस न० पीठ उपरनुं मांस (२) पृथुजघन, पृथुनितंब वि० विशाळ के बाकीचें- छेवट, मांस मोटा नितंबवाळू [वाळू पृष्ठलग्न वि० पूंठे लागेलं ; अनुसरतुं पृथुप्रथ, पृथुयशस् वि० विशाळ ख्यातिपृथुल वि० मोटु; विशाळ पृष्ठवंश पुं० पीठ- हाडकुं पृष्ठानुग वि० अनुसरतुं; पूंठे आवतुं पृथुधी वि० अति समृद्ध पृथ्वी स्त्री० धरती; धरणी (२)पृथ्वी पृष्ठच पुं० भार वहन करनार घोडो पष्णि स्त्री० पगनी एडी; पानी तत्त्व (महाभूत) पृ ३, ९ प० पूर्ण करवं (२) संतुष्ट पृथ्वीपर पुं० पर्वत करवू (आशा, इच्छा) (३) पवन पृथ्वीपति पुं० राजा भरवो-- फूक (शंख, वांसळी) (४) पुश्नि वि० काबरचीतरुं (२) स्त्री० पृथ्वी (३) देवकी (कृष्णनी माता) तृप्त करवु (५) पोषq पश्निगर्भ पुं० श्रीकृष्ण पेचक पुं० घुवड पेट पुं० टोपली; पेटी (२)समुदाय (३) पश्निधर पुं० विष्णु ; श्रीकृष्ण पृष् १ आ० छांटवू; सींचq परिजनपरिवार - [समूह; जथो पृषत् वि० टपकांवाळ; काबरचीत पेटक पुं०, न० टोपली; डबो; पेटी (२) (२) पुं० काबरचीतरो मृग (३) न० पेटिका, पेटी स्त्री० करंडियो; पेटी टीपुं; बिंदु (ब०व०) [बिंदु पेट्टाल, पेट्टालक पुं०, न० पेटी; करंडियो पृषत पुं० काबरचीतरो मृग (२) पाणीनुं पेय वि० पीवा योग्य (२) न० पाणी पृषतांपति पुं० पवन; वायु (३) दूध (४) मद्य इ० पीj पृषक पुं० बाण (२) गोळ टपकुं पेया स्त्री० चोखानी कांजी पष्ट ('पृष्' अथवा 'प्रच्छ्' ०००) पेरा स्त्री० एक वाद्य वि० पूछेलु (२) छांटेलु (३) न० प्रश्न पेलव वि० नाजुक ; कोमळ (२) पातळू पष्ठ न० पीठ; पाछळनो भाग (२) पेला स्त्री० एक वाद्य कोई जानवरनी पीठ (३) उपरतुं पेलिन् पुं० घोडो तळ- सपाटी (४) पाछळनी के बीजी पेशल वि० पोचु ; नरम ; नाजुक (२) बाजु (५) घरनु सपाट छापरु (६) पातळु; नानु (केड) (३) सुंदर; चोपडीतुं पान (७) शेष रहेलं ते मनोहर (४) कुशळ ; निपुण (५) पृष्ठके कृ ८ उ० मुलतवी राखq (२) चालाक (६) शणगारेलु तजी देवं पेशि (-शी) स्त्री० मांसनो टुकडो के Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेव 'पौरोहित्य २९४ मोळो (२) स्नायुपेशी (३) एक । पोषध पुं० उपवासनो दिवस वाद्य (४) ढांकण ; म्यान पोषित , पोष्ट्र वि० पोषण करनारु पेव पुं० दळवू ते; कचरवू ते पोष्य वि० पोषवा योग्य पेषणि(-णो) स्त्री० घंटी इ० दळवा - पौगंड न० (५ थी १६ वर्षनी उमर वाटवानुं साधन सुधीनी) किशोर अवस्था पेषल, पेस - वि० जुओं 'पेशल' पौत्र ५० पुत्रनो पुत्र पैडर वि० (पिठर) तपेलोमां रांधेलु पौत्रिक वि० पुत्र संबंधी के पौत्र संबंधी पैतामह वि० दादा (पिताना पिता) पौनरुक्त (-क्त्य) न० वारंवार कहेQ संबंधो (२)ब्रह्मा संबंधी [संबंधी ते (२) वधारान - नका, होवु ते । पैतृक वि० पिता संबंधी(२)पूर्वज-पितृ पौर वि० शहेरने लगतुं(२)शहेरमां बनेलं पैप्पल वि० पीपळाना लाकडानुं (३) पुं० नागरिक ; शहेरी [काज पेशल्य न० कोमळता (२) कुशळता पौरकार्य न० राजकाज; जाहेर कामपैशाच वि० पिशाच संबंधी (२) पुं० पौरजन पुं० नगरवासी (२) नागरिको पिशाच (३) आठ विवाहना प्रकारो- पौरजानपदाः पुं० ब०व० शहेरना तेम मांनो छेल्लो प्रकार (जेमां ऊंघेली ज गामडाना लोको के बेहोश एपो कन्याने भ्रष्ट करे छे) पौरमुख्य पुं० शहेरनो मुख्य माणस; पैशन(-न्य) न० चाडियापणुं [रंग मुख्य नागरिक । पंगल्य न० पिंगळो(लालाश पडतो पीळो)। पौरलोक पुं० जुओ 'पौरजन' पोगंड वि० जुवान (५थी १६ वर्षमुं) पौरव वि० पुरु राजानो वंशज पोटा स्त्री० पुरुषना लक्षगवाळी स्त्री पौरवद्ध पं० जओ 'पौरमख्य' प्रथम (दाढी-मूछना वाळवाळी) पौरस्त्य वि० पूर्व दिशानुं (२) आगळy; पोट्टलिका, पोट्टली स्त्री० पोटली पौरंध्र वि० स्त्री संबंधी; स्त्रीन पोत पुं० कोई पण प्राणीन बच्चु (२) पौराणिक वि० प्राचीन काळk; पुराणु दश वर्षनो हाथी (३) नाव; वहाण (२) पुराण संबंधी (३) पुराण(४) नानो छोड [छोड जाणकार पोतक पुं० प्राणीनुं बच्चु (२) नानो पौरांगना स्त्री० शहेरी स्त्री पोतभंग पुं० वहाण भागवू के डूबते । पौरुष वि० पुरुष संबंधी (२) मरपोतवणिज पुं० वहाणवटुं करतो वेपारी दानगीभर्यु (३) न० पुरुषप्रयत्न; पोत्र न० डुक्कर- अणिया नाक (२) उद्योग (४) वीरता; सामर्थ्य (५) वहाण (३) हळपूणी आंगळीओ अने हाथ ऊंचा करी पोय पुं० प्रहार पुरुष ऊभो रहे तेटलं माप . पोयकी स्त्री० आंख उपर थती आंजणी पौरुषेय वि० पुरुषर्नु; पुरुषे रचेलं पोथित ('पुथ' नुं भू० कृ०)वि० नाश (२) मरदानगीभयं करेल; वध करेलु पौरुष्य न० पुरुषपणुं; मर्दाई पोप्लयमान वि० तरतुं - तणातुं आवतुं पौराहूत वि० इंद्र संबंधी; इंद्रनुं पोलिका स्त्री० पूरी; पोळी पौरोभाग्य न० दोष काढवा ते (२) पोषक पुं० पोषण करनार मत्सर; अदेखाई (३)दुष्ट कर्म पोषण न० पोषq ते पौरोहित्य न० पुरोहितपणुं; गोरपदं Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाणमास २९५ प्रकार पौर्णमास वि० पूनमने लगतुं (२) प्रकथ् १० उ० जाहेर करवू; जणावq पुं० ते दिवसे करातो विधि प्रकर पुं० ढगलो; समूह (२)झूमखं; पौत, पौतिक वि० (वावकूवा इ० गुच्छो (३) सहाय (४) धोवं ते बनाववा रूपी) पुण्यकर्म संबंधी प्रकरण न० प्रसंग; विषय (२) ग्रंथनो पौर्व,पौर्वक वि० पूर्वन ; भूतकाळy (२) विभाग; अध्याय (३)कोई पण बाबत पूर्व दिशा संबंधी (३) परंपरागत उपरनो संपूर्ण व्यवहार-मामलो (४) पौर्वदेहिक, पौर्वदैहिक वि० पूर्व प्रस्तावना (५) कशुं करवानुं खास जन्मने लगतुं; पूर्व जन्ममां करेलु विधान करतुं वचन (६) कविकल्पित पौर्वापर्य न० पूर्वापर होवापणुं; क्रम वस्तुवाळं दशअंकी नाटक पौर्वाहिक वि० पूर्वाह्लने लगतुं प्रकरी स्त्री० पछीना भागने समजाववा पौविक वि० आगळy; पहेलांनुं (२) दाखल करेली उपकथा (नाटय०) पूर्वजोनू (३) प्राचीन प्रकर्ष पुं० श्रेष्ठता; उत्कर्ष (२)आधिपौलस्त्य पुं० रावण (२) कुबेर क्य; तीव्रता (३) बळ ; शक्ति (४) पौलोम पुं० इंद्र (पौलोमीनो पति) लंबाई (५) आत्यंतिकता पौलोमी स्त्री० शची; इंद्राणी (पुलोमा प्रकल् १० उ० अनुसर; पाछळ जवू राक्षसनी पुत्री) (२) प्रेर, (३) ईजा करवी पौषध पुं० उपवासनो दिवस प्रकल्पित वि० रचेलं (२)निश्चित करेलू पौषी स्त्री० पोष महिनानी पूनम (३) आणेलु के रेडेल (आंसु) प्रकंप १ आ० कंपवू; भ्रूजवू पौष्कर वि० नील कमळ संबंधी पौष्टिक वि० पुष्टिकारक प्रकंप पु० धूजवू- कंपवू ते (२)तीव्र कंप के ध्रुजारो पौष्प वि० फूलन; फूल संबंधी पाँडरीक वि० कमळनुं बनावेलु; कमळ प्रकंपन वि० कंपावनाएं; ध्रुजावनाएं (२) पुं० पवन; वंटोळ (३) न० संबंधी [शंखनुं नाम (३)तिलक जोरदार आंचको के कंप पौड़ पुं० एक देशनु नाम (२) भीमना प्रकाम वि० कामुक; विषयी (२) पोस्न वि० पुरुषने योग्य (२) मरदानगी अत्यंत; घj; इच्छा मुजबर्नु वाळ (३) न० मरदाई; पुरुषपणुं प्रकामतः अ० मरजी मुजब (२) राजीप्ये १ आ० वृद्धि थवी; वधq। खशीथी खानाएं प्र अ० धातुओनी पूर्वे 'आगळ', 'दूर' प्रकामभुज वि० घराई जवाय त्यां सुधी ए अर्थमां वपराय (२) विशेषणोनी प्रकामम् अ० घणुं; अत्यंत होय तेम (२) पूर्वे 'अतिशय', 'पुष्कळ' -ए अर्थमां ययेष्टपणे (३)मरजीयी; इच्छाथी वपराय (३) नामोनी पूर्वे 'आरंभ', प्रकार पुं० भेद ;जात (२)रीत; तरेह 'लंबाई', 'ताकात', 'अधिकता', 'तीव्र प्रकालन वि० नाश करनारु(२)पाछळ ता', 'संभव - मूळ', 'पूर्णता', 'वियोग', पडतुं ; पीछो पकडतुं (३)न० संहार 'उत्कर्ष', 'इच्छा', 'भक्ति', 'विराम' प्रकाश् १ आ० प्रकाशवं (२) देखावू; -ए अर्थमां वपराय [नजरे पडे तेवू नजरे पडवू (३) -ना जेवू देखावं प्रकट वि० खुल्लु; स्पष्ट ; जाहेर (२) -प्रेरक० देखाडवू; प्रगट करवू (२) प्रकटम् अ० स्पष्ट ; खुल्लं; जाहेरमां खुल्लू करवू (३) जाहेर करवू; जणाप्रकटयति प० (दर्शावq; प्रगट कर) वq (४)प्रकाशित-तेजवाळं कर Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jiitilhlien प्रकाश २९६ प्रकाश वि० तेजस्वी; चळकतुं (२) प्रकीर्ति स्त्री० प्रशंसा; कीर्ति (२) स्पष्ट ; देखी शकाय तेवू; प्रगट (३) प्रख्याति (३) जाहेरात प्रसिद्ध (४) जाहेर (५) झाड वगेरे प्रकीर्तित वि० जाहेर करेल (२) वखाणेल विनानुं - चोख्खं (६) खीलेलं (७) प्रकुप् ४ प० गुस्से थवं ; चिडावं (२) (समासने अंते) -ना जेवू देखातुं ; -ने वधq; तीव्र थवं मळतुं आवतुं (८) पुं० तेज; कांति; प्रकृ८ उ० करवं; आरंभ, (२) सिद्ध चळकाट (९) (ग्रंथनामने अंते) करवू; अमलमां मूकवू (३) हुमलो विवरण ; खुलासो (१०) तडको (११) करवो; बळात्कार करवो (४) संमाकीर्ति ; प्रसिद्धि (१२) खुल्ली जगा नवं; पूजq (५) उच्चारवु (६)आगळ (१३) ज्ञान मूकवू; प्रथम उल्लेख करवो (७) प्रकाशक वि० प्रकाश आपतुं (२) प्रगट नीमवं(८)प्रकार - विभाग पाडवा करतुं; देखाडतुं; खुल्लु करतु (३) प्रकृत वि० संपूर्ण थयेलं; पूर्ण करेलु (२) खुलासो करतुं; विवरण करतुं शरू करेलु; आरंभेलु (३) नीमेलं प्रकाशनारी स्त्री० वेश्या; गणिका (४) साचं ; स्वाभाविक (५)प्रस्तुत; प्रकाशम् अ० जाहेरमां; खुल्ली रीते जेनी वात चालु होय तेवू (६) न० (२) मोटेथी; बधा सांभळे तेम मूळ वस्तु; उपाडेली- चालु वात । ('आत्मगतम् ' थी ऊलटुं) प्रकृति स्त्री० कोई पण वस्तुनं कुदरती प्रकाशात्मक वि० प्रकाशतं; तेजस्वी स्वाभाविक रूप (तेथी ऊलटुं 'विकृति') प्रकाशात्मन् वि० तेजस्वी (२) मुं० (२) स्वभाव; मिजाज (३) मूळ; सूर्य (३) विष्णु (४) शिव वंश; मूळ कारण(४)जड पदार्थोचें मूळ प्रकाशिन् वि० चळकतुं ; तेजस्वी ; स्पष्ट कारण (सांख्य०)(५) ब० व० राजानो प्रकाशे अ० जाहेरमा (२) प्रगट (३) अमात्य वर्ग (६) राजानो प्रजावर्ग -नी हाजरीमा प्रकृतिकल्याण वि० कुदरती रीते सुंदर प्रकाशेतर वि० अदृश्य प्रकृतिकृपण वि० समजवामां स्वभावथी प्रकाश्य वि० प्रगट करवा योग्य ; प्रकाश- ___ ज धीमुं के अशक्तिमान वा योग्य (२) न० प्रकाश प्रकृतितरल वि० स्वभावथी ज चंचळ प्रकांड पुं०, न० मूळयी शाखा सुधीनो प्रकृतिपुरुष पुं० प्रधान; राजपुरुष थडनो भाग (२)शाखा; फणगो (३) प्रकृतिमत् वि० कुदरती; सामान्य (२) (समासने अंते)ते ते वर्गर्नु श्रेष्ठ होय ते __ सात्त्विक वृत्तिवाळु [प्रजावर्ग (उदा० क्षत्रप्रकांड') (४) पु० बाहुनो प्रकृतिमंडल न० आखं राज्य ; आखो उपरनो भाग प्रकृतिसिद्ध वि० कुदरती; स्वाभाविक प्रकीर्ण वि० वेरायेलुं - वेरेलु ; विखेरा- प्रकृतिसुभग वि० कुदरती रीते ज संदर येलु (२) जाहेर करेलु (३) फरफरतुं प्रकृतिस्थ वि०मूळ स्वाभाविक स्थितिमां (४) गूंचवायेलं; अव्यवस्थित (५) रहेल के आवेल (२) सहज ; कुदरती मिश्रित (६) नष्ट (७) गाढ लेपायेलं (३) नीरोगी; रोगमुक्त थयेलु (४) (८) न० परचूरण-मिश्र एवं ते नग्न; खुल्ल प्रकीर्णक पुं०, न० चमरी; चामर (२) प्रकृत्यमित्र पुं० सामान्यपणे शत्रु होय ते न० परचूरण बाबतोनो संग्रह प्रकृष् १ प० खेंची जq; खेंचवू (२) Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकृष्ट (३) वाळ (धनुष्य ) (४) वघवुं (५) पीडवुं; पजवबं प्रकृष्ट वि० खेंचेलं (२) लंबावेलु ; लांबु (३) श्रेष्ठ; चडियातुं; उत्तम ( ४ ) मुख्य ( ५ ) तीव्र ; अतिशय ( ६ ) त्रस्त प्रकु ६ ० [ प्रकिरति ] वेरवु; विखेखं (२) वाव (बीज) (३) फटी नीकळव - कर्मणि० अलोप थवुं प्रकृत् १० उ० [प्रकीर्तयति - ते ] जाहेर कर (२) वखाण प्रक्लप १ आ० [ प्रकल्पते] - अनुकूल होवूं (२) बनवु थवुं ( ३ ) सफळ थवं - प्रेरक ० शोधी काढवु; योजवुं ( २ ) सुसज्ज करवु; तैयार करवुं ( ३ ) नक्की. करवु; स्थापवुं (४) आगळ वधावु (५) बांध प्रक्लृप्त वि० तैयार - सज्ज करेलु प्रकोप पुं० गुस्सो; क्रोध ( २ ) उत्तेजना ; उश्रणी (३) बळवो प्रकोष्ठ, प्रकोष्ठक पुं० कोणीनी नीचेनो कांडा सुधीनो हाथनो भाग ( २ ) महेलना दरवाजानी पासेनो ओरडो (३) चोक प्रक्रम् १ उ० [ प्रक्रामति, प्रक्रमते ] आगळ जनुं - चालवु (२) कूच करवी ; ऊपडवुं (३) चाल्या जवुं (४) आ० आरंभ वुं (५) माथे लेवुं ; हाथमा लेवुं ( ६ ) - नी प्रत्ये वर्तव प्रक्रम पुं० डगलुं; पगलं ( २ ) प्रारंभ (३) आगळ वधवुं ते (४) क्रम; व्यवस्था; रीत; पद्धति प्रक्रमण न० आगळ डगलं भरवु के वधवुं ते (२) आरंभ प्रक्रांत वि० गयेलं; गत ( २ ) आरंभेलं (३) हाथमा लीघेलु प्रस्तुत ( ४ ) पूर्वोक्त (५) आगळ गये लुं प्रक्रिया स्त्री० कार्यपद्धति; विधि; अनुष्ठान ( ३ ) प्रकरण; रीत (२) खंड २९७ प्रगम प्रक्लिन्न वि० घणुं ज भीनुं (२) तृप्त (३) दयार्द्र बनेल प्रक्लेद पुं० भीनाश प्रक्लेदन वि० भीतुं करनाहं प्रक्षत् १० उ० भूसी काढवु धो; साफ करवुं (२) [ करवुं ते प्रक्षालन न० धोई नाखबुं ते; साफ प्रक्षालित वि० धोयेलु; साफ करेलु प्रक्षि ५, ९प० क्षीण थवं; कृश थवुं ( २ ) नाश करवुं ; ईजा करवी प्रक्षिप् ६ प० फेंकवं; फेंकी देव (२) दाखल करवुं - उमेरवु प्रक्षिप्त वि० फेंकेलु; -मां नाखेलुं ( २ ) —मां दाखल करेलुं – उमेरेलुं प्रक्षुण्ण वि० कचरी नाखेल प्रक्षुद् ७ उ० कचरवुं [ उमेरवुं ते प्रक्षेप पुं० फेंकवु - नाखवं ते ( २ ) प्रक्षोभ पुं०, प्रक्षोभण न० क्षुब्ध करवुं ते प्रक्ष्वेडित वि० गर्जना करतु; घोंघाट करतुं (२) न० गर्जना ; घोंघाट प्रखर वि० तीव्र ( २ ) अति तीक्ष्ण प्रख्य वि० स्पष्ट नजरे पडतुं (२) ( समासने छेडे ) - ना जेवुं देखातुं प्रख्या २ प० जाहेर करवुं ( २ ) वखाणव प्रख्या स्त्री० प्रसिद्धि; विख्याति ( २ ) रूप; देखाव (३) शोभा; कांति (४) सादृश्य प्रख्यात वि० विख्यात; प्रख्याति स्त्री० प्रसिद्धि; स्तुति प्रशंसा ; प्रसिद्ध ख्याति ( २ ) प्रख्यापन न० जाहेर करवुं ते; जणाववुं ते प्रगत वि० आगळ गयेलं ( २ ) भिन्न प्रगदित वि० स्पष्ट कहेवायेल (२) बोलतुं प्रगम् १प० [ प्रगच्छति ] आगळ वधवुं (२) जवा नीकळवुं (३) पहोंचव प्राप्त कर प्रगम पुं० प्रणय थतां स्त्रीने रीझववानी पोता थकी कराती शरुआत Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८ प्रगल्भ प्रचि प्रगल्भ १ आ० हिंमत करवी; शक्तिमान प्रघट १ आ० मग्न थ; व्याप्त थवं थएँ (२) निश्चय करवो (३) धृष्टता (२) शरू कर करवी; तत्पर थq प्रचक्ष २ आ० कहे; बोलवू (२) प्रगल्भ वि० शूरवीर (२) हिंमतवान; गणवू; मानवं [जथो धृष्ट (३)परिपक्व (४)विकसित (५) प्रचय पुं० चूंट-वीणq ते (२) समूह; कुशळ (६) उद्धत ; बेशरम प्रचर् १५० विचर; फरवू ; भटकवू प्रगल्भता स्त्री० धृष्टता; निर्लज्जता (२) प्रगट थq; देखावं (३) प्रचार (२) उत्साह (३) संकोच न होवो पामवं; फेला (४) कामे लागवं; ते (४) प्रतिभायुक्त होवु ते । माथे लेवं प्रगंडी स्त्री० शहेरनी फरतो कोट प्रचल् १५० ऊछळवू; कंपq (२)जवा प्रगाढ वि० -मां डूबेलु; अंदर ऊतरेलु नीकळवं (३) कुदको मारवो (४) (२) अतिशय (३) दृढ (४) कठण विचलित-क्षुब्ध थq (५) प्रचारमां (५) घणुं आगळ दधेलु (६) न० आवळू (६)-माथी चलित थq मुश्केली; कष्ट प्रचल वि० हालतुं; कंप; अस्थिर (२) प्रगात पुं० गयो [गीत प्रचलित ; प्रचारमा आवेलु प्रगीत वि० गायेलं (२) गानाएं (३)न० प्रचलन न० धूज-कंपवू ते (२)पार्छ प्रगुण वि० सरळ ; सीg;प्रमाणिक (२) __ भागवू ते (३)प्रचलित होवू के थर्बु ते उत्तम गुणोवाळ (३) लायकातवाळू; प्रचला स्त्री० काचिंडो; सरडो सद्गुणी (४) चतुर; होशियार [ते। प्रचलाकिन् पुं० मोर प्रगुणन न० सुव्यवस्थित करवू ते गोठवq प्रचलित वि० कंपेलं; हालेलं ; गतिमान प्रगुणीकृ ८ उ० व्यवस्थित करवं (२) (२) आमतेम फरतुं (३) भटकतुं सरखं करवू; अनुकूळ करवू (३) । (४) जवा नीकळेलु (५) प्रचारमा उछेरवू; पोषवं आवेलं; रूढ प्रगे अ० वहेली सवारे प्रचंड वि० अति उग्र (२) बळवान; प्रगेतन वि० सवारे करवानें प्रतापी (३) अति उष्ण (४) भयंकर प्रगेनिश, प्रमेशप वि० सवारे सूई रहेनाएं (५) असह्य (६) धृष्ट ; हिंमतवान प्रग्रह, ९ उ० [प्रगृह्णाति, प्रगृह्णीते] प्रचंडसूर्य वि० सूर्य बहु तपतो होय ग्रहण करवू; पकडq (२) विग्रह । तेवु (ऋतु) करवो (३) अनुग्रह करवो प्रचाय पुं० जुओ 'प्रचय' प्रग्रह वि० आगळ धर्यु होय तेवू (२) प्रचार पुं० विचरवं ते ; भटकवू ते (२) पकडतुं; लेतुं (३) पुं० ग्रहण कर प्रगट थर्बु ते ; देखावं ते (३) उपयोगमां ते; पकडवं ते (४) लगाम (५) होवू ते; प्रचलित होते (४)वर्तन; चाब्रुक (६) अंकुश; काबू (७) केद वर्तणूक (५) रूढि (६) चरवानी (८) अनुग्रह ; कृपा (९) संग्रह (१०) जगा; चरो (७) मार्ग; रस्तो (८) जोडq ते (हाथ) संचार; प्रवृत्ति (९) जाहेरात ; ढंढेरो प्रग्रहिन् वि० हाथमां लगाम पकडनारुं । प्रचालन न० हलावधू - डखोळ ते प्रवाह पुं० पकडवं ते (२)धारण करवं प्रचि ५ उ० भेगु करवू; एकळु कर ते (३)त्राजवानी दोरी (४)लगाम (२)उमेर; वधार, (३) कापी नांखq Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९९ प्रचद् -कर्मणि० मोटुं थवू; जाडं थQ (२) समृद्ध थq; वध [करवं प्रबुद् १० उ० प्रेरवुधकेलq (२)जाहेर प्रचुर वि० घj; पुष्कळ (२) मोटुं; विशाळ (३) (समासने अंते) -थी भरपूर - पूर्ण प्रचेतस् पुं० वरुण (२)एक प्राचीन ऋषि प्रचोदित वि० प्रेरेलं; उत्तेजेलु (२) विधान के आज्ञा करेलु (३) मोकलेलं प्रच्छ् ६ प० [पृच्छति ] पूछg प्रच्छद् १० उ० ढांक (२) संताडवू प्रच्छद पुं० ढांकण; ओछाड; चादर प्रच्छन्न वि० ढंकायेलं; छवायेलु (२) गुप्त; छानुं [काढवू ते प्रच्छर्दन न० वमन करवं ते (२) बहार प्रच्छादन न० ढांक ते; छुपावq ते (२) उत्तरीय वस्त्र [(२) छुपावेल प्रच्छादित वि० ढांकेलं आच्छादन करेलु प्रच्छाय न० गाढ छायावाळं स्थान प्रच्छिल वि० सूकुं; निर्जळ प्रच्यावित वि० हांकी काढेल प्रच्यु १ आ० दूर जवं; जता रहे (२) जु, पडवू; खरी पडवू ; नीचे पडवू (३)तजी देवू (धर्म) (४)-थी रहित बनवू; विनाना बनवू (५) झमवू; वहेवू (६) हांकg ; धकेलq प्रच्युत वि० खरी पडेलं (२) च्युत __थयेल; भ्रष्ट थयेल (३) हांकी काढेलं प्रजन् ४ आ० [प्रजायते] जन्म ; उत्पन्न थवं (२) ऊग (३) जन्म आपबो; उत्पन्न कर प्रजन पुं० पेदा करनार; जन्म आपनार (२) गर्भाधान करवं ते (३) पेदा करवं ते ; जन्म आपवो ते । प्रजनन न० उत्पन्न कर ते; गर्भाधान; प्रसूति (२)संतति (३) जननेंद्रिय प्रजनिष्णु वि० उत्पन्न करनारुं (२) वधनाएं; ऊगनाएं प्रशापित प्रजल्प १ प० बोलवू; कहे (२) __ जाहेर करवू (३) बबडवू; बहु बोलवू प्रजल्प पुं०, प्रजल्पन, प्रजल्पित न० नकामो बडबडाट (२) वातचीत. प्रजवन, प्रजविन वि०वेगील;झडपी (२) पुं० कासद [(४)लोको; रैयत प्रजा स्त्री० उत्पत्ति(२)संतति (३)प्राणी प्रजागर पुं० जागरण; उजागरो (२) सावचेती; जागृति [रहेवू प्रजाग २ प० तपास राखवी (२)जागता प्रजात वि० उत्पन्न थयेलं; जन्मेलु प्रजातंतु पुं० वंश; संतति । प्रजाति स्त्री० प्रजोत्पादन (२) प्रसूति प्रजानाथ पुं० राजा (२) ब्रह्मा प्रजानिषेक पुं० गर्भाधान (२) संतति प्रजापति पुं० ब्रह्मा प्रजायिन् वि० जन्म आपनाएं प्रजावत् वि० संततिवाळं ; प्रजावाळं प्रजावती स्त्री० भाईनी वह ; मोटाभाई नी वहु (२) संतानवाळी स्त्री प्रजासृज् पुं० ब्रह्मा प्रजातक पुं० यम [उघाडवू प्रजुंभ १ आ० बगासु खावं (२) मों प्रजेश, प्रजेश्वर पुं० राजा प्रज्ञ वि० शाणुं; बुद्धिमान; डाहथु (२) (समासने अंते) -नुं जाणकार (३) पुं० डाह्यो-शाणो माणस प्रज्ञा ९ उ० जाणवू; -ना विषे माहितगार थवं [आमंत्र __ -प्रेरक० दर्शाव, (२) बोलाववं; प्रज्ञा स्त्री० बुद्धि ; समज; डहापण (२) विवेकबुद्धि(३)साचु - अलौकिक ज्ञान प्रज्ञाचक्षुस् वि० अंध (२) पुं० धृतराष्ट्र (३) न० मनरूपी आंख . प्रज्ञात वि० जाणेलं; समजेलं (२) प्रख्यात [चिह्न प्रज्ञान न० बुद्धि; ज्ञान; डहापण (२) प्रज्ञापित वि० कही दीधेलं; बतावी दीधेलं; बहार पाडी दीधेलं Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रशावाद ३०० प्रणिपातप्रतीकार प्रज्ञावाव पुं० पंडिताईनां वचन प्रणयिन् वि० स्नेह - प्रीतिवाळु; प्रेमी प्रज्ञासहाय वि० डाह्यु; शाणुं (२) -नी इच्छावाळं; -ने झंखतुं प्रज्वल १ प० प्रज्वलित थq; सळगवू (३) परिचित (४) पुं० मित्र; प्रेमी; प्रज्वलित वि० सळगी ऊठेलु; सळगतुं साथी (५) पति; प्रियतम (६) (२) चळकतुं; प्रकाशित याचक (७) भक्त प्रडीन ('प्र+डी' न भू.कृ०) वि० प्रणयिनी स्त्री० प्रेयसी ; पत्नी ; सखी दरेक दिशामां ऊडतुं (२) आगळनी प्रणयोन्मुख वि० पोतानो प्रेम प्रगट तरफ ऊडतुं करवाने उत्सुक एवं प्रणत वि० नीचुं नमेल (२) नमस्कार प्रणव पुं० ॐकार करतुं (३) चतुर; निपुण (४)वांकु प्रणश् ४ प० नाश पाम (२) देखाता प्रणति स्त्री० नमस्कार; प्रणाम (२) बंध थ (३) नासी छूटवू नम्रता; विनय प्रणाद पुं० मोटो अवाज (२) गर्जना प्रणाम पुं० नमस्कार; नमन प्रण १ प० गाजवू; अवाज करवो प्रणदित वि० गाजतुं (२) गुंजारव करतुं प्रणामांजलि पुं० बे हाथ जोडीने करेला प्रणाम प्रणम् १५० प्रणाम करवा ; वंदन कर; . [आगेवान नीचा नमवं. [आदरथी आपेलु प्रणायक पुं० सेनापति (२)मार्गदर्शक; प्रणाय्य वि. वहालं ; प्रिय (२) प्रमाप्रणमित वि० नमेलु (२) नम्रताथी के णिक (३) विरक्त प्रणय पुं० ग्रहण करवू के स्वीकार ते प्रणाल पु०, प्रणालिका, प्रणाली स्त्री० (लग्नमां) (२)प्रेम;त्रीति (३) इच्छा; परनाळ ; पाणीनो मार्ग (२) परंपरा कामना (४) मित्रता (५) परिचय; प्रणाश पुं० विनाश (२) मृत्यु विश्वास (६) कृपा (७) विनंति (८) प्रणाशन वि० नाश करनाएं (२) न० आदर [देखावनी तकरार विनाश; ध्वंस प्रणयकलह पुं० प्रेमनी तकरार ; मात्र प्रणिगद् १५० जाहेर करवू; जणाव, प्रणयकुपित वि० प्रेमने कारणे गुस्से प्रणिधा २ उ० मूकवू; नीचे मूकवू (२) थयेलु; गुस्सानो देखाव करतुं जडवू; सज्जड चोटाडवू (३) -नी प्रणयन न० लावq- दोरवं ते (२) उपर नाखवू - स्थिर कर (४) अमलमां मूकवू ते; आचरवं ते (३) फेलावq(५)मोकलq(६)उपयोग करवो लखवं ते (४) फरमाव ते (सजा) प्रणिधान न० उपयोग (२) महाप्रयत्न; प्रणयपेशल वि० प्रेमथी आर्द्र बनेल उद्यम (३) गाढ चिंतन; समाधि (४) प्रणयप्रकर्ष पुं०. अत्यंत प्रेम ; आसक्ति कर्मफलनो त्याग प्रणयभंग पुं० प्रेमनो भग'; बेवफापणुं प्रणिधि पुं० जासूस; बातमीदार (२) प्रणयविघात पुं० (विनंतिनो) अस्वीकार अनुचर (३) प्रार्थना; विनंती प्रणयविमुख वि० प्रेममांथी के मित्रता- प्रणिधेय न० जासूस के बातमीदार मांथी विमुख बनेलं मोकलवा ते (२) उपयोगमा लेवू ते प्रणयस्पश वि० प्रेमथी प्रेरायेलं; प्रेमा प्रणिपत् १ प० प्रणाम करवा प्रणयापराध पुं० प्रेम के परिचयनो प्रणिपतन न०, प्रणिपात पुं० प्रणाम भंग; बेवफापणुं प्रणिपातप्रतीकार वि० नमनथी जेनो प्रणयिता स्त्री प्रेम; आसक्ति उपाय थई शके तेवू Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रणिपातरस ३०१ प्रतिकार प्रणिपातरस पुं० आयुधो साथे बोलातो प्रतरण न० ओळंगq ते एक मंत्र प्रतर्क पुं० तर्क ; धारणा प्रणिहन् २ प० वध करवो (२) नीचं प्रतान पुं० डूंक; कुंपळ (२) वेलो नमावq (हाथ) (३) वधु धीमेथी (नीचे फेलातो) (३) विस्तार । 'बोलवू ('अनुदात्त' करतां) प्रताप पुं० गरमी; ताप (२) तेज; प्रणिहित वि० मूकेलं ; स्थिर करेलु (२) कांति (३) रुआब (४) सामर्थ्य ; फेलावेलु (३) सोंपेल (४) एकाग्र प्रभाव; पराक्रम थयेलं (५) स्वीकारेल (६) मोक- प्रतार पुं० पार लई जर्बु ते (२) ओळंगी लेलं; प्रेरेलु (७) निश्चित जवं ते (३) ठगर्बु-छेतर ते प्रणी १५० दोरवं (लश्कर) (२)अर्पण प्रतारक वि० ठगनाएं; छेतरनारुं करवू (३) लई जवु; स्थापवु (४) प्रतारणा स्त्री० ठगाई; छेतरपिंडी पवित्र करवं (मंत्रोथी) (५) नाखवू प्रतारित वि० छेतरेखें; ठगेलं (दंड) (६) विधान करवू (७) रचq प्रति अ० क्रियापदो पूर्वे '-नी तरफ', (ग्रंथ) (८) सिद्ध करवू; उपजावq '-नी दिशामां', '-फरीथी', 'ऊलटुं', (९) स्थितिए पहोंचाडवं (१०) 'पार्छ ', -नी उपर' -ए अर्थ बतावे दर्शाववं (११) फेंक ; प्रेरवं; छोडवू (२) नामोनी पूर्वे, सादृश्य', 'विरोधी', (१२) दूर करवू; नाश करवो 'ऊलटुं', 'हरीफ' -ए अर्थ बतावे (३) प्रणी वि० बनावनाएं; रचनाएं अलग उपसर्ग तरीके (द्वितीया साथे) प्रणीत वि० -नी समक्ष लावेलं; अर्पल '-नी तरफ', 'नी सामे','सरखामणी(२) –ने पमाडेलु (३) आचरेलु मां', 'प्रमाणमां', 'नजीक', 'समये', (४) विधान करेल (५) फेंकेलु ; 'दरम्यान', '-ना पक्षमां-तरफेणमा', मोकलेलं (६) मंत्र वडे संस्कारलं 'हर-दरेक', '-ना संबंधमां', 'ना प्रणुत वि० वखाणेलं; प्रशंसा करेलु मते', -ना अभिप्राये', '-नी समक्ष'-ए प्रणुद् ६ प० हांक; हांकी काढवू अर्थ बतावे (४) (पंचमी साथे) प्रणुन्न वि० हांकवामां आवेलु (२) ' ने बदले', '-ना प्रतिनिधि रूपे', हांको काढेलं -ए अर्थ बतावे (५) अव्ययीभाव प्रणय वि० दोरी जवाय तेवू; वश; समासमां 'दरेकमां', 'हरेकमां', '-नी अधीन (२) पामवा - मेळववा योग्य दिशामां' -ए अर्थ बतावे प्रणोदित वि० हांकेलं; प्रेरेलु प्रतिकर पुं० बदलो वाळवो ते प्रतत वि० फेलायेल ; विस्तरेलु प्रतिकर्तव्य न० बदलो लेवो ते प्रततम् अ० निरंतर; सतत प्रतिकर्मन् न० प्रतीकार; बदलो; वेरनी प्रतन् ८ उ० विस्तारवं ; फेलाव, (२) वसूलात (२) इलाज ; उपाय (३) दर्शावq (३) रचq (४) अनुष्ठान करवू शरीरनां शोभा-शणगार (४) विरोध (यज्ञर्नु) [(२) अल्प; तुच्छ (५) तपस्या (६) प्रायश्चित्त प्रतनु वि० घणुंज पातळं; कृश; सूक्ष्म प्रतिकलम् अ० सतत प्रतप् १ प० तप ; सळगq; प्रकाशq(२) प्रतिकाय पुं० प्रतिस्पर्धी; शत्रु (२) शेकवू (३)तपस्या करवी (४)पीडवू निशान; लक्ष्य (३)प्रतिमा; मूर्ति । प्रतप्त वि० गरम थयेलं (२) पीडित; प्रतिकार पुं० प्रत्युपकार (२) बदलो त्रास पामेलं (३) तप आचरेलु। लेवो ते (३) रोग वगेरेनो उपचार Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिकार्य उपाय ( ४ ) विरोध; रुकावट ( ५ ) मदद ( ६ ) अनुकरण प्रतिकार्य न० जुओ 'प्रतिकर्तव्य' प्रतिकाश पुं० प्रतिबिंब ( २ ) देखाव; सादृश्य (३) समासने अंते 'ना जेवुं', 'नी समान' - एवो अर्थ बतावे प्रतिकितव पुं० ( जुगारमां ) सामे रमनारो प्रतिकूल वि० अनुकूल नहि तेवुं ; विरुद्ध ; ऊलट (२) कर्कश ; कठोर प्रतिकृ ८ उ० बदलो वाळत्रो (२) उपचार - इलाज करवो ( ३ ) पाछु आपवं; पार्छ मूकवुं ( ४ ) वेर वाळवं प्रतिकृत वि० प्रतिकार कर्यो होय तेवुं; बदलो लीधो के वाळयो होय तेवु; उपाय कर्यो होय तेवुं (२) उपकार कर्यो होय तेनुं (३) न० बदलो ( ४ ) विरोध प्रतिकृति स्त्री० बदलो; प्रतिकार ( २ ) प्रतिबिंब ( ३ ) प्रतिमा ( ४ ) विरोध प्रतिक्रिया स्त्री० बदलो लेवो ते; बदलो वाळो ते (२) निवारण ( ३ ) विरोध (४) शणगार ( ५ ) आचरण ( ६ ) मदद; रक्षण प्रतिक्षणम् अ० हर पळे; दरेक क्षणे प्रतिक्षपम् अ० दरेक राते प्रतिक्षिप् ६ प० - मां फेंकव्ं (२)मारवु; हिंसा करवी (३) निंदवुं ; तुच्छकार प्रतिगद् १ प० जवाब आपको प्रतिगम् १प० [ प्रतिगच्छति ] सामा जबुं; आगळ जनुं (२) पार्छु फरवु प्रतिगमन न० पाछु फरवुं ते प्रतिगर्ज १५० - नी सामे गर्जना करवी (२) सामना करवो प्रतिगृहीत वि० स्वीकारेलुं (२) अनुमत; संमत ( ३ ) परणेल प्रतिग्रह ९ उ० [ प्रतिगृह्णाति, प्रतिगृह्णीते ] पकडवु; टेकवतुं (२) स्वीकार; लेवुं ( ३ ) सामनो करवो; हुमलो करवो (४) परणवुं ( ५ ) प्रतिदर्शन आज्ञापालन करवुं ( ६ ) -नो आशरो लेवी (७) स्वागत करवु प्रतिग्रह पुं० स्वीकारखुं - लेवं ते; पकडबुं ते (२) दान स्वीकारवानो हक (३) भेट; बक्षिस ( ४ ) सामेथी स्वागत करते (५) लग्न प्रतिग्रहण न० भेट स्वीकारवी ते ( २ ) लग्न ( ३ ) पात्र ; वासण ( ४ ) स्वागत प्रतिघ पुं० विरोध; सामनो ( २ ) मारामारी (३) गुस्सो (४) दुश्मन (५) मूर्छा प्रतिघात पुं० सामनो; निवारण ( २ ) वळतो प्रहार ( ३ ) पाछु ऊछळवु ते (४) मनाई; निषेध प्रतिघातिन् वि० विरोधी; दुश्मन ( २ ) antar के विघ्न करनारुं ( ३ ) आंजी नांखतुं ३०२ J , प्रतिचिकीर्षा स्त्री० बदलो लेवानी इच्छा प्रतिच्छद् १० उ० ढांकबु आच्छादन करवुं ( २ ) छुपाववुं संताडवं प्रतिच्छत्र वि० वींटेल, ढांकेल (२) संताडेलु (३) संपन्न ; युक्त प्रतिच्छंद, प्रतिच्छंदक पुं० छबी; प्रतिमा आकृति ( २ ) प्रतिनिधि प्रतिच्छाया, प्रतिच्छायिका स्त्री० प्रतिबिंब ( २ ) प्रतिमा प्रतिजन्मन् न० पुनर्जन्म प्रतिजीवन न० सजोवन थत्रु ते प्रतिज्ञा ९ आ० संकल्प करवो; वचनलेवुं (२) निश्चयपूर्वक कहेवुं ( ३ ) स्वीकार; मंजूरी आपवी ( ४ ) माहितगार थवं; जाणवुं प्रतिज्ञा स्त्री० पण; नियम; शपथ (२) जाहेरात; निवेदन प्रतिज्ञात वि० प्रतिज्ञा करेल; संकल्प करेल (२) स्वीकारेलुं; मान्य राखेलुं (३) न० प्रतिज्ञा; वचन प्रतिज्ञापित वि० जुओ 'प्रज्ञापित' प्रतिदर्शन न० देखाव Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिदा ३०३ प्रतिप्रिय प्रतिदा १५० [प्रतियच्छति] विनिमय स्वीकार (४) फरीथी प्राप्त कर करवो (२) ३ उ० [प्रतिददाति, (५) पकड (६) मानवू; गणवं प्रतिदत्ते] पार्छ वाळवू (७) माथे लेवू; हाथमां लेबु (कार्य) प्रतिविनम् अ० दररोज; हमेशा (८) संमत थर्बु (९) आचरवं; अमल प्रतिद्वंद्विन् वि० शत्रुतावाळं (२) करवो (१०)वर्तवू(११)पार्छ वाळवं विरोधी; प्रतिकूळ (३) हरीफ (जवाब) (१२) जाणवू; समजवू प्रतिध्वनि, प्रतिध्यान पुं० जुओ'प्रतिरव' -प्रेरक० अर्पq (२) साबित करवू प्रतिनद् १ प. पडघो पडवो (२)बूम (३) समजावq (४)पार्छ लई जवू पाडीने जवाब आपवो प्रतिपद् स्त्री० सुद पडवो -प्रेरक० अवाजथी भरी काढवू प्रतिपदम् अ० पदे पदे; पगले पगले प्रतिनव वि० नवं;ताजु(२)तरतर्नुखीलेलं (२) दरेक जगाए प्रतिनं १५० आशीर्वाद आपवो (२) प्रतिपदा (-दी) स्त्री० सुद पडवो स्वागत करवू; अभिनंदवू प्रतिपन्न वि० मेळवेलं ; प्राप्त करेलु (२) प्रतिनाद पं० प्रतिध्वनि; पडघो साधेलु; आचरेल (३) स्वीकारेलं प्रतिनारी स्त्री० हरीफ स्त्री (४) कबूल करेलु (५) जाणेलु; प्रतिनिधि पुं० अवेजी; ने बदले काम समजेलं (६) साबित करेलु करवा नियुक्त करेलो माणस (२) प्रतिपादन न० अर्पवं ते (२)साबित के सिद्ध करवं ते (३) शरूआत ; आरंभ प्रतिमा; मूर्ति (३) जामीन प्रतिपादित वि० अर्पल (२)सिद्ध करेल प्रतिनिनद पु० जुओ 'प्रतिनाद' के थयेलु (३)समजावेलु (४)प्रगटेलं प्रतिनियत वि० नियंत- मक्की थयेलं प्रतिपाद्यमान वि० अपातुं ; देवातुं (२) अटळ ; दृढ प्रतिपान न० पीवानुं पाणी (२)पाणी प्रतिनिजित वि० हरावेलं; ताबे करेल पिवराव ते (२) रदबातल करेलु ; पार्छ खेंचेलं प्रतिपाल -प्रेरक० रक्षण कर (२) प्रतिनिविष्ट वि० जक्की; दुराग्रही राह जोवी (३) आज्ञा पाळवी (४) प्रतिपक्ष वि० समान; सदृश (२) उछेर (५) आचर; पाळवं पुं० सामो पक्ष (३) विरोधी; हरीफ प्रतिपालन न० रक्षण करवू ते (२) (४) उपाय; प्रायश्चित्त आचरQ के पाळवू ते प्रतिपच्चंद्र पुं० पडवानो चंद्र प्रतिपुरुष पुं० सरखो माणस;प्रतिनिधि प्रतिपण पुं० होड; सामी होड (२)साथी (३)पुरुषनी आकृतिनुंबावलं प्रतिपत्ति स्त्री० मेळवq ते; प्राप्ति (२) । प्रतिपूजित वि० सामु वंदन करवामां ज्ञान; भान; समज (३) स्वीकार आव्युं होय तेवू (२) संमानेलं (४) शरू करवू ते; माथे लेवू ते (५) प्रतिपूरुष पुं० जुओ 'प्रतिपुरुष' कार्य; कर्तव्य; वर्तन (६) निश्चय । प्रतिपूर्ण वि० विस्तृत; पहोळं (७) समाचार (८) आदर; संमान प्रतिप-प्रेरक० पूरेपूरुं भरी काढवू (२) (९) दान (१०) उपाय; मार्ग ; रस्तो तृप्त करवू; संतुष्ट कर [दान प्रतिपथम् अ० मार्गे; रस्ते प्रतिप्रदान न० पार्छ वाळवू ते(२)कन्याप्रतिपद् ४ आ० पामवं; पहोंचवू (२) प्रतिप्लवन न० पाछो कूदको मारवो ते दाखल थq; अनुसरवं (मार्ग) (३) प्रतिप्रिय न० प्रत्युपकार Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिफल ३०४ प्रतिभेद प्रतिफल पुं०, प्रतिफलन न० प्रतिबिंब प्रतिबोषन न० जागवू ते (२) उप (२) बदलो (२)पार्छ वाळेलु देश (३) ज्ञान; समज; माहिती प्रतिफलित वि० प्रतिबिंबित थयेलं प्रतिबोधित वि० जागेलं; जगाडेलु प्रतिबद्ध वि० बंधायलं; बांधेलु (२) (२) शीखवेलं; उपदेशेलु रोकेलं; अटकावेल (३) जडेलु; प्रतिवू २ प० जवाब आपवो (२) आ० सज्जड चोटाडेलु (४) गूंथेलं ना पाडवी [मळवू-प्राप्त थवं प्रतिबल वि० शक्तिमान (२) समान प्रतिभज् १ उ० पोताने भागे पार्छ बळवाळ (३) न० दुश्मन, सैन्य प्रतिभट वि० हरीफाई करतुं; समान(२) (४) बळ ; ताकात पुं० हरीफ; विरोधी (३) सामावाळियो प्रतिबंदी स्त्री० सामो तेवो ज जवाब; प्रतिभय वि० भयंकर (२) जोखम सामानी दलीलने तेने ज भेरववी ते भरेलु (३) न० जोखम; भय प्रतिबद्धता स्त्री० विरोध; खंडन प्रतिभा २५० भासवू; प्रकाशq (२) प्रतिबंष ९ प० बांधी देवू (२) दृढ प्रगट थ; देखाएँ (३) मनमा आवद्कर (३) जडवू- सज्जड चोटाडवू स्फुरवु (४) योग्य लाग (४) रोक; प्रतिबंध करवो प्रतिभा स्त्री० देखाव; भासवू ते (२) प्रतिबंध पुं० बांधवू के जोडवू ते ; संबंध कांति; तेज (३) बुद्धि ; सूझ (४) (२) अटकाव; रुकावट; विरोध बुद्धिनी छटा; अलौकिक बुद्धि (५) (३) घेरो प्रतिबिंब (६) अचानक देखावू ते प्रतिबंधि पुं०, स्त्री० आक्षेप ; विरोध प्रतिभात वि० प्रकाशित; तेजस्वी (२)बीजा पक्षने पण समानपणे लागु (२) जणायेलं; समजायेलं पडती दलील [(२) सखत बांधतुं प्रतिभान न० कांति; तेज (२)बुद्धि; प्रतिबंषिन् वि० विघ्न-डखल करना प्रतिभा (३) शीघ्रबुद्धि प्रतिबंधी स्त्री० जुओ 'प्रतिबंधि' प्रतिभानवत् वि० प्रकाशित; सुंदर (२) प्रतिबाए १ आ० निवारवु (२) रोकवू शीघ्र बुद्धिवाळं (३) धृष्ट (३) पीडा करवी प्रतिभाव पुं० सामो समान भाव प्रतिबिब पुं०, न० पडछायो; चळकती। प्रतिभाष १ आ० जवाब आपवो (२) सपाटीमां पडती प्रतिच्छाया कहे (३) नामे ओळखवू प्रतिबुद्ध वि० जागेलं; जाग्रत थयेलु। प्रतिभास पुं० अचानक स्फुरदुं ते (२)भानमां आवेलु (३)खीलेलं देखावू ते (२) देखाव; आभास प्रतिवृष ४ आ० जागवू (२) जाणवू; प्रतिभासन न० देखाव ; समान आकार अनुभवq; समजवं प्रतिभित् ७ उ० भेद, (२) खुल्लं -प्रेरक० जगाडQ (२) जणावq; पाडी देवू (भेद) (३) ठपको आपवो माहितगार करवु (३) सोंपवू (४) नकारद् (५) गाढ संसर्ग होवो प्रतिबोध पुं० जागवू ते (२)ज्ञान; भान प्रतिभिन्न वि० वींधायेलं (२) गाढ (३) बोध; उपदेश (४) बुद्धि; संपर्कवाळु (३) भागेलं तर्कशक्ति (५) स्मरण प्रतिभू पुं० जामीन प्रतिबोधक वि. जगाडनाएं (२) उप- प्रतिभेद पुं० भेदबुं - टुकडा करवा ते देश आपनाएं; जणावनाएं (२) शोध (३) खुल्लं पाडी देवं ते Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिभोग प्रतिरोधक प्रतिभोग पुं० भोग; आनंद ऊभो करवो ते (५) इच्छा (६) प्रतिमल्ल पुं० हरीफ; सामावाळियो विरोध; सामनो (७) बदलो लेवो ते प्रतिमंडल न० सूर्य वगेरेनी आसपास प्रतिया २५० पाछा फर के जवं (२) देखातुं बीजं कूडाळं समान थर्बु(३)पार्छ अपावं वाळेलं प्रतिमा स्त्री० मूर्ति (२) समानता; प्रतियात वि० सामनो करेलु (२)पार्छ सादृश्य (समासमां- 'नी समान' ए प्रतियातन न० बदलो लेवो ते । अर्थमां वपराय छ ; उदा. 'देवप्रतिम,' । प्रतियातना स्त्री० मूर्ति ; प्रतिमा 'अप्रतिम') (३) पडछायो;प्रतिबिंब प्रतियान न० पाछा फरवू ते [जवं प्रतिमागृह, प्रतिमागेह न० मूर्तिओ प्रतियुष ४ आ० युद्धमा सामसामा आवी ज्यां राखी होय तेवं मकान प्रतियुवति स्त्री० वेश्या (२)हरीफ स्त्री प्रतिमान न० आदर्श; धोरणरूप वस्तु प्रतियोग पुं० विरोध; सामनो (२) (२) मूर्ति (३) सादृश्य (४) हाथीनो प्रतिकार; उपाय (३) जवाब कुंभस्थल नीचेनो भाग प्रतियोगिन् पुं० विरोधी; प्रतिपक्षी (२) प्रतिमानना स्त्री० पूजा सामो समान भाग(३) भागीदार; साथी प्रतिमार्ग पुं० पाछा फरवानो मार्ग प्रतियोद्ध पुं० सामावाळियो; दुश्मन । प्रतिमार्गम् अ० पाछु; पाछली तरफ प्रतियोध, प्रतियोधिन् पुं० सामाप्रतिमित वि० नकल करेलु (२) वाळियो; विरोधी सरखावेल (३) प्रतिबिंबित प्रतिरत वि० -मां आनंद मानतुं प्रतिमुक्त वि० पहेरेलु; धारण करेलु प्रतिरथ पुं० युद्धमा सामे आवनारो (२)बांधेलं (३) सुसज्ज (४) बंधन- प्रतिरथ्यम् अ० दरेक मार्गे [पडघो मांथी छोडेलु (५) फेंकेलं प्रतिरव पुं० कलह झघडो(२)प्रतिध्वनि; प्रतिमुख वि० सामु मों राखीने ऊभेलं प्रतिरसित न० पडधो (२) नजीकचें; संमुख प्रतिरद्ध वि० अटकावेलु (२)वेरो घालेलं प्रतिमुखम् अ० तरफ; सामे ; समक्ष प्रतिरुध् ७ उ० अटकाव; रोकवू (२) प्रतिमुच ६ प० प्रतिमुंचति] मुक्त घेरो घालवो (३) छुपावq करवं; छूटुं करg (२) पहेर; धारण प्रतिरूढ वि० पेठेलं (२)फरी स्थापित करवं (३) त्यागवू (४) फेंक थयेलु (३) अनुकरण करेलु प्रतिमुहुः अ० वारंवार प्रतिरूप वि० सरखा रूपवाळ (२) प्रतिमोचन न० ढोल करवं ते; छूटुं सुंदर (३) योग्य; अनुरूप (४) कर ते; बदलो वाळवो ते (२) अभिमुख (५) न० प्रतिमा; चित्र वसूलात; बदलो (वेरनो) (३) (६) अरीसा जेवी प्रतिबिंब पाडे मुक्ति; छुटकारो तेवी वस्तु (७) उपमान प्रतियत् १ आ० प्रयत्न करवो प्रतिरूपक वि० समान; सरखं -प्रेरक० बदलो वाळवो के लेवो (समासने छेडे) (२)न० चित्र (३) (२)पार्छ वाळवं पडछायो (४) बनावटी आज्ञा प्रतियत्न वि० प्रयत्न करतुं; सक्रिय . प्रतिरोधक वि० अटकावनाएं (२) (२) पुं० प्रयत्न ; उद्यम (३) संस्का- घेरनारुं (३) पुं० विरोधी (४)चोर; रीने तैयार करवं ते (४) नवो गुण डाकु (५) विघ्न Ratna Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिरोषिन् प्रतिरोधिन् वि० जुओ 'प्रतिरोधक' प्रतिलक्षण न० चिह्न; निशान प्रतिलभ् १ आ० मेळवq (२) पार्छ मेळववं (३) शीखवू; समजवू (४) अपेक्षा राखवी [निंदा; ठपको प्रतिलंभ पुं० प्राप्ति; मेळवतुं ते (२) प्रतिलिखित वि० जवाब आपेल प्रतिलोम वि० ऊलटा क्रमन (२) उपला वर्णनी स्त्री साथेनुं (लग्न) (३)विरोधी; विपरीत (४) अधम; नीच (५) डाबु (६) जक्की; हठीलं (७)अप्रिय प्रतिलोमतः अ० ऊलटा क्रमे (२) शत्रुता के विरोध करीने प्रतिवच् २ प० प्रत्युत्तर आपवो प्रतिवचन (-स्) न० जवाब (२)पडघो प्रतिवद् १ प० जवाबमां कहेवू (२) बोलवू (३) फरीथी कहे, (४) विरोधमां के सामुं कहे प्रतिवस्तु न० सरखा रूपवाळी वस्तु (२)बदलामां आपेलं ते प्रतिवाक्य न०, प्रतिवाच स्त्री०, प्रति वाचिक न० प्रत्युत्तर ; जवाब प्रतिवात पुं० सामो पवन प्रतिवातम् अ० सामे पवने [निषेध प्रतिवाद पुं० जवाब; प्रत्युत्तर(२)नकार; प्रतिवादिन् पुं० प्रतिपक्षी; विरोधी (२) दावामां बचावपक्षनो माणस प्रतिवार पं०, प्रतिवारण न० अटका- व - रोकवू ते प्रतिवार्ता स्त्री० समाचार; बातमी प्रतिवासरम् अ० दररोज प्रतिवासिन् पुं० पडोशी [ते प्रतिविघात पुं० सामनो के बचाव करवो प्रतिविज्ञा ९ प० [प्रतिविजानाति] कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार प्रतिविटपम् अ० दरेक डाळीए (२) एक पछी एक डाळीए प्रतिष्टंभ प्रतिविद् २ प० स्वीकार; लेवू (२) ६ प० [प्रतिविंदति मेळवद्यु -प्रेरक० जणावq (२)आपq प्रतिविधा ३ उ० इलाज करवो; प्रतिकार करवो (२) गोठव; तैयार करवू (३) मोकलवू (४) सजा करवी प्रतिविधान न० उपाय के प्रतिकार करवो ते (२) गोठवण; रचना प्रतिवीर्य वि० सरखा बळवाळं प्रतिवेलम् अ० दरेक वेळा ; दरेक प्रसंगे प्रतिवेश पुं० पडोशी (२) पडोश प्रतिवेशिन् वि० पडोशी प्रतिवेश्मन् न० पडोशीनें घर प्रतिवेश्य पुं० पडोशी प्रतिव्यूढ वि० सामे व्यूहरचनामां गोठ वेलु (२)विस्तृत प्रतिशब्द पुं० पडघो प्रतिशम पुं० शमन; नाश प्रतिशयित वि० देव पासे इच्छित वरदान मेळववा भूख्युं सूई जनारुं [सत्ता प्रतिशासन न० हुकम करवो ते(२)हरीफ प्रतिशिष्ट वि० मोकलेलं; विदाय करेलु प्रतिश्रय पुं० आश्रय (२) रहेठाण (३) सभागृह (४) यज्ञगृह प्रतिश्रव पुं० वचन; कबूलात (२)पडघो प्रतिश्रु ५५० वचन आपq [पडघो प्रतिश्रुत (-ति)स्त्री० वचन; कोल (२) प्रतिषिद्ध वि० मना करेलु प्रतिषिध (प्रति+सिध) १५० निग्रह करवो; निवार; रोकवू (२) मनाई करवी प्रतिषेद्ध वि० जुओ 'प्रतिषेधक' प्रतिषेध पुं० निवारण करवं ते; दूर करवं ते (२) मनाई; निषेध (३) ना पाडवी ते [मनाई करनारं प्रतिषेधक वि० रोकनारुं ; अटकावनाएं; प्रतिषेधाक्षर न० नकार दर्शावतो शब्द प्रतिष्टंभ पुं० रुकावट ; हरकत Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा प्रतिष्ठा (प्रति-स्था) १५० [प्रति- तिष्ठति] स्थिर थर्बु; दृढ थर्बु (२) रहेg; वसवू (३) -ने आधारे टकवू (४)आथमवू -प्रेरक० स्थापित करवु (२) सोंपवू (३)बक्षवू प्रतिष्ठा स्त्री० 'आधारस्थान; स्थान; पायो (२) निवास (३) दृढता; स्थिरता (४) टेको; शोभा (ला०) (५) मोटुं पद (६) ख्याति ; कीर्ति (७) स्थापित थq ते (८) इच्छित वस्तु प्राप्त थवी ते; सिद्धि (९) मूर्तिनी स्थापना करवी ते (१०)पग। प्रतिष्ठान न० बेठक; पायो; स्थान; आधारस्थान (२) पग (३) चालु रहे ते ; सातत्य प्रतिष्ठासु वि० स्थिर रहेवा इच्छतुं प्रतिष्ठित वि० स्थापेलं; ऊभं करेलं; स्थिर करेल; मूकेलं (२) विख्यात (३) निश्चित; नक्की थयेलं (४) समाविष्ट (५) जीवनमां स्थिर थयेलु - परणेलं (६) प्राप्त थयेलु; भागे आवेलुं (७) लागु पडे तेवू (८) सिद्ध ; परिसमाप्त प्रतिसम वि० बरोबरियं प्रतिसमाधान न० उपाय; इलाज प्रतिसमासित वि० बरोबरियु ; सामनो। करी शके तेवू प्रतिसर वि० अधीन; आश्रित (२) पुं० अनुयायी; सेवक (३) कौतुकसूत्र (लग्न वखते बंधातुं) (४) तावीज प्रतिसर्ग पुं० प्रलय (२) गौण सृष्टि (मरीचि वगेरेए करेली) (३) प्रलय अने ते पछीनी फरीथी थयेली सृष्टि वर्णवतो पुराणनो भाग प्रतिसव्य वि० ऊलटा क्रममां होय तेवू प्रतिसंकाश पुं० सरखापणुं प्रतिसंक्रम पुं० पडछायो; प्रतिबिंब प्रतिहन् (२) प्रलय; मूळ कारणमां पाछा समाई जq ते प्रतिसंख्यान न० कोई पण बाबतनी शांत विचारणा (२)सांख्य सिद्धांत प्रतिसंदेश पुं० संदेशानो जवाब प्रतिसंधान न० फीथी जोडवू ते (२) उपाय ; साधन (३) आत्मनिग्रह प्रतिसंधि पुं० फरीथी जोडावं ते (२) अटकवू ते; उपरम प्रतिसंहार पुं० पार्छ खेंची लेवू ते (२) आपी देवू ते (३) समावेश; संकोच प्रतिसंह १५० पार्छ खेंचवू प्रतिसंहृत वि० पार्छ खेंची लीधेलु (२)निग्रह करेल; संकोचेलं. प्रतिसीरा स्त्री० पडदो; कपडानी भीत प्रतिसूर्य, प्रतिसूर्यक पुं० आकाशमां बीजा सूर्य जेवू देखा। तेज (२) सरडो प्रतिसृ १५० पार्छ सरी जर्रा (२) सामे धसq; हुमलो करवो __ -प्रेरक० पार्छ सरकावq (२) पार्छ धकेली काढ; हांको काढवू प्रतिसृष्ट वि० मोकलेलं (२) विख्यात (३) नकारेल (४) प्रमत्त सैन्य प्रतिसेना स्त्री०, प्रतिसैन्य न० दुश्मननुं प्रतिस्पर्धा स्त्री० हरीफाई प्रतिस्पधिन् वि० हरीफ प्रतिस्पंदन न० धबकारो; धडकवं ते प्रतिस्रोतस् वि० सामे वहेणे जतुं (२) अ० सामे वहेणे प्रतिस्वन, प्रतिस्वर पुं० पडघो प्रतिहत वि० पार्छ वाळेलु ; पार्छ धकेलेलं (२) अटकावेलु (३) हणायेलं; नाश पामेलु(४)अंजाई गयेलं (५) बुद्रुथयेलं प्रतिहति स्त्री० सामु मारवं ते (२) पार्छ धकेलq ते (३) पार्छ ऊछळवू ते प्रतिहन २ प० सामो प्रहार करवो (२) अटकायत करवी; रोक; सामनो करवो (३) पार्छ धकेलतुं (४) नाश करवो (५) उपाय करवो Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिहत ३०८ प्रतुद प्रतिहत पुं० निवारण करनार; दूर लक्षमा लेवा योग्य (३) संमाननीय करनार (२) नाश करनार (४)पाळवा - वळगी रहेवा योग्य प्रतिहस्त, प्रतिहस्तक पुं० प्रतिनिधि प्रतीघात पुं० जुओ 'प्रतिघात' प्रतिहस्तिन् पुं० वेश्यावाडानो मालिक प्रतीची स्त्री० पश्चिम दिशा प्रतिहस्ती ८ उ० लेवू प्रतीच्छक पुं० लेनारो; स्वीकारनारो प्रतिहार पुं० सामु मारनार (२) प्रतीच्य वि० पश्चिमनु ; पाश्चात्य दरवाजो (३) दरवान (४) मदारी प्रतीत वि० नीकळेलं; ऊपडेल (जवा (५) आगमन जणावq ते माटे) (२)विदाय थयेल; भूतकाळनुं प्रतिहारण न० बारणामां प्रवेशवा बनेल (३) मानेलं; विश्वास करेलु माटेनी परवानगी'; प्रवेश (४) साबित करेल (५) ओळखेल प्रतिहारभमि स्त्री० ऊमरो (मकान० (६) प्रख्यात थयेलं (७) खातरीवाळं इ० नो) (२) दरवान तरीके- पद (८) दृढ संकल्पवाळू (९)खुश थयेलु प्रतिहाररक्षी स्त्री० दरवान स्त्री (१०)डाहयुं ज्ञानी प्रतिहिंसा स्त्री० बदलो; वेरनी वसूलात प्रतीति स्त्री० खातरी (२) मान्यता प्रतिह १५० पाछु भारी काढवू (२) (३) निश्चित ज्ञान (४) ख्याति त्यागवं; वर्जq (३) अवगणवं प्रतीप वि. विरोधी; प्रतिकूळ (२) प्रती (प्रति + इ) २ प० पार्छ फरवू ऊलटा क्रमनुं (३) पाछळ जतुं; (२) पासे पहोंचवू; पामवू (३) पछात रहेतुं (४)अवळ; आडु -ने भागे आव; -ने माथे पडवू (४) प्रतीपग वि० विरोधी प्रतिकूळ खातरी राखवी; विश्वास होवो (५) प्रतीपगति स्त्री०,प्रतीपगमन न० ऊलटी समजवं; जाणवू; शीखवू (६) ___ गति; ऊंधी दिशाए जवु ते प्रख्यात थर्बु (७) खुश-प्रसन्न थर्बु प्रतीपतरण न० सामे प्रवाहे तर ते (८)विरोधीनी सामे जq प्रतीपम् अ० ऊलटुं के प्रतिकूळ होय तेम -प्रेरक० खातरी कराववी; विश्वास प्रतीपयति प० (पार्छ वाळवं) [ते उत्पन्न करवो (२)लक्ष उपर लावq प्रतीपवचन न० प्रतिकूळ के आडु बोलवू (३) साबित कर प्रतीपविपाकिन् वि० ऊलटा परिणामप्रतीक पुं० अवयव (२) न० मूर्ति; वाळु (कर्ताने ज नुकसान करतुं) प्रतिमा (३)चिह्न ; निशान । प्रतीर न० तट'; कांठो प्रतीकार पुं० जुओ 'प्रतिकार' प्रतीवेश पुं० जुओं प्रतिवेश' प्रतीकाश पुं० जुओ 'प्रतिकाश' प्रतीवेशिन वि० जुओ 'प्रतिवेशिन्' प्रतीक्ष् (प्रति + ईक्ष) १ आ० जोवू; प्रतीष् (प्रति+इष्) ६५० [प्रतीच्छति निहाळवू (२) अपेक्षा राखवी (३) स्वीकार (२) स्वागत करवू (३) राह जोवी [अपेक्षा राख पालन करवू (आज्ञानुं) (४) राह जोवी प्रतीक्ष, प्रतीक्षक वि० राह जोतं; प्रतीहार पुं० जुओ 'प्रतिहार' प्रतीक्षण न०, प्रतीक्षा स्त्री० राह जोवी प्रतीहारी स्त्री० दरवान स्त्री(२)दरवान ते (२) अपेक्षा; आशा (३)ध्यान; लक्ष प्रतुद् ६१० घोंचवू; मारवं प्रतीक्षिन् वि० जुओ 'प्रतीक्ष' । -प्रेरक० हांकQ; प्रेर; घोंचप्रतीक्ष्य वि० राह जोवा योग्य (२) परोणो करवो Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतुष्टि ३०१ प्रतुष्टि स्त्री० संतोष प्रतूर्ण वि० झडपी; वेगीलं . प्रत १ प० ओळंग ; पार करवू -प्रेरक० छेतर (२) लंबावq; वधारवं [चाबुक प्रतोद पुं० अंकुश; परोणो (२) लांबी प्रतोली स्त्री० धोरी रस्तो प्रत्त वि० आपेलं ; दीधेलु (२)परणावेलु प्रत्यक् अ० ऊलटुं; विरुद्ध दिशामां (२) पश्चिम तरफ (३) अंदरनी बाजु (४) पहेलां प्रत्यक्ष वि० देखी शकाय तेवू (२) आंखनी सामे होय तेवू (३) कोई पण इंद्रियथी जाणी शकाय तेवू (४) स्पष्ट (५) न० इंद्रियो द्वारा थतुं ज्ञान ; तेन साधन के प्रमाण (न्याय०) प्रत्यक्षम् अ० -नी समक्ष; -नी नजर सामे (२) जाहेरमां (३) स्पष्टताथी प्रत्यक्षयति प० (प्रगट करवू; बतावq) प्रत्यक्षात् अ० जुओ 'प्रत्यक्षम्' प्रत्यक्षिन् वि० नजरे जोनाएं प्रत्यक्षीकृ ८ उ० नजरे जोवू प्रत्यक्षे अ० –नी नजर सामे प्रत्यक्षेण अ० जुओ 'प्रत्यक्षम्' प्रत्यक्स्रोतस् वि० पश्चिम तरफ वहेतुं प्रत्यगात्मन् पुं० जीवात्मा के कहेलु प्रत्यग्र वि० नवं; ताजु(२)वारंवार करेलु प्रत्यग्रवयस् वि० जुवान; तरुण प्रत्यच् वि० -तरफ वळेलं; अंदरनी बाजु वळेलु (२)-नी पाछळ होय तेवं (३) पछी- (४) पार्छ वळेल के वाळेलु (५) पश्चिम तरफनुं (६) अंदरनुं (७) -नी समान (८) पुं० जीवात्मा (९) भविष्यकाळ प्रत्यनंतर वि० पासेन; नजीकनं (२) वारसदार तरीके नजीकर्नु (३) तरत पछी- (क्रममां) [ज नजीक प्रत्यनंतरम् अ० तरत ज पछी; तरत प्रयविभूत प्रत्यनीक वि० विरोधी; ऊलटुं(२) पुं० शत्रु (३)न० दुश्मन- सैन्य (४) दुश्मनावट [करेलो अपकार प्रत्यपकार पुं० अपकारना बदलामां प्रत्यग्वम् अ० दर वर्षे [आवq प्रत्यभिज्ञा ९ उ० ओळखवू (२)भानमां प्रत्यभिज्ञा स्त्री० ओळखवं ते प्रत्यभिज्ञान न० ओळखाण ; ओळखवू ते (२)ओळखवा माटे आपेली निशानी प्रत्यभिनंद् १५० सामु अभिनंदन करवू (२) स्वागत करवू प्रत्यभिभाषिन् वि० संबोधतुं;-ने कहेतुं प्रत्यभियोग पुं० सामो आरोप प्रत्यभिवद् -प्रेरक० सामु अभिवादन करवू; सामो नमस्कार करवो प्रत्यभिवादन न० वंदन करनारने साम वंदन कर के आशीर्वाद आपवो ते प्रत्यभ्युत्थान न० सत्कार करवा सामा ऊभा थर्बु ते प्रत्यय पुं० प्रतीति; खातरी (२) विश्वास; श्रद्धा (३) अभिप्राय; ख्याल (४) ज्ञान; वेदना; अनुभव (५) कारण; कार्यनो हेतु (६) रूपो के साधित शब्दो बनाववा शब्दने अंते लगाडाय छे ते (व्या०) प्रत्ययकारक, प्रत्ययकारिन् वि० खातरी के विश्वास उपजावनाएं प्रचित वि० जवाबमां सामो नमस्कार जेने को होय तेवू प्रत्य) १० आ० पडकारवू प्रत्यर्थ वि० उपयोगी; कार्यसाधक (२) न० जवाब (३) दुश्मनावट । प्रत्यर्थम् अ० दरेक पदार्थनी बाबतमां (२) दरेक दाखलामां प्रयर्थिक पुं० दुश्मन; विरोधी प्रथिन् वि. विरोधी प्रतिवादी (२) पुं० शत्रु (३)हरीफ (४) आरोपी (५)विघ्न [थयेलं प्रथिभूत वि० नडतर के डखलरूप Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्यापित प्रत्याख्यात वि० नकारेलं (२) मनाई करेलु (३) रद करेलु (४) धकेली काढेलं (५) पाछळ पाडी दीधेलु प्रत्याख्यान न० नकार ते; अस्वीकार (२)ठपको (३)खंडन । प्रत्यागम् (प्रति+आ+ गम्) १ प्र० [प्रत्यागच्छति] पार्छ फरवू (२) भानमां आव प्रस्थान प्रत्यर्पण न० पाछु आप ते [ते, प्रत्यर्पित वि० जेणे पाछु सोंपी दीधुं होय प्रत्यवमर्श (-4) पुं० सलाह; मसलत (२)चिंतन; ध्यान(३)धैर्य ; सहनशीलता प्रत्यवर वि० श्रेष्ठ नहि तेवू; हलकुं प्रत्यवसित वि० खाईने के पीने परवारेलुं (२)जूनी (खोटी) टेवमां पार्छ वळेलं प्रत्यवस्कंद पुं०, न० अचानक हुमलो .. प्रत्यवस्था (प्रति + अव+स्था) १ आ० [प्रत्यवतिष्ठते सामनो के विरोध करवो (२) जुदा पडीने ऊभवं प्रत्यवहार पुं० संहार; प्रलय (२) पार्छ खेंची लेते प्रत्यवाय पुं० विघ्न; जोखम (२) ऊलटो मार्ग (३) पाप; दोष (४) निराशा (५) सत् वस्तुनुं अदृश्य थर्बु ते प्रत्यवेत् (प्रति + अव + ईक्ष) १ आ० तपास करवी ; तपासवू प्रत्यवेक्षण न०, प्रत्यवेक्षा स्त्री० लक्ष राख ते; काळजी राखवी ते प्रत्यवेक्षित पुं० निरीक्षक प्रत्यस्त वि० फेंकी दीघेलं; तजी दीधेलु [अंत प्रत्यस्तमय पुं० आथम ते (सूर्यमुं)(२) प्रत्यहम् अ० दररोज [अवयव प्रत्यंग न० उपांग (२) दरेक अंग के प्रत्यंगम् अ० दरेक अंगे; अंगोपांगे प्रत्यंच वि० जुओ 'प्रत्य' प्रत्यंत वि० समीपy (२) पुं० सरहद (३) सरहदनो प्रदेश प्रत्यंशम् अ० खभा उपर; खभे प्रत्याकलित वि० गणतरी करेलु (२) वच्चे दाखल करेलु प्रत्याकांम् (प्रति+आ+कांक्ष्) १ बा० आशा के अपेक्षा राखवी प्रत्याख्या (प्रति+आ+ ख्या)२५० ना पाडवी; नकार (२) मना करवी (३)पाछळ पाडी देवू ; चडियाता थर्बु प्रत्यागम पुं०, प्रत्यागमन न० पार्छ फरवं ते (२) आवी पहोंच ते । प्रत्याघात पुं० सामो प्रहार के धक्को प्रत्यादान न० पार्छ लेवू ते (२) पार्छ हाथ उपर लेवं ते (३)पुनरावर्तन प्रत्यादिश् ६ प० छांडवं; त्यजq (२) पार्छ काढवू (३) नकार; अस्वीकार करवो (४) ढांकी देवू; पार्छ पाडी देवू (५) बोलाव, (६)आज्ञा करवी (७) चेतवणी आपवी प्रत्यादिष्ट वि० जणावेलु (२) हुकम करेलु (३) अस्वीकार करेलु ; छांडेलु ; दूर करेलु (४) झांखं के पार्छ पाडी दीवेल (५) चेतवेलु प्रत्यादेश पुं० हुकम (२) माहिती; जाहेरात (३)अस्वीकार ; नकार, ते; निराकरण (४) झां के पार्छ पाडी देनार (५) चेतवणी (अलौकिक) (६) ठपको (७) वारदुं ते; निवारण प्रत्यानयन न० पाछु मेळवq के लावq ते प्रत्यापत्ति स्त्री० पार्छ मळवू के फरवू ते (२)वैराग्य [बुद्धि वाळू प्रत्यापन वि० पार्छ मळेलु (२) विपरीत प्रत्यायन न० जुओ 'प्रत्यायना' (२) परणवं ते; घेर लाववं ते (वहने) (३)आथम ते (सूर्य) प्रत्यायना स्त्री० विश्वास पेदा करवो ते; प्रतीति कराववी ते (२) समजावते (३) साबित करते प्रत्यायित वि० खातरी थई होय ते. Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्यूह प्रत्यावर्तन ३११ प्रत्यावर्तन न० पाछा फरवू ते प्रत्युद्गत वि० सत्कार करवा माटे प्रत्याशा स्त्री० आशा; विश्वास सामु ऊभुं थयेलं (२) सामु थयेल. प्रत्याश्वस्त वि० सांत्वन पामेलं (२) प्रत्युद्गति स्त्री० सत्कार माटे बेठा फरी ताजं थयेलं होय त्यांथी ऊभा थq ते . प्रत्याश्वासन न० आश्वासन; दिलासो प्रत्युद्गम् १ प० [प्रत्युद्गच्छति] प्रत्यासत्ति स्त्री निकटता (२) निकट सत्कार करवा माटे सामं ऊ, थq संबंध (३) खुशमिजाजी । (२) तरफ धस के कूच करवी .. प्रत्यासन वि० नजीकनु; पासेनुं (२) पस्तावो करत एक व्यहरचना प्रत्युद्गम पुं०, प्रत्युदगमन न० जुओ 'प्रत्युद्गति' [जोड प्रत्यासर पुं० सैन्यनो पाछलो भाग (२) प्रत्युद्गमनीय न० धोयेलां कपडांनी प्रत्यासंग पुं० संबंध; संसर्ग प्रत्युद्यम पुं० प्रतीकार के सामनो करप्रत्यासार पुं० जुओ 'प्रत्यासर' वानो प्रयत्न प्रत्याहत वि० पार्छ हटावेलुं . प्रत्युद्यात वि० जुओ 'प्रत्युद्गत' प्रत्याहरण न० पाछु मेळववं ते (२) प्रत्युपकार पुं० उपकारनो बदलो वाळवो पाछु खेंची लेवं ते (३)निग्रह करवो ते ते (२) परस्पर मदद प्रत्याहार पुं० पाछा हठ, ते (२) प्रत्युपकृ ८ उ० उपकारनो बदलो पकडी राखq ते ; निग्रह करवो ते (३) वाळवो; सामो उपकार करवो (२) प्रलय (४) संकोच; संक्षेप भरपाई करवू प्रत्याह १५० पाछु लई लेवं; पार्छ [वाळवो ते मेळव, (२) पार्छ खेंचवू (३) उच्चा प्रत्युपक्रिया स्त्री० उपकारनो बदलो प्रत्युपदेश पुं० सामो उपदेश रखं (४) कहेवू; जणावq (५) प्रत्युपपन्न वि० जुओ 'प्रत्युत्पन्न' फरीथी गोठववं [करेलु प्रत्युपमान न० उपमान पण उपमान प्रत्याहत वि० पाछु मेळवेलं (२)निग्रह प्रत्युक्त वि० जवाबमां कहेलु होवू ते (२) आदर्श ; जेना उपरथी प्रत्युज्जीव १५० सजीवन थवं बोजी वस्तुओनी गुणवत्ता मपाय ते प्रत्युज्जीवन न० सजीवन थ, ते (२) प्रत्युपवेश पुं०, प्रत्युपवेशन न० नमाववा सजीवन करवू ते घेरो धालवो ते (२) सामे ऊभवं ते प्रत्यपस्थित वि० पासे आवेलं; हाजर प्रत्युत अ० ऊलटुं; सामेथी प्रत्युत्क्रांतजीवित वि० मरवा पडेलं थयेलु (२) सामु थयेलं प्रत्युत्तर न० जवाब प्रत्युपहार पुं० पाछु सोंपवू ते; पार्छ प्रत्युत्थान न० सामे थवं ते (२) युद्धनी आपq ते (२) भेट तैयारी करवी ते (३) कोई आवे प्रत्युप्त वि० जडी दीधेलु; सज्जड चोंटात्यारे मानमां सामा ऊभा थर्बु ते । डेलु - खोसेलु (२)वावेलु [काळ प्रत्युत्पन्न वि० फरो उत्पन्न थयेलं (२) प्रत्यूष पुं०, न०, प्रत्यूषस् न० प्रातःतत्पर; तैयार (३) हाजर प्रत्यूह १ उ० विरोध के सामनो करवो प्रत्युत्पन्नबुद्धि, प्रत्युत्पन्नमति वि० समय- (२) डखल करवी; नडतर करवी सूचकतावाळं ; योग्य काळे योग्य कर- (३) इन्कार करवो (४) चडियाता वान जेने झट सूझी आवे तेवू (२) थएँ (५) भेट चडाववी स्त्री० समयसूचकता; तरतबुद्धि प्रत्यूह पुं० विघ्न; नडतर Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रदीप प्रत्येक ३१२ प्रत्येक वि० दरेक (५)अनुकूळ (६)पुं०, न० प्रदक्षिणा प्रत्येकम् अ० दरेकमां; दरेकने (२) करवी ते [प्रदक्षिणा करवी ते एक वखते एक; जुदुं जुदूं प्रदक्षिणक्रिया स्त्री०, प्रदक्षिणन न० प्रथ् १ आ० वध (२) फेलावू (३) प्रदक्षिणम् अ० डाबीथी जमणी बाजुए प्रसिद्ध थर्बु (४)प्रगट थर्बु (५)१० उ० (२) जमणी बाजुए (पोतानी जमणी फेलावq; जाहेर करवू (६) प्रगट बाजु ते तरफ रहे ते रीते) (३)दक्षिण करवू; दर्शावq (७) विस्तृत करवू तरफ (४) सौ सारां वानां होय तेम प्रथम वि० पहेलं; मुख्य ; प्रधान (२) प्रदक्षिणा स्त्री० (पोतानी जमणी बाजु श्रेष्ठ; उत्तम (३) सौथी पहेलांनु; ते तरफ रहे ते प्रमाणे)आसपास गोळ सौथी प्राचीन (४) पहेलांनु; अगाउनुं फरवं ते (पूज्यभाव दर्शाववा) प्रथमगिरि पुं० उदयाचल प्रदक्षिणाचिस् वि० जमणी बाजु ज्वाळाप्रथमतस् अ० पहेलेथी; प्रथमथी (२) ओ नोकळती होय तेवू [बाजु वळेलं तरत ज; एकदम (३) अगाउ;-नो प्रदक्षिणावर्त,प्रदक्षिणावृत्क वि० जमणी पसंदगीमा प्रथम होय तेम प्रदक्षिणीक ८ उ० प्रदक्षिणा करवी प्रदग्ध वि० बळी गयेलं प्रथमदिवस पुं० पहेलो दिवस प्रदर पुं० फाडवू- चीर ते (२) फाट; प्रथमम् अ० पहेली वार (२) अगाऊ; पहेलां (३) एकदम ; तरत ज (४) चीरो (३) लश्करने वेरविखेर करवू ते (४)बाण (५)स्त्रीओनो एक रोग ताजेतरमा प्रदर्शक वि० बतावनाएं; प्रगट करनारुं प्रथमवयस् न० पहेली अवस्था; जुवानी (२) पुं० आचार्य; पेगंबर प्रथमा स्त्री० पहेली विभक्ति (व्या०) प्रदर्शन न० देखाव (२) प्रगट करवं प्रथमाश्रम पुं० ब्रह्मचर्याश्रम (चार ते; देखाडवु ते (३) शोखवतुं ते; आश्रममा पहेलो) समजावq ते (४) दृष्टांत प्रथमेतर वि० बीजु प्रदा ३ उ० आपवू; अर्पण करवं प्रथमोदित वि० प्रथम कहेल (२) शीखवतुं (३) परणावh (४) प्रथा स्त्री० प्रसिद्धि ; ख्याति चूकवी देवु (ऋण) प्रथित ('प्रथ्' नुं भू० कृ०)विस्तारेलु; प्रदान न० आप ते; दान (२) लग्न वधेलु ; पसरेलु (२) जाहेर थयेलं; (३) शीखवq ते (४) बक्षिस'; भेट प्रसिद्ध (३) दर्शावेलं; प्रगट । (५) खंडन (६) परोणो प्रथिमन् पुं० विस्तार; विशाळता प्रदाय न० भेट ; बक्षिस प्रथिष्ठ वि० सौथी वधु विशाळ प्रदायक, प्रदायिन् वि. आपनाएं ('पृथु 'नु श्रेष्ठतादर्शक रूप) प्रदि पुं० बक्षिस; भेट प्रथीयस् वि० (बेमां) वधु विशाळ ; प्रदिग्ध वि० खरडायेल; लेपायेलं मोटुं ('पृथु'न तुलनात्मक रूप) (२) प्रदिश् ६५० बताव; दर्शावq (२) वधु विख्यात [(उदा० 'सुखप्रद') कहे; जणाव, (३) आपवू (४) प्रद वि० (समासने छेडे) -आपनाएं हुकम करवो;प्रेरवु (५) सलाह आपवी प्रदक्षिण वि० जमणी बाजु आवेल; प्रदिश् स्त्रो० बे दिशा वच्चेनो खूणो जमणी बाजु जतुं (२) आदरयुक्त प्रदीप पुं० दीवो (२)-नुं विवरण करतो (३) शुभ ; शुभ शुकनरूप (४) कुशळ ग्रंथ (ग्रंथना नामने छेडे) Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रदीपन प्रदीपन न० सळगावq ते (२) उजाळवं ते (३) उश्केर ते प्रदीप्त वि० सळगेलं; प्रकाशित (२) ऊंचु करेलु ; फेलायेल (३) उश्केरायेलं प्रदुष् ४ प० दूषित थq; बगडवू; भ्रष्ट थर्बु (२)पाप के अपराध करवो -प्रेरक भ्रष्ट करवं (२) दोष काढवो प्रदुष्ट वि० भ्रष्ट थयेलं (२) दुष्ट ; पापी (३) स्वच्छंदी [करते प्रदूषण न० भ्रष्ट करवं ते; अपवित्र प्रदश् १ प० [प्रपश्यति] जोवू; निहाळवू (२) विचारवं; मानवं प्रदेय वि० आपवान (२) जणाववानुं (३)परणाववानु (४)पुं० भेट प्रदेश पुं० दर्शावq के सूचवq ते (२) देश ; विभाग; प्रांत (३)स्थान ; स्थळ (४)अंगूठो अने तर्जनी फेलावतां जेटलं अंतर थाय ते [आंगळी - तर्जनी प्रदेशनी, प्रदेशिनी स्त्रो० अंगूठा पासेनी प्रदेष्ट पुं० न्यायाधीश प्रदोष वि० दुराचारी; भ्रष्ट (२) पुं० दोष; पाप ; गुनो (३) बळवो; अंधाधूंधी (४) रातनी शरूआतनो भाग प्रदोषक पुं० सांज प्रदोषतिमिर न० समीसांज- अंधारूं । प्रद्युम्न पुं० श्रीकृष्णनो पुत्र (कामदेवनो अवतार मनाय छे) प्रद्योत पुं० प्रकाश; तेज (२) किरण (३) उज्जयिनीनो प्रसिद्ध राजा प्रदु १५० नासी जq; दोडी जq (२) सामे वेगथी घसवू (३)हुमलो करवो प्रद्रेक १ आ० हणहणवू प्रद्वार स्त्री०, प्रद्वार न० बारणा के दरवाजा आगळनो भाग प्रद्विष् २ उ० द्वेष करवो प्रवेष पुं०, प्रद्वेषण न० द्वेष ; धिक्कार प्रषन न० युद्ध; लडाई(२)विनाश प्रषनाघातक वि० लडाई ऊभी करनारुं प्रधनांगण न० रणक्षेत्र प्रध्वंसिन् प्रवर्ष पुं० बळात्कार; हुमलो प्रषर्षक पुं० हुमलो करनार(२)पजवनार प्रघर्षण न०, प्रवर्षणा स्त्री० हुमलो; बळात्कार (२)अपमान; अनादर प्रधषित वि० हुमलो करायेलं; पराभव पमाडेलु (२)तुमाखीवाळं प्रधान वि० मुख्य ; श्रेष्ठ (२)पुं०, न० राजानो मुख्य मंत्री; वजीर (३) उमराव (४) महावत (५) सेनाध्यक्ष (६) न० अगत्यनी मुख्य वस्तु (७) सत्त्व-रज-तम ए त्रण गुणोनी साम्यावस्थारूप मूळ प्रकृति; जगतनुं मुख्य भौतिक कारण (सांख्य०) प्रषानेन अ० मुख्यपणे प्रधारणा स्त्री० एक वस्तु उपर मनने स्थिर करवं ते प्रधाव् १ उ० आगळ दोडवू; दोडी जवू (२) प्रसरी जq (३) धोवू; साफ करवू(४)लूछी नाखवू प्रधि ० पैडानो गोळ घेरावो प्रधी वि० उत्तम बुद्धिवाळं (२) स्त्री० उत्तम बुद्धि प्रपूपित वि० आपेलुं (२) तपावेलु (३) प्रगटावेलं; सळगावेलु (४)संतापेलं । प्रष १० उ० मूकवू; स्थिर करवू (२) निरधारवं; नक्की करवं प्रषष् ६५० हुमलो करवो (२) पजव, (३)ताबे करवू; हरावq -प्रेरक० हुमलो करवो (२) बळात्कार करवो (३)बरबाद करवू प्रध्मा १ प० [प्रधमति] फूंकवू (२) नाश करवो प्रध्यान न० ऊंडु ध्यान; चिंतन प्रध्ये १ उ० ध्यान धर; चितवq (२) विचारी काढवू; योजवं प्रध्वस्त वि० पूरेपूरु नष्ट प्रध्वंस १ आ० ध्वंस थवो; नाश पामवं प्रध्वंस पुं० विनाश प्रध्वंसिन् वि० नाशवंत Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनष्ट प्रनष्ट वि० नाश पामेलं (२) खोवाई गयेलं (३) नासी गयेलं (४) देखातुं बंध थयेलं प्रनृत् ४ ५० नाचवं - प्रेरक० नचाववु; कंपाववुं प्रनृत्त वि० नाचतुं (२) न० नृत्य प्रपक्ष पुं० पांखनो छेडानो भाग (जेमके, लश्करनी) प्रपतन न० ऊडवुं ते (२) -मां पडवुं ते ; नीचे पडवुं ते (३) नीचे ऊतरखं ते ( ४ ) विनाश; मृत्यु (५) सीधी कराड (६) हुमलो प्रपद् ४ आ० प्रवेश; डग भरवु (२) पासे जवुं; पहोंच (३) शरणे जब ( ४ ) - नी स्थिति पामवी (५) पामवं ; मेळववुं ( ६ ) - नी प्रत्ये वर्तवुं ( ७ ) कबूल राखबुं ने माया प्रपत्र वि० आवी पहोंचेलं; जई पहोंचेलुं (२) स्वीकारेलुं; माथे लीघेलुं (३) शरणुं लीधुं होय तेवुं (४) वळ लुं (५) पामेलुं; युक्त पलायन न० नासी के भागी जनुं ते प्रपलायित वि० नासी गयेलुं (२) भगाडी काढलं ; हरावेलुं प्रपंच पुं० देखाव; देखाड (२) विस्तार (३) विवरण ( ४ ) वैविध्य ; विपुलता (५) दृश्य जगत; संसार ( ६ ) कपट; [ कुशळ प्रपंचचतुर वि० जुदां जुदां रूप धरवामां प्रपंचवचन न० विस्तारवाळी वाणी प्रपा स्त्री० परब ( २ ) कुवो, टांकुं (३) हवाडी (ढोरने पाणी पीवानो ) प्रपाठक पुं० पाठ ( २ ) ग्रंथविभाग प्रपात पुं० विदाय थवं ते (२) पडवुं (३) अचानक करेलो हुमलो (४) पाणीनो धोध ( ५ ) किनारो ( ६ ) सीधी कराड ( ७ ) स्खलन प्रपान न० पीव्रं ते [ स्त्री प्रपापालिका स्त्री० परबे पाणी पानारी ३१४ प्रबोधन प्रपितामह पुं० पिताना दादा ( २ ) ब्रह्माना पण पिता परमात्मा प्रपीड् १० उ० दबाववुं; निचोववुं (२) त्रास गुजारवो (३) निग्रह करवो प्रपूरण न० भरी काढवुं ते; पूर्ण करवुं ते (२) अंदर भरवुं ते (३) संतोष ते ( ४ ) - साथ जोडवु ते ( ५ ) वाळवं ते (धनुष्यने) - प्रपु ९ प० भरी काढवं; पूर्ण करवं - कर्मणि० [ प्रपूर्यते] भरी कढावु ; पूर्ण करा प्रपौत्र पुं० पौत्रनो पुत्र प्रफुल्त वि० खीलेलं; विकसेलुं प्रफुल्ल वि० पूरेपूरुं खीलेलं (२) पहोळु थयेलु (जेम के आंख) (३) स्मित करतु; आनंदी ( ४ ) चळकतुं प्रबर्ह वि० उत्तम श्रेष्ठ प्रबल वि० जोरावर; बलिष्ठ (२) अतिशय तीव्र ; मोटुं (३) अगत्यनुं प्रबलम् अ० अतिशय; खूब होय तेम प्रबंध पुं० बंधन गांठ ( २ ) अखंडपणुं ; सातत्य (३) लांबो - चालु संवाद (४) ग्रंथ साहित्यरचना ( ५ ) गोठवण. प्रबाध १ आ० पीडवुं; जुलम गुजारवो (२) दबाववु; हांकी काढवु (३) गबडावी पाडवु; नाश करवो प्रबुद्ध वि० जागेलुं; जगाडेलुं (२) डायुं; जाणकार (३) खीलेलुं प्रबुध् १ प०, ४ आ० जाग (२) खीलवु (३) बोध थवो; जाणवुं -प्रेरक० जगाडवुं (२) जणाववुं ( ३ ) खीलववुं (४) शीखववुं ; समजावनुं प्रबोध पुं० जागवुं ते (२) खीलबुं ते (३) जागरूकता ; सावधानी; सावचेती (४) ज्ञान; तत्त्वज्ञान प्रबोधन न० जागवुं ते (२) जगाडवुं ते (३) भानमां आववुं तें (४) ज्ञान; डहापण ( ५ ) शिक्षण; सलाह Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रब २५० जाहेर कर (२) बूम पाडवी (३) कहे; बोलवू (४) प्रशंसा करवी (५) शीखवQ प्रभग्न वि० कचरी नाखेलु; हरावेलु प्रभद्रक वि० अत्यंत सुंदर प्रभव पुं० उत्पत्तिस्थान; मूळ (२) जन्म; उत्पत्ति (३) नदीनुं मूळ (४) उत्पन्न करनार कारण (५) समृद्धि (६) -मांथी जन्मेलं (समासने अंते) प्रभवित पुं० स्वामी; नियंता प्रभविष्णु वि० समर्थ ; शक्तिमान (२) श्रेष्ठ (३) पुं० स्वामी; मालिक प्रभंजन पुं० तोफानी पवन; वंटोळ प्रभा २५० देखावं (२) प्रकाशq (३) सवार थवी (४) प्रकाशित कर प्रभा स्त्री० दीप्ति; तेज (२) किरण प्रभाकर पुं० सूर्य (२) पद्मराग मणि प्रभात वि० तेजवाळूथवा लागेलं (२) न० परोढ ; सवार [आवेलु प्रभातकल्प,प्रभातप्राय वि० सवार थवा प्रभातरल वि०.देदीप्यमान प्रभापल्लवित वि० कांति वडे देदीप्यमान प्रभाप्रभु पुं० सूर्य .... प्रभाभिद् वि० देदीप्यमान .. प्रभामंडल न० तेजनुं कुंडाळू प्रभालेपिन् वि० प्रकाशित; तेजस्वी प्रभाव पुं० प्रकाश; दीप्ति (२)प्रताप; तेज (३) बळ ; पराक्रम ; ताकात प्रभावन वि० प्रभाववाळं; ताकातवान (२) उत्पादक (३) प्रगट करनारं (४) पुं० रचयिता; विधाता. . . प्रभाष १ आ० बोलवं; संबोध (२) जाहेर करवं (३) प्रगट करवू (४) समजाव (५) बकवू. प्रभाषित वि० कहेलं ; जाहेर करेल . प्रभास् १ आ० प्रकाशवं (२) देखा .. -प्रेरक० प्रकाशित कर प्रभास पुं० प्रकाश; कांति प्रमत्त प्रभास्वर वि० प्रकाशित; तेजस्वी .. प्रभिन्न वि० फाडेलु ; फाटेलं (२) टुकडा थयेलं (३) कापी नाखेलु जुदं पाडेलं (४) खीलतुं; ऊघडतुं (५) मदमां आवेल (६) वींधेलु (७) पुं० मद झस्तो हाथी प्रभित्रकरट वि० (गंडस्थळ फाटया होय तेवं) मद झरतुं [आंजण प्रभिन्नांजन न० (तेल मिश्रित) एक प्रभु वि० समर्थ; शक्तिशाळी (२) समोवडियु; सामनो करी शके तेवं (३) पुं० स्वामी; मालिक ; हाकेम। प्रभुता स्त्री० स्वामीपणुं; सत्ता; प्रभाव (२) मालकी .. प्रभू १ प० उत्पन्न थर्बु (२)हो; थवं (३) देखावू (४) वध (५) समर्थ थq; शक्तिमान थq ; पोतानी ताकात बताववी (६)-ना उपर काबू होवो; -ने दबाव (७) नुं बराबरियु थर्बु (८) पूरतुं थq; समावी शकवं (९) -मां समा [घणु; पुष्कळ प्रभूत वि० -मांथी उत्पन्न थयेलु (२) प्रभूतता स्त्री०, प्रभूतत्व न• पुष्कळता प्रभूतवयस् वि० घरडु, वृद्ध प्रभृति स्त्री० आदि; शरूआत (आ । अर्थमां बहुव्रीहि समासने अंते वपराय छे; उदा० इंद्रप्रभृतयः = इंद्र वगेरे) प्रभृति अ० -थी मांडीने प्रभेद पुं० फाडवं - चीरवं ते (२)भाग पाडवा ते (३) मद झरवो ते (४) तफावत; भिन्नता (५) नदीनुं मूळ प्रभ्रष्ट वि. पडी गयेलु (२) न० वाळनी लटमां लटकावेली फूलमाळा प्रभ्रंश १ आ०,४ प० पडी जवू ; गबडी पडवं (२) -ना विनाना थर्बु (३) --मांथी नासी छुटवू प्रमत्त वि० मदमत्त ; पीधेलु (२) गांडु (३) बेदरकार; प्रमादी (४) भूल करनाएं; कर्तव्यभ्रष्ट Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमा प्रमीत प्रमय् १, ९५० वलोव (२) अत्यंत प्रमाणपुरुष पुं० छेवटनो निर्णय आपनार पीडवू; त्रास आपवो (३) कापy; प्रमाणभूत वि०प्रमाणरूप; कबूल राखवू चीरी नाखवू (४) बरबाद करQ (५) पडे तेवू; विश्वासपात्र मारी नाखवू [एक वर्ग प्रमाणयति प० (प्रमाणभूत गणवू, प्रमथ पुं० घोडो (२)शिवना पार्षदोनो प्रमाणरूपे धर; साबित करवू) प्रमथन न० पीडवू ते (२) कचरतुं ते प्रमाणशास्त्र न० प्रमाणभूत शास्त्र (२) (३) वलोवq ते (४) मारी नाखवू ते तर्कशास्त्र; 'लॉजिक" प्रमथित वि० पौडेलं; रोळेलु (२) मारी। प्रमाणसूत्र न० मापवानी दोरी नाखेल (३) बराबर वलोवेल (४) प्रमाणाधिक वि० हंमेश करतां वधु; न० पाणी न उमेरेली छाश; मठो वधारे पडतुं [-रूप (२)प्रमाणभूत प्रमथिन् वि० नाश करनारं प्रमाणिक वि० प्रमाण, माप के धोरण प्रमद् ४ ५० [प्रमाद्यति] मदमत्त थर्बु प्रमाणीकृ ८ उ० प्रमाणभूत मानवू (२) (२) प्रमाद करवो; बेदरकार रहे, विश्वास करवो (३) नियत करवू; (३) भूल करवी; अवळे मार्गे जर्बु फाळे नाख, (४) मानवं; अनुसरवू (४) आळस करवू; समय वेडफवो (५) साबित कर (६) सलाह के (५) हर्षित थवं परवानगी मागवी (७)मंजूर राखवू; प्रमद वि० पीधेल; उन्मत्त (२) छाकटं; गणतरीमा लेवू भ्रष्ट (३) पुं० हर्ष ; आनंद प्रमातामह पुं० माताना पिताना दादा प्रमदवन न० राजाना अंतःपुरनी स्त्री- प्रमाण पुं० अत्यंत पोडवू ते (२) ओने क्रीडा करवानो बगीचो- उपवन वलोवq ते (३) वध ; हत्या; विनाश प्रमदा स्त्री० सुंदर युवान स्त्री (२) (४) बळात्कार; अत्याचार पत्नी (३) स्त्री प्रमाथिन् वि० पीडतुं; त्रास आपतुं (२) प्रमदाजन पुं० युवती (२)स्त्रीजाति नाश के वध करतुं (३) क्षुब्ध करतुं; प्रमदावन न० जुओ 'प्रमदवन' वलोवी नाखतुं (४) नीचे तोड़ी पाडतुं प्रमनस् वि० हर्षित (५)कापी नाखतुं प्रमन्यु वि० खीजवायेलं; गुस्से थयेलं प्रमाद पुं० बेदरकारी; दुर्लक्ष (२) (२)खिन्न ; दिलगीर [नाखनाएं मदमत्तता; छाकटापणु (३)बेहोशी; प्रमर्दन वि० मर्दन करनारूं; कचरी मूर्छा (४) गांडपण (५) भूल; प्रमंय् १, ९५० जुओ 'प्रमथ्' गफलत (६)अकस्मात ; आफत प्रमा २ प०, ३ आ० मापवू (२) बना- प्रमादिन् वि० गाफेल ; बेदरकार (२) व; रचQ (३) साबित करQ (४) छाकटुं; पीधेलु(३) गांडु गोठवq (५) जाणवू; समजवू (६) प्रमापण न० आकृति (२)वध; कतल अटकळ करवी प्रमित वि० मापेल (२) मर्यादित ; थोडं प्रमाण न० माप (२) कद (३) मापवानो (३) जाणेलं; समजेल (४) साबित गज (४) पुरावो (५) साचा-खोटानी __ करेल (५) (समासने अंते) अमुक परीक्षा के निर्णय (६)निश्चित ज्ञान मापर्नु [साचुं ज्ञान (७) तेनुं साधन (प्रत्यक्ष, अनुमान प्रमिति स्त्री० माप (२) निश्चित के वगेरे प्रमाणो) [कदनुं प्रमीत वि० मरण पामेलु (२) यज्ञमां प्रमाणक वि० (समासने छेडे) मापन; होमेलु (३) पुं० यज्ञमां वधेरेलू पशु Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रमीला प्रमीला स्त्री० घेन; तंद्रा प्रमीलित वि० मींचेली आंखवाळु प्रमुख वि० सामे मोंवाळं (२) मुख्य; आगेवान; प्रथम (३) संमाननीय (४) (समासने अंते) – आगेवान होय तेनुं; साथ होय तेवुं (उदा० वासुकिप्रमुखाः ) [ आगळ प्रमुखत, प्रमुख अ० ती सामे; नी प्रमुग्ध वि० मूर्च्छित ( २ ) अत्यंत सुंदर प्रमुच् ६ प० मुक्त करवुं (२) फेंक (३) बहार काढवु ; मोकलबुं ( ४ ) छोड (गांठ के बंधन ) (५) काढी मूकवुं ( ६ ) आप प्रमुद् १ आ० खूब हर्षित थबुं - प्रेरक ० खुश कर प्रमुद् स्त्री० अत्यंत हर्ष प्रमुदित वि० अत्यंत आनंद पामेलुं प्रमुष् ९ प० दूर करवुं; झांखु पाडवु (२) लूंटी जवं; चोरी जबुं प्रमुषित वि० चोरायेलुं ( २ ) दूर करायेलं; लई लेवायेलुं मूर्ख प्रमूढ वि० ० मूढ बनेलं; मोह पामेलुं (२) प्रमृज् २ प० लुछी नाखवुं; साफ करवु (२) दूर करवु; - विनाना थवुं ( ३ ) प्रायश्चित्त कर ( ४ ) पंपाळबुं प्रमृष्ट वि० साफ करेलुं; लूछेलुं (२) मांजेलुं; ऊजळं प्रमेय वि० मापी शकाय तेटलं; मर्यादित (२) साबित करवा योग्य ( ३ ) न० प्रमाणथी साबित करवानुं ते (४) निश्चित ज्ञान प्रमेह पुं० ते नामनो रोग - परमियो प्रमोद पुं० आनंद; हर्ष प्रमोह पुं० मोह; मूर्छा [ गंदु प्रम्लान वि० करमायेलं (२) मलिन; प्रम्ले १ प० करमावुं (२) उदास बनवुं (३) थाकी जवं ( ४ ) मेला थवुं प्रयत् १ आ० प्रयत्न करवो ३१७ : प्रयुक्त प्रयत वि० संयमी; निग्रही; तपस्वी (२) उद्यमी ; यत्नवान प्रयतन न० प्रयत्न; उद्यम प्रयतात्मन् वि० संयमी; तपस्वी ( २ ) प्रयत्नशील ; उद्यमी प्रयत्न पुं० प्रयास; महेनत ; उद्यम (२) श्रम; कष्ट; मुश्केली (३) भारे काळजी ( ४ ) प्रवृत्ति प्रयत्नतः, प्रयत्नात अ० महा महेनते; खंतथी (२) भाग्ये (३) खास प्रयम् १प० [ प्रयच्छति ] आपवुं (२) निग्रह करवो ( ३ ) परणावकं ( ४ ) भरपाई करवुं (जेम के देवं) प्रयस्त वि० वीखरायेलं; आम तेम फेंका (२) प्रयत्नशील प्रया २ प० जवुं; चालवुं ( २ ) जवा नीकल / ३) चाल्या जबुं; विदाय rj ( ४ ) प्रगति करवी प्रयाग पुं० गंगा-यमुनाना संगम उपरनुं तीर्थस्थान (अलाहाबाद ) प्रयाण न० जवा नीकळवं ते; प्रस्थान (२) मुसाफरी ( ३ ) प्रगति; आगेकूच (४) शरूआत ( ५ ) मृत्यु (६) कोई पण प्राणीनो पृष्ठ भाग प्रयाणक न० प्रस्थान; मुसाफरी प्रयाणकाल पुं० विदायवेळा प्रयाणभंग पुं० पडाव ( मुसाफ मां ) प्रयात वि० गयेलुं; विदाय थयेलं (२) मृत (३) पुं० सवारी; चडाई ( ४ ) ऊंची भेखड; कराड (५) न० चालवानी रीत - ढब प्रयाम पुं० अछत; तंगी (पाणी, अनाज इ०नी ) ( २ ) निग्रह; संयमन ( ३ ) लंबाण; लंबाई प्रयास पुं० यत्न (२) मुश्केली; महेनत प्रयुक्त वि० झुंसरीए जोडेल (२) उपयोग करेलु; वापरेलुं (३) नीमेलुं; ( ४ ) - मांथी जन्मतुं; परिणामरूप Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रयुज i ( ५ ) ध्यानमग्न ( ६ ) प्रेरेलु (७) गतिमान करेलु प्रयुज् ७ आ० प्रयोग करवो; वापर (२) निमणूक करवी (३) आप (४) हलाव; गतिमान करवुं ( ५ ) प्रेरवुं ( ६ ) आचरवुं ; करवुं ( ७ ) नाट्यप्रयोग करवो ( ८ ) . व्याजे धीरखं ( ९ ) झुंसरीए जोडवं (१०) फेंकवुं ( अस्त्र) ( ११ ) योग्य होवु ; छाजवं प्रयुत न० दश लाखनी संख्या प्रयुद्ध वि० उग्रपणे लडनारुं ( २ ) न० युद्ध प्रयोक्तृ वि० उपयोग करनाएं ( २ ) अमल करनाएं ( ३ ) प्रेरनारुं ( ४ ) लेखक; कर्ता (५) नाट्यप्रयोग करनारुं (६) फेंकनारुं (बाण इ० ) प्रयोग पुं० उपयोग; वापर ( २ ) फेंक ते; प्रयोग करतो ते (३) अभिनय करवो ते; भजववुं ते (४) प्रत्यक्ष उपयोग, व्यवहार के अमल ('शास्त्र'थी ऊलटं ) ( ५ ) योजना; युक्ति प्रयोगचतुर, प्रयोगनिपुण वि० (कळानो) प्रयोग करवामां कुशळ; अनुभवो प्रयोगातिशय पुं० नाटकनी प्रस्तावनानो एक प्रकार (सूत्रधार पोतानुं काम अधूरुं राखी बीजा पाना प्रवेशनी सूचना करतो चाल्यो जाय ते) प्रयोगिन् वि० प्रयोग करनारुं (२) प्रयोजनवाळे (३) प्रेरनाएं प्रयोजक वि० योजनाएं, करनाएं, प्रेरनाएं, नीमनाएं इ० (जुओ ' प्रयुज् ' ) प्रयोजन न० उपयोग ( २ ) जरूर; अगत्य ( ३ ) हेतु; लक्ष ( ४ ) उपाय ; साधन (५) कारण; सबब प्ररुच् १ आ० खूब प्रकाशवुं ( २) गमव प्ररुदित वि० खूब विलाप करतुं प्ररुह् १ प० ऊगवुं (२) रुझावुं (घा वगेरे) प्ररूढ वि० ऊगेलुं; विकसेलुं (२) जन्मेलुं; उत्पन्न थयेलुं (३) वधेलुं (४) खूब ऊंड गयेलुं (५) लांब वधेलु ३१८ प्रलुप्त प्ररोचन वि० रुचि उपजावनाएं (२) नं० प्रेरवुते (३) उदाहरण; दृष्टांत (४) लोभावते; आकर्षतुं ते ( ५ ) प्रदर्शन प्ररोह पुं० अंकुर; फणगो (२) कुंपळ ; पल्लव (३) वंशज (४) तेजनो अंकुर प्रलप् १ ५० बोलवु; वात करवी (२) बकवाट करवो (३) फावे तेम असंबद्ध बोलवु ( ४ ) विलाप करवो प्रलपन न० बोलवं ते; वातचीत ( २ ) बकवाट ; प्रलाप (३) विलाप प्रलपित वि० बोलेलं; बबडेलु (२) न० बोलते प्रलब्ध वि० छतरायेलुं; ठगायेलुं प्रलभ् १ आ० छेतरवु; ठगवुं प्रलय पुं० विनाश (२) (कल्पने अंते थतो) सृष्टिनो विनाश ( ३ ) मोटो विनाश बरबादी (४) मृत्यु ( ५ ) मूर्छा प्रलंब वि० लांबु; लबडतुं (२) ऊंचं; देखाई आवे ते (३) धीमुं; विलंब करतुं (४)पुं० लटकतुं - लबडतुं एवं ते ( ५ ) शाखा (६) कंठे पहेरेली लांबी माळा ( ७ ) कंठी ( ८ ) स्तन प्रलंबित वि० लटकतु; झूलतुं प्रलंभ पुं० मेळववुं ते (२) छेतरखुं ते प्रलंभन न० छेतर ते (२) छेतरपिंडी; दगाबाजी (३) मश्करी प्रलाप पुं० वात; वातचीत (२) बकवाट; बबडाट (३) विलाप प्रलापिन् वि० बोलतुं; बोलनारुं; बात करतुं (२) बबडाट करतु; प्रलाप करतुं प्रली ४ आ० ओगळी जवुं (२) भळी जवुं; समाई जवं (३) अदृश्य थवुं (४) नाश पावो प्रलीन वि० ओगळी गयेलुं (२) नाश पामेलुं (३) मूर्छित (४) ढंकाई गयेलुं; छुपाये (५) मृत प्रलुठ् १ प० जमीन उपर आळोटवुं (२) क्षुब्ध थवुं; ऊछळवं प्रलुप्त वि० लूंटायेलं Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रलुब्ध वि० छेतरनारं(२)छेतरायेखें; ललचायेलं; भ्रष्ट थयेलं प्रलुभ् ४ ५० लोभ करवो; लालसा करवी (२) ललचावq (३) भ्रष्ट कर प्रलून वि० कापी नाखेल; कपाई गयेखें प्रलेप पुं० लेप प्रलेह पुं० सूरण आदिनी एक कढी प्रलोभ पुं० अत्यंत लोभ, लालसा (२) ललचावq ते प्रलोभन न० लोभाववं, आकर्षवू के ललचाव ते (२) ते माटेनी वस्तु प्रलोम्य वि० आकर्षक ; लोभावनाएं प्रलोल वि० खूब हालतुं-कंपतुं . प्रवक्त पुं० शिक्षक; समजावनार (२) वक्ता (३) बोलनार प्रवचन न० बोलवू-जाहेर करवु ते । (२) शीखवयूँ- समजावq ते (३) विवरण; चर्चा (४) वक्तृत्व (५) शास्त्रग्रंथ; सिद्धांत; दर्शन प्रवण वि० नीचे ढळतुं; नीचे नमतुं; नीचे वहेतुं (२) एकदम सीधुं-ऊ (३)वांकुं वळेलं (४)वलणवाळं (५) आसक्त; लागेलं (६) तत्पर प्रवणीकृ८ उ० अनुकूळ करवू प्रवद् १५० बोलवू; कहेवू; संबोधq (२) जाहेर कर प्रवप् १ उ० नाखवू (२)वेरवं; विखेरवं प्रवयण न० परोणो (हांकवा माटेनो) प्रवयस् वि० मोटी उमर- (२) पुराणुं प्रवर वि० मुख्य ; उत्तम (२) मोटामां मोटुं (३) पुं० गोत्रप्रवर्तक मुनि (४) वंश; कुळ (५) संतति; वंशज . प्रवरकल्याण वि० घणुं सुंदर प्रवरजन पुं० उत्तम माणस प्रवर्ग पुं० यज्ञनों अग्नि (२) विष्णु प्रवर्दी पुं० सोमयज्ञनो प्रारंभिक विधि प्रवर्तक वि० प्रवर्तावनाएं; स्थापनाएं (२) आगळ वधारनारु (३) उत्पन्न करनारं(४)प्रेरनारं(५)पुं० स्थापक; उत्पादक; कर्ता (६) प्रेरनार (७) न० पात्रनुं रंगभूमि उपर आवतुं ते प्रवर्तन न० प्रवर्तवं ते; आगळ खसर्बु के वधवंते (२) शरूआत (३) स्थापना (४)प्रेरणा(५)-मां वळगq ते;-मां प्रयत्नशील थर्बु ते (६) बनवू ते; घटना; प्रवृत्ति प्रवर्तना स्त्री कार्यमांप्रेरवं ते प्रवर्तित वि० प्रवर्तावेलु; चलावेलु; घुमावेलु (२) स्थापेलु (३)प्रेरेलु (४) प्रज्वलित करेलु (५) बनावेलुं; रचेलं प्रवतिन् वि० प्रवृत्त थतुं; आगळ चालतुं (२) बनावतुं (३) वापरतुं (४)-माथी नीकळतुं (५) फेलातुं प्रवर्ष पुं० भारे वरसाद प्रवर्षण न० पहेलो वरसाद(२)वरसवू ते प्रवर्ह वि० जुओ 'प्रबह प्रवस् १ प० वास करवो (२) प्रवास करवो; परदेश जर्बु प्रवसन न० प्रवासे नीकळवू ते प्रवह, १५० वहन करQ प्रवह पुं० नगरथी बहार जq ते (२)एक जातनो पवन (ग्रहोने गतिमान करतो) (३)पाणी जेमां वहीने भेगु थाय ते प्रवहण न० म्यानो; पालखी (स्त्रीओ माटेनी) (२)वाहन (३)वहाण प्रवलिका स्त्री० जओ 'प्रहेलिका' प्रवाच वि० वक्तृत्वशक्तिवाळु (२) वातोडियुं (३)बडाश मारनाएं प्रवात वि० अतिशय पवन आवे तेQ (२) न० वहेतो ताजो पवन (३) तोफानी पवन; वंटोळ (४) पवनवाळी जगा प्रवातशयन न० पवनवाळी जगामां गोठवेली शय्या प्रवातसुभग वि० ताजा वहेता पवनने कारणे आनंदप्रद एवं प्रवाद पुं० अवाज करवोते; शब्द उच्चारवो ते (२) उल्लेख करवो ते; जाहेर Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रदेक ३२० करते (३) वातचीत (४) लोकवायका ___-मां रोकायेलं; गूंथायेलु (३) ऊंडु (५)दंतकथा (६)पडकार (७) निंदा; ऊतरी गयेलुं (जैम के आंख) [ते कलंक (८) बहार्नु; मिष प्रविष्टक न. रंगभूमि उपर दाखल थवं प्रवाल पुं०, न० फणगो; कुंपळ (२) प्रविसृत वि० पथरातुं (२) नासी गयेलु परवाळू [दूर जq ते (३)तीव्र [पार्छ भगाडेलु प्रवास पुं० परगाम वसवू ते ; मुसाफरीए प्रविहत वि० नसाडी मूकेलं; मारीने प्रवासन न०परगाम रहेवू ते के जq ते(२) प्रवीण वि० चतुर; कुशळ; निपुण । देशनिकाल करवं ते (३) वध; कतल प्रवीर वि० मुख्य ; उत्तम (२) बळवान; प्रवासिन् पुं० मुसाफर; वटेमाणु पराक्रमी (३)पुं० वीर पुरुष (४) मुख्य प्रवाह पुं० वहेवू ते (२) वहेण(३)परंपरा -विशिष्ट माणस (४)घटनाओनी परंपरा (५)प्रवृत्ति । प्रव ५ उ० ढांकवृं; आच्छादन करवू अविघटित वि० कापी नाखेलं; छुटुं (२)पहेरवु (३)पसंद कर पाडेलु [आगळ वधवू प्रवृत् १ आ० आगळ वधq (२)-मांथी 'प्रविचर् १५० रखडवू; भटकवू (२) नीकळवू; उदय थवो (३)बनवू; थर्बु प्रविचल् १५० विचलित थवू; अवळा (४)आरंभ करवो(५)प्रयत्न करवो; जq (२)कंपवू; धूजq.. प्रयत्नशील थर्बु (६) वर्तवू; आचरवू प्रविचारमार्ग पुं० ब०व०(लडती वखते) (७)होQ (८) सतत चालु रहेQ। एक बाजुथी बीजी बाजू ठेकडा भरवा ते प्रवृत वि० ('प्रवृ'नुं भू० कृ०)पसंद प्रवितत वि० विस्तीर्ण (२)वीखरायेखें; करेलु __ अस्तव्यस्त (वाळ) प्रवृत्त वि० ('प्रवृत् 'नुं भू० कृ०)शरू अविषा ३ उ० नक्की करवं; निर्णय करेलं (२) शरू थयेलं; बेठेलं (ऋतु करवो (२) बनावq; करवू (३)चिंतन इ०) (३) मां लागेलं (४) -तरफ करवू; विचार जवा नीकळेलु (५) निश्चित; स्थिर प्रविभक्त वि० छुटुं पाडेलु; अलग करेलु करेलुं (६)वहेतुं प्रविभाग पुं० जुएं पाडवू ते ; वहेंचणी(२) प्रवृत्तवाक् वि० वक्तृत्वशक्तिवार्छ भाग; हिस्सो प्रवृत्ति स्त्री० सतत आगळ वधq ते प्रविरल वि० घणा अंतरवाळू (२)घj (२) ऊगम; मूळ ; उद्भवस्थान (३) थोडं; भाग्ये ज जोवा मळतुं देखावू के प्रगट थqते (४)शरूआत थवी प्रविलप्त वि० कापी नाखेल; अळगुं ते; बेस, ते (ऋतुनुं) (५) वलण; करेलु (२)भूसी नाखेलं लगनी (६)वर्तन; वर्तणूक (७)घंधो; अविवाद पुं० वादविवाद; तकरार । कामकाज (८) उपयोग; प्रचार (९) प्रविविक्त वि० अलग पाडेलु; अळगुं कर्ममय जीवन ('निवृत्ति'थी ऊलटुं) (२) एकांत; निर्जन (१०) समाचार; खबर [न इच्छतुं अविश् ६५० पेस; दाखल थर्बु (२) प्रवृत्तिपराममुख वि० समाचार आपवा शरुआत करवी; मंडवं प्रवृद्ध वि० वघेलं; विकसेलु (२)पूर्ण; प्रविषण्ण वि० खिन्न ; उदास ऊंडु (३) तुमाखीभर्यु प्रविषय पुं० गोचर; क्षेत्र; पहोंच प्रवृद्धि स्त्री० वृद्धि; विकास (२)समृद्धि प्रविष्ट वि० दाखल थयेलं; पेठेलु (२) प्रवेक वि• उत्तम; श्रेष्ठ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रवेग प्रवेग पुं० मोटो वेग प्रवेण वि० अमुक खास जातनी बकरीनुं प्रवेणि ( - णी) स्त्री० वेणी ( २ ) (पतिना वियोगमा) गूंध्या वगरनी वेणी ( ३ ) हाथीनी पीठ उपर नाखवानी झूल प्रवेदित वि० जणावेलुं प्रवेरित वि० आमतेम फेंकेलुं के वेरेलुं प्रवेश पुं० दाखल थवुं ते; पेसवुं ते ( २ ) रंगभूमि उपर आववुं ते ( ३ ) बारणं; द्वार (४) लगनी ; खंत प्रवेशक पुं० वचगाळामां बनी गयेली घटना सूचववा बे अंकोनी वचमां गौण पात्रोनो प्रवेश ( प्रथम अंकना आरंभे के छेल्ला अंकने अंते न होय ) प्रवेशित वि० दाखल करेलुं (२) नीमेलुं (३) (अमुक स्थितिमां) नाखेलुं (४) - नी समक्ष रजू करेलुं प्रवेश्य वि० दाखल करवा योग्य ( २ ) - मां पेसवा के व्यापवा योग्य ( ३ ) वगाडवा योग्य ( वार्जित्र ) प्रव्यथ् १ आ० व्यथा पामवी (२) बीबुं प्रव्रज् १ प० देशनिकाल थवुं ( २ ) संन्यास लेवो; भिक्षु बनवुं प्रव्रजित वि० देशनिकाल थयेलुं ( २ ) संन्यासी थयेलुं (३) पुं० भिक्षु (बौद्ध के जैन ( ४ ) संन्यासी; तपस्वी प्रव्रज्य न०, प्रव्रज्या स्त्री० बहार विच वुं - भटकवुं ते ( २ ) संन्यासी के भिक्षु तरीके विचरवुं ते ( ३ ) संन्यास प्रव्राज्, प्रव्राजक पुं० संन्यासी प्रशम् ४० [ प्रशाम्यति ] शांत थवु; शांत पडवुं(२)अटकवुं; बंध पडवुं (३) छीपवं; बुझावुं (४) क्षीण थकुं - प्रेरक० सांत्वन पमाडवु; शांत पाडवुं ( २ ) ठारी देवुं; बुझावी देवुं (३) अंत लाववो (४) हराववुं ( ५ ) रुझाaj; मटाडवु प्रशम पुं० शांति ; स्वस्थता (२) विश्रांति (३) निवृत्ति; अंत; नाश ( ४ ) सांत्वना ३२१ प्रश्रयण प्रशमन वि० शांत पाडनाएं ; शमावनाएं (२) न० शांत पाडवुं ते; शमाववुं ते ३) मटाडवुं के रुझाववुं ते (४) निवृत्ति; अंत ( ५ ) सुरक्षित कर ते प्रशमित वि० शांत थयेलुं; शांत पाडेलुं (२) बुझावेलुं ( ३ ) धोई काढेलुं; प्रायश्चित करेलु प्रशस्त वि० वखाणेलुं (२) वखाणवा योग्य (३) उत्तम; श्रेष्ठ ( ४ ) शुभ ; भद्र प्रशस्ति स्त्री० स्तुति; वखाण; प्रशंसा (२) कोईनी प्रशंसा माटे लखातुं काव्य प्रशस्य वि० प्रशंसा करवा योग्य प्रशंस् १ प० प्रशंसा करवी ( २ ) जाहेर कर ( ३ ) भविष्य भाखवुं प्रशंसनीय वि० वखाणवा योग्य प्रशंसा स्त्री० स्तुति; वखाण (२) कीर्ति प्रशाखा, प्रशाखिका स्त्री० डाळखी प्रशासु २ प० शीखववुं ( २ ) हुकम करवो ) शासन करवुं ( ४ ) शिक्षा करवी २ ० प्रार्थवु; मागवु प्रशासक पुं० शासनकर्ता (२) गुरु प्रशासन न० राज्य; अमल ; शासन प्रशासित, प्रशास्तृ पुं० राज्यकर्ता ; हम (२) सलाहकार ; निदर्शक प्रशांत वि० शांत थयेलुं; शांत पाडेलुं (२) नीरव; गंभीर ( ३ ) ताबे थयेल (४) समाप्त (५) मृत ( ६ ) दूर थयेलुं प्रशांतबाध वि० बधां विघ्नो दूर थयां होय तेवुं [ चित्तवाळु प्रशांतात्मन् वि० शमयुक्त के शांत प्रशिथिल वि० घणुं ढीलुं, धीमं के झांखु प्रशिष्य पुं० शिष्यनो शिष्य प्रश्चोतन, प्रश्च्योतन न० झमवुं ते; टपकवूं ते; छंटकाव प्रश्न पुं० सवाल ; पूछपरछ (२) चर्चानो मुद्दो (३) उकेलवा माटेनो कोयडो (४) भविष्य जाणवा कराती पूछपरछ प्रश्रय पुं०, प्रश्रयण न० विनय; आदरभाव (२) स्नेह (३) आश्रय Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रश्रित ३२२ प्रसादपरामुख प्रश्रित वि० नम्र विनयी प्रसवन न० बाळकने जन्म आपवो ते प्रश्लेष पुं० गाढ संबंध के आलिंगन प्रसवबंधन न० फूल-फळनुं दींटुं प्रश्वास पुं० श्वास लेवो ते प्रसववेदना स्त्री० प्रसव वखतनी पीडा प्रष्ठ वि० अग्रेसर; मुखियो; आगेवान प्रसवंती स्त्री० प्रसव आपती स्त्री प्रसकल वि० खुब भरावदार प्रसवित पुं० पिता प्रसक्त वि० आसक्त; वळगेलुं (२) प्रसवित्री स्त्री०. जननी; माता चोटेलं (३) लगनीवाळू (४) नजीकर्नु प्रसवोन्मुख वि० प्रसूति के सुवावडनी (५) सतत; अखंड तैयारीमा होय तेवू प्रसक्तम अ० सतत; चाल प्रसव्य वि० ऊलटुं (२)डाबी बाजु वळेलु प्रसक्ति स्त्री० आसक्ति (२)संबंध (३) के फरेलु (३) अनुकूळ लागु पडवू ते (४)खंत; प्रयत्न(५)प्राप्ति प्रसह १ आ० सहन करवु (२) सामनो प्रसत्ति स्त्री० कृपा; प्रसन्नता (२) करवो (३) प्रयत्न करवो (४) हिंमत निर्मळता; पारदर्शकता करवी; शक्तिमान थq। प्रसद् १ प० प्रसीदति प्रसन्न थ; प्रसह्य अ० बळात्कारे; जोरजुलमथी खुश थर्बु (२) संतुष्ट थq; शांत थर्बु (३) (२) अत्यंत (३)जीतीने (४)एकदम; स्वच्छ थवू; निर्मळ थर्बु (४) सफळ थर्बु तरत ज (५) अवश्य । प्रसन्न वि० स्वच्छ ; निर्मळ (२)खुश; प्रसंख्यान पुं० भरपाई करवू ते (रकम) संतुष्ट (३) कृपावंत (४) स्पष्ट समजाय (२) न० गणतरी (३)चिंतन, मनन तेवू(५)साचुं; खरं लगभग साचुं (४) कीर्ति; ख्याति प्रसन्नकल्प वि० लगभग शांत थयेलं (२) प्रसंग पुं० आसक्ति; प्रीति (२) संबंध; प्रसन्नसलिल वि० स्वच्छ जळवाळं समागम (३) व्यभिचार (४) -मां प्रसन्ना स्त्री० मदिरा;दारू [पुं० विष्णु लागु रहे ते (५) बनाव; घटना (६) प्रसन्नात्मन वि० कृपावंत ; खुश थयेलु(२) परिणाम आवी पडवं ते प्रसनेरा स्त्री० एक जातनी मदिरा प्रसंगवशात् अ० संयोगवशात् प्रसभ पुं० जुलम ; बळात्कार प्रसंगिता स्त्री० आसक्ति; लगनी प्रसभदमन न० बळात्कारे दमन करवं ते प्रसंगिन् वि० आसक्त ; संबद्ध (२) प्रासंप्रसभम् अ० बळात्कारे; जोरजुलमथी गिक; कोईक वार बनतुं (३) गौण (२)अत्यंत (३) अनुचितपणे प्रसंज् १ प० [प्रसजति ] आसक्त थर्बु प्रसर पुं० आगळ वधq के धपq ते (२) -कर्मणि० चोटबुं; वळगQ (२) निर्विघ्न गति (३) विस्तृत थर्बु ते (४) परिणामरूपे आवी पडवू; प्रसंग आववो कद; जथो (५)प्रवाह; पूर (६)अव- प्रसंजित वि० बनावेल अस्तित्वमा आणेलु काश ; तक (७) गोचर; क्षेत्र (आंखD) प्रसंदान न० दोरडु; बंधन प्रसरण न० दोडी जq ते (२)नासी जदूं प्रसाद पुं० कृपा (२) शांति; स्वस्थता ते(३)फेलावू ते [सरकतुं (३)निर्मळता (४) देव वगेरेने अर्पण प्रसपिन् वि० आगळ वधतुं; फेलातुं (२) करेलुं भोजन (५) बक्षिस; भेट प्रसव पुं० जन्म आपवो ते; प्रसूति (२) प्रसादक वि० निर्मळ करनारु (२)शांत संतति;फरजंद (३)जन्मस्थान; उत्पत्ति- पाडनारु (३)खुश करनारं स्थान (५) फूल (६) फळ ; परिणाम प्रसादपराङमुख वि० कोईनी कृपा न Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रसादिन ३२३ इच्छतुं (२) कृपा पाछी खेंची लीधी प्रसू वि० प्रसव करनारं; जन्म आपनाएं होय तेवू . .. (२) स्त्री० माता प्रसादिन वि० जुओ 'प्रसादक' प्रसूत वि० जन्मावेलं; उत्पन्न करेलू प्रसाध् -प्रेरक प्राप्त कर (२)ताबे प्रसूति स्त्री० जन्म आपवो ते (२) ईंडां करवू (३) सिद्ध करवू (४) आगळ मूकवां ते (३) जन्म ; उत्पत्ति (४)प्रगट धपावq (५) शणगारवू; पहेरावयूँ थ, ते; बेसवं ते (फूल इ०) (५) प्रसाधक पुं० मालिकने अलंकार पहेराव- संतति (६) उत्पादक; पेदा करनार नार सेवक (७) मा (८)कारण । [कळी प्रसाधन न० साधq के सिद्ध करवू ते (२) प्रसून वि० पेदा थयेलु (२)न० फूल (३) गोठवq ते (३) शणगार, ते (४) प्रसूनबाण पुं० कामदेव; मदन शणगार(५)पुं०, न० कांसको प्रस १५० वहेवू; नीकळवू; ऊगम थवो प्रसाधनविशेष पुं० उत्तम शणगार (२) आगळ वधq (३) फेलावू; व्याप्रसाधनी स्त्री० कांसकी पवू(४) लांबु थर्बु (जेम के हाथ) (५) प्रसाधिका स्त्री० राणी वगेरेने शणगार वृत्ति थवी; वलण थर्बु (६) आरंभ पहेरावनार स्त्री थवो; प्रवर्तवू (६) दृढ के गाईं थर्बु प्रसृज ६५० त्याग करवो छूटुं करवू प्रसाध्य वि० साधवा के सिद्ध करवा (२) वावq; वेरवु (३)छोडवू; फेंक योग्य (२) संपादन करवा लायक प्रसृत वि० आगळ गयेलु (२) फेलावेलुं; (३) वश करवा योग्य लंबावेलु (३) फेलायेलुं (४)-मां लागेलं; प्रसार पुं० फेलावो; फेलावं ते (२) निष्ठावान; आसक्त (५) झडपी (६) वेपारीनी दुकान - हाट प्रगट करेलु के थयेलं (७) सूक्ष्म अर्थ प्रसारित वि० फेलावेलु; विस्तारेलु (२) जाणनारु (८) रांधेलं; तैयार थयेलं बहार मूकेलं; खुल्लु करेलु (वेचवा (९) पुं० अंजलि वाळी लांबो करेलो माटे) [तेवू (साप) हाथ (१०) न० फूटी नीकळेल ते; प्रसारितभोग वि० फणा फेलावी होय घास, छोड इ० (११) खेतीवाडी प्रसित वि० सीवेलं; जोडेलं (२) लगनी प्रसतज पुं० परस्त्रीयी थयेलो पुत्र वाळु; लागेलं; मचेलु (३)तलपतुं (४) प्रसति स्त्री० प्रगति; आगळ वधवं ते अत्यंत स्वच्छ (५)न० पर; पाच (२) वहेवू ते (३) अंजलि वाळी लांबो प्रसिद्ध वि० जाणीतुं; प्रख्यात (२) करेलो हाथ (४) खोबा जेटलं माप शणगारेलु (३) उत्तम (५) झडप; वेग प्रसिद्धि स्त्री० ख्याति (२) सफळता; प्रसृत्वर वि० फेलातुं; प्रसरतुं सिद्धि (३) शणगार प्रसृप १५० आगळ वधवं (२) फेलावं प्रसिध् ४ प० सिद्ध थq; मळवू (२)सफळ (३) सरकवू; सरवु (४) चोतरफथी थ, (३)प्रसिद्ध थर्बु (४) साबित थq आवी पडq (जेम के अंधारूं) (५)शणगारावं [जन्म आपवो प्रसमर वि० प्रसरतं; नीकळतं प्रसु १ १०, २, ४ आ० प्रसव करवो; प्रसेक पुं० झरवू के टपकवूते (२)सींचQ प्रसुप्त वि० गाढ निद्रामां पडेल के छांटवं ते प्रस १५०, २, ४ आ० जुओ 'प्रसु' प्रस्कन्न वि० हुमलो करेल के करायेलं (२) ६ प० फेंकवु (३) प्रेरवं (२)हरावेलु(३)पडी गयेलु;खोवायेलं Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ प्रस्मृति प्रस्कंद १५० कूदी पडवु(२)हमलो करवो प्रस्थान न जवानीकळवं ते (२) आगमन प्रस्कंदिका स्त्री० संग्रहणी (रोग) (३) मोकली देवं ते (४)सरघस (५) प्रस्कुंद पुं० चक्राकार वेदी लश्करनी कूच (६) मृत्यु (७) पंथ; प्रस्खल १५० हडसेला खावा; धक्का संप्रदाय (८)भिक्षाव्रत वागवा(२)ठोकर खावी; लथडियुं खावं प्रस्थानत्रय न०, प्रस्थानत्रयो स्त्री० भगप्रस्तर पुं० पांदडां फूल वगेरेनी शय्या वद्गीता, उपनिषदो अने ब्रह्मसूत्र (२)पथारी (३) सपाटी (४)पथ्थर; -ए त्रणनो समुदाय शिला (५) दर्भनी एक मूठी (६) प्रस्थापन न० मोकलवू,वळावq के विदाय ग्रंथनो भाग; फकरो करवं ते (२) साबित करवं ते (३) प्रस्तार पुं० पांदडां फल वगेरेनी शय्या उपयोग करवो ते [वळाववा योग्य (२) पथारी (३)सपाटी (४) झाडी प्रस्थापनीय वि० मोकलवा योग्य; (५) घाट; ओवारो प्रस्थापित वि० मोकलेलं; वळावेलु प्रस्ताव पुं० आरंभ (२) प्रस्तावना (३) (२) स्थापित करेलु (३) प्रेरेलं; उल्लेख (४) प्रसंग ; अवसर (५)चालु धकेलेलं (४) ऊजवेलुं (उजाणी इ०) मुद्दो; प्रकरण (६) प्रारंभिक स्तवन प्रस्थायिन् वि० विदाय थतुं; जतुं; प्रस्तावना स्त्री० स्तुति; वखाण (२) मुसाफरी के कूच करतुं आरंभ ; शरूआत (३) उपोद्धात प्रस्थित वि० मुसाफरीए नीकळेल के प्रस्तावसदश वि० प्रसंगने छाजे तेवं ऊपडेलु (२) मृत (३) निर्मायेलु (४) प्रस्तावे अ० योग्य प्रसंगे न० विदाय थर्बु ते प्रस्तावेन अ० योग्य प्रसंगे; योग्य समये प्रस्थिति स्त्री० विदाय (२) मुसाफरी (२)प्रसंगवशात् ; कोईक प्रसंगे प्रस्नव पुं० झरवू के झमवू ते (२)प्रवाह; प्रस्तु २ उ० स्तुति करवी; वखाणवू धारा (जेमके दूधनी) (३) ब० व० (२)प्रारंभ करवो (३) उत्पन्न करवू आंसु (४)पेसाब [नरम ; कोमळ (४) कहेवू; प्रतिपादन करवू प्रस्निग्ध वि० चीकगुं; तेलवाळु (२) प्रस्तुत वि० स्तुति करेलुं; वखाणेलु (२) प्रस्नु २ प० रेडवू (२) टपकवू; आरंभेलु (३) सिद्ध करेलु; तैयार (४) झमवू (३) २ आ० दूध आपq बनेलं (घटना) (५)प्रासंगिक; उपा- प्रस्तुत वि० झमतुं; झरतुं (२) आपतुं डेलु (वातचीतना मुद्दारूपे) प्रस्नुतस्तनी वि० स्त्री० जेना स्तनमांथी प्रस्थ वि० जतुं; रहेवा जतुं (२) (वात्सल्यने कारणे) दूध झमे छे तेवी मुसाफरीए नीकळतुं (३) दृढ़ ; स्थिर प्रस्नुषा स्त्री० पौत्रवधू (४) पुं०, न० सपाट मेदान (५) प्रस्फुट १० उ० चीर; फाडq (२) पर्वतनी टोच (६)एक माप (३२ पल __ ऊघडवू; खूलवू (३) ताळी पाडवी जेटलं) (७)तेटला वजननं जे कंई ते प्रस्फुट वि० खीलेलं (२) खुल्लं; जाहेर प्रस्था १ आ० [प्रतिष्ठते] प्रयाण करवू; (३) स्पष्ट ; उघाडु जवा नीकळवू (२)तरफ जq के आगळ प्रस्फुर् ६ प० स्फुरवू; भ्रूजवू (२)पहोळं धप, (३) चालवू; खसवं ___थq; प्रसरवू(३)दूर सुधी फेला, -प्रेरक० विदाय आपवी (२) काढी प्रस्फुरित वि० हालतुं; कंपतुं मूकवू (३) धकेलवं प्रस्मृति स्त्री० विस्मृति Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२५ प्रस्यंद प्रस्यं १ आ० झर (२) वहेवू (३) दोडी जवं [के वहेवू ते प्रस्थंद पुं०, प्रत्यंदन न० झरवू, टपकवं प्रत्यंदिन वि० आंसु रेलावतुं प्रस्रव पुं० झर, जोरथी नीकळवू के वहेवू ते (२)प्रवाह; वहेण (३)आंचळ के स्तनमांथी नीकळतुं दूध (४)पेसाब (५)पुं० ब० व० रेलातां आंसु प्रस्रवण न० झरवू, वहेवू के नीकळवू ते (२) दूध वहेवू ते (स्तन के आंचळमांथी)(३)धोध (४)झरो; फुवारो (५) पु० एक पर्वत ('जनस्थान'मां आवेलो) प्रस्त्रविन वि० रेलावतुं (२) दूध आपतुं प्रस्ताव पुं० झम के वहेवू ते (२)पेसाब प्रत्रु १५० झरवू; जोसथी नीकळवू (२) रेलावq; वहेवा दे, प्रस्नुत वि० झरेलु; टपकेलं; नीकळेलु प्रस्वन पुं० मोटो अवाज प्रस्वाप पुं० ऊंघ (२) स्वप्न (३) एक अस्त्र (ऊंघमां नाखनाएं) प्रस्वापन वि० ऊंघमां नाखनाएं (२) न० तेवी शक्ति धरावतुं अस्त्र प्रस्विन्न वि० खूब परसेवो थयो होय ते, प्रस्वेद पुं० अतिशय परसेवो प्रहत वि० घायल करेलु; हणेलं (२) वगाडेलं (ढोल) (३)पराभव पमाडेलं प्रहति स्त्री० प्रहार; घा प्रहन् २ प० हणवू; वध करवो (२) मारवू;प्रहार करवो(३)वगाडवू (ढोल) प्रहर पुं० आखा दिवसनो आठमो भाग (त्रण कलाक); पहोर प्रहरक पुं० पहोर (२) पहेरो प्रहरण न० प्रहार करवो ते (२) फेंक ते (३) दूर करवू ते; काढी मूकवू ते (४) शस्त्र ; अस्त्र (५) युद्ध ; लडाई प्रहरत् पुं० योद्धो प्रहरिन पुं० पहेरेगीर प्रहर्त वि० प्रहार के हुमलो करनारुं (२) लडनारु (३) बाण फेंकनारुं प्रह्लाद प्रहर्ष पुं० अतिशय आनंद के हर्ष प्रहर्षण न० अतिशय हर्ष पमाडनार ते (२)इच्छित वस्तु प्राप्त थवी ते प्रहस १५० खडखडाट हसवू (२)हांसी ___ करवी (३) आनंदमां आवq प्रहसन न०खडखडाट हसवू ते (२) हांसी; मश्करी (३) हांसीप्रधान नाटक; फारस प्रहसित वि० खूब हसेलु; खडखडाट हसतुं (२)न० हास्य प्रहा ३५० त्यागq; तजq (२) छोडवू; फेंकवु (३)-मांथी विदाय थवं प्रहाण न० त्याग(२) ध्यान प्रहाणि स्त्री० हानि; नाश; अभाव प्रहापण न० त्याग (२)विदाय प्रहार पुं० मारवंते; घा करवो ते (२) युद्ध; रणसंग्राम प्रहास पुं० अट्टहास (२) हांसी; मजाक (३) नर्तक ; नट (४) शिव (५)देखाव (६) रंगोनी शोभा प्रहासिन् वि० हसावनाएं (२) हांसी कर नारु(३)-नी साथे हसतुं (४)प्रकाशित प्रहि ५ प० मोकलवू (२) फेंकवु (३) -नी तरफ आंख वाळवी प्रहित वि० मूकेलं (२) फेलावेलु; लंबावेलु (३)मोकलेलं; फेंकेलं (४) काढी मकेलं . [न० हानि ; नाश प्रहीण वि० छोडी दीधेलं; तजेलं (२) प्रह १ प० प्रहार करवो (२)घा करवो (३) हुमलो करवो (४) फेंक; मारवू प्रहत वि० प्रहार करेलु (२) न० प्रहार प्रहष् ४ प० आनंद थवो; हर्षित थर्बु (२) रोमांच थवो [थयेलु प्रहृष्ट वि० हर्ष पामेलु (२) रोमांचित प्रहेला स्त्री० रमतियाळपणुं; स्वच्छंद प्रहेलिका स्त्री० कोयडो; समस्या प्रह्लाद १ आ० अति आनंदमां आवी जq प्रह्लाद पुं० अत्यंत आनंद (२) अवाज (३) हिरण्यकशिपुनो भक्त पुत्र Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रह्लादक ३२६ प्राच्य प्रह्लादक (-1) वि० हर्ष उपजावनाएं तुमाखी (३) कुशळता (४) विकास; प्रह वि० ढाळवाळु; नमेलुं (२)नीचुं परिपक्वता (५)प्रागटय ; देखाव (६) वळेलु (३)नम्र ; विनयी (४)आसक्त वक्तृता (७) दृढनिश्चयीपणुं प्रह्वयति प० (नमावq; ताबे करवू) प्रागवस्था स्त्री० पहेलांनी अवस्था प्रहांजलि वि० कपाळे बंने हाथ जोडीने प्रागुत्तर, प्रागुदंच वि० उत्तर-पूर्वनुं नमन करतुं (आदर बताववा) प्राग्जन्मन् न०, प्राग्जाति स्त्री० पूर्वजन्म प्रा २ ५० भरवू; पूर, प्राग्ज्योति पुं० कामरूप देश प्राक् अ० पहेलां; अगाउ; पूर्वे (२) प्राग्भव पुं० पूर्वजन्म पहेलेथी ज (३) पूर्व दिशामा (४) सामे प्रागभार पुं० पर्वतनुं शिखर (२) आगलो (५) सुधी (६) सवारे के छेडानो भाग (३) मोटो जथो प्राकटघ न० प्रगट थq ते (२) प्रसिद्धि प्राग्रसर वि० अग्रेसर; आगेवान प्राकरणिक वि० प्रस्तुत; जे प्रकरण प्राग्रहर वि० मुख्य ; प्रधान ऊपडयुं होय तेने लगतुं प्राग्य वि० मुख्य ; श्रेष्ठ प्राकाम्य न० मरजी मुजब वर्तवं ते (२) प्राग्वचन न० पहेलांनां ऋषिओए कहेलु स्वच्छंदीपणुं(३) ते नामनी एक सिद्धि के ठरावेलुं ते प्राकार पुं० भींत; वाड (२)किल्लो प्राग्वंश पुं० पूर्ववंश के पेढी (२) जेना प्राकारस्थ वि० बुरज उपरथी लडनाएं थांभला पूर्वदिशाभिमुख होय तेवू प्राकाश्य न० जाहेरात (२) प्रसिद्धि यज्ञस्थान (३) यजमाननां सगांसंबंधी (३) चळकाट जेमां बेसे ते ओरडो प्राकृत वि० कुदरती; सहज; अकृत्रिम प्राग्वृत्त न० पहेलांनु वर्तन (२) सामान्य (३) संस्कार विनानु; प्राग्वृत्तांत पुं० पहेलांनी घटना के बनाव अशिक्षित (४) तुच्छ; अगत्यनुं नहि प्राघुण, प्राघुणक. प्राघुणिक, प्रापूर्ण, तेवू (५) प्रकृति संबंधी (६) देशी के प्राणिक पुं० महेमान; अतिथि गामठी (भाषा) (७) पुं० सामान्य प्राणिका स्त्री० आतिथ्य ; सत्कार पामर माणस (८)न० देशी के गामठी प्राङ्मुख वि० पूर्व तरफ मोवाळु (२) भाषा (९)पाछो प्रलय (प्रकृतिमां) -नी इच्छावाळं; -ना वलणवाळं प्राकृतिक वि० कुदरती; स्वाभाविक । प्राच् वि० जुओ ‘प्रांच्' प्राक्कर्मन् न० पूर्वजन्ममां करेलु कर्म (२) प्राचंडय न० प्रचंडता प्रारंभमां करवानुं कार्य प्राचीन वि० पूर्व तरफनु (२)पहेलांचें; प्राक्कृत न० पूर्वजन्ममां करेल कर्म ____ अगाउनुं (३) जूनू; पुराणुं (४) पुं० न० प्राक्तन वि० पहेलांनु; पूर्व- (२)प्राचीन पूर्व तरफनो प्रदेश (३)पूर्वजन्मनु (४)न० दैव; भाग्य प्राचीनहिस् पुं० इंद्र प्राक्तनकर्मन् न० पूर्वजन्ममां करेलुं कर्म प्राचीमूल न० पूर्व दिशा तरफनु क्षितिज प्राक्तनजन्मन् न० पूर्वजन्म प्राचीर न० वाड; कोट । प्राखर्य न० तीक्ष्णता; धार (२)तीव्रता; प्राचुर्य न० प्रचुरता; पुष्कळपणु प्रखरता(३) दुष्टता (४) उत्साह प्राचेतस पुं० मनु (२) दक्ष (३) वाल्मीकि प्रागनुराग पुं० पहेलांनो प्रेम प्राच्य वि० सामेनुं (२)पूर्व तरफनु (३) प्रागल्भ्य न० हिंमत ; विश्वास (२) गर्व ; आगळy (४)प्राचीन Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राछ प्राछ् वि० पूछतुं; तपास करतुं प्राजन पुं०, न० परोणो; चाबुक प्राजापत्य वि० प्रजापति (ब्रह्मा) संबंधी (२) प्रजापतिथी जन्मेलु (३)पुं० आठ विवाहप्रकारोमांनो एक (जेमां कन्यानो पिता वर पासेथी कशं लीधा विना कन्यादान करे छे) प्राज्ञ वि० प्रज्ञावान; बुद्धिशाळी (२) डाहयुं; शाणुं (३)पुं० डाह्यो के विद्वान माणस (४)जीव-चेतन (५) परब्रह्म । प्राज्य वि० घणुं; अतिशय ; पुष्कळ (२) मोटुं (३) महत्त्व-; ऊंचं प्राविवाक पुं० न्यायाधीश प्राण २ प० श्वास लेवो (२)जीववं प्राण पुं० श्वास (२)जीवनशक्ति (३) देहमा रहेला पांच प्राणवायु (ब०व०; प्राण-अपान-समान-व्यान-उदान) (४) वायु (५) सत्त्व; बळ (६) जीव (७)परमात्मा (८)इंद्रिय (९) प्राण समान प्रिय जे काई होय ते (१०) जीवन (११) अन्न प्राणकर्मन् न० प्राणोनुं कार्य प्राणघातक वि० प्राणनो नाश करनारु प्राणत्याग पुं० आत्महत्या (२)मोत । प्राणदक्षिणा स्त्री० जीवतदान प्राणदयित पुं० पति प्राणदान न० बीजाने माटे प्राण अर्पण करवा ते (२)जीवतदान प्राणदायक वि० जुओ 'प्राणप्रद' प्राणद्रोह पुं० प्राण लेवा ताकवु ते । प्राणधारण न० जीवननिर्वाह (२) तेनुं साधन (३) जीवनशक्ति प्राणपति पुं० प्रियतम (२) पति (३) जीव (४)वैद्य [तेवू प्राणपरिक्षीण वि० मृत्यु नजीक होय प्राणपरिग्रह पुं० जीवन; अस्तित्व प्राणप्रद वि० सजीवन करनारुं (२) जीव बचावनाएं प्रातिभ प्राणप्रिय पुं० पति (२)प्रियतम प्राणभृत् वि० प्राणधारी (२)पुं० प्राणी प्रागमोक्षण न० मृत्यु (२)आपघात प्राणयात्रा स्त्री० जीवननिर्वाह प्राणवत् वि० प्राणयुक्त; जीवतुं (२) बळवान ; शक्तिशाळी प्राणवल्लभा स्त्री० पत्नी (२)प्रियतमा प्राणसमा स्त्री० पत्नी जोखम प्राणसंदेह पुं० जीवनुं जोखम; मोटुं प्राणसार वि० प्राणवान; सबळ प्राणहर, प्राणहारिन् वि० प्राण हर नारु; घातक प्राणाघात पुं० हिंसा प्राणातिपात पुं० प्राणवध; हिंसा प्राणात्यय पुं० जीव जवो ते ; मृत्यु प्राणायाम पुं० श्वासने रोकवो ते (एक योग-प्रक्रिया) प्राणांतिक वि० प्राणघातक; मारक (२) मरतां सुधीन; जीवन साथे पूर्व थाय तेवू (३)न० खून [सजीव प्राणी प्राणिन् वि० प्राणवाळं; सजीव (२)पुं० प्राणेश पुं० पति (२) प्रियतम प्राणेशा स्त्री० पत्नी (२) प्रियतमा प्राणेश्वर पुं० जुओ प्राणेश' प्राणेश्वरी स्त्री० जुओ 'प्राणेशा' प्रातर् अ० सवारे (२) बीजे दिवसे सवारे प्रातराश पुं० सवारे करातो नास्तो प्रातस्तराम् अ० वहेली सवारे प्रातस्त्य वि० वहेली सवारनुं प्रातःकाल पुं० प्रभातनो समय ; परोढ प्रातःप्रहर पुं० दिवसनो पहेलो पहोर प्रातिकामिन् पुं० दास के दूत प्रातिपक्ष वि० विरोधी; ऊलटुं (२) दुश्मनावटभर्यु; बेरी प्रातिपक्ष्य न० वेर; दुश्मनावट प्रातिपौरुषिक वि० बधा पुरुषोने सामान्य एवं (२)पुरुषार्थ के पराक्रम संबंधी ज्ञान प्रातिभ न० प्रतिभाथी थतुं साहजिक Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रातिभाव्य प्रातिभाव्य न० जामीन (२)विरोध । प्रातिलोम्य न० प्रतिलोमपणु; ऊलटो क्रम (२) दुश्मनावट प्रातिवेशिक, प्रातिवेश्य पुं० पडोशी प्रात्यक्षिक वि० प्रत्यक्ष जोई के जाणी शकाय एवं प्राथमिक वि० प्रथम ; पहेलं प्रादक्षिण्य न० प्रदक्षिणा करवी ते प्रादुरस् (प्रादुस्+अस्)२५० प्रगट थर्बु प्रादुर्भाव पुं० अस्तित्वमां आवq ते (२) प्रगट थर्बु ते प्रादुर्भू १५० प्रगट थ, प्रादुर्भूत वि० प्रगट थयेलं प्रादुष्करण न० प्रगट थq के करवं ते प्रादुस् अ० प्रगट होय तेम ; देखाय तेम प्रादेश पुं०,न० अंगूठा अने तर्जनी वच्चेना अंतर जेटलं माप प्रादेशमात्र वि० थोडुक ज; नमूना जेटलं प्रादेशिक वि० प्रदेशमां ज मर्यादित एवं प्रादोष, प्रादोषिक वि० सांज संबंधी प्राधनिक न० विनाशक हथियार प्राधान्य वि० मुख्य होवापणुं;अग्रेसरपणुं प्राधीत वि० सारी रीते भणेलू प्राध्व वि० दूर, (२) पुं० लांबो मार्ग प्राध्वम् अ० अनुकूळ होय तेम प्राप् (प्र+आप्) ५५० मेळवq; पामवं (२) पहोंचवू (३) लंबावू; विस्तरवू -प्रेरक० पहोंचाडवू; पमाडवू प्राप वि० पहोंचतुं; मळतुं प्रापक वि. पहोंचाडनारं; पमाडनाएं (२)प्राप्त करनारु प्रापण न० पहोंच ते; पामबुं ते (२) पहोंचाडवू के पमाडवं ते प्रापणिक पुं० वेपारी; सोदागर प्रापिपयिषु वि. पहोंचे के पामे एम करवा इच्छतुं प्राप्त ('प्राप्' नुं भ० कृ०) वि० पामेलं; पहोंचेलं (२) मेळवेलं (३जडेलं; ३२८ प्रामोदिक मळेलु (४) वेठेलं; सहन करेलु (५) हाजर; आवेलं प्राप्तकाल पुं० योग्य अवसर प्राप्तकालम् अ० योग्य अवसरे प्राप्तक्रम वि० अनुकूळ ; उचित प्राप्तजीवन वि० फरी सजीवन थयेलं प्राप्तदोष वि० दोषी; अपराधी प्राप्तप्रसव वि० प्रसव थयो होय तेवू (२) प्रसवकाळ नजीक आव्यो होय तेवू प्राप्तबीज वि० बीज वाववामां आव्यु होय तेवू प्राप्तरूप वि० सुंदर; देखावडु (२) पंडित; शाणुं (३)योग्य; लायक . प्राप्तव्य वि० प्राप्त करवा योग्य (२) पहोंचवा योग्य ; पहोंची शकाय तेवू (३) योग्य; लायक प्राप्तश्री वि० (बीजाने आधारे) जेणे वैभव मेळव्यो होय ते, प्राप्तार्थ वि० इच्छित वस्तु प्राप्त करी होय तेवू [होय तेवं प्राप्तावसर वि० जेने योग्य तक मळी प्राप्ति स्त्री० मेळवq ते ; पाम ते (२) पहोंचवं ते (३) मळवू ते (४)गोचर; क्षेत्र (५)पूर्वकर्मनुं फळ (६) नसीब प्राप्य वि० जुओ 'प्राप्तव्य' [तेवं प्राप्यरूप वि० सहेलाईथी मेळवी शकाय प्राबल्य न० जोर; बळ (२) मुख्यता; उत्तमता (३) प्रामाण्य प्राबोधिक पं० प्रभात; परोढ (२) सवारे उचित गीतो द्वारा बीजाने जगाडनार प्राभव न० उत्तमता; श्रेष्ठता प्राभंजनि पुं० हनुमान (२) भीमसेन प्राभातिक वि० प्रभातप्राभूत, प्राभतक न० भेट; नजराणु प्रामाणिक वि० प्रमाणभूत; शास्त्रसिद्ध प्रामाण्य न० प्रमाणभूत होवापणु (२) साबिती; प्रमाण [मनोहर प्रामोदक, प्रामोदिक वि० हर्षकारक; Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राय प्राय पुं० मृत्यु (२)उपवास वडे मोत लाव, ते (३) मोटो भाग; मोटो हिस्सो (४) पुष्कळता (५) [ समासने अंते नीचेना अर्थोमां वपराय छे : लगभग, मोटे भागे (उदा० मृतप्राय); -थी भरपूर, पुष्कळ होय तेवू (उदा० कष्टप्राय); -ने मळतुं (उदा० अमृतप्राय)] प्रायण न० शरूआत; प्रारंभ;प्रवेश (२) जीवननो मार्ग (३)जाणी जोईने मोत स्वीकार ते (४)आशरो; आश्रय । प्रायभव वि० सामान्यपणे बनतुं प्रायशस् अ० सामान्यपणे ; मोटे भागे। प्रायश्चित्त न० पाप धोई काढवा कर वामां आवतां तप के विधि प्रायस् अ० घणुं करीने; सामान्य रीते (२)कदाच (३)पुष्कळ प्रमाणमां । प्रायाणिक, प्रायात्रिक वि० मुसाफरी माटे जरूरी के ऊपयोगी एवं प्रायुध् ४ आ० युद्ध करवू प्रायेण अ० घणुं करीने; मोटे भागे (२) कदाच; संभवित होय तेम प्रायोपगमन न० आमरणांत उपवास प्रायोपविष्ट वि० आमरणांत उपवास करवा बेठेलं . ['प्रायोपगमन' प्रायोपवेश पुं०, प्रायोपवेशन न० जुओ प्रायोपवेशिन्, प्रायोपेत वि० जुओ 'प्रायोपविष्ट' प्रारब्ध ('प्रारभ् 'न भू० कृ०) वि० आरंभेलु (२) न० आरंभेलं कार्य (३) नसीब ; भाग्य प्रारभ १ आ० आरंभ प्रारंभ पुं० आरंभ ; शरूआत (२) प्रवृत्ति आरंभेलं कार्य प्रार्थ १० आ० विनंती करवी; याचना करवी (२) लग्न माटे मागणी करवी (३) आकांक्षा राखवी (४) तपास करवी (५)हुमलो करवो; तूटी पडवू प्रासंगिक प्रार्थक वि० प्रार्थना करनारं; इच्छनारुं (२) पुं० अरजदार प्रार्थन न०, प्रार्थना स्त्री० याचना; मागणी (२) इच्छा (३) अरजी प्रार्थयित पुं० भिखारी; याचक (२) अरजदार; उमेदवार प्राथित ('प्रार्थ'- भू० कृ०)वि० प्रार्थेलु; याचेलु (२) इच्छेलु (३) शत्रु वडे सामनो के हुमलो करायेलु प्राथिन् वि० प्रार्थना, याचना के इच्छा करतुं (२) हुमलो करतुं । प्रालंब वि० लटकतुं; झूलतुं (२) न० छाती सुधी पहोंचतो हार के माळा प्रालय न० बरफ; हिम प्रालेयाद्रि पुं० हिमालय प्रावरण, प्रावरणीय न० उत्तरीय वस्त्र प्रावार, प्रावारक पुं० उत्तरीय वस्त्र प्रावारिक पुं० उत्तरीय वस्त्र बनावनार प्रावीण्य न० कुशळता; निपुणता प्रावृ५ उ० पहेरवु (२)वींटी वळवू;घेरवू प्रावृट्काल पुं० वर्षाऋतु प्रावृष स्त्री० वर्षाकाळ [संबंधी प्रावृषेण्य वि० वर्षाऋतुमांथतुं ; वर्षाऋतु प्रावण्य न० सुंवाळा ऊननी कामळी प्रादेशिक वि० प्रवेश संबंधी (२)प्रवेश माटे शुभ होय तेवू प्राश (प्र + अश्) ९५० खावु (२) पीयूँ प्राश पुं० खावं ते; -खाईने जीव ते (२) अन्न; भोजन प्राशस्त्य न० प्रशस्त ; उत्तम होवापणुं प्राशा स्त्री० तीव्र आशा ; इच्छा प्राश्निक पुं० परीक्षक प्रास पुं० फेंक, ते; छोडवू ते (२) एक जातनुं अस्त्र [वखते नंखाती) प्रासंग पुं० एक जातनी धूसरी (पलोटती प्रासंगिक वि० गाढ संबंधथी नीपजतुं (२) संबद्ध; संकळायेलं (३) कोईक _वखत होतुं (हमेश जोवा न मळतुं) Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रासाद ३३० प्रियवादिन् प्रासाद पुं० महेल; हवेली (२) राजमहेल प्रसन्न करे तेवु (३) -चाहतुं होय तेवं (३) देवालय (४)अगाशी (४) मोघु (५) पति ; प्रीतम (६)न० प्रासादगर्भपुं० महेलनी मध्यनो ओरडो; प्रेम (७) अनुकूळ - मनगमतुं ते (८) महेलनो सूवानो ओरडो मनगमता समाचार (९)खुशी; प्रसन्नता प्रासादतल न० महेलनी छत के अगाशी प्रियक पुं० एक जातर्नु हरण (२) एक प्रासादपृष्ठ पुं० महेलनी टोचे आवेलं जातनो कदंब (नीप) (३)प्रियंगु लता छजु के अगाशी (४) न० एक फूल ('अशन ' वृक्षनु) प्रासाद,ग न० महेल के मंदिरनी टोच प्रियकारक वि० प्रिय करनारुं (२) प्रासादिक वि० प्रसाद - कृपा रूपे मळेलु माया ताथी वर्तनाएं (३) मित्र ; हितैषी (२) माया मित्रताभर्यु (३) सुंदर प्रियकारित्व न० मायाळताथी वर्तवू ते प्रास्ताविक वि० प्रस्तावना के उपोद्घात प्रियकारिन् वि० मायाळताथी वर्तनाएं रूप (२)प्रस्तुत (३)प्रसंगोचित प्रियकी स्त्री. 'प्रियक' हरण- चामडु प्रास्थानिक वि० प्रस्थान - प्रयाणना प्रियजन पुं० वहालं माणस [एवो पति समयने लगतुं (२)प्रयाण माटे उचित प्रियजानि पुं० पत्नी जेने अति प्रिय छे के अनुकूळ एवं प्रियजीविता स्त्री० जीवन प्रिय होवं ते प्राह (प्र+ अह) (परोक्ष भूतकाळ रूप प्रियतम वि० सौमां अत्यंत प्रिय एवं (२) 'प्राह' ज वपराशमां छे) जाहेर पुं० पति; प्रीतम कर (२)बोलावq प्रियतमा स्त्री० पत्नी; प्रिया प्राहुण पुं० अतिथि ; परोणो प्रियतर वि० वधु प्रिय (बेनी तुलनामां) प्राल पुं० दिवसनो प्रथम प्रहर प्रियदर्श वि० देखवू गमे तेवं ; मनोरम प्रांग न० ‘पणव' नामनुं वाद्य प्रियदर्शन वि० जुओ 'प्रियदर्श' (२)न० प्रांगण (-न) न: आंगणुं; फळियु (२) प्रियजन जोवा मळवू ते माळ (घरनो) प्रियशिन् वि० कृपादष्टिथी जोनाएं प्रांच वि० आगळy; सामेनू (२) पूर्व (२) पुं० अशोक राजा तरफनु(३)अगाउनु [सीधुं; टटार प्रियदेवन वि० चूतप्रिय प्रांजल वि० प्रामाणिक; सरळ (२) प्रियधन्व पुं० शिव प्रांजलिन् वि० बे हाथ जोड्या होय तेवू प्रियनिवेदन न० सारा समाचार प्रांत पुं० छेडो; किनारी (२) खूणो प्रियप्रश्न पुं० क्षेमकुशळ अंगे प्रश्न (जेम के, आंखनो) (३) सीमा; हद प्रियप्राय वि० अत्यंत प्रेमाळ के मायालु (४) छेडो; अंत प्रियभाव पुं० प्रेमनी लागणी प्रांतर न० निर्जन के वेरान रस्तो प्रियम् अ० गमतुं होय ते रीते प्रांतविरस वि० अंते - परिणामे रस प्रियमंडन वि० शणगार जेने प्रिय छे तेवू विनानुं नीवडनारं प्रियवक्तृ वि० खुशामतियु प्रांतवृत्ति स्त्री० क्षितिज प्रियवचन वि० प्रिय-मधुर बोलनारं प्रांशु वि० ऊंचुं; उन्नत (२)लंबायेल; (२) न० प्रिय लागे तेवी वाणी लांबु (३)पुं० ऊंचो माणस प्रियवाच स्त्री० मधुर वाणी प्रांशुप्राकार वि० लांबी दीवालोवाळू प्रियवादिन वि० प्रिय लागे तेवू बोलनारुं; प्रिय वि० वहालुं ; मानीतुं (२) अनुकूळ ; खुशामतियु Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रियसख ३३१ प्रेक्षित प्रियसख पुं० वहालो मित्र संतोष (२) कृपा (३) प्रेम; ममता प्रियसखी स्त्री० वहाली के विश्वासु सखी (४)रुचि; लगनी; व्यसन प्रियसंवास पुं० प्रियजननो सहवास प्रीतिदान न०, प्रीतिदाय पुं० प्रेमथी प्रियसुहृद् पुं० प्रिय मित्र; खास मित्र आपेली भेट आपेलं धन प्रियस्वप्न वि० निद्रा जेने प्रिय छे तेवू प्रीतिधन न० प्रेम के मित्रताने कारणे प्रियहित वि० हितकर तेम ज प्रिय प्रीतिपूर्वकम्, प्रीतिपूर्वम् अ० प्रेमपूर्वक प्रियंकर वि० प्रेमाळ; मायाळू प्रोतिप्रमुख वि० माया प्रेमभाववाळु प्रियंगु स्त्री० एक वेल (तेने स्त्रीना प्रीतिभाज वि० प्रेमपात्र (२)संतुष्ट;खुश स्पर्शथी फूल बेसे छे) [बनेलं प्रीतिमय वि. प्रेम के प्रीतिने कारणे प्रियंभविष्ण, प्रियंभावुक वि० प्रेमपात्र उद्भवेलं (जेम के आंसु) प्रियंवद वि० प्रिय लागे तेवू बोलनारु प्रीतियुज् वि० प्रिय; वहालं (२) पुं० एक पंखी प्रीतिरसायन न० प्रेम रूपी आंजण (२) प्रिया स्त्री० पत्नी; प्रियतमा (२) स्त्री प्रेम के आनंद उत्पन्न करनार पेय (३) एक जात, मद्य प्रीतिसंयोग पुं० प्रेमनो संबंध प्रियाख्य वि० सारा समाचार कहेनारु प्रीतिस्निग्ध वि० प्रेमभीतुं (आंख) प्रियाख्यान, प्रियाख्यानिक न० सारा प्रीत्या अ० प्रेमथी; प्रीतिपूर्वक (२) समाचार खुशीमां आवीने; खुशीथी प्रियातिथि वि० जेने अतिथि प्रिय छे तेवं प्रे (प्र+इ) २ प० जवं; पहोंचवू (२) प्रियाधान न० प्रिय करवू ते विदाय थर्बु (३) मरण पामवं प्रियार्थम् अ० महेरबानी तरीके प्रेक्ष १ आ० जो ; निहाळवं प्रियाह वि० प्रेम अथवा मायाळूताने प्रेक्षक पुं० जोनारो (२) निरपेक्षपणे __ मात्र निहाळनार पात्र (२)मायाळू प्रियाल पुं० एक वृक्ष; 'पियाल' प्रेक्षण न० जोवू ते; निहाळवं ते (२) देखाव; दृश्य (३) आंख (४) जाहेर प्रियेण अ० खुशीथी प्रियोपभोग पुं० प्रिय जने (पुरुष के । देखाव के प्रदर्शन(५)नाटकनी रजूआत प्रेक्षणक न० देखाव ; आभास स्त्रीए) करेलो उपभोग प्रेक्षणीय वि. जोवा योग्य ; जोवू गमे पी ९ उ० खुश करवू (२) खुश थर्बु (३) तेवू(२)विचारवा योग्य स्नेह बताववो (४) राजी रहेq (५) प्रेक्षणीयक न० देखाव; दृश्य ४ आ० संतुष्ट थवं (६)-ना उपर प्रेम प्रेक्षा स्त्री० जोवू ते(२) देखाव (३) थवो; चाहवू (७) १ ५०, १० उ० जाहेर दृश्य के रजूआत(नाटक इ० नी) खुश कर (४) विचार; विचारणा (५)शोभा; प्रीणन वि० खुश करतुं (२) न० खुश रमणीयता [काम करनारुं करवू ते (३) खुश करनार वस्तु । प्रेक्षाकारिन् वि० डायु; विचारीने प्रीणित वि० खुश थयेलु; राजी थयेलं प्रेक्षागार न० नाट्यशाला; 'थियेटर' प्रीत ('प्री' नुं भू० कृ०)वि० प्रसन्न ; (२)सभागृह [भजवातुं नाटक खुश (२) राजी; आनंदी (३) संतुष्ट ; प्रेक्षाप्रपंच, प्रेक्षाविधि पुं० रंगभूमि उपर तृप्त (४)प्रिय (५)मायाळ प्रेक्षित ('प्रेक्ष् 'नुं भू००)वि. जोयेलं; प्रीति स्त्री० खुशी; तृप्ति; आनंद; निहाळेलु (२) न० दृष्टि ; नजर Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेक्षिन् ३३२ प्रोडी प्रेक्षिन् वि० जोतुं; निहाळतुं (२)-ना -प्रेरक० फेंकवु (२) मोकलवु (३) जेवी नजर के आंखवाळू विदाय कर; काढी मूकवू प्रेत ('प्रे' नु० भू०कृ०)वि० मृत्यु पामेलं प्रेषण न० मोकलq ते (२) सोंपेलु काम (२) पुं० मृत्यु बाद शरीरथी छूटो पार पाडवू ते थयेलो जीवात्मा (३) भूत; पिशाच(४) प्रेषणकृत् वि० सोंपेलु काम पार पाडनारु नरकनो निवासी जीव (५)पितृओ प्रेषणा स्त्री० जुओ 'प्रेषण' प्रेतकर्म न० जुओ ' प्रेतकार्य' प्रेषित ('प्रेष् ' नुं भू० कृ) वि० मोकलेलं प्रेतकाय पुं० मडदूं (२)प्रेरेलु; दोरेलु (आंख इ०) (३) प्रेतकार्य, प्रेतकृत्य न० मरण पामेलानी काढी मूकेलं अग्निदाह वगेरे उत्तरक्रिया. प्रेष्ठ वि० सौथी प्रिय ('प्रिय'नु श्रेष्ठता. प्रेतगोप पुं० मृत लोकोनो रक्षक (यमने दर्शक रूप) (२)पुं० पति ; प्रियतम त्यांनो) [ ढोल प्रेष्य वि० आज्ञा करवा लायक (२)पुं० प्रेतपटह पुं० अग्निदाह वखते वगाडातुं ___ दास (३)दूत प्रेतपति पुं० यमराज प्रेतमेध पुं० पितृओना श्राद्ध माटेंनो यज्ञ प्रेष्यभाव पुं० दासपणुं . [झूलवू प्रेख् १५० हालवू; कंपq (२) आम तेम प्रेतराज पुं० यमराज प्रेख पुं०, न० झूलो; हीचको (२) झूलवू प्रेत्य अ० मरण पछी; परलोकमां के हीचq ते [ते (३)हींचको प्रेत्यभाव पुं०मृत्यु पछीनी जीवनी स्थिति प्रेखण वि० भमतुं ; घूमतुं (२) नन्हींचq प्रेत्यभाविक वि० पारलौकिक प्रेप्सा स्त्री० प्राप्त करवानी इच्छा प्रेखोल् १० उ० हींचq; झूलवू; कंपवू प्रेखोल पुं०, प्रेखोलन न० झूलवू, हींचQ प्रेप्सु वि० प्राप्त करवानी इच्छावाळं के कंपq ते प्रेमन् पुं०, न० स्नेह; हेत (२) प्रीति; रुचि (३)पुं० मजाक; हांसी प्रेयरूपक न० सुंदरता प्रेयस् वि० वधु प्रिय('प्रिय'नू तुलनात्मक प्रेष्य पुं० दास; नोकर रूप) (२) पुं० प्रेमी; पति (३)प्रिय प्रेष्यभाव पुं० दासपणुं मित्र (४) पुं०, न० खुशामत (५)हित प्रोक्त ('प्र+ वच्नुं भू० कृ) वि० कहेलुं; जाहेर करेलुं; उल्लेखेखें (६)स्वर्ग वगेरे जेवू प्रिय लागतुं फळ (कल्याणकर 'मोक्ष'थी ऊलटुं) प्रोक्ष ६ प. पवित्र जळ छांटवू (२) प्रेयसी स्त्री० पत्नी; प्रियतमा छांटीने शुद्ध करवू (३) वध करवो प्रेर् (प्र + ईर्)-प्रेरक० गतिमान करवू प्रोच्चल १ प० चाली नीकळवू; (२) प्रेर; धकेलq(३) उश्केरवु (४) मुसाफरीए नीकळवू फेंकवु; नाखवू (नजर)(५)मोकलबुं प्रोच्चंड वि. अत्यंत भयंकर प्रेरण न०, प्रेरणा स्त्री० प्रेरवु ते (२) प्रोच्चारित वि० मोटेथी अवाज करतं प्रोत्साहन (३)आंतरिक स्फरण (४) प्रोच्चस् अ० घणा मोटा अवाजथी नाखवं ते (५) मोकलq ते (६)आज्ञा । प्रोच्छल १५० वही नीकळवू प्रेरित ('प्रेर् ' - भू० कृ०) वि० प्रेरेलु; प्रोच्छ्न वि० सूजी के सूणी गयेलु प्रेरायेलु (२) मोकलेलं (३)पुं० दूत प्रोच्छित वि० घणुं ऊंचुं प्रेष् ४५० आगळ हांकQ (२) उच्चार प्रोज्म (प्र + उज्झ्)६५० त्यागवू ; तजवू बोलq (३) फेंक (४)१ उ० ज प्रोड्डी (प्र + उत् + डी)४ आ० ऊंचे ऊडवू Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रोड्डीन प्रोड्डीन वि० ऊंचे ऊडेलुं के ऊडतुं प्रोत ( 'प्रवे ' नुं भू० कृ० ) वि० सीवेलुं (२) ताणानी पेठे लांबु नाखेल ('ओत ' थी ऊलटुं ) ( ३ ) बंधायेलुं; जकडायेलुं (४) परोवायेलुं ( ५ ) - मां थईने आवेल (६) जडेलु, बेसाडेलु ( जेम के नंग ) प्रोत्कट वि० घणुं मोटुं प्रोत्कटभूत्य पुं० मानीतो कारभारी; उच्च अमलदार प्रोत्थित वि० - मांथी नीकळेलुं के फूटेलुं प्रोत्फुल्ल वि० पूरेपुरुं विकसेलुं ( २ ) खुब पहोळे ऊघडेल (आंख) प्रोत्सारण न०, प्रोत्सारणा स्त्री० दूर करवुं ते (खसेडीने) प्रोत्सारित वि० खसेडेलं; दूर करेलू (२) धकेलेलुं; प्रेरेलु (३) आपेलु; बक्षेलुं प्रोत्साहन न० उत्साह आपको ते; उत्तेजन प्रोथ् १ उ० बरोबरिया थवुं ( २ ) पूरतुं थवुं ( ३ ) पूर्ण थवुं ( ४ ) हराववुं ( ५ ) वध करवो ३३३ प्रोथ वि० प्रख्यात ( २ ) मूकेलं; स्थापेलुं (३) मुसाफरीए नीकळेलु (४) पुं०, न० घोडानुं नकोरुं (५) डुक्करना मनुं टोचलं (६) पुं० कूलो प्रोषित ( 'प्रवस् 'नुं भू० कृ० ) वि० प्रवासे गयेलुं; परदेश गयैलुं प्रोषितभर्तका स्त्री० जेनो पति प्रवासे गयो छे तेवी स्त्री (विरहिणी) प्रोष्ण वि० अत्यंत उष्ण - गरम प्रोष्यपापीयान् वि० घरथी दूर रहेवाने कारणे पापी के तुच्छ बनेलं प्रोह पुं० तर्क ( २ ) हाथीनो पग के घूंटण प्रोछन न० लुछी के भूंसी नाखवुं ते (२) वधेलं वीणी लेवं ते प्रौढ वि० पूरेपूरुं विकसेलुं; परिपक्व ; परिपूर्ण (२) पुख्त; आधेड ( ३ ) गाढ (४) भव्य ( ५ ) जोसीलुं (६) धृष्ट प्लाव (७) व्याप्त; रोकायेलुं ( ८ ) -थी परिपूर्ण; - श्री भरेलुं (समासने छेडे ) प्रौढजलद पुं० गाढुं वादळ प्रौढपाद वि० पग ऊंचे (पाटली उपर) मूक्या होय ते प्रौढपुष्प वि० पूरा खीलेलां फूलवाळु प्रौढप्रिया स्त्री० धृष्ट प्रियतमा प्रौढयोवन वि० जुवानीना पुरबहारमां होय तेबुं प्रौढाचाराः पुं० ब० व० धृष्ट वर्तणूक प्रौढांगना स्त्री० शरमाळ नहि तेवी - धृष्ट स्त्री प्रौढि स्त्री० प्रौढपणुं; परिपक्वता; परिपूर्ण विकास ( २ ) वृद्धि (३) महानता ( ४ ) धृष्टता; गर्व प्रौढत्व न० भव्यता ( २ ) धृष्टता प्रौष्ठ पुं० सांढ; आखलो प्रोष्ठप रखो महिनो प्रोष्ठपदा स्त्री० पूर्वाभाद्रपदा अने उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र (२५ मुं अने २६ मुं) प्लक्ष पुं० पीपळो (२) पुराणोक्त सात द्वीपमांनो एक प्लक्षजाता स्त्री० सरस्वती नदी प्लव वि० तरतुं (२) ठेकतुं (३) पुं० तरबुं ते ( ४ ) पूर आववुं ते (५) ठेकडो मारवो ते (६) होडकुं प्लवक पुं० कूदको मारनार ( २ ) वांदरो(३) देडको [परातो घो प्लवकुंभ पुं० तरवामां (आधार तरीके) प्लवग पुं० वांद (२) देङको प्लवगराज पुं० सुग्रीव प्लवन वि० ढळतु; नमतुं ( २ ) न० तरवुं ते (३) डूबकुं; स्नान ( ४ ) ऊडवं ते (५) कूदवं ते (५) पूर प्लवंग पुं० वांदरी (२) देडको (३) पीपळो (४) हरण प्लवंगम पुं० वांद (२) देडको प्लव पुं० कूदको ठेकडो (२) ऊभरावं ते (३) गाळवुं ते ( प्रवाहीने) ; Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्लावन प्लावन न० नाहवुं ते; डूबकुं लगाव ते (२) ऊभरावुं ते (३) पूर प्लावित वि० तरतुं करेलुं (२) पूर फरी वळचं होय तेवुं (३) भीनुं थयेलं; छंटकाव थयो होय तेवुं (४) लंबावेलुं (स्वर) (५) न० पूर प्लीहन पुं० बरोळ प्लु १ आ० तरबुं (२) होडी वडे तरबुं ( ३ ) कूदबुं; ठेकवुं (४) आमतेम हींच (५) नाहवु; डूबकी मारवी (६) फूंकावुं (पवननुं) - प्रेरक० तरे ते करवुं (२) धोई काढवुं (३) पूरमां डुबाडी देवु प्लुक्षि पुं० अग्नि; आग (२) तेल फक्किका स्त्री० पूर्वपक्ष ; चर्चानो विषय (२) पूर्वग्रह (३) कपट; जाळ फट् अ० मंत्रतंत्रादिमां वपरातो एक उद्गार फट पुं० फणा; फेण फण् १ प० फरवु; गमन कर - प्रेरक० तारवी लेवुं फण पुं० सापनी फेण (२) पुं०, न० नसकोरानो फेलावेलो भाग फणक पुं० कांसकी; दांतियो फणकर, फणधर पुं० साप फणधरघर पुं० महादेव शंकर फणभृत् पुं० साप फणमंडल न० सापनुं गूंचळं फणवत् पुं० साप फणा स्त्री० सापनी फेण फणाकर पुं० साप [ फणा फणाटोप पुं० फेलावेली के ऊंची करेली फणाधर पुं० साप [ मनातो मणि फणामणि पुं० सापनी फणा उपर रहतो ३३४ फलक प्लुत ('प्लु' नुं भू० कृ०) वि० तरतुं ( २ ) पूरथी डूबेल के ऊभरातुं ( ३ ) कुदेलुं (४) लंबावेलुं (स्वर) (५) ढंकायेलु; व्याप्त ( ९ ) - मां नाहेतुं (७) न० कूदको ठेकडो (८) पूर प्लुति स्त्री० पूर (२) कूदको ठेकडो प्लुष १, ४, ९, १० बाळवु; दझाडवं (२) ९५० छांटवु; भीनुं करवुं (३) लेप करवो; खरडवुं ( ४ ) भरी काढवु प्लुष्ट ('प्लुब्' नुं भू० कृ० ) वि० बळेलु; दाझेलु प्लोष पुं० बळवु ते; दाह प्लोषण, प्लोषिन् वि० बाळी नाखतुं; भस्मीभूत कर , फणामंडल न० जुओ 'फणमंडल' फणावत् पुं० साप फणिन् पुं० फणावाळो साप (२) राहु ( ३ ) महाभाष्यना कर्ता पतंजलि फणिपति पुं० शेषनाग ( २ ) वासुकि नाग फणिमुख न० चोर वापरे छे ते खातरियुं फणींद्र पुं० शेषनाग; अनंत फर्फर वि० अत्यंत चंचळ ; चपळ फल १ प० फळवु; फळ उत्पन्न थवं (२) सफळ थवुं ( ३ ) ने हिस्से आववुं ( ४ ) फाडी नाखवुं; चीरखुं (५) प्रतिबिंब पडवुं फल न० वनस्पतिनुं फळ (२) परिणाम; पेदाश; फायदो ( ३ ) संतति (४) फलक; पाटियुं (५) फळं (तरवार इ० नुं ) ( ६ ) वृषण (७) प्रतिबिंब (८) हांसडी (खभानी ) फलक न० पाटियुं; पाटी (चित्र, द्यूत इ० माटेनुं ) ( २) कोई पण सपाट स्थळ ( ३ ) ढाल ( ४ ) बाणतुं Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३५ फुल्ल फळं (५) लाकडानी बेठक; बेसवा फलेग्रहि, फलेपाहिन् वि० मोसममां माटे- पाटियुं (६) वल्कल (पहेरवा फळ आपनाएं (वंध्य न रहेनारु) माटेनी वृक्षनी छाल) (७) कमळकोश फलोदय पुं० फळनी उत्पत्ति (२) सफळ फलतंत्र वि० पोतानो ज लाभ ताकनारुं थq ते; इच्छित सिद्ध थर्बु ते फलद वि० फळ आपनाएं (२) लाभदायी फलोद्गम पुं० फळ बेसवां ते फलधर्मन् वि० (फाळनी पेठे) झट फलोपजीविन् वि० फळ वेचीने जीवनाएं परिपक्व थई, नीचे पडी, नाश पामतं फल्गु वि० तुच्छ; नमालु; निर्माल्य फलपूर पुं० बिजोरं [दायी (२) नकामुं; निरर्थक ; अगत्यनुं नहि फलप्रद वि० फळ आपनाएं (२) लाभ- तेवू (३) नार्नु; सूक्ष्म फलप्सु वि० फळ मेळववानी इच्छा फल्गुता स्त्री० असारता; तुच्छता राखनारु [बेसतुं होय तेवू फल्गुन पुं० फागण महिनो (२) इंद्र फलबंधित वि० जेने फळ बंधातुं होय - (३) अर्जुन फलभावना स्त्री० फळ मळवू ते;सफळता फलभूमि स्त्री० करेलां कर्मोनां फळ फल्गुनी स्त्री० (एकवचन, द्वि०व० अने ब०व०मां)एक नक्षत्र(पूर्वा अने उत्तरा) भोगववानुं स्थान (स्वर्ग के नरक) फाणित न० उकाळेलो शेरडीनो रस; फलयोग पुं० फळप्राप्ति; इष्ट वस्तु प्राप्त थवी ते (२) रोजी; महेनताणु काकवी (२) दूधनी एक बनावट फलवत् वि० फळयुक्त; जेने फळ फाल पुं०, न० हळY फळं (२) माथानी बेसतां होय तेवू (२) लाभदायी दरेक बाजु वाळ छूटा पाडीने ओळवा फलशालिन् वि० फळयुक्त; सफळ (२) ते (३) कपाळ ; भाल (४) भारो; फळ के परिणाममां हिस्सो मळवानो एकत्रित बांधेलो झूडो (घास, होय तेवू लाकडां इ० नो) फलसिद्धि स्त्री० फळ प्राप्त थq ते; फालिका स्त्री० टुकडो इच्छित वस्तु सिद्ध थवी ते फाल्गुन पुं० फागण मास (२) अर्जुन फलागम पुं० फळ बेसवां ते (२)फळनी फांट पुं०, स्त्री० उकाळो; क्वाथ मोसम ; शरद ऋतु फुट्टक न० एक जातनुं वस्त्र फलाढय वि० फळथी भरेलु फुट्टिका स्त्री० एक जातना वणाटवाळू फलानमेय वि० परिणामथी जेन [(३) चीस अनुमान थई शके तेवू फुत्कार पुं० फूंकवं ते (२) फूफाडो फलाहार पुं० फराळ फुत्कृ ८ प० फूंक (२) चीस पाडवी फलित (‘फल्'न भू० कृ०) वि० फळ फुत्कृत वि० फूकेलं; फूकीने ऊभुं बेठां होय तेवू; फळ आपनाएं (२) करेलु (परपोटो) (२) चीस पाडी सिद्ध थयेलं (इच्छा) होय तेवू (३) न० फूकीने वगाडाता फलिन् वि० फळ बेसे तेवू; फळयुक्त वाद्यनो अवाज (४) चीस (२) लाभदायक; फळदायक (३) फुत्कृति स्त्री० जुओ 'फुत्कार' (२) लोखंडना फळावाळू (४) पुं० वृक्ष फूंकीने वाद्य वगाडवू ते (३) फूफाडो फलिन वि० फळयुक्त ; फळ आपे तेवू फुप्फुस पुं० फेफसुं फलिनी, फली स्त्री० प्रियंगुलता(आंबानी फुराफुरायते (फफडवं) पत्नी गणाय छे) फुल्ल १५० खीलवू; फूलवू; विकस, पोन Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फुल्ल फुल्ल वि० फूलेलुं; खीलेलुं; विकसेलुं (२) प्रसन्न (३) ढीलुं (वस्त्र) फुल्लन न० फुलाववुं ते ( पवनथी) फुल्ललोचन वि० ( हर्षथी ) विकसेलां नेत्रवाळु फेण पुं० फीण फेणगिरि पुं० सिंधुना मुख आगळनो फेणधर्मन् वि० क्षणभंगुर फेणप पुं० पोतानी मेळे गरी पडेलां [ पर्वत ३३६ - पुं० बगलो ( २ ) एक राक्षस ( भीमे मारेलो) (३) एक राक्षस (श्रीकृष्णे मारेलो) [भगत बकव्रतचर पुं० ( बगला जेवो ) ठगबकुल पुं० एक फूलझाड (स्त्रीना मोंना दारूनो कोगळो छंटातां फूली ऊठतो मनाय छे) (२) न० तेनुं फूल बडिश पुं०, न०, बडिशा, बडिशी स्त्री० माछलां पकडवानो आंकडो बत अ० खेद, अनुकंपा, संबोधन, हर्ष, संतोष, आश्चर्य, निंदा, सत्यार्थ - ए अर्थ दर्शावतो उद्गार [ तेनुं फळ बदर पुं० बोरनुं झाड ; बोरडी (२) न० बदरि स्त्री० बोरडी बदरिका स्त्री० बोरडी (२) बोर बदरी स्त्री० बोरडी बद्ध ('बंधू' नुं भू० कृ० ) वि० बांधेलं; जकडेलुं (२) केद पकडेलुं; केद करेलुं (३) पहेरेलुं; धारण करेलुं (४) रोकेलुं; अटकावेलु (५) रचेलुं (६) जडेलुं; चोंटाडेलु (८) उत्पन्न करेलु बद्धकदंबक वि० टोळे वळेलुं बज्रग्रह वि० आग्रहवाळं बद्धदृष्टि वि० स्थिर नजरे जोतुं ; जेनी दृष्टि स्थिर थई होय तेवुं बद्धनेपथ्य वि० रंगभूमिनां वस्त्र पहेरेलुं ब बभ्रु फळ खाईने गुजारो करनार तपस्वी फेत्कार पुं० चीस; सुसवाटो (बाण, पवन, जानवर इ० नो ) फेन पुं० जुओ 'फेण'; फीण फेनधर्मन् वि० जुओ फेणधर्मन् ' फेनप पुं० जुओ 'फेणप' फेनिल वि० फीणयुक्त फेरव पुं० शियाळ (२) धूर्त; लुच्चो (३) राक्षस बद्धपरिकर वि० केड बांधेलुं; कटिबद्ध बद्धप्रतिश्रुत् वि० पडघा वडे गाजतुं बद्धभाव वि० -ना उपर प्रेमभाव धाय होय ते बद्धमंडल वि० कूंडाळा बांध्यां होय तेवं; कूंडाळामां गोठवायुं होय तेवुं बद्धमुष्टि वि० कंजूस; बांधी मूठीवाळं बद्धमूल वि० ऊंडां मूळ नाख्यां होय तेवुं बद्धमौन बि० चूप रहेलुं बद्धराग वि० प्रेम बंधायो होय तेनुं बद्धवेपथु वि० ध्रुजतुं बद्धवैर वि० वेर बंधाधुं होय तेबुं बद्धानंद वि० आनंदयुक्त [ तेवुं बद्धानुराग वि० - मां प्रेम बंधाया होय बद्धानुशय वि० पस्तावो करतुं ( २ ) स्थिर संकल्पवाळुं १०] [ बीभत्सते ] अणगमो थवो बधिर वि० बहेरु बधिरयति प० ( बहेरुं करी नाखवु ) बधिरित वि० बहेरुं करेलुं बभ्रु वि० लालाश पडता पीळा रंगनुं; पींगळु (२) टालियं ( रोगथी) (३) पुं० अग्नि (४) नोळियो (५) पींगळा वाळवाळो माणस (६) चातक बभ्रुवाहन पुं० अर्जुन - चित्रांगदानो पुत्र भ्रू स्त्री० पींगळा रंगनी गाय Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बर्बर ३३७ बलिदान बर्बर पुं० (आर्य नहि तेवो) जंगली बलभद्र पुं० बळराम माणस (२) मूर्ख; जड बलभिद् पुं० इंद्र; जुओ ‘बलतापन' बर्बुर पुं० बावळ, झाड । बलमुख्य पुं० सेनापति बर्ह १ आ० बोलवू (२) दान आपq बलराम पुं० बळदेव ; कृष्णना मोटा भाई (३) वध करवो (४) विस्तर.. बलवत् वि० बळवान; मजबूत (२) बर्ह पं०, न० मोरनुं पूंछ के पीछु (२) गाढुं (अंधारुं इ०) (३) सत्तावाळू कोई पण पंखी, पीछु (३)पांदडु (४) अगत्यनु; महत्त्व, (५) लश्करबहभार पुं० मोरनुं पूंछ (२) तेनां वाळं (६) अ० मजबूत रीते; दृढ पीछांनुं चामर रीते (७) अत्यंत बहि पुं० अग्नि (२)न० दाभ ; दर्भ बलशालिन् वि० बळवान [ते बहिण वि० मोरना पीछांथी शणगारेलू बलसमुत्थान न० लश्करनी भरती करवी (२) पुं० मोर बलस्थ वि० बळवान (२)पुं० योद्धो बहिणवासस् वि० मोरपीछवाळं बाण बलहन पुं० इंद्र; जुओ 'बलतापन' बहिन् पुं० मोर बला स्त्री० अत्यंत शक्तिशाळी एवो बहिरुत्थ पुं० अग्नि अस्त्रविद्यानो मंत्र (२)एक वनस्पति - औषधि ('नागवेल'के 'जयंती') बहिषद् वि० दाभना साथरा उपर बेठेलू (२) पुं० ब० व० पितृओ बलाक पुं० बगलो बहिष्क वि. दाभथी छवायेखें (२) बलाका स्त्री० बगली बलाकिन् वि० खूब बगलांवाळू न० दाभ के तेनुं आसन बलात् अ० बळथी; जोरजुलमथी बहिस् पुं०, न० दर्भ ; कुश (२)दाभनो बलात्कार पुं० बळ वापर, ते; जोरसाथरो (३) यज्ञ ; आहुति (४) जुलम (२) अत्याचार पुं० अग्नि (५) प्रकाश; कांति बलात्कृत वि० बळात्कार करायेलं बल पुं० बलराम (२) कागडो (३) बलाध्यक्ष पुं० सेनाधिपति [नबळाई (इंद्रे हणेल) एक राक्षस (४) न० बलाबल न० (आपेक्षिक) बळ तथा बळ ; सामर्थ्य (५) बळात्कार; जोर बलालय पुं० लश्करनी छावणी जुलम (६) लश्कर; सैन्य (७) बळनो बलाह पुं० पाणी देव (इंद्र इ०) (८) हाथ (९) यत्न बलाहक पुं० मेघ ; वादळ बलक्ष वि० श्वेत; सफेद रंगवाळू बलांगक पुं० वसंत ऋतु बलक्षगु पुं० चंद्र बलि पुं० होमवानी के देवने अर्पवानी बलज न० शहेरनो दरवाजो (२) खेतर वस्तु (२) पूजन (३) भोजन वखते (३) अनाज ; अनाजनो ढगलो वधेलो अवशेष (४) देवने चडावेलं बलतापन पुं० इंद्र (बल नामना राक्षसने प्राणी (५) कर; वेरो(६) विरोचननो मारनार) पुत्र - प्रसिद्ध राक्षसराज (वामनाबलद पुं० बळद वतारे तेने पाताळमां दबावी दीधो बलदेव पुं० बलराम हतो) (७)स्त्री० वाटो; गडी (जेमके बलद्विष्, बलनिषूदन पुं० इंद्र (बल पेट उपरनी) (८) मोभारो (छापरानो) नामना राक्षसने मारनार) बलिक्रिया स्त्री० कपाळ उपरनी रेखा बलप्रद वि० बळ आपनाएं बलिदान न० देव इ०ने बलि अर्पवो ते Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बलिन् बलिन् वि० बळवान; मजबूत (२) पुं० बलराम बलिन. बलिभ वि० गडी के वाटावाळं बलिभुज, बलिभोज, बलिभोजन पुं० कागडो [को होय तेवू बलिमत् वि० बलिनो सामान तैयार बलिविधान न० बलि अर्पवो ते बलिव्याकुल वि० बलि अर्पवामा लागेलं बलिष्ठ वि० ('बलवत्' के 'बलिन्'नुं श्रेष्ठतादर्शक रूप) सौथी बळवान बलीक पुं० छापरानो छेडानो भाग बलीयस् वि० ('बलवत्' के 'बलिन्' नुं तुलनात्मक रूप) वधु बळवान बलीवर्द पुं० बळद बलीश पुं० कागडो(२) कपटी माणस बलेन अ० बळजबरीथी बलोत्कट वि० अति बळवाळू बलोपपन्न, बलोपेत वि० बळवान बलौघ पुं० मोटुं सैन्य बल्लव पुं० गोवाळियो (२) रसोईयो (३) भीम (विराटने त्यां रसोईया तरीके धारण करेलं नाम) बल्लवयुवति (-ती) स्त्री० जुवान गोपी बल्लवी स्त्री० गोवाळण बष्कयणी (-नी), बकयिणी (-नी) स्त्री० जुवान वाछरडावाळी गाय (२) घणां वाछरडांवाळी गाय । बस्ति स्त्री० नाभिनी नीचेनो भाग; पेडु बस्तिक पुं० एक जातनुं बाण (खेंची काढतां पण जेनुं फळं शरीरमा रहे) बहल वि० घणुं वधारे; पुष्कळ (२) गाढ (३)गुच्छादार; गूंचळियु (४)दृढ बहलित वि० गाढुं थयेटु; दृढ़ थयेलु बहिरंग वि० बहारनु; बाह्य । बहिरुपाधि पुं० बाह्य संजोग के परिस्थिति [करनालं बहिर्वश् वि० उपरचोटियो विचार बहिर्मुख वि० बाह्य वस्तुओ प्रत्ये आसक्त (२)विमुख बहुधा बहिर्यात्रा स्त्री०, बहिर्यान न० परदेश जवं ते [विनानु; अव्यय बहिविकार वि० विकार के फेरफार बहिश्चर वि० बहार आवेलं; बहार फरतुं; बाह्य बहिष्करण न०, बहिष्कार पुं० बहार काढवू ते (२) नात बहार मूकवू ते बहिष्कृ ८ उ० बहिष्कार करवो बहिष्प्राण पुं० शरीर बहार पोतानो बीजो जीव होय तेना जेवं वहालुं होय ते (२) धन; मालमिलकत बहिस् अ० बहार(२) बारणा बहार (३)सिवाय (४)पृथक् ; भिन्नपणे बहिःसंस्थ वि० (शहर)बहार आवेलु बहु वि० घj; पुष्कळ (२)संख्याबंध (३)वारंवार थतुं के करातुं (४) मोटुं (५) (समासनापूर्वपदमां)-जेमां घj होय तेवू (उदा० 'बहुकंटक' = घणा कांटावाळू) (६)अ० अत्यंत बहुकर वि० घणी रीते उपयोगी (२) उद्यमी (३)पुं० झाडु काढनार(४)सूर्य बहुकार न० पुष्कळ होवापणुं बहुकारी स्त्री० सावरणी बहुक्षम वि० धीरजवाळं [योगवाळू बहुगुण वि० घणा गुण, प्रकार के उपबहुच्छल वि० छळकपटवाळं। बहुजन पुं० घणी मोटी संख्यानां माणसो बहुतिय वि० घणुं लांबु (समय); घणा दिवसो वीत्या होय तेवं बहुतण न० घास जेवं तुच्छ के निरुपयोगी होय ते बहुथा अ० बहुधा ; घणे प्रकारे बहुदर्शक, बहुदशिन वि० विचारीने काम करनारं; शाj बहुदोष वि० घणा दोष के जोखमवाळू बहुधन वि० अति धनवान बहुधा अ० अनेक प्रकारे; विविध रीते (२)वारंवार (३) अनेक स्थळे ; अनेक दिशामां Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहुनाडिक बहुनाडिक पुं० शरीर बहुनाडीक पुं० दिवस ( २ ) थांभलो बहुप्रकारम् अ० घणा प्रकारे बहुप्रपंच वि० घणा विस्तारवाळु बहुभाष्य न० वातोडियापणुं बहुभूमिक वि० घणा माळवाळु बहुभोग्या स्त्री० वेश्या बहुमत वि० घणांओमां आदर पामेलुं (२) घणो आदर पामेलुं ( ३ ) घणा मत के अभिप्रायवाळु बहुमति स्त्री० मोटो आदर; संमान बहुमत् ४ आ० मोटुं मानवु; कीमती मानवु मानीतुं गणवुं बहुमान पुं० अति आदर; संमान बहुमाय वि० तरकटी; दगाबाज बहुमार्गगा स्त्री० गंगानदी ( २ ) व्यभिचारिणी के स्वच्छंदी स्त्री बहुमुख वि० अत्यंत पुष्कळ बहुमूल्य वि० मूल्यवान; कीमती बहुरूप वि० घणां रूपवाळं (२) चित्रविचित्र ; काबरचीतसं बहुल वि० गाढ; घाडुं ( २ ) पहोळं; विस्तृत ( ३ ) अतिशय पुष्कळ ( ४ ) -थी भरेलु -थी पूर्ण ( ५ ) पुं० कृष्णपक्ष बहुलम् अ० वारंवार बहुलशितिमन् पुं० कृष्णपक्षनी काळाश बहुला स्त्री० गाय बहुलित वि० वधारेलुं बहुलीकृ ८उ० जाहेर करवुं बहार पाडवुं ( २ ) गाढ बनाववुं ( ३ ) वधारखं बहुलीभाव पुं० नामीचा थवुं ते; जाणीता थवं ते; जाहेर थवं ते बहुलीभू १५० वधवं ( २ ) जाहेर थबुं; प्रसिद्ध थवु; नामीचा थवुं बहुविध वि० बहु प्रकारनुं बहुव्रीहि वि० पुष्कळ चोखावाळं (२) पुं० एक समास ( व्या० ) बहुशस् अ० अत्यंत होय तेम ( २ ) वारंवार ( ३ ) सामान्यपणे ३३९ बंधन बहुशाख वि० घणी शाखाओवाळु (२) फेला ; एकाग्र के निश्चित नहीं तेवुं बहुश्रुत वि० विद्वान पंडित ( २ ) वेदोमां पारंगत [ वाळं बहुसत्व वि० घणां जानवर के प्राणीबहुसाहरू वि० हजारोनी संख्यावाळु बहूदक पुं० एक प्रकारनो भिक्षु (घेरघेर भिक्षा मागीने जीवतो) ; 'कुटीचक' बहूपयुक्त वि० घणा उपयोगमां आवतुं के लेवातुं बहूपाय वि० असरकारक पाय वि० घणां जोखमवाळु बंदि पुं० बंधन; केद ( २ ) केदी बंदिन् पुं० बंदी; चारण बंदिस्थित वि० केदमां पूरेलुं - पडेलुं बंधी स्त्री० जुओ' बंदि ' बंधू ९ १० बांधवं; जकडवं ( २ ) पकडवु: केद करवुं; बेडीमां नाखवुं ( ३ ) रोकवं; दबाववुं (४) खेंचवं; पकडी राखवु (जेम के आंखोने ) ( ५ ) - उपर स्थिर करवुं; (जेम के आंख के मनने) (६) साथे बांधव (जेम के वाळने) (७) रचवुं; बांध; गोठववुं (८) उत्पन्न करवु (फळ इ० ) (९) धारण करवुं (भाव; लागणी) (१०) शिक्षा करवी बंध पुं० बंधन; गांठ (२) चोटलानी गांठ (३) सांकळ; बेडी (४) पकडवुं ते (५) केद ( ६ ) गोठवj - रचवं ते (७) लागणी; भाव ( ८ ) संबंध ( ९ ) जोडवं ते ( १० ) पाटो (११) अभिव्यक्ति; प्रदर्शन (१२) संसारबंधन ( ' मोक्ष ' थी ऊलटुं (१३) परिणाम (१४) आसन; बेसवा वगेरेनी रीत (१५) कवितानां चरणोनी गोठवणी (१६) ( नदीनी ) सामे पार सुधीन बांध [ नाखवं ते बंधकरण न० केद पकडवं ते; बेडीमां बंधकी स्त्री० व्यभिचारिणी; वेश्या बंधन वि० बांघनारुं (२) रुकावट करनारुं ( ३ ) (समासने अंते ) -ने आधारे Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बंधु ३४० बाध्य रहेलु (४)न० बांधq ते; गांठ वाळवी ते (५)आसपास वींटाळवू ते (६)गांठ (७) केद (८) सांकळ (९) केदखानु (१०) रचना (११) दांडी (फूल इ० नी) (१२)स्नायु(१३)संसारबंधन बंधु पुं० सगुं; संबंधी(२)सोबती;साथी (३) मित्र (४)पति (५) भाई (६) जन्म अमुक वर्गमां होय पण ते वर्गना गुणो विनानुं ते (उदा० 'क्षत्रबंध') बंधुकृत्य न० सगा-संबंधी तरीकेतुं कर्तव्य (२)मित्रताभयुं कृत्य । बंधुजन पुं० सगुं; नातीलु (२) सगां संबंधीनो आखो वर्ग बंधुजीव पुं० एक फूलझाड (२)न० तेनुं फूल (बपोरना ऊघडे छे) बंधता स्त्री० संबंधीवर्ग (२) संबंधीपणं बंधुत्व न० बंधुपणुं; सगाई ; मित्रता बंधुदा स्त्री० व्यभिचारिणी स्त्री बंधुप्रीति स्त्री० सगांसंबंधीनो प्रेम (२) मित्र माटेनो प्रेम संबंधीथी घेरायेलं बंधुमत् वि० सगांसंबंधीवाळू (२) सगांबंधर वि० असमान; ऊंचुंनीचुं (२) नमी गयेलं (३) वांकुं (४) सुंदर; मनोरम (५) न० ताज ; मुगट (६) दोरहूं; बंध बंधुरित वि० वळेलु; नमेलं बंधुल वि० नमेलु (२) मनोहर (३)पुं० जारज संतान (परस्त्री- परपुरुषथी) बंधूक पुं० एक वृक्ष (२) न० तेनुं फूल बंधर वि० असमान; ऊंचुनीचु (२) मनोहर (३)वांकु; नमेलु (४)न०बाकुं बंध्य वि० बांधवा योग्य ; केद पकडवा योग्य (२)वंध्य ; निष्फळ । बंध्या स्त्री० वंध्या; वांझणी बंध्यापुत्र, बंध्यासुत पुं० वांझणीना पुत्र जेवी असंभवित वस्तु बंहिष्ठ वि० ('बहुल' न श्रेष्ठतादर्शक रूप) अतिशय; पुष्कळ (२)घणुंनीचं के ऊ९ (३) घणुं मजबूत के दृढ बाढ वि० दृढ; मजबूत (२)पुष्कळ बाढम् अ० हा, खरेखर, साचे ज, चोक्कस-ए अर्थो बतावे छे बाण पुं० तीर; शर (२) शरीर (३) पुं०, न० आसमानी रंगनुं एक फूल बाणगोचर पुं० बाण पहोंचे तेटलं क्षेत्र बाणतूण, बाणधि पुं० बाणनो भाथो बाणपात पुं० बाण जाय तेटलं अंतर (२) जुओ ‘बाणगोचर'(३)बाणशय्या बाणयोजन न० बाणनो भाथो बाणरेखा स्त्री०बाणथी थयेलो लांबो घा बाणसंधान न० पणछ उपर बाण चडावq ते बाणाश्रय पुं० भायो बाणासन न० धनुष्य बादर वि० बोरडी, (२) कपासनुं बनेलं (३)स्थूल; मोटुं ('सूक्ष्म 'थी ऊलटुं) बादरायण पुं० ब्रह्मसूत्रना कर्ता मुनि (सामान्य रीते वेदव्यास गणाय छे) बादरायणसंबंध पुं० काल्पनिक अथवा पराणे घटावेलो संबंध बाध् १ आ० त्रास आपवो; पीडवं (२) अटकायत करवी; रोकवू (३)हुमलो करवो (४) ईजा करवी (५)दूर करवु बाध पुं० जुओ 'बाधा' बाधक वि० पीडनारूं; त्रास आपनाएं; पजवनारु (२) रद करनारं (३) अटकायत करनारूं बाधन न० त्रास; पजवणी बाधा स्त्री० पीडा; त्रास (२)पजवणी (३) ईजा; हानि (४) जोखम (५) सामनो; विरोध ; खंडन बाधित ('बाध्' नुं भू० कृ०) वि० त्रास, पजवणी के पीडा थयां होय तेवं (२)खंडन करेलु; रद करेलु बाधिर्य न० बहेरापj बाध्य वि० पीडा, सामनो, विरोध, अटकायत के खंडन करवा योग्य Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बार्हस्पत बार्हस्पत पुं० एक संवत्सरनुं नाम बार्हस्पत्य पुं० बृहस्पतिनो एक अनुयायी ( नास्तिकवाद शीखवनार) (२) नास्तिक (३) न० बृहस्पतिनुं अर्थशास्त्र बाल वि० नानुं (उंमरमां के विकासमां ) (२) तरतनुं ऊगेलुं (सूर्य) (३) मोटुं थतुं ( पडवाना चंद्रनी पेठे ) (४) अज्ञ; बिनअनुभवी (५) पुं० बाळक (६) छोकरो; सगीर (सोळ वर्षथी नानी वयनो ) ( ७ ) मूर्ख (८) वाळ बालक वि० नानी उंमरनुं; बाळक जेवुं (२) अज्ञ ( ३ ) पुं० नानो बाळ; छोकरो ( ४ ) सगीर (५) मुर्ख (६) बाळहाथी ( पांच वर्षनी वयनो ) बालकुंद न० ताजुं कुंद पुष्प बालखिल्य पुं० जुओ 'वालखिल्य' बालचरित न० बाळपणनी क्रीडा ( २ ) बाळपणनुं चरित्र बालचर्या स्त्री० बाळकनुं आचरण बालचंद्र, बालचंद्रमस् पुं० नानो चंद्र (वधतो जतो) (२) अमुक आकारनं बाकुं (चोरे भींतां पाडेलुं) बालचूत पुं० नानो आंबो बालतृण न० नानुं - कुमळं घास बालधि पुं० वाळवाळु पूछडुं बालबोध पुं० बाळकोनुं शिक्षण ( २ ) शिखाउ माटे तैयार करेल ग्रंथ बालभार पुं० वाळना भारवाळु पूंछडुं बालभाव पुं० बाळपण (२) घणा वाळ ऊगवा ते (३) बाळको (आखो वर्ग ) बालमित्र पुं० बाळपणथी ज मित्र एवो ते बालमृणाल पुं० कमळनो कोमळ तंतु बाललता स्त्री० नानी - कुमळी वेल बालव्यजन न० चामर बालहस्त पुं० वाळवाळं पूछडुं बाला स्त्री० बाळकी; छोकरी (२) सोळ वर्षनी नीचेनी जुवान छोकरी (३) युवती ( सामान्यपणे ) सं. ग. - २२ ३४१ बाष्पायते बालान न० वाळनी अणी के छेड़ो (२) छापरा नीचेनुं कबूतरखानुं बालातप पुं० सवारनो तडको बालारुण वि० ऊगता सूर्य जेवुं लाल (२) पुं० सवारनो सूर्य बालार्क पुं० तरतनो ऊगेलो सूर्य बालावबोध पुं०, बालावबोधन न० बाळकोनुं - छोकराओनुं शिक्षण बालावस्थ वि० नानी उमरनुं; बाल्यावस्थामां होय तेवुं बालि पुं० वालि; वानरोन्बो राजा बालिका स्त्री० बाळा; बाळकी बालिश वि० ० बाळक जेवुं; छोकरवाद (२) नादान ; बेसमज ( ३ ) पुं० मूर्ख के जड माणस ( ४ ) नानो छोकरो बालिशीकृ ८ उ० (बालिश जेवुं ) नादान के अविचारी करी मूकवु बालेय वि० बलि - आहुतिने योग्य बालेंदु पुं० ( शुक्लपक्षनी शरूआतनो) नानो चंद्र (जे रोज वधे छे) बाल्य न० बाळपण; बाल्यावस्था ( २ ) नानी - वधवा योग्य स्थिति ( चंद्रनी) (३) समजशक्तिनी अपरिपक्वता ( ४ ) अज्ञान; समज (५) निर्दोष अवस्था (गर्व इ० दोष विनानी ) बाह, बाहीक पुं० बाल्हिक लोकोनो राजा ( २ ) बल्ख जातिनो घोडो ( ३ ) ब० व० ते जातिना लोक (४) न० केसर (५) हिंग बाष्प पुं० आंसु ( २ ) वराळ बाष्पकल वि० आंसुने कारणे अस्पष्ट बाष्पकंठ वि० आंसुथी रूंधायेलं बाष्पदुर्दिन वि०आंसुथी घेरायेलु (आंख) बापपूर पुं० आंसु जोरथी वहेवुं ते बाष्पप्रकर, बाष्पप्रसर पुं० आंसु वहेवां तें arryfarera fro आंसुधी विकळ थयेलं बाष्पाकुल वि० आंसुथी संखवायेलं के विकल बनेलुं [ काढवी) बाष्पायते आ० ( आंसु सारवां; वराळ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ बीब बाष्पांव बाष्पांबु न० आंसु बास्तिक न० बकरांनुं टोळू बाहा स्त्री० बाहु; बाहु-लता बाहीक वि० बहारनुं; बाह्य बाहु पुं० भुजा; हाथ बाहुबल न० हाथर्नु जोर; स्नायुनुं जोर बाहुबंधन पुं० पीठना उपरना भागमा आवेलुं खभानुं पहोळं हाडकुं (२)न० (आसपास) हाथ वींटवा ते बाहुल पुं० अग्नि बाहुल्य न० बहुपर्यु; पुष्कळपणुं (२) विविधता (३)सामान्य रीत बाहुल्यात्, बाहुल्येन अ० सामान्य रीते (२) घणे भागे बाहुविक्षेप पुं० आम तेम हाथ नाखवा के हलाववा ते (२) तरतुं ते बाहुश्रुत्य न० बहुश्रुतता; विद्वत्ता बाहूत्क्षेपम् अ० हाथ ऊंचा करीने बाह्य वि० बहारचें; बहार आवेलु (२) परदेशी; अजाण्यु (३) -नी सीमा बहारनुं (४)नात बहार करेलु (५) जाहेर (६) पुं० अजाण्यो; परदेशी (७)नात बहार मूकेलो माणस बाहिक न० केसर बाहिकाः पुं० ब० व. 'बाल्हिक' जातिना लोक बाह्रीक न० केसर बाह्रीकाः पुं० ब० व० जुओ' बालिकाः' बाहृतर न० छाती(बे बाहु वच्चेनुं स्थळ) बांधव पुं० सगुं; संबंधी (२)मित्र (३) भाई (४) बंधुकृत्य; मित्रनी मदद बांधवजन पुं० सगांसंबंधीनो समूह बिडाल पुं० बिलाडो बिडोजस् पुं० इंद्र बिब्बोक पुं० एक कामचेष्टा; गमवा छतां अनादर दाखववो ते (२)अभिमानमा अनादरनो देखाड करवो ते बिभित्सु वि० भेदवानी इच्छावाळू बिभीषण वि० डरावतुं; बिवरावतुं; भयंकर (२)पुं० रावणनो नानो भाई; विभीषण [तेवी वस्तु विभीषिका स्त्री० डर; भय (२) डरावे विभ्रज्जिषु पुं० अग्नि बिरुद पुं० जुओ ‘विरुद' बिल पुं० उच्चैःश्रवा (इंद्रनो अश्व) (२) न० बाकुं; छिद्र ; दर; बखोल बिलयोनि वि० इंद्रना अश्व - उच्चैः श्रवानी जातनुं के वंशनुं बिलेशय पुं० साप (२) उंदर(३) ससलं बिल्व पुं० बीलीनुं झाड (२)बीलू बिस न० कमळनो रेसो के रेसावाळो दांडलो (२)कमळनो छोड के वेल बिसकुसुम न० कमळ बिसगुण पुं० कमळना रेसानी दोरी बिसतंतु पुं० कमळनो रेसो बिसपुष्प, बिसप्रसून न० कमळ बिसिनी स्त्री० कमलिनी; कमळनी वेल (२)कमळनो समूह बिंदु पुं० टी; टपकुं (२)मींडु (३) हाथीना शरीर उपर करेलुं रंगनुं टपकुं (४)शून्य (५) अनुस्वार (व्या०) बिंदुच्युतक पुं० एक जातनी शब्द-रमत विडूय आ० (टीपां बनवां; टपकवू) बिंब पुं०, न० जेनुं प्रतिबिंब पडयु होय ते (२) सूर्यचंद्रन मंडळ (३) मंडळाकार कोई पण वस्तु (उदा० नितंबबिंब) (४)प्रतिबिंब पडछायो (५)अरीसो (६) मूर्ति (७) बोर्बु (८) न० घिलोडं बिवफल न० घिलोडं बिबिसार पुं० मगधनो एक राजा(बुद्धनो समकालीन) विबोष्ठ, बिबोष्ड वि० पाका घिलोडा जेवा होठवाळू (सुंदर गणाय छे) बीज न० बियु;बी (२) मूळ ; मूळकारण (३)वीर्य (४) नाटक के कथा- मूळ वस्तु (५)पुं० बिजोएं Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीजक बीजक पुं० बिजोरुं (२) घणां बीजवाळां केलांक फळोनुं नाम (३) न० यादी (४) बीज; बी बीजगणित न० अक्षरगणित; 'एल्जिना' बीजनिर्वापण न० बीज वावदां ते बीजन्यास पुं० नाटकना वस्तुनुं बीज प्रगट कर बीजपुष्प, बीजपूरण पुं० बिजोरानुं झाड बीजवाप पुं० बीज वावनारो; खेडूत बीजाकृत वि० बीज वावेलुं (खेतर) बीजांकुर पुं० बीजमांथी फूटे लो फणगो बीभत्स वि० चीतरी चडे तेवुं ( २ ) बिहामणुं ; घोर ( ३ ) पुं० तिरस्कार; चीतरी ; अणगमो ( ४ ) न० चीतरी चडे तेवुं कांई पण [ छाती बुक्क पुं०, न०, बुक्कन् पुं० हृदय (२) बुक्कस पुं० चांडाळ बुक्का स्त्री० हृदय बुक्कार पुं० सिंहनी गर्जना बुक्की स्त्री० हृदय बुद्ध (‘बुध् 'नुं भू० कृ०) वि० जाणेलुं; समजेलु (२) जागेलुं (३) निहाळेलुं (४) समजणवाळं; डाहधुं (५) विकसित (६) पुं० गौतमबुद्ध (७) ज्ञानी के sri माणस; ऋषि (८) परमात्मा (९) न० ज्ञान ३४३ बुद्धि स्त्री० वस्तुने जाणवानी चित्तनी आकलन- के समज- शक्ति; अक्कल (२) समज; ज्ञान; माहिती ( ३ ) विवेक ; डहापण ( ४ ) मन ( ५ ) तरतबुद्धि (६) मान्यता; अभिप्राय ( ७ ) हेतु प्रयोजन ( ९ ) ( मूर्छामांथी) भानमां आवबुं ते (१०) उपाय (११) महत् तत्त्व (सांख्य०) बुद्धिकृत् वि० मानतुं धारतुं बुद्धिकृत वि० बुद्धिपुरःसर करेलुं बुद्धिजीविन् वि० बुद्धि वडे जीवतुं विचारपूर्वक वर्ततुं बुभुत्सु बुद्धिपूर्वकम्, बुद्धिपूर्वम् अ० जाणीबूजीने; समजी- विचारीने बुद्धिप्रागल्भी स्त्री० विवेकबुद्धिनी सचोटता के परिपक्वता बुद्धिभेद पुं० बुद्धिनुं डामाडोळपणुं बुद्धिमत् वि० बुद्धिमान; बुद्धिशाळी (२) बुद्धिशक्तिवाळं (३) डाहघुं; समजदार ( ४ ) तीक्ष्ण बुद्धिवाळु बुद्धिलक्षण न० बुद्धिनी निशानी बुद्धिलाघव न० उपरचोटिया के तुच्छ rat बुद्धि; अपरिपक्व बुद्धि बुद्धिशस्त्र वि० बुद्धि वडे सज्ज बुद्धिहीन वि० बुद्धि वगरनुं; बेवकूफ बुद्धींद्रिय न० ज्ञानेंद्रिय ( श्रोत्र, त्वचा, आंख, जीभ, नासिका) बुद्धघवज्ञान न० पोतानी बुद्धिनी अवगणना के अनादर बुब्बुद पुं० परपोटो बुब् १उ०, ४ आ० जाणवु; समजवुं (२) निहाळवु; जोवुं (३) मानवुं; धारवुं ( ४ ) ध्यान आपवुं ( ५ ) विचारखुं (६) जागवुं; ऊंघमांथी ऊठवुं (७) भानमा आव - प्रेरक० उ० जणाववुं ( २ ) शीखववुं (३) सलाह आपवी (४) सजीवन करवु; भानमां लाववुं (५) जाग्रत करवुं (६) खिलाववुं ; विकसाववु बुध वि० डाहघुं; शाणुं; समजदार (२) बुद्धिशाळी (३) जागतुं (४) पुं० डाह्यो माणस (५) देव (६) एक ग्रह बुध्न पुं० वासणनी नीचेनुं बूधुं - तळियुं बुभुक्षा स्त्री० भूख ; खावानी इच्छा (२) कांई पण भोगववानी इच्छा बुभुक्षित वि० भूख्यं; भूखथी पी बुभुक्षु वि० भूख्यं ( २ ) भोगनी इच्छावाळु ( ' मुमुक्षु 'थी ऊलटं ) [ जारी बुभुत्सा स्त्री० जाणवानी इच्छा; इंतेबुभुत्सु वि० जाणवानी इंतेजारीवाळु Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ ब्रह्मदाय बुभूषु वि० बनवा के थवानी इच्छावाळू बोधपूर्व वि० जाणतुं; समजतुं (२) (२)समर्थ के समृद्धिमान बनवानी जाणी-बूजीने करेलु [पूर्वक इच्छावाळु (३)-नुं हित इच्छतुं बोधपूर्वम् अ० जाणी समजीने; इरादाबुंद् १ उ० जोवू; निहाळg (२) बोधि पुं० पूर्णज्ञान ; साक्षात्कार विचारवू; समजवु (३)सांभळवू बोधिसत्त्व पुं० बौद्ध मुमुक्षु; पूर्ण बोध बुध १० प० बांधq(२)१ उ० जुओ 'बुद्' प्राप्त करवाने मार्गे पळेलो साधक बृह १,६५० वधq (२) गर्जवं बोध्य वि० जाणवा - समजवा योग्य बहत् वि० मोटुं; विशाळ (२)पहोर्छ; (२) जाणी- समजी शकाय तेवू विस्तरेलु (३) अफाट;पुष्कळ (४) बळ (३)जणाववा के खबर आपवा योग्य वान (५) लांबु ; ऊंचु (६) स्त्री० वाणी बौद्ध वि० बुद्धिने लगतुं (२) बुद्ध (७) न० वेद (८) एक साममंत्र । संबंधी (३) पुं० बुद्धनो अनुयायी बृहती स्त्री० मोटी वीणा (२)नारदनी अध्नमंडल न० सूर्य- बिंब वीणा (३)वाणी ब्रह्मकूट पुं० संपूर्ण विद्वान एवो ब्राह्मण बृहद्भानु पुं० अग्नि (२) सूर्य ब्रह्मकोश पुं० समग्र वेद बृहस्पति पुं० देवोना गुरु (२)एक ग्रह ब्रह्मगौरव न० ब्रह्मास्त्रनो आदर बंह १,६५० वधq (२) गर्जवं (३) बह्मघातक, ब्रह्मघातिन् पुं० ब्रह्महत्या करनार १५०, १० उ० बोलवू (४) चळकवू ब्रह्मघोष पुं० वेदोनुंपठन (२) समग्र वेद बृंहण वि० पोषतुं (२) न० गर्जना (हाथीनी) (३) पोषवं ते ब्रह्मचर्य न० जीवननो प्रथम आश्रम, जे दरम्यान वेदो भणे छे तथा ब्रह्मचारी बृंहित ('बृंह 'नुं भू००) वि० वधेलु; रहे छे (२) इंद्रियनिग्रह; ब्रह्मचारी विकसेलु (२) गर्जेलु (३) न० गर्जना रहेवानुं व्रत (३)पुं० ब्रह्मचारी विद्यार्थी (हाथीनी) ब्रह्मचर्या स्त्री० ब्रह्मचर्यव्रत बेह १ आ० प्रयत्न करवो ब्रह्मचारिन् वि० वेद भगनारं (२) बैले वि० बिल - दरमा रहेनारु ब्रह्मचर्यव्रतधारी । (३) पुं० चार बैंबिक पुं० स्त्रीओ प्रत्ये प्रेम-संमान आश्रमोमांथी पहेला आश्रममा रहेलो; दर्शाववामां प्रयत्नशील माणस गुरुने घेर रही, ब्रह्मचर्य पाळी बोद्धव्य वि० जुओ ‘बोध्य' विद्याभ्यास करनार विद्यार्थी बोध पुं० समज; ज्ञान (२)विचार (३) ब्रह्मज्ञ वि० ब्रह्मने जाणनारं; ब्रह्मवेत्ता समजशक्ति; बुद्धि (४) जागवू ते; ब्रह्मज्ञान न० ब्रह्म अने जगतना अभेदतुं जानदवस्था ज्ञान; परमज्ञान; तत्त्वज्ञान बोधक कि० जणावनारु (२)शीखवनारुं ब्रह्मण्य वि० ब्रह्म संबंधी (२) ब्रह्मा (३)दर्शक (४)जगाडनाएं संबंधी (३) ब्राह्मण माटे उचित (४) बोधतस् अ० समजपूर्वक ब्राह्मणना हितनुं (५)पवित्र (६)पं० बोपन वि० जाण - खबर करनारु (२) वेदवेत्ता [(३) अभिचार ; मंत्रतंत्र समजावनार (३) नगाडनारुं (४)सळ- ब्रह्मदंड पुं० ब्राह्मणनो शाप(२)ब्रह्मास्त्र गावनाएं (५) पुं० बुध ग्रह (६) न० ब्रह्मदाय पुं० वेद भणाववा ते (२) समजाववं-जणाववं-शीखवq ते (७) वारसामां मळेलं वेदज्ञान (३) अर्थ दर्शाववो ते (८) जगाडवू ते ब्राह्मणनो वारसो Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रह्मन् ब्रह्मन् न० परब्रह्म परमतत्त्व ( २ ) स्तुतिनो मंत्र ( ३ ) शास्त्रवाक्य ( ४ ) वेद (५) ॐकार (६) ब्राह्मण वर्ण (७) ब्राह्मणनुं सत्त्व - तेज ( ८ ) तपस्या (९) ब्रह्मचर्य (१०) वेदनो ब्राह्मण खंड ( ११ ) समृद्धि (१२) अन्न (१३) सत्य (१४) पुं० जगतनी रचना करनार - ब्रह्मा (१५) ब्राह्मण (१६) सोमयज्ञना चार ऋत्विजोमांनो एक ( १७ ) गुरु ग्रह (१८) ब्रह्मलोक ब्रह्मनिर्वाण न० ब्रह्म साथे अभेद; मोक्ष (२) ब्रह्मानंद ब्रह्मनिष्ठ वि० ब्रह्मना चितनमां लवलीन ब्रह्मपारायण न० पूर्ण वेदनो अभ्यास ब्रह्मपाश पुं० ब्रह्मा जेना अधिष्ठाता छे एवं एक अस्त्र ब्रह्मपुर न० हृदय ( २ ) शरीर ब्रह्मप्राप्ति स्त्री० ब्रह्म साथे अभेद थवो ते ब्रह्मबंधु पुं० मात्र जन्मथी ब्राह्मण ( पण कर्मथी नहीं ) ब्रह्मभुवन न० ब्रह्मलोक [ तेवुं; मुक्त ब्रह्मभूत वि० ब्रह्म साथे अभेद थयो होय ब्रह्मभूय न० ब्रह्मप्राप्ति ( २ ) ब्राह्मणपणुं ब्रह्ममय वि० वेदरूप; वेद संबंधी; वेदमांथी नीपलुं (२) ब्राह्मणने योग्य ब्रह्ममीमांसा स्त्री० वेदांत सिद्धांत ( ब्रह्मना स्वरूप विषेनो ) ब्रह्मयज्ञ पुं० वेदनुं अध्ययन-अध्यापन ( पंच महायज्ञोमांनो एक ) ब्रह्मयोनि वि० ब्रह्माथी उत्पन्न थयेलं ( २ ) स्त्री० वेदोनो के ब्रह्मानो कर्ता ब्रह्मरंध्र न० मस्तकमा मानेल एक छिद्र, ज्यांथी नीकळेलो जीव ब्रह्मलोकमां जाय छे राक्षस पुं० भूत थयेलो पापी ब्राह्मण ब्रह्मवर्चस् ( स ) न० ब्रह्मचर्य, वेदाभ्यास के ब्रह्मज्ञानथी उत्पन्न थतुं तेज ब्रह्मवादिन् पुं० वेद भणावनार ( २ ) वेदांत मतनो अनुयायी ३४५ ब्राह्मण ब्रह्मविद्या स्त्री० ब्रह्मनुं ज्ञान ब्रह्मविहार पुं० शुद्ध-बुद्ध-मुक्त स्थिति ब्रह्मव्रत न० ब्रह्मचर्यव्रत ब्रह्मसत्र न० वेदनुं अध्ययन-अध्यापन ; ब्रह्मयज्ञ (२) ब्रह्मचिंतन ब्रह्मसायुज्य न० ब्रह्म साथै अभेद ब्रह्मसूत्र न० यज्ञोपवीत (२) बादरायणरचित वेदांतसूत्र ब्रह्मस्तंब पुं० विश्व; जगत ब्रह्मस्थली स्त्री० वेद भणवानी शाळा ब्रह्महत्या स्त्री० ब्राह्मणनी हत्या ब्रह्मानंद पुं० ब्रह्म साथे अभेदनो आनंद ब्रह्मावर्त पुं० सरस्वती अने दृशद्वती नदी वच्चेनो देश ( हस्तिनापुरथी वायव्यमां) - ब्रह्माश्रम पुं० ब्रह्मचर्याश्रम ब्रह्मास्त्र न० ब्रह्मा जेना अधिष्ठाता छे ते अस्त्र ब्रह्मांगभू पुं० घोडो (२) मंत्रो बोली जेणे पोताना अवयवोने स्पर्श कर्यो छे ते ब्रह्मांड न० मूळ अंड, जेमांथी विश्व उत्पन्न थयुं छे ( २ ) विश्व ब्रह्मांडभisोदर न० ब्रह्मांडरूपी पोलाण ब्रह्मिष्ठ वि० वेदपारंगत; वेदवेत्ता ब्राह्म वि० ब्रह्मा संबंधी ( २ ) ब्रह्म संबंधी (३) ब्राह्मगोनुं ( ४ ) वेदाभ्यासने लगतुं; ब्रह्मज्ञानने लगतुं (५) वेदविहित; शास्त्रविहित ( ६ ) ब्रह्मलोक संबंधी ( ७ ) पुं० विवाहना आठ प्रकारोमांनो एक (कोई पण दायजो लीधा विना आभूषणयुक्त कन्या परणावी देवी ते - श्रेष्ठ प्रकार ) ब्राह्मण वि० ब्रह्मने जाणनारुं (२) ब्राह्मण संबंधी (३) ब्राह्मणने उचित (४) पुं० चार वर्णोमांना प्रथम वर्णनो पुरुष (५) न० यज्ञक्रियामां कया वेदमंत्रोनो प्रयोग करवो तेना नियमो वगेरेनी चर्चा करतो वेदनो खंड (मंत्रखंडथो जुदो ) (६) ए प्रकारना ग्रंथोनो समुदाय Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्राह्मणक ३४६ भगवत् ब्राह्मणक पुं० नीच ब्राह्मण समय; सूर्योदय पहेलांनी बे घडी ब्राह्मणब्रुव पुं० मात्र नामनो ज ब्राह्मण ब्राह्मी स्त्री० ब्रह्मनी शक्ति (२) वाणी (ब्राह्मणनां कर्म न करनारो) (३) सरस्वती (४) धर्माचार; वेदब्राह्मणातिक्रम पुं० ब्राह्मणोनो अनादर विधि (५)एक वनस्पति ब्राह्मणी स्त्री० ब्राह्मण वर्णनी के ब्राह्मण- बुव, बुवाण वि० (समासने छेडे) नामर्नु नी स्त्री (२) बुद्धि (३) एक जातनो ज; नाम प्रमाणेनां आचरणवाळू नहि काचिडो ते, (उदा० 'ब्राह्मणब्रुव') ब्राह्मण्य न० ब्राह्मणोनो समुदाय बू २ उ० बोलवु:कहे, (२) जाहेर करवू ब्राह्ममुहूर्त पुं० दिवसनो शरूआतनो (३)नाम आपकुं; नामे ओळखवू भ न० तारो; नक्षत्र; ग्रह; राशि भक्त ('भज्' नुं भू००)वि०वहेंचेलं; भाग पाडेलु (२) भजेलं; पूजेलं (३) तत्पर; लीन (४) वफादार (५) रांधेलु (६) (समासने छेडे) चाहेलं; गमतुं होय तेवू (७) पुं० उपासक; भजनारो (८) न० भाग; हिस्सो (९) रांधेलो भात (१०) अन्न; भोजन (११) वेतन; रोजी भक्ताग्र पुं०, न० भोजननो ओरडो (साधुओना मठमां) भक्ति स्त्री० विभाग पाडवा ते (२) विभाग; हिस्सो (३) उपासना; भजन (४) विश्वास; श्रद्धा (५) रचना; गोठवण (६) पंक्ति; क्रम (७) शणगार (८) उपचार; लक्षणा भक्तिगंधि वि० भक्तिनो अंश बहु ओछो होय तेवू; नामनी ज भक्तिवाळं भक्तिचित्र न. चितरामण भक्तिच्छेद पुं० चितरामणनी के शणगारनी पंक्तिओ- रेखाओ भक्तिपूर्वकम् अ० भक्तिथी भक्तिभाज् वि० एकनिष्ठ; वफादार (२) भक्तियुक्त भक्तियोग पुं० एकनिष्ठ भक्ति भक्ष १० उ० खावं; भक्षण कर (२) वापरी नाखवं (३) नकामु खर्ची नाख, (४) करडQ भक्ष पुं० खावं ते (२) भोजन भक्षक वि० खानारुं;-खाईने जीवनाएं (२) खाउधरुं भक्षण वि० खानारु (२)न० खावं ते भक्षणीय वि० खावा योग्य भक्षिका स्त्री० भोजन (२) (समासने अंते)-खावं ते पण भोज्य भक्ष्य वि० खावा योग्य (२) न० कोई भक्ष्यभक्षको पुं० द्वि० व० खावानी वस्तु अने खानार (ए बे) [योग्य पदार्थ भक्ष्याभक्ष्य न० खावा योग्य अने न खावा भग पुं० सूर्य (२) सद्भाग्य ; नसीब (३) समृद्धि (ऐश्वर्य, वीर्य, यश, श्री, ज्ञान अने वैराग्य -ए छनो समूह) (४)कीर्ति; यश (५)स्त्रीनी गुडेंद्रिय (६) न० उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र भगदेव पुं० अत्यंत कामी पुरुष भगदैवत न० उत्तराफल्गुनी नक्षत्र भगनेत्रहर पुं० शिव भगवत् वि० समृद्धिमान (२) पूज्य; पवित्र (देवोने माटे तथा आदरणीय पुरुषो माटे वपराय छे) (३) पुं० देव (४) विष्णु ; शिव; जिन, बुद्ध इ० Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती ३४७ भयानक भगवती स्त्री० दुर्गा (२) लक्ष्मी (३) भट्टारक वि० पूज्य; संमाननीय (२) कोई पण आदरणीय स्त्री पुं० संत; ऋषि (३) देव (४) राजा भगवदीय पुं० विष्णुभक्त भट्टिनी स्त्री० पटराणी नहि तेवो राणी भगिनिका स्त्री० नानी बहेन (२) खानदान महिला भगिनी स्त्री० बहेन (२) ऐश्वर्यवाळी भण् १५० बोलवू; कहेवू (२) वर्णवळू के भाग्यवान स्त्री (३) कोई पण स्त्री (३)नामथी ओळखq(४)अवाज करवो भगिनीपति पुं० बनेवी भणन, भणित न०, भणिति स्त्री० बोल; भगिनीय पुं० बहेननो पुत्र; भाणो वाणी; वातचीत [संबोधन भगीरथ पुं० एक सूर्यवंशी राजा (जे भदंत पुं० बौद्ध भिक्षु माटेनुं मानवाचक गंगाने पृथ्वी पर लाव्यो हतो) भद्र वि० समृद्ध;सुखी(२)शुभ कल्याणभग्न ('भंज् 'भू० कृ०) वि० भांगेलं; कर (३) मुख्य ; आगेवान (४) अनुकूळ तूटेलु (२)हताश थयेलु (३) रोकेलं; (५) मनोहर; सुंदर (६) माया; अटकावेलं (४)छेक ज हरावलं(५)नष्ट कृपाळु (७)प्रशंसापात्र (८) प्रिय (९) भग्नपरिणाम वि० (कार्य) पूरुं करतां कुशळ; प्रवीण(१०)न० सुख; सद्भाग्य; अटकावायेलुं निराश बनेलं समृद्धि (११)पुं० एक जातनो हाथी भग्नमनोरथ वि० मनोरथोनी बाबतमां भद्रक वि० शुभ; मंगळ (२) सद्गुणी भग्नव्रत वि० पोतानां व्रत-प्रतिज्ञानो (३) सुंदर(४)पुं० एक कठोळ (५) भंग करनाएं; व्रत खंडित कर्य होय तेवं देवदार वृक्ष (६) न० बेसवार्नु एक भग्नाश वि० हताश; निराश आसन (७) अंतःपुर भग्नी स्त्री० बहेन [होय ते, भद्रकांत पुं० सुंदर पति के प्रेमी भग्नोद्यम वि० जेनो प्रयत्न विफळ गयो भद्रदिश् स्त्री० शुभ दिशा (दक्षिण) भज १ उ० भाग पाडवा; हिस्सा पाडवा भद्रपीठ न० राजसिंहासन (२)हिस्सो मेळववो (३) स्वीकारवू भद्रमुख वि० 'शुभमुखवाळं' (मान(४)-नो आशरो लेवो (५) सेवईं; वाचक संबोधन) अपनावq(६)भोगवq; अनुभवq (७) । भद्रमुखी स्त्री० (शुभ मुखवाळी) भली तहेनातमा रहे; सेवा करवी (८) स्त्री; आदरणीय स्त्री पूजवू; उपासवू (९)पसंद करवू (१०) भद्रंकर वि० कल्याणकारक ; मंगळकारी उपभोग करवो (११)-ने भागे आववं भद्रा स्त्री० सुभद्रा; कृष्ण-बळरामनी (१२) अनुग्रह करवो (१३) -मां बहेन (२)गाय(३)स्वगंगा मंडवं; -मां लागवं भद्राकरण न० हजामत भजन न० भजq ते ; सेवq ते (२)धारण भद्राकृ ८ प० हजामत करवी करवं ते; मालिक होवू ते (३)भाग भद्रासन न० राजानुं सिंहासन(२)योगर्नु पाडवा ते (४)-नी तहेनातमा रहेवूते एक आसन [बोलवू; कहेवू भजमान वि० भाग पाडतुं (२) भोग- भन् १५० पूजq (२) बूम पाडवी (३) वतुं (३) छाजतुं; उचित भय न० बीक; डर(२)जोखम भट पुं० वीर; लडवैयो; योद्धो (२) भयप्रद वि० भय उपजावनाएं; भयंकर भाडूती सैनिक (३)दास ; नोकर भयस्थान न०, भयहेतु पुं० भय, कारण भट्ट पुं० स्वामी; मालिक (२) पंडित; भयंकर वि० भयजनक (२) जोखमवाळं विद्वान (३) भाट; चारण भयानक वि० भयंकर Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भयापह कारक भयावह वि० भय दूर करनारुं भालु वि० बीकण; बीनेलु भयावह वि० भयमां नाखनाएं ; जोखम[सरातुं) भयोत्तर वि० भययुक्त ( भय वडे अनुभर वि० (समासने छेडे ) धारण करनारु; भरणपोषण करनारुं इ० | (२) पुं० बोजो भार ( ३ ) मोटो जथो-संख्यासमुदाय (४) पुष्कळपणुं ( ५ ) उत्तमता; श्रेष्ठता भरण वि० भरणपोषण करनाएं ( २ ) धारण करनारुं ( ३ ) न० पोषवुं ते (४) धारण करवुं ते ( ५ ) रोजी ; पगार (६) पुं० भरणी नक्षत्र भरत पुं० दुष्यंत - शकुंतलानो पुत्र ( जेना नाम परथी ' भरतवर्ष ' नाम पडधुं छे ) (२) दशरथ - कैकेयीनो पुत्र (३) नाट्यशास्त्रना कर्ता मुनि (४) नट ( ५ ) भाडती सैनिक भरतखंड पुं० भरतवर्षना एक भागनुं नाम भरतपुत्र पुं० नट भरतवर्ष पुं० भारत ( प्राचीन नाम ) भरतवाक्य न० संस्कृत नाटकमां अंते मुकातो आशीर्वादनो श्लोक भरताग्रज पुं० राम (भरतना मोटाभाई) भरात् अ० जुओ 'भरेण ' भरि वि० (समासने छेडे ) भरनाएं; पोषनारुं (उदा० 'उदरंभरि ') भारत वि० पोषेलुं (२) -थी भरेलुं (३) भारवाळु, बोजावाळु भरेण अ० पूरेपूरुं होय तेम; पोतानी सघळी ताकातथी भर्ग पुं० शिव ( २ ) तेज; दीप्ति भर्गस् न० तेज; दीप्ति भर्जन वि० शेकनारुं (२) नाश करनारुं (३) न० शेकवुं ते (४) तवो भर्तव्य वि० वहन करवा - ऊंचकवा योग्य (२) भाडे राखवा योग्य ३४८ भववीति भर्तृ पुं० पति; स्वामी ( २ ) शेठ; मालिक (३) नायक; आगेवान (४) रक्षक; पोषक (५) जगतना स्रष्टा भर्तृचित्त वि० पतिनो विचार करतुं भर्तृदारक पुं० राजकुमार; युवराज ( नाटकमा संबोधन ) भर्तृदारिका स्त्री० राजकुमारी (नाट्य ० ) भर्तृप्रिय, भर्तृभक्त वि० मालिकने वफादार एवं [स्त्री भर्तृमती स्त्री० पति जीवतो होय तेवी भर्स् १० उ० ठपको आपको; तिरस्कार (२) धमकी आपवी भर्त्सन न०, भर्त्सना स्त्री० धमकी ( २ ) ठपको; तिरस्कार भर्मन् न० भरणपोषण ( २ ) वेतन; रोजी भल्ल पुं० रींछ (२) पुं०, न० एक जानुं अर्धचंद्राकार बाण ( ३ ) बाणना अमुक भागनुं नाम भल्लूक पुं० रींछ भव वि० (समासने छेडे ) - मांथी उत्पन्न थनारुं (२) पुं० सत्ता; अस्तित्व (३) जन्म; उत्पत्ति ( ४ ) मूळ (५) संसार ( ६ ) समृद्धि (७) श्रेष्ठता (८) शिव ( ९ ) प्राप्ति त भवच्छिद् वि० पुनर्जन्मनो नाश करनाएं भवच्छेद पुं० पुनर्जन्मनो नाश भवत् वि० होतुं यतुं ( २ ) स० ना० ( मानार्थे ) आप तमे (क्रियापदना त्रीजा पुरुषना रूप साथे ) भवती स्त्री० ( मानार्थे ) आप ; भवदीय वि० आपनुं; तमारुं भवन न० अस्तित्व ( २ ) जन्म; उत्पत्ति ( ३ ) निवासस्थान ( ४ ) पात्र ; स्थान (५) मकान ( ६ ) खेतर भवनीय वि० थवानी तैयारीमां होय तेवुं भवभूति पुं० एक प्रसिद्ध कवि भवमोचन पुं० श्रीकृष्ण [ जगतनो अंत भववीति स्त्री० संसारमांथी मुक्ति ( २ ) Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवसागर भवसागर पुं० जुओ 'भवाब्धि ' भवात्मज पुं० गणेश (२) कार्तिकेय भवावृक्ष, भवादृश्, (-श) वि० आपना जेवुं; तमारा समान भवानी स्त्री० पार्वती , भारु पुं० हिमालय (पार्वतीना पिता) भवानीपति पुं० शंकर [ नाश भवाप्ययौ पुं० द्वि० व० उत्पत्ति अने भवाब्धि पुं० संसाररूपी सागर भवाभवौ पुं० द्वि० व० संपत्ति अने आपत्ति [ पाछळतो) भवांतर न० बीजो जन्म ( आगळनो के भवितव्य वि० थवा के होवा लायक (२) तरतमां ज थवानुं एवं (३) न० थवानुं ते नियत थयेलुं ते भवितव्यता स्त्री० नसीब; नियति भवितृ वि० भविष्यमा थनाएं (२) तरतमां थवानुं [ भविष्य मां बनवानुं ते भविष्य वि० भविष्यमा थनाएं ( २ ) न० भविष्यत् वि० भविष्यमां बनवानुं; बनवानी तैयारीमां होय तेवुं ( २ ) न० भविष्यकाळ भवोच्छेद पुं० संसारभ्रमणनो नाश भव्य वि० भविष्यमां बनवानुं ( २ ) संभवित ( ३ ) उचित ( ४ ) उत्तम (५) शुभ ( ६ ) सुंदर ( ७ ) शांत; स्वस्थ (८) न० अस्तित्व ( ९ ) भवि - ष्यकाळ (१०) परिणाम; फळ ( ११ ) सुफळ; समृद्धि [ वढवुं भष् १प० भसवुं ( २ ) ठपको आपको; भस वि० प्रकाशतुं दीपतुं भति वि० भस्मीभूत करेलुं ( २ ) न० भस्म ; राख [(२) चामडानी मसक भस्त्रा, भस्त्रिका, भस्त्री स्त्री० धमण भस्मन् न० राख; भस्म भस्मभूत वि० मृत भस्मसात् अ० राखोडी रूपे भस्मावशेष वि० मात्र राखरूपे बाकी रहेलुं (बाळी नांखेलु) ३४९ भंजन भस्मीकृत वि० राखोडीरूप बनावी दीघेलुं (बाळी नाखेलुं) (२) भस्म बनावे ( धातुने मारीने) (३) चूर्णरजरूप बनावेलुं भस्मीभूत वि० राखोडी बनेलं; बाळी नाखेलें (२) नकामं तुच्छ बनी गयेलुं भंग पुं० तूटवुं - भागवुं - छूटुं पडवं ते; तोडवुं - छूटुं पाडवुं ते (२) चूंटवुं ते (३) टुकडो ; हिस्सो (४) नाश; पडती; विनाश ( ४ ) विखेरी नाखबुं ते ( ५ ) पराजय; उथलावी पाडवुं ते; पराभव (६) निष्फळता ; निराशा ( ७ ) नकार ते; ना पाडवी ते ( ८ ) रुकावट ; विघ्न; डखल ( ९ ) भागी के नासी जवुं ते (१०) गडी (११) मोजुं (१२) वळांक; मरोड भंगि स्त्री० तूटवुं ते; तोडवुं ते (२) मोजुं; तरंग ( ३ ) वळांक; मरोड ( ४ ) आडकतरी ते कहेवुं ते ( ५ ) मिष; बहानुं ( ६ ) युक्ति; छळ ( ७ ) पगथियुं (८) पद्धति; प्रकार ; रीत भंगिन् वि० बरड ; भागी जाय तेवुं भंगिनी स्त्री० नदी भंगिभक्ति स्त्री० जुदां जुदां पगथियां के मोजां रूपे रचना अथवा गोठवण भंगिभाषण न० वक्रोक्ति [ के चाळो भंगविकार पुं० मों मरोडीने करेली चेष्टा भंगी स्त्री० जुओ 'भंगि' भंगुर वि० बरड; भागी जाय तेवुं (२) क्षणिक ; नाशवंत ( ३ ) वांकुं (४) कुटिल ; कपटी [ रीते भंग्यंतरेण अ० आडकतरी रीते; जुदी भंज् ७ प० भांगवुं; तोडवुं ; फाडवुं (२) विफळ करवुं ( ३ ) रुकावट - डखल करवी (४) हराववुं ( ५ ) १० उ० प्रकाशित करवुं (६) प्रकाशवुं (७) बोलवुं भंजक वि० भांगनाएं; तोडनारुं भंजन वि० भांगनाएं ; तोडनारुं ( २ ) रोकना ( ३ ) न० भांगवुं के तोड़वं ते (४)दर करवुं ते ( ५ ) हराववुं ते Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंड ३५० भारक भंड १ आ० भांड, (२) मजाक करवी (३) १० उ० भाग्यशाळी करवू के थर्रा भंड पुं० मश्करो; भांड भंडिका, भंडी स्त्री० मजीठ भंडीर पुं० वडनुं झाड भा २ ५० दीपq; प्रकाशq (२) जणावं; देखाएँ (३) अस्तित्व होवू (४)फूंकवू; फूकावू (५)खुश थq भा स्त्री० प्रकाश; तेज; कांति (२) छाया ; पडछायो (३) सादृश्य भाग पुं० हिस्सो; विभाग (२) भाग पाडवो के वहेंचवो ते (३) नसीबे होवं ते (४)आखानो विभाग के अंश (५) अवकाश; जगा भागधेय पुं० कर; वेरो (२) न० हिस्सो; भाग (३) नसीब (४) सद्भाग्य (५) समृद्धि, सुख भागवत वि० भगवत् - विष्णन भक्त एवं (२) देव संबंधी (३)पुं० विष्णुनो भक्त (४) न० ए नामनुं पुराण भागशस् अ० भाग प्रमाणे (२) भागथी भागहर पुं० वारसामां हिस्सेदार भागार्थिन् वि० हिस्सानी इच्छावाळं भागिन् वि० भागवाळं; भाग पडावतुं (२) मालिक (३) नसीबदार (४) हिस्सेदार; हिस्सानु अधिकारी भागिनेय पुं० बहेननो दीकरो; भाणेज भागीरथी स्त्री० गंगा नदी भाग्य वि० भागवा योग्य ; भागी शकाय तेवं (२) भाग-हिस्साने पात्र (३) भाग्यशाळी; नसीबवान (४) न० नसीब (५) सद्भाग्य (६) समृद्धि भाग्यक्रम पुं० नसीबनो वारोफेरो भाग्यरहित वि० कमनसीब भाग्यवत् वि० नसीबदार (२) समृद्ध भाग्यवशात् अ० दैवयोगे; नसीबजोगे भाग्यविप्लव पुं० दुर्दैव; कमनसीब भाग्यसंपद स्त्री० सद्भाग्य; समृद्धि भाग्यायत्त वि० नसीबने अधीन भाग्यन अ० नसीबजोगे; सद्भाग्ये भाग्योदय पुं० सद्भाग्यनो उदय थवो ते भाज् १० उ० भाग पाडवो; वहेंचर्छ। भाज वि० (समासने छेडे) हिस्सेदार के भागीदार बनतुं के थतुं (२) मालिक एवं; -वाळं (३) हकदार (४) भोगवतुं; अनुभवतुं (५) -मां वसतुं (६) -मां लागु रहेतुं (७) -नो आशरो लेतुं (८) पूजतुं (९) करवा योग्य एवं; कर्तव्य भाजन न० भाग पाडतोते (२) भागाकार (३) पात्र; आधारस्थान (४) लायक वस्तु के माणस भाजिन् पुं० नोकर भाट, भाटक न० भाई भाण पुं० नाटकनो एक प्रकार (तेमां रंगभूमि उपर एक ज पात्र प्रवेशे छे) भात ('भा' नुं भू० कृ०) वि० प्रकाशित; उज्ज्वळ (२) पुं० प्रातःकाळ भाद्र, भाद्रपद पुं० भादरवो महिनो भान न० ज्ञान (२) देखावं ते (३) प्रकाश [(३)सूर्य भानु पुं० प्रकाश (२)प्रकाशनुं किरण भानुभू स्त्री० यमुना [पुं० सूर्य भानुमत् वि० तेजस्वी (२) सुंदर (३) भामा स्त्री० क्रोधी स्त्री भामिनी स्त्री० सुंदर जुवान स्त्री (२) क्रोधी स्त्री (मुख्यत्वे प्रेमनुं संबोधन) भार पुं० बोजो; वजन (२)ज्यां सौथी वधु घमसाण मच्यु होय ते भाग (रणभूमिनो) (३) अतिशयता; पराकाष्ठा (४) परिश्रम ; मजूरी (५) मोटो जथो (६) (सोनाना २००० पल जेटलु) एक वजन (७) कोईना उपर नाखेल कामनो बोजो (८) झूसरी भारक वि० (समासने छेडे) -तो भार . लादेखें (२) बोजो (३) एक वजन Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारत ३५१ भावशून्य भारत वि० भरतनुं के भरतमांथी ऊतरी अर्थ; रहस्य (१२) निश्चय (१३) आवेल (२) पं०भरतनो वंशज (३) हृदय; आत्मा (१४) कोई पण सत् भरतवर्षनो वतनी (४) नट (५) न० वस्तु के पदार्थ (१५) प्राणी (१६) भरतवर्ष (६) महाभारत ग्रंथ (७) चिंतन; भावना (१७) चेष्टा; कामभरत मुनिए प्रवर्तावेलुं संगीत अने चेष्टा (१८) जन्म (१९)संसार; जगत नाट्यनुं शास्त्र (२०) संकल्प (२१) आदरणीय व्यक्ति भारतवर्ष न० जुओ 'भरतवर्ष' . (नाट्य०) (२२) कल्याण (२३) भारती स्त्री० वाणी (२) वाणीनी रक्षण (२४) प्रारब्ध (२५) वासना देवी सरस्वती (३)एक साहित्य-शैली (२६) प्रभुत्व भारद्वाज पुं० द्रोणाचार्य (२) सप्तर्षि- भावक वि० निपजावनाएं (२) पोतानुं मांना एक ऋषि (३) अगस्त्य (४) हित साधनाएं(३) कल्पना करनारु(४) मंगळ ग्रह (५) न० हाडकुं सौंदर्य माटे कदर के रुचिवाळू भारवाह पुं० भार वहेनारो भावगति स्त्री० अंतरनो भाव दर्शाववाभारसह वि० भार ऊंचकी शके तेवू नी शक्ति भारसाधन वि० मोटां के अघरां काम भावगम्य वि० मनना भावथी कल्पेलं पार पाडनाएं भावत्क वि० आपनुं भारसाह वि० जुओ 'भारसह' भावन वि० सर्जक; निपजावनाएं भारंड पुं० एक कल्पित पक्षी (२) हित के कल्याण साधनारु (३) भाराक्रांत वि० अतिभारथी लदायेलं पुं० सर्जनार; हेतु; कारण (४) शिव भारिक, भारिन् वि० भार ऊंचकनारं (५)न० सर्जq के प्रगट करवं ते (६) (२) भारे वजनदार (३) पुं० भार कोईनं हित वधारवं ते (७) कल्पनाऊंचकनार माणस; हमाल शक्ति (८) भावना; श्रद्धा; निष्ठा भारोपजीवन न० भार वहीने जीवq (९) चिंतन, मनन (१०) ज्ञान; ते; मजूर - हमाल- जीवन समज (११) पर्यालोचन; तपास भार्गव पुं० शुक्राचार्य (२) परशुराम भावना स्त्री० सर्जवु के प्रगटावq ते (२) (३) जमदग्नि (४) कुंभार । हित के कल्याण साधq ते (३) कल्पना; भार्या स्त्री० (विधिसर परणेली) पत्नी धारणा (४) निष्ठा; श्रद्धा (५)चिंतन; भाल न० कपाळ; ललाट मनन (६) औषधने कोई रसमां भालचंद्र, भालदृश, भाललोचन पुं० बोळी पुट आपवो ते [युक्त शिव [रीछ भावनायुक्त वि० विचार करतुं; चिंताभालुक, भालूक, भाल्लुक, भाल्लुक पुं० भावबंधन वि० हृदयने मोह पमाडनाएं भाव पुं० अस्तित्व (२) बनवू के थर्बु (२) हृदयोने जोडनाएं। ते (३) स्थिति; स्वरूप ; अवस्था (४) भावमिश्र पुं० सद्गृहस्थ (नाट्य०) प्रकार; पद्धति (५) पद; होद्दो (६) भावयित वि० उत्कर्ष साधनाएं वास्तविकता; सत्य (७) भक्ति; भावरूप वि० वास्तविक; खरं निष्ठा; भावना (८) मूळ स्वभाव (९) भावविकार पुं० कोई पण सत् पदार्थनो वलण; वृत्ति; अभिप्राय; धारणा(१०) गुणधर्म मनोवृत्ति; लागणी (११) तात्पर्य; भावशून्य वि० साचा प्रेम विनानुं Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावस्थ भावस्थ वि० ( एक जण प्रत्ये ज ) निष्ठावाळु वफादार भावस्थिर वि० हृदयमां दृढमूळ थयेलुं भावस्निग्ध वि० हार्दिक प्रेमवाळु भावंगम वि० सुंदर; मनोहर भावाकूत न० मनना गुप्त विचार भावात्मक वि० वास्तविक ; खरं भावार्थ पुं० तात्पर्य; मतलब ( २ ) तत्त्व; सार [ नाजुक; कोमळ भावाव वि० स्नेहाळ; दयाळु (२) भाविक वि० साहजिक; कुदरती ( भावभयुं ( ३ ) भविष्यनुं भावित वि० सर्जायेलं; पेदा थयेलं; प्राप्त थलुं ( २ ) प्रगट करेलुं (३) चितवेलु; विचारेलु, कल्पेलु; धारेलु (४) ओळखेलुं ( ५ ) मनन करेलुं ( ६ ) - थी व्याप्त ( ७ ) - मां पलाळेलं ( ८ ) - थी सुगंधित करेलुं (९) प्रेरेलु स्थिर करेलुं (१०) वश करेलुं (११) प्रसन्न थयेलुं के करेलु भावितबुद्धि वि० जुओ 'भावितात्मन् ' भावितभावन वि० पोतानुं तेम ज बीजानुं हित साधनाएं ३५२ भाविता स्त्री० बनवानी के थवानी दशा (२) भविष्यमां थवानुं नियत होवुं ते भावितात्मन् वि० परमात्माना चिंतनथी पवित्र थयेला हृदयवाळु (२) पवित्र ; एकनिष्ठ (३) चिंतनशील; मननशील (४) - मां लागेलुं भाविन् वि० बनतुं के थतुं ( २ ) भवि - ष्यमा थनाएं; भविष्यनुं ( ३ ) बनी शके के थई शके तेवुं ( ४ ) नियत होय तेवुं ( ५ ) एकनिष्ठ भाविनी स्त्री० सुंदर स्त्री ( २ ) शील:वती के खानदान स्त्री (३) स्वेच्छाचारिणी के कामुक स्त्री भावुक वि० बनवा के थवानी तैयारीमां होय तेवुं ( २ ) समृद्ध; सुखी (३) भास्वत् शुभ ( ४ ) रसिक; कदरदान ( ५ ) पुं० बनेवी ( नाट्य ० ) (६) समृद्धि भावैकरस वि० मात्र प्रेमभावथी प्रवर्ततुं भाव्य वि० बनवानी के थवानी तैयारीमां होय तेवुं ( २ ) भविष्यनुं ( ३ ) आचरवा के कल्पवा योग्य ( ४ ) साबित करवा योग्य ( ५ ) तपास करवा के विचारवा योग्य ( ६ ) न० जे बनवानुं निश्चित होय ते भाष १ आ० बोलवु कहेवुं ( २ ) - ने विषे कहेवुं (३)बोलाववुं [व्याख्यान भाषण न० बोलवु ते; कहेवुं ते (२) भाषा स्त्री० वातचीत; वाणी ( २ ) बोली; जबान (३) चालु - बोलाती बोली ( ४ ) व्याख्या; विवरण ( ५ ) सरस्वती ( वाणीनी देवी ) भाषांतर न० बीजी भाषा ( २ ) तरजुमो भाषित ( 'भाष' नुं भू० कृ० ) वि० बोलेलु; कहेलुं (२) न० वाणी; बोली; भाषा भाषितेशा स्त्री० सरस्वती भाषिन् वि० ( समासने छेडे ) बोलतुं; कहेतुं ( २ ) वातोडियं भाष्य न० बोलवु ते (२) विस्तृत विवरण भाष्यभूत वि० विवरण के टीकारूप एवं भास् १ ० प्रकाशवु; चमकवुं (२) स्पष्ट थवुं ; समजावुं; देखावुं भास् स्त्री० प्रकाश; तेज; चळकाट (२) प्रकाशनुं किरण ( ३ ) प्रतिबिंब (४) शोभा प्रताप भास पुं० दीप्ति; कांति (२) तरंग; कल्पना ( ३ ) एक कवि ( ४ ) एक पक्षी भासुर वि० प्रकाशित; तेजस्वी भास्कर पुं० सूर्य ( २ ) अग्नि (३) शिव (४) न० सोनं (५) चोरे भीतमा करेलु बाकुं भास्कराध्वन् पुं० आकाश भास्मन वि० भस्मतुं बनेलुं भास्वत् वि० तेजस्वी; चळकतुं (२) पुं० सूर्य (३) प्रकाश Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भास्वर भास्वर वि० प्रकाशित; देदीप्यमान (२) पुं० सूर्य ( ३ ) दिवस (४) अग्नि भांड न० पात्र; वासण ( २ ) पेटी; खोखु खानुं ( ३ ) ओजार; साधन ( ४ ) वाजित्र ( ५ ) दुकानदार के वेपारीनो मालसामान ( ६ ) कीमती माल के वस्तु (७) घोडा उपर नाखवानो सामान (८) चाळा; चेष्टा ( ९ ) आभूषण (१०) साधनसामग्री; उपकरण (११) मूडी; मूळ धन भांडत पुं० वेपारी भांडमुल्य न० माल सामानरूपी मूडी भांडागार पुं०, न० भंडार ( २ ) खजानो भांडार न० भंडार [सामान भांडा: पुं० ब० व० वेपारीनो माल - भांडिनी स्त्री० टोपली; पेटी भांडीर पुं० वडनुं झाड भिक्षु १ आ० भीखवु मागवुं ( २ ) भिक्षा तरीके मागवुं ; भिक्षा स्त्री० भीख ; याचना ( २ ) दानधर्म तरीके आपेलुं के मळेलुं ते (३) आजीविकानुं साधन [(२)पुं० भिखारी भिक्षाचर वि० भिक्षा माटे भटकनारुं भिक्षाटन न० भीख माटे भटकवुं ते (२) पुं० भिखारी भिक्षान न० भिक्षामां मळेलुं अन्न भिक्षापात्र, भिक्षाभांड न० भीख मागवा माटेनुं पात्र भिक्षायण ( - न ) न० जुओ 'भिक्षाटन ' भिक्षाशन न० जुओ 'भिक्षान्न' भिक्षाशिन् वि० भिक्षा मागीने जीवनाएं (२) अप्रमाणिक भिक्षाहार पुं० जुओ 'भिक्षान्न' भिक्षित ( 'भिक्षु' नुं भू० कृ० ) वि० भीखेलु; मागेलुं; याचेलुं भिक्षु पुं० भीख मागनार ( २ ) भिक्षा उपर जीवनार (ब्रह्मचारी, संन्यासी, जैन-बौद्ध परिव्राजक इ० ) ३५३ भिन्न भिक्षुक पुं० भिखारी भित्त न० खंड ; टुकडो ( २ ) भींत ; आड भित्ति स्त्री० भागवुं के फाडवुं ते (२) भींत ; आड (३) चित्र वगेरे माटेनो पदो के स्थान (४) टुकडो ; खंड (५) फाट, चीरो ( ६ ) भींत जेवी सपाटी भिद् वि० (समासने छेडे ) फाडनाएं; चीरनारुं; तोडनाएं ; भिद् १प० [भिदति ] कापीने भाग पाडवा (२) ७ उ० भागवु; फाडवु aaj (३) खोदवुं ( ४ ) - मां थईने पसार थवुं (५) छूटुं पाडवु; खसेडवु (६) तोडवुं (करार, प्रतिज्ञा इ० ) ; उल्लंघन करवुं (७) दूर करवुं ( ८ ) खंडित करवु; डखल करवी ( ९ ) पलटवुं; बदलवुं (१०) विकसाववु ; खिलावकुं (११) विखेरी नाखवु (१२) छोडी नाखवुं ढीलुं करवु (बंधन - गांठ) (१३) भेद के कुसंप ऊभां करवां(१४)समजाववुं के समजवुं ( रहस्य - तात्पर्य ) (१५) छोडवुं ; ढीलुं करवुं (१६) खुल्लुं करवु ( रहस्य ) (१७) मूंझववुं; डराववुं भिदा स्त्री० फाडवु, चीरवुं, भागवुं के तोडवं ते ( २ ) वियोग ; विच्छेद (३) भेद; तफावत ( ४ ) प्रकार भिदुर वि० भागो जतुं; तूटी जतुं; चिराई जतुं ( २ ) बरड; झट भागी जाय तेवुं ( ३ ) मिश्रित भिद्य पुं० जोरथी वहेतो नद भिन्न ('भिद्' तुं भू० कृ० ) वि० फाडेलु; फाटेल; चीरेलु; भांगेलुं (२) छूट पडेल के पाडेलू (३) वीखराई गयेलुं (४) खीलेलुं (५) जुदुं (६) जदु जुदु, अनेकविध (७) मिश्रित भळे कुं के भेळवेलं (८) खडुं थयेलं (जेम के वाळ) ( ९ ) फोडेल (लांच इ० थी ) (१०) उन्मार्गगामी Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ भज HTTufataff भिन्नकट भिन्नकट वि० मदोन्मत्त भिन्नगति वि० वेगे जतु (२) लयडियां खातुं खातुं जतु होय तेवू भिन्नदेश वि० जुदां जुदां स्थानभिन्नमर्याद वि० मर्यादान उल्लंघन करनारुं (२) अनियंत्रित भिन्नमंत्र वि० जेणे गुप्त वात खुल्ली पाडी दीधी होय तेवू भिन्नरुचि वि० जुदी जुदी रुचिवाळू भिन्नवर्ण वि० रंग ऊडी गयो होय तेQ (२) जुदा वर्णन के जाति, भिन्नवृत्त वि० दुराचरणी (२) वृत्त के छंदमां दोषवाळं (काव्य) भिन्नवृत्ति वि० दुराचरणी (२) जदी जुदी रुचि के लागणीओवाळ (३)जुदी जदी आजीविकावाळ [तेवू भिन्नहृदय वि० हृदय वींधाई गयं होय भिन्नार्थ वि० स्पष्ट समजाय तेवू भिन्नार्थम् अ० स्पष्टपणे समजाय तेम भिन्नांजन न० घणा पदार्यो भेगा करीने बनावेलं आंजण भिल्ल पुं० एक वन्य जाति; भील भिषज् पुं० वैद्य ; हकीम (२) औषध भिषज्य न० उपचार; उपाय (२) मटाडवू के रुझाव ते भिंड पुं०, भिडा स्त्री०, भिडाक पुं० भीडीनो छोड (जेना रेसा कढाय छे)। भिंदपाल, भिदिपाल पुं० हाथथी फेंकवानुं नानी कटार जेवू अस्त्र (२)गोफण भी ३,१०प० बी; भय पामवो भी स्त्री० बीक; भय भीत ('भी' नुं भू० कृ०) वि० बीनेलं (२) बीकण (३)जोखममां मुकायेलं भीतचारिन् वि० बीतां बीतां वर्ततुं भीतभीत वि० घणुं ज बीनेलं (२) बीनेला जेवू भीतंकार वि० भयंकर; डर उपजावे तेवं भीतंकारम् अ० डरपोक कहीन भीति स्त्री० भय ; डर(२)जोखम भीतिनाटितक न० डरनो अभिनय भीम वि० भयंकर(२)पुं०पांच पांडवो मांनो बीजो भीमकर्मन् वि० भयंकर ताकातवाळू भीमनाद वि० भयंकर अवाजवाळू (२) पुं० भयंकर अवाज भीमरूप वि० भयंकर देखाववाळू भीमसेन पुं० पांडुपुत्र भीम भीर वि० बीकण ; डरपोक (२) (समा समां)-थी डरतुं भीरुक वि० बीकण ; डरपोक(२)बीनेलं भीरू (-ल) स्त्री० बीकण स्त्री (२) बीनेली स्त्री भीषण, भीषणक वि० भयंकर भीष्म वि० भयंकर; बिहामणुं (२)पुं० शंतनु – गंगाना पुत्र, भीष्मपितामह भीष्मक पुं० भीष्मपितामह (२) रुक्मिणीनो पिता (विदर्भनो राजा) भुक्त ('भुज्' ७ उ० नुं भू० कृ०) वि० खाधेलु/(२)भोगवेलुं; उपभोग करेलु (३)वेठेलं; अनुभवेलु (४)न० खावू ते; भोगवq ते (५) खाधेलु ते; भोजन (६)ज्यां कोईए खा, होय ते स्थान भुक्तभोग वि० जेणे भोगव्यु के अनु भव्यु होय तेवू (२) भोगवेलु ; वापरेलु भुक्तशेष वि० खातां वघेलं; उच्छिष्ट भुक्तसुप्त वि० भोजन बाद सूतेलं भुक्ति स्त्री० भोजन; उपभोग (२) भोगवटो; मालकी (३) अन्न (४) सीमा; हद (५) ग्रहनो रोजनी गति भुक्तिजित वि० भोगववा न दीधेल भुग्न ('भुज् '६५० नु० भू० कृ०) वि० नमेलु; नीचं वळेलु; वांकु (२) भग्न (३) हताश; भागी पडेलं भुन् ६ प० वांकुं वळवू (२) वांकु वाळवं (३)७ उ० खावु (४) उपभोग करवो; भोगवद् (५) शासन कर; राज्य करवु (६) वेठवू; अनुभव 15 Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भज भुज वि० ( समासने छेडे ) खातुं ; भोगवतुं ( २ ) शासन करतुं ( ३ ) स्त्री० उपभोग (४) फायदो; लाभ भुज पुं० बाहु; भुजा (२) हाथ (३) हाथीनी सूंढ (४)वळांक (५) भूमितिनी आकृतिनी बाजु (उदा० त्रिभुज ) भुजग पुं० सर्प; साप भुजगराज पुं० शेषनाग भुजगवलय पुं० सापने कडा तरीके पहेवो ते; साप रूपी कडुं [ नोळियो भुजगाशन पुं० मोर (२) गरुड (३) भुजगेंद्र पुं० शेषनाग भुजबंधन नं० आलिंगन भुजमध्य न० छाती भुजलता स्त्री० लांबो नाजुक हाथ भुजविनिष्पेष पुं० हाथ थाबडवा ते ( मल्ल पेठे ) भुजशालिन् वि० मजबूत भुजावाळ भुजशिखर, भुजशिरस् न० खभो भुजंग पुं० साप; नाग (२) यार; आशक; प्रीतम (३) पति ; स्वामी भुजंगकन्या स्त्री० नागकन्या भुजंगम पुं० साप भुजंगी स्त्री० नागण भुजा स्त्री० बाहु (२) हाथ ( ३ ) सापनुं चळं (४) भूमितिनी आकृतिनी बाजु भुजाकंषु पुं० शंखनी चूडो भुजान न० हाथ ( २ ) खभो भुजाण न० पगार आपवो ते भुजांक पुं० आलिंगन भुजांतर, भुजांतराल न० छाती भुजिष्य पुं० दास; नोकर (२) साथी भुजिष्या स्त्री० दासी ( २ ) वेश्या भुवन न० ऋण के चौदमांनो कोई एक लोक (२) पृथ्वी (३) स्वर्ग (४) प्राणी (५) मानवजाति (६) पाणी (७) समृद्ध थवं ते [ आखुं भूमंडळ भुवनकोश पुं० जेमां प्राणीओ रहे छे ३५५ भूगेह भुवनत्रय न० स्वर्ग - पृथ्वी - पाताल के स्वर्ग - अंतरीक्ष - पृथ्वी ए ऋण लोक भुवनभावन पुं० जगतनो स्रष्टा भुवनौकस् पुं० देव [ अग्नि (४) चंद्र भुवन्यु पुं० स्वामी; मालिक (२) सूर्य (३) भुवर्, भुवस् अ० अंतरीक्ष; पृथ्वीथी तरत उपरनो लोक (भूर्भुवः - स्वः ए त्रणमांनो बीजो) (२) एक व्याहति भुविष्ठ वि० पृथ्वी उपर रहेलुं (स्वर्गमां नहि) (२) जमीन उपर ऊभेलुं (रथमां नहि ) भुशुंडि ( - डी) स्त्री० एक प्रकारनुं अग्न्यस्त्र ( २ ) चामडानी गोफण भू १ प० बनवु ; वुं ( २ ) जन्मबुं; उत्पन्न थवं (३) - मांथी नीपजवं (४) होवुं; जीवj; जीवता रहेवुं (५) कोई स्थितिमां रहेवुं (६) रहेवुं; स्थिर रहेवुं (७) -तरीके उपयोगमां आववुं (८) शकध बनवु (भविष्यकाळमां मुख्यत्वे ) ( ९ ) कारणभूत वं; निपजाववुं ( १० ) -ना पक्षमां रहेवुं ( ११ ) - नी पासे होवु; -ने प्राप्त थयेलुं हो बुं; -ने प्राप्त धनुं ( १२ ) -ना काममां रत थ; ना काममा रोकावुं के लागj (१३) (विशेषण के नाम पछी वपरातां) पहेलां नहोतुं तेवुं यतुं के बनवुं (उदा० 'भस्मीभू'; 'आविर्भू'; 'तिरोभू'; 'मिथ्या भू') (१४) १० आ० मेळवबुं (१५) १० उ० विचारवं - प्रेरक बनावबुं; निपजाववुं ( २ ) प्रगट करवुं ( ३ ) पोषणुं ; जोगववु ; टैकaj (४) मानवु ; विचारखुं; कल्पवुं (५) साबित करवुं ( ६ ) शुद्ध करवुं ( ७ ) भावना देवी (८) भेळवj ( प्रवाही) भू वि० ( समासने छेडे ) बनतु; होतु; - मांथी नीपजतुं (उदा० ' मनोभू') भू स्त्री० पृथ्वी ( २ ) प्रदेश ; स्थळ ( ३ ) भोयतळ ( मकाननुं) भूकंप पुं० धरतीकंप भूगृह, भूगेह न० जमीन नीचेनो ओरडो; [ भोंय Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमि भूगोल ३५६ भूगोल पुं० पृथ्वीनो गोळो भूतसाक्षिन् पुं० प्राणीओ- बधं जोनार भूचर वि० जमीन उपर फरतुं के रहेतुं के जाणनारो साक्षी ('जलचर थी ऊलटुं) भूतसृज् पुं० ब्रह्मा भूत ('भू' नुं भू० कृ०) वि० बनेलं; भूतस्थान न० सौ प्राणीओनुं निवासथयेलु (२) वस्तुताए बनेलं; साचु (३) स्थान (२) भूतप्रेतनुं निवासस्थान योग्य; उचित(४)भूतकाळy (५) मळेलु भूतात्मन् वि० पवित्र अंतरवाळ (२) (६)समान; सरखं (७)पुं० पुत्र ; बाळक पंचभूतनुं बनेलं (जेमके शरीर) (३) (८) न० कोई पण सत् वस्तु (मानव, पुं० जीवात्मा (४) ब्रह्मा, विष्णु इ० दैवी के निर्जीव पण) (९) पिशाच; भूतानुकंपा स्त्री० सौप्राणीओ प्रत्ये दयाप्रेत (१०) मूळतत्त्व (पांच छे : पृथ्वी, भाव [स्थिति; हकीकत अप, तेज, वायु, आकाश) (११) भूतार्थ पुं० साची वात; साची वस्तुभूतकाळ (१२) कल्याण; हित भूतावास पुं० शरीर(२)शिव(३)विष्णु भूतकर्तृ, भूतकृत् पुं० ब्रह्मा भति स्त्री० अस्तित्व; हयाती (२) जन्म; भूतगण पुं० सृष्टिनां प्राणीओनो समु- उत्पत्ति (३) कल्याण; सुखसंपत्ति (४) दाय (२) भूत-प्रेतनो आखो वर्ग सफळता; सद्भाग्य (५) समृद्धि (६) भतगत्या अ० साचेसाच प्रताप; भव्यता (७) राखोडी; भस्म भूतग्राम पुं० बधां प्राणीओनो समुदाय (८) रंगीन पटाओथी करातो हाथीनो भूचितक पुं० जीव के चैतन्य तो पंच शणगार (९) तपश्चर्याथी मळती भूतोनो स्वभाव छ, एवं माननारो अलौकिक सिद्धि के सामर्थ्य वादी; ‘स्वभाववादी' भूतेश पुं० ब्रह्मा (२) विष्णु (३) शिव भूतजननी स्त्री० बधां प्राणीओनी माता भूतेश्वर पुं० शिव भूतौदन पुं० भूत-पिशाचनी असर दूर भूतधात्री स्त्री० पृथ्वी (२) निद्रा करवा खवातो भात भूतनाथ पुं० शिव भूतपति पुं० शिव (२) आकाश (३) भूत्यर्थम् अ० समृद्धि माटे भूदेव पुं० ब्राह्मण अग्नि [मरी गयेलु भधर वि० पृथ्वीने टेकवतुं (२)पृथ्वी भूतपूर्व वि० पहेलांनु; अगाउनुं (२) उपर रहेतुं (३) पुं० पर्वत (४) शिव भूतपूर्वम् अ० अगाउ; पहेलां (५) शेषनाग (६) राजा भूतप्रकृति स्त्री० सौ प्राणीओ- मूळ भप पुं० राजा भूतभर्तृ वि० सौ प्राणीओने पोषनारं भूपति पुं० राजा(२)शिव (३) इंद्र भूतभावन पुं० विष्णु (२) ब्रह्मा भूपाल पुं० राजा भूतभृत् वि० महाभूतोने धारण करनारु भूपुत्र पुं० मंगळ ग्रह (२) नरकासुर (२)प्राणीओनुं भरणपोषण करनारुं भूपुत्री स्त्री० सीता भूतयज्ञ पुं० प्राणीमात्रने उद्देशीने अपातो भूभर्तृ पुं० राजा(२)पर्वत बलि (पंचमहायज्ञो पैकी एक) भूभुज् पुं० राजा भूतल न० पृथ्वीनी सपाटी [ते भूभत पुं० पर्वत (२) राजा भूतसमागम पुं० प्राणीओनुं भेगा मळवू भूमन् पुं० मोटो जथो के संख्या भूतसर्ग पुं० सृष्टिनुं के महाभूतो, सर्जन भूमि स्त्री० पृथ्वी (२) जमीन (३) (२)सृष्टिनां प्राणीओनो वर्ग के कोटी प्रवेश (४)स्थळ के जगा(५) मकाननो Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिकंप ३५७ भृकुटी माळ (६)भूमिका (नाटय०)(७) पात्र; भूयस्त्व न० पुष्कळ होवापणुं(२)प्रधानता स्थान; विषय (८)हद; सीमा भूयिष्ठ वि० पुष्कळ ; अत्यंत (२)मुख्य; भूमिकंप पुं० धरतीकंप अगत्यनुं (३) घणुं मोटुं; घणुं वधारे(४) भूमिका स्त्री० भूमि; जमीन (२) मोटे भागे होय तेवू; मोटा प्रमाणमां प्रदेश; जगा (३)मकाननो माळ (४) होय तेवु (६)लगभग आखं [अत्यंत पायरी (समाधि इ०नी) (५)नाटकमां भूयिष्ठम् अ० घणे भागे; मोटे भागे (२) अभिनय माटेनो भाग के स्वांग (६) भूयोदर्शन न० वारंवार जोवू ते प्रस्तावना (ग्रंथनी) भूयोभूयस् अ० वारंवार भूमिकाभाग पुं० ऊमरो (घरनो) भूर् अ० त्रण व्याहतिओमांनी एक (२) भूमिगृह न० भोंयतळ नीचेनो ओरडो सात पाताळोमांथी छेक नीचेर्नु । भूमिचल पुं०, भूमिचलन न० धरतीकंप भूरि वि० घj; पुष्कळ (२) मोटुं भूमिधर पुं० पर्वत (२) राजा (३)अ० अत्यंत; अति (४) वारंवार भूमिपुरंदर पुं० राजा(२)दिलीप राजा भूरिकालम् अ० लांबा वखत सुधी भूमिभृत् पुं० पर्वत (२) राजा भूरिधामन् वि० घणा तेजवाळू भूमिरुह पुं० वृक्ष भूरिव्यय वि० उडाउ; अति खर्चाळ भूमिलाभ पुं० मृत्यु भूमिलेपन न० लींपण भूरिशस् अ० बहुशः; अनेक प्रकारे भूमिवर्धन पुं०, न० शब; मडईं भूकह (-ह) पुं० वृक्ष भूमिसत्र न० जमीन दानमां आपवी ते भूर्ज पुं० भोजपत्र- झाड (२) न० लखव भूमिसमीकृत वि० जमीनदोस्त करेलु माटे वपराती तेनी छाल भूमिसंनिवेश पुं० कोई पण देशनो भूर्जपत्र पुं० भोजपत्र- झाड सामान्य देखाव के घडतर भूर्लोक पुं० पृथ्वी; भूलोक भूमिसुत पुं० मंगळ ग्रह (२)नरकासुर भूष १५०, १० उ० शणगारवू भमिष्ठ वि० जमीन उपर रहेलु के ऊभेलु भूषण न० आभूषण (२)शणगार (मजय पुं० विराटनो पुत्र ; उत्तर भूषाय आ० (आभूषण तरीके उपयोगमां भूमी स्त्री० जुओ'भूमि' । आवq). [गारेलू; अलंकृत भूमीश्वर, भूमींद्र पुं० राजा (२)पर्वत भूषित ('भूष' नुं भू० कृ०) वि० शणभूम्यनंतर पुं० पासेना प्रदेशनो राजा भूष्णु वि० थतुं; बनतुं (२) उत्कर्ष भूय न० होवू के बनवू ते ;-नी स्थिति इच्छतुं; समृद्ध थवा इच्छतुं पामवी ते (उदा० 'ब्रह्मभूय') भूसुत पुं० मंगळ ग्रह (२) नरकासुर भूयशस् अ० घणुं करीने; मुख्यत्वे (२) भूसुता स्त्री० सीता अत्यंत (३)वळी; उपरांत भूसुर पुं० भूदेव; ब्राह्मण भूयस् वि० वधारे; पुष्कळ (२) वधु भू १, ३ उ० भरवू (२) व्याप; भरी मोटुं (३) घणुं मोटुं; संख्याबंध (४) काढq (३) वहन करवू; टेकवq (४) -थी पूर्ण; -वधु जेमां होय तेवू (५) भरणपोषण करवं (५)धारण करवं; अ० अत्यंत; खूब (६) वळी; उपरांत मालिक होवू (६)पहेर, (७)अनुभवq; (७) वारंवार वेठवं (८)-ने अर्प; -मां उपजावq भूयसा अ० अति; अत्यंत (२) मोटे (शोभा इ०) (९)स्मृतिमा राखq भागे, सामान्यपणे भृकुटि (-टी) स्त्री० भमर; भy.. Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ भेट भृकुंश (-स) पुं० स्त्री-वेशधारी नट भृग स्त्री० ज्वाळा भृगु पुं० एक ऋषि (२)जमदग्नि (३) शुक्राचार्य (४)शुक्र ग्रह (५)शुक्रवार (६) भेखड; कराड भृगुकच्छ पुं०, न० भरूच (शहेर) . भृगुज, भृगुतनय पुं० शुक्राचार्य (२) शुक्र ग्रह [(३)शौनक भृगुनंदन पुं० परशुराम (२) शुक्राचार्य भृगुपतन न० कराड उपरथी पडq ते भृगुपति, भृगुशाईल, भृगुश्रेष्ठ, भृगु सत्तम पुं० परशुराम भृगुसुत, भृगुसन पुं० परशुराम (२) शुक्राचार्य (३)शुक्र ग्रह भत् वि. (समासने छेडे) धारण करतं (२) टेकवतुं; पोषतुं (३)लावतुं भृत ('भृ' नुं भू० कृ०) वि० ऊंचकेलं; वहन करेलु (२)टेकवेलं; पोषेलु (३) -थी युक्त;-थी पूर्ण (४) भाडे लीधेलं (५) पुं० पगारदार नोकर भृतक वि० पोषेढुं (२) भाडे राखेखें (३). पुं० पगारदार नोकर भृति स्त्री० धारण करवू के पोषq ते (२) -ने अर्पq ते; -मां उपजावq ते (३) पगार; भाडं (४) मूडी। भृत्य वि० पोष्य; जेनुं भरणपोषण करवू पडे ते (२)पुं० नोकर; आश्रित (३) राजानो कर्मचारी भृत्यता स्त्री०, भृत्यभाव पुं० दासपणुं भूत्यर्थम् अ० भरणपोषण माटे भूत्यवर्ग पुं० परिवार; नोकरवर्ग भृत्यवात्सल्य न० नोकरो प्रत्ये मायालुता भृत्यायते आ० (नोकरनी जेम वर्त) भृश वि० मजबूत ; गाढ; पुष्कळ (२) वारंवार थतुं भशकोपन वि० झट गुस्से थई जाय तेवं भूशवंर वि० कडक सजा करनारुं । भृशदुःखित, भृशपीडित वि० अत्यंत दुःखी भृशम् अ० अत्यंत; अति (२)वारंवार भृष्ट (भ्रस्ज्' नुं भू० कृ०) वि० शेकेलं; भूजेलं भुंग पुं० भमरो भुंगराज पुं० भांगरो (२)एक जातनो मोटो भमरो(३)एक पक्षी भंगार पुं०, न० सोनानी झारी (२)झारी भुंगी स्त्री० भमरानी मादा भेक पुं० देडको (२)बीकण माणस भेर पुं० घेटो (२) तरापो भेडी स्त्री० घेटी भेतव्य वि० जेनाथी डरवं जोईए तेवं भेत वि० फोडनाएं; तोडनाएं; भांगनारु (२) डखल करनारुं (३) रहस्य खुल्लू करी देनाएं भेद पुं० भागवं, फाड, तोडवू के चीरवू ते(२) विभाग पाडवा ते (३) आरपार वींधवं ते (४)फाट; चीरो (५) फूटवू ते (६) विभाग (७) घा (८) जुदाई; विशिष्टता (९) बदलवू ते; विकृति उत्पन्न करवी ते (१०) कुसंप (११) (रहस्य)बहार पाडी देवं ते (१२)दगो; द्रोह (१३)द्वैत ('अद्वैत' थी ऊलटुं) भेवक वि० भेदनाएं; फाडनाएं; तोडनारं; जु, पाडनारं; वींवनाएं (२)जुलाब लगाडे तेवं (३)बदलनारं; फेरवनाएं भेदन वि० जुओ 'भेदक' (२) न० तोडवू, फाडवू के चीरवं ते भेदसह वि० जुदुं पाडी शकाय के फोडी शकाय तेवु (लांच इ० थी) भेदाभेवी पुं०वि०व० संप-कुसंप; संमति मतभेद (२) एकरूपता अने तफावत भेदित वि० फाडेलु; तोडेलु भाग पाडेलं भेदिन् वि० भागनारं, तोडनारं इ० भेदिर, भेदुर न० वज भेदोन्मुख वि० फूटवानी के खीलवानी तैयारीमां होय तेवू [योग्य भेख वि० फाडवा, चीरवा के वींधवा Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भेरि ३५९ भेरि(-री) स्त्री० नगारुं; ढोल भोगभूमि स्त्री स्वर्ग इ० लोक (ज्यां भेरुंड वि० भयंकर; बिहामj(२)पुं० कर्मोनां फळ ज भोगववानां होय छे) एक पक्षी भोगवत् वि० उपभोग के आनंद आपनाएं भेषज वि० मटाडे तेवं; नीरोगी बनावे (२) सुखी; समृद्ध (३) कंडाळां के तेवू(२)न० दवा; औषध (३) उप- वळांकवाळ (४) पुं० साप (५) पर्वत चार; उपाय भोगवती स्त्री० पातालगंगा (२)नागण भैक्ष वि. भिक्षा वडे जीवतं (२)न० भोगावली स्त्री० चारणे करेली स्तुति भीख (३) भीखीने मेळवेलं होय ते । भोगिन वि० खानारूं; भोगवतुं (२)अनुभैक्षभुज् पुं० भिखारी; याचक भवतुं; वेठतुं (३)वापरनालं; मालिक भक्षव वि० भिक्षुक संबंधी (आत्रण अर्थोमां, समासने छेडे) (४) भैभवृत्ति स्त्री० भीखीने जीवq ते वळांक के कुंडाळांवाळू (५) मोटा भलक न० भिखारीओनो समुदाय विपुल शरीरवाळू (६) फणावाळु (७) भैक्य न० भीखीने मेळवेलुं अन्न इ० कामभोगमां आसक्त (८) समृद्ध; भैम वि० भीम संबंधी(२) भयंकर परा- धनवान (९) पुं० साप (१०) राजा क्रम करनारं (३) पुं० भीमनोवंशज भोगिराज पुं० शेषनाग भैमी स्त्री० दमयंती (भीमराजानी पुत्री) भोग्य वि० भोगववा योग्य (२) अनुभवभैरव वि० भयंकर; बिहाम'(२)पुं० वा के वेठवा योग्य (३) लाभदायक शिवनुं एक स्वरूप (३)भय ; डर(४) भोग्यवस्तु न० भोगपदार्थ न० भय; डर भोज वि० भोग आपनारु (२) भोगनुं भैरवी स्त्री० दुर्गानुं एक स्वरूप जीवन जीवनारुं (३) पुं० धारानगरी भैषज न० दवा; औषध (माळवा)नो एक प्रसिद्ध राजा भैषज्य न० उपचार करवोते; दवा भोजकुल न० विदर्भ- वराडना भोजकरवी ते (२) दवा; औषध राजाओनो वंश भोक्त वि० खानारु; भोगवनारु (२) भोजन वि० खवरावतुं; पोषतुं (२) अकअनुभवनारु (३) पुं०मालिक ; भोगव- रांतियुं खानाएं (३)न० खावानी वस्तु नार (४) पति (५) प्रियतम (४)खावं ते(५) उपयोगमां लेबु ते भोग पुं० खावं ते (२) भोगवतुं ते (३) (६)उपभोगनो कोई पण पदार्थ (७) परिणाम ; फळ(४) मालकी (५) आवक; समृद्धि; मिलकत [भोजन लाभ (६)-नी उपर शासन करवान भोजनविशेष पुं० स्वादु के विशिष्ट होते (७) कामभोग (८) भोगपदार्थ भोजनाच्छादन न० भोजन अने वस्त्र (९)भोज्य पदार्थ (१०) मूर्तिने धरावेलु भोजनाधिकार पुं० भोजन इ. उपर भोजन (११) वांक; वळांक (१२) देखरेख राखवा- काम के अधिकार सापनी फेलावेली फणा भोजनीय वि० खावा योग्य (२)खवभोगकर पुं० उपभोग के आनंद आपनार राववायोग्य(आश्रित)(३.)न० भोजन भोगतष्मा स्त्री० कामभोग के संसार- भोजाः पुं० ब०व० एक जातिना लोक भोगनी तृष्णा भोजिन् वि० (समासने छेडे) खातं, भोगधर पुं० साप भोगवतुं के मालिक एवं(२) खवरावतुं; भोगपति पुं० जिल्ला के प्रांतनो हाकेम पोषतुं Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोज्य ३६० भ्राजिष्णु भोज्य वि० खावान; खावा योग्य (२) ते(२)-मांथी खसवं ते (३) भूलमां भोगववान; भोगववा योग्य (३) पडवं ते (४) लथडियं (५) तंमर अनुभववा के वेठवा योग्य (४) न० भ्रमणीविलास पुं० आनंद-यात्रा अन्न; भोजन (५) खावानी चीजोनो भ्रमर पुं० भमरो (२)जार; कामी (३) संग्रह (६) मीठाई; पकवान (७) भोग भमरडो (४) कुंभारनो चाकडो (८)लाभ(९) मर्मस्थानमां घा भ्रमरकरंडक पुं० भमराओ भरेली पेटी भोज्या स्त्री० भोज लोकोनी राजकुंवरी (राते दीवाओलववा चोरो राखे) (२)कुट्टणी; दूती [खेद बतावे छे) भ्रमरबाधा स्त्री० भमराओथी पजवणी भोस् अ० अरे, ओ, हे, ओहो (प्रश्न के भ्रमराभिलीन वि० भमराओ जेने भौत वि० भूतप्राणी संबंधी(२)पंचभूत वळग्या होय तेवू संबंधी (३) भूत-पिशाच संबंधी (४) भ्रमरित वि० भमराना रंगनुं थई गयेलं गांडु; आवेशयुक्त भ्रमरी स्त्री० भमरी । भौतिक वि० भूतप्राणी संबंधी (२) भ्रमि स्त्री० भमवू के घूम, ते; गोळ महाभूतनुं बनेलं (३) भूत-पिशाच फरवू ते (२)वमळ ; भमरो (३) मूर्छा संबंधी (४)वळगाडवाळं भ्रमित वि० भमावेलु; गोळ फेरवेल भौम वि० भूमि - पृथ्वीने लगतुं (२) (२) भ्रमथी मानी लीधेलं पृथ्वी उपरनु (३) माटी, बनेलु (४) भ्रष्ट ('भ्रंश् 'भू० कृ०) वि० खरी मंगळ ग्रह संबंधी (५) पुं० मंगळ ग्रह पडेलु; नीकळी पडेलु (२)क्षीण थयेलं (६) नरकासुर (७) न० माळ (३)नासी गयेलु(४)दुराचरणी । (मकाननो) (८) धान्य; अनाज भ्रष्टक्रिय वि० विहित कर्मो न करनारं भौमदिन न० मंगळवार । भ्रष्टश्री वि० दुर्भागी भौमन पुं० विश्वकर्मा भ्रष्टाधिकार वि० काढी मूकेलं; होद्दा भौमब्रह्मन् न० वेदो, ब्राह्मणो अने यज्ञो उपरथी दूर करेलु -ए त्रणनो समुदाय भ्रस्ज् ६ उ० [भज्जति-ते] भंजवं; शेकवं भौवन पुं० जुओ 'भौमन' भ्रंश १ आ०, ४ प० सरी पडवू; खसी भ्रम् १, ४ ५० भमवं; भटक, (२) पडवू; पडी जवू (२)ठोकर खावी (३) कुंडाळे फरवू; आसपास फरवू (३) --मांथी खसी पडq (४)खोवू ; गुमावदूं अवळे मार्गे जq (४) फेलावू; प्रचारमा (५) नासी जq (६) क्षीण थर्बु (७) आवq (५) फरकवू; थरथर (६) अलोप थq डामाडोळ थर्बु (७) भूलमां पडवू भ्रंश पुं० पडी जर्बु के सरी पड ते (२) -प्रेरक० आसपास के गोळ फेरव क्षीण थर्बु ते (३) नाश पाम ते (४) (२) भटके तेम करवू (३) भूलमां अलोप थर्बु ते (५) नासी जq ते नाखवू (४) फेरवq; घुमावq (हाथमा) भ्रंशन न० नीकळी पडq के पडी जवू ते (५) ढोल पीटीने जाहेर करवू भ्रंशिन् वि० पडी जतुं; नीकळी पडतुं भ्रम पुं० भटकवू ते (२)गोळ फरवु ते । (२) भ्रष्ट थतुं (३) नाश पमाडतुं (३) भूलमां पडवू ते (४) गूचवण; भ्राज १ आ० प्रकाश; चळकवू मूझवण (५)भमरो; वमळ (६)फुवारो भ्राजिन् वि० चमकतुं; चळकतुं .. भ्रमण न० भमढुं, भटकवू के गोळ फरवं भ्राजिष्णु वि० तेजस्वी; कांतिमान Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्रातरौ भ्रातरौ पुं० द्वि० व० भाई अने ब भ्रातृ पुं० भाई (२) बंधु; मित्र भ्रातृगंधिक (-न्) पुं० नामनोज भाई भ्रातृजाया स्त्री० भोजाई; भाईनी पत्नी भ्रातृव्य पुं० भत्रीजी (२) प्रतिस्पर्धी ; शत्रु; विरोधी भाग्य न० भाईपणुं [ भ्रम भ्राम पुं० आम तेम भटकवुं ते (२) भूल; भ्रामक वि० भ्रममां नांखनारुं ( २ ) फेरवनाएं ; घुमावनाएं भ्रामरी स्त्री० दुर्गा (२) डाबेथी जमणे प्रदक्षिणा करवी ते . , भ्रामिन् वि० भ्रममां पडेलु भ्राष्ट्रक पुं० न० तवो; कढाई भ्रांत ('भ्रम्' नुं भू० कृ० ) वि० भमेलं; भटकेलं (२) गोळ घूमतुं के घूमेलुं (३) भूलमां पडेलुं (४) मूंझायेलुं (५) न० भटकते (६) भूल ; O मकर पुं० मगर; मगरमच्छ मकरकेतन, मकरकेतु, मकरध्वज पुं० कामदेव मदन ( २ ) सागर ; समुद्र मकरंद पुं० फूलमांनुं मध (२) एक फूलझाड ; कुंद [ समुद्र मकराकर, मकरालय, मकरावास पुं० Refer स्त्री० अमुक प्रकारनो माथानो पहेरवेश (खास करीने स्त्रीनो) मकार पुं० ' म' वर्ण (२) ' म' थी शरू . थता आ पांच पदार्थोमांनो दरेक : मद्य, मत्स्य, मांस, मैथुन अने मुद्रा मकुट न० मुगट मक्षिक पुं०, मक्षिका स्त्री० माखी मक्षिकामल न० मीण मक्षीका स्त्री० माखी मख पुं० यज्ञ ( २ ) उत्सव ( ३ ) पूजन ३६१ मज्जन् भ्रांतबुद्धि वि० मूंझायेली के भूलमां पडेली बुद्धिवाकुं म भ्रांति स्त्री० भटकवुं ते ( २ ) गोळ फरवु ते ( ३ ) भूल; गोटाळा; भ्रम ( ४ ) मूंझवण (५) संशय ( ६ ) अस्थिरता भ्रुकुटि (टी) स्त्री० जुओ 'भ्रुकुटि' स्त्री० भमर; भ भ्रू कुटि (टी) स्त्री० भवां चडाववां ते भ्रूक्षेप पुं० भवां चडाववां ते भ्रूण पुं० गर्भ (२) बाळक ; छोकरो (३) श्रोत्रिय के विद्वान ब्राह्मण भ्रूणहत्या स्त्री० गर्भहत्या ( २ ) श्रोत्रिय के विद्वान ब्राह्मणनी हत्या भ्रूभंग, भेद पुं० भवां चडाववां ते भ्रूभेदिन् वि० भवां चडावतुं भ्रूविकार, भ्रूविक्षेप पुं० भवां चडाववां ते भूविचेष्टित न०, भूविभ्रम, भ्रूविलास पुं० विलासमां भवां नचाववां ते मद्विष् पुं० राक्षस [ करनार ) मृगव्याध पुं० शिव (दक्षयज्ञनो ध्वंस मखांशभाज् पुं० देव मगध पुं० एक प्राचीन देशनुं नाम ( बिहारनो दक्षिण भाग) (२) चारण मगधेश्वर पुं० मगध देशनो राजा (२) परंतप नामनो राजा ( ३ ) जरासंध मग्न (' मस्ज् ' नुं भू० कृ० ) वि० डूबेलुं (२) तल्लीन मघ न० बक्षिस ( २ ) समृद्धि मघव, मघवत् पुं० इंद्र मघवन् वि० दानेशरी ( २ ) पुं० इंद्र (३) घुवड (४) व्यास मुनि [ वाळं मच्चित वि० मारामां आसक्त चित्तमज्जन् पुं० मज्जा Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मज्जन ३६२ मत्स्यी मज्जन न० डूबकू लगावq ते (२)स्नान मताक्ष वि० पासा रमवामां कुशळ . (३) डूबवू ते (४) मज्जा . मति स्त्री० बुद्धि; समज (२) मन; मज्जा स्त्री० हाडकांमांनो मावो हृदय (३)विचार; मान्यता; धारणा मटक पुं०, न० शब; मडदूं (४) इरादो; प्रयोजन (५) निश्चय मटची (-ती) स्त्री० करानी वृष्टि (६)संमान; आदर(७) इच्छा; वृत्ति; मठ पुं०, न० तपस्वीनी कोटडी (२) वलण (८)सलाह (९)याददास्त संन्यासीओने रहेवानुं मकान (३) मतिगति स्त्री० विचारनुं वलण विद्यालय [जवाबदारी मतिगर्भ वि० बुद्धिशाळी; कुशळ मचिता स्त्री० मठनी व्यवस्था इ० नी मतिप्रकर्ष पुं० बुद्धिमत्ता मायतन न० विद्यालय; मठ मतिभ्रम पुं० बुद्धिने भ्रम थई आववो ते मठिका स्त्री० तपस्वीनी कोटडी मतिमत् वि० बुद्धिमान मड्मडायित वि० गळी जवायेलं मतिशालिन् वि० बुद्धिशाळी ; होशियार मणि पुं० रत्न (२) घरेणुं (३) ते ते । मतिक ८ उ० विचार के निश्चय करवो वर्गमां श्रेष्ठ एवं ते (४)स्फटिक (५) मत्क वि० मारु; मारा संबंधी गठ्ठो के ईंट जेवो आकार (धातुनो) । मत्कुण पुं० माकण मणिक पुं०, न० पाणीनो घडो मत्त ('मद् 'नुं भू० कृ०)वि० मदमत्त; मणिकार पुं० झवेरी पीधेलु (२) गांडु(३)मद-गळतुं (४) मणित न० रतिक्रीडा वखतनो गणगणाट गर्विष्ठ (५)स्वच्छंदी (६) कामोन्मत्त मणितुलाकोटि स्त्री० पगर्नु रत्नमय घरेणुं मत्तकाशिनी, मत्तकासिनी स्त्री० अति मणिदंड वि० रत्नजडित हाथावाळू मोहक स्त्री मणिपुष्पक पुं० सहदेवना शंखनुं नाम । मत्तपालक पुं०पीधेलो गांडा जेवो माणस मणिबंधपुं० कांडु (२)-उपर रत्न जडवां मत्तवारण, मत्तभ पुं० मद-झर हाथी के चोटाडवां ते मत्प्रिय वि० मने वहालुं एवं मणिबंधन न० कांडु (२)वींटी अथवा मत्या अ० जाणी बूजीने (२)-मानीने; कडानो ते भाग ज्यां रत्न जडाय छे -धारीने; कल्पीने (३) मोती- घरेणुं [महेल मत्सर वि० इर्ष्याळु; अदेखु (२)लोभी; मणिभित्ति, मणिमंडप पुं० शेषनागनो तृष्णाळू (३)स्वार्थी (४)पुं०अदेखाई; मणिमंथ न० खनिज मीठु ; सिंधव ईर्ष्या (५) वेर; द्वेष (६) गर्व (७) मणिमेखल वि० मणिना कंदोरावाळू लोभ (८)क्रोध मणिरत्न न० रत्न मत्सरिन् वि० इाळु; अखं (२) मणिविग्रह वि० मणिओ जडेलु वेरी; द्वेषी (३)लोभी; स्वार्थी मणिसर पुं० कंठहार मत्स्य पुं० माछलुं मतल्लिका, मतल्लो स्त्री० (नामने छेडे) मत्स्यकोश पुं० हाथी "ते वर्गनुं श्रेष्ठ ' एवो अर्थ दर्शावे छे मत्स्यगंधास्त्री० सत्यवती;व्यासनी माता (उदा० 'गोमतल्लिका'उत्तम गाय) मत्स्यजीवत, मत्स्यजीविन्, मत्स्यबंध, मतंग पुं० हाथी (२) एक ऋषि (३) मत्स्यबंधिन् पुं० माछीमार त्रिशंकु राजा मत्स्यंडिका, मत्स्यंडी स्त्री० उकाळेला मतंगज पुं० हाथी शेरडीना रसनी राब Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मत्स्याद मत्स्याद वि० माछलां खानारुं मत्स्यावतार पुं० विष्णुनो माछला तरीकेनो पहेलो अवतार (दशमांनो ) मत्स्याशिक वि० माछलां खानारुं मत्स्याः पुं० ब० व० विराट राजानो देश तथा तेना लोको मत्स्योद्वर्तन न० एक जातनुं नृत्य मथु १, ९ प० वलोववुं ( २ ) दळवुं ; कचरवुं (३) खूब त्रास आपबो (४) करवी ( ५ ) नाश करवो मथन वि० वलोवी नाखनाएं ( २ ) ईजा करनारुं ( ३ ) नाश करनारुं ( ४ ) घर्षण करनाहं (५) न० वलोववुं ते ( ६ ) घसवुं ते (७) हानि ; नाश मथित ( ' मथ्' नुं भू० कृ० ) वि० वलो - वेलुं (२) कचरेलुं; दळेलुं (३) पीडेलुं ( ४ ) नाश करेलुं ( ५ ) न० मठो ( पाणी उमेर्या विनानी जाडी छाश ) मथिन् पुं० रवैयो मथुरा, मथुरा स्त्री॰ यमुना किनारे आवेलुं प्राचीन नगर ( श्रीकृष्णनुं जन्मस्थान ) मद् समासनी शरूआतमां वपरातुं प्रथम पुरुष सर्वनामनुं एकवचननुं रूप (उदा० 'मच्चित्त', 'मद्भक्त', 'मन्मनाः ' ) मद् ४ ५० पीधेलुं के मदमत्त थवुं ( २ ) गांडा थवुं ( ३ ) - मां आनंद माणवो; खुशी थ - प्रेरक ० [ मादयति ] भत्त के गांडु कर ( २ ) [ मदयति] हर्षित करवुं ( ३ ) कामोन्मत्त कर ( ४ ) आ० खुश थवं मद् १० आ० खुश करवुं; संतुष्ट कर मद् १ प० गर्व करवो मद पुं० केफ; नशो ( २ ) गांडपण (३) कामवासना ( ४ ) हाथीने मस्तीमां आवतां गंडस्थळमांथी झरतो रस ( ५ ) कामना ; तृष्णा (६) गर्व ; अभिमान (७) अत्यंत हर्ष ( ८ ) सुंदरता मदकल वि० अस्पष्ट उच्चार करतु; मदिरलोचना धीमे धीमे बोलतुं; मंद अवाज करतुं (२) मदमत्त (३) अस्पष्ट छतां मधुर एवं मदखेल वि० कामवासनाने कारणे विलासयुक्त बनेलुं मदज्वर पुं० गर्व के अभिमानरूपी ताव मदन वि० मत्त करे तेवु: मादक (२) खुश करे तेवुं ( ३ ) पुं० कामदेव (४) कामवासना (५) वसंतऋतु मदनकलह पुं० संभोग; मैथुन मदनक्लिष्ट वि० जुओ ' मदनातुर' मदनतंत्र न० कामशास्त्र मदनपीडा, मदनबाधा स्त्री० कामवासनानी पीडा [ निमित्ते करातो उत्सव मदनमह, मदनमहोत्सव पुं० कामदेव मदनलेख पुं० प्रेमपत्र मदनसंदेश पुं० प्रेमनो संदेशो मदनातुर वि० कामवासनाथी पीडित मदनावस्थ वि० प्रेममां पडेलुं मदनावस्था स्त्री० प्रेममां पडवुं ते मदनांतक पुं० शिव (कामदेवना नाशक ) मदनीय वि० मादक ३६३ मदनोत्सुक वि० जुओ 'मदनातुर' मदप्रसेक पुं० वीर्य सींचबुं ते मदभंग पुं० गर्व ऊतरवो ते मदमुच् वि० मद गळतो होय तेवुं मदयितृ वि० मादक मदर्थे अ० मारे माटे मदवीर्य न० मद के कामनाथी थयेलो जुस्सो (२) प्रेमने कारणे प्रगटेलुं पराक्रम मदस्रुति स्त्री० मद झरवो ते मदाकुल वि० मद झरवाने कारणे गां बने लुं (२) कामोन्मत्त [ सुस्त बनेलुं मदालस वि० मदने कारणे धीमं के मदांध वि० मदमत्त; मदोन्मत्त ( २ ) कामोन्मत्त [ हर्ष उपजावनाएं मंदिर वि० मादक; मद उपजावनाएं ( २ ) मदिरवृश्, मदिरनयना, मदिरलोचना स्त्री० जुओ ' मदिराक्षी ' Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मदिरा मदिरा स्त्री० दारू; मद मदिराक्षी स्त्री० मादक- मोहक आंखोवाळी स्त्री [ आंखोवाळु मदिरायतनयन वि० लांबी मादक मदिरेक्षणा स्त्री० जओ ' मदिराक्षी ' मदिरोत्कट, मदिरोन्मत्त वि० मद्य पीने उन्मत्त बनेलुं [(हळ इ० ) मदी स्त्री० प्यालो ( २ ) खेतीनुं ओजार मदीय वि० मारुं ; मारा संबंधी मदोत्कट वि० मदमत्त ; मदोन्मत्त ( २ ) कामोन्मत्त महोत्सव पुं० आंबो मदोदग्र, मदोद्धत, मदोन्मत्त वि० पीधेलुं; नशाथी उन्मत्त बनेलुं (२) मद के गर्वथी जुस्सामां आवेलुं मद्गु पुं० लश्करी जहाज मद्य वि० मादक ( २ ) न० दारू मद्यप पुं० दारूडियो [ पीणुं मद्यपान न० दारू पीवो ते ( २ ) मादक मद्र पुं० एक देश ( २ ) ए देशनो राजा ( ३ ) न० हर्ष ; आनंद मद्रनाभ पुं० एक मिश्रजाति मद्रिका स्त्री० मद्र देशनी स्त्री मद्वचन न० मारो आदेश के संदेश मधु वि० मीठं ; गळचं ; सुखदायक (२) न० मधमाखीओए एकठो करेलो फूलनो रस, मध (३) एक जातनुं मीठं मध ( ४ ) मधपूडो ( ५ ) पुं० वसंतऋतु (६) चैत्र महिनो ( ७ ) विष्णुए हणेला एक राक्षसतुं नाम मधुक वि० मीठ; गळधुं मधुकर पुं० (नर) मधमाख ( २ ) व्यभिचारी पुरुष मधुकरी स्त्री० (मादा) मधमाख मधुकार, मधुकारिन् पुं० (नर) मधमाख मधुगंधि, मधुगंधिक वि० मधुर वासवाळु (२) मघनी वासवाळं मधुच्युत् ( - ) वि० मध झरतुं होय तेव ३६४ मधुश्च्युत् मधुतम वि० अति गळयुं के मादक मनिषूदन, मधुनिहंत पुं० विष्णु (मधु राक्षसने हणनार) मधुप पुं० मधमाख (२) दारूडियो मधुपर्क पुं० दहीं, पाणी, घी, मध अने साकर - ए पांचनुं मिश्रण ( महेमान अथवा वरराजाने अपाय छे ) (२) महेमानना स्वागतनो विधि 1 मधुपान न० दारू पीवो ते मधुपुर न०, मधुपुरी स्त्री० मथुरा मधुभिद् पुं० जुओ 'मधुसुदन ' मधुमक्षिका स्त्री० मधमाख मधुमथ, मधुमथन पुं० जुओ 'मधुसूदन ' मधुमाधवी स्त्री० एक मादक पीणुं मधुमाधव पुं० द्वि०व० चैत्र अने वैशाख मधुर वि० मीठं; गळयुं ( २ ) मवयुक्त ( ३ ) मनोहर ( ४ ) मंजुल अवाजवाळु मधुरम् अ० मीठाशथी; प्रिय लागे तेम मधुरस वि० गळया स्वादवाळु (२) पुं० शेरडी (३) गळपण ( ४ ) ताड मधुरा स्त्री० मथुरा नगरी मधुराक्षर वि० मीठा अवाजवाळु मधुरालाप वि० मीठा अवाजे बोलतुं (२) पुं० मीठो अवाज ; मीठो राग मधुरिपु पुं० जुओ 'मधुसूदन ' मधुरिमन् पुं० माधुर्य; मधुरता मधुरेण अ० भलाईथी; भलमनसाईश्री; मीठाशथी [ धन के वातचीत मधुरोपन्यास पुं० मीठा शब्दमां संत्रीमधुलिह, मधुलेह, मधुलेहिन् मधुलोलुप पुं० मधमाख मधुवन न० मधु नामनो राक्षस रहेतो हतो ते वन ( यमुना किनारे) मधुवार पुं० वारंवार दारू पीत्रो ते ( मुख्यत्वे बहुवचनमां वपराय छे ) मधुव्रत पु० मधमाख मधुशिष्ट, मधुशेष न० मीण मधुश्च्युत् वि० ० मध झरतुं होय तेनुं , Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मधुश्री मधुश्री स्त्री० वसंतऋतुनी शोभा मधुसख, मधुसहाय पुं० कामदेव मधुसूदन पुं० ( मधु राक्षसने हणनार ) श्रीकृष्ण ( २ ) मवमाख मधुहन् पुं० (मधुपुडानो नाश करी ) मध एकट्ठे करनार ( २ ) जुओ 'मधुसूदन ' मधूक पुं० मवमाख (२) महुडानुं झाड (३) नं० महुडानुं फूल (४) जेठीमध मधूच्छिष्ट, मधूत्थ, मधूत्थित न० मीण मधूद्यान न० वसंतनो बगीचो [ रहेठाण) मधूपन न० मथुरा नगरी (मधु राक्षसनुं मध्य वि० वच्चेतुं वचलुं ( २ ) वच्चे आवतुं ( ३ ) मध्यमसरनुं मध्यम कोटी के कक्षानुं (४) निष्पक्ष ( ५ ) न्यायसर एवं (६) पुं०, न० वच्चेनो भाग (७) केंद्र (८) केड शरीरनो वचलो भाग (९) पेट (१०) कोई पण वस्तुनी अंदरनो भाग ( ११ ) वचली दशा के स्थिति (१२) न० करोड अबज (संख्या) [ वच्चे मध्यतस् अ० वच्चेयी; - मांथी ( २ ) मध्यनिहित वि० अंदर खोसेलुं मध्यप्रविष्ट वि० वचमां पेठे के घूसेलुं ( विश्वास मेळवीने) [ कमर मध्यभाग पुं० वचलो भाग (२) केड ; मध्यम् अ० - नी बच्चे; अंदर मध्यम वि० बच्चे आवेलुं के ऊभे लुं (२) वचली कक्षानुं के कोटिनुं (३) वचला कदनुं ( ४ ) वच्चे जन्मेलुं वचेट ( ५ ) तटस्थ ; निष्पक्ष ( ६ ) पुं० स्वरसप्तकनो पांचमो स्वर ( ७ ) मध्यनो प्रदेश के भाग ( ८ ) निष्पक्ष राजा ( ९ ) भीम (१०) न० केड; कमर ( ११ ) वच्चेनो भाग मध्यमक वि० छेक वच्चेनुं ( २) सहियारुं (३) न० वस्तुनो अंदरनो भाग मध्यम लोकपाल पुं० राजा [मणि मध्यमोपल पुं० हारनो मुख्य के वचलो ३६५ मनस्कार मध्यरात्र पुं०, मध्यरात्रि स्त्री० मधरात मध्यलोक पुं० पृथ्वी मृत्युलोक मध्यस्थ वि० वचमां आवेलुं (२) तटस्थ ; निष्पक्ष ( ३ ) निरपेक्ष ( ४ ) पुं० वे पक्ष वच्चे न्याय तोळनारो मध्यस्थता स्त्री० तटस्थता ( २ ) ववली स्थिति ( ३ ) मध्यमसरता ( ४ ) निष्पक्षता ( ५ ) निरपेक्षता मध्या स्त्री० वचली आंगळी (२) जुवान स्त्री (रजस्वला थवा लागेली ) मध्यात् अ० वच्चेयो मध्याह्न पुं० बपोर मध्ये अ० वच्चे ( २ ) अंदर (ए अर्थ मां समासना पहेला पद तरीके मोटे भागे आवे छे; उदा० 'मध्ये गंगम्') मध्येन अ० आरपार के बच्चे मध्यापात दि० गरुआतमां मधनो स्वाद होय ते [ आहुति आपकी माहुति स्त्री० स्वादु वस्तुओनी यज्ञमां मन् ११० गर्व करवो (२) पूजत्रुं (३) १० आ० गर्व करवो (४) रोकबुं (५) ४, ८ आ० मानवुं धारवु (६) मानी लेबुं; गगनुं ( ७ ) संमान कर; आदर करवो (८) समजनुं ; जाणवुं (९) कबूल राखवं ; स्वीकार व्ं (१०) इरादो राखवो - प्रेरक ० ० उ० मान आपवुं; आदर करवो ( २ ) आ० पोतानी जातने मोटी मानवी [ धारणा; तर्क मनन न० विचार ते; चिंतन ( २ ) मनस् न० मन ( २ ) समजशक्ति; विचारशक्ति; विवेकशक्ति ( ३ ) कल्पना ; धारणा ( ४ ) इरादो; हेतु ( ५ ) इच्छा; कामना ( ६ ) ध्यान ( ७ ) वलण ; वृत्ति (८) मनोबळ ( ९ ) प्राण; जीव मनसा गम् १५० विचारखुं; चितवनुं मनसिज, मनसिशय पुं० कामदेव, मदन मनस्कार पुं० मननी एकाग्रता Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनस्तः अ० मनमाथी मनस्ताप पुं० मानसिक संताप के पीडा मनस्विन् वि० डायु ; बुद्धिशाळी; कुशळ (२) उदार चित्तवाळू (३) एकाग्र (४) स्थिर के दृढ मनवाळं मनस्विनी स्त्री० धीर चित्तवाळी स्त्री (२)अभिमानी स्त्री(३)शीलवती स्त्री मनःकृ ८ उ० –नी उपर मन स्थिर करवू; -नी प्रत्ये मन वाळवं मनःपूत वि० पोताना अंतरात्माए मान्य करेलु के शुद्ध मानेलं मनःप्रसाद पुं० मननी प्रसन्नता मनःशल्य न० मनमा शूळ जेवी चिंता मनःशिल पुं०, मनःशिला, स्त्री० एक खनिज पदार्थ (लाल रंगनो) . मनःशीघ्र वि० मन जेटलं वेगवंत मतःस्थैर्य न० मननी स्थिरता-दृढता मनाक अ० अल्प के थोडं होय तेम (२) धीमेथी (३) फक्त; मात्र . .... मनाका स्त्री० हाथणी मनीषा स्त्री० इच्छा; कामना (२)बुद्धि; समजशक्ति (३) विचार; ख्याल मनीषित वि० इच्छेलं; चाहेलू (२) प्रिय ; मनगमतुं (३) न० इच्छा (४) इच्छेली वस्तु मनीषिता स्त्री० डहापण मनीषिन वि० शाणुं; डाहयु (२)ज्ञानी; विचारवंत (३)पुं० ज्ञानी ऋषि मनु पुं०विवस्वतना पुत्र; मानवकुळना पिता (२) ब्रह्माना चौद पुत्रोमांना दरेक (३)मंत्र(४)ब० व० मानसिक शक्तिओ मनुज पुं० मनुष्य; माणस मनुष्य वि० माणसने हितकर एवं (२) पुं० मानव; माणस मनुष्यकार पुं०मनुष्यनो पुरुषार्थ-प्रयत्न मनुष्यजाति स्त्री० माणस जात मनुष्यता स्त्री०, मनुष्यत्व न० माणस तरीकेनो जन्म मनोरणांतर मनुष्यदेव पुं० राजा(२) ब्राह्मण मनुष्यधर्मन् पुं० कुबेर मनुष्ययज्ञ पुं० (मनुष्ये करवाना पांच यज्ञो पैको एक) अतिथिसत्कार मनुष्ययान न० पालखी; म्यानो मनुष्यशोणित न० माणसनुं लोही मनुष्यश्वर पुं० राजा मनोगत वि० मनमां आवेलुं के रहेलं; मनमां छुपावेलु (२) इच्छेलं (३) न० इच्छा (४) विचार; ख्याल मनोग्राहिन वि० मनने मोहनारं मनोज, मनोजन्मन् वि० मनमां जन्मेलं के जन्मतुं (२)पुं० कामदेव मनोजव वि० मनना तरंग जेटलं झडपी (२)झट समजी ले तेवं मनोजिघ्र वि० सामाना विचारो समजी के कल्पी लेनाएं मनोज्ञ वि० सुंदर; मनगमतुं मनोनिग्रह पुं० मननो संयम के निग्रह मनोनीत वि० पसंद करेलु; गमतुं मनोनुग वि० मनने अनुकूळ; मनगमन मनोभव वि० मनमां उत्पन्न थयेलं; मनथी कल्पी लीधेलु (२) पुं० कामदेव (३) तीव्र कामना मनोभिराम वि. मनने प्रसन्न करे ते मनोभू पुं० कामदेव; मदन मनोयायिन् वि० मनना तरंग प्रमाणे जतुं (२) मनना विचार जेटलं वेगोल मनोरय पुं० इच्छा (२) इच्छेली वस्तु मनोरथकृत वि० स्वेच्छाए पसंद करेलु (जेम के पति) मनोरथदायक पुं० एक कल्पवृक्ष मनोरथद्रुम पुं० कल्पवृक्ष मनोरथबंध पुं० मनोरथ बांधवा ते मनोरथबंधबंधु, मनोरथबंधु पुं० कामना तृप्त करनार मित्र मनोरथसिद्धि स्त्री० इच्छा पूरी थवी ते मनोरथांतर पुं० अंतरथी इच्छेली वस्तु के व्यक्ति Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनोरम मनोरम वि० सुंदर; आकर्षक ' मनोरंजन न० मनने राजी करवू ते (२) मजा; आनंद मनोराग पुं० (हृदयनो) प्रेम ; राग मनोरुज् स्त्री० हृदयनी वेदना के शोक मनोलौल्य न० मननो तरंग मनोवृत्ति स्त्री० मननी वृत्ति (२)इच्छा (३) मननुं वलण मनोहर वि० सुंदर; रम्य । मनोहर्तृ, मनोहारिन् वि० मनोहर मनोह्लाद पुं० मननो आहलाद - खुशी मन्मथ पुं० कामदेव (२) कामवासना मन्मथलेख पुं० प्रेमपत्र मन्मन पुं० धीमेथी (बीजं न सांभळे तेम) करेली वातचीत (२) कामदेव मन्य वि० (समासने छेडे) - पोताने अमुक मानतुं (जेम के 'पंडितंमन्य') मन्यु पुं० क्रोध; गुस्सो(२) शोक ; खेद (३)दीन अवस्था (४) यज्ञ मन्युमत् वि० क्रोधी (२) दुःखी (३) । जुस्सादार मन्वंतर न० एक मनुनो समय के युग (४३,२०,००० वर्षनो) ममता स्त्री०, ममत्व न० मारापणुं; मालकीपणानो भाव (२) आसक्ति (३) घमंड मय वि० -नुं बनेलं; '-थी भरेलु' (उदा० 'काष्ठमय') (२) पुं० एक दानव; असुरोनो शिल्पी मयूख पुं० किरण मयूखमालिन् पुं० सूर्य मयूखिन् वि० प्रकाशयुक्त; तेजस्वी मयूर पुं० मोर(२) एक कवि मयूरपत्रिन् वि० मोरना पीछां खोसेलु (बाण) मयूरी स्त्री० ढेल मरकत न० लीलो मणि; लीलम मरण न० मृत्यु ; मोत मर्त्य मरणधर्मन् वि० मरणशील मरणनिश्चय वि० मरवाना निश्चयवाळू मरणमंडन न० (पति पाछळ सती थनारी स्त्री पहेरे छे ते) मरणनां आभूषणो अने पोशाक पहेरवां ते मरणात्मक वि० मोत उपजावे तेवू. मरंद, मरंदक पुं० फूलमांनुं मध मराल वि० पोचुं; चीकj (२) मृदु; कोमळ (३)पुं० हंस (४) कारंडव पक्षी मरिच, मरीच न० मरी मरीचि पुं०, स्त्री प्रकाशनुं किरण (२) मृगजळ (३)अग्निनो तणखो (४)पुं० दश प्रजापतिमांना एक (५) श्रीकृष्ण मरीचिका स्त्री० मृगजळ । मरीचिन् वि० जुओ 'मरीचिमत्' मरीचिप वि० तेजना कण पीनारु मरीचिमत् वि० तेजस्वी (२) पुं० सूर्य मरीचिमालिन् वि० तेजस्वी (२)पुं० सूर्य मरु पुं० रेतीनुं रण;पाणी विनानो वेरान प्रदेश (२) खडक; पर्वत(३)मद्यपान न कर ते [(३)वायुदेव (४) देव मरुत् पुं० पवन; वायु (२)प्राणवायु मरुत पुं० वायु (२) देव मरुत्पट पुं० सढ मरुत्पति पुं० इंद्र मरुत्पथ पुं० आकाश मरुत्वत् पु० इंद्र (२) मेघ (३) हनुमान मरुत्सख वि० पवन जेनो मित्र छे तेवू (मेघ) (२) पुं० अग्नि (३) इंद्र मरुत्सुत पुं० हनुमान (२) भीम मरुधन्व, मरुधन्वन् पुं० वेरान प्रदेश [वेरान मरुपय पुं०, मरुपृष्ठ न० रण; निर्जळ मरुवक पुं० एक फूल [वरान प्रदेश मरुस्थल न०, मरुस्थली स्त्री० रण; मर्कट पुं० मांकडु मर्तव्य न० मोत मर्त्य वि० मरणधर्मी (२) पुं० मनुष्य (३) मृत्युलोक; पृथ्वी (४)न० शरीर रण Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मर्त्यधर्मन् [ पृथ्वी मर्त्यधर्मन् मर्त्यमन् वि० मरणधर्मी (२) पुं० मनुष्यप्राणी मर्त्यभुवन न०, मर्त्यलोक पुं० मृत्युलोक; मर्द वि० मर्दन करतुं ; दळी नाखतुं (२) पुं० दळवु के कचरवुं ते · मर्दन वि० दळनाएं के कचरनाएं (२) न० दळवुं के कचरवुं ते ( ३ ) लेप करवी ते (४) मसळवुं ते ( ५ ) दाबवुं ते गदडवु तें ( ६ ) नाश करवो ते मर्दल पुं० एक जातनुं वाद्य (तबला जेवुं ) मर्मच्छिद् मर्मच्छेदिन् वि० मर्मवेधी मर्मज्ञ वि० अंदरनुं रहस्य के तात्पर्य जाणनारुं (२) कोई पण बाबतमां अंडी दृष्टिवाळु 3 मर्मत्र न० बख्तर मर्मन् न ० ज्यां वागवाथी मृत्यु थाय तेवो शरीरनो कोमळ भाग ( २ ) कोई पण नबो के वींधी शकाय तेवो भाग (३) तात्पर्य रहस्य [ जाणनारु मर्मपारग वि० ऊंडुं रहस्य के तात्पर्य मर्मभेदिन् वि० मर्मवेधी ( २ ) पुं० ब्राण मर्मर वि० ' फडफड' एवो अवाज करतुं (पांदडा, कपडां इ० ) (२) गणगणतुं ( ३ ) पुं० ' फडफड ' एवो अवाज (४) गणगणाट मर्मविद् वि० जुओ मर्मज्ञ मर्मस्थल, मर्मस्थान न० ज्यां वागवाथी मोतीपवं कोमळ स्थान (शरीरनुं) (२) नबो के वींधी शकाय तेवो भाग मर्मस्पृश वि० मर्मस्थानने बींधे तेवुं मर्माति वि० मर्मस्थानने आरपार ऊंडे सुधी मर्माविधु, मर्मोपघातिन् वि० मर्मस्थानने बींधी नाखे तेव " मर्यादा स्त्री० ० हद; सीमा (२) अंत; छेडो (३) सीमाचिह्न (४) रूढि के नीतिए स्थापेली सीमा (५) शिष्टाचारनो नियम ( ६ ) करार ३६८ मल्ल मर्यादाव्यतिक्रम पुं० मर्यादानुं उल्लंघन [ सलाह कर मर्श पुं० विचार; मसलत (२) उपदेश ; मर्शन न० घसवु के मसळवुं ते ( २ ) तपास; विचारणा (३) सलाह ( ४ ) समजाववं ते (५) स्पर्श; संभोग (स्त्रीनो) मर्ष, मर्षण न० सहनशीलता; क्षमा मति वि० सहन करेल; क्षमा करेलुं मन् वि० क्षमा करतुं सहन करतुं मल वि० गंदु (२) लोभी; दुष्ट (३) नास्तिक ( ४ ) पुं०, न० गंदकी (५) विष्टा; छाण (६) नैतिक दोष ; पाप ( ७ ) शरीरमाथी नकळत कोई पण गंदी चीज मलन न० दबाव के कचरवुं ते मलपकिन वि० गंदकीथी ढंकायेलुं मलमल्लक न० लंगोटी; कौपीन मलमास पुं० अधिक मास मलय पुं० दक्षिणनो एक पर्वत ( चंदन वृक्ष माटे प्रसिद्ध ) [ लाकडु; चंदन मलयज पुं० चंदन वृक्ष ( २ ) न० चंदननुं मलयवात, नलयसमीर, मलयातिल पुं० मलय पर्वत उपरथी आवतो दक्षिणतो पवन (विरहीने सतावतो गणाय छे ) मलिन वि० मेलुं; गंदु (२) काळु (३) पापयुक्त; दुष्ट (४) वादळवी ढंकालुं (५) न० ० पाप ( ६ ) गंदुं वस्त्र मलिनयति प० ( मेलुं करवुं; कलंकित करवुं; अपजश अपाववो ) मलिनिमन् पुं० मेलाश; गंदकी ( २ ) काळाश (३) पाप मलिनीभू १ प० मेलं थ; गंदु श्रनुं मलिम्लुच पुं० चोर, डाकु ( २ ) राक्षस (३) मच्छर [ दुष्ट; पापी मलीमस वि० गंदु मेलुं (२) काळु (३) मलोत्सर्ग पं० मळत्याग मलोपहत वि० गंदु के मेलुं थयेलुं मल्ल वि० मजबूत : पहेलवान जेवुं (२) सारुं; उत्तम ( ३ ) पुं० मजबूत माणस ( ४ ) पहेलवान कुस्तीबाज Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मल्लक मल्लक पुं० दीवी (२) कोडियु (३) पात्र; वासण मल्लघटी स्त्री० एक जातनुं नृत्य मल्लिका स्त्री० एक फल-वेल (जाई) (२) तेनुं फूल (३) दीवी (४)अमुक आकार- माटीनुं वासण मल्लिकाक्ष पुं० बदामी चांच अने पगवाळो एक हंस (२)आंख उपर धोळां चाठांवाळो एक जातनो घोडो मल्लिकार्जुन पुं० श्रीशैल उपर आवेलु शिवलिंग मश पुं० मच्छर; डांस [थेली; मसक मशक पुं० मच्छर; डांस (२)चामडानी मशकी स्त्री० मादा मच्छर मशी, मषि (-षी) स्त्री० जुओ ‘मसि' मषीभू १ प० काळं थq. मसार, मसारक पुं० इंद्रनील मणि मसि पुं०, स्त्री० शाही (२) धुमाडानी मेश (३)मेश मसिधानी स्त्री० शाहीनो खडियो मसिपण्य पुं० लहियो । मसिपथ पुं० कलम मसी स्त्री० जुओ 'मसि' मसीगुडिका स्त्री० शाहीनो डाघो. मसीधानी स्त्री० शाहीनो खडियो .. मसीपटल न० मेशनुं पड । मसृण वि० चीकणुं ; चीकटुं(२) कोमळ; नाजुक ; सुंवाळु (३) मधुर (४) मनोहर (५) चमकतुं [(२) नरम करेलं मसृणित वि०सुंवाळं करेलु;चळकतुं करेलु मस्कर पुं० पोलो वांस मस्करिन् पुं० संन्यासी (दंडी) मस्ज ६ प० [मज्जति] नाहवू; डूबकुं मारवू (२) डूबी जवु (३) खिन्न थ, -प्रेरक० डुबाडq (२) -मां खोसवं मस्तक पुं०,न० माथु(२)टोच; शिखरनो भाग [भाग मस्तिष्क न० मगज; माथानी अंदरनो महाकाय मह १५०,१० उ०आदर करवो; संमान करवू ; पूजवू (२) खुश करवू (३)वधार(४)१ आ० वध; वृद्धिंगत थर्बु मह पुं० उत्सव (२) यज्ञ ; होम महत् वि० महान; मोटुं(२)पुष्कळ ; संख्याबंध (३) विस्तृत (४) बलवान (५)तीव्र (६) गाढ (७) अगत्यनु (८) ऊंचुं; खानदान (९)वहेलं अथवा मोडं (१०) वधु; खूब (११)न० खूबपणुं; __ अनंतपणुं (१२) राज्य (१३) परमात्मा (१४)अ० खूब ; अत्यंत [नी वीणा महती स्त्री० एक जातनी वीणा(२)नारदमहत्तत्व न० सांख्यशास्त्रे गणावेलां पचीस तत्त्वोमांनुं बीटें; बुद्धितत्त्व महत्तर वि० वधु मोटुं (२) पुं० मुख्य के वृद्ध माणस (३) गामनो मुखी के वृद्ध आगेवान (४) दरबारी (५) कारभारी महत्त्व न० मोटाई(२)अगत्य(३)तीव्रता महदायुध न० मोटुं हथियार महदाशा स्त्री० मोटी आशा महनीय वि० आदरणीय; संमाननीय महर् अ० पृथ्वी उपरना सात लोकमांनो चोथो (स्वर् अने जनस् वच्चेनो) महद्धि वि० मोटा वैभव के समुद्धिवाळू (२) स्त्री० मोटी समृद्धि । महर्षभ पुं० मोटो आखलो [बुद्ध महर्षि पुं० महान ऋषि (२)शिव (३) महस् न० उत्सव; उत्सवनो प्रसंग (२) आहुति ; होम (३)प्रकाश; तेज (४) जुओ ‘महर्' (५) आनंद; भोग (६) बळ; सामर्थ्य [समर्थ महस्विन् वि० तेजस्वी (२) महान; महा (' महत् ' ने बदले कर्मधारय अने बहुव्रीहि समास वगेरेनी शरूआतमां __ मुकातुं रूप) [(२) पुं० शिव महाकर्मन् वि० महान कृत्यो करनारं महाकाय वि० मोटा शरीरवाळू (२)पुं० हाथी (३) शिव Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिर महाकाल महाकाल पुं० शिवनुं प्रलयकारी रूप (२) बार ज्योतिलिंगमांना एकनुं उज्जयिनीमां आवेलु मंदिर महाकालफल न० काळां बीकाळं एक लाल फळ .. . महाकाव्य न० मोटुं काव्य (रघुवंश, कुमारसंभव, किरातार्जुनीय, शिशुपालवध अने नैषधचरित -ए पांच मुख्यत्वे गणावाय छे) महाकुल, महाकुलीन वि० ऊंचा कुळनुं महाऋतु पुं० (मोटो यज्ञ) अश्वमेध महाक्ष पुं० शिव [(औषध) महागुण वि० रामबाण के अमोघ एवं महाग्रह पुं० राहु (२) सुर्य महाजन पुं० माणसोनो समुदाय (२) टोळु; आखी वस्ती (३) कोई धंधानो के ज्ञातिनो मुखियो (४) वेपारी महाजानिन पुं० पंडित (२) भविष्य भाखनारो (३) शिव महाज्यष्ठी स्त्री० जेठ महिनानी पूनम महाज्वर पुं० मोटी पीडा महातल न० सात पाताळोमांनुं एक महात्मन् वि० महान आत्मावाळू; महान (२) महाबळवान महात्यय पुं० मोटो भय ; जोखम महादुर्ग न० मोटी आफत महादेव पुं० शिव महादेवी स्त्री० पार्वती (२) पट्टराणी महाधन वि० कीमती; मूल्यवान महाधी वि० मोटी बुद्धिवाळू महापुर्य पुं० मोटो बळद महानट पुं० शिव महानस पुं०, न० रसोई महानिद्र वि० गाढ निद्रामां पडेलु महानिल पुं० वंटोळियो महानील पुं० एक जातनो मणि महानुभाव वि० भव्य ; बळवान ; खानदान; यशस्वी; उदात्त (२)सदाचारी; न्यायी (३) संमाननीय महामात्य महान्वय वि० खानदान कुळनुं महापथ पुं० राजमार्ग(२)मृत्यु महापा पुं० कुबेरनो एक निधि (२) नारद (३) एक मोटी संख्या महापात पुं० दूर सुधी ऊडवू ते महापाप्मन् वि० अति पापी-दुष्ट महापुरुष पुं० सज्जन; सत्पुरुष महाप्रलय पुं० ब्रह्मा, सो वर्षनुं आयुष्य पूरूं थतां थतो सकळ सृष्टिनो प्रलय महाप्रश्न पुं० गूंचवाडाभर्यो सवाल महाप्रस्थान न० मृत्यु (२) मरणनी इच्छाथी उतर तरफ (हिमालयमां) हमेश माटे चाली नीकळवू ते महाप्राणता स्त्री० अतिशय बळ के सत्त्ववाळा होवू ते महाप्लव पुं० मोटुं पूर महाबल वि० घणुं बळवान महाबाष वि० भारे पीडा उपजावनाएं महाबाहु वि० लांबा हाथवा ; बळवान (२) पुं० विष्णु महाभाग वि० अति भाग्यवान; अति समृद्ध(२)अति यशस्वी; अति विख्यात (३)अति सद्गुणी के सच्चरित्र महाभागिन् वि० महा भाग्यशाळी महाभिजन वि० खानदान कुळy (२) पुं० खानदान कुळ महाभुज वि० जुओ 'महाबाहु' महाभत न० पांच महाभूतोमांनुं दरेक (पृथ्वी-जळ-तेज-वायु-आकाश) महाभोग पुं० मोटो उपभोग के सुख(२) मोटी फणा (३)नाग महामणि पुं० अति कीमती रत्न महामनस्, महामनस्क वि० उदार चित्त वाळू (२)गर्विष्ठ [मोटो वरघोडो महामह पुं० उत्सव निमित्ते नीकळतो महामंत्र पुं० वेदनो पवित्र मंत्र (२) (साप, झेर उतारवानो)शक्तिशाळी मंत्र महामात्य पुं० मुख्य प्रधान; वडो प्रधान Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महामात्र ३७१ महिष महामात्र वि० कद के जथामां मोटुं (२) सिंह (३) इंद्रनुं वज्र (४) विष्णु (५) उत्तम; श्रेष्ठ (३)पुं० राज्यनो मोटो गरुड (६)हनुमान अधिकारी; मुख्य प्रधान (४) महावत महावेग वि० घणुं झडपी के वेगवाळं महामान्य वि० अति आदरने पात्र महाबेल वि० मोटा मोजांवाळू महामाय वि० मोटी मायावाळुमायावी महावत न० एक मोटुं व्रत (एक महिना (२)पुं० शिव (३) विष्णु सुधी पाणी पण न पीवान) (२) कोई महामांस न० मनुष्यनुं मांस पण मोटुं कर्तव्य के नियम महामृग पुं० हाथी महाशन वि० खाउधरूं; तृप्त न थाय तेवू महामृध न० महा युद्ध महाशनिध्वज पुं० वज्रना चिह्नवाळो महायज्ञ पुं० नित्य करवाना पांच यज्ञ- मोटो ध्वज (इंद्रनो) मांनो दरेक (ब्रह्म-देव-पितृ-भूत-न) महाशय वि० उदार चित्तवाछं; सज्जन महायशस् न० घणुं विख्यात (२) पुं० तेवो माणस (३) महासागर महायान न० नागार्जुने प्रवर्तावेल बौद्ध महाशंख पुं० एक मोटी संख्या (१००० संप्रदाय (' हीनयान 'थी भिन्न) अबज) (२) कुबेरनो एक निधि महारजत न० सोनू महाशासन वि० मोटी राजसत्तावाळं महारजन न० सोनुं(२)केसूडो(३)हळदर (२)मोटा हुकमोवाळू महारय पुं० मोटो रथ (२) मोटो योद्धो महाश्मन् पुं० मणि (एकलो दश हजार धनुष्यधारीओ महासती स्त्री० शुद्ध, पतिव्रता स्त्री साथे लडी शके ते) (३) मनोरथ महासत्त्व वि० महान बळशाळी (२) महाराज पुं० मोटो राजा; चक्रवर्ती __ न्यायी;सदाचारी(३)पुं० मोटुंप्राणी(४) (२)राजा के तेमना जेवाओ माटे शाक्य मुनि (५)कुबेर [मूल्यवान आदरनुं संबोधन महासार वि० महाबळवाळू(२)कीमती; महाराजाधिराज पुं० चक्रवर्ती राजा महासाहसिक पुं० लूटारो; वाटपाडु महाराज्य न० सिंहासनारूढ राजानुं महासेन पुं० कार्तिकेय (२) मोटा सैन्यनो पद के प्रतिष्ठा [महाप्रलय सेनापति (३) शिव महारात्रि(-त्री) स्त्री० मघरात (२) महांग वि० मोटा अंगवाळू (२)पुं० ऊंट महादत पुं० एक जातनुं काळियार हरण । महांजन पुं० एक पर्वत स्त्रिी० पृथ्वी महार्घ वि० कीमती; मूल्यवान महि पुं०,न० महिमा (२)पुं० बुद्धि(३) महार्घ्य वि० अमूल्य; घणुं कीमती महिका स्त्री० हिम; झाकळ (२) पृथ्वी महाचिस् वि० ऊंची ज्वाळाओ नीक- महिकांशु पुं० चंद्र [संमानित ळती होय तेवू महित ('मह'नुं भू००)वि० पूजायेलं; महार्णव पुं० महासागर महिमन् पुं० महिमा; मोटाई (२) महाहं वि० अति कीमती; अमूल्य महत्ता; सत्ता (३) मोटुं पद (४)आठ महावराह पुं० विष्णुनो वराहरूपे त्रीजो सिद्धिओमांनी एक (मरजी प्रमाणे अवतार मोटा कदवाळा थवानी) महावात पुं० तोफानी पवन महिला स्त्री० स्त्री (२) मदमत्त स्त्री महाविस्तर वि० मोटा विस्तारवाळ (३) प्रियंगुलता महावीर पुं० महा पराक्रमी योद्धो (२) महिष पुं० पाडो (२)महिषासुर Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महिषध्वज ३७२ मंगलपात्र महिषध्वज पुं० यम महोदधि पुं० महासागर महिषासुर पुं० दुर्गाए मारेलो एक राक्षस महोदय वि० अति समृद्ध ; भाग्यवान; महिषी स्त्री० भेस (२)पट्टराणी महायशस्वी(२)पुं० सद्भाग्य ; उन्नति; महिष्ठ वि० सौथी मोटुं (‘महत् ' नुं समृद्धि (३) मोक्ष (४) मालिक; श्रेष्ठतादर्शक रूप) स्वामी (५)महापुरुष मही स्त्री पृथ्वी (२)जमीन (३)राज्य महोद्यम वि० जुओ 'महोत्साह महीक्षित् पुं० राजा महोरग पुं० मोटो साप महीधर, महीध्र पुं० पर्वत महोरस्क वि० पहोळी छातीवाळू महीन (मही + इन) पुं० राजा महोमिन् पुं० महासागर महीनाथ, महीप, महीपति, महीपाल, महौध वि० मोटा प्रवाहवाळू (२)पुं० महीपुरंदर पुं० राजा एक घणी मोटी संख्या (एकडा उपर महीपृष्ठ न० धरातल ५२ मींडां) महीभुज पुं० राजा . महौजस् वि० अत्यंत तेजस्वी (२)घj महीभृत् पुं० पर्वत (२) राजा पराक्रमी (३)पुं० पराक्रमी योद्धो (४) महीमंडल न० पृथ्वीनो घेरावो(२)आखी न० महाबळ; पराक्रम पृथ्वी [मान के आदर पामवां) महौषध न० रामबाण दवा महीयते आ० (खुश थर्बु, समृद्ध थq; महौषधि स्त्री० चमत्कारी शक्तिवाळी महीयस् वि० ('महत् 'नुं तुलनात्मक वनस्पति (२) दूर्वा; दरो रूप)वधु मोटुं (कद, बळ के अगत्यमां) मंक १ आ० जq (२) शणगार : (२)पुं० महापुरुष मंकुक पुं० एक वाजिंत्र महीरह (-ह) पुं० वृक्ष; झाड मंक्षु अ० जलदी; शीघ्र (२) अति; महीसुर पुं० भूदेव ; ब्राह्मण । _अत्यंत (३) साचे ज; खरेखर महेच्छ वि० महाशय ; उदार चित्तवाळू मंग १ उ० जर्बु (२) शोभवं (२) महत्त्वाकांक्षी मंगल वि० शुभ; शुकनियाळ (२) महेश, महेशान पुं० शिव; महादेव भाग्यशाळी (३) न० शुकनियाळ होवू महेश्वर पुं० महाराजा (२)शिव (३) ते (४) सुख-समृद्धि ; सद्भाग्य ; हित; विष्णु (४) परमात्मा कल्याण (५) शुकन (६) शुकनियाळ महेश्वरसख पुं० कुबेर पदार्थ (७) मंगळ ग्रह महेषु पुं० मोटुं बाण मंगलकाल पुं० मांगलिक समय महेष्वास पुं० मोटो बाणावळी मंगलक्षौम न० शुभ प्रसंगे पहेरातुं महेंद्र पुं० इंद्र (२)एक पर्वत रेशमी वस्त्र महेंद्रमंत्रिन् पुं० बृहस्पति मंगलगृह न० पवित्र मकान के मंदिर महेंद्रवाह पुं० ऐरावत हाथी मंगलतर्य न० शुभ प्रसंगे वगाडातं ढोल महोक्ष पुं० मोटो आखलो के तूरी जेवं वाणित्र [पांदडु महोत्सव पुं० मोटो उत्सव के आनंदनो मंगलपत्र न० तावीज तरीके वपरातुं प्रसंग (२) कामदेव मंगलपाठक पुं० भाट; चारण... महोत्साह वि० उद्यमी; खंतीलु (२)पुं० मंगलपात्र न० शुभ प्रसंगे देवो समक्ष खंत; उद्यम (३)मोटुं अभिमान मुकातुं पाणी भरेलु पात्र । Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७३ मंगलप्रतिसर मंगलप्रतिसर पुं० पति जीवे त्यां सुधी परणेली स्त्री वडे गळामां पहेराती सेर के दोरो मंगलमात्रभषण वि० मंगलसूत्र, केसर- तिलक वगेरे मांगलिक आभूषणोथी ज गणगारायेलं मंगलवादिन वि० अभिनंदन के आशी दिनां वचनो बोलनारुं मंगलवषभ पुं० शुभ चिह्नोवाळो बळद मंगलसमालंभन न० मांगलिक वस्तु ओनो लेप (शुभ प्रसंगे स्नान वखते लगाडाय छे) मंगलसूत्र न० जुओ 'मंगलप्रतिसर' मंगलाचरण न० कोई पण कार्य के ग्रंथरचनानी निर्विघ्न समाप्ति माटे शरूआतमां कराती प्रार्थना (२) आशीर्वाद उच्चारवो ते मंगलालंकृत वि० मांगलिक शणगारोथी विभूषित एवं मंगलालंभन न० शुभ पदार्थनो स्पर्श मंगलाष्टक न० लग्न प्रसंगे वर-वधूने आशीर्वाद माटे बोलातो श्लोक मंगल्य वि० शुभ कल्याणकर (२) सुंदर; मनोरम (३)पवित्र; पावन मंगुल न० पाप; अनिष्ट मंच पुं० पलंग (२) मांचडो; व्यास पीठ (३) खेतरमां बांधेलो माळो मंचक न० पलंग (२) मांचडो मंज १ उ० मांजवं; साफ करवू मंजरि स्त्री० कंपळ; फणगो (२) फूलनो गुच्छो (३) फूलनी दांडी (४) मोती (५) लता मंजरिचामर न० मंजरीरूपी चामर मंजरी स्त्री० जओ ‘मंजरि' मंजरीचामर न० जुओ ‘मंजरिचामर' मंजिष्ठ वि० खुलता लाल रंगनुं मंजिष्ठा स्त्री० मजीठ मंजीर पुं०, न० नूपुर मंडलवट मंजु वि० सुंदर; रम्य ; मधुर मंजुगिर वि० मधुर अवाजवाळू मंजुल वि० सुंदर; रम्य (२) मधुर; मीठे मंजुवाच, मंजुवादिन् वि० मीठं के मधुर बोलनारं मंजुषा, मंजुषिका स्त्री० पेटी; पटारो मंजुस्वन, मंजुस्वर वि० मीठा के मधुर अवाजवाळं मंजूषा, मंजूषिका स्त्री० जुओ 'मंजुषा' मंड १५०,१० उ० शणगारवू (२) १ आ० पहेरवं; धारण कर मंड पुं०, न० प्रवाही उपर जामती तर (२)भात, ओसामण (३)दूधनी मलाई (४) दारूनो मद्यार्कवाळो भाग __ मंडक पुं० एक जातनो पातळो पूडलो मंडन वि० शणगारतुं (२) घरेणांनुं शोखीन (३) न० घरेणां पहेरवां ते (४) घरेणुं; आभूषण मंडनप्रिय वि० घरेणांनुं शोखीन मंडप पुं० मांडवो (२) तंबू (३) देव माटे ऊभुं करेलु मकान मंडपिका स्त्री० नानो मांडवो मंडल वि० गोळाकार के वर्तुलाकार एवं (२) पुं० साप (३) कूतरो (४) न० कुंडाळु; वर्तुल; चक्र; कोई पण वर्तुलाकार वस्तु (५) जादुगरे दोरेलु जादुई कुंडाळं (६) बिंब (सूर्य-चंद्रन) (७) सूर्य के चंद्रनी आसपासनुं कुंडाळू (८) गृह-नक्षत्रनी कक्षा (९) टोळं; समुदाय (१०) जिल्लो; प्रांत (११) राज्यनी पासेना के दुरना पडोशीओथी बनतुं कुंडाळं (१२) ऋग्वेदना १० खंडमांनो दरेक (१३) कुंडाळं थाय तेवी गति के चाल (१४) जुगारलो पट मंडलनाभि पुं० वर्तुळजें केंद्र मंडलयति प० (गोळ फरवू; कुंडाळू बनाव) वड मंडलवट पुं० कुंडाळं बने ते रीते जामेलो THHUFTETTE Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंत्रि मंडलायित ३७४ मंडलायित वि० गोळ कंडाळं बनतुं के मंत्रजिह पुं० अग्नि बनावतुं होय तेवू (२)न० गोळो ; दडो मंत्रज्ञ वि० वेदमंत्र जाणनाएं (२) सलाह मंडलात्ति स्त्री० गोळ चक्कर फरवू ते आपवामां कुशळ (३) पुं० सलाहकार मंडलिन् वि० कुंडाळं बनावतुं; कुंडाळं (४) विद्वान ब्राह्मण [सलाह वळतुं होय तेवू (२) प्रांत उपर राज्य मंत्रण न०, मंत्रणास्त्री० विचारणा (२) करतुं (३)पुं० साप (४)प्रांताधिकारी मंत्रदर्शिन, मंत्रदश वि० वेदमंत्रो जेने मंडली स्त्री० कुंडाळं (२)टोळी; समुदाय स्फुर्या होय तेवू (२) श्रोत्रिय ; वेद मंडलीक पुं० खंडियो राजा . जाणनारुं (३) सलाहकार मंडित ('मंड्' - भू००) वि० शणगारेलु मंत्रधर, मंत्रधारिन् पुं० सलाहकार मंडुक न० ढालनो हाथो मंत्रपूत वि० मंत्र वडे पवित्र करेलु मंडूक पुं० देडको मंत्रप्रचार पुं० मंत्रणा के सलाहनो मंडूककुल न० देडकांनो समुदाय शिरस्तो के क्रम मंडकयोग पुं० देडका पेठे निश्चल बेसी मंत्रप्रयोग पुं० मंत्रशक्तिनो उपयोग करातुं ध्यान मंत्रभेद पुं० गुप्त वात प्रगट करी देवी मंतव्य वि० विचारवा लायक (२) कल्पी ते (२) मंत्रणा जाहेर करी देवी ते शकाय तेवू (३) मान्य राखवा लायक मंत्रयुक्ति स्त्री० मंत्रप्रयोग करवो ते मंतु पुं० अपराध; दोष (२) मानवजात मंत्रवत् वि० मंत्र साथेनुं (२) दीक्षित (३) सलाह(४) स्त्री० बुद्धि;समजशक्ति मंत्रवादिन् पुं० वेदमंत्र पडनारो (२) मंत्र १० आ० (कोई वार प० पण) जादुगर; तांत्रिक मंत्रणा करवी; सलाह करवी; सलाह मंत्रशक्ति स्त्री० मंत्रतंत्रनी शक्ति लेवी (२) सलाह आपवी (३) मंत्र मंत्रश्रुति स्त्री० कोईनी गुप्त मंत्रणा बोलवा (४) बोलवू; वात करवी सांभळी लेवी ते गप्त राखवी ते मंत्र पुं०.वेदनुं स्तोत्र के तेनो शब्दसमूह मंत्रसंवरण न० कोई योजना के मंत्रणा (कोई देवने संबोधायेलो) (२) मंत्रसाधन न० मंत्र वडे वश करवं ते; वेदनो संहिताभाग ('ब्राह्मण' भागथी मंत्र- वडे साधवं के सिद्ध करवं ते जुदो) (३) गूढशक्तिवाळो शब्दसमूह (२) मंत्रतंत्रथी चमत्कारी शक्ति (४) मंत्रणा; विचारणा; सलाह (५) मेळववी ते गुप्त योजना; रहस्य (६) उपाय; युक्ति मंत्रसाध्य वि० मंत्रतंत्रथी वश कराय के मंत्रकर्कश वि० कठोर राजनीतिनी असर पहोंचाडाय तेवू (२) मंत्रणा तरफेण करतुं के विचारणाथी मळे ते, मंत्रकृत् पुं० वेद-मंत्रनो रचनारो (२) मंत्रसिद्ध वि० मंत्रतंत्रनी शक्ति प्राप्त मंत्र भणनारो (३) सलाहकार (४) करेलं; तेनाथी असरकारक बनेलं राजदूत; एलची मंत्रसिद्धि स्त्री० मंत्र सिद्ध करता ते मंत्रकृत वि० मंत्रोथी पवित्र करेलू (२) मंत्र साधवाथी मळती शक्ति मंत्रगंडक पुं० एक प्रकारनुं तावीज (२) मंत्राधिराज पुं० मंत्रोनो अधिनायक ज्ञान; विद्या [ओरडो (वेताल) [प्रयत्न करवो ते मंत्रगृह न० (राजानो)मंत्रणा माटेनो मंत्राराधन न० मंत्रना बळे मेळववा मंत्रग्रह पुं० मंत्रीओनी सलाह लेवी ते मंत्रि पुं० जुओ ‘मंत्रिन्' Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंत्रित ३७५ मंदुरापाल मंत्रित ('मंत्र' न भू० कृ०) वि० सलाह मंदच्छाय वि० झांखं; कांति विनानुं लीधेलु (२) सलाह आपेलु (३) कहेलं मंदता स्त्री०, मंदत्व न० धीमापणुं; (४) मंत्रलं (५) नक्की करेलु (६) सुस्ती (२) जडता (३) मूर्खता (४) न० सलाह नबळापणुं (५) नानापर्यु; ओछापणुं मंत्रिता स्त्री०, मंत्रित्व न० मंत्रीपण मंदधी वि० मंद बुद्धिवाळू; मूर्ख मंत्रिधुर वि० मंत्रीपद वहन करे तेवू मंदपुण्य वि० कमनसीब; दुर्भागी मंत्रिन् वि० सलाह आपवामां कुशळ मंदप्रज्ञ, मंदबुद्धि वि० जुओ 'मंदधी' (२) मंत्रो जाणनाएं (३) पुं० मंत्री; मंदभागिन, मंदभाग्य, मंदभाज वि० सलाहकार (४)मंत्रप्रयोग जाणनारो अभागियु; दुर्भागी; दुखिया मंत्रिपति, मंत्रिप्रधान, मंत्रिप्रमुख, मंत्रि मंदभास् वि० झां [धीमेथी मुख्य मंत्रिवर, मंत्रिश्रेष्ठ पुं० मुख्य मंदम् अ० धीरे धीरे (२) हळवेथी; प्रधान; वडो प्रधान मंदमति, वि० जुओ ‘मंदधी' मंत्रोक्त वि० मंत्रमां के सूक्तमां कहेलं मंदमंदम् अ० धीमे धीमे मंथ् १, ९ प० जुओ ‘मथ' । मंदमेधस् वि० जुओ 'मंदधी' मंथ पुं० वलोवq ते (२) नाश करवो मंदर वि० धीमुं; जड (२) गाढुं (३) ते (३) रवैयो (४) एक मिश्र पीj मोटा कदवाळु (४) पुं० एक पर्वत मंथन पुं० रवैयो (२) न० वलोववं ते (जेने समुद्रमंथन वखते रवैया तरीके (३) घसीने अग्नि उत्पन्न करवो ते वापर्यो हतो) मंथर वि० सुस्त; मंद; निष्क्रिय (२) मंदरम अ० धीमेथी मूर्ख (३) मोटुं; पहोळं (४) वांकुं मंदविभव वि० गरीब ; दरिद्री वळेलं (५) सूचक मंथरविवेक वि० विवेकशक्तिमां मंद मंदविसपिन् वि० धीमे धीमे सरकतुं मंथरा स्त्री० कैकेयीनी दासी मंदवीर्य वि० नबळं मंदाकिनी स्त्री० गंगा नदी (२) स्वर्गगंगा मंथाचल, मंथाद्रि पुं० मंदर पर्वत मंदाक्ष न० लाज ; शरम (रवैया तरीके समुद्रमंथन वखते मंदाग्नि वि० मंद पाचनशक्तिवाळू वापर्यो होवाथी) (२) पुं० मंद जठराग्नि मंथान पुं० रवैयो मंद वि० धीमुं; सुस्त (२) बेदरकार मंदायते आ० (धीमा चालवुढील करवी) (३) जड; मूर्ख (४) ऊंडु- पोलुं मंदार पुं० स्वर्गनां पांच वृक्षोमांनु. (अवाज) (५)धीमुं, हळवं (जेम के एक (२) न० एन फूल स्मित) (६) नानू; अल्प (जेम के मंदारमाला स्त्री० मंदार फूलोनी माळा पेट) (७) कमजोर (जेम के मंदाग्नि) मंदासु वि० मंद पडी गयेला प्राणवाळं; मंदक वि० मूर्ख (२) राग-द्वेष के मान मरवानी तैयारीमां होय तेवू अपमाननी लागणी विनानुं मंदिर न० निवासस्थान; घर (२) मंदकर्ण वि० ओछु सांभळतं महेल (३) देवमंदिर मंदकारिन् वि०धीमी गतिथी के मूर्खपणे मंदीक ८ उ० धीमुं करवू; ओछु करवू काम करतुं मंदीभू १५० धीमुं पडवू; ओछु थवू मंदचेतस् वि० जड बुद्धिनु (२)बेध्यान मंदुरा स्त्री० तबेलो [उपरी (३) लगभग मूर्छित एवं मंदुरापति, मंदुरापाल पुं० तबेलानो National Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंत्साह मंदोत्साह वि० उमंग विनानुं; उत्साह मंद पडी गयो होय तेवुं मंदौत्सुक्य वि० नामरजीवाळं; उत्सुतान रही होय ते मंदोदरी स्त्री० रावणनी पटराणी मंद्र वि० घेरुं; गंभीर (अवाज ) ( २ ) पुं० घेरो अवाज ( ३ ) एक जातनो हाथी (४) एक जातनुं ढोल मा २५०, ३, ४ आ० मापवुं (२) मर्यादित करवुं ( ३ ) तुलना करवी ( ४ ) समावुं; समावेश थवो (५) गोठववुं (६) अनुमान करवुं ( ७ ) रचवुं मा अ० नहि ; ना (२) रखे मा स्त्री० लक्ष्मी ( २ ) माता [ लगतुं माकर वि० (मकर अर्थात्) मगरमच्छने माकरंद वि० ( मकरंद अर्थात् ) फूलोना मधने लगतुं के तेनुं बनेलुं (२) मकरंदथी भरेलुं माकराकर पुं० महासागर ( मकर - मगरमच्छनी खाण के भंडार ) माकंद पुं० आंबो माक्षिक, माक्षीक वि० मधमाखने लगतुं (२) न० मध ( ३ ) एक उपधातु ( औषधिमा वपराय छे) मागध वि० मगध देश संबंधी ( २ ) पुं० मगधनो राजा (३) एक मिश्रजाति ( वैश्य पिता अने क्षत्रिय माताथी थयेला संतानो) (४) भाट; चारण मागधी स्त्री० मगधनी राजकुमारी ( २ ) मगधनी भाषा ( चार मुख्य प्राकृत भाषाओमांनी एक ) ( ३ ) साहित्यनी एक शैली माघ पुं० महा महिनो ( २ ) एक कवि ('शिशुपालवध' महाकाव्यनो कर्ता) माघमा स्त्री० करचली माघवत वि० इंद्र संबंधी; इंद्रनुं माघवतचाप न० मेघधनुष्य माघवन वि० इंद्र संबंधी के इंद्र वडे शासित एवं ३७६ मात्र माचिरम् अ० तरत; विलंब विना माणवक पुं० छोकरो; किशोर ( २ ) वामन; ठींगणो (३) भणतो विद्यार्थी (४) सोळ सेरनी मोतीनी माळा माणिक्य न० माणेक मातरिश्वन् पुं० वायु; पवन मातलि पुं० इंद्रनो सारथि मातलिसारथि पुं० इंद्र मातंग पुं० हाथी (२) चांडाळ (३) किरात (४) ते ते वर्गनी श्रेष्ठ व्यक्ति मातंगन, मातंगमकर पुं० हाथी जेवडो मोटो मगर मातंगी [स्त्री० पार्वती (२) चांडाळ स्त्री माता स्त्री० मा; जननी मातामह पुं० माना पिता मातामही स्त्री० मानी मा मातुल पुं० मामो मातुलिंग, मातुलुंग पुं० बिजोरानुं झाड मातुल्य न० मामानुं घर मातृ स्त्री० माता; मा ( २ ) लक्ष्मी (३) दुर्गा ( ४ ) गाय ( ५ ) पृथ्वी (६) ब० व० दिव्य माताओ (८, ७ के १६) मातृक वि० मा पासेथी मळेलुं (२) माता संबंधी ( ३ ) पुं० मामो मातृका स्त्री० माता ( २ ) दादी ( मानी मा) (३) धावमाता (४) मूळ; जन्मस्थान ( ५ ) चमत्कारी शक्तिवाळी मनाती आकृतिओ के वर्णोमांथी दरेक मातृगंधिनी स्त्री० कुमाता ; दुष्ट माता मातृदेव वि० माताने देव गणतं मातृबंधु पुं० माना पक्षनो सगो मातृमंडल न० दिव्य माताओनुं मंडळ मातृष्वसृ स्त्री० माशी; मानी बहेन मातृष्वसेय पुं० माशीनो दीकरो मात्र अ० ' - ना जेवडं'; '-ना कदनुं - मापनुं ' (२ ) - सुधी पहोंचतु' (आ अर्थमा एने समासमा थतुं 'मात्रा' शब्द रूप पण गणी शकाय ) Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मात्र ३७७ माननीय मात्र न० (लंबाई-पहोळाई-ऊंचाई- माधुकर वि० मधुकर - मधमाख संबंधी कद-अंतर-संख्या वगेरेनु) माप के तेना जेवू (उदा० 'माधुकरी वृत्तिः') (उदा० 'अंगुलिमात्रम्', 'क्षणमात्रम्') माधुकरी स्त्री० घेर घेरथी थोडं लईने (२) (कोई पण बाबतनुं) समस्तपणुं भिक्षा भेगी करवी ते (जेम मधमाख के आखो वर्ग (उदा० 'जीवमात्रम्') अनेक फूलोमांथी मध एकळं करे छे) (३) (कोई पण बाबतमां)ए एक ज; (२) पांच घेरथी मांगेली भिक्षा बीजं वधु नहि ते (उदा० वाचा- माधुर न० मल्लिकालतानुं फूल मात्रेण) (४) (भूतकृदंत साथे) अमुक माधुरी स्त्री० मीठाश; मधुरता क्रिया थई के तरत ज, एवो अर्थ (२) शराब; मध बतावे छे (उदा० भुक्तमात्रे) माधुर्य न० मधुरता; मीठाश (२) मात्रा स्त्री० माप (२) धोरण; नियम आकर्षक सौंदर्य (३) (स्त्रीने तेना (३) मापनो एकम (४)अंश (५) अणु प्रियतम माटे होय तेवों) श्रीकृष्ण (६) छेक नहि जेवू ते (७) हिसाब; प्रत्ये प्रेमभाव गणतरी (८) मालमिलकत (९) माध्यम वि० वच्चेनुं, वचलुं; मध्यनुं काव्य के संगीतमा समयनी गणनानो माध्यस्थ, माध्यस्थ्य न० निष्पक्षता (२) एकम (१०) मूळ भौतिक तत्त्व (११) अपेक्षा न राखवी ते (३) झघडामां भौतिक सृष्टि (१२) नागरी वर्णोना पतावट माटे वच्चे पडवं ते मथाळे आवतुं - ' इ० चिह्न माध्वीक न० महुडांनो दारू (२) द्राक्षमात्राभस्त्रा स्त्री० पैसानी कोथळी नो दारू (३) द्राक्ष मात्रालाभ पुं० धनप्राप्ति मान् १ आ० [मीमांसते] विचार, मात्रास्पर्श पु० बाह्य भौतिक पदार्थोनो (२) १५० , १० उ० मान आप इंद्रिय साथेनो संयोग मान पुं० आदर, संमान (२) आत्ममात्सर्य न० अदेखाई (२) अणगमो संमान; आत्मविश्वास (३) घमंड; माथक पुं० नाश करनारो अभिमान; मोटाई (४) मान धवामाथुर वि० मथुरामां बनेलुं के मथुरानुं यानी लागणी (५) अदेखाईथी चडेलो मादक वि० मदमत्त करनारु (२) गुस्सो (स्त्रीने) (६) गुस्सो (७) हर्षित करनारुं [मारा सरखं न० माप; धोरण (८)प्रमाण ; साबिती मादक्ष,मादश (-श) वि० मारा जेवं; (९) सरखापर्यु माद्री स्त्री० पांडु राजानी बीजी राणी मानकलह, मानकलि पुं० अदेखाई(सहदेव-नकुलनी माता) भरेला गुस्साथी ऊभी थयेली तकरार माधव वि० मध जेवू- गळयु (२) मधD मानग्रहण न० रूठवू ते बनेलं (३) वसंत ऋतुने लगतुं (४) मानद वि० मान -- आदर करतुं (२) पुं० श्रीकृष्ण (५) वसंतऋतु (काम- गर्विष्ठ. (३) अभिमान तोडनाएं देवनो मित्र) (६) वैशाख महिनो मानदंड पुं० मापवानो गज (७) इंद्र (८) (ब० व०) यादवो मानधन वि० खूब मान मळयु होय माधविका स्त्री० एक लता के मळतुं होय तेवू माधवी स्त्री० मधमांथी बनावेलुं पेय मानन न०, मानना स्त्री० मान ; आदर; (२) वासंतीलता (सफेद सुगंधी फूल संमान (२) वध करवो ते थाय छे) (३) पृथ्वी (४) तुलसी माननीय वि० मान आपवा योग्य Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मानपर मानपर, मानभृत् वि० अति गर्विष्ठ मानमहत् वि० अति गर्विष्ठ मानव वि० मनुनुं अथवा तो मनुना वंश ( २ ) मनुष्य संबंधी (३) पुं० मनुष्य माणस ( ४ ) ब० व० प्रजाना माणसो (५) माणसजात मानवत् वि० अभिमानी; गर्विष्ठ मानवदेव पुं० राजा; नृपति मानवराक्षस पुं० माणसना रूपमा राक्षस-पिशाच ३७८ मानस वि० मनने लगतुं; मानसिक ( शारीरिकथी भिन्न ) (२) मनमांथी जन्मेलुं; संकल्पथी पेदा करेलुं (३) मानस सरोवर उपर रहेतुं (४) न० मन; हृदय; जीव (५) कैलास पर्वत उपरनुं पवित्र सरोवर मानसजन्मन् पुं० मदन कामदेव ( २ ) हंस ( मानस सरोवर तेमनुं वतन छे तेथी) [ मात्रा के कोटी मानसार पुं०, न० अभिमाननी मोटी मानसिक वि० मन संबंधी ( २ ) काल्पनिक ( ३ ) मनमा आचरेलुं (पाप) मानसूत्र न० सोनानो के रूपानो कंदोरो (२) मापवानो गज [ रहेतो) मानसोकस पुं० हंस ( मानस सरोवरे मानसोत्क वि० मानस सरोवर तरफ जवा उत्सुक एवं [ नाश मानावभंग पुं० मान अथवा गुस्सानो मानांध वि० मान के अहंकारमां मत्त मानित वि० संमानेलुं; आदर करेलुं ( २ ) न० मान के आदर बताववां ते मानिता स्त्री०, मानित्व न० अभिमान (२) आदर; संमान मानिन् वि० मानतुं धारतुं; गणतुं ( समासने छेडे) (२) मान आपतुं ( समासने छेडे) (३) अभिमानी; स्वमानवाळु (४) संमाननीय; आदरणी (५) रूठेलं (६) पुं० सिंह मायामय मानिनी स्त्री० स्वमानी स्त्री ( २ ) ( मानभंग वाथी पति प्रत्ये रूठेली स्त्री) मानुष वि० मनुष्यनुं मनुष्य संबंधी (२) मायाळु माणसाईभर्यं ( ३ ) पुं० मनुष्य; माणस ( ४ ) न० मानवजात (५) मानव प्रयत्न (६) मनुष्यपणुं मानुषता स्त्री०, मानुषत्व न० माणसप (२) माणसात मानुषराक्षस पुं० जुओ 'मानवराक्षस' मानुषी स्त्री० मनुष्य स्त्री मानुष्य, मानुष्यक न० माणसपणुं (२) मनुष्यनुं शरीर (३) मानवजात ( ४ ) मनुष्यलोक ( ५ ) मनुष्योनो समूह मानोत्साह पुं० आत्मविश्वासथी उत्पन्न तुं जोस के पराक्रम मानोन्नति स्त्री० खूब सन्मान मान्मथ वि० मन्मथे - कामदेवे उत्पन्न करेलु; प्रेमने लग मान्य वि० मान आपवा योग्य माप, मापति पुं० विष्णु ( लक्ष्मीपति ) मापन न०, मापना स्त्री० मापवुं ते; मापणी ( २ ) बनाववुं - रचवुं ते माम वि० मारुं; मारा संबंधी ( २ ) प्रिय मित्र मामो (संबोधनमां) मामक वि० मारुं; मारा पक्षनुं ( २ ) स्वार्थी (३) पुं० मामो मामकीन वि० मारुं माय वि० मायाशक्ति धरावनाएं ( २ ) पुं० मायावी; जादुगर ( ३ ) पिशाच माया स्त्री० छळ; प्रपंच ( २ ) इंद्रजाळ (३) आभास ; भ्रम (४) अविद्याशक्ति, जेने कारणे आमिथ्या जगत देखाय छे (वेदांत ० ) (५) कुशळता मायाजल न० आभासरूप जळ मायाप्रयोग पुं० माया - छळकपट वापरवां ते (२) जादुई करामत करवी ते मायामय वि० माया, आभास के भ्रमरूप (२) मिथ्या (३) जादुई Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मायामग ३७९ मार्गायात मायामृग पुं० मायावी हरण मारी स्त्री० जुओ 'मारि' मायायोधिन् वि० माया के छळकपटथी मारीच पुं० एक राक्षस (जेणे मायावी लडनारुं वापरेला शब्दो मृगनुं रूप धरी सीताना हरणमां मदद मायावचन न० खोटा - छळकपटथी करी हती) (२) कश्यप ऋषि (३) मायाविन् वि० माया, छळकपट के न० पीपरनी वेलो, झुंड वापरनारं; तेमां कुशळ (२)मिथ्या; मारुत वि० मरुत् देवो संबंधी (२)पवन भ्रम के आभासरूप (३) पुं० जादुगर संबंधी; पवनवाळू (३) पुं० पवन मायिन् वि० जुओ 'मायाविन्' (२) (४) वायुदेव (५) प्राणवायु पुं० जादुगर (३) छळकपट करनारो मारुतसूनु पुं० हनुमान (२) भीम (४) शिव (५) ब्रह्मा (६) कामदेव मारतायन न० बारी (गोळ आकारनी) मायूर वि० मोरनुं; मोर संबंधी; मोर- मारुति पुं० हनुमान (२) भीम माथी उत्पन्न थयेलु (२) मोरना पीछांनुं मारुती स्त्री० वायव्य खुणो (२) मरुतो बनेलं (३) मोर जोडेलु (वाहन) (४) - देवोनी पुत्री मोरने प्रिय (५) न० मोरन टोळं मार्कट वि० मर्कट -मांकडा जेवं मायरक, मायरिक पुं० मोर पकडनारो मार्ग १ ५०, १० उ० शोध; खोळवं (२) मोरना पीछांनी वस्तुओ बना- (२) -नी पाछळ पडवू (३) मेळववा वनारो जीवनाएं प्रयत्न करवो (४) मागवू; याचवू मायोपजीविन् वि० माया- छळकपटथी (५) १० उ० जq (६) शणगारवू मार पुं० हिंसा; वध (२) विघ्न; मार्ग वि० मृग संबंधी; मृगनुं डखल (३) कामदेव (४) कामविकार मार्ग पुं० रस्तो (२)गोचर; क्षेत्र (३) (५)मृत्यु (६) शयतान जेवो ललचावीने (घानो) डाघ ; चिह्न (४) पद्धति; नाश करनार देव (बौद्ध०) रीत; शैली (५) रूढि (६) नृत्य, मारक वि० हणनारं; मारनाएं (समा- संगीत के अभिनयनी उच्च शैली (७) सने छेडे) (२) पुं० कामदेव (३) न० हरणोनुं टोळु महामारी (४) न० बधां प्राणीओनो मार्गण वि० शोधतुं; खोळतुं (२)पूछतुं प्रलयकाळे नाश (३) मागतुं (४)न० भीखवू के मागवू मारकत वि० मरकत मणिनुं ते (५) आजीजी करवी ते (६)तपास मारजित् पुं० शंकर (२) बुद्ध भगवान (७) पुं० भिखारी (८) बाण मारण न० वध ; हिंसा (२) शत्रुनो मार्गणा स्त्री० मागवू के याचq ते (२) नाश करवा मंत्रतंत्रनो प्रयोग करवो ते तपास करवी ते (३) शोधq ते मारव वि० मरुभूमि संबंधी मार्गतोरण न० रस्ता उपर ऊभी करेली मारात्मक वि० खूनी; हिंसक अभिनंदन माटेनी कमान के दरवाजो मारारि पुं० शिव (कामने बाळनार) मार्गदुम पुं० रस्तानी बाजुए ऊगेलं झाड मारांक वि० कामविकारनां लक्षणवाळू मार्गविनोदन न० मुसाफरीमां आनंदमारि स्त्री० महामारी; मरकी प्रमोदनुं साधन मागशर महिनो मारित वि० हणेलं (२) नष्ट करेलु मार्गशिर, मार्गशिरस, मार्गशीर्ष पुं० मारिष पुं० (सूत्रधार वडे मुख्य नटने मार्गस्थ वि० मुसाफरी करतुं, मार्गे चडेलं करात) मानवाचक संबोधन (नाट्य०) मार्गागत, मार्गायात पुं० मुसाफर Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्गारब्ध ३८० मांगल्य मार्गारब्ध वि० योग्य मार्गे आरंभेलं मालिन्य न० मलिनता;गंदकी (२)मेल; मागित ('मार्ग'- भू० कृ०)वि० शोधेलं; कलंक (३) दुःख ; वेदना खोळेलु (२) इच्छेलं मालूर पुं० बीलानुं झाड (२) कोठार्नु मागिन पुं० भोमियो (२) मार्ग शोध- झाड (३) न० बीलु नारो (३) रस्तो साचवनारो माल्य वि० माळा संबंधी (२) न० मार्जन वि० साफ करनाएं (२) न० माळा; हार (३) पुष्प (४) माथा साफ करवं ते (३) लछी काढवं ते उपर पहेरातो फूलनो तोरो (४)लेप लगडी साफ करवं ते (५) दाभ माल्यधारय वि० माळा धारण करनारं वडे पाणी छांटq ते [मृदंगध्वनि माल्यवत् वि० माळावाळं (२) पुं० मार्जना स्त्री० साफ करवू ते (२) एक पर्वत (३) एक राक्षस (रावणनो मार्जनी स्त्री० सावरणी प्रधान अने मामो) मार्जार पुं० बिलाडो माल्यापण पुं० फूलन बजार मार्जारी स्त्री० बिलाडी मावर पुं० विष्णु (लक्ष्मीपति) माजित ('मा 'नुं भू० कृ०) वि० माष पुं० अडद (२) सोना- एक तोल लुछेलु; साफ करेलु (२)वाळेलं झूडेलु माषपेशम् अ० अडद भरडाता होय तेम (३) मांजेलं (४) धोयेलं मास् पुं० महिनो (पहेलां पांच रूप मातंड पुं० सूर्य नथी; द्वितीया बहुवचनथी 'मास'ने मातिक वि० माटी-; माटी- बनावेलु बदले विकल्पे मुकाय छे) (२) न० माटीन ढेफं। मास पुं०, न० महिनो मार्दव न० मृदुता; कोमळता मासानुमासिक वि० दर महिने आवतुं मादगिक पुं० एक वृक्ष (२) मृदंग मासावधिक वि० एक महिनो चाले तेवू वगाडनारो [मद्य; दारू (२) एक महिने थतुं के आवतुं मात्रैक वि० द्राक्षनुं बनेलं (२) न० मासाहार वि० महिने एक ज वार खातुं मार्मिक वि० मर्मज्ञ ; रहस्य जाणनाएं मासिक वि० महिना संबंधी (२) दर माल न० खेतर (२)ऊंची जमीन ; माळ । महिने थतुं, करातुं के अपातुं (३) एक मालति (-ती) स्त्री. सफेद सुगंधी महिनो चालतुं फूलनी एक वेल (२) तेनुं फूल (३) माहात्म्य न० मोटापणुं; मोटाई (२) कळी (४) चांदनी मोटु पद; महत्ता (३) देव के तीर्थनी मालय वि० मलय पर्वतमाथी आवतुं चमत्कारी शक्ति के ते वर्णवतो ग्रंथ (२)पुं० चंदन (३)न० चंदननो लेप माहिष वि० भेसन ; भेंस संबंधी । माला स्त्री० माळा; हार(२)पंक्ति; श्रेणी माहिष्मती स्त्री० एक नगरी (हैहयोनी मालाकर, मालाकार पुं० माळा बना- राजधानी) [बनेलं बनारो; माळी [(२) रंगनारो __ माहेय वि० पृथ्वी संबंधी (२) माटीनुं मालिक पुं० माळा बनावनारो; माळी माहेश्वर वि० शिव- (२) शिवपूजक मालिन् वि० माळा पहेरी होय तेवं माहेंद्र वि० इंद्र संबंधी (२)पूर्व दिशानुं (२) घेरायेलं; वीटळायेलं (समासने मांगलिक वि० शुभ ; शुकनियाळ; छेडे) (३) पुं० माळी भाग्योदय करनारु (२) भाग्यवंत । मालिनी स्त्री० माळण मांगल्य वि० शुभ; कल्याणसूचक (२) Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मांगल्यमृदंग ३८१ मिलत् न० मांगलिकता; सद्भाग्य (३). मित्रनुं कार्य (२)मित्र तरीकेतुं कृत्य ; आशीर्वाद (४) उत्सव (५) तावीज मित्रताभयुं कृत्य मांगल्यमृदंग पुं० शुभ प्रसंगे वगाडातुं मित्रता स्त्री०, मित्रत्व न० दोस्ती नगारुं [मजीठथी रंगेहूं मित्रविंद पुं० अग्नि मांजिष्ठ वि० मजीठ जेवं रातुं (२) मित्रसाह वि० मित्र प्रत्ये उदार मांजिष्ठिक वि० मजीठथी रंगेल मिथस् अ० अरसपरस; एकबीजाने मांडलिक वि० प्रांत संबंधी (२) पुं० (२) खानगीमा (३) वाराफरती प्रांतनो सूबो (३) त्रणथी दस लाखनी मिथिला स्त्री० विदेह देशनी राजधानी आवकवाळो राजा मिथुन वि० जोडकारूप (२)न०जोडकुं मांत्रिक पुं० मंत्रतंत्र जाणनारो मिथुनेचर पुं० चक्रवाक | मांथर्य न० धीमापणुं सुस्ती (२)नबळाई मिथ्या अ० खोटी रीते; छळकपटथी; मांदुरिक पुं० घोडानी मावजत करनारो अयथार्थपणे (२) ऊलटुं (३)नकामुं; मांद्य न० धीमापणुं; सुस्ती (२) मूर्खता; निष्प्रयोजन [करनारु जडता (३) नबळाई; बीमारी मिथ्याकारुणिक वि० करुणाळतानो ढोंग मिथ्याक्रय पुं० खोटी किंमत मांद्यव्याज पुं० मांदगीनो ढोंग । मिथ्याचार वि० दांभिक; मिथ्याचारी मांस न० मांस (पहेलां पांच रूप नथी; (२)पुं० दांभिक के अघटित व्यवहार बाकीनां रूप 'मांस'नी बीजी विभक्ति बहुवचनथी विकल्पे मुकाय छे) मिथ्याजल्पित न० खोटी अफवा मांस न० प्राणीना शरीरनो स्नायु मिथ्यादृष्टि स्त्री० खोटा सिद्धांतने वळगवू ते; नास्तिकता रूप भाग (२) फळनो गर मिथ्यापवाद पुं० खोटुं आळ मांसक्षय पुं० शरीर (मांसनुं धाम) मिथ्यापंडित पुं० मात्र देखावमां ज मांसल वि० मांसवाळू (२)भरावदार; पंडित के विद्वान एवं [करनारं जाडु (३) ऊंडु (ध्वनि) (४) कदमां मिथ्याप्रतिज्ञ वि० प्रतिज्ञानो भंग के जथामां वधेलु (५) गाढुं मिथ्याफल न० काल्पनिक लाभ के फायदो मांसलता स्त्री० करचली (चामडीनी) मिथ्याभिशंसन न० खोटं आळ मांसाद वि० मांसाहारी मिथ्यावादिन् वि० जूठं बोलनारुं मांसौदन पुं० भात मिश्रित मांस (२) मिथ्यावृत्त वि० दुराचारी .. मांस, भोजन मिथ्याव्यापार पुं० बीजानां काममा मित ('मा' - भू० कृ०)वि० मापेलु(२) नाहक घालमेल करनारो सीमा आंकेलं (३) थोडं; मर्यादित मिथ्योपचार पुं० दंभथी बतावेली मितद्रु पुं० समुद्र मायाळता; दंभथी करेली सेवा मितभाषिन, मितवाच वि० मर्यादित मिमा वि० नाहवानी के डूबकुं मारबोलनारुं [रांधनाएं) वानी इच्छावाळं मितंपच वि० कंजूस ; कृपण (बहु थोडं मिल ६ उ० मळवू ; जोडावू; साथे थवं; मिताक्षर वि० गुंकुं (२) पद्यमां रचेलं भेगा थq (२) बनवू; थर्बु (३) भेटवू मिताहार वि० मर्यादासर खानाएं (४) मळता थर्बु (अभिप्राय साथे) मित्र पुं० सूर्य (२) न० दोस्त (५) मेळ खावो बिनतुं मित्रकर्मन, मित्रकार्य, मित्रकृत्य न० मिलत् वि० मळतुं; जोडातुं (२)यतुं; Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिलव्याष ३८२ मुक्तापटल मिलव्याष वि. शिकारीओथी घेरा- मोलन न० आंख मींचवी ते (२) बिडावं येलं; शिकारीओ एकठा थया होय तेवं ते (फूलन) [मींचायल(२)बिडायेखें मिलन न० मळवू - एकठा थq ते मीलित ('मील ' नुं भू० कृ०) वि० मिलित ('मिल्' नुं भू० कृ०) वि० मुकुट न० मुगट ; ताज (२)शिखर; टोच मळेलु; एकळु थ३ (२) जोडायेलं मुकुर पुं० अरीसो (२) कळी . (३) भेगुं करेलु; मिश्रित मुकुल पुं०, न० फूलनी कळी (२) मिलिंद पुं० भमरो; नर मधमाख कळीना आकार- जे कंई ते । मिलीमिलिन् पुं० शिव मुकुलयति पुं० (बंध करावq के करवू) मिथ् १० उ० मिश्रण करवु (२) उमेरवू मुकुलित वि० कळीओ बेठी होय तेवू मिश्र वि० मिश्रित; भेगु थयेलु के करेलु (२) अधू मींचायेलु (३)बिडायेलं; बंध (२)संबंधी;जोडायेलु (३)अनेकविध मुकुंद पुं० विष्णु के श्रीकृष्ण (मुकु(४) पुं० आदरणीय पुरुष (मोटा मोक्ष आपनार) पुरुषो तथा विद्वानोना नाम पछी मुकुंदा स्त्री० एक जात- मृदंग सामान्यपणे लगाडाय छे) मुक्त ('मुच् ' न भू० कृ०) वि० ढीलं मिश्रण न० मिश्र करवं ते (२)सरवाळो करेलु (२) छूटुं करेल; छोडी मूकेलं मिश्रित (मित्र मुं० भू० कृ०)वि० मिश्र (३)तजी दीधेल; काढी नाखेल ; फेंकी करेलु; भेळवेलु (२) उमेरेलु दीधेलं (४)नीचे पडी गयेलं (५)नमी मिष ६५० आंखनो पलकारो मारवो पडेलं; ढीलु थई गयेलुं (६) मोक्ष (२)असहायपणे जोई रहेवू (३)स्पर्धा के उद्धार पामेलुं (७) खीलेलं (८) करवी (४)१ प० छांटवू; भीनुं करवू प्रवर्तावेलुं (९) पुं० जीवन्मुक्त मिष पुं० स्पर्धा (२)न० बहानं (३)छळ मुक्तक न० एक अस्त्र (२)पूर्ण अर्थमिष्ट वि० मीठं; गळयु (२)मिष्टान्न वाळो स्वतंत्र श्लोक मिष्टान्न न० स्वादिष्ट वानी; मीठाई मुक्तकर वि० उदार; दानेशरी मिहिका स्त्री० हिम ; झाकळ (२) कपूर मुक्तकंठम् अ० ऊंचा सादे; मोटा अवाजे मिहिकारुच् पुं० चंद्र (श्वेत किरणवाळो) मुक्तबंधन वि० बंधनमाथी छूटुं थयेलु मिहिर पुं० सूर्य के करेलु मी ४ आ० मर; नाश पामवं मुक्तलज्ज वि० बेशरम मीन पुं० माछलु (२) मत्स्यावतार । मुक्तशिव वि० युवान; पुख्त मीमांसक पुं० मीमांसा-तपास-विचा- मुक्तसंग वि० राग के आसक्ति रहित रणा करनार (२) पूर्वमीमांसा मतनो मुक्तहस्त वि० जुओ 'मुक्तकर' अनुयायी [(२)पूर्वमीमांसा दर्शन मुक्ता स्त्री० मोती मीमांसा स्त्री० ऊंडी विचारणा; तपास मुक्ताकलाप पुं० मोतीनी माळा मीमांसामांसलप्रज्ञ पुं० मीमांसा दर्शनना मुक्ताकारता स्त्री० मोती जेवो आकार सेवनथी जेनी बुद्धि जाडी थई गई छे ते के देखाव होवो ते मील १५० मींचq (आंख)(२)मींचावू; मुक्तागार न० मोतीनी छीप -बंध थq (आंख के फूल) (३) ऊडी मुक्तागुण पुं० मोतीनो हार जवं; झांखं थq; नाश पाम, मुक्ताजाल न० मोतीनो कंदोरो -प्रेरक० बंध करवू मुक्तापटल न० मोतीनो जथ्थो Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Lilin मुक्ताफल ३८३ मुक्ताफल न० मोती मुखराग पुं० मों के चहेरानो रंग मुक्तामणि पुं० मोती मुखरित वि० अवाजवाळू करेलु के थयेलु मुक्तामणिसर पुं० मोतीनो हार मुखरीकृ ८ उ० अवाज के ध्वनिवाळू मुक्तावलि (-ली) स्त्री० मोतीनी माळा करवु (२) बोले तेम करवू मुक्तासन वि० आसन उपरथी ऊभुं थतुं मुखलेप पुं० मदंगना मों पर काळो (२)न० योगर्नु एक आसन; सिद्धासन लेप चडाववो ते मुक्ताहार पुं० मोतीनो हार मुखवास पुं० श्वासने सुगंधीदार करे मुक्ति स्त्री० मुक्त थq- छूटवू ते (२) तेवी सुगंध संसारमाथी छूटq ते; मोक्ष (३)तजवू मुखव्यावान न० बगासु खावं ते ते (४) छोडवू के फेंकवू ते (५) ऋण मुखशेष पुं० राहु ग्रह भरपाई करवू ते [सिवाय मुखस्राव पुं० लाळ मुक्त्वा अ० तजीने (२)बाद राखीने; मुखहास पुं० मुखर्नु हास्य के प्रसन्नता मुख न० मों (२) चहेरो (३) अग्रभाग मुखासव पुं० अधररस (४)अणी; धार(४)टोचईं; दींटडी मुख्य वि० मोंने लगतुं (२) प्रमुख; (५) दिशा (६)खुल्लो भाग (७) नदी आगेवान (३) पुं० मुखी; आगेवान समुद्रने ज्यां मळे ते भाग (८)बार[(९) मुख्यतः, मुख्यशः अ० मुख्यत्वे करीने आरंभ ; शरूआत (१०) उपोद्घात मुग्ध वि० मूर्छित; बेभान (२)मूंझायेलु; (११) (समासने अंते) मुख्य - अग्रेसर मूढ (३) मूर्ख; अज्ञ (४) भोळं मुखग्रहण न० मुख चूमवू ते (५)कामविकारथी अणजाण; निर्दोष; मुखचंद्र पुं० चंद्र जेवू मुख [चूर्ण बाळक जेवू(६) सुंदर; मनोहर (७) मुखचूर्ण न० मों उपर लगाडवानुं सुगंधी नवं- शरूआतनं (चंद्र) मुखतस् अ० मुखथी; मोढाथी मुग्धत्व न० भोळपण; निर्दोषता (२) मुखदोष पुं० जीभ के अवाजनो अपराध सुंदरता; मनोहरता मुखपट पुं० मों उपरनो बुरखो मुग्धवश वि० सुंदर आंखोवाळं मुखपिंड पुं० (अन्ननो) कोळियो मुग्धधी, मुग्धमति वि० मूर्ख; भोळं मुखप्रसाधन न० मों शणगारवं ते मुग्धविलोकित न० सुंदर कटाक्ष मुखभंग पुं० मों पर तमाच के प्रहार मुग्धस्वभाव पुं० भोळपण; निर्दोषता (२) मोनो चाळो मुग्धा स्त्री० भोळी जुवान छोकरी मुखभंगी स्त्री० मोंनो चाळो मुग्धाक्षी स्त्री० मनोहर आंखोवाळी स्त्री मुखमधु वि० मोंढे मीठु बोलनारुं मुग्धालोक वि० देखवामां मनोहर एवं मुखमारुत पुं० श्वास मुच १ आ० [मोचते] छतरवु (२) मुखमुद्रा स्त्री० चूपकीदी; चुप रहेवं ते ६ उ० [मुंचति- ते] छूटुं करवू; मुक्त मुखर वि० वाचाळ; वातोडियुं (२) करवू; जवा देवू; ढीलुं मूकवू (३) चालु अवाज करतुं (३) गाजतुं खुल्लुं करवू; काढq (अवाज) (४) (समासने छेडे) (४) प्रगट करतुं; तजवं; छोडी देवु (५) बक्षq दर्शावतुं (५) पुं० आगेवान -प्रेरक० छोडावq; छूटुं करावq मुखरयति प० (गाजे तेम करवं; बोले (२)मुक्त करवू; उद्धारवु (३)बक्षQ तेम करवू; जाहेर करवू) (४) छुटुं करवू (धूसरीमाथी) Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुषक करवं ते ३८४ मुच् वि० (समासने छेडे) छूटुं करतुं मुनि पुं० ऋषि ; तपस्वी (२)व्यास (३) (२) मोकलतुं ; फेंकतुं; काढतुं; तजतुं अगस्त्य (४) पाणिनि (५) बुद्ध मुचुलिद पुं० एक जातनुं मोटुं संतरं मुनिभेषज न० हरडे (२) उपवास मुद् १५०, १० उ० कचरवु (२)मारवं मुनिवृत्ति स्त्री० तपस्वीनुं जीवन जीवq (३)ठपको आपवो (६५० पण)(४) ते; वानप्रस्थाश्रम वित १० उ० भेळवq (५) साफ करवू मुनिव्रत न० मौन रहेवानुं तपस्वीओनुं (६)१ आ० आनंद पामवो; हर्षित थQ मुमुक्षा स्त्री० मोक्षनी इच्छा मुद्, मुदा स्त्री० हर्ष; आनंद (२)तृप्ति मुमुक्षु वि० मोक्षनी इच्छावाळु (२) मुदित ('मुद्' मुं० भू० कृ०)वि० हर्षित; तजवा, छोडवा के फेंकवानी इच्छावाळं आनंदित (२) न० आनंद; हर्ष (३) पुं० मोक्षनी इच्छावाळो मुदिर पुं० मेघ; वादळ मुमूर्षा स्त्री० मरवानी इच्छा मुद्ग पुं० मग (२) मुद्गर; गदा । मुमूर्षु वि० मरवानी अणीए होय तेवू मुद्गर पुं० हथोडो (२) एक जातनी गदा मुर पुं० श्रीकृष्णे मारेलो एक राक्षस मुद्गरक पुं० हथोडो; पण । मुरज पुं० ढोल; मृदंग मुद्र वि० आनंददायक मुरजित् पुं० मुरारि; श्रीकृष्ण मुद्रण न० मुद्रा- महोर मारवी ते (२) मुरला स्त्री० केरल देशनी एक नदी छाप मारवी- छापवं ते (३) बंध मुरली स्त्री० वांसळी मुरलीधर पुं० श्रीकृष्ण मुद्रयति प० (छाप मारवी, महोर मारवी; मुरवरिन् पुं० मुरारि; श्रीकृष्ण बंध करी देवं) मुरारि पुं० श्रीकृष्ण (मुर राक्षसने मुद्रा स्त्री० सील के महोर; तेने माटेनी मारनार) वींटी (२) छाप; चिह्न; निशानी मुर्छ १५० मूर्छा पामवी (२)वधq तीव्र (३) परवानो (४) चलणी सिक्को थएँ; गाढ थर्बु (३)-नी उपर असर (५) चांद; पदक (६) बंध करवू करवी (४)-नी सामे शक्ति होवी के वासी देवू ते (७) पूजा वखते __-प्रेरक० मूर्छित करवू (२) तीव्र आंगळीओ वाळीने कराती आकृति करवू; वधार, (३) मोटो अवाज (८) विशिष्ट रेखाओथी कराती काढवो-वगाडq (वाजिंत्र) आकृति (९) जळपरी मुर्मुर पुं० ढूंणसां - फोतरांनो अग्नि मुद्रास्थान न० ज्यां मुद्रा (माटेनी वींटी) मुशल न० दंडो पहेराय छे ते स्थान (आंगळीवें) मुष ९५० चोरवू; लूटवू; लई लेवू (२) मुद्रांकित वि० महोर मारी होय तेवू अपहरण करवू (३) दूर करवू (४)बरमद्रिका स्त्री० नानी महोर के मुद्रा (२) बाद करवू (५) ग्रस्त करवू; ढांकी देवू मुद्रा माटेनी वींटी (३) छाप (४) (६) मोहित कर (७) पाछळ पाडी चलणी सिक्को देवं (८) छेतर (९) १ प० मारQ मुद्रित वि० छाप मारेलु; महोर करेलु (१०)४ प० चोरवू (११) भागी नाखवू (२)बंध करेलु (३) अणखील्यु मुष वि० चोरतुं (२) दूर करतं (३) मुधा अं० व्यर्थ ; फोगट ; नाहक (२) पाछळ पाडी देतुं खोटी रीते; मिथ्या मुषक पुं० उंदर Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुषल मुबल पुं० सांबेलु मुषलिन् पुं० बळराम मुषित ( ' मुष्' नुं भू० कृ० ) वि० चोरायेलु, लूटी जवायेलुं; उपाडी जवायेलुं ( २ ) -थी रहित करायेलुं (३) छतरायेल मुषितक न० चोरायेली मिलकत मुषितत्रप वि० बेशरम; शरम विनानुं मुष्ट ('मुष्' नुं० भू० कृ० ) वि० चोरायेलु (२) आकर्षायेलुं मुष्टि पुं०, स्त्री० मुक्की; मूठी ( २ ) मूठी भरीने थाय ते माप ( ३ ) हाथो मुष्टिकाः पुं० ब० व० एक बहिष्कृत जातिना लोक ( डोंब ) मुष्टियुद्ध न० मुक्काबाजी मुष्टिवध पुं० पाक बरबाद थवो ते मुष्टी मुष्टि अ० सामसामा मुक्का मारीने मुसल पुं०, न० सांबेलुं (२) गदा (३) घंटनुं लोलक मुसलायुध पुं० बळराम मुस्त पुं०, न०, मुस्ता स्त्री० एक जातनुं घास - मोथ मुह ४ प ० मूर्छा पामवी; बेभान थवं (२) मूंझाई जवं (३) मूढ बनवुं (४) भूल करवी मुहुर्मुहुः अ० फरी फरीने; वारंवार मुहुस् अ० वारंवार; पुनः पुनः (२) क्षणभर; घडीभर ( ३ ) वाक्यमां जुदा जुदा खंडमां वपराय त्यारे - 'एकवार (आम) तो बीजी वार (आम) ' - एवो अर्थ बतावे छे मुहूर्त पुं० न० क्षण; पळ (२) ४८ मिनिट जेटलो समय ( ३ ) समय ( शुभ के अशुभ) [ वगेरे बनावाय छे) मुंज पुं० एक घास (जेनी जनोई, दोरी मुंडु १ प० मूंडवुं (२) कचरवुं मुंड वि० बोडेल; मूंडेल (२) टोचनां पांदडां तोडी नाखेलुं (३) बूठं; अणी 1 ३८५ मूर्च्छना वगरनुं ( ४ ) पुं० बोडेला माथावाळो माणस (५) उपरनी डाळो विनानुं वृक्षनुं थड (६) न० माथु मुंडन न० माथु बोडाववुं ते मुंडमंडली स्त्री० बोडेलां वाळाओनुं टोळं (२) सैनिक तेवाओनुं खाली टोळु मुंडित वि० बोडेल मुंडेल मुंडिन् वि० हजामत करेलु; बोडेल मूक वि० मूंगुं ; चूप ( २ ) दीन (३) पुं० (४) मूकांडज वि० चूप पंखी ओवाळूं (वन) मूढ ( ' मुह ' नुं भू० कृ० ) वि० मूंझाई लुं ( २ ) शुं करवुं न करवुं ते न समजा होय ते विवेकरहित (३) मूर्ख; अज्ञ ( ४ ) भ्रमित ; भूलमां पडेलुं (५) पुं० मूर्ख के अज्ञ माणस (६) न० मननी मूढता, विवेकरहितता मूढग्राह पुं० गेरसमज ; खोटी समज मूढचेतन (-स्), मूढधी वि० मूर्ख; अज्ञ मूढप्रभु पुं० मूर्ख शिरोमणि मूढवात वि० तोफाननां सपडायेलुं मूत्र न० पेशाब मूत्रयति प ० ( पेशाब करवो ) मूर्ख वि० बेवकूफ (२) जड बुद्धिनुं (३) पुं० जड, बेवकूफ माणस मूर्खपंडित पुं० भणेलो मूर्ख मूर्खमंडल न० मूर्खाओनी मंडळी मूर्च्छ १ प० वध वृद्धिंगत थवं मूर्च्छन वि० मूर्छा लावनाएं (२) "वधारनाएं ( ३ ) न ० मूर्च्छित थवं ते (४) वृद्धि ( ५ ) पारा वगेरेने मारवानी प्रक्रिया माथां - नहि मूर्च्छना स्त्री० मूर्च्छा ( अर्थ १, २) (२) सात स्वरोनो क्रमसर आरोह अवरोह - थाट ( ३ ) रागप्रतिपादक - वादी स्वरने तेनी जोडेना स्वर सुधी लई जवो ते; तेने कंपाववो ते (संगीत०) Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूच्छा ३८६ मूषिकोत्कर मूर्छा स्त्री० बेशुद्धि; बेभान दशा (२) (५) पायो; मूळ स्थान (६) कोई पण पारा वगेरेने मारवानी प्रक्रिया (३) वस्तुनुं तळियु के तळियानो भाग (७) मूर्च्छना (अर्थ २, ३) पूंजी; मुडी (८) राजानोपोतानो प्रदेश मूपिगम पुं० मूर्छा दूर थवी ते. (९) मूळ कारण (१०) वर्गमूळ मच्छित ('मर्छ'- भू० कृ.)वि० मूर्छा (गणित०) (११) मूळ ग्रंथ के वाक्य पामेलं; बेशुद्ध (२) मूर्ख;अज्ञ (३)वधी (जेना पर टीका के भाष्य लखाय) गयेलं (४) मूंझायेलं मूलक वि० -मांथी नीकळतं; -ने मूर्छ १ प० जुओ 'मूर्छ' आधारे रहेलु (समासने अंते) मर्त वि० बेभान (२) मुर्ख (३) मूर्ति- मूलकारण न० मुख्य के मूळ कारण मान ; शरीरधारी (४) भौतिक ; स्थूल मूलधातिन् वि० समूळ नाश करनारं मति स्त्री० आकृति ; देह (२)अवतार; मलच्छिन्न वि० मूळ के शरूआतमांथी मूर्तिमान स्वरूप (३) (देव-देवीनी) "ज कापी नाखेलं के कपाई गयेलं प्रतिमा (४) शरीरनो अवयव मूलज वि० वृक्षोनां मूळ आगळ थयेलं मूर्तिधर वि० मूर्तिमान; देहधारी (जेम के राफडो) (२) मूल नक्षत्रमा मतिमत् वि० भौतिक; स्थूल (२) जन्मेलं शरीरधारी; मूर्तिमंत मूलद्रव्य, मूलधन न० मुद्दल ; मूडी मूर्तिसंचर वि० जुओ 'मूर्तिधर' मूलपुरुष पुं० वंशनो मूळपुरुष मूर्धग वि० माथा उपर बेठेलु मूलप्रकृति स्त्री० प्रकृति; जगतनुं आदि मज पुं० माथाना वाळ; केश (२) कारण (सांख्य०) माथा उपरनो टोप मूलप्रतीकार पुं० मालमिलकत अने मूर्धन् पुं० माथु; मस्तकं (२) ऊंचामां स्त्रीनी रक्षा करवी ते; धनदाररक्षा ऊंचो के आगळ पडतो भाग; टोच (३) मूलबल न० मुख्य अथवा वंशपरंपरा आगेवान (४) मोखरानो भाग चालतुं आवेलं लश्कर मूर्धन्य वि० माथामा रहेलु के माथा मूलभृत्य पुं० जूनो के वंशपरंपराथी उपर- (२)मुख्य (३) मूर्धस्थान संबंधी चालतो आवेलो नोकर के त्यांथी उच्चारातुं (ऋ, ऋ,,, ड्, मूलसाधन न० मुख्य साधन ; मुख्य उपाय द, ण, र् अने ष् -ए वर्णोनो वर्ग) मूलहर वि० निर्मूळ करनाएं; समूळ मूर्धाभिषिक्त वि० राज्याभिषेक करेलु नाश करनालं (२) मुख्य के खास (उदाहरण) मूलाधार न० दूंटी(२)गुदा अने उपस्थनी (३) पुं० अभिषिक्त राजा वच्चे आवेलुं चक्र (योग०) मूर्षात पुं० माथानी टोच मूलायतन न० मूळ निवासस्थान मा, मविका, मूर्वी स्त्री० मोरवेल (जेना मूलोच्छेद पुं० समूळ नाश तंतुनी धनुष्यनी पणछ के क्षत्रियनी मूल्य न० किमत (२) वेतन; रोजी जनोई बनावाय छे) (३) मूळ मूडी मूल न० मूळियु; जड (२) कोई पण मूष पुं० उंदर (२) मूस वस्तुनो नीचेनो भाग (३) कोई पण मूषक, मूषिक पुं० उंदर (२) चोर वस्तुनो छेडो (ज्यांथी ते बीजी साथे मूषिकोत्कर पुं० (उंदर वगेरेए) दर जोडाती होय) (४) शरूआत; प्रारंभ खोदतां करेलो माटीनो टेकरो Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूषी ३८७ मृणाली मूषी स्त्री० उंदरडी मृगलांछन पुं० चंद्र [रेखा म ६ आ० [म्रियते] (अमुक काळनां मगलेखा पुं० चंद्र उपरनी मृग आकारनी रूपोमां प० पण)मर; नाश पाम। मगव्य न० शिकार मृग ४ प०, १ आ० शोधq; खोळवं मृगशाव पुं० हरण- बच्चुं (२)शिकार करवा पाछळ पडq (३) मृगशीर्ष पुं० मागशर महिनो मेळववा प्रयत्न करवो (४) तपासवं मंगाक्षी स्त्री० हरण जेवां नेत्रोवाळी स्त्री (५) याचवू (६) वारंवार जवू-आवq मृगाजिन न० हरणनुं चामडुं मृग पुं० चोपगुं प्राणी; पशु (२)जंगली मृगाधिप, मृगाधिपति, मृगाधिराज पुं० प्राणी(३)हरण (४)चंद्र उपरतुं तेवा सिंह (जानवरोनो राजा) आकार- चिह्न (५) मागशर महिनो मृगाराति, मुगारि पुं० सिंह, मृगकानन न० घणां मगोवाळं वन मृगावित् (-) पुं० शिकारी मृगचर्या स्त्री० मृगनी पेठे जीवq ते मगांक पुं० चंद्र (वनमां रहे, इ०, एक तप) । मगांगना, मुगी स्त्री० मुगली; हरणी मृगचारिन् वि० मृगचर्या आचरतुं मगक्षण न० हरण जेवी आंख (भक्त); तपस्वी मृगक्षणा स्त्री० जुओ 'मृगाक्षी' मृगेंद्र पुं० सिंह मगजल न० मृगजळ मृगजीवन पुं० पारधी मृच्छकटिका (मृद् + शकटिका) स्त्री० माटीनी गाडी (रमकडु) मृगतृष्णा, मृगतृष्णका स्त्री० मृगजळ मुगदर स्त्री० मृग जेवी आंखोवाळी स्त्री मज् २१०,१० उ० साफ करवू; वाळी मृगधुव वि० मृगनो शिकार करवामां के लूछी काढवू (२) मसळवू; थाबडवू जाननो सट्टो खेलतुं; मृगयानुं रसियुं (३) पाणीथी धोवू; मांजवू मृगधर पुं० चंद्र मुजा स्त्री० साफ करवू, धोवू के मांजवू मृगनयना स्त्री० हरिणाक्षी स्त्री ते (२)शुद्धि [कपडांवाळू मृगनाभि पुं० कस्तूरी (२) कस्तूरी मृग मजावत् वि० चोख्खाईवाळु (२)सारां मृगपति पुं० सिंह मृड् ६, ९ प० माफ करवू (२) खुश मृगपोत, मगपोतक पुं० हरण- बच्चुं करवु (३) खुश थQ मृगप्रभु पुं० सिंह मृडा, मृडानि, मृडी स्त्री० पार्वती मृगमद पुं० कस्तूरी मृणाल पुं०, न० कमळ वगेरेनी नाळमां मगमंद्र पुं० हाथीओनी एक जात होतो तंतु (३) एक जातनां कमळोनुं मगया पुं० शिकारे नीकळवू ते तंतुवाळु मूळियु मंगयाधर्म पुं० शिकारना नियमो मृणालभंग पुं० कमळनां तंतुनो टुकडो मृगयु पुं० शिकारी; पारधी मणालसूत्र न० कमळ-नाळनो तंतु मृगराज पुं० सिंह (२) चंद्र मृणालिका स्त्री० कमळनो दांडो अथवा मृगराजधारिन् पुं० शिव । तंतु (२) कमळनी वेल के फूल मंगराजलक्ष्मन् वि० चंद्र जेना मस्तक मृणालिनी स्त्री० कमळनी वेल (२) पर छे तेवू (शिव) (२) 'सिंह'ना कमळनो समूह (३) कमळो घणां थतां नाम के चिह्नवाळ होय तेवं स्थान मृगरोचना स्त्री० गोरोचन मृणाली स्त्री० जुओ 'मृणालिका' Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मृण्मय ३८८ मेघाडंबर मृण्मय वि० माटी-; माटी, बनावेलु मद्ग वि० माटीमां ऊगतुं के थतुं मत ('म', भू० कृ०) वि० मरण मृदंगी स्त्री० नाजुक स्त्री पामेलं (२) मरण पामेला जेवू (३) मृद्वी, मृद्वीका स्त्री० द्राक्षनी वेल के मारेलु (पारो इ०) (४)न० मोत द्राक्षनुं झूमखं मृतक पुं०, न० मडएं (२) न० मरण- मृध न० लडाई; युद्ध सूतक [बेभान मन्मय वि० जुओ 'मृण्मय' मतकल्प वि० लगभग मरेला जेवू; मश ६ प० स्पर्श करवो (२) दबावQ मतनिर्यातक पुं० शबने स्मशानमां वहन (३) विचारणा करवी । करी जनार - डाघु मष १५० छांटq (२) १ उ० सहन मृतपा पुं० हलकी वर्णना लोक (जेओ करवू; वेठवू (३) छांटर्बु (४) मडदाने साचवे छे, उपाडे छे, तथा ४, १० उ० सहन करवू; वेठी लेवू (५) तेनां कपडां इ० ले छे) आववा देवू; परवानगी आपवी (६) मतसंजीवनी स्त्री० मरेलाने जीवतुं क्षमा आपवी (७) भूली जवं करवानी विद्या मृषा अ० फोगट ; नाहक (२) खोटेखोटुं मृत्तिका स्त्री० माटी मृषावाच स्त्री० कटाक्षमा बोलवू ते मृत्पिड पुं० माटीनुं ढे' मृषावाद पुं० असत्य कथन मंत्पिडबुद्धि वि० जड बुद्धिनुं मृषोद्य न० जूठं; जूठ मृत्यु पुं० मरण; मोत (२) यम मृष्ट ('मृज्' के 'मृश्' नुं भू० कृ०) मृत्युनाशन न० अमृत [मर्त्यलोक वि० साफ करेलं; स्वच्छ (२) मृत्युलोक पुं० यमलोक (२) पृथ्वी; खरडेलं; लेपेलं (३) स्पर्शल (४) मृत्युंजय पुं० शिव विचारेलु (५) भावे तेवू मृत्स्ना स्त्री० माटी मेखला स्त्री० कंदोरो (२) वीटनारी मद् ९ प० दबाववू;मसळवू (२) कचरवू; कोई पण वस्तु (३) ब्राह्मण, क्षत्रिय चूर्ण करी नाखवू(३)घस;-ने घसा, अने वैश्य ए त्रण वर्णो जे त्रण सेरनो (४) चडियाता थq (५)लूछी नाखवू कंदोरो पहेरे छे ते (४) पर्वतनो मद् स्त्री० माटी (२) ढेफु; रोड़ें नितंब भाग मृदंग पुं० बने बाजुएथी वगाडाय तेवू मेखलापद न० नितंब तबला जेवू वाद्य मेखलिन् पुं० ब्रह्मचारी (विद्यार्थी) सदंगकेतु पुं० युधिष्ठिर मेघ पुं० वादळ (रावणनो पुत्र) मृदित (मृद् 'नुं भू००)वि०दबायेखें; मेघनाद पुं० मेघगर्जना (२) इंद्रजित कचरायेलं (२) लूछी नाखेलं मेघराजि स्त्री० वादळोनी पंक्ति मदु वि० नरम; कोमळ; पोचुं मेघवाहन पुं० इंद्र (२) नबर्छ (३) मध्यम (४) धीमुं मेघश्याम वि० मेव जेवू श्याम (राम (५) अ० धीमेथी; मधुरताथी । अथवा कृष्ण) मदुगिर् वि० मृदु-धीमा अवाजवाळू मेघसंघात पुं० वादळ एकठां थवां ते मदुपूर्वम् अ० धीमेथी; कोमळताथी मेघस्तनित न० मेघगर्जना मृदुल वि० मृदु; कोमळ (२)न० पाणी मेघागम पुं० वर्षाऋतु मृदुसूर्य वि० सूर्य धीमेथी तपतो होय मेघाटोप पुं० गाढ वादळ तेवु (दिवस) मेघाडंबर पुं० वीजळीनो काटको Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघालोक ३८९ मोक्षण मेघालोक पुं० वादळ नजरे पडवां ते मेला स्त्री० संयोग (२)एकठा थq ते; मेघोदय पुं० वादळ ऊंचे आववां ते मंडळी; सभा (३)सुरमो (४) शाही मेचक वि० काळा रंगनुं (२) पुं० (५) गळी (६) एक मोटी संख्या काळो रंग(३)मोरना पीछामांनो चांदो मेव वि० पुष्कळ; घj मेचकित न० काळा रंगर्नु मेष पुं० घेटो (२) मेष राशि मेढ पुं० घेटो (२) महावत मेषपालक पुं० भरवाड मेढी स्त्री० थांभलो (पशु बांधवानो) मेषयूथ न० घेटांनुं टोळं मेढीभूत वि० मूळ केंद्र (जेनी आसपास मेह पुं० मूतर, ते (२) मूतर (३) बधुं फरे) मधुप्रमेह (४) घेटो; बकरो मेथि पुं० जुओ 'मेढी' मैत्र वि० मित्र; मित्र संबंधी (२) मेद पुं० चरबी मित्रे आपेल (३) मित्रताभयं (४) मेदस् न० मेदधातु (२)शरीरनी जाडाई मित्रदेव संबंधी (मुहूर्त)(५)पुं० मित्र मेदस्विन् वि. चरबीवाळू (२) जाडु; (६) उत्तम ब्राह्मण (७) न० मित्रता मजबूत [स्थळ; जगा मैत्रक न० मित्रता मेदिनी स्त्री० पृथ्वी (२) जमीन (३) मैत्रावरुण (-णि) पुं० वाल्मीकि (२) मेदुर वि० जाडु (२) स्निग्ध; सुंवाळू अगस्त्य (३) वसिष्ठ (३) गाढुं; छवायेलं; पूर्ण मैत्रेय वि० मित्रन; मित्र संबंधी मेरित वि० गाढुं थयेलु (२) चीकj मंत्र्य न० मित्रता; दोस्ती मेष पुं० यज्ञ (२) यज्ञमां होमवानुं पशु मैथिल पुं० मिथिलानो राजा - जनक (३) आहुति मैथिली स्त्री० सीता मेषज पुं० विष्णु मैथुन वि० लग्नथी जोडायेलु (२) न० मेषा स्त्री० बुद्धि (२) यादशक्ति लग्न (३) कामसंभोग मेधायिन् वि० बुद्धिमान; डाह्य (२) मैथुनीभाव पुं० कामसंभोग सारी स्मरणशक्तिवाळु (३) पुं० मैनाक पुं० एक पर्वत (हिमालयनो पुत्र; पंडित; विद्वान समुद्रनी मित्रताने कारणे तेनी पांखो मेध्य वि० यज्ञने योग्य (२) यज्ञ संबंधी कपाती बची गई छे) (३) पवित्र (४) बुद्धिमान मैरेय, मैरेयक पुं०, न० एक जातनुं मेनका स्त्री० स्वर्गनी एक अप्सरा (२) नशाकारक पेय (सुरा अने आसवर्नु हिमालयनी पत्नी मिश्रण) [चामडी मेना स्त्री० हिमालयनी पत्नी मोक न० प्राणीनी उतारी काढेली मेय वि० मापवा योग्य ; मापी शकाय मोक्तव्य वि० छुटं करवा योग्य (२) तेवू (२) ज्ञेय; जाणी शकाय तेवू त्यागवा योग्य (३) उपर फेंकवा योग्य मेरु पुं० एक काल्पनिक पर्वत (जेनी मोक्ष १ ५०, १० उ० मुक्त करवू; आसपास ग्रह-नक्षत्र फरे छे) (२) छूटुं करवू (२) फेंकवु (३)तजी देवू माळानो मुख्य मणको [ मेळावडो मोक्ष पुं० मुक्ति (२) बचाव (३) मेल, मेलक पुं० मिलाप (२)मेळो (३) नीचे गरी पडवू ते (४) छूटुं के मेलन न० मिलाप (२) जोडाण (३) ढीलुं करवू ते (५) फेंक के वेर ते मिश्रण (४) लडाई; सामनो मोक्षण न० मुक्त के छूटुं करवू ते Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोक्षद्वार ३९० माँजी (२) बचावq ते (३) ढीलं करवू ते मोहिनी स्त्री० समुद्रमंथन वखते विष्णुए (४) तजq ते (५) फेंकवु के वेरवु ते राक्षसोने मोहित करवा माटे लीधेलं मोक्षद्वार पुं० सूर्य सुंदर स्त्रीचं स्वरूप मोघ वि० व्यर्थ; निरर्थक (२) असफळ मौकलि, मौकुलि पुं० कागडो (३) हेतु-प्रयोजन विनानुं (४) तजी मौक्तिक न० मोती दीघेलु (५) आळसु मौक्तिकसर पुं० मोतीनो हार मोधकर्मन वि० व्यर्थ क्रियाविधिमां रत मौक्तिकावली स्त्री० मोतीनी सेर मोघम् अ० नाहक ; व्यर्थ मौखर्य न० वाचाळपणुं (२)गाळ ; निंदा मोघीकृ ८ उ० निष्फळ बनाव, मौल्य न० प्रधानपणुं; मुख्यपणुं मोचन लि०-मांथी मुक्त के छूटुं करनारं मौग्य न० अज्ञता; अणसमज (२) (२) न० मुक्त के छूटुं करवू ते । निर्दोषता; भोळपण (३) सुंदरता मोटन न० कचर, दळवू, दबाव, के मौढप न० मूढता; मूर्खता (२) मूर्जा मरडी नाखवू ते (२) पुं० पवन मौन न० चुपकीदी; चूप रहेवू ते (२) मोट्टायित न० गेरहाजर प्रियतमनो खील्या विनानी दशा उल्लेख थतां के तेनी याद आवतां मौनिन् वि० मौनव्रत पाळनारं स्त्रीथी अजाण्ये दर्शावातां भाव-चेष्टा (२) पुं० ऋषि; मुनि मोद पुं० हर्ष; आनंद; खुशी (२)सुगंध मौर्य न० मुर्खता [राजवंश मोदक वि० खुश करतुं; आनंद आपतुं मौर्य पुं० चंद्रगुप्तथी शरू थयेलो (२) प्रसन्न; खुशी (३) न० लाडु मौर्व वि० मूर्वा घास, बनावेलु मौर्वी स्त्री० धनुष्यनी पणछ (२) मूर्वा मोदककार पुं० कंदोई घासनो बनावेलो कंदोरो (क्षत्रियो मोदन वि० खुश करनारु (२) न० धारण करे छे) आनंद (३) खुश करवानी क्रिया मौल वि० मूळy; प्राचीन (२) मोष पुं० चोर; डाकु (२) चोरी; खानदान कुळन (३)वंशपरंपराथी ते लूट (३) चोरेली वस्तु पद उपर चालतुं आवेलुं (४) आर्थिक मोह पुं० मूर्छा; बेहोशी (२) मूंझवण (५) पुं० घरडो के वंशपरंपराथी (३) मूर्खता; मूढता (४) भूल . चाल्यो आवेलो प्रधान मोहकलिल न० मोहरूपी कीचड मौलि वि० मुख्य ; उत्तम (२) पुं० मोहन वि० मूढ बनावनाएं; मूझवणमां मस्तक; माथानी टोच (३) कोई पण नाखे तेवू (२) मोहित करनाएं (३) वस्तुनो टोचनो भाग (४)पुं०, स्त्री० भ्रमित करनारु (४) पुं० शिव (५) मुगट (५) जटा (६) ओळेला कामदेवनां पांच बाणोमांनुं एक (६) वाळ के अंबोडो न० मूढ बनावq ते; भ्रममां नाखवू ते मौलिक वि० मुख्य ; प्रधान (२) हलका मोहित करवं ते (७) संभोग (८) कुळy ('कुलीन' थी ऊलटुं) शत्रुने भ्रमित करवा वपरातो जादुमंत्र मौल्य न० मूल्य; किंमत मोहित वि० मूढ बनेलं; मूंझायेलुं (२) मौसल वि० गदाथी लडायेलं (युद्ध) मोहित थयेलं; भ्रमित थयेलं मोहर्त, मौहतिक पुं० ज्योतिषी; जोषी मोहिन वि० मूढ बनावनाएं; {झवणमां मौजी स्त्री० मुंजनी त्रण सेरनो नाखनारु (२) मोहित करनारं बनावेलो(ब्राह्मण वडे पहेरातो)कंदोरो Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माँउच मोग्य न० माथु मूंडी का ते (२) टालियापणं म्ना १ ५० [मनति] मनमां गोखq (२) खंतथी अभ्यास, म्रक्ष १५० घस, (२) ढगलो करवू (३) मारवू (४) १० उ० ढगलो करवो (५)घसद् (६)अस्पष्ट बोलवू नक्षित ('म्रक्ष्' नुं भू० कृ०) वि० घसेलं; खरडेलु नदिमन् पुं० कोमळता; मृदुत्व म्लात वि० करमाई गयेलु (२) झांखुं पडी गयेलं; ऊडी गयेखें म्लान ('म्ल' नुं भू० कृ०) वि० करमायेलं ; चीमळायेलु (२) थाकेलं (३) कृश के क्षीण थयेलं (४) खिन्न थयेलु (५) मेलुं; काळु यज्ञभृत् म्लानवीड वि० बेशरम म्लानि स्त्री० झां पडवू, करमावू के चीमळावं ते (२) थाक; खिन्नता (३) काळापणुं [ओछु थतुं म्लायिन् वि० कृश थतुं ; करमातुं (२) म्लेच्छ १५०, १० उ० अस्पष्ट बोल; जंगलीनी पेठे बोलवं म्लेच्छ पुं० आर्य नहि तेवो (संस्कृत भाषा स्पष्ट न बोलतो); परदेशी (२) बहिष्कृत माणस; दुष्ट ; पापी म्लेच्छभोजन पुं० घउं (२) न० जव म्ल १५० करमावं; चीमळावू (२) खिन्न थर्बु (३) थाकी जq (४) दुबळा पडवू (५) अदृश्य थq; ऊडी जq (६) क्षीण थq म्लेच्छ १५०, १० उ० जुओ ‘म्लेच्छ' यकृत् न० काळजु; 'लीवर' यत् १ था० पूजवू; आदर करवो (२) १५० झडप करवी यक्ष पुं० कुबेरना सेवक गणाता देवोनो वर्ग (२) न० प्रेत यक्षकर्दम पुं० केसर, अगरु, कस्तूरी, कपूर अने चंदन ए पांच पदार्थोनो समभागे बनावेलो खुशबोदार लेप यक्षराज (-ज) पुं० कुबेर यक्षिणी स्त्री० यक्ष स्त्री यक्षी स्त्री० यक्ष स्त्री (२) कुबेरनी पत्नी (३) यक्षोनो वर्ग यक्षेश्वर, यक्षंद्र पुं० कुबेर यक्ष्म, यक्ष्मन् पुं० क्षयरोग यज् १ उ० यज्ञ करवो (२) होम करवो (जे देवने अर्थे होम कराय ते द्वितीया विभक्तिमां आवे, जे वस्तुनो होम कराय ते तृतीयामा) (३) पूजवू यजत्र पुं० अग्निहोत्र करनार यजन न० यज्ञ करवो ते (२) यज्ञ (३) यज्ञस्थान यजमान पुं० पैसा आपी ऋत्विज पासे यज्ञ करावमारो (२) मिजमान (३) कुटुंबनो वडो यजिन वि० यज्ञ करनारु (२) पूजनाएं यजुर्वेद पुं० त्रणमांनो बीजो वेद (ऋग् यजुर्-साम०) [छे) (२) यजुर्वेद यजुस् न० यजुर्वेदनो मंत्र (गद्यमां होय यज्ञ पुं० आहुति होमी देवने पूजवानुं वेदोक्त कर्म (२) वैश्वदेवादि स्मात कर्म (३) विष्णु (४) अग्नि यज्ञद्रव्य न० यज्ञमां वपराती वस्तु यज्ञधीर वि० यज्ञविधिनुं जाणकार यज्ञभागभुज पुं० देव यज्ञभागेश्वर पुं० इंद्र यज्ञभावित वि० यज्ञ वडे पूजेलं के सत्कारेखें; यज्ञ वडे संतुष्ट थयेलं यज्ञभृत् पुं० विष्णु Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यज्ञवाट यज्ञवाट पुं० यज्ञ माटे आंतरेली तथा तैयार करेली जगा ३९२ यज्ञवेदि ( - दी ) स्त्री० यज्ञनो कुंड यज्ञशरण न० यज्ञ माटेनो मंडप यज्ञशिष्ट न०, यज्ञशेष पुं०, न० यज्ञमां वधेलुं - बचेलुं ते (भोजन) यज्ञसूत्र न० यज्ञोपवीत यज्ञसेन पुं० द्रुपद राजा यज्ञात्मन् पुं० विष्णु यज्ञांग न० यज्ञनुं अंग - भाग ( २ ) यज्ञ करवामां उपयोगी कोई पण साधन यज्ञांशभुज् पुं० देव (यज्ञमां तेमने हिस्सो अपाय छे ) यज्ञिय वि० यज्ञ संबंधी; यज्ञने योग्य (२) पुं० देव (३) द्वापर युग ( ४ ) न० यज्ञसामग्री यज्ञीय वि० यज्ञ माटेनं; यज्ञ संबंधी यज्ञोपवीत न० जनोई यज्वन् वि० यज्ञ करतुं ; यज्ञ करना (२) पुं० विधि प्रमाणे यज्ञ करनारो यत् १ आ० यत्न करवो (२) सावचेत के जाग्रत रहे यत ('यम्' नुं भू० कृ० ) वि० संयत; निग्रह करेलुं ( २ ) प्रयत्नशील ( ३ ) मर्यादित; मध्यमसरनुं यतगिर् वि० वाणीनो निग्रह करनाएं यतचित्तात्मन् वि० मन अने शरीर जेनां कामां छे , यतम स० ना० वि० (घणांमांथी) जे यतर स० ना०, वि० (बेमांथी) जे यतव्रतवि० व्रत पाळतं यतस् अ० ज्यांथी (२) जे कारणे (३) कारण के ( ४ ) ज्यारथी मांडीने यतस्ततः अ० ज्यांथी त्यांथी ( २ ) ज्यां त्यां (३) जेनी तेनी पासेथी यतात्मन् वि० संयमी यति स० ना०, वि० ( ब०व० नां ज रूप चाले छे; प्रथमा अने द्वितीयामां 'यति' रूप थाय) जेटलं (संख्या, कद ) यथाकाल यति पुं० संयमी ; तपस्वी; त्यागी (२) स्त्री० निग्रह; काबू (३) विरमवुं ते (४) दोरवणी ( ५ ) गायनमा के श्लोकमां आवतो विराम यतो यतः अ० गमे त्यांथी; (२) ज्यां ज्यां; जे जे दिशामां ज्यां त्यांथी यत्कारणम्, यत्कारणात् अ० कारण के; कारण जे; -ने कारणे; सबबथी यत्कृते अ० जेने कारणे यत्त वि० यत्न करतुं ( २ ) तत्पर (३) निश्चयवाळं ( ४ ) संभाळ के तनात राखी होय तेवुं यत्न पुं० प्रयत्न; खंत ( २ ) काळजी (३) श्रम; कष्ट यत्नतः अ० काळजीथी; खंतथी यत्नवत् वि० काळजीपूर्वकनुं होय तेनुं यत्नात् अ० महाप्रयत्ने (२) खतथी ; काळजीथी (३) दरेक प्रयत्न करवा छतां यत्नेन अ० महाप्रयत्ने; खंतथी यत्र अ० ज्यां ( २ ) ज्यारे यत्र तत्र अ० दरेक ठेकाणे; ठेर ठेर यत्रत्य वि० ज्यांनं; ज्यां रहेतुं यत्र यत्र अ० ज्यां ज्यां [ वासो करतुं यत्रसायंगृह वि० ज्यां रात पडे त्यां यत्सत्यम् अ० खरेखर; खरुं कहूं तो यथर्तु (यथा + ऋतु) अ० ऋतु - मोसम प्रमाणे; योग्य ऋतु वेळाए यथा अ० जेम (२) जैम के ( ३ ) जेवुं के ( ४ ) दाखला तरीके (५) जेथी करीने (६) (' तथा ' नी साथ संबंधर्मा) जेवुं ( तेनुं ); जेम (तेम ) ; जेथी करीने ( तेथी करीने) ; जेम जेम (तेम तेम ) ; जो आ खरुं होय (तो) यथाकथित वि० पहेलां कहयुं छे ते यथाकर्तव्य वि० करवाने योग्य होय तेवुं यथाकर्म अ० कर्म प्रमाणे; संजोग प्रमाणे tereoपम् अ० नियम के विधि मुजब यथाकामम् अ० मरजी मुजब यथाकाल पुं० योग्य समय Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यथाकालम् ३९३ यथालव्ध यथाकालम् अ० योग्य समये यथाप्रस्तुतम् अ० शरू कर्या मुजब ; अंते; यथाकृत वि० रूढि के आचार छेवटे (२)संजीगो अनुसार प्रमाणे करेलु यथाप्राणम् अ० ताकात प्रमाणे ; पोतानी यथाकृतम् अ० रूढि मजब सर्व ताकातथी यथाक्रमम अ० क्रम प्रमाणे ; अनुक्रमे यथाप्राप्त वि० संजोगो अनुसारनुं (२) यथाक्षमम् अ० शक्ति मुजब पहेलांना नियम अनुसार यथाक्षेमेण अ० अनुकूळता प्रमाणे; यथाबलम् अ० जुओ 'यथाप्राणम्' सहीसलामतीथी यथाभागम्, यथाभागशः अ० भाग यथाखेलम् अ० रमतां रमतां प्रमाणे (२) पोतपोताने स्थाने (३) यथाख्यानम् अ० पहेलां कह्या के योग्य स्थाने जणाव्या मुजब यथाभिप्रेतम् अ० मरजी मुजब यथागत (यथा + आगत) वि० मूर्ख यथाभिमत वि० इच्छा मुजबनुं यथागतम् अ० आव्युं होय ते ज मार्गे यथाभिमतम् अ० मरजी मुजब ययाचित्तम् अ० मरजी मुजब यथाभीष्ट वि० इच्छा मुजबर्नु यथाजात वि० मूर्ख [मुजब यथामति अ० बुद्धि - समज प्रमाणे । यथाज्ञानम् अ० समज प्रमाणे; जाण यथामुखीन वि०-नी बराबर सामु जोतुं यथाज्येष्ठम् अ० पदवी के उमर मुजब होय तेवू (छठ्ठी विभक्ति साथे) यथातथ वि० यथार्थ; खरेखरूं (२) यथाम्नातम्, यथाम्नायम् अ० वेदमां बराबर; चोक्कस (३) न० कोई कह्या के फरमाव्या मुजब वस्तुनो विगतवार साचो अहेवाल यथायथम् अ० उचित होय तेम (२) यथातथम् अ० जेम होय तेम ; बराबर; अनुक्रमे (३) धीमे धीमे खरेखर (२) उचितपणे । यथायोग्य वि० योग्य; उचित यथातथा अ० फावे तेम ; गमे तेम यथारसम् अ० रस प्रमाणे यथातथ्यम्, यथातथ्येन अ० खरेखर; यथारुचि अ० रुचि प्रमाणे [पणे बराबर; साचेसाच यथारूपम् अ० देखाव मुजब (२) योग्ययथादर्शनम् अ० जोया प्रमाणे यथार्थ वि० साचुं; खरं (२) अर्थ यथानिदिष्ट वि० उपर- अगाउ जणाव्यु प्रमाणेनु; अन्वर्थ ; सार्थ(३)योग्य ; घटतुं छे तेवु (२) विधि-नियम मुजबर्नु यथार्थता स्त्री० छाजतुं होवापणुं; यथानुपूर्व्या अ० क्रम प्रमाणे उचितता (२) खरं होवापणुं । यथानुरूपम् अ० उचित होय तेम • यथार्थनामन् वि० नाम प्रमाणे जेनां यथापुरम् अ० पहेलांनी पेठे कृत्य छे तेवू . यथापूर्व, यथापूर्वक वि० पहेलांना जेवू यथार्थाक्षर वि० अक्षर प्रमाणे-; अक्षरयथापूर्वकम्, यथापूर्वम् अ० पहेलांनी __ मां जणाव्या मुजबर्नु जेम (२) यथा क्रमे यथार्ह वि० लायकात मुजबY (२) यथाप्रदेशम् अ० उचित स्थाने (२) योग्य; घटतुं (३) अनुकूळ दर्शाव्या मुजब (३) बधी बाजुए यथार्हम् अ० लायकात के किंमत मुजब यथाप्रधानतः, यथाप्रधानम् अ० दरज्जा यथालन्ध वि० हाथमां आवी गयुं होय प्रमाणे ; क्रम प्रमाणे तेवू;प्राप्त थई चूक्युं होय तेवू Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यथावकाशम् ३९४ यथावकाशम् अ० अवकाश प्रमाणे (२) प्रसंग प्रमाणे (३) उचित स्थाने यथावत् अ० उचित होय तेम (२) नियम प्रमाणे (३) बराबर । यथावस्थम् अ० संजोग प्रमाणे यथाविधि अ० विधि मुजब यथावीर्य वि० गमे तेवी ताकातवाळ यथावीर्यम् अ० ताकातनी बाबतमा (२) ताकात प्रमाणे यथावत्त वि० बन्यं होय ते मुजबनुं (२) न० कोई पण बनावनो साचो अहेवाल (३) पहेलांनो बनाव यथावृद्धम् अ० उमरना क्रम प्रमाणे यथाशक्ति,यथाशक्त्या अ० शक्ति प्रमाणे यथाशीघ्रम् अ० जेम बने तेम जलदी यथाश्रुतम्, यथाश्रुति अ० सांभळया प्रमाणे (२) वेदविधि प्रमाणे यथासमयम् अ० उचित समये (२) करार मुजब; रूढि मुजब यथासर्वम् अ० बधी विगतोमां यथासुखम् अ० खुशी प्रमाणे ; सुख थाय [उचित; योग्य यथास्थित वि० खरेखीं; साचुं (२) यथास्थितम् अ० साचेसाचुं (२)संजोग अनुसार मुजब यथास्थिति अ० हमेश मुजब; संजोग यथास्वम् अ० पोतपोतार्नुहोय ते मुजब (२) व्यक्तिगत रीते (३) घटतुं होय तेम; उचित होय तेम यथेक्षितम् अ० नजरे जोया मुजब यथेच्छ वि० इच्छा मुजबर्नु यथेच्छन् अः परजी मजब यथेष्ट वि० इच्छा मुजबनुं यथेष्टम् अ० मरजी मुजब यथैव अ० जेम यथोक्त वि. कह्या प्रमाणेयथोचित वि० योग्य; लायक यथोचितम अ० उचित होय तेम ययोत्तरम् अ० क्रम प्रमाणे यदृच्छासंवाद यथोदित वि० कह्या प्रमाणेनुं यथोदितम् अ० कह्या प्रमाणे यथोद्गमनम् अ० चढता प्रमाणमां यथोद्दिष्ट वि० उल्लेख्या मुजबर्नु यथोद्दिष्टम् अ० उल्लेख्या मुजब यथोद्देशम् अ० उल्लेख्या-दर्शाव्या मुजब यथोपपन्न वि० जेवू हाजर हतुं तेवू; मळी आव्यं तेवं (२) स्वाभाविक यथोचित्य न० उचितता; योग्यता यद् वि. जे (२) (बेवडाय त्यारे) समूचं; तमाम (उदा० यो यः)(३) ('वा' साथे) जे कोई पण (उदा० 'यो वा'; 'को वा') (४) ('किम्' साथे) गमे ते; कोई पण (उदा० येन केन') यद् अ० 'आ जे...' (एम शरूआत करवा) (२) कारण के यवपि अ० जोके यदर्थम्, यदर्थे अ० कारण के; जे कारणे यदा अ० ज्यारे यदाप्रभृति अ० ज्यारथी मांडीने यदा यदा अ० ज्यारे ज्यारे यदि अ० जो (२) कदी पण (३) जो कदाच [पडे तो यदि वा अ० के; अथवा कदाच ; जरूर यदीय वि० जेर्नु; जेना संबंधी यदु पुं० ययातिनो देवयानीथी उत्पन्न थयेलो पुत्र (२) मथुरा नजीकनो प्रदेश यदुनंदन पुं० श्रीकृष्ण यदृच्छा स्त्री० मरजी मुजब वर्तवं ते; स्वेच्छाचारिता (२)अकस्मात (त्रीजी विभक्ति एकवचनमां-'अकस्मातथी' एवा अर्थमां वपराय छे) यवच्छातस् अ० अकस्मातथी यदृच्छाशब्द पुं० अर्थ विनानो तथा प्रमाणसिद्ध नहि तेवो शब्द (जेम के विशेषनाम) य.च्छासंवाद पुं० आकस्मिक संभाषण (२) अकस्मात मिलाप Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशःप्रत्यापन यभविष्य यभविष्य पुं० 'जे थवान छे ते थशे' एवं मानीने बेसी रहेनारो यद्यपि अ० जोके ; अगर जो यद्वत् अ० जे प्रमाणे यद्वा अ० अथवा तो यद्वा तद्वा अ० गमे तेम; एलफेल यवृत्त न० साहस (२) घटना यभ १५० संभोग करवो यम् १५० [यच्छति अंकुशमा राखवू; निग्रह करवो (२) आप यम वि० जोडकारूपे जन्मेलं (२) पुं० नियंत्रण करवू ते ; अंकुशमां राखवू ते (३) आत्मनिग्रह (४) कोई पण मोटुं नैतिक के धार्मिक कर्तव्य (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, ए पांच) (५) मृत्युनो देव; यमराज (६) जोडकुं (७) द्वि० वि० जोडकारूपे रहेला के जन्मेला (अश्विनीकुमार, नकुल-सहदेव) (८)न० जोडकुं; जोडु यमक वि० जोडकामां जन्मेलु (२) वेवडं (३) पुं० निग्रह; अंकुश (४) न० (भिन्न अर्थना समान शब्दोनी पुनरावृत्ति थती होय तेवो) एक शब्दालंकार (काव्य) यमज वि० जोडकारूपे जन्मेलु यमद्वितीया स्त्री० भाईबीज यमधानी स्त्री० यमन धाम यमपट पुं०, यमपट्टिका, स्त्री०कपडानो पडदो, जेना पर यमपुरीनी सजाओनां चित्र बताव्यां होय छे । यमराज पुं० यमराज (मृत्युना देव) यमल वि० जोडकामांनु एक एवं (२) पुं० वे (संख्या)(३) द्वि०व० जोडकुं यमलार्जुनौ पुं० द्वि० व० श्रीकृष्णे खांडणियो भरावी तोडी पाडेलां बे अर्जन वृक्षो यमवत् वि० संयमी; जितेंद्रिय यमशासन पुं० शिव यमशासनालय पुं० हिमालय यमश्राय न० यमन धाम यमायते आ० (यम जेवा थर्बु) यमांतक पुं० शिव (२) यमराज पपित वि० संयम- अंकुशमां आणेलं के राखेलु (२) बांधेलं; पकडी राखेल यमिन् वि० संयम-निग्रहमा राखनारं (२) पुं० संयमी; यति यमी स्त्री० यमनी जोडिया बहेन; यमुना नदी ययाति पुं० एक चंद्रवंशी राजा (नहषनो पुत्र ; देवयानी अने मिष्ठानो पति) यहि अ० ज्यारे (२) कारण जे यव पुं० जव (२) एक जव जेटलुं वजन (३) आंगळी उपरनी यवाकार रेखा (शुभ गणाय छे) यवद्वीप पुं० जावा बेट यवन पुं० ग्रीस देशनो रहेवासी - ग्रीक (२) परदेशी; म्लेच्छ यवनिका, यवनी स्त्री० यवन स्त्री (प्राचीन काळमां राजाओ पोतानां धनुष्यबाण ऊंचकवा तहेनातमां राखता) (२) पडदो (३) बुरखो यवप्ररोह पुं० जवनो अंकुर यवस न० चरवार्नु घास यवाग स्त्री० चोखा के जवनी कांजी यवांकुर पुं० जवनो अंकुर यविष्ठ वि० ('युवन्' नुं श्रेष्ठतादर्शक रूप) सौथी वधु जुवान; नानू (२) पुं० नानो भाई यवीयस् ('युवन्' नुं तुलनात्मक रूप) बेमां वधु जुवान के नानुं यशस् न० ख्याति; कीर्ति; यश (२) गुणसमुदाय यशस्कर वि० यश आपनारूं यशस्य वि. कीर्ति करनारुं यशस्विन् वि० जाणीतुं; प्रख्यात (२) उत्तम; श्रेष्ठ यशःकाय न० यशरूपी शरीर यशःप्रख्यापन न० यश फेलाववो ते Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यशः शरीर यशः शरीर न० जुओ 'यशःकाय' यशः शेष वि० ( जेनी मात्र कीर्ति बाकी रही छे तेवुं ) मृत पालक माता यशोदा स्त्री० नंदनी पत्नी; श्रीकृष्णनी [ विख्यात यशोधन वि० यशरूपी धनवाळु; अति यष्टि स्त्री० लाकडी (२) गदा (३) दांडो (धान) (४) शाखा ; डाळी (५) दोरो (सेरनो) (६) कोमळ के नाजुक एवं जे कई ते (उदा० ' अंगयष्टि ) यष्टिनिवास पुं० मोर वगेरेने बेसवा मानी लाकडी (२) ऊंचा दंडा उपर ऊभुं करेलुं कबूतरखानुं यष्टिप्राण वि० नबळं; ताकात वगरनुं ( लाकडीरूपी आधारवाऴु) यष्टी स्त्री० जुओ 'यष्टि' यष्टृ पुं० यज्ञथी यजन-पूजन करनारो यष्टयुत्थान न० लाकडीने टेके ऊठवुं ते यस् १, ४ प० आयास - प्रयत्न करवो - प्रेरक० त्रास उपजाववो यस्मात् अ० जेथी; जे कारणे यंत्र वि० नियंत्रण करनाएं; अंकुशमां राखनाएं (२) दोरनारुं (३) पुं० नियामक ; शासक (४) हांकनार ( रथ - वाहन इ० नो ) (५) महावत यंत्र १,१० उ० नियंत्रण करवु;अंकुशमां राख (२) बांध (३) फरज पाडवी यंत्र न० जकडी-पकडी राखनार के कारूप जे होय ते (२) बंधन; बंध; गांठ लगाम (३) कोई पण क्रिया करवा माटे संचा जेवी युक्ति, रचना के साधन (४) आगो; ताळु; चावी (५) तावीज तरीके वपराती आकृति (६) काणुं पाडवानुं साधन; सारडो यंत्रक पुं० यंत्रविद्या जाणनाशे ( २ ) नियामक; अंकुशमां राखनारो (३) न० पाटो ( घानो ) ( ४ ) कोथळी; झोळो यंत्रrifset स्त्री० जादुई करंडियो यंत्रकर्मकृत् पुं० कारीगर ३९६ याग यंत्रकोविद पुं० यंत्र चलाववानुं के वापरवानुं जाणनारो रक्षण कर यंत्रगृह न० तेल काढवानी घाणी (२) त्रास गुजारवानो ओरडो यंत्रचेष्टित न० जादुटोणांनो प्रयोग यंत्रण न०, यंत्रणा स्त्री० रुकावट; नियंत्रण; अंकुश ( २ ) बंध; बांधवं ते (३) पीडा ; त्रास (४) पाटो ( ५ ) [ साळी यंत्रणी स्त्री० पत्नीनी नानी बहेन; यंत्रतक्षन् पुं० यंत्र बनावनारो ( २ ) जादुटोणा करना [(वारण) यंत्रदृढ वि० आगळाथी बंध करेलु यंत्रधारागृह न० फुवाओवाळु स्नानगृह [कराती पूतळी यंत्रपुत्रिका स्त्री० दोरीथी संचालित यंत्रप्रवाह पुं० पाणीनो कृत्रिम प्रवाह यंत्रमुक्त न०एक जातनुं हथियार-अस्त्र यंत्रशर पुं० यंत्र वडे छोडातुं बाण यंत्रारूढ वि० रेंट जेवां चक्र पर चडावेलुं के चडेलुं यंत्रिका स्त्री० जुओ 'यंत्रणी' यंत्रित ('यंत्र' नुं भू० कृ० ) वि० जकडेलं; बांधेलु (२) नियंत्रित; अंकुशमां राखे (३) प्रेरालुं ( ४ ) नियमना शिस्तमा रहेलुं (५) बराबर खेंचेलुं (६) आकर्षाय यंत्रितकथ, यंत्रित वाच् वि० पराणे चूप करेले के थयेलुं; जीभ जाणे पकडी राखी होय ते या २५० जनुं (२) चडाई करवी ( ३ ) जवा दे; पडतुं मूक (४) लुप्त वं (५) व्यतीत थ; चाल्या जबुं ( ३ ) माथे लेवु ; वहोखुं ( ७ ) संभोग करवो - प्रेरक० जाय तेम करवुं ( २ ) हांकी काढनु; दूर करवुं (३) व्यतीत करवु पसार करवुं याग पुं० यज्ञ; होम Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यागेश्वर ३९७ याथातथ्य यागेश्वर पुं० शिवनुं स्फटिकनुं एक लिंग यात् वि० जतुं याच १ उ० भीख मागवी; आजीजी यात ('या' न भू० कृ०) वि०. गयेलु करवी (२) लग्न माटे मागु करवू (२) व्यतीत थयेलु (३)-दशाने याचक पुं० भिखारी (२) अरजदार पामेलं (४) न० गमन ; गति (५) याचन न०, याचना स्त्री० भीख मागवी कूच (६) भूतकाळ ते (२) आजीजी करवी ते यातन न बदलो वाळवो ते (वेर इ०नो) याचित ('या' - भू० कृ०) वि० यातना स्त्री० बदलो (वेर इ० नो) याचेलं; भीखेलु (२) जरूरी; आवश्यक (२) तीव्र वेदना; त्रास (३) पम (३) न० याचना; भीख (४) मागीने नरकमां पापीओ उपर जे वेदनाओ मेळवेली भिक्षा नाखे छे ते याचितक न० मागीने मेळवेलं. अर्थात् यातयाम, यातयामन् वि० वासी थयेलं; वापरवा उछीनुं आणेलं ते वपरायेलं; निरुपयोगी बनेलं (२) याचितृ पुं० भिखारी (२) अरजदार अधूप, रंधायेल (३) थाकी गयेलं; (३) (लग्न माटे) मागु करनारो घसाई गयेलं; वृद्ध; जीर्ण । याच्ञा स्त्री० याचना; भीख (२) यातव्य वि० जवा लायक (२) चडाई भिखारीवेडा (३) अरज; आजीजी . करवा योग्य (३) राक्षसो के तेमनी (४) लग्न माटेनुं मागु माया सामे उपयोगी ('यातु' उपरथी) याचनाभंग पुं० मागणी निष्फळ जवी ते (४)पुं० शत्रु पवन याच्य न० याचना-विनंती करवी ते यातु पुं० मुसाफर (२) राक्षस (३) याच्यता स्त्री० -नी इच्छा के प्रार्थना यातुधान पुं० राक्षस करे तेवी स्थिति ; प्रार्थनीयता यातुनारी स्त्री० राक्षसी याजक पुं० यज्ञ करावनारो; पुरोहित यात स्त्री० पतिना भाईनी पत्नी याजन न० यज्ञ कराववो ते (देराणी के जेठाणी) (२) पुं० वटेमार्ग याजिन वि० (समासने छेडे) यज्ञ (३) हांकनारो (४) वेर वाळनारो करनारुं (उदा० सोमयाजिन्) यात्रा स्त्री० जq ते; मुसाफरी; प्रवास याज्ञवल्क्य पुं० वाजसनेयी संहिता (२) लश्करनी कूच (३) तीर्थयात्रा (शुक्ल यजुर्वेद) ना प्रवर्तक प्राचीन (४) उत्सव; मे को (५) सरबस ऋषि (२) एक स्मृतिकार (६) आजीविका; निर्वाह (७) याज्ञसेन (-नि) पुं० शिखंडी समयनुं व्यतीत थर्बु ते (८) व्यवहार; याज्ञसेनी स्त्री० द्रौपदी रूढि ; रीत (९) एक प्रकारचें नाटक याज्ञिक वि० यज्ञ संबंधी; यज्ञy (२) यात्रिक वि० कूच करतुं (२) यात्रा पुं० यज्ञ करनार के करावतार पुरोहित के कूच संबंधी (३) जीवनयात्रा माटे याज्य वि० यज्ञ संबंधी; होमवानुं जरूरी (४) रूढिगत ; चालु ; सामान्य (२)जेने माटे यज्ञ कराय छे ते (३) (५) पुं० वटेमाणु; मुसाफर (६) यज्ञ करवानी जेने शास्त्र प्रमाणे न० कूच (लश्करनी) (७) (कूच परवानगी छे ते (४) पुं० यज्ञ करनारो माटेनो) पुरवठो; साधनसामग्री के करावनारो (५) बीजा माटे यज्ञ यात्रोत्सव पुं० उत्सव के समारंभy करनारो [मंत्र के ऋचा सरघस [प्रमाणिकता याज्या स्त्री० (आहुति वेळाए) बोलातो याथातथ्य न० साची वात; सत्य (२) Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ याथात्म्य ३९८ याथात्म्य न० तत्त्व; साचुं स्वरूप याथार्थ्य न० यथार्थपणुं; साचं स्वरूप (२) उचितपणुं (३) इच्छेलो अर्थ सिद्ध के प्राप्त थवो ते यादव वि० यदुना वंशयादस् न० जलचर प्राणी यादृक्ष वि० जेवं यादृच्छिक वि० आपोआप - स्वेच्छाए प्राप्त थयेलं के करायेलं (२) आकस्मिक (३) स्वेच्छाचारी यादश (-श)वि० जेवं यादश-तादृश वि० जेवं तेवू; सामान्य यादोनाथ पुं० समुद्र (२) वरुण यान न० जq ते; सवारी करीने जवू ते (२) मुसाफरी (३) सामे चडाई करीने जq ते (४) सरघस (५) वाहन (६) पालखी; म्यानो (७) वहाण; जहाज (८) ज्ञान- के मोक्ष- साधन (उदा० 'हीनयान', 'महायान') (९) विमान [वहाण; नौका। यानपात्र न०, यानपात्रिका स्त्री० यानमुख न० रथनो अग्रभाग; धुरा यानशाला स्त्री० गाडी या रथ राखवानुं मकान ; 'गॅरेज' [गादी यानास्तरण न० वाहनमां पाथरवानी यापक वि० जाय एम करनारुं (२) आपनाएं; बक्षनाएं। यापन वि० जाय एम करनारु (२) मटाडनारुं (३)टेकवनाएं ; जोगवनारूं (जीवनने) (४) न० काढी मूकवू ते (५) मटाडवं ते (रोगने) (६) व्यतीत करवू ते (समयने) (७) विलंब (८) निर्वाह (९) प्रयोग; अमल (१०) उपदेश यापना स्त्री० जुओ ‘यापन' याप्य पुं० बापनो मोटो भाई याप्ययान न० पालखी; डोळी याभ पुं० संभोग; मैथुन यावत्-तावत् याम पुं० संयम; निग्रह (२) त्रण कलाक जेटलो समय - प्रहर (३) वाहन; गाडी (४) देवोनो एक वर्ग यामतूर्य न०, यामदुंदुभि पुं० प्रहर बताववा वगाडातुं घडियाळ - घंट यामवती स्त्री० रात्री यामवृत्ति स्त्री० पहेरा उपर होवू ते यामि स्त्री० बहेन (२) रात्री (३) पुत्रवधू (४) नरकयातना यामिक पुं० पहेरेगीर यामिका, यामिनी स्त्री० रात्री यामिनीनाथ, यामिनीपत्ति पुं० चंद्र यामी वि० स्त्री० यमे करेली; यम संबंधी (२) स्त्री० जुओ ‘यामि' यामुन वि० यमुनानुं याम्य वि० दक्षिण दिशानुं (२) यमनुं के यम जेवू (३) पुं० यमनो दूत (४) जमणो हाथ (५) शिव के विष्णु (६) न० भरणी नक्षत्र याम्या स्त्री० दक्षिण दिशा (२) रात्री यायजूक पुं० वारंवार यज्ञ करनारो यायावर वि० भटक्या करतं; स्थिर निवास विना- (२)पुं० विचर्या करतो भिक्षु (३) अश्वमेध माटेनो अश्व यायिन् वि० (समासने छेडे) मुसाफरी करतुं (२) जतुं (३) चडाई करतुं यावक पुं०, न० जवनं भोजन (२) अळतो (३) छाणमांथी मळता जव वीणीने जीवनारो (व्रतधारी) यावज्जन्म, यावज्जीवम्, यावज्जीवेन अ० जीवतां सुधी; आखी जिंदगी सुवी यावत् वि० जेटलं; जेटला प्रमाणनुं (२) अ० ज्यां सुधी (३) दरम्यान (४) जेटल (५) जेथी करीने यावत्कालम् अ० ज्यां सुधी(२) क्षण वार यावत्-तावत् अ० ज्यां सुधी- त्यां सुधी (२) जेवू- के तरत ज (३) दरम्यान (४) ज्यारे - त्यारे Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यावदर्थ ३९९ यावदर्थ वि० जरूर प्रमाणे, (२)अर्थ युक्ति स्त्री० जोडाण ; संबंध(२)उपयोग; समजाय ते माटे जोईए तेटलं (शब्दो) वापरतुं ते (३) झूसरीमा जोड ते (४) यावदर्थम् अ० बधा अर्थमां (२) जरूरी रूढि; प्रयोग (५) उपाय; योजना (६) होय तेटलुं [छेवट सुधी करामत (७)छाजवू ते; घटित होते यावदंतम्, यावदंताय अ० अंत सुधी; (८) दलील (९)तर्क; प्रमाण (१०) यावदंत्य वि० जीवता सुधी हेतु; कारण (११) रचना; गोठवणी यावन वि० यवन संबंधी; यवन, युक्तिकथन न० दलीलो कही बताववी ते (२) पुं० दुश्मन ; हुमलाखोर युक्तिमत् वि० चालाक; चतुर (२) यावन्मात्र विजेटला कद के विस्तारर्नु; दलीलवाळ (३)-नी साथे जोडेलु जेवडं मोटुं (२) तुच्छ युक्त्या अ० -ना साधनथी (२) कुशळता याष्टीक पुं० गदाधारी योद्धो (२) के चालाकीथी (३) योग्य रीते छडीवाळो पहेरेगीर युग पुं० न० झूसरी (२) न० जोडकुं; यांत्रिक वि० यंत्र संबंधी (२) यंत्र वडे युग्म (३) समयनो विभाग (कृत, सत्य, करेलु (३) कृत्रिम ('साहजिक' थी त्रेता, द्वापर, कलि - ए चारमांनो ऊलटुं) [करवानी इच्छावाळं दरेक) (४) बहु लांबो समय यियक्षत्, यियक्षमाण, यियक्ष वि० यज्ञ युगपद् अ० एकी साथे; एकी वखते यियासा स्त्री० जवानी इच्छा युगबाहु वि० लांबा बाहुवाळं यियासु वि० जवानी इच्छावाळू (२) युगमात्र न० धूसरीनी लंबाई जेटलुं माप चडाई के कूच करवा इच्छतुं (चार हाथ जेटलु) यु २ प० जोडवू (२) मिश्रित करवू युगल, युगलक न० जोडु; जोडी (३) ३ प० छूटुं पाडवू (४) ९ उ० युगावधि पुं० जगतनो प्रलय बांधq (५) जोडवू (६) मिश्रित करवू युगांत पुं० धूसरीनो छेडो (२) युगनो (७) १० आ० निंदवू अंत-प्रलय (३) मध्याह्न युक्त ('युज्' नुं भू० कृ०) वि० युगांतर न० एक जातनी झूसरी (२) जोडेलु; वळगाडेलु (२) बांधेलं (३) पछीनो पेढी (३)आकाशनो बोजो भाग गोठवेलु(४)साथेनु; सहित(५) लागेलुं; युगी स्त्री० पुष्कळता; समृद्धि लगनीवाळू (६)उपयोगमां लीधेलु (७) युग्म वि० बेकी नंवरनुं (२) न० जोडु; नियुक्त (८) संबंधी (९) कुशळ ; चतुर जोडकुं (३) जोडाण (४) संगम (१०) योगयुक्त (११) नियमवान युग्मचारिन् वि० जोडकामां फरनारु (१२) वाजबी; योग्य; खरं; साचुं युग्य वि० धूसरीए जोडवा लायक (२) (१३) पुं० योगी ●सरीन (३) ●सरीमा जोडेलु(४)-थी युक्तचेतस् वि० योगयुक्त ; योगाभ्यासी खेंचातुं (वाहन) (५) पुं० वाहने जोडेलु युक्तचेष्ट वि० योग्य रीते वर्तनाएं के जोडवानुं प्राणी (खास करीने रथनो युक्तदंड वि० योग्य रीते सजा करनारु घोडो) (६) न० वाहन; रथ युक्तम् अ० योग्य होय तेम; खरेख र युज् ७ उ० जोडवू; वळगाडवू; उमेरवं युक्तरूप वि० योग्य ; घटित; छाजतुं (२)धूसरीए जोडq (३)-वाळं होवं युक्तवादिन् वि० योग्य रीते बोलतुं; (४) उपयोगमा लेवू; प्रयोजq (५) योग्य एवं बोलतुं नियत करवू (६) लक्ष एकाग्र कर Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युज (७) सज्ज करवू (८) आप ; बक्षq (९)१५०, १० उ० जोडQ (१०) ४ आ० मनने एकाग्र करवू (११) १० आ० निंदवं यज वि० (समासने छेडे)-थी जोडायेलं: -थी खेंचातुं (२) युक्त; सहित; -वाळू (३) बेकी संख्यान युत ('यु' नुं भू० कृ०) वि० जोडेखें; जोडायेलं (२) युक्त; -वार्छ; सहित (३) बांधेलु ; लागेलुं (४) छूटुं पाडेलु के पडेलु (५) न० चार हाथनुं माप युतक वि० जोडेलं; जोडायेलु (२) न० जोडु (३) मित्रता; संबंध (४) स्त्रीओनो एक पोशाक (५) स्त्रीना वस्त्रनो छेडो - अंचळ (६)लग्ननी भेट युति स्त्री० जोडाण; संबंध (२) सहित होवू ते (३) सरवाळो युद्ध (युध् ' तुं भू० कृ०) वि० लडाई करेलु (२) हरावेलु (३) न० लडाई युद्धक न० युद्ध; लडाई युद्धधूत न० युद्धरूपी सट्टो युद्धावहारिक न० लडाईमा मेळवेली लूट युध् ४ आ० लडाई करवी; युद्ध करवू (२) लडाईमां हराव, युध् स्त्री० युद्ध (२) पुं० योद्धो; वीर युधिष्ठिर पुं० पांच पांडवोमां सौथी मोटो (कुंतीनो पुत्र) युयुत्सा स्त्री० लडवानी इच्छा युयुत्सु वि० लडवा इच्छतुं ययुधान पुं० सात्यकि युवक पुं० जुवानियो युवजानि पुं० जेनी पत्नी युवान छे ते यवति (-ती) स्त्री० तरुण स्त्री के मादा युदन् वि० जुवान उमरखें (२) मजबूत; 'नीरोगी (३) उत्तम (४)पु० जुवानियो (५) ६० वर्षनी उमरनो हाथी युवराज पुं० पाटवी कुंवर युष्मद् स ना० (बीजो पुरुष सर्वनामनुं मूळ पद) तुं; तमे युष्मदर्थम् अ० तमारे माटे युष्मदीय वि० तमारं;तमारी मालकीन (२) पं० तमारो देशबंध युष्मादृश (-श) वि० तमारा जेवू {जान वि० जोडतुं (२) योग्य (३) सफळ ; समृद्ध (४) पुं० सारथि (५) योगी (६) ब्राह्मण (योगसाधक) यूक पुं०, यूका स्त्री० जू यकालिक्ष न ज अने लीख (२) लीखना जेटलुं वजन के माप यूति स्त्री० संयोग; मेळाप यूथ न० टोळं; समुदाय [वांदरां) यूथचारिन् वि० टोळामां फरतं (जेम के यूथनाथ, यूथप, यूथपति पुं० टोळानो नायक (सामान्य रीते हाथीनो) यूथबंध पुं० टोळं; समुदाय यूथशः अ० टोळामां यूथिका, यूथी स्त्री० जूई यूथ्य वि० (समासने छेडे) टोळामांन ; -ना टोळानुं (२)टोळानुं अग्रेसर एवं यूथ्या स्त्री० टोळं यूप पुं०यज्ञ माटेनो स्तंभ(ज्या बलिदानन पशु बंधाय छे) [ कपड़ यूपद्विप पुं० यज्ञस्तंभनी आसपास वींटात यूष, यूषन् पुं०, न० मग वगेरेनो उकाळो-ओसामण ('यूषन्'नां प्रथम पांच रूप नथी; 'यूष'ना द्वि०ब०थी तेनुं रूप विकल्पे जोडाय छे.) येन अ० जेथी करीने ; जे कारणे योक्तव्य वि० जोडवा लायक (२) सोंपवा लायक (३) उपयोगमा लेव योग्य (४) (सजा) फरमाववा योग्य योक्त पं० झंसरीए जोडनारो (२)गार्ड हांकनारो (३) उश्केरनारो योक्त्र न० दोरडं (झूसरीनु); जोतर (२) नेतरूं योग पुं० जोडवू ते (२)जोडाण; संबंध (३)स्पर्श (४) उपयोगमा लेवू ते (५) साधन; रीत; पद्धति (६) परिणाम Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योगक्षेम (७) युक्ति; छळ (८) योजना (९) प्रयत्न; उद्यम (१०) उपाय; उपचार (११) जादु मंत्र ( १२ ) प्राप्ति (१३) व्यवहार; अमल (१४) शब्दनो रूढिथी तो अर्थ (१५) ध्यान ; समाधि (१६) पतंजलिए प्रवर्तावेलुं दर्शन ( १७ ) योगदर्शननो अनुयायी (१८) ताकात ; शक्ति (१९) समत्व योगक्षेम पुं० जे वस्तु न मळी होय ते मेळववी तथा जे मळी होय तेनुं संरक्षण करवुं ते (२) कुशळता; आबादी योगचूर्ण न० जादुई चूर्ण; जादुई शक्तिओवाळं चूर्ण ४०१ योगतस् अ० ने परिणामे; -ना उपायथी ( २ ) योग्य रीते ( ३ ) समयसर ( ४ ) प्रयत्न करीने; सर्व ताकातथी योगधारणा स्त्री० समाधियोग योगनिद्रा स्त्री० अर्धी निद्रा अने अर्धी समाधि एवी अवस्था; जाग्रत अने निद्रा वच्चेनी अवस्था ( २ ) युगने अंते विष्णुनी निद्रा (३) प्रलय अने उत्पत्ति वच्चेनी ब्रह्मानी महानिद्रा योगपट्ट पुं० समाधि वखते पीठ अने ढींचण आसपास रखातुं वस्त्र योगपादुका स्त्री० पवनपावडी योगबल न० समाधिमां स्थित थवानी शक्ति ( २ ) अलौकिक सिद्धि योगभ्रष्ट वि० योगसाधनामांथी च्युत थयेलुं; साधना अधूरी रही होय तेवुं योगमाया स्त्री० योगसिद्धिनुं अलौकिक बळ (२) सृष्टिना सर्जन माटे ईश्वरे धारण करेली शक्ति; तेनुं साकार स्वरूप योगयात्रा स्त्री० योग सिद्ध करवानो - परमात्मा साथे एक थवानो मार्ग योगरोचना स्त्री० अदश्य के अभेद्य बनाववानी चमत्कारी ताकातवाळु मलम के लेप [ योग जाणनाएं योगविद् वि० योग्य उपाय जाणनारुं (२) योजनीय योगविधि पुं० योग - समाधिनी साधना योगसमाधि पुं० समाधिमां जीवनुं लवलीनथई जवुं [ मेळवनारो योगसंसिद्ध पुं० योगमां सिद्धि - पूर्णता योगाचार पुं० योगसाधना (२) विज्ञानवादी बौद्धोनो सिद्धांत ( ३ ) जादु के मायातो प्रयोग [योगमां सिद्ध थयेलुं योगारूढ वि० योगाभ्यासमां पावरधुं ; योगिन् वि० युक्त; संबद्ध; -वाळं (२) योगसिद्धिवाळु (३) योग साधना ( ४ ) पुं० योग साधनारो योगिनी स्त्री० चमत्कारी शक्तिवाळी जोगणी (२) शिव के दुर्गानी तहेनातमां रहेनारी देवीओनो वर्ग ( सामान्य रीते आठ गणाय छे) योगेश्वर पुं० योगमां सिद्ध थयेलो ( २ ) सिद्धि प्राप्त करना रो (३) जादुगर योग्य वि० उचित; लायक (२) छाजतुं ; घटतुं ( ३ ) उपयोगी ( ४ ) ने माटे शक्तिमान एवं ( ५ ) योग माटे लायक (६) न० वाहन योग्यता स्त्री० शक्ति; सामर्थ्य ( २ ) लायकात; उचितपणुं ( ३ ) पवित्रता योग्या स्त्री० अभ्यास, महावरो ( २ ) शस्त्रविद्यानो अभ्यास योजक वि० धूंसरीमां जोडनारुं (२) जोडनारुं ; जोगवनाएं ( ३ ) योजना करना; गोठवनाएं योजन न० जोडवुं ते (२) उपयोगमां लेवं ते ( ३ ) तैयारी; गोठवण ( ४ ) चार कोश अथवा आठ के नव माईल जेटलुं अंतर (५) उश्केरवुं के प्रेरं ते योजनगंधा स्त्री० कस्तूरी ( २ ) व्यासनी माता सत्यवती योजना स्त्री० जोडाण; संबंध ( २ ) उपयोग (३) रचवुं ते योजनीय वि० जोडवा योग्य; गोठववा योग्य (२) उमेरवा योग्य (३) उपयोगी (४) नीमवा योग्य Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योजयित ४०२ - रक्षस् योजयितृ वि० जोडतुं (२) योजना कर- चालु (३) व्युत्पत्तिसिद्ध (शब्द) नारु;गोठवनाएं (३) पुं० रत्न जडनारो (४) योग संबंधी के योगथी नीपजेलं योजित वि० झूसरीमा जोडेलु (२) योतक न० खानगी मिलकत (२) लग्न उपयोगमां लीधेलं (३) संबद्ध वखते स्त्रीने (पोतानी मालकीनी योत्र न० जुओ ‘योक्त्र' राखवा) अपाती पहेरामणी योद्धव्य न० युद्ध करवा योग्य यौन वि० योनि संबंधो (२) लग्नथी योद्ध पुं० योद्धो; सैनिक ऊभुं थयेलु (३) न० लग्न (४) योनि; योध पुं० लडवैयो; योद्धो (२) लडाई; उत्पत्तिस्थान (५) गर्भाधान संस्कार संग्राम; युद्ध यौवत न० जुवान स्त्रीओनो समुदाय योधन न० युद्ध ; लडाई (२)शस्त्र (३) (२)जुवान स्त्रीनो गुण (सौंदर्य इ०) ['बॅरेक' यौवन न० युवानी; जोवन योधागार पुं०, न० सैनिकोनो निवास; यौवनदर्प पुं० जुवानी- अभिमान (२) योधिन् पुं० योद्धो जवानने स्वाभाविक एवं साहस योनि स्त्री० जननस्थान; गर्भाशय (२) यौवनवत् वि० जोबनवाळ; युवान स्त्रीनुं गुह्यांग (३) उत्पत्तिस्थान; यौवनश्री अ० जुवानीनी सुंदरता मूळ स्थान (४)जाति; जन्मनो प्रकार यौवनस्थ वि० जुवान (२) परणाववा (५) मूळ कारण (६)वासना (७)बीज योग्य (३) ताजु योनिज वि० गर्भाशयमांथी जन्मेलं यौवनारंभ पुं० खीलती जवानी योनिसंकट न० पुनर्जन्म यौवनांत वि० जुवान अवस्था ज छेवट योषा, योषित, योषिता स्त्री० नारी; सुधी रहे तेवू स्त्री; तरुण स्त्री पौवनीय वि. जुवानीभयु योगपद्येन अ० एकीसाथे यौवराज्य न० युवराजनुं पद यौगिक वि० उपयोगी (२) सामान्य यौष्माक, यौष्माकीण वि० तमारं पं० योद्धो रक्त ('रंज्'- भू० कृ०) वि० रंगायेलं; रंगेलुं (२) रातुं ; लाल (३) अनुरक्त; आसक्त (४) प्रिय (५) सुंदर; मनोहर (६) न० लोही रक्तकंठ, रक्तकंठिन् वि० मधुर अवाज वाळं (कोयल) रक्तपट पुं० एक जातनो याचक रक्तमंडल वि० राता बिंबवाळं (२)अन रक्त प्रजावाळं (३) न० रातुं कमळ रक्ताक्ष पुं० पाडो (२) कबूतर (३) सारस (४) चकोर पक्षी रक्तापरा स्त्री० किन्नरी रक्ष १५० रक्षण करवं (२) गुप्त राखवू (३) बचाव, (४) टाळवू (न करवू) (५) पालन करवू (व्रत के प्रतिज्ञा) (६) -थी सावचेत रहे, रक्ष वि० रक्षण करनारं; बचावनाएं रक्षक वि० रक्षण करनारुं; बचावनाएं (२) पुं० पालक (३) पहेरेगीर रक्षण न० बचावयूँ ते; साचवq ते (२) पुं० विष्णु रक्षणा स्त्री० रक्षण कर ते रक्षपाल पुं० रक्षण के बचाव करनारो रक्षस् न० राक्षस Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रक्षःप्रकांडक ४०३ रज्जुपेडा रक्षःप्रकांडक पुं० श्रेष्ठ राक्षस (४) ग्रंथ ; निबंध (५) वाळ ओळीने रक्षा स्त्री० रक्षण (२)राखडी; तावीज गोठववा ते (६)लश्करनी व्यूहरचना (३) राखोडी रचित ('रच् 'भू० कृ०) वि० रचेलं रक्षाकरंड पुं० रक्षा माटे बंधातुं (२) गोठवेलु (३) गूथेलु (४) लखेलं अलौकिक शक्ति धरावतुं तावीज रचितपूर्व वि० पहेलां भजवेलु रक्षागृह न० प्रसूतिगृह रचितार्थ वि० कृतार्थ रक्षापरिघ पुं० आगळो; भोगळ रज पु० जुओ 'रजस्' रक्षापाल, रक्षापुरुष पुं० पहेरेगीर रजक पुं० धोबी रक्षाप्रतिसर पुं० तावीज रजत वि० श्वेत; धोळ (२) चांदीनुं रक्षाप्रदीप पुं० भूत-पिशाच दूर राखवा बनावेलु (३)न० चांदी ; रू (४)सोनुं सळगतो रखातो दीवो (५) मोती, घरेणुं के हार रक्षामणि पुं० भूत-पिशाचथी बचवा रजतकूट पुं० मलय पर्वतर्नु एक शिखर पहेरातुं रत्न के घरेणु रजताद्रि पुं० कैलास रक्षामंगल न० भूत-पिशाचादिथी बचवा रजनि स्त्री० रात्री करातो विधि रजनिकर पुं० चंद्र रक्षारत्न न० जुओ 'रक्षामणि' रजनिचर पुं. निशाचर; राक्षस (२ रक्षिक पुं० रक्षक (२) पोलीस चोर (३) (रातनो) रखवाळ रक्षिजन पुं० रक्षकोनी टुकडी रनिमन्य वि० रात जेवू देखातुं रक्षित ('रक्ष'तुं भू० कृ०) वि० रक्षेलं रजनी स्त्री० रात्री रक्षितक न० संरक्षण रजनीकर पुं० चंद्र रक्षित, रक्षिन् वि० रक्षण करनारु रजनीचर पुं० जुओ 'रजनिचर' (२) पुं० रक्षक (३) पहेरेगीर रजनीपति, रजनीरमण पुं० चंद्र रक्षोध्न पुं० राक्षसोनो नाश करनार रजस् न० रज; धूळ (२) फूलनो पराग एक मंत्र (२) न० हिंग (३) सूक्ष्म कण (४)विकार; विकृति रक्षण पुं० रक्षण (५) रजोगुण (६) स्त्रीनो मासिक रघु पुं० एक सूर्यवंशी राजा (दिलीपनो रजस्राव (७) पाप पुत्र ; अजनो पिता) (२) ब० व० रजस्वल वि० रजवाळं; रजथी छवारघुना वंशजो येलं (२) रजोगुण के विकारथी भरेलं रघुनंदन, रघुनाथ, रघुपति पुं० राम रजस्वला स्त्री० मासिक ऋतुधर्ममां रघुप्रतिनिधि पुं० अज राजा आवेली स्त्री (२) परणाववा योग्य रघुश्रेष्ठ, रघुसिंह पुं० राम थयेली कन्या रघद्वह पुं० (रघुओमां श्रेष्ठ) राम रजोगुण पुं० प्रकृतिना त्रण गुणोमांनो रच् १० उ० गोठवq; तैयार करवं; बीजो (सत्त्व, रजस्, तमस्) योजq(२)बनावq;सर्जवं; उत्पन्न करवू रजोजष वि० रजोगुण सेवतुं (३)लखवूग्रंथ रचवो(४)उपर मूकवू, रजोनिमीलित वि०विकारथी अंध बनेलं खोसq के चोटाडवू (५) शणगारवं रज्जु स्त्री० दोरडु; दोरी रचन न०, रचना स्त्री० गोठवणी (२) रज्जुक पुं० रज्जु ; दोरडु [झोळो रचq ते; सर्जन (३)अमल; व्यवहार राजुपेडा स्त्री० दोरडीनो बनावेलो Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ र १५० चीस पाडवी; बूम पाडवी (२) मोटेथी जाहेर करवू (३) आनंदथी बूम पाडवी (४) वगाडवू; अवाज करवो रटित न० बूम; चीस रण १ प० रणकार करवो; खखड, रण पुं०, न० युद्ध (२) रणांगण रणक्षिति स्त्री०, रणक्षेत्र न०, रणक्षोणी, रणक्षोणी, रणक्ष्मा स्त्री०, रणखल पुं० रणभूमि; लडाई मेदान रणत् वि० युद्ध करतुं (२) अवाज करतुं (३) गमन करतुं; जतुं रणत्कार पुं० रणको; रणकार (२) अवाज (३) गुंजारव रणधुर्(-रा) स्त्री० युद्धनो मोखरो रणपंडित वि० युद्धकुशळ (२)पुं० योद्धो रणभ, रणभूमि स्त्री० लडाईनु मेदान रणमूर्धन् पुं० युद्धनो मोखरो (२) लश्करनी आगली हरोळ रणरणक पुं०, न राग; प्रेम (२) चिंता; उद्वेग ; चचराट (प्रिय वस्तु माटे) (३) पुं० कामदेव । रणलक्ष्मी स्त्री० युद्धनी देवता (२) युद्धमा जीतवा के हारवार्नु भाग्य रणशिरस, रणशीर्ष न० जुओ 'रणमूर्धन्' रणशौंड वि० युद्धमां कुशळ । रणाजिर न० रणभूमि । रणातिथि पुं० रणभूमि उपरनो महेमान । (जेनी साथे लडq जोईए) रणातोद्य न० रणभूमिर्नु नगारुं रणापेत वि० रणभूमिमांथी भागी गयेलं रणांग न० हथियार; तरवार रणांगण (-न) न० रणभृमि रणांतकृत् पुं० विष्णु रणित न० रणकारो रत ('रम् ' नुं भू० कृ०) वि० खुश; संतुष्ट (२) अनुरक्त; आसक्त (३) न० आनंद (४) संभोग रति स्त्री० आनंद; तृप्ति; प्रीति (२) आसक्ति; अनुराग (३)प्रेम (४) रतिसुख ; संभोग (५) कामदेवनी पत्नी रतिकर वि० आनंद आपनारु (२) अनुरक्त; कामी [जनारी रतिदूति (-ती) स्त्री० प्रेमनो संदेश लई रतिपति, रतिप्रिय, रतिरमण पुं० काम देव; मदन [जेमा छे ते रतिसर्वस्व न० रतिसुखनुं सर्वोत्तम तत्त्व रत्न न० मणि वगेरे कीमती पथ्थर (२) रत्न जेवं मूल्यवान जे कंई ते (३) ते ते वर्गमां श्रेष्ठ होय ते रत्नगर्भा स्त्री० पृथ्वी रत्नच्छाया स्त्री० रत्नोनो प्रकाश रत्ननख पुं०रत्नजडित हाथावाळी कटार रत्ननाभ पुं० विष्णु रत्ननिधि पुं० समुद्र (२) मेरु पर्वत रत्नपारायण न० रत्नोनी पराकाष्ठा रूप एवं ते; बधां रत्नोमां श्रेष्ठ एवं ते रत्नप्रदीप पुं० रत्नरूपी दीवो रत्नवत् वि. रत्नोवाळं; रत्नोथी भरपूर (२) रत्नोथी सुशोभित रत्नषष्ठी स्त्री० अमुक पखवाडियानी छठ्ठी तिथिए पाळवानुं एक व्रत के उपवास (एक ग्रीष्मवत) रत्नसानु पुं० मेरु पर्वत . रत्नसू वि० रत्नो पेदा करनारुं (२) स्त्री० पृथ्वी रत्नाकर पुं० रत्ननी खाण (२) समुद्र रत्नाचल पु. लंकामांनो एक काल्पनिक पर्वत (मेघगर्जना थतां जे रत्नो पेदा करे छे); 'रत्नरोहण' पर्वत रत्नाढय वि० रत्नोथी भरपूर रत्नावली स्त्री० मोतीनी माळा रत्नि स्त्री० कोणी (२) कोणीथी मांडीने वाळेली मूठी सुधीनुं अंतर के माप (३) पुं० वाळेली मूठी रथ पुं० उपर घूमटवाळं सवारीनुं एक वाह्न (२) लडाई माटर्नु घोडा जोडेलं एक वाहन Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रथकर ४०५ रवितनय रथकर, रथकार पुं० सुतार र १ आ० आरंभ करवो (२)आलिंगन रथकुटुंबिन् मुं० सारथि करवु (३) उत्सुक थर्बु (४) साहस करवू रथकबर पुं०, न० रथनो धोरियो रभस वि० झननी; जस्सावाळं (२)तीव्र; रथक्षोभ पुं० रथमां आवतो आंचको गाढ (३)अविचारी; साहसिक (४)पुं० रथचरण पुं० रथ, पै९ (२) सुदर्शनचक्र जुस्सो; वेग (५)साहस ; अविचारीपणुं (३) चक्रवाक पक्षी [करवी ते (६)गुस्सो (७) खेद; दिलगीरी (८) रथचर्या स्त्री० रथमां बेसी मुसाफरी आनंद ; हर्ष (९)तीव्र इच्छा; उत्सुकता रथपाद पुं० जुओ 'रथचरण' रम् १ आ० आनंद पाम आनंद माणवो रथपुंगव पुं० उत्तम योद्धो (२) -मां रत थर्बु -थी हर्ष पामवो रथशक्ति स्त्री० रथनी ध्वजानो दंड (३) क्रीडा करवी (४)संभोग करवो रथशिक्षा स्त्री० रथ हांकवानी विद्या (५) विरम; थोभवं रथारथि अ० रथ सामे रथ आवी जाय रमण वि० आनंद आपनाएं; मनोरंजक; तेम (नजीक नजीक, युद्ध) मनोहर (२)पुं० प्रियतम; पति (३) रथांग पुं० चक्रवाक पक्षी (२)न० रथ- कामदेव (४)न० संभोग; रतिक्रीडा चक्र के पैडु (३) रथनो कोई पण भाग रमणी स्त्री० सुंदर जुवान स्त्री (२) (४) चक्र (खास करीने विष्णुर्नु) (५) पत्नी; प्रियतमा (३) कोई पण स्त्री कुंभारनो चाकळो रमणीय वि० मनोहर; सुंदर रथांगपाणि पुं० विष्णु (सुदर्शन-धारी) रमा स्त्री प्रियतमा; पत्नी (२) लक्ष्मी रथिन् वि० रथ- मालिक (२) रथ देवी; समृद्धिनी देवी (३) सद्भाग्य हांकनारुं (३) रथमां बेसनारु (४)पुं० (४) शोभा (५) संपत्ति रथवाळो (५) रथमां बेसी लडनारो रमाकांत, रमानाथ, रमापति पुं० विष्णु रथेश पुं० रथमां बेसी लडतो योद्धो रम्य वि० सुंदर; रमणीय (२)प्रिय; रथेशा (-षा) स्त्री० रथनो धोरियो सुखकर; मनगमतुं रथोपस्थ पुं० रथनी बेठक रम्या स्त्री. रात्री रथ्य पुं० रथनो घोडो (२) रथनो भाग रम्यांतर वि० वच्चेनां स्थान रम्य के रथ्यचय पुं० घोडाओनी टुकडी मनोहर करायां छे तेवू रथ्या स्त्री० रथ जाय तेवो मार्ग - रय पुं० नदीनो प्रवाह (२)वेग; झडप धोरी मार्ग (२)घणा रस्ता भेगा थता (३) खंत; उत्सुकता [अन्न होय ते स्थान (३) रथोनो समुदाय रयि पुं०. न० पाणी (२)संपत्ति (३) रथ्यापंक्ति स्त्री० शेरीओनी पंक्ति रल्लक पुं० ऊननुं वस्त्र; कामळो (२) रथ्यामुख न० रस्तानो प्रवेशभाग पापण (३) एक जातनो मृग रद पुं० चीर ते (२) खणq ते (३) दांत रव पुं० चीस; बूम; गर्जना (२) रदखंडन न० दंतक्षत; दांत बेसाडवा ते पंखीओनो कलरव (३) अवाज रदन पुं० दांत (२) न० -चीर के रवण वि० चीस पाडतुं; गर्जतुं ; अवाज खण, ते करतुं (२) पुं० ऊंट (३) कोयल र ४ ५० ईजा करवी; मारी नाखवं (४) भमरो -प्रेरक० [रंधयति] ईजा करवी; रवि पुं० सूर्य (२) आकडा, झाड पीडq (२) रांधवं रवितनय पुं० कर्ण (२) शनिग्रह सं. ग.-२६ Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रविवंश } रश्मिमुच ; रविवंश पुं० सूर्यवंश ( राजाओनो) रशना स्त्री० जुओ' रसना रश्मि पुं० दोरडुं; दोरो (२) लगाम (३) परोणो; चाबुक (४) किरण (५) पापण रश्मिग्राह पुं० सारथि रश्मिमत्, रश्मिमालिन्, रश्मिवत् पुं० सूर्य रस् १ ५० बूम पाडवी; अवाज करवो (२) रणकवुं ( ३) १० उ० स्वाद लेवो; चाखवं; अनुभववुं (४) चाहवुं रस पुं० प्रवाही द्रव ( २ ) झाड वगेरेनुं घटक प्रवाही (३) पाणी ( ४ ) स्वाद (५) स्वाद माटेनो पदार्थ (६) कोई पण बाबत माटेनी रुचि ( ७ ) प्रेम; स्नेह (८) आनंद (९) काव्य जोवासांभळवाथी स्थायी भावोनो उद्रेक थतां थतो अलौकिक आनंद (शृंगार, हास्य, करुण, वीर, रौद्र, भयानक, अद्भुत, बीभत्स अने शांत ए नव प्रकारनो) (१०) सार; सत्त्व ( ११ ) पारो; पारा वगेरे घातुनी भस्म (१२) जीभ (१३) शरीरनी घटक सात धातुओमांनी प्रथम; अन्ननुं प्रथम रूपांतर (१४) झेर; झेरी पेय रसक न० मांसनो सेरवो रसज्ञ वि० रसनी कदर -परख करनाहं ( २ ) पुं० वैद ( ३) कीमियागर रसज्ञा स्त्री० जीभ रसद पुं० वैद्य रसन न० चीस पाडवी ते; अवाज करवो ते; रणकार (२) मेघगर्जना ( ३ ) स्वाद (४) जीभ (५) अनुभव - जाण रसना स्त्री० दोरी; दोरडुं ( २ ) लगाम (३) स्त्रीनी कटिमेखला के कंदोरो (४) जीभ ( ५ ) स्वादनी इंद्रिय रसप्रबंध पुं० काव्य के नाटकनी रचना रसमय वि० रसात्मक; रसनुं बनेलुं (२) रसवाळु प्रवाही ( ३ ) सुंदर, मनोहर (४) प्रेममांथी नीपजतुं ४०६ रहस् रसवत् वि० रसभयुं (२) स्वादु (३) सुंदर ( ४ ) प्रेमभयं (५) भेजभयं रसवती स्त्री० रसोडुं (२) रसोई रससिद्ध वि० काव्य के रसनुं जाणकार रसा स्त्री० एक पाताळ; नरक ( २ ) भूमि ; जमीन (३) जीभ रसातल न० सात पाताळोमांनुं एक (२) नरक ( ३ ) जमीन; भूमि रसात्मक वि० रसनुं बनेलु; रसवाळु (२) स्वादवाळं (३) अमृतमय ( ४ ) प्रवाही (५) सुंदर; मनोहर रसाधिक वि० रसाळ; स्वादु ( २ ) आनंदोथी भरेलु ; भोगपदार्थोथी भरपूर रसायन न० वृद्धावस्थाने अटकावनार तथा आयुष्य वधारनार कोई पण औषधि ( २ ) ए प्रमाणे आनंद के तृप्ति आपनार कोई पण वस्तु रसाल पुं० आंबो (२) न० छाशनी एक बनावट (३) धूप रसालवनी स्त्री० आंबावाडी; आंबातुं वन रसालसाल पुं० आंबा झाड रसाला स्त्री० जीभ (२) दहींनी एक मीठी वानी (३) दूर्वा ; दरो ( ४ ) द्राक्ष रसास्वाद पुं० रस चाखवो ते (२) काव्यनो रस माणवो ते रसांतर न० बीजो स्वाद (२) बीजो भाव के रस ( ३ ) बीजो आनंद रसिक वि० स्वादु रसभर्यु ( २ ) सुंदर ( ३ ) रसनुं कदरदान (४) -मां रस लेतुं -मां आसक्त ( सनासने छेडे) (५) पुं० रसनी कदरवाळो (६) भोगासक्त - कामुक पुरुष रसित ( ' रस्' नुं भू० कृ० ) वि० चाखेलुं (२) रसयुक्त (३) अस्पष्ट अवाज करतुं (४) न० बूम; अवाज ( ५ ) गर्जना रस्य वि० रसभयुं; स्वादु रह, १ प०, १० उ० तजी देवुं रहण न० तजी देवूं ते रहसू अ० छानी रीते; गुप्तपणे Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०७ राक्षस रहस् न० एकांत स्थान; गुप्तस्थान (२) रंघस् न० वेग; झडप निर्जनस्थान (३)गुप्त वात; रहस्य रंज १,४ उ० राता रंगवाळु थर्बु (२) रहस्य वि० छार्नु; गुप्त (२)न० गुप्त रंगवू (३) प्रेममां पडवू (४) खुशी वात (३)गुप्त मंत्र के प्रयोग (अस्त्रनो) थवू; राजी थQ (४) गूढ सिद्धांत (५) उपनिषद -प्रेरक० रंगवू (२) खुश करवू रहस्यम् अ० गुप्त रीते; छानी रीते (३) मनावी लेवं रहस्याख्यायिन् वि० गुप्त वात कहेतुं रंजक वि० रंग करनाएं (२) राग के रहाट पुं० अमात्य (२) झरj (३) पिशाच प्रीति उत्पन्न करनारु (३)खुश करनारं रहित वि० तजायेखें (२) छूटुं पडेलं; रंजन वि. रंगनारुं (२)खश करनाएं विनानुं बनेलं (३) एकलुं (४) न० (३)न० रंगवू ते (४)रंग (५) राजी एकांत गुप्तस्थान [बेठेलु करवू ते; संतुष्ट करवू ते रहीभूत वि. एकांतमां के खानगीमां रंजित वि० रंगेलुं (२) खुश थयेलु रंक वि० दरिद्र ; दीन (२)पुं० भिखारी रंड वि० अपंग बनेलं (२) बेवफा (३) भूखे मरतो माणस रंडास्त्री० विधवा (२) वेश्या रंकु पुं० हरण; मृग रंतव्य वि० रमवा के क्रीडा करवा योग्य रंग पुं० रंग; वर्ण (२) राग; प्रीति (३) (२) न० क्रीडा; उपभोग; रमत रंगभूमि(४)रणभूमि (५) अखाडो (६) रंतिदेव पुं० एक चंद्रवंशी राजा (मोटा प्रेक्षकगण ; सभासदो (७)नाच; नृत्य; पशुयज्ञो करनार) खेल (८)पुं०, न० कलाई रंप ४ प० जुओ 'रध' रंगदेवता स्त्री. रणभूमि के अखाडो रंधन न०, रंघि स्त्री० ईजा करवी वगैरेनी अधिष्ठाता देवी। के नाश करवो ते (२) रांधq ते रंगपीठ न० नृत्यभूमि रंध्र न० छिद्र ; काणुं ; फाट (२)ज्यांथी रंगप्रवेश पुं० अभिनय माटे पात्रनुं हुमलो करी शकाय तेवी नबळी जगा रंगभूमि उपर दाखल थर्बु ते । (३) दूषण; दोष (४) तोफान , रंगबीज न० रू' [रणक्षेत्र रंध्रप्रहारिन वि० नबळे स्थाने हुमलो रंगभूमि स्त्री० नाटकनो तख्तो (२) करनारं [नबळ स्थान शोधनाएं रंगमंडप न० नाटकशाळा रंध्रानुसारिन्, रंध्रान्वेषिन् वि० छिद्र के रंगवाट पुं० नाटक, नृत्य वगेरे माटे रंभा स्त्री० केळ (२) गौरी (३) एक आंतरेली जगा अप्सरा (४) बांघडवू के बराडव ते रंगसंगर पुं० रंगभूमि उपर हरीफाई रंभोरु वि० केळना जेवी मनोहर रंगाजीव पुं० नट (२) रंगरेज - भरेली- जांघवाळु; सुंदर ... रंगावतरण न० रंगभूमि उपर प्रवेश रंह, १ प० जलदी गति करवी; करवो ते (२) नटनो धंधो उतावळ करवी (२) वहेवू . रंगावतारके, रंगवतारिन् पुं० नट रहस न० वेग; झडप रंगांगण (-न) न० अखाडो; हरीफाई राका स्त्री० पूर्णिमा; पूनमनी रात वगेरे थवानां होय ते स्थान राकाचंद्र, राकापति, राकारमण, राकेश रंगोपजीविन पुं० रंगरेज पुं० पूर्ण चंद्र रंघ १ उ० जq; वेगथी जq (२) राक्षस वि० राक्षसचें; राक्षसी (२) पुं० १० उ० प्रकाश, (३)बोलवू दानव; दैत्य; असुर (३) विवाहना Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राग ४०८ राजपुत्री आठ प्रकारामांनो एक (कन्यानां राजकुल न० राजानुं कुल (२) राजसगांवहालांने मारी-कापीने कन्याने दरबार (३) कचेरी; अदालत (४) रडती बळजबरीथी उपाडी जवी ते) राजमहेल (५) राजा (मानवाचक राग पुं० रंगवू ते (२) रंग (३)लाल रंग उल्लेख) (६) राजसेवक अमात्य (४) लाल अळतो (५)प्रेम ; आसक्ति; राजगुरु पुं० राजानो सलाहकार के कामवासना (६) लागणी (७) आनंद राजगुह्य न० महागूढ वस्तु (८) गुस्सो; क्रोध (९) मनोरंजन थाय राजगृह न० राजानो महेल (२) मगधनी तेवीगावानी रीत (मुख्य राग ६ गणाय राजधानी- नाम (पाटलिपुत्रथी ७५ छ) (१०) मत्सर; ईर्ष्या (११) रजोगुण थी ८० माईल दूर आवेलु) रागमय वि० रातुं; लाल (२) प्रिय राजघ पुं० राजानो वध करनारो (३) प्रेमयुक्त राजत वि० रूपानुं बनेलं (२) न० रूपुं रागबंध पुं० प्रेम प्रगटाववो ते राजतस् अ० राजाथी; राजा पासेथी रागलेखा स्त्री० रंगनी रेखा के निशानी राजताल पुं०, राजताली स्त्री० सोपारीनं झाड रागवत् वि० जुओ 'रागमय' । रागात्मक वि० राग उत्पन्न करनाएं; राजदंड पुं० राजसत्तानो सूचक दंड रागमय [गणाय छे) (२) राजाए करेलो दंड के शिक्षा रागिणी स्त्री० रागणी (३० के ३६ राजदंत पुं० आगलो दांत रागिता स्त्री० रंगवाळं होवू ते (२) राजदूत पुं० राजानो प्रतिनिधि प्रेमयुक्त होते (३)-ने माटे आसक्ति राजदेय न० राजाने भरवानो कर राजद्रोह पं० राजा सामे बळवो । रागिन् वि० रंगेलं (२) रंगनाएं (३) रातु; लाल (४) प्रेमयुक्त (५) अति राजद्वार स्त्री०, राजद्वार न० राजआसक्त (६) पुं० रंगारो (७) प्रेमी महेलनो दरवाजो. राजद्वारिक पुं० राजानो द्वारपाळ (८) विषयासक्त - कामी राघ पुं० शक्तिमान के कुशळ माणस राजधर्म पुं० राजानुं कर्तव्य राजधानिका स्त्री०, राजधानी स्त्री० राघव पुं० रघुनो वंशज (खास करीने राजानुं निवासस्थान; ते शहेर राम) (२) एक जातनुं मोटुं माछलुं राजन् पुं० (तत्पुरुष समासने अंते राज १ उ० चळकवू; प्रकाशवं; शोभ, 'राज' थई जाय) राजा (२)क्षत्रिय (२) -ना जेवू देखावं के शोभवू (३) चंद्र (४) यक्ष (५) सोमवल्ली राज (-ज) पुं० राजा (२) ते ते वर्ग राजनय पुं०, राजनीति स्त्री० राज्यश्रेष्ठ ते (उदा० शंखराज) वहीवट (२) राजकारण; 'पोलिटिक्स' राजक पुं० नानो-सामान्य राजा (२) राजन्य पुं० क्षत्रिय (२) राजकुटुंबनो न० राजाओनो समुदाय माणस (३) अग्नि राजकरण न० अदालत [करनारो राजन्यक न० क्षत्रियोनो समह राजकर्तृ पुं० राज्याभिषेक वखते मदद राजन्वत् वि० सारा राजावाळो देश राजकला स्त्री० चंद्रबिंबनो सोळमो राजपथ पुं० राजमार्ग भाग (चंद्रनी प्रथम कळा) राजपुत्र पुं० राजकुंवर (२) क्षत्रिय राजकलि पुं० खराब राजा . राजपुत्री स्त्री० राजकुंवरी (२) रजपूत राजकुमार पु० राजानो कुंवर जातिनी स्त्री Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०९ राजपुरुष राजपुरुष पुं० राजानो नोकर (२)वजीर राजप्रकृति स्त्री० राजानो अमात्य राजमार्ग पुं० धोरी रस्तो; मुख्य मार्ग (२) राजानो व्यवहार-रीत राजमुद्रा स्त्री. राजानी महोर - ‘सील' राजयक्ष्म, राजयक्ष्मन् पुं० (चंद्रने थयेलो रोग) क्षयरोग राजराज पुं० राजाधिराज (२) चंद्र राजराज पुं० सम्राट; राजाधिराज (२) चंद्र (३)कुबेर राजराज्य न० कुबेरनुं पद राजर्षि पुं० ऋषि जेवो राजा; क्षत्रिय छतां तपस्वी जीवन गाळनार (उदा० पुरूरवस्, जनक, विश्वामित्र) राजलक्ष्मन् न० राजचिह्न राजलक्ष्मी स्त्री० राजानी विभूति-वैभव राजवंश पुं० राजानो वंश राजविद्या स्त्री० राज्यशास्त्र; राजनीति (२) विद्याओमा श्रेष्ठ विद्या राजवृक्ष पुं० गरमाळानुं झाड (२) चारोळीनुं झाड राजवृत्त न० राजानो व्यवहार राजशासन न० राजानो हकम-आज्ञा राजशास्त्र न० राजनीतिशास्त्र राजस वि० रजोगुण युक्त राजसभा स्त्री० अदालत; कचेरी राजसंसद् स्त्री० अदालत; कचेरी राजसूय पुं० सर्वोपरी राजा वडे करातो यज्ञ (तेना राज्याभिषेक वखते) राजस्व न० राजानी मिलकत (२) राजाने आपवानो कर [धोळो हंस राजहंस पुं० लाल पग अने चांचवाळो राजासन न० राजगादी; सिंहासन राजि स्त्री० पंक्ति; रेखा (२) राई राजिका स्त्री० पंक्ति (२) राई राजित वि० प्रकाशित राजिल पुं० एक जातनो (झेरी नहि तेवो) साप राजीव पुं० एक जात- हरण (२) न० नीलकमळ [जेवी आंखवाळू राजीवनेत्र, राजीवलोचन वि० कमळ राजेंदु पुं० उत्तम राजा राजोपकरण न० ब०व० छत्र चामर वगेरे राजचिह्न राज्ञी स्त्री० राणी राज्य न० राजसत्ता (२) राजानी हकमतनो प्रदेश (३) राजशासन राज्यपरिक्रिया स्त्री० राजशासन राज्यभंग पुं० राजशासन ऊखडी जq ते राज्यभाज् पुं० राजा [थर्बु ते राज्यभ्रंश पुं० राजगादीएथी पदभ्रष्ट राज्याधिदेवतास्त्री० राज्यनी कुळदेवता राज्याभिषेक पुं० राजाने गादीए बेसाडवानो विधि राज्याश्रममुनि पुं० पवित्र राजा राज्यांग न० राजशासनमां जरूरी अंग (राजा, प्रधान, मित्र, कोष, राष्ट्र, दुर्ग, अने सैन्य) (२)किल्लो(३)लश्कर रात्रि स्त्री० रात (२)रातर्नु अंधारूं। रात्रिक वि० (समासने छेडे )अमुक रात (के दिवस) सुधी चालतुं रात्रिचर पुं० राक्षस(२)चोर(३)पहेरेगीर रात्रिचरी स्त्री० पिशाचिनी रात्रिचर्या स्त्री० राते फरवू ते रात्रिजागर पुं० राते जागवू ते(२)कूतरो रात्रिरक्षक पुं० चोकीदार रात्रिदिवम्, रात्रिदिवा अ० रातदिवस रात्री अ० जुओ 'रात्रि' रात्र्यंध वि० रतांधळु राध्यागम पुं० रात आववी - पडवी ते राद्ध ('राध्' नं भ० कृ०) वि० आराधेलु; खुश करेलु (२)सिद्ध करेलु (३) रांधेलु (४)तैयार - सज्ज करेलु राद्धांत पुं० पुरवार थयेलो-निश्चित सिद्धांत; साबित थयेली हकीकत राष् ५ प० आराधq; खुश करवू; शांत करवु (२) सिद्ध कर (३) तैयार करवू Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० रि राध (४) ने भागे आवी पडवू (४५० पण) (५)वध करवो; ईजा करवी; नाश करवो (६)४ प० अनुकूळ थर्बु (७) सिद्ध-पूर्ण थर्बु (८) -नुं हित जोवू (९) सफळ नीवडवू राध पुं० वैशाख महिनो राधा स्त्री० समृद्धि; सिद्धि (२) एक प्रसिद्ध गोपी (३) कर्णने उछेरनारी पालक माता राधेय पुं० कर्ण राम वि० आनंद आपनाएं (२) सुंदर (३) श्याम (४) श्वेत (५) पुं० परशुराम (६) बळराम (७) रामचंद्र (दशरथना पुत्र) रामगिरि पुं० एक पर्वत (केटलाकने मते बुंदेलखंडनो चित्रकूट; अथवा नागपुर नजीकनो रामटेक) रामचंद्र पुं० राम (दशरथना पुत्र) रामणीयक वि० सुंदर; रम्य (२) न० सुंदरता; रमणीयता रामण्यक न० रमणीयता रामभद्र पुं० राम ; रामचंद्र रामा स्त्री० सुंदर स्त्री (२) प्रिया (३) कोई पण स्त्री (४) खानदान स्त्री राव पुं० बूम ; चीस (२) अवाज; नाद रावण वि० चीसो पाडतुं (२) पुं० लंकानो राक्षस राजा रावणि पुं० इंद्रजित (रावणनो पुत्र) (२) रावणनो कोई पण पुत्र रावित न० अवाज राशि पुं०, स्त्री० ढगलो; समूह (२) नक्षत्रनां बार झूमखांमांनुं प्रत्येक (मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धन, मकर, कुंभ अने मीन) (३) गणितनो आंकडो (सरवाळा, गुणाकार इ० थी मळतो) राष्ट्र न० राज्य ; साम्राज्य (२)प्रांत; प्रदेश (३) लोक; प्रजा राष्ट्रभेद पुं० राज्यना भागला थवा ते राष्ट्रिक पुं० देश के राज्यनो वतनी (२) शासक ; 'गवर्नर' राष्ट्रिय, राष्ट्रीय वि० राज्यनु; राष्ट्रनुं (२) पुं० राजा (३) राजानो साळो (४) राज्यनो अमलदार रास् १ आ० चीस पाडवी; बूम पाडवी रास पुं० बूमाबूम; धांधळ (२) अवाज (३)एक जातनुंगोळ कुंडाळामां करातुं नृत्य (जेमके, श्रीकृष्ण-गोपिकाओनुं) रासक न० एक जातनुं गौण नाटक रासभ पुं० गधेडो राहित्य न० रहितपणुं; अभाव राहु पुं० एक राक्षस; सूर्य-चंद्रने ग्रसे छे ते ग्रह (२) ग्रहण राहग्रसन न० ग्रहण (सूर्य-चंद्रनुं) राहुशत्रु पुं० चंद्र रांकव वि० रंकु मृगना वाळनुं बनेलं (२) न० रंकु मृगना वाळy बनावेलु वस्त्र (३) कामळो [वांसनो दंड रांभ पुं० संन्यासी के ब्रह्मचारीनो रिक्त ('रिच ' न भू० कृ०)वि० खाली करेलु (२)खाली (३) छूटुं पाडेलु (४) निरुपयोगी (५) न० खाली जगा (६) निर्जन स्थळ; वेरान रिक्तपाणि, रिक्तहस्त वि० खाली हाथवा ; कशी भेट न लावनारुं रिक्तीकृ ८ उ० खाली करवू (२) छोडी देवु (३) चोरी जq [सोनुं रिक्थ न० वारसो (२) मिलकत (३) रिच ७ उ० खाली करवू (२)- रहित करवू;-विनानुं करवु (३) छूटुं पाडवू (४)तजी देवू (५)१,१० प० तजी देवं (६) छूटुं पाडवू रिपु पुं० शत्रु; दुश्मन रिपुकाल पुं० मृत्युनो देव रिपुसूदन वि० शत्रुनो नाश करनारु रिरसा स्त्री० क्रीडा करवानी इच्छा रिष् १,४ प० ईजा करवी (२)हणवू Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिष्ट रिष्ट ('रिष् 'तुं भू० कृ०) वि० ईजा करेलु; हणेलु (२)कमनसीब (३)न० ईजा; नुकसान (४) कमनसीब (५) पाप (६) हानि (७) समृद्धि ; क्षेम रिह, १ प० [रेहति ] हणवू रिंग १ प० सरकवं; खसवं रिगि स्त्री० जर्बु के सरकवू ते रीढा स्त्री० अपमान; अवज्ञा रीण ('री'नुं भू० कृ०) वि० टपकेलं; झमेलं (२) नष्ट; क्षीण रीति स्त्री० जq-वहेवू ते (२) गति (३) वहेण (४) सीमा; रेखा (५) पद्धति; रीत (६) रूढि (७) कांसु रु २ प० बूम पाडवी; चीस पाडवी; गर्जना करवी; गुंजारव करवो; अवाज करवो (२) १ आ० जर्बु (३) ईजा करवी; मारी नांखवू रुक्म वि० चमकतं; प्रकाशित (२) सोनेरी (३) पुं० सोना- घरेणुं (४) न० सोनुं (५) लोढुं । रुक्मपात्री स्त्री० सोनानी थाळी रुक्मपुंख वि० सोनानां पीछांवाळु (जेम के बाण) रुक्मपृष्ठक वि० सोनानो ढोळ चडावेलं रुक्मरथ, रुक्मवाहन पुं० द्रोणाचार्य रुक्मिणी स्त्री० विदर्भना भीष्मकनी पुत्री श्रीकृष्णनी पत्नी प्रद्युम्ननी माता रुक्मिन् वि० सोनानां घरेणांवाळू (२) सोनानो ढोळ चडावेलु (३) पुं० रुक्मिणीनो भाई रुग्ण ('रुज्' - भू० कृ०) वि० भांगेलं; तूटेलु (२) वांकुं वळेलु (३) ईजापामेलं (४) बीमार; मांदूं। रुच १ आ. प्रकाशq; शोभq (२) गमवू (जे वस्तु गमे ते प्रथमा विभक्तिमां; अने जेने गमे ते चतुर्थीमां) रुच् (-चा) स्त्री० तेज; कांति (२) शोभा; सुंदरता (३) वर्ण; देखाव (समासने अंते) (४)रुचि; इच्छा रुचि स्त्री० प्रकाश; तेज; कांति (२) प्रकाशन किरण (३) देखाव; वर्ण (समासने छेडे) (४) स्वाद (५) भूख (६) इच्छा (७) गमवू ते; प्रीति रुचिकर वि० स्वादु; भावे तेवू (२) इच्छा ऊभी करनाएं (३) भूख लगाडनाएं रुचित वि० प्रकाशित; कांतिमान (२) स्वादु (३) प्रसन्न रुचिधामन्, रुचिभर्त पुं० सूर्य । रुचिर वि० तेजस्वी; कांतिमान (२) स्वादु (३) भूख लगाडनारं(४)प्रसन्न रुची स्त्री० जओ'रुचि' रुज् ६ प० टुकडा करवा; नाश करवो (२)हानि करवी; पीडq (३)वाळवू; नमावq (४) १० उ० वध करवो रुज (-जा) स्त्री० भागवं ते; तूटी जवू ते (२) पीडा; वेदना (३) बीमारी; मांदगी (४)थाक; परिश्रम रुत ('रु' नुं भू० कृ०) वि० अवाज करेलु (२)भागीने टुकडा करेलु (३) न० बूम; अवाज; गुंजारव (घोडानो, पंखीनो, भमरानो इ०) रुतज्ञ पुं० पक्षी वगेरेना अवाज उपरथी भविष्य भाखनारो रुद् २ प० रडवू(२)चीस पाडवी रुदन, रुदित न० रडवू ते; विलाप रुद्ध ('रुध् ' भू० कृ०) वि० रोकेलं; अटकावेलु (२) घेरेलु (३)बंध करेलु (४) ढांकेलं रुद्र वि० भयंकर; बिहामणुं (२) अनिष्ट दूर करनारु(३)पुं० शिवना गौणरूप मनाता ११ देवोनो वर्ग(४)शिव(५) अग्नि (६) व० व० प्राणो-इंद्रियो रुद्रदर्शन वि० भयंकर; बिहामणु रुद्राक्ष पुं० एक वृक्ष (२) न० तेनुं बी (जेनी माळा बने छे) रुष ७ उ० रोध; रोकवू; अटकावq (२)टकावी राखq (३) बंध करवू Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ afro (४) वच्चे घेरी लेवुं (५) बांधवुं ; पूरवुं (६) ढांकवु; संताडवुं (७) पीड afar fro लाल रंगनुं ( २ ) न० लोही (३) पुं० लाल रंग (४) मंगळग्रह ( ५ ) एक रत्न [ लोहीथी तरबोळ रुधिरप्लावित वि० लोहीथी खरडायेलुं ; रुरु पुं० एक जातनुं हरण रुशत् वि० मर्मवेधी (शब्द) रुष् ४ ५० रोष करवो; रोषे भरावुं ( २ ) १ प० ईजा करवी ; वध करवो (३) पजववुं चिडववुं रुष ( - षा) स्त्री० रोष; गुस्सो रुषित, रुष्ट ('रुष ' नुं भू० कृ० ) वि० गुस्से थयेलुं; रोषे भरायेलुं रुह् १ प० ऊगवुं ; फणगो फूटवो ( २ ) वध; विकस ( ३ ) घा रुझावो ( ४ ) पामवु; पूर्ण थवुं (इच्छा) - प्रेरक ० [रोपयति-ते, रोहयति - ते ] रोपवुं; वाववुं (२) ऊंचं करवुं (३) -ने सोंपवुं (४) -तरफ ताकवूंं के फेंक रुह ( है ) वि० ( समासने छेडे ) - मां ऊगतुं; -मां थतुं (उदा० 'पंकेरुह ' ) रंड वि० अपंग थयेलुं – करायेलुं (२) पुं०, न० धड (माथा विनानुं) रुक्ष वि० खडबडुं; कठण; कठोर (२) क्रूर (३) लखुं; चीकाश वगरनुं (४) उग्र (स्वाद) (५) सूकुं रूढ ('रुह, ' नुं भू० कृ० ) वि० ऊगेलं; फूटेलुं (२) उत्पन्न थयेलं ( ३ ) वधेलुं (४) ऊंचुं चडेलुं (५) मोटुं; दृढ ( ६ ) रूढि प्रमाणेनुं प्रचलित (७) लादेलुं; भार भरेलु (८) प्रख्या रूग्रंथि वि० गंठाई गयेलुं रूढयौवन वि० युवावस्था पामेलुं रूढव्रण वि० घा रुझाया होय तेनुं रूढसौहृद वि० दृढ मित्रतावाळु रूढि स्त्री० रुढ थयेली रीति के रिवाज (२) उत्पत्ति; जन्म (३) विकास; ४१२ रेक वृद्धि ( ४ ) ख्याति ; प्रसिद्धि (५) रूढ प्रचलित थयेलो अर्थ - रूप् उ० १० घडवुं; आकार आपको (२) भजववुं अभिनय करवो ( ३ ) निहाळीने जोवुं ( ४ ) वर्णन करवु रूप वि० अनुरूप (२) न० आकृति; देखाव (२) वर्ण (३) कोई पण दृश्य पदार्थ (४) सुंदर आकृति (५) कुदरती स्थिति (देश, काळथी भिन्न) (६) एक चलणी सिक्को (७) रूपुं (८) (समासने अंते ) ' - नुं बनेलुं; - ना देखाववाळं ' एवा अर्थमा (उदा० 'तपोरूप', 'धर्मरूप' ) रूपक वि० शरीरी ; स्थूल (२) लाक्षणिक ( शब्द इ० ) (३) पुं० एक सिक्को; रूपियो (४) न० आकृति; रूप (समासने अंते) (५) आविष्कार ( ६ ) मूर्ति ( (७) नाटक ( ८ ) एक अलंकार ( काव्य ० ) रूपकार, रूपकृत् पुं० सलाट; शिल्पी रूपण न० रूपकवाळु वर्णन (२) तपास ; परीक्षण रूपधर वि० -तुं रूप धारण करनाएं; -ना वेशमां छुपाये लुं [ करवुं रूपपरिकल्पना स्त्री० - तुं रूप धारण रूपवती स्त्री० सुंदर स्त्री रूपविपर्यय पुं० रूप बगडी जवं ते रूपसंपत्ति, रूपसंपद् स्त्री० श्रेष्ठ रूप रूपाजीवा स्त्री० वेश्या ( रूप व जीवनारी) [ मूर्तिमान रूपिन् वि० - ना जेवुं देखातुं (२) रूपोच्चप पुं० सुंदर स्वरूपोनो संग्रह रूप्य वि० सुंदर; मनोहर ( २ ) छा मारेलुं (३) न० रूपं (४) रूपानुं के सोनानुं चलणी नाणुं ( ५ ) सोनुं रूषित ( 'रूप' नुं भू० कृ० ) वि० शणगारायेलुं (२) खरडायेलु; लेपायेलुं (३) मेलुं थयेलुं (४) सुगंधित करेलुं रे अ० संबोधनार्थे वपरातो अव्यय रेक पुं० संदेह; संशय ( २ ) हलको - बहिष्कृत माणस Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१३ रेखा रेखा स्त्री० लीटी; लेखा (२)पंक्ति (३) चित्रनी रेखा रेखामात्रम् अ० रेखा जेटलुं - थोडं पण रेचक पुं० श्वास बहार काढवो ते (पूरक' थी ऊलटुं) (२) पिचकारी (३) न० जुलाब रेचित वि० साफ - खाली करेलु रेगु पुं०, स्त्री० धूळ ; रज (२) पराग रेणुक पुं० शस्त्रो उपर बोलातो एक मंत्र रेणुका स्त्री० परशुरामनी माता; जमदग्निनी पत्नी रेतस् न० वीर्य; शुक्र रेफ वि० दुष्ट ; नीच (२) पुं० 'र' वर्ण रेभ वि० मोटो अवाज करतुं रेवती स्त्री० २७ मुं नक्षत्र (३२ ताराओ वाळु) (२) बलरामनी पत्नी (३) गाय रेवा स्त्री० नर्मदा नदी रै पुं० द्रव्य ; धन (२) सोनुं(३)अवाज रैमय न० सोनुं रैवत वि० समृद्ध (२)पुष्कळ (३)सुंदर रैवतक पुं० द्वारिका नजीकनो पर्वत रोन पुं० व्याधि; बीमारी रोगभाज वि० मांएं; बीमार रोगिन् वि० मांदु; बीमार रोचक वि० प्रकाशित करतुं (२) अनुकूळ ; मनगमतुं (३) भूख वधारतुं (४) न० भूख (५) भूख वधारनार औषध (६) पुं० काचनां के कृत्रिम घरेणां बनावनारो रोचन वि० प्रकाशित करनारं (२) प्रकाशित; सुंदर; रमणीय; मनगमतुं (३) भूख वधारनारं रोजता स्त्री० सुंदर स्त्री (२) उज्ज्वळ आकाश (३) गोरोचना रोचमान वि० तेजस्वी (२) मनोहर; सुंदर (३) न० घोडानी गरदन उपरनो वाळनो गुच्छो रोचिनी स्त्री० गोरोचना रोचिस् न० प्रभा; तेज; कांति रोमांच रोदस् न०, रोदसी स्त्री० पृथ्वी तथा आकाश रोध पुं० अटकावq - रोकवू ते (२) अटकायत; प्रतिबंध (३) बंध करवं ते (४) घेरो (५) बंध . रोधक वि० रोकनारं; अटकावनाएं रोधन पुं० बुधग्रह (२) न० अटकायत, रुकावट, प्रतिबंध, केद इ० रोधस् न० बंध (२)किनारो (३)पर्वतनो ढोळाव (४) स्त्रीनो नितंब रोधिन् वि० अटकावनाएं; रोकनारं (२) भरी काढतुं; ढांकी देतुं रोप पुं० रोप, ते (२) ऊंचं करवू ते (३) बाण (४) छिद्र रोपण न० रोपवू-ऊकरवं ते (२) वावq ते (३) रुझावं ते (४)पुं० बाण रोपशिखिन् पुं० बाणोथी थयेलो अग्नि रोपित वि: रोपेलु; ऊ, करेलु (२) ताकेलं (बाण) (३) जडेलुं (रत्न) रोमक पुं० रोम शहेर (२) रोमवासी रोमकूप पुं०, न० चामडी उपरतुं छिद्र (ज्यांथी वाळ नीकळे छे) रोमन न० रुवांद; रूंवं रोमराजि, रोमलता स्त्री० (दूंटी उपरनी) रुवाटांनी पंक्ति रोमवत् वि० रुवाटांवाळू रोमविकार पुं०, रोमविक्रिया स्त्री०, रोमविभेद पुं० रोमांच रोमश वि० वाळवाळु; रुवांटीवाळू (२) पुं० घेटु (३) भंड रोमहर्ष पुं० रोमांच रोमहर्षण वि० रोमांचकारक ; दंग करी मूके तेवू (२) न० रोमांच । रोमंथ पुं० पशुओनुं वागोळवू ते रोमावलि (-ली)स्त्री० रुवाटांनी पंक्ति (दूंटी उपरनी) रोमांक पुं० रोम-वाळ, चिह्न . रोमांकुर, रोमांच पुं० रूंवाडां खडां __ थई जवां ते Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोमोद्गम ४१४ रोमोद्गम, रोमोभेद पुं० रोमांच रोहिणीतनय पुं० बलराम रोरुदा स्त्री० अतिशय रोवू ते रोहिणीपति पुं० चंद्र रोलंब पुं० भमरो रोहिणीशकट पुं० रोहिणी नक्षत्र रोष पुं० गुस्सो; क्रोध (गाल्ली जेवा आकार-) रोषफ वि० क्रोधी; झट गुस्से थतुं रोहित वि० लाल रंगर्नु; रातुं (२) रोषणता स्त्री० क्रोध; गुस्सो पुं० रातो वर्ण (३) हरिश्चंद्रनो पुत्र रोषित वि० गुस्से थयेलं रोहिताश्व पुं० अग्नि रोह वि० ऊगतं (२) ऊंचं थतं- चडतं रोक्म वि० सोना(३) सवारी करतुं (४) पुं० ऊंचाई रोक्मिणेय पुं० प्रद्युम्न (५) ऊंचुं चडते (६) फणगो; कळी रौक्ष्य न० रूखापणुं; सूकापणुं (२) (७) उत्पादक कारण (८) सवार कठोरता; क्रूरता (३) गरीबाई (घोडा इ० नो) [(लंकामां) रोचनिक वि० पीळाश पडतुं रोहण, रोहणगिरि पुं० एक पर्वत रौद्र वि० रुद्र जेवू; भयंकर; क्रोधी (२) रोहि पुं० एक जातनो मृग रुद्र संबंधी (३) अनिष्ट लावनारु रोहिण पुं० वड रौधिर वि० लोहीवाळू; लोहीनुं रोहिणी स्त्री० राती गाय (२) ४ ) रौप्य वि० रूपानं नक्षत्र; एक दक्ष कन्या (चंद्रने अतिशय रौरव वि० रुरु मृगना चामडा, (२) प्रिय छे) (३) बलरामनी माता (४) भयंकर (३)कपटी (४) पुं० एक नरक जेने ऋतुस्राव तरतमां ज शरू थयो । रौहिणेय पुं० बलराम होय तेवी कन्या रोही स्त्री० रोहि मृगनी मादा लकुट पुं० गदा; दंडो लक्ष् १ आ० जोवू; निहाळवू (२) १० उ० देखवू (३) दर्शावq (४) व्याख्या करवी (५) गौण अर्थ बताववो-थवो (६) ताकवू (७) विचार लक्ष न० लाख (संख्या) (२) लक्ष्य; निशान (३) चिह्न (४) बहानु; मिष लक्षण न० चिह्न; विशिष्टता (२) निशानी (रोगनी) (३) गुण; विशिष्ट धर्म (४) तेवा धर्मनुं कथन के व्याख्या (५) शरीर उपरनुं शुभ के अशुभ सूचक चिह्न (६) नाम; विशेषनाम (७) उत्तमता; श्रेष्ठता; सारो गुण (८) हेतु; लक्ष (९) ढोंग; बहानुं (१०) गुह्येद्रिय लक्षणसंनिपात पुं० छाप लगाववी ते लक्षणा स्त्री० उद्देश; हेतु (२)लक्ष्यार्थथी शब्दनो बोध करावनार शक्ति (व्या०) लक्षणिन् वि० लक्षणो युक्त लक्षित ('लक्ष' नुं भू० कृ०) वि० नजरे पडेलु; देखायेलुं (२) दर्शावेलु (३) अंकित करेलु (४) व्याख्या करेलु (५) तपासेलुं (६) विचारेलु लक्षिन् वि० शुभ लक्षणोवाळं लक्षीकृ ८ उ० लक्ष्य करवू (२) उद्देशq लक्ष्मण वि० लक्षणवाळू (२) शुभ लक्षणवाळं(३)नसीबदार; समृद्ध(४)पुं० रामना नाना भाई; सुमित्राना पुत्र (५) न० निशानी; चिह्न (६) नाम Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्मन् ४१५ लक्ष्मन् न० चिह्न; निशानी;विशिष्ट गुण (२)डाघ (३) व्याख्या (४) मुख्य एव॒ते लक्ष्मी स्त्री० सद्भाग्य; समृद्धि (२) सिद्धि (३) सौंदर्य; कांति (४)विष्णुनी पत्नी; श्री (५) राज्यलक्ष्मी लक्ष्मीनिरीक्षित वि० लक्ष्मी देवीनं कृपापात्र; अति धनवान | लक्ष्मीपति पुं० विष्णु (२) राजा लक्ष्मीवत् वि० भाग्यवान; समृद्ध (२) सुंदर; मनोहर [धनवान माणस लक्ष्मीश पुं० विष्णु (२) आंबो (३) लक्ष्य वि० जोवा लायक; जोई शकाय तेवू (२)ओळखी शकाय तेवू (३) जाणी शकाय तेवू (४) निशानी करवा योग्य (५)ताकवा योग्य (६)व्याख्या करवा योग्य(७)विचारवा योग्य(८)पुं० शस्त्रो उपर बोलवानो मंत्र (९) न० निशान (१०) चिह्न (११) जेनी व्याख्या करवानी छे ते (१२) लक्षणाथी प्राप्त थतो गौण अर्थ (१३) मिष; ढोंग (१४) लाख (संख्या) लक्ष्यभेद, लक्ष्यवेध पुं० निशान वींधते लक्ष्यसुप्त वि० ऊंघवानो ढोंग करतुं लक्ष्यालक्ष्य वि० भाग्ये देखातुं लग १५० लागवं; वळगवं (२)-ना संबंधमां आवq (३) असर थवी (४) जोडायेला होवू (५) –नी पछी तरत बनवू (६) समय लागवो- व्यतीत थवो (७) १० उ० चाखवु (८) मेळवq लगित वि० चोटेलं; वळगेलं; जोडायेलं लगुड (-र,-ल) पुं० लाठी; लाकडी लग्न ('लग्नुं भू० कृ.) वि० चोटेखें; वळगेलुं; संबद्ध (२) तरत ज पछी आवतुं-बनतुं (३) न० ग्रहो वगेरेनो मार्ग मळतो होय ते बिंदु (४) सूर्य राशिमां दाखल थाय ते क्षण (५) शुभ क्षण (कोई काम करवा माटे) लग्नक पुं० जामीन लघूक लग्नकाल पुं० जुओ 'लग्नवेला' लग्नदिन, लग्नदिवस पुं० कोई पण कार्य ___ करवा माटे शुभ दिवस लग्नवेला स्त्री०, लग्नसमय पुं० (लग्न वगेरे क्रिया माटे) शुभ मुहूर्त-समय लग्नाह पुं० कोई कार्य माटे शुभ दिवस लघयति प० (हळवं करवु; ओछं करवू; अवगणवू; पार्छ पाडी देवू) लघिमन् पुं० हलकापणुं(वजनमा) (२) तुच्छता; अल्पता (३)हीनपणुं; नीचपणुं(४)हलका थई जवानी योगसिद्धि लघिष्ठ वि० सौथी वधुं हलकुं ('लघु'नुं श्रेष्ठतादर्शक रूप) लघीयस् वि० बेमां वधुं हलकुं ('लघु'नुं तुलनात्मक रूप) लघु वि० हलकुं (२)नानुं (३)ढूंकुं(४) तुच्छ (५)नीच; हीन (६)नबलू (७) झट वळी शके तेवू; चपळ (८)झडपी (९)सहेलुं (१०) पचवामां हलकुं(११) ह्रस्व-ढूंकू (१२) इष्ट; अनुकूळ (१३) सुंदर (१४) नानुं (उंमरमां) (१५) भार के परिवार विनानुं (१६) अ० जलदी (२) तुच्छकारथी लघुक्रमम् अ० झडपी पगले लघुचेतस् वि० हलका मनन(२)अस्थिर लघुता स्त्री०, लघुत्व न० नानापणुं (२) हलकापणुं (३)तुच्छपणुं (४)ऊंचा कुळनुं न होवू ते (५)अवगणना (६) चपळता (७) ट्रॅकापणुं (८) कुशळता (९) अविचारीपणुं लघुभव पुं० हलका कुळमां जन्मवाळो लघुभोजन न० हळवू भोजन- नास्तो लघुविक्रम वि० झडपी पगलांवाळू लघुवेधिन् वि० कुशळताथी ताकी शकनारं [झडपी पगलांवाळू लघुसमुत्थान वि० झट ऊभुं यतुं (२) लघुहस्त वि० कुशळ; चालाक ; निष्णात लघूक ८ उ० अवगणवू; तुच्छकारQ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लघ्वी (२) (वजनमां) हलकुं करवुं (३) टंकुं करवु; ओछु करवुं (दिवसोने) लध्वी स्त्री० नाजुक स्त्री ( २ ) नानी गाडी (३) वि० [स्त्री० ट्रंकी लज् १, ६ आ० शरमावुं ; लज्जा पामवी (२) १प० निंदा करवी (३) १०प० देखावुं ; प्रकाशवुं ( ४ ) ढांकबुं; संताडवुं लज्ज् ६ आ० लज्जा पामवी; शरमावुं लज्जा स्त्री० लाज ; शरम ( २ ) शरमाळप [ निंदनीय लज्जाकर वि० शरमावुं पडे तेवुं - लज्जान्वित वि० शरमाळ; लज्जाळु लज्जारहित वि० बेशरम लज्जालु वि० शरमाळ (२) पुं० लजामणीनो छोड लज्जावह वि० जुओ 'लज्जाकर' लज्जित वि० शरमाळ (२) शरमायेलुं (३) न० शरमावानी चेष्टा के भाव लटभ वि० सुंदर; लावण्यवान लट्वा स्त्री० वाळनी व्यभिचारिणी स्त्री लट (२) लड्डु, लड्डुक पुं० लाडु लता स्त्री० वेल; वेलो (२) समासने छेडे कोमळ, नाजुक, पातळं - ए अर्थमा बाहु, भुज वगेरे शब्दो साथे वपराय छे (३) शाखा (४) चाबुकनी दोरी ( ५ ) नाजुक स्त्री ( ६ ) मोतीनी सेर लतागृह पुं०, न० वेलोनो मंडप लताप्रतान पुं० केटलीक वेलमां फूटतो पान विनानो अंकोडो ( जे बीजा आधारने वटळाय छे) लता वेष्टन, लतावेष्टितक न० लता पेठे वीटळावारूपी आलिंगन लतांत न० फूल लतांतबाण पुं० ( पांच फूलरूपी बाणवाळी) कामदेव लतिका स्त्री० नानी वेल लप् १ ५० बोलवु; वातचीत करदी ४१६ लभ् (२) कानमां गुसपुस करवी (३) विलाप करवो लपन न० मों (२) बोलवु ते लब्ध ('लभ्' नुं भू० कृ० ) वि० प्राप्त करेलुं (२) लीघेलुं (३) जोयेलुं (४) न० मेळवेली वस्तु ( ५ ) लाभ; नफो लब्धकाम वि० इच्छेलं मळचं होय तेवुं लब्धनामन् वि० यशस्वी लब्धप्रत्यय वि० विश्वास मेळव्यो होय बुं [ छूटवाळ् लब्धप्रसर वि० रुकावट विना फरवानी लब्धप्रसाद वि० मानीतुं लब्धलक्ष वि० जेणे निशान ताक्युं होय तेवुं ( २ ) अस्त्रविद्यामां कुशळ लब्धलक्षण वि० जेने तक मळी होय तेवु (कंईक करवानी ) लब्धलक्ष्य वि० जुओ ' लब्धलक्ष लब्धवर्ण वि० विद्वान ( २ ) प्रख्यात लब्धवर्णभाज् वि० विद्वानोनो आदर करनाएं; विद्वानोने सेवनाएं लब्धत् ( - ) वि० बहुश्रुत; विद्वान लब्धावकाश, लब्धावसर वि० जेने तक , मळी छे तेवुं (२) जेने ( काम करवा ) क्षेत्र मळयुं छे तेवुं (३) अवकाश के फुरसदवाळूं लब्धास्पद वि० स्थान मळचं होय ते लब्धांतर वि० तक मळी होय तें (२) प्रवेश मळयो होय तेवुं लब्धि स्त्री० प्राप्ति ( २ ) नफो; लाभ लब्धोदय वि० उत्पन्न थयेलु; ऊगेलं; ऊंचुं आवेलं (२) उन्नति पामेलुं लब्धिम वि० मेळवेलं; प्राप्त करेलु लभ् १ आ० मेळववु ; पामवुं (२) मालिक होवुं ( ३ ) लेबुं; स्वीकारनुं ( ४ ) पकडवं (५) मळवुं; जडवुं (६) जाणवुं; समजवुं (७) शक्तिमान थवु; परवानगी होवी ( कशुं करवानी ) - प्रेरक ० [ लंभयति - ते ] ले एम करवुं; लेवराव (२) आप (३) मेळववुं Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लन्य ४१७ लवली लभ्य वि० प्राप्त करी शकाय ते, (२) निशानी (८) धजा (९) पुं० घोडो जडी शके तेवू (३) उचित; योग्य (४) (१०) पुं०, न० शणगार पहोंचाडवा लायक ललामन् वि० अलंकार; भूषण (२) ते लय पुं० चोंटवू ते; जोडाण (२)संतावू ते वर्गनुं श्रेष्ठ ते (३)ध्वजा (४)तिलक ते (३)पीगळी जq ते (४)देखाता बंध ललित वि० क्रीडा करतुं (२) विलासी थर्बु ते; नाश; लोप; प्रलय (५)एकाग्र (३)सुंदर; रम्य (४) इष्ट (५)हळवू; ध्यान-चिंतन (६)विश्राम; थोभq ते नरम (६) न० क्रीडा; लीला (७) (७)विश्रांतिनुं स्थान (८)नृत्य, गीत विलासनी चेष्टा (८) मनोहरता; अने वाजिंत्रनो मेळ - संबंध (९) सुंदरता (९) कोई पण साहजिक संगीतमां कोई स्वर काढवामा लागतो चेष्टा (१०) निर्दोषता; सरळता समय (द्रुत, मध्य, विलंबित) (१०) ललितपद वि० श्रृंगार रसना शब्दोवाळू मूर्छा (११) बाणनी झडपी गति ललितललित वि० अति सुंदर लयन वि० विश्रांतिस्थान; घर (२) ललितलुलित वि० शिथिल छतां सुंदर विश्रांति (३) वळगवू-चोंटq ते .. ललिता स्त्री० सुंदर स्त्री(२)स्वच्छंदी लल १ उ० लीला-क्रीडा करवी (२) स्त्री (३) दुर्गानुं एक स्वरूप १० उ० के प्रेरक० लालयति-ते] ललिताभिनय वि० सुंदर अभिनयोवाळं रमाडवू; लाड लडाववां (३) इच्छवं ललितार्थ वि० श्रृंगार रसना शब्दोवाळू (४) १० उ० ललयति-ते लालन लव पुं० चूंटवू ते (२)लणवू ते (पाक) करवू (५) इच्छद् (६)जीभ हलाववी (३)भाग; अंश (४) कण; टी'; बहु लण्डब न० भमरडो। नातुं प्रमाण (समासने अंते) (५) ललत् वि० रमतुं; क्रीडा करतुं (२) समयनो बहु सूक्ष्म अंश (फ्लकारानो आम तेम फरकतुं-हालतुं-घूमतुं छठ्ठो भाग) (६) वाळ; ऊन (७) ललना स्त्री॰ स्त्री (२) पत्नी (३) रामचा एक पुत्रनुं नाम स्वच्छंदी स्त्री (४) जीभ लवण वि० खाएं (२) सुंदर (३) पुं० ललनिका स्त्री० नानी अथवा दु:खी स्त्री खारो रस- स्वाद (४) खारो समुद्र ललंतिका स्त्री० लांबो हार के माळा (५) मधु राक्षसनो पुत्र (शत्रुघ्ने मार्यो ललाट न० कपाळ हतो) (६) एक नरक (७) न० मीठु ललाटपट्ट पुं० कपाळनी सपाटी लवणजल पुं० समुद्र ललाटंतप वि० कपाळने तपावतुं (२) लवणस्यति प० (मीठानी इच्छा करवी) अति त्रास आपनारु (३) पुं० पूर्व लवणार्णव, लवणालय पुं० समुद्र ललाटिका स्त्री० कपाळ उपर पहेराती लवणांतक पुं० शत्रुघ्न (लवण राक्षसने सोनानी सेर (२.) चंदन वगेरेथी __ मारनार) करेलु कपाळ उपरतुं तिलक लवणांबुराशि पुं० समुद्र; महासागर ललाम वि० सुंदर; मनोहर (२) कपाळ लवणांभस् पं० समुद्र उपर सफेद डाघ-निशानवाळू (३) लवणिमन् पं० खारापणुं (२) लावण्य न० कपाळनुं आभूषण; शणगार(४) लवन न० कापवू-लणवू ते (२)दातरडु ते ते वर्गनुं श्रेष्ठ ते (५)कपाळ उपरतुं लवम् अ० थोडं पण निशान (६) तिलक; टीखें (७) लवली स्त्री० एक वेल Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लवंक ४१८ लाकुटिक लवंक पुं० एक झाड ते(२)उपर चडq ते (३)हमलो करवो लवंग पुं० लवंगनुं झाडq (२)न० लवंग ते(४)उल्लंघन करवं ते; अवगण ते लवित्र न० दातरडु (५)अपमान (६) ईजा (७) उपवास लश् १० उ० कोई कळा अभ्यासवी (८) संभोग (९) घोडानी एक चाल लशुन, लशून न० लसण लंघनीय वि० ओळंगी शकाय तेवू लष् १,४५० इच्छवं अभिलाषा करवी (२)आगळ नीकळी जवा योग्य (३) (२) १० उ० जुओ 'ल'. अनादर करी शकाय तेवू लषित ('लष्' नुं भू० कृ०) वि० लंधित ('लंघ'नुं भू० कृ०) वि० अभिलषित; इच्छेलं ओळंगेलं; कूदी जवायेलु (२) उल्लंघन लस् १५० चळकवं; चमक (२) करायेलु (३) अनादर करेलु (४) देखावू; नजरे पडवू (३) आलिंगवू हुमलो करायेलं; पीडायेवं; ग्रस्त (४) नाचवू; कूदवू लंध्य वि० जुओ'लंघनीय' -प्रेरक० नाचतां शीखवे एम कर, लंपट वि० लोभी (२)विषयासक्त (३) (२) जुओ लश्' (सूर्य) पुं० कामी पुरुष; जार लसदंशु वि. चमकता किरणोवाळू लंब १ आ० लटकवू; लबडवु (२)-ने वळगी रहे;-ने आधारे रहे (३) लसित ('लस्' नुं भू० कृ.) वि० नीचे नमवं; नीचे जq (४) पार्छ नाचेलं; कूदेखें; नाचतुं; कूदतुं(२) पडवू; विलंब करवो देखायेलं; नजरे पडेलं ___-प्रेरक० लबडावq; लटकावq (२) लज् १ आ० [लज्जते] शरमा, लांबं कर (जेम के हाथ) (३)जोडवू -प्रेरक० शरमाववं लंब वि० लटकतुं; लबडतु(२) ने लहरि(-सी) स्त्री० मोजु; लहेर । वळगेलं; -नी उपर झझूमतुं (३) लंका स्त्री. रावणनी नगरी मोटुं; लांबु; ऊंचुं. लंकाधिपति, लंकानाथ, लंकापति पुं० लंबित ('लंब् 'भू० कृ०) वि० लटरावण अथवा विभीषण - कतुं; लबडतुं (२) नीचे गयेखें-डुबेलु लंकारि पुं० राम (३)-ने आधारे रहेलं; वळगेलं लंकेश पुं० जुओ 'लंकाधिपति' लंबोदर वि० मोटा पेटवाळू (२) पुं० लंगिमन् पुं० सुंदरता गणेश (३) खाउधरो लंघ १ उ० कूदq; ऊछळवं(२) उपर लंबोदरजननी स्त्री० पार्वती चडळ (३) ओळंगh (४) लांघो के लंभ पुं० प्राप्ति (२) मळवू ते (३) लाभ उपवास. करवो(५)हमलो करवो; खाई लंभन न० प्राप्ति (२) पाछु मेळवq ते जवू; ईजा करबी (६) १० उ० उपर लंभनीय वि० मेळवी शकाय तेवं; थईने कूदी जवू; ओळंग, (७) उपर मेळववा योग्य चडवू (८) उल्लंघन कर; न मान, लंभित वि० मेळवेलु; प्राप्त करेलु (२) (९) अनादर करवो (१०) रोकवू; आपलं (३) लगाडेलं; उपयोगमां अटकावq (११)हुमलो करवो; पक लीधेलं (४) जन्मेलं डवू; ईजा करवी (१२) खावु (१३) ला २ प० ले, मेळवदूं; उगामवं चडियाता थq; झांखु पाडी देवू लाकुटिक वि० दंडो के लाकडीथी सज्ज लंघन न० कूदवू ते; ओळंगवू ते; त एवं (२) पुं० पहेरेगीर Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लाक्षणिक लाक्षणिक वि० लक्षण जाणनारं(२) सूचक; खास लक्षण सूचवनारु (३) लक्षणाथी सूचित यतुं (४) गौण लाक्षा स्त्री० लाख (२) अळतो लागुडिक वि० जुओ ‘लाकुटिक' लाघव न० लघुता; अल्पता; नानापर्यु (२)अविचारीपणुं (३) तुच्छता(४) अनादर; अवगणना (५) झडप; वेग (६)चपळता (७),कापj;संक्षिप्तता लाघवकारिन् वि० लघुता पमाडनाएं; अनादरने पात्र बनावनाएं लाघविन् न० जादुगर लाज न० वीरणवाळो लाजाः पुं० ब० व०, स्त्री० ब०व० भीना के धाणी फोडेला दाणा लाटाः पुं० ब०व० एक प्रदेश अने तेना लोक [एक प्राकृत बोली लाटिका, लाटी स्त्री० एक शैली (२) लात ('ला'नुभू० कृ०) वि० लीधेलं लाभ पुं० मळवू ते; प्राप्ति (२)नफो; फायदो (३) भोगवईं ते (४)जीतवू ते (५) समृद्धि; संपत्ति लालन न० लाड लडाववां ते लालस वि० लालसावाळू (२)आसक्त; अनुरक्त (३) पुं० लालसा लालसा स्त्री० उत्कट इच्छा (२) आजीजी; विनंती(३)दोहद(भिणीनो) लाला स्त्री० लाळ ; धुंक लालाटिक वि. कपाळ संबंधी; कपाळ उपरतुं (२) नसीबने आधीन लालायते आ० (लाळ काढवी) लालित वि० लाड लडावेलु (२)इच्छेलं (३) न० आनंद; प्रेम लालित्य न० सुंदरता; मनोहरता; मधुरता (२) शृंगारचेष्टा । लाव वि० कापी नाखतुं (२)नाश करतुं लायक पुं० काफ्नारो (२) लणनारो (३) एक पंखी; लावरी लिपि लावणिक वि० मीठावाळू (२)मीठानो वेपार करना5 (३) लावण्यवान लावण्य नः खारापणुं (२) सौंदर्य लावण्यलक्ष्मी स्त्री० अति सुंदरता लास पुं० नाचवू - कूदq ते लासक वि० रमतुं कूदतुं (२) आम तेम घूमतुं (३) नचावतुं; कुदावतुं लासन न० आम तेम घुमावq ते लासिक वि० नाचतुं लासिका स्त्री० नाचनारी (२) वेश्या लास्य न० नृत्य; नाच (२)गायन अने वाजिन साथेनुं नृत्य (३) हावभावयुक्त नृत्य (४) पुं० नाचनारो; नट लांगल न० हळ लांगलध्वज, लांगलिन् पुं० बळराम लांगूल न० पूछडु [पटपटाववी ते लांगूलचालन, लांगूलविक्षेप न० पूंण्डी लांछन न० चिह्न; निशानी (२) नाम (३) कलंक (४) चंद्रनो डाघ लांछित वि० चिह्नवाळू; (२) नामथी ओळखातुं (३) शोभावेलुं; सजावेलु लांठनी स्त्री० कुलटा लिक्षा स्त्री० लीख लिख ६५० लखवु (२) चीतरखं (३) खोतरवू; खणवू [खोतर ते लिखन न० लखq ते (२)चीतरतुं ते (३) लिखित ('लिख् ' नुं भू० कृ०) वि. लखेलु (२) चीतरेलु (३) खोतरेखें; कोतरेलु(४)न० लखाण; दस्तावेज(५) चित्र(६)ग्रंथ; निबंध [वर्णवायलं लिखितपठित वि० लखायेलं-वंचायेलं; लिख्या स्त्री० लीख लिप ६ उ० [लिंपति-ते] लींपवू (२) लेप करवो (३) खरडवू; मेलं करवं (४) सळगावQ; बाळी नाखवू -प्रेरक० दोष ढोळवो (२) खरडवं लिपि स्त्री० लेपq ते (२) लखवं ते; • लखाण (३) भाषाना वर्णो लखवानी रीत (४) लखाण; दस्तावेज Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लुठित लिपिक ४२० लिपिक पुं० लहियो लीला स्त्री० क्रीडा; रमत (२) श्रृंगारलिपिकर पुं० लहियो (२) लेपनारो, चेष्टा; विलास (३) सुगमता; सरळता धोळनारो, कडियो इ० रमतमां के सहेलाईथी थर्बु ते (५) लिपी स्त्री० जुओ ‘लिपि' देखाव; मळतापणुं (६) सौंदर्य (७) लिप्त ('लिप्' न भू० कृ०) वि० लीपेलं ढोंग; वेष (८) अनादर; तुच्छकार (२) चोपडेलु; खरडेलु (३) विष लीलाकमल न० हाथमां लीला अर्थे चोपडेलु (बाण इ०) [इच्छा राखेलं कमळ लिप्सा स्त्री० पाछु मेळववानी इच्छा (२) लीलाखेल वि० लीलाथी खेलतुं के फरतुं लिप्सु वि० लाभनी इच्छावाळं; लीलागार पुं०, न०, लीलागृह, लीलागेह मेळववानी इच्छावाळं न० क्रीडागृह; आनंद-प्रमोदनुं स्थान लिह, २ उ० चाटवं (२) चाखवू लीलाचतुर वि० लीलायुक्त हावभावथी लिंग न० चिह्न; निशानी ; प्रतीक (२) सुंदर देखातुं खोटं निशान; ढोंग (३) पुरावो; लीलातामरस न० जुओ 'लीलाकमल' साबिती (४) हेतु(न्या०) (५) जाति- लीलादग्ध वि० प्रयत्न विना-रमतमांज दर्शक चिह्न (६) शिवनुं प्रतीक (जे बाळी नाखेलं पूजाय छे) (७) सूक्ष्म शरीर; लिंग लीलानटन, लीलानृत्य न० आनंद - देह (८) अनुमान (९) उपाधि माटे करेलु नृत्य; लीलायुक्त नृत्य लिंगदेह पुं०, लिंगशरीर न० देहथी छूटो लीलापन न० जुओ 'लीलाकमल' पडेलो जीव जेनो आश्रय करीने रहे छे लीलाभरण न० मात्र खुशी खातर ते सूक्ष्म शरीर (पांच प्राण, पांच पहेरेलं (किंमत विनानुं) आभूषण ज्ञानेंद्रिय, पांच सूक्ष्मभूत, मन अने लीलायित न० लीला बुद्धि -ए सत्तरतुं बनेलु) लोलारविंद न० जुओ 'लीलाकमल' लिगिन् वि० चिह्नवाळं (२) -ना लीलावज न० इंद्रना वज्र जेवा आकारन वेशवाळू; ढोंगी (३) सूक्ष्म शरीरवाळं एक ओजार (४) पुं० ब्रह्मचारी; ब्राह्मण तपस्वी लीलावती स्त्री० सुंदर- मनोहर स्त्री ली १५०,४ आ० पीगळवू; ओगळवू (२) विलासी स्त्री (३) दुर्गा (२) ९५०, ४ आ० चोटवू; वळगq लीलाशुक पुं० लीला अर्थे पाळेलो पोपट (३)४ आ० भेट (४) अढेलीने बेस, लोलासाध्य वि० सहेलाईथी सिद्ध करी के सूर्बु(५)छुपावं; छुपाईने रहे, (६) _शकाय तेवू -मां लवलीन के आसक्त थर्बु (७) लीलांग वि० रमणीय अवयवोवाळं अलोप थर्बु [चाखेलु लुट् १, ४ प० लोटवू; आळोटवू (२) लोढ ('लिह, नुं भू० कृ०) वि० चाटेल; लूटq (३) १ आ० सामनो करवो लीन ('ली' नुं भू० कृ०)वि० चोटेखें; लुट १ प० मार; ठोकी पाडवं वळगेलं (२) छुपायेलु (३) आराम (२) १ आ० जमीन उपर आळोटर्बु करतुं; अलीने सूतेलं (४) पीगळेलं (३) १० उ० लूटवू (४) ६ प० (५) एकरूप' थयेलं; निकट संबंधथी आळोटवू; गबडवू . जोडायेलु (६) लवलीन (७)लुप्त थयेलं लुठित वि० आळोटतुं गबडतुं (२)न० लीनता स्त्री० -मां छुपाई जर्बु ते. जमीन उपर आळोटq ते (घोडा-) Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२१ लेश लुड् १५० वलोववू; डखोळवू लुंठन न० लूटq-चोरवू ते (२) सामनो लुप् ४५० मूंझावं (२) लोपाईं; नाश करवो के रोकवं ते , पाम (२) ६ उ० तोडी नाख; कापी लू ९ उ० कापवू; तोडq; लणवू(२) नाखवू (३) लूटी जq (४) लोपवू तद्दन नाश करवो -प्रेरक० भागवू; तोडq (२) बाद लूता स्त्री० करोळियो (२) कीडी करवू; अवगण, (३) च्युत करवू लतातंतु पुं० जाळं (करोळियानु) लुप्त ('लुप्' मुं० भू० कृ०) वि० लन ('ल' न भू० कृ०) वि० कापेलं; भागेलं; तोडेलु (२) खोई बेठेलं; छेदेखें (२) चूंटेलं (३) न० पूंछडी विनानुं थयेलुं (३) लोपायेलं; वपराश लेख पुं० लखाण; दस्तावेज; पत्र (२) विनानुं थई गयेलु देव (३) उझरडो [चित्रकार लुप्तपिंडोदकक्रिय वि० पिंडदान, श्राद्ध लेखक पुं० लखनार; लहियो (२) वगेरे विनानुं थयेलु लेखन न लखवू ते (२)वलरवू ते (३) लुब्ध ('लभ'नं भू० कृ०) वि० कोतरवू ते; खोतरवू ते लोभायेलं; लोभी (२) पुं० शिकारी लेखनी स्त्री० लेखण; कलम (३) व्यभिचारी-कामी पुरुष लेखपट्ट, लेखपत्र न०, लेखपत्रिका स्त्री० लुब्धक पुं० शिकारी (२) लोभी माणस लेख; पत्र (२) दस्तावेज (३) कामी- व्यभिचारी पुरुष लेखप्रभु पुं० इंद्र [कासद लुभ् ६ ५० {झव(२) ४ ५० लेखहार, लेखहारिन् पुं० पत्र लई जनारो लोभावं; तीव्रपणे इच्छयूँ (३) लेखा स्त्री० लीटी; रेखा; पंक्ति (२) लोभावq: आकर्ष लखवू ते; चीतर ते (३)चंद्रनी रेखा लुल १ प० चकळ-वकळ थवं; गोळ (४) छाप (५) छेडो; किनार (६) फरवू(२)क्षुब्ध करवू; डखोळवू (३) पटो; चास; लीटो दबावq; कचर लेखानुजीविन् पुं० दास तरीकेना - प्रेरक० हलावQ अधिकारवाळो देव लुलित ('लुल' नुं भू० कृ०) वि० लेखिका स्त्री० नानी रेखा कंपावेलु; आम तेम हलावेलु (२) लेखिन् वि० खोतरतं; खणतुं स्पर्शायेलं ; डखोळायेलु (३)वीखरायेलु लेखिनी स्त्री० कलम (२) कडछी (जेम के वाळ) (४) कचरायेलं; लेख्य वि० लखवान के चीतरवार्नु होय रगदोळायलं (५) दबातुं; अडकतुं (६) तेवु (२) न० लखवानी कळा (३) थाकेलं; नमी गयेलं (७) सुंदर लखवू ते (४) दस्तावेज (५) लेख लुंच १५० तोडवू; चूंटवू; खेंची काढवू लेप पुं० लींपवू-खरडवू-चोपडq ते (२) लुंचन न० खेंची काढq ते मलम (३) छो; 'प्लास्टर'(४)हाथे लुचित ('लुच् ' नुं भू० कृ०) वि० खेंची चोटेलु भोजन(५)डाघ ; कलंक; दोष काढेलं; तोडी लीधेलु लेप्य वि० लेप करवा योग्य (२) लुंटु १ ५०, १० उ० लूटवं; चोरवं छांदीने बनावेलु (मूर्ति) . लुंटाक वि० लूटी लेतुं (२)पुं० लूटारो लेलिह पुं० साप (२)एक जातनो कीडो लुंछ १५० जq (२) हलावq; डखोळवू लेलिहान पुं० साप (२) शिव (३)लूटq (४)आळसु थईने आळोटवू लेश पुं० अल्प अंश; रजकण (२) संग.-२७ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ लोकहास्य अल्पता; नानापणुं (३)समयनो एक लोकमार्ग पुं० रूढि सूक्ष्म विभाग (बे कळा जेटलो) लोकयज्ञ पुं० लोकमां नामना माटेनी लेष्ट पुं० ढे' इच्छा; लोकैषणा लेह पुं० चाटनारो; चाखनारो। लोकयात्रा स्त्री० लोकव्यवहार (२) लेह्य वि० चटाय तेवू; चाटवा योग्य रूढ़ि (३) संसारयात्रा (४) आजी (२) चाटीने खावानी वस्तु (३) अन्न विका; निर्वाह लेंड न० लींडी; लीडु लोकरव पुं० लोकवायका; किंवदंती लोक १ आ० जोवु (२)१० उ० दीपवू; लोकरावण वि० लोकने पीडनाएं प्रकाशq (३) जाणवू (४) निहाळवं लोकवचन न० लोकवायका; किंवदंती लोक पुं० भुवन; विश्वनो विभाग (स्व- लोकवर्तन न० जगतनो जेनाथी निर्वाह र्ग-पृथ्वी--पाताळ ए त्रण; के चौद थाय छे ते साधन ['लोकवचन' अथवा सात) (२) भूलोक ; पृथ्वी (३) लोकवाद पुं०, लोकवार्ता स्त्री० जुओ मानवजात (४) प्रजा (५) समुदाय; लोकविरुद्ध वि० लोकमतथी ऊलटुं वर्ग (६) प्रदेश; प्रांत (७) लोकोनो लोकविश्रुत वि० प्रख्यात; विश्वविख्यात सामान्य व्यवहार (८) निजस्वरूप लोकविसर्ग पुं० जगतनो अंत (२) (९)प्रकाश (१०) भोग्य वस्तु (११) जगतनुं सर्जन [रूढि (२)गपसप चक्षुरिंद्रिय (१२) इंद्रियविषय लोकवृत्त न० जगतनो सामान्य व्यवहार; लोककंटक पुं० दुर्जन मनुष्य लोकवृत्तांत, लोकव्यवहार पुं० सामान्य लोककांत वि० लोकप्रिय रुढि ; लोकाचार (२) घटनाओनो क्रम लोकगति स्त्री० माणसोनुं वर्तन लोकश्रुति स्त्री० किंवदंती; लोकवायका लोकचारित्र न० लोकोनो व्यवहार (२) चोतरफ प्रसिद्धि लोकतंत्र न० जगतव्यवहारतुं चक्र लोकसंग्रह पुं० आखं विश्व (२) जगतनुं लोकत्रय न०, लोकत्रयी स्त्री० स्वर्ग हित-कल्याण (३)लोकने संतुष्ट करवा मृत्यु - पाताळ ए त्रण लोक । ते (४) लोक साथेना संबंधथी मळतो लोकधात पुं० शिव लोकनाथ पुं० ब्रह्मा (२) विष्णु (३) अनुभव _ [युक्त शिव (४) राजा; सम्राट (५) बुद्ध लोकसंपन्न वि० व्यावहारिक डहापणथी लोकप पुं० जुओ 'लोकपाल' लोकसंवाघ पुं० लोकोनी भीड; लोकनो लोकपक्ति स्त्री. लोकमां आदर-कीर्ति अवर-जवर [साक्षी छे तेवू लोकपथ पुं०, लोकपद्धति स्त्री० जगतनी लोकसाक्षिक वि० आ जगत जेनुं चालु रीत - व्यवहार लोकसाक्षिकम् अ० साक्षीओनी समक्ष लोकपरोझ वि० जगतथी छानुं-अदृश्य लोकसाक्षिन् पुं० ब्रह्मा (२) अग्नि लोकपाल पुं० दिकपाल (२) राजा लोकसात् अ० लोकोना भला माटे लोकपितामह पुं० ब्रह्मा लोकसाधारण वि० लोकप्रचलित लोकप्रवाद पुं० लोकवायका लोकसीमातिवतिन वि० अलौकिक लोकमत वि० लोकने पोषनाएं - लोकस्थिति स्त्री० संसारदशा (२) टकावनाएं संसारव्यवहार (३) जगतनुं टकी लोकभावन, लोकभाविन वि० जमतनं रहेवापणुं (४) सार्वत्रिक नियम हित करनारं- वधारनाएं . लोकहास्य वि० लोकोमा हास्यपात्र एवं Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोकहित लोकहित वि० जगत के मानवजातने हितकर एवं ( २ ) न० लोकोनुं हित लोकंपूण वि० लोकव्यापी लोकाचार पुं० प्रचलित आचार - रूढि लोकातिग, लोकातिशय, लोकातीत वि० असामान्य; अलौकिक [ मात्मा लोकात्मन् पुं० विश्वनो आत्मा; परलोकाधिक वि० जुओ' लोकातिग' लोकानुग्रह पुं० लोकोनुं कल्याण - हित लोकानुराग पुं० परमार्थवृत्ति लोकापवाद पुं० लोकोमां वगोणुं लोकायत न० चार्वाक मत लोकायतिक पुं० चार्वाक मतनो अनुयायी लोकालोक पुं० लोक - पृथ्वीने किनारे गोळ करतो आवेलो एक काल्पनिक पर्वत (सूर्य एनी अंदर रहेतो होवाथी तेनी बहार केवळ अंधकार छे) लोकांतर न० परलोक लोकांतरित वि० मृत लोकोत्तर वि० असामान्य; असाधारण लोकोपक्रोशन न० लोकोमां अपकीति फेलाववी ते ४२३ लोक्य वि० लोकव्यापी (२) प्रचलित; रूढ (३) साचुं (४) उत्तम लोक प्राप्त करावनाएं [ कीकी (३) काजळ लोचक पुं० मूर्ख माणस ( २ ) आंखनी लोचन न० जोवुं ते (२) आंख लोचनपरुष वि० कदरूपुं लोचनापात पुं० कटाक्ष; नजर लोचनांचल पुं० आंखनो खूणो लोड १५० मूर्ख के गांडा थ -कर्मणि० मूंझावु; गूंचावुं लोत्र न० चोरेलुं धन; लूट लोध्र पुं० एक फूलझाड लोप पुं० लई लेवु के लूंटी लेवुं ते (२) नाश; हानि (३) लुप्त थई जवं ते; वपराशमांथी नीकळी जवुं ते (आचार) (३) उल्लंघन; भंग ( ४ ) अभाव (५) बाद करवुं - पडतुं मूक लोह उपरना वाळ लोपामुद्रा स्त्री० अगस्त्य ऋषिनी पत्नी लोपिन् वि० हानि - ईजा करतुं (२) hara करतुं (३) ओछ्रं करतुं; घटातुं लोभ पुं० लालच; तृष्णा लोभनीय वि० लोभावे - आकर्षे तेवुं लोभमोहित वि० लोभथी मूढ बनेलुं लोभविरह पुं० लोभनो अभाव लोमन् पुं० मनुष्य के जानवरना शरीर [ नाम लोमपाद पुं० अंग देशना एक राजानुं लोमवाहिन् वि० पीछांवाळूं लोमश वि० बहु रूवांवाळं (२) पुं० एक मुनि (३) घेटो लोमहर्ष पुं० रोमांच लोमहर्षण, लोमहर्षन् वि० रोमांचकारी लोमहारिन् वि० जुओ 'लोमवाहिन्' (२) बधानो क्रममा संग्रह करना लोल वि० हालतुं; कंप; फरफरतुं (२) क्षुब्ध; अस्थिर (३) चंचळ (४) क्षणिक क्षणभंगुर (५) उत्सुक (६) लोभी; कामी लोलंब पुं० मोटो कालो भमरो लोला स्त्री० लक्ष्मी (२) वीजळी (३) जीभ ( चपळ होवाथी) " लोलाक्षि न० चकळ-वकळ थती आंख लोलाक्षिका स्त्री० कचळ-वकळ थती आंखोवाळी स्त्री लोलित वि० हालतुं; कंपतुं लोलुप वि० अति लोभी; लालचु लोलुपा स्त्री० ललुता लोभ वि० अति लोभी; लोलुप लोष्ट पुं०, न० माटीनुं ढेफु; रोड लोष्टक पुं० माटीनुं ढेफुं; रोडुं लोष्टघातम् अ० ढेफां-रोड वडे मारीने लोह वि० रातुं ; ताश पडतुं ( २ ) तांबानं (३) लोढानुं बनावेलुं (४) पुं०, न० तांबं (५) लोढुं (६) पोलाद (७) कोई पण धातु (८) सोनुं ( ९ ) हथियार Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोहबद्ध लोहबद्ध वि० लोढाना खीलावाळु; लोढानी अणीवाळु लोहमणि पुं० सोनानो गठो लोहाग्र न० बाणनुं लोढानुं फळं लोहित वि० लाल; रातुं (२) तांबानुं (३) पुं० लाल रंग (४) मंगळ ग्रह ( ५ ) एक जानो मणि; माणेक (६) न० तांबु (७) लोही (८) एक जातनुं चंदन लोहितक वि० रातुं ( २ ) पुं० एक जातनो; मणि; माणेक (३) मंगळ ग्रह लोहितकृष्ण वि० काळाश पडतुं लाल लोहितति प० ( राता थवुं ) लोहिताश्व पुं० अग्नि लोहितांग पुं० मंगळ ग्रह लोहितेक्षण वि० लाल आंखोवाळु व अ० - नी पेठे वक्तव्य वि० कहेवा लायक; जणाववा लायक (२) निंदवा लायक ( ३ ) नीच; हीन (४) जवाबदार ( ५ ) आश्रित (६) न० वातचीत (७) निंदा; ठपको वक्तव्यता स्त्री० निंदा; ठपको (२) दासपणुं पराधीनता वक्तृ पुं० वक्ता; बोलनारो ( २ ) भाषण करनारो (३) अध्यापक ; शिक्षक (४) विद्वान - ज्ञानी - डाह्यो माणस वक्त्र न० मुख; मों वक्त्रपरिस्पंद पुं० वातचीत; भाषण वक्र वि० वांकुं ( २ ) आडकतरुं ( ३ ) वाकडि (४) अप्रमाणिक; दगाबाज (५) क्रूर ( ६ ) पुं० मंगळ ग्रह ( ७ ) शनि वऋग्रीव पुं० ऊंट वऋचंच पुं० पोपट वक्रतुंड पुं० गणपति ( २ ) पोपट वक्रपुच्छ पुं० कूतरो वप्लुत वि० आडा अवळा कूदका मारतुं ४२४ वचन लोहिनी स्त्री० रक्तवर्णी स्त्री लोकायतिक पुं० चार्वाक मतनो अनुयायी लौकिक वि० ऐहिक; आ लोकनुं ( २ ) सामान्य; प्राकृत ( ३ ) रोजिंदु; सर्वत्र रूढ (४) भौतिक ; दुन्यवी (५) न० कोई पण दुन्यवी आचार - रूढि लौकिकज्ञ वि० दुनियानी रीत के व्यवहार जाणनारुं [ जनता लौकिकाः पुं० ब०व० सामान्य लोको; लौल्य' न० लोलुपता ; उत्सुकता ( २ ) चंचळता; अस्थिरता लौह वि० लोखंडनुं (२) तांबानुं (३) धातुनुं (४) ताम्र रंगनुं (५) न० लोढुं लौहित्य पुं० ब्रह्मपुत्रा नदी ( २ ) न० रताश लौही स्त्री० देगडी वक्रभणित न० वांकुं बोलवुं ते (२) आडकरूं कहे वति वि० वांकुं; वळेलुं वक्रमन् पुं० वांकापणुं; वळांक (२) आडकत बोलवु ते (३) बेवचनीपणुं ; लुच्चाई; बोलीने फरी जवं ते वक्रोक्ति स्त्री० कटाक्षनुं वचन ( २ ) वांको बोल (३) एक काव्यालंकार, मां काकु के श्लेषथी वाक्यनो जुदो ज अर्थ करवामां आवे छे ( काव्य ० ) वोष्ठि स्त्री० मंद हास्य; स्मित वक्षस्, वक्षःस्थल न० छाती वक्षोज, वक्षोरुह (-ह) पुं० स्तन वच् २प० बोलवु; कहेवुं (२) वर्ण ववुं ; जणाववं (३) बोलावj ( ४ ) अर्थ दर्शा - ववो ( ५ ) निंदवु ठपको आपको (६) १० प० जणाववुं; कहेनुं - प्रेरक बोले तेम करवु; बोलाववुं (२) वांचवं (३) कहेवुं; जणाववं वचन न० बोलवु -कहेवुं ते ( २ ) वाणी; ० Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वचनकर ४२५ वडवानल कथन; बोलेलं ते (३)फरी बोली जq वजाघोष वि० वज़ के वीजळीना कडाका ते (४) शास्त्रवाक्य (५)आज्ञा; हुकम जेवा अवाजवाळं (६) सलाह; उपदेश (७) अर्थ थवो वजधर पुं० इंद्र (२) घुवड ते (शब्दनो) (८) संख्या (व्या०) वजनाभ पुं० कृष्ण, चक्र वचनकर वि० आज्ञानुं पालन करनाएं वजपतन न० वज्रनुं पडवं ते (२) वचनक्रिया स्त्री० आज्ञापालकपणुं वीजळी पडवी ते वचनगौरव न० आज्ञा प्रत्ये आदर; वजपाणि पुं० इंद्र (२) घुवड आज्ञा शिरोधार्य करवी ते वजपात पुं० जुओ 'वज्रपतन' वचनपटु वि० बोलवामां होशियार; वजमणि पुं० हीरो [कठोर वक्तृत्वशक्तिवाळु [कहे ते वज़मय वि० अत्यंत कठण (२) क्रूर; वचनशत न० सो वार - वारंवार वजमुख पुं० एक जीवडु (ऊंडु कोतरनार) वचनसहाय पुं० वातचीतनो सोबती वजलेप पुं० एक जातनो सखत चोटी वचनस्थित वि० आज्ञापालक जनारो लेप (२) कदी उखेडी न वचनावक्षेप पुं० गाळ देवी ते शकाय तेम चोटी जq ते वचनीय वि० कहेवा योग्य (२)ठपको वजव्यूह पुं० एक जातनो लश्करी व्यूह आपवा योग्य (३) न० निंदा; ठपको वजसंधात वि० वज्रनी कठिनतावाळं वचनेस्थित वि० जुओ 'वचनस्थित' वजसार वि० वज्र के हीरा जेवू कठण वचनोपन्यास पुं० सूचक वाणी; वजाकर पुं० हीरानी खाण आडकतरी रीते सूचव, ते वजाघात पुं० वज्रनो के वज्र जेवो प्रहार वचस् न० वाणी; शब्द; वाक्य (२) वजायुध पुं० इंद्र आज्ञा; हुकम (३) सलाह; उपदेश वजाशनि पुं० इंद्रनुं वज़ वचसांपति पुं० बृहस्पति (२) गरुग्रह । वज्रांक वि० हीराजडित वचस्विन वि० वक्तृत्व शक्तिवाळं वजिन् पुं० इंद्र (२) घुवड वचःक्रम पुं० वातचीतनो क्रम; वातचीत वट १५० वींटाळवं; वींटq (२) १० उ० वचःप्रवृत्ति स्त्री० बोलवानी कोशिश कहेQ (३)वांटQ; भाग पाडवा (४) वचोमार्गातीत वि० शब्दोमां कही शकाय बांधवू; जोडQ तेथी मोटुं के तेथी पर -कर्मणि० वटाएं; कचरायूँ वचोहर पुं० दूत वट पुं० वडनुं झाड (२) गोळी (३) वज वि० कठण (२) कठोर (३)पुं०,न० वर्तुलाकृति (४) व (खावानु) इंद्रनुं आयुध (दधीचिनां हाडकांमांथी वटाकर, वटारक पुं० दोरडं बनावेलु) (४) वज्र जेवू कोई पण वटी स्त्री० दोरी (२) गोळी भेदक हथियार (५) मणि वगेरे वटु पुं० छोकरो (२) ब्रह्मचारी वींधवानी हीरानी शारडी (६) हीरो __ वडभि (-भी) स्त्री० जुओ 'वलभि' (७) पुं० सैन्यनो एक व्यूह (८) न० वडवा स्त्री० घोडी (२)दासी (३)वेश्या पोलाद (९) कठोर भाषा (४) अश्विनी अप्सरा, जेने घोडीरूपे वजकीट पुं० लाकडामां के पथ्थरमां सर्यथी बे अश्विनो रूपी पुत्रो थया हता काणुं पाडनार एक कीडो वडवाग्नि, वडवानल पुं० समुद्रमां वजकील पं० वज्र रहेलो मनातो अग्नि (दक्षिण ध्रुव Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ asar आगळ वडवामुख नामनी बखोलमांथी भभूके छे) वडवाभर्तृ पुं० उच्चैःश्रवा घोडो वडवामुख पुं० दक्षिण ध्रुव पासे पाताळ लोकमां जवानुं प्रवेशद्वार (२) त्यांथी भभूतो asatfo वणिक्कटक पुं० काफलो; संघ वणिग्ग्राम पुं० वेपारीओनुं मंडळ वणिग्वृत्ति स्त्री० वेपार वणिज् पं० वेपारी; वणिक वणिज्य न०, वणिज्या स्त्री० वेपार वत् वि० मालकी, युक्त होवापणुं वगेरे अर्थो बताववा लगाडातो प्रत्यय ( २ ) अ० - नी पेठे; प्रमाणे - एवो अर्थ बताववा नाम के विशेषणने लागे छे वतंस पुं० जुओ' अवतंस '; आभूषण तु अ० 'चूप' एवा अर्थनो उद्गार वत्स पुं० वाछरडुं; पशुनुं बच्चु (२) करो, बेटो (वहालमां संबोधन) (३) संतान ( ४ ) एक देश ( उदयन राजानो; कौशांबी तेनी राजधानी) (५) ब० व० ते देशना लोको ४२६ वत्सतर पुं० वाछरडो; जुवान बळद वत्सतरी स्त्री० वाछरडी; जुवान गाय ( जेणे बच्चांने हजु जन्म नथी आप्यो ) वत्सर पुं० वर्ष; साल वत्सराज पुं० वत्स देशनो राजा वत्सरूप पुं० नानुं वाछरडुं वत्सल वि० संतान प्रत्ये मायाळु (२) स्नेहाळ (३) न० ममता; वत्सलता वत्सलयति प ० (वात्सल्यभाववाळं करवुं) वत्सा स्त्री० वाछरडी (२) नानी छोकरी ( वहालमा ) [वस्था वत्सिन् वत्सिमन् पुं० बाळपण; किशोरावद् १ प० बोलवु; कहेवुं ( २ ) जाहेर करवुं (३)वर्णववुं (४) विधान करवुं (५) दर्शाववुं (६) अवाज करवो; गावुं (७) आ० प्रकाशवुं ( ८ ) प्रावीण्य के प्रामाण्य दाखव वध्यशिला - प्रेरक ० वगाड (वाजित्र) (२) पाठ करवो; बोलवु वदत् वि० बोलतुं; कहेतुं वदन न० मुख; चहेरो वदनपवन पुं० श्वास वदनोदर न० जडबं वदान्य वि० वक्तृत्व शक्तिवाळं (२) मायाळूपणे बोलनारुं (३) उदार (४) पुं० उदार माणस aatar fao बोलकj; वाचाळ यदि अ० कृष्णपक्षमां वघ् १ ५० वध करवो ( ' हन् ' ना विकल्प तरीके मुख्यत्वे वपराय छे) बघ पुं० मारी नाखवं ते ( २ ) प्रहार ( ३ ) गुणाकार (४) विजेता (५) वधक वधक वि० वध करनाएं; नाश करनाएं (२) पुं० फांसीगरो (३) खूनी वधनिग्रह पुं० देहांतदंड वधस्तंभ पुं० फांसी देवानो मांचडो वार्थी विo as माटेन होय तेवुं; कतल माटेनुं (२) वध्य (३) वधक वधु स्त्री० पुत्रवधू (२) जुवान स्त्री वघुटी स्त्री० जुओ 'वधूटी' वषू स्त्री० ० परणनार कन्या (२) पत्नी (३) पुत्रवधू (४) कोई पण स्त्री के कन्या ( ५ ) पोतानाथी नानी उमरना सगानी पत्नी (६) मादा (पशुनी) वधूटशयन पुं० कठेरो; बारी वधूटी स्त्री० युवान स्त्री ( २ ) पुत्रवधू वध्य वि० वध करवा योग्य (२) देहांतदंडनी शिक्षा पामेलुं ( ३ ) पुं० जेनो वध करवानो छे ते (४) शत्रु वध्यभू, वध्यभूमि स्त्री० ज्यां फांसी के शूळ अपाय ते स्थान वध्यमाला स्त्री० देहांतदंड आपवानो होय तेने पराववानी माळा वध्यशिला स्त्री० कापी नाखवा माथु जेनी उपर रखाय ते शिला ( २ ) कतलखानुं Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ L वध्यस्थान ittle बध्यस्थान न० जुओ ‘वध्यभू' । बघ्र न०, वध्री स्त्री. चामडानी दोरी वन् १५० संमानवू; आदर करवो(२) मदद करवी (३) अवाज करवो (४) लीन होवू (५) ८ उ० याचवू; मागवू (६) शोषवू; मेळववा इच्छयूँ वन न० जंगल (२) झुंड; समुदाय (३) पाणी (४)निवासस्थान [रहेतुं वनकाम वि० वननी रुचिवाळू; वनमां वनग वि. जंगलनुं वतनी वनगज पुं० जंगली हाथी वनगहन न० जंगलनो गीच भाग वनग्रहण न० वनने घेरो घाली अवर जवर बंध करवो ते वनवाहिन् पुं० वनने घेरीने हाकोटा करनारो (शिकार माटे) वनचर वि० वनमा रहेनारु-विचरनारं (२)पुं० अरण्यवासी (३)जंगली प्राणी वनज्योत्स्ना स्त्री० एक प्रकारनी फूलवेल वनदेवता स्त्री० बननी अधिष्ठाता देवता बनधारा स्त्री० झाडोनी पंक्ति वनप पुं० वननो रखवाळ वनप्रस्थ वि० वानप्रस्थ (२)पुं० माळनी ऊंची जमीन उपरनुं जंगल वनबहिण पुं० जंगली मोर वनमाला स्त्री० वननां पुष्पोनी माळा (बींचण सुधी लटकती) बनमालिन् पुं० श्रीकृष्ण [वादळ वनमुच् वि० पाणी वरसावतुं (२) पुं० बनराजि(-जी) स्त्री० वृक्षोनी पंक्ति के जूथ (२) वननो लांबो प्रदेश (३) वननी पगदंडी वनरह न० कमळ बनलता स्त्री० वननी वेली वनतिका स्त्री० बटेर पक्षी वनवास पुं० वनमां वसवू ते (२)जंगलनु जीवन (३) वनवासी माणस वनश्वन् पुं० वाघ (२) शियाळ वन्येतर वनसद् पुं० वनवासी; जंगलनो माणस वनस्थ पुं० तपस्वी (२) हरण बनस्थली स्त्री० वननो प्रदेश के भूमि बनस्पति पुं० मोटुं जंगलनुं झाड (खास करीने जेने फूल वगर फळ बेसे) (२) कोई पण वृक्ष (३)यड (४) थांभलो वनापगा स्त्री० जंगलनो वहेळो वनाब्जिनी स्त्री० पाणीनी अंदर थती कमळनी वेल वनायु पुं० जेना घोडा वखणाय छे तेवो एक प्रदेश (२) पुरूरवानो पुत्र बनायुज पुं० 'वनायु' प्रदेशनो घोडो (अरबी?) [वनमां उजाणी वनाश वि० पाणी उपर जीवतुं(२)पुं० चनांत पुं० वननो छेडो-किनारो(२) वनप्रदेश [भाग वनांतर न० बीजुं वन(२)वननी अंदरनो वनिका स्त्री० उपवन [पूजेलं वनित वि० याचेलं; मागेलुं (२) सेवेलुं; वनिता स्त्री॰ स्त्री (२)पत्नी (३)प्रिया वनिष्णु वि० याचनाएं; याचतुं बनी स्त्री० झाडी वनीपक, वनीयक पुं० मागण; याचक वनेचर वि० वनमा रहेतुं-फरतुं (२)पुं० वनवासी माणस (३) तपस्वी (४) जंगली प्राणी (५) राक्षस वनोपप्लव पुं० दावानळ [जंगली प्राणी वनौकस् पुं० वनवासी (२)तपस्वी (३) वन्य वि० वनने लगतुं वनमा पेदा थतुं (२) पाळेलु नहि तेवू; जंगली (३) लाकडा, (४)पुं० जंगली प्राणी (५) जंगली छोड (६) वानर (७) न० वननी पेदाश (फळ, फूल इ०) वन्यवृत्ति वि० जंगलना आहारथी जीवतुं वन्या स्त्री० मोटुं वन; झाडीओनो समुदाय (२) पूर वन्याश्रम पुं० वानप्रस्थाश्रम वन्येतर वि० जंगली नहि तेवू-पाळेलु Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ वरम् व १ उ० वाववं; रोप, (२)फेंकवू; वयःप्रमाण न० आयुष्यनी लंबाई के माप नाखवू (पासा) (३)वाळ कातरवा वयःस्थ वि० जुवान (२)उंमरे पहोंचेलं वपन न० वावq ते(२)हजामत करवी ते (३)सशक्त (४)पुं० मित्र; समोवडियो वपा स्त्री० दर; छिद्र (२) कीडीनो वयुन न० ज्ञान; डहापण (२) मंदिर राफडो (३) चरबी; मज्जा (आ अर्थमां पुं० पण) (३) विधि; वपु पुं० शरीर आदेश (४) पद्धति (५) कर्म ; कृत्य वपुर्गुण पुं० जुओ 'वपुःप्रकर्ष' । वयोनाल वि० उमरमां नानू वपुर्धर वि० मूर्तिमंत;देहधारी (२)सुंदर वयोवस्था स्त्री० उमर; उमरनुं माप वपुष्मत् वि० मूर्तिमंत; देहधारी (२) । वयोवृद्ध वि० उमरमां मोटुं; वृद्ध सुंदर; मनोहर (३) हृष्टपुष्ट (४) वर वि० उत्तम ; श्रेष्ठ (२)-थी वधु अक्षत; नहि भागेलुं (५) देहात्मवादी सारं(३) पुं० पसंद करते (४)पसंदगी वपुस् न० शरीर (२)स्वरूप ; आकृति (५) वरदान (६) बक्षिस; इनाम; (३) सार; तत्त्व (४) सुंदर स्वरूप । बदलो (७) इच्छा (८) विनंती (९) वपुःप्रकर्ष पुं० सुंदर स्वरूप के आकृति परणनारो; पति (१०) जमाई वस्त पुं०बी वावनारो;खेडूत (२) पिता. वरगात्र वि० सुंदर अंगवाळं (३) हजाम; वाळ कापनारो वरट पुं० हंस (२) न० कुंद पुष्प वप्र पुं०, न० माटीनी दीवाल ; कोट(२) वरटा(-टी) स्त्री० हंसली (२) पीळी तट; किनारो (३) कराड; भेखड; भमरी (करडे छे ते) टेकरीनो ढोळाव (४)शिखर (५)पायो वरण न० पसंद करवं ते (२)आजीजी (६)खाई (७)खेतर(८)सांढ के हाथी करवी ते (३)वींटवू-आवरवं ते (४) भेखड सामे गोधुं मारी घा करे ते । कन्या पसंद करवी ते (५) पुरोहित वप्रक्रिया, वप्रक्रीडा स्त्री० किनारा के वगेरेने पूजवा ते (६)अटकावते (७) भेखडमां गोधु मारी घा करवानी (सांढ, हाथी इ० नी) रमत पुं० कोट; भीत(८) वरुण' वृक्ष (९) वाभिघात पुं० किनारा के भेखड साथे कोई पण वृक्ष (१०) इंद्र वरतन वि० सुंदर अवयववाळं (२) अथडावं - अफळावं ते. वम् १ प० वमन-ऊलटी करवी (२) स्त्री० सुंदर अंगवाळी स्त्री बहार काढवू; फेंकवृं; छोडवू (तेज, वरत्र न० दोरी किरण इ० पण) (३) फेंकी देवू; वरत्र न०, वरत्रा स्त्री० चामडानो पटो __ काढी नाखवू (२) हाथी के घोडानो पटो वमथु पुं० यूंकी काढवू; काढी नाखवू वरद वि० वरदान आपनाएं (२)हाथी सूढमांथी पाणी बहार काढे ते वरदा स्त्री० एक नदी वमन न० बहार काढवू ते (२)ऊलटी वरदान न० देव देवी के संते प्रसन्न थई करवी ते (३) पीडा (४) होम इच्छेलुं आपq ते वयन न० वणवू ते [कागडो वरदानिक वि० वरदानथी मळेलं वयस् न० वय (२) जुवानी (३)पंखी(४) वरपक्ष पुं० वरनां सगांसागवां वयस्थ वि० जुओ 'वयःस्थ' वरपुरुष पुं० पुरुषोमां उत्तम वयस्य वि० समान वय- (२) समोवडियुं वरम् अ० वधु सारु', 'पसंद कराय' (३) पुं० मित्र; समोवडियो -एवो अर्थ बतावे Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वररुचि ४२९ वर्चस्विन् वररुचि वि० वरदानमां प्रीतिवाळू (३) कामदेव (४) हाथी (५)न० माथु (शिव) (२)पुं० पाणिनीय अष्टाध्यायी (६) उत्तम अवयव (७)सुंदर स्वरूप सूत्र पर वार्तिक करनार एक मुनि वरांगक न० तज; दालचीनी ( कात्यायन); विक्रम के भोजना वरांगना स्त्री० सुंदर स्त्री दरबारनां नव रत्नोमांनो एक ; प्राकृत वरिवसित वि० पूजनाएं; भक्त भाषाओनो मुख्य वैयाकरणी वरिवस्यति प० (कृपा करवी) वरलक्षण न० लग्नविधिमा आवश्यक वरिवस्या स्त्री० सेवा; भक्ति; पूजा बाबत दुर्गा वरिष्ठ वि० श्रेष्ठ; उत्तम (२) सौथी वरवणिनी स्त्री० स्त्री (२)संदर स्त्री(३) वधु विशाळ, मोटुं, पहोळं, भारे ('उरु'नुं वरसुरत वि० कामक्रीडानुं रहस्य श्रेष्ठतादर्शक रूप) जाणनारु वरीयस् वि० वधु सारुं; वधु पसंद करवा वरंड पुं० समुदाय (२)मों उपरनो खील योग्य ('उरु' नुं तुलनात्मक रूप) (३) वरंडो; ओसरी (४) माछली वरुण पुं० समुद्र तथा पश्चिम दिशानो पकडवाना आंकडानी दोरी(५)झझूमती अध्यक्ष देव (हाथमां पाश होय छे) दीवाल (६) घासनी गंजी वरुणात्मज पुं० जमदग्नि वरंडक वि. विशाळ (२)बीनेलं; दीन वरूथ न० अथडाय नहि माटे रथने करेलु (३) पुं० माटीनो टिंबो (४) हाथी कठेरा जेवु रक्षण (२)बस्तर (३)ढाल उपरनो बेसवानो होहो (५)दीवाल (६) (४) समुदाय; टोळं वेदीनो मध्य भाग(७)मों उपरनो खील वस्थशस् अ० टोळाबंध; ढगलाबंध वरंडी स्त्री० घासनी पूळी वरूथिन् वि० कवचयुक्त (२) रक्षण माटे वराक वि० बिचाएं; बापडु (२) कम- करेला कठेरावाळू (रथ) (३) रक्षतुं नसीब (३) हीन; नीच (४) सेनाथी घेरायेलू (५) वाहनमां वराट पुं० कोडी(२) दोरडु(३)बीजकोश बेठेलं (६) पुं० रथ (७) रक्षक वराटक पुं० कोडी (२) कमळनो बीज- वरूथिनी स्त्री० सेना कोश (३) पुं०, न० दोरडुं वरेण्य वि० पसंद करवा-इच्छवा योग्य वराटकरजस् पुं० नागकेसरनुं झाड (२) उत्तम; श्रेष्ठ; मुख्य वराटिका स्त्री० कोडी (२)तुच्छ वस्तु वर्ग पुं० विभाग; समूह; समुदाय (२) वरानना स्त्री० सुंदर मुखवाळी स्त्री __ पक्ष (३) 'स्क्वर' (गणित०) वरारोह वि० सुंदर नितंबवाळं वर्गणा स्त्री० समदाय; जथो वरारोहा स्त्री स्वरूपवती स्त्री (सुंदर वर्गस्थ वि० एक पक्षने टेकवतुं नितंबवाळी) वगिन् वि० एक वर्ग-; एक पक्षनुं(२)पुं० वराह वि० वरदानने लायक (२) वर्गनो नायक [जोडीदार लायक ; आदरणीय (३) मूल्यवान । वर्य वि० एक ज वर्गमुं(२)पुं०साथीदार; वरासन न० उत्तम आसन-बेठक वर्चस् न तेज; बळ; वीर्य ; कांति (२) वराह पुं० डुक्कर; सूवर (२) ए रूपे __ आकृति; स्वरूप (३) विष्टा; मळ विष्णुनो त्रीजो अवतार वर्चस्क पुं० तेज; वीर्य; कांति वराहकर्ण पुं० एक जातनुं बाण वर्चस्विन् वि० तेजस्वी; कांतिमान (२) वरांग वि० सुंदर अंगवाळु(२)पुं० विष्णु वीर्यवान; पराक्रमी Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ज छोडीने; वर्ज वि० विनानुं; रहित वर्जक वि० (समासने छेडे ) त्यागतुं; छोडतुं (२) विनानुं; रहित वर्जन न० छोडवुं ते; त्यागवुं ते वर्जम् अ० बाद करीने; सिवाय (समासने अंते) वर्जित ( ' बुज्नु भू० कृ० ) वि० त्यागेलुं छोडेल (२) बाद राखेलुं (३) विनानुं वयं वि० त्यागवा योग्य; छांडवा योग्य (२) - सिवायनुं ४३० वर्ण १० उ० रंगवुं; चीतरवुं (२) वर्णववुं (३) वखाणवुं (४) फेलाववुं वर्ण पुं० रंग ( २ ) सूरत देखाव (३) माणसोनो विभाग - जाति (चार वर्ण) (४) जात; प्रकार ( ५ ) अक्षर ; शब्द (६) प्रशंसा (७) गीतमां वस्तुनो क्रम (८) ध्वनि; अवाज वर्णक पुं० नटनो वेश ( २ ) रंग (चीतरवा माटे) (३) लेप माटे वपराती कोई पण वस्तु; सुगंधी लेप (४) भाट; चारण (५) वक्ता (६) वर्ण अक्षर ( ७ ) नमूनो (८) न० रंग ( ९ ) प्रकरण ; विभाग (१०) कूंडाळु; वर्तुळ वर्णतस् अ० वर्ण [(२) कलम वर्णतूलिका स्त्री० चित्रकारनी पींछी वर्णधर्म पुं० दरेक वर्णनुं पोतानुं कर्तव्य वर्णन न० चीतरबुं ते (२) वर्णववुं के वर्णवे ते; बयान वर्णना स्त्री० वर्णन (२) प्रशंसा वर्णपरिचय पुं० संगीतमां कुशळता वर्णमाला स्त्री० भाषाना मूळाक्षर वर्णवति, वर्णवतिका स्त्री० चितारानी पछी (२) कलम; लेखणी वर्णविक्रिया स्त्री० वर्णो सामे वेरभाव वर्णवृत्त न० अक्षरमेळ छंद (' मात्रा वृत्त ' थी भिन्न ) वर्णश्रेष्ठ पुं० ब्राह्मण वर्णसंकर पुं० भिन्न वर्णनां स्त्री पुरुषना वत लग्नयी थती वर्णनी भेळसेळ (२) जुदा जुदा रंगोनी मिलावट वर्णावकृष्ट पुं० शूद्र वर्णावर वि० वर्णमां हलकुं - ऊतरतुं वर्णाश्रमाः पुं० ब० व० चार वर्ण अने चार आश्रम वर्णिका स्त्री० नटनो स्वांग (२) रंग (३) शाही (४) कलम ( ५ ) खडी वणिकापरिग्रह पुं० पात्रनो स्वांग के भूमिका ((२) चीत रेलं (३) प्रशंसेलुं वर्णित ( 'वर्ण' नुं भू० कृ० ) वि० वर्णवेलु वर्णन वि० (समासने अंते) -ना रंग के देखाववाळु (२) - ज्ञातिनुं; -वर्णनं (३) पुं० चितारो (४) लहियो (५) ब्रह्मचारी; विद्यार्थी (६) चारमाथी कोई पण वर्णनो माणस वर्णिलिगिन् वि० ब्रह्मचारी - विद्यार्थीनो स्वांग के चिह्नो धारण करनाएं वर्णोदक न० रंगीन पाणी वर्ण्य वि० वर्णववानुं; प्रस्तुत ( २ ) रंगसंबंधी आजीविका वर्त पुं० (मुख्यत्वे समासने छेडे) निर्वाह ; वर्तक वि० जीवतुं; अस्तित्व धरावतुं ( २ ) - मां लगनीवाळं; उपासक (३) पुं० बटेर पक्षी (४) घोडानी खरी वर्तन वि० रहेतुं ; होतुं ( २ ) पुं० वामन; ठगणो (३) न० होवु ते; जीववुं ते (४) रहे ते ; निवास ( ५ ) हालचाल ; कर्म (६) निर्वाह; आजीविका ( ७ ) पगार; रोजी (८) वेपार; लेवड- देवड ( ९ ) गोळो; दडो (१०) रंगवुं - चोपडबुं ते वर्तमान वि० जीवतुं; अस्तित्वमां होय ते; समकालीन (२) गोळ फरतुं (३) -मां रहेतुं (४) पुं० वर्तमानकाळ (५) न० वर्तमानकाळ (६) हाजरी वति स्त्री० गोळ वींटीने बनावेलुं ते; (२) अंजन - लेप जेवी श्रृंगारनी कोई चीजनी गोळी के गोळा (३) दीवानी दिवेट (४) वणेला कपडानी दशी Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३१ बतिका वतिका स्त्री० चीतरवानी पींछी (२) दीवानी दिवेट; मसाल उपर वींटेली वाट (३) रंग (४) बटेर पक्षी (मादा) (५) लाकडी वर्तित वि० वींटेलु; आमळेलं (२) अस्तित्वमा आणेलं (३) सिद्ध करेल (४) वितावेलु (समय) . वतिन् वि० (मुख्यत्वे समासने छेडे) रहेनाएं; रहेतुं (२)जतुं (३)वर्ततुं (४) आचरतुं (५) पालन करतुं (आज्ञानु) वर्ती स्त्री० जुओ 'वति' [न० कुंडाळू वर्तुल वि० गोळाकार; वर्तुलाकार (२) वर्त्मन् न० रस्तो; मार्ग (२) चीलो; रूढि (३) अवकाश; तक वर्त्मपात पुं० मार्गमां वच्चे आवq ते (२) मार्गमांथी आडा फंटा, ते वय॑त् वि० बनवानी के वधवानी तैयारीमां होय तेवू वर्षक, वर्षकि, वर्षकिन् पुं० सुतार वर्षकी स्त्री० वेश्या वर्षन वि० वधारनारु (२) न० वधq ते (३) कापवू ते (४) विनाश वर्षमान वि० वधतुं(२)पुं० एक जिल्लो (आजनो बर्दवान) (३) २४ मा जैन तीर्थंकर (४) पुं०, न० अमुक आकार- पात्र वर्षमानक पुं० एक जात, ढांकणा जेवू पात्र (२) माथे के हाथमां दीवा राखी नाचनार लोकोनो एक वर्ग वर्षमानगृह न० क्रीडागृह वर्णित वि० वधेलु (२) मोटुं करेलुं । (३) कापेलं (४) भरेलु वधिष्णु वि० वृद्धि पामतुं; वधतुं वर्ध न० चामडानो पटो (२) चामडुं वधिका, वर्षी स्त्री० चामडानो पटो वर्मन् पुं० क्षत्रियोना नामने लागतो एक शब्द ('चंडवर्मन् ') (२) न० कवच; बख्तर (३) छाल वर्मन् वर्महर वि० बख्तर धारण करवा के युद्धमां ऊतरवा जेटली उमरखें वर्य वि० मुख्य; श्रेष्ठ, प्रधान (घj खरं समासने अंते) वर्ष पुं०, न० वरसाद (२) कोई पण वस्तुनुं वरसादनी पेठे वरस ते (बाण, फूल इ०) (३)संवत्सर (४)दुनियानो विभाग-खंड (कुरु, हिरण्मय, रम्यक, इलावृत, हरि, केतुमाल, भद्राश्व, किंनर, भारत) (५) भारतवर्ष (६) दिवस (७) निवासस्थान वर्षगिरि पुं० जुओ ‘वर्षपर्वत' वर्षघ्न वि० वरसादमांथी रक्षतुं वर्षण न० वरसवं ते वर्षत्र न० छत्री वर्षपर पुं० वादळं (२) अंतःपुरनो नपुं सक रखवाळ के नोकर वर्षपर्वत पुं० दुनियाना जुदा जुदा विभागोने जुदा पाडती पर्वतमाळामांनी दरेक (हिमवान्, हेमकूट, निषध, मेरु, चैत्र, कर्णी, शृंगी - ए सात) वर्षप्रवेग पुं० वरसादनुं सखत झापटुं वर्षवर पुं० अंतःपुरनो नपुंसक रखवाळ के नोकर वर्षा स्त्री० वरसादनी ऋतु; चोमासुं वर्षाकाल पुं० वर्षाऋतु वर्षाघोष (वर्षा+आघोष) J० देडको वर्षामद (वर्षा + आमद) पुं० मोर वर्षारात्र पुं० चोमासानी रात (२) वर्षा ऋतु [ऋतु वर्षावसान न०, वर्षावसाय पुं० शरद वर्षिष्ठ वि० ('वृद्ध'नु श्रेष्ठतादर्शक रूप)अति वृद्ध (२) बलिष्ठ (३)समृद्ध वर्षीयस् वि० ('वृद्ध'नुं तुलनात्मक रूप) वधु मोटुं-वृद्ध-बलवान-अगत्यनुं वर्षक वि० वरसतुं ; पाणी वरसावतुं वर्षोपल पुं० करो (२) एक मीठाई वर्मन् न० देह; शरीर (२)कद; ऊंचाई Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ वल्लभ (३) सुंदर आकार (४)तळ; सपाटी वलित ('वल्' न भू० कृ०)वि० वळेलु; जेमके पर्वतनां) गोळ फरेलु (२)घेरायेलु (३)करचली वह, १ आ० जुओ बर्ह, (२) १० उ० पडेलु (४) फेंकेलं; नाखेलं दीपq; प्रकाश, (३) बोलवू वलिन, वलिभ वि० करचलीवाळू वह पुं०, न० जुओ 'बह' बली स्त्री० जुओ 'वलि' वहिण वि०, पुं०, वहिन् पुं० जुओ वलीक न० छापरानो बहार नीकळतो 'बहिण', 'बहिन्' किनारीनो भाग वहिस् पुं०, न० जुओ ‘बहिस्' वलीपलित न० करचली अने धोळा वाळ वल १ आ० उतावळे जq (२) वळवू; वलीभत् वि० वांकडियु (वाळ) गोळ फरवू (३) आसक्त थर्बु (४) वलीमुख, वलीवदन पुं० वानर वधq (५) ढांक; ढंकावू वल्क पुं०, न० झाडनी छाल (२)वस्त्र वलक न० सरस (३) खंड (४) माछलीनुं भींगडु वलक्ष वि० सफेद वल्कल पुं०, न० झाडनी छाल (२)तेनुं वलक्षगु पुं० चंद्र बनावेलुं वस्त्र वलग्न पुं०, न० कमर; केड वल्कलिन् वि० छाल आपतुं; छाल थती वलज पुं० अनाजनो ढगलो (२) न० होय तेवू (२) वल्कल पहेरनारु खेतर (३) अनाज (४) युद्ध वलजा स्त्री० सुंदर स्त्री वल्कवासस् न० छालनु बनावेलुं वस्त्र वलन न० -तरफ वळवू ते (२) गोळ वल्ग १ प० जर्बु(२)हलाववं; कंपावq कुंडाळामां फरवू ते (३) क्षोभ (३) ठेकडो भरवो (४)नाचवू (५) वलना स्त्री० तरफ फरवू-वळवू ते (२) खुश थर्बु (६)खावु (७) बडाश मारवी चित्रनी आकृतिओ दोरवी ते वल्गक पुं० ठेकडा मारनारो; कूदनारो वलभि(-भी) स्त्री० छापरानो ढाळ; वल्गन न० ठेकडा मारवा-कूद ते छापरानुं लाकडानुं छाज (२) धरनी वल्गा स्त्री० लगाम छेक टोचनी मेडी (३) सौराष्ट्रनी बल्गित ('वला 'न भू० कृ०) ठेकडो एक नगरी मार्यो होय तेवू; कूदेलु (२)नचावेलं; वलय पुं०, न० कडु; कंकण (२)जाळं, कूदावेलु (३)न० घोडानी ठेकडावाळी गूंचळं (३) परणेली स्त्रीनो कंदोरो (४) चाल (४) बडाश मारवी ते वर्तुळ ; घेरावो (समासने अंते) (५) वल्गु वि० मनोहर; सुंदर (२)मधुर; न० टोळं [गोळ कुंडाळं करतुं मीठु (३) मूल्यवान (४) अ० सुंदर रीते वलयित वि० वींटायेलु; घेरायेलु (२) वल्गुनाद वि० मधुर अवाज करतुं वलयीकृ८ उ० कंकणनी पेठे गोळ वींटवू वल्गुलिका स्त्री० वंदो(२)कुप्पी (तेलनी) वलंतिका स्त्री० एक चेष्टा-अभिनय वल्मीक पुं०, न० कीडीनो राफडो (२) वलि स्त्री० करचली; करचोली (२) पुं० वाल्मीकि मुनि पेट उपरनो वाटो (स्त्रीनी सुंदरतानी वल्ल पुं० त्रण गुंजा जेटलं वजन निशानी गणाय छे) (३) छापरानो वल्लको स्त्री० वीणा टोचनो भाग (ज्यां बे ढाळ भेगा वल्लभ वि० वहालुं; प्रिय (२)प्रियतम; थाय छे) (४) सुगंधी लेप वडे शरीर पति (३) मानीतो माणस (४) शुभ उपर करेली रेखा (५)चामरनो हाथो । लक्षणवाळो घोडो Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मा वल्लभजन ४३३ वसुभारा वल्लभजन पुं० प्रियतमा वस् १५० रहेवू; वसवाट करवो (२) वल्लभपाल पुं० अश्वपाल ; खासदार . होवू; मळी आवq (३)२ आ० धारण वल्लभा स्त्री० प्रियतमा; पत्नी कर; पहेरवु (४)४५० स्थिर होवू वल्लरि(-री) स्त्री० वेल; लता (२) (५)१०प० रहेQ (६) १० उ० कापवू; शाखाओवाळी दांडी छेदq (७)चाहवू (८) स्वीकारवू (९) वल्लव पुं० गोवाळियो १० उ० [वसयति-ते] सुगंधित करवू वल्लि स्त्री० वेल (२) पृथ्वी वसति (-ती) स्त्री० वास ; निवास (२) वल्ली स्त्री० वेल धर; निवासस्थान (३) शिबिर (४) वश् २ प० इच्छयूँ (२) प्रकाशवं रात्रि (ज्यारे पडाव कराय छे) वश वि० ताबेनी असर के अंकुश वसथ न० माळो (पंखीओनो) हेठळy (२) आज्ञापालक (३) मोहित वसन न० वसवं ते; निवास (२) घर (४)पुं०, न० काबू ; सत्ता; ताबेदारी वशग वि० बीजानी मरजीने अनुसर (३) वस्त्र; (४) कंदोरो (स्त्रीनो) नारं; वश-ताबे थयेलु (२) पुं० दास; वसनपर्याय पुं० वस्त्र बदलवां ते वसना वि०, स्त्री० (समासमां)वस्त्रथी नोकर सिरनारुं वशतिन् वि० बीजानी मरजीने अनु आच्छादित एवी (२) वींटळायली । वशंगम् १ प० वश थq; ताबे थर्बु वसंत पुं० वसंत ऋतु (चैत्र अने वैशाख) वशंवद वि० वश - ताबे थयेलू; -नी (२)विदूषकनु उपनाम (नाटकमां) असर हेठळ आवेलु वसंतबंधु, वसंतयोध पुं० कामदेव वशा स्त्री० स्त्री (२) पत्नी (३) कन्या वसंतसख पुं० कामदेव (२) मलयानिल (४) हाथणी (५) वंध्या (स्त्री) वसंतावतार पुं० वसंत ऋतु बेसवी ते वशिता स्त्री०, वशित्व न० वश करवू ते वसंतोत्सव पुं० होळीनो उत्सव (२) मोहित करवू ते (३)बीजाने वश वसा स्त्री० मेद; चरबी करवानी सिद्धि (४)जात उपर काबू वसान वि० रहेतुं वशिन् वि० समर्थ (२) वश थयेलं; वसिष्ठ पुं० ते नामना एक ऋषि ; सूर्यताबेदार (३)वासनाओ काबूमां लीधी वंशी राजाओना पुरोहित होय तेवू [णनुं साधन - कारण वसु वि० मधुर (२) सूकुं(३)न० धन; वशीकरण न० वश करवू ते (२) आकर्ष- समृद्धि (४) रत्न (५)सोनुं (६) पाणी वशीकृ ८ उ० ताबे करवू; वश करवू (७) घी (८) पुं० (ब० व०) देवोनो (२) मोहित कर [थयेलं एक वर्ग (आठ छ) (९)किरण (१०) वशीकृत वि० वश थयेलु (२) मोहित कोणीथी मूठी सुधीनुं माप वश्य वि० वश करी शकाय ते, (२) वश वसुक पुं० आकडो (२) न० दरियानु मीठु करेलं ; वश थयेलं (३) काबू हेठळy; वसुदा स्त्री० पृथ्वी आज्ञापालक (४) पुं० दास; नोकर वसुदेव पुं० श्रीकृष्णना पिता वश्या स्त्री० आज्ञापालक पत्नी . वसुद्रुम पुं० उदुंबर वृक्ष वषट् अ० देवने आहुति आपती वखते वसुधा स्त्री॰ पृथ्वी (२) स्वर्ग (३) जमीन बोलातो शब्द (देवनी चतुर्थी साथे)। वसुधाधर पुं० पर्वत वषट्कृत वि० ('वषट्' उच्चार साथे)। वसुधाधिप पुं० राजा [धानी होमेलु वसुधारा, वसुभारा स्त्री० कुबेरनी राज Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुमत् वसुमत् वि० धनवान वसुमती स्त्री० पृथ्वी वसुरेतस् पुं० अग्नि वसुश्रेष्ठ न० घडतर सोनुं ( २ ) रूपुं वसुषेण पुं० कर्ण वसुंधरा स्त्री० पृथ्वी वसूक पुं०, न० जुओ 'वसुक' वसोर्धारा स्त्री० वसुओ माटे घीनी धारा (२) घी होमवानुं पात्र ( ३ ) मंदाकिनी ( स्वर्गनी गंगा ) ४३४ वस्तव्यता स्त्री० निवास; रहेठाण वस्ति पुं०, स्त्री० जुओ ' बस्ति ' वस्तु न० पदार्थ; चीज; सत् पदार्थ (२) मालमिलकत ( ३ ) सार; तत्त्व (४) घटक द्रव्य (५) नाटक के कथानो विषय; 'प्लॉट' वस्तुतस् अ० वस्तुताए; खरेखर वस्तुपुरुष पुं० नायक (नाटक के कथानो) वस्तुरचना स्त्री० वस्तुनी गोठवणी के खिलवणी (नाटक इ० मां) वस्तुवृत्त न० साची बाबतं के बीना (२) सुंदर प्राणी वस्तुपहित वि० योग्य पदार्थने लागु करेलुं; योग्य पदार्थमां अजमावेलुं वस्त्य न० निवासस्थान; घर वस्त्र न० कपडुं; कापड वस्त्रधाविन् वि० वस्त्र धोनारुं वस्त्रपरिधान न० वस्त्र पहेरवां ते वस्त्रपूत वि० कपडाथी गाळेलुं वस्त्रोत्कर्षण न० वस्त्र उतारी नाखवां ते वस्य पुं० घर वस्था स्त्री० अवस्था वस्वोकसारा, वस्वौकसारा स्त्री० इंद्रनी नगरी - अमरावती (२) कुबेरनी नगरी अलका (३) ते बनेने स्पर्शती नदी वह १ उ० ऊंचकवं; वहन करवुं; उपाडी जवं ( २ ) आगळ धकेलवं - लई जवुं( ३ ) लावुं लई आववुं ( ४ ) धारण करवु aaj (५) हरी जवुं ( ६ ) परणवुं (७) वंचित मालिक होवु - पासे होवुं (८) काळजी राखवी (९) अनुभववुं (१०) (अकर्मक अर्थ) खसवुं ; चालवं ( ११ ) वहेवुं (नदीनुं ) ( १२ ) वावुं (पवननुं) - प्रेरक ० ऊंचकाववु; लेवराववुं (२) ring ; धकेलवं (३) उपर थईने जवुं ; पसार थवुं (४) वापरवु; धारण करवु वहन न० वहन करवुं - लई जवं ते (२) वहेवुं ते ( ३ ) वाहन (४) नौका वहनभङग पुं० वहाण तूटी जनुं ते वहनीय वि० वहन करवा योग्य; लई जवा लायक [ ( ३ ) प्राप्त थयेलुं वहित वि० वहन करायेलु ( २ ) विख्यात वहित्र न० वहाण; नौका वह्नि पुं० अग्नि ( २ ) जठराग्नि वह्निषत वि० अग्नि जेवुं शुद्ध वह्निसंस्कार पुं० शबनो अग्निसंस्कार वह्निसाक्षिकम् अ० अग्निनी साक्षीए a न० गाडी ( २ ) वाहन; सवारी वंक पुं० नदीनो वांक (२) वळांक का स्त्री० जीन के पलाणनो आगळनो ऊभो भाग वक्षु स्त्री० गंगा नदीनी एक शाखा (२) ( पामीरमांथी नीकळती ) आमुदरिया नदी; 'ऑक्सस' वंग पुं० ( ब०व० ) बंगाळ देश (२) न० कलाई (३) सीसुं [ टोपली वंगेरिका, बंगेरी स्त्री० नेतरनी नानी वंच १प० जवं; पहोचवूं (२) गुपचुप जवं - प्रेरक ० - थी दूर रहेवु; थी बच नीकळवु (२) छेतरखुं ( ३ ) -थी रहित करवु; विनानुं राखवं वंचक वि० लुच्चु; छेतरनारुं ( २ ) पुं० ठग; लुच्चो (३) शियाळ वंचन न०, वंचना स्त्री० ठगवुं - छेतरवु ते ( २ ) युक्ति; छेतरपिंडी ( ३ ) भ्रम ( ४ ) - विनानुं करवुं ते; रुकावट करवी के थवी ते [ करायेलुं वंचित वि० छतरायेलुं (२) विनानुं Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंचुलक वाक्पटु बंचुलक पुं० एक पंखी (२) वांसनुं बनेलं (३) सारा वंशमां वंजुल वि० वांकु (२) पुं० नेतर; बरु (३) जन्मेलुं (४) पुं० वारसदार; संतान एक फूल (४) अशोक वृक्ष (५) एक पंखी। वंशधर वि० वंशने टकावनाएं-चालु वंजुलक पुं० जुओ 'वंचुलक' राखनारुं (२) कुटुम्बने पोषनारु (३) वंट १ ५०, १० उ० भाग पाडवा; पुं० वारसदार [भुंगळी हिस्सो वहेंचवो वंशनाडिका, वंशनाडी स्त्री० वांसळी के वंट वि० बांडु; पूंछडी विनानु (२)वांढुं वंशबाह्य वि० कुटुंबमांथी बहिष्कृत . वंद १ आ० एकला जवू वंशभृत् पुं० कुळनो वडो (२) कुळने वंढ वि० वाळु [(२)स्तुति करवी पोषनारो वंद १ आ० वंदन करवूनमस्कार करवा वंशभोज्य वि० परंपराथी मळेलं (२) न० वंदन न० नमस्कार; प्रणाम (२)स्तुति वंशपरंपराथी चालती आवेली मिलकत वंदनमालिका स्त्री० दरवाजे लटका- वंशवन न० वांसन वन वाती माळा; तोरण [स्तुति । वंशवर्षन वि० वंशनी उन्नति करनारु वंदना स्त्री० नमस्कार; प्रणाम (२) (२) पुं० पुत्र (३) न० वंशनी उन्नति वंदनीय वि० वंदन करवा योग्य करवानें काम वंदार वि० स्तुति करतुं (२) वंदन वंशवितति स्त्री० वांसनी झाडी (२) करतुं; नम्र; विनयी वंश-विस्तार होवू ते वंदि स्त्री० केद (२) स्त्री केदी वंशसंपत् स्त्री० ऊंचा कुळy- खानदान वंदिन पुं० बंदी; भाट (२) बंदीवान वंशस्थिति स्त्री० वंश चालु रहेवो ते वंदी स्त्री० जुओ 'वंदि' । वंशागत वि० वंशपरंपराथी-वारसामां वंद्य वि० पूज्य ; वंदन करवा योग्य (२) मळेल प्रशंसापात्र [नमेलं (३) सुंदर वंशावली स्त्री० पेढीनाम बंधुर वि० अस्थिर; चंचळ (२)वांकुं; वंशी स्त्री० वांसळी वंध्य वि० बांधवा के केद पकडवा लायक वंश्य वि० सारा कुळy (२) पुं० वारस(२) जोडवा लायक (३) जेने संतान दार; संतति (ब० व०) (३)पूर्वज (४) के फळ न थाय तेवू [गाय कुटुंबनो कोई पण माणस (५) पाटडो वंध्या स्त्री० वांझणी स्त्री (२) वांझणी वा २ प० फूंकावू (२)जq (३) ४५० वंश पुं० वांस (२) कुळ; पुत्रपुत्रादिनो सुकाई जq (४) बुझाई जq (५) १० उ० क्रम (३)वांसळी (४) समुदाय (सरखी खुश थर्बु (६) पूजq [विकल्पे वस्तुओनो) (५) पाटडो (६) गांठ; वा अ० अथवा (२)वळी (३)पेठे (४) सांधो (वांसमां) वा-वा अ० कां तो आम के कां तो तेम वंशकर वि० वंशनी स्थापना करनारं वाक पुं० वाणी (२) संहिता (वेद) (२)वंश चालु राखनारु (३) पुं० पुत्र (३) न० बगलाओनो समूह वंशकर्मकृत् पुं० वांसजें काम करनारो वाकोवाक्य न० तर्कशास्त्र वंशकृत्य न० वांसळी वगाडवी ते वाक्चपल वि० गमेतेम - अविचायु वंशचर्मकृत् पुं० वांस साथे चामडानुं बोलनारुं [छुपावीने बोलवू ते __ काम करनारो . वाक्छल न० वाणीनु छळ ; साची वात वंशज वि० -ना वंशमां उत्पन्न थयेलं वाक्पटु वि० बोलवामां चतुर एवं Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाकूपारीण वाक्पारोण वि० वाणीथी पर एवं; वर्णन न करी शकाय तेवुं वाक्पारुष्य न० कठोर वाणी ( २ ) आक्षेप; आळ; बदनक्षी वाक्प्रचोदनात् अ० मौखिक आज्ञा अनुसार; हुकमने कारणे वाक्प्रतोद पुं० वाणीरूपी परोणो; परोणानी पेठे भोंकाय तेवुं बोलवु ते वाक्प्रलाप पुं० खुब बोलवु ते वाक्य न० पूर्ण अर्थ बतावतो शब्दसमूह ( २ ) वचन; कथन ( ३ ) आज्ञा ( ४ ) नियम [ कहे वाक्यभेद पुं० पहेलां कहेलाथी जुदु वाक्यशेष पुं० बोलतां शेष रहेलुं होय ते; अधूरुं वाक्य वाक्यसारथि पुं० आगळ पडीने बोलनारो; मुख्य बोलनारो वाक्योपचार पुं० बोलवु ते वाक्शलाका स्त्री०, वाक्शल्य न० वींधे तेवी वाणी ४३६ वाक्शस्त्र न० शॉप वाकसंतक्षण न० कटाक्षवाळी वाणी वागर्थ पुं० ( द्वि० ० ) शब्द अने तेनो अर्थ [ वाणी वागसि पुं० तरवारनी पेठे कापे तेवी वागात्मन् वि० शब्द के वाणीरूप एवं वागीश पुं० वक्तृत्व शक्तिवाळो ( २ ) बृहस्पति (३) ब्रह्मा वागुरा स्त्री० जाळ ; फांदो वागुरिक पुं० पारधी ; व्याध वागृषभ पुं० पंडित; विद्वान; वक्ता वाग्जाल न० खाली भारे शब्दो बोलवा ते (कार्य के अमल कर्या विना ) वाग्दत्ता स्त्री० वाग्दानथी विवाह कर्या होय तेवी कन्या वाग्दंड पुं० ठपको (२) वाणीनो निग्रह वाग्दान न० सगाई विवाह करवानुं वचन आप 1 वाचाल वाग्दुष्ट पुं० गाळ भांडनारो ( २ ) यथाकाले जनोई न दीघेलो ब्राह्मण वाग्दोष पुं० वाणीनों दोष ( न बोलवानुं होय त्यां बोलवु ते) वाग्बंधन न० बोलतुं बंध करवु ते वाग्मिन् वि० वक्तृत्वशक्तिवाळं (२) वाचाळ (३) पुं० तेवो माणस वाग्वज्र पुं० वज्र जेवी कठोर भाषा वाग्विद् वि० वक्तृत्वशक्तिवाळं वाग्विभव पुं० भाषा उपरमो काबू; वर्णन करवानी शक्ति वाग्व्यवहार पुं० मोढानी चर्चा वाग्व्यापार पुं० बोलवानी रीत (२) stoarat अभ्यास के टेव वाङ्मनस न० वाणी अने मन वाङमय वि० वाणी के शब्दनुं बने लुं (२) वाणी - शब्द संबंधी (३) वाणीयुक्त (४) वक्तृत्व-छटावाळं (५) न० वाणी; भाषा (६) वक्तृत्वछटा वाङ्मात्र न० मात्र वाणी के शब्द वाच स्त्री० वाणी; भाषा ( २ ) शब्द ; ध्वनि ( ३ ) वचन; खातरी ( ४ ) सरस्वती देवी वाचक वि० बोलतुं; कहेतुं ; खुलासो करतुं ( २ ) अर्थ दर्शावतुं ( ३ ) पुं० बोलनारो (४) बांचनारो (५) संदेशो लई जनारो [ बोलवु ते वाचन न० वांचवं ते ( २ ) कहेवुं ते; वाचस्पति पुं० बृहस्पति (२) वेद वाचस्पत्य न० भाषण; वक्तृत्वछटावाळु कथन [ मौन रहेनारुं वाचंयम वि० जीभ पकडी राखनाएं; वाचा स्त्री० वाणी; बोली ( २ ) शास्त्रवाक्य (३) शपथ वाचाट वि० वातोडिय; वधारे पडती अथवा नकामी वातो कर्या करनारुं (२) बडारा मारनारुं वाचाल वि० अवाज करतु; घोंघाट Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाद वाचालना ४३७ करतुं (२) वातोडियु (३) बडाश वाडव पुं० ब्राह्मण (२) वडवाग्नि मारनारु [क्रिया वाण पुं० अवाज (२) बाण (३) वाचालना स्त्री० वाचाळ बनाववानी सो तारवाळी वीणा वाचासहाय पुं० वातो करीने आनंद वाणिज, वाणिजिक पुं० वेपारी पामी शकाय तेवो साथी - सोबती वाणिज्य न०, वाणिज्या स्त्री० वेपार वाचिक वि० वाचाने लगतुं (२) वाणिनी स्त्री० चतुर-तरकटी स्त्री शाब्दिक; मोढा- (३) पुं० वक्तृत्व- (२) नटी; नाचनारी (३) स्वच्छंदी छटावाळं भाषण (४) न० मोंए अने मदमत्त स्त्री कहेवरावेलो संदेश वाणी स्त्री० बोली; भाषा (२) बोलवाचोयुक्ति वि० बोलवामां कुशळ एवं वानी शक्ति (३) अवाज (४) ग्रंथ (२) स्त्री० बोलछा; भाषण (३) (५) स्तुति (६) सरस्वती देवी . चतुराईभरी वातचीत वात वि० फूंकायेलं; फूंकेलं (२) वाच्य वि० जेने कहेवान के संबोधवानं पुं० वायु; पवन (३) शरीरनी त्रण छे तेवू; कहेवा योग्य(२)शब्द वडे सीधुं धातुमांनी एक - वायु (३) संधिवा कहेवायेलु (लक्ष्य के व्यंग्य नहि तेवू) (४) बेवफा के धृष्ट यार (३) निंदा करवा योग्य ; ठपको आपवा वातकिन् वि० संधिवावाळं योग्य (४) न० निंदा; ठपको (५)शब्दनो। वातपट पुं० सढ अभिधाशक्तिथी नोकळतो अर्थ वातात्मज पुं० हनुमान (२) भीम वाच्यता स्त्री०, वाच्यत्व न० निंदा; वातायन पुं० घोडो (२) न० बारी; ठपको (२) अपकीति हवा माटेन बाकुं (३) झरूखो वाज पुं० पांख (२) पींछु (३) बाण- वातायमान वि० पवननी पेठे दोडतुं पींछ (४) न० घी (५) अन्न वातालि (-ली) स्त्री० वंटोळियो वाजसनि पुं० सूर्य (२) अन्नदाता वाताश्व पुं० पवनवेगी घोडो वाजसनेयिन् पुं० याज्ञवल्क्य वाताहति स्त्री० पवननो तीव्र झपाटो वाजिन वि० वेगीलं; झडपी (२) वातिक वि० पवनना तोफानवाळू मजबूत (३) पांखवाळं (४) पुं० (२) संधिवावाळ (३) गांडु (४) घोडो (५) सूर्य (६) पंखी पुं० वातव्याधिथी थयेलो ताव (५) वाजिभ, वाजिभूमि स्त्री० ज्यां घोडा खुशामतियो (६) एक देवयोनि बहु होय तेवी जगा वातुल, वातूल वि० वातव्याधिवाळू वाजिमेध पुं० अश्वमेध यज्ञ (२) गांडु (३) बडाईखोर (४) वाजीकरण न० कामभोगनी शक्ति पु० पवननो वंटोळ वधारनार औषध के प्रयोग वात्या स्त्री० पवनन तोफान वाट पुं०, न० वाडो; वाड के भीतथी वात्सल्य न० संतान प्रत्ये- वहाल घेरेली जगा (२) वाडी (३) जिल्लो वात्सल्यबंधिन् वि० संतान प्रत्ये ममता वाटक पुं० जुओ 'वाटिका' के वहाल देखाडतुं वाटधान पुं० जमीनदार वात्स्यायन पुं० न्यायभाष्यना कर्तार्नु वाटिका स्त्री० वाडी; उपवन (२) __ नाम (२) कामसूत्रना कर्ता- नाम घरथाळनी जमीन वाद पुं० बोलवू ते; वातचीत करवी सं.ग.-२८ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वादक ४३८ वामाचार ते (२) वाणी; वातचीत (३)विधान; कथन (४) अहेवाल (५) चर्चा; विवाद (६) जवाव (७) विवरण; खुलासो (८) सिद्धांत वादक पुं० वक्ता(२)वाजिंत्र वगाडनारो वादग्रस्त वि० चर्चास्पद वादचंचु वि० हाजरजवाबी वादन न० वाजिंत्र वगाडवं ते (२) पुं० । वाजिंत्र वगाडनारो [स्तुतिपाठक वादिक पुं० जादुगर ; मदारी (२)भाट; वादित्र न० वाद्य ; वाजिंत्र (२) वाजिंत्र उपर वगाडेलुं संगीत वादिन् वि० बोलनारूं; वातचीत करनारुं (२) वाद-विवाद करनारु (३) कहेवातुं; -ने नामे ओळखातुं (४) मनोरंजन थाय तेवी रीते बोलनारुंवात करनारु (५) पुं० बोलनारो (६) वाद-विवाद करनारो (७) उपदेशक (८) समजावनारो वाद्य न० वाजिंत्र (२) वाद्य-ध्वनि वाध्रीणस पुं० गेंडो वान ('वा' तथा 'वै' न भू० कृ०) वि० ऊडी गयेलं; उडावायेलं (२) (पवनथी) सुकायेलं वान वि० वनन; वन संबंधी वानप्रस्थ पुं० त्रीजा आश्रममा आवेलो; वानप्रस्थाश्रमी (२) तपस्वी वानर पुं० वांदरो वानरी स्त्री० वांदरी वानरेंद्र पुं० सुग्रीव के हनुमान वानस्पत्य वि० लाकडा, (२) झाड नीचे करेलु (यज्ञ) [एक देश वानायु पुं० हिंदनी वायव्ये आवेलो वानायुज पुं० वानायु देशनो घोडो वानीर पुं० एक जातवें नेतर- बरु वानोरक पुं० मुंज घास वानेय वि० वनमा थतुं के रहेतुं (२) प्राणी संबंधी वान्य वि० वनk; वन संबंधी वान्या स्त्री० वन-उपवननुं झंड वाप पुं० वावq ते (२) वणवू ते (३) मूंडवु ते । [जळाशय वापि, वापिका स्त्री० वाव; कवो; वापिविस्तीर्ण न० वाव जेवा आकार बाकुं (भीतमां चोरे पाडेलु) वापी स्त्री० जुओ ‘वापि' वाम वि० डाबु (२) डाबी बाजुए आवेलुं (३) ऊलटुं; विरुद्ध ; प्रतिकुळ (४) हीन; अधम (५) सुंदर; मनोहर (६) पुं० डाबो हाथ (७) शिव (८) न० दुर्भाग्य (९) धन; मिलकत (१०) सुंदर वस्तु वामक वि० डाबु (२)ऊलटुं; प्रतिकूळ (३)पुं० एक मिश्र जाति [तरफथी वामतस् अ० डाबी बाजुए (२) डाबी वामदृश स्त्री० (सुंदर आंखोवाळी)स्त्री वामन वि० ठीगणु (२) नानु; ट्रंकु (३) नम्र; नमेलु (४) हीन; अधम (५) पृ० ठीगणो माणस (६) विष्णु नो पांचमो अवतार (बलिराजा ने नमाववा माटे थयेलो) वाभनयना स्त्री० जुओ 'वामदर' वामनिका स्त्री० ठीगणी-वामन स्त्री वामनी वि० संपत्ति लावनारु वामनीकृत वि० ठीगणुं बनावेलु (२) दबावी दीधेलु वामभू स्त्री० सुंदर आंखोवाळी स्त्री वाममार्ग पुं० तंत्रोक्त-पंच 'मकार' नी साधनावाळो मार्ग वामलूर पुं० कीडीनो राफडो वामलोचना स्त्री० सुंदर आंखोवाळी स्त्री वामशील वि० वक्र स्वभाव- (२) पु० कामदेव वामस्वभाव वि० उमदा चारित्रवाळं वामा स्त्री० स्त्री (२) सुंदर स्त्री. वामाचार पुं० जुओ 'वाममार्ग' Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वामांगी ४३९ वारियंत्र वामांगी स्त्री० सुंदर स्त्री पुं० हाथी (७) हाथीनी सूंढ (८) वामी स्त्री० घोडी (२) हाथणी (३) अंकुश (हाथी माटेनो) (९) कवच शियाळवी (४) गंधेडी वारणपुष्प पुं० एक जातनो छोड वामेतर वि० जमणुं स्त्री वारणसाह्वय न० हस्तिनापुर वामोर (-रू) स्त्री० सुंदर जंघावाळी वारनारी स्त्री० वेश्या; गणिका वाम्य न० उच्छंखलता; उदंडता वारबाण पुं०, न० कवच; बख्तर वायक पुं० ढगलो; समूह (२) वणकर वारमुख्या स्त्री० मुख्य वेश्या वायन, वायनक न० देव-ब्राह्मणने वारयितृ पुं० पति; धणी उत्सव के पारणांने प्रसंगे अपाती वारयुवति स्त्री० गणिका; वेश्या मिष्टान्न वगेरेनी भेट वारयोषित, वारवधू, वारवनिता, वारवायव वि० वायुनं ; वायु संबंधी विलासिनी स्त्री० वेश्या; गणिका वायवी स्त्री० वायव्य दिशा वारंवारम, वारंवारेण अ० फरी फरी; वायवीय, वायव्य वि० वायुनु; वायु वारे वारे; पुनः पुनः संबंधी; वायु ने लगतुं वाराणसी स्त्री० काशी; बनारस वायव्या स्त्री० उत्तर-पश्चिम खूणो वाराशि (वार् + राशि) पुं० समुद्र वायस पुं० कागडो (२) न० कागडा वाराह वि० वराहने लगतुं; वराहओनो समुदाय (२) पुं० डुक्कर; भंड वायु पुं० पवन; वात (२) वायुदेवता वाराहकल्प पुं० अत्यारनो चाल (३) वातरोग (४) शरीरना पांच कल्प (ब्रह्माना आयुष्यना बीजा अर्धनो वायु मांनो दरेक [गांडु पहेलो दिवस) वायुग्रस्त वि० वातव्याधिवाळू (२) वारांगना स्त्री० वेश्या; गणिका वायुनिघ्न वि० गांडु वारांनिधि पुं० समुद्र वायुपुत्र पुं० हनुमान (२) भीम वारि न० पाणी (२) स्त्री० हाथीने वायुभक्ष पुं० वायु भक्षण करीने जीव- बांधवानुं दोरडु (३) हाथीने पकडवा नारो- तपस्वी (२) सर्प; साप तैयार करेलो खाडो वायरुग्ण वि० पवन वडे तूटी पडेलं वारिगर्भ पुं० वादळ वार् न० पाणी; जळ वारिचर वि० जलचर (२)पुं० तेवू प्राणी वार पुं० ढांकण (२) समुदाय; मोटी वारिज वि० पाणीमां उत्पन्न थयेलं संख्या (३) ढगलो (४) टोळं (५) (२) पुं० शंख (३) न० कमळ अठवाडियानो दिवस (६) वारो (७) वारित वि० रोकेलं; अटकावेलं; वारेलू वार; वखत (ब० व० मा 'घणी वार' (२) रक्षेलं; बचावेलं अर्थ थाय) (८) तक; प्रसंग (९) वारिद पुं० वादळ; मेघ (२) पूर्वजोने दरवाजो (१०)नदीनो सामो किनारो जलांजलि अपनारो वारक वि० रोकनारु; अटकावनाएं वारिधर पुं० वादळ (२) पुं० वारो (३) घोडो वारिधि पुं० समुद्र वारण वि० निवारनारं; रोकनारुं वारिपथ पुं०, न० दरियाई मुसाफरी (२) न० रोक के निवारवं ते (३) वारिमुच पुं० मेघ; वादळ . विघ्न (४) सामनो (५) कमाड (६) वारियंत्र न० पाणी काढवानो रेंट Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वारिराशि ४४० वास् वारिराशि पुं० समुद्र (२)सरोवर वार्मुच् पुं० मेघ; वादळ वारिरह न० कमळ वार्य वि० पसंद करवा- (२) मूल्यबारिवाह, वारिवाहन पुं० मेघ वान (३) पुं० दीवाल ; कोट (४) न० वारी स्त्री० जुओ 'वारि' स्त्री० वर; वरदान (५) (ब०व०) मिलकत वारीट पुं० हाथी वार्वाह पुं० मेघ; वादळ वारीश पुं० समुद्र (२) विष्णु वार्षिक वि० वर्षा ऋतुनु (२)दर वरसे वारुण वि० वरुणदेवनें; वरुण संबंधी थतुं (३)एक वरस टकी रहेनाएं (२) वरुणने अर्पित एवं (३)पाणीन; वार्षिकी स्त्री० आखं वरस जेनां पाणी पाणीमांनुं (४) पश्चिम दिशानुं (५) वहे छे तेवी नदी न० पाणी (६) शतभिषज् नक्षत्र (७) वाष्र्णेय पुं० वृष्णिनो वंशज (२)श्रीकृष्ण पुं०, न० पश्चिम दिशा वालखिल्य पुं० अंगूठाना कदना वारुणि पुं० अगस्त्य मुनि (२)भृगु ६०,००० देवताओ (ब्रह्माना शरीरवारुणी स्त्री० पश्चिम दिशा (२) मदिरा माथी उत्पन्न थयेला तथा सूर्यना रथनी वारुण्य वि० वारुणी-मदिरा संबंधी आगळ जता मनाय छे) वार्ड वि० झाडनु; झाडनूं बनेलं (२) वालधि पुं० वाळवाळू पूंछडु झाडनी छाल बनेल (३) न० जंगल वालि पुं० वानरोनो राजा; सुग्रीवनो वार्ता स्त्री० जुओ 'वार्ता' मोटो भाई धात वि० नीरोगी (२)असार (३)न० आरोग्य ; क्षेम (४)कुशळता वालुका स्त्री० रेती (२) चूर्ण वार्ता स्त्री० रहे ते(२)समाचार; खबर वाल्मिकी, वाल्मीक, वाल्मीकि पुं० (३) आजीविका; धंधो (४) खेती रामायणना रचनार ऋषि (वैश्यनो धंधो) वाहक ; कासद वाल्लभ्य न० वल्लभ-प्रिय होवापणुं वार्तानुकर्षक पुं० जासूस (२) संदेश वाव अ० आगाउना शब्द उपर भार वार्तामात्र न० मात्र ऊडती वात (२) मूकवा वपरातो प्रत्यय उपरचोटियुं ज्ञान वावदूक वि० वातोडियु; वाचाळ वार्तावह पुं० दूत; कासद [समाचार वावात वि० प्रिय ;मानीतुं होय) वार्ताव्यतिकर पुं० किंवदंती (२)खराब वावाता स्त्री० मानीती राणी(शूद्र वर्गनी वार्ताहर पुं० दूत; कासद वावत ४ आ० पसंद कर कात्तिक वि० समाचारने लगतुं (२) वाश ४ आ० बूम पाडवी; चीस पाडवी विवरणरूप एवं (३) पुं० जासूस (२) गुंजारव करवो; कूजवू (पक्षी (४)वैश्य ; वेपारी (५)न० कहेवायेल ओए) (३) बोलावq - नहीं कहेवायल-अधूरी कहेवायल वाशक वि० बम पाडतं; गाजतं । अर्थ- विवरण करनार ग्रंथ वाशित न० पक्षीओनी चीस - बूम वाघ्न पुं० अर्जुन समुदाय (२)बोलावq ते [पत्नी वार्द्धक न० वृद्धावस्था (२) घरडाओनो वाशिता स्त्री० हाथणी (२) स्त्री (३) वार्द्धक्य न० घडपण वाशी स्त्री० फरसी-भालो वगेरे जेवू वार्द्धष, वार्द्धषिक पुं० व्याजखोर हथियार (२) अवाज; वाणी वाधि पुं० महासागर [डानी दोरी वाष्प पुं०, न० जुओ 'बाष्प' बाधं न०, वार्षी स्त्री० वाधर; चाम- . वास् १० उ० सुवासित कर (२) Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वास ४४१ वास्तव्य मसालावाळं करवू; आथर्बु (३) ४ आ० जुओ 'वार' वास पुं० सुगंध; गंध (२) निवास; रहेठाण (३) घर (४) वस्त्र वासक वि० सुगंधित करनारु (२) वसावनाएं (३) पुं० सुगंध (४) न० कपडां; वस्त्र वासकसज्जा स्त्री० मुलाकाते आवनार प्रियतमने मळवा सज्ज थई रहेली स्त्री (नायिका) [ओरडो वासका स्त्री निवासस्थान (२) सूवानो वासगृह न० अंदरनो ओरडो (२) सूवानो ओरडो; शयनगृह वासतांबूल न० सुगंधी पदार्थोवाळं पान वासतेय वि० रहेवा योग्य वासतेयी स्त्री० रात (२) घर वासन न० सुवासित करवं ते (२) रहेQ ते (३)निवासस्थान (४) पेटीकरंडियो-वासण इ० (५) कपडां; वस्त्र (६) ढांकण वासना स्त्री० स्मृतिमाथी प्राप्त थतुं ज्ञान (२) पूर्वे करेलां सारां नरसां कर्मोनो रहेतो संस्कार (३) कल्पना (४) अज्ञान; खोटो ख्याल (५) इच्छा; अपेक्षा; वलण (६) गमवू ते; रुचि (७) सुगंधित करवु ते । वासपर्यय पुं० रहेठाण बदलवू ते वासभवन न० निवासस्थान; घर वासयष्टि स्त्री० पाळेला पंखीने बेसवा माटेनी लाकडी के थंभ वासयोग पुं० अबील [वारो वासर पुं०, न० दिवस; वार (२) वासरमणि पुं० सूर्य वासरसंग पुं० प्रभात [पुं० इंद्र वासव वि० वसुओ संबंधी (२)इंद्रनुं(३) वासवदत्ता स्त्री उज्जयिनीना राजानी पुत्री; वत्सराज उदयननी पत्नी वासवदिश् स्त्री० पूर्वदिशा वासवानुज पुं० विष्णु; श्रीकृष्ण वासवि पुं० इंद्रनो पुत्र जयंत (२)अर्जुन (३) एक वानरनुं नाम वासवी स्त्री० व्यासनी माता वासवेय पुं० व्यास वासवेश्मन न० जुओ 'वासगृह' वासस् न० वस्त्र; कपडां(२)पडदो वासंत वि० वसंतऋतुनु; वसंत ऋतुमां __थतुं (२) युवान (३) काळजीवाळू; खंतील (४) पुं० मलयानिल वासंतिक वि० वसंत ऋतु- (२) पुं० विदूषक (३) नट वासंती स्त्री० एक फूलवेल (सुगंधी फूलवाळी) (२)एक वसंतोत्सव वासंतीपूजा स्त्री० चैत्रमासमां थती दुर्गानी पूजा वासागार न० जुओ 'वासगृह' । वासि पुं०, स्त्री० फरसी-वांसलो वासित ('वास्' नुं भू० कृ०) वि० सुगंधित करेलु (२) आलु; मसालो चडावेलु (३) वस्त्रो पहेरेलु (४) वसवाट करायेलं (५) स्वच्छ करेलु (६) न० पक्षीओनो कलरव । वासिता स्त्री० जओ 'वाशिता' वासिष्ठ वि० वसिष्ठy [नदी वासिष्ठी स्त्री० उत्तरदिशा (२)गोमती वासी स्त्री० जुओ 'वाशी' वासुकि, वासुकेय पुं० सर्पोनो राजा वासुदेव पुं० (वसुदेवनो वंशज) श्रीकृष्ण (२) कपिल ऋषि वासू स्त्री० कन्या; जुवान छोकरी (मुख्यत्वे नाटकमां वपराय छे) वास्तव वि० वास्तविक; खरं वास्तवा स्त्री० प्रभात वास्तविक वि० साचुं; खरं वास्तव्य वि० रहेतुं; वसतुं; वतनी (२) रहेवा योग्य (३) पुं० रहेवासी निवासी (४) न० निवासस्थान; घर Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वास्तु ४४२ विकत्थन वास्तु पुं०, न० घर बंधायु के बांधवानुं वाहलिक वाहलीक पुं० एक देश होय ते भूमि (२) घर; रहेठाण (आजनुं बल्ख) (२) ते देशनो घोडो वास्तुकर्म न० मकान बांधवानी विद्या (३) न हींग वास्य वि० ढांकवा योग्य (२) वसा- वांछ १ प० वांछना राखवी; इच्छq ववा योग्य (३) पुं०, न० फरसी वांछा स्त्री० वांछना; इच्छा वाह, १ आ० प्रयत्न करवो वांछित ('वांछ्' न भू० कृ०) वि० वाह वि० वहन करनारुं (समासने अंते) वांछेलं; इच्छेलं (२) न० वांछना (२) पुं० ऊंचकनारो (३) भार वहन वांत ('वम्' न भू० कृ०) वि० वमन करनार प्राणी (४) घोडो (५) करेलं ; ओकेलं (२) बहार काढेलं आखलो; सांढ (६) पाडो (७) वाहन -नीकळेलं (३) नाखी दीधेलं; (९) प्राप्त करवू ते (१०) दश कुंभ पडी गयेलं [देवू के चार भार जेटलं माप वांतीकृ ८ उ० ओकी नांखवं; तजी वाहक वि० वहन करनारूं; ऊंचक- वि अ० छूटापर्यु, ऊलटापणु, विभाग, नारुं (२) पुं० हमाल (३) घोडे- विशेषता, व्यवस्था, गोठवणी, विरोध, सवार (४) वाहन हांकनारो दूर लई जवू, रहित करवू, विचारणा, वाहन न० ऊंचकवं ते; वहन करवं ते गाढपणु वगेरे अर्थ बताववा नाम (२) हांक, ते (जेम के घोडाने) तथा क्रियापदने लागतो पूर्वग (३) सवारी माटे के भार खेंचवा (२) नारा तथा विशेषणने लागी वपरातुं गाडी वगेरे साधन (४) ते अभाव - रहितता, तीव्रता, मोटापणुं, माटे वपरातुं प्राणी (५) हलेसु । विविधता, तफावत, ऊलटापणु - वाहनप पुं० घोडा वगेरे प्राणीओने विरोध, फेरफार, अघटितता वगेरे संभाळनारो; खासदार अर्थ बतावे वाहना स्त्री० सेना वि पुं०, स्त्री० पक्षी (२) घोडो वाहयान वि० हांकनारुं (घोडाने) विक वि० जळरहित (२) सुख विनानु वाहवाह पुं० घोडेसवारी विकच वि० खीलेलं; ऊघडेल (कमळ वाहिन् वि० वहन करनारुं (२) पुं० रथ इ०) (२) वीखरायेलु (३) वाळ वाहिनी स्त्री० सेना (२) ८१ हाथी,८१ विना- (४) प्रगट (५) उज्ज्वळ रथ, २४३ घोडा अने ४०५ पायदळनो विकचित वि० खूलेलं; खीलेलं बनेलो सैन्य-विभाग (३) नदी विकट वि० कदरू' (२) भयंकर; (४) वळावा तरीके मोकलाती टुकडी उग्र; जंगली (३) मोटुं; विशाळ वाहिनीपति पुं० सेनापति (२) समुद्र (४) गर्विष्ठ (५) सुंदर (६) वाहीक वि० अधर्मी वर्तनवाळू (२)पुं० मोटा दांतवाळं (५) पुं० गणेश (ब० व०) पंजाबनी एक तिस्कृत विकटायित न० चमकारो; झबकारो जाति (३) बळद [बळद संबंधी विकत्थ् १ आ० बडाई मारवी (२) वाहेयिक वि० वाहीक लोक संबंधी (२) कटाक्षमां स्तुति करवी वाह्य वि० वहन करायेलं; खेंचायेखें। विकत्थन वि० बडाईखोर (२)कटाक्षमा (२)पुं० (बळद वगेरे)बोजो खेंचनार स्तुति करतुं (३) न० वडाई प्राणी (३) न० गाडी; गाडु (४) खोटी स्तुति Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४३ 'दुराचारी विकत्था विकत्था स्त्री० बडाई मारवी ते (२) कटाक्षमां स्तुति करवं। ते (३) मोटेथी जाहेर करवू ते निशानी विकरण पुं० संस्कृत धातुना गणनी विकराल वि० भयानक ; डरामj विकर्तन पुं० सूर्य (२) आकडानो छोड विकर्तृ वि० विघ्न करनारुं कर्म विकर्मन् वि० दुराचारी (२) न० निषिद्ध विकर्मस्थ वि० दुराचारी विकर्षण पुं० कामदेवनां पांच बाणोमांनु एक (२) न० खेंच, ते; खेंची काढवू ते (३) न खावं ते; उपवास विकल् १० उ० विकळ - पांगळं करवू विकल वि० पांगळं; अपंग ; खोडीलं (२) गभरायेल; व्याकुळ (३) -रहित; -विनानं (समासमां) (४) खिन्न; हताश (५) निरुपयोगी विकलकरण वि० नंखाई गयेला अव यववाळं; सुस्त विकलकरुण वि० दयामj विकलयति प० (व्याकुळ - हताश कर) विकला स्त्री० कलानो ६० मो भाग विकलांग वि० अपंग; खोडीलं; वधाराना नकामा अवयववाळं विकल्प पुं० शंका; संदेह (२) अनिश्चय; आनाकानी (३) करामत; युक्ति (४) चाली शके तेवी अनेक बाबतोमांथी एक पसंद करवानी छुट होवी ते (५)विविधता; अनेक प्रकार (६) कल्पनो विभाग (७) उत्पत्ति विकल्पक वि० वहेंचनाएं; हिस्सो पाडनारुं (२) बदली नाखनाएं विकल्पिन वि० संदेहवाळं विकल्मष वि० निष्पाप; निष्कलंक विकस् १ प० खीलवू; विकसवु विकसित ('विकस्'न भू० कृ०) वि० विकसेलु ; खीलेलु विकस्वर वि० खीलतुं ; विकसतुं (२) मोटं - स्पष्ट संभळाय तेवू (अवाज) विकीर्णमूर्धज विकंकट पुं० एक वृक्ष (जेना लाकडानी कडछी-उचा बनावाती) विकंप १ आ० कंपवू; भ्रूजवू विकंपित वि० धूजतुं; कंपावेलु (२) अस्थिर (३) ऊछळतुं विकार पुं० स्वभाव के स्वरूपमा फेरफार; कुदरती स्थितिमा पलटो थवो ते, (२) फेरफार; विक्रिया (३) बीमारी; रोग (४) वलण अथवा प्रयोजन बदलाई जवां ते (५) लागणी (६) क्षोभ (७) चहेरामां फेरफार थवो तो (८) मूळ प्रकृतिमाथी विकसेलु - परिणमेलं ते [योजन विकारण वि. कारण विनान; निष्प्रविकारहेतु ९० प्रलोभन थियेलं विकारित वि० बदलायेलं; विकारवाळ विकारिन् वि० फेरफार के विकार थाय तेवू (२) बदलातु (३)भ्रष्ट थतुं (४) प्रेमनी असरवाळं बनेलुं शके एवं विकार्य वि० जेमां विकार-फेरफार थई विकाल, विकालक पुं० संध्या;सांज (२) अयोग्य समय (३)प्रकाशवू विकाश १ आ० देखा (२) खीलवू विकाश पुं० प्रदर्शन; देखाडवं ते (२) खील - विकसवं ते (३) सीधो के खुल्लो मार्ग (४)वांको के तीरछो मार्ग (५) हर्ष ; आनंद (६) आकाश (७) तीव्र इच्छा विकाशिन्, विकाषिन् वि० नजरे देखातुं; प्रकाशी ऊठतुं (२)खीलतुं(३)प्रकाशतुं विकास पुं० खील ते (२) वृद्धि विकासिन् वि० जुओ 'विकाशिन्' विकांक्षा स्त्री० विसंवाद (२) आना कानी ; अनिश्चय (३) कांक्षारहितपणं विकिर पुं० वीखरायेलो के वेरेलो भाग (२) फाडी खानार के वेरनार ते; पंखी [वीखरायेलं (वाळ) विकीर्ण वि० विखरेलं; वेरेलु (२) विकीर्णमर्धज वि० वीखरायेला वाळवाळं Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विकुक्षि विकुक्षि, विकुक्षिक वि० मोटी फांद के पेटवाळं विकुंठा स्त्री० विष्णुनी मातानुं नाम विकुंठित वि० बुर्छ (२) नबळं विकबर वि० धोरिया विनानुं विकृ ८ उ० विकार थवो; बदलावू; विक्रिया थवी (२) कदरूपुं करवं (३) उपजावq (४)हानि करवी (५) उच्चारवं; अवाज करवो (६) विविध प्रकारे शणगार (७) निंद, विकृत वि० बदलायेलं; रूपांतर पामेलं (२) रोगी; बीमार (३) खंडित; कदरू' (४) अपूर्ण (५) न० फेरफार; विकार (६) बीमारी (७) अणगमो; तिरस्कार (८) अपकृत्य; ईजा; हानि (९) गर्भस्राव विकृति स्त्री० (मन, आकृति वगेरेमां) फेरफार; विकार (२) अस्वाभाविक के आकस्मिक घटना (३) बीमारी; रोग (४) क्षोभ; गुस्सो (५) लागणी; आवेश विकृष् १ प० खेंचवं (२) वाळवं (धनुष्य) (३) खेंची लेवु;-रहित करवू (४) नाबूद कर विकृष्ट वि० आम तेम खेंचेलं (२) खेंचायेल - आकर्षायेलु (३)विस्तृत ; लांबु [वाळं विकृष्टसीमान्त वि० विस्तृत सीमाओविक ६ प० [विकिरति ] विखेरवं; वेरQ (२) फाडवू; टुकडा करवा (३) विकृत - भ्रष्ट करवू (४) उकेलवं (गांठ) [विकल्प होवो विक्लप १ आ० शंका करवी (२) -प्रेरक० शंका करवी (२)विचारवं; चितवq (३) धारवू; मानवू (४) जुदी रीते गोठवq (५) रचवू विकेश वि० छूटा वाळवाळु (२) वाळ विनानु (जेमके माथु) विक्लिष्ट विकोश (-) फोतरा विना- (२) म्यान विनानुं; म्यान बहार काढेलं विक्रम् १ आ० डगलुं भरवू (२) हरावयूँ; जीतवं (३) पराक्रम करवं के बताव (४) आगळ धपवू विक्रम पुं० डगलं; पगलं (२) गति; चालवू ते (३) हरावq ते (४) पराक्रम (५) उज्जयिनीनो प्रख्यात राजा (६) बळ ; ताकात विक्रमण न० डगलं; पगलं (२)पराक्रम विक्रमार्क पुं० विक्रम राजा विक्रमिन् वि० पराक्रमी; शूर विक्रय पुं० वेचाण; विनिमय विक्रायक वि० वेचत ; वेचनारं विक्रांत वि० ओळंगायलं; ओळंगेलु (२) पराक्रमी ; बळवान (३) विजयी (४) पुं० वीर (५)न० डगलं; पगलं (६) बळ; पराक्रम (७) वैक्रांत मणि विक्रिया स्त्री० विकार; फेरफार (२) क्षोभ ; लागणीनो आवेश (३) गुस्सो (४) ऊलटुं थेवू ते; अनिष्ट (५) (भवां) संकोचवां-चडाववां ते (६) भ्रष्टता विनिमय करवो विक्री ९ आ० [विक्रीणीते] वेचवू; विक्रीत वि० वेचायलं; वेचेलं विऋश १५० मोटेथी बोलावq; हाक मारवी (२) बोलवू; उच्चार (३) गाळ देवी; निंदवू विक्रोश पुं०, विक्रोशन न० बोलावQते; बूम पाडवी ते (२) गाळ भांडवी ते विक्लव वि० बीनलुचमकेलं; गभरायेलु (२) बीकण (३) -थी दबायेलं;-थी अभिभूत थयेलं (४) क्षुब्ध ; विह्वळ (५) दुःखित; पीडित (६)अणगमावाळं (७)ठोकर खातुं (८)न०क्षोभ ; व्याकुळता (९) डर विक्लवता स्त्री० डर विक्लिष्ट वि० अत्यंत पीडित; दुःखित (२)हानि पामेलु Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विगाह विक्लेद ४४५ विक्लेद पुं० पूरेपूरुं भीजाई जq ते विगत वि० विदाय थयेलं; चाल्यं (२) भेज (३)क्षय पामवं ते गयेलं; लुप्त थयेलु (२) मृत (३) विक्षत वि० घवायलं; हणायेलु (२) -विनानु; - रहित (समासमां) खणायेलं; छाप पडी होय तेवू (खरी विगतकल्मष वि० पापरहित; निर्दोष वगेरेथी) (३) ग्रस्त; पीडित (४) विगतभी वि० निर्भय हीन न० धा; प्रहार विगतलक्षण वि० कमनसीब; भाग्यविक्षाव पुं० ध्वनि ; अवाज (२)खांसी, विगतस्पृह वि० निःस्पृह छींक वगेरेथी थतो अवाज विगतासु वि० मृत; प्राणरहित विक्षित वि० बरबाद थयेल; दुःखी विगद वि० नीरोगी; आरोग्यवान विक्षिप् ६ ५० विखेरवं; वेरवु (२) विगम १ प० [विगच्छति] चाल्या फेंक (३) भींसQ (४) वाळवं; जवं; व्यतीत थर्बु (समय) (२) नेमाव (धनष्य) विदाय थर्बु (३) लुप्त- अदृश्य थQ विक्षिप्त वि० विखेरायेलं; आमतेम __ -प्रेरक०-व्यतीत करवू; पसार करवू फेंकायलं (२)तरछोडेलु (३)मोकलेलं विगम पुं० अंत; समाप्ति (२) विदाय(४) क्षुब्ध; व्यग्र ; व्याकुळ (५) अदृश्य थवं ते (३) तजी देवं ते (४) विस्तृत; पहोळं करेलु विनाश (५) मृत्यु (६) वियोग विक्षुभ १ आ०, ४, ९ प० क्षुब्ध- विगर्ह, १ उ० ठपको आपवो; निंदवू व्याकुळ थर्बु (२) मूंझवq; गूंचवq । (२) तिरस्कार विक्षेप पुं० विखेर - आमतेम फेंक विगर्हण न०, विगर्हणा, विगह: स्त्री० ते (२) आमतेम हलाव - फेरवQ निंदा; ठपको; तिरस्कार ते (३) मोकलq ते (४) व्यग्रता; विहित वि० निंदेलं; तुच्छकारेलं yझवण (५) भय ; डर (६) नकामुं (२) ठपको आपेल (३) निंद्य; जवा देवं ते (समय) दुष्ट (४) न० निंदा । विक्षोभ पु० ऊछळवू ते; खळभळवू ते विगल् १ प० गळवू; टपकवू; झरवू (२) मननो क्षोभ (३) झघडो (४) (२) छूटी पडवू; नीकळी जवू फाडवु-चीरवू ते (३) ओगळी जवू (४) अदृश्य थर्बु विखनस् पुं० ब्रह्मा विखंडित वि० तोडेलं; फोडेलं (२) विगलित वि० झमेलु; टपकेलं (२) चीरेलु (३) खंडित करेलु; अमुक लुप्त थवू; अदृश्य थर्बु (३) छूटी पडेलु; नीकळी पडेलं (४) ओगळी अंग कापी नाखेलु विखानस पुं० एक जातनो तपस्वी गयेलु (५) वीखराई गयेलं (वाळ) विख्या २५० प्रसिद्ध थर्बु (२) जोवू; विगाढ वि० नाहेलू; डूबकी मारेलं; निहाळवं (३) बोलाववं; नाम देवं डूबेलुं (२) गाढ; अत्यंत (४) प्रकाशित कर विगान न० ठपको; निंदा; आळ (२) विख्यात वि० प्रख्यात; प्रसिद्ध विरुद्ध -विरोधी वचन विख्याति स्त्री० प्रसिद्धि; ख्याति विगाह १ आ० स्नान करवू (२) विगण १० प० गणतरी करवी (२) डूबकी मारवी (३) पेस; प्रवेश गणनामां लेवु; मानवू; विचार, करवो (४) डखोळवू; क्षुब्ध करवू (३) उपेक्षा करवी (५)आचर, (६) बेसवु (ऋतु इo-) Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विचल विगीत ४४६ विगीत वि० निदित (२) विरुद्ध; विघस पुं० खातां मोढामांथी नीकळेलो असंबद्ध (३) खराब रीते गवायल ओगाट (२) खातां वधेलं ते (३) विगुण वि० गुणरहित; तुच्छ (२) खोराक; अन्न दोरी के पणछ विनानु (३)निष्फळ विघसाश, विघसाशिन पुं० देवो-पितविगृहीत वि० छूटुं पाडेलु (२) पकडेलुं ओने आपेला बलिमांथी वधेलं खानारो; (३) सामनो करेलु खातां वधेलु खानारो (कूतरो, कागडो) विगै १ प० निंदवू (२) बेसूरु गावं विघसीकृत, विघसीभूत वि० ए© थयेलं विग्न ('विज्' नुं भू० कृ०)क्षुब्ध ; धूजतुं के खातां छांडेलुं होय तेवू (२) बीनेलं; भडकेलं विधात पुं० वध ; नाश; निवारण (२) विग्रह ९ प० [विगृहणाति ] पकडQ __ विघ्न ; नडतर; रुकावट (३) प्रहार (२) लडवू; तकरार करवी (३) (४) निष्फळता (अवयवो) छूटा पाडवा : विपूर्णन न० आमतेम घुमाव ते विग्रह पुं० फेलावq ते (२) आकृति; विर्णित वि० गोळ फेरदेखें; घुमावेलं मूर्ति (३) शरीर; देह (४) छूटुं विघष्ट वि० खूब घसेलं पाडवू ते (५) लडाई; टंटो (६) विघ्न पुं० हरकत; दखल; अंतराय विभाग ; खंड; अंश विघ्नकर, विघ्नकर्तृ, विघ्नकारिन् वि० विग्रहवत् वि० देहधारी; मूर्तिमान विघ्न-हरकत करनारं विग्रहिन् पुं० युद्धमंत्री विघ्नप्रतिक्रिया स्त्री विघ्न दूर करवां ते विघट १ आ० छूटा पडQ (२) बरबाद थ; विनाश थवो (३) अटकी विनित वि० विघ्न करायलं पडवं; भागी पडव (४) विविध विघ्नेश पुं० गणपति आकार धारण करवा विच ३, ७, उ० छूटुं पाडवू ;जुदुं पाडवू -प्रेरक० छूटुं पाडवू; विखेरी नाखवू विचक्ष २ आ० कहेवू (२) दर्शावq (२) खसेड (३) विफळ बनावq (३) निहाळवं विघटन न० छूटुं पाडवू ते (२) विध्वंस विचक्षण वि० कुशळ; निपुण (२) विघटित वि० जदं करेल (२) विभाग डाहयु; समजणुं; विद्वान पाडेल (३) भांगेलं; छिन्नभिन्न थयेलं विचट १५० भागी जq; तूटी जq विघट्ट १० उ० विखेर ; भगाडी विचय पुं० शोधq -- खोळवू ते मूकवू (२) घसावू; अफळावं (३) विचर् १५० विचर; भमकुं; फरवू तोडी नाखवू (करार) (४) उघाडी (२) आचर (३) वर्तवं (४) नाखवू (बारणु) अवळे मार्गे जवू (५) हुमलो करवो विघटन न०, विघटना स्त्री० धक्को (६) भूल करवी मारी छटं पाडवं ते (२) अफळावं ते '-प्रेरक विचारवं; चितवद् (२) (३) उकेली नाखवं ते ; छोडी नाखवं चर्चq (३) गणतरीमा लेवू (४) ते (४) खोटुं लागे ते करवं ते आनाकानी करवी विघट्टित वि० विखेरी नाखेलं; छूटुं विचर वि० मार्गथी भ्रष्ट थयेलं पाडेलु (२) छोडी- उकेली नाखेल विचित वि० लेप करेलु ; खरडेलु (गांठ इ०) (३) घसायेलं; अफळायल विचर्षण वि० चपळ ; चंचळ (४) खोटुं लाग्युं होय तेवू विचल् १ प० भ्रूज ; कंपq (२)जवा Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विचलित नीकळवूं ( ३ ) क्षुब्ध थवु; खळभळवु (४) भ्रष्ट थवं ; चलित थवं विचलित वि० खसेलुं; चलित थयेलुं (२) (आंखे) झांखप वळी होय तेबु; अंध विचार पुं० मनथी चितवनुं ते ( २ ) तपास; चर्चा (३) काम चालवु ते ( अदालतमां ) ( ४ ) विवेक - विचार (५) निश्चय; निर्णय ( ६ ) परिणामनो ख्याल ; अगमती विचारक पुं० तपास करनाएं; परीक्षा करनाएं (२) नेता; भोमियो ( ३ ) जासूस विचारण न० विचारणा; तपास; परीक्षा ( २ ) संशय; आनाकानी विचारणा स्त्री० तपास; परीक्षा; चर्चा (२) आनाकानी; संशय विचारमूढ वि० मूर्ख ( २ ) विचारवामां भूलेलुं [ तपासेल; चर्चेल विचारित वि० विचारेलु; चितवेलु; विचारिन् वि० भटकतुं ( २ ) स्वच्छंदी (३) विचार करतुं ; तपास करतुं विचि ५ उ० एकठ करवु; संग्रह करवी (२) शोधवं; खोळवु (३) तपासवुं (४) त्रीणवु, पसंद करवु विचि पुं०, स्त्री० मोजुं; तरंग विचिकित्सा स्त्री० संशय; अनिश्चितता (२) भूल (३) साचं स्वरूप शोधवं ते विचित्र वि० चित्रविचित्र ; विविध रंगनुं (२) विविध ( ३ ) चीतरेलु (४) सुंदर मनोहर ( ५ ) आश्चर्यकारक ; चकित करे ते ( ६ ) न० आश्चर्य विचित्ररूप वि०विविध; विविध रूपवाळु विचित्रवीर्य पुं० शांतनु राजानो पुत्र विचिन्वत्क पुं० शोध; तपास ( २ ) वीर माणस विचित् १० उ० विचार ( २ ) याद करवु; चितव (३) मानवुं; गणवुं विचितन न०, विचिता स्त्री० विचार (२) काळजी दरकार विची स्त्री० मोजुं; तरंग ४४७ विच्छित्ति विचीर्ण वि० वसवाट कर्यो होय तेव - मां विचर्या होय तेवुं ( २ ) प्रवेशायेलुं विचेतन वि० भान वगरनुं मृत ( २ ) जड (३) मूंझायेलुं (४) मूर्ख विचेतस् वि० मूर्ख; अज्ञ ( २ ) मूंझायेलुं गूंचवायेल; खिन्न ( ३ ) दुष्ट विचेय न० तपास विचेष्ट् १ आ० हिलचाल करवी ; हाल (२) वर्तवुं ( ३ ) प्रयत्न करवो विचेष्ट वि० हिलचाल विनानुं विचेष्टन न० अवयवो हलाववा ते ( २ ) मारवी, आळवु (घोडानुं) विचेष्टा स्त्री० प्रयत्न (२) हालचाल (३) वर्तणूक विचेष्टित वि० प्रयत्न करेलुं ( २ ) तपासेलुं (३) मूर्खाईभरेली रीते करेलुं (४) न० कृत्य; कार्य ( ५ ) प्रयत्न ( ६ ) करतूत विच्छ् ६ प० जव; खसवुं ( २ ) १० उ० प्रकाश (३) बोलवु विच्छर्दक पुं० जुओ 'विच्छंद' विच्छर्दन न०, विच्छर्दिका स्त्री ० वमन; ऊलटी (२) तेनो रोग विच्छदित वि० वमन करेलुं ( २ ) अवगणेलं ( ३ ) तजेलं; छोडी दीधेलं (४) घटाडेलु ओछु करेल विच्छंद, विच्छंदक, पुं० महेल; घणा माळवाळं मकान विच्छाय वि० छाया विनानुं ( २ ) झांखुं (३) पुं० रत्न ( ४ ) न० पंखीओना टोळानो पडछायो विच्छाया स्त्री० जुओ 'विच्छाय' न० विच्छित्ति स्त्री० कापी नाखवुं ते; तोडी नाखवं ते (२) जुदुं पाडवं ते (३) अभाव; न होते ( ४ ) अटकवं ते ( ५ ) शरीरने रंग-लेप इत्यादिथी रंगवुं ते ( ६ ) सीमा (घर इ०नी) (७) स्त्री वडे सौंदर्यमदथी काली पोशाक, शणगार इ० प्रत्ये बेदरकारीरूपी विलासचेष्टा Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विच्छिद् विच्छिद् ७ उ० कापवु; तोडवु; छूट पाड (२) उच्छेद करवो विच्छिन्न वि० कापी नाखेलुं (२) छूटुं पाडेलुं; तोडेलुं (३) रोकेलु; अटकावेलुं (४) समाप्त करेलुं (५) ढंकाये लुं विच्छुर ६ प० लेप करवो; खरडवु; रजथी ढांकवुं (२) जडबुं - बेसाडवं विच्छुरण न० ( रज-चूर्ण) छांट ते विच्छुरित वि० ( रज- चूर्ण थी) छांटेल; खरडेल (२) बेसाडेलूं, जडेलु विच्छेद पुं० कापवुं - छूटुं पाडवु ते (२) भागवुं ते (३) अटक ते; बंध पडवु ते (४) ग्रंथ प्रकरण विच्युति स्त्री० च्युत थवं ते; छूटं पडवु ते ( २ ) अधोगति थवी ते (३) गळी बुं ते (गर्भ इ० नुं) विज् ३ उ० भाग पाडवा (२) छूटुं पाडवु; विवेक करवो ( ३ ) ३ अ०, ७ प० धूजवं ( ४ ) क्षुब्ध थवु; भयथी कंपवुं (५) पीडावुं; त्रासवुं विजन् ४ आ० जन्मकुं; उत्पन्न थवुं (२) उत्पन्न करवुं ( ३ ) ऊगवुं; फूटवुं विजन वि० निर्जन एकांत ( २ ) न० निर्जन - एकांत स्थळ विजय पुं० जय; फतेह; हरावदुं ते (२) देवोनो रथ ( ३ ) अर्जुन (४) एक मुहूर्त (५) एक व्यूह विजयदंड पुं० लश्करनो अमुक विभाग विजयंत पं० इंद्र विजया स्त्री० दुर्गा (२) तेमनी एक अनुचरी (३) विश्वामित्रे रामने शीखवेली एक विद्या ( ४ ) हरडे विजयाभ्युपाय पुं० विजयनो उपाय विजयाह्वय वि० 'विजय' नामवाळु (जेमके बिजापुर) विजयिन् पुं० विजेत. विजयोजित वि० विजयथी उन्मत्त बनेलं विजल्प पुं० बकवाद (२) वातचीत ४४८ विज्ञ विजल्पित वि० बोलेलुं; वातचीतमां कलुं (२) बकवाद करेलु विजात वि० जन्मेलुं ( २ ) व्यभिचारथी जन्मेलुं (३) सद्गुणी विजानत् वि० जाणकार ; डायुं विजानता स्त्री० कुशळता; चालाकी विजि १ आ० जीतव; हराववं ( २ ) - थी चडियाता थ; पाछळ पाडी देव (३) जीतीने मेळववं (४) विजयी थवु विजिगीषा स्त्री० जीतवानी इच्छा (२) हरीफाई ; चडियाता थवानी इच्छा विजिगीषु वि० जीतवानी इच्छावाळु (२) महत्त्वाकांक्षी (३) पुं० योद्धो (४) हरीफ; विरोधी विजिज्ञासा स्त्री० स्पष्ट जाणवानी इच्छा विजित वि० जीतेलुं; हरावेलु विजितात्मन् वि० आत्मनिग्रही, संयमी विजिति स्त्री० विजय विजिहीर्षा स्त्री० विहरवानी इच्छा विजिह्म वि० वांकुं वळेलुं (२) अप्रमाणिक (३) तीरधुं ( नजर; कटाक्ष ) (४) शून्य (५) फीकुं; झांखु विजृंभ १ आ० बगासुं खावुं (२) खीलबुं; विकस (फूल) (३) व्यापबुं; भरी काढवु (४) देखावु प्रगट थवुं ( ५ ) वृद्धिगत - विकस विजृंभण न० बगासु (२) खीलवु के खूलवं ते ( ३ ) प्रगट करवुं ते; व्यक्त करवुं ते (४) श्रृंगार क्रीडा विजृंभिका स्त्री० बगासुं खावुं ते; ( श्वास माटे ) मों पहोळं करवुं ते विजृंभित वि० बगासुं खातुं होय तेवुं ; म पोळं कर्यं होय तेनुं (२) खीलेलं; खूलेलुं (३) प्रगट करेलुं ( ४ ) न० रमत; क्रीडा ( ५ ) इच्छा (६) प्रदर्शन; देखाड (७) आचरण; वर्तन (८) फळ; परिणाम (९) बगासुं 1 विज्ञ वि० जाणकार ; डाहयुं; समजणुं Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विज्ञप्त (२) चतुर; होशियार ( ३ ) पुं० डाह्यो के विद्वान माणस विज्ञप्त वि० वीनवेलुं (२) जणावेलुं विज्ञप्ति स्त्री० विनंति ( २ ) जाहेरात (३) उपदेश ४४९ होवु विज्ञा ९ उ० जाणवुं ( २ ) समजवुं ( ३ ) - नी पासेथी शीखी लेवुं -जाणी लेवु (४) मानवुं ; गणवुं ( ५ ) परिचित ( ६ ) परखवं ( ७ ) समजाववुं - प्रेरक ० [विज्ञापयति ] अरज करवी; विनंती करवी ( २ ) जणाववं; कहेवुं (३) शीखवबुं [ प्रख्यात विज्ञात वि० जाणेलुं; समजेलुं (२) विज्ञान न० ज्ञान; डहापण ; समज ( २ ) परख (३) कुशळता; प्रवीणता (४) लौकिक अनुभवथी मळेली समज ( आध्यात्मिक के परमतत्त्वनी समज ते 'ज्ञान' ) ( ५ ) ज्ञानेंद्रिय (६) माहिती. (७) अतींद्रिय विषयक ज्ञान विज्ञानयोग पुं० यथार्थ ज्ञान मेळववानुं [ उपदेशक विज्ञापक वि० माहिती आपनारं (२) विज्ञापन न०, विज्ञापना स्त्री० अरज; विनंती ( २ ) जाण करवी ते; आदरपूर्वक माहिती आपवी ते ( ३ ) उपदेश विज्ञापित वि० आदरपूर्वक निवेदन करेलुं - जणावेलुं (२) विनंति करेलुं (३) माहितगार करेलु (४) उपदेशेलु विज्ञाप्य न० विनंति विज्ञेय वि० जाणी शकाय तेवं (२) शीखवं पडे तेवुं (३) गणनामां लेवा योग्य विज्वर वि० ज्वर - चिंता - पीडाथी रहित एवं साधन - प्रमाण विट पुं० जार; कामुक (२) (नाटकमां) विदूषक जेवो नायक के गणिकानो साथी ( संगीत - कविता इ० मां निष्णात मनाय छे) (३) धूर्त ; ठग विटप पुं० डाळी; शाखा (२) झाडवं (३) कुंपळ ( ४ ) झुंड (५) लता वितन् विटपिन् पुं० झाड ; वृक्ष ( २ ) वड विटंक वि० मनोहर; पुं० रमणीय ( २ ) पुं० घर वगेरेनी टोच उपर कबूतरो माटे रखातो भाग (३) ऊंचामां ऊंच स्थान; विटंकित वि० अंकित ( २ ) अलंकृत विट्पति पुं० ( विश् + पति ) जमाई (२) राजा (३) वैश्योनो मुखियो विडंब १० उ० अनुकरण करवु; नकल करवी (२) उपहास करवो; मजाक करवी (३) छेतरवु; ठगवुं ( ४ ) पीडवुं; संताप (६) रूपांतर करवुं विडंब पुं० अनुकरण; पीड के संताप विडंबक वि० नकल करतं; अनुकरण _ ( २ ) उपहास के फजेती करतु विडंबन न०, विडंबना स्त्री० अनुकरण; नकल (२) नकल (२) ढोंग; वेष (३) छळ (४) पीडा, संताप, त्रास (५) उपहास; फजेती विडीन न० पंखीओनी ऊडवानी एक रीत विडोजस्, विडौजस् पुं० इंद्र वितड़ १० प० ताडन करवुं; मारखं वितत वि० फैलायेलं; विस्तरेलु (२) लांबु; पोळं ( ३ ) अनुष्ठित; आचरेलु (४) आच्छादित (५) खेलुं (पणछ) (६) वाळेलं; पणछ चडावेलु (७) न० तारवाळु वाद्य (८) वेलनो फणगो अथवा वीटळात तंतु वितति स्त्री० विस्तार; फेलावो (२) जो; समूह (३) पंक्ति विततोत्सव वि० जेणे उत्सवनुं आयोजन कर्यं होय ते [ निरर्थक वितथ वि० जठं; खोटं ( २ ) मिथ्या; वितथयति प० ( मिथ्या करवुं ) वितन् ८ उ० फेलाववु ; विस्तारवुं (२) व्यापवु ; भरी काढवु (३) रचवुं; बनाववुं (४) खेचवं ; पणछ चडाववी (५) उत्पन्न करवुं; अर्पवुं(६) रचवुं - लखवं (ग्रंथ) (७) प्रगट - व्यक्त करवुं ( ८ ) Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० वितनु सिद्ध कर; पार पाडवु (९) सज्ज- तैयार कर पु० कामदेव वितनु वि० पातळ; नाजुक ; सुंदर (२) वितप १ आ० तप:प्रकाशवं (२)ताप वितमस्, वितमस्क वि० अंधकार विना नु; प्रकाशित (२) शुद्ध; निष्कलंक । वितरण न० पार करी जवं ते (२) बक्षिस; भेट (३) तजी देवु ते वितर्क १० उ० तर्क के कल्पना करवी (२) मानद्धारवं ( ३) अपेक्षा राखवी (४) शोधी काढनु ; निश्चित कर वितर्क पुं० दलील; तर्क; अनुमान (२) धारणा; मान्यता (३) कल्पना (४) संशय (५) चर्चा-विचारणा (६) खोटी कल्पना के धारणा (७)हेतु; प्रयोजन । विर्ताद, विदिका, वितर्दी, वितर्द्धि (-झै)स्त्री० चोक के आंगणामांऊभो करेलो चोतरो; बेसवानी ऊंची चोखंडी जगा (२) ओसरी; वरंडो वितल न० सात पाताळ पैकी वीज वितंडा स्त्री० पोतानो पक्ष ज न होय अने सामा पक्षनुं खंडन कर्या करवं ते (२) खोटो बकवाद; नकामी माथाझीक वितंत्री स्त्री० बेसूरी वीणा (तार ऊतरी जवाथी) वितान वि० खाली; शून्य (२) मूर्ख (३) खिन्न ; उदास (४) दुष्ट ; स्वच्छंदी (५) पुं०, न० विस्तार (६) चंदरवो (७) ओशीकुं (८) जथो; समूह (९) यज्ञ ; आहुति (१०) न० विश्रांति; फुरसद वितानक पुं०, न० विस्तार (२) ढगलो जथो (३) चंदरवो देवू) वितानायते आ० (चंदरवा तरीके काम वितायमान वि० फेलातुं वितीर्ण वि० ओळंगी गयेलु (२) आपेलं; बक्षेलु (३)नीचे ऊतरेलु वितुन्न वि० भोंकायेलं; चिरायेलु विदग्ध वितृष्ण वि० तष्णारहित वितृष्णा स्त्री० तीव्र इच्छा वित १५० ओळंग; पार करवू (२) आपq; बक्षवु (३)उत्पन्न करवू वित्त वि० (विद् 'न भू० कृ०) शोघेलु; जडेलु (२) मळेलं; मेळवेल (३) तपासेलु (४) जाणीतुं प्रसिद्ध (५) न० धन; मिलकत (६)शक्ति (७)सोनु वित्तक वि० प्रख्यात (२) कीर्तिवान वित्तप, वित्तपति, वित्तपाल पुं० कुबेर वित्तपेटा(-टी) स्त्री० पैसानी कोथळी वित्तमात्रा स्त्री० मिलकत; रकम वित्तसमागम पुं० धनप्राप्ति; आवक वित्तेश पुं० कुवेर वित्तेहा स्त्री० धननी इच्छा वित्रस् १,४प० वी; त्रास वित्रास पुं० भय; त्रास; डर विद् २ प० जाणव; समजवू ; खोळी काढवु; नक्की करवू (२) अनुभव (३) गणबु; मानवं -प्रेरक० जणाव; कहेव (२) शीखव; समजावयु (३) अनुभवत्रु विद् ४ आ० विद्यमान होवू (२) थवं विद् ६ उ० [विदति-ते मेळव ; प्राप्त करव (२) खोळी काढ; अळख (३) अनुभवयु (४) पाणवं विद् ७ आ० [विन्त ] जाणवू ; समजबु (२) गणवू; मानव (३) मळवु (४) विचारवं ; चितववु (५) तपासवू विद १० आ० कहे; जणाव (२) अनुभव (३) रहे विद् वि० (समासने अंते) जाणकार; परिचित (२) पु० डाह्यो माणस; विद्वान (३) स्त्री ज्ञान (४) बद्धि विद पुं० पंडित; डाह्यो माणस विदग्ध वि० बळी गयेलु (२) रांधेलं । ३, पची गयेलु (४) नाश पामेलु (५) होशियार; चतुर (६) चालाक'; Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदग्धता ४५१ विद्याधर युक्तिबाज (७) सुंदर (८) पुं० डाह्यो विदुल पुं० एक जातनुं नेतर के विद्वान माणस (९) जार; कामी विष ५० ज्ञानी; पंडित विदग्धता स्त्री०, विदग्धत्व न० विदुषी स्त्री पंडित स्त्री चालाकी; कुशळता एवं विदूर वि० आधेनुं; दूरनु (२)पु० एक विदग्धवचन वि० बोलवामां कुशळ पर्वतन के शहेरनुं नाम, ज्यांथी वैदूर्य विदर पुं० फाडवू- चीरवु के फाटवं ते मणि मळे छे (२) फाट'; चीरो इनळनी राणी विदूरभूधर, विदूरादि पुं० एक काल्पविदर्भजा, विदर्भतनया स्त्री० दमयंती; निक पर्वत(लंकानो)ज्यां मेघगर्जनाथी विदर्भाः पुं० ब० व० आजना वराड रत्न पेदा थतां मनाय छे प्रांतनुं प्राचीन नाम (२) ते देशना विदूषक वि० भ्रष्ट करना; कलंक वतनी लोक लगाडनाएं (२) गाळ के आळ देनारुं विदल १५० भागवू; चीरवु; फाडवू (३) मश्करु (४) पुं० मश्करो (खास (२) खोदव (३)ऊघडवू ; पहोळं थवं करीने नाटकमां नायकना रमूजी विदलन न० फाड-काप-चीरबं ते अने विश्वासु मित्र) (५) टीका विवंश पुं० तरस लगाडे तेवू तीख करनारो; प्रतिपक्ष करनारो खावान ते (चटणी - अथाj) विदूषण न० भ्रष्टता (२) कलंक (३) विदारण न० फाडवु --चीरवं - तोडव ठपको ; गाळ टुकड़ा करवा ते (२) पीड; त्रास आपवो ते (३) विदृ ९५०, ६, १ उ० फाड; चीरव; दध; कतल -कर्मणि चिराई ज; फाटी जवू विदारु प० सरडो; काचंडो (दुःख इ० थी) विदासिन वि० नाश पामतुं -प्रेरक ० फाडी नाखव ; चीरी नाखवू विदाहिन पुं० बळतरा ऊभी करे तेवो विदेश पुं० परदेश खाद्य पदार्थ विदेह वि० देह के देहसंबंध विनानु विदिक्चंग पुं० एक जात पीळ पंखी (२) मृत (३) पुं० विदेह प्रांत (४) विदित ('विद्' न भू० कृ०)वि० जाणेलं - जनक राजा प्राचीन देश समजेलं; भणेलं (२) जणावेलं (३) विदेहाः पुं० ब० व० मिथिला नामनो प्रसिद्ध ; जाणीतुं (४) कबूलेलं (५) विद्ध ( 'व्यध् 'नुं भू० कृ०) वि० वींधापुं० पंडित; विद्वान (६) न० ज्ञान; येल; घवायेलु (२) फटकारायेलं माहिती (७) प्रसिद्धि (८) मेळववं (३) फेंकायेलं; मोकलायेलु (४) एक ते; प्राप्ति वीजाने वळगेलं- चोटेल (५) सदृश विदितात्मन् वि० प्रसिद्ध; जाणीतुं विद्यमान वि० हयात; वर्तमान; (२) आत्मज्ञानी (३) पुं० परमेश्वर हाजर (२) खरं; वास्तविक विदिथ पुं० ज्ञानी (२) ऋषि विद्या स्त्री ज्ञान; शास्त्र (२) साचं विदिशा स्त्री० दशार्ण देशनी राजधानी ज्ञान; तत्त्वज्ञान (३)मंत्र; तंत्रविद्या (२) माळवानी एक नदी विद्यागम पुं० विद्या प्राप्त करवी ते विदीपक पुं० दीवो; फानस विद्यागुरु पुं० ज्ञान आपनार गुरु विदीर्ण वि० फाडेलं; चीरेलं विद्याधन न० विद्यारूपी धन (२)विद्या विदुर पुं० धृतराट्र तथा पांडुनो नानो वडे मेळवेलं धन भाई (दासी-पुत्र) विद्याधर पुं० एक देवयोनिनो देव Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्याधार ४५२ विवान विद्याधार पुं० मोटो पंडित विद्रुति स्त्री० नासी जq ते; पलायन विद्याबल न० जादुई शक्ति विद्रुम पुं० परवाळू (२) फणगो विद्याभ्यास न० विद्या भणवी ते विद्वज्जन पुं० विद्वान माणस ; पंडित विद्यार्जन न० विद्या प्राप्त करवी ते विद्वत्त्व न० विद्वत्ता; पंडिताई विद्यार्थिन् पुं० भणनारो; शिष्य विद्वस वि० जाणतुं; जाणनारुं (२) विद्यावंश पुं० कोई पण विद्या के शास्त्र डाहा;ज्ञानी (३)पुं० विद्वान ; पंडित शीखवनारा गुरुओनो वंशानुक्रम विद्विष (-) पुं० शत्रु; दुश्मन विद्याविहीन वि० अभण; अज्ञानी विद्विष्ट वि० धिक्कारेलं; अणगमतुं विद्यावृद्ध वि० ज्ञाननी बाबतमां मोटुं; विद्वेष पुं० द्वेष; वेर (२) अनादर ज्ञानमां घणु आगळ वर्धेलु (गर्वथी करेलो) विद्याहीन वि० जुओ ‘विद्याविहीन' विद्वेषण पुं० दुश्मन; वेरी (२)न० द्वेष विद्युत् १ आ० प्रकाशq; दीपq (२) कराववो ते; एक तंत्रविद्या प्रकाशित करवू; चमकावq(आ अर्थमां विध् ६ प० वींधवं; छेदq (२) पूजवू; सामान्यपणे प्रेरक०) सत्कारयु (३) १ आ० याचवू विद्युत् स्त्री० वीजळी (२)कडाका साथे विध पु० प्रकार; नात (२)रीत; पद्धति पडती वीजळी (३) गडी - पड (समासने अंते; विद्यता स्त्री० वीजळी उदा० विविध) विद्युत्त न० वीजळीनो चमकारो विधनता स्त्री० गरीबाई विद्यत्वत् वि० वीजळीओवाळ (२) पुं० विधर्मन् वि० खोटी रीते वर्ततुं ; बेवफा वादळं; मेघ विधवा स्त्री० जेनो पति मरी गयो होय विद्युत्संपातम् अ० क्षणवारमा तेवी स्त्री विद्यदुन्मेष पुं० वीजळीनो चमकारो विधा ३ उ० करवू; बनावq; उत्पन्न विद्युल्लता, विल्लेखा स्त्री० वीजळीनो करवू; आचर; सिद्ध करवु (२) लांबो के वांकोचूंको लिसोटो विधान करवु; (शास्त्र) आज्ञा करवी विद्योत वि० चमकतु ; झळकतुं (३) बनावq; घडवु (४)नीमद् (५) विद्रधि पु० गमडु; फोल्लो पहेरवू (६)-तरफ प्रेरवू (मनने); विद्रव पुं० नासी जवू-भागी जवं ते - उपर स्थिर करवं (७) गोठव, (२) भय ; डर (३) वही जवुते (४) (८) तैयार करवं (९) आपवू ओगळी जq ते (५) निंदा; गाळ (१०) मूकवू (११) ग्रसतुं विद्रावित वि० नसाडी मूकेलु (२) विधा स्त्री० प्रकार; रीत; पद्धति विखेरी नाखेलं (३) पिगळावेलू विधात पुं० विधाता; पेदा करनारो; विद्रु १५० नासी जवू ; दोडी जq (२) सर्जनारो (२) ब्रह्मा (३) बक्षनारो (४) पीगळवू (३) भागी जq; तूटी जवं नसीब (५)विश्वकर्मा (६) माया; भ्रम -प्रेरक० भगाडी मूकवू; विखेरी विधान न० गोठवतुं ते (२)आचरवंनाखवू करवू ते (३) सृष्टिरचना (४) योजवू विद्रुत वि० नासी गयेलं; पलायित (२) ते; प्रयोग करवोते (५)आज्ञा; हुकम गभरायेलं; बीनेलं (३) ओगळीने (६)नियम; शास्त्राज्ञा (७)पद्धति; प्रवाही बनेलं (४) न० नासी जq ते रीत (८) उपाय (९) हाथीओने मत्त Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५३ विधायिन् करवा अपातुं भोजन (१०) कृति; कार्य (११) यत्न (१२) चिकित्सा (१३) प्रतीकार (१४) दान बक्षिस (१५) दैव विधायिन् वि० गोठवनारूं; करनारूं; सर्जनारु (२) हुकम करतुं (३)-ना हाथमां सोंपतुं [(वाहनने) विधारण न० रोक के अटकावq ते विधि पुं० करवू ते; कृत्य ; क्रिया (२) पद्धति; रीत (३) विधान; हुकम; नियम (४) कोई पण धार्मिक क्रिया (५) वर्तणूक ; वर्तन (६) सर्जन; रचना (७) विधाता; ब्रह्मा (८) नसीब; दैव (९) उपाय विधित्सा स्त्री० करवानी इच्छा - इरादो विधिदष्ट वि० जेनो नियम के विधान होय तेवू (शास्त्रमा) विधिपूर्वकम अ० विधि-रीत प्रमाणे विधियोगतः विधियोगात् अ० दैव वशात् ; नसीबजोगे [घन विधिलोप पुं० विधि के विधान- उल्लंविधिवशात् अ० नसीबजोगे विधिविपर्यय पुं० कमनसीब ; दुर्दैव विधु पुं० चंद्र विधुति स्त्री० कंपq ते; हलाव, ते (२) दूर करवू ते; नाश विधुर वि० धुरा विना- (रथ) (२) पीडित; दुःखित (३)वियोगथी पीडित (४)-विनानु; -रहित (५)विरोधी; शत्रुवटवाळु (६)अशक्तिमान; करी के आचरी न शके तेवू (७) नमी पडेलं; झूकी गयेल (८) पुं० जेनी पत्नी मरी गई होय तेवो पुरुष (९) न० भय; चिंता डर (१०) वियोग (पतिथी के पत्नीथी) (११) दुःख ; आफत विधुरदर्शन न० आपत्ति आवी पडवी ते विधुरित वि० फीकुं; निस्तेज विधुवन न० कंप; ध्रुजारी विधुतुब पुं० राहु (चंद्रने पीडनारो) विध्वस्त विधू ५, १० उ०, ६ प० हलाववं; कंपावQ (२) दूर कर: खंखेरी नाखवू (३) अनादर के तिरस्कार करवो (४) तजवू; छोडवू विधूत वि० हलावेलु ; कंपावेलु (२) अस्थिर (३) दूर करेलु; खंखेरी नाखेलं (४) तजेल (५) न० अनादर; तिरस्कार विधूतकल्मष वि० पापमांथी मुक्त थयेलं विधूतकेश वि० पोताना वाळ आमतेम । हलाव्या होय तेवू विधतनिद्र वि० जागेलं विधुति स्त्री०, विधूनन न० क्षोभ ; कंप; ध्रुजारो (२) अनादर (प्रेमनो) विधम वि० धुमाडा विनानुं विध १० उ० पकडवं (२) धारण करवं; पहेरवु (३) टेको आपवो (४) अटकाव; रोकवं विधत वि० पकडेलु (२) छूट पाडेलं (३)धारण करेलु; धरेलु(४)अटकावेलु (५) टेको आलु विधेय वि० करवा के आचरवा योग्य (२) हुकम, आज्ञा के नियम करवा योग्य (३)-नु परवश होय तेवू; -नी असर, काबू के बळ हेठळ होय तेवू (४) आज्ञाधारक; वश (५) कर्मचारी; कशं काम सोपवामां आव्युं होय तेवू (६) न० कर्तव्य ; करवान कार्य (७) पुं० दास; नोकर विधेयज्ञ पुं० पोतानुं कर्तव्य जाणनारं विध्वंस् १ आ० भागी पडवू (२) विखेराई जवं (३) नाश पामवं विध्वंस पुं० विनाश; बरबादी (२) शत्रुता; अणगमो (३) अपमान विध्वंसिन् वि० नाश पामतुं (२)नाश करतुं (३) भ्रष्ट करनाएं (स्त्रीने) विध्वस्त वि० नष्ट करेलु (२) विखेरी नाखेलु (३) ग्रस्त; झांखु पडेलु मग-२२ Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनत विनत वि० वांकुं वळेलु; नमेलुं (२) नीच ढळतु ( ३ ) ऊंड ऊतरेलु : नीचुं गयेलु ( ४ ) वांकुं (५) विनयी; नम्र विनता स्त्री० अरुण अने गरुडनी माता विनतात्मज पुं० गरुड के अरुण विनति स्त्री० नमवुं - वळवुं ते ( २ ) नम्रता ( ३ ) विनंती विनद् ९ प० अवाज करवो; रणकबुं (२) गर्जना करवी (३) चीसोथी भरी काढं - प्रेरक० टहुकार करे तेम करं विनद पुं० अवाज ; शब्द विनम् १ १० वळवु नमवूं - प्रेरक० वाळवं (धनुष्य ) विनम्र वि० वांकुं वळेलुं (२) नीचुं नमेलं (३) ऊंड गयेलुं (४) नम्र विनय पुं० तालीम; उपदेश; शिक्षण (२) सभ्यता; शिष्टाचार ( ३ ) नम्रता (४) दूर करवुं - काढी नाखवुं ते (५) दंड, शिक्षा (६) धंधो ; कामकाज विनयकर्मन् न० शिक्षण; तालीम विनयन न० दूर करवुं ते; काढी नाखवं ते (२) शिक्षण; तालीम विनर्द १ उ० गर्जना करवी; गाजवं विनदन् वि० अवाज करतुं ; गर्जतुं विनश् ४ प० नाश पामवु; मरी जवं (२) लुप्त थवं; अदृश्य धनुं ( ३ ) निष्फळ थवं; बरबाद थवुं विनशन पुं० सरस्वती नदी ज्यां लुप्त थाय छे ते स्थान ( २ ) न० नाश; लुप्त विनष्ट वि० नाश पामेलुं (२) खोवायेलं; लुप्त थयेलुं (३) भ्रष्ट थयेलु विनष्टि स्त्री० नाश; पायमाली विनस वि० नाक वगरनु बिना अ० सिवाय; वगर विनाकृत वि० विनानुं रहित थयेलु तजायेलुं (२) एकलुं - ४५४ विनिबर्हण विनाभव, विनाभाव पुं० वियोग विनायक पुं० दूर करनारो ( विघ्नोने) (२) गणेश ( ३ ) नायक; मार्गदर्शक (४) गुरु (५) गरुड विनाश पुं० नाश; बरबादी (२) दूर करवुं ते (३) मृत्यु (४) कार्य ब्रह्म; क्षणभंगुर दुनिया विनाशधर्मन, विनाशमन् वि० क्षणभंगुर, नाश पामे तेवु विनाशोन्मुख वि० नाश पासवानी तैयारीमा होय तेवुं [ वेरायल विनिकीर्ण वि० आम तेम वीखरायेलु के विनिकृत वि० अनादृत; अपमानित (२) ईजा के हानि पालुं विनिक ६ आ० फेंकी देवु; दूर करवु; तजवं (२) विखेरवं; वेखु विनिक्षिप ६ आ० सोपव; आपी देव (२) उपर के अंदर मूकवं ( ३ ) फेंकी देवु; उथलावी काढवु विनिगड वि० सांकळ के बंधन विनानुं विनिग्रह ९प० [ विनिगृह्णाति ] निग्रह करवो; अटकायत करवी, डखल करवी (२) पकडवु [ते; दबाव विनिग्रह पुं० काबूमां के नियंत्रणमा लेव विनिद्र वि० निद्रारहित; जागतुं ( २ ) खीलेलुं; ऊघडेलु; विकसेलुं विनिपत् १ प० नीचे पडवु; तरफ धस - ऊतरनुं ( २ ) हुमलो करवो - प्रेरक ० ० बरबाद करवु ( २ ) नीचे पाडवु (३) मारी नाखवु विनिपन्न वि० नष्ट विनिपात पुं० पतन; पडवुं ते ( २ ) आपत्ति; बरबादी (३) क्षय, मृत्यु (४) नरक; अधोगति ( ५ ) बनवु के वुं ते (६) दुःख कष्ट विनिपातगत वि० मुश्केलीमां आवी पडेल; दुर्भागी [ विध्वंसक विनिबर्हण वि० कचरी नाखनाएं; Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनिमय विनिमय ० लेवड-देवड ; अदलो-बदलो विनिमेष पुं० (आंखनो)पलकारो (२) इशारो विनियत वि० काबमां लीधेल के राखेखें (२) मर्यादित; प्रमाणसर एवं विनियम् १५० [विनियच्छति काबूमां लेव (२) मर्यादित कर विनियुज ७ आ० वापरवं; उपयोगमा लेवू (२) नीमवू (३) वहेंचq; भाग पाडवा (४) छूटुं- जुदं करवू (५) छोडQ (बाण) -प्रेरक नीम ; योजवं (२) हुकम करवो (३) अर्पQ (४) उपयोग के अमल करवो विनियोक्त वि० नीमनारुं ; योजनाएं । विनियोग पुं० जुदं पाडवू ते (२) तजवू ते (३) उपयोग करवो ते; उपयोगमां लेवं ते (४) निमणूक (५) विघ्न विनिर्गम् १ प० [विनिर्गच्छति ] बहार जq (२) अदृश्य थq; देखाता बंध थर्बु (३) चाल्या जवं; विदाय थर्बु (४) -मांथी छूटवू थर्बु ते विनिर्गम पुं० अदृश्य थq ते (२)विदाय विनिर्जय पुं० विजय; फतेह विनिजि १ प० जीतवं; ताबे करवं। विनिर्णय पुं० पूरेपूरो निर्णय-निश्चय (२) खातरी (३) निश्चित नियम विनिर्मित वि० -न बनावेलु (२) रचेलं; सर्जेलु (३) निर्माण थयेलं विनिर्वत् १ आ० बंध पडवू; अटकवू; समाप्त थq (२) सिद्ध थq; पूरुं थq (३) न बनवू के थवू -प्रेरक० सिद्ध करवं; पूरुं करवू विनिर्वत्त वि० बहार नीकळेलु; प्रगट थयेलं (२) कृतकृत्य ; पूर्ण; सिद्ध विनिविद् २ प० जणाव; कहेवू (२) पोतानी जातने जाहेर करवी (३) दर्शाव; देखाडवू (४) अर्प विनी विनिविश् ६५० -मां बेसवं;-मां मुकावू - प्रेरक० मूकवू; स्थापq (२) वसाहत करवी (३) दाखल करवू विनिव १० उ० (के प्रेरक०) निवा र; रोक, (२) मना करवी विनिवृत् १ आ० पाछा फरवू (२) थोभवू; समाप्त थर्बु (३)-थी विमुख थवू; -थी अटकवू -प्रेरक० अटकावq; बंध करवु (२) रोक (३) त्याग विनिवृत्त वि० पार्छ फरेलु (२) अट केल; थोभेलं; विरमेलं विनिवृत्ति स्त्री० अटकावq, योभाववं के दूर करवू ते (२) समाप्ति विनिवेश पुं० प्रवेश के वसाहत करवी ते (२) छाप पडवी ते विनिश्चि ५ उ० निश्चय करवो विनिश्चितम् अ० चोकस; नक्की विनिष्पत् १ प० धसी जवू; ऊडी नीकळवू (२) नासी जq विनिहत वि० हणायेलं; घवायेलं; मरायेलु (२) तद्दन ताबे थयेलु (३) पुं० दैवी आपत्ति (४) दुश्चिह्न विनिहतात्मन् पुं० जेना आत्मा नाश पाम्यो होय तेवू [निमायेलं विनिहित वि० मुकायेलं; मूकेलु (२) विनिहितदृष्टि वि० उपर दृष्टि स्थिर करी होय तेवू; उत्कंठापूर्वक जोतुं विनिहितमनस् वि० -मां लागेल विनिह्नत वि० ना पाडेलं; इन्कारेलं (२) छुपावेलं; संताडेलं विनी १ उ० दूर करवं; नाश करवं (२) शीखवQ; तालीम आपवी (३) ताबे करवं; वश कर (४) शांत पाडवू; (गुस्सो; आ०) (५) व्यतीत करवू (समय) (६) खर्चवू; वापर (आ..) (७) आपी देवं (खंडणी तरीके; आ०) (८) दोरी जवं; लई जq (९) प्रेरवू; हुकम करवो Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनीत ४५६ विपन्नदीधिति विनीत वि० लई जवायेलं; दूर करा- विप् १० उ० फेंकवु (२) १ आ० भ्रूजवू; येलु (२) सुशिक्षित; तालीम पामेलं __कंपवू [विकसेल; परिपूर्ण थयेलं (३) सभ्य ; शिष्टाचारवाळू (४)नम्र; विपक्व वि० पूरेपूरुं पक्व थयेलं (२) विनयी (५) काढी मूकेलं; मोकली विपक्ष वि० सामा पक्षद्; विरोधी; दीधेलु (६) केळवेलु (७) शिक्षा करी वेरी (२) पुं० दुश्मन; सामावाळियो होय तेवू (८) संयमी (९) सुंदर (३)हरीफ स्त्री के शोक (४)चर्चामां (१०) फेलावेलु; पाथरेलु सामो पक्ष लेनारो (५) निष्पक्षता; विनीतवेष पुं० सादो पोशाक निरपेक्षता विनीति स्त्री० शिष्टाचार (२) आदर विपक्षभाव पुं० शत्रुवट; वेरभाव विनुद् ६ प० भोंकवु (२) (वीणा विपक्षरमणी स्त्री० हरीफ स्त्री (प्रेममां) वगेरे) वगाडq (३) दूर करवू विपच १ प० परिपक्व थवू; परिणत -प्रेरक० हांकी काढ; दूर करवू .. थq; फळ नीपजवु (२) पचावq (३) (२) व्यतीत कर (समय) (३) बाफ; पकाव आनंद पमाडवो (४) आनंद मानवो विपट् १० उ० फाडी काढवू; चीरी विनतृ पुं० नायक; नेता (२) गुरु; नाखवू (२)खेंची काढवू; निर्मूळ करवू शिक्षक (३) राजा (४) शासक; (३) खुल्लं करवू (४) हांकी काढवू शिक्षा के सजा करनारो विपण १५० वेचवं (२) होड बकवी विनय पुं० शिष्य विपण पुं०, विपणन न० वेचाण ; वेचवं विनोद पुं० दूर करवं ते (२) आनंद; ते(२) नानो वेपार (३)नानं बजार के रमत; क्रीडा करवं ते हाट (४)सोदो [माल (३)वेपार विनोदन न० क्रीडा; खेल (२) दूर विपणि स्त्री० बजार (२) वेचवानो विनोदरसिक वि० सुख - आनंदमां विपणिन् पुं० वेपारी; दुकानदार प्रीतिवाळं विपणी स्त्री० जुओ 'विपणि' [समय [दूर करेलु विपत्काल पुं॰आपत्तिनो समय;दुर्भाग्यनो विनोदित वि० आनंद पमाडेलं (२) विपत्ति स्त्री० आफत; मुश्केली (२) विन्न ('विद्' - भ०कृ०) वि० जाणेलं मोत; विनाश (३) यातना (४) अंत (२) मळेलं; मेळवेल (३) चर्चेल; तपासेलु (४) मूकेलं; स्थापेलं (५) (५) पुं० वीर पायदळ सैनिक विपत्तिकाल पुं० जुओ 'विपत्काल' परणेलं विपथ पुं० आडो मार्ग; अवळो मार्ग विन्यस् ४ प० मूकवू (२) -तरफ विपद् ४ आ० निष्फळ जवं; शून्य प्रेर; -मां लगाडवू (३) थापण परिणाम आवq (२) आपत्ति-दुर्भातरीके सोपवू (४) गोठवQ ग्यमां आवी पडद् (३) अपंग के विन्यस्त वि० मूकेलं; नीचे मूकेल (२) अशक्त थq (४)मरीजवं; नाश पामवं जडेलं; बेसाडेलु (३) गोठवेल (४) विपद, विपदा स्त्री० विपत्ति ; आफत; थापण तरीके मूकेलं (५) न० गोठ- मुश्केली (२) मोत वणी: स्थापना विपन्न ('विपद्' न भू० कृ०) मृत (२) विन्यास पुं० थापण तरीके सोंपवं ते; नष्ट (३) आपद्ग्रस्त (४) अशक्त; थापण (२) गोठवणी; रचना (३) मछित होय ते (अवयवोनी) स्थापना (४) प्रदर्शन विपन्नदीधिति वि० जेनुं तेज चाली गयं Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विपन्नदेह ४५७ विप्रकार विपनदेह वि० मत विपर्यास पुं० पलटो बदलो (२)अवळाविपरिक्रान्त वि. पराक्रमी; बहादुर पणुं; ऊलटापणु; प्रतिकूळ होवापणुं विपरिगा ३ प० ऊथली पडवू; ऊg (४) विनिमय (५) भ्रम ; भूल (६) पडवू (जेमके गार्ड) (समयनु) व्यतीत थर्बु ते विपरिणम् -प्रेरक -मां रूपांतर करवं विपल न० पळनो ६० मो के छठ्ठो -कर्मणि -मां परिणमवं; -मां भाग; समयनो अति सूक्ष्म अंश रूपांतर थर्बु (२) खोटं परिणाम के विपश्चित् वि० विद्वान; डाहयु; पंडित रूपांतर थवं (२) पुं० ज्ञानी माणस । विपरिवर्तनविद्या स्त्री० कोई माणस विपंचिका, विपंची स्त्री० वीणा (२) पाछो फरे ते माटेनी विद्या-मंत्र रमत; क्रीडा विपरिवत् १ आ० गोळ फरवू ; भमवं विपाक पुं० रांधवं ते (२)पचवू ते (३) (२) गबडवू (३) आम तेम भटकवू परिपक्व थर्बु ते (४) फळ ; परिणाम (४) घेरी वळवं (५) पलटो; बदलो (६) अणधारी विपरिश्रमता स्त्री० थाक न लागवो ते; __ आफत (७) करमावू-चीमळावू ते थाक न लाग्यो होय तेवी स्थिति विपाट पुं० एक प्रकारच् बाण विपरी (विपरि + इ) २ प० ऊलटी विपाटल वि० घणुंज रातुं नाखेलं दिशामां फरवू (२) निष्फळ जवू विपाटित वि० उखाडी काढेलं; फाडी (३) खराब परिणाम आवq (४) विपाठ पुं० एक जात- मोटु बाण गोळ फरवू; पाछा फरवू विपादन न० वध; नाश । विपरीत वि० ऊलटुं; अव©; ऊधु (२) विपाश, विपाशा स्त्री० पंजाबनी पांच विरुद्ध ; सामेनु (३) नियमथी ऊलटुं नदीओमांनी एक (आजनी बियास) (४) खोटुं; जूठं (५) प्रतिकूळ (६) विपांड, विपांडुर वि० पीळाश पडतुं अवळी रीते वर्तनाएं वर्तनारुं विपिन वि० गहन; गाढ (२)न० अरण्य; विपरीतकारक वि० अवळं -प्रतिकूळ झाडी (३) समूह; जथो विपरीतता स्त्री०, विपरीतत्व न० विपिनौकस् पुं० वांदरुं अवळापणुं; ऊलटापणुं; विरोध विपुरुष वि० निर्जन; खाली विपर्यय वि० ऊलटुं; अवळू (२) पुं० विपुल वि० मोटु; विशाळ (२) घj; विरुद्धपणु; अलटापणुं ; अवळापणु (३) पुष्कळ (३) गाढ ; ऊंडु (४)रोमांचपलटो; बदलो (४) अभाव; रहितपणुं युक्त (५) पुं० मेरु (६) हिमालय (६) विनाश (७) विनिमय (८)भ्रम; विपुष्ट वि० पूरुं पोषण न पामेल भूल(९)दुर्भाग्य(१०)शत्रुता (११)प्रलय विपुंसक वि० नपुंसक; नामर्द घास विपर्यस् ४ प० उलटाववु; अवळं करवं; विपूय वि० पवित्र करनाएं (२) न० मुंज ऊंधु करवं (२)पलटाव बदलवू (३) विप्र पुं० ब्राह्मण (२) ऋषि; डाह्यो खोटुं समजवू (४) विपरीत थ; माणस (३) अश्वत्थ वृक्ष बदलावं विप्रकर्ष पुं० अंतर; दूरपणुं (२)तफावत विपर्यस्त वि० पलटायेलं; ऊधु -अवळ (३) खेंची जवू के हरण करी जq ते करेलु (२) विरुद्ध; ऊलटुं (३) खोटी विप्रकार पुं० अपमान; अनादर (२) रीते साचं मानेलु [विपर्यय ___ अपकार; अपकृत्य (३) दुष्टता (४) विपर्याय पुं० अवळापणुं; ऊलटापणुं; विरोध ; सामनो Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विप्रकीर्ण विप्रकीर्ण वि० वीखरायेलं; पथरायेलुं (२) छूटुं; ऊडतुं (वाळ) विप्रकृ ८ उ० पजववुं; त्रास आपवो; पीडवुं (२) खोटं लगाडवु ; खोटी रीते वर्तवु ( ३ ) असर करवी; बदलवुं (४) कदरूपुं बनाववु; बगाडवुं (५) ( शाहेद तरीके) लावबुं; नीमबुं विप्रकृत वि० हणायेलं; पीडायेलं (२) अनादर करायेलुं (३) छंछेडेलं; पजवेलं विप्रकृषु १५० दूर करवु; दूर खेंची जब विप्रकृष्ट वि० खेची जवाये लुं; दूर करेलु (२) आघुं; दूरनुं (३) लंबायेलुं विप्रणश् ४ १० नाश पामवु; लुप्त थ विप्रतिपत्ति स्त्री० मतभेद; विरोध (२) गूंचवण ; मूंझवण ( ३ ) दुश्मनावट (४) भूल; खोटं समजवुं ते (५) संशय (६) निपुणता ; प्रवीणता विप्रतिपद् ४ आ० मतभेद के विरोध होवो (२) आनाकानी करवी (३) खोटो जवाब आपको विप्रतिपन्न वि० परस्पर विरोधी एवं (२) मूंझायेलुं ( ३ ) अवरोधायलुं (४) विरोध के प्रतीकार कराये लुं विप्रतिषेध पुं० निग्रह; काबू ( २ ) सरखी recaria कार्योनो परस्पर विरोध विप्रतिसार, विप्रतीसार पुं० पस्तावो (२) गुस्सो (३) दुष्टता विप्रत्यय पुं० अविश्वास [ आहार विप्रदह पुं० फळ- मूळ वगेरेनो सूको विप्रदुष्ट वि० भ्रष्ट; दुराचारी विप्रघर्ष पुं० पजवणी; छेडती विप्रनष्ट वि० खोवायेलुं (२) नका विप्रपात पुं० कराड ; ज्यांथी आगळ भयंकर खाडो आवतो होय तेत्री जगा विप्रमुक्त वि० मुक्त के छूटं करेलुं (२) ढीलुं करेलु; छोडी नाखेलु ( ३ ) फेकेल; छोडेलं; ताकेलुं (४) (समासमा ) -थी रहित; - विनानुं ४५८ विप्रहीण विप्रमुच् ६ ० [ विप्रमुञ्चति ] छोडवु; मुक्त कर (२) फेंक ; ताकबुं विप्रयुक्त वि० छूटं पाडेलू ( २ ) - विनानुं ( ३ ) - मांथी मुक्त करेलु विप्रयुज् ७ आ० छूटं पाडवु ; (कोईने ) -विनानुं करं - कर्मणि० - थी छूटुं पडवु विप्रयोग पुं० छूटुं पडवुं ते (२) प्रेमी ओनो वियोग - विरह (३) तकरार ( ४ ) अभाव विप्रलप्त न० वादविवाद ( २ ) बकवाद (३) विलाप [ नासीपास थयेलं विप्रलब्ध वि० छेतरेलु; ठगाये लुं (२) विप्रलब्धू वि० छेतरनारुं विप्रलम् १ आ० छेतरवु; ठगवुं (२) अनादर करवी (३) उल्लंघन करवु विप्रलय पुं० पूरेपूरो प्रलय विप्रलंभ पुं० छेतरवुं ते; ठगवुं ते ( २ ) निराशा (३) भ्रम (४) खोटं बोलीने के वचन न पाळीने छेतरखुं ते (५) तकरार (६) छूटा पडवु ते ; वियोग ; विरह विप्रलंभन न० छेतरामणी; ठगाई विप्रलुप्त वि० झंटवी लोधेलुं (२) दखल करायेलुं विप्रलून वि० कापेलुं; चूंटेलुं; वीणेलुं . विप्रवस् १५० ( घरथी दूर ) प्रवासे होवु (२) प्रवासेथी पाछा फरवु - प्रेरक० दूर करवु; काढी मूकब विप्रवाद पुं० मतभेद; जुदो अभिप्राय विप्रवास पुं० (घरथी दूर) परदेशमा रहे [ जुआ 'विप्रवास' विप्रवासन न० देशनिकाल करवुं ते (२) विप्रश्निक पुं० दैवज्ञ; भविष्य भावनारो विप्रसन्न वि० खूब खुश थयेलुं विप्रस्व न० ब्राह्मणनी मिलकत विप्रहत वि० मारी पाडेलं; हरावेलुं (२) रोळी नाखेलुं विप्रहाण न० लुप्त थबुं ते; बंध थवं ते विप्रहीण वि० च्युत; भ्रष्ट (२) लुप्त Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विप्रिय विप्रिय वि० अप्रिय; अणगमतुं (२) न० arriad कार्य; अपराध विप्रुष स्त्री० बिंदु, टपकुं विप्रोषित ('विप्रवस्' नुं भू० कृ० ) वि० प्रवासे गये; गेरहाजर ( २ ) देशनिकाल करायल विप्लव पुं० आमतेम ऊछळव' के तणाव ते (२) विरुद्धता (३) तोफान; धांधळ (४) हानि नाश ( ५ ) प्रतिकूळता (६) अंधाधूंवी ( ७ ) शत्रु तरफथी भय (८) दर्पण उपरनो मेल ( ९ ) उल्लंघन (१०) नौकानुं तोफानमां डूबी जवुं विप्लु १ आ० आमतेम ऊछळबुं -तणाव (२) मूंझावं (३) बरबाद वुं - प्रेरक० तरे के तणाय तेम कर ( २ ) अपात्रने शीखववुं ( ३ ) बगाडी मूक; बरबाद करवुं (४) मूंझववुं विप्लुत वि० आमतेम तणातुं ( २ ) डूबी गयेलं; उपर पाणी फरी वळचं होय तेवुं (३) मूंझाये लुं (४) बरबाद करेलुं (५) लुप्त ( ६ ) भ्रष्ट ; स्वच्छंदी; दुराचारी ( ७ ) खोढुं ठरे तेवुं ( ८ ) क्षुब्ध ; व्याकुळ ( ९ ) न० कूद - ऊछळव ते; तोडीने नीकळी जर ते विप्लुतनेत्र वि० ( आंसु वगेरेथी) आंखो ऊभराई गई होय तेनुं विप्लुतभाषित् वि० न समजाय तेनुं बोलतु; तोडातुं विप्लुष स्त्री० बिंदु टपकुं ( पाणीनं) विफल वि० निष्फळ ; नकामुं विबुद्ध वि० जगाडेलं; जागतुं (२) विकसेल; खीलेलं (३)कुराळ; होशियार विबुध १ पा०, ४ आ० जागवुं (२)भानमा आवj ( ३ ) जोवुं खोळी काढवु - प्रेरक० जगाडवु ( २ ) भानमां लाववुं विबुध पुं० डाह्मो के ज्ञानी माणस ; ऋषि (२) देव (३) चंद्र विबुधद्विष्, विबुधशत्रु पं० राक्षस ४५९ विभावक विबोध पुं० जागवुं ते; जगाडवं ते (२) जोवुं ते; खोळबुं ते (३) ज्ञान (४) भामा आवj ते (५) दुर्लक्ष (६) खुल्लुं करते; प्रगट करवं ते विब्रू २ उ० बोलवु ( २ ) - विषे कहेवुं ( ३ ) खोटं कहे (४) समजाव; अर्थ करी anaa (५) झघडवु ( ६ ) असंगत थवं विभक्त वि० वलं; हिस्सा पाडेलू (२) छूटुं पडेलुं (३) विविध ( ४ ) राणगारेलुं (५) मापेलुं (६) पुं० कार्तिकेय विभक्ति स्त्री० विभाग; हिस्सो; भाग ( २ ) नामनो क्रिया साथै संबंध देखानार प्रत्यय ( व्या० ) विभज् १ उ० भाग पाडवा ; वहेंची आप ( २ ) विवेक करवो; सारासार विचारतो ( ३ ) - मांथी छूट पाड विभज्य अ० भाग पाडीने; जुदु पाडीने विभव पुं० संपत्ति, वैभव ( २ ) शक्ति; सामर्थ्य (३) ऊंचं पद (४) पालन (५) मोक्ष (६) विकास; उत्क्रांति विभंग पुं० भागवु ते; तूटवुं ते (२) अटकाव - रोक ते (३) वाळवु -ऊंचं चडाव ते (भमर) (४) गडी ; करचोली (५) पगर्थियुं; निसरणी ( ६ ) प्रगट थबुं - करवुं ते (७) विभाग; खंड विभंगुर वि० अस्थिर; चंचळ (नजर) विभंज् ७ १० भांगवु; टुकडा करवा विभा २ प० दीपवु प्रकाशवुं (२) देखावं; नजरे पडवुं ( ३ ) परोढ थवुं विभा स्त्री० तेज; कांति ( २ ) किरण (३) सौंदर्य; शोभा विभाकर पुं० सूर्य (२) अग्नि विभाग पुं० भाग; हिस्सो ( २ ) टुकडो ; खंड ; अंश ( ३ ) गोठवणी विभात न० परोढ; प्रभात विभाव पुं० स्थायी भावोने उद्दीप्त कार वस्तु के परिस्थिति ( काव्य ० ) विभावक वि० प्रगट करतु; दर्शावतुं (२) चर्चतुं ( ३ ) मेळवी आपतुं Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभावन विभावन न०, विभावना स्त्री० तत्वनिर्णय (२) चर्चा; परीक्षणं (३) कल्पना; धारणा (४) विकास (५) पालन (६) दर्शन (७)प्रगट करवू ते विभावनीय वि० दृश्य विभावर वि० प्रकाशित; तेजस्वी विभावरी स्त्री० रात्रि (२)वाचाळ स्त्री (३)दुराचारी स्त्री [जातनो हार विभावसु पुं० सूर्य (२)अग्नि (३)एक विभावित वि० प्रगट करेलु; देखाय तेम करेलु (२) जाणेलं; समजेलं; अवधारित करेलु (३) कल्पेलं; अनुमान करेलु (४)सिद्ध थयेलुं के करेलु विभावितकदेश वि० एक अंशमां जे पकडाई गयं छे-दोषित पुरवार थयुं छे तेवू [शकाय तेवू विभाव्य वि० समजी शकाय-चितवी विभास् स्त्री. प्रकाश; तेज विभिद् ७ उ० भागवू; तोडवू (२) भोंकवृं; वींधq (३) जुदुं पाडवू (४) छोडवं (गांठ) (५)भंग करवो (६) भेदभाव ऊभो करवो -कर्मणि बदलावं -प्रेरक० जुएं करवू (२) भेदभाव ऊभो थाय तेम करवु (३)दूर करवू; हांकी काढ विभिदा स्त्री० भेद विभिन्न वि० भांगेलं; तूटेलं (२) वींधायलं; घवायलं (३) हांकी काढेलं; विखेरी काढेलु; दूर करेलु (४) हताश (५) मिश्रित (६) प्रगट करेलु के थयेलं (६) बेवफा नीवडेलुं (७) पुं० शिव विभी वि० निर्भय विभीतक पुं० बहेडान झाड विभीषण वि० भयकारक (२) पुं० रावणनो भाई (रामनो भक्त) विभीषा स्त्री० डराववानी इच्छा विभ्रष्ट विभीषिका स्त्री० डर; भय (२) डराववानुं साधन (चाडियो) विभु वि० बळवान ; शक्तिशाळी (२) मुख्य; श्रेष्ठ (३) शक्तिमान (४) संयमी; आत्मनिग्रही (५) सर्वव्यापी (६) पुं० आकाश (७) स्वामी; राजा (८) सम्राट; राजा (९) शिव विभुग्न वि० वळेल; वाळेलं विभुता स्त्री० सामर्थ्य ; प्रभाव विभू १५० देखावू; प्रगट थर्बु (२) व्यापq (३)पूरता थq; शक्तिमान थव -प्रेरक विचारवं; चिंतवq (२) जाणवू (३) निहाळवू (४) प्रगट करवु (५)धार; कल्पq (६)पुरवार करवं (७) रक्ष विभूति स्त्री० शक्ति; सामर्थ्य (२) ऐश्वर्य; संपत्ति (३)अलौकिक शक्ति -सिद्धि (४) विस्तार विभूष १० उ० शणगारQ विभूषण न० आभूषण; अलंकार विभूषा स्त्री० आभूषण; अलंकार विभूषित वि० शणगारेलं; अलंकृत (२) न० आभूषण; शणगार विभेद पं० भागवं; जुदं पाडवं; टुकडा करवा (२) विभाग; भागला; जुदापणुं (३) वींधq - घायल करवं ते (४) विरोध (५) वेर (६) भव चडाववां ते (७) विविधता विभ्रम १, ४, प० भटकवू; भम, (२) गोळ फरवु (३) मंझावु ; गूंचवावु (४) पटपटावq (पुछडी) विभ्रम पु० आमतेम भटकवू ते (२)गोळ फरवू ते (३) भ्रम; भूल (४)व्याकुळता (५) व्याकुळताने कारणे घरेणां वगेरे अस्थाने पहेरवां ते (६) विलासचेष्टा (७) सौंदर्य ; शोभा (८) क्षोभ ; गाभरापणुं (९)गर्व; अभिमान विभ्रष्ट वि० पडी गयेलु; जुदुं पडेलु; Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विभ्रंश् नीकळी गये लुं ( २ ) विनष्ट (३) लुप्त ( ४ ) - विनानुं रहित विभ्रंश् १ आ० [विभ्रंशते], ४ प० [ विभ्रश्यति ] नीचे गरी पडवुं - सरकी पडवुं - टपकी पडवुं (२) विनाश पावो (३) अवनत थवुं (४) खोबुं (५) लुप्त थवुं (६) निष्फळ नीवडवु विभ्रंश पुं० नीकळी -- सरी पडवुं ते ( २ ) अवनति; विनाश ( ३ ) कराड ( ज्यांथी नीचे पडी जवाय) विभ्राज् १ आ० दीपवं ; प्रकाशवुं विभ्रांत वि० गोळ फरेलुं- फरतु (२) क्षुब्ध ; व्याकुळ (३) भूल करतुं ( ५ ) चोतरफ फैलायेलं (यश) विमत वि० जुदा अभिप्रायवाळं (२) असंगत ( ३ ) अपमानित ( ४ ) संशयग्रस्त विमति वि० मूर्ख ( २ ) स्त्री० मतभेद (३) अणगमो (४) मूर्खता ( ५ ) झघडो; तकरार ४६१ विमत्त वि० मद झरतु; उन्मत्त विमय् १५० जुओ ' विमंथ् ' विमद वि० मद - अभिमान रहित (२) आनंदरहित; खिन्न विमन् - प्रेरक० अपमान करवु विमनस्, विमनस्क fao नाखुश; खिन्न (२) बेध्यान (३) व्याकुळ; गाभरु विमनीकृत वि० नाखुश थयेलुं (२) मनोभाव बदलायो होय तेवु ( ३ ) खिन्न विमन्यु वि० क्रोधरहित ( २ ) शोकरहित विमर्द पुं० दबावj - कचरबुं - छंदवुं ते (३) मसळवूं - घसवुं ते ( ४ ) बगाडवुं ते (५) स्पर्श करवो ते (६) खरडवुं ते (७) युद्ध; लडाई (८) विनाश; बरबादी विमर्दन न०, विमर्दना स्त्री० दबाववुं - कचरवुं - छंदवं ते (२) घसवुं ते (३) विनाश; वध ( ४ ) युद्ध विमंदित वि० दबावेलुं; कचरेलुं; खांडेलुं (२) घसेलुं (३) खरडेलुं विमार्गगा विमर्श पुं० विचारणा (२) नाटकमां वस्तुना फलित थता जता विकासमां कोई अकस्मातथी रुकावट के पलटो वो ते (नाट्य ० ) (३)जुओ 'विमर्शन' विमर्शन न० विचारणा; तपास; चर्चा (२) तर्क (३) आनाकानी; संशय (४) पाछलां कर्मोंनो संस्कार - वासना विर्माशन् वि० विचार के तपास कर विमर्ष पुं० नाखुशी; अणगमो (२) अधीरता; असहनशीलता विर्माषन् वि० असहनशील; अधीर (२) अणगमावाळं विमल वि० निर्मळ; स्वच्छ, पारदर्शक (२) सफेद, उज्ज्वळ विमलाक्ष वि० वाळनां दश गुंचळां वाळं (घोडो) विमलाद्रि पुं० गिरनार पर्वत विमंथ् ९प० विखेवुं ( २ ) विनाश करवो (३) गूंचववुं; गाभरुं बनाववुं विमातृ स्त्री० सावकी मा; अपर माता विमान वि० मानरहित; अनादृत (२) पुं०, न० अपमान (३) आकाशमां फरी शके तेतुं वाहन ( ४ ) कोई पण वाहन (नौका इ० ) (५) सात माळनो महेल (६) म्यानो विमानगामिन् पुं० देव विमानचारिन् वि० विमानमां फरतुं विमानधुर्य पुं० म्यानो ऊंचकनारुं विमानन न०, विमानना स्त्री० अनादर; अपमान, तिरस्कार ( २ ) ना पाडवी ते; नकार विमानयान वि० विमानमां फरतुं विमानराज पुं० उत्तम दैवी वाहन विमानवाह पुं० म्यानो ऊंचकनारो विमानित वि० अपमानित; अनादृत विमार्ग पुं० खराब रस्तो (२) अवळो मार्ग; दुराचार विमागंगा स्त्री० व्यभिचारिणी स्त्री Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ विमार्गगामिन् विरल विमार्गगामिन्, विमार्गप्रस्थित वि० वियुज् ७ आ० तजq (२) छूटुं पाडवं; दुराचारी मिश्रणवाळं -रहित कर [एम विमिश्र, विमिश्रित वि० सेळभेळ थयेलु; वियुज्य अ० छुटै छुटुं; एक साथे एक विमुक्त वि० छूटुं करेलं; मुक्त करेलु- वियुत वि० जुदुं पाडेलु (२)-रहित थयेलु (२)तजी दीधेलं; छोडी दीधेलुं । वियोग पुं० छूटा पडवं ते (२) अभाव (३) फेंकेलं; नाखेल (४) युक्त । वियोगिनी स्त्री० प्रेमी के पतिना विमुक्तमौनम् अ० मौन तजीने विरहवाळी स्त्री विमुक्ति स्त्री० छुटकारो (२) मोक्ष वियोजित वि० छुटुं पाडेलु –थी रहित विमुख वि० मों फेरवी लीधुं होय तेवू करेलं पशुओनी योनि (२) पराङमुख; निवृत्त (३) विरुद्ध; वियोनि वि० अधम कुळनु (२)स्त्री० प्रतिकूळ (४) -रहित; -विनानुं विरक्त वि० घणु लाल (२) रंग बगडी (समासमां; उदा० 'करुणाविमुख') गयो होय के ऊडी गयो होय तेवु (३) विमुग्ध वि० मूंझायलं; मूढ बनेल आसक्तिरहित; अणगमावाळू (४) विमुच् ६५० [विमुचति] मुक्त करवं; वैराग्ययुक्त विरक्ति स्त्री० असंतोष'; अणगमो (२) छूटुं करवू (२) छोडवू; गांठ खोली नाखवी (३)तजq; छोडवू (४) अना वैराग्य; आसक्तिनो अभाव । मत राखवू; बाजुए काढQ (५) टपका विरच् १० उ० गोठवयु (२) रचवू; वq (आंसु) (६) फेंक (७) उतारी लखवू (३) उत्पन्न करवु विरचन न०, विरचना स्त्री० गोठवणी नाखवू (कपडां) विमुह, ४ प० मूंझावू(२)मोहित थर्बु(३) (२)रचवु ते; आयोजन (३) लखाण मूढ बनवू; मूर्ख बनवू विरचित वि० रचेलु (२) गोठवेलु (३) लखेलु (४) शणगारेलं विमृद् ९१० दबाव (२) कचरवं; विरज वि० रज,दोष के वासनाथी रहित छंदवू (३) नाश करवो; बरबाद करवू विरजस्, विरजस्क वि० रजरहित (२) विमूढ वि० मूंझायेलं; मूढ बनी गयेलं (२)लोभायेलं; मोहित थयेलु (३) वासनारहित विरजा स्त्री० दुर्वा (२)एक नदी मूर्ख (४) डायुं; पंडित विरत वि० थोभेलं; अटकेलं (२) विमूढात्मन् वि० मूढ बनेलं; मूर्ख । समाप्त माथी अटकेलं विमोक्ष पुं० मोक्ष ; छुटकारो (२) फेंकवू विरतप्रसंग वि० -ना व्यापार के क्रियाते (३)अर्पण; बक्षिस विरति स्त्री० अंत; समाप्ति(२)संसारविमोचन न० छोडवू ते (जेमके नी आसक्तिओमाथी विरत थवं ते झूसरीमाथी)(२) छुटकारो (३) मोक्ष विरम् १५० अंत आववो (२)थोभवू; वियत् न० आकाश अटक; बंध पडवू (बोलतां इ०) वियत्पताका स्त्री. वीजळी विरम पुं० अंत; समाप्ति (२) सूर्यास्त वियन्मध्यहंस पुं० सूर्य विरल वि० वच्चे खाली अंतर होय वियु ३५० छूटा पडवू (२) -थी रहित तेवू ; गाढ नहि तेव (२) भाग्य मळतं; बनवू (३) रोक वारंवार जोवा न मळतुं (३)अल्प; वियुक्त वि० छूटुं पडेलु (२) -थी थोड्क ज (संख्या के जथो) (४)दूरनुं तजायेलु (३) -थी रहित (अंतर के समय) Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विरलभक्ति विरोध विरलभक्ति वि० विविधता विनान; विरिंच, विरिचि पुं० ब्रह्मा एकसरखं विरु २ प० रडवं ; विलाप करवो (२) विरलम् अ० भाग्य ; वारंवार नहि तेम । अवाज करवो (३)बूम पाडवी विरस वि० स्वाद विनानं (२)न गमे विरुग्ण वि० भागीने टुकडा थयेलं (२) तेवं; त्रास उपजावे तेवू (३) क्रूर; बूलु थयेलं लागणीरहित विरुच १ आ० दीपवू; प्रकाशवं (२) विरह पुं० वियोग; छूटा पडवं ते (खास प्रगट थq; देखावु (३)आगळ पडता करीने प्रेमीथी)(२)अभाव; न होवापणुं ___ थq(४)खुश कर विरहित वि० विहो'; विनानु (२)-थी विरुच पु० अस्त्र उपर बोलातो मंत्र विरुत वि० चीस पाडेल (२) अवाज छूटुं पडेलु(३)एकाकी । (२)एकाकी भरेलं; गाजतुं (३) न० चीस के बूम विरहिन् वि० प्रेमीजनथी छूटुं पडेलु पाडवी ते (४) कोलाहल (५) विरंच, विरंचि पुं० ब्रह्मा विरंज १, ४ उ० रूखा थई जवू के रंग गुंजारव; कलरव विरुति स्त्री० चीसो पाडवी ते ऊडी जवो (२) धिक्कार ; अणगमो विरुद पुं०, न० राजानी स्तुति-प्रशंसा थवो (३)वैराग्य थवो विरुदित न० मोटी चीस (२) विलाप विरंजित वि० स्नेह पोछो थयो होय । विरुद्ध वि० रूंधेलं; अटकावेलुं (२) तेवू; विरक्त थयेलं ऊलटुं; प्रतिकूळ; सामेनुं (३) न० विराग पुं० रंग बदलावो ते (२)वलण विरोध; दुश्मनावट बदलावं ते ; असंतोष ; अणगमो (३) विरुध् ७ उ० विरोध करवो वैराग्य'; आसक्तिनो अभाव -कर्मणि विरुद्ध होवं; विरोध होवो विराज १ उ० दीपq; प्रकाशq (२) विरुह १५० ऊगर्बु (२) ऊंचे चडवू -ना जेवू देखावू (३)शोभी ऊठवू __ -प्रेरक० रुझावु (घानु) (२) रोपवू विराज वि० उत्तम; श्रेष्ठ(२)शासक- (३)देशनिकाल कर । राजकर्ता एवं (३) पुं० क्षत्रिय (४) विरूढ वि० ऊगेलं; फूटलं (२) नीकब्रह्मांड (५) ब्रह्मानुं प्रथम संतान ळेलु; जन्मेलु (३)वधेलु (४)खीलेलं विराज पुं० गरुड (पंखीओनो राजा) (५) उपर चडेलु (६) रुझायेलं (घा) विराजित वि० प्रकाशित; प्रकाशतु(२) विरूप वि. कदरू'; बेडोळ (२) जुदा प्रगट थयेलुं के करेलु रूप के स्वभाववाळ विराट पुं० मत्स्य देशनो राजा (पांडवो विरूपक वि० कदरूपं; भयंकर तेने त्यां गुप्तवास रहेला) विरूपाक्ष पुं० शिव (त्रिलोचन) विरात्र पुं०, न० रातनो अंतभाग विरेचन न० जुलाब; रेच विराध ४ प० अपराध करवो; खोटुं विरोक पुं०, न० छिद्र; काणुं लगाडवं विरोचन पुं० सूर्य (२) चंद्र (३)अग्नि विराम पुं० अंत; थोभवू ते (२)विश्रांति (४) प्रहलादनो पुत्र ; बलिनो पिता विराव पुं० अवाज; कोलाहल विरोचनसुत पुं० बलिराजा । विरावण वि० राव-पोकार करावनाएं विरोध पुं० विरुद्धता (२) सामनो; विराविणी स्त्री० अवाज; रणकार ___ दखल (३)घेरो (४) नियंत्रण (५) द्वेष, विरिन्ध पुं० स्वर; ध्वनि शत्रुवट (६)कजियो; तकरारं Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विरोधन ४६४ विलिप् विरोषन न० विरोध; सामनो; दखल विलसित वि० प्रकाशित; चमकतुं (२) (२) घेरो (३) द्वेष; कजियो (४) देखातुं; व्यक्त (३) न० चमकवू ते असंगतता चमकारो (४) प्रागटय (५) विलास विरोधिन वि. विरोध, सामनो के दखल (६)परिणाम करनारु (२)घेरो घालनारं(३)विरुद्ध; विलंघ १० उ० ओळंगवू; अतिक्रमण असंगत (४) द्वेष - शत्रुवट राखनारु करवू (२)-तरफ ऊंचे जq (३)तजवं (५) कजियाखोर बाजुए राखवू (४) चडियाता थq; विरोपण, विरोहण न० रूझ लाववी पाछळ पाडी देवू (५)अनादर करवो ते (२) रोपवू ते विलंघन न० ओळगते; उल्लंघन विलक्ष १० उ० लक्षमा लेवं; जोवू विलंधित वि० ओळंगेलं; उल्लंघेलं (२)जु, पाडवु (३) मूंझावं (२)-ने पाछळ पाडी दीधेलु (३) विलक्ष वि० मूंझायेलुं (२) विस्मित विफळ करेलु (३) लज्जित (४) अस्वाभाविक ; विलंब १ आ० लबडवू; लटकवू(२) कृत्रिम (५) लक्ष चूकेलं (बाण) (६) नीचे नमवू - आथमवु (सूर्य-) (३) विशिष्ट लक्षण के लक्ष रहित विलंब करवो (४) अवलंबवू विलक्षण वि० विशिष्ट लक्षण विनानुं विलंब पुं० लटकवू ते (२)ढील ; धीमाश (२)बीजु; जुदु (३)विचित्र; असा विलंबन न० लटकवं ते (२) विलंब मान्य(४)अशुभ लक्षणवाळं(५)निस्तेज विलंबित वि० लटकतुं; लबडतुं (२) विलग १ प० वळ गवं [पातळं अवलंबित (३)विलंब करतुं; विलंब विलग्न वि० वळगेलं; चोंटेलु (२) कृश; थयो होय तेवू (४) धीमुं (५) न० विलज्ज ६ आ० शरमावू; लज्जित थर्बु ढील ; विलंब विलप १५० कहे; बोलवू (२) विलाप विलंबिन् वि० लटकतुं; लबडतुं (२) करवो; शोक करवो (३) नकामो ढील-विलंब करतु रुदन विलाप पुं० शोक करवो ते; कल्पांत; बडबडाट करवो विलापन न० शोक करावे तेवू कृत्य विलपन न० शोक; विलाप; आनंद विलास पुं० रमत; क्रीडा (२)शृंगार(२)नाहक बडबडाट करवो ते चेष्टा (३) सौंदर्य (४) आनंदीपj विलपनविनोद पुं० रुदन वडे शोक दूर विलासचेष्टित न० शृंगारचेष्टा; शृंगाविलपित न० शोक; आक्रंद; विलाप रिक हावभाव विलम् १ आ० दूर करवू (२) बक्षवू विलासन न० विलास; क्रीडा (३)पसंद करवू [नाश;अंत;मृत्यु विलासवती स्त्री० शृंगारिक हावभावविलय पुं० ओगळी जवू ते (२)लय; वाळी स्त्री; विलासी स्त्री विलस् १ प० प्रकाशq (२)देखावं (३) विलासिन् वि० विलासयुक्त (२) पुं० .विलास करवो; क्रीडा करवी (५) कामी पुरुष [प्रिय स्त्री (३)वेश्य गरजवं; पडघो पडवो विलासिनी स्त्री० स्त्री (२) विलास विलसत् वि० प्रकाश; चळकतुं (२) । विलिख ६५० लखवू (२)चीतर,(३) विलास करतुं (३)पडघो पडतो होय खणq (४)अंदर खोसर्व तेवू; गरजतुं [विलास विलिप् ६ प० [विलिपति] चोपडवू विलसन न० चमक-प्रकाशq ते (२) लींपवू; खरडवू Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६५ विली विवर्तन विली ४ आ० चोटवू (२)नीचे ऊतरवू; विलोप्त पुं० लूटारो । उपर बेस(३)ओगळी जवं; लय पाम विलोभन न० लोभाववते; प्रलोभन (४) लुप्त थई जq (५)९५० ओगळवू (२)प्रशंसा; खुशामद विलीन वि० चोटेल; वळगेलु (२) उपर विलोम वि० विपरीत; ऊलटुं (२) बेठेलु; उपर उतरेलु (३)ओगळी गयेलु __ अवळा क्रमन अस्तव्यस्त (४) मृत; नष्ट; लुप्त थयेलं विलोल वि० चंचळ; अस्थिर (२) विलुङ -प्रेरक० क्षुब्ध करवं; उछाळवं विलोलन न० हलावq - डखोळवू ते (२) उथलाव विलोहित वि० राता रंगर्नु विलुप् ६ प० खेंची नाखवं; तोडी विव वि० पंखी उपर सवारी करतुं नाखवू; कापी नाखवू(२)लूटी जq (३) विवक्षा स्त्री० कहेवानी इच्छा (२) बगाड (४) नष्ट करवू; अदृश्य थाय इच्छा (३) अर्थ; हेतु (४) आनातेम करवु(५)खाई जवु(६)भूसी नाखवू कानी; संशय (३)न० हेतु; अर्थ -कर्मणि० नष्ट थq; लुप्त थर्बु विवक्षित वि० कहेवा धारेलु (२) इच्छेलं विलुप्त वि० तोडी नाखेलं; भागी विवक्ष वि० कहेवानी इच्छावाळू ; कहे नाखेलं (२)झंटवी लीधेलं (३)नष्ट । वाने तत्पर थयेलं करवो विलुभ् ४ प० अस्तव्यस्त थq विवद् १ आ० विवाद करवो (२)झघडो -प्रेरक० लोभावq (२) आनंद विवदन न० तकरार; फरियाद पामे तेम करवू विवर न० काणुं; छेद (२) खाली जगा; विलुल १५० हलाव; कंपावq (२) पोलाण (३) निर्जन स्थळ (४) दोष; अस्तव्यस्त करवू [(२) अस्तव्यस्त छिद्र (५) पाताळ विलुलित वि० हालतुं ; अस्थिर;ऊछळतुं विवरण न० प्रगट करवं ते (२)खुल्लू विलंठन न० लूटवू ते करवू ते (३)व्याख्या; समजूती; टीका विलेख पुं०, विलेखा स्त्री० बाकुं; विवरप्रवेश पुं० (इच्छित प्राप्त कर खणवा खोतरवाथी पडलो खाडो वाना उपाय तरीके) ऊंडी बखोलमां विलेपन न० चोपडवू-खरडवं ते (२) प्रवेश करवो ते लेप; सुगंधी पदार्थोनो लेप विजित वि० छोडेलं; तजेलं (२) विलेपिन वि० चोटे तेव; चीकणु रहित; विनानु (३) वहेंचेलं बिलोक १० उ० जोवू; निहाळq (२) विवर्ण वि० फीकुं; रंग विनानु; निस्तेज तपास करवी निहाळवू ते(२)दर्शन (२)खराव रंगनु (३)पुं० वर्ण बहार विलोक पुं०, विलोकन न० जोवू- काढेलं; बहिष्कृत विलोकित वि० जोयेलु (२)तपासेलं विवर्त पुं० गोळ - चक्राकार फरवू ते (३)न० दृष्टि ; नजर (२) पाछा गबडवू - फरवू ते (३) विलोचन वि० विपरीत दृष्टिवाळं (२) रूपांतर; अवस्थांतर (४) भ्रम; न० आंख (३)नजर ; दृष्टि आभास (वेदांत०) विलोचनपात पुं० नजर नाखवी ते विवर्तन न० गोळ - चक्राकार फरवू ते विलोडन न० क्षुब्ध करवं ते; वलोवq (२) गबडवू ते - फरवं ते (३) ते (२) (पाणी) उछाळवू ते नीचे गबडवू - ऊतरवु ते (४) पार्छ विलोप पुं०, विलोपन न० लूटी जवु ते । गबडबू के फरवं ते (५) बदलायेली (२) नाश; लोप स्थिति; परिवर्तन Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवर्तवाद ४६६ विवेकपदवी विवर्तवाद पं० बाह्य जगत भ्रम - विवरण करवू(५)जाणकार (६) न० आभास छे, बह्म ज सत्य छे एवो निर्जन- एकांत स्थान वेदांतदर्शननो सिद्धांत विवित्सा स्त्री० जाणवानी इच्छा । विवतित वि० गोळ फरेल के फेरवेलं विविध वि० अनेक प्रकारचं ; भातभातर्नु (२) घुमावेलु (३)कापीने टुकड़ा करेलु विवृ ५, ९ उ० ढांकवू (२) उघाडवं; विवर्धन न० वृद्धि; वधारवं ते (२) . खुल्लू करवू (३)प्रगट करवू; दर्शाव कापवू ते (४)बोलq (५)विवरण करवु(६) विवलग १५० कूदq; ऊछळवू फेलावq विवश वि० परवश; असहाय; जात विवृज् १० उ० के प्रेरक० वर्जh; त्याउपर काबू विना- (२) स्वतंत्र ; ताबे गq (२)-विनानुं करवू (३) बातल न थयेलं (३) बेशुद्ध (४) मृत राखवु (४)वहेच विवस १५० परगाम के परदेशमा रहे विवत् १ आ० गोळ-चक्राकार फरवं (२) वसवाट करवो (३) २ आ० (२)गबडवु(३)बाजुए खसेडवू; वाळव कपडां बदलवां (४) पहेरवं (४) बनवु, थर्बु (५) पाछा वळव -प्रेरक० देशनिकाल कर (६) जुदां जुदां रूप धारण करवां विवस्वत पुं० सूर्य (२) आ मन्वंतरना मनु विवृत वि० खुल्लं; प्रगट (२)स्पष्ट (३) विवह १५० हांकी काढवू; दूर करवू जाहेर करेलु (४)विवरण करेलु (२) परणवं विवृतद्वार वि० उघाडा दरवाजाविवाद पुं० तकरार; झघडो; फरियाद बारणांवाळ (२) चर्चा (३) विरोध (४) आज्ञा विवृतभाव वि० खुल्ला दिलनुं विवादिन वि० झघडतुं; तकरार करतुं; विवृतम् अ० खुल्ले खुल्लं; प्रगटपणे फरियाद करनारं विवत्त वि० गोळ फरतुं; गबडतुं ; घूमतुं विवास पुं०, विवासन न० देशनिकाल विवत्ति स्त्री० गोळ फरवं ते (२)गबडवं करवू ते (२) वियोग; विच्छेद ते(३) वेगळं खसी जq ते (४)विकास विवाह पुं० परिणय; लग्न विवद्ध वि० वधेलं; मोटं थयेलं (२) विवाहदीक्षा स्त्री० लग्नविधि पुष्कळ ; घj (२)समृद्धि विवाहनेपथ्य न० लग्न माटेनो पहेरवेश विवृद्धि स्त्री० वृद्धि; वधारो; विकास विवाहित वि० परणेलं विवध १ आ० वधq (२) समृद्ध थवु(३) विविक्त (वि+विज्' तथा 'वि+ ऊंचुं जवं विच् 'नुभू० कृ०) वि० जुएं करेलु; -प्रेरक० वधारवू; विकसावq (२) अलग पाडलं (२) निर्जन; एकांत ऊंचु करवू (३) -ना निमित्ते (-३) (३) एकल (४) जुएं तारवेलु (५) अभिनंदवू निर्दोष (६) -थी मुक्त; विना (७) विवेक पुं० सारासार समजवानी-छुटा ज्ञानयुक्त [तुं; एकाकी पाडवानी बुद्धि (२)विचारणा ; तपास विविक्तसेविन् वि० एकांत स्थान इच्छ- (३) साचुं ज्ञान विविग्न वि० बीनेलं; गाभरु विवेकज्ञ वि० विवेकबुद्धिवाळं विविच् ३, ७ उ० छुटुं-जुएं करवू (२) विवेकश्वन पुं० विवेकबुद्धिवाळो माणस विवेक करवो (३)निर्णय करवो (४) विवेकपदवी स्त्री० विचारणा Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवेकपरिपंथिन् ४६७ विशृंखल विवेकपरिपंथिन् वि. विवेकशक्तिने विशारद वि० कुशळ; होशियार; -विवेकबुद्धिने रूंधनारुं प्रवीण (२) विद्वान ; डायुं (३)प्रसिद्ध विवेकविश्रांत वि०मूर्ख ; डहापण विनानुं (४)प्रगल्भ ; धृष्ट (५)पुं० बकुल वृक्ष विवेकिन वि० विवेकबुद्धिवाळू ; समजु विशाल वि० विस्तृत; मोटुं; पहोळं विवेचन न०, विवेचना स्त्री० विवेक- (२)-थी भरपूर (३) प्रख्यात विचार (२)विचारणा; चर्चा (३) विशालकुल न० खानदान कुटुंब निश्चय; निर्णय विशाला स्त्री० उज्जयिनी नगरी विवोढ़ पुं० वर(२)जमाई विशालाक्ष पुं० महादेव (२) विष्णु (३) विव्वोक पुं० जओ 'बिब्बोक' गरुड पुं० बाण विश ६ प० प्रवेशq; पेसवु (२)प्राप्त विशिख वि० शिखा - टोच विनानु(२) . थq; भागे आवq विशिष् ७५० जुदं पाडवू-तारवयु (२) विश् पुं० वैश्य (२) माणस (३)लोक वधारवू (३) चडियाता थवू (४)स्त्री० प्रजा (५) जाति; वंश --कर्मणि० जुदा हो; चडियाता होवू (६)पुत्री (७)संपत्ति विशिष्ट वि० विशेषताबाळं; असाधाविशद वि० स्वच्छ; निर्मळ (२) श्वेत रण (२) निराळ; खास (३) -थी (३)कांतिमान; सुंदर (४) स्पष्ट; प्रगट युक्त (४) उत्तम; विलक्षण (५) (५)चितारहित; प्रसन्न (६) कुशळ पुं० विष्णु (७)पुं० सफेद रंग (८) एक जातनी विशीर्ण वि० टुकडा थई गयेलं (२) गंध (९)एक जातनो स्पर्श क्षीण थयेलं; करमाई गयेलु (३) विशन न० -मां पेसवं ते गरी पडेलु(४)खर्ची के उडावी दीधेलं विशल्य वि० चिंता के मुश्केलीमाथी विशीर्णमूर्ति वि० जेनु शरीर नाश मुक्त एवं (२) कांटा के बाण विनानुं पाम्युं छे तेवू (२) पुं० कामदेव विशस् १५० कापी नाखवं । विशुद्ध वि० शुद्ध करेलु के थयेलु (२) विशसन न० वध; कतल (२) नाश निर्दोष ; पापमुक्त (३) निष्कलंक; (३) युद्ध (४) पुं० तरवार निर्मळ _ [शीलवाळं विशस्त वि० कापेलं (२) उद्धत (३) विशुद्धसत्त्व वि० पवित्र अंतःकरण के प्रशंसित;प्रसिद्ध कल्पना करवी विशुद्धि स्त्री० शुद्धि; निर्मळता; भेळविशंक १ आ० शंका करवी; बीq (२) सेळरहित होवापणुं (२) खरापणुं; विशंक वि० डर विनानुं चोकसाई (३) भूल दूर करवी ते(४) विशंकट वि० मोटु (२) ताकातवाळं समानता विशंकम् अ० बीन्या विना विशुध् ४५० पवित्र - शुद्ध थवं विशंका स्त्री० संशय; डर -प्रेरक० शुद्ध करवू (२)शंकामांथी विशाख पुं० कार्तिकेय मुक्त करवू (३) योग्य छे एम विशाखा स्त्री. १६ में नक्षत्र (बे तारा पुरवार करवू होवाथी द्वि० व० मां वपराय छे) विशून्य वि० तद्दन खाली विशातन न० संहार करवो ते (२) विशल वि० भाला विनानुं मुक्त-छुटुं करवू ते कतल ; वध विशंखल वि० शृंखला-बंधन-नियंत्रण विशारण न० फाडवू-चीरवू ते (२) विना (२) स्वच्छंदी Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश विश -कर्मणि विशीर्यते शीर्ण थई जवू; टुकडे टुकडा थई जर्बु (२)क्षीण थई जq; करमा (३) लुप्त थई जवू विशेष वि० खास (२)पुष्कळ (३)पुं० जुदुंतारवq ते (४)तफावत; भेद (५) खास विशिष्टता; खास लक्षण (६) मांदगीमां सुधारो (७) अवयव (८) एक प्रकार; एक जात (समासने अंते; उदा० 'वृक्षविशेषः') (९) उत्तम ; श्रेष्ठ (समासने अंते; उदा. 'अतिथिविशेषः') विशेषक वि० जुदुं पाडनाएं (२)मर्यादित करनारं (३)पुं०, न० विशेष लक्षण, चिह्न के गुण (४) केसर-चंदन वगेरेथी करेलं तिलक (५)सुगंधी द्रव्योथी मों अने शरीर उपर चित्ररेखाओ करवी ते (६) न० श्लोकनी त्रण कडीओनो समुदाय (जेमां व्याकरणनी रीते एक ज वाक्य थतुं होय छे) विशेषकरण न० सुधारो विशेषज्ञ वि० विद्वान ; डाहयु(२)कदर दान; परख करनारं विशेषण वि० विशेष बतावनाएं; जुएं पाडनाएं (२) न० तफावत; भेद; विशिष्ट लक्षण (३) विशेष्यनो गुण बतावनार शब्द (व्या०) (४) -चडियाता थर्बु ते । विशेषणपद न० खिताब; इलकाब। विशेषतस् अ० खास करीने (२)-ना प्रमाणमां (३) व्यक्तिगत; जुदं जुएं विशेषविद् वि० जुओ विशेषज्ञ' विशेषित वि० जुदुं-अलग पडेलु (२) व्याख्या- मर्यादा करेलु(३)कोई गुण थी विशिष्ट (४)उत्तम ; श्रेष्ठ विशेष्य वि. विशिष्ट करवा योग्य (२) उत्तम ; श्रेष्ठ (३)न० विशेषणथी जेनो गुण बतावातो होय ते शब्द (व्या०) विशोक वि० शोक विना- (२) पुं० शोकरहित थर्बु ते (३)अशोकवृक्ष विश्रांतकथ विशोषन न० साफ करी नाखवू ते; निर्मूळ कर, ते (२) पाप, अपूर्णता वगेरे दूर करवां ते (३)प्रायश्चित्त विश्रण १० उ० आपी देवू विश्रब्ध ('वि+श्रंभ ' नुं भू० कृ०)वि० विश्वासु;-मां विश्वासवाळु (२)डर विनानु; खातरीवाळं (३) शांत; चिंतारहित (४)दृढ ; स्थिर विश्रब्धम् अ० विश्वासपूर्वक; खातरीपूर्वक हरीते ऊंघतुं विश्रब्धसुप्त वि० शांतिथी-निःशंक विनम् ४५० विश्रांति करवी; आराम करवो (२)अटक; थोभवू विश्रम, विश्रमण पुं० विसामो; विश्रांति विश्रवस् पुं० रावणनो पिता विश्रंभ १ आ० विश्वास मूकवो -प्रेरक० विश्वास ऊभो करवो; आश्वासन आप विश्रंभ पुं० खातरी; विश्वास (२) रहस्य; खानगी वात (३) विसामो; विश्रांति (४)प्रणयकलह विधभकथा स्त्री० खानगी के परिचितो वच्चेनी वातचीत [राखतुं विश्रंभप्रवण वि० विश्वासु; विश्वास विधभभूमि पुं० विश्वासपात्र माणस विधभालाप पुं० जुओ ‘विश्रंभकथा' विभिन् वि० विश्वास करतुं (२) विश्वासपात्र विश्राणन न० दान; बक्षिस विश्राणित (विश्रण' नुं भू० कृ०) वि० बक्षेलु; दानमां आपेलु विश्राम पुं० थोभq-अटक, ते (२) विसामो; आराम (३) शांति; स्वस्थता (४) विश्रांतिस्थान विश्राव पुं० ख्याति; प्रसिद्धि (२) अवाज; ध्वनि विश्रांत वि० थोभेलु; अटकेलं (२) विश्रांति पामेल (३)शांत; स्वस्थ विश्रांतकथ वि० गुं; चूप Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधाति ४६९ विषद विधाति स्त्री० आराम; विसामो (२) विश्वसृज् पुं० ब्रह्मा (२) मयासुर थोभवू- अटकवू ते. विश्वस्त (विश्वस्' नुं भू० कृ०)-मां विश्रुत वि० प्रख्यात; प्रसिद्ध (२) विश्वास मूक्यो होय तेवु (२)विश्वास न० प्रसिद्धि; ख्याति राखतुं (३) नीडर; खातरीवाळू (४) विधुति स्त्री० ख्याति; प्रसिद्धि विश्वास मूकवा योग्य विश्लथ वि० शिथिल'; ढीलुं (२) विश्वस्ता स्त्री० विधवा सुस्त; नमी गयेलं विश्वंभर वि० बधाने पोषनारु (२) विश्लिष् ४ ५० छूटा पडवू(२)छूटी के पुं० परमात्मा (३)विष्णु (४) अग्नि तूटी जQ [करवू विश्वंभरा स्त्री पृथ्वी [ब्रह्मा -प्रेरक० छूटा पाडवू (२)-रहित विश्वात्मन् पुं० परमात्मा(२)शंकर(३) विश्लिष्ट वि० छूटुं पडेलु के पाडेलु विश्वाधार पुं० जगतनो आधार (२) ढीलुं करेलु (३) ऊतरी गयेलं विश्वामित्र पुं० एक प्रसिद्ध मुनि (अवयव) विश्वास पुं० भरोसो; श्रद्धा; पतीज विश्लेष पुं० वियोग विश्वासघात पुं० विश्वासनो भंग विश्लेषित वि० छूटुं पडेलु - पाडेलु करवो ते (२) फाडी-चोरी नाखेलं विश्वासपात्र न. रासापात्र माणस विश्व वि० आखं; समग्र (२) दरेक; विश्वासभंग पुं० जुओ 'विश्वासघात' तमाम (३)व्यापक (४) पुं० ब०व० विश्वासभूमि पुं० विश्वासपात्र माणस अमुक वर्गना दश देवो (५) पुं० विश्वेदेवाः पुं० ब० व० अमुक दश जीवात्मा (५) न० समग्र जगत देवोनो वर्ग विश्वकर्मन् पुं० देवोनो शिल्पी (२) सूर्य विष स्त्री० विष्टा (२) कन्या विश्वजनीन, विश्वजनीय, विश्वजन्य विष न० झेर (२) पाणी (३) कमळवि० समग्र मानव जात माटे हितकर तंतु (४) झेरी हथियार विश्वजित पुं० एक यज्ञ विषकुंभ पुं० झेर भरेलो घडो :: विश्वतस् अ० चोतरफ; बधी बाजुथी विषकृत वि० झेर भेळवेलुं .. . विश्वतोमुख वि० दरेक बाजुए मुखवाळं विषक्त ('विषंज्' नुं भू० कृ०) बराविश्वपा पुं० बधानो रक्षण करनारो बर चोटाडेलु (२) बराबर वळगेले (२) अग्नि (३) सूर्य (४) चंद्र (३) लटकावेलु (४) उत्पन्न करेलु विश्वमूर्ति वि० बधां रूपो धरनारूं; (५) रोकायेलं; लीन सर्वव्यापी विषघ्न वि० झेरनो नाश करनाएं; विश्ववेदस् वि० सर्वज्ञ (२) ऋषि एवं झरनी असर दूर करनारु । विश्वव्यापक, विश्वव्यापिन् वि० सर्व- विषण्ण ('विषद्' नुं भू० कृ०) वि० व्यापक एवं उदास; खिन्न ; हताश विश्वस् २ प० विश्वास राखवो के मूकवो। विषण्णमुख वि० खिन्न मुखवाळू . . (२) नचिंत के डर विनाना थy विषण्णरूप वि० खिन्न; उदास -प्रेरक० विश्वास ऊभो करवो विषद् १ प० [विषीदति] खिन्न थq; विश्वसनीय वि० विश्वास करवा हताश थवू; दुःखित थर्बु (२) डर लायक (२) विश्वास ऊभो करे ते विषद पुं० मेघ सं.ग.-३० Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० विषदिग्ध विषदिग्ध वि० झेरथी खरडेलु; झेरी विषद्रुम पुं० झेरी वृक्ष विषधर, विषभुजंग, विषभृत् पुं० साप विषम वि० खरबचईं; खाडा टेक रावाळं (२) अनियमित; असमान (३) एकी (संख्या) (४) मुश्केल (५) दुर्गम (६) वांकु (७) त्रासजनक (८) भयंकर (९) प्रतिकूळ (१०) एकांतरं (११) पुं० एक ताल (संगीत०) (१२) न० खाडा टेकरावाळं स्थान (१३) दुर्गम स्थळ (१५) संकट; मुश्केली विषमज्वर पुं० आंतरे आवतो ताव विषमपत्र पुं० सप्तपर्ण वृक्ष विषमशर पुं० जुओ 'विषमेषु' विषमशील वि० चीडियु (२) पुं० विक्रमादित्य राजा विषमायुध पुं० कामदेव (पांच बाणो वाळो होवाथी) विषमावतार पुं० खाडा-टेकरावाळी जमीन उपर ऊतरवू ते (२) साहस करवं ते विषमित वि० वांकु; सरखं नहि तेवू (२) भवां चडावेलु (३) दुर्गम बनावेलं विषमीभ १ ५० विषम बनवू (२) ठोकर खावी; आमतेम पडवू विषमुच् पुं० साप, विषमेक्षण पुं० शिव (त्रण लोचनवाळा) विषमेषु पुं० कामदेव (पांच बाणवाळो) विषय पुं० दरेक इंद्रियनो ग्राह्य के भोग्य पदार्थ (२) लौकिक वस्तु के व्यवहार (३)सांसारिक भोग; कामभोग (४) पदार्थ (५) लक्ष; ध्येय (६) गोचर; क्षेत्र (७) वस्तु; प्रकरण; मुद्दो; बाबत (८) स्थान स्थळ (९) प्रदेश; देश; राज्य (१०) आश्रयस्थान विषयक वि० कोई बाबतने लगतुं (२) विषय के वस्तुवाळं; ते वस्तुने चर्चतुं विषाणी विषयग्राम पुं० भोगविषयोनो समूह विषयपराङ्मुख वि० लौकिक व्यव हारो तरफ वैराग्यवाळं। विषयस्नेह पुं० विषयोमा आसक्ति विषयाधिकृत पुं० प्रदेश के प्रांतनो सूबो विषयाधिपति पुं० राजा . विषयाभिरति स्त्री०,विषयाभिलाष पुं० भोगविषयमां आसक्ति विषयिन् वि० विषयभोगने लगतुं (२) पुं० विषयासक्त पुरुष (३) कामदेव (४) राजा (५) विषयोनुं ज्ञान करनारो-जीवात्मा विषयषिन् वि० विषयासक्त विषयोपसेवा स्त्री० विषयासक्ति विषरस पुं० झेरी प्रवाही विषवृक्ष पुं० झेरी वृक्ष विषवेग पुं० झेरनुं पसरवू ते; झेरनी असर विषवैद्य पुं० मंत्रथी झेर उतारनारो (२) झरनी दवा वेचनारो विषव्यवस्था स्त्री० झेर देवायुं होय तेवी अवस्था (२) झेरनी असर विषह ('वि+सह') १ आ० सहन करवू (२)सामनो करवो; टकी रहेQ (३) शक्तिमान थq विषहृदय वि० झेरी हृदयवाळं ; झेरीलं विषह्य वि० सहन करी शकाय तेवू (२) सामनोकरी शकाय-जीती शकाय तेQ विषंज १ प० [विषजति चोटाडवू; वळगाडवू; लटकाव विषाक्त वि. विष चोपडेलं ; झेरी विषाण पुं०, न० शिंगडु (२) हाथी के सूवरनो दंतूशळ (३) फूंकीने वगाडवानुं शिंगडाना आकार- वाद्य (४)शिखर ; टोच विषाणिन् वि० मोटा दंतूशळ के शिंगडावाळं (२) पुं० तेवू प्राणी (३)हाथी (४)आखलो विषाणी स्त्री० जुओ "विषाण' Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषाद विषाद पुं० खेद; दिलगीरी (२) हताशा; निराशा (३) ग्लानि ; सुस्ती विषादिन् वि० हताश; उदास; खिन्न विषुव न० मेष अने तुलामां संक्रांति (ज्यारे दिवसरात सरखां होय छे) विषुवसमय पुं० संक्रांतिनो काळ विचिका स्त्री० कोगळियु; 'कॉलेरा' विष्क पुं० २० वर्षनी उमरनो हाथी विष्कं ५, ९ प० दखल करवी (२) टेको आपवो विष्कंभ पुं० दरवाजानो आगळो (२) विस्तार; लंबाई (३)जओ 'विष्कंभक' विष्कंभक पुं० बे अंको वच्चे आवतो भाग, जेमा हलकां के मध्यम पात्रो नाटकनी वातोने अने वस्तुना विभागोने वच्चे शं बनी गयुं ते टूकमां कही बतावीने जोडी आपे छे (नाटय०) (२)विस्तार; लंबाई विष्किर पुं० विखेरवु ते; खोतर - खणवू ते (२) कूकडो वगेरे पंखी विष्टप पुं०, न० लोक ; भुवन विष्टपहारिन् वि० जगतने खुश करनारं विष्टब्ध ('विष्टंभ्' न भू० कृ०) वि० टेकवेलं; स्थिर करेलु (२) रोले३) जड-अक्कड बनेलं . विष्टर पुं० आसन; बेठक (२) कुशदाभनी पूळी (३) कुशन बनावेलं तपस्वीन आसन विष्टरभाज वि० बेठक उपर बेठेलं विष्टरश्रवस् पुं० विष्णु ; कृष्ण विष्टंभ ('वि+ स्तंभ') ५, ९ प० रोकवू; अटकावq (२) टेको लेवो (३) टेको आपवो (४) व्यापq (५) निश्चित - स्थिर करवं -प्रेरक० रुकावट करवी (२)जडअक्कड बनाव विष्टंभ पुं० स्थिर - दृढ करवू ते (२) नडतर; विघ्न (३) लकवो (४)टेको (५) सहन करवू ते; सामनो करवो ते विसर्प विष्टा स्त्री० विष्ठा; मळ विष्टि स्त्री० धंधो; उद्योग (२) वेतन (३) वेठ (४) मोकलq ते मालिक विष्टिकर पं० वेठियाओनो-गलामोनो विष्टिकर्मान्तिक पुं० वेठियो विष्ठा स्त्री० मळ; विष्टा (२)पेट विष्ठित वि० स्थित (२) हाजर के नजीक होय तेवू विष्णु पुं० ब्रह्मा-विष्णु-महेश्वर ए त्रिमूर्तिमांना बीजा देव, जे जगतनुं पालन करे छे तथा अवतारो ले छे विष्णुगुप्त पुं० चाणक्य [क्षीरसागर विष्णुपद न० आकाश; अंतरिक्ष (२) विष्णुपदी स्त्री० गंगा नदी विष्फार पुं० धनुषनो टंकारव विष्यद् १ आ० वहे; टपकवू विष्यंद पुं० वहेवू - टपकवू ते विष्वक अ० बधे ठेकाणे; बधी बाजुए विष्वक्षेण, विष्वक्सेन पुं० विष्णु विष्वग्गति वि० सर्वव्यापी; दरेक विषयमा प्रवेशवाळू विष्वच वि० व्यापक विष्वद्रयच, विष्वद्रचंच वि०. बधी बाजु जतुं - पहोंचतुं; सर्वव्यापी विष्वंच वि० जुओ 'विष्वच्' विसर पुं० मोटो जथो; ढ़गलो (२) टोळं (३)फेला, ते विसर्ग पुं० छोडवू – काढवू - फेंक ते (२)वरसावq ते (३)आपी देवं ते; दान (४) विदाय आपवी ते (५) सर्जन; सृष्टि (६) त्याग (७) मळत्याग करवो ते (८) सृष्टि-व्यापार विसर्जन न० काढq - फेंक - वरसावq ते (२) आपी देवू ते; दान (३) मळत्याग करवो ते (४) त्याग करवो ते (५) विदाय आपवी ते (६) सर्जन विसर्प पुं० सरकवू - खसवू ते (२) आमतेम फरवु ते (३) फेला, ते Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विपिन ४७२ विस्फुर्ष (४) कोई पण कार्यनो आणधार्यों के विसृमर वि० सरकतुं धीमेथी खसतुं न इच्छेलो अंत विसृष्ट ('विसृज्'- भू० कृ०) वि० विसपिन् वि० सरकतुं; खसतुं (२) छोडेलु- काढेलु- फेंकेलं (२)सर्जेलं भटकतुं; फरतुं (३) वधतुं; फेलातुं (३) त्यागेलं (४) मोकलेलं (५) विसंकट वि० भयंकर; बिहामणुं. विदाय करेलु (६) आपेलं विसंकुल वि० गाभरु- व्याकुल नहि विस्तर पुं० फेलावो; विस्तार (२) तेवू; स्वस्थ बारीक विगतो; विगतवार वर्णन विसं वि० मूर्छित (२) भ्रांत (३) पुष्कळता; जथो; संख्या (४) विसंवत् ११० विरुद्ध के विसंगत होवू बेठक; पथारी (२) वचनभंग करवो (३) छेतरवू विस्तार पुं० प्रचार; फेलावो (२) (४) खोटुं के विरुद्ध कहेवू पहोळाई; मोटाई (३) फेलायेलो -प्रेरक निष्फळ जाय तेम करवं प्रदेश (४) बारीक विगतो (२) विरुद्ध करवू (३) साबित विस्तीर्ण वि० फेलायेलु; प्रसरेलु (२) करवामां निष्फळ जवू पहोळं; मोटुं; विशाळ विसंवाद पुं० वचनभंग करवो ते; विस्तू ५ उ० विस्तारवं; फेलाववं छेतरतुं ते (२)विरुद्ध के असंगत होवू ते (२) ढांकQ (३) विखेरवु । विसंवादन न० वचनभंग करवो ते विस्तृत वि० फेलायेलं; प्रसरेलु (२) विसंवादिन वि० छेतरतुं (२) असं पहोळू; मोटुं (३) विकसेलं गत; विरुद्ध (३) जुदुं पडतुं विस्त ९ उ० जुओ 'विस्तृ विसंष्ठुल, विसंस्थुल वि० क्षुब्ध ; अस्थिर विस्था १ आ० [वितिष्ठते जुदा ऊभा (२) समान - सरखं नहि तेवू रहे, (२) रहेवू; स्थिर रहेg (३) बिसारिन् वि० फेलातुं ; वीखरातुं (२) फेलावू [टीपुं; कण सरकतुं (३) विस्तृत शोक विस्पंद पुं० टपकवू- झरवं ते (२) विसूरण न०, विसरणा स्त्री० दुःख; विस्फर् ६ प० जुओ 'विस्फुर्' विस १ प० फेला,; प्रसर, (२) विस्फार पुं० कंप; ध्रुजारी; धडकाट - पाछा फरवं (२) धनुष्यनो टंकार (३) पहोळं विसृज् ६ प० तजी देवू (२) जवा देवू -कर, उघाडवू ते (३) मोकलवू-विदाय आपवी (४) विष्फारित वि० ध्रुजावेलं; कंपावेलं आपq (५) फेंकवू; छोड, (६) (२) धूजतुं; कंपतुं (३) टंकार करेलु उच्चारq (७) सर्जq (८) -मांथी (४) पहोळं- खुल्लुं करेलु जातने मुक्त करवी विस्फुर् ६ प० धूजq; कंप; धडविसृत वि० फेलायेलं; पथरायेलु (२) कवू (२) आमतेम खस; छूटवा लंबायेलुं (३) मोकलेलं (४) गरी प्रयत्न करवो (३) चळक; चमकवू पडेलु (५) उच्चारेलु [सरकतुं (४) धनुष्यनो टंकार करवो (५) विसृत्वर वि० फेलातुं; पथरातुं (२) (आंखो) पहोळी करवी- फाडवी विसप् १ ५० जवू; खसवू(२) चोतरफ विस्फुरित वि० धूजतुं; कंपतुं (२) ऊडवू के भटक, (३) फेलावं (४) फूलेलं; मोटुं थयेलु (३) चमकतुं पड, (५) नासी जवू विस्फु १५० जुओ विस्फू' Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विस्फुलिंग विस्फुलिंग पुं० तणखो विस्फूर्ब १५० गाजवू (२) पडधो पडवो (३) वधq (४) चमकवू; देखावू; प्रकाशवं विस्फूर्ज पुं० गाजवू ते विस्फर्जथु पुं० गर्जना; गडगडाट (२) घुघवाट करतुंधसी आवq ते (मोजांन)। (३)वीजळीनी जेम अचानक देखावं ते विस्फूजित न० गर्जना; गडगडाट (२) परिणाम (३) सपाटो (पवननो) (४) (भवां) संकोचवां ते विस्फोट पुं० फोडलो (२) फूटवू कडाको थवो ते विस्फोटक पुं० फोडलो विस्मय पुं० अचंबो; आश्चर्य; नवाई (२) गर्व (३) संदेह . . विस्मयपद न० नवाई पामवा जेवी वस्तु विस्मयंकर, विस्मयंगम वि० आश्चर्य चकित करे तेवू [चकित विस्मयाकुल,विस्मयाविष्ट वि० आश्चर्यविस्मरण न० भूली-वीसरी जq ते विस्मापन वि० नवाई पमाडे ते, विस्मि १ आ० आश्चर्य पामधू; नवाई पामवी (२) गर्व करवो [मानी विस्मित वि० आश्चर्यचकित (२) अभिविस्म १५० वीसरी जवू; भूली जq विस्मत वि० भूली जवायलं विस्मति स्त्री विस्मरण; भूली जq ते विस्मेर वि० आश्चर्यचकित वित्र वि० –नी गंधवाळं (२) न० काचा मांसनी दुर्गंध वित्रगंध, विस्रगषि, विस्रगषिन् वि० काचा मांसनी दुर्गधवाळू विस्रब्ध वि० जुओ'विश्रब्ध' [विना विसन्धम् अ० विश्वासपूर्वक; संकोच विवव, वित्राव पुं० झरवू- टपकवू ते वित्रस्, विलसा स्त्री० क्षीणता; क्षय वित्रस्त वि० ढीलं; अशक्त (२) छूटी गयेलं बिहा विवंभ पुं० जुओ 'वित्रंभ' । विवस् १ आ. सरी पडवू; ढीलु थई जर्बु विलंसन वि० नीचे गरी पडे तेम करत (२) ढीलं करतुं; छोडी नाखतुं (३) न० गरी पडवू ते (४) ढीलं करवु के छोडी नाखवू ते विस्नु १५० टपकवू; झरवु (२)पीगळी जवू; ओगळी जवू विस्वन १ प० गर्जq; चीस पाडवी विस्वर वि० बेसूरु (२) अवाज विनानुं विहग पुं० आकाशगामी एवं ते (२)पंखी (३) बाण (४) मेघ विहत वि० पूरेपूरु हणेलं (२) ईजा पामेलु (३)सामनो के रुकावट करायेलं विहति स्त्री० हणवूते (२)निष्फळता; पराजय (३) हताशा; अनादर विहन् २ ५० हणवू; वध करवो; नाबूद करवू (२) सखत प्रहार करवो -मारवु (३) विघ्न करवू (४) ना पाडवी; नकारq (५) निराश कर, (६) छूटुं पाडवू . विहर पुं० लई जq ते (२) छूटुं पाडवू ते (३)बदलवू ते (४) विहार; क्रीडा विहरण न० हरण कर ते (२) फरवू ते; चंक्रमण (३) विहार; क्रीडा. विहर्त पुं० भटकनारो (२) लूटारु विहस १५० धीमेथी हसवू; स्मित करवू (२) हसी काढवू; मजाकमा उडाव विहसित न० स्मित; धीमुं हास्य विहस्त वि० हाथ विनानु (२) मूंझायेलु; गाभरुं; व्याकुळ (३) असमर्थ; अशक्तिमान विहंग पुं० पक्षी (२) बाण (३) मेघ विहंगम वि० आकाशमां फरतुं (२) पुं० पंखी (३) सूर्य विहंगमा, विहंगमिका, विहंगिका स्त्री० कावडनो दांडो . विहा ३ प० तजवू Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहाय ४७४ विहाय अ० छोडीने; तजीने (२) छतां (३)-नो अपवाद करीने (४) -थी वधु होय तेम [पंखी विहायस् पुं०, न० आकाश (२) पुं० विहायस पुं० आकाश विहार पुं० लई जर्बु-हरी जq ते (२) भटकवू ते; फरवं ते; चंक्रमण (३) क्रीडा, खेल; रमत (४) (हाथ - पग इ० )हलावq ते; फेरवq ते (६) बगीचो; उपवन (६) जैन के बौद्ध मंदिर के मठ (७) बिहार देश (८) (यज्ञ करनार) यजमान- घर . विहारदासी स्त्री० भिक्षुणी विहारदेश विहारभूमि पुं० (ढोरने) चरवा, बीड; चरो विहारवत् वि० -नो आनंद लेतुं विहारिन् वि० विहार-क्रीडा करतुं; : आनंद करतुं (२) वधतुं (३) सुंदर विहित ('वि+धा' न भू० कृ०) वि० करेलु; आचरेलु (२) गोठवेलं; । नियत (३) आज्ञा करेलु (४) मूकेलं (५) न० आज्ञा; विधान विहिति स्त्री० आचरण; कृत्य (२) - गोठवणी विहीन वि० तजायेलं (२) विनानुं; रहित (३) हीन; हलकट विह १५० हरी जq; लई जq (२) दूर करवू; नाबूद करवू (३) पडवा देवू (आंसु) (४) व्यतीत करवू (समय) (५) आनंद करवो; क्रीडा __ करवी (६) रहे, विहृत वि० विहार कर्यो होय तेवं (२)न० विहार; क्रीडा (३)चंक्रमण ब्रिहृति स्त्री० दूर करवू - लई जर्बु ते (२) विहार; क्रीडा (३) विस्तार विहेठक पुं० हानि करनारो (२)निंदक विहेल -प्रेरक० आ० पजवq विह्वल १५० हालवू; कंपq.. बीत विह्वल वि० क्षुब्ध; व्याकुळ (२) गाभरु (३) पीडित विद वि० मेळवनाएं; पामनाएं (२) पुं० दिवस- एक खास मुहूर्त विध्य पुं० एक पर्वत विध्यवासिनी स्त्री० दुर्गानुं एक नाम विशति स्त्री० वीस (संख्या) वी (वि+इ) २ ५० चाल्या जवू; दूर थर्बु (२) व्यय - फेरफार थवो (३) खर्च कर वीकाश पुं० प्रकाश; तेज; कांति वीश् १ आ० जोवू; निहाळवू (२) गणवू; मानवं वीक्षा स्त्री० -तरफ जोवं ते (२) तपास (३) ज्ञानशक्ति (४) बेहोशी वीक्षण न० आंख वीक्षणा स्त्री० दृष्टि ; नजर (२) तपास . वीक्षित न० दृष्टि; नजर वीचि पुं०, स्त्री० तरंग; मोजु (२) फुरसद (३) आनंद (४) चंचळता वीचिक्षोभ पुं० मोजांओनुं ऊछळवू ते वीची स्त्री० मोजु; तरंग वीज १ आ० जवू (२) १० उ० पंखा थी पवन नाखवो (३) पंपाळवू वीजन न० पंखो नांखवो ते (२) पंखो वीटा स्त्री० गिल्ली दंडो(२)तप माटे मोमां रखातो धातु के पथ्थरनो गोळो वोटि, वोटिका, वीटी स्त्री० पाननी बीडी (२) चोळीनी गांठ वीणा स्त्री० एक तंतुवाद्य वीणापाणि पुं० नारद वीणावाद पुं० वीणा वगाडनारो वीणिन् वि० वीणा वगाडतुं वीत ('वि + इ'न भू० कृ०) वि० मयेलं ; विदाय थयेलु (२)जवा दीधेलु; छूटुं करेलु (३) बाद राखेल (४) -विनानु; -रहित (मोटे भागे समासमां उदा० 'वीतशंक') (५) Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७५ वीतभय पहेरेलु (६) न० (हाथीने) अंकुश भोंकवं ते वोतभय वि० निर्भय; भयरहित - वीतराग वि० आसक्ति के तृष्णा विनानुं (२) रंग विनानुं वीतसूत्र न० जनोई ; उपवीत वीति पुं० घोडो (२) स्त्री० जq ते (३) उत्पत्ति (४) भोग; भोजन (५) कांति; तेज (६) निवृत्ति; अंत वीथि स्त्री० रस्तो; मार्ग (२) पंक्ति (३) बजार; दुकान (४) घोडाने केळववानुं मेदान वीथिका स्त्री० मार्ग; रस्तो (२)चित्रो दोरेली भीत; कागळनो वींटो, जेना उपर चित्रो दोर्यां होय . वीथी स्त्री० जुओ ‘वीथि' [वेलु वीयीकृत वि० पंक्ति के ढगलामा गोठवीनाह पु० कूवानुं ढांकण के मथाळू वोप्सा स्त्री० व्याप्ति (२) पुनरुक्ति वीर वि० शूरवीर; बलिष्ठ (२) उत्तम; श्रेष्ठ (३) पुं० पराक्रमी योद्धो (२) वीररस (३) नट (४) पुत्र (५) पति (६) यज्ञनो अग्नि बीरण न० सुगंधी वाळो वीरपट्टिका स्त्री० कपाळ उपर पुरुषो वडे पहेरातो सोनानो पटो बीरपान न० सैनिको युद्ध पहेलां के पछी जे स्फूर्तिदायक पीणुं पीए छे ते वीरलोक पुं० इंद्रनुं स्वर्ग (वीर लोको पामे छे ते) होय तेवी स्त्री वीरवती स्त्री० पति अने पुत्र जीवता वीरस्थान न० वीरामन (२) स्वर्ग । वीरहन पुं० अग्निहोत्र न करनार ब्राह्मण (२) बालहत्या करनारो वीरायते आ० (वीरनी पेठे पराक्रम करवू) वीराशंसन न० रणभूमि वीरासन न० योगर्नु एक आसन (२) एक ढींचण टेकवीने बेसवू ते वीरुध् स्त्री० लता; फेलाती वेल वीरुष पुं० वृक्ष वीरुधा स्त्री० जुओ 'वीरुध्' वीर्य न० बळ; ताकात (२) शुक्रधातु (३) तेज (४) सोनुं [मेळवेलु वीर्यशुल्क वि० पराक्रम वडे खरीदेखेंवीवर्ष पुं० भार; बोजो (२)अनाजनो संचय (३) मार्ग; रस्तो (४) भार. वहेवानी जूसरी [इच्छावाळं वर्ष वि० वरवानी - पसंद करवानी वृ १५० ९ उ० पसंद करवू (२) वरदान मागवू (३) लग्न माटे पसंद करवू (४) मागवू; याचईं (५) ढांकद् (६) घेरवु (७) निवारवू (८) १० उ० पसंद करवू (९) लग्न माटे पसंद करवू (१०) याचवू वृक पुं० वरु वृकोदर पुं० भीमसेन वृक्ष पु० झाड वृक्षक पुं० नानुं झाड (२) झाड वृक्षतक्षक पुं० झाड कापनारो वृक्षांध्रि पुं० वृक्ष- मूळ व २ आ० तजq; छांडq (२) ७ प० तजवू (३) पसंद करवू (४) प्रायश्चित्त करवू (५) हरी जवू; लई लेवं (६) १५०, १० उ० तजवू (७) बाद राखवू; छांड, वजिन वि० वांकुं; वळेलं (२) दुष्ट'; पापी (३) पुं० वाळ (४)दुष्ट माणस (५) न० पाप (६) दुःख ; आपत्ति (आ अर्थमां पुं० पण) वृत् ४ आ० पसंद करवू; गमवू (२) वहेंचवू (३) १० उ० प्रकाशवू वृत् १ आ० होवू; रहेवू (२) बनवू; यद् (३) प्रवर्तमान थव (४) निर्वाह थवो (५) घूमवू; फरवु (६) लवलीन थर्बु (७) वर्तन राखq (८) अनुसर, (९) अर्थ थवो - होवो (१०) परिणाम लाव Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृध ४७६ -प्रेरक० घुमावq (२)आचरवु (३) वर्णन करवानी शैली (कौशिकी, निर्वाह करवो (४) वर्णवी बताव, सात्वतो, आरभटी अने भारती) (५) टपकावq (आंसु) (१३) शब्दनी अर्थ सूचवनारी शक्ति वृत ('वृ' न भू० कृ०) वि० वरेखें; (अभिधा, लक्षणा, व्यंजना) पसंद करेलु (२) ढांकेलं; छुपावेलु वृत्तिचक्र न० परस्पर वर्तावनी परि(३) वीटळायेलं; घेरावेलु । पाटी; एक बीजा साथेनुं वर्तन वृति स्त्री० पसंद करवू ते (२) छुपा- वृत्तिभंग पुं० आजीविकानो अभाव वq ते (३) याचवू ते (४) वाड वृत्तिभाज वि० होमादि रोजिदा व्यापार वृत्त ('वृत्' न भू० कृ०) वि० थयेलं; के पुण्य-पाप आदि प्रवृत्ति करनाएं बनेलं; अस्तित्वमा आवेलु (२)पूरुं वृत्तिवैकल्य न० जओ 'वत्तिभंग' थयेलु (३) आचरेलु (४)व्यतीत; वृत्र पुं० इंद्रे मारेलो एक राक्षस (अंधभूत (५) गोळ आकारन (६) मृत कारन मूर्त रूप) (२)वादळ ; मेघ (७) दृढ ; स्थिर (८) ढांकेलं (९) वृत्रशत्रु, वृत्रहन पुं० इंद्र न० घटना; बनाव (१) अहेवाल; वृत्वन् पुं. आकाश वृत्तांत; समाचार (११)धंधो; रोज वृथा अ० फोगट; व्यर्थ; नाहक; गार (१२) वर्तन; आचरण (१३) अघटितपणे ; मूर्खताथी ; खोटी रीते सद्वर्तन (१४) रूढि; परंपरा (१५) वृथाकार पुं० मिथ्या- खाली देखाव; वर्तुळ (१६) छंद वास्तविक नहीं पण आभासरूप एवं वृत्तचूड (-ल), वृत्तचौल वि० चूडा यथामति वि० मिथ्या बुद्धिवाळु; मूर्व करण - वाळ उतारवानो संस्कार थयो वृद्ध ('वृध्' नुं भू० कृ०)वि० वधेलु; होय तेवू मोटु थयेलु (२) घरटुं (३) वर्धा आ कार गयेल के मोट थयेलं (समासने अंते वृत्तवत् वि० चारित्रवान (२) गोळ उदा० 'वयोवृद्ध'; 'ज्ञानवृद्ध') (४) वृत्तशस्त्र वि० शस्त्रविद्यामां पारंगत एवं वृत्तसमाप्तिलिपि स्त्री० हस्तप्रतने अंते मोटं (५) भेगं थयेलं (६) डायु; समजणुं (७) पुं० घरडो माणस (८) मुकाती नागरी 'छ' जेवी गोळ आदरपात्र माणस . आकृतिओ होय तेवं गोळ वृद्धयुवति स्त्री० कुट्टणी (२) दायण वृत्तानुपूर्व वि० धीमे धीमे सांकडं धतुं (प्रसूति करावनारी) वृत्तानुवतिन् वि० आज्ञापालक वृद्धश्रवस् पुं० इंद्र वृत्तांत पुं० घटना ; बीना (२) समाचार वृद्धि स्त्री० वधवते; विकास'; वधारो (३)अहेवाल (२) चंद्रनी कळानुं वय ते (३) वृत्ति स्त्री० अस्तित्व (२) अमुक समृद्धि (४) उन्नति (५) व्याज (६) स्थितिमा होg - रहे ते ; स्थिति (३) नफो (७) कापी नाखवू ते (८) पीडा क्रिया; गति (४) वर्तन (५)व्यव- वृद्धिमत् वि० वृद्धि पामत (२)समद्ध साय ; धंधो (६)जीवनयात्रा; निर्वाह वृध १ आ० वधq; वृद्धि थवी (२) (७) पगार; वेतन (८) व्यवहार; चालु रहे; टकवू (३) ऊंचु चडवू वर्ताव (९)विवरण; व्याख्या (१०) (४) ('दिष्ट्या ' माथे) अभिनंदनने गोळ फरवू ते (११) चक्रनो घेरावो पात्र थq (५) १० उ० बोलवू (६) (१२) भिन्न रसोमा उपयोगी मानेली प्रकाश Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृश्चिक वृश्चिक पुं० वींछी |र्थ्यवान थर्बु वृष १५० वरसवं (२) १० आ० सामवृष पुं० सांढ; आखलो (२) दरेक वर्ग- मुख्य ते (समासने अंते; उदा० 'मुनिवृष') (३) इंद्र (४) पुण्य (५) कोई पण नर जानवर (६)उंदर वषण पुं० अंडकोष वृषदर्भ वि० इंद्रनो गर्व हरनारं वृषदंश, वृषदंशक पुं० बिलाडो वृषध्वज पुं० शिव वषन् पुं० आखलो; सांढ (२) कोई पण वर्गनुं श्रेष्ठ ते (३) इंद्र वृषभ पुं० आखलो (२) कोई पण नर जानवर (३) कोई पण वर्गनुं श्रेष्ठ ते (समासने अंते; उदा. 'द्विजवृषभ') वृषभध्वज पुं० शिव वृषभस्कंध वि० पहोळा खभावाळं। वषल पुं० शूद्र; बहिष्कृत माणस (२) चंद्रगुप्त मौर्य वषली स्त्री० शूद्रा वृषलीपति पुं० शूद्रानो पति वृषसेन पुं० कर्ण वाळं वृषस्कंध वि० सांढ जेवा पहोळा खभावषस्यंती स्त्री० पुरुष-समागमनी इच्छावाळी स्त्री वृषाकपि पुं० शिव (२) विष्णु (३) इंद्र (४) अग्नि (५) सूर्य वृषांकः पुं० शिवकुशनुं)आसन वृषी स्त्री० तपस्वी के ब्रह्मचारीनुं वष्ट ('वृष्' न भू००) वि० वरसेलं वृष्टि स्त्री० वरसवं ते; वरसाद वृष्णि वि० नास्तिक (२) क्रोधी (३) पुं० श्रीकृष्णना पूर्वजनुं नाम (४) श्रीकृष्ण (५)घेटो वृष्णिगर्भ पुं० श्रीकृष्ण वृष्णिपाल पुं० भरवाड वष्य वि० पौष्टिक; वीर्यवर्धक वृसी स्त्री० जुओ 'वृषी' वेणिका बृहत् वि० जुओ 'बृहत् बृहती स्त्री० नारदनी वीणा (२)वाणी वृहतीपति पुं० बृहस्पति वृत पुं० दी] ताक पुं० वंताक [झूम ; गुच्छो वृंद न० टोळं; समूह (२) ढग; जथो (३) वृंदा स्त्री० तुलसी (२) राधिका वृंदार पुं० देव वृंदारक वि० घणुं; मोटुं (२) उत्तम (३) मनोहर (४) आदरणीय (५) पुं० देव (६)कोई पण वर्गमां श्रेष्ठ (समासने अंते) वृंदावन न० गोकुळ नजीक- वन दिष्ठ वि० घणुं मोटुं (२) अति सुंदर ('वृंदारक' नुं श्रेष्ठतादर्शक रूप) वृंदीयस् वि० (बेमां) वधु मोटुं के सुंदर ('वृंदारक' नुं तुलनात्मक रूप) वृ ९ उ० पसंद करवू; वर, वे १ उ० वणवं (२) गूंथवं; बांधवू वेक्षण न० देखरेख राखवी ते : वेग पुं० जुस्सो (२) गति; झडप (३) क्षोभ (४) प्रवाह (५) बळ ; ताकात (६) प्रसरवं ते (जेम के झेरनु)(७) साहस; अविचारी कृत्य (८) बाणनी गति वेगतस् अ० वेगथी; उतावळथी वेगवाहिन वि० वेगथी जतं वेगसर पुं० खच्चर वेगानिल पुं० वेगथी ऊभो थयेलो वंटोळ वेगित वि० वेगवाळू करेलु (२) वेग बान (३) क्षुब्ध [वृद्धिंगत वेजित वि० गाभरुं; व्याकुळ (२) वेणा स्त्री० एक नदी (कृष्णाने मळे छे) वेणि स्त्री० वाळनो गूंथेलो चोटलो (२)शणगार वगर एक ज जूडामां वाळ गूंथी पीठ उपर लटकता राखे ते (पतिवियोगमा) (३)प्रवाह (४) बे के वधु नदीओनो संगम .. वेणिका स्त्री० वेणी (२) चालु प्रवाह Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ वेणिबंध वेणिबंध पुं० वाळनो गूंथेलो चोटलो वेदमातृ स्त्री० गायत्रीमंत्र (२) सरवेणिसंहार पुं० छूटा वाळने वेणीमां स्वती, सावित्री अने गायत्री बांधवा ते वेदवाद पु० कर्मकांड वेणी स्त्री० जुओ 'वेणि' वेदविद्वस् वि० वेद जाणनाएं वेणु पुं० वांस (२) नेतर; बरु (३) वेदव्यास पुं० (वेदोने गोठवनार) वांसळी (४) पताका व्यासमुनि वेणुक पुं० वांसळी (२) वासळी वगा- वेदस् न० धन; मिलकत डनारो (३) न० वांसनो परोणो वेदांग न० वेदनां छ अंगो (शिक्षा, वेतन न० पगार; रोजी कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, वेतस पुं० नेतर; बरु ज्योतिष) -मान दरेक वेतसगह न० नेतरनो बनेलो मंडप वेदांत पुं० हिंदु तत्त्वज्ञानना छ दर्शनोवेतसवृत्ति वि० नेतरनी पेठे वळी ___मांनुं छेल्लु दर्शन; उत्तरमीमांसा - नमी जतुं वेदि स्त्री० यज्ञ माटेनो कुंड (२)वच्चेथी वेतसी स्त्री० नेतर; बरु सांकड़ो एवो अमुक आकारनो कुंड वेतंड पुं० हाथी (जेथी स्त्रीनी कमर तेनी साथे बेताल पुं० एक जात- भूत; मडदामां सरखावाय छे) (३) मंदिर के पेठेलुं भूत (२) द्वारपाळ महेलना आंगणानो चोतरो (४) वेतालसाधन न० वेताळने साधी तेनी ऊंचु आसन (५) मुद्रा; महोर मदद मेळववी ते [ मेळवनारो । वेदिका स्त्री० यज्ञकुंड (२)जुओ 'वेदि' वेतृ पुं० ज्ञाता (२) ऋषि (३)पति (४) ___ अर्थ २ (३) बेठक (४) आंगणानी वेत्र पुं०, न० नेतर; बरु; वांस (२) वच्चे आवेलो छाजवाळो चोतरो दंडो (३) वृत्रासुर [चोकीदार (५)मंडप थियेली) वेत्रधर, वेत्रधारक पुं० छडीदार; वेदिजा स्त्री० द्रौपदी (यज्ञकुंडमां उत्पन्न वेत्रयष्टि, वेत्रलता स्त्री० नेतरनो दंड वेदित वि० जणावेल वेत्रवती स्त्री० एक नदी (आजे जेने वेदिन वि० जाणनारुं (२) परणनाएं बेटवा कहे छे) वेदी स्त्री० जुओ 'वेदि' वेत्रवल्ली स्त्री० एक जातनो सुंदर वेद्य वि० जाणवानु; जाणवा लायक वांस (जेमांथी मोती मळतुं कहेवाय छे) (२) शीखवा - समजवा योग्य (३) वेद पुं० ज्ञान (२) पवित्र ज्ञान ; हिंदु- परणाववानुं ओना प्राचीन धर्मग्रंथ (ऋग्वेद, वेध पुं० वींधवं ते (२) दर; छिद्र ; यजुर्वेद, सामवेद अने अथर्ववेद) (३) खाडो (३) ऊंडाई (खाडानी) (४) कर्मकांड; यज्ञप्रक्रिया (४) स्मृति सूर्य, ग्रह, नक्षत्र वगेरेनुं स्थळ नक्की साहित्य ('आम्नाय' ने आधारे प्रक्र्तेल) करवं ते वेददृष्ट वि० वेदोए फरमावेलु के वेधक पुं० (रत्नो) वींधनारो मान्य राखेलं वेघस् पुं० स्रष्टा (२) ब्रह्मा (३) वेदन न०, वेदना स्त्री० जाणवू ते ब्रह्मा पछीनी गौण स्रष्टा (दक्ष इ०) (२) लागणी (३) पीडा; दुःख । वेधिन वि० वींधनालं . (४) मिलकत (५) लग्न वेप १ आ० धूजवू; कंपवू Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेपथु ४७९ वैगुण्य वेपथु पुं० कंप; ध्रुजारी वैकक्ष, वैकक्षिक न०, वैकक्षिकी स्त्री० वेपन न० कंप; ध्रुजारी (२) पणछनो __ जनोई पेठे पहेरातो हार टंकार करवो ते वैकटच न० विकटता (२) मोटापर्यु वेम पुं०, वेमन् न० साळ (वणवानी) वैकर्तन पुं० कर्णनुं नाम वेला स्त्री० वेळा ; समय (२) मोसम; वैकर्तनकुल न० सूर्यवंश... तक (३) फुरसद; अवकाश (४) वैकल्पिक वि० विकल्पे थतुं के लेवातुं प्रवाह (५) दरियाकिनारो (६) (२) अनिश्चित सीमा; मर्यादा कंपवू वैकल्य न० दोष; खामी (२) अपंवेल्ल १५० जq; खसर्बु (२) हालवू; गता (३) असामर्थ्य ; अशक्ति (४) वेल्लन न०, वेल्लना स्त्री० हालवू-कंपवू व्याकुळता (५) अभाव ते (२)गबडवं ते (जमीन उपर) (३) वैकालिक वि० समीसांजने लगतुं मोजांनु ऊछळवं ते(४)जोरथी घूमडवू ते वैकिंकर पुं० मृत्यु येल्लित ('वेल्ल' न भू० कृ०) वि० वैकुंठ वि० दुर्धर्ष (२) पुं० विष्णु कंपतुं; कंपेलु (२) वांकुं (३) न० विष्णु लोक । वेश पुं० प्रवेश (२) घर; रहेठाण वैकुंठीय वि० विष्णु के वैकुंठने लगतं (३) वेश्यावाडो (४) पोशाक (५) वैकृत वि० बदलायेलं (२) विकार सोंग (६) वेश्याजन पामेलु (३) सात्त्विक (४) न वेशनारी, वेशवधू, वेशवनिता स्त्री० फेरफार; परिणाम (५) धिक्कार; वेश्या अग्नि तिरस्कार (६) स्थिति के देखावमां वेशंत, वेशांत पुं० नानुं खाबोचियु (२) थयेलो फेरफार; कद्रूपापणुं (७) वेश्मन् न० घर; निवासस्थान अनिष्टसूचक घटना(८) कपट वेश्मवास पुं० सूवानो ओरडो वैकृतविवर्त पुं० शोचनीय स्थिति वेश्या स्त्री० गणिका दुःखी अवस्था वेश्यापण पुं० वेश्याने आपवानो दर वैकृत्य न० फेरफार; परिणाम (२) वेष पुं० पोशाक; पहेरवेश . दुःखी अवस्था (३) अकुदरती बनाव वेष्ट १ आ० वींटवू; घेर (२)पहेरवं (४) वेर; धिक्कार ___-प्रेरक० वींटाळवं; घेर, वैक्रान्त न० एक जातनं रत्न वेष्टन न० वींटवू ते; वीटळावं ते (२) वैक्लव, वैक्लव्य न० व्याकुळता; गभढांकण (३) फॅटो राट; क्षोभ (२)दुःख ; विकळता वेष्टित ('वेष्ट्' नुं भू. कृ०) वि० वैखरी स्त्री० वाणीनी चोथी कोटी वींटेलं; घरेलु (२) पहेरेलं (३) - स्पष्ट उच्चारायली वाणी (२) रोकेलं; अटकावेल वाणी; बोलवानी शक्ति । वेसर पुं० खच्चर वैखानस वि० तपस्वीने लगतुं; तपवेसवार पुं० गरम मसालो स्वीए आचरवानुं (२) पुं० वानवेहत स्त्री० वंध्या गाय (२)गर्भ गळी प्रस्थ तपस्वी (३)प्रजापति- ब्रह्माना जतो होय तेवी गाय वाळ अने नखमांथी पेदा थयेल तपस्वी वै १५० सुकावू (२) सुस्त थर्बु वैगुण्य न० गुणरहितता (२) कुशळवै अ० पादपूरण, संबोधन तथा अनुनय तानो अभाव (३) गुणोमां भेद के एवा अर्थ बतावतो अव्यय विरोध होवापणुं (४) हीन होबापणुं Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैघसिक ४८० वैषस वैघसिक वि० वधेलं भोजन खानारु वत्तपाल्य वि० कुबेर संबंधी (तपस्वीओनो एक वर्ग) बंद पुं० डाह्यो माणस वैचक्षण्य न० विचक्षणता; कुशळता वैदग्ध, न०, वैदग्धी स्त्री०, वैदग्थ्य न० वैचित्य न० दुःख; खेद निपुणता; कुशळता (२) गोठवणीनी वैचित्र, वैचित्र्य न० विचित्रता (२) कुशळता(३)चतुराई ; चालाकी विविधता (३)आश्चर्य (४)विकळता वैदर्भ पुं० विदर्भ देशनो राजा (२) वैजन्य न० एकांत; निर्जनता न० संदिग्ध वाणी वैजयंत पुं० इंद्रनो महेल (२) इंद्रनो वंदर्भो स्त्री० दमयंती (२) रुक्मिणी ध्वज (३)ध्वज (४) इंद्र (३)साहित्यनी अमुक शैली (काव्य) वैजयंतिका स्त्री० धजा; पताका (२) वैदिक वि० वेदोने लगतुं; वेदविहित मोतीनो एक जातनो हार (२) पवित्र (३) पुं० वेद जाणनारो वैजयंती स्त्री० धजा; पताका (२) ब्राह्मण (४) न० वेदवाक्य हार; माळा (३)विष्णुनी माळा वैदुषी स्त्री०, वैदुष्य न० विद्वत्ता वड्र्य न० एक मणि वैदूर्य न० एक मणि वणव वि० वांस- (२) वांसनो दंड वैदेशिक वि० विदेश - परदेशन (२) पुं० परदेशी माणस (३) वांसनुं फळ के बीज वैदेश्य वि० विदेशी (२)न० परदेशीपणं बणविक पुं० वांसळी वगाडनारो वैणिक पुं० वीणा वगाडनारो वैदेह पुं० विदेहनो राजा (जनक) (२) विदेहनो वतनी (३)वेपारी (४) वैतथ्य न० खोटापणुं; जूठापणुं वैश्यनो ब्राह्मण स्त्रीथी थयेलो पुत्र वैतनिक वि० पगारथी- वेतनथी काम वैदेहाः पुं० ब० व० विदेहना लोको करनारुं (२) पुं० मजूर; नोकर वैदेही स्त्री० सीता वैतरणि (-णी) स्त्री० नरकनी एक नदी वैद्य वि० वेदो संबंधी; आध्यात्मिक वैतस वि० नेतर संबंधी (२) नेतर (२) वैदा संबंधी (३) पुं० डाह्योजेवू (बळवान सामे नमी जनारु) पारंगत माणस (४)वैदूं करनार (५) वैतस्तिक वि० वेंत लांबं (बाण) ब्राह्मणथी वैश्य स्त्रीने थयेलो पुत्र वैतंसिक पुं० पारधी; पंखी पकडनारो (६) शूद्रने वैश्य स्त्रीथी थयेलो पुत्र (२) खाटकी; मांस वेचनारो (३) वैद्यक न० वैदक; वैदं न० फांदामां नांखतुं ते वैद्युत वि० विद्युतने लगतुं (२) न० वैतान वि० यज्ञ संबंधी (२) न० वीजळीनुं तेज-प्रकाश यज्ञकर्म (३)चंदरवो [आहुति वैध वि० विधि - धाराधोरण मुजबर्नु वैतानिक वि० यज्ञ संबंधी (२) न० वैधर्म्य न० भिन्नता; विशिष्ट गुणोनो वैतान्य न० खिन्नता भेद (२) विरुद्धता (३) विरुद्ध धर्म के वैतालिक पुं० भाट; चारण; स्तुति- कर्तव्यवाळा होवापणुं (३) अधार्मिकता गानथी राजाने जगाडनारो (२) बंधव वि० चंद्र संबंधी (२)पुं० बुधग्रह जादुगर; वेताल साधनारो (३) न० वैधवेय पुं० विधवानो पुत्र ६४ कळाओमांनी एकनुं ज्ञान वैधव्य न० विधवापणुं बतृष्ण्य न० तृष्णानी शांति; तृष्णानो वैषस वि० ब्रह्माए रचेलं (२) विधि - अभाव (२)तरस छीपवी ते नसीबथी बनेलं Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैधुर्य वैधुर्य न० वियोग (२) चित्तक्षोभ वैधृत न०, वैधृति स्त्री० सूर्य अने चंद्रनो . अमुक योग ( अशुभ गणाय छे ) वैधेय वि० विधि प्रमाणेनुं ( २ ) मूर्ख (३) पुं० बेवकूफ माणस वैनतेय पुं० गरुड ( २ ) अरुण वैनत्य न० विनय; नम्रता वैनयिक वि० विनय - शिष्टाचारने लगतुं (२) शिष्टाचार प्रमाणे वर्ते तेम करना (३) पुं० रणगाडी वैनायक वि० गणेश संबंधी वैपरीत्य न० विपरीतपणुं ( २ ) असंबद्धता वैप्रतिसम वि० प्रतिस्पर्धी विनानुं वैफल्य न० विफळता; निष्फळता बोधिक पुं० पहेरेगीर ( २ ) समय जणावी जगाडनारो | शक्ति वैभव न० समृद्धि, ऐश्वर्य (२) बळ; वैभ्राज न० एक देवोद्यान वैमनस्य न० खिन्नता; खेद (२) बीमारी मातृक, वैमात्र, वैमात्रक, वैमात्रेय पुं० ओरमान भाई वैमानिक वि० दैवी विमानमां लई जवा के सवारी कर (२) पुं० देव वैमानिकी स्त्री० देवांगना वैमुख्य न० विमुखता; पाछा फरबुं ते (२) अणगमो [ करेलुं नृत्य वैमूढक न० स्त्रीना वेशमा पुरुषो are, aura न० व्यग्रता; मूंझवण ( २ ) कोई पण वस्तुमा लवलीनता - भक्ति वैयर्थ्य न० व्यर्थता; निरुपयोगीपणुं वैयवहारिक वि० रुढि प्रमाणेनुं ; सामान्य वैयाकरण पुं० व्याकरणशास्त्री वैयाख्य पुं० व्याख्या : विवरण वैयाघ्र वि० वाघनुं; वाघ संबंधी ( २ ) व्याघ्रचर्मथी ढांकेलं. वैयात्य न० निर्लज्जता; धृष्टता वैयास वि० व्यासमांथी आवेलुं वैयासकि पुं० शुकदेव ४८१ वैशस वैयासिक वि० व्यासनुं; व्यास संबंधी बैर न० वेर; शत्रुवट; द्वेष; झेर (२) शत्रुसैन्य ( ३ ) वीरता; शौर्य वैरकृत् वि० झघडाखोर ( २ ) पुं० दुश्मन वैरक्त, वैरक्त्य न० विरक्ति ( २ ) अप्रीति वैरनिर्यातन न०, वैरयातना, वैरशुद्धि स्त्री०, वैरसाधन न० वेरनी वसूलात वैरागिक, वैरागिन् पुं० वेरागी; वैरा• ग्ययुक्त एंवो ते (२) बावो; साधु वैराग्य न० सांसारिक वासनारहितपणुं (२) विरक्ति; अणगमो ( ३ ) खेद (४) रंग बदलाई के ऊडी जवो ते वैराज वि० ब्रह्मा संबंधी वराट वि० विराट संबंधी ( २ ) घा विनानुं ( ३ ) घरडुं (४) पुं० इंद्रगोप वैरानुबंधित वि० वेर ऊभुं करना वैरिन् वि० वेरी ( २ ) पुं० शत्रु (३) वीर वैरूप्य न० कुरूपता (२) विविध रूप होवा ते [ राजा वैरोचन वि० सूर्य संबंधी ( २ ) पुं० बलिवैरोचनि पुं० विरोचननो पुत्र – वलि वैलक्षण्य न० विलक्षणता; विचित्रता (२) विरुद्धता ( ३ ) भिन्नता वैलक्ष्य न ० मूंझवण; गूंचवण (२) दंभ; ढोंग (३) शरम (४) विपरीतता वैक्षिक वि० कहेवा धारेलु वर्ण वि० (भूरो- पीळो इ० ) रंग विनानुं वैवर्ण्य न० विवर्णता; फीकाश ( २ ) भेद; विभिन्नता ( ३ ) वर्णथी च्युत थवं ते वैवस्वत पुं० यम (२) सातमा मनु ( आ मन्वंतरना अधिष्ठाता) वैवाहिक वि० विवाह संबंधी ( २ ) पुं०, न० लग्न (३) लग्ननो उत्सव, लग्ननी तैयारीओ (४) पुं० पुत्रवधूनो के जमाईनो बाप वाह्य वि० लग्न संबंधी (२) लग्नने योग्य वैशद्य न० स्वच्छता ; स्पष्टता वैशस वि० मोत के विनाश उपजावनाएं (२) न० वध; कतल ( ३ ) पीडा ; त्रास Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैशसन ४८२ व्यतिक्रम् वैशसन न० कतल; वध वैष्णव वि० विष्णु संबंधी (२) विष्णुनी वैशंपायन पुं० व्यासना एक शिष्य उपासना करनारुं (३) न० वैकुंठ (जनमेजयने महाभारतनी कथा तेमणे वैसारिण पुं० माछलं संभळावी हती) नो रवैयो वैसारिणकेतन पुं० मीनकेतन - कामदेव वैशाख पुं० वैशाख महिनो (२)वलोववा- वैहायस वि० आकाशमां होवू ते; वैशारद वि० कुशळ; निपुण (२)ज्ञानी आकाश संबंधी (२)न० आकाश ; अंत(३) न० गाढ ज्ञान रिक्ष (३)आकाशमां ऊडवू ते वैशारद्य न० निपुणता वहारिक वि० विहार - क्रीडा माटेर्नु वैशिक वि० वेश्याओ वडे सेवातुं - वहार्य वि० मजाक करवा योग्य (साळो आचरातुं (२) पुं० वेश्याओनो संगी के पत्नीनां सगा) वैशिष्टय न० विशिष्टता; खासियत वहासिक पुं० विदूषक; मश्करो (२) उत्तमता वोढ़ पुं० हमाल (२)आगेवान (३)पति वैशेषिक वि० विशिष्ट; खास (२) (४) बळद (५) सारथि वैशेषिक दर्शन संबंधी (३)न० छ व्यक्त ('व्यंज्'तुं भू० कृ०) वि. दर्शनोमांन एक; कणाद-दर्शन खुल्लु; प्रगट; स्पष्ट (२) ज्ञानी (३) वैश्य पुं० चार वर्णोमांनो त्रीजो (खेती, न० अव्यक्त तत्त्वमाथी विकसित कार्य वेपार अने गोरक्षा करनारो वर्ण) व्यक्तम् अ० स्पष्टताथी; निश्चितपणे वैश्रवण पुं० कुबेर(२) रावण व्यक्ति स्त्री० प्रगट - स्पष्ट करवू के थर्बु वैश्वदेव वि० विश्वेदेव संबंधी (२)न० ते (२) भेद; विवेक (३)साचुं स्वरूप विश्वेदेवोने अपातो बलि (४)कोई पण वर्ग के जातिमांगें एक वैश्वस्त्य न० विधवापj व्यग्र वि० व्याकुळ ; मुंझायेलं (२)गभवैश्वानर वि० सर्व मानवजात संबंधी; रायेलु (३)व्यापृत; लवलीन सर्व मनुष्योने माटे योग्य एवं (२) व्यग्रता स्त्री०, व्यग्रत्व न० व्याकुळता; सामान्य ; सार्वत्रिक (३) ज्योतिश्चक्र गभराट; मुंझवण (२) उत्सुकता; संबंधी (४) पुं० अग्नि (५)जठराग्नि लवलीनता (६) परमात्मा (स्थूल शरीरोनो व्यच् ६ प० [विचति ] छेतरवू; ठगवू अभिमानी) व्यजन न० पंखो वैश्वानरी स्त्री० चंद्रना मार्गनो एक व्यतिकर पुं० संयोग; संबंध; जोडाण विभाग (भाद्रपदा अने रेवती नक्षत्रो) (२) मिश्रण; एकळं करवू ते (३) (२) वर्षना प्रारंभे करातो एक यज्ञ अथडावं ते (४) रुकावट; विघ्न (५) वैश्वासिक वि० विश्वासु प्रसंग ; बनाव; घटना (६) विनिमय वैष पु० कतल (७)क्षोभ (८)विनाश (९)व्यापq ते वैषमेषव वि० विषमेपु-कामदेव संबंधी व्यतिकरित वि० व्याप्त वैषम्य न० विषमता (२) खरबचड़ा- व्यतिकीर्ण वि० मिश्रित (२)संबद्ध (३) पणु; खाडाखैयावाळा होवापणुं (३) आम तेम हलावेलु आफत; संकट (४)अन्याय (५) भूल व्यतिक्रम् १ उ० उल्लंघन करवू; वैवयिक वि० विषय-वस्तु संबंधी (२) अपराध करवो (२) टाळवं; बेदरकार इंद्रियविषय संबंधी रहेq (३) व्यतीत करवू (समय) Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यतिक्रम ४८३ व्यपत्रपा व्यतिक्रम पुं० उल्लंघन (२) लोप (३.) उत्पात (२) ज्योतिषमां अशुभ अनादर (४)ऊलटापणुं (५)दोप; पाप मनातो १७ मो योग व्यतिक्षेप पं० झघडो; टंटो . व्यतीहार पुं० जुओ 'व्यतिहार' व्यतिचुंबित वि० संबद्ध ; स्पर्श व्यत्यय पुं० पसार थq ते (२)विरोध व्यतिपात पुं० जुओ 'व्यतीपात' (३) ऊलटापणुं (४) अदलाबदलो व्यतिय २ ५० भेळवq; मिश्रित करवू व्यत्यस् २ आ० व्यतिहे, व्यतिसे, व्यतिरिक्त वि० छूटुं; जुएं; भिन्न (२) व्यतिस्ते] चडियाता थq (२) ४ उ. चडियातुं चडियाता होवू [व्यत्यस्यति -ते] ऊलटुं करवं . व्यतिरिच -कर्मणि० छूटा पडवू (२) व्यत्यस्त वि० ऊलटुं करेल (२) व्यतिरेक पुं० भिन्नता; भेद । (२) विरुद्ध (३) असंबद्ध (४) चोकडी अलगपणुं (३) उत्तमता; श्रेष्ठता पडे तेम गोठवेलुं (हाथ, पग इ०) (४) अमुक एक वस्तु न होय तो व्यत्यास पुं० ऊलटो क्रम (२) विरोध बीजी अमुक पण न होय एवो (३) अदलोबदलो करवो ते संबंध के नियम (न्याय०) (५) एक व्यर्थ १ आ० व्यथा पामवी; दुःखी थर्बु अर्थालंकार, जेमा उपमेयने उपमान (२) क्षुब्ध थर्बु करतां श्रेष्ठ बताव्युं होय (काव्य०) व्यथक वि० व्यथा करनारं व्यतिरेकिन वि० जुदं; भिन्न (२) व्यथन वि० भारे व्यथा करनारु चडियातु; उत्तम (३) बाद करतुं व्यथा स्त्री० दुःख ; पीडा (२) डर; व्यतिविद्ध वि० वीटळायेखें (२) बीक (३)क्षोभ ; मूझवण । वींधायेलं व्यथित ('व्यथ् ' नुं भू० कृ०) व्यथाव्यतिषक्त वि० अरसपरस जोडायेलं पामेलं; पीडित (२) भय पामेलं; - संबद्ध (२) मिश्रित गभरायेलं व्यतिषंग पुं० परस्पर संबंध (२) व्यध् ४ प० [विध्यते वींधवं (२)आरपार एकबीजामा जोडावू- अटवावं - गूंच- भोंकवु (३) फरकावq (विजयमां) वायूँ ते (३) शत्रुवटथी सामनो - व्यध पुं० वींधवू ते . अथडामण (४) विनिमय व्यधिक्षेप पुं० गाळ भांडवी ते व्यतिषंज १५० व्यतिषजति साथे व्यपकृष् १५० खेंची जQ (२) अवळे जोडवू; संबंधमां लावq (२) संडोवर्बु मार्ग लई जg (रमतमां) व्यपगत वि० चाल्यं गयेलं; लुप्त व्यतिषंजन न० एकवीजाने जोडवं ते थयेलु (२) - मांथी पडी गयेलु; व्यतिहार पुं० विनिमय; अदलोवदलो दिनानुं वनेलं व्यतिहत वि० विरहित । व्यपगम् १ प० व्यपगच्छति दूर जवं व्यती २ प० ओळंगवू; उल्लंघन करवू खसी जर्बु(२) अदृश्य थर्बु; लुप्त थQ (२) व्यतीत थर्बु (समय) (३) व्यपगम पुं० दूर थर्बु ते; लुप्त थर्बु ते पाछळ मूकवं; आगळ जवू ... व्यपत्रप १ आ० शरमथी मों फेरवी व्यतीत वि० पसार थयेलं; बीती गयेलं ले, (२) शरमिंदा थ, . (२) मृत (३) तजेलं व्यपत्रप वि० निर्लज्ज ; वेशरम व्यतीपात पुं० अनिष्टसूचक चिह्न; व्यपत्रपा स्त्री० शरमिंदगी Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यपदिश् व्यपदिश ६ प० कहेवुं; - नामथी बोलाव (२) खोटुं कहेवुं ( ३ ) ढोंग करवो (४) दर्शावबुं; जणाववुं व्यपदेश पुं० कहेवुं – जणाववुं ते (२) नाम उपनाम ( ३ ) कुळ; वंश (४) ख्याति ; कीर्ति ( ५ ) बहानुं; मिष व्यपदेशिन् वि० (समासमा ) - नी सलाहने अनुसरतुं (२) नामवाळु व्यपदेश्य वि० नामथी ओळखवा लायक व्यपनय पुं० लई जवुं - दूर कर (२) गैरवर्तणूक व्यपयान न० नासी - भागी जवं ते व्यपरुह, –प्रेरक० [व्यपरोपयति] निर्मूळ करवुं (२) रहित कर व्यपरोपण न० निर्मूळ - नाबूद करवुं ते (२) काढी मूकवुं ते (३) तोडी लेवुं - कापी नाखवुं ते व्यपवृत् १ आ० पाछा फरवुं ( २ ) तजवुं; छोडी देवुं व्यपश्चि १ उ० विनंती करवी व्यपाय पुं० अभाव ( २ ) अंत; लोप व्यपाश्रम पुं० आशरो; आधार व्यपाश्रयणा स्त्री० विनंती व्यपास्त वि० काढी मूकेलं; हांकी काढेलुं; दूर करेलु व्यपे (वि + अप + इ) २ प० जुदा पडवु; छूटा पडवुं ( २ ) - थी मुक्त थबुं व्यपेक्ष १ आ० अपेक्षा राखवी ( २ ) दरकार राखवी; गणनामां लेवुं व्यपेक्ष वि० अपेक्षा राखतुं; उत्सुक (२) निरपेक्ष (३) गणनामा लेतुं व्यपेक्षक वि० निरीक्षण करनाएं; लक्ष राखनारुं व्यपेक्षा स्त्री० अपेक्षा; आकांक्षा (२) आदर; लक्ष; काळजी (३) अरसपरस संबंध के आधार व्यपेत वि० छूटुं पडेलुं ; दूर गयेलुं (२) ऊल (३) अनीतिमान ४८४ व्यवच्छिद व्यपोढ वि० हाँकी काढेल; दूर करेलु (२) विरुद्ध; ऊलटं (३) दर्शाविलुं व्यपोह १ उ० धोई काढवु प्रायश्चित्त करवुं (२) हांकी काढवु; दूर कर व्यपोह पुं० हांकी काढवु - दूर करते (२) समूह (३) इनकार; नकार व्यभिचर १ प० उल्लंघन करवु; बेवफा नीवडवुं ( २ ) अपराध करवो (३) मार्ग के नियमथी ऊलटा जब व्यभिचार पुं० मार्ग, मर्यादा के नियमथी भ्रष्ट थवं ते; उल्लंघन; भंग ( २ ) अपराध ; दोष (३) बेवफापणुं ( ४ ) नियममां अपवाद - अनियमितता व्यभिचारिन् वि० मर्यादा के नियमनुं उल्लंघन करतुं (२) अनियमित ( ३ ) खोटुं; जूठु (४) बेवफा (५) स्वच्छंदी (६) अस्थिर; बदलाय तेवुं व्यभिचारिभाव पुं० रसनी उत्पत्तिमां जे स्थायी भावने पुष्ट करी चाल्यो जाय छे ते क्षणिक भाव व्यभीचार पुं० जुओ 'व्यभिचार' व्यय् १० उ० [ व्यययति - ते ] जवं; गमन करवुं (२) खर्चवं; आपी देवूं (३) १ उ० [ व्ययति - ते ] जवुं ( ४ ) १० उ० [ व्यापयति - ते ] फेंकवुं (५) हांकबुं व्यय वि० बदलाय तेवुं ; नाश पामे तेवुं (२) पुं० नाश (३) खर्च ( ४ ) विघ्न (५) किंमत ; बलिदान (६) उडाउपणुं ७) धन; मिलकत व्ययगुण वि० खरचाळ; उडाउ व्ययपर वि० उडाउ अर्थहीन व्यर्थ वि० निरुपयोगी; फोगट ( २ ) व्यलीक वि० खोटं; जूठु (२) अप्रिय (३) जूटुं नहि तेवुं (४) न० अप्रिय - प्रतिकूल एवं ते (५) दुःख-शोकनुं कारण एवं ते ( ६ ) अपराध; दोष (७) युक्ति; छेतरपिंडी ( ८ ) पाप व्यवच्छिद् ७ उ० कापी नाखवं; छूटुं Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८५ व्यसन ध्यवच्छेद पाडवू; चीरी नाखवू (२) निश्चित कर (३) जुहूं तारव व्यवच्छेद पुं० कापी नाखवू - चीरी नाखवू ते (२) जुदुं - छूटुं पाडवू ते (३) निर्णय (४) नाश (५) प्रकरण व्यवदान न० शुद्धि व्यवधा ३ उ० वच्चे - आडे मूकवू (२) छुपावq; ढांक; (३) छूटुं पाडवू व्यवधान न० आड; पडदो; ढांकण व्यवधि पुं० व्यवधान ; आड; पडदो व्यवसाय पं० उद्योग; उद्यम (२) निश्चय; निर्णय (३) अनुष्ठान; कार्य (४) धंधो; व्यापार (५) व्यवहार; आचरण (६)युक्ति व्यवसायिन् वि० उद्यमी (२) निश्चयी (३)आचरनारे; करनारं (४)धंधामां वळगेलं (५) पुं० वेपारी व्यवसित वि० प्रयत्न करनारु (२) माथे लीधेलु (३) निश्चय करेलु (४) न० निश्चय; निर्णय (५) युक्ति; करामत व्यवसिति स्त्री० निर्णय (२)प्रयास व्यवसो ४ प० प्रयास करवो (२)इच्छq (३) निश्चय करवो (४)माथे लेवू व्यवस्था १ आ० व्यवतिष्ठते] क्रमसर गोठवावं (२) अलग मुकावं (३) स्थिर थर्बु (४) - ना उपर अवलंबवू -प्रेरक० -नी उपर मूकवू; तरफ प्रेरवू (२) गोठवq (३) निश्चित करवू व्यवस्था स्त्री० गोठवणी (२) निश्चितपणु (३)स्थिरता (४) नियम; विधि; कानून (५) करार व्यवस्थान न० गोठवण ; बंदोबस्त (२) नियम; निर्णय (३) स्थिरता; दृढता (४) मर्यादा ; निश्चित हद व्यवस्थापित वि० गोठवेलं; निश्चित व्यवस्थित वि० क्रमसर गोठवेल (२) निश्चित ; नियत व्यवस्थिति स्त्री० जुओ व्यवस्थान' व्यवहार पुं० वर्ताव; आचरण (२) धंधो; कामकाज (३) वेपार (४) व्याजवटुं (५) रूढि; परंपरा (६) संबंध (७) अदालती तपास (८) फरियाद व्यवहारक पुं० वेपारी व्यवहारतंत्र न० रोजिंदा व्यवहारनी प्रक्रिया व्यवहारार्थिन् वि० फरियादी व्यवहारासन न० न्यायासन । व्यवहारिन् वि० वेपार-धंधो-कामकाज करतुं (२) फरियादी (३) रूढि प्रमाणे(४) पुं० वेपारी व्यवहित वि० दूर मूकेलं (२) (वच्चे आडथी) जुदुं पडेलु (३) विघ्नित (४) ढंकायेलं; छुपायेल (५) निकट संबंधवाळू नहि तेवू (६) करायेल (७) दूरव्यवह १५० व्यवहार-धंधो-कामकाज - करवां (२)अदालतमां फरियाद करवी व्यवहृति स्त्री० प्रक्रिया; व्यवहार; आचरण (२) वेपार; धंधो व्यवाय पुं० पृथक्करण; घटक छूटा पाडवा ते (२) ढांक - छुपावq ते (३) विघ्न (४) ऊंडा पेस, ते (५) मैथुन ; संभोग व्यश् ५ आ० भरी काढवू; व्यापवू व्यष्टि स्त्री० समष्टिनो प्रत्येक अंश के व्यक्ति व्यस् ४ प० उछाळवू; विखेरवू; दूर फेंकवं (२) नाश करवो (३) भाग पाडवा; गोठवq (४) ऊंधुं वाळवं (५) हांकी काढवु; दूर करवू व्यसन न० दूर फेंकवं ते; दूर करवं ते (२)जुपाडवं ते (३) उल्लंघन; भंग (४) नाश; पराजय; पडती (५)नबळी बाजु (६) आफत; जोखम; संकट'; दुःख (७) आथमवू ते (सूर्य इ० नुं) (८) कुटेव (९) खूब मंडवं ते (१०) टेव; लत पित Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यसनब्रह्मचारिन् व्यसनब्रह्मचारिन् पुं० साथे दुःख भोगवनारो लागेलं गसनसंस्थित वि० पोतानी लतमां व्यसनातिभार पुं० भारे विपत्ति के संकट व्यसनिन वि० कशानी खोटी लते चडेलं (२)कमनसीब;-नी पीडावाळु (३) कोई पण बाबतमां अतिशय लागेलुं (सनासमां) व्यसु वि० प्राणरहित; मृत व्यस्त वि० उछाळेलु; फेंकेलं (२) विखेरी नाखेल (३) दूर करेलं (४) जुदुं पाडेलु (५) समस्त 'थी ऊलटुंजुदुं जुएं एक एक एq (६) विविध (७) ऊलटुं (जेम के प्रमाण) (८) सादं; समासमां जोडायलं नहि तेवू (शब्द) व्यस्तन्यास वि० करचली पडी गयेलं; पींखाई गयेलं छे तेवं व्यस्तवृत्ति वि० जेनो अर्थ बदलाई गयो व्यंग वि० शरीर विनानुं (२) एकाद अवयव विनानुं; पांगळु [वार्छ व्यंगार वि० अंगारा विनानुं ; ठंडा चूलाव्यंगिता स्त्री० एकाद अंग विनाना थर्बु के होवू ते व्यंग्य वि० आडकतरी रीते सूचित थतुं (२)न० सूचितार्थ; गर्भितार्थ व्यंज ७ प० स्पष्ट करवू (२) दर्शाव व्यंजक वि० स्पष्ट करनारूं; व्यक्त करनारुं(२)आडकतरी रीते सूचवनाएं (वाचक के लाक्षणिकथी भिन्न) (३) पुं० योग्य चेष्टाथी अंतरनो भाव प्रगट करवो ते (नाटय०) व्यंजन न० प्रगट-स्पष्ट करवं ते (२) निशान; चिह्न (३) याद करावनार वस्तु(४)वेश; सोंग (५) स्वरनी मदद विना जेनो उच्चार नथी थतो ते वर्ण (६) उमरमां आव्यानी निशानी (७) मसालावाळी - चटणी जेवी वानी (८) मसाला माटे वपराती वस्तु (९) शब्दनी व्यंजनाशक्ति व्याघट्टन व्यंजनधातु पुं० वाद्य वगाडq ते ; वीणा वगाडवी ते शब्दनी शक्ति व्यंजना स्त्री० व्यंग्यार्थनो बोध करवानी व्यंतर पुं० भूत; एक पिशाच योनि व्यंशुक वि० नग्न ; वस्त्ररहित व्यंस् १० उ० विभाग करवो; वहेंचवू (२) छेतरवू व्यंसक पुं० ठग व्यंसन न० ठगवू ते (२) वहेंचवू ते व्यंसित वि० छेतरायेलु (२) हारेलु (३) निष्फळ -बिनअसरकारक बनावेलु व्याकरण न० भाषाना शुद्ध प्रयोगो, नियमो वगेरेनुं शास्त्र (२) पृथक्करण (३) प्रगट करवं ते । व्याकीर्ण वि० आमतेम फेंकायेलं, वेरा येलु के वीखरायेलु (२) अस्तव्यस्त व्याकुल वि० गभरायेलं; गाभरं (२) क्षुब्ध; मूंझायेलु (३) व्यापृत; रोकायेलु (४) चमकतुं; फरकतुं व्याकुलित वि० व्याकुळ के गाभरुं बनेलं व्याकृ ८ उ० प्रगट करवं; स्पष्ट करवू (२)समजावq (३)कही बतावद् (४) छूटुं पाडवू [विकसित व्याकोश (-१) वि० प्रफुल्लित; व्याक्षिप ६ प० आम तेम उछाळवू - फेंकवु (२) आकर्षq (मनने) व्याक्षेप पुं० आमतेम उछाळवू ते (२) विघ्न ; रुकावट (३) विलंब (४) बीजी बाजु खेंचाई जर्बु ते (लक्षवें) (५) गाळ (६) फेंक -- नाखवू ते व्याक्षेपिन् वि० हांकी काढतुं व्याख्या २५० कहेवू; जणावq (२) समजाव, (३) नाम पाडवू; कहेवू (४) विवरण कर व्याल्या स्त्री० कहेवू ते (२) विवरण व्याख्यान न० निरूपण (२) विवरण (३) भाषण व्याघटून न० वलोवq ते (२)घर्षण Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याघात ४८७ व्यायतत्व व्याघात पुं० प्रहार करवो ते (२)अफाळवं ते (३) विघ्न (४) विरोध (५) भंग; उल्लंघन (६)पराजय व्याधुणित वि० अमळा; पहुं पडु थतुं व्याघ्र पुं० वाघ (२) उत्तम (समासमां; जेमके 'पुरुषव्याघ्र') व्याघ्री स्त्री० वाघण व्याज पुं० कपट (२)बहान (३) करामत व्याजगुरु पुं० देखाव मात्रमा गुरु एवो ते व्याजपूर्व वि० -ना मात्र देखाववाळू व्याजस्तुति स्त्री० देखीती स्तुति मार फते निंदा; एक अलंकार (काव्य) व्याजिह्म वि० वांकु (२) मेलु थयेखें। व्याड पुं० हिंसक पशु (२) ठग (३) इंद्र व्यात्त (व्यादा'- भू० कृ०)वि० पहोळु; खुल्लं करेलु [वानी रमत व्यात्युक्षी स्त्री० सामसामे पाणी उछाळव्यादा ३ उ० उघाडवू; पहोळं करवू व्यादान न० उघाडवू ते ; पहोळं करवू ते व्यादिश ६ प० आदेश आपवो (२) नीमq (पद उपर) (३) उपदेशवु (४) भाखवू (भविष्य) व्याध पुं० पारधी (२) दुष्ट ; दुर्जन व्याधंव्याधम् अ० वींधी वींधीने व्याधि पुं० रोग; बीमारी व्याधित वि० बीमार; मांदु व्याधूत वि० हलावेलु; कंपतुं व्यान पुं० शरीरमांना पांच प्राणमांनो एक (आखा शरीरमा व्यापीने रहे छे) व्याप ५५० भरी काढवू; व्यापवु (२) -सुधी पहोंचवू _राधी पहोंचव व्यापक वि० व्यापनारुं; फेलायेलं व्यापत्ति स्त्री० आपत्ति ; कमनसीब ; वरबादी (२) मृत्यु व्यापद् ४ आ० नाश पामवं ; मरी जq -प्रेरक० मारी नाखवू (२) हानि पहोंचाडवी व्यापद् स्त्री० संकट ; विपत्ति व्यापन न० व्यापवं - फेलावू ते व्यापन्न वि० विपत्तिमां आवी पडेलु (२) निष्फळ गयेलु (३) ईजा पामेल (४) मृत (५) नष्ट; भ्रष्ट ; अभक्ष्य व्यापादन न० हणq ते (२)नाश व्यापादित वि० हणेलं; मारी नाखेलं (२)ईजा पामेलं व्यापार पुं० धंधो; वेपार (२)वापरतुं - काममां लेवं ते (३)प्रवृत्ति; कार्य; असर (४) प्रयत्न; उद्यम (५) माथु मारवं ते (६) -उपर मूकवू ते । व्यापारित वि० निमायेलं; कामे लागेलं व्याप ६ आ० व्याप्रियते -मां रोकावू; -ना कामे लागवू (२) कोई पदे निमार्बु -प्रेरक०-नीमवं; कामे लगाडq (२) मूकवू; स्थिर करवं; नाखवू; प्रेरवं (३)वापर; उपयोगमा लेवं व्यापृत वि० काममा लागेलुं - रोकायेलं (२) मूकेलं; प्रेरेलु; स्थिर करेलु व्यापृति स्त्री० कामकाज; धंधो (२) कार्य; प्रवृत्ति (३) उद्यम व्याप्त. वि० व्यापेल; विस्तरेलु (२) --थी पूर्ण (३) मेळवेलु व्याप्ति स्त्री० व्यापq ते (२) नित्य साहचर्य (साध्य अने साधन-; न्याय०) व्याम पुं०, व्यामन न० वाम(हाथ पहोळा करता थतुं अंतर) व्यामिश्र वि० मिश्रित (२)विविध (३) संदिग्ध (४)व्यग्र व्यामिश्रक न० प्राकृत वगेरे मिश्र भाषाओवाळं नाटक इ. व्यामोह पुं० मोह (२) मूझवण व्याय पुं० बाण छोडतां पहेलां धनुष्य खेंचवानी रीत व्यायत वि० लांबु; दीर्घ (२) विस्तृत (३) काममां रोकायेलं (४) दृढ (५) तीव्र ; गाढ (६) बळवान (७) ऊंडु व्यायतत्व न० स्नायुओनो विकासमजबूताई Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यायम् ४८८ ध्याह व्यायम् १५० व्यायच्छति लांबुं करवू (२) लडवू (३) प्रयत्न करवो (४) क्रीडा करवी व्यायाम पुं० लांबु करवं ते (२) कसरत (३) थाक; महेनत (४) प्रयत्न (५) लडाई; झघडो व्यायोग पुं० एक प्रकारनुं एकांकी नाटक व्याल वि० दुष्ट; क्रूर; जंगली (२) पुं० तोफानी हाथी (३) हिंसक पशु (४) साप (५) वाघ (६) चित्तो । व्यालग्राहिन् पुं० साप पकडनारोगारुडी [भक्षी चित्तो व्यालमृग पुं० जंगली प्राणी (२) मनुप्यव्यालोल वि० चंचळ ; अस्थिर; धूजतुं (२) अस्तव्यस्त ; वींखायेलं व्याजित वि० वांकू वळेलं. व्यावर्तन न० घेरी लेबु ते (२)आसपास घूमवू ते (३) गूचळं (सापर्नु) (४) आंटो; वीटो (५) रस्तानो वळांक व्यावल्ग् १५० ठेकडो भरवो ; कूदवू व्यावल्गित वि. क्षुब्ध; ऊछळतुं; कूदतुं व्यावहारिक वि० व्यवहार संबंधी (२) वहेवारु; वहेवारमा चाली शके तेवू (३) चालु रिवाज मुजबन (४) भ्रमथी देखाता संसार विषयक एवं (५) पुं० अमात्य; सलाहकार व्यावहासी स्त्री० परस्पर हस, ते व्याविद्ध वि० बंधायेलं (२) परस्पर विरोधी (३) आमतेम घुमावेलु के उछाळेलं (४) अवळे ठेकाणे मुकायेलं व्यावृ ५ उ० पसंद करवू (२) संता डवु ; ढांक, (३) रुकावट करवी व्यावत् १ आ० पाछा फरवु (२)विमुख | थर्बु (३) दूर थq; जुदा पडQ (४) आसपास घूमवू (५) आथमवू (६) पुनरावृत्ति थवी -प्रेरक० बाकात राखवू; रद करवू; मर्यादित करवू (२) -मांथी पार्छ फरे तेम करवू (३) नाबूद कर (४)जु, पाडवू (५) आसपास घुमावq व्यावृत वि० ढांकेलं; संताडेलु (२) उघाडेलु ; खुल्लु करेलु (३) बाद करेलं; बाद राखेल व्यावृत्त वि० पार्छ फेरवेल; पार्छ खेंचेलं (२)जु, पाडेलु (३) बाकात राखलं; भिन्न (४)-मां अभाव होय तेवू (५) -मांथी विरमेल (६)पलटायेलं व्यावृत्ति स्त्री० ढांकी देवू ते (२)बाकात राखवं ते ; जु, पाडवं ते (३) मां न __ होवू ते (४) स्तुति (५) पुनरावृत्ति व्यास पुं० भाग पाडवा ते (२) समास छूटोपाडवो ते (३) विस्तार; पहोळाई (४) वर्तुळना मध्यबिंदुमाथी पसार थई तेना परीघने बे बाजु अडती लीटी (५) गोठवणी ; संकलन (६) गोठवणी के संकलन करनारो (७) वेदव्यास व्यासक्त वि० अति आसक्त; निमग्न (२) संलग्न (३) छूटुं पाडेलु व्यासंग पुं० दृढ आसक्ति (२)तत्परता; __ भक्ति (३) दृढ अभ्यास (४) ध्यान'; लक्ष (५) अळगापणुं व्यासं १ प० [व्यासजति ] आसक्त थq; चोटवू व्यासिद्ध वि० मनाई करेलं व्यासिध् १ प० वेगळं राखवू; रोक, व्याहत वि० रुकावट करेलु (२) पार्छ धकेलेलं (३) विफळ फरेलु (४)गाभरुं व्याहन् २ प० दखल करवी; सामनो करवो (२) अतिशय हणवं (३) उल्लंघन कर; भंग करवो (४)विफळ - हताश करवू(५)पजवq व्याहरण न० बोलवू ते; उच्चारण व्याहार पं० बोलवं ते; कथन; उक्ति (२) अवाज; ध्वनि व्याहित वि० व्याधिग्रस्त व्याहृ १ ५० बोलवू; उच्चार, (२) Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्याहृत ४८९ वजन समजाव (३) चीस - बूम पाडवी व्युदस्त वि० दूर - बाजुए फेंकी दीधेलं (४) विहरवू; खूब आनंद करवो व्युदास पुं० बाजुए फेंकी देवं ते (२) (५) कापी नाखवू; जुएं करवू बाकात राखq ते (३) निषेध (४) व्याहृत वि० बोलेलं; उच्चारलं (२) उपेक्षा; उदासीनता (५) वध; नाश न बोलवू ते (३) शब्दोच्चार विनानी व्युपरत वि० अटकेलं; थोभेलं वाणी के गीत (पशु-पंखीनां) व्युपरम पुं० उपशम ; विराम; अंत व्याहृति स्त्री० वाणी; शब्दो (२)कथन; व्युपशम पुं० पूर्ण विराम - अंत (२) उक्ति (३) संध्या वखते उच्चारातो अशांति (३) विरमवू नहि ते पवित्र शब्द (भूर्, भुवस् अने स्वस्) व्युप्त वि० बोडेलु (२) वीखरायेलं व्युच्चर् १ प० उल्लंघन करवू (२) व्युषित वि० प्रभातकाळ थयेलं बेवफा नीवडQ (३)व्यभिचार करवो व्युष्ट वि० बळेलं (२)प्रभातकाळ थयेलं व्युच्छित्ति स्त्री० सम्ळ नाश; उच्छेद (३)वासो रहेलुं (४)न० प्रातःकाळ व्युत्क्रम् १ प० [व्युत्क्रामति] उल्लंघन व्युष्टि स्त्री० प्रातःकाळ (२) समृद्धि करवं (३) लावण्य (४)फळ ; परिणाम व्युत्क्रम पुं० अतिक्रमण; उल्लंघन (२) व्यूढ वि० विशाळ; विकसित (२) दृढ ऊलटो क्रम (३) अव्यवस्था (३) क्रममां गोठवेलु (४) अव्यवस्थित व्युत्क्रांत वि० उल्लंघेलु (२) चाल्यं गयेलं (५) परणेलं (६) मोटुं। व्युत्क्रांता स्त्री० एक जातनी समस्या व्यूह १ उ० सैन्यनी व्यूहरचना करवी व्युत्था १ आ० [व्युत्तिष्ठते] ऊठवू; (२) क्रममा गोठवq - मूकवु (३) जुहूं ऊभा थर्बु (२) बळमां वधq; शक्ति- पाडवू (४) अव्यवस्थित करवू मान थq (३) विरोधमां कहे व्यूह पुं० लश्करनी गोठवणी(२)लश्कर; व्युत्थान न० प्रबळ उद्योग (२)-नी सैन्यविभाग (३) टोळं; जूथ(४)विभाग सामे थq ते ; बंड (३)स्वतंत्रपणे कार्य व्ये १ उ० सीववू (२) ढांक करवं ते (४) समाधिमांथी ऊठवू ते व्योकार पुं० लुहार (५) उठाडवं ते (हाथीने) व्योमग पुं० आकाशचारी-देव व्युत्थित वि० विरुद्ध अभिप्रायन (२) व्योमगमनीविद्या स्त्री० आकाशमां शास्त्र विरुद्ध वर्तनारु ऊडवानी विद्या व्युस्थिति स्त्री० जुओ 'व्युत्थान' व्योमन् न० आकाश; अंतरिक्ष व्युत्पत्ति स्त्री० उत्पत्ति; मूळ (२) व्योमसद् पुं० देव (२) गंधर्व शब्दनी मूळ उत्पत्ति (व्या०) (३) ब्रज १ प० जq (२) पासे जर्बु (३) पारंगतता; निष्णातपणुं(४)विद्वत्ता। विदाय लेवी; पाछा फरवू (४)पामवं व्युत्पद् ४ आ० --मांथी उत्पन्न थर्बु (२) (स्थिति) (५)१० उ० [वाजयति-ते (धातुमाथी)नीकळवू (३)-मां प्रवीण जq (६) साफ- शुद्ध करवू; संस्कारवू थर्बु (४) पाछा आवq (समुद्रमांथी) वज पुं० टोळं; समूह (२.) गोवाळोनो व्युत्पन्न वि० अनुभवी; प्रवीण (२) वास (३) गायोनो वाडो(४)निवासव्युत्पत्ति शोधेलं (शब्द) स्थान (५) मथुरा नजीकनो प्रदेश व्युदस् ४ ५० विखेरवू (२)दूर फेंक व्रजन न० जवू ते ; भटकवू ते (२) देश(३)बाजुए मूकवू (४)तजी देवू निकाल थर्बु ते Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रजांगना ४९० शकृत्पिडक व्रजांगना स्त्री० वजनारी; गोपी . द्रात पुं० टोळं; मंडळी (२) न० रोजे अजित न० जq ते ; भटकवू ते करवानी मजूरी (३) शारीरिक श्रम वण १५० अवाज करवो (२)१० उ० (४) बरात; जान घायल करवू; ईजा करवी वातीन वि० दहाडियु; रोजे मजूरी व्रण पुं०, न० जखम, धा (२) चाटुं करतुं (२) हिंसा-लूटफाटथी जीवनारु वणन न० वींधवं ते वात्य पुं० संस्कार न करवामां आव्या विरोपण वि० धा रूझवनारु होवाथी पोतानो वर्ण गुमावी वेठेलं वणित वि० घवायेल (प्रथम त्रण वर्णनुं माणस) (२) व्रत पु०, न० नियमपूर्वक आचरवारों भामटो; अधम माणस (३) शूद्र पुण्यकर्म (२)अमुक करवा न करवानो पिता अने क्षत्रिय मातानो पुत्र धार्मिक निश्चय (३) भक्ति के श्रद्धानो बीड ४ प० शरमावू (२) फेंक, विषय (४) विधि; अनुष्ठान; कार्य बीड पुं०, व्रीडा स्त्री शरम; लज्जा (५) नियम, कानून (६) ब्रह्मचर्यव्रत । वीडित वि० शरमिंदुं करायेलं व्रतति (-ती) स्त्री० वेल (२) विस्तार व्रतपारण न० व्रत के उपवासनी वील पुं० शरम ; व्रीडा समाप्ति; उपवास पछी खावं ते व्रीहि पुं० डांगर; चोखा व्रतवैकल्य न० व्रत-नियमनी अपूर्णता ब्ली ९ ५० [ग्लिनाति] टेको आपवो अतिक, वतिन् वि० व्रत धारण करनारु (२) पसंद करवू (३) दबाववं; (२) पुं० ब्रह्मचारी विद्यार्थी (३) तोडी पाडवू तपस्वी (४) यजमान (यज्ञ करावनारो) -कर्मणि० भागी पडवू; बेसी पडवू श न० सुख ; कल्याण शक ५ ५०, ४ उ० शक्तिमान थq; शकवू (२) सहन कर, -कर्मणि शकावं शक पुं० एक राजा (२) शालिवाहन राजाथी शरूथयेलो संवत(खिस्ताब्दथी ७८ वर्ष बाद) शकट पुं०, न० गाडु; गाडी (२)पुं० कृष्णे मारेलो एक राक्षस शकटिका स्त्री० नानी गाडी (रमकडु) शकन न० मळ; छाण (शकृत्ना रूपमा बीजी विभक्ति द्विवचन पछी विकल्पे आवे छे) शकल पुं०, न० टुकडो; भाग (२)घडानुं ठीकरुं (३) तणखो शकार पुं० राजानी रखातनो भाई (नाट्य०; मूर्ख अने गर्विष्ठ होय छे) शकाः पुं० ब० व० एक देश (२) एक जातिना लोक शकुन पुं० पक्षी (२) न० भावि शुभा__ शुभ सूचक चिह्न (४) शुकन शकुनि पुं० पक्षी (२) दुर्योधननो मामो - गांधार देशनो राजा शकुंत पुं० पक्षी शकुंतला स्त्री० विश्वामित्र अने मेनकानी पुत्री; दुष्यंतनी पत्नी शकुंति पुं० पक्षी शकुंतिका स्त्री० पक्षी (२)तीड; तमरूं शकृत् न० विष्टा; छाण शपिंडक पुं० छाणनो पोदळो Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शक्त शत्रु ४९१ शक्त ('शक' भू० कृ०) वि० शक्ति- शतकृत्वस् अ० सो वखत मान; समर्थ (२) बलिष्ठ (३) समृद्ध शतकोटि वि० सो धारवाळू (२) पुं० (४) अर्थ बताववानी शक्तिवाळं इन्द्रन वज्र (३) स्त्री० सो करोड शक्ति स्त्री० बळ; सामर्थ्य (२) राज- शतक्रतु पुं० इंद्र सत्ता (३) कवित्व शक्ति (४) देवनी शतघ्नी स्त्री० एक अस्त्र; लोखंडना मूर्तिमंत ताकात (तेनी पत्नी तरीके) खोलावाळी मोटी शिला (५)एक अस्त्र (६) भालो (७) शब्दनुं शतचंद्र पुं० सो चंद्रबिथी शणगाअर्थ सूचववानुं सामर्थ्य (अभिधा, रेली तरवार के ढाल लक्षणा, व्यंजना)(८) (शाक्तो पूजे शतदल न० कमळ छे ते)जगतना मूळ कारणरूप योनि । शतधृति पुं० ब्रह्मा (२) इंद्र (३)स्वर्ग शक्तिधर पुं० भालावाळो (२) कार्तिकेय शतपत्र पुं० मोर (२) लक्कडखोद पक्षी शक्तिध्वज पुं० कार्तिकेय (३) सारस (४) एक जातनो पोपट शक्तिनाथ पुं० शिव (५) न० कमळ शक्तु पुं०, न० सक्तु; साथवो शतपत्रयोनि पुं० ब्रह्मा शक्त्यपेक्ष वि० शक्ति इच्छतुं शतपथ पुं० शुक्ल यजुर्वेदनो ब्राह्मण ग्रंथ शक्य वि० बनी शके के करी शकाय एवं (सो खंडवाळो) (२) सीधुं दर्शावातुं (जेम के शब्दनो शतपाक वि० सो वखत उकाळेलं अर्थ) (३) मधुरभाषी शतमख, शतमन्यु पुं० इंद्र शक्र पुं० इंद्र (२)स्वामी (३) घुवड (४) शतमान न० पल वजन- रू' कुटज वृक्ष (५) अर्जुन वृक्ष शतमुख वि० सो मुखवाळू ; सो मार्गवाळं शक्रगोप पुं० इंद्रगोप; गोकळगाय शतयज्वन् पुं० इंद्र (सो अश्वमेध शक्रजित् पुं० रावणनो पुत्र मेघनाद यज्ञ करनारो होवाथी) ('इंद्रने जीतनार') करातो ध्वज शतलोचन पुं० इंद्र(' सहस्रलोचन' पण) शक्रध्वज पुं० इंद्रना मानमां ऊभो शतशस् अ० सो वखत (२) सेंकडो शक्रभिद् पुं० जुओ ‘शक्रजित्' प्रकारे (३) सेंकडो- अनेक होय तेम क्व पुं० हाथी शतसुख न० पार वगरनुं सुख शचि (-ची) स्त्री० इंद्राणी शतलदा स्त्री० वीजळी (२) वज्र शठ वि० ठग; धूर्त (२) दुष्ट ; दुरा- शताक्ष वि० सो आंखवाळं चारी (३) पुं० ठग-धूर्त माणस (४) शताक्षी स्त्री० रात्री जूठो प्रेमी (५) मूर्ख के आळसु माणस शतानंद पुं० गौतम – अहल्यानो पुत्र; शठोदर्क वि० अंते छतरनारं जनकनो पुरोहित शण न० भींडीनी जातनो एक छोड शताब्द न० सैकुं शत न० सो (संख्या) (२) कोई पण शतायुत् वि० सो वर्ष जीवतुं मोटी संख्या शतिन् वि० सो; असंख्य (३) पुं० सो शतक वि० सो (२)सो संख्यावाळं (३) (सिक्का के चीजो) नो मालिक न० सैकुं (४) सो श्लोकनो संग्रह . शत्रु पुं० हरावनारो, विजेता; नाश शतकुंभ पुं० एक पर्वत-ज्यां सोनुं मळतुं करनारो (२) दुश्मन; विरोधी; कहेवाय छे (२)एक यज्ञ (३)न० सोनुं हरीफ (३) पडोशनो हरीफ राजा Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९२ शम् शत्रुकर्षण शत्रुकर्षण वि० शत्रुने नमावनाएं; शत्रुनो नाश करनारुं शत्रुघ्न पुं० सुमित्रानो पुत्र; लक्ष्मणनो जोडियो भाई पर्वत शत्रुजय पुं० हाथी (२) गुजरातनो एक । शद् १ उ० नाश पामवृं; क्षीण थर्बु (२) पडी जवं '-प्रेरक० नीचे फेंकव; कापी नाखवं (२) दूर करवू; नाश करवो शनकैस् अ० धीमेथी शनि पुं० ए नामनो ग्रह (२) शनिवार शनि व पुं० धीमापणुं शनैश्चर वि० हळवे हळवे चालनारु (२) पुं० शनिग्रह शनैस् अ० धीमेथी; चुपकीदीथी (२) धीमे धीमे (३) क्रमे ऋमे । शप् १, ४ उ० शाप आपवो (२) सोगंद खावा (३) ठपको आपवो -प्रेरक० सोगंदथी बांधवं शपथ पं० शाप (२) सोगंद शपथोत्तरम् अ० सोगंदपूर्वक शपमान वि० शाप देतुं (२) सोगंद खातुं (३) गाळो देतुं; निंदतुं शपित वि० शाप आपेलं । शप्त ('शप' - भ० कृ०) शाप दीधेलं (२) सोगंद दीधा होय तेवू (३) न० शाप (४) सोगंद शफ पुं०, न० खरी शफर पुं०, शफरी स्त्री० एक नानी चळकती माछली [माणस शबर पुं० पहाडी जातिनो जंगली शबरी स्त्री० किरात जातिनी एक स्त्री (रामनी भक्त हती) शबल वि० काबरचीतरुं (२) मिश्रित (३) म्लान; फीकुं (४) क्षुब्ध शबलिमन् पुं० काबरचीतरो देखाव शब्द १० उ० अवाज करवो; नाद करवो (२) बोलाव, शब्द पुं० अवाज; ध्वनि; नाद (२) अर्थयुक्त एक के वधारे अक्षरोनो समुच्चय (३) नाम ; संबोधन (४) शास्त्रवाक्यरूपी प्रमाण (न्याय०) (५) व्याकरण (६) कीति (७) प्रणव शब्दगुण वि० शब्दरूपी गुणवाळू शब्दपति पुं० नामनो- कहेवातो पति के मालिक [ताकनारं शब्दपातिन् वि० अवाज उपरथी शब्दब्रह्मन् न० वेदो (२) परामात्मानुं ज्ञान (३) परमतत्त्व; परमात्मा शब्दवेधिन् वि० अवाज उपरथी निशान ताकनारुं (२)पुं० एक जात, बाण (३) धनुर्धारी (४) दशरथ (५) अर्जुन शब्दवेध्य वि० जोया विना मात्र अवाजथी वींधवानुं एवं शब्दशास्त्र न० व्याकरणशास्त्र शब्दसाह वि० जुओ 'शब्दवेधिन्' शब्दाख्येय वि० शब्दोमां कही शकाय तेवू शब्दानुरूप वि० अवाजना प्रमाणमां होय तेवू; अवाज जेवू के जेटलं शब्दायते आ० अवाज करवो (२) गर्ज, (३) बोलावq शब्दित ('शब्द' नुं भू० कृ०) वि० वगाडेलु; बजावेलु ; (२)उच्चारेलु (३) बोलावेलु (४)नाम आपेलु (५)शीखवेलं; समजावेलु (६)न० अवाज; बूम शम् ४ ५० [शाम्यति ] शांत थर्बु (२) बंध पडवू; अंत आववो (३)बुझाई जवू (४) १० उ० नीरखq (५) दर्शाव -प्रेरक० शांत पाडवू; बुझाववू (२)अंत लाववो; नाश करवो (३) आश्वासन आपq (४) हरावq; वश करवू (५) तजी देवू; अटकवू शम् अ० सुख, आरोग्य, समृद्धि बतावतो प्रत्यय; आशीर्वाद के शुभ अंत इ० बताववा वपराय छे (चोथी के छठ्ठी विभक्ति साथे) Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शम शम पुं० शांति निर्विकारपणुं ( २ ) तृप्ति; संतोष; आश्वासन ( ३ ) मोक्ष (४) रोगनुं शमन ४९३ शमन वि० शांत पाडनारुं ( २ ) न० शांत पाडवुं ते (३) चित्तशांति; समाधि ( ४ ) ईजा करवी ते; नाश करवो ते (५) यज्ञमां पशुने वधेरनुं ते (६) पुं० यमराजा [ छे तेवुं शमप्रधान वि० जेगां राम-शांति विशेष शमल न० विष्ठा (२) पाप शमित वि० शांत पाडेलु (२) छिपा - वेलुं; मटाडेलुं (रोग, तरस इ० ) (३) शांत (४) हणेलुं; नाश करेलुं शमित पुं० वध करनारो शमिन् वि० शांत; जितेंद्रिय शमी स्त्री० एक झाड ; समडो ( २ ) फळी; सींग शमोपन्यास पुं० शांतिनुं क शम्या स्त्री० एक जातनुं छबलीकुं (२) लाकडी दंडो (३६ आंगळनो ) शम्याक्षेप पुं० जुओ 'शम्यापात' शम्याग्राह पुं० छबलीकां वगाडनारो शम्यानिपात, शम्यापात पुं० एक दंडो फेंकी शकाय तेटलं अंतर शय वि० सूतुं; ऊंघतुं ( समासने अंते ) (२) पुं० ऊंघ (३) शय्या (४) हाथ ५) लंबाईनुं एक माप ( ६ ) साँप शयन न० सूनुं ते ( २ ) पथारी शयनभूमि स्त्री० सुवानो ओरडो शयनसखी स्त्री० साथै सूनारी सखी (स्त्रीनी) [ शयनगृह शयनीय न० शय्या; पथारी ( २ ) शयनैकादशी स्त्री० अषाढ सुद अगियारस; देवपोढी शयालु वि०ऊंघे भरायेलुं (२) ऊंघणशी शमित वि० सूतेलुं; निद्राधीन (२) न० निद्रा; ऊंघ शय्या स्त्री० सेज ; पथारी ( २ ) परोबुं ते; गूंथवुं ते शरभ शय्यागृह न० सुवानो ओरडो शय्यापाल, शय्यापालक पुं० राजाना शयनगृहनो संरक्षक अधिकारी शय्यांत पुं० सुवानुं स्थळ शय्योत्यायम् अ० वहेली सवारे शय्योत्संग पुं० पथारीनो मध्य भाग शर पुं० बाण (२) एक जातनुं बरु (३) तर; मलाई (४) कुश; दाभ (५) पांचनी संख्या ( ६ ) न० पाणी शरक्षप पुं० बाण जाय तेटलुं अंतर शरच्चंद्र पुं० शरद ऋतुनो चंद्र शरजन्मन् पुं० कार्तिकेय शरजाल न० वरसतां बाणोनुं जाळं शरज्ज्योत्स्ना स्त्री० ० शरद ऋतुनी चांदनी शरट पुं० काचंडो शरण वि० जुओ 'शरण्य' (२) नं० आशरो; संरक्षण (३) आशरो के शरणनुं स्थान (४) घर ; ओरडो ( ५ ) झुंपडी, मांडवो शरणागत, शरणापन्न वि० शरणे आवेलू शरणार्थिन्, शरणैषिन् वि० आश्रय शोधनाएं (२) कमनसीब शरणोन्मुख वि० शरण इच्छतुं शरण्य वि० रक्षण - शरणुं आपनार (२) शरण इच्छतुं; दीन (३) न० आश्रयस्थान ( ४ ) आशरो आपनारो (५) आशरो ( ६ ) हानि; ईजा शरद् स्त्री० आसो - कार्तिक महिनावाळी ऋतु (२) वर्ष शरबिज वि० शरद ऋतुमां यतुं शरदुदाशय पुं० शरद ऋतुनुं सरोवर शरदुदिन न बाणोनो वरसाद शरधि पुं० बाणनो भायो • शरन्मेघ पुं० शरदऋतुनुं वादळ शरपुंख पुं० बाणनो पींछावाळो छेड शरप्रवेग पुं० बाणनो वेग शरभ पुं० हाथीनुं बच्चुं ( २ ) आठ पर‍ वाळं एक बळवान काल्पनिक प्रार्ण (३) ऊंट (४) तीड (५) तीतीघोड Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९४ शल्य शरभंग शरभंग पुं० दंडकारण्यना एक मुनि शरवण न० बरनुं झुंड शरवणभव पुं० कार्तिकेय शरवन पुं० जुओ 'शरवण' शरवर्ष पुं० बाणनो वरसाद (२) जोरथी पडतो पाणीनो वरसाद शरव्य न० निशान; लक्ष्य (बाण-) शरवात पुं० बाणनो समुदाय शरसंधान न० बाण ताकवू ते शरसंबाध वि० बाणोथी ढंकायेलं शरस्तंब पुं० बरुनुं झुंड । शरार वि० घातक; हिंसक (२) पुं० हिंसक पशु [ढांक| शराव पुं० न० शकोरुं; चपणियु (२) शरावर (शर + आवर) पुं० बाणनो भाथो (२) न० बख्तर शरावती स्त्री० एक नगरी (रामे लवने तेनो राजा बनाव्यो हतो) शरावरण न० ढाल [भाथो शरावाप पुं० धनुष्य (२) बाणनो शरासन पुं० धनुष्य शरीर न० देह; अंग (२) घटक तत्त्व (३) शारीरिक बळ (४) शब (५) पोतानी जात; जीवात्मा शरीरक पुं० जीव (२) न० नानुं - तुच्छ शरीर (३) शरीर शरीरज पुं० बीमारी (२) आवेग; कामवासना (३) कामदेव (४) पुत्र शरीरपात पुं० मोत शरीरप्रभव पुं० पिता शरीरबद्ध वि० देहधारी; मूर्तिमंत शरीरबंध पुं० देहर्नु चोकळु-बंधारण (२) देहधारी तरीके जन्म शरीरभाज् वि० देहधारी; मूर्त (२) पुं० देहधारी प्राणी शरीरयात्रा स्त्री० निर्वाह ; आजीविका शरीररत्न न० उत्तम शरीर शरीरवृत्ति स्त्री० शरीरनुं धारण-पोषण शरीरसंपत्ति स्त्री० शरीरनु आरोग्य शरीरसाद पुं० शरीर सुकावं ते शरीरस्थिति स्त्री० शरीरन पोषण के आधार (२)भोजन लेवू ते शरीराकार पुं० शारीरिक चेष्टा शरीरांत पुं० शरीरना वाळ शरीरिन् वि० शरीरधारी; मूर्त (२) जीवतुं (३) पुं० देहधारी प्राणी (४) मनुष्य (५) जीवात्मा शरोपासन न० धनुर्विद्यानो अभ्यास शरोध पुं० बाणनो वरसाद शर्करा स्त्री० साकर; खांड (२) नानो पथ्थर; कांकरो (३) कांकरावाळी जमीन (४) टुकडो (५)ठीकरुं(६)कोई पण कठण वस्तु (७) सोनावाळी जमीन शर्कराचल पुं० आठ भार साकरनो पर्वत (दानमा अपाय छे ते) शर्कराल वि० रेताळ; रेतीना कण वाळं (जेम के पवन) शर्मन् वि० सुखी (२) समृद्ध (३) पुं० ब्राह्मणना नामने लगाडालो शब्द (उदा० विष्णुशर्मन्) (४) न० सुख; हर्ष (५) आशीर्वाद (६) रक्षण (७)घर शर्मिष्ठा स्त्री० ययाति राजानी बीजी राणी (प्रथम राणी देवयानी) शर्व चु० शिव (२) विष्णु शर्वरी स्त्री. रात्री (२) सांज शर्वाणी स्त्री० पार्वती; दुर्गा शलभ पुं० पतंगियु (२)तीड; तीतीघोडो शलल न० साहुडीनुं सळिया जेवू पीछु शलंग पुं० राजा (२)एक जातनुं मीर्छ शलाका स्त्री० सळियो; सळी (२) आंजवानी सळी (३)बाण (४) छत्रीनो सळियो (५) फणगो; अंकुर (६) खींटी; खीली (७) आंगळी शलाकापुरुष पुं० नमूनारूप - मापवाना गज रूप-- उत्तम पुरुष (जैन). शल्य पुं० मद्र देशनो राजा; नकुल Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंख शल्यक ४९५ सहदेवनो मामो (२) पुं०; न० (२) शुकनियाळ; शुभ (३) उत्तम भालो (३) बाण (४) कांटो (५) (४) हणायेलु (५) घवायेलु खींटी; खीलो (६) न० शरीरमा शस्त्र न० हथियार (२) ओजार (३) बहारथी खूपेली अने पीडा करती वस्तु लोखंड; पोलाद (६) हृदयदारक पीडा करतुं कांई पण शस्त्रग्राहिन वि० शस्त्र धारण करनारं शल्यक पुं० बाण ; तोमर (२) कांटो शस्त्रन्यास पुं० शस्त्र हेठां मूकवां-छोडी (३) साहुडी (४) व्याध देवां ते शल्यकवत् वि० अणीदार मोवाळं शस्त्रपूत वि० रणभूमि उपर शस्त्र वडे शल्यत्रोत वि० बाणथी वींधायल हणायेलं होवाथी दोषरहित एवं शल्यित वि० वींधायलं शस्त्रभृत् पुं० शस्त्रधारी; योद्धो शल्ल १५० जq शस्त्रव्यवहार पुं० शस्त्रनो अभ्यास शल्लकी स्त्री० साहुडी (२) एक झाड शस्त्रसंपात पुं० एकदम शस्त्रो पडवा (हाथीओने बहु गमे छे) के वरसवा लागवां ते शव पुं०; न० शब; मडहूँ शस्त्रिका, शस्त्री स्त्री० छरी; कटार शवाश वि० मडदं खानालं शस्य वि० वखाणवा लायक शश् १ प० कूदवू; ठेकडो भरवो शस्य न० धान्य; अनाज (२) छोड के शश पुं० ससलु (२) चंद्रमा देखातो मृग झाडनो पाक के फळ शशधर, शशभृत्, शशलक्ष्मण,शशलांछन शंक १ आ० शंका करवी (२)बीयूँ (३) पुं० चंद्र (मृगना चिह्नवाळो) अविश्वास करवो (४)मानवू; धारQ शशविषाण, शशशृंग न० . ससलानुं शंकनीय वि० शंका करवा योग्य (२) शिंगडु (असंभवित वस्तु) __ कल्पवा योग्य शशांक पुं० चंद्र शंकर वि० कल्याणकर; शकनियाळ शशांकलेखा स्त्री० बीजनो चंद्र (२) पुं० शिव (३) शंकराचार्य शशिकला स्त्री० चंद्रनी कळा शंका स्त्री० शक; संदेह; वहेम (२) शशिकांत पुं० चंद्रकांत मणि (२) भय ; डर (३) आशा; अपेक्षा (४) न० पोय| भ्रम; खोटी मान्यता शशिज पुं० बुधग्रह शंकित ('शंक' नुं भू० कृ०) वि० शंका शशिन् पुं० चंद्र करेलु (२)अविश्वासु (३) संदिग्ध (४) शशिप्रभ वि० चंद्रना जेवा तेजवाळं डरतुं; बीनेलं (५) निर्बळ; अदृढ शशिमौलि, शशिशेखर पुं० शिव शंकिन वि० शंका करतुं; वहेम राखतुं; शश्वत् अ० निरंतर; सदा; हमेश (२) (समासने अंते) (२) जोखम भरेलू वारंवार [जातनो मालपूडो । शंकु पुं० बाण; भालो; कटार (२) शष्कुली स्त्री० काननी नळी (२) एक थांभलो (३) खींटी; खीलो (४) बाणनी शष्प न० कुमळू घास अणी (५) झाडनु ठूठे (६) १०,००० शष्पभुज, शष्पभोजन पुं० घास खानारं अबजनी संख्या प्राणी प्राणी वधेर ते शंख पुं०, न० एक जातना दरियाई शसन न० कतल करवी ते (२) यज्ञमां प्राणीन कोटलं, जेने फंकीने वगाडशस्त ('शंस्' नुं भू० कृ०) वि० प्रशंसेलु वामां आवे छे (२) कपाळ उपरन Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंखक ४९६ शाखिन् हाडकुं(३)हाथीना बे दंतूशल वच्चेनो शंसिन् वि० (समासने अंते) वखाणतुं भाग (४)कुबेरना नव निधिमांनो एक (२) कहेतुं (३) दर्शावतुं (४)भाखतुं शंखक पुं०, न० शंख(२)न० शंखनी चूडी शाक पुं०, न० खाई शकाय तेवां कंद, शंखध्म (-ध्मा) पुं० शंख फूंकनारों फळ, भाजी (२)पुं० सागनुं झाड (३) शंखनख पुं० एक दरियाई प्राणी शक लोकोनुं नाम (४) शालिवाहन शंखवलय पुं० शंखनी चूडी संवत (५) (सातमांथी) छठो द्वीप शंखांतर न० कपाळ शाकटिक पुं० गाडी हांकनारो शंखिनी स्त्री० स्त्रीओना चार वर्गमांनी शाकल वि० टुकडा संबंधी (२) पुं० एक (पद्मिनी, चित्रिणी, शंखिनी, __ ऋग्वेदनी एक शाखा हस्तिनी; सुंदर, गुणशीलयुक्त तथा शाकंभरी स्त्री० दुर्गा .कामोपभोगरसिक एवी स्त्री) शाकिनी स्त्री० दुर्गानी तहेनातमा रहेती शंतनु पुं० एक चंद्रवंशी राजा; भीष्मना दासी (पिशाचणी) [ने लगतुं पिता (गंगा अने सत्यवतीना पति) शाकुन वि० शुकनने लगतुं (२) पक्षीशंतम वि० हितकर; कल्याणकर एवं शाकुनिक पुं० (पक्षी पकडनारो) पारधी शंब वि० सुखी; भाग्यवान (२)दरिद्री शाकुल, शालिक वि० माछलान (३) पुं० वज्र (४) खेतरने बीजी वार शाक्त वि० शक्ति संबंधी (२) पुं० खेड, ते (५) लंबाईनु एक माप । जगतना परम तत्त्व रूपे शतिना शंबपाणि पुं० इंद्र [एक राक्षस देवी रूपने पूजनारो शंबर वि० उत्तम (२)पुं० प्रद्युम्ने हणेलो शाक्तीक पुं० शक्ति-भालाथी लडनारो शंबल पुं० न० किनारो; तट (२) शाक्तेय, शाक्त्य पुं० जुओ 'शाक्त' पु० प्रवासनु भाथु उखेडेलं (घाने) शाक्य पुं० बुद्धना कुळनुं नाम शंबाकृत वि० बे वखत खेडेलु (२) फरी शाक्यमुनि पु० बुद्ध शंबूक पुं० एक जातनी छीप (२) नानो शाक वि० इंद्र संबंधी शंख(३)एक शूद्र तपस्वी (शूद्रने निषिद्ध शाक्वर पुं० बळद एवी तपस्याओ करवा बदल रामे शाख पुं० कार्तिकेय तेने हण्यो हतो) शाखा स्त्री० डाळी (वृक्षनी) (२) शंभु वि० कल्याणकर; सुखप्रद (२) हाथ (३) विभाग ; तड (४) ग्रंथनो पुं० शिव (३) आदरणीय ऋषि । विभाग (५) अमुक गोत्र के मंडळमां शंयु वि० सुखी; समृद्ध (२)पुं० यज्ञनी चालतो वेदनो पाठ (६) कोई पण अधिष्ठाता देवता शास्त्रनो विभाग शंस् १ प० कहेवू; वर्णन करवू (२) शाखानगर न० शहेरनुं पलं प्रशंसा करवी (३) ईजा करवी शाखाबाहु पुं० डाळी जेवो कोमळ हाथ शंसा स्त्री० प्रशंसा (२) इच्छा; आशा शाखाभृत् पुं० वृक्ष (३) मान्यता; धारणा शाखामृग पुं० वांदरुं शंसित ('शंस्' - भू० कृ०) वि० वखाणेलं शाखाविलीन बि० डाळ उपर वेठेलं (२) कहेलु (३) इच्छेलु (४)निश्चित (जेम के पंखी) करेलु (५) खोटो आक्षप मूकेलं (६) शाखिन् वि० शाखावाळं (२) वेदनी अनुष्ठान करेलुं; आचरेलु - कोई शाखाने अनुसरतुं (३) पुं० Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाट वृक्ष (४) वेद ( ५ ) वेदनी कोई शाखानो अनुयायी शाद पुं०, शाटक पुं०, न०, शाटी स्त्री० वस्त्र ( २ ) स्त्रीनं अमुक वस्त्र (अंदर पहेरातुं) (३) चोळी; कंचुकी शाठ्य न० शठता; लुच्चाई; कपट शाण वि० शणनुं बनावेलु (२) पुं० कसोटीनो पथ्थर ( ३ ) सराण (४) चार मासानुं वजन (५) न० शणनुं वस्त्र शाणी स्त्री० कसोटीनो पथ्थर ( २ ) सराणनो पथ्थर ( ३ ) शणनुं वस्त्र (४) कंथा; चीथरांनुं वस्त्र ( ५ ) नानो पदो के तंबू शात ( 'शो' नुं भू० कृ० ) वि० तीक्ष्ण धार काढेलु (२) पातळं; नाजुक (३) कृश; अशक्त ( ४ ) सुंदर शातकुंभ न० सोनुं शातकौंभ वि० सोनानुं शातऋतय वि० इंद्रनुं शातन न० धार काढवी ते (२) कापी नाखवं ते (३) चीमळावुं क्षीण थवं ते शातमन्यव वि० इंद्रनं शाहृद वि० विद्युत संबंधी शात्रव वि० शत्रु संबंधी ( २ ) शत्रुवटभर्यु (३) पुं० शत्रु (४) न० शत्रुओनो समुदाय ( ५ ) दुश्मनावट शाद्वल पुं०, न० घासनुं मेदान शाप पुं० श्राप; शराप (२) शपथ; सोगंद (३) उपद्रव शापयंत्रित वि० शापथी नियंत्रित शापास्त्र पुं० मुनि; ऋषि ( शाप जेनुं हथियार छे ते) शापांत पुं० शापनो अंत शापित वि० सोगंदथी बंधायेल शापोत्सर्ग पुं० शाप आपको शाब्द, शाब्दिक वि० शब्दनुं; शब्दसंबंधी (२) मोंए कहेलुं स्थिति शायिका स्त्री० ऊंघ; निद्रा (२) सुवानी शाल शारवि०काबरचीतरुं (२) शेतरंजनुं महोरु शारणिक वि० शरण-आश्रय इच्छतुं शाल्पिक पुं० भीष्म (बाणशय्या वाळा) शारता स्त्री० काबरचीतरापणुं शारद वि० शरद ऋतुनुं ( २ ) वार्षिक (३) कुशळ; समर्थ (४) पुं० वर्ष शारदा स्त्री० एक जातनी वीणा (२) दुर्गा (३) सरस्वती शारि स्त्री० शेतरंजनुं महोरु (२) सारिका (पक्षी) (३) कपट (४) हाथीनुं बख्तर के जीन शारिका स्त्री० मेना ( २ ) सारंगी वगैरे वगाडवानी कामठी ( ३ ) शेत - रंज - बाजी इ० रमवां ते शारित वि० काबरचीतरु शारीर वि० शरीर संबंधी (२) देहधारी; मूर्तिमंत ( ३ ) पुं० जीवात्मा शारीरक न० जीवात्मा (२) तेना साचा स्वरूप संबंधी तपास ( शंकराचार्यना भाष्यनुं नाम ) . शाल वि० शियाळनुं शांग वि० शीगडानुं (२) धनुष्यथी सज्ज (३) पुं०, न० धनुष्य ( ४ ) विष्णुना धनुष्यनुं नाम ( ५ ) एक पंखी शार्ङ्गधर, शाङ्गपाणि पुं० विष्णु शाङ्गिन् पुं० धनुर्धारी योद्धो (२) विष्णु (३) शिव शार्दूल पुं० वाघ (२) (समासने अंते ) वर्ग श्रेष्ठ माणस (उदा० 'नरशार्दूल') (३) राक्षस शार्व वि० शिवनुं शावर वि० रात्रीनं; रात्रीने लगतुं (२) न० गाढ अंधकार शार्वरी स्त्री० रात्री ४९७ शाल १ आ० प्रशंसा - खुशामत करवी ( २ ) - युक्त होवु; प्राप्त थयेलुं होव शाल वि० कहेतुं; बडाश मारतुं (२) अवाज करतुं ( ३ ) पुं० एक वृक्ष (ऊंचं अने भव्य ) (४) वृक्ष ( ५ ) शालिवाहन Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शानिर्यास ४९८ शांत शालनिर्यास पुं० शाल वृक्षनो गुंदर शासक पुं० राजा (२)सजा करनारो शालभंजिका स्त्री० पूतळी (२) वेश्या शासन वि० उपदेश आफ्नारु (२) सजा शाला स्त्री० ओरडो (२) मकान (३) करनारु (३) न० उपदेश; तालीम; वृक्षतुं थड (४) तबेलो शिक्षण (४) राज्य; अमल शासन (५) शालावृक पुं० कूतरो आज्ञा; हुकम (६) दानपत्र (राजाए शालि स्त्री० डांगर [साचवती स्त्री आपेलं) (७)लेखित करार; दस्तावेज शालिगोपी स्त्री० डांगरनो क्यारडो शासनदूषक वि०आज्ञानुं उल्लंघन करनार शालिग्राम पुं० विष्णुर्नु प्रतीक मनातो शासनहारिन पुं० संदेशवाहक ; दूत पवित्र पथ्थर; शालग्राम शासनीय वि० शिक्षा करवा योग्य (२) शालिन् वि० (मुख्यत्वे समासने अंते) जेना उपर शासन करवू जोईए तेवू -थी युक्त; वाळं;-थी शोभतुं (२) शासित वि० शासन के अमल चलावसद्वर्तनवार्छ; सुशील वानो होय तेवु (२) शिक्षा कराई होय शालिभवन न० डांगरनुं खेतर [बळद तेवू (३) काबूमां रखायेलं शालिवाह पुं० डांगर वहन करवा माटेनो शासित पु० राजा; हाकेम (२) सजाशालिवाहन पुं० जेना नामनो शक (ई० करनारो (३) शिक्षक स०७८ थी शरू थाय)छे ते प्रसिद्ध राजा शास्तु पुं० शिक्षक; गुरु (२) पिता शालिहोत्र पुं० घोडो (२)पशुचिकित्सा (३) राजा; हाकेम शास्त्रनो लेखक(२)न० पशुचिकित्सार्नु शास्त्र न० आज्ञा; हुकम (२)धर्मशास्त्रशास्त्र नी आज्ञा (३) धर्मशास्त्र (४) कोई शालीन वि० शरमाळ (२)तुल्य ; समान पण विषयन तात्त्विक तेम ज व्यवस्थित (३) पुं० गृहस्थ (४) न० अजाचक ज्ञान (५) ग्रंथ (६) सिद्धांतज्ञान वृत्ति(५)शरमाळपणुं ('प्रयोग' थी ऊलटुं) शालूक न० कमळनो कंद (२)पुं० देडको शास्त्रज्ञ वि० शास्त्रनुं जाणकार (२) शालेय न० डांगरनुं खेतर मात्र सिद्धांत जाणनाएं [प्रमाणे शाल्मलि पुं०, स्त्री०, शाल्मली स्त्री० शास्त्रतस् अ० शास्त्रानुसार; शास्त्र समडानुं झाड शास्त्रदृष्ट वि० धर्मशास्त्रोमां कहेलं शाल्व पुं० एक देश (२)ते देशनो राजा शास्त्रविमुख वि० शास्त्राभ्यास न शाव वि० शब संबंधी(२)घेरा पीळा रंगनुं __ गमतो होय तेवू (३)पुं० पशु, बच्चु (४)पुं०,न० शब शास्त्रशिल्पिन् पुं० काश्मीर देश शावक पुं० पशु- बच्चुं शास्त्राननुष्ठान न० शास्त्रनी आज्ञानो शाश वि० ससलानुं भंग - उल्लंघन [पंडित शाश्वत वि० नित्य ; कायममुं (२)न । शास्त्रिन वि० शास्त्रनुं जाणकार; शाश्वतपणुं (३) स्वर्ग शास्त्रीय वि० शास्त्र संबंधी (२) शास्त्र शाश्वतिक वि० कायमचें; हमेशनुं अनुसार [अलंकार बनावनारो शास् २ प० शीखवq; उपदेश आपवो शांखिक पुं० शंख फूंकनारो (२) शंखना (२) राज्य चलावq (३) हुकम करवो शांत ('शम्' नुं भू० कृ०) वि० शांति(४) कहेवू; जणावq(५)सलाह आपवी युक्त (२) मटी गयुं होय तेवु (रोग) (६)शिक्षा करवी (७) ताबे करवू (३) ओछु थयेलं; दूर थयेलं; बुझा Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९९ शांतगुण येलु (४) बंध पडेलु; अटकेलं (५) पाळेलं; वश करेलुं (६) मंद; मधुर (७) नम्र (८) बिनअसरकारक बनेलं शांतगुण वि० मृत शांतनव पुं० भीष्म (शांतनुना पुत्र) शांतनु पुं० भीष्मना पितानुं नाम शांतम् अ० 'अरे ना!', 'एम ते होय!' 'ईश्वर एम न करे' -एम निवारणना अर्थमां वपरातो अव्यय शांतरजस् वि० रज; धूळ विनानुं; रजोगुण के तृष्णाओ विनानुं शांता स्त्री० दशरथ राजानी पुत्री; ऋष्यशृंगनी पत्नी शांति स्त्री० शांत पाडवू, धीमुं पाडवू के दूर करवू ते (२)वेग, क्षोभ के क्रिया न होवां ते (३) क्लेश कंकास के यद्धनो अभाव (४) विश्रांति; निवृत्ति (५) मानसिक के शारीरिक उपद्रव के विकार- मटी जq ते (६) सांसारिक तृष्णानो अभाव शांतिमार्ग पुं० मोक्षमार्ग शांत्युवक न० शांति माटेनुं पवित्र जळ शांबरी स्त्री० इंद्रजाळ; माया । शांभव, शांभवीय वि० शिवने लगतुं शिक्य न०, शिक्या स्त्री० शींकु शिन १ आ० शीखवू; अभ्यास करवो शिक्षक पुं० शीखनारो (२)शीखवनारो शिक्षण न० शीखवू ते (२)शीखवयूँ ते । शिक्षा स्त्री० शीखवू ते; अभ्यास (२) कशं करवाने शक्तिमान थवानी इच्छा (३) शिक्षण; उपदेश (४) एक वेदांग; उच्चारशास्त्र (५) शास्त्र । शिक्षित ('शिक्ष' न भू० कृ०) वि० शीखेलं; अभ्यास कर्यो होय तेवू (२) शीखवेलुं (३) तालीम आपेलं (४) कुशळ; प्रवीण शिक्षितव्य, शिक्ष्य वि. शिक्षण आपवा योग्य (२) शीखवा लायक शितिकंठ शिखर पुं०, न० पर्वतनी टोच (२) झाडनी टोच (३) कलगी। शिखरिन् वि० कलगीवाळू (२) अणी दार (३) पुं० पर्वत (४) झाड । शिखंड पु० चूडाकर्म वखते माथा उपर के बे बाजुए जे कानशेरियां रखाय छे ते (२) मोरनु पीछांवाळं पुच्छ (३) कलगी शिखंडक पुं० माथानी बाजुओ उपर रखातां जुलफां (क्षत्रियो त्रण के पांच राखे छे) (२) कलगी (३) मोरपुच्छ शिखंडिन पुं० मोर (२) द्रुपदनो पुत्र शिखंडिनी स्त्री०ढेल शिखा स्त्री० माथा उपर रखाती वाळनी लट (२) कलगी (३)शिखर; टोच (४) तीक्ष्ण अणी (५) वस्त्रनो छेडो (६) ज्योत (७) किरण (८) मोरनी कलगी [माळा शिखादामन् न० माथानी टोचे पहेराती शिखाधर पुं० मोर शिखाधरज न० मोरनुं पीछु शिखामणि पुं० माथानी टोचे पहेरातो ___ मणि; चूडामणि शिखावत् वि. कलगीवाळू (२)ज्योतवाळू (३) अणीदार (४) पुं० अग्नि (५) दीवो शिखावल पुं० मोर शिखिध्वज पुं० कार्तिकेय शिखिन् वि. अणीदार (२)कलगी के चोटीवाळु (३) पुं० मोर(४)अग्नि शित ('शो' नुं भू० कृ०) वि० धार काढेलु(२)पातळ; कश(३)क्षीण; अशक्त शितषार वि० तीक्ष्ण धारवाळू शितशूक पुं० जव (२) घउं शितान पुं० कांटो शिति वि० श्वेत (२) काळु (३) घेरुं भूरुं; नील रंगनुं शितिकंठ पुं० नीलकंठ; महादेव Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शितिरत्न ५०० शिवा शितिरत्त न० नीलम [धारी) शिरोमणि पुं० माथे धारण करवानो शितिवासस् पुं० बळराम (नीलवस्त्र- - मणि; चूडामणि (२) पंडितोनो एक शिथिल वि० ढीलुं के मंद (२) (बांधेलु) इलकाब छोडी नाखेलं (३)खरी के गरी पडेलं शिरोरुह (-ह) पुं० वाळ, केश (४)सुस्त;नबळु [नाखवू;तजी देवु) शिरोवेष्ट पुं०, शिरोवेष्टन न० पाघडी; शिथिलयति प० (ढीलं पाडवू; छोडी फॅटो इ० माथे पहेरवानुं ते शिथिलीकृ ८ उ० ढीलु करवं; छोडी शिल पुं०, न० खेतरमां पडेला कण नाखवू (२) नबळू पाडवू (३) तजी देवू वीणवा ते [पथ्थर शिथिलीभू १ प० ढीला पडवू (२) शिला स्त्री० पथ्थर; खडक (२)घंटीनो खरी के गरी पडवू [छे ते नदी शिलाकुसुम न० मनःशिल शिप्रा स्त्री० उज्जयिनी जेने कांठे आवेली शिलावेश्मन् न० पर्वतमां कोतरेली शिफा स्त्री० (वडपीपरना जेवू) लांबू सुशोभित गुफा [काढेलु लटकतुं मूळ (२) कमळ कंद (३) कोई शिलाशित वि० पथ्थर घसीने धार पण मूळ (४) चाबुकनो प्रहार शिली स्त्री० उमरो (२) बाण (३) शिकाघर पुं० शाखा; डाळी थांभला- माथु (४) देडकी शिफारुह पुं० वडनुं झाड शिलीमुख पुं० भमरो (२) बाण शिबि पुं० एक देश- नाम (ब० व०) शिलींध्र न० बिलाडीनो टोप (२) (२)एक राजा जेणे शरणागतनी रक्षा केळD फूल माटे पोताना शरीरनुं मांस कापी शिलोच्चय पुं० पर्वत; मोटो खडक आप्यु हतुं शिलोंछ पुं० खेतरमा गरो पडेला कण शिबिका स्त्री० पालखी (२)ठाठडी वीणवा ते (२) अल्प संग्रह शिबिर न० लश्करी छावणी । शिल्प न० कळा-कारीगरी (६४ गणाशिरस् न० माथु (२)टोच; शिखर (३) वाय छे) (२) कोई पण कारीगरीनी लश्करनी आगली हरोळ (४)(समा- कुशळता; हुन्नर सने अंते)मुख्य के अग्रेसर एवं ते शिल्पक न० एक जातनुं नाटक (जेमां शिरसिज पुं० केश; वाळ जादुना अने गूढ मंत्रतंत्रना प्रयोग शिरसिजपाश पुं० केशपाश; चोटलो निरूपाय छे) शिरस्तस् अ० माथामांथी शिल्पिन् वि० शिल्पने लगतुं(२)यांत्रिक शिरस्त्र, शिरस्त्राण न० माथा माटेनो (३) पुं० कारीगर'; शिल्पी लोखंडी टोप (२) पाघडी इ० माथे शिव वि० शुभ; कल्याणकारी (२) पहेरवानुं ते सुखी; भाग्यशाळी; तंदुरस्त (३) पुं० शिरस्य वि० माथानु(२)पुं० चोख्खा वाळ शंकर (४) वेद (५) न० कल्याण; शिरःस्थान न० मुख्य ओरडो सुख (६) मोक्ष शिरा स्त्री० रक्तवाहिनी; नस शिवताति वि० शुभ - सुखद अंतवाळू शिरीष पुं० एक फूलझाड(२)न० तेनुं । शिवपद न० मोक्ष फूल (कोमळतानुं दृष्टांत गणाय छे) शिवलिंग न० शिवमुंलिंग स्वरूपी प्रतीक शिरोधरा स्त्री०, शिरोधि, शिरोध्र पुं० शिवंकर वि० कल्याण के सुख करनाएं ग्रीवा; डोक शिवा स्त्री० पार्वती (२) शियाळ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिवादेशक शिवादेशक पुं० भविष्य भाखनारो (२) शुभ समाचार लावनारो शिवालय पुं० शिवनुं रहेठाण (२) न० शिवनुं मंदिर (३) स्मशान शिवी पुं० द्वि० व० शिव अने पार्वती शिशिर वि० ठंडु; शीतळ (२) शिशिर ऋतुने लगतुं (३) पुं०, न० ठंडी; हिम (४) माघ अने फागण मासनी ऋतु शिशिरकिरण, शिशिरदीधिति पुं० चंद्र शिशिरमथित वि० ठंडीथी पीडा शिशिरात्यय, शिशिरापगम पुं० वसंत ऋतु (शिशिर ऋतु जतां आवे ते) शिशिरांशु पुं० चंद्र शिशु, शिशुक पुं० बाळक; बच्चु . शिशुपाल पुं० चेदि देशनो राजा शिशुमार पुं० एक जळचर प्राणी (२) ध्रुव पासेनुं ताराचक्र शिशुमारशिरस् न० ईशान खूणो शिश्न न० पुरुषनी गुडेंद्रिय शिश्नोदरपरायण वि० जीभना स्वादमां अने कामवासनामां रत शिष् १० उ०,७५० शेष - बाकी राखवू (२) ७ प० भेद बताववो शिष्ट ('शिष' नुं भू० कृ०) वि० बाकी रहेढुं; वधेलु (२) आज्ञा करेलु (३) सुशिक्षित ; डायु (४) मुख्य; आगेवान शिष्टाचार पुं० डाह्या-विद्वान-माणसोनो व्यवहार (२) सभ्य रीतभात शिष्टि स्त्री० शासन (२) हुकम (३) सजा; शिक्षा शिष्ट्यर्थम् अ० सुधारणा-शिक्षण माटे शिष्य पुं० विद्यार्थी (२) चेलो शिघ १५० सूंघवं गरजवं शिज १,२ आ०,१० उ० रणकवु (२) शिज पुं० रणकार (घरेणांनो) शिजित ('शिंज्' नुं भू० कृ०) रणकतुं (२) न० (घरेणांनो) रणकार शिंजिनी स्त्री० धनुष्यनी दोरी शील शिबा, शिबि, शिबी स्त्री० शिंग; फळी शिशपा स्त्री० एक झाड (२)अशोक वृक्ष शी २ आ० शयन करवू; सूर्बु शोक १ आ० छांटवू शोकर पुं० फर फर (पाणीनी) (२) टीपुं; फोरं (पाणी के वरसादD) शीकरवर्षिन वि० फरफर रूपे वरसतुं शीकरिन् वि० फरफर वरसावतुं शीघ्र वि० झडपी; वेगवंत शीघ्रचेतन पुं० कूतरो शीघ्रता स्त्री०, शीघ्रत्व न० झडप; वेग; उतावळ शीघ्रम् अ० जलदीथी; वेगथी शीघ्रलंघन वि० जलदी रस्तो कापतुं शीत वि० ठंडु; टाढुं (२) मंद; सुस्त (३) न० टाढ; ठंडी (४) कफ (धातु) शीतकिरण, शीतग,शीतद्यति, शीतरश्मि, शीतरच (-चि) पुं० चंद्र शीतल वि० ठंडु (२)पीडा न थाय ते, शीतला स्त्री० बळियाना रोगनी देवी; ते रोग (२) रेती शीताल वि० टाढथी अकडाई गयेलं शीतांश पुं० चंद्र शीतीभू १५० टाढुं पाडवू शोधु पुं०, न० मद्य (शेरडीनुं) शीफर वि० रम्य शीर पुं० अजगर शीर्ण ('श'नुं भू० कृ०) वि० चीमळाई गयेलं; सडी गयेलुं (२) तूटी-फाटी गयेलु (३) सुकाई गयेलं; कृश शीर्ष न० माथु लायक शीर्षच्छेद्य वि० माथु कापी नाखवा शीर्षत्राण न० लोखंडी टोपो शील १५० मनन करवू; चिंतवq (२) भजवू; पूजq(३)आचर (४) १० उ० आदर करवो(५) अभ्यास-पुनरावृत्ति करवी (६) वारंवार मुलाकाते जवू (७) पहेरवू सं. गु.-३२ Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शील शील न० स्वभाव ; वलण (२) टेव; रिवाज (३) वर्तन (४) सदाचार शीलखंडन न. चारित्र्यभ्रष्ट-नीति भ्रष्ट थर्बु ते शीलगुप्त वि० लुच्चुं शोलन न० वारंवार अभ्यासवं ते शीलभ्रंश पुं० चारित्र्यभ्रष्टता शीलवंचना स्त्री० चारित्र्यभ्रष्ट करवू ते शीलवृत्त न० सद्वर्तन शीलित वि० अभ्यासेलुं (२) पहेरेलु (३) वारंवार मुलाकात लीधी होय तेवू (४)-थी युक्त [शुकदेवजी शुक पुं० पोपट (२) व्यासना पुत्रशुकच्छद पुं० पोपटनी पांख शुकपितृ पुं० व्यासमुनि शुक्त ('शुच् ' मुं० भू० कृ०) निर्मळ ; स्वच्छ (२) खारं शुक्ति स्त्री० छीप (२)घोडानी छाती के गरदन उपरना वाळनो गुच्छ शुक्र वि० तेजस्वी (२) शुद्ध; शुभ्र (३) पुं० शुक्रग्रह (४) शुक्राचार्य; असुरोना गुरु (५)न० वीर्य (६) तेज शुक्ल वि० सफेद ; तेजस्वी(२)निष्कलंक; निर्मळ (३) सात्त्विक (४) यशस्कर (५)तेज आपनाएं (६)पुं० श्वेतवर्ण शुक्लजीव पुं० एक छोड (वज्री) शुक्लदेह वि० पवित्र शरीरवाळं शुक्लपक्ष पुं० अजवाळियु शुक्लापांग पुं० मयूर; मोर शच १५० शोक करवो (२) पस्तावो करवो (३) ४ उ० शोक करवो (४) पवित्र-स्वच्छ थq (५)प्रकाशित करवं शुच्, शुचा स्त्री० शोक (२) आंसु शुचि वि० निर्मळ, स्वच्छ (२) श्वेत (३) तेजस्वी (४) निष्कलंक; पवित्र (५) प्रमाणिक (६) पुं० श्वेतवर्ण (७) उनाळो (८) जेठ महिनो (९) अषाढ महिनो (१०) अग्नि (११) आकाश যমুম্বক शुचिषद् वि० सदाचारने मार्ग जनाएं शुचिसमाचार वि० पवित्र आचारवाळं शुचिस्मित वि० मधुर स्मितदाळं शुद्ध ('शुध् ' नुं भू० कृ०) वि० स्वच्छ (२)निर्मळ ; पवित्र (३) श्वेत; कांतिमान (४) डाघ विनानु (५) निर्दोष; निष्कपट (६)चूकवी दीधेलु (७)धार काढेलु (८) पुं० शुक्लपक्ष (९)शिव शुद्धवंश्य वि० पवित्र कुळमां जन्मेलं शुद्धांत पुं० राजानुं अंतःपुर (२) राणी शुद्धांतदारिन् पुं० अंतःपुरनो रक्षक शुद्धि स्त्री० पवित्रता (२) तेजस्विता (३) प्रायश्चित्त शुध् ४ प० पवित्र थर्बु (२) शुभ--अनुकूळ होवु (३) निःसंदेह बनवू (४)चूकवी देवू शुन पुं० कूतरो शनी स्त्री० कूतरी शुभ १ आ० दीपवू; शोभ, शुभ वि० सुंदर (२)तेजस्वी (३) मांगळिक; कल्याणकारी (४) नीतियुक्त (५) न० कल्याण ; मंगळ; सुख शुभदर्श, शुभदर्शन वि० सुंदर शुभमंगल न० कल्याण ; सद्भाग्य शुभलग्न पुं०, न० शुभ क्षण शुभशंसिन् वि० भावि शुभ दर्शावनाएं शुभंयु वि० भाग्यशाळी ; सुखी शुभाशुभ न० सुख-दुःख ; इष्ट-अनिष्ट शुभेतर वि० अशुभ (२) अनिष्ट शुभोदर्क वि० सुखकर परिणामवाळं शुभ्र वि० उज्ज्वल; तेजस्वी (२)सफेद शुल्क पुं०,न० जकात; दाण (२)नफो; लाभ (३) कन्यानां मातापिताने अपाती किंमत (४) लग्न वखते भेट (५) परठण; दहेज (६) मूल्य ; किंमत (७) बानु। शुल्ब (--लब) न० दोरी; दोरडु (२) पाणीनी नजीकनुं स्थान शुश्रू स्त्री० माता शुश्रूषक वि० तहेनातमा रहेनारु (२) पुं० सेवक ; हरियो Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०३ शुश्रूषा स्त्री० सेवा; चाकरी (२) सांभळवानी इच्छा (३) आज्ञांकितपणुं शुश्रूषु वि० सांभळवाने आतुर एवं (२) सेवा करवाने तत्पर एवं शुष ४ प० सुकावं (२)चीमळावं (३) क्षीण थq (४) दुःखी थएँ, पीडावू शुषिर वि० छिद्रोवाळू (२)न० फूंकीने वगाडवानुं वाद्य शुषी स्त्री० सुकावूते(२) दर (जमीनमां) शुष्क ('शुष्' न भू० कृ०) वि० सुकाई गयेल; सूकुं (२)चीमळाई गयेल (३) ढोंगथी करेलु (४) पोकळ; फोगट; नाहक (५) कठोर शुष्ककलह पुं० फोगट तकरार (२) ढोंगी तकरार केवळ गावं ते शुष्कगान न० (नृत्य वगेरे विनानु) शुष्मन् पुं० अग्नि (२)न० तेज (३) बळ शुष्मिन् वि० शक्तिशाळी ; तेजस्वी शंग न० अंकुरनो दोडो शुठि(-ठी) स्त्री० सुंठ शुंडा स्त्री॰ हाथीनी सूंढ (२) मद्य ; दारू (३) वेश्या (४) दारूनुं पीठं शुंडार पुं० हाथीनी सूंढ (२) कलाल शुभ पुं० दुर्गाए मारेलो एक राक्षस शूक पुं०, न० तीक्ष्ण अणी के छेडो (२) अणियाळो वाळ शूकर पुं० भुंड; डुककर शकशिखा स्त्री० (जव वगेरे)अनाजना पोपटा उपरनी तीव्र अणी शूद्र पुं० चतुर्थ वर्णनो माणस शून ('शिव'- भू० कृ०) वि० सूजी गयेलं (२) वधी गयेलं शूना स्त्री० कतलखानु (२)जेनाथी जीवहिसा थाय तेवं कोई पण घरगथु साधन शन्य वि० खाली (२) लक्ष के विषय विनानुं (दृष्टि, हृदय इ०) (३)अभाव होय ते, (४) निर्जन (५)हताश (६) -विना-;-रहित (७) अर्थहीन (८) HEARTHATAme शंखल न० निर्जन स्थान (९)आकाश (१०) मीडु (११)अभाव (१२)एरिंग शून्यपाल पुं० अवेजी; प्रतिनिधि शून्यमय वि० निष्फळ; बिनअसरकारक शन्यवादिन् पुं० (दरेक वस्तुनो अभाव माननारो) बौद्ध (२) नास्तिक शून्यहृदय वि० शून्य मन के चित्तवाळं; बेध्यान (२)खुल्ला दिलवाळु; संदेह विनानु (३)लागणी विना-; क्रूर शर् ४ आ० ईजा करवी; हणq (२) १० उ० शौर्य दाखवQ शूर वि० शूरवीर; पराक्रमी (२)पुं० शूरवीर माणस (३)श्रीकृष्णना दादा शूरकोट पुं० तुच्छ योद्धो (जंतु जेवो) शूरता स्त्री०, शूरत्व न० शूरपणुं . शूरमानिन् पुं० पोताना शौर्यनी खोटी बडाई मारनारो शूरसेनाः पुं० ब० व० मथुरा नजीकनो एक प्रदेश के तेना लोको शूर्प पुं०, न० सूपडं शूर्पकर्ण पुं० हाथी (२)गणेश शूल पुं० भाला जेवू अणीदार हथियार (२) त्रिशूल (३) मांस सेकवानो सळियो (४) शूळी (५) शूळ; तीव्र वेदना(६)विक्रय देव(त्रिशूलधारी) शलधक, शूलपाणि, शलभत् पुं० महाशलाधिरोपित वि० शूळीए चडावेलं शूलारोपण न० शूळीए चडावq ते शूलावतंसित वि० शूलीए चडावेलु शूलांक पुं० शिव [(त्रिशूलधारी) शूलिन् वि० भालाधारी (२)पुं० शिव शल्य वि० सळिया उपर शेकेलं शगाल पुं० शियाळ शृणि स्त्री० अंकुश (हाथी माटेनो) शृत वि० रांधेलु (२) उकाळेलं शृंखल पुं०, न० लोढानी सांकळ (२) सांकळ (लाक्षणिक पण) (३) कमरे पहेरवानी सांकळी Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०४ शैशिर शृंखलक शृंखलक पुं० सांकळ (२)पगे डेरावाळू प्राणी (दूर चाल्युं न जाय ते माटे) शृंखला स्त्री० जुओ 'शृंखल' शृंग न० शिंगडु (२) शिखर; टोच (३) ऊंचाई (४)प्रभुत्व (५) रणशिंगुं (६) अभिमान (७) बाणनी शींगडाना आकारनी सोटी-कांड शृंगक पुं०, न० शिंगडु (२) पिचकारी शृंगवेर न० गंगा नदी उपरनुं एक शहेर (आजना मीरझापुर नजीक) शृंगाटक न० चार रस्ता भेगा थता होय ते स्थान (२) बार| शंगार पुं० क्रीडा के रति माटेनी स्त्रीपुरुषनी एक बीजा प्रत्येनी स्पृहा (२) शृंगाररस (३) विलास; रति (४) शणगार (५) हाथीना शरीर उपर सिंदूरथी करेलो शणगार शंगारचेष्टा स्त्री० शृंगारिक हावभाव शृंगाररस पुं० काव्यशास्त्रमा प्रसिद्ध आठ के नव रसमांनो प्रथम शंगारलज्जा स्त्री० प्रेमने कारणे ऊभी थयेली लज्जा शंगांतर न० शिंगडांना बे ऊंचा छेडा वच्चेनुं अंतर (गाय इ० नां) श्रृंगिका स्त्री० एक अस्त्र (२) शिला वगेरे फेंकवान यंत्र शंगिन् वि० शिंगडांवाळू (२) शिखरवाळ (३) पुं० पर्वत (४) हाथी (५) आखलो (६) शिव के तेमनो एक गण शु ९५० चीरीने टुकडा करवा (२) हणवू;ईजा करवी [(३)शिखर;टोच शेखर पुं० कलगी; तोरो (२) मुगट शेफ पुं०, न० पुरुषनी गुह्येद्रिय (२) वृषण; गोळी [फूलछोड; शहाळी शेफालि, शेफालिका, शेफाली स्त्री० एक शेमुषी स्त्री० बुद्धि; समजण शेवधि पुं० कीमती खजानो शेष वि० बाकी रहेलं (२) पुं०, न० बाकी रहेलं ते (३) वघेलं ते(४)पुं० परिणाम; - असर (५) अंत (६)मोत (७) शेषनाग (८) हाथी (९) प्रसाद; कृपा शेषशायिन् पुं० विष्णु प्रसाद शेषा स्त्री॰ देवने चडावेलां फूल वगेरेनो शेष अ० अंते, छेवटे (२) बाकीनी बधी बाबतमां (उदा० 'शेषे षष्ठी') शेष्य वि० उपेक्षा करवा योग्य शैक्य वि० शीकामां लटकावेलु (२) अणीदार (३) पुं० शीकुं(४)शींकामां राखेलु पात्र शैक्यायस न० लोही जेवा रंगन पोलाद शेक्ष वि० शास्त्रादिना अभ्यासवाळं शैघ्र, शैध्य न० त्वरा; वेग शैत्य न० ठंडक मिंदता; आळस शैथिल्य न० शिथिलता; ढीलापणुं(२) शैनेय पुं० सात्यकि शेल वि० पथराळ; पथ्थरनुं बनेलं (२) शिलायुक्त (३) पुं० पर्वत; खडक (४) पथ्थरनो ढगलो । शैलगुरु वि० पर्वत जेटलु भारे (२) पुं० हिमालय शैलजन पुं० पर्वतवासी शैलतनया, शैलपुत्री स्त्री० पार्वती शैलसार वि० पर्वत जेटलं दृढ के बळवाळू [वर्तणूक शैली स्त्री० ढब; रीत; पद्धति (२) शैलष पुं० नट शैलूषी स्त्री० नर्तिका; नटी शैलय वि० घणा खडकवाळू (२)पर्वतमांथी उत्पन्न थयेलु (३) पर्वत जेवू कठण (४) न० एक सुगंधी द्रव्य शैव वि० शिव संबंधी शैवल पुं० शेवाळ; लील शैवाल पुं० शेवाळ; लील (२) न० एक जातनुं सुगंधी लाकडं शिव न० बचपण शैशिर वि० शिशिर ऋतु संबंधी (२) हिममय ; बरफथी आच्छादित Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०५ शो ४ ५० [श्यति ] तीक्ष्ण कर शोक पुं० खेद; दिलगीरी; संताप शोकनिहत वि० शोकथी भागी पडेलु शोकस्थान न० शोक, कारण शोचिस् न० कांति; तेज शोच्य वि० अफसोस करवा योग्य शोण वि. लाल रंगनं; रातुं (२)पाट लिपुत्र नजीक गंगाने मळतो नद शोणहय पुं० द्रोणाचार्य शोणित वि० रातुं (२) न०. लोही शोणितपारणा स्त्री० लोही-मांसनो नास्तो के भोजन । शोणितपुर न० बाणासुरनी राजधानी शोणितभूत् पुं० देहधारी-शरीरी ते शोणिमन् पुं० रताश शोथ पुं० सोजो शोध पुं० शुद्ध करवू ते (२) सुधारQ ते (३) छूटवू ते (देवामाथी) (४) वेरनी वसूलात शोवन वि० शुद्ध करनारं (२) न० । शुद्ध करवू ते; साफ कर, ते (२) भूल सुधारवी ते (४) (देवू) भरपाई करवू ते (५) (वेरनी)वसूलात (६) धातु शुद्ध करवी ते शोधित वि० साफ करेलु; शुद्ध करेलु (२) (भूल) सुधारेलु (३) चूकवी दीधेलु (४) बदलो वाळेलु (५) (दोष के पापमांथी) मुक्त करायेलं शोफ पुं० सोजो; गांठ शोभन वि० तेजस्वी (२) सुंदर (३) शुभ (४) नीतियुक्त शोभना स्त्री० सुंदर के सद्गुणी स्त्री शोभनीय वि० सुंदर; मनोहर शोभा स्त्री० प्रभा; तेज (२) सौंदर्य (३) शणगार शोभिन् वि० प्रकाशतुं (२) शोभतं; सुंदर [जवू ते; क्षीणता शोष पुं० सुकाई जq ते (२) चीमळाई श्मशानशूक शोषण वि० सूकवी नाखवू ते (२) चिमळावq ते (३) पुं० कामदेवर्नु एक बाण (४) न० सूकवी नाखवू ते (५) चूसवू ते [थयेलं शोषित वि० सुकाई गयेलं (२) क्षीण शोषिन् वि० सूकवनाएं- क्षीण करनाएं शौक्ल्य न धोळापj शौच न० स्वच्छता (२) शुद्धि (सूतव वगेरे माथी) (३) साफ करवं ते (४) मळत्याग करवो ते शौटीर वि० अभिमानी; गर्विष्ठ (२) उदार; दानेशरी (३) पुं० अभिमानी माणस (४) त्यागी; तपस्वी शोटीर्य न० गर्व (२) पराक्रम शौद्र वि० शूद्र संबंधी शोधिका स्त्री० सफेद कांग मांस शौन वि० कूतरा- (२) न० कतलखानान शौनिक पुं० कसाई (२) पारधी शौभनेय वि० सुंदर पदार्थने लगतुं (२) पुं० सुंदर स्त्रीनो पुत्र शोभिक पुं० जादुगर (२)पारधी शौरि पुं० कृष्ण (२) बळराम (३) वसुदेव (४) शनिग्रह शौर्य न० पराक्रम (२) बळ; शक्ति शौंगेय पुं० गरुड (२) शकरो बाज शौंड वि. दारूडियु (२) मदमत्त; उन्मत्त (३) कुशळ; प्रवीण शौडिक पुं० कलाल शौडिको स्त्री० कलालण शौंडिन् पुं० कलाल शौडिर, शौंडीर वि० गर्विष्ठ (२)ऊंच (३) समर्थ (४) न० गर्व; अभिमान शौंडोर्य न० पराक्रम (२) अभिमान ३च्युत् १ ५० टपकवू; झरवु (२) रेडबुं; छांटवू [झमवं ते ; वहेवू ते श्च्योत पुं०, ३च्योतन न० झरवं ते; श्मशान न० मसाण शिळी श्मशानशूल पुं०, न० स्मशानमा रोपेली Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रवपत्र श्मश्रु न० मूछ (२) दाढी (वाळ) श्मश्रुप्रवृद्धि स्त्री० दाढी वधवी ते श्मश्रुल वि० दाढीवाळू श्यान ('श्यै' नुं भू० कृ०) वि० नमी गयेलं (२) गाईं; चीक[ (३) सुकाई गयेलं; पातळं थयेलं श्याम वि० शामळु धेरुं भूरु (२)पुं० अल्हाबाद पासे यमुना तीरे आवेलो वड (२) तमालवृक्ष श्यामल वि० शामळं श्यामलिमन् पुं० काळाश श्यामा स्त्री० अंधारी रात (२)छाया; छायडो (३) काळी स्त्री (४) युवानीनी मध्यमां आवेली स्त्री ; अमुक वर्ण-गुण वाळी स्त्री (५) संतान न थयेली स्त्री (६) प्रियंगुलता (७) कोयलनी जातनी एक पंखिणी श्यामाक पुं० सामो (धान्य) श्यामायते आ० (काळु थq; अशुद्ध साबित थq; जेम के सोनुं इ०) श्यामिका स्त्री० काळाश (२)अशुद्धि मिश्रण (सोना वगेरेमां) श्यामित वि० काळं थयेलु श्याल पुं० साळो श्यालक पुं० साळो(२) दुष्ट साळो श्यालको, श्यालिका, श्याली स्त्री० साळी श्याव वि० काळाश पडता पीळा रंगनुं श्यावदत्, श्यावदंत वि० घेरा पीळा रंगना दांतवार्छ श्येत वि० धोळं; सफेद श्यन पुं० शकरो बाज (२) सफेद रंग श्येनपात पुं० बाजे एकदम झडप मारवी ते श्यनावपात पुं० जुओ 'श्येनपात' श्यनंपाता स्त्री० बाज पक्षी वडे शिकार करवो ते (२) शिकार श्रद्दधान वि० श्रद्धावाळं श्रड वि० श्रद्धावाळं श्रद्धा ३ उ०-मां विश्वास मूकवो (२) __ कबूल राख; हा पाडवी [इच्छा श्रद्धा स्त्री० आस्था; विश्वास (२) तीव्र श्रद्धालु वि० श्रद्धाथी भरेलु (२) तीव्र - इच्छा राखतुं(३)स्त्री० दोहदवाळी स्त्री श्रद्धेय वि० विश्वासने योग्य अपित वि० ऊकळेलं; उकाळेलू श्रम् ४ प० [श्राम्यति] महेनत करवी; प्रयत्न करवो (२) तपस्या करवी (३) पीडावं; कष्ट पाम, श्रम पुं० परिश्रम; प्रयत्न (२) थाक (३) दुःख, पीडा (४) तप (५) कसरत; लश्करी कसरत-कवायत (७) सखत अभ्यास (८) आश्रम श्रमजल न० परसेवो श्रमण वि० श्रम करनारुं (२) पुं० तपस्वी (३) भिक्षु (जैन के बौद्ध) धमणायते आ० (भिक्षु के तपस्वी थg) श्रमसलिल न०, श्रमसीकर पुं० परसेवो श्रमांबु न० परसेवो श्रव पुं० सांभळq ते (२) कान श्रवण पुं०, न० कान (२) पुं० एक नक्षत्र (३) न० सांभळवू ते (४) अभ्यास (५) कीर्ति इंतेजारी श्रवणकातरता स्त्री० सांभळवानी भवणगोचर वि० सांभळी शकाय तेवा अंतरमां आवेलु (२)पुं० कान सांभळी शके तेटलं अंतर श्रवणपथ पुं० काननो सांभळवानो मार्ग श्रवणपरुष वि० कानने कठोर लागे तेवू (२) सांभळवं मुश्केल श्रवणपालि(-ली) स्त्री० काननू टेर, श्रवणप्राधुणिक पुं० कोईने पण काने पडतुं [अंतर प्रवणविषय पुं०कान सांभळी शके तेटलं श्रवणसुभग वि० कानने प्रिय लागे तेवू श्रवणोदर न० काननो खाडो धवपत्र न० एरिंग Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रवस् ५०७ श्रवस् न० कान (२) कीति (३)धन श्रीखंड पुं०, न० चंदन (४) अवाज (५) स्तोत्र । श्रीधर, श्रीपति पुं० विष्णु श्रव्य वि० सांभळवा लायक ; प्रशंसापात्र श्रीपर्वत पुं० एक पर्वत श्राद्ध वि० श्रद्धाळू (२) न० पितृओनी श्रीपुत्र पुं० कामदेव तृप्ति माटे श्रद्धाथी करवानी तर्पण- श्रीफल न० बीलु (२) नारियेळ क्रिया (३) श्राद्धक्रियामा अपातुं दान श्रीमत् वि० धनवान (२)भाग्यशाळी; श्राद्धय वि० श्राद्धने योग्य । सुर्खः (३) सुंदर (४) सुप्रसिद्ध श्राव पुं० लक्षथी सांभळवं ते (२)वहेवू श्रीवत्स पुं० विष्णु (२)विष्णुनी छाती के झमयूँ ते उपरनुं चिह्न (वाळनो भमरो) । श्रावक पुं० सांभळनारो (२) शिष्य श्रीवत्सकिन् पुं० छातीमां वाळना (३) जैन के बौद्ध मतनो अनुयायी भमरावाळो घोडो श्रावण वि. कान संबंधी (२) वेदे श्रीवत्सलक्ष्मन पुं० विष्ण [माणस फरमावेलु (३) पुं० श्रावण महिनो श्रीवल्लभ पु. भाग्यशाळी के सुखी (४)न० संभळावq ते; जाहेर करते श्रीवृक्ष पुं० बीलीन झाड (२)पीपळानुं श्रावस्ति, श्रावस्ती स्त्री० गंगानी उत्तरे झाड (३)घोडानी छातीए अने माथे आवेलुं एक शहेर होतुं वाळनुं गूंछळु [गूछळावाळू श्रावित वि० कहेलं; संभळावेलं श्रीवृक्षकिन छातीए ने माथे वाळना श्राव्य वि० सांभळवा लायक ('दृश्य'थी श्रु ५ ५० सांभळवू (२) अभ्यास ऊलटुं) (२)सांभळी शकाय तेवू (३) करवो; शीखवू संभळाववा के जाहेर करवा योग्य -कर्मणि [श्रूयते शास्त्रनी आज्ञा श्रांत ('श्रम्' नु' भूः कृ०) वि० थाकेलं होवी; शास्त्रमा कहयु होवू (२) शांत पडेलु (३) पुं० तपस्वी -प्रेरक० संभळावq; माहितगार धि १ उ० पासे जवं (२) आशरो लेवो करवं (३) स्थितिए पहोंचवू (४)-ने -इच्छा० [शुश्रूषते] सांभळवानी वळगवू (५) -नो आधार राखवो (६) इच्छा करवी (३) शुश्रूषा-सेवावसवू (७) योजq; उपयोगमा लेवू चाकरी करवी श्रित ('श्रि' न भू० कृ०) वि० आशरा श्रुत ('श्रु' न भू० कृ०) वि० सांभमाटे पहोंचेलं (२)-नो आधार लेतुं; ळेलं (२) सांभळवामां आवतुं (३) -ने आधारे रहेलं जाणेलं; समजेलं (४) प्रसिद्ध श्रित वि० जुओ 'शृत'; रांधेलु; भूजेलं जाणीतुं (५) कहेवातुं; नामथी ओळश्री स्त्री० संपत्ति; समृद्धि (२) खातुं (६) वचन आप्यु होय तेवू लक्ष्मीदेवी (३) राजलक्ष्मी (४) (७) न० सांभळवानो विषय (८) पदवी; होहो (५) सौंदर्य; शोभा वेद (९) विद्या (१०) सांभळवानी क्रिया (६) वर्ण; देखाव (७) त्रण वेदनो श्रुतधर वि० सांभळेलु याद राखे तेवू; समूह (८) सरस्वतीदेवी (९) देव यादशक्तिवाळं वगेरेनां नाम पूर्वे मंगळवाची शब्द श्रुतवत् वि० वेदशास्त्र जाणनाएं तरीके मुकाय छे (उदा० 'श्री राम') श्रुति स्त्री० सांभळवू ते (२) कान श्रीकंठ पुं० शंकर (२) भवभूति कवि (३) अफवा; किंवदंती (४) समा Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुतिपथ शिल ५०८ चार (५) अवाज (६) वेद; वेद- श्रोणी स्त्री० जुओ 'श्रोणि' वाक्य (७)वाणी (८) कीति (९) ब्रह्म- श्रोतस् न० कान (२) हाथीनी सूंढ विद्या (१०) फलश्रुति (११) नाम । (३) इंद्रिय (१२)अभ्यास ; विद्वत्ता (१३)नादनो श्रोत पुं० श्रोता; सांभळनारो (२)शिष्य एक भेद (संगीतमा तेवी २२ श्रुति छे) श्रोतोरन्ध्र न० सुंढनुं कागुं-नसकोरं श्रुतिपथ पुं० काने पडवं ते । श्रोत्र न० कान (२) वेद अतिप्रसादन वि० कानने गमे तेवं श्रोत्रपरंपरा स्त्री. एकने कानेथी बीजाने श्रुतिमहत् वि० सारी पेठे वेद जाणनाएं काने आवेलो वात श्रुतिमूल न० कान- मूळ (२)वेदवाक्य श्रोत्रपेय वि० लक्षपूर्वक सांभळवा योग्य श्रुतिविप्रतिपन्न वि० अनेक प्रकारनी श्रोत्रिय वि० वेदमां पारंगत एवं (२) श्रुतिओ -सिद्धांतो सांभळवाथी व्यग्न पुं० विद्वान ब्राह्मण थई गयेलु (२) वेदने न प्रमाणतुं श्रौत वि० कानने लगतुं (२) वेदने श्रुतिविषय पुं० कान (२) कान सांभळी लगतुं (३) यज्ञने लगतुं (४) न० शके तेटलं क्षेत्र के अंतर कोई पण वेदोक्त कर्म (४)त्रण अग्नि श्रुतिसुख वि० कर्णप्रिय [तेवू (गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिण) श्रुतिहारिन् वि० कानने आकर्षे – गमे श्लक्ष्ण वि० नरम; मृदु (२) लीसुं; अणि पुं०, स्त्री०, श्रेणी स्त्री० पंक्ति सुवाळ (३) नान; पातळू; नाजुक हार (२) टोळु; समुदाय (३) (४) सुंदर; रमणीय महाजन; मंडळ (४) कोई पण श्लथ १० उ० शिथिल -ढीलं थर्बु (२) वस्तुनो अग्र भाग अशक्त थर्बु (३) ईजा करवी श्रेणिबद्ध, श्रेणिबंध वि० हारबंध -प्रेरक० ढीलं करवू; छोडवू श्रेयस् वि० वधारे सारं; पसंद करवा श्लथ वि० छोडी नाखेलुं (२) छुटुं योग्य (२) उत्तम; श्रेष्ठ (३) वधु पडेलु; सरी पडेलु (३) अस्तव्यस्त नसीबदार (४) न० पुण्य (५) सद्भाग्य; सुख, समृद्धि (६) कल्याण; श्लथबंधन न० स्नायुओ ढीला करवा ते मोक्ष (७) शुभ के मंगळ प्रसंग श्लथलंबिन वि० ढीलं; लबडतुं श्रेयस्कर वि० सुख के कल्याण करनारं श्लाघ् १ आ० वखाणवू (२) खुशामत श्रेष्ठ वि० सौथी उत्तम (२) सौथी करवी (३) बडाई हांकवी सुखी (३) सौथी प्रिय (४) सौथी श्लाघन वि० बडाश मारतुं (२) न० मोटुं (उमरमां) वखाण; खुशामत श्रेष्ठवाच् वि० वक्तृत्वशक्तिवाळू श्लाघा स्त्री० वखाण (२) बडाश; श्रेष्ठान्वय वि० उत्तम कुळ के वंशनुं आत्मप्रशंसा (३) खुशामत धेष्ठिचत्वर न० शेठ लोको रहेता होय श्लाघाविपर्यय पुं० बडाश न मारवी ते ते भाग -चकलं श्लाधिन् वि० गर्विष्ठ; उद्धत (२) श्रेष्ठिन् पुं० शेठ (२) महाजननो वडो बडाश मारतुं (३) प्रसिद्ध । श्रोणि स्त्री० कूलो; नितंब (२) मार्ग श्लाघ्य वि० वखाणवा लायक (२) श्रोणिबिंब न० गोळ नितंब (२) कमरपटो आदरणीय श्रोणिसूत्र न० कमरे बांधवानो दोरो श्लिष् ४ प० भेटवू (२) चोंटवू; (२) तरवारनो पटो वळगएँ (३) ग्रहण करवू; समजवू Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्लिष्ट श्लिष्ट ('श्लिषू' नुं, भू० कृ० ) वि० भेटेलुं (२) वळगेलुं ( ३ ) अवलंबेलुं (४) श्लेष थतो होय तेवुं (५) बराबर चोटीने पहेरातुं होय ते श्लेष पुं० आलिंगन ( २ ) (३) संयोग; संबंध ( ४ ) बे अर्थमा शब्द वापरवाथी ऊपजतो अलंकार श्लेष्मन् पुं० कफ ( २ ) आंखनो पियो श्लोक १ आ० वखाणवुं ( २ ) काव्य वळवं ते रचj ( ३ ) ढगलो करवो; भेगुं करवु श्लोक पुं० काव्य वडे वखाणवं ते (२) वखानुं काव्य ( ३ ) प्रसिद्धि; कीति (४) अनुष्टुभनी कडी ( ५ ) पद; कडी श्वन् पुं० कूतरो श्वपच् (च) पुं० चांडाल हीन कोटीनो बहिष्कृत माणस (२) फांसीगरो; जल्लाद ५०९ श्वपाक पुं० चांडाल श्वभ्र न० काणुं; छिद्र (२) गुफा ; खोल (३) नरक [ नोकरी श्ववृत्ति स्त्री० कूतरानुं जीवन ( २ ) श्वशुर पुं० ससरी श्वशुरौ पुं० द्वि०व० सासु अने ससरो श्वशुर्य पुं० साळो (२) दियर श्वश्रू स्त्री० सासु श्वस् २ प० श्वास लेवो ( २ ) निसासो नाखवो; हांफ श्वस् अ० आवती काले (२) भविष्यमां श्वसन पुं० पवन; हवा ( २ ) न० श्वासोच्छ्वास (३) निसासो ( ४ ) स्पर्श; स्पर्शनो विषय [ वायु श्वसनसमीरण न० श्वासोच्छ्वासनो श्वसित ( ' श्वस्' नुं भू० कृ० ) वि० श्वोवसीयस् श्वास लेतुं (२) निसासो नाखतुं (३) न० श्वासोच्छ्वास (४) नि:श्वास श्वस्तन वि० आवती काल संबंधी (२) भविष्यनुं श्वान पुं० कूतरो श्वापद वि० जंगली; क्रूर - हिंसक - जंगली पशु ( २ ) वाघ श्वावराह वि० कूतरा अने सुवर वच्चेनं ( युद्ध; बेमांथी कोई पण मरे तो पण शिकारीने तो लाभ ज ) श्वाविधू पुं० साहुडी श्वास पुं० श्वासोच्छ्वास ( २ ) निःश्वास श्वासोच्छ्वास पुं० श्वास लेवो अने मूकवो ते [ समृद्ध थवं शिव १५० वधवं; सोजो आववो (२) श्वित् १ आ० सफेद थवुं श्वित्र न० सफेद कोढ शिवद् १ आ० [ श्विदते ] सफेद वं श्वेत वि० सफेद ; धोळं (२) पुं० सफेद रंग (३) शुक्र ग्रह (४) धूमकेतु श्वेतकाकीय वि० (सफेद कागडानी जेम) असाधारण; सांभळवामां न आवेलुं श्वेतच्छद पुं० हंस श्वेतद्वीप पुं० वैकुंठ श्वेतभानु पुं० चंद्र श्वेतभिक्षु पुं० श्वेत वस्त्रधारी भिक्षु श्वेताचिस पुं० चंद्र श्वेताश्व पुं० अर्जुन श्वेतांबर पुं० जैनोमां सफेद वस्त्रधारी साधुन एक पंथ श्वेतिमन् पुं० धोळाश; धोळो रंग श्वोवसीय, श्वोवसीयस् वि० शुभ; मांगलिक (२) न० सुख सद्भाग्य Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बटुक ५१० षष्ठ षट्क पुं० छ (२) न० छनो समूह (३) काम क्रोध वगेरे षड्पुि षट्कर्ण वि० छ कानथी संभळायलं (त्रीजा-त्राहित दडे संभळायेलं) षट्कर्मन् न० ब्राह्मणोनां छ कर्म (अध्यापन, अध्ययन, यजन, याजन, दान, अने प्रतिग्रह) (२) ब्राह्मणोने आजीविका माटेनां शास्त्रोक्त छ कर्म (उंछ, प्रतिग्रह, भिक्षा, वाणिज्य, पशुपालन, कृषिकर्म) (३) योगाभ्यास माटेनां छ कर्म (धौति, बस्ती, नेती, नौलिक, त्राटक,अने कपालभाती) (४) मंततंत्रथी थतां छ कर्म (शांति, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेष, उच्चाटन अने मारण) षट्कोण न० वज्र (२) हीरो (३) छ खूणावाळी आकृति । षट्चक्र न० तंत्रोक्त छ शारीरिक चक्रो (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञाख्य) षट्चरण, षट्पद पुं० भमरो (छ-पगो) षट्पदज्य वि० भमराओ रूपी पणछवाळू (कामदेव- धनुष्य) षट्पदी स्त्री० छ पंक्तिओनी बनेली कडी (२) भमरी (३) छ अवस्थाओ (भूख, तरस, शोक, मोह, जरा, मृत्यु; अथवा काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मान) षडधिक वि० छ वधु होय तेवू षडंग न० छ भागवाळं शरीर (बे जांघ बे बाहु, शिर अने कमर) (२) वेदनां सहायक छ शास्त्रो (शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष) (३) गायनी छ मांगलिक वस्तुओ (गोमूत्र, छाण, दूध, घी, दही, गोरोचन) (४) कोई पण छ पदार्थनो समूह षडंघ्रि पुं० भमरो षडानन पु० कार्तिकेय षड्गवीय वि० छ बळदथी खेंचातुं षड्गुण वि० छ गणुं (२) छ गुणवाळू (३) न० छ गुणनो समुदाय (४) विदेश-नीतिमां राजाए आचरवा योग्य छ कार्यो (संधि, विग्रह, यान के चडाई, आसन, द्वैधीभाव, संश्रय) षड्ज पुं० संगीतना स्वरसप्तकमांनो पहेलो-'सा' (२) मोरनो अवाज षड्दर्शन न० हिंदु तत्त्वज्ञाननां छ शास्त्रोनो समुदाय (सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, वेदांत) षड्भाग पुं० छठ्ठो भाग षडस न० (मीठो, खारो, तीखो, तूरो खाटो, अने कडवो ए) छ रसनो समूह षड़साः पुं० ब० व० छ रसो षड्वर्ग पुं० छ वस्तुओनो समूह (२) मानव जातना छ शत्रु (काम, क्रोध लोभ, मद, मोह अने मत्सर) (३) पांच इंद्रियो अने मन षड्विध वि० छ प्रकारषण्मासिक वि० छ महिनानु; छ महिने आवतुं षण्मुख पुं० कातिकेय षष् वि० (ब० व०) छ षष्टि स्त्री० साठ (संख्या) षष्टिक पुं०, षष्टिका स्त्री० एक जातना चोखा (जलदी ऊगे एवा) पष्टिभाग पुं० शिव षष्टिहायन पुं० साठ वर्षनो हाथी षष्ठ वि० छर्छ Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठांश खेतीना षष्ठांश पुं० प्रजा पासेथी उत्पादनमाथी राजा कर तरीके छठ्ठो भाग ले ते (२) छठ्ठो भाग षष्ठांशवृत्ति पुं० राजा (प्रजाना उत्पादनना छठ्ठा भाग उपर जीवतो) षष्ठी स्त्री० छठ्ठी तिथि ( २ ) बाळकना जन्मथी छठा दिवसे पूजाती देवी बंड पुं० सांढ; आखलो ( २ ) हीजडो; व्यंडळ (३) समुदाय ; टोळं (४) पुं०, न० टोळं (बकरां इ० नुं) षंढ पुं० हीजडो षाड्गुण्य न० जुओ 'षड्गुण' न० षाण्मासिक वि० छ महिने आवतुं; छमासिक ( २ ) छ महिनानी उमरनुं स अ० 'सह' के 'सम्', 'सम', 'तुल्य' के 'सदृश' अने 'एक' अथवा 'समान'ने बदले नाम साथे जोडाई विशेषण के क्रियाविशेषण बनावे छे ( अ ) - नी साये, -थी युक्त ए अर्थमा (उदा० 'सपुत्र', 'सरोषम् ' ) (आ) 'समान', 'सर' ए अर्थमा (उदा० 'सजाति', 'सुवर्ण' ) (इ) – एज', 'एक ज' ए अर्थमा (उदा० 'सोदर', 'सपक्ष' ) सकरुण वि० दयाळु सकल वि० आखुं; पूरुं; समग्र सकाम वि० कामना, वासना के प्रेमवाळु (२) जेनी कामनाओ पूर्ण थई छे तेवं सकार वि० क्रियाशील; सक्रिय सकाल वि० समयोचित प्रसंगोचित सकालम् अ० वेळासर; वहेली सवारे सकाश वि० नजरे पडतुं; नजीकनुं (२) पुं० सांनिध्य सकाशम्, सकाशात् अ० नजीकमां (२) नजीकथी; पासेथी ५११ सगंध षिड्ग पुं० रंडीबाज - व्यभिचारी माणस (२) विट; बेवफा यार षोडशन् वि० ( ब० व०) सोळ षोडशम वि० सोळमुं षोडशमातृकाः स्त्री० ब० व० गौरी, पद्मा, शची, मेधा इ० सोळ देवीओ षोडशोपचार पुं० ( ब० व० ) देवनी पूजाना सोळ प्रकार ( आसन, स्वागत, पाद्य, अर्घ्य, आचमनीयक, मधुपर्क, आचम, स्नान, वस्त्र, आभरण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, वंदन ) षोढा अ० छ प्रकारे षोढामुख पुं० कार्तिकेय [ थूकवुं ष्ठि १, ४ प० [ ष्ठीवति, ष्ठीव्यति ] ष्ठीवन न० थूकवुं ते (२) थुंक स सकुल्य वि० समान; सरखुं सकृत् अ० एक वार (२) एक वखत सकृपणम् अ० दीनताथी सक्त ( 'सज् ' नुं भू० कृ० ) वि० चोटेलुं; वळगेलं (२) आसक्त ( ३ ) विघ्नित; डखल कराये सक्तवैर वि० सतत वेर राखनाएं सक्ति स्त्री० जोडाण ; संबंध ( २ ) आसक्ति सक्तु पुं० ( ब० व० ) साथवो सक्थि न० साथळ सक्रिय वि० क्रियायुक्त सखि पुं० मित्र; सोबती (समासने अंते 'सख' थाय; पहेली ए० व० नं रूप 'सखा' ) सखी स्त्री० साहेली सख्य न० मित्रता [ सूर्यवंशी राजा सगर वि० झेरवाळु (२) पुं० एक सगर्भ पुं० सहोदर; सगो भाई सगंध वि० सुगंधीदार ( २ ) संबंधी; सगुं (३) गर्विष्ठ (४) पुं० सगो Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सगुण ५१२ सत्त्रा सगुण वि० गुणवाळू (२) सद्गुणी डुक्करना वाळ (४) वाळनी लट (३) पणछवाळू (धनुष्य) (५) कलगी (६) छटा; प्रभा सगोत्र वि० एक ज गोत्र-कुटुंबY (२) सत् वि० अस्तित्ववाळु; हयात (२) पुं० समान वडवामाथी आवेलो सगो साचुं; खरं (३) सद्गुणी; पवित्र (४) (३) न० कुटुंब उच्च (कुळ) (५) उचित; योग्य (६) सचकित वि० बीधेलं; छळेलु उत्तम; श्रेष्ठ (७) माननीय ; आदरणीय सचकितम् अ० छळयु - बीन्युं होय तेम (८)डायुं विद्वान (९) सुंदर; मनोहर सचराचर वि० पूरेपूरूं; तमाम (२) (१०) स्थिर; दृढ़ (११) पुं० सज्जन न० आलुं विश्व (१२) न० अस्तित्वमा होय ते(१३) सचित्र वि० रंगेलं; चित्रविचित्र साचुं- खरं - तात्त्विक एवं ते (१४) सचिव पुं० मित्र; साथी (२)वजीर; परब्रह्म ; परम तत्त्व (१५) मूळ कारण प्रधान; सलाहकार सतत वि० हमेशां-कायम होय तेवू;चालु सचेतस् वि० बुद्धिमान (२) लागणी- सततग, सततगति पुं० पवन वाळू (३) होश के भानमां आवेलु सततदुर्गत वि० हमेशां दुःखी सच्चरित (-त्र) वि० सारां आचरण- सततम् अ० हमेशां; कायम वाळं; सदाचारी (२) न० सारुं सततयुक्त वि० सतत तन्मय रहेतुं आचरण (३)सारा पुरुषोना चरित्रनुं सतत्त्व न० स्वभाव (२) स्वरूप वृत्तांत के तेनो इतिहास सती स्त्री० सदाचारिणी-पतिव्रता स्त्री सच्चिदानंद पुं० (सत्, चित् अने आनंद (खास करीने पति पाछळ जे सहगमन स्वरूपवाळं) परब्रह्म करे छे ते) (२) दुर्गा ; पार्वती सजल वि० भी®; पाणीवाळं सतीर्थ, सतीर्थ्य पुं० गुरुभाई; एक ज सजुष (-स्) वि० आसक्त; प्रेमाळ (२) गुरुनो शिष्य सोबती; साथी सत्करण न० उत्तरक्रिया; अग्निदाह सज्ज वि० सुसज्ज; तैयार; सुसज्जित सत्कार पुं० आतिथ्य (२)आदर;संमान (कपडां के हथियार इ० थी) (२) सत्कुल न० उत्तम कुळ पणछ उपर चडावेलु सत्कृ ८ उ० सत्कार करवो सज्जन (सत् + जन) वि० सदाचारी; सत्कृत वि० सारी रीते करेलु (२) माननीय (२)पुं० सदाचारी माणस । आतिथ्य-सत्कार करेलु (३) आदर सज्जित वि० (कपडां-घरेणां आदि करेलु पूजित (४)स्वागत करेलु (५) पहेरीने) तैयार थयेलं (२) सजा- न० आतिथ्य (६) आदर वेलं; तैयार करेलु (३) हथियारबंध सक्रिया स्त्री० सत्कर्म; पुण्य के पवित्र (४) आसक्त कर्म; सदाचार (२) आतिथ्यसत्कार सज्जीकृ ८ उ० सज्ज करवू; तैयार करवं (३) शणगार, ते (२) शणगार (३) पणछ चडाववी सत्तम वि० अत्युत्तम; श्रेष्ठ सज्य वि० पणछवाळू (२) पणछ सत्ता स्त्री अस्तित्व ; होवापणुं; हयाती चडावेलु (२)सारापणुं; उत्तमता सट न०, सटा स्त्री० तापसनी जटा सत्र न० जुओ 'सत्र' (२) (सिंहनी) केशवाळी (३) सत्ता अ० साथे; सहित Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सद् सत्थिन् सत्चिन् पुं० वारंवार यज्ञो करनारो गृहस्थ (२) यज्ञ करावनार ऋत्विज (३) शाळामां साथे भणनारो सत्त्व न० अस्तित्व; हयाती (२) सार; तत्त्व (३) गर्भ (४) प्राण; जीव (५) अंतःकरण (६) माल' ; मिलकत (७) महाभूत (८) सद्गुण (९) बळ; पराक्रम (१०) सत्यता; वास्तविकता (११) डहापण (१२) त्रण गुणोमांनो प्रथम (सत्त्व, रजस, तमस्) (१३) विशेषता; खासियत; सहज स्वभाव (१४) लिंग शरीर (१५) पुं०, न० प्राणी (१६) पिशाच; भूत सत्त्वयोग पुं० जीव मूकवो-जोडवो ते सत्त्वलक्षण न० सगर्भा होवार्नु चिह्न सत्त्ववत् वि० जीवतुं; चेतन (२)सार के तत्त्ववाळु (३) सत्त्वगुणी; सदाचारी (४) पराक्रमी ; बहादुर (५) पुं० देह सत्त्ववती स्त्री० सगर्भा सत्त्वविप्लव पुं० बेहोशी सत्त्वसंशुद्धि स्त्री० अंतःकरणनी शुद्धि सत्त्वात्मन् पुं० जीव; लिंगदेह सत्त्वानुरूप वि० पोताना सहज स्वभाव के प्रकृतिने अनुरूप (२)पोतानां साधन के संपत्ति अनुसारसत्पात्र न० योग्य के सद्गुणी माणस सत्पुत्र वि० जेने पुत्र छ तेवू (२) पुं० सदाचारी पुत्र (३) श्राद्धक्रिया करनारो पुत्र सत्प्रतिपक्ष पुं० हेत्वाभासनो एक प्रकार; बीजो समान हेतु विरुद्ध पक्षमां होय तेवो हेतु (न्याय०) सत्फलद पुं० बीलीनुं झाड सत्य वि० साचु; वास्तविक; खरं (२) वफादार; प्रमाणिक (३) पूर्ण - सिद्ध थयेलं (४) सद्गुणी; सदाचारी (५) अमोघ (६)पुं० पृथ्वीनी उपर आवेला सात लोकमांनो प्रथम (७) न० खरा पणुं; तथ्य; साची वात (८) सद्गुण; पवित्रता (९) वचन; प्रतिज्ञा (१०) चार युगोमांनो प्रथम ; कृतयुग (११) परमतत्त्व; परमात्मा [सत्यवादी सत्यपन वि० सत्यरूपी धनवाळू; पूरेपूरु सत्यपूत वि० सत्यथी पवित्र करेलु; साचुं सत्यभामा स्त्री० सत्राजितनी पुत्री अने श्रीकृष्णनी पत्नी सत्यम् अ० साचे ज; खरे ज सत्ययुग न० कृतयुग;चार युगमांनो प्रथम सत्यवती स्त्री० मत्स्यगंधा;व्यासनी माता सत्यवद्य वि० सत्यवादी सत्यसंगर, सत्यसंघ वि० सत्यवादी; सत्य प्रतिज्ञावाळं सत्यंकार पुं० बानु; करार पेटे अगाउ थी जे रकम अपाय छे ते सत्या स्त्री० सत्यभामा (श्रीकृष्णनी पत्नी)(२) सत्यवती (व्यासनी माता) सत्यानृत वि० साचुं अने जूठं(२) देखीती रीते साचुं पण खरेखर खोटुं (३) न० वेपार; वाणिज्य सत्याभिसंध वि० प्रतिज्ञा पाळनारं सत्याश्रम पुं० संन्यास सत्र न० यज्ञ चाले तेटलो गाळो (१३थी १०० दिवसनो) (२) यज्ञ (३)आहुति (४) वन; जंगल (५) वेश; सोंग सत्रप वि० शरमाळ; लज्जाळू सत्रम् अ० साथे; सहित सत्राजित् पुं० सत्यभामाना पिता सत्वर वि० झडपवाळू; वेगीलं सत्वरम् अ० उतावळे; झट; त्वराथी सत्समागम पुं० सारा माणसनी सोबत सत्संग पुं०, सत्संगति स्त्री०, सत्संनिधान न० सज्जननी सोबत सद् १५० [सीदति] बेस, (२) आडा पडवू; विश्रांति करवी (३) डूबवू; डूबी जq (४) रहेवू; वस, (५) खिन्न-हताश थर्बु (६) क्षीण थवू; Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सदवन ५१४ सनातन नाश पामर्रा (७) आफतमां होवू (८) सदोगत वि० सभामां बेठेलु विघ्न आवq (९) थाकीने भागी पडवू सदोगृह न० सभागृह -प्रेरक० [सादयति बेसाडq (१०) सदोत्थायिन् वि० हमेश उद्यमी रहेतुं नाखवू; मूकद् (११) थकवq (१२) सद्गति स्त्री० मुखी स्थिति (२) नाश करवो; बरबाद करवू सत्पुरुषोनी गति सारो गुण सवधन वि० दही मेळवेलं सद्गुण वि० सारा गुणवाळु; सद्गुणी(२) सदन न० घर; भवन (२) नाश पामवं सद्धर्म पुं० साचो न्याय ते; क्षीण थर्बु ते (३)थाकीने के हताश सद्भाव पुं० थवापणुं;होवापणुं;अस्तित्व थईने भागी पडq ते (२) मळतावडापणुं (३) सारो भाव सदय वि० दयाळु [हळवेथी (४) प्राप्ति सदयम् अ० दयापूर्वक (२) धीमेथी; सद्मन् न० घर; रहेठाण सदर्थ पुं० प्रस्तुत वात के मुद्दो सद्यस् अ० आजे ज (२) तरतज (३) सदस न० घर; रहेठाण (२) सभा जलदीथी (४)ताजेतरतुं किरातुं (३) आकाश (४) न० (द्वि० व०) सद्यस्कार वि० ते ज दिवसे करवानु के स्वर्ग अने पृथ्वी सद्यस्कालिन वि० ताजेतरतुं सदसत वि० सत् अने असत्; अस्ति- सद्यःपातिन् वि० क्षणभंगुर त्वमा होय तेवू अने अस्तित्वमां न सधःप्राणकर वि० तरत बळ आफ्नारु होय तेवु (२) साचुं अने खोटुं (३) सद्यःप्राणहर वि० तरत ज प्राण हरनारुं सारं अने खराब [समजवो ते सद्रत्न न० हीरो सदसद्विवेक पुं० सारासारनो भेद सद्वचस् न० प्रिय - अनुकूळ वाणी सदसव्यक्तिहेतु पुं० सारा अने खराबनो सद्वसथ पुं० गाम; गाम भेद समजवानुं कारण सद्वस्तु न० सारी चीज - वस्तु (२)नाटक सदसस्पति पुं० सभाध्यक्ष के कथानो सारो विषय ('प्लॉट'); सदस्य पुं० सभामां बेठेलो माणस; सारी वस्तुगंथणी सभासद (२) मददनीश के निरीक्षक सद्वादिता स्त्री० हितकर सलाह ऋत्विज (यज्ञमां) सद्वत्त वि० सदाचारी; सद्गुणी (२) सदा अ० हमेशा पूरेपूरुं गोळ (वर्तुळ आकार-)(३) न० सदागति पुं० पवन सद्वर्तन (४) मळतावडो स्वभाव सदाचार पुं० सद्वर्तन(२)सारा माणसो सधर्मन् वि० सरखा गुणधर्मवाळ (२) वडे आचरातो के परंपरागत आचार सरखां कर्तव्यवाळू (३)एक ज पंथ के सदादान वि० हमेश दान आपनाएं(२) संप्रदायर्नु (४) समान; सदृश हमेश (दानवारि) मद झरतुं (३) पुं० सध्रीची स्त्री० साथी स्त्री (२) पत्नी इंद्रनो हाथी ; ऐरावत (४)मद झरतो सध्यंच वि० साथे जनारं; संगाथी (२) हाथी (५) गणेश पुं० साथी (पति) सदाशिव पुं० शंकर सनत् अ० हमेशां सदक्ष, सदश् (-श) वि० सरखं; समान सना, सनात् अ० हमेशा (२) उचित ; अनुकूळ ; लायक सनातन वि० कायमी; शाश्वत (२) सदेश वि० देशवाळू (२)एक ज स्थान स्थिर; दृढ (३)पुरातन; पुराणुं (४) के देशनु (३) पडोशनुं पुं० एक प्राचीन ऋषि Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सनाथ ५१५ सप्तषि सनाथ वि० रक्षक, मालिक के स्वामी- सपाद वि० पगवाळू (२) चोथो भाग वाळू (२) सहित; युक्त (३) भरपूर; (पाद) वधु होय तेवू; सवायु पूर्ण; भीडनाळ (जेम के, सभा) सपिंड पुं० (पिंडदान जेने मळे ए संबंध. सनाथीकृ ५० स्वामी- मालिकवाळू वाळो -- सात पेढी सुधीनो) सगो करवु (२) रक्षण आप सप्तच्छद पुं० एक वृक्ष सनाभि वि० एक योनिन (२) संबंधी; सप्तजिह्व, सप्तज्वाल पुं० अग्नि (काली ज्ञातिनुं (२) समान; सदृश (३) पुं० कराली, मनोजवा, सुलोहिता, सुधूम्रसगो भाई(४) (सात पेढी सुधीनो) सगो वर्णा, उग्रा अने प्रदीप्ता -ए सात सनामक, सनामन् वि० एकसरखा ज्वाळाओवाळो) नामवाळू; एक ज नामवाळं सप्ततंतु पुं० यज्ञ सनिकार वि० अपमान युक्त । सप्तति स्त्री० सित्तेर सनिविशेष वि० उपेक्षा युक्त; भेदभाव सप्तदीधिति पुं० अग्नि विनानु; परवा विनानु सप्तद्वीपा स्त्री० पृथ्वी (जंबू, प्लक्ष, सनिर्वेदम् अ० हताशपणे; खिन्नताथी शाल्मलि, कुश, क्रौंच, शाक, पुष्कर सनित वि० आपेलं (२) मेळवेलं -ए सात द्वीपोवाळी) सनीड(-ल) वि० एक ज माळामां (साथै) सप्तन् वि० सात (हमेशां ब० व०) __ रहेतुं (२) नजीक-पासे होय तेवू सप्तनाडीचक्र न० वरसाद जाणवा माटे सन्न ('सद्' नुं भू० कृ०) वि० बेठेलं; दोरातुं एक चक्र आडु पडेलु (२) खिन्न;हताश (३)क्षीण सप्तपत्र पुं० एक वृक्ष (४) नीचुं नमी गयेलं (५) नजीकनुं सप्तपदी स्त्री० लग्न वखते वरकन्याने (६) धीम; ऊंडु (अवाज) पवित्र अग्निनी आसपास सात पगलां सन्मान (सत् + मान) पुं० सज्जनोनुं भरवानो विधि मान के आदर सप्तपर्ण पुं० एक वृक्ष सन्मित्र न० सारो मित्र सप्तपर्णी स्त्री रिसामणीनो छोड सपक्ष वि० संबंधी (२) पक्षवाळं (३) सप्तपाताल न० अतल, वितल, सुतल, एक ज पक्षनु (४) समान; सदृश (५) महातल, रसातल, तलातल अने पाताल पुं० अनुयायी (६) सगु; संबंधी --ए सातेनो समह सपत्न वि० विरोधी; वेरी (२) पुं० सप्तप्रकृति स्त्री० (ब० व०) राजा, दुश्मन ; हरीफ प्रधान, मित्र, कोश, राष्ट्र, दुर्ग अने सपत्नी स्त्री० शोक; पतिनी बीजी पत्नी सैन्य -ए राज्यनां सात घटको सपत्नीक वि० पत्नी साथे होय तेवं सप्तमात स्त्री० ब्राह्मी, माहेश्वरी. सपत्राकृ८ उ० अत्यंत घायल करवू कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी (आखं बाण पीछां साथे अंदर पेसे तेटलु) अने चामुंडा - आ सात माताओनो सपत्राकृत वि० (आखं बाण पीछां साथे समूह अंदर घुसे ते रीते) सखत घायल करेलं सप्तरुचि पुं० अग्नि ; जुओ 'सप्तजिह्व' सपदि अ० क्षण वारमा (२) जलदीथी सप्तर्षि पुं० (ब० व०) मरीचि, अत्रि, सपरिहारम् अ० संकोच साथै अंगिरस्, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु अने सपर्या स्त्री० पूजा (२) सेवा वसिष्ठ - आ सात ऋषिओ (२) Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम सप्तलोकाः ५१६ ध्रुवतारानी पासेना आ नामना सात सब्रह्मचारिन् पुं० सहाध्यायी; एक ज ताराओ गुरुनो शिष्य (२) साथे ज दुःख सहन सप्तलोकाः पुं० ब० व० भूर्, भुवर्, स्वर् करनारो ते (३)एक ज जातनो ते महर, जनस्, तपस् अने सत्य के ब्रह्म- सभा स्त्री० मेळावडो; परिषद (२) ए सात लोक समाज; मंडळी (३) सभागृह (४) सप्तविध वि० सात प्रकारनुं . अदालत(५)धर्मशाळा (६)जुगारखानुं सप्तशती स्त्री० सातसो श्लोकनो संग्रह (७) वीशी; भोजनगृह सप्तसप्ति पुं० सूर्य (सात घोडाना सभाकार पुं० सभागृह बांधनारो __ रथवाळो) सभाज् १० उ० आदर करवो; अभिसप्तसमुद्राः पुं० ब० व० क्षार, क्षीर, नंदन आपq; (२) मान-पूजा-सत्कार दधि, घृत, इक्षुरस, मद्य अने स्वादूदक करवां (३) प्रसन्न करवू; खुश करवू (मीठे पाणी) ए सात सागर (सात (४) शणगारवं; शोभाव द्वीपनी आसपास आवेला) सभाजन न० सत्कार; अभिनंदन (२) सप्ताश्व पुं० सूर्य विनय; आदर (३) सेवा सप्ताश्ववाहन पुं० सूर्य सभाजित वि० सत्कार करायेलं; प्रसन्न सप्ताह पुं० (सात दिवस)अठवाडियु करायेलु (२) विख्यात; प्रशंसा करेलु सप्तांग वि० सात अंगवाळं राज्य (जुओ सभातल न० सभानी बेठक 'सप्तप्रकृति') सभासद पं० सभानो सभ्य ; 'मेम्बर' सप्ति पुं० धूसरी (२) घोडो (२) सभा वखतनो मददनीश सप्रतीक्षम् अ० प्रतीक्षापूर्वक सभिक, सभीक पुं० जुगारनो अड्डो सप्रतीश वि० आदरयुक्त वाळू चलावनारो सप्रत्यय वि० विश्वास युक्त (२)खातरी- सभ्य वि० संभा संबंधी (२)सभाने योग्य सप्रत्याशम् अ० आशा साथे। (३) विनयी; संस्कारी (४) विश्वासु; सप्रभ वि० सदृश; समान देखावनुं वफादार (५) पुं० सभानो मददनीश सप्रमाद वि० बेदरकार; लक्ष विनानुं (६) कुळवान (७) जुगारनो अड्डो सप्रश्रयम् अ० खूब विनयपूर्वक चलावनारो (८) तेनो नोकर सप्रसव वि० सहोदर एवं (२) गर्भयुक्त सम् अ० धातुओ के धातुसाधित शब्दो सफल वि० फल-परिणाम युक्त; सफळ साथे : सहित, साथे, खूब, अति, परि(२) जेनो हेतु पार पड्यो छे तेवू; पूर्णता के सुंदरतानो अर्थ दर्शाव (२) सिद्ध; सार्थक (३) खसी न करेलु नामो साथे : समान, सरखं, नजीक, सफलोदर्क वि० सफळ नीवडवानी सामे -एवा अर्थ बतावे खातरीवाळं सम वि० समान; सरखं (२) सरखी सबल वि० सेनायुक्त सपाटीवाळू; खाडा टेकरा विनानुं सबंधु वि० निकट संबंधवाळू (२) एक (३) बेकी (संख्या) (४) पक्षपात ज कुटुंब-(३) सगांसंबंधीवाळं (४) विना- (५) न्यायी; प्रमाणिक (६) मित्रवाळ (५) पुं० सगो; स्वजन सीधुं; सरळ (७) अनुकूळ ; सरळ (८) सबीजयोग पुं० एक समाधि; संप्रज्ञात तमाम ; कुल (९) न० सपाट प्रदेशसमाधि (योग०) भूमि (१०) सारा - अनुकूळ संजोगो Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समक्ष ५१७ समरेख समक्ष वि. प्रत्यक्ष; नजर सामेनुं समन्वय पुं० अनुक्रम (२) अरसपरस समक्षम् अ० -नी नजर सामे; -नी संबंध (३) तात्पर्य हाजरीमां समन्वि २५० अनुसरवू; पाछळ के साथे समगति पुं० पवन जवू (२) परिणाम तरीके पाछळ समग्र वि० बधुं; आखं; पूरेपृरुं (२) आववं; परिणाम कल्पवृं जेनी पासे बधं ज छे तेवू; कशी समन्वित वि० युक्त (२)पाछळ आवतुं; ऊणप विनानुं क्रममां पाछळ जोडायलं होतुं । समचतुरस्र वि० चोरस समभिधा ३ प० संबोधq; कहेवू(२) समज पुं० पशुपंखीनो समुदाय के टोळं जाहेर करवू समता स्त्री० एकाग्रता; अभेद (२) समभिहार पुं० पुनरावर्तन (२)एक साथे 'सरखापणुं; समानता (३) निष्पक्षता - भेगें लेवं ते (३) वधारो; आधिक्य समतिक्रम् १ उ० ओळंगी जq; उल्लं समम् अ० साथै; सोबतमां (२)सरखी घन कर, (२) चडियाता थq (३) रीते (३) समान भावे (४) एक साथे व्यतीत करवू (समय) (५) तमाम (६) प्रमाणिकपणे समती [सम् + अति+इ] २ प० पार करी जवू (२) चडियाता थवं (३) समय पुं० वखत; काळ (२)प्रसंग; बाजुए राखq; त्यागवू (४)पसार करवू तक (३) उचित समय; योग्य काळ समतीत वि० पसार थयेलु; व्यतीत (४) करार; संकेत (५)रूढि ; चालतो थयेलं (समय) आवेलो आचार(६) शरत (७) नियम; समत्व न० जुओ 'समता' कायदो (८) प्रतिज्ञा (९) निशानी; समद वि. उन्मत्त; झनून के आवेशवाळं इशारो (१०) आज्ञा; सूचना (११) (२) मद झरवाने कारणे मत्त बनेलं सोगंद; कसम (१२) मर्यादा; हद; समदर्शन, समदर्शिन वि० समान नजर सीमा (१३) सिद्धांत (१४) अंत; राखनाएं; निष्पक्ष निर्णय (१५) सफळता; आबादी; समदुःख वि० बीजाना दुःखे दुःखी उन्नति; समृद्धि (१६) मुश्केलीओनो थनारुं; दुःखमां भागी बननाएं। अंत (१७) भाषण समदुःखसुख वि० सुख अने दुःखमां समयक्रिया स्त्री० करार करवो ते समानपणे भागीदार बननारं समयच्युति स्त्री० उचित समय चूकवो ते समधिक वि० अत्यंत; पुष्कळ (२) समयपरिरक्षण न० संधि के करारनुं सामान्य करतां वधी जतुं; असाधारण पालन करते समधिगम् १ प० [समधिगच्छति ] पासे समयविद्या स्त्री० ज्योतिषशास्त्र जवू (२) अभ्यास करवो (३) प्राप्त समया अ० योग्य समये (२) नियत करवू (४) चडियाता थवू; वधी जदूं समये (३) -नी वच्चे; दरम्यान समध्व वि० साथे मुसाफरी करतुं (४) नजीक ; पासे [आचार समनीक न० युद्ध समयाचार पुं० रूढि; चालतो आवेलो समनुज्ञा ९ उ० मंजूर राखवू; कबूल समर पुं०, न० युद्ध; लडाई राखq (२)जवा देवू; विदाय करवू समरभूमि स्त्री० रणभूमि ; समरांगण (३)क्षमा करवी [गुस्से थयेलं समरशिरस् न० लडाईनो मोखरो समन्यु वि० दिलगीर; गमगीन (२) समरेख वि० सीधुं Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समरोद्देश समरोद्देश पुं० रणभूमि; समरांगण समर्चन न० पूजन समर्थ १० उ० मानवुं; विचारखुं (२) समर्थन करवु; साबित करवुं समर्थ वि० बळवान; शक्तिशाळी (२) अधिकारी; लायकात वाळु ( ३ ) योग्य; उचित (४) अर्थी बाबतमां संबंधवाळं (५) अर्थयुक्त ( ६ ) महत्त्ववाळं समर्थन न०, समर्थना स्त्री० पुरवार करवुं ते (२) टेको आपको ते (३) ताकात शक्ति (४) मतभेदनं समाधान (५) थयेला अपराध माटे वळतर आप ते (६) विरोध समर्थन वि० पुरवार करेलुं (२) विचारेलुं; मानेलुं (३) नक्की करेलु समर्पण न० अर्पण करवुं ते समर्पित वि० अर्पण करेलु समर्यादम् अ० चोकसपणे; निश्चितपणे समवतार पुं० नीचे ऊतरबुं ते ( २ ) नदी के तीर्थमा उतरवानो घाट समवर्तिन् वि० निष्पक्ष ; सौ साथै समानपणे वर्तनारुं ( २ ) पुं० यमराजा समवस्था १ ० [ समवतिष्ठते ] स्थिर के अचल रहेवुं (२) तैयार ऊभा रहेवुं - प्रेरक० दृढ़ के स्थिर करवुं ( २ ) अटकाव समवस्था स्त्री० स्थिर अवस्था ( २ ) समान दशा ( ३ ) स्थिति; अवस्था समवहार पुं० मिश्रण ( २ ) संग्रह समवाय पुं० समुदाय; संग्रह (२) ढगलो; जथ्थो ( ३ ) एवो नित्य संबंध के जेमां एक संबंधीनो नाश थतां बीजो संबंधी नाश पामे (जेम के, दूध अने तेना सफेद रंगनो) (४) आकाशी ग्रह-नक्षत्रनुं एकठा थवुं ते - पासे आववुं ते समवायिन् वि० नित्य निकट संबंधथी जोडायेलुं ( २ ) एकत्र - जूथमां होय तेबुं समवे ( सम् + अ + इ) २ प० भेगा थवु, ५१८ समाक्रम् एकठा थवुं ( २ ) समवाय संबंधथी जोडायला हो समवेक्षण न० निरीक्षण; तपास समवेत वि० एकठं थयेलु; भेगु थयेलं (२) समवाय संबंधथी जोडायेलु समश् ५ उ० पूर्णपणे व्यापवुं ( २ ) पामवुं; पहोंचवुं ( ३ ) ९ प ० खाबु, भोगववु समष्टि स्त्री० समग्रता; समान घटको मळीने बनतो एक समुदाय ('व्यष्टि' थी ऊलटं) समस् ४ उ० जोडवुं; साधे लाववुं (२) जोडीने समास करवो समस्त वि० जोडेलुं; साथे आणेलुं ( २ ) जोडीने समास करेलुं (३) समग्र समस्या स्त्री० कोयडो; उखाणुं ( २ ) अधू होय तेने पूरुं करवुं ते समंजस वि० योग्य; उचित (२) साचुं; खरं ( ३ ) स्पष्ट समजाय तेवुं ( ४ ) सद्गुणी; न्यायी (५) अनुभवी, अभ्यासी (६) नीरोगी ( ७ ) न० योग्यता; उचितता (८) खरापणुं ( ९ ) समानता समंत वि० दरेक बाजु होतुं; सार्वत्रिक (२) पुरु; आखुं ( ३ ) पुं० हद; सीमा समंततः अ० बधी बाजुएथी, चोतरफथी समंतपंचक न० कुरुक्षेत्रनो प्रदेश के तेनी नजीकनुं स्थळ समंतभद्र पुं० बुद्ध समंतात् अ० जुओ 'समंततः ' समा स्त्री० ( ब० व०; पाणिनी ए० व० मां पण वापरे छे) वर्ष समा अ० साथे; सहित समाकरण न० बोलाववुं ते समाकर्ण १० प० ने सांभळवु समाकुल वि० भीडवाळु; भरपूर ( २ ) क्षुब्ध; गूंचवायेलु; अटवाल समाकृष १५० खेंची काढवुं ( २ ) आकर्ष (३) निंद समाक्रम् १ उ० [समाक्रामतिः समाक्रमते ] Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाक्रांत कबजो लेवो (२)भरी काढवू; व्यापधुं (३) हुमलो करवो; ताबे करवू (४) उपर पग मूकवो-चालवू ; वारंवार जवं आव समाक्रांत वि० उपर पग मुकायो होय के चालवामां आव्युं होय तेवु (२) हुमलो करायेलं (३) पाळेलं (वचन) समाख्या २ प० गणवं; गणतरी करवी (२) कहेवू; वर्णवq (३) जाहेर करवू समागत वि० भेगु मळेलं (२) युक्त; सहित (३) आवी पहोंचेलं (४) पासे पहोंचेलु (५) न० समागम ; मेळाप समागति स्त्री० आगमन (२) संयोग; संगम (३) सहवास समागम् १५०[समागच्छति भेगा मळवू (२) सोबत करवी (३) संभोग करवो समागम पुं० मिलन; मेलाप; एकठा मळवू ते (२) सोबत समाचर् १ प० आचर; वर्तवू (२) खसेडवू; दूर करवू समाचार पुं० वर्तणूक ; वर्तन (२) सद् वर्तन; सारी चालचलगत (३) खबर समाचेष्टित न० वर्तणूक ; वर्तन ; रीत समाज पुं० मंडळी ; मेळो; समुदाय (२) उजाणी के उत्सव माटेनी मंडळी (३) मेळाप; मळवं ते [प्रेक्षक समाजिक पुं० कोई मंडळीनो सभ्य (२) समाजा ९ उ० बराबर जाणवू के समजवू (२) ओळखवू -प्रेरक० आज्ञा करवी समाज्ञा स्त्री० कीति (२) नाम (केटलाक उपासना एवो अर्थ आपे छे) समादा ३ उ० लेवू; स्वीकार (२) पकडवू (३) बक्षिस करवू (४) पार्छ वाळवू (५) समजवू (६) भेगुं कर समादिश् ६ प० बतावq; दर्शावq(२) जणावq; कहेQ (३)जाहेर करवु (४) भविष्य भाखवू (५)आज्ञा करवी (६) निमणूक करवी; सोंपवं समाप् समादिष्ट वि० दर्शावायेलं; फरमावेलु समादेश पुं० आज्ञा; हुकम; सूचना समाधा ३ उ० एकळु मूकवू; साथे मूकबू (२) -उपर मूकवू (३) गादीए बेसाडq (४)शांत करवू; स्वस्थ करवू(५) एकाग्र करवू (६) समाधान करवू (शंका-) (७) दुरस्त करवू(८)विचारवं समाधान न० साथे मूकवू के जोडवू ते (२) -मां स्थिर के एकाग्र करवू ते (३)स्थिरता; स्वस्थता; शांति (४) शंका दूर करवी ते समाधि पुं० स्थिर के एकाग्र करवू ते(२) ऊंडु ध्यान (ध्यान-ध्येय-ध्यातानुं भेदज्ञान न रहे तेवू) (३) एकाग्रता; लवलीनता (४) ध्यान-समाधि युक्त तपस्या (५)संबंध;जोडाण (६) गळानो सांधो के गळानी अमुक स्थिति समाधित वि० समाधान पामेलु; शांत थयेलं; मनायेलं समाधिन् वि० जुओ 'समाधिमत्' समाधिभूत् वि० ध्यानमां लवलीन एवं समाधिमत् वि० समाधियुक्त (२) पवित्र ; धार्मिक समाधूत वि० वीखरायेलु समान वि० सरखं; सदृश; तादृश (२) पुं० पांच प्राणोमांनो एक (अन्न पचवनार नाभिस्थ वाय) समानधर्मन् वि० सरखा गुण धरावनाएं (२) सहानुभूतिवाळं; कदरदान समानप्रतिपत्ति वि० समान बुद्धि के डहापणवाळु समानम् अ० एक सरखं होय तेम समानशील वि० सरखा स्वभावन; सरखी प्रकृतिवाळं समानी १ प० भेगुं करवू; जोडq (२) लावq (३) एकत्र करवू समाप ५५० मेळवq; सिद्ध कर, (२) समाप्त करवू; पूरुं करवू -प्रेरक० पूरे कर - मारी नाखवू Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समापक ५२० समाविश् समापक वि० पूर्ण-सिद्ध करनाएं समाराधन न० मनोरंजन के प्रसन्न समापत्ति स्त्री० मळवू-भेगा थq ते करवानुं साधन (२) तहेनात; (२)अकस्मात (३)समाप्ति सेवामा रहेदूं ते (३)प्रसन्नता समापद् ४ आ० मेळवq; पामवु (२) समारह. १५० उपर चडवू(२)सवारी बनवू; थq(३)पूरुं थQ करवी (३) मंडg; लागवू समापन न० समाप्त करवं ते; अंत __-प्रेरक उपर चडाववू (२) पणछ लाववो ते (२)प्राप्त करवू ते (३)नाश चडाववी करवो ते (४) ऊंडु ध्यान समारूढ वि० सवारी करी होय तेवं समापना स्त्री० पराकाष्ठा; पूर्णता (२) उपर चडेलु के पडेलु (३) कबूल समापन्न ('समापद्' नु० भू० कृ०) कयुं होय तेवू (४) वृद्धिंगत (५) रुझायेलं वि० पामेलु; मेळवेलं (२) बनेलं; समारोपण न० -उपर के -मां मूक, थयेलं (३)आवी पहोंचेलु (४)पीडित ते (२) आपी देवं ते (३) पणछ समापादन न० संपूर्ण सिद्ध करवू ते चडाववी ते समापित वि० समाप्त - पूरुं करेलं समारोपित वि० चडावेलु (२) पणछ समाप्त वि० पूरुं थयेलं; अंत आव्यो चडावी होय ते, (३) मकेलु (४)आपी होय तेवु (२)पूर्ण ; भरपूर के सोंपी दीधेलं समाप्ति स्त्री० अंत (२)पूर्णता; सिद्धि समारोहण न० उपर चडवू ते (३) विकास; परिपूर्णता समार्ष वि० एक ज प्रवर (गोत्र)नुं समाप्लव, समाप्लाव पुं० स्नान समालभ् १ आ० ग्रहण करवू; पकडQ समाभाषण न० वातचीत; संभाषण । (२) लेप करवो; खरडवू समाम्ना १ प० [समामनति ] पाठ समालभन न० लेप; खरड करवो; बोली जq (२)विधान करवू समालंब १ आ० पकड, (२) -ने (३) परंपरा स्थापित करवी अवलंब, (३) -ने वगळवू समाम्नाय पुं० परंपराथी चाल्युं आवq समालंभ पुं०, समालंभन न० पकडवू ते (२)परंपराथी चाल्यो आवेलो संग्रह ते (२)बलिदान माटे पकडवं ते (३) (शब्दोनो) (३)परंपरा (४)वेद वगेरे (शरीर-संस्कार माटे) लेप वगेरे धर्मग्रंथ (५) कुल संग्रह करवां ते समायस्त वि० पीडित; दुःखित समालाप पुं० संभाषण; वातचीत समायुक्त वि० संकळायेलं; जोडायेलं समावस् १ प० रहेवू ; वसवु (२)पडाव (२) -मां लागेलं; मंडेलु (३) सज्ज नाखवो; रोकावू करेलं; तैयार करेलु (४) जोगवेलं; समावाय पुं० संयोग (२)निकट संबंध; पूरुं पाड्युं होय तेवू समवाय (३) समुदाय; समूह समायोग पुं० जोडाण; योजq ते (२) समावास पुं० मुकाम; रहेठाण; पडाव तैयारी (३) संचय; समूह (४) हेतु समावासित वि०. पडाव नाखेलं समारभ् १ आ० आरंभq; माथे लेवू समाविद्ध वि० हलावेलु; वींझेलं (२)प्रसन्न करवू; मेळवी लेवू समाविश ६ ५० प्रवेश, (२)पासे जवं; समारंभ पुं० प्रारंभ (२) माथे लीधेलं पहोंचq (३) व्यापq (४) तत्परताथी कोई पण कार्य के प्रवृत्ति सेवq; वळगq (५) बेसवू; स्थिर थवं Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाविष्ट ५२१ समाह समाविष्ट वि० पूरेपूरुं पेठेलु; व्यापेखें समासक्त वि० जोडायेखें; संकळायेलु (२) पकडायलं ; ग्रस्त (३) भूतप्रेतना (२) आसक्त; लागेलुं (३) अटकावळगाडवाळ (४) -थी पूर्ण वायलं (जेम के झरने, व्यापतां) समावृ ६ उ० बधी बाजुथी ढांक समासतः अ० ढूंकमां; संक्षेपमा (२) घेरवू; वींटवू (३) संताडवू समासद् १० उ० मेळवq; प्राप्त करवं (४)बंध करवू (६) रोक ; अवरोधq (२) पकडी पाडवू (३) हल्लो करवो समावृत् १ आ० पासे जq (२) पाछा समासन न० साथे बेसवं ते फरवू (ब्रह्मचारीए अभ्यास बाद) समासन्न वि० नजीकर्नु ; पासेनुं भेगा मळवू (३) सफळ थर्रा (४) समासंज् १ प० [समासजति] जोडg; अंत आववो; पूरुं थर्बु वळगाड, समावृत वि० घेरायेलु;वींटायेलुढंकायेलु समासेन अ० ट्रंकमां; संक्षेपथी (२) छुपावेलु (३) रक्षित (४) रोकेलं समास्या स्त्री० मुलाकात (२) साथे (५) बंध करेलु बेसबुं ते (३)बेठक समावृत्त वि० पूरु थयेल के करेलु (२) समाहर वि० संहार करनाएं पार्छ फरेल (३) एकटु थयेलं समावेश पुं० प्रवेश (२) अंतर्भाव (३) समाहर्तृ पुं० कर वसूल करनारो समाहार पुं० जथ्थो; समुदाय (२)संक्षेप; भूतपिशाचनो वळगाड (४) आवेश; जुस्सो; मनोविकार ट्रॅकाण (३) एक समास (व्या०) समाश्रय पुं० आश्रय ; आधार; रक्षण समाहित वि० भेगुं करेलु (२)समाधान करेल:शांत पाडेलु (३)एकाग्र;समाधि(२) आश्रयस्थान; रहेठाण । समाधि १ उ० आशरा माटे जq युक्त (४) कबूलेलं (५)गोठवेलु (६) दोडवू (२) अनुभव_; भोगवq (३) पूरुं करेलु (७) मूकेलं; सोंपेल (८) आचरवू;पालन करवू(४)-नो आधार समशीतोष्ण (९) मोकलेलु लेवो (५) विश्वास मूकवो (६)पामवं समाह १ प० लावq; लई आवद्रू (२) समाश्रित वि० एकडु-भेगुं थयेलु (२) भेगुं करवु (३) आकर्षq; खेंचq (४) आशरो-अवलंबन लेतुं (३)-ने लगतुं संहार करवो (५) पूरुं कर समाश्लेष पुं० गाढ आलिंगन . समाहृत वि० भेगुं करेलु; एकळु करेलु समाश्वस् २ प० आश्वासन पाम; (२) पुष्कळ; अतिशय (३) लीधेलं; स्वस्थ थq (२)-मां मानवू स्वीकारेलु (४) कावेलु; संक्षिप्त (५) समाश्वस्त वि० आश्वासन पामेलु (२) खेंचेलं (पणछ) -मां विश्वास मूकतुं समाहृत्य अ० एकी साथे ; कुल सरवाळे समाश्वास पुं० छूटकारानो श्वास लेवो ते समाह्वय पुं० आह्वान ; पडकार (२) (२) आश्वासन ; सांत्वन (३) विश्वास युद्ध (३) साठमारी (क्रीडा के जुगार समाश्वासन न० आश्वासन आपq ते माटे) (४) नाम (२) सांत्वना समाह्वा स्त्री० नाम समास पुं० एकीकरण; संयोग (२) बे समाह्वान न० आह्वान ; पडकार (२) के वधारे शब्दोना संयोगथी थयेलो बोलावीने भेगुं करवू ते शब्द (व्या०) (३) समुदाय (४) कुल समाढे १५० आमंत्र; बोलावq (२) -समग्र एवं ते (५) संक्षेप; सारांश पडकार करवो (युद्धमां) (३) कहेवू; Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समांत्रिक नामची ओळखवं (४) १ आ० आह्वान करवुं पडकार देवो; युद्ध माटे उश्रबुं समांत्रिक वि० चारे पगं समानपणे ऊभुं रहेतुं (जेम के सिंह ) समि २प० भेगा मळवु (२) जवुं; पहोंचवुं; पामवुं ( ३ ) सामा थवं; अथडामणमां आव समित् स्त्री० युद्ध; लडाई समित वि० भेगुं मळेलुं (२) एकठं थयेलुं (३) जोडायेलुं समिति स्त्री० मिलन; संयोग ( २ ) सभा (३) युद्ध (४) टोळं ; समूह ( ५ ) सदाचारनो नियम (जैन) समितिजय वि० युद्धमां विजयी एवं समिद्ध वि० सळगेलं; प्रज्वलित करायेलुं (२) उश्केरायेलुं (३) पूर्ण; पूरुं समिद्वत् वि० खूब इंधनवाळु (अग्नि) समिघ् स्त्री० इंधन ; बळतण; काष्ठ (खास करीने यज्ञ माटे ) समिघ् ७ आ० सळगाववुः प्रज्वलित करवुं (२) उश्केरवुं; वधारवुं ( क्रोध इ० ) समिधन न० सळगाववुं ते (२) बळतण (३) उश्केरवानुं साधन ५२२ समीक न० युद्ध समीकृ ८ उ० समान - सरखुं कर समीक्ष १ आ० जोवुं (२) लेखामां गणनामा लेवुं ( ३ ) बारीकाईथी तपासवुं ( ४ ) शोधवं; तपासवुं समीक्षा स्त्री० शोध; बारीक तपास ( २ ) समजण; बुद्धि (३) जोवानी इच्छा आत्मविद्या ( ५ ) मीमांसादर्शन (६) सांख्य सिद्धांत समीक्षित वि० विचारेलुं; तपासेलुं समीक्ष्यकारिन् वि० विचारीने वर्तनारुं समी चीन वि० योग्य; खरं; साचुं समीप वि० नजीकनुं; पासेनुं (२) न० सामीप्य; निकटता - समुत्क्रम समीपतस्, समीपम्, समीपे अ० नजीकमां; हाजरीमां; पासे समीयते आ० (समान- सरखुं मानवुं ) समीर - प्रेरक ० हलाववं; खळभळाव (२) काढवु ; फेंकवुं (३) उच्चारखं (४) ऊंचुं करवुं (५)अर्पवुं (६) बने तेम करवु समीर पुं० पवन; हवा समीरण पुं० हवा; पवन ( २ ) श्वास (३) न० फेंक समीरलक्ष्मन् न० धूळ; रज समीरित वि० हलावेलुं (२) फेंकेलं (३) उच्चारेलुं [ प्रयत्न कर समीह, १ आ० इच्छवुं (२) करवा समीहा स्त्री० उत्कंठा; इच्छा समीहित वि० इच्छेलुं (२) उपाडेलुं; माथे लीलुं (३) न० इच्छा; उत्कंठा समुक्षण न० छांटवं ते; सिंचन (२) - फेंक [ टेवायेल समुचित वि० योग्य; छाजतुं ( २ ) - ने समुच्चय पुं० ढगलो; जथ्यो; समुदाय समुच्चि ५ उ० भेगुं करवु; ढगलो करवो (२) क्रमसर गोठव समुच्छित्ति स्त्री० समूळ नाश समुच्छिद् ७प० जडमूळथी नाश करवो समुच्छेद पुं० समूळ नाश समुच्छ्रय पुं० ऊंचाई ( २ ) सामनो; शत्रुता (३) ढगलो; समूह (४) युद्ध ( ५ ) पर्वत; टेकरी (६) जन्म (बौद्ध) समुच्छ्रि १ उ० ऊंचं करवु समुच्छ्वसित न०, समुच्छ्वास पुं० ऊंडो निःश्वास; भारे निसासो समुज्जृंभ १ आ० बगासुं खावुं ( २ ) फेलावुं; पथरावुं (३) देखावुं (४) प्रयत्न करवो [ ( ३ ) - थी छूटेलुं समुज्झित वि० त्यजेलं ( २ ) जवा दीघेल समुत्क वि० उत्सुक; इंतेजार समुत्कट वि० ऊंचं (२) अति; पुष्कळ समुत्क्रम पुं० ऊंचे चडवं ते (२) उचित मर्यादाओनुं उल्लंघन Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समुत्क्षेप ५२३ समुहकांची समुत्क्षेप पुं० उमेरवु-उल्लेखq ते(शब्द) समुदित वि० ऊंचे गयेलु; ऊगेलु (२) समुत्य वि० ऊभुंथतुं; ऊठतुं (२) -मांथी उन्नत; समृद्ध (३)बनेलं; थयेलु (४) उत्पन्न थतुं के थयेलं एकळु थयेलु (५)युक्त; सहित समुत्था १५० [समुत्तिष्ठति] ऊभा थर्बु । समुदीर्-प्रेरक० उच्चार; कहेवू (२) ऊठवू (२) फरीथी सजीवन थर्बु के उश्केर; प्रेर भानमां आवQ समुदीर्ण वि० खूब उश्केरायेलु (२) समुत्थान न० ऊठवू-ऊभा थq ते (२) उज्ज्वल; प्रकाशित (३) वृद्धिंगत फरीथी सजीवन थवं ते (३) पूरेपूरा समुद्ग पुं० ढांकणवाळी पेटी साजा थवं ते (४) धंधो; व्यवसाय समुद्गक पुं० ढांकणवाळी पेटी (२)एक (५) ऊंचे चडावq ते (ध्वज) प्रकारनी कृत्रिम काव्यरचना-जेनां बे समुत्पट् १० उ० पूरेपूरुं उपाडी नाखवू; अडधियां उच्चारणमां समान होय पण जडमूळथी उखेडी नाखवू (२) जुएं अर्थमां जुदां होय [(३)बोलेलं पाडवू (३) हांकी काढवू समुद्गीर्ण वि० ओकेलं (२) ऊंचकेलं समुत्पत् १५० कूद; ऊछळवू; ऊंचे समुदंड वि० उगामेलुं (२) भयंकर चड, (२) उद्भववं, पेदा थर्बु (३) समद्देश पुं० सविस्तर वर्णन (२) पूर्ण वहार धसी आवq (४) हुमलो करवो सूचन (३) गणतरी (४) सिद्धांत (५) लुप्त थq; विदाय थq समुद्धत वि० ऊंचु करेलुं; उगामेलुं (२) समुत्पत्ति स्त्री० जन्म; उत्पत्ति; मूळ उद्धत; गर्विष्ठ; असभ्य (३) तीव्र (२) बनवू-थर्बु ते समुद्धरण न० ऊंचकवू ते (२) उद्धार समुत्पद् ४ आ० थq; बनवू (२) उत्पन्न (३)बहार काढq ते (४) मुक्ति; मोक्ष; थर्बु ; नीकळवू (३) हाजर थq। छुटकारो (५) निर्मूळ कर, ते (६) समुत्पिज, समुत्पिजलक पुं० भारे अव्य- ओकी काढेलो खोराक (७) -मांथी वस्थामां पडेलु सैन्य(२)भारे अव्यवस्था काढी लेवं ते (हिस्सो) । समुत्सारण न०, समुत्सारणा स्त्री० समुद्धर्तृ पुं० उद्धारक; मुक्तिदाता खसेडी मूकवू ते; हांकी काढq ते समुढ १ उ० ऊंचकवू; ऊंचुं करवू (२) समुत्सुक वि० -ने माटे अधीर के आतुर उद्धार; बचावq (३)जडमूळथी नाश बनेलं (२) दिलगीर; खिन्न । करवो(४)-मांथी उपाडी लेवू (हिस्सो) समुत्सेध पुं० ऊंचाई (२)जाडाई समुद्भव पुं० उत्पत्ति समुदय पुं० उदय ; ऊगवू ते (२) चडती; समुदभेद पु० देखाव (२) विकास उत्कर्ष (३) समूह; ढगलो (४) आखं समुद्यत वि० ऊंचकेलं; ऊंचु करेलु (२) -समग्र एवं ते (५) महेसूल (६) उद्यम रजू करेलु; अलु (३)सज्ज; तत्पर; (७) युद्ध (८)हिसाबकिताब ; नाणां- तैयार (४)सिद्ध थयेलं; पूरुं थयेलं तंत्र (९) उत्पत्ति कारण समुद्यम पुं० ऊंचकवू ते (२) महा प्रयत्न समुदाचार पुं० शिष्टाचार (२)संबो- समुद्योग पुं० उद्यम; प्रयत्न (२) उप धननी योग्य रीत (३) हेतु; प्रयोजन योगमा लेवं ते समुदानय पुं० भेगुं करवू ते समुद्र वि० छापवाळू; महोरवाळू (२) समुदाय पुं० समूह; टोळं पुं० दरियो; सागर(३)एक खूब मोटी समुदि २५० ऊंचे जवू; ऊगq (२) युद्ध । __संख्या (एक लाख खर्व)... माटे तैयारी करवी (३)एकठा थq। समुद्रकांची स्त्री० पृथ्वी Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ समृष समुद्रकुक्षि समुद्रकुक्षि पुं० समुद्रनो किनारो समुद्रगा स्त्री० नदी [खेडनाएं समुद्रगामिन् वि० नौकाजीवी; वहाणवटुं समुद्रग्रह न० (ग्रीष्म ऋतु माटे) पाणी वच्चे बांधेलं घर. (२) स्नानागार समुद्रनेमि (-मी) स्त्री० पृथ्वी समतपत्नी स्त्री नदी समुद्रपर्यंत वि० दरियाथी वीटायेलं समुद्रफल न० एक औषधि समुद्रफेन पुं० समदर फीण; समुद्रफीण समुद्रमहिषी स्त्री० गंगानदी समुयायिन् वि० जुओ 'समुद्रगामिन्' समयोषित् स्त्री० नदी . समुद्ररसना स्त्री० पृथ्वी समुद्रलवण न० दरियाई मीठु समुद्रवेला स्त्री० समुद्रनी भरती (२) समुद्रनुं मोजु (३) समुद्र-किनारो समुद्रा स्त्री० खीजडो; शमी वृक्ष समुद्रांता स्त्री० पृथ्वी समुद्रह, १५० ऊंचु उपाडवू; वहन करवू (२) परणवू समुद्वाह पुं० ऊंचकवू ते (२) लग्न समुद्वाहित वि० ऊंचकतुं; वहन करतुं समुन्न वि० भींजायेलु; भी- (२) मलिन; मेल समुन्नत वि० ऊंचुं; उन्नत (२)मगरूर (३) प्रमाणिक; न्यायी। समुन्नति स्त्री० ऊंचकवू ते (२) ऊंचाई (३) महत्ता (४) ऊंचो होहो (५) समुपविश् ६५० बेसवु(२)उपर आडा पडद् (३) पडाव नाखवो समुपष्टंभ, समुपस्तंभ पुं० आधार; टेको समुपस्था १ उ० [समुपतिष्ठति-ते] पासे आवq (२) हमलो करवो (३) थएँ; बनवू (४)अति निकट ऊभुं रहे, (५) पामq; पहोंचवू [जगा समुपहर पुं० ढंकायेली के संतावानी समुपागत वि० पासे आवी पहोंचेलं समुपादाय अ० -ना उपायथी समुपे २५० मेळवq (२) भेगा थवू; मळवू (३) हुमलो करवो (४) पासे जवू; पहोंचवू (५) –ने भाग आवी पडवू (६) सहन करवू समुपोढ वि० ऊंचुं चडेलु; ऊगेलु (२) वधेलु (३) नजीक लावेलुं के आवेलं समुल्लस् १ प० चळकवं (२)नजरे पडवू ; देखावु (३) क्रीडा करवी समूढ वि० भेगुं करेलु; एकळु करेलु (२) परणेलु (३) संबंधमां आणेलु समूल वि० मूळ सहित समलम् अ० जडमूळथी समूह, १ उ० भेगुं करवू; एकळु कर समूह पुं० टोळं ; समुदाय समूहन न० भेगुं करवू ते (२) संचय समृ १ आ० [समृच्छते] मळवू; भेगा थर्बु (२) संघर्षमां आवq (३) भेगु करवं; रचवू -प्रेरक० [समर्पयति] आपी देवें; समर्पण कर (२) -उपर के-मां मूकवू (३)पार्छ वाळवं समृद्ध वि० समृद्धिवाळु; आबाद (२) सुखी; नसीबदार (३)पुष्कळ होय तेवू (४) सफळ (५) खूब विकसेलु (६) आखु; समग्र (७)वृद्धिंगत थयेलं समृद्धि स्त्री० आबादी ; ऐश्वर्य ; संपत्ति (२) अति वृद्धि; विपुलता समूष ४,५५० आबाद थq; समृद्ध थर्बु हाही (५) समृद्धि; चडती समुन्नद्ध वि० उंचुं; उन्नत (२) अत्यंत तीव्र (३) उद्धत (४) पोतानी जातने विद्वान माननाएं (५) सूजेलं; फूलेलं समुन्नम् १५० चडवू; ऊंचे जq समुन्नी १ उ० पूरेपूरुं ऊंचुं करवू (२) तारवq (३)चूकवी देवू (ऋण). समुन्नीत वि० ऊंचु करेलु; वधेलं समुपचित वि० भू० कृ०) वि० वृद्धिंगत; भेगुं थयेलं ... Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२५ सरोजिनी -कर्मणि० सफळ थq; सिद्ध थQ सरभसम् अ० शीघ्रताथी (२)खूब प्राप्त थयेलं होवू सरमा स्त्री० कतरी (२) देवोनी कतरी समे २५० भेगा थq; मळवू सरयु (-यू) स्त्री० अयोध्या जेने समेत वि० भेगुं मळेलं; एकळू थयेलु किनारे आव्युं छे ते नदी (२) पासे आवेल (३) युक्त; सहित सरल वि०सरळ; सीधू (२)प्रमाणिक; समेघ १ आ० आबाद थq; समृद्ध थर्बु निष्कपट (३) भोळु (४) पुं० एक -प्रेरक० सुखी करवू (२) पूरु जातनुं देवदार वृक्ष पाडवू; पूर्ण बनावq सरस् न० सरोवर; मोटुंजळाशय (२) समेधित वि० खूब ज वधेलु (२) मज- पाणी (३) वाणी (सरस्वती देवी) बूत (३) संयुक्त सरस वि० रसयुक्त; रसाळ (२) सम्यक् अ० साथे (२)खलं होय तेम; स्वादिष्ट (३) भीy (४) पसीना योग्य होय तेम (३) पूरेपूरुं होय तेम थी भींजायेलं (५) प्रेमपूर्ण; कामी सम्यग्ज्ञान न० साचुं ज्ञान (६) मनोरम (७) ताजु, नवं(८) सम्यग्दर्शन न०, सम्यग्दृष्टि स्त्री० साची गाढुं; नक्कर (९) न० तळाव श्रद्धा (जैन)(२)ऊंडी नजर सरसिज, सरसिरह न० कमळ सम्यच्, सम्यंच वि० साथे जतुं (२) सरसी स्त्री० सरोवर; तळाव . योग्य; उचित (३) साचुं; खरं सरस्वत् वि० पाणीवाळू (२) रसाळ (४) आनंदप्रद; अनुकूळ (६) (३)पुं० सागर (४) सरोवर (५) नद एकसरखं; एकधारु (६) आखं; समग्र सरस्वती स्त्री० वाणीनी देवता (२) सम्राज पुं० सम्राट; राजाधिराज वाणी; शब्द; अवाज (३) एक (राजसूय यज्ञ कर्यो होय तेवो) नदी (जे रणमा हवे लुप्त थयेली छे) सयावक वि० लाखथी रंगेलं (४) उत्तम स्त्री सयुज् वि० साथी; सोबती सरहस्य वि० रहस्ययुक्त; चमत्कारिक सयूथ्य पुं० एक ज टोळानो एवो ते (२)गूढ मंत्र के उपनिषद सहित एवं सर वि० जतुं; खसतुं (२) रेचक सराग वि० रंगीन (२) लाखथी रंगेलं (३) पुं० गति (४)बाण (५) दूध के (३) राग-प्रेम युक्त दहींनी तरी (६) माळा; हार सरित् स्त्री० नदी सरक पुं०, न० रस्तानी चालु रेखा सरित्पति पुं० समुद्र (२) मद्य; दारू (३) मद्यपान (४) सरिद्वरा स्त्री० गंगानदी [प्राणी मद्यपात्र (५) दारू पीरसवो ते सरीसृप पुं० साप; पेटे चालतुं कोई पण सरचा स्त्री० मधमाखी सरूप वि० समान रूपवाळू (२) समान सरट पुं० पवन (२) काकीडो; काचंडो सरूपता स्त्री०, सरूपत्व न० चार सरण वि० जतुं; वहेतुं (२) न० प्रकारनी मुक्तिमांनी एक; देव साथे झडपी गति एकरूप थई जq ते सरणि (-णी) स्त्री० मार्ग; रस्तो (२) सरोज, सरोजन्म न० कमळ - पद्धति; रीत (३)सीधी चाल लीटी सरोजिनी स्त्री० कमळनो छोड़; कमसरभस वि० झडपी; वेगीलू (२) लिनी (२) कमळथी भरपूर तळाव जुस्सादार; आवेशयुक्त (३) कमळनो समूह (४) कमळ . Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरोरुह सरोरुह, सरोरुह न० कमळ सरोहिणी स्त्री० जुओ 'सरोजिनी' सरोवर पुं० मोटुं तळाव सर्ग पुं० त्याग ( २ ) सर्जन सृष्टिनी रचना - उत्पत्ति (३) सृष्टि (४) स्वाभाविक लक्षण; स्वभाव ( ५ ) निर्णय; निश्चय (६) मळत्याग (७) शस्त्रसामग्रीनुं उत्पादन सर्गबंध पुं० विविध प्रकरण के सर्ग - वाळं मोटुं काव्य; महाकाव्य सर्ज पुं० साल वृक्ष ( २ ) साल वृक्षनो गुंदर; राळ सर्जन न० त्याग करवो ते (२) छूटुं करवुं ते (३) उत्पत्ति; रचना ( ४ ) मळत्याग ( ५ ) ऊंचकबुं - ऊंचु करवुं ते सर्प पुं० सापनी पेठे वांकुंकुं सरकवूं ते (२) साप सर्पच्छत्र न० बिलाडीनो टोप सर्पण न० पेटे सरकवूं ते (२) बाणनी जमीनने समांतर एवी गति सर्पराज पुं० वासुकि नाग सर्पाराति, सर्पारि पुं० नोळियो (२) मोर (३) गरुड [(२) जतुं ; खसतुं सर्पिन् वि० पेटे सरकतु; वांकुंचकुं जतुं सपिस न० घी सर्पेश्वर पुं० वासुकिनाग सर्व स० ना० वि० बधुं; हरेक ( २ ) तमाम ; पूरु ( ३ ) पुं० विष्णु ( ४ ) शिव सर्वकालीन वि० हंमेश माटेनुं; कायमी सर्वग वि० बधे फेलायेलुं; व्यापेलुं सर्वगति पुं० बधांनुं शरण एवो ते सर्वजनीन वि० प्रख्यात ( २ ) बधांने हितकर एवं (३) बधाने लगतुं सर्वज्ञ वि० बधुं जाणनारुं ( २ ) पुं० शंकर (३) बुद्ध (४) परमात्मा सर्वतस् अ० दरेक बाजुएथी (२) बघी बाजुए; सर्वत्र (३) पूरेपूरुं होय तेम सर्वतंत्र पुं० बधां तंत्रो - दर्शनोनो अभ्यासी ५२६ सर्ववेदस सर्वतंत्र सिद्धांत पुं० बधां दर्शनोए मान्य करेलो सिद्धांत सर्वतः शुभा स्त्री० प्रियंगुनो छोड़ सर्वतोगामिन् वि० बधे जई शकतुं (२) सर्वव्यापी सर्वतोभद्र पुं० विष्णुनो रथ ( २ ) वांस (३) बधी बाजुएथी वांचवा छतां सरखो ज अर्थ आपतो श्लोक (४) चारे बाजुए बारणांवाळं मंदिर के महेल ( ५ ) लीमडो ( ६ ) एक व्यूहरचना सर्वतोमुख वि० दरेक जातनं; पूरेपूरुं; अमर्यादित (२) पुं० शिव ( ३ ) ब्राह्मण ( ४ ) न० पाणी [ होय तेनुं सर्वतोवृत्त वि० सर्वव्यापी; सर्वत्र मोजूद सर्वत्र अ० बधे ( २ ) सर्व काळे सर्वत्रग पुं० हवा; पवन [ पडतुं सर्वत्रगत वि० सार्वत्रिक; बधाने लागु सर्वथा अ० बधी रीते; दरेक रीते (२) बिलकुल ( नकार साथे ) ( ३ ) तद्दन ; संपूर्णपणे ( ४ ) बधे समये ( ५ ) खूब ज धारे (६) कोई पण प्रकारे सर्वदमन वि० सर्वनुं दमन करनाएं; सामनो न करी शकाय तेनुं ( २ ) पुं० दुष्यंत- शकुंतलानो पुत्र; राजा भरत सर्वदा अ० बधे समये; हमेशां सर्वनामन् न० सर्वनाम ( व्या० ) सर्वभाव पुं० पोतानुं समग्र अंतर - हृदय सर्वभावकर, सर्वभावन पुं० शिव सर्वभावेन अ० पूरेपूरा अंतरथी; अंत:करणपूर्वक सर्वमंगला स्त्री० पार्वती सर्वमेव पुं० एक यज्ञ [ मूळ सर्वयोनि स्त्री० सर्वनुं उत्पत्तिस्थान के सर्ववर्णन् वि० विविध जातनुं सर्ववेद पुं० बधा वेदोनों जाणकार एवो ते सर्ववेदस् पुं० पोताना सर्वस्व वडे यज्ञ करनारो सर्ववेदस न० पोतानी बधी मिलकत Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वव्यापिन् ५२७ सध्य सर्वव्यापिन् वि० सर्वव्यापी; बधे व्यापेलं ज लोकमां रहे ते (मुक्तिना चार सर्वशस् अ० पूर्णपणे (२) बधे (३) प्रकारमांनो एक) बधी बाजुए [धीरजवाळं सव पुं० सोमरस निचोववो ते (२) सर्वसह वि० बधुं सहन करनारं; __ आहुति (३) यज्ञ सर्वसहा स्त्री० पृथ्वी [नाश करनारं सवन न० सोमरस निचोववो के पीवो सर्वसंस्थ वि० सर्वव्यापी (२) सर्वनो ते (२) यज्ञ (३) आहुति (४) स्नान सर्वसाक्षिन् वि० बधाना साक्षीरूप (२) सवनकर्मन् न० आहुति अर्पवारूपी क्रिया पुं० परमेश्वर (३) अग्नि (४) पवन सवपुष वि० मूर्तिमंत सर्वस्व न० पोतानुं बधुं ते; पोतानी सवयस् वि० सरखी उंमरनुं (२) पुं० बधी मिलकत (२) सार; तत्त्व समकालीन व्यक्ति (३) स्त्री० स्त्रीनी सर्वहर वि० बधुं हरनारु (२) कोईनी विश्वासु सखी तमाम मिलकतनुं वारसदार (३) सवर्ण वि० एक ज रंगनुं (२) एक ज सर्वनो नाश करनारुं (मृत्यु) देखाव-; सदृश (२) एक ज वर्ण के जाति [विस्तृत सर्वकष वि० सर्वनो नाश करनाएं; सविकाश (-स)वि० पूरेपूरूं खीलेलं (२) सर्वशक्तिमान (२) पुं० ठग सवितर्कम् अ० विचारपूर्वक सर्वसहा स्त्री० पृथ्वी पूरेपूरु सवित वि० उत्पन्न करनारूं; आपनाएं सर्वाकार अ० (समासमां) संपूर्णपणे; (२) पुं० सूर्य सर्वात्मना अ० संपूर्ण रीते; पूरेपूरुं। सवित्री स्त्री माता (२) गाय सर्वार्थसाधिका स्त्री० दुर्गा । सविध वि० एक ज 'जातन; एक ज सर्वार्थसिद्ध पुं० गौतम बुद्ध । प्रकार- (२) नजीकर्नु (३) न० सर्वांगीण वि० आखा शरीरमा व्यापतुं सांनिध्य; पडोश सर्वोत्तम वि० सौमां उत्तम ; श्रेष्ठ सविभ्रम वि० विलासी; स्वच्छंदी सर्षप पुं० सरसव; राई (२) वजन सविमर्श वि० विचारवंत. एक नानुं माप सविलक्षम् अ० शरम के मझवण साथे सलज्ज वि० शरमाळ; लज्जायुक्त सविशेष वि. विशिष्ट लक्षणोवाळु (२) सलिल न० पाणी विशिष्ट ; खास एवं (३) उत्तम ; श्रेष्ठ सलिलचर पुं० मगर वगेरे जळचर सविशेषतस्, सविशेषम् अ० खास करीने सलिलचरकेतन पुं० कामदेव (मकरकेतु) (२) अतिशय होय तेम [साथेनुं सलिलज न० कमळ सविस्तर वि० विस्तार युक्त; विगतो सलिलधर पुं० मेघ; वादळ (२) देव सविस्तरम् अ० विस्तारथी; विगतथी सलिलेंद्र पुं० वरुण सविस्मय वि० आश्चर्य पामेलुं (२) सलिलोद्भव पुं० शंख संदेह युक्त एवं सलिंग वि० -ने अनुरूप एवं सविस्मयम् वि. विस्मयपूर्वक सलील वि० लीला - क्रीडायुक्त; क्रीडा- सवेष्टन वि० पाघडी - फेंटावाळू प्रिय [प्रेमपूर्वक; हेतथी सवैलक्ष्य वि० कृत्रिम ; यत्नपूर्वक करेलु सलीलम् अ० रमतमां; लीलाथी (२) (२) गभरायेलं; गूंचवायेलं सलशम् अ० पूरेपूरु सव्य वि० डाबु (२) दक्षिण दिशानुं सलोकता स्त्री० इष्ट देवनी साथे एक (३) ऊलटुं; विपरीत Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सव्यपेक्ष ५२८ सहर्षम् सव्यपेक्ष वि० -नी अपेक्षा राखतुं-ने करवं; वेठवू (५) माफ करवू (६) आधारे रहेतुं धीरज धरवी (७)आधार आपवो(८) सव्यम् अ० डाबे खभेथी (जनोई सामनो करवा के हराववा शक्तिमान पहेरवानी स्वाभाविक रीत) थq [करी शकाय तेवू करवू सव्यसाचिन् पुं० अर्जुन (डाबे हाथे पण -प्रेरक० सहन करावq (२) सहन धनुष्य वापरी शकतो तेथी) सह वि० सहन करनारु (२)धीरजवाळं सव्याज वि० दंभ युक्त; ढोंगी; लुच्चुं (३) शक्तिमान (४) हरावनाएं(५) सव्याजम् अ० -ना बहानाथी सामनो करी शके तेवू (६) उद्यमी सव्यापसव्य वि० जमणुं अने डाबु (२) सह अ० साथे (२) एकी साथे खरुं अने खोटं सहकार वि० 'ह' उच्चारवाळं सव्येतर वि० जमणुं सहकार पुं० परस्पर मदद (२) आंबो सव्येष्ट्र पुं० सारथि सहकृत्वन् वि० साथे- सहकारमा काम सबीड वि० शरमाळ (२) शरमिदं करनारुं एवं (२)पुं० साथी सशब्द वि० अवाज करतुं (२) मोटा सहगमन न० साथे जq ते (२) स्त्रीनुं अवाजे जाहेर करेलु पोताना पतिना शब साथे बळवं- सती सशब्दम् अ० मोटा अवाज साथे थवं ते सशल्य वि० कांटावाळू (२) बाण के सहचर वि० साथे जतुं के रहेतुं (२) कांटाथी वींधायेलं (३) पीडाकारक; पुं० सोबती; साथी; मित्र (३) मुश्केल [सुंदर; मनोहर अनुचर; नोकर (४) पति सश्रीक वि० समृद्ध ; भाग्यशाळी (२) सहचरी स्त्री० सखी (२) पत्नी ससत्त्व वि० शक्तिशाळी (२) गर्भयुक्त सहचारिन् पुं० सहचर; सोबती (३) प्राणीओवाळं सहज वि० कुदरती; साथे जन्मलं (२) ससत्त्वा स्त्री० सगर्भा स्त्री आनुवंशिक (३) पुं० सगो भाई ससंध्य वि० सांजर्नु; सांध्य (४) साहजिक स्थिति ससंभ्रम वि० व्याकुळ ; गाभरुं सहजारि पुं० कुदरती दुश्मन ससंभ्रमम् अ० उतावळे; जलदीथी सहजित् वि० एकदम विजयी नीवडनारं (२) गभराटमां; गूंचवाईने सहदेव पुं० माद्रीनो नानो पुत्र; पांच ससंविक वि० चेतना युक्त पांडवोमां सौथी नानो ससाध्वस वि० बीकण ; डरी गयेलं सहधर्म पुं० एक ज जातनुं कर्तव्य सस्पृह वि० स्पृहावाळं; आतुर । सहधर्मचारिणी स्त्री० विधि प्रमाणे सस्पृहम् अ० आतुरतापूर्वक परणेली पत्नी सस्मित वि० स्मितयुक्त । सहधर्मचारिन् पुं० पति सस्य न० धान्य; अनाज सहमिणी जुओ ‘सहधर्मचारिणी'. सस्यप्रद वि० फळद्रुप सहन वि० सहन करनारु (२) न० सहन सस्यमालिन् वि० धान्यथी भरपूर . करवं ते [लंगोटियो मित्र सस्वेद वि० पसीनाथी भींजायेखें सहपांशुक्रीडिन् पुं० बाळपणनो मित्र; सह, ४ प० सहन करवू (२) खुश थQ सहभू वि० कुदरती; सहज (३)संतोष आपवो (४)१ आ० सहन सहर्षम् अ० खुशी थईने; आनंदपूर्वक पक Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२९ [तेवू सहवसति संकलित सहवसति स्त्री०, सहवास पुं० साथे सहायन न० सोबत रहेवू - वसवू ते सहायवत् वि० -नी सहाय मळी होय सहस् वि० बळवान (२) पुं० मागशर सहासिका स्त्री० सोबत; साथे बेसवं ते महिनो (३)शियाळो(४)न०शक्ति; सहित वि० साथे; युक्त (२) सहन बळ; तेज (५) पाणी करायेलु सहसा अ० बळपूर्वक (२) अविचारी- ___ सहितम् अ० साथै पणे (३) एकाएक; तरत ज . सहिष्णु वि० सहनशील; धीर.. सहस्थ पुं० सोबती सहृदय वि० माया प्रेमाळ (२) सहस्य पुं० पोष महिनो पुं० विद्वान (३) कदरदान; रसज्ञ सहल न० हजार (२) मोटी संख्या सहेल वि० रमतियाळ; क्रीडाशील सहस्रकर, सहस्रकिरण पुं० सूर्य सहोत्थायिन् वि० साथे बंड करनारं; सहनकृत्वस् अ० हजार वखत साथे षड्यंत्र चलावनाएं सहस्रदीधिति पुं० सूर्य सहोदर पुं० सगो भाई सहस्रधा अ० हजार रीते; हजार भागमां । सह्य वि० सहन करी शकाय तेवु (२) सहस्रधामन् पुं० सूर्य सहन करवा योग्य (३) सहन करी सहस्रनेत्र पुं० इंद्र (२) विष्णु शके तेवू (४) बराबरनुं; पूरतुं (५) सहस्रपत्र न० कमळ (२) सारस पंखी अनुकूळ ; मधुर (६) पुं० भारतनी सहस्रबाहु पुं० सहस्रार्जुन; कार्तवीर्य सात पर्वतमाळाओमांनी एक (२) बाणासुर संकट वि० सांकडु (२) भीडवाळू सहस्रमरीचि, सहस्ररश्मि पुं० सूर्य (३) कृश करेलु (४) न० सांकडो सहस्रशस् अ० हजारोनी संख्यामां रस्तो (५) मुश्केली; जोखम; भय सहस्राक्ष वि० हजार आंखवाळू (२) संकथ् १० उ० वातचीत करवी (२) सावध; होशियार (३) पुं० इंद्र वर्णन करवू (३) समजाव, सहस्रार पुं०, न० माथानी टोचे आवेल संकथन न० वर्णन पोलाण (ऊंधा कमळ जेवू, ज्यां आत्मा संकथा स्त्री० संभाषण; वातचीत रहे छे) संकर पुं० मिश्रण; भेळसेळ (२)वर्णोनी सहस्राचिस् पुं० सूर्य भेळसेळ सहस्रांशु पुं० सूर्य संकर्षण न० खेंचवू ते; खेंचीने भेगुं सहलिन् वि० हजारनो स्वामी-मालिक करवं ते (२) आकर्षq ते (३) (२)हजारनुं बनेलं (३)हजार जेटलं खसेडवू ते (४) पुं० बळराम (५) (४) पुं० हजार माणसोनो समूह शेषनाग (६) जगतनो नाश करनारो (५)हजारनो सेनापति (७) अहंकार सहाध्ययन न० साथे भणq ते संकल् १० उ० सरवाळो करवो (२) सहाध्यायिन् पुं० साथे भणनारो एकळं करवू; ढगलो करवो (३) सहाय पुं० मित्र; सोबती (२) मानवं; गणवू (४) पकडवू अनुयायी (३) सहायक संकलन न० भेगु कर ते सहायक पुं० मददगार संकलित वि० भैगु करेलु (२) पकडेलु सहायता स्त्री० मदद; सहाय (३) फरी हाथमां लीधेलु Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकल्प संकल्प पुं० निश्चय; मनसूबो ( २ ) तरंग; इरादो; इच्छा ( ३ ) कल्पना; विचार ( ४ ) मन; हृदय ( ५ ) कशा व्रत-तपनी दृढ प्रतिज्ञा ( ६ ) ( धर्मकृत्यमाथी ) लाभनी - फळनी अपेक्षा संकल्पज, संकल्पजन्मन् पुं० कामदेव (२) इच्छा; कामना संकल्पप्रभव वि० संकल्प के वारंवार चितवनथी उत्पन्न थतुं (२) पुं० कामदेव संकल्पयोनि पुं० कामदेव संकल्पित वि० कल्पेलुं ; धारेलुं; इरादो खेलुं ( २ ) नक्की करेलुं संकालन नं० शबने अग्निदाह देवो ते संकाश वि० ( समासने अंते ) समान; सदृश (२) नजीकनुं संकीर्ण वि० मिश्रित; भेळसेळ थयेलुं (२) वीखरायेलुं फैलायेलु (३) अस्पष्ट (४) मदमां आवेलं (५) वर्णसंकर होय तेवुं (६) अशुद्ध (७) सांकडुं | कीर्तन स्तुति संकीर्तन न० प्रशंसा; वखाण ( २ ) संकु १, ६५० संकोचाबुं (२) बिडावु संकुचित ( ' संकुच्' नुं भू० कृ० ) वि० संकोचायेलं; टंकुं - अल्प थयेलुं (२) बिडायेलुं; बंध थयेलुं ५३० संकुल वि० मूंझायेलं; गुंचायेलु (२) भीडवाळु; भरेलुं (३) गाढ; तीव्र (४) न० गिरदी; भीड; टोळं (५) कोण कोनी साथे लडे छे ते पण खबर न पडे तेवी हाथोहाथनी लडाई (६) असंबद्ध के विरोधी वात (७) नाश संकृ ८ उ० करवु; आचरवुं ( २ ) बनावबुं [ खेंची बांध संकृष् १ प० खेंची जवुं; ताणी जवं (२) संक प० [ संकिरति] भेळवबुं; भेळसेळ करवुं (२) विखेरवुं - कर्मणि० [ संकीर्यते] भेळसेळ थवं; गूंचवाई ज संक्रमण संकृत १० उ० [ संकीर्तयति - ते ] वस्खाणवं; स्तुति करवी ( २ ) कहेवुं (३) जाहेर कर संक्लप १ आ० [ संकल्पते ] संकल्प करवो; इच्छवं - प्रेरक० निश्चय करवो; नक्की करवुं ( २ ) इरादो राखवो (३) गोठववुं ( ४ ) अर्पण करवुं ( ५ ) विचार; चितवबुं (६) कल्पवुं (७) उत्तरक्रिया करवी संकेत पुं० उल्लेख (२) निशानी; सूचन (३) करार (४) प्रेमीजनने मळवा आववा करेलुं सूचन के दर्शावेल समय अने स्थान संकेतक पुं० प्रेमीजनने मळवा बोलाववा करेल सूचन; तेनो समय के स्थान (२) तेवी मुलाकात गोठवनार प्रेमिका के प्रेमी संकेतन न० ( प्रेमीजनो वच्चे नक्की थयेल) मळवानुं स्थान के समय संकोच पुं० संकोचावं ते (२) टूकुं करवुं ते (३) बीडवुं - बिडावं ते (४) दीनता ( ५ ) न० केसर संक्रम् १ उ० साथै आववुं के मळवु (२) जवुं ; ओळंगीने जवुं; -मां थईने जवं (३) पासे जबुं (४) -मां प्रवेशवं [ -तरफ लई ज - प्रेरक ० - ने सोंपवु; ने आपवुं ( २ ) संक्रम पुं० साथै जवं ते ( २ ) स्थळांतर; संक्रमण (३) पुं०, न० सांकडो के दुर्गम मार्ग ( ४ ) पुल (५) कोई वस्तु प्राप्त करवानुं साधन (६) निसरणी संक्रमण न० एक जगा के स्थितिमांथी बीजी जगा के स्थितिमां जवं ते; संचार (२) ओळंगवुं ते ( ३ ) प्रवेश करवो ते (४) एक राशिमांथी बीजी राशिमां जनुं ते (सूर्यनुं ); संक्रांति (५) मृत्यु Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकंद संद पुं० युद्ध (२) कोलाहल (३) आनंद (४) सोम रस काढवान्ं साधन संक्रंदन पुं० इंद्र ( २ ) न० युद्ध संक्रांत वि० - मां थईने गयेलं; -मां प्रवेशेलुं (२) सोंपेलुं के आपेलु (३) प्रतिबिंबित थयेलुं संक्रांति स्त्री० साथे जवुं के मळवुं ते (२) एक स्थिति के स्थळमांथी बीजी स्थिति के स्थळमां गमन ( ३ ) एक राशिमांथी बीजी राशिमां जबुं ते ( सूर्यनं ) ( ४ ) बीजाने आपी देवु ते (५) ( पोतानुं ज्ञान ) बीजाने आपवानी शक्ति के आवडत ( ६ ) प्रतिबिंब संक्रीड १ आ० साथे रमवुं ते (२) गडगडाट करवो (पैडांए ) संक्रीडित न० रथनो गडगडाट संक्लिष्ट वि० घरको थयेलुं; छोलायेलुं (२) मेलुं थयेलुं (दर्पण) संक्लिष्टकर्मन् वि० दरेक काम मुश्के - ली करी शके ते संक्षय पुं० विनाश (२) प्रलय (३) हानि, नुकसान ( ४ ) अंत; समाप्ति (५) आश्रयस्थान ( ६ ) मृत्यु संक्षि १, ५, ६ प० क्षीण थवुं ( २ ) पूरेपूरो नाश करवो संक्षिप् ६ प० भेगुं करवु; ढगलो करवो (२) पार्छु खेचवं; नाश करवो (३) ट्रंकुं कर; संक्षेप करवो (४) ओछु करवुं (५) दबाववुं; अटकाव संक्षिप्त वि० एकसाथे ढगलो करेलु (२) टूकुं करेलु; संकोचेलु, दबावेलु; ओछु करेलुं (३) फेंकेलुं (४) पकडेलुं संक्षेप पुं० साथे नाखवं ते (२) टूकुं करवुं। - संकोचवुं वे (३) ट्रंकाण; कावेलु ते (४) फेंक ते (५) संहार (६) कुल सवाळो संक्षोभ पुं० क्षोभ; खळभळाट ( २ ) घांधळ; धमाल ५३१ संगम संख्य न० युद्ध; लडाई संख्या २ प० गणतरी करवी संख्या स्त्री० गणना; गणतरी ( २ ) रकम आंकडो (३) बुद्धि; समजशक्ति ( ४ ) विचारणा; विवरण ( ५ ) युद्ध (६) नाम संख्याता स्त्री० एक जातनी समस्याst (गणतरी के आंकडाने लगतो) संख्यातिग, संख्यातीत वि० असंख्य संख्यात वि० परीक्षक संख्यान न० गणतरी; गणना ( २ ) प्रागट्य; प्रादुर्भाव [ दार संख्यापक पुं० गणतरी करनार; मोजणी - संख्यापरित्यक्त वि० असंख्य संख्यावत् वि० संख्यावाळु (२) बुद्धियुक्त ( ३ ) पुं० विद्वा संख्यासमापन पुं० शिव संख्येय वि० गणतरी करवा योग्य; गणतरी करी शकाय तेवुं संग पुं० संयोग; संबंध ( २ ) सोबत ; सहवास ( ३ ) आसक्ति (४) युद्ध (५) रुकावट ; विघ्न [ कथा के उपदेश संगणिका स्त्री० उत्तम के अप्रतिम एवी संगत वि० जोडायेलु, मळेलु (२) एक थयेलुं (३) लग्नथी जोडायेलुं (४) न० संबंध; जोडाण ( ५ ) मित्रता; परिचय; सोबत ( ६ ) संकोचेलुं; संकोचायेलुं संगति स्त्री० संयोग; संबंध ( २ ) सोबत सहवास; मेळ (३) उचितता; बंध सता होवापणं (४) पूर्वापर संबंध संगम् १ ० [ संगच्छते ] भेगा थवं ; मळवुं; जोडावं (२) संभोग करवो ( ३ ) सोबत करवी (४) पामवुं; पहोंच (५) संकोचाबुं संगम पुं० मेळाप; संबंध ( २ ) सोबत ; सहवास (३) स्पर्श (४) संभोग (५) नदीओनुं भेगा मळवु ते; ते स्थान Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संघृषु संगमन ५३२ संगमन न० संगम; मेळाप घोडा, आगला बे पग ऊंचा करी संगर पुं० वचन;कबूलात (२)स्वीकार ठेकवू ते ते; माथे लेवू ते (३) युद्ध संग्राहक पुं० एकळं करनारो (२) सारथि संगिन् वि० संबद्ध (२) आसक्त (३) संघ पुं० समूह; समुदाय; जूथ (२) इच्छुक (४) कामासक्त (५) एक- घणा लोकोतुं एकसाथे रहे, ते धाएं; चालु संघचारिन् वि० टोळामां फरतु। संगीत वि. साथे गायेलं (२)न० भेगा संघट १ आ० मळवू; एकठा थर्बु मळीने गायेलं ते (३) गायन वादन -प्रेरक० एकळु जोडवू के बांधवू अने नृत्यनो मेळ (४) तेनी कळा (२)वगाडq (वाजिंत्र) संगीतक न० गायन, वादन अने नत्यनो संघटना स्त्री० जोडाण; एकळं करते जलसो (जाहेर मनोरंजन माटेनो) संघट्ट, १ आ० वगाडq (वाजिंत्र) संगीतार्थ पुं० संगीतना जलसा माटे (२) भेगुं करवू (३) जोडवू; एकछु जरूरी साधनसामग्रीनी जोगवाई। करवू (४) घसवं ; घसावं (५) दबावर्चा संगुप्त वि० सारी रीते रक्षायेलं (२) संघट्ट पुं० एकबीजा साथे घसावं ते सारी रीते गुप्त राखेखें (२) अथडावू ते; अथडामण (३) संगहीत वि० संग्रह करेलु (२)पकडेलु हरीफाई (४) भेटवू ते (३) निग्रह करेलु (४) स्वीकारेलु संघट्टन न०, संघटना स्त्री० एकबीजा (५) संक्षिप्त साथे घसावं - अफळावं ते (२) गाढ संग ९ उ० [संगृणाति, संगृणीते ], संबंध (३) सामसामी आवी जदूं ते (४) आलिंगन (प्रेमीओD) ६ आ० [संगिरते वचन आपq (२) संघर्ष पुं० घर्षण (२) अथडामण ; टक्कर गळी जवं; खाई जवं (३) स्पर्धा; हरीफाई (४) अदेखाई संगै १५० भेगा मळीने गावू (५)वेर; दुश्मनावट संग्रह, ९ उ० संघरवू; एकळं करवू संघाट पुं० सुथारीकाम ; लाकडांने घडीने (२) निग्रह करवो (३) पकडवू; बेसाडवां ते लेवू (४) संकोचवू (५) स्वीकार संघाटिका स्त्री० जोड; जोडी (६) पणछ उतारी नाखवी संघात पुं० मंडळ; संघ (२)समुदाय; संग्रह पुं० पकडवू-लेवं ते (२)संरक्षण समूह (३) वध; कतल (४) प्रवाह (३) अनुग्रह (४) संघरो (५) (५) कठण अंश निग्रह (६) संक्षेप; ढूंकाण (७) संघातकठिन वि० घन पदार्थ जेवं सरवाळो; कुल जे होय ते (८) यादी कठण - नक्कर (९)संरक्षक ; शासक ; व्यवस्थापक संघातमृत्यु पुं० एक सामटुं मोत संग्रहण न० एकत्र करवू ते (२) जडवं संघातशिला स्त्री० घन के नक्कर शिला ते; बेसाडवू ते (२) मिश्र करवू ते; संघाराम पुं० बौद्धमठ; विहार मिश्रण (४) संभोग; मैथुन (५) संघुष्ट वि० पडघो पाडतुं; गाजतुं व्यभिचार (६) आशा (७) स्वीकृति रणकतुं (२)जाहेर करेलु (३) वेचाण संग्रहणी स्त्री० संघरणीनो रोग माटे नियत करेल (४) पुं० अवाज; संग्राम पुं० लडाई; युद्ध घोंघाट (करवी; स्पर्धा करवी संग्राह पुं० पकडवू ते (२) मुट्ठी (३) संघृष् १ प० साथे घसवु (२)हरीफाई Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संचक संचक पुं० बीबु (ढाळवा माटेनें) संचय पुं० ढगलो करवो- भेगुं करवं ते (२) संग्रह; मोटो ढगलो (३) सांधो संचर् १ प० (वाहननी तृतीया साथे आ० पण) जवू; चालवू (२) आचर; वर्तवू (३) मळवू; जोडावू -प्रेरक० फेरव; दोरवू (२) पथराय के व्यापे तेम कर संचर पुं० मार्ग; रस्तो (२) सांकडो रस्तो; केडी (३) दरवाजो संचल १ प० आम तेम हालवू; डोला- यमान थर्बु (२) कंपवू; धूजq (३) चोंक (४) विदाय थर्बु संचलन न० खळभळाट ; कंप; ध्रुजारो संचष्कारयिषु वि० संस्कार-शुद्धि करे एम इच्छतुं संचार पुं० चालवू -- फरवू ते (२) -मांथी पसार थवं ते (३) रस्तो; मार्ग (४) मुश्केलीभर्यो मार्ग (५) मुश्केली (६)(श्रवण-दर्शनथी) मोहित करवं ते (७) चेप लागवो ते संचारक पुं० नेता; भोमियो संचारिन् वि० चल; जंगम (२)फरतुं; भटकतुं (३) अस्थिर; चंचळ (४) असर करी शके तेवू (५) वारसामां ऊतरे तेवू; चेपी संचि ५ उ० एकछं करवू; संग्रह करवो (२)क्रमसर गोठवईं; सींचवं संचित ('संचि'नुं भू० कृ०) वि० एकर्छ करेलं; ढगलो करेलु (२) संघरो करेलु (३) -थी भरेलु; -युक्त (४) गाढुं (जंगल) संचित् १० उ० चितवन करवं (२) विचारणा करवी; तोलन कर, संचूर्ण १० उ० चूरेचूरो करी नाखवू संछद् १० उ० ढांक; संताडवू (२) आच्छादन करवू (३) पहेरवू; धारणकर (कपडां) संक्षक संछन्न वि० ढांकेलं; संताडेलु (२) पहेरेलु (३) घेरायेखें। संछिद् ७ उ० कापवू; कापी नाखवू (२) भेदQ (३) दूर करवू (शंका इ०) (४) निकाल लाववो (प्रश्ननो) संज् १ प० [सजति] वळगq; वळगी रहे (२) बांधवू संजन् ४ आ० [संजायते] जन्मकुं; पेदा थर्बु (२) ऊगवू; वधq (३) बनवू; थ, (४) व्यतीत थq (समय) संजन न० बांधq - वळगाडवं ते (२) (हाथ) जोडवा ते संजनन वि० उत्पन्न करनारु (२) न० उत्पत्ति; पेदाश (३) विकास संजय पुं० धृतराष्ट्रनो सारथि (तेणे महाभारतना युद्धनुं वर्णन, दिव्यदृष्टिथी जोईने, धृतराष्ट्रने संभळाव्यं हतुं) संजल्प १५० वातचीत करवी संजल्प पुं० वातचीत (२) घांटाघांट (३) बुमराण संजात ('संजन् ' नुं भू० कृ०) वि० उत्पन्न थयेलु (समासमां'-जेमां पेदा थy होय तेवू;''-युक्त बनेलं' एवा अर्थमां आवे छे; उदा० 'संजातकोप') (२)व्यतीत थयेलु (समय) संजिहान वि० तजतुं; छोडतुं संजीव १ प० साथे रहे (२) (-नो धंधो करीने)जीवकुं(३)सजीवन करावं संजीवन न० साथे रहेवू ते (२) सजी वन करवू ते (३)चार घरनी खडकी संजीवनी स्त्री० मरेलाने सजीवन करनारी कहेवाती औषधि (२)सजीवन करवं ते (३) अन्न संजीवनौषधि स्त्री० मरेलाने सजीवन करी शकाय तेवी वनस्पति संज्ञ वि० चेतना के भानवाळ (२) नामवाळू संज्ञक वि० नाशक; कापनाएं सं. गु.-३४ Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संज्ञा संज्ञा ९ आ० [संजानीते] जाणवू; समजवू (२) ओळखवू (३) पहेरो भरवो; सावचेत रहेQ (४) याद करवू (५) संमत थर्बु -प्रेरक० वधेर; कापवू संज्ञा स्त्री० भान; चेतना (२) ज्ञान; समजण (३) बद्धि; मन (४)सूचना; निशानी (५) नाम (६)सूर्यनी पत्नी; यम- यमीनी माता संज्ञापन न० वध; नाश संज्ञाविपर्यय पुं० बेहोशी संज्ञित वि० नामनु-नामथी ओळखातुं संज्वर पुं० भारे ताव (२) गरमी (३) गुस्सो [करवू संतश् १ प० छोली नाखवू (२) घायल संतक्षण न० कटाक्षयुक्त कठोर वाणी संतत वि० विस्तृत; पथरायेलु (२) चालु; निरंतर; सतत (३) कायमनुं (४) घj; अनेक संततम् अ० हमेशां; निरंतर संतति स्त्री० फेलावो; विस्तार (२) चालु पंक्ति, क्रम के प्रवाह (३) कायम चालु रहेवू ते (४) वंश (५) संतान (६) ढगलो संतन ८ उ० ढांकी देवं; छाई देवं (२) साथे जोडवू (३) सिद्ध कर (४) देखाडवू; बतावq संतप् १ प० तपावq; गरम करवु (२) शोषी- सूकवी नाखवू (३)संतापवू; पीडवू करवो -कर्मणि० दुःखी थq (२)पस्तावो संतप्त वि० तपावेलं ; लालचोळ करेलु (२) पीडित; त्रास पमाडेलु (३) बाळेलु (४) सुकायेलं; करमायेलं (५) न० दुःख ; शोक संतप्तायस् न० लालचोळ तपावेलुं लोढं संतम् ४ प० [ संताम्यति ] थाकी जवू (२) झूरवं संदर्शन संतमस् (-स) न० सर्वव्यापी अंधकार; घोर अंधारुं (२) महामोह संतर्पण वि० ताजगी - स्फूर्ति आपनाएं (२) न० संतोष, तृप्ति के आनंद आपवो ते संतर्पयाण वि० तृप्ति आपनाएं संतान पुं०, न० विस्तार ; फेलावो (२) चालु प्रवाह के परंपरा (३) वंश (४) संतति (५) स्वर्गनां पांच वृक्षोमांनुं एक अथवा तेनुं फूल . संतानक पुं० स्वर्गनां पांच वृक्षोमांनु एक (२) एक लोक (गति) संतानसंधि पुं० (दीकरी परणावीने) सगपणथी संधि दृढ करवी ते संताप पुं० गरमी; दाह (२) दुःख; पीडा; परिताप (३) गुस्सो (४) पश्चात्ताप (५) तपस्या संतार पुं० ओळंगी जवू ते; पार करवू ते (२) ज्यांथी (नदी) पार करी शकाय ते स्थळ ; उतरण होडी संतारनौ स्त्री. (नदी) पार करवानी संतुष ४ प० राजी थवं; संतोष पामवो (२) -मां खूब रुचि होवी संतुष्ट वि० संतोष पामेलु;खुश थयेलं संत १ प० ओळंगवू (२) तर (३) पार पामर्रा (४) पहोंचq; पामवं (५)-मांथी बची जवं ; भागी छुटवं संतोष पुं० तृप्ति ; समाधान ; सुख (२) होय तेटलाथी राजी रहेवं ते । संत्यज १५० त्याग करवो (२) दूरथी तजq (३) बाकात राखq ___-प्रेरक० लूंटी लेवू ; पडावी लेवू संत्रस् १, ४ ५० बीवू; डर संत्रास पुं० भय; त्रास संदर्भ पुं० गूंथq ते; पहेरवं ते (२) एकीकरण; मिश्रण (३) सुसंगतता; पूर्वापर संबंध (४) ग्रंथ; साहित्यकृति संदर्शन न० जोवू-निहाळवं ते (२) Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदष्ट दृश्य; देखाव; नजर (३) प्रयोग; उपयोग (४) देखाडवं ते संरष्ट वि० दशायेखें; करडायेलं (२) छूदायलं; कचरायेलं संदह, १५० बाळ संदंश १५० [संदशति ) डसवू; करडवं (२) वळगी रहेवं; चीपकी रहेवू (३) दाबवू; कचर संदंश पुं० साणशी; चीपियो- चीमटो संबंशक पुं०, संवंशिका स्त्री० साणशी; चीपियो; पकड संदंशित वि० बख्तरं पहेरेलं . संदान पं० घंटण नीचेनो हाथीनो ते भाग ज्यां सांकळ बंधाय छे (२) न० दोरडु (३) सांकळ (४) ज्यांथी मद झरे छे ते लमणा आगळY स्थळ संदानक न० कबूतरनो माळो संदानित वि० बांधेलं; जकडेलु संदिग्ध ('संदिह,' नुं भू० कृ०) वि० लेपायेलु;खरडायेलु (२) अनिश्चित; शंकाशील (३)-तरीके भूलथी मानी लीधेलु (४) जोखम भरेलु (५) न० अनिश्चतता (६) लेपवू ते संदिग्धफल वि० झेर पायेलां बाणवाळं संदिग्धीकृत वि० -'ए हशे के शं' एवो संदेह पडे एवा देखाववाळं करेलु संक्ति वि० बांधेलं; जकडेलु संदिश ६ प० आपq (२) सूचना आप वी; सलाह आपवी; संदेशो मोकलवो (३) दूत तरीके संदेशो लई मोकलवू (४) नियुक्त करवू संदिह. २ उ० चोपडवू; खरडq (२) ढगलो करवो (३) शंकाशील होवू (४) भूलथी (बीजा तरीके) मानवू संदिहान वि० संशययुक्त संदीप ४ आ० सळगq; प्रकाशवं - प्रेरक० सळगावq (२) उश्केर संदीपन वि० सळगावनाएं; उद्दीपित संधि करनारं; उश्केरनारु (२) न० सळगाव - उद्दीप्त करवू ते संदुष ४ प० दूषित- कलंकित थवं -प्रेरक० दूषित - कलंकित- भ्रष्ट करवु (२) आक्षेप - आरोप मूकवो संदृब्ध वि० गूंथायेलं; परोवायेखें संदर्भ ६ प० गूंथq; बांधवृं; परोवq संवृश १ प० जोवू; निहाळवू (२) विचारवं; तपास -प्रेरक० देखाडवू; बताव, संदेश पुं० कहेण; समाचार; खबर (२) संदेशो (३) आज्ञा संदेशक न० समाचार; खबर संदेशहर, संदेशहारक पुं० दूत; संदेश वाहक (२) एलची संदेशार्थ पुं० संदेशा तरीके कहेवराव वानुं ते; संदेशो संदेह पुं० शंका; वहेम (२) जोखम संदेहपद वि० शंकायुक्त संदोह पुं० दोहवू ते (२) समूह; समुदाय; कोई पण वस्तुनुं समूचुं ते संद्राव पुं० पलायन; पीछेहठ (२) झडप ; वेग संघा ३ उ० जोडवू; भेगुं करवू; मिश्रण करवू(२)संधि-मैत्री-सुलेह करवी (३)सांधवं; ताक, (४) उत्पन्न करवू (५) पूरा पडवू; बरोबरिया नीवडवू (६) आचरवू; करवं संधा स्त्री० जोडाण ; संबंध (२) संधि; करार (३) सीमा; हद । संधान न० संबंध; जोडाण (२) मिश्रण (३) ताकवू ते; सांधवू ते (४) मैत्री; सुलेह; संधि संधि स्त्री० जोडाण; संबंध (२) करार; समाधान (३) सुलेह; मैत्री (४) सांधो (शरीरनो) (५) गडी (कपडानी) (६) बाकुं; खातर (भीतमा चोरे पाडेलु) (७) बे मोटा Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संविच्छेद विभागो वच्चेनो वचगाळो (८) नाटकमां अंतराल - अंतरो (९) योजना; आयोजन संषिच्छेद पुं० दीवालमां बाकुं पाडवं ते संषिच्छेदन न० (भीतमां)खातर पाडवू ते (चोरी करवा माटे) संषित वि. जोडायेलु (२)बंधायेल (३) संधि करी होय तेवू संधित्सु वि० संधि करवा इच्छनाएं संघिदूषण न० सुलेह के संधिनो भंग । के उल्लंघन संधिबंध पुं० सांधानो स्नायु संधुभ् १ आ० सळगq (२) उश्केरावू -प्रेरक० सळगावq; उश्केर संधुक्षण न० सळगावq ते (२) उश्केरवू ते; संकोरवू ते संधु १० उ० पकडq; टेकवतुं (२) काबू राखवो (३) याद राखq(४) राखवू; मालिक होवू संधेय वि० जोडवा-जोडावा योग्य संध्या स्त्री० जोडाण (२) सांधो (३) सवार के सांजनो संधिकाळ (बे समयने जोडनारो) (४) सांज (५) सवार बपोर अने सांजे करातुं नित्य कर्म (६) बे युग वच्चेनो संधिकाळ संध्यापयोद पुं० समीसांजनुं वादळ संध्याबलि पुं० समीसांजे अपातो बलि । संध्याभ्र न० संध्या समयनुं वादळ संध्यामंगलदीपिका स्त्री० समीसांजे प्रगटावातो मंगल-दीप संनत वि० वांकुं वळेलु; ढळतुं (२) हताश (३) संकोचावेलु (४)परिपूर्ण संनतांग वि० ढळता-गोळ अवयवोवाळू संनति स्त्री० नमी पडवू ते; वंदन कर ते; आदर करवो ते (२) दीनता; ताबेदारपणुं संनद ('संनह, 'नुभू० कृ०) वि० बांधेलु; जकडेलु (२) वींटेलं; वीटळायेलु (३) संनिपात्य पहेरेलु; बांधेलं (बस्तर) (४)तैयार; सुसज्ज (५) व्यापेखें संनद्धयोष वि० सुसज्ज सैनिकोवाळं संनम् १५० ढळq; वांकुं वळवू (२) ताबे थर्बु (३) नमवू (४) तैयार थर्बु संनय पुं० समूह; जथ्थो; संख्या - संनह, ४ उ. बांधवू; जकडवू (२) पहेर, (३) (बस्तर) बांधवू (४) तैयार थq; सज्ज थq संनहन न० सुसज्ज थq ते (२) तैयारी (३) जकडीने बांधq ते (४) उद्यम संनाह पुं० युद्ध माटे सुसज्ज थq ते (२) बस्तर (३) साधनसामग्री संनिकर्ष पुं० नजीकपणुं; पडोश (२) पासे लावq ते (३) संबंध संनिकृष्ट वि० नजीकर्नु; पासेनुं संनिधा ३ उ० नजीक मूक (२) भेगं राख (३)-तरफ स्थिर करवं -तरफ प्रेर, (४) पासे आवqपहोंचq (५)एकळु करवू; ढगलो करवो संनिधातृ वि० पासे होनाएं; नजीकर्नु (२) पुं० लोकोने कचेरीमां रजू करनार कर्मचारी संनिधान न०, संनिधि पुं० नजीक - पासे मूकबुं ते (२) नजीकपणु; पडोश; हाजरी (३) समूह; समुदाय (४) थापण तरीके मूकवू ते संनिधय वि० पासे राखवा योग्य संनिपत् १५० नीचे ऊतरवू (२) भेगा मळवू (३) हुमलो करवो (४) आवी पहोंचवू; देखा देवी (५) नाश पामवं संनिपात पुं० नीचे ऊतर ते (२) भेगा- एकत्रित थर्बु ते (३)सामसामा अथडावं ते (४) संबंध; संयोग(५) समुदाय; मेळो; मिलन (६) युद्ध (७) सनेपात (ज्वर) संनिपातनिद्रा स्त्री० बेहोशी संनिपात्य वि० उपर नाखवा योग्य Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संनिबद्ध संनिबद्ध वि० जोडायेलं; वळगेलं (२) गोठवेलं; -ने माटे तैयार करेलु संनिभ वि० सदृश; समान (समासने अंते) संनिभृत वि० ढंकायेलं; पुं संनियुज् ७ आ० जुओ 'नियुज्' संनिरुद्ध वि० रोकवामां आवेलुं (२) भरी काढेलं; व्याप्त संनिरुष ७ उ० जुओ 'निरुध्' संनिविश ६ आ० प्रवेश करवो; ऊंडे पेसवु (२) पडाव नाखवो (३) गाढ संबंध करवो; संभोग करवो -प्रेरक० नीम; मूकवू संनिविष्ट वि० प्रवेशेलं (२) भेगुं थयेलु (३)-मां ओतप्रोत थयेलुं (४) नजीकनु (५)पडाव नाख्यो होय तेवू संनिवृत् १ आ० पाछा फरवू (२) विरमवू; अटकवू [रागमन संनिवृत्ति स्त्री० पार्छ फरवू ते; पुनसंनिवेश पुं० ऊंडा ऊतरवू ते; लगनी (२) समुदाय; मंडळ (३) गोठवणी; जोडाण (४) स्थळ; स्थान; स्थिति (५) सामीप्य (६) आकृति; बांधो; घडतर (७) झुपडी; रहेठाण (८) योग्य जगाए बेसाडवू ते (९) पडाव; छावणी संनिवेशन न० निवास; पडाव संनिसर्ग पुं० भलापणुं संनिहित वि० पासे पडेलु नजीक मूकेलं (२) नजीकनुं (३) हाजर; मोजूद (४) तैयार (५) थापण तरीके मूकेलं निजीकमां ज होय तेवू संनिहितापाय वि० नाशवंत (२) नाश संनी १ उ० भेगुं लाव, (२) शासन करवू; दोरवु (३) पाछु आपq - वाळवू (४) -तरफ लई जर्बु (५) जोडq - भेगुं करवू; (६) गोठवQ (७) मेळवQ (८) परिपूर्ण करवू संन्यस् ४ उ० मूकवू; थापण तरीके संपन्न मूकवू (२) बाजुए मूकवू; तजी देवं (३) सोंपवू (४) संन्यास लेवो संन्यसन न० छोडी देवं-तजी देवं ते (२)संन्यास (३) ने सोंपवं ते । संन्यस्त वि० नीचे मूकी दीधेलु (२) सोंपेलं (३)तजी दीधेलं संन्यास पुं० त्याग करवो ते (२)संसारव्यवहारनो त्याग (३) संन्यासाश्रम (४)थापण; सोंपणी संन्यासिन पुं० तजी देनारो (२)संन्यास लेनारो (३) थापण मूकनारो (४) आहारनो त्याग करनारो संपत् १५० भेगा मळवू-थर्बु (२)हुमलो करवो (३)बनवू; थq ___ -प्रेरक० नजीक लाववू; भेगुं करवं (२) नीचे फेंकवं संपत्ति स्त्री० समृद्धि (२) सफळता; सिद्धि (३) पूर्णता; श्रेष्ठता (४) विपुलता (५) अनुकूळ स्थिति संपद् आ० सफळ थq; आबाद थवं (२) पूरी संख्या थवी (३) थq; बनवू (४) उत्पन्न थर्बु (५) भेगा मळवू - थर्बु (६)युक्त थवं; -वाळा बनवं __-प्रेरक० थाय तेम करवू;निपजाववं; सिद्ध करवू (२)मेळवq (३) अर्प; -वाळू करवं संपद स्त्री० धन; संपत्ति (२)समृद्धि; आबादी (३)सद्भाग्य; सुख (४) सफळता; सिद्धि (५) पूर्णता; उत्तमता (६)विपुलता; पुष्कळ होवापणुं संपवर पुं० राजा [एकनुं नाम संपद्वसु पुं० सूर्यनां मुख्य किरणमांना संपविनिमय पुं० एकबीजाना लाभ के सेवानो अदलोबदलो संपन्न वि० समृद्ध; आबाद (२) सुखी; नसीबदार (३) वैभवशाळी (४) पूर्ण; सिद्ध (५) युक्त; सहित (६) बनेलं; थयेलु (७)पुं० शिव (८)न० समृद्धि दोलत (९)सारी वानी Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H संपराय ५३८ संप्रयुक्त संपराय पुं० युद्ध; लडाई (२) आफत संप्रज्ञात पुं० सविकल्प समाधि; मन (३) मृत्यु (४) मृत्यु बादनी स्थिति __ लीन थवा छतां ध्येय वस्तुनुं स्पष्ट संपरे (सं+परा+इ) २ आ० भेगा भान रहे एवी समाधि (असंप्रज्ञातमां मळवू; सामा मळवू (२)पार चाल्या ज्ञान अने ज्ञेयनो भेद लुप्त थई जाय छे) जवू (परलोकमां) संप्रति अ० हमणां; आ समये; तरत ज संपर्क पुं० मिश्रण (२) संयोग; स्पर्श; संप्रतिपत्ति स्त्री० आवी पहोंचq ते (२) संबंध (३)सोबत; सहवास । हाजरी (३) मेळवq ते (४)कबूलात; संपात पुं० टोळं; भीड (२) भेगा मळवू ते स्वीकार (३)अथडावं ते (४) नीचे पडq ते नीचे संप्रतिपद् ४ आ० पासे जq; पहोंचवू ऊतरवं ते (५) (बाणखें) ऊडवू ते (६) (२) मानवू; गणावू (३) कबूल थवू जवं-खसवं ते (७) खसेडवू- दूर कर, (४) कबूल करवू(५)पामवं; मेळवq ते (८)पक्षीओनी ऊडवानी एक रीत संप्रती २ प० विश्वास राखवो; मानवू (९) मोकलq ते(१०) सूर्य विषुव (२) नक्की करवू; निर्णय करवो वृत्तने ओळंगे छे अने दिवस-रात सरखां संप्रतीत वि० पाछु फरेल (२)विश्वासथाय छे ते समय (वसंत अने शरद) खातरीवाळ (३) कबूलेलं; पुरवार संपाति, संपातिक पुं० गरुडनो पुत्र अने थयेलं (४) प्रख्यात जटायुनो मोटो भाई [पडतुं संपातिन वि० साथे ऊडतुं (२) नीचे संप्रतीति स्त्री० पूरेपूरी खातरी (२) प्रख्याति ख्याल संपादक वि० संपादन करनारुं । संप्रत्यय पुं० दृढ खातरी(२)कबूलात(३) संपादन न० सिद्ध करवू ते; पूर्ण कर संप्रदा ३ उ० आप; बक्षवं (२) परंते (२) मेळवq ते (३) तैयार - शुद्ध -साफ करवू ते (जेमके जमीनने) परा चाल करवी; परंपराथी आपq संपिडित वि० एक पिंडो बनावेलु (२) (३)सोंपी देवु (४)परणावq संप्रदान न० आपी देवं ते (२) बक्षिस, संकोचेलं [पीडवू; त्रास आपवो दान (३) परणावq ते (४)बक्षिस के संपीड् १० उ० दबावq; मसळवू(२) दान- पात्र संपीड पुं० खूब दबावq - कचरवू ते (२)पीडा; त्रास (३)क्षुब्ध करवं ते संप्रदाय पुं० परंपरा; परंपरागत सिद्धांत (४) तरफ धकेलq-प्रेरवं ते (२) एक ज देवनी पूजानो धर्मसिद्धांत संपुट पुं० बखोल; खाली जगा (२) (३) रूढि; रिवाज (४) दान ; बक्षिस ढांकणवाळी पेटी [वाळी पेटी संप्रदायविगमपुं० परंपरानो लोप थवो ते संपुटका, संपुटिका स्त्री० पेटी; ढांकण संप्रधारण न०, संप्रधारणा स्त्री० विचा रणा (२) युक्तायुक्त-विवेक संपूज् १० उ० पूजq (२) भेट धरवी संपूर्ण वि० पूरुं; भरेलु (२) आखं; संप्रधृ १० उ० जाणवू; नक्की कर, (२) बधुं; पूरेपूरुं (३) सिद्ध थयेलं; पूरुं थयेलं विचारवं; चितवq (३)-उपर स्थिर संपूर्ति स्त्री० पूर्णता; संपूर्णता करवू (४) अर्पण करवू संपृक्त वि० मिश्रित (२) जोडायेखें; संप्रपद् ४ आ० जवा नीकळवू (२) संबद्ध (३) स्पर्श] (४) मित्र बनावेलु पहोंचवू (३) मंडवू; आरंभq (४) संपृच् ७ प०,२ आ० जोडवू; संबंधमां थ; बनवू लावq (२) जोडावू; संबंधमां आवईं संप्रयुक्त वि० साथे जोडेलु; झूसरीमां Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संप्रयोग जोडेलु (२)-मां आसक्त;-मां लागेलं (३)संभोग करतुं संप्रयोग पुं० संयोग; संबंध; मिलन (२) सांधो; जोडाण; गांठ (३)संभोग (४) अरसपरस संबंध (५) सहकार संप्रवत् १ उ० मोटेथी बोलवु (२) बम पाडवी; घोंघाट करवो (३) एक साथे बोलवं करवो संप्रविश ६५० साथे प्रवेशवं (२)संभोग संप्रवृत् १ आ० थएँ; बनवू (२) शरू करवू (३) प्रवर्तमान थq; चालु थर्बु (४)हुमलो करवो -प्रेरक० शरू करवू; माथे लेवू (२) गतिमान कर संप्रसाद पुं० प्रसन्नता (२) कृपा (३) स्वस्थता (४)(गाढ निद्रानी स्थितिमां) जीवात्मा (५) विश्रांति; सुषुप्ति संप्रसारण न० य, र, ल अने व् बदले इ, ऋ,ल अने उ थवां ते (व्या०) संप्रस्था १ आ० [संप्रतिष्ठते ] जवं; ऊपडवू; विदाय थर्बु (२)आगळ वधq संप्रहार पुं० परस्पर प्रहार करवो ते (२) लडाई; सामनो; युद्ध संप्राप् ५५० पहोंचवू (२) पामवं संप्राप्ति स्त्री० प्राप्ति संप्रिय न० संतोष; तृप्ति संप्रीति स्त्री० आसक्ति (२) आनंद; खुशी करवी संप्रेक्ष १ आ० निहाळवं (२) तपास संप्रेष -प्रेरक० मोकलवं; मोकली देवू (२) –ने संदेश मोकलवो संप्लव पुं० डूबवू ते (२) रेल (३) नाश; लोप (४)समूह (५) वरसवंतूटी पडवू ते (६) धांधळ; धमाल (७) अंत; समाप्ति संप्लु १ आ० तणाई जर्बु (२) -साथे मळवू; एकळु थर्बु (जेम के पाणी) -प्रेरक० डुबाडी देवू; ताणी जq संभव संफेट पुं० बे गुस्से थयेलाओ वच्चेनी तकरारना प्रसंगनुं वर्णन संबद्ध वि० साथे बांधेलु (२)आसक्त (३)-नी साथे संबंधवाळू;-नुं संबंधी संबद्धम् अ० साथे साथे ज; भेगुंज (२) उपरांतमा [न० पाणी संबल पुं०, न० मुसाफरीनु भाथु(२) संबंध ९ प० साथे बांधवू; जोडq (२) बनावq; रचQ संबंध वि० शक्तिशाळी, समर्थ (२) योग्य; खरं; उचित (३)पुं० मिलन; संयोग (४) संसर्ग; नातो (५) लग्नसंबंध (६) मैत्री; स्नेह (७) योग्यता; लायकात (८) सफळता; समृद्धि (९)संबंधी; सगो संबंधक वि० संबंध धरावतुं; संबंधी (२) योग्य; लायक (३)पुं० मित्र (४)जन्म के लग्नथी संबंधी एवो ते (५) न. संबंध; सगपण संबंधिन् वि० संबंध धरावतुं; संबंधी (२)-नी साथे जोडायेलुं (३) पुं० लग्नथी बनेलो सगो (४) स्वजन संबाप १ आ० पीडवू; त्रास आपवो (२) ईजा करवी (३)भीड करवी (४) दबावq; संकोचवू संबाध वि० -थी भीडवाळू बनेलं (२) पुं० भीड (३) दबावq-मारवं-ईजा करवी ते (४)डखल; रुकावट; विघ्न संबुद्ध वि० सारी रीते समजेलं (२) ___ डाहमु; विद्वान (३)पूरेपूरुं जागेलं संबुद्धि स्त्री० पूर्ण ज्ञान के समज (२) संपूर्ण जागृति (३) संबोधन; नाम संबुध् १ उ०, ४ आ० जाणवू; समजवू (२) जोवू; निहाळवू (३) जागवू; ऊंघमांथी ऊठवू संबोधन न० समजावq ते (२) संबोधq ते (३)नाम (जेनाथी संबोधाय) संभव पुं० जन्म; उत्पत्ति; पेदा थq ते Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संभार ५४० संमत (२)उत्पत्ति अने उछेर (३) कारण संमान (४) अर्पण करीने खुश (४) शक्यता (५)धन; समृद्धि कर (५) आरोप मूकवो (६) संभार पुं० भेगुं करवं ते; एकळु करवू -मां भाग लेवो; माणवू ते (२) साधनसामग्री (कोई पण -प्रेरक० नुं कर्मणि० शक्य होवू; काम माटेनी)(३) घटक वस्तु(४) संभवित होवू समूह; ढगलो(५)पोषण; पालन (६) संभूत वि० जन्मेलं; बनेलं; उत्पन्न अतिशयता; पुष्कळता थयेलं (२) -साथ जोडायेलं (३) संभालयति प० (सांभळवू) लायक ; पूरतुं (४)युक्त ; सहित संभावन न०, संभावना स्त्री० गणवू संभूति स्त्री० जन्म (२)संयोग; मिलाप मानवं-विचारबुं ते (२) कल्पना; (३) उचितता; योग्यता (४)विभति बट्टो (३)मान ; आदर (४) शक्यता; संभूय अ० एकठा मळीने; एक साथे संभव (५) उचितता (६) सामर्थ्य ; संभूयसमुत्थान न० सहियारो धंधो शक्ति (७)शंका(८)प्राप्ति । संभ ३ उ० एकरुं करवू; संग्रह करवो संभावित वि० कल्पेलं; मानेलंविचारेलु (२) संमान्य; संमानित (३) (२) उत्पन्न करवू (३) पोषq (४) सज्ज-तैयार करवू (५) अर्पयूँ (६) उचित; लायक (५) मेळवेलं; उत्पन्न ऊंचु करवू [सज्ज करेलु करेलु (५) आकांक्षा राखी होय तेवू संभृत वि० एकळं करेलु (२) तैयार - (६)न० कल्पना; मान्यता संभृति स्त्री० समूह; संग्रह (२)तैयारी संभाव्य वि० शक्य ; संभवित (२) शक्य मानी शकाय के अपेक्षा राखी शकाय (३) पूर्णता (४) पालन; पोषण । तेवु (३) शक्तिमान; लायक संभेद पुं० भागी पडq - छुटुं पडी जवू संभाष १ आ० संभाषण करवू; वात ते (२) जोडाण; संबंध (३) मिलन चीत करवी (२)बोलवू (३) संबोधq (नजरमुं) (४) संगम (नदीनो) (५) (४)अभिनंदन कर खीलवं- ऊघडवं ते (६) वाळवू - संभाष पुं०, संभाषण न०. संभाषा बांधवं ते (मूठी) (७) बळवो; दगो स्त्री० वातचीत; संवाद संभोग पुं० उपभोग; भोग (२)भोगवटो; संभिद् ७ उ० भांगवू; तोडq; फाडवू; मालकी (३) रतिक्रीडा; मैथुन । टुकडे टुकडा करवा (२) भेगुं करवू; संभोजनी स्त्री० सहभोजन (२) तेने जोडवू (३) संकोचवू; दबावq अंते अपाती दक्षिणा संभिन्न वि० छेक ज तूटेलु (२)क्षुब्ध; संभ्रम् १, ४५० [संभ्रमति, संभ्रम्यति, भांगी पडेलु (३) संयुक्त; जोडायेलं संभ्राम्यति] भटकवू; रखडवू (२) (४) पूरेपूरं खोलेलं (५) घन; घट्ट भ्रममां के भूलमां होवू (३) मूंझावं (६)बेवफा; बळवाखोर संभ्रम वि० क्षुब्ध (२)गोळ घूमतुं (३) संभू १ प० जन्मवू; उत्पन्न थर्बु (२) पुं० गोळ घूमवू ते (४) उतावळ (५) थवू; होवू (३) बनवू (४) शक्य होवू चिंता; मूंझवण (६) भय; डर (७) (५)पूरतुं होवु (६)मळवू; जोडावू भूल ; भ्रम ; भास (८)उत्साह; प्रवृत्ति (७) -नी साथे संभोग करवो । (९) आदर; संमान [गाभरु -प्रेरक० धार; कल्पवू (२) संभ्रांत वि० गोळ घूमतुं (२)मूंझायेलु; गणवू; मानवं (३) आदर करवो; संमत वि० संमति आपेलं (२) प्रिय Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संमति ५४१ संयतनुन बहालं; मानीतुं (३) समान; सदृश -नी तरफ फेरवेलुं के वाळेलु (४)खूब सत्कारेलु(५) युक्त; सहित संमुखम् अ० -नी समक्ष; नी सामे; संमति स्त्री० कबूलात; मंजूरी;परवानगी -नी हाजरीमां (२) इच्छा (३) आत्मज्ञान; तत्त्वज्ञान संमुखीन वि० जुओ संमुख' (४) आदर; संमान (५) प्रेम संमुखे अ० जुओ संमुखम् ' [सुंदर संमत्त वि० (मद्य वगेरे पीने) पूरेपूरु संमुग्ध वि०मूढ बनेलं (२)मझायेल (३) मत्त थयेलुं (२) हर्षोन्मत्त संमुग्धम् अ० मोहित करे ते रीते ' संमद वि० खूब हर्षित (२) पुं० अति संमुर्छ १ आ० [संमूर्च्छते] मूछित आनंद; हर्ष थएँ;बेभान थर्बु (२)बळशाळी बनवू; संमन् ४ आ० संमत थq (२) कबूल तीव्र के गाढ थर्बु [मोह पामवो राखq (३) मानवं; धार; गणवू समुह, ४ ५० मूंझावु (२)मूर्ख बनवू (४)परवानगी आपवी; सत्ता आपवी संमूढ वि० बेभान (२) मूर्ख; मोहित (५)मान आपq; अति आदर करवो (३)मझायेलं (४) अस्तव्यस्त (५) संमर्द पुं० एकबीजा साथे घसा के घसवं भेगुं-एकळं करेलु ते (२) टोळू; भीड (३) उपर पग संमूर्च्छन न० बेहोशी (२) गाढुं थई मूकी चालवु-छंदवू-कचर-रगदोळवू जवं ते (३)वधq ते; जामवं ते (४) ते (४)युद्ध (५)अथडामण मिश्रित थर्बु ते संमंत्र १० आ० -नी सलाह लेवी -नी संमृज् २ प०, १० उ० साफ करवू; साथे मंत्रणा करवी (२)वंदन करवू; वाळी नाखवु (२)लूछी नाखवू(३) अभिवादन करवू (३)सलाह आपवी; हाथ फेरववो; दाब, (४)गाळवू अभिप्राय आपवो संमत वि० पूरेपूर मरेलं । संमा ३ आ०, २ प० माप, (२)सरखं संमेलन न० भेगा मळवू ते (२)मिश्रण करवू (३)सरखाव, (४)समावू; मावं (३) भेगुं करवू ते संमान पुं० सत्कार; आदर(२)न० माप संमोह वि० मोहित करनारुं (२) मूढ (३) सरखामणी बनावनारु (३) पुं० मूझवण; भ्रम संमार्जन न० वाळवू - साफ करवू ते (४) मोह; आकर्षण (५) मूर्छा (६) (२) लूछq ते (३) लेप करवो ते (४) अज्ञान; मूर्खता(७) युद्ध एठवाडो काढवो ते संमोहन पुं० कामदेवनां पांच बाणोमांनु संमार्जनी स्त्री० सावरणी एक (२)न० मोह; आकर्षण संमित वि० मापेलं (२)सरखा मापy; संयज १ उ० पूजq; यज्ञ वडे यजन करवू सरखा मूल्य- (३) -जेटलुं मोटुं; (२)अर्पण कर; चडावq -सुधी पहोंचतुं (४) नियत करेलु संयत् १ आ० झघडवू; लडवू संमील १५० मींचq (आंख) (२) संयत् स्त्री० लडाई; युद्ध बिडावु (फूल वगेरेए) संयत ('संयम् 'न भू० कृ०) वि. -प्रेरक० वासवू; बंध करवू (२) नियंत्रित; ताबे करेलु (२)बांधेलु (३) झांखु पाडवू केद करेलु (४)तैयार(५)गोठवेलु संमख वि० साम; मोढामोढ होय तेवं संयतमुख वि० वाणी उपर काबू राज(२)मळेलु (३) अनुकूळ होय ते, (४) नालं; चूप; मौन रहेतुं Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संराग संयतवस्त्र ५४२ संयतवस्त्र वि० वस्त्रो एकठां बांधी संयुगगोष्पद न० (गायना पगलामांनी) दीधां होय के जकडी दीधां होय तेवू नजीवी तकरार संयताहार वि० खावामां संयम राखना; संयुगमर्धन पुं० लडाईनो मोखरो मिताहारी [राखनाएं संयुज् ७ उ० भेगा थq; जोडावु (२) संयतेंद्रिय वि० इंद्रियोने संयममां चोटाडवू(३) सजवू (४) आ० जोडावू संयत्त ('संयत् 'नुं भू० कृ०) सज्ज; -कर्मणि-नी साथे जोडावू(२)-नी तैयार (२) सावचेत साथे परणवू संयम् १ प० [संयच्छति ] नियंत्रित -प्रेरक० जोडवू (२)झूसरे जोडQ करवू; निग्रह करवो; ताबे करवू (२) (३)सजवं; सज्ज करवू बंधनमां नाखवू; केद पूरवु (३) संयुज वि० जोडायेलं; संबद्ध (२) सारा १ आ० [संयच्छते] एकत्रित करवु (४) गुणोथी युक्त वासवू; बंध करh (५) भेगुं करवू; संयुत वि० जोडायेलं; संबद्ध भेगुं करी गांठ वाळवी (वाळनी) संयोग पुं० जोडाण; संबंध (२)पासे संयम पुं० निग्रह; काबू (२) धारणा होवू ते प्राप्त थयेलं होवू ते (३)सट ध्यान-समाधि ए त्रणनो समुदाय (३) (घरेणां इ० नो) (४) सरवाळो (५) तपश्चर्या (४) नाश; प्रलय (५) समान हेतु माटे बे राजाओवच्चे सुलेह संरक्त वि० रंगीन; रातुं (२)आसक्त व्रत; तप (६) मानवता संयमन न० निग्रह करवो ते; संयम (३)गुस्से थयेलं (४)मनोहर संरक्ष १५० रक्षण करवु (२) रोक; (२) बांधवं ते (३) केद संयमनी स्त्री० यमराजानी नगरी दूर राख ते माटे सोपण संरक्षण न० रक्षण; सुरक्षित राखवं ते(२) संयमित वि० निग्रहमां लीधेलु (२) संरक्षा स्त्री० रक्षा ; संभाळ बांधेलु (३)अटकावेलु (४) भेगुं करेलु संयमिन वि० निग्रह के संयममां राख संरब्ध ('संरम् ' नुं भू० कृ०) वि० नारुं(२) पुं० जेणे पोतानी इंद्रियो उश्केरायेलं; क्षुब्ध (२) गुस्से थयेल; उपर काब मेळव्यो छे ते; तपस्वी वकरेलु (३) गाढपणे जोडायेलं संरब्धमान वि० जे- अभिमान वायु संयंत्रित वि० बंधनमां नाखेलं; अटकावेलुं छे- उश्केरायं छे तेवं संया २५० साथे जq (२) चाल्या जवू; संरभ १ आ० क्षुब्ध थq (२)वकरवं; विदाय थर्बु (३) प्रवेशq; पामवु (४) उश्केरावं (३) बीवू भंगा थq(५) युद्ध करवं संरम् १ अ० राजी थर्बु संयान न० साथे जq ते (२) मुसाफरी संरंभ पुं० आरंभ (२) तोफान (३) (३) शबने लई जर्बु ते(४)वाहन; उश्केराट (४) आवेश; जुस्सो; आवेग गाडु (५) हांकवू ते (५) अभिमान ; गर्व (६) विरोध; संयुक्त वि० जोडायेलं; जोडेलु; संबद्ध वेर (७) तीव्रता (२) मिश्रित (३) युक्त; सहित;-वाळु संरंभरूक्ष वि० अतिशय कठोर एवं (४) -मां लागेल (५) संबंधी (5) संरंभिन् वि० उश्केरायेलं (२) गुस्से -नी साथे परणेलं थयेलं वकरेलु (३) गर्विष्ठ (४) लगनीसंयुग पुं० संयोग जोडाण; मिश्रग (२) वाळू; उद्यमी गुस्सो नजीकपणुं; संबंध (३) युद्ध संराग पुं० रंगवू ते (२) राग; प्रीति (३) Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४३ संवादिन् संराष् संराष् ४ ५० सिद्ध थq; पूर्ण थवं -प्रेरक० आराधq; खुश कर संराव पुं० घोंघाट; अवाज संरिहाण न० प्रेमपूर्वक चाटते संरुद्ध वि० अटकावेलुं; रोकेलं (२) घेरो पालेलं (३) केद पूरेलु संरुष ७ उ० अटकाववं (२)रोकवं (३) बांधवू; जकडवू (४) घेरो घालवो । संरुह १ प० वधq (२) रुझावं संरूढ वि० साथे ऊगेलुं (२) रुझायेलं (३) ऊगेलं; फणगो फूटयो होय तेवू (४) हिमतवाळू; विश्वासवाळु (५) भीडवाळू (६)ऊंडे पेठेलं; जड घालेलं संरोध पुं० अटकाववु-रोकवू ते (२) घेरो (३) बंधन (४) केद (५)घटवू ते संरोधन न० अटकावq ते (२)जकडQ ते; केद पूर ते संरोहण न० वावq-रोपवू ते (२) रुझावं संलक्ष् १० उ० जोवू; निहाळवू(२) तपासवू; परीक्षा करवी संलक्षण न० चिह्न करवू ते संलक्षित वि० चिह्नथी अंकित थयेलं - जुदुं तारव्यु होय ते, (२) देखायेलु; ओळखायेलु; जणायेलु संलग्न वि० लागेलं; वळगेलं (२) हाथोहाथनी मारामारी उपर आवेलु संलप् १ प० वातचीत करवी संलिख ६ प० खोतर; खणq (२) लखq (३) (वाजिंत्र) वगाडवू संली ४ आ० चोंटवू; वळगवू (२)उपर ऊतर; उपर सू, (३) छुपाएँ (४) ओगळी जq (५)-मां प्रवेश संलीन वि० वळगेलं; चोंटेलु (२)साथे जोडायेलु (३) छुपायेलं; संतातुं (४) संवत्सर पुं० वर्ष संवद् १ प० वातचीत करवी (२) भेगा मळी चर्चा करवी (३) मळता आवq; सदृश होवू संवनन न० मंत्र वगेरेथी वश कर ते (२) (देवने) वश करवानुं साधन; तावीज ३० (३)मेळवq ते (४)प्रेम; राग [छुपावq ते (३)बहानुं संवरण न० आच्छादन; ढांकण (२) संवर्गण न० आकर्षवू-जीत, ते (मित्रो) संवर्त पुं० प्रलय; नाश (२) प्रलय वखते जे सात मेघ वरसे छे तेमांनो एक (३) संकोचावं ते संवर्तक पं० प्रलय वखतनो अग्नि (२) वडवाग्नि (३) संवर्त मेघ संवतिका स्त्री० कमळनी वेलनुं कुमर्छ पान (२) दीवानी ज्योत संवर्तित वि० प्रलयकाळ जेवू (२)वींटाई के घेराई गयेलं संवर्धन न० उछेरवं ते (२)खूब वधq ते संवर्धित वि० उछेरेलु रक्ष) संवर्मय (ढाल धरवी; कवचनी पेठे संवलन न. मिश्रण (२.) जोडाण संवलित वि० मिश्रित (२) छांटेलं; छंटायेलं (३) जोडायेलं (४) भांगेलं संवल्गित न० अवाज; ध्वनि संवस् १ प० रहे ; वसवू; साथे रहे, (२) व्यतीत करवु (समय) संवह १५० लई जq; खेंची जq (२) मसळवू; दबावq (३) परणवू संवाद पुं० वातचीत; संभाषण (२) चर्चा (३) समाचार; खबर (४) हा पाडवी ते (५) सादृश्य; समानता; सुमेळ होवो ते (६)मुलाकात थवी ते; मळवू ते संवादित वि० ठरावेलु (२)खातरी करेलु संवादिन् वि० वातचीत करतुं (२) ने मळतुं आवतुं ;-मां बंधबेसतुं थतुं संकोचायेलं संलुङ १ प० हलाववू; डखोळवू संलुलित वि० क्षुब्ध; मूंझायेलु संवत् अ० विक्रम संवतनुं वर्ष (शिस्ती संवतथी ५६ वर्ष पहेलां शरू थाय) Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . संवार संवार पुं० संकोचावं ते (२) गोठवणी (३) विघ्न (४) ढांक-बंध करवू ते संवावदूक वि. अत्यंत मळतुं आवतुं; अतिशय समान संवास पुं० साथे रहेQ ते (२) सोबत (३) घर; रहेठाण(४)मेदान (भेगा थवा के रमतगमत माटे) [नार नोकर संवाहक पुं० शरीर मसळनार के दबावसंवाहन न०, संवाहना स्त्री० भार वहन करवो ते (२)हळवे हळवे दबावq ते संवाहित वि० खसेडायेलू; हलावायेखें संविग्न ('संविज्' - भू० कृ०) क्षुब्ध; चिंतित (२) बीनलं (३) आम तेम हालतुं के ऊछळतुं संविज् ७ प०, ६ आ० भयथी कंपवू संविज्ञान न० ज्ञान; पूरेपूरी समज संवित्ति स्त्री० अनुभव; ज्ञान; समज । संविद् २ आ० जाणवू (२) ओळखवू (३) अनुभवq (४) तपासवू (५) ६ उ० प्राप्त करवू -प्रेरक० जाणे तेम करवू संविद स्त्री० ज्ञान; बुद्धि (२)अनुभव; समज (३) करार; संकेत (४)आचार; रूढि (५) खुश करवं ते (६)वातचीत (७) मित्रता; ओळखाण (८)एकमती संविदात वि० जाणकार; बुद्धिशाळी (२) सुसंगत संविष स्त्री० गोठवण; तैयारी संविधा ३ उ० करवू; आचरवु (२) गोठवq (३) मूकवू (४)नीमवू (५) हुकम करवो (६) उपयोगमा लेवं संविधा स्त्री० व्यवस्था; गोठवण'; तैयारी (२) जीवनव्यवस्था; जीवनपद्धति [आयोजन संविधान न० व्यवस्था; गोठवण (२) संविधानक न० नाटकना वस्तुनी के तेना प्रसंगोनी गोठवणी । संविषि पुं० गोठवणी; तैयारी संवेशन संविभक्त वि. जुईं पाडेलु; भाग पाडेलं संविभज् १ उ० जुदुं पाडवू (२) भाग पाडवो; वहेंचर्चा संविभा २ प० चितव, संविभाग पुं० भाग; हिस्सो (२) वहेंचवू ते; आप, ते संविभागिन् पुं० भागीदार; हिस्सेदार संविश् ६ प० प्रवेशq (२) सूई जवू; ऊंघg (३) संभोग करवो संविष्ट ('संविश्' -भू० कृ०)वि०सूतेखें; ऊंधेलु (२) साये बैठेलु (३) कपडा पहेरेलु [वीटेलं;घेरायेलं संवीत वि० पहेरेलु (२) ढांकेलं (३) सं १, ५, ९ उ० छुपावq; ढांकवृं (२) सामनो करवो; दबाव संवत् १ आ० तरफ वळवू के जq (२) हुमलो करवो (३)बनवू; थq (४)पूर्ण करवं; सिद्ध करवं संवृत वि० ढांकेल आच्छादित (२) छुपावेलु (३) बंध करेलु (४) न० एकांत - गुप्त स्थान [राखनाएं संवृतमंत्र वि० पोतानी योजनाओ गुप्त संवृति स्त्री० ढांकतुं ते; छुपावq ते संवत्त वि० थयेलं; बनेलं संवृद्ध वि० वधेलं; विकसेलू संवृद्धि स्त्री० पूरेपूरो विकास - वृद्धि (२) बळ; ताकात संवृष् १ आ० वध (२)परिपूर्ण कर, -प्रेरक० उछेर, संवेग पुं० खळभळाट; उश्केराट (२) अति वेग; झडप (३) तीव्र वेदना संवेदन न०, संवेदना स्त्री० ज्ञान (२) अनुभव; वेदना संवेल्लित वि० संवर्धित संवेश पुं० सूई जq ते (२)स्वप्न (३) संभोग (४) सूवानो ओरडो(५)बेसवानुं स्थान [आसन संवेशन न० सूई जवूते (२)संभोग (३) Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संवेष्ट ५४५ संसज्जमान संवेष्ट १ आ० वींटवू; वीटळावं संशुष् ४ ए० पूरेपूरुं शुद्ध थर्बु संव्यवहार पुं० वेपारधंधो । -प्रेरक० पूरेपुरं शुद्ध करवू (२) संव्यस् ४ प० गोठव; रचवू भरपाई करवू; चूकते करवु (ऋण) संव्यान न० ढांकण (२) वस्त्र; पोशाक (३) तपासवू (३) उत्तरीय संशन वि० मेद - चरबीवाळू; जाडु संशप्तक पुं० युद्धमांथी पराङ्मुख न (२) फूली गयेलं; सोजावाळं थवानी प्रतिज्ञा लीधेलो योद्धो (बीजा- संश्रय पुं० आश्रयस्थान; रहेठाण (२) ओने भागता रोकवामां कामे लेबाय छे) वस, ते (३)-ने लगतुं होवू ते (४) संशम् ४ प० [संशाम्यति ] शांत थर्बु आशरो लेवो-शोधवो ते (५) आधार; (२)बुझायूँ; लुप्त थर्बु अवलंबन (६) आसक्ति -प्रेरक० नक्की करवू संश्रव पुं० लक्षपूर्वक सांभळ, ते (२) संशय पुं० संदेह; शंका (२) जोखम; वचन; कबूलात साहस (३) अनिश्चितता संश्रि १ उ० -ने आशरे जवू;-नो आशरो संशयगत वि० जोखममां आवी पडेलु लेवो (२)-ने अवलंब, (३)पाम; संशयच्छेदिन वि० शंका दूर करनारुं प्राप्त करवू (४) जोडावू; मळवू संशयात्मन् वि० संशय कर्या करतुं; संश्रित वि० आशरा माटे गयेलुं (२) शंकाशील; अनिश्चयी आश्रित; रक्षित (३) संबंध पामेल; संशयालु वि० अनिश्चयी; शंकाशील अवलंबेलु; आलिंगेलुं(४)-मां रहेलं; संशयित वि० शंकायुक्त; अनिश्चित स्वाभाविक [वचन आपq (२) जोखम भरेलु (३) न० शंका; संश्रु ५ उ० लक्षपूर्वक सांभळ, (२) अनिश्चितता संश्रुत वि० वचन आपेलं; कबूलेलं संशरण न० युद्धनी शरूआत (२) शरj (२)बराबर सांभळेलु [चोटवू संशित वि० धारदार; तीक्ष्ण (२) संश्लिष् ४ ५० वळगq; जोडावं; निश्चित ; नक्की (३) पूर्ण करेलु; बरा- संश्लिष्ट वि० वळगेलं ; चोटेलु ; भेटेलं बर पार पडेलु (४) दृढताथी वळगी (२) -मां रहेलं; --मां होतुं (३) रहेलु (व्रतने) जोडायेलं; संबद्ध (४) न० ढगलो; संशी २ आ० संशयमा होवू; अनिश्चित जथो; समुदाय होवू (२) आराम करवो; सूई जवू संश्लेष पुं० आलिंगन (२)संबंध संशोति स्त्री० शंका; संशय संश्लेषण न०, संश्लेषणा स्त्री० वळगवं संशोलन न० नियमित अभ्यास (२) ते (२) साथे बांधवानुं साधन (३) वारंवार परिचय करवो ते बंधन; संबंध; गांठ संशुद्ध वि० पूरेपूरुं शुद्ध करेल-थयेलं संसक्त वि० चोटेलं; वळगेलं; जोडा(२) साफ-स्वच्छ करेलु (३) दोष के येलु (२) नजीक आवेलु; संबद्ध (२) करजमांथी मुक्त थयेलु (४)तपासेलं; मिश्रित (४) युक्त (५)आसक्त अजमावेलं संसक्ति स्त्री० गाढ संबंध (२) अति संशुद्धि स्त्री० पूरेपूरी शुद्धि (२)साफ नजीकपणुं (३) गाढ परिचय (४) करवू ते (३)सुधार, ते (दोष-भूल) आसक्ति थोथवातुं (शोकथी) (४) चूकते करवं- मुक्त थर्बु ते संसज्जमान वि० वळगतुं; चोटतुं (२) Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संसद् ५४६ संस्कृत संसद् १,६ प० [संसीदति ] साथे बेसवें संसृति स्त्री० प्रवाह; गति (२) संसार (२)दुःखी थq; पीडावं (३)जन्ममरणना वाराफेरा ... संसद स्त्री० सभा; मंडळ (२)न्यायालय संसृप १ प० खसवू; सरकवू (२)पासे (३)टोळं; समुदाय __ वहेवु (३) तरफ जवू के पहोंचवू संसरण न० जq ते (२)गोळ फरवू ते संसृष्ट वि० जोडायेलं; संबद्ध; युक्त (३)संसार (४) जन्म अने पुनर्जन्म (२)न० परिचय; मित्रता; गाढ संबंध संसर्ग पुं० संबंध; सहवास; जोडाण । संसृष्टता स्त्री०, संसृष्टत्व न० जोडाण; (२) निकटता; परिचय (३)संभोग । संबंध (२) ऐच्छिक रीते जोडावं ते संसर्पण न० सरकवू ते (२) अचानक (खास करीने भाग पाड्या पछी) हुमलो करवो ते संसेव् १ आ० सेवq (२) सेवा करवी संसपिन् वि० नजीक सरतुं (३)आसक्त थर्बु(४)पंखो नाखवो संसह वि० बरोबरियु (५)पंपाळवू संसं-कर्मणि॰ [संसज्यते] साथे जोडावें । संस्कर्त पं० रसोइयो; रांधनारो (२) के वळगेला होवू संस्कार करनारो; दीक्षा आपनारो संसाए -प्रेरक० सफळ नीवडवू; पूरु संस्कार पुं० शुद्ध करवं-सुधारवू-शणकरवू; सिद्ध करवू (२)प्राप्त करवू; गारवं ते (२) तालीम ; केळवणी (३) पार्छ मेळवq (३)चूकते करावq (४) तैयार करवू ते (४) रांधवू ते (५)प्रायनिश्चित करावq (५) नाश करवो . श्चित्तादिथी पवित्र करवू ते (६)छाप; संसाधन न० सफळता; सिद्धि असर (७)वासना के कर्मनी मन उपर संसार पुं० गति; मार्ग (२) ऐहिक पडती छाप (८) द्विजोने जन्मथी मरण जीवन; घरसंसार (३) जन्ममरणनी सुधी करवा पडता आवश्यक १२ घटमाळ (४) मायानों प्रपंच विधिमांनो दरेक (गर्भाधान, पुंसवन, संसारिन् वि० जन्ममरणनी घटमाळमां सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकर्म, भटकतुं (२) पुं० प्राणी (३)जीवात्मा निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, उपसंसिद्ध वि० पूर्ण थयेलं; सिद्ध थयेलं नयन, केशान्त, समावर्तन, विवाह; (२) रांधेलु; तैयार थयेलु (भोजन) केटलाक १६ पण गणावे छे) (९) (३)मुक्त (४)कुशळ मरण पाछळ करवानी क्रिया संसिद्धि स्त्री० पूर्णता; सफळता; सिद्धि संस्कारभूषण न० संस्कारी-शुद्ध-वाणी (२)मोक्ष (३)परिणाम संस्कारवत्त्व न० व्यवहार - वर्तननी संसिघ ४ प० पूर्ण करावं; पूर्ण थq; संस्कारिता सिद्ध थq (२) मोक्ष मेळववो संस्कृ ८ उ० शणगारQ (२) साफ करवू संसूच् १० उ० सूचवq (३)मंत्र के प्रायश्चित्तादि विधिथी संसूचन न० स्पष्ट बताव - साबित पवित्र करवू (४) केळवq; तालीम करवं. ते (२) सूचव ते (३) ठपको आपवी (५)तैयार-सज्ज करवू (६) आपवो ते [(३) फेलावु(४)मेळवQ रांधवं; तैयार करवू (रसोई) (७) संस १ प० पासे जq (२)गोळ घूमवं साफ करवु (८)एकळु करवू संसूज ६ प० संसर्गमां आवq; मळवं संस्कृत वि० संस्कारवाळू-शुद्ध करेलु (२)जोडावु (३) भेटवू (२)कृत्रिमपणे जेमां सुधारो करवामां Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संहति संस्कृतोक्ति ५४७ आव्यो छे तेवू (३) पवित्र करेलुं संस्थान वि० स्थावर (२)न० समूह (३) (४) न० संस्कृत भाषा स्थिति (४) आकृति; आकार (५) संस्कृतोक्ति स्त्री० संस्कारेल - शुद्ध- रचना (६)सांनिध्य (७) चार रस्ता भाषा के शब्द [पड-बिछानुं भेगा थता होय ते स्थळ (८)विभाग संस्तर पुं० पथारी (२)पांदडां वगेरेनुं संस्थापन न भेगुं राखq के मूकबुं ते संस्तव पुं० स्तुति ; प्रसंशा (२)परिचय; (२)नियम ; व्यवस्था (३)स्थापq ते; निकट संबंध (३)एकमती प्रमाणित करवू ते (४)निग्रह संस्तवप्रीति स्त्री० परिचयथी थती प्रीति संस्थापना स्त्री० निग्रह (२)शांत पाडसंस्तंभ ५, ९ प० थोभाव; रोक; वानो उपाय निग्रह करवो (२)जड-अक्कड करी संस्थित वि० साथे रहेलुं के ऊभेलु (२) देवू (३)हिंमत धारण करवी; स्थिर- रहेढं; ऊभेलु (३)नजीकनुं (४)सदृश शांत थर्बु (४) दृढ करवू; निश्चळ (५) एकत्रित (६) निश्चित; स्थिर . करवू (५) टेको आपवो (७) अटकेलं; पूरुं थयेलं (८) सारा संस्तीर्ण वि० पथरायेलं; बिछावेलं(२) घडतर के रचनावाळू; सारा आकारनं वेरेलं;विखेरेलु परिचित होवू (९) वारंवार अवरजवरवाळू (१०) संस्तु २५० वखाणवू(२)स्तुति करवी(३) न० स्थिति (११) आकृति संस्तुत वि० वखाणेलं; प्रशंसेलु (२) संस्थिति स्त्री० साथे होवू के रहेवं ते साथे स्तुति करेलु (३)परिचित (४) (२) सांनिध्य (३) रहेठाण ; आश्रयताकेलं; इरादो राख्यो होय तेवू (५) स्थान (४) समूह (५) टकी रहे, समान; तुल्य के चालु रहेदूं ते (६) स्थिति ; दशा संस्तुति स्त्री० प्रशंसा (७) निग्रह (८) मृत्यु (९) प्रलय संस्तृ (-) ५, ९ उ० पाथरवं; वेरवू संस्पर्श पुं० संबंध (जेम के विषय अने संस्त्याय पु० ढगलो; समूह (२) विस्तार इंद्रियोनो) (३) पडोश ; सांनिध्य (४) रहेठाण; संस्पृश् ६ प० स्पर्श करवो (२) पाणी घर(५)परिचय [वसेलु; रहेलं छांटर्बु (३) कोगळा करवा संस्थ वि० रहेतुं ; कायम रहेतुं (२) वसतुं; संस्कृष्ट वि० स्पर्शायेलं; संबंधमां आवेलं संस्था १ आ० [संतिष्ठते ] साथे ऊभा संस्मरण न० याद करवू ते रहेवू के वसवू (२)उपर ऊभा रहे, संस्म १ १० याद करवू; चितववं (३)हो; जीवq (४) मानवं;-प्रमाणे संस्मृति स्त्री० याद करवू ते वर्तवं (५) पूरुं थq; सिद्ध थर्बु (६) संस्रव पुं० वहेवू ते; प्रवाह अंतराय आववो; अंतरायथी अंत संहत वि० प्रहार करायेलं; घवायेखें आववो (७) १ प० अटकी पडq। (२) जोडायेलं; जोडेलु; संबद्ध -प्रेरक० स्वस्थ करवं (जातने) (२) (३) घट्ट; दृढ (४) संपवाळु; एक स्थिर करवू (३) निग्रह करवो साथे होय तेवू (५) एकत्रित संस्था स्त्री० मंडळ; सभा (२) स्थिति; संहतभ्र वि० भवां चडाव्यां होय ते, हालत (३)स्वरूप; प्रकृति (४) धंधो; संहति स्त्री० गाढ संबंध (२) एकरोजगार (५) अंत (६) मृत्यु (७) संप (३) जथ्थो; समूह (४) ढगलो प्रलय (८) करार; कबूलात (५) बळ ; ताकात Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संहन् ५४८ संहन २५० जोडवू ; भेगुं कर (२) ढगलो करवो; संग्रह करवो संहनन न० गाढपणुं; दृढता (२) घडतर; बांधो; शरीर (३)बळ (४) हणवू ते (५) घस - मसळवू ते संहननीय वि० दृढ; घट्ट संहरण न० भेगुं करवू ते (२) लेवं ते; पकडवू ते (३) संकोचवू ते (४)निग्रह (५) विध्वंस (६) पार्छ खेंची लेवू ते संहर्ष पुं० आनंद के . भयथी रोमांच थवां ते (२) हरीफाई संहार पुं० भेगुं करवं ते; एकळं करवं ते (२) संकोचवू ते; संक्षेप (३) पार्छ खेंची लेवू ते (४) निग्रह (५) विध्वंस; प्रलय (६) अंत; समाप्ति (७) समूह; समुदाय संहित वि० युक्त; साथेनुं (२)संबंधी; -मांथी नीकळेलु (३) गोठवेलं; मुकेलं (४) नजीकर्नु संहिता स्त्री० संयोग (२) समुच्चय (३) पद के लखाणनो व्यवस्थित संग्रह (उदा० मनुसंहिता) (४) वेदोना मंत्र भागनो सळंग संग्रह संह १ उ० एकळं करवू; भेगुं करवू(२) खंचवू; चूस (३) संक्षेप करवो; संकोचवू (४) संहार करवो (५) पार्छ खेंची लेवू (६) निग्रह करवो; दबावq (७) समेटी लेवु (८) अवळे मार्गे दोरवू संहृत वि० एकळु करेलु (२) संको चेलं; संक्षिप्त (३) पार्छ खेंचेलु (४) पकडेलु(५)निग्रह करेलु(६)नाश करेलं संहति स्त्री० संक्षेप (२) नियमन (३) विध्वंस; नाश (४) संग्रह संहष् ४ प० हर्ष पामवू; हर्षित थर्बु (२) खडु-ऊथई जq (रोमांच) संहष्ट वि० रोमांचित थयेलु संहाद पुं० अवाज; घोंघाट सागरांबरा साकम् अ० साथे; सहित (२) एकी साथे; एक ज वखते साकल्य न० समग्रता; आखं एवं ते साकल्यक वि० बीमार; मांदं साकल्येन अ० संपूर्ण रीते; समग्रपणे साकार वि० आकार - आकृतिवाळू (२) सुंदर आकारवाळं साकांक्ष वि० अभिलाषायुक्त (२) अर्थयुक्त (३) अपेक्षावाळं साकुल वि० व्याकुळ; मुंझायेलं साकृत वि० अर्थ के अभिप्रायवाळु (२) सहेतुक; इरादावाळू (३)विलासयुक्त साकतम् अ० अर्थ के अभिप्राय साथे (२) विलासयुक्त होय तेम (३)घ्यानपूर्वक साकेत न० अयोध्या शहेर साक्षर वि० वक्तृत्वशक्तिवाळू साक्षात् अ० नजर सामे;-नी हाजरीमां; खुल्लंखुल्ला; सीधेसीधुं (२) जाते; स्वयं (३) (समासमां) मूर्तिमंत - देहधारी होय तेम (उदा० 'साक्षाद्यम') साक्षात्कार पुं० प्रत्यक्ष ज्ञान; अनुभव साक्षात्कृ ८ उ० नजरे जोवू (२) जाते अंतरमा अनुभव, (३) परिणाम के फळ भोगव साक्षिन वि० नजरे जोनाएं; साक्षी होय तेवू (२) साक्षी (३) परमात्मा (४) जीवात्मा साक्षिप्तम् वि० अविचारीपणे साक्षेप वि० कटाक्षपूर्ण (२) पक्षपाती साक्ष्य न० पुरावो; साक्षीपर्यु सागर पुं० समुद्र (२) भगीरथ सागरगमा स्त्री० नदी सागरसुता स्त्री० लक्ष्मी सागरसूनु पुं० चंद्र सागरावर्त पुं० सागरद्वीप सागरांत वि० सागरथी वीटळायेलं; सागर सुधीनु सागरांबरा स्त्री० पृथ्वी (°) सग्रह Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साग्नि साधन साग्नि वि० अग्निवार्छ; होम माटे सात्वताः पुं०ब०व० एक जातिना लोको अग्नि राखनाएं सात्वतांपति पुं० विष्णु (२) कृष्ण साग्निक पुं० गृहस्थ; अग्निहोत्री सात्वती स्त्री० नाटकनी चार शैलीओसान वि० संपूर्ण; आखं; पूरु (२) मांनी एक (२) शिशुपालनी माता अधिक; -थी वधु एवं [समय सुधी साद पुं० डूब ते; नीचे बेसवं ते (२) साप्रम् अ० आखी जिंदगी सुधी; खूब __ थाक (३) कृशता (४) नाश; अंत साचि अ० वांकुं; त्रांसुं; तीरछं (५) दुःख, पीडा साचिव्य न० प्रधानपदुं (२) मदद; सादन न० थकवq ते (२)नाश करवो सहाय ; मैत्री वाळवू ते (३) थाक (४) घर; रहेठाण । साचीकृ ८ उ० बाजुए वाळवू; वांकु सादित वि० बेसाडेलु (२)थाकेलु (३) साजात्य न० एक जाति के वर्गन होवू ते खिन्न ; हताश (४) विनष्ट (५) क्षीण साटोप वि० गर्विष्ठ ; उद्धत (२) भव्य सादिन वि० नीचे बेसतुं (२)थकवनाएं; (३) भरेलु ; फूलेलं (४)गडगडाटवाळं नाश करनारु (३) बेसनारुं; सवारी साटोपम् अ० अभिमानथी; रुआबभेर करना5 (४) पुं० घोडेसवार (५) (२) उद्धतपणे (३) गुस्साथी हाथीसवार (६)रथसवार (७) सारथि सात् अ० जे शब्द साथे वपराय तेना सादृश्य न० सरखापणुं; समानता (२) रूप पूरेपूरुं बदलाईने थयुं छे – एवो प्रतिकृति; चित्र अर्थ बतावे (उदा० भस्मसात्) (२) साद्य वि० नवं अथवा तेना काबूमां सोंपी देवायु होय साद्यस्क वि० झडपी; तरत ज थत् तेवो अर्थ बतावे (उदा० ब्राह्मणमात्) (२) तरत ज परिणमतुं (३) नवं; सातत्य न० कायमपणुं; चालु रहेवापणुं ताजु (४) पुं० एक यज्ञ सातिशय वि० उत्तम; अधिक साद्यंत वि० आखं; पूर्ण । सातिसार वि० दस्त थई गया होय तेवू साथ् ५५० पूरुं करवू; सिद्ध करवू (२) सातीर्थ्य न० एक ज गुरु पासे शीखवू ते जीतq (४)४ प० सिद्ध थq; पूरुं था सात्त्विक वि० खरं; तात्त्विक (२) -प्रेरक० साधq; पूरुं करवू (२) साचुं; खरं; स्वाभाविक (३)सद्गुणी; सिद्ध करवं; प्राप्त कर, (३) प्रमाणिक (४) शक्तिमान (५)सत्त्व- पुरवार करवू (४) ताबे करवं; वर गुणी (६)प्रेम वगेरे आंतरिक भावथी करवू (५) नाश करवो (६) जq; नीपजेलं (७) पुं० आंतरिक भावनो विदाय थर्बु बाह्य आविष्कार (काव्य) साधक वि० सिद्ध करनारं; पूरुं करनार सात्त्विकी स्त्री० दुर्गा (२) असरकारक; कार्यक्षम (३) सात्म्य न० सरूपता कुशळ; प्रवीण (४) चमत्कारी; जादुई सात्यकि पुं० एक यादव योद्धो (५) उपकारक; मददगार (६) पुं० सात्वत् पुं० (श्रीकृष्णनो) उपासक; चमत्कारिक सिद्धिओवाळो योर्ग अनुयायी; भक्त (२) यादव (७) जादुगर सात्वत वि० वैष्णव (२)भक्त (३)पांच- साधन वि० सिद्ध करनारं; परिणाम रात्र सिद्धांतने लगतुं (४) पुं० विष्णु उपजावनाएं (२) मेळवनाएं (३) (५)बळराम सूचवनाएं (४) न० सिद्ध करवं Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधनता मेळवबुं - उपजावनुं ते (५) सिद्धि; परिपूर्णता; प्राप्ति (६) कशुं सिद्ध करवा माटेनो उपाय ; उपकरण ( ७ ) कारण; निमित्त सामग्री ; ओजार (८) सैन्य के तेनो विभाग ( ९ ) साबिती (१०) ताबे करवुं ते; काबूमां लाववुं ते; वश करवुं ते (११) नाश करवो ते साधनता स्त्री० साधनोवाळा होवापणुं साधना स्त्री० संपादन करवुं ते; पूर्ण करवुं ते ( २ ) पूजा उपासना ( ३ ) प्रसन्न करते के सेनापति साधनाध्यक्ष पुं० लश्करनो निरीक्षक साधनीय वि० कोई कार्य सिद्ध करवामां उपयोगी एवं ( २ ) सिद्ध करवानुं के मेळववानुं एवं सामक वि० एक ज धर्म के पंथनुं साधर्म्य न० समान धर्म के पदवाळा होवुं ते ( २ ) स्वभाव के गुणधर्मनी समानता साधारण वि० बे अथवा वधारेनुं सहिया ( २ ) सामान्य ( ३ ) सार्वत्रिक ( ४ ) मिश्रित ( ५ ) समान साधारणस्त्री स्त्री० वेश्या साधारणीकृ ८ उ० सहियारुं करवु; वहेंची लेवुं साधित वि० साबित करेलुं (२) प्राप्त करेलुं (३) पूरूं करेलु; सिद्ध करेलु सामिन् पुं० साधुता ; श्रेष्ठता ; उत्तमता साधिष्ठ वि० सौथी सारं; उत्तम ( 'साधु' नुं श्रेष्ठतादर्शक रूप ) साधीयस् वि० अधिक सारं ('साधु' नुं तुलनात्मक रूप) साधु वि० सारं ( २ ) उचित; योग्य ( ३ ) सद्गुणी; धार्मिक ( ४ ) मायालु; सारो भाव राखनारुं ( ५ ) अनुकूळ; रुचतुं (६) कुलीन ( ७ ) पुं० सारो -सद्गुणी माणस (८) ऋषि; संत ; मुनि ( ९ ) वेपारी; झवेरी (१०) धीरधार करनारो सान्वय - साधु अ० 'वाहवाह ! ; 'शाबाश ! ' (२) 'बस करो ! साधुजात वि० सुंदर साधुफल वि० सारां परिणामवाळं साधुमत् वि० सारं; भलुं ( २ ) सुखी साधुवाद पुं० 'शाबाश 'सारं कर्तुं ' एवो धन्यवाद साधुवृत्त वि० सदाचारी, सद्गुणी; नीतिमान ( २ ) बराबर गोळ आकारनुं ( ३ ) न० सदाचार साधुशील वि० सद्गुणी; सदाचारी साध्य वि० सिद्ध करवा - मेळवावा योग्य ( २ ) शक्य बनी शके • मळी शके बुं ( ३ ) साबित करवानुं पुरवार करवानुं ( ४ ) जीतवानुं; ताबे करवानुं ( ५ ) मटाडी शकाय तेवुं ( ६ ) पुं० एक जानो देव (७) देव (८) न० सिद्धि; पूर्णता ( ९ ) सिद्ध करवानी - पुरवार करवानी बाबत साध्वस न० डर, भय ( २ ) व्यग्रता ; क्षोभ (३) सुस्ती [ पतिव्रता स्त्री साध्वी स्त्री० सदाचारी - पवित्र स्त्री ( २ ) सानंद वि० सुखी; खुश सानंदम् अ० खुशीथी सानाय्य न० मदद; सहाय सानु पुं० न० शिखर ; टोच ( २ ) पर्वतनी टोचे आवेलो सपाट भाग (३) जंगल (४) फणगो सानुकंप वि० कृपावंत सानुक्रोश वि० 'दयाळु दयार्द्र सानुतर्षम् अ० तरसथी सानुनय वि० विनयी; नम्र सानुबंध वि० एकधारु अखंड ( २ ) परिणामवाळं सानुमत् पुं० पर्वत [ नीचेनो) सानूकर्ष वि० धरीवाळो पाटडो (रथ सान्वय वि० आनुवंशिक ( २ ) कुटुंब के वंशजो सहित एवं (३) संबंधी (४) अर्थयुक्त ५५० , Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सापत्न ५५१ सामान्य सापत्न वि० हरीफाई - अदेखाईथी वेदनो मंत्र के पाठ (५) सामवेद (६) करेलु (२)हरीफनु; शत्रु, (३)पोताना अवाज; स्वर पतिनी बीजी स्त्रीन; शोक सामन्य पुं० सामवेद जाणनारो ब्राह्मण; सापत्नाः पुं० ब० व० एक ज पतिनी ते वेद गावामां कुशळ एवो ब्राह्मण जुदी जुदी पत्नीनां बाळको सामयिक वि० रूढि-परंपराथी चालतुं सापल्य न० कोईनी सपत्नी- शोक आवेलं (२) करार करेलु; कबूलेलं होवू ते (२) अदेखाई; दुश्मनावट (३) (३) करार मुजबY (४) नियमित पुं० शोकनो दीकरो (४) शत्रु (५) (५) समयसर होवू ते (६) नियत सावको भाई समये थतुं के आवतुं (७) तत्पूरतुं; सापदेशम् अ० बहानं काढीने थोडा वखत माटेर्नु सापवाद वि० अपवाद - आळ फेलावतुं सामयोनि पुं० हाथी (२) ब्रह्मा (२) आळ लाग्युं होय तेवू सामर्थ्य न० बळ; शक्ति (२) समान सापवादम् अ०ठपको आपीने ; निंदापूर्वक प्रयोजन के हेतुवाळा होवापणुं (३) सापेक्ष वि० (सामान्य रीते समासमां) एक ज अर्थवाळा होवू ते -नी अपेक्षा होय तेवं; -ना संबंधमां सामर्थ्यात् अ० -ना बळे; -ना कारणे होय तेवू (२) पक्षपातवाळं सामर्ष वि० गुस्साभयुं मधुर वाणी सामवाद पुं० शांत पाडे तेवी मीठीसाप्ततंतव पुं० (ब०व०) एक पंथ सामवायिक वि० कोई पण मंडळी साप्तपद, साप्तपदीन वि०. सात पगलां संबंधी (२) समवाय-संबंध संबंधी साथे चालवाथी थ] (२) न० वर (३) पुं० मंत्री (४) कोई मंडळनो कन्याए अग्निनी आसपास सात प्रद आगेवान [उद्गाता क्षिणा करवी ते (३) गाढ मित्रता साफल्य न० सफळता (२) उपयोगी सामविद् पुं० सामवेद जाणनारो (२) सामवेद पुं० चारमांनो त्रीजो वेद पणुं (३) लाभ सामंजस्य न० औचित्य (२) खरासाबाघ वि. अव्यवस्थित पणुं; साचापणुं साभ्यसूय वि० अखं; ईर्षाळु सामंत वि० पासे- सरहदे आवेलुं (२) सामग पुं० सामवेद गानारो सार्वत्रिक (३) पुं० पडोशी (४) सामग्री स्त्री० कोई कार्यमां उपयोगी पडोशी राजा (५) खंडियो राजा एवो के साधन तरीके कामनो सामान । सामाजिक वि० सभा के समाजनुं (२) सामग्रय न० समग्रपणुं; पूर्णता; कुल- पुं० प्रेक्षक; सभ्य आखं ते (२) परिवार (३) साधन- सामाध्यायनिक पुं० सामवेदी ब्राह्मण सामग्री (४) मोक्ष सामानाधिकरण्य न० एक ज - समान सामज, सामजात पुं० हाथी परिस्थितिमां होवू ते (२) एक ज सामन् न० सांत्वन; प्रसन्न करवू ते; कार्य बजावq ते (३) एक ज पदार्थने शांत पाडवं ते (२) राजनीतिना चार लागु पडवापj उपायोमांनो एक - मीठी वातोथी सामान्य वि० सर्वसाधारण (२)समान; समजावीने मेळवी लेवं ते (साम, सर (३) मध्यम कक्षानुं (४) दाम, दंड, भेद) (३) स्तुतिवाळं तुच्छ (५) आखं; समग्र (६) न. के गाई शकाय तेवू स्तोत्र (४) साम- सर्वत्र होवू ते (७) समान लक्षण Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्यतः ५५२ सारस सामान्यतः अ० सामान्यपणे सायंप्रातर् अ० सांजे अने सवारे सामान्यप्रतिपत्तिपूर्वकम् अ० समान सायाह्न पुं० सांज आदरथी [धंधानो करारपत्र सायुज्य न० भळी जवू - एकरूप थई सामायिक न० समभाव (२) सहियारा __ जवं ते (चार प्रकारनी मुक्तिमांथी सामासिक न० समासोनो आखो समूह एक) (२) सरखापणुं सामि अ० अधु; अधूरुं होय तेम (२) सायुध्य वि० शस्त्रसज्ज एवं घृणापात्र होय तेम (३) बहु वहेलं; सार वि० अगत्यन; तत्त्वरूप (२)उत्तम; समय पहेलां श्रेष्ठ (३)साचुं; खरु (४)समर्थ; दृढ सामिषेनी स्त्री० यज्ञाग्नि प्रगटावती (५)बरोबर पुरवार थयेलु (६) (समावखते बोलवानी ऋचा (२) समिध सने अंते) सौथी सारं; श्रेष्ठ (७)न्यायी सामिष वि० मांसयुक्त; मांस साथेनुं (८)हांकी काढनारं; दूर करनारं(९) सामीप्य न० समीपता; पासे होवापणुं पुं०, न० अर्क; कस; सत्त्व (१०) सामुदायिक वि० समुदायतुं । मज्जा(११)वृक्षनो रस (१२) संक्षेप सामुद्र वि० समुद्रनुं; समुद्रमांथी नीप- तात्पर्य (१३) बळ; शक्ति (१४) जेलं (२) पुं० वहाणवटी; दरियाई दृढता (१५)धन; मिलकत (१६)न० वेपारी (३)न० शरीर उपरनुंसामुद्रिक पाणी (१७)पोलाद चिह्न के लक्षण सारक वि० रेचक सामुद्रिक वि० समुद्रथी नीपजेलं (२) सारगात्र वि० मजबूत अवयवोवाळं समुद्रनी मुसाफरी करतुं; समुद्र मार्गे सारगुरु वि० वजनने कारणे भारे एवं वेपार करतुं (३) शरीर उपरनां सारघ न० मध लक्षणो संबंधी (जे उपरथी सारं के सारज न० ताजु माखण [मदी खराब नसीब भाखवामां आवे छे) सारणि स्त्री० नहेर; नीक (२) नानी साम्ना अ० खुशीथी सारणिक वि० मुसाफरी करतुं(२)पुं० साम्य न०, साम्यता स्त्री० सरखापणुं प्रवासी; वटेमाणु (३) प्रवासी वेपारी सादृश्य (२) समानभाव (३) मेळ ; सारणी स्त्री० जुओ सारणि' सुसंगतता (४) निष्पक्षता; तटस्थवृत्ति सारतरु पुं० केळ साम्यतालविशारद वि० संगीतना ताल सा रतस् अ० धन प्रमाणे (२)बळपूर्वक अने संगतमां कुशळ [भौम राज्य (३) जात प्रमाणे साम्राज्य न० सार्वभौमत्व (२) सार्व- सारथि पुं० रथ हांकनार (२) मददनीश साय पुं० संध्याकाळ;सांज(२)अंत(३)बाण साथी (३) मार्गदर्शक (४)महासागर सायक पुं० बाण (२) तलवार सारथ्य न० सारथिपणुं सायकपुंख पुं० बाणनोपींछांवाळो भाग सारफल्ग वि० उत्तम अने हलकुं सायण पुं० वेदना सुप्रसिद्ध भाष्यकार सारभांड न० वेपार माटेनो माल (ई० स० १३७०) सारमेय पुं० कूतरो सायधूर्त पुं० सांज रूपी ठग (२) चंद्र सारमेयी स्त्री० कूतरी सायम् अ० सांजे; संध्याकाळे सारव वि० सरयु नदीनुं सायंकाल पुं० सांजनो समय सारशन न० जुओ 'सारसन' सायंतन वि० संध्या समयनुं सारस वि० बूम पाडतुं ; बोलावतुं(२) Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारसक ५५३ सावलौकिक सरोवरन (३)पुं० ते नामर्ने एक पक्षी सारूप्य न० समान रूप के आकृति होवी (४) हंस पक्षी (५) पक्षी (६) ते (२) सरूपता; सदृशता (३)(चार चंद्र (७) न० कमळ (८) स्त्रीनो मुक्तिओमांनी एक) देव साथे एकरूप कमरबंध; कंदोरो थई जq-भळी जq ते सारसक पुं० चक्रवाक सार्गल वि० रोकायेखें; अटकावायेलं सारसन न० स्त्रीनो कंदोरो (२) योद्धानो सार्थ वि० अर्थवाळू (२) हेतुवाळु (३) कमरपट्टो (३) छाती उपरतुं बखतर समान अर्थवाळं (४) उपयोगी (५) सारसाक्ष न० एक रत्न पैसादार (६) पुं० धनी; पैसादार (७) सारसाक्षी स्त्री० कमळ जेवां नेत्रवाळी वेपारीओनी वणजार (८) माणसोनो स्त्री [चक्रवाकी काफलो- संघ (९) प्राणीओ- टोळू सारसिका स्त्री० सारस पक्षीनी मादा(२) (१०) टोळं; समुदाय सारसी स्त्री० सारस पक्षीनी मादा सार्थक वि० उपयोगी (२) अर्थवाळू सारस्य न० बूम ; पोकार (२) पुष्कळ सार्थवाह पुं०, सार्थवाहन पुं० वणजापाणी होवू ते रनो मुखियो; मुख्य वेपारी सारस्वत वि० सरस्वती देवी संबंधी सार्थहीन वि० वणजारमांथी पाछळ रही (२)सरस्वती नदी संबंधी(३)वक्तृत्व- · गयेलं; वणजारे पाछळ छोडी दीधेलु शक्तिवाळु (४) पुं० सरस्वती नदीनी साथिक वि० -साथे मुसाफरी करतुं (२) आसपासनो प्रदेश (५) ब्राह्मणनो एक पुं० वेपारी (३) मुसाफरीनो साथी वर्ग (६) वाणी; वक्तृता साई वि० भीन सारंग वि० काबरचीतरु(२)पुं० काबर- सार्घ वि० अर्धा जेटलं वधारे होय चीतरो वर्ण (३) काबरचीतरो मृग तेवं (उदा० 'सार्धशतम्'-१५०) (४) मृग (५) हाथी (६) मधमाखी सार्थम् अ० साथे; सोबतमां (७) काळो भमरो (८) सिंह (९) सार्प पुं० आश्लेषा नक्षत्र कोयल (१०)मोर(११) शंख (१२) सार्व वि० सामान्य; सार्वत्रिक (२) कामदेव (१३) चंदन (१४) भक्त बधांने माफक आवे तेवू (३)पुं० बौद्ध (१५) एक राग के जैन भिक्षु [करनारुं सारंगी स्त्री० एक तंतुवाद्य (२)काबर- सार्वकामिक वि० बधी इच्छाओ पूरी चीतरा वर्णनी मृगली सार्वजनिक, सार्वजनीन वि० सर्व माटेनें; सारासार वि० कीमती अने किंमत सर्वने उपयोगर्नु पडे तेवं विनानु; कामनुं अने नकामु (२) सार्वत्रिक वि० दरेक स्थळy; बधे लागु मजबूत अने नबळं [एक पक्षी सार्वभौतिक वि० बधां भूतो के भूत सारि स्त्री० सोगर्छ; शेतरंजनुं महोरु(२) प्राणीओ संबंधी सारिका स्त्री० मेना जेवू एक पंखी (२) सार्वभौम वि० आखी पृथ्वीने लगतुं तंतुवाद्यना तार जेना उपरथी पसार (२) मननी बधी भूमिकाओने लगतु थाय छे ते पुल वाळू (३) चक्रवर्ती राजा(४) कुबेरनी उत्तर सारिन् वि० जतुं सरतुं (२)-ना सार दिशानो दिग्गज सारिष्ठ वि० सौथी सारं सार्वलौकिक वि० बधा लोको जाणता सारी स्त्री० जुओ 'सारि' होय तेवू; बधे प्रवर्ततुं; सार्वत्रिक Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्ववेदस् सार्ववेदस् पुं० यज्ञमां बधी वस्तुओनुं दान करनारी ( २ ) न० माणसनी बधी मिलकत [ शक्तिवाळु साष्टि वि० समान पद-स्थिति- के साष्टिता स्त्री० (चार प्रकारनी मुक्तिओमांनी एक ) शक्ति अने गुणोमां परमात्मानी समानता साल पुं० एक वृक्ष (२) वृक्ष सालस वि० थाकेलुं ( २ ) आळसु; सुस्त सालंकार वि० आभूषणयुक्त सालावक पुं० कूतरो ('शालावृक') सालोक्य न० देवना ज लोकमां साथे रहेवुं ते ( चार मुक्तिओमांनी एक ) फुरसदे सावकाशम् अ० सावज्ञ वि० अवज्ञा करतुं; तुच्छकारतुं सावद्य वि० निंदापात्र; ठपकापात्र सावधान वि० लक्ष आपतुं; काळजीवाळं (२) सावध (३) उद्योगी सावधानम् अ० काळजीथी; लक्ष आपीने सावधारण वि० मर्यादित सावधि वि० मर्यादावाळु; सीमित सावन पुं० यज्ञ करावनार ( २ ) यज्ञनी पूर्णाहुति सावयव वि० अवयवोनुं बनेलुं सावरण वि० ढांकेलं; वासेलु छुपावेलुं; गुप्त ( २ ) ५५४ सावलेप वि० गर्विष्ठ; उद्धत सावलेपम् अ० उद्धताईथी सावशेष वि० अवशेष बाकी रहेलुं होय तेवुं ( २ ) अधूरुं सावष्टंभ वि० भव्य ; उदात्त; गौरवयुक्त (२) बहादुर; पराक्रमी (३) दृढ; मक्कम सावष्टंभम् अ० मक्कमपणे ; दृढ़ताथी सावहेलम् अ० अवहेलाथी; तुच्छकारपूर्वक सावित्र वि० सूर्य संबंधी ( २ ) सूर्यवंशी (३) गायत्री साधेनुं (४) पुं० सूर्य (५) साहसकारिन् कर्ण (६) न० यज्ञोपवीत; जनोई (७) यज्ञोपवीत संस्कार (८) हस्त नक्षत्र सावित्री स्त्री० प्रकाशनुं किरण ( २ ) गायत्री ( ३ ) यज्ञोपवीत संस्कार (४) ब्रह्मानी एक पत्नी (५) पार्वती (६) शल्य देशना राजा सत्यवाननी पत्नी (जे यमराज पासेथी पतिने छोडावी लावी हती) साविनी स्त्री० नदी सावेगम् अ० आवेशपूर्वक साशंक वि० भयभीत ; गाभरुं साशंस वि० आशाभयं; इंतेजार साशंसम् अ० आशा साथै साश्चर्य वि० नवाई पमाडे तेवा वर्तनवाळुं साथ वि० रडतुं; आंसु पाडतुं साधु वि० आंसुभर्यु साष्टांगम् अ० आठे अंग नमावीने ( बे हाथ, छाती, कपाळ, बे ढींचण अने पग -ए आठे अंग जमीनने अडे तेम नमस्कार करवा ) सास वि० धनुष्यवाळं [विजयवंत सासहि वि० सहन करी शके तेवुं ( २ ) सासि वि० असि - तलवारवाळु सासुसु वि० बाणोवाळु सासूय वि० अदेखु ; ईर्ष्या छु; तुच्छकारतुं सासूयम् अ० अदेखाईथी (२) गुस्से थईने; तुच्छकारपूर्वक सास्ना स्त्री० बळदने गळे लटकती चामडी - गोदडी सात्रम् अ० आंखोमां पाणी लावीने साहचर्य न० साथीपणं; सोबत ( २ ) साथै रहेवुं ते; साथ होवुं ते साहस न० बळजबरी; अत्याचार ( २ ) चोरी - बळात्कार वगेरे कोई पण गुनो ( ३ ) धृष्टता; हिंमत ( ४ ) साहसभयुं कृत्य ( ५ ) परिणामना विचार विना करेलुं अविचारी कृत्य [ चारी साहसकारिन् वि० साहसी ( २ ) अवि Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ते साहसिक ५५५ सापरायिक साहसिक वि० अत्याचारी; जुलमी; सांग्रामिक वि० युद्ध संबंधी; लश्करी (२) क्रूर (२)बहादुर; साहसवाळू; अवि- न० युद्धनी सामग्री चारी (३) पुं० साहस करनारो- सांतर वि० वच्चे खाली जगा होय तेवू अविचारी-मरणियो माणस (४) (२) आछा वणाटवाळू (३) स्थिर लूटारु; बदमाश (५)व्यभिचारी (६) के दृढ नहि तेवू [आपq न० साहसभर्यु कृत्य [जबरी सांत्व १० उ० सांत्वन करवू; आश्वासन साहसिक्य न० साहसिकपणुं (२)बळ- सांत्व पुं०, न०, सांत्वन न०, सांत्वना, साहस्र वि० हजार संबंधी (२)हजारर्नु सांत्वा स्त्री० आश्वासन; शांत पाडQ बनेलं (३) हजारन खरीदेखें (४)हजार सुदामाना गुरु) गणुं (५)पुं० हजार माणसनी लश्करी सांदीपनि पुं० एक ऋषि (श्रीकृष्ण अने टुकडी (६)न० हजारनो समूह ... सांद्र वि० निबिड ; गाढ (२) विपुल; साहायक न० मदद ; सहाय (२) मैत्री जाडु; घj (३) एक साथे - जूथमां (३) सहायक सैन्य होय तेवू (४) मजबूत; स्थूल (५) साहाय्य न० मदद (२)मैत्री (३) मुश्के पुष्कळ; घj (६) तीव्र (७) चीकj लीमां मदद करवी ते (८) लीसु; सुंवाळु (९)झाडी; जंगल साहित्य न० समुदाय ; मंडळ (२)काव्य सांद्रीकृत वि० गाढुं - जाडु बनावेलं रचना के तेवी बीजी साक्षरी रचना (२) वधारेलु (३) काव्यशास्त्र (४)साधनसामग्री सांघ वि० संधि - सांधा आगळ आवेलं साझ न० मंडळ ; समाज (२)मदद। सांधिविग्रहिक पुं० संधि अने युद्ध माटेनो साह्न वि० नामर्नु; नामे ओळखातुं प्रधान; परदेश मंत्री [प्रातःकाळ, साह्वय पुं० जानवरोनी साठमारी; ते उपर खेलातो जुगार सांध्य वि० संध्या समयनु; सांज-(२) सांनहनिक वि० कवचधारी (२) युद्ध सांकर्य न० संकरता; भेळसेळ माटे तैयार थवा प्रेरनारु सांकूजित न० घणां पंखीओना कूजननो मिश्र, मोटो अवाज सांनाय्य पुं० घी साथे मेळवेलुं अने सांकेतिक वि० सूचक; प्रतीक रूप (२) अग्निने बलि तरीके आपवा- होम द्रव्य संकेतथी ठरावेलं; रूढिथी ऊभं थयेलं सांनाहिक वि० जुओ 'सांनहनिक' . सांख्य वि० संख्या संबंधी (२)गणतरी सांनिध्य न० पडोश; नजीकपणुं (२) करनारुं (३) तर्कप्रवीण (४) विवेक हाजरी; मोजूदगी करनारुं (५) पुं०, न० छ वैदिक दर्शनो सांनिपातिक वि० परचूरण (२)गूचवणी मांनुं कपिले प्रवविलु दर्शन (६) भरेलु (३) शरीरनी त्रण धातुओनी पुं० सांख्य दर्शननो अनुयायी गूंचवणिया विकृति थवाथी थयेलं सांग वि० अंग- अवयववाळू (२) दरेक सांपराय वि० युद्ध संबंधी (२) परअंगमां पूरु (३) छ अंगो सहित (४) लोक संबंधी (३) पुं०, न० झघडो; पूर्ण - पूरुं थयेलं तकरार (४) परलोक; परलोकसांगतिक पुं० मुलाकाती; महेमान जीवन (५) परलोक प्राप्त करवानो सांगत्य न० संगति ; मिलन मार्ग - साधन (६) मददनीश (७) सांगोपांग वि० अंग अने उपांग सहित विपत्ति; आफत (वेदोनो पूरो अभ्यास करवो) सांपरायिक वि० युद्ध संबंधी (२)लश्करी Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सांप्रत सिद्धार्थ दृष्टिए उपयोगी (३)आफतभयु (४) सित ('सो' नुं भू० कृ०) वि० सफेद परलोकने लगतुं (५) उत्तरक्रिया (२) बंधायेलं; गंठायेलु (३)जोडायेखें; संबंधी (७)न० युद्ध; लडाई (८) पुं० सहित एवं (४) घेरायेलं (५) पुं० सफेद युद्धनो रथ [प्रस्तुत; बंधबेसतुं रंग (६)शुक्लपक्ष (७) खांड; साकर सांप्रत वि० योग्य; उचित ; अनुकूळ (२) सितकर पुं० चंद्र [जाळू सांप्रतम् अ० हमणां; आ समये (२) सितछत्र न० राजछत्र (२)करोळियानुं तरत ज (३) वखतसर; उचितपणे सिततुरग पुं० अर्जुन (सफेद अश्ववाळो) सांप्रतिक वि• चालु समयने लगतुं (२) सितरश्मि पुं० चंद्र बराबर; खरं; उचित सितवाजिन् पुं० अर्जुन (सफेद घोडावाळो) सांब पुं० शिव सितवारण पुं० ऐरावत [ग्रह सांमुख्य न० हाजरी (२) सामे मोए होवू सितसौम्यो पुं० द्वि० व० शुक्र अने बुध ते (३) अनुग्रह; महेरबानी सिता स्त्री० खडी साकर(२)चांदनी सांयात्रिक पुं० दरियाई मार्गे वेपार (३) सुंदर स्त्री(४) मद्य, दारू (५) करनारो;वहाणवटी [महान योद्धो सफेद दरो. सांयुगीन न० वि० युद्धकुशळ (२)पु० सितापांग पुं० मोर (तेना आंखना खूणा साराविण न० कोलाहल; घोंघाट ___ दूध जेवा सफेद होय छे तेथी) सांवत्सरिक वि० वार्षिक (२)पुं० जोषी सितासितगुण वि० ताणावाणामां काळो (३)पंचांग बनावनारो [प्रलयाग्नि अने धोळो दोरो वाराफरती होय तेवू सांवर्तक वि० प्रलयकाळy (२) पुं० । सितांशु पुं० चंद्र सांशयिक वि० अनिश्चित; संशययुक्त सिति वि० सफेद (२)काळ (२) न० जोखमभरेलुं कृत्य सितेतर वि० काळं सांसारिक वि० संसार-व्यवहार संबंधी; सिद्ध ('सिध्' भू० कृ०) वि० पूरुं दुन्यवी; आ लोकनुं थयेलु; सफळ थयेलं;प्राप्त थयेलं(२) सांसिद्धिक वि० स्वभावसिद्ध; सहज; पुरवार थयेलं; निश्चित थयेलु (३) नैसर्गिक (२) सिद्धिबळथी उपजावेलु रंधायेलं (४) परिपक्व थयेलं (५) सि ५,९ उ० बांधवू; गांठवू(२) फांदवू प्रख्यात प्रसिद्ध (६)पुं० आठ सिद्धिओ सिकता स्त्री० रेताळ भूमि (२) रेती के चमत्कारी शक्तिओवाळो देव के (मोटे भागे ब० व०) मनुष्य (७)दिव्य दृष्टि के शक्तिवाळो सिकतिल वि० रेताळ मुनि (८) ऋषि (९) जादुगर । सिक्त ('सिच् ' नुं भू० कृ०) सींचेलं; सिद्धयात्रिक पुं० सिद्धिओ मेळववा छांटेलु; रेडेलु भटकनारो सिक्थ पुं० (रांधेलो) भात (२)भातनो सिद्धरस पुं० पारो (२) कीमियागर गोळो (३)न० मीण (४) गळी सिद्धव्यंजन पुं० तपस्वी वेशधारी जासूस सिच ६० [सिंचति-ते छांटवू (२) सिद्धादेश पुं० कोई मुनिए भाखेलु पाणी पावं; सींचq (३) अंदर रेडवू भविष्य (२) भविष्य भाखनार पेगंबर (४)अर्पण करवु (जलांजलि इ०)(५) सिद्धान्न न० रांधेलुं अनाज पलाळवं जीर्ण वस्त्र सिद्धापगा स्त्री० गंगानदी सिघय पुं० वस्त्र; कपडं (२) फाटेलू- सिद्धार्य वि० इच्छित वस्तु प्राप्त के पूर्ण Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिद्धार्थक करी होय तेवू (२)पुं० धोळा सरसव (३)गौतम बुद्धनुं नाम सिद्धार्थक पुं० घोळा सरसव सिद्धासन न० एक प्रकारचें आसन सिद्धांगना स्त्री० सिद्ध जातिनी देवीस्त्री [अंजन सिद्धांजन न० चमत्कारी शक्तिवाळं सिद्धांत पुं० साचो साबित थयेलो एवो निश्चित मत के निर्णय सिद्धि स्त्री० सफळता; पूर्णता; प्राप्ति (२)समृद्धि (३)पुरवार थq ते (४) फैसलो (फरियादनो) (५) रांधवू ते (६)चमत्कारी शक्नि(आठ गणाय छे अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वशित्व, कामावसायिता) सिद्धिद वि० सफळता आपनाएं; सुख आपनारु (२)आठ सिद्धिओ आपनारं सिष् ४ प० सिद्ध थर्बु; सफळ थq; पार पडवू (२) बराबर लक्ष उपर तकावू (३) साबित के पुरवार थq(४)जितावं (५) १५० जq (६) निवारवू (७) आज्ञा करवी; शासन करवू सिध्य पुं० पुष्य नक्षत्र सिनीवाली स्त्री० चौदशयुक्त अमावा स्या (ज्यारे चंद्ररेखा भाग्ये देखाय तेम ऊगे छे) सिन्व् १ प० भीनुं कर सिप्रा स्त्री० स्त्रीनी कटिमेखला-कंदोरो (२) उज्जयिनी पानी नदी सिमिसिमायते आ० (टाढ चडवी; धूजQ) सिरा स्त्री० शिरा; नम जोडवं सिव् ४ ५० [सीव्यति ] सीवq (२) सिष्णासु वि० नाहवानी इच्छावाळ सिसिक्षा ('सिच्' उपरथी) स्त्री० सींचवानी-छांटवानी इच्छा सिसक्षा स्त्री० उत्पन्न करवानी इच्छा सिंहावलोकन सिंघाणक न० लोखंडनो काट (२) नाकनी लीट सिंचन न० सींचवू-रेडवू ते सिंजा स्त्री० धातुनां घरेणांनो रणकार सिंजित न० (झांझर इ० नो) झमकार सिंजिनी स्त्री० धनुष्यनी दोरी सिंदुक, सिंदुवार, सिंदुवारक पुं० एक __ वृक्ष (निर्गुडी?) सिंदूर पुं० एक वृक्ष (२) न० सिंदूर; पारो सीसुं तथा गंधकनी मेळवणीनो लाल भूको सिंधु पुं० समुद्र; सागर (२)सिंधु नदी (३)सिंधु नदीनो प्रदेश (४)माळवानी एक नदी (५) मोटी नदी सिंघुपिब पुं० अगस्त्य मुनि सिंधुर पुं० हाथी सिंधुरवदन पुं० गणपति सिंधुराज पुं० जयद्रथराजा [ईराननो) सिंधुवार पुं० जातवंत घोडो (सिंध के सिंधुसौवीराः पुं० ब०१० सिंधु नदीनी आसपास रहेता एक जातना लोक सिंह पुं० एक रानी हिंसक प्राणी (पशु ओनो राजा मनाय छे) (२) (समासने अंते) ते ते वर्गनो उत्तम-श्रेष्ठ ते (उदा० 'पुरुषसिंह') सिंहकर्ण पुं० सिंहनी मूर्तिवाळो खुणो सिंहद्वार न० (महेल वगरेनो) मुख्य दरवाजो सिंहध्वनि पुं० सिंहनी गर्जना सिंहनदिन् वि० सिंहनी जेम गर्जतुं सिंहनाद पुं० सिंहनी गर्जना (२) तेवी योद्धाओनी गर्जना सिंहल न० सिलोन बेट सिंहसंहनन वि० सिंह जेवा मजबूत बांधावाळू (२) सुंदर [लीट सिंहाणक न० लोढानो कोट (२)नाकनी सिंहावलोकन न० सिंहनी पेठे पाछळ नजर करवी ते (आगळ जतां जता) Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंहासन सिंहासन न० सिंहनी आकृतिवाळं ऊंचं आसन ( राजा, देव के आचार्यनुं) सिंहिका स्त्री० राहुनी माता सिंहिकासुत, सिंहिकासून पुं० राहु सिंही स्त्री० सिंहण (२) राहुनी माता सीकर पुं० फरफर; छांटा सीता स्त्री० हळ वडे पाडेला चास (२) खेडेली जमीन (३)खेती (४) जनकनी पुत्री; रामनां पत्नी ( ५ ) दारू; मद्य सीताद्रव्य न० खेतीनुं ओजार सीताफल न० सीताफळ सीत्कार पुं०, सीत्कृति स्त्री० सिसकारो ( श्वास अंदर खेंचवाथी थतो ) ; टाढथी कंपवानो, निसासानो के वेदनानो अवाज सीघु पुं० न० मद्य सीमन् स्त्री० हद; सीमा; मर्यादा सीमंत पुं० सरहदनी रेखा; सीमाचिह्न (२) वाळ बे भागमां ओळी वच्चे पाडे छे थी (३) जुओ 'सीमंतोन्नयन' सीमंतयति प० (वाळना सेंथी काढी भाग पाडवा ; रेखा वडे अंकित कर के जुदुं पाडवु ) [ जुदुं पाडेल सीमंतित वि० सेंथी पाडेलुं ( २ ) लीटीथी सीमंतिनी स्त्री० स्त्री सीमंतोन्नयन न० सगर्भा स्त्रीनो एक संस्कार ( चोथे, छठे के आठमे महिने करतो ) सीमा स्त्री० हद; मर्यादा ( २ ) हदनुं निशान ( ३ ) पराकाष्ठा; छेल्ली हद (४) वृषण सीमांत पुं० सरहद (२) छेवटनी हद सीमोल्लंघन न० हद ओळंगवी ते सीर पुं० हळ सीरध्वज पुं० जनक राजा सीरपाणि पुं० बळराम; हलायुध सीरिन् पुं० बळराम सीरोत्कषण न० हळ वडे खेडवं ते सीव् ४५० जुओ ' सिव् ' ५५८ सुख [ सीसु सीवनी स्त्री० सोय सीस, सीसक, सीसपत्र, सीसपत्रक न० सु १ उ० जवं; खसवुं (२) १, २० सार्वभौमत्व हो; सत्ता होवी ( ३ ) ५ उ० रस काढवी; रस निचोववो ( ४ ) अर्क गाळवो (५) रेडवु; छांटवुं (६) होमवुं यज्ञ करवो (खास करीने सोमयज्ञ ) सु अ० नाम साथे कर्मधारय अने बहुव्रीहि समासोमा जोडातो तेम ज विशेषणो अने अवयवो साथ नीचेना अर्थमा वपरातो उपसर्ग : (१) सारं ; उत्तम ( २ ) सुंदर, मनोहर ( ३ ) सारी रीते; पूरेपूरुं (४) सहेलाईथी ( ५ ) घणुं ; अत्यंत (६) आदरणीय (७) मंजूरी, समृद्धि के दुःख ए अर्थ पण बतावे सुकन्या स्त्री० शर्याति राजानी पुत्री अने च्यवन ऋषिनी पत्नी सुकर वि० सहेलुं शक्य सुकल्पित वि० सुसज्ज सुकुमार वि० नाजुक; कोमळ (२) सुंदर यौवनवाळु सुकृत् वि० पुण्यशाळी; सद्वर्तनवाळु (२) विद्वान ( ३ ) नसीबदार ( ४ ) सारा यज्ञ करनारुं सुकृत वि० योग्य रीते करेलुं ( २ ) पूरे रुं करेलुं (३) न० कृतकृत्य ( ४ ) पुण्य (५) तपश्चर्या सुकृतिन् वि० सत्कृत्य करनारुं ; धार्मिक; पुण्यशाळी ( २ ) न्यायी ( ३ ) विद्वान (४) नसीबदार ( ५ ) उदार सुकृत्य न० सत्कार्य; सारं काम सुख वि० सुखी ( २ ) सुखकर (३) सद्गुणी ( ४ ) - मां आनंद लेतुं ; सहेलुं; सरळ ६ ) योग्य; उचित ( ७ ) न० ( आराम - चेन - शांति - संतोष-तृप्ति - उपभोग - एवो) तनमनने गमे तेवो अनुभव (८) समृद्धि (९) आरोग्य (१०) हित; कल्याण (११) आराम; सगवड ( Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५५९ सुखजात सुखजात वि० सुखी सुखतंत्र वि० सुख भोगवतुं सुखद वि० सुख आपनाएं सुखप्रश्न पुं० कुशळसमाचार पूछवा ते सुखम् अ० सुखेथी (२) खुशीथी (३) सहेलाईथी सुखयति प० (खुश करवू;आनंद आपवो) सुखरूप वि० सारा देखाव सुखश्रव, सुखश्रुति वि० कानने गमे तेवू; मधुर अवाजवाळु सुखसंगिन् वि० सुखमां आसक्त एवं सुखसाध्य वि० सहेलाईथी मेळवी शकाय तेवू (२) सहेलाईथी मटाडी शकाय तेवू सुखस्पर्श वि० सुखकर स्पर्शवाळ (२) सुखप्रद; आनंद आपनाएं सुखाकृत वि० सुखप्रद; आनंददायक सुखागत न० स्वागत; अभिवादन सुखात्मन् पुं० परमात्मा; ब्रह्म । सुखाप्लव वि० स्नान माटे योग्य एवं सुखायते आ० (सुखी थq; सुख आपq; अनुकूळ थर्बु) सुखालोक वि० देखावडु; सुंदर सुखावह वि० सुखद; सुख आपनाएं। सुखास्वाद वि० स्वादिष्ठ (२) सुखप्रद (३)पुं० सारो स्वाद (४) आनंद; उपभोग (सुखनो) सुखित वि० सुखी; आनंदित (२)न० सुख ; आनंद [साधु; तपस्वी सुखिन् वि० सुखी; खुशी (२) पुं० सुखोचित वि० सुख-सगवडथी टेवायेलु सुखोदकं वि० सुखमां परिणमतुं सुख्याति स्त्री० अत्यंत प्रख्याति सुग वि० सुंदर रीते चालनारं (२) सहेलाईथी पासे जई शकाय तेवू (३) सहेलाईथी समजी शकाय तेवू (४)पुं० गंधर्व (५) न० विष्ठा (६) सुख सुगत पुं० गौतमबुद्ध सुगम वि० सहेलाईथी जई शकाय तेवं (२)सहेलं (३)समजी शकाय तेवू सुतपस् सुगंध पुं० सुवास (२)न० चंदन सुगंधि वि० सुवासित; खुशबोदार सुगह वि० सारा घरवाळूसारा रहेठाण वाळु [बोलवू शुभ गणाय तेवू सुगृहीत वि० सारी रीते पकडेलु (२) सुगहीतनामधेय, सुगृहीतनामन् वि० जेनुं नाम लेवाथी पुण्य थाय तेवू सुग्रीव वि० सुंदर डोकवाळू (२) पुं० वालीनो भाई; वानरोनो राजा सुग्रीवेश पुं० राम सुघोष वि० सारा अवाजवाळू (२) पुं० नकुळनो शंख सुचरित, सुचरित्र वि० सारा वर्तनवाळं; सुशील (२)न० पुण्य (३) सत्कर्म सुचिर वि० घणुं लांबु (समय) सुचिरम् अ० लांबा समय सुधी सुचेतस् वि० सारा अंतःकरणवाळू (२) डाहथु [सारा भाववाळं सुचेतीकृत वि० संतुष्ट हृदयवाळु (२) सुजन पुं० सद्गुणी माणस; सज्जन(२) इंद्रनो सारथि [बहादुरी सुजनता स्त्री० सज्जनता; भलाई (२) सुजन्मन् वि० खानदान; ऊंचा कुळमां जन्मेलु (२)विधिसर लग्नथी जन्मेलु सुजल्प पुं० सारी रीते करेली वातचीत सुजात वि० बराबर वधेलं; ऊंचु (२) सारी रीते घडायेखें; घाटीखें (३) कुलीन (४) सुंदर (५)कोमळ सुजूष (हणवू; मार) सुटंक वि० तीव्र; ती[; तीखं (अवाज) सुत ('सु' नुं भू० कृ०) वि० रेडेलु (२) निचोवीने काढेलु (३) उत्पन्न करेलु; जन्म आपेलु (४)पुं० पुत्र (५) संतान (६)सोमरस (७)सोमयज्ञ सुतनिविशेषम् अ० पुत्रनी पेठे सुतनु वि० सुंदर (२)नाजुक (३) कृश सुतनु-न) स्त्री. संदर स्त्री सुतपस् वि० कठोर तपश्चर्या करनारं Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुतमाम् ५६० सुनीति (२)खूब गरमीवाळ (३)पुं० तपस्वी सुदूर वि० खूब दूर एवं (४)सूर्य (५)न० तीव्र तप सुदूरम् अ० अत्यंत दूर (२) अतिशय सुतमाम् अ० उत्तम-श्रेष्ठ होय तेम प्रमाणमां; अत्यंत सुतराम् अ० वधु सारं होय तेम; घj सुदृढ वि० खूब मक्कम (२) मजबूत वधारे होय तेम (२)परिणामे सुवश वि० सुंदर आंखोवाळू (२) सुतल न० सात पाताळोमांनुं एक स्त्री० सुंदर स्त्री मुतंगम पुं० पुत्रनो पिता सुधन्वन् वि० उत्तम धनुर्धारी एवं सुतंत्री वि० सारी रीते तार खेंच्या होय सुधर्मन् वि० पोतानां कर्तव्य बराबर ते, (२) सारा अवाजवाळू (वाद्य) बजावनाएं (२) पुं० इंद्रनो सभाखंड सुता स्त्री० पुत्री के महेल सुतार वि० घणा ऊंचा अवाजवाळू सुधर्मा स्त्री० देवसभा (२) द्वारका (२) तेजस्वी (३)सुंदर कीकीओवाळू सुधा स्त्री० अमृत (२) फूलनुं मध (३) सुतिन् वि० पुत्र के संततिवाळू (२) रस (४) चूनो (घोळवानो) पुं० पिता सुधाकर पुं० चंद्र सुतिनी स्त्री० माता। सुधाकार पुं० धोळनारो सुतीक्ष्ण वि० तीक्ष्ण धारवाळू (२) सुधाक्षालित वि० धोळेलं घणुं तीj (३) खूब पीडा करे तेवू सुधाभूबिंब न० चंद्रबिंब (४) पुं० एक ऋषि [समय सुधासित वि० चूना जेवू सफेद (२) सुत्याकाल पुं० सोमरस निचोववानो अमृत जेवं तेजस्वी (३) अमृतथी सुत्रामन् पुं० इंद्र छवायेलं; अमृतवाळं मुदक्षिण वि० न्यायी प्रमाणिक (२) सुधास्यंदिन वि० अमृत झरतुं घणी दक्षिणाओ अपाती होय तेवू (३) सुधांशु पुं० चंद्र कुशळ; प्रवीण (४) विनयी सुधी वि० बुद्धिशाळी; चतुर (२) सुदक्षिणा स्त्री० दिलीप राजानी राणी पुं० विद्वान ; पंडित; ज्ञानी (३) स्त्री० मुदत् वि० सुंदर दांतवाळू सुंदर बुद्धि; ऊंडी समजण के ज्ञान सुदर्श वि० सुंदर देखाव सुधम्रवर्णा स्त्री० अग्निनी सात सुदर्शन वि० सुंदर; देखावडु (२) जीभमांनी एक सहेलाईथी जोई शकाय तेवू (३)पुं० सुनय पुं० सद्वर्तन (२) सारी राजविष्णुनुं चक्र(४)शिव (५)मेरु पर्वत नीति के व्यवहारनीति (६)न० जंबुद्वीप (७)इंद्रनी नगरी सुनयना स्त्री०सुंदर आंखोवाळी स्त्री (२) सुदर्शना स्त्री० सुंदर स्त्री (२) स्त्री स्त्री [बळरामनुं मुशळ (३) आज्ञा; हुकम [राजधानी । सुनंद पुं० एक जातनो राजमहेल (२) सुदर्शनी स्त्री० अमरावती; इंद्रनी सुनिभूत वि० खूब ज एकांत होय तेवं सुदामन् वि० उदार; दानी (२) पुं० (२) अत्यंत खानगी एवं श्रीकृष्णनो मित्र ब्राह्मण सुनिभृतम् अ० खूब खानगी रीते; सुदि अ० शुक्लपक्षमा अत्यंत एकांतमां सुदुरासद वि० पासे न जई शकाय तेवू सुनीति स्त्री० सद्वर्तन ; सदाचार(२) सुदुर्लभ वि० महा मुश्केलीए मळी सारी राजनीति के व्यवहारनीति (३) शके तेQ ध्रुवनी माता Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुनीय सुनीथ वि० सारा स्वभाववाळु; सद्गुणी (२) पुं० ब्राह्मण (३) शिशुपाल सुनु न० पाणी [ ( ३ ) सन्मार्ग सुपय पुं० सारो रस्तो ( २ ) सारं वर्तन सुपर्ण वि० सुंदर पांखोवाळं (२) सुंदर पांदडांवाळे (३) पुं० सूर्यनुं किरण ( ४ ) देवताओनी एक जाति (५) गरुड (६) पक्षी सुपर्णकेतु पुं० विष्णु सुपर्णा ( - र्णी) स्त्री० गरुडनी माता सुपर्याप्त वि० विशाळ (२) सजावेलुं (३) बरोबरी करे तेवुं सुपर्वन् वि० सुंदर सांघावाळं (२) पुं० वांस (३) बाण (४) देव सुपात्र न० सारं के योग्य वासण ( २ ) लायक व्यक्ति; लायक माणस सुपुष्पित वि० सारां फूलवाळं; खूब खीलेलुं (२) रोमांचित थयेलुं सुपूर वि० ० सहेलाईथी भरी शकाय तेवुं (२) सारी रीते भरी शके तेवुं सुप्त ('स्वप्' नुं कर्तरि भू० कृ० ) वि० सूतेलु; ऊंघत (२) निष्क्रिय (३) न० गाढ निद्रा; ऊंघ सुप्ति स्त्री० निद्रा सुप्रतिष्ठित वि० सारी रीते स्थपायेलुं (२) जेनी सारी रीते प्रतिष्ठा करी - होय तेवुं ( २ ) विख्यात सुप्रभात न० मंगल प्रभात सुंदर सवार (२) बहेली सवार सुप्रभाव पुं० सर्वशक्तिमत्ता सुबाहु वि० सुंदर हाथवाळं (२) मजबूत हाथवाळं ( ३ ) पुं० एक राक्षस मारीचनो भाई सुबोध वि० सहेलाईथी समजी शकाय तेवुं ( २ ) पुं० सारी सलाह सुब्रह्मण्य पुं० कार्तिकेय ( २ ) यज्ञना १६ ऋत्विजोमांनो एक सुभग वि० नसीबदार; सुखी ( २ ) ५६१ सुरक्त सुंदर (३) मधुर ( ४ ) प्रिय (५) प्रख्यात ( ६ ) न० सद्भाग्य सुभगा स्त्री० पतिनी प्रिय स्त्री; मानीती पत्नी ( २ ) सौभाग्यवंती स्त्री सुभट पुं० वीर योद्धो सुभद्र वि० अत्यंत सुखी; नसीबदार सुभद्रा स्त्री० श्रीकृष्णानी बहेन ; अर्जुननी पत्नी अभिमन्युनी माता सुभाषित वि० सारी रीते कहेलुं (२) न० सुंदर वाक्य; सूक्ति सुभिक्ष न० सुकाळ (२) खूब भिक्षा मळवी ते [ सुंदर स्त्री सुभ्रू वि० सुंदर भमरवाळं (२) स्त्री० सुम पुं० चंद्र ( २ ) न० फूल सुमध्य, सुमध्यम वि० पातळी केडबाळं सुमध्यमा, सुमध्या स्त्री० सुंदर स्त्री सुमन वि० अत्यंत सुंदर; मनोहर सुमनस् वि० सारा स्वभावनुं ( २ ) संतुष्ट (३) पुं० देव (४) स्त्री०, न० (केटलाक ब०व० गणे छे) फूल सुमना स्त्री० जूई लप इ० सामग्री सुमनोवर्णक न० शृंगार माटेनां फूल, सुमर्षण वि० सहन करी शकाय तेवुं सुमंत्र पुं० दशरथनो सारथि सुमित्रा स्त्री० दशरथनी एक राणी; लक्ष्मण अने शत्रुघ्ननां माता सुमुख वि० सुंदर मुखवाळू सुंदर (२) उत्सुक (३) अणी - धारवाळं (४) पुं० गणेश ( ५ ) गरुड सुमृत वि० तद्दन मरी गयेलुं सुमेधस् वि० बुद्धिशाळी; डायुं सुमेरु पुं० मेरु पर्वत सुयंत्रित वि० सारी रीते शासित थयेलुं (२) स्वनियंत्रित सुयोधन पुं० दुर्योधन ( कटाक्षमां ) सुर पुं० देव (२) सूर्य सुरकार्मुक न० मेघधनुष्य सुरक्त वि० सारी रीते रंगायेलुं (२) Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरगुरु ५६२ सुवर्णरोमन राग-प्रेमवाळ (३) घणुं सुंदर (४) सुराजन् वि० सारा राजावाळू मधुर अवाजवाळू सुराधिप पुं० इंद्र सुरगुरु पुं० बृहस्पति (२) विष्णु सुरापगा स्त्री० गंगानदी सुरत वि० रमतियाळ (२) विलासी सुरापीत वि० पीधेलं; मत्त (३) दयाळु; कोमळ (४) न० अति सुरारि पु० असुर; राक्षस(देवोना शत्रु) आनंद (५) मैथुन सुराचविश्मन् न० देवोनी मूर्तिओ सुरतप्रसंग पुं० कामभोगमां लवलीनता वाळो ओरडो (घरनो) सुरति स्त्री० अति भोग; अति तृप्ति सुराष्ट्र पुं० सौराष्ट्र देश सुरद्विप पुं० ऐरावत हाथी सुरांगना स्त्री० अप्सरा सुरद्विष पुं० राक्षस; दानव (२) राहु सुरंगा स्त्री० सुरंग; भोयरूं सुरषनुस् न० मेघधनुष्य सुरूप वि० सुंदर; देखाव९ (२)विद्वान् सुरधुनी स्त्री० गंगानदी सुरेतस् न० मानसिक शक्ति; चिच्छक्ति सुरपथ न० आकाश (२) स्वर्ग सुरेश पुं० इंद्र सुरभि वि० सुगंधी; सुवासित (२) सुरेश्वर पुं० इंद्र उज्ज्व ळ; सुंदर (३) प्रिय (४) सुरेंद्र पुं० इंद्र (२) विष्णु डाहथु (५) विख्यात (६)पुं० सुगंध; सुलक्षण वि० शुभ चिह्नवाळू; मांगसुवास (७) वसंतऋतु (८) चैत्र ळिक चिह्नवाळू (२)नसीबदार(३)न० महिनो (९) स्त्री० पृथ्वी (१०) ___ काळजीथी तपासवू ते(४)शुभ लक्षण गाय (११) कामधेनु गाय सुलग्न पुं०, न० शुभ घडी -मुहूर्त सुरभित वि० सुगंधीदार (२) मनोहर सुलभ वि० सहेलाईथी मळे तेवू (२) सुरभिमुख न० वसंतनो प्रारंभ -ने योग्य (३) स्वाभाविक सुरभिवल्कल न० तज; दालचीनी सुरभूय न० इष्ट देव साथे भळी जवें सुलभकोप वि० सहेलाईथी गुस्से थई जाय तेवू एकरूप थई जq ते [हरण; मृग सुरमंदिर न० मंदिर सुलोचन वि० सुंदर नेत्रवाळू (२) पुं० सुरयुवति स्त्री० अप्सरा सुलोचना स्त्री० सुंदर स्त्री (२) सुरवीथि स्त्री० नक्षत्रमार्ग इंद्रजितनी पत्नी सुरस वि० स्वादिष्ट (२) रसवाळं सुवर्चला स्त्री० सूर्यनी पत्नी सुरसरित् स्त्री० गंगानदी सुवर्ण वि० सुंदर रंगवाळं; सोनेरी सुरसाल पुं० कल्पवृक्ष रंगनुं (२) सारी जातिन (३) सुरसुंदरी, सुरस्त्री स्त्री० अप्सरा प्रख्यात (४) पुं० सारो रंग (५) सुरस्थान न० मंदिर सारी जाति (६) न० सोनुं (७) सुरंग पुं० सुंदर रंग (२) धरतीमां सोनानो सिक्को (८) धन; दोलत पडेलु बाकुं (३) जमीनमां खोदेलो सुवर्णकार पं. सोनी मार्ग-भोयरुं सुवर्णचौरिका स्त्री० सोनानी चोरी सुरंगा स्त्री० घरनी दिवालमा पाडेलु सुवर्णपुष्पित वि० सोनाथी भरपूर बाकोरं (२) जमीनमां करेलो मार्ग- सुवर्णभांड, सुवर्णभांडक न० जर [मद्यपात्र झवेरातनी पेटी सुरा स्त्री० दारू; मद्य (२)पाणी (३) सुवर्णरोमन् पुं० घेटो -भोयरु Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६३ सुवर्णसिद्ध सुवर्णसिद्ध पुं० कीमियाथी के जादुथी सोनुं प्राप्त करनारो पुरुष सुवर्तित वि० सारु गोळाकार (२) सारी रीते गोठवेलं सुवसंतक पुं० (चैत्र मासमा आवतो) मदनोत्सव (२) चैत्री पूनम सुवासिनी स्त्री० पिताने घेर रहेती तरुण परिणीता स्त्री (२) सौभाग्यवंती स्त्री सुविक्रांत वि० बहादुर; शूरवीर सुविग्रह वि० सुंदर आकृतिवाळू सुविद् पुं० विद्वान; चतुर माणस (२) स्त्री० चतुर स्त्री सुविद पुं० अंतःपुरनो हजूरियो(२)राजा सुविदग्ध वि० चालाक; चतुर सुविधम् अ० सहेलाईथी। सुविनीत वि० सारी रीते केळवायेलू के तालीम पामेलु (२) नम्र; विनयी सुविरूढ वि० सारी रीते विकसेलु (२) मारी रीते सवारी करेलु सुविविक्त वि० एकांत - निर्जन एवं सुविहित वि० सारी रीते मूकेलं; मारी रीते सोंपेलं (२) सारी रीते गोठवेलु; सारी रीते सज्ज करेल (३) सारी रीते करेलु (४) संतुष्ट के तृप्त थयेलु (आतिथ्यथी) सुवीरक न० एक जात- अंजन; सुरमो (२) कांजी सुवृत्त वि० सद्वर्तनवाळू; सदाचारी (२) सारं गोळाकार (३) न० सारी वर्तणूक ; सद्वर्तन सुव्रता स्त्री० पतिव्रता स्त्री सुशिक्षित वि० सारी रीते केळवायेलं सुशील वि० सारा स्वभावनु; मळतावडं सुश्रुत वि० सारी रीते सांभळेलं (२) वेदमां पारंगत (३) पुं० वैदक ग्रंथना रचनार एक प्रसिद्ध ऋषि सुश्लिष्ट वि० सुंदर रीते गोठवेलु के जडेलु (२) बंधबेसतुं थतुं सुह्याः सुश्लोक्य वि० यशस्वी; प्रसिद्ध सुषम वि० अत्यंत सुंदर सुषमा स्त्री० परम सौंदर्य सुषि स्त्री० छिद्र (२) नळी सुषिर वि० छिद्राळ (२) न० छिद्र; काj (३) फूंकीने वगाडवानुं वाद्य सुषुप्त न०, सुषुप्ति स्त्री० गाढ निद्रा सुषुप्सा स्त्री० ऊंघवानी इच्छा (२) ऊंघनुं घेन [आवेली एक नाडी सुषुम्णा स्त्री० इडा अने पिंगला वच्चे सुष्ठु अ० सारी रीते; सुंदर रीते (२) अत्यंत होय तेम (३) साचु - खरं होय तेम सुसत्या स्त्री० जनक राजानी पत्नी सुसमाहित वि० सारी रीते गोठवेलु; सारी रीते शणगारेलं (२) अत्यंत ध्यान के लक्षवाळं सुसमीहित वि० खूब इच्छेखें सुसंवीत वि० सारी रीते केड ताणी बांध्यु होय तेवु (२) सारी रीते पोशाक पहेयों होय तेवं सुसंवृति वि० सारी रीते छुपायेलं सुसंस्कृत वि० सारी रीते रांधेलु (२) सारीरीते गोठवेलु सुसाधित वि० सारी रीते केळवेलं (२) सारी रीते रांधेलं सुस्थ वि० योग्य-सारा स्थानमा होय ते, (२) नीरोगी (३) सुखी; समृद्ध; भाग्यशाळी (४) न० सुखी स्थिति; सारी स्थिति सुस्थित वि० जुओ 'सुस्थ' (२) न० चारे बाजु ओसरीवाळं घर सुहित वि० योग्य; उचित (२) हितकर (३) प्रेमाळ; मित्रताभर्यु (४) तृप्त; संतुष्ट [मित्र सुहृद् वि० ममताळु; हेताळ (२) पुं० सुहृद पु० मित्र सुह्माः पुं० ब० व० ए नामना लोको Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नोभाई ५६४ सुंद पुं० एक राक्षस; उपसुंदनो भाई वीधेलु (२) दर्शावेलु; सूचवेलु; सुंदर वि० देखावडु; मनोहर (२) जगावेलु (३) अभिनय इ० थी प्रगट खरं; साचुं करेलुं - जणावेलु सुंदरी स्त्री० सुंदर स्त्री सूचिभिन्न वि० (कळीनी) अणी आगळथी सू २, ४ अ० जन्म आपको; उत्पन्न खीलेलु-ऊघडेलु करवं; बहार लाव, (२) ६५० उश्के- सूचिभेद्य वि० सोयथी वधवा योग्य प्रेरवु (३) चूकते करवु (ऋण) (२) खूब गाढुं; निबिड सू वि० (समासने अंते) जन्म आपतुं; सूचिशिखा स्त्री० सोयनी अणी उत्पन्न करतुं इ० सूची स्त्री० जुओ 'सूचि' सूकर पुं० डुक्कर; भूड सूच्या न० सोयनी अणी सूकरी स्त्री मुंडण; भंडणी सूत् अ० एवो अवाज थाय तेम सक्त वि० सारूं कहेलं; ठीक कहेलं (घोरवा वगेरेनो नाकथी थतो) (२)न० सुभाषित; डहापणभरी वात सूत ( 'स' नु० भ० कृ.) वि० जन्म (३)वेदनुं स्तोत्र - मंत्रसमूह आपलं; पैदा करेल (२) पुं० सूक्ति स्त्री० सारी मित्रताभरी वात सारथि (३) क्षत्रिय नो ब्राह्मण (२) सुभाषित स्त्रीयी थयेलो पुत्र (सारथिन काम सूक्ष्म वि० झीj; बारीक; अणु जेवू करे छे) (6) वैश्यनो क्षत्रिय पत्नीथी थयेलो पुत्र (चारण(२) नानू (३) पातळु; नाजुक (४) सुंदर (५) अणीदार; तीक्ष्ण (६) काम करे छे) (५) चारण (६) चोकस ; खरं (७) चालाक ; कुशळ न्यामनो एक शिप्य (७) संजय सूतक न० जन्म (२) जन्म वगेरेथी सूक्ष्मदर्शिन्, सूक्ष्मदृष्टि वि० तीक्ष्ण लागती अशुद्धि दृष्टिवाळ (२) बारीक विवेकशक्ति सूतपुत्र पुं० कर्ण (२) संजय । वाळू (३) तीक्ष्ण बुद्धिवाळं सूति स्त्री० जन्म; सुवावड; प्रसव; सूक्ष्मदेह पुं० लिंगदेह । जनन (२) संतति; संतान (३) मूळ ; उत्पत्तिस्थान (४) फळ आपवू सूक्ष्मशरीर न० लिंगदेह ते; पाक उत्पन्न थवो ते सूच १० उ० वींधवू (२) दर्शाववं सूतिका स्त्री० जेणे बाळकने तरतमां (३) प्रगट करी देवं; खुल्लं पाडी जन्म आप्यो होय तेवी स्त्री; सुवावडी देवु (४) सूचवq (५) अभिनय करवो सूतिकागृह न० सुवावडीनो ओरडो सूचक वि० दर्शावतुं; बतावतुं (२) सूती स्त्री० जुओ 'सूति' खुल्लू पाडी देतुं सूत्र १० उ० गूंथर्बु (२) वीटयूँ (३) सूचन न०, सूचना स्त्री० वींधवं ते बांधवू (४) सूत्र रूपे टूकमां रच (२) दर्शाव, ते (३) प्रगट करी (५) गोठव@; योजना करवी देवं ते (४) अभिनय सूत्र न० दोरो (२) तंतु (३) तार(४) सूचि स्त्री० वींधq ते (२) सोय (३) पूतळीना संचालन माटेनो तार के अणी ; अणीदार छेडो (४)एक व्यूह- दोरो (५) जनोई (६)प्राचीनशास्त्ररचना (५) अनुक्रमणिका; विषयोनी कारोए' रचेल मूळ संक्षिप्त वाक्य यादी; सांकळियु के तेनो ग्रंथ (७) नियम; व्यवस्था सूचित ('सूच' नुं भू० कृ०) वि० (८) कंदोरो (९) सूचन; चिह्न ___ Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकाल सूत्रकर्मन् सूत्रकर्मन् न० सुतारीकाम सूत्रकार पुं० सूत्रवाक्यनो रचनार (२) सुतार जर्जरित सूत्रदरिद्र वि० ओछा दोरावाळु; सूत्रधार पुं० नाटकनो प्रधान नट जे नांदी तेम ज प्रस्तावना भजवे छे (२)सुतार सूत्रपिटक पुं० बौद्ध ग्रंथोना त्रण मुख्य संग्रहो- विभागोमांनो एक सूत्रयंत्र न० साळनो कांठलो (२) वणवानी साळ पुं० जीवात्मा सूत्रात्मन् वि० सूत्र-दोरा जेवू (२) सूद १ आ०,१० उ० मारवू ; ईजा करवी मारी नाखवू पाप; दोष सूद पुं० कतल ; नाश (२) रसोइयो (३) सूदन वि० नाश करनारुं; हणनारं (२) न० नाश; वध सूदशाला स्त्री० रसोडु सून वि० जन्मेलं; उत्पन्न थयेलं (२) खीलेलं (३) खाली; शून्य (४) न० प्रसव ; प्रसूति (५) फूल सूननायक पुं० कामदेव सूना स्त्री॰ वधस्थान; कसाईखानुं (२) मारी नाखवू ते; वध सूनु पुं० पुत्र; दीकरो (२) बाळक; संतान (३) पौत्र (४) नानो भाई सूनत वि० साचुं अने प्रिय (२) मायाळु; ममतावाळू (३) शुभ ; मांगळिक (४) प्रिय ; वहालुं (५) न० साची अने प्रिय लागे तेवी वाणी (६) मधुर-प्रिय-विनयी वाणी सूप पुं० राब; सेरवो (२) तेजानो; मसालो (३) रसोइयो सूपकार पुं० रसोइयो सूय न० सोमरस काढवो ते (२)होम; आहुति ; यज्ञ [प्राज्ञ सूर पुं० सूर्य (२) सोम (३) विद्वान; सूरि पुं० सूर्य (२) विद्वान; प्राज्ञ; ऋषि विद्वान ; पंडित सरिन् वि० डाहयु; विद्वान (२) पुं० सूर्प पुं०, न० सूपडं सूर्पणखा स्त्री० रावणनी बहेन सूमि (-ौं) स्त्री० लोखंडनी के धातुनी मूर्ति (२)घरनो थंभ (३)तेज; ज्वाळा सूर्य पुं० सूरज सूर्यकांत पुं० एक मणि (जेना उपर सूर्यनां किरण पडतां अग्नि उत्पन्न थाय छ एम मनाय छे) सूर्यतनया स्त्री० यमुना नदी सूर्यपाद पुं० सूर्य किरण सूर्यपुत्र पुं० जुओ 'सूर्यसुत' सूर्यपुत्री स्त्री वीजळी (२) यमुना नदी सूर्यप्रभव वि० सूर्यमांथी ऊतरी आवेलु "(जेमके, सूर्यवंश) सूर्यमणि पुं० सूर्यकांतमणि सूर्यवार पुं० रविवार सूर्यसारथि पुं० अरुण सूर्यसुत पुं० सुग्रीव (२) कर्ण(३)शनिग्रह (४) यम (°) यम पू त्री [पुत्री सूर्या स्त्री॰ सूर्यनी पत्नी (२) सूर्यनी सूर्यातप पुं० तडको सूर्यापाय पुं० सूर्यास्त सूर्याय आ० सूर्यनी पेठे तेजवाळा थवं सूर्याश्मन् पुं० सूर्यकांत मणि सूर्यास्त न० सूर्यनुं आथमवू ते सूर्यदुसंगम पुं० अमास सूर्योढ पुं० सांजने वखते आवेलो अतिथि (२) सूर्यास्तनो समय सूर्योदय पुं० सूर्यनू ऊगq ते सूर्योपस्थान न० सूर्यनी पूजा स १, ३ ५० [सरति, ससति, धावति] जवू; सरवू (२) पासे जq; पहोंचवू (३)धसवं, हुमलो करवो (४) दोडी जq; सरकी जq (५) वहेवू -प्रेरक० धीमेथी हाथ फेरववो (वीणा इ० वगाडवा माटे) (२) धकेली काढवू; दूर सरकावq सृकाल पुं० शियाळ Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सक्क सृक्क न०, सुक्कणी, सक्किणी स्त्री० सृक्किन् न० ओठनो खूणो सृगाल पुं० शियाळ सृज् ६ ५० उत्पन्न करवू; सर्जq (२) संतानोत्पत्ति करवी (३) मूकवू; लगाडवू (४) बहार फेंकवृं; रेलवू (५) उच्चार; -मोमांथी काढवू (६) तजवू; छोडी देवू(७) लटकवू; वळगq (८)४ आ० छोडवू; मोकलq सृणि (-णी) स्त्री० अंकुश (हाथीनो) सत न० पलायन; नासी जवं ते । सृति स्त्री० जq ते; सरकवू ते (२) रस्तो; मार्ग (३) वर्तन (४) जन्म जन्मांतरमा रखडवं ते (५) सृष्टि सृप १ प० सरकवू; धीमेथी खस (२) फेला [जातनुं हरण समर वि० जq ते; गमन (२)पुं० एक सृष्ट ('सृज्' नुं भू०कृ०) वि० सर्जायेखें; उत्पन्न थयेलं (२) काढेलु; फेंकेलं (३) छुटुं मूकेलं; तजेलं (४) दूर करेलु; विदाय करेलु सृष्टि स्त्री० सरजेलं ते; सर्जन (२) जगतनी उत्पत्ति - रचना (३) प्रकृति; सहजधर्म (४) छोडवू ते (५) आपी देवु ते (६) संतान [हार संका स्त्री० मार्ग; रस्तो (२) माळा; सेक पुं० छांटq ते ; पाणी पावं ते(वृक्षने) (२)वीर्य सींचq ते सेगव पुं० करचलीतुं बच्चुं सेचन न० जुओ 'सेक' सेचनघट पुं० पाणी पावानो घडो । सेतु पुं० बंध; माटीनो आडो बांध (२) पुल (३) सीमाचिह्न (४) पर्वतनो सांकडो घाट (५) सीमा; हद (६) रुकावट; विघ्न (७) मर्यादा स्थापनार नियम (८) प्रणव; ॐ सेतुबंध पुं० बंध के पुल बांधवो ते (२) लंका जवा रामे बंधावेलो पुल (अत्यारे टेकरीओ रूपे देखाडाय छे) (३) पुल सेवित सेदिवस् वि० बेसतुं; बेठेलु सेना स्त्री० सैन्य; लश्कर (२) नानी टुकडी (३ हाथी, ३ रथ, ९ घोडा अने १५ पायदळनी) सेनानिवेश पुं० लश्करनो पडाव;छावणी सेनानी, सेनापति पुं० सेनापति (२) कार्तिकेय (देवसेनाना सेनापति) सेनापरिच्छद् वि० सैन्यथी वीटळायलं सेनामुख न० त्रण हाथी, त्रण रथ, नव घोडा अने पंदर पगपाळाओनो बनेलो सैन्यनो विभाग सेनांग न० सेनानो घटक भाग (हाथी अश्व-रथ-पदाति ए चारमांनो दरेक) सेय॑ वि० ईर्षायुक्त; अदेखें सेव् १ आ० सेवा करवी (२)पूजवू; मान आपq (३) अनुसरवू; पाछळ ज, (४) भोगवq; माणवू (५) संभोग करवो (६) आचर; निष्ठापूर्वक अमल करवो (७) वारंवार जवू ; आशरो लेवो सेवक वि० सेवा करनारं; पूजा करनारं (२) अमल करतुं; अनुसरतुं (३) पुं० दास; अनुचर (४) पूजक ; भक्त सेवन न०, सेवना स्त्री० चाकरी; सेवा (२) पूजा; उपासना (३) आचरवं ते (४) उपभोग (५) संभोग (६) वारंवार जq ते सेवा स्त्री० चाकरी; नोकरी; दासत्व (२) भक्ति; पूजा (३) उपयोग; उपभोग (४) खुशामत सेवाकाकु स्त्री० नोकरी करती वखते अवाज बदलवो ते ( धीमो करवो ते) सेवाकार वि० सेवारूप-सेवाना आकारनुं सेवाधर्म पुं० नोकर- कर्तव्य | सेवित ('सेव् ' नुं भू० कृ०)वि० सेवाचाकरी करायेलं (२) अनुसरायेल; आचरायेलु (३) वारंवार जवायेलं; रहेवायेलं Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेवित ५६७ सोपग्रहम् सेवित पुं० सेवक; नोकर सिंधु नदी संबंधी (३) नदीमा जन्मेलु सेविन वि० सेवा करनारु (२) अनु- (४)समुद्रy (५) पुं० सिंधु देशनो सरनारु (३) उपयोग करतुं (४) घोडो (६) जयद्रथ (सिंधनो राजा) वसतुं; रहेतुं (५) संभोग करतुं(६) (७) पुं०, न० सिंधालूण -मां आसक्त; -मां रुचिवाळं संह वि० सिंहन; सिंहने लगतुं सेव्य वि० सेवा-चाकरी-पूजा करवा सैहिक, सैहिकेय पुं० राहु । योग्य (२) वापरवा लायक (३) सो ४५० [स्यति कापी नाखवू; मारी भोगववा योग्य (४) वसवा योग्य नाखवू (२) पूरु करवू; अंत आणवो (५) पुं० स्वामी; मालिक सोच्छ्वास वि० राजी; खुशी सेव्यसेवको पुं० द्वि० व० स्वामी अने सोढ ('सह' नुं भू० कृ०) वि० सहन सेवक [ईश्वरमां मानतुं शक्तिमान सेश्वर वि० ईश्वरने स्वीकारतुं; सोढ़ वि० सहन करनारु (२) समर्थ; सेक वि० एक वधु होय तेवू सोत्क, सोत्कंठ वि० उत्सुक; आतुर सैकत वि० रेतीचें; रेताळ (२) रेताळ . (२) खिन्न (३) शोक करतुं जमीनवाळू (३) न० रेतीवाळो सोत्कंठम् अ० उत्कंठापूर्वक; आतुरताकिनारो (४) रेताळ किनारावाळो थी (२) खिन्नपणे टापु (५) किनारो(६) रेतीनो ढगलो सोत्प्रास वि० अतिशय (२) पुं० सैकतिन् वि० रेती भरेलु; रेताळ अट्टहास्य (३) पुं०, न० कटाक्षयुक्त सैत्य न० घोळापणुं; धोळाश । अतिशयोक्ति सैनान्य, सैनापत्य न० सेनापतिपणुं; सोत्प्रासहासिन् वि० कटाक्षथी हसतुं सेनापति पद सोत्प्रेक्षम् अ० बेदरकारीथी सैनिक वि० सेनाने लगतुं (२) पुं० सोत्साह वि० उत्साहवाळु; खंतील योद्धो; लडवैयो (३) पहेरेगीर; सोत्साहम् अ० उत्साहपूर्वक'; खंतथी चोकीदार (४) व्यूहरचनामां गोठ- सोत्सुक वि० खिन्न; दिलगीर; चितावायेलुं लश्कर तुर (२) उत्सुक; इंतेजार सैन्य पुं० योद्धो (२) पहेरेगीर; चोकी सोलेक वि० उद्धत दार (३) न० लश्कर (४) छावणी सोत्सेध वि० उन्नत; ऊंचुं सैरंध्र पुं० चाकर (२)एक मिश्र जातिनो सोदर वि० सहोदर एवं; एक ज माने माणस (दस्यु अने अयोगव स्त्रीनो) पेटे जन्मेलुं (२) पुं० सहोदर भाई सैरंध्री स्त्री० अंतःपुरनी दासी (२) सोवरा स्त्री० सहोदर बहेन परघेर काम करनारी स्वतंत्र स्त्री सोवरीय वि० सरखं (२) पुं० सगो(३) द्रौपदी (ज्यारे विराट राजानी भाईं; सहोदर सहोदर भाई राणीनी दासी हती त्यारे) सोदर्य वि० जुओ 'सोदर' (२) पुं० सरिभ पं० पाडो सोपर्यस्नेह पुं० सहोदर जेवो प्रेम सैरिध्र पुं० जुओ 'सैरंध्र' सोद्योग वि० उद्यमी; खंतील सैरिंध्री स्त्री० जुओ 'सैरंध्री' सोद्वेग वि० उद्वेग के बीकवाळं संदूर वि० सिंदूरथी रंगेलं सोपग्रहम् अ० मित्रताभरी रीते; शांत संघव वि. सिंधु देशमा जन्मेलं (२) पाडवानी रीते Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोपचय सोपचय वि० नफाकारक सोपचार वि० विनयी सोपद्रव वि० आपत्ति के आफतोथी भरेलुं सोपध वि० कपटी सोपधान वि० (उत्तम) गुणो युक्त ( २ ) ओशिकावाळु छतरीने सोपधि वि० कपटी (२) अ० कपटथी; सोपपत्तिक वि० प्रमाण- पुरावावाळं सोपप्लव वि० आफतथी घेरायेलुं (२) शत्रुओथी आक्रांत ( ३ ) ग्रस्त; ग्रहण aj होय ते ( सूर्य के चंद्र ) सोपरोध वि० डखल करायेलुं कृपा करायेलुं (३) कृपावंत सोपरोधम् अ० महेरबानीथी सोपसर्ग वि० विघ्नोथी पीडित ( २ ) भूत वगेरेना आवेशयुक्त (२) सोपस्नेहता स्त्री० भेज; भीनाश सोपहासम् अ० मश्करीमां; मजाकमां सोपान न० दादर ; सीडी ( २ ) पगथियुं सोपानपंक्ति, सोपान पद्धति, सोपानपरंपरा स्त्री०, सोपानमार्ग पुं० पगथियांनी पंक्ति ; सीडी सोम पुं० सोमवल्ली (जेनो सोमरस यज्ञमां वपराय छे) (२) सोमरस (३) अमृत ( ४ ) चंद्र ( ५ ) ( समासने अंते) मुख्य; उत्तम ( ' नृसोम' ) (६) इडानाडी [पितामह सोमक पुं० पांचाल देशनो राजा; द्रुपदनो सोमकांत पुं० चंद्रकांत मणि सोमक्षय पुं० अमावास्यानो दिवस (ज्यारे चंद्र अदृश्य होय छे ) सोमदेवत न० मृगशीर्ष नक्षत्र सोमनाथ पुं० शिवनुं प्रसिद्ध लिंग ( प्रभासनं ) [सोमयाग करनारो सोमप, सोमपा पुं० सोमरस पीनारो (२) सोमपीय, सोमपीथिन् पुं० सोमरस पीनारो [ पोयणुं सोमबंधु पुं० सूर्य ( २ ) सफेद कमळ ; सौति सोमलतिका स्त्री० गळो ( २ ) सोमलता सोमवंश पुं० चंद्रवंश ( राजाओनो ) सोमवृक्ष पुं० जुओ 'सोमसार' सोमसद् पुं० एक प्रकारना पितृओ सोमसार पुं० सफेद खेर सोमसिद्धांत पुं० कापालिकोनो सिद्धांत सोमसुत पुं० वुधग्रह [ निचोवनाएं सोमसुत्वत् वि० रस माटे सोमवल्लीने सोमोद्भवा स्त्री० नर्मदा नदी सोर्ण वि० भमरो वच्चे वाळना कुंडाळावाळं [ मरकरी सोल्लुंठ पु०, सोल्लुंठन न० कटाक्ष; सोल्लुंठनम्, सोल्लुंठम् अ० कटाक्षमां; मजाकमा ठट्ठो करीने सोष्मन् वि० गरम; ऊं सौकर वि० सूकर - डुक्करने लग सौकर्य न० सहेलापणुं ; सरळता (२) अमल करी शकाय तेवुं होवुं ते (३) चतुराई [ जुवान वय होवी ते सौकुमार्य न० नाजुकपणं; कोमळता (२) सौखप्रसुप्तिक पुं० 'ठीक ऊंध्या ?" एवं पूछनारो (२) राजाने स्तुति, संगीत इ० थी जगाडनारो चारण सौखशायनिक पुं० 'ठीक ऊंघ्या ? ' एवी ५६८ खबर पूंछनारो सौखसुप्तिक पुं० जुओ 'सौखप्रसुप्तिक' सौख्य न० सुख; आनंद सौख्यशायनिक, सौख्यशायिक पुं० जुओ 'सौखशायनिक' [ अनुयायी सौगत पुं० बौद्धधर्मी; 'सुगत' - बुद्धनो सौगंधिक वि० खुशबोदार; सुवासवाळं (२) पुं० अत्तर वेचनारो (३) न० सफेद कमळ ( ४ ) नील कमळ सौगंध्य न० सुगंध; सुवास सौचि, सौचिक पुं० दरजी सौजन्य न० सज्जनता; भलाई ( २ ) उदारता (३) मायाळुता सौति पुं० कर्ण (२) एक प्रसिद्ध ऋषि ( पुराणी) Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौत्य सौत्य न० सारथीपणुं सौत्रामणी स्त्री० पूर्व दिशा (२) एक यज्ञ (जेमां दारू वपराय छे ) सौदर्य न० भ्रातृभाव सौदामनी, सौदामिनी, सौदामनी स्त्री० वीजळी (२) एक जातनी सर्पाकार वीजळी ( ३ ) इंद्रना हाथीनी मादा सौष वि० अमृत संबंधी ( २ ) चूनो लगावेलं; धोळेलं (३) न० धोळेलं मकान ; छोये मोटुं मकान; महेल (४) रूपं सौधकार पुं० घोळनारो (२) कडियो सौषोत्संग पुं० महेलनी अगासी सौन पुं० कसाई; खाटकी सौनंद न० बळरामनुं मुशळ सौनंदिन् पुं० बळराम सौनिक पुं० खाटकी; कसाई सौपर्ण वि० गरुडने लगतुं; गरुडनुं सौपाक पुं० एक मिश्र जाति ( चंडाळथी थती अने चंडाळ समान धंधो करती ) सौप्तिक न० ऊंघ (२) रात्रिनो - राते करेलो हुमलो; ऊंघता माणसो उपर कलो हुमलो [ ( युद्धमां) सौप्तिकवध पुं० सूतेला माणसनो संहार सौबल पुं० शकुनि [धृतराष्ट्रनी पत्नी सौबली, सौबलेयी स्त्री० गांधारी; सौभ न० हरिश्चंद्रनुं शहेर (आकाशमां गमन करतुं ) (२) शाल्वोनुं शहेर सौभद्र, सौभद्रेय पुं० अभिमन्यु सौभागिनेय पुं० मानीती स्त्रीनो पुत्र सौभाग्य न० सद्भाग्य; भाग्यशाळीपणुं (खास करीने स्त्री - पुरुषने एक बीजा प्रत्येनो प्रेम अने वफादारी होवां ते) (२) मांगळिकता; कल्याणकारी होवापणं (३) सौंदर्य; भव्यता (४) सघवापणुं (५) अभिनंदन; शुभेच्छा दर्शाववी ते सौभाग्यवती स्त्री० सधवा स्त्री [ नारुं सौभाग्यविलोपिन् वि० सौंदर्यने बगाड सौभिक्ष न० सुकाळ ५६९ ( सौष्ठव सौभ्रात्र न० बंधुप्रेम; भ्रातृभाव सौमकि पुं० द्रुपद राजा [ पुत्र) सौमदत्ति पुं० भूरिश्रवा ( सोमदत्तनो सौमनस वि० मनने प्रसन्न करे तेवुं ( २ ) फूल संबंधी (३) न० खुशी; संतोष (४) भलाई सौमनस्य न० खुशी; प्रसन्नता ( २ ) फूल सौमित्र, सौमित्रि पुं० लक्ष्मण (सुमित्रा - नो पुत्र ) सौमुख्य न० प्रसन्नता; मधुर देखाव सौमेरव, सौमेरुक न० सोनुं सौम्य वि० चंद्रने लगतुं ( २ ) सोमरसना गुणधर्मवाळं (३) सुंदर; मोहक (४) कोमळ; मृदु ( ५ ) शुभ; मांगलिक ६) पुं० बुधगृह [पुं० सूर्यपूजक सौर वि० सूर्यने लगतुं; सूर्य संबंधी (२) सौरभ वि० सुगंधीदार (२) न० सुगंधी सौरभेय वि० सुगंधीदार सौरभेयी स्त्री० सुरभि गायनी पुत्री सौरम्य न० सुगंधी सौरसेंधव वि० गंगानदीनं [ कारभार सौराज्य न० सारं राज्य; सारो राज्यसौरि पुं० शनिनो ग्रह सौर्य वि० सूर्य संबंधी [होवापणं सौलक्षण्य न० शुभ लक्षणो-चिह्नोवाळा सौवर्ण वि० सोनानुं (२) न० सोनुं सौवर्णहर्म्य न० रूपानो महेल [ सोनी सौर्वाणिक वि० सोनानुं बनेलुं ( २ ) पुं० सौविद, सौविदल्ल पुं० अंतःपुरनो रक्षक सौवीर पुं० ते नामनो एक देश सौवीरक पुं० सुवीर देशनो वतनी (२) जयद्रथ सौवीरांजन न० काळो सुरमो सौवेल वि० त्रिकूट पर्वत संबंधी सौशाम्य न० समाधान; सुलेह सौशील्य न० सुशीलपणुं सौष्ठव न० उत्तमपणु; घाटीलापणं; सौंदर्य (२) कुशळता; प्रवीणता (३) वधारे होवापणुं (४) चपळता Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७० सोस्थ्यन सौस्थ्येन अ० सुखेथी; खुशीथी सौस्नातिक पुं० स्नानादि ठीक थयु ने?' एम पूछनारो प्रेमभाव सौहार्द पुं० मित्रनो पुत्र (२)न० मैत्री; सौहार्य न. मैत्री; प्रेमभाव सौहित्य न० तृप्ति; पूरतुं होवानो संतोष (२) पूर्णता; समाप्ति (३) मित्रता; मायालुता ['सौहार्ड' सौहृद, सौहृदय, सौहृद्य व० जुओ सौंदर्य न० सुंदरता स्कन्ध ('स्कंभ'नुभू० कृ०) वि. आधार आपेलं; टेको आपेलं (२) रोकेलं; अटकावेलु स्कंद १५० कूद (२) ऊंचे कूदqचडवु (३) नीचे पडq (४)नाश पामवू -प्रेरक० रेडवू; ढोळq (२)बाकात राखवू; उपेक्षा करवी स्कंद पुं० कूदq ते (२) कार्तिकेय (३) नदीनो किनारो स्कंदपुत्र पुं० घरफाडु; चोर स्कंध पुं० खभो (२) शरीर (३) थड (४) मोटी डाळी (५) ज्ञाननी शाखा (६) प्रकरण (७) सैन्यनो विभाग (८) समूह; टूकडी स्कंधचाप पुं० कावड स्कंधदेश पुं० खभो (२) हाथी उपर ज्यां महावत बेसे छे ते भाग (३) झाडनुं थड़ [बळद स्कंधवाह पुं० भार वहन करवा केळवेलो स्कंधावार पुं० सैन्य; टुकडी (२) राज धानी; राजमहेल (३) छावणी स्कंभ १ आ०, ५,९५० रोकवू; निग्रह करवो (२) टेको आपको स्कंभ पुं० आधार; टेको स्कु ५,९ उ० कूदq; ठेकडो भरवो(२) ऊंचक, (३) छाई देवू; ढांकी देवू स्कुंभ ५, ९ प० रोकवू; अटकावq स्खल १ प. ठोकर खावी; लपस, स्तनितसुभगम् (२) लथडियुं खावू; आमतेम डोलवू (३) भंग करवो (आज्ञानो) (४) स्खलन पाम; भ्रष्ट थर्बु (५) भूल करवी (६)तोतडावं (७)निष्फळ जवू; असर न करवी (८) झमवू; झरवू स्खलन न० ठोकर खावी ते; लपसq ते; गबडते (२) लथडियुं खावं ते (३) भ्रष्ट थर्बु ते (सन्मार्गेथी) (४) भूल; चूक (५) निष्फळता (६) तोतडावं ते (७) झम - झर, ते (८) अथडावं ते; भटकवू ते (९) वीर्य स्खलित थq ते स्खलित( स्खल' न भू० कृ०)वि० ठोकर खाधेलं; लथडेलु (२)गबडी पडेलु (३) अस्थिर; कंपतुं; डोलतुं (४)तोतडातुं (५)भूल करतुं (६)न० भूल (७) लथडियु (८)दोष; पाप स्खलितसुभगम् अ० मनोहर रीते ऊछ ळतुं के अफळातुं वहे तेम स्तन् १५०,१० उ० अवाज करवो; रणकार करवो (२) निसासो नाखवो (३) मोटेथी गर्जदूं स्तन पुं० थान; धाई (२) स्तननी दींटी (३) आउ; अडण (पशुनी मादा) स्तनकुड्मल न० (कळी जेवो) स्तन स्तनपान पुं० धावq ते स्तनभर पुं० स्तननो भार स्तनयित्नु पुं० गर्जना; मेघगर्जना (२) वादळ (३) वीजळी स्तनवेपथु पुं० स्तन- ऊछळवं ते स्तनंषय वि० धावतुं; धावणुं (२) पुं० धावणुं बाळक स्तनांतर न हृदय (२) बेस्तन वच्चेनी स्तनित वि० अवाज करतुं; ध्वनियुक्त (२) गर्जना करतुं (३)न० मेघगर्जना; ___ कडाको (४) धनुष्यनी पणछनोटंकारव स्तनितसुभगम् अ० घेरो रव करतुं होवाथी मधुर लागतुं होय तेम [जगा Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तन्य ५७१ स्तन्य न० माता, दूध; दूध करवो ते (५)टेको (६) थांभलो (७) स्तन्यत्याग पुं० दूध धावता बंध थर्बु ते जडता; मूर्खता स्तबक पुं० झूमखो; गुच्छो (फूलनो) स्तंभकरण न० अवरोधD कारण (२) मोरनुं पीछु (३) पुस्तकनो स्तंभन न० रुकावट; प्रतिबंध ; निग्रह अध्याय के विभाग (२)अकडाई जq-जूढुं पडी जq ते स्तब्ध (स्तंभ' नुं भू० कृ०) वि० (३)शांत-स्थिर करते (४)दृढ करवू अटकावेलुं; रुकावट करेलु (२) ते (५) टेकवद् ते अक्कड; स्थिर (३) गति के हलन- स्तंभित वि० रोकायेलं; विघ्न करायेलं चलन विनानुं (४)हठील; जक्की (५) (२) जड बनावायेलं; जूळू पडायेलं कठोर (६) निष्क्रिय (३)शांत-स्वस्थ करायेलं स्तब्धरोमन् पुं० डुक्कर; वराह स्तंभितबाष्पवृत्ति वि. आंसु आवतां स्तब्धलोचन वि० अनिमेप आंखवाळं रोक्यां होय तेवू (जेम के देव) स्ताव पुं० स्तुति; वखाण स्तभ १ आ० [स्तंभते जुओ 'स्तंभ' स्तांबरम वि० हाथीनुं स्तर वि० फेलातुं; बिछातुं; ढांकतुं स्तिम् ४ ५० भींजावं (२) स्थिर थई (२)पुं० थर; पड (३) पथारी जवं; हलनचलन विनाना थई जर्बु स्तव पुं० वखाण; स्तुति स्तिमित वि० भीनु; भेजवाळू (२)शांत; स्तवक वि० प्रशंसा-स्तुति करनारु (२) खळभळाट वगरनुं (३) स्थिर; गति पुं० भाट ; चारण (३)प्रशंसा ; स्तुति विनानुं (४)बंध; वासेलु (५) जड(४)स्तबक ; गुच्छो (५)ग्रंथ- प्रकरण अक्कड थई गयेलुं के करायेलं के खंड (६) समुदाय स्तीम् ४ प० जुओ ‘स्तिम्' स्तवन न० स्तुति ; प्रशंसा स्तु २ उ० वखाणq(२) स्तुति करवी; स्तंब पुं० भारी (घास इ० नी) (२) सूक्तथी पूजा करवी पूळो (कडब इ०नो) (३)झाडq (४) स्तुत ('स्तु' नुं भू० कृ०) वि० वखाकटण थड न होय तेवो छोड के झाडQ णेलं; स्तुति करेलु (५) हाथी बंधाय छे ते थांभलो। स्तुति स्त्री० वखाण; प्रशंसा (२)स्तोत्र स्तंबकरिता स्त्री० खूब थवं - नीपजवं ते __ सूक्त (३) खुशामत ; खोटी प्रशंसा (पूळा के भारीओ बांधवी पडे तेटलं) स्तुतिपाठक पुं० वखाण करनारो; स्तंबपुर न० एक शहेर (ताम्रलिप्त) स्तुति गानारो; भाट; चारण स्तंबरम पुं० हाथी स्तुत्य वि० वखाणवा लायक ; स्तुतिपात्र स्तंभ १ आ०,५,९५० रोकवू; दबा- स्तुप पुं० ढगलो; टेकरो (२) बुद्धना व, (२) अक्कड करी देवं; जुठं पाडी अवशेषो उपर करेलं धूमट जेवू बांधदेवं (३) टेको आपवो (४) अक्कड थई काम (३)चिता (४)बळ; सामर्थ्य । जवू (५)गर्विष्ठ-उद्धत थर्बु (६)व्या- स्तु ५ उ० पाथरवू (२)विस्तारवु (३) पq; पथरावं वीखरा, (४)पहेरवू; ढांक स्तंभ पुं० अक्कडपणुं; स्थिरता (२) स्तृह ६ प० मार; ईजा करवी जडता; जूठा पडी जq ते (३) रुकावट; स्तु ९ उ० जुओ 'स्तृ' डखल (४) दबावg-कचर-निग्रह स्तूह ६ प० जुओ ‘स्तृह' Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तेन ५७२ स्थलकमलिनी स्तेन पुं० चोर (२)न० चोरी करवी ते स्त्रीयंत्र न० स्त्री रूपी यंत्र स्तेय न० चोरी; लूट (२) चोरायेली स्त्रीरत्न न० श्रेष्ठ स्त्री(२)लक्ष्मी वस्तु(३)गुप्त वात; खानगी वात । स्त्रीलिंग न० नारी जाति (व्या०) (२) स्तै १५० पहेरवू; शणगारवू स्त्रीपणानें कोई पण चिह्न (स्तन इ०) स्तमित्य न० (अंगोनी) जडता; अक- (३) स्त्री, गुह्यांग - योनि __ डाई जवुते; जूठा पडी जवुते स्त्रीविधेय पुं० स्त्रीना उपर सत्ता स्तोक वि० थोडं; अल्प (२)ट्रंकु (३) चलावतो होय तेवो पुरुष तुच्छ; हलकुं(४)पुं० टी'; बहु थोडं ते स्त्रीसंग पुं० स्त्रीमा आसक्ति (२)मैथुन स्तोकक पुं० चातक [वळेलं स्त्रीसंस्थान वि० स्त्रीनी आकृतिवाळं; स्तोकनम्र वि० थोडंक नमेलं; जरा स्त्रीना स्वरूपवाळू स्तोकम् अ० थोडं- अल्प होय तेम स्त्रीसेवा स्त्री० स्त्रीमां आसक्ति स्तोतव्य वि० वखाणवा लायक; स्तुति स्त्रैण वि० स्त्री संबंधी; स्त्रीनें; स्त्रीने __ करवा लायक लगतुं (२)स्त्रीने उचित (३) स्त्रीमा स्तोत् पुं० वखाण करनारो; स्तुति आसक्त एवं (४) न० स्त्रीपणुं (५) करनारो(२)चारण; बंदीजन स्त्री जाति (६)स्त्रीओनो समुदाय । स्तोत्र न० वखाण (२) स्तुतिनुं सूक्त स्थ वि० (समासने अंते) रहेतुं; होतुं स्तोभ पुं० प्रतिबंध; अवरोध (२) (जेमके, 'तटस्थ') (२)स्थावर __थोभq ते (३)अनादर (४)सूक्त स्तोत्र स्थग् १५० ढांकवृं; छुपावq (२) स्तोम पुं० स्तुति; स्तोत्र (२)यज्ञ ; होम (३)सोमनोहोम (४)समूह; समुदाय व्यापवू; ढांक; भरी काढवू (५)ढगलो; जथो स्थगर पुं० 'पुत्रजीवक' नामनो छोड स्त्यान वि० ढगलो करेलु; एकळु करेलु स्थगिका स्त्री० वेश्या; गणिका (२) (२) स्थूल ; भारे; जाडु (३) लीसुं; तांबुलवाहकनुं पद (३) पाननो डबो चीकj(४)न. कद के जथामां वधवं स्थगित वि० ढांकेलं; छुपावेलु (२)बंध ते; भारे-जाडु एवं ते (५)आळस; करेल; वासेलु (३)रोकेलं; अटकावेलु सुस्ती (६) पडघो; अवाज स्थगु पुं० खूध स्त्यै १ उ० एकळुथq; ढगलो थवो (२) स्थपति वि० मुख्य (२)पुं० अधिपति; पथरावू; फेला राजा (३) शिल्पी (४) सुतार (५) स्त्री स्त्री० नारी (२) कोई पण प्राणीनी सारथि (६) अंतःपुरनो रक्षक मादा (३)पत्नी(४)नारी जाति(व्या०) स्थपत्य पुं० अंतःपुरनो कंचुकी स्त्रीजित पुं० स्त्रीनो ताबेदार- तेना स्थपुट वि० आपद्ग्रस्त (२)ऊंचुंनीचुं; हुकम प्रमाणे वर्तनारो पति विषम [सांकडा भागमां आवेलु स्त्रीमिणी स्त्री० रजस्वला स्थपुटगत वि० विषम भागमां आवेलं; स्त्रीपर वि० कामुक; व्यभिचारी स्थल न० सूकी जमीन (२) किनारो स्त्रीपुंसौ पुं० द्वि०व० पति अने पत्नी (३)जमीन (४) स्थळ; स्थान (५) (२)नर अने मादा ऊंची जमीन; टेकरो (६) विवाद के स्त्रीपूर्व पुं० जुओ 'स्त्रीजित' चर्चानो विषय के प्रसंग (७)पुस्तकनो स्त्रीबुद्धि स्त्री० स्त्रीनी बुद्धि के सलाह भाग(८)तंबू (२) स्त्रीनी सलाह स्थलकमल न०, स्थलकमलिनी स्त्री० Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थाने स्थलचर ५७३ जमीन उपर ऊगतुं कमळ (दिवसना मददमां-पडखे ऊभा रहे (१३) प्रकाशमां ऊघडे छे) आचरवू; अमल करवो (१४) १ आ० स्थलचर वि० भूमि उपर चालनारं -नी सलाह मानवी (१५) जात स्थलपा न० जुओ 'स्थलकमल' । समर्पवी (संभोग माटे) स्थलवम॑न् न० जमीनता मार्ग (जळ -प्रेरक परणांववं (२) दीक्षा मार्गथी ऊलटुं) [लडाई आपवी; उपदेश आपवो (३)टकी रहे स्थलविग्रह पु० सरखी जमीन उपरनी तेम करवू स्थलस्थ वि० सूकी जमीन उपर ऊभेलु स्थाणु वि० निश्चल; स्थिर; स्थावर स्थली स्त्री० सूकी जमीन; कठण जमीन (२) पुं० शंकर (३) थांभलो (४) (२) जमीननो कुदरती भाग (जेम के खींटी (५)थूणकुं; ठूछं; थडियुं वननो) (३) जुओ ‘स्थलीदेवता' । स्थाणभत वि० स्थिर बनेलं; गतिहीन स्थलीदेवता स्त्री० ते स्थळनी अधिष्ठाता बनेलु (झाडना थूणका पेठे) देवता [सूनारं स्थातृ वि० ऊभुं रहेढुं; चालतुं नहि तेवू स्थलीशायिन् वि० खुल्ली जमीन उपर स्थान न० ऊभा रहेवू ते; चालु रहे स्थलेशय वि० सूकी जमीन उपर सूनाएं ते; वसवं ते (२)चालवू-खस, नहि स्थविर वि० निश्चल ; स्थिर (२)वृद्ध; ते (३) स्थिति; दशा (४)स्थळ (५) प्राचीन (३)पुं० वृद्ध पुरुष ; डोसो (४) पद; होदो (६) मोभो; दरज्जो (७) भिखारी [भव्यता-गंभीरतावाळू रहेठाण; घर (८) प्रवेश (९) शहेर स्थविराति वि० वद्ध के वडीलनी (१०) विषय; हेतु (११) प्रसंग; स्थविरा स्त्री० डोसी कारण (१२) योग्य स्थळ (१३)वर्णोस्थविष्ठ वि० अत्यंत स्थूल'; मोटुं च्चारनुंस्थान (उर, कंठ, शिर, जिह्वा('स्थूल'नु श्रेष्ठतादर्शक रूप) मूल, दांत, नासिका, होठ, तालु - ए स्थवीयस् वि० वधारे स्थूल (स्थूल ' नुं आठ) (१४) तीर्थस्थान (१५) स्थिर तुलनात्मक रूप) दशा; वचली दशा (१६) आश्रम स्थंडिल न० जमीननो टकडो (यज्ञ माटे (जीवननो) (१७) भूमि (१८) पोषण सरखो करेलो); यज माटेनी भूमि स्थानक न० स्थिति; प्रसंग; विशिष्ट (२) उज्जड खेतर (३) ढेफांनो प्रसंग(२)शहेर (३)पद; होद्दो ढगलो(४) हद; सरहद (५) स्थळ ; स्थानकुटिकासन न० गृहत्याग जगा (जेम के, घर आगळनी) स्थानचिंतक पुं० सिपाईओना मुकाम स्थंडिलेशय पुं० यज्ञनी भूमि उपर अने खावापीवा वगेरेनो बंदोबस्त खुल्लामां सूनार तपस्वी राखनारो अमलदार स्था १५० तिष्ठति ऊभुं रहेवू (२) स्थानभ्रष्ट वि० नोकरी के होदामांथी रहेवू; वसवू (३) बाकी रहेवू (४) बरतरफ करेलु (२) उचित स्थानमांथी राह जोवी (५)अटक; थोभवं (६) खसेडायलं बाजुए रहे; मनमा राखq (७)होवू स्थानिक वि० ते स्थानने लगतुं (८) अनुसरवू; आज्ञामा रहेQ (९) स्थानिवद्भाव पुं० मुळ स्वरूप जेवी रोकावू; निग्रह थवो (१०) जीववं स्थिति (११) आधार राखवो (१२) स्थाने अ० उचित होय तेम ; योग्य रीते Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थापक (२) - ने बदले (३) ने कारणे (४) -नी जेम [ नारुं ; नियममां राखतुं स्थापक वि० स्थापनाएं ; स्थापित करस्थापत्य पुं० अंतःपुरनो रक्षक ( २ ) न० मकान बांधवां ते; शिल्प स्थापन न० स्थापवुं ते; स्थिर करवुं ते; ऊभुं कर [ संचालन करते स्थापना स्त्री० स्थापवुं ते (२) गोठववुं ते; स्थापित वि० स्थिर करेलुं; मूकेलुं (२) ऊभुं करेलुं; पायो नाखेलुं ( ३ ) चालु करेलुं; नियत करेलुं (४) नीमेलु (५) परणावेलुं स्थाप्य वि० मूकवानुं; सोपवानुं ( २ ) स्थापना करवानुं ( ३ ) नियुक्त करवानुं (४) बंध करवानुं ; पूरवानुं ( ५ ) पुं० देवनी मूर्ति ( ६ ) न० थापण [ हणहणाट स्थामन् न० बळ; पराक्रम (२) घोडानो स्थायिन् वि० रहेतुं; वसेलु; ऊभेलु ( समासने अंते ) ( २ ) कायम रहेनाएं; टकाउ ( ३ ) निवास करतु; रहेतुं (४) पुं० जुओ 'स्थायिभाव स्थायिभाव पुं० चित्तनी स्थिर - कायमी लागणी (आठ छे : रति, हास, शोक, क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा, विस्मय) स्थायीभू ११० स्थिर थवु; कायमी थ स्थायुक वि० टकी रहे तेवुं; कायमी (२) स्थिर; स्थावर (३) रहेलुं; वसेलुं स्थाल न० थाळी; रकाबी (२) रांधवानुं वासण; तपेली [ कडाई स्थाली स्त्री० रांधवानुं वासण ; तपेली; स्थालीपुलाक पुं० तपेलीमांनो भात स्थावर वि० एक जगाए स्थिर रहेनारुं ; खसे नहीं तेवुं ( ' जंगम ' थी ऊलटुं ) (२) जड, निष्क्रिय; धीमं ( ३ ) स्थापित येलु (४) पुं० पर्वत (५) न० कोई पण जड वस्तु (६) स्थूल शरीर, भौतिक शरीर स्थावरजंगम न० खसे तेवी अने न खसे तेवी मिलकत ( २ ) सजीव अने निर्जीव वस्तुओ ५७४ स्थिर स्थावरात्मन् वि० स्थावर स्वरूपवाळु स्थाविर न० वृद्धावस्था स्थासक पुं० सुगंधी पदार्थथी शरीरने लेप करवो ते ( २ ) पाणी के प्रवाहीनो परपोटो [ स्वभाववाळु (२) कायमी स्थास्नु वि० स्थिर - निश्चळ रहे तेवा स्थित ('स्था' नुं भू० कृ० ) वि० ऊभेलुं; रहेलुं (२) ऊभुं रहेतुं (३) ऊभुं थयेलुं (४) होतुं; रहेतुं (५) थयेलु; बनेलु ( ६ ) स्थाने नियुक्त थयेलं (७) अनुसरतुं ; अनुकूल रहेतुं (८) स्थिर थयेल; आसक्त ( ९ ) दृढ, स्थिर (१०) निश्चयवाळं ( ११ ) प्रमाणिक; नीतिमान (१२) न० ऊभा रहेवानी रीत; ( १३ ) योग्य मार्गे उद्यम स्थिती, स्थितप्रज्ञ वि० स्थिर बुद्धिवाळं स्थितसंकेत, स्थितसंविद् वि० करार के वचननुं पालन करनारुं स्थिति स्त्री० रहेवुं - ऊभा रहेवुं - वसवं ते ( २ ) एक स्थितिमां स्थिर रहेवुं ते (३) दृढ - कायन रहेवुं ते ( ४ ) दशा; अवस्था ( ५ ) स्वभाव; प्रकृति (६) हंमेश चालु रहेवुं ते ( ७ ) नीति - मर्यादानुं पालन; सद्वर्तनना मार्गने अनुसरवुं ते ( ८ ) शासन; शिस्त ( ९ ) पद, मोभो (१०) पोषण; निर्वाह ( ११ ) मर्यादा; नियम (१२) विचार; गणना स्थितिज्ञ वि० नीतिमर्यादा जाणनारुं स्थितिपद न० योग्य मार्ग स्थितिभिद् वि० नीतिमर्यादानुं उल्लंधन करनाएं स्थितिमत् वि० दृढ; स्थिर ( २ ) कायमी (३) मर्यादामा रहेतुं (४) नीति - मर्यादाने पाळतु [ मार्ग स्थितिमार्ग पुं० (मनने) स्थिर करवानो स्थितिस्थापक वि० पूर्व स्थितिमां पाछु आवी शके ते स्थिर वि० टकी रहे तेवुं; कायमी (२) Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थिरकार्य ५७५ स्निग्ध अचळ; स्थावर; खसे नहीं तेवं (३) स्थेष्ठ वि० खूब मक्कम ('स्थिर'नुं कठोर; निर्दय उद्यमी श्रेष्ठतादर्शक रूप) स्थिरकार्य वि. कर्मने वळगी रहेतुं; स्थैर्य न० स्थिरता; दृढपणुं(२) मननी स्थिरता स्त्री० दृढता;मननी मजबूताई दृढता; निश्चयीपणुं (३)धीरज (४) स्थिरषी वि० दृढ मनन; निश्चयी कठोरपणुं; घनता (५)जितेंद्रियत्व स्थिरप्रतिज्ञ वि० हठीलं; जक्की (२) स्थैर्यज वि० स्थावर वचन पाळनाएं मक्कम; हठील स्नपन न० स्नान करते स्थिरप्रतिबंध वि० विरोध करवामां स्ना २ प० नाह; स्नान करवू (२) स्थिरसंगर वि० सत्यवचनी; साचुं। गुरुने त्यांथी पाछा फरती वखते स्थिरात्मन् वि० दृढ मनवाळं; निश्चयी स्नाननो विधि करवो स्थिरापाय वि० सतत क्षीण थतुं एवं स्नात ('स्ना' - भू० कृ०)वि० नाहेलु स्थिरीकृ ८ उ० दृढ करवू (२) आश्वासन (२)भणेलं; विद्वान (३) पुं० जेनो आपq (३)समर्थन करवू विद्याभ्यास पूरो थयो छे ते । स्थूणा स्त्री० घरनो थांभलो (२)स्तंभ; स्नातक पुं० ब्रह्मचर्यव्रत परिपूर्ण करेलो थांभलो (३) एरण ब्राह्मण (२) गुरुने घेरथी आवी गृह स्थाश्रममा प्रवेशेलो ब्राह्मण (३) स्थूणाकर्ण पुं० रुद्रनुं एक स्वरूप स्थरीपृष्ठ पुं० जेने हजी नाथ्यो के केळव्यो व्रतने कारणे भिक्षुपणुं करतो ब्राह्मण नथी एवो घोडो (४)कोई पण गृहस्थाश्रमी । स्थूल वि० मोटुं; मोटा कद- (२) जाडु स्नान न० नाहवू ते; डूबकुं मारवू ते (३) जोरवाळ (४) जड बुद्धि-; मूर्ख (२) मतिने नवराववानो विधि (३) नाहवामां वपरायेलं जे कांई ते(४) (५)खरबचईं; कर्कश (६)न० तंबू स्थूलता स्त्री० मोटापणुं; जाडापणुं धोई काढवू ते; साफ करवू ते स्नानगृह न० नाहवानो ओरडो (२)जडता; मूर्खपणुं स्नानतृण न० दर्भ स्थूलनासिक पुं० भूड; डुक्कर स्नानवस्त्र न० जे वस्त्र पहेरीने नाह्या स्थूललक्ष, स्थूललक्ष्य वि. दानवीर; होईए ते [ वस्त्र उदार (२) डायु; विद्वान स्नानशाटी स्त्री० नाहती वखते वींटवानुं स्थूलशरीर नं० पंचभूतात्मक देह (लिंग स्नानीय वि० स्नान माटेनें; स्नान वखते सूक्ष्म देहथी ऊलटुं) पहेरवा, (२)न० स्नानोपयोगी पाणी स्थूलहस्त पुं० हाथीनी संढ के चंदन-- चूर्ण वगेरे सामग्री स्थलेच्छ वि० अमर्याद कामनाओवाळू स्नापक पुं० स्नान करावनार के स्नान स्थूलोच्चय पुं० पर्वतनी गबडी पडेली माटे पाणी लावनार नोकर मोटी शिला (२)हाथीनी मध्यम गति स्नापित वि० नवरावेलू दोरी स्थेमन् पुं० स्थिरता; दृढता; मक्कमता स्नायु पुं० मांसनी पेशी (२)धनुषनी स्थय वि० मूकवानुं (२)नक्की करवानुं स्निग्ध ('स्निह'न भू० कृ०)वि० स्नेह(३)पुं० बेनी तकरारनो निवेडो वाळु; प्रेमाळ (२) तेलवाळु; चीकj लाववा चूंटेलो मध्यस्थी (३)चोटीजाय तेवू(४) चळकतुं (५) स्थेयस् वि० वधारे मक्कम ('स्थिर'नं माया-ममताभर्यु (६) सुंदर; मनोहर तुलनात्मक रूप) (७) गाढुं (८)पुं०मित्र (९) न० तेल Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्निग्धजन स्पृह स्निग्धजन पुं० स्नेही माणस स्पर्शानुकल वि० स्पर्श करतां आनंद स्निह ४ प० स्नेह करवो; ममता होवी आपे तेवू (२) चीकणुं होवू; चीकाशवाळा होवू स्पर्शित वि० अर्पण करेलु -प्रेरक० तेल चोपडवू; तेल ऊंजवू स्पश पुं० जासूस; चर (२) युद्ध; लडाई स्नु २ प० टपकवू; झमवु (२)वहेवू स्पष्ट वि० चोख्खं देखी शकाय तेवू; स्नु पुं०, न० उच्च प्रदेश (२)शिखर; प्रगट (२) साचुं; खरं (३) प्रफुल्लित; टोच (प्रथम पांच रूप नथी अने खीलेलं तेवं द्वितीया बहुवचनथी 'सानु' ने बदले स्पष्टाक्षर वि० शब्दो स्पष्ट संभळाय विकल्पे आनां रूप मुकाय छे) स्पंद् १ आ० फरक; धबकवू (२) स्नुषा स्त्री० पुत्रवधू धूजवू; कंपवू(३) जवू; फरवू स्नेह पुं० प्रेम'; ममता (२)चीकणापj स्पंद पुं० धबकवू ते; फरकवू ते (२) (३) भेज; भीनाश (४)चरबी, तेल हलनचलन; गति वगेरे स्निग्ध पदार्थ स्पंदन न० फरकवू ते; कंपq ते (२) स्नेहप्रवृत्ति स्त्री० स्नेह करवो ते कंप; धूजारो (३) झडपी गति । स्नेहप्रसर, स्नेहप्रस्ताव पुं० स्नेह प्रगट स्पंदित ('स्पंद्' न भू० कृ०) वि. थवो- रेलवो ते फरकेलं; कंपेलु (२) गयेलु (३) न० स्नेहव्यक्ति स्त्री० स्नेह प्रगट थवो ते ___फरकवू ते (४) क्रिया ; गति (मननी) स्नेहांकन न० स्नेहन चिह्न-लक्षण स्पृश् वि० (समासने अंते) स्पर्श स्पर्ष १ आ० हरीफाई करवी ; सरसाई करतुं; अडकतुं; वींधतुं; असर करतुं करवी (२)पडकार करवो (उदा० 'मर्मस्पश') स्पर्धा स्त्री० चडसाचडसी; सरसाई स्पृश् ६ ५० अडकवू; स्पर्श करवो (२) (२)अदेखाई (३)पडकार हाथ फेरववो (३) चोटवू; वळगq स्पर्धित वि० सरसाई करतुं होय तेवू (४) पाणी छांटq; पाणीयी धोवू (२)पडकार कर्यो होय तेवू (५) पहोंचq (६) पामवु (७) स्पधिन् वि० हरीफाई करतुं; सरसाई स्थिति-दशा पामवी (८)असर करवी करतुं (२) अदेखु (३) अभिमानी (९)उल्लेख स्पर्ध्य वि० इच्छा करवा योग्य (२) -कर्मणि० अपवित्र थर्बु ; दूषित थवं कीमती भेटवू -प्रेरक० अर्प; बक्षवं स्पर्श १० आ०अडकवू(२)जोडावु (३) स्पृश्य वि० स्पर्शद्रियथी जणाय तेवू स्पर्श पुं० अकडवं ते (२) संपर्क; संयोग (२) कबजामां लेवा योग्य (३)लागणी;वेदना (४) त्वच इंद्रियनो स्पृष्ट ('स्पृश्न भू० कृ०)वि० स्पर्श करागुण (५) क् 'थी 'म्' सुधीनो कोई येलु (२) स्पर्शतुं ; संबद्ध (३) पहोंचतुं पण व्यंजन (६)संभोग (४) असर पामेलं; -थी ग्रस्त (५) स्पर्शमणि पु० पारसमणि अपवित्र थयेलं; दूषित थयेलं स्पर्शयज्ञ पुं० होमवानी वस्तुनो मात्र स्पृष्टक न० एक प्रकारचें हळवं आलिस्पर्श करीने करातो यज्ञ गन (पासे थईने जतां जतां करेलु) स्पर्शरसिक वि० विषयी; कामुक स्पृष्टि, स्पष्टिका स्त्री० स्पर्श ; अडकवू ते स्पर्शवत् वि० मृदु; कोमळ (२)स्पर्शथी। स्पृह १० उ० इच्छq; स्पृहा करवी; जेनुं ज्ञान थई शके तेवू झंखवू (२) अदेखाई करवी Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्पृहणीय ५७७ स्फेयस् स्पृहणीय वि० स्पृहा - कामना करवा सित (३) स्पष्ट ; प्रगट (४) प्रख्यात योग्य (२) अदेखाई थाय तेवू (५) उज्ज्वळ ; स्वच्छ कमळ) स्पृहयालु वि० उत्सुक; आतुर स्फुटपुंडरीक न० खीलेलं हृदय (रूपी स्पृहा स्त्री० इच्छा; आतुरता; झंखना स्फुटम् अ० स्पष्टपणे ; प्रगट रीते स्प्रष्टव्य वि० स्पर्श करवा योग्य स्फुटार्थ वि० समजाय तेवू; स्पष्ट (२) (२) न० स्पर्श; लागणी अर्थयुक्त खंड स्फटिक पुं० एक जातनो सफेद कीमती स्फुटिका स्त्री० भागेलो नानो टुकडो; पथ्थर के रत्न स्फुटित ('स्फुट्' नुं भू. कृ.) वि० स्फटिका स्त्री० फटकडी फाटेलं; तूटेलु (२) खीलेलं; विकस्फटिकाचल पं० मेरु पर्वत सेलु (३) प्रगट करायेलं; बतावायेलं स्फटिकाद्रि पुं० कैलास पर्वत स्फुर् ६ प० धूजq; फरक, (२) स्फटित वि० फाटेलु; फाडेलु अमळावू (३) आगळ धसवू; कूदको स्फर ६५० 'स्फुर्' जुओ मारवो (४) पार्छ ऊछळ, (५) स्फल १ प. 5जवं; फरकवू (२) बहार नीकळवू; फूट, (६)प्रगट थQ; १० उ० हलाव [प्रकाशित नजरे पडवू (७) चमकवू; झगमगवू स्फाटिक वि० स्फटिक जेवू उज्ज्वळ (८) आगळ आव; विख्यात थर्बु स्फुर वि० (समासने अंते) 5जतुं; स्फाय १ आ० जाडा थq; मोटा थर्बु (२) ऊंचुं थq; वधवू फरकतुं; धबकतुं -प्रेरक० वधे तेम करवू; वधारवं स्फुर पुं० धूजवू-फरकवू ते स्फार वि० विस्तीर्ण; मोटुं (२) स्फुरण न० धूजq ते ; फरकवू ते (२) फूटवू ते ; प्रगट थर्बु ते (३) चमक, ते पुष्कळ; विपुल (३) मोटुं (अवाज) स्फुरद्गंध पुं० फेलायेलो गंध स्फारित वि० पहोळं थयेलं के करेलु स्फुरित ('स्फुर' नुं भू० कृ०) वि० स्फारीभू १५० वधवं; विस्तरवू स्फालन न० कंप, ते (२) हलावq फरकेलं; कंपेलुं (२) हालेलं (३) चमकेलं (४) अस्थिर (५) प्रगट ते (३)घसवू ते; घर्षण (४)थाबडq ते थयेलु (६)न० स्फुरण (७) चमकारो स्फिच् स्त्री० नितंब; कूलो स्फुर्जु १ प० [स्फूर्जति ] गर्जq; कडाको स्फिर वि० पुष्कळ ; अत्यंत ; विशाल थवो; फूटवु (२) चमकवू (३) फूटी के स्फीत ('स्फाय' नुं भू० कृ०)वि० वधेलं; फाटी नीकळवं [नो तणखो मोटुं थयेलु (२) जाडु; मोटुं (३) स्फुलिंगपुं०, न०, स्फुलिंगा स्त्री० अग्निघj; पुष्कळ (४) समृद्ध; सफळ स्फूर्ज पुं० कडाको ; गर्जना(२)इंद्रनुं वज्र (५) पहोळं थयेलं स्फूर्जथु पुं० वीजळीनो कडाको स्फीति स्त्री० वृद्धि ; विपुलता स्फूर्जा स्त्री० कडाको; गडगडाट स्फुट ६ प०, १ उ० फाटवू; चिरायूँ; स्फूर्ति स्त्री० कंपq -धूजq ते (२) तूटवू (२) ऊघडवं; खीलवं (३) कूदको (३) खील, - ऊघडवू ते भागी जq; वीखराई जq (४) प्रगट (४) प्रगट थर्बु - नजरे पडवू ते थ; नजरे पडq(५)१० उ० फाडवू; (५) मनमां चमकारो चीर, (६)प्रगट करवू; खुल्लू करवू स्फेयस् वि० वधारे मोटं ('स्फिर' स्फुट वि० फूटेलु; फाटेलु (२) विक- नुं तुलनात्मक रूप) Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्फेष्ठ ५७८ स्मृतिरोध स्फेष्ठ वि० सौथी मोठं ('स्फिर' नुं स्मर्तृ पुं० शिक्षक; अध्यापक श्रेष्ठतादर्शक रूप) स्मार वि० कामदेवने लगतुं; कामस्फोट पुं० फोडq-फूट-फाटी नीक- देव- (२) न० स्मरण ; याद ळवूते (२) खुल्लू-प्रगट थq के करवू स्मारण न० याद करावq ते (२) गणते (३) फोल्लो तरी करवी ते; हिसाब मेळववो ते स्फोटन न० अचानक फोडq -फाड, स्मार्त वि० याददास्त संबंधी; याद ते (२)अनाजने फडाकाथी ऊपणवू ते करायेलं (२) याददास्तमां होय तेवू (३)आंगळीनो टचाको बोलाववो ते (३) स्मृतिशास्त्रना आधारवाळू; स्फूध न० यज्ञमांवपरातुं खड्गना आका स्मृतिशास्त्रमा कहेलु (४) पुं० स्मृतिरनुं एक साधन (२) एक जात, हलेसुं शास्त्रमा पारंगत ब्राह्मण (५) स्म अ० धातुना वर्तमान काळ साथे स्मृतिशास्त्रने अनुसरनारो आवी भूतकाळनो अर्थ दर्शावे (२) स्मि १ आ० स्मित करवू; धीमेथी हसवू पादपूरक प्रत्यय (नकारवाचक 'मा' (२) खोलवू; ऊघडवू नी साथे सामान्य रीते वपराय छे) स्मित वि० स्मित करतु (२)प्रफुल्लित; स्मय पुं० आश्चर्य (२) गर्व खीलेलं (३) न० मंद हास्य स्मयदान न० देखाडपूर्वक करेलुं दान स्मितपूर्वम् अ० स्मित करीने स्मयमान वि० नवाई पामतुं स्मर पुं० स्मरण; याद (२) प्रेम (३) स्मृ १५० याद करवू (२) देवनुं ध्यान करवं; देवना नामनो जप करवो __ मदन; कामदेव स्मरण न० स्मृति;याद (२) चिंतन; (३)स्मृतिशास्त्रे आज्ञा करवी;विधान चितवन (३)परंपरायी चाल्युं आववं करवू (४) उत्सुकतापूर्वक याद करवू ते ('श्रुति' शी ऊलटुं) स्मृत ('स्मृ' नुं भू० कृ०) वि० याद स्मरणपदवी स्त्री० मृत्यु करेलु (२) नोंधायेलं; उल्लेखायेखें; स्मरणानुग्रह पुं० अनुग्रहपूर्वक करेली गणेलं; मानेलं (३)स्मृतिशास्त्रे आदेश याद (२) याद करवा रूपी कृपा कर्यो होय तेवू(४)न० स्मृति; याद स्मरणी स्त्री० जपमाळा स्मृति स्त्री० स्मरण; याद (२)स्मरणस्मरक्शा स्त्री० कामज्वरथी थती शक्ति (३) धर्मशास्त्र; मानवरचित शरीरनी दशा (दश प्रकारनी गणावाय कायदाओनो ग्रंथ ('श्रुति' अपौरषेय छे);प्रेममां पडया होवानी स्थिति गणाय छे) (४) सारासारविवेक । स्मरप्रिया स्त्री० रति; कामदेवनी पत्नी स्मृतितंत्र न० कायदापोथी; धर्मशास्त्र स्मरमय वि• काममूलक प्रेमने कारणे स्मतिपय पुं० याददास्तनो विषय उत्पन्न थयेलं स्मृतिपयंगम १५० मरण पामवं(यादस्मरशासन पुं० शंकर दास्तनो विषय बनी जवु) स्मरसत पुं० चंद्र (२) वसंत ऋतु स्मृतिपाठक पुं. कायदाशास्त्री स्मरहर पुं० शंकर [कामात स्मृतिभ्रंश पुं० याददास्त नाश पामवी ते स्मराकुल, स्मरात वि० कामातुर; स्मृतिमत् वि० पूरेपूरा भानवाळू (२) स्मरोन्माद पुं० कामवासनाथी उत्पन्न पूर्वजन्म याद होय तेवु (३)डायु; थयेली उन्मत्तता के मूर्खता शाणुं(४)स्मृतिशास्त्रमा प्रवीण एवं स्मर्तव्य वि० याद करवा लायक स्मृतिरोध पुं० याददास्त लुप्त थवी ते Nad AANTICHETANA Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्रोत स्मृतिविभ्रम ५७९ स्मृतिविभ्रम पुं० जुओ 'स्मृतिभ्रंश' स्रवद्रंग पुं० बजार; मेळो स्मृतिविषय पुं० जुओ 'स्मृतिपथ' लवंती स्त्री० नदी; झरj स्मृतिशेष वि० मृत; मरेलु स्रष्ट पुं० स्रष्टा; सर्जक (२)विधाता; स्मृतिहीन वि० भुलक' ब्रह्मा (३) शिव स्मेर वि० स्मित करतुं ; हसतुं (२) त्रस्त ('संस्' नुं भू० कृ०) वि. पडी प्रफुल्लित ; खीलेलं (३)गर्विष्ठ गयेलं; छूटी गयेलु (२) शिथिल स्यद पुं० वेग; गति थयेलं; नीचे नमी गयेलु (३) लटकतुं; स्यन्न ('स्यद्' नुं भू० कृ०)वि० झरेलु; लबडतुं [आसन ; पथारी गळेलं; टपकेलु स्रस्तर पुं० अढेलाय-आडा पडाय तेवं स्यम् १ प०,१० उ० अवाज करवो; स्रंस १ आ० सरी पडवं; नीचे पडी जवं मोटेथी बूम पाडवी (२) भागी पडवू; छूटुं पडी जq(३) स्यमंतक पुं० एक कीमती मणि (रोज जवू(४)टींगावं; लटकवू आठ भार सोनुं आपतो) -प्रेरक० ढीलं करवू; धीमुं पाडवू स्यंद १ आ० झरवू; झमवं; टपकवू; स्रंसन न० नीचे पडवू के पाडवं ते (२) वहेवू (२) दोडवू; नासी जq (३) गर्भस्राव (३) जुलाब देखावं; थर्बु (४) वरस स्रंसिन् वि० सरको जतुं; ढीलुं पडतुं; स्पंद पुं० झमवू-टपकवू ते (२) वेगे छूटुं पडतुं (२) ढीलुं लटकतुं जq - खसर्बु ते (३) रथ स्राक् अ० जलदीथी; झडपथी स्यंवन वि० झडपी; वेगीलु (२) वहेतुं; स्राव पुं० झर ते; झम, ते; वहेवं ते झडपथी जतुं (३) पुं० युद्धरथ ; रथ नु १५० झर; झमवू; टपकवू(२) (४) न० टपकवू ते; झमयूँ ते । वहेवरावq; वहेवा देवू (३) जq; स्यंदनिका स्त्री० लाळनुं टपकुं (२) खसर्बु (४) टपकी जवू; सरी जq; झरो; झरणुं [जतु (३) वेगे धसतुं क्षीण थq; नाश थवो(५)सरकी जदूं स्यंदिन वि० झमतुं; झरतुं; वहेतुं (२) त्रुघ्न पुं० एक प्रदेश के जिल्ला, नाम स्यात् अ० कदाच एम पण होय (पाटलिपुत्रथी एकाद दिवसनी मजले) स्याद्वाद पुं० 'अमुक दृष्टिए एम पण च् स्त्री० घी होमवानुं लाकडानुं होई शके' एवो निराग्रहीपणानो जैन कडछी जेवू साधन [टपकावतुं वाद- दार्शनिक सिद्धांत खुत् वि० (समासने छेडे)वहेवरावतुं; स्यूत ('सि' न भू० कृ०)वि० सोयथी स्रुत ('सु' नुं भू० कृ०)वि० झरेलु; सीवेलुं (२) वींधायलं; परोवायेलं टपकेलं (२) गयेलं (३) साथे वणायेखें-जोडायेलु (४) खुति स्त्री० सरवू ते; टपकवू ते (२) पुं० कोथळो; गूण [माटेनो छेडो प्रवाह; झरणुं [कडछी स्नग्दामन् न० हारनो गांठ वाळवा सुव पुं०, नुवा स्त्री० यज्ञमां वपराती स्रग्धर वि० हार पहेरेलु [तेवं स्लू स्त्री० यज्ञनी कडछी स्रग्विन् वि० माळा के हार पहेर्यो होय स्रोतस् न० प्रवाह; वहेळो (२) वेगथी ब्रज स्त्री० फूलनी माळा (२) हार वहेतो प्रवाह (३) नदी (४) मोज खवं पुं० झरवू के झमवू ते; वहेवू ते (५) पाणी (६) इंद्रिय (७) हाथी(२) टीपांनी धार (३) झरो नी सूंढ (८)शरीरनु रंध्र (९)जवू ते Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्रोतस्वती स्रोतस्वती, स्त्रोतस्विनी स्त्री० नदी स्रोतोरंध्र न० हाथीनी तूंढन छिद्र स्रोतोवह (-हा) स्त्री० नदी स्व स० ना०, वि० पोतानुं (२) कुदरती ; सहज; स्वाभाविक (३)पोतानी ज्ञाति के जातिनुं (४) पुं० पोतानी जात (५) सगो (६) विष्णु (७) पुं०, न० धन; मिलकत (८) स्वभाव स्वक वि० पोतानुं (२) पुं० मित्र; बंधु ; सगुं (३) न० पोतानी मिलकत स्वकर्मन् न० स्वधर्म; पोतानुं कर्तव्य स्वकीय वि० पोतार्नु (२) पोतानुं सगुं स्वगतम् अ० एक बाजुए; पोताने ज कहेतो होय तेम (नाट्य०) स्वगोचर वि० पोतानी शक्तिनी मर्या हामां होय तेवू स्वच्छ (सु+ अच्छ) वि० घणुं चोख्खं ; निर्मळ; तेजस्वी (२) सफेद (३) सुंदर (४) नीरोगी स्वच्छंद वि० निरंकुश ; पोतानी मरजी मुजब वर्तनाएं (२) जंगली (३) पुं० पोतानी मरजी के वृत्ति स्वच्छंदम् अ० पोतानी मरजी मुजब स्वच्छा स्त्री० सफेद दरो स्वज वि० पोतामाथी के पोता थकी जन्मेलुं (२) स्वाभाविक (३) पुं० पुत्र के संतान (४) परसेवो स्वजन पुं० सगो; संबंधी (२) पोतानी जातनो के घरनो माणस स्वजनगंधिन् वि० दूरनी सगाईवाळं स्वजनायते आ० (सगो मनाय छेगणाय छे) पोतानामांथी स्वतस् अ० आपोआप; पोतानी मेळे (२) स्वतंत्र वि० स्वाधीन ; कोईना ताबामां नहीं तेवू (२) मनस्वी ; पोतानी मरजी मुजब चालनारु (३) उमरलायक; पुख्त स्वतःसिद्ध वि० जाते ज प्रमाणरूप आपोआप सिद्ध होय तेवू (जेने बीजा प्रमाणनी जरूर नथी) स्वप्नधीगम्य स्वता स्त्री० पोतापणुं; पोतानुं मानवू ते (२) मालकीपणुं स्वत्व न० मालकी-हक; मालकीपणुं स्वद् १ आ० गमवू; मधुर लागवू; स्वादिष्ट लागवू (२) चाखवू; खावू स्वदन पुं० भक्षण ; आस्वाद स्वदित ('स्वद्' न भू० कृ०) वि. खाधेलं; चाखेलं (२) न० श्राद्धमां पिंड आप्या पछी 'तमने भावो-गमो' ए जातनो उच्चार स्वदेश पुं० पोतानो देश; वतन स्वधर्म पु० पोतानो धर्म-पंथ (२) पोतानुं कर्तव्य ; पोताना वर्णनुं कर्तव्य स्वधा स्त्री० पितृओने अपातो पिंड (२) श्राद्ध (३) अ० पितृओने पिंड आपतां करातो उच्चार स्वधाप्रिय पुं० अग्नि [कुहाडी स्वधिति पुं०, स्त्री०, स्वधिती स्त्री० स्वधोति वि० (वेदनो) सारी रीते पाठ करनारो; ब्रह्मचारी स्वन् १५० अवाज करवो (२) गुंजा रव करवो (३) गावं स्वन पुं० अवाज; ध्वनि स्वनिक वि० अवाज करतुं स्वनित न० गढ़ना; मेघगर्जना (२) ___ अवाज; ध्वनि स्वप् २ प० ऊंघg; ऊंघी जवं (२) __ आडा पडवू; सूई जर्बु (३) लीन थर्बु स्वपक्ष पुं० पोतानो पक्ष-बाजु (२) मित्र (३) पोतानो अभिप्राय स्वपन न० सूर्बु ते; निद्रा (२) स्वप्न आवq ते [ऊंघमां भासतो देखाव स्वप्न पुं० ऊंघ; निद्रा (२) समणं; स्वप्नज् वि. ऊंघतुं; ऊंघमां आवेलु स्वप्नज वि० स्वप्नमां उत्पन्न थयेलं देखातुं स्वप्नदोष पुं० स्वप्नमां वीर्यपतन स्वप्नधीगम्य वि० स्वप्न जेवी समाधि अवस्थामां बुद्धि वडे जोवातुं Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वप्ननिकेतन स्वप्ननिकेतन न० शयनखंड [ - भ्रम स्वप्नप्रपंच पुं० स्वप्नमा देखाती दुनिया स्वप्नशील वि० ऊंघणशी स्वप्रकाश वि० पोताना ज प्रकाशथी प्रकाशित ( २ ) पोतानी मेळे समजाय तेवुं स्वप्रयोगात् अ० जातमहेनतथी स्वभाव पुं० प्रकृति; मूळ गुण; सहजधर्म (२) स्वाभाविक वलण [ स्वाभाविक स्वभावसिद्ध वि० कुदरती ; साथे जन्मे लुं; स्वभावात्मक वि० साहजिक : कुदरती स्वयम् अ० जाते; पोतानी जाते (२) आपमेळे; महेनत वगर स्वयंग्रह पुं० पोतानी मेळे लई लेबुं ते ( रजा विना) स्वयंग्राह वि० स्वैच्छिक ऐच्छिक (२) बळजबरीथी लेनाएं ( ३ ) पुं० पोतानी पसंदगी स्वयंभु पुं० ब्रह्मा स्वयंभुव पुं० प्रथम मनुनुं नाम ( २ ) ब्रह्मा (३) शंकर स्वयंभू वि० पोतानी मेळे उत्पन्न थयेलुं; जेनुं बीजुं कोई कारण नथी तेनुं (२) पुं० ब्रह्मा, विष्णु शिव ; कामदेव स्वयंवर पुं० जाते पति पसंद करवो ते स्वयंवरा स्त्री० जाते पति पसंद करनारी कन्या स्वयूथ्य पुं० सगो स्वयोनि वि० पोताना मातृपक्षनु संबंधी (२) स्त्री० बहेन के नजीकनी सगी स्वर् अ० स्वर्ग; पुण्यशाळीओनं मृत्यु पछीनुं तात्कालिक स्थान ( २ ) त्रण व्याहृतिओमांनी एक (प्रथमा, द्वितीया, षष्ठी अने सप्तमीना अर्थमां वपराय छे ) स्वर पुं० अवाज ; ध्वनि; सुर ( २ ) संगीतना सात सुरमांनो दरेक ( ३ ) जेनो पूर्ण उच्चार कोईनी मदद विना थई शके तेवो वर्ण ( व्या० ) ५८१ स्वगिन् स्वरब्रह्मन् न० नाद रूपे प्रगटेलुं ब्रह्म स्वरमंडल न० स्वरोनी गोठवण ; स्वरोनी रचना [ अवरोह स्वरोनो आरोह स्वरसंक्रम पुं० स्वरसंदेहविवाद पुं० एक रमत स्वरसंयोग पुं० स्वरोतुं जोडाण (२) अवाज ; सूर स्वराज् वि० स्वयंप्रकाश [ गंगा स्वरापगा स्त्री० स्वर्गगंगा (२) आकाशस्वरित वि० अवाज करेलु; ध्वनित अर्थवाळा होवु (२) सुरीलुं ( ३ ) पुं० स्वरना त्रण विभागमांनो एक, जेमां उदात्त अने अनुदात्त बनेनां लक्षण होय स्वरितत्व न० अर्थ नीकळवो ते; [ बाण स्वरु पुं० तडको (२) यज्ञ (३) वज्र (४) स्वरुचि स्त्री० पोतानी खुशी स्वरूप वि० तुल्य; सरखुं (२) सुंदर (३) विद्वान डाहयुं (४) न० कुदरती आकार ( ५ ) कुदरती स्थिति; कुदरती स्वभाव (६) स्वभाव; प्रकृति ( ७ ) विशिष्ट लक्ष्य ( ८ ) प्रकार; जात स्वर्ग पुं० देवोनो लोक स्वर्गत वि० मृत स्वर्गतरंगिणी स्त्री० गंगानदी स्वर्गति स्त्री० मृत्यु (२) स्वर्गमा जनुं ते स्वर्गद्वार न० स्वर्गनुं वारण; स्वर्गमां प्रवेश स्वर्गपति पुं० इंद्र स्वर्गपथ पुं० आकाशगंगा स्वर्गरोदः कुहर पुं० स्वर्ग अने पृथ्वी बच्चे पोल स्वर्गवधू स्त्री० अप्सरा स्वर्गसद् पुं० देव स्वर्गस्त्री स्त्री० अप्सरा स्वगंगा स्त्री० जुओ 'स्वरापगा' स्वगिन् वि० स्वर्गनुं ; स्वर्ग संबंधी (२) पुं० देव ( ३ ) मरी गयेलो माणस Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वर्गीय ५८२ स्वादिष्ठ स्वर्गीय वि० दैवी; स्वर्गने लगतुं (२) स्वस्तिकपाणि वि० स्वस्तिक आकारे स्वर्ग लई जनारु हाथ करनारु (२) हाथमां मांगळिक स्वर्गोकस् पुं० देव वस्तुओवाळं स्वर्ग्य वि० जुओ 'स्वर्गीय स्वस्तिमत् वि० सुखी; सुरक्षित स्वर्ण न० सोनुं (२) सोनानो सिक्को स्वस्तिवाचन, स्वस्तिवाचनक, स्वस्तिस्वर्णकाय पुं० गरुड वाचनिक न० यज्ञादि धार्मिक क्रियास्वर्णकार पुं० सोनी ओनी शरूआतमां करातो प्रारंभिक स्वर्णनाभ पुं० शालग्राम विधि (२) शुभेच्छाओ अने आशीर्वादो स्वदृश पुं० इंद्र (२) अग्नि (२) सोम सहित फूल वगेरे अर्पवां ते स्वर्धनी स्त्री० स्वर्गगंगा स्वस्त्ययन वि० शुभ; मांगलिक (२) स्वर्भानु पुं० राहु न० समृद्धि मेळववानो उपाय-मार्ग स्वर्भानुसूदन पुं० सूर्य (३) मंत्र वगेरे विधिथी अनिष्ट दूर स्वोषित् स्त्री० अप्सरा करवं ते (४) ब्राह्मणने दक्षिणा आप्या स्वर्लोक पुं० स्वर्ग पछी ते जे आशीर्वाद आपे ते स्वर्वधू स्त्री० अप्सरा स्वस्थ वि० स्वाश्रयी; पोताना ज स्ववैद्य पुं० अश्विनीकुमारोनुं नाम प्रयत्न उपर आधार राखतुं (२) स्वल्प वि० अति अल्प-थोड़ें दृढ ; स्थिर; निश्चयी (३) स्वतंत्र स्वल्पक वि० घणुं थोडं (माप के (४)तंदुरस्त; सुखी (५)संतुष्ट संख्यामां); घणुं नानुं स्वल्पबल वि० घणुं दुर्बळ स्वस्थान न० पोतानुं घर के स्थान स्ववश वि० पोताने वश के पोताना स्वस्नीय पुं० भाणेज काबूमां होय तेवू (२) स्वतंत्र स्वस्रीया स्त्री० भाणी; भाणेजी स्वविषय पुं० पोतानो देश ; पोतानुं घर स्वस्त्रेय पुं० भाणेज स्ववृत्ति वि० स्वप्रयत्ने ज आजीविका स्वस्रयी स्त्री० जुओ ‘स्वस्रीया' स्वहस्त पुं० पोताना हस्ताक्षर चलावतुं होय तेवं स्वहस्तिका स्त्री० कुहाडी स्वसा, स्वस स्त्री० बहेन । स्वस्ति स्त्री० हित; कल्याण (२) अ० स्वहित वि० पोताने लाभदायक एवं (२) न० पोतान हित, लाभ के स्वार्थ 'सारं थाओ', 'भलु थाओ' ए अर्थनो उद्गार (पत्रनी शरूआतमां वपराय छे) स्वंज १ आ० [स्वजते ] भेटवू; आलिस्वस्तिक पुं० साथियो; एक सद् गन करवु (२) वीटळावं भाग्य-सूचक आकृति (२) जेनाथी स्वंत वि० सुखी अंत के छेवटवाळू सद्भाग्य प्राप्त थवा मांडे एवी वस्तु स्वाकृति वि० सुडोळ; घाटील (३) चार रस्ता भेगा मळे ते स्थान स्वागत न० 'भले पधार्या एवं अभिनंदन (४) चोकडी पडे तेम हाथ ऊभो अने स्वातंत्र्य न० स्वतंत्रता तलवार आडो एम गोठववा ते (५) एक स्वाति (-ती)स्त्री० पंदरमुं नक्षत्र (२) जातनो चारण; बंदीजन (६) पुं० स्वाद पुं० रसनेंद्रियथी थतो अनुभव न० एक आसन (योग०) (७) बेठक; (२) रस; आनंद (३) चाखवू ते पीठ (देव माटे तैयार करेल)(८) स्वादिष्ठ वि० घणुं ज स्वादु ('स्वादु' नुं खास आकारनं मकान के मंदिर श्रेष्ठतादर्शक रूप) Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वादीयस् ५८३ स्विन्न स्वादीयस् वि० वधारे स्वादु ('स्वादु' नुं स्वाम्य न० स्वामीपणुं; मालकीपणुं (२) तुलनात्मक रूप) (शरीर मननी)स्वस्थता; स्वास्थ्य स्वादु वि० स्वादवाळं; मीठु (२) स्वायत्त वि० पोताना हाथमां होय लहेजतदार; रुचे तेवू; मधुर (३) तेवू; पोतानी उपर अवलंबतुं । पुं० मधुर रस (४) न० स्वाद; स्वायंभुव वि० ब्रह्मा संबंधी (२)ब्रह्मारस (५) मधुरता; सुंदरता मांथी ऊतरी आवेलु (३)पुं० प्रथम मनु स्वाध न० रस स्वारसिक वि० रसाळ (काव्य) (२) स्वाधिकार पुं० पोतानी फरज ; पोतानो (बीजाना दबाण विना)आपमेळे करेलु होहो (२) पोतानो अमल ज्यां चालतो स्वाराज पुं० इंद्र होय ते भाग [मांनुं एक (योग०) स्वाराज्य न० इंद्रपद; स्वर्गनुं राज्य स्वाधिष्ठान न० शरीरमांनां छ चक्रो- (२) ब्रह्मत्व; ब्रह्म साधे गलता स्वाधीन वि० पोताने ताबे होय तेवू; स्वार्थ पुं० पोतानुं हित; पोतानो लाभ पोताना काबूमां होय तेवू (२) स्वतंत्र (२)पोतानो - मूळ अर्थ (३) पुरुषार्थ स्वाधीनकुशल वि० पोतानुं योगक्षेम स्वार्थतष वि० स्वार्थी पोताना हाथमा होय तेवू स्वार्थपर, स्वार्थपरायण वि० स्वार्थी; स्वाधीनपतिका, स्वाधीनभर्तृका स्त्री० पोतानं ज हित साधवामां तत्पर एवं जेनो पति पोताना वशमां छे तेवी स्त्री स्वार्थपंडित वि० पोतानी बाबतोमां स्वाध्याय पुं० पोतानी जाते-एकला कुशळ (२) स्वार्थ साधवामां कुशळ पाठ करी जवो ते (२) वेदोनो पाठ स्वालक्षण वि० सहेलाईथी जोई शकातुं -अभ्यास (३) वेद स्वालक्षण्य न० मूळ स्वभाव; विशिष्ट लक्षण स्वाध्यायाथिन् पुं० अध्ययन वखते 1 [धरवेलं स्वाशित वि० सारी पेठे खवरावेलंअन्नवस्त्र मागनारो स्वाश्लिष ४ प० गाढ आलिंगन करवू स्वान पुं० ध्वनि; अवाज स्वास्तर पुं० पथारी माटे सारं घास स्वानुभव पुं० धन-मिलकत माटेनो प्रेम स्वास्थ्य न० स्वाश्रय (२) दृढता; स्वानुभूति स्त्री० जात-अनुभव (२) निश्चयीपणुं (३) आरोग्य (४) आत्मज्ञान; आत्मसाक्षात्कार सुख-समृद्धि (५) संतोष .. स्वानुरूप वि० स्वाभाविक (२)पोताने स्वाहा स्त्री० अग्निनी पत्नी (२) बधा उचित होय ते आळस ; घेन देवाने आपेली आहुति (३)अ० देवोने स्वाप पुं० ऊंघ (२) स्वप्न (३) आहुति आपती वखते करातो उच्चार स्वापतेय न० द्रव्या; धन स्वांत न० मन; अंतःकरण (२) गुफा स्वाभाविक वि० स्वभावसिद्ध; (३)पोतानुं मोत [अर्थ बतावे छे नैसर्गिक ; कुदरती । स्विद् अ० प्रश्न, वितर्क अने पादपूरणनो स्वाभास वि० भव्य; यशस्वी स्विद् ४ प० पसीनो थवो (२)१ आ० स्वामिन् पुं० मालिक; शेठ (२) तेलवाळं थq; चीकणुं थर्बु (३) अधिपति; राजा (३) पति (४) लेपथी खरडावं [ते, परमहंस ; यति (घणुंखरुं विशेषनामने स्विद् (समासमा) परसेवो थतो होय लगाडाय छे) स्विन्न ('स्विद्' नु० भू० कृ०) वि० स्वामिनी स्त्री० मालिक स्त्री; शेठाणी परसेवावाळं थयेलु(२)रांधेलं; उकाळेल Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्विष्ट स्विष्ट वि० अति इष्ट अतिप्रिय स्वीकरण न०, स्वीकार पुं० स्वीकारखुं ते; लेबुं ते (२) कबूल राखवुं ते ( ३ ) लग्न स्वीकृ ८ उ० स्वीकार करवो ( २ ) कबूल राखवु (३) मंजूर करवु स्वीकृति स्त्री० जुओ 'स्वीकरण' स्वीय वि० पोतानुं स्वेच्छा स्त्री० पोतानी मरजी स्वेच्छाचार पुं० पोतानी मरजी मुजब [ वराळ स्वेद पुं० परसेवो (२) गरमी (३) स्वेदज वि० पसीनो के बाफथी उत्पन्न थलुं (जीवडु) [ लाववो ते स्वेदन न० पसीनो थवो ते (२) पसीनो स्वेदित वि० बाफ आपेलु; नरम करेलु ह अ० पादपूरणार्थे वपराय छे (२) भार दर्शाववा 'खरेखर', 'चोक्कस' ए अर्थ बतावे ( ३ ) तुच्छकार के मजाक दर्शाववा वपराय [ बोलाव हक्कार पुं० होकारो करवो ते; हक्काहक्क पुं० बोलाववुं - पडकारखूं ते हट पु० बजार; हाट [ बेसनारी) हट्टविलासिनी स्त्री० वेश्यां (बजारमा हठ १ प० ठेकडो भरवो (२) दुष्टता करवी (३) त्रास गुजारवो ( ४ ) थाभले बांधव (५) बळजबरीथी लेबुं हठ पुं० बळजबरी (२) दुराग्रह; जक (३) अणधार्यो लाभ ५८४ हठपर्णी न० शेवाळ eoबुद्धि स्त्री० अणधार्यो लाभ थवानी श्रद्धा ( महेनत विना ) हठयोग पुं० एक प्रकारनो योग ('राजयोग' थी जुदो ) हठवादिक पुं० चार्वाक जेवा मतनो हतचेतस् स्वैर वि० स्वेच्छाचारी; स्वच्छंदी; मनस्वी (२) संकोच विनानुं; खानगीमां संकोच विना करेलुं ( ३ ) धीमुं; सौम्य ( ४ ) सुस्त आळसु स्वैरकम् अ० स्वतंत्रपणे; संकोच बिना स्वैरचारिन् वि० स्वतंत्र ह स्वरम् अ० मरजी मुजब; स्वेच्छा प्रमाणे (२) आपमेळे (३) धीमेथी; हळवेथी ( ४ ) धीमा अवाजे स्वरवृत्ति वि० मनस्वी प्रमाणे वर्तनाएं स्वरालाप पुं० खानगी वातचीत स्वैरिणी स्त्री० व्यभिचारिणी स्त्री (२) मुनिश्रेणी स्वैरिन् वि० स्वच्छंदी ; मनस्वी स्वोत्थ वि० सहज; कुदरती पुरुषार्थमां न माननारो अने अणधार्या लाभमा श्रद्धावाळो माणस हठात् अ० बळात्कारे (२) अचानक हठायात वि० छेकज आवश्यक; अनिवार्य हठिका स्त्री० मोटो अवाज; धांधळ हठेन अ० बळात्कारे (२) अचानक हडि पुं० हेडबेडी, लाकडानी हेड हड्ड न० हाडकुं हत ( ' हन् 'नुं भू० कृ० ) वि० हणायेलु; मरायेलु (२) ईजा करेलु; घा करेल (३) खोवायेलुं (४) विनानुं थयेलु के करायेल (५) हताश (६) बरबाद ; विनष्ट ( 3 ) गुणेलं (८) कमनसीब ; कंगाळ, तु हतक वि० नीच; दुष्ट; असंस्कारी ( मुख्यत्वे समासने अंते) (२) पं० नीच -हीन- कायर माणस हतकंटक वि० कांटा के शत्रु विनान् बनेलु | मूह हतचेतस् वि० मुझाये; अकळायेलु; Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हतच्छाय ५८५ हरिचंदन हतच्छाय वि० काति नाश पामी होय हनुमत् पुं० हनुमान ; मारुति ते, वातचीत हनू पुं०, स्त्री० जुओ 'हनु' हतजल्पितानि न० ब० व० नकामी हनूमत् जुओ ' हनुमत्' हतत्रप वि० बेशरम [तेवं हम् अ० क्रोध, विनय, आदर - ए अर्थ हतत्विष वि० तेज झांखं पडी गयुं होय बतावतो उद्गार हतदैव वि० कमनसीब; दुर्भागी हय पुं० घोडो [एक दैत्य हतप्रभाव दि० सत्ता के शक्ति विनानुं । हयग्रीव पं० विष्णनो एक अवतार (२) हतप्रमाद वि० प्रमाद के बेदरकारी विनानुं हयन न० बंध गाडी; ढांकेली गाडी बनेलं के करायेलं [एवं हयमुख पुं० जुओ हयग्रीव' हतबुद्धि वि० बुद्धि बहेर मारी गई होय हयवाहन पुं० कुबेर हतभाग्य वि० कमनसीब [विनानुं हयसंयान न० घोडाने कावूमा राखवा हतविनय वि० दुष्ट; शिष्टताना ख्याल -केळववा के हांकबा ते [सारथि हतवीर्य वि० जुओ ' हतप्रभाव' हयंकष पुं० सारथि (२) मातलि ; इंद्रनो हतश्री वि० कंगाल; दरिद्र हया, हयो स्त्री० घोडी हतसाध्वस वि० भयमुक्त हर वि० लई जनाएं; दूर करना; रहित हताश वि० निराश (२) निर्बळ ; करनारु (२)लावनाएं; वहन करनाएं अशक्त (३) क्रूर ; निर्दय (४) वंध्य (३) पकडनारुं (४) आकर्षनारुं (५) हति स्त्री० वध; नाश (२) घा; प्रहार दावो करनारं; हकदार (६)व्यापनार; (३) खोट; हानि (४) दोष; अपूर्णता रोकनारुं (७) पुं० शिव (५) गुणाकार हरगौरी स्त्री० शंकर अने पार्वतीनुं हतेक्षण वि० अंध श कतं एकत्रित स्वरूप हतोत्तर वि० जवाब न आपतुं के आपी हतोद्यम वि० जेनो प्रयत्न दबावी देवामां हरचूडामणि पुं० चंद्र आव्यो छे तेवं हरण न० लेवु ते; पकडवं ते (२) लई हत्या स्त्री० वध; कतल जवू ते; चोरी जवू ते (३) दूर करवू ते; हत्वन् वि० वध करनारुं नष्ट करते (४)लग्ननी भेट हद् १ आ० मलोत्सर्ग करवो; अघवं । हरनेत्र न० शिवनी आंख (त्रीजी) हन् २५० हणवू; मारवु; वध करवो हरवल्लभ पुं० धंतूरो (२)प्रहार करदोघा करवो (३)पीडवू; हरवाहन पुं० नंदी; आखलो त्रास आपवो (४)तजवू; निग्रह करवा हरसख पुं० कुबेर (५) दूर करवू;नाश करवो (६)जीत; हरसूनु पुं० कार्तिकेय ; स्कंद हरावयु (७) विघ्न करवू; अवरोध हराद्रि पुं० कैलास पर्वत (८) उछाळवं; उराडवू (९) जq। हरि वि० पोपटी रंगर्नु; लीलाश पडतुं हन वि० मारनारुं; घातक (समासने पीळ (२) बदामी; कपिल रंगनुं (३) अंते; उदा० वृत्रहन्, पितृहन्) पीळ (४) पुं० विष्णु (५) इंद्र (६) हन पुं० वध ; नाश शिव (७)पवन (८)घोडो (९) इंद्रनो हनन न० वध (२) ईजा (३) गुणाकार घोडो (१०)वानर (११) इंद्रिय हनु पुं०, स्त्री० हडपची (२) स्त्री० हरिकेश पुं० शिव शस्त्र (३) रोग (४) मृत्यु (५) वेश्या हरिचंदन पुं०, न० एक प्रकारचें पोळं Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरिण. चंदन (वृक्ष के लाकडु) (२) पांच देववृक्षोमांनुं एक हरिण वि० फीकुं; धोळाश पडतुं पीछे (२)पीळाश पडतुंधोळं (३) किरणोवाळू (४) पुं० मृग; हरण (५) सूर्य (६)विष्णु (७)शिव(८)धोळो रंग हरिणक पुं० हरण; मृग [वाळो) हरिणलांछन पुं० चंद्र (हरणना चिह्नहरिणाक्ष वि० हरण जेवी आंखवाळू (२) पुं० शिव वाळी स्त्री हरिणाक्षी स्त्री. हरण जेवी सुंदर आंखोहरिणांक पुं० चंद्र हरिणी स्त्री. हरणनी मादा; मृगली (२)स्त्रीओना चार वर्गमांनो एकचित्रिणी हरिणीदश वि. हरण जेवी आंखोवाळू (२)स्त्री० हरण जेवी आंखोवाळी स्त्री हरित वि० लीलुं; लीलाश पडतुं (२) पीछं; पीळाश पडतुं (३) लीलाश पडतुं पीळू (४)पुं० लीलो के पीळो रंग (५) सूर्यनो घोडो (६) झडपी घोडो (७) पुं०, न० घास (८) दिशा; प्रदेश (९) खूणो; दिशा हरित वि० लोलु; लीला रंगनुं (२) घेरुं भूरूं; नील रंगनुं (३) पिंगळा रंगर्नु (४) पुं० लीलो रंग (५) सिंह (६) एक जातवें घास हरितक न० लीलु घास हरितच्छद वि० लीलां पानवाळं हरितहरि पुं० सूर्य हरिताल न० हरताल ; एक उपधातु हरित्तति पु० दिकपाल हरिदश्व पुं० सूर्य हरिवंत पुं० दिगंत; दिशानो छेडो हरिवंतराणि (हरित् + अंतराणि) न० ब० व० जुदी जुदी दिशाओ; जुदा जुदा प्रदेशो हरिद्रा स्त्री० हळदर हरिन्मणि पुं० लीलम मणि हर्षवर्धन हरिप्रिय पुं० कदंब वृक्ष (२)शंख (३) शिव [पृथ्वी हरिप्रिया स्त्री० लक्ष्मी (२) तुलसी (३) हरिरोमन् वि० अति युवान (कोमळ वाळवाळू) हरिवल्लभा स्त्री० लक्ष्मी (२) तुलसी हरिवाहन पुं० गरुड (२)इंद्र (३)सूर्य हरिवाहनदिश् स्त्री० पूर्व दिशा हरिशर पुं० शंकर (त्रिपुर बाळवा शंकरना बाण तरीके विष्णु थया हता) हरिश्चंद्र पुं० एक सूर्यवंशी राजा (सत्य वादी तरीके प्रसिद्ध छे) हरिसख पुं० गंधर्व हरिसुत, हरिमूनु पुं० अर्जुन (इंद्रनो पुत्र) हरिहय पुं० इंद्र (२) सूर्य (३) गणेश । हरिहेति स्त्री० सुदर्शन चक्र (२)मेघ धनुष्य हरिहेतिहूति पुं० चक्रवाक पक्षी हरीतकी स्त्री० हरडे; हीमज हर्त वि० हरण करनारूं; लूटी जनाएं (२)पुं० चोर; डाकु हर्म्य न० महेल; हवेली [ओरडो हर्म्यतल, हर्म्यपृष्ठ न० महेलनो उपरनो हर्म्यस्थल न० महेलनो ओरडो हर्यक्ष पुं० सिंह (२) कुबेर (३) शिव (४) हिरण्याक्ष हर्यश्व पुं० इंद्र (२)शंकर हर्ष पुं० हरख ; आनंद (२) रोमांच (३) तीव्र इच्छा हर्षगर्भ वि० आनंददायक [गयेलं हर्षजड वि० अति आनंदथी स्तब्ध थई हर्षण वि० हर्ष उपजावनाएं (२) रोमांच खडां करे तेवू(३)पुं० कामदेवनां पांच बाणमांनुं एक (४) न० आनंद; हर्ष (५) हर्ष उपजाववो ते (६) लश्करनो जुस्सो प्रेरवो ते हर्षदोहल पुं०, न० कामवासना हर्षवर्धन पुं० उत्तर हिंदनो एक महान Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आहुति हषित ५८७ हस्तकमल राजा; शक-प्रवर्तक गणाय छे. (ई०स० हविष्य न० होमवानुं ते; होमवानु द्रव्य ६०५ के ६०६) (२) घी (३.) घी अने चोखा हर्षित वि० हर्ष पामेलं; आनंदित थयेलं हविष्यान्न न० व्रत के उपवासना (२)न० आनंद; हर्ष दिवसोमां खावा लायक खोराक हर्षल वि० मजाकी ; परिहासशील (२) हविष्याशिन् पुं० अग्नि कामुक माटे अयोग्य) हविस् न० होमवानुं द्रव्य (२)घी (३) हर्षला स्त्री० दाढीवाळी कन्या (लग्न पाणी (४) शिव (५) यज्ञ (६)अन्न हल न० हळ (२) कदरूपापणुं; विरूपता .. हव्य वि० होमवानुं ते (२) न० घी (३) विघ्न (४) तकरार (३) देवोने अपाती आहुति (पितृओने हलगोलक पुं० एक कीडो अपाती ते 'कव्य') (४) आहति हलदी स्त्री० हळदर हव्यकव्य न० देव अने पितृओने अपाती हलघर, हलभृत् पुं० बळराम हला स्त्री० सखी; बहेनपणी (२)पृथ्वी हव्यवाह, हव्यवाह, हव्यवाहन पुं० हला अ० सखीने बोलाववा वपरातुं अग्नि (आहुतिने लई जनार) संबोधन हस् १५० हसवू; धीमेथी हसवू (२) हलायुध पुं० बळराम मजाक करवी; मश्करीमा हस, (३) हलाहल पुं०, न० समुद्रमंथन वखते चडियाता थq; पाछळ पाडी देवू (४) नीकळेलं अति तीव्र झेर (२) तीव्र झेर -ना जेवा देखावु (५)खीलवू; ऊघडवू हलिन् पुं० खेडूत ; खेडनारो(२)बळ राम (६) हर्षमा आवी जQ हलिप्रिय पुं० कदंब वृक्ष हसत् वि० हसतुं (२) मजाक करतुं हलिप्रिया स्त्री० मद्य (३) पाछळ पाडी देतुं हल्य वि० खेडवालायक; खेडवानुं (२) हसन न० हसवं ते; हास्य कुरूप; विरूप (३) न० खेडेलु खेतर हसनी, हसंतिका, हसंती स्त्री० सगडी (४) कुरूपता; विरूपता हसित (हस्' नुं भू० कृ०) हसेल; हल्लीश न० १८ उपरूपकोमांनुं एक; हसतुं (२) खीलेलं; ऊघडेलु (३)न० एक अंकनुं नाटक (एक पुरुष अने ७ थी हास्य (४) मजाक (५) कामदेवनुं १० स्त्री नटोनुं मुख्यत्वे गावा-नाचवा धनुष्य रूपी) (२)कुंडाळे वळी करातुं एक नृत्य हस्त पुं० हाथ (२) हाथीनी सूंढ (३) हल्लीशक पुं० कुंडाळे वळी करातुं नृत्य १३ मुं नक्षत्र (४) २४ आंगळ (१८ इंच) हल्लोष न० जुओ 'हल्लीश' जेटलं माप (५)हस्ताक्षर; सही (६) हल्लीसक जुओ 'हल्लीशक' (६) साबिती; पुरावो (ला०) (७) हव पुं० होम (२) यज्ञ (३)आह वान मदद; टेको (८) जूथ ; समूह (समासमां, हवन न० आहुति होमवी ते (२)होम; केश इ० साये) (९) न० चामडानी यज्ञ (३) पुं० अग्नि धमण (१०) कुशळता (हाथनी) हवनीय वि० होमने लगतुं (२) न० हस्तक पुं० हाथ (२) हाथनी स्थिति होमवानुं ते (३)घी (३) हाथ जेटली लंबाई-माप हविर्भुज पुं० अग्नि हस्तकमल न० कमळ जेवो हाथ (२) हविष्मती स्त्री० कामधेनु गाय हाथमांनुं कमळ Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हस्तगत ५८८ हस्तगत, हस्तगामिन् वि० हाथमा रहेलू; हस्तिदंत पुं० हाथीनो दंतूशळ (२) हाथमां आवेलं दीवालमां खोसेली खींटी (३) न० हस्ततल न० हथेळी (२)सूंढनो अग्रभाग हाथीदांत [पुं० हाथी हस्ततुला स्त्री० हाथमा लईने ज वजन हस्तिन् वि० हाथवाळू (२) सूंढवाळु (३) जाणवू ते [ते हस्तिनख न० किल्लाना दरवाजाना हस्तधारण न० (हाथ वडे) प्रहार खाळवो रक्षण माटेनो एक बुरज हस्तपाद न० हाथ तेम ज पग हस्तिनपुर, हस्तिनापुर न० हस्तिन् हस्तप्राप्य वि० हाथथी पहोंची शकाय राजाए वसावेलुं शहेर; पांडव-कोरवोतेवू [नासी छूटेलं नी राजधानी (अत्यारना दिल्हीथी हस्तभ्रष्ट वि० हाथमाथी छूटी गयेखें ५० माईल उत्तरपूर्वमां) हस्तरोधम् अ० हाथमां पकडीने । हस्तिनी स्त्री० हाथणी (२)स्त्रीओना हस्तलाघव न० हाथचालाकी; चपळता चार वर्गोमांथी एक हस्तलेख पुं० कळाकृति रचता पहेलां हस्तिप, हस्तिपक पुं० जओ 'हस्त्यारोह' हाथ वडे आकृति दोरवी ते हस्तिमद पुं० हाथीना लमणामांथी हस्तवत् वि० कुशळ ; हाथचालाकीवाळं नीकळतो एक प्रकारनो रस हस्तवतिन् वि० हाथमां पकडेलु ; हाथमां रहेलु (२) मेळवेलं; मळेलु हस्तिमल्ल पु० ऐरावत हस्तवाप पुं० हाथ वडे बाण छोडवां ते हस्तियूथ पुं०, न० हाथीओनुं टोळं हस्तसंवाहन न० हाथथी दबावq ते ; चंपी हस्तिवक्त्र पं० गणपति करवी ते दोरो हस्तिवाह पु० अंकुश (२) महावत हस्तसूत्र न० कडु अथवा हाथे बांधेलो हस्तिशाला म्बी० हाथीवाणु हस्तस्वस्तिक पु० हाथनो स्वस्तिक हस्तिस्नान न ० हाथीनुं स्नान (ते नाह रचवो ते (आडा हाथ धरवा ते) पछी मूढथी धूळ शरीर उपर नाख छे, हस्तंगत वि० हाथमां गयेलं;-ने कबजे तेना जेवी निरर्थक क्रिया) पडेलं हस्तिहस्त पु० हाथीनी सुंढ हस्ताक्षर न० पोताना हाथ- लखाण; हस्तेक ८ उ० हाथमां लेवू; कमजे लेव हस्ताग्न न० आंगळी (हाथनो छेडो) हस्त्याजीव पुं० महावत हस्तामलक न० हाथमा रहेलं आमळं हस्त्यारोह प० हाथी उपर सवारी (तेवी रीते स्पष्ट देखाती के समजाती करनारो के हाथीने हांकनारो वस्तु ला०) [टेको; मदद हल वि० हसत; स्मित करतुं (२) मूर्ख हस्तावलंब पुं०, हस्तावलंबन न० हाथनो हंजा स्त्री. दासी; नोकरडी हस्तावाप पुं० आंगळीओने धनुष्यनी हंजा अ० दासीने संबोधन पणछ न वागे ते माटे वपरातुं रक्षण हंजिका स्त्री० दासी माटे- मोजु (२) हाथनी बेडी हंजे अ० दासीने संबोधन हस्ताहस्ति अ० हाथोहाथ-; हाथोहाथ हंडा अ० हलकी कक्षानी स्त्रीओ माटेन आवी जवाय तेम संवोधन (२) हलकी वर्णनी स्त्रीओनु हस्तिक न० हाथीओनो समूह अरसपरस संबोधन (३) स्त्री० मोटो हस्तिजागरिक पुं० महावत; हाथीनी माटीनो हांडो (४) दासी । संभाळ राखनारो हंडिका, हंडी स्त्री० हांडी; माटी पासण सही Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हंत अ० आनंद, आश्चर्य, दया, खेद - ए अर्थो बतावे (२) कई करवानो आग्रह दर्शाववा के ध्यान रखेंचवा वपरातो उद्गार हंतु वि० मारना; वध करनारुं ( २ ) दूर करना; नाश करनारुं ( ३ ) पुं० ख़ूनी (४) चोर, डाकु हंतोक्ति स्त्री० 'अरेरे!' एम बोली दया बताववी ते हंबा स्त्री० ढोरनुं भांभरवुं ते हंबारव पुं० गायनुं भांभरवुं ते हंभा स्त्री० जुओ 'हंबा' हंभारव पुं० जुओ 'हंबारव' हंस पुं० एक पंखी ( तेनुं काव्यमय वर्णन घणं मळे छे : ब्रह्मा ने वाहन छे; वर्षाकाळे मानस सरोवर तरफ चाल्यो जाय छे; दूध अने पाणी जुदां पाडवानी शक्ति धरावे छे इ० ) (२) परब्रह्म परमात्मा (३) जीवात्मा ( ४ ) सूर्य (५) एक प्राणवायु ( ६ ) एक खास वो परिव्राजक ( 9 ) रूपुं; चांदी हंसक पुं० हंस ( २ ) नूपुर हंसकांता स्त्री० हंसी हंसनी मादा हंसगति वि० हंस जेवी चाल के गतिवाळु हंसगामिनी स्त्री० हंसनी माफक सुंदर गतिवाळी स्त्री हंसतुल पुं०, न० हंसना कोमळ पीछां हंसमाला स्त्री० ऊडता हंसोनी पंक्ति हंसरथ, हंसवाहन पुं० ब्रह्मा हो अ० 'अहो'; 'हे' एवो उद्गार ( २ ) आश्चर्य, तुच्छकार, प्रश्न एवी अर्थ बतावे हा अ० खेद, हताशा, दु:ख, आश्चर्य, क्रोध - ए अर्थो बतावतो उद्गार हा ३ आ० जनुं ( २ ) पहोंचबुं (३) ३ प० तजव; छोडी देव (४) जतुं करवुं (५) पडवा देवु (६) दुर्लक्ष करवु हारिन् - कर्मणि ० [ हीयते ] तजी देवावु भुलावं ( २ ) - थी बाकात रखावुं; -थी तजावु ( ३ ) - थी रहित होवुं; विनाना होवु (४) क्षीण थवुं ( ५ ) हारवुं ( दावमां ) - प्रेरक ० तजे के छोडे तेम करवुं (२) हांकी काढवु ( ३ ) खोवुं (४) दुर्लक्ष करवु; बेदरकार रहेवु; ढील करवी हाटक वि० सोनेरी; सोनानुं ( २ ) न० सोनुं (३) एक चमत्कारी पेय - पीणुं हान न० तजवुं ते ( २ ) हानि (३) नासी छूटवं ते ( ४ ) अपूर्णता अभाव हानि स्त्री० तजवुं ते; छोडी देवुं ते (२) अभाव; निष्फळता (३) नुकसान (४) अपूर्णता; क्षीणता (५) उल्लंघन; भंग (६) व्यतीत करवुं ते; नकामुं जवा देवुं ते (७) गति ('हा' ३ आ० उपरथी) हानिकर वि० नुकसान करनाएं हायक वि० त्यागनाएं; तजनाएं हायन पुं०, न० वर्ष हार पुं० लई जनुं ते; दूर करवुं ते ( २ ) हमाल ; मजूर ( ३ ) मोती वगेरेनी गळे पहेरवानी माळा [ माळा हारक पुं० चोर (२) ठग (३) मोतीनी हारगुटिका, हारगुलिका स्त्री० माळामांनुं मोती के मणको ५८९ हारयष्टि स्त्री० मोतीनी माळा हारावलि ( - ली ) स्त्री० मोतीनी माळा हारि स्त्री० पराजय ( २ ) संघ; वणजार हारित वि० लई जाय के पकड़े तेम करेलुं (२) बक्षिस करेलु - घरेलुं ( ३ ) खेंचायेलु (४) लूटायेलुं (५) खोवायेलुं (६) हरावायेलुं (७) पुं० लीलो रंग (८) एक जात पारे हारिद्र पुं० पीळो रंग (२) न० सोनुं हारिन् वि० लई जनाएं ; वहन करनाएं (२) चोरनारुं ; पडावी लेनारुं ( ३ ) आकर्षे ते ; मुग्ध करे तेवुं (४) चडि - यातुं; हरावे तेवुं (५) हारवाळं Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९० हारीत हारीत पुं० एक जातनु पारेवु (२) ठग हार्द वि० हृदयर्नु; हृदय संबंधी (२) न० स्नेह; प्रेम (३) मायाळुता (४) अभिप्राय; इच्छा हार्दिक्य पुं० कृतवर्मा (२) मित्रता हार्य वि० लई जवा योग्य (२) वहन करवा योग्य (३) पडावी लेवा योग्य (४) खसेडवा के उपाडी जवा योग्य (५)चलित करवा योग्य ; चलित थई शके तेवु (निश्चय इ०)(६) आकर्षी शकाय तेवू; जीती शकाय तेवु; मेळवी शकाय तेवू (७) नाश करवा योग्य (८) निवारवा योग्य (प्रहार इ०) (९) सुंदर; आकर्षक हाल पुं० हळ (२) बळराम हालभृत् पुं० बलराम हालहल न० भयंकर झेर; हळाहळ हालहली स्त्री० मद्य; दारू हाला स्त्री० मद्य ; दारू हालाहल न० अत्यंत उग्र झेर; हळाहळ (२) मद्य; दारू हालाहली स्त्री० मद्य; दारू हालिक पुं० खेडूत (२) हळ खेंचनार पशु (बळद इ०) (३)हळ वडे लडनारुं हाली स्त्री० साळी; पत्नीनी नानी बहेन हाव पुं० आमंत्रण; बोलावq ते (२) स्त्रीओनी शृंगारिक चेष्टा हावु [हा३७] अ० आनंदनो उद्गार हास पुं० हसवू ते; हास्य (२) आनंद; मजा (३) विनोद; उपहास; मश्करी (४) गर्व; अभिमान (५) खीलवं -ऊघडवं ते (कमळ इ० नुं) हासक पुं० भांड; मश्करो हासन वि० हसावे तेवू; मश्करूं हासस् पुं० चंद्र हास्तिक पुं० महावत (२) हाथी उपर सवारी करनारो (३) न० हाथीओनो समूह [(२) न० हस्तिनापुर हास्तिन वि० हाथी जेटलुऊंडु (पाणी) हितकर हास्य वि० सवा योग्य ; हांसीपात्र (२) न० हसत्रु ते (३) आनंद मोज (४) मजाक ; मश्करी (५) पुं० आठ (के नव) रसामांनो एक (काव्य) हास्यकार पुं० मश्करो हास्यपदवी स्त्री० हांसी : मश्करी हास्यरस पु० आठ रसमानो एक (काव्य) हास्यशील वि० मश्करीखोर; मश्कर हास्यास्पद न० हांसीने पात्र एवं ते हाहा पुं॰ एक गंधर्व [उद्गार हाहा अ० दुःख, शोक के आश्चर्यनो हाहाकार पुं० शोक; विलाप (२) युद्धनो कोलाहल हाहारव पु० 'हाहा' एवो अवाज हि अ०(वाक्यनी शरूआतमां नवपराय) कारण के. खरेखर, चोकस, दाखला तरीके, जाणीतुं छे तेम, मात्र, फक्त, ए. एकल ज-ए अर्थ बतावे (२) मात्र पादपुरक तरीके पण वपराय छे हि ५ प० माकलQ (२) फेंकवु (३) उश्केर ;प्रे (४) प्रसन्न करवु (५) जवू (६) तज; भूल हिक्क १ उ० हेडकी जेवो अस्पष्ट अवाज करवो (२) १० आ० हिंसा करवी; ईजा करवी हिक्का, हिक्किका स्त्री०, हिक्कित न० हेडकी (२) अस्पष्ट अवाज हिडिंब पु० भीमे हणेलो एक राक्षस हिडिबा स्त्री हिडिंब राक्षसनी बहेन; भीमनी पत्नी हित (धा'भू० कृ०) वि० मूकेलं (२) लीधेलु (३) योग्य ; हितकर (४) लाभदायक; पथ्य (५) –नी तरफ माया-ममता प्रेमवाळु (६) मोकलेलं; धकेलेल (७) आगळ गयेलं (८) प. मित्र; सलाहकार (९) न०भलं; कल्याण हितकर वि. हित करनारु (२) लाभदायक; उपयोगी (३) पुं० मित्र; उपकार करनारो Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हितकर्त हितकर्तृ वि० हितकर [ हितेच्छु हितकाम वि० हित करवानी इच्छावाळु; हितकाम्या स्त्री० बीजाना हितनी इच्छा हितकारक, हितकृत् वि० हितकर ( २ ) पुं० हित करनारो हितबुद्धि वि० हितेच्छु हितवचन न० हितकर सलाह हितानुबंधिन् वि० हित करनाएं हितान्वेषिन् वि० हितेच्छु हिताशंसा स्त्री० हित इच्छवं ते हितेच्छु वि० हित- भलुं इच्छनाएं हितैषिन् वि० हितचिंतक, हितेच्छु हितोपदेश पुं० मित्रताभरी सलाह; हितकर उपदेश हिम वि० ठंडु ( २ ) झाकळभर्युं ( ३) पुं० हेमंत ऋतु; शियाळो (४) चंद्र (५) हिमालय पर्वत ( ६ ) न० बरफ ( ७ ) खत ठार (८) अतिशय ठंडी हिमकर पुं० चंद्र हिमगिरि पुं० हिमालय पर्वत हिमगु पुं० चंद्र (शीतळ किरणवाळो ) हिमगृह न० ठंडक थाय तेवां साधनोवाळो ओरडो हिमदीधिति, हिमद्युति पुं० चंद्र हिमद्रुम पुं० लीमst हिमद्रुह, पुं० सूर्य [ वरसो ते हिमपात पुं० ठंडो वरसाद ( २ ) बरफ हिमरश्मि पुं० चंद्र हिमवत् वि० बरफवाळूं; झाकळवाळं (२) पुं० हिमालय पर्वत हिमवत्पुर न० हिमालयनी राजधानी ५९१ ( औषधिप्रस्थ ) हिमवत्सुता स्त्री० पार्वती (२) गंगा हिमवालुक पुं०, हिमवालुका स्त्री० कपूर हिमश्रथ पुं० चंद्र [ सरोवर हिमसरस् न० ठंडुं पाणी (२) बरफनुं हिमतपुं० चंद्र हिमस्रुति स्त्री० बरफनो वरसाद हिमागम पुं० हेमंत ऋतु; शियाळो हिंगु हिमाचल पुं० हिमालय हिमाचलजा, हिमाचलतनया स्त्री० पार्वती (२) गंगा नदी हिमाद्रि पुं० हिमालय पर्वत हिमाद्रिजा, हिमाद्रितनया स्त्री० पार्वती (२) गंगा नदी हिमानी स्त्री० बरफनो जथ्थो - ढगलो हिमापह पुं० अग्नि (ठंडी दूर करनारो) हिमाराति पुं० सूर्य ( २ ) अग्नि हिमारि पुं० अग्नि हिमारिशत्रु पुं० पाणी हिमार्त वि० ठंडीथी पीडायेलुं हिमालय पुं० हिमालय पर्वत हिमालयसुता स्त्री० पार्वती [झाकळ हिमांबु, हिमांनस् न० ठंडु पाणी ( २ ) हिमांशु पुं० चंद्र हिमांश्वभिख्य न० रूपुं हिमित वि० बरफ थई गयेलुं हिमोल पुं० चंद्र हिरण्मय वि० सोनानुं (२) पुं० ब्रह्मा हिरण्य न० सोनुं ( २ ) सोनानुं पात्र ( ३ ) पुं (४) कोई पण कीमती धातु ( ५ ) समृद्धि; धन दोलत हिरण्यकर्तृ पुं० सोनी [ पिता हिरण्यकशिपु पुं० एक दानव प्रह्लादनी हिरण्यगर्भ पुं० ब्रह्मा (२) विष्णु (३) सूक्ष्म शरीरयुक्त आत्मा हिरण्यद पुं० समुद्र हिरण्यदा स्त्री० पृथ्वी हिरण्यनाभ पुं० मैनाक पर्वत ( २ ) विष्णु हिरण्यय वि० सोनानुं ; सुवर्णमय हिरण्यरेतस् पुं० अग्नि (२) सूर्य (३) शिव हिरण्यव पुं० देवनुं द्रव्य ( २ ) सोनानुं घरेणुं [ भाई हिरण्याक्ष पुं० हिरण्यकशिपुनो जोडियो हिल ६ प ० हळवं ; रमवुं (२) कामभाव प्रकट करवो हिल्लोल पुं० मोजूं; तरंग हिंगु पुं० न० हिंगनुं वृक्ष (२) हिंग Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिंगुल, हिंगुल पु०, न० हिंगळोक हिजीर पुं० हाथीने पगे बांधवानुं दोरडु हिड १ आ० जq; भटकवू हिताल पुं० एक जातनो ताड हिदोल पु० हिंडोळो; झूलो हिंदोलक पुं०, हिंदोला स्त्री० हिंडोळो (२) पारj हिस् १,७५०, १० उ० हणवू; मार, (२) ईजा करवी (३) त्रास आपवो; पीडq (४) वध करवो; कतल करवी (५) नाबूद करवू [क्रूर हिंसक वि० ईजा करे तेवू (२) जंगली; हिसन न० मारी नांखवू ते हिंसनीय वि० हिंसा करवा योग्य हिंसा स्त्री० ईजा; त्रास; पीडा (२)हणवू ते; वध करवी ते; कतल करवी ते (३) लूट हिसारुचि वि० हिंसा के तोफानमां प्रीतिवाळू; ते करवाने तत्पर एवं हिसाल वि० हिंसक ; घातक हिसित वि० ईजा करायेलं (२) न० ईजा; पीडा हिंस्य वि० हिंसा करवा योग्य हिन वि० घातक; क्रूर; भयंकर; जंगली (२) पुं० हिंसक पशु (३)हिंसा करनारो(४)शिव (५) भीम (६) न० क्रूरता ही अ० आश्चर्य, थाक, खेद के शोक दर्शाववा वपरातो उद्गार हीन ('हा'न भू० कृ०) वि. त्यजेलं (२) रहित; विनानुं (३) बाकात राखेल (४)क्षीण (५) हलकुं; ऊतरतुं (६) नीच; दुष्ट हीनप्रतिज्ञ वि० बेवफा हीनवर्ण वि० हलका वर्णन होनवादिन वि० मुगु (२) खोटी साक्षी आपनाएं हीनसेवा स्त्री० हलका लोकोनी सेवा हीनांग वि० अपंग; शारीरिक खोडवाळ होर पु०, न० इंद्रनुं वज्र (२) हीरो हीरक पुं० हीरो [उद्गार हीही अ० आश्चर्य के आनंद दर्शावतो हु ३५० होमवु (२) यज्ञ करवो (३) खावू हुड पुं० घेटो (२) लोढानो सोटो- दंड हुडु पु० घेटो हुडुक्क पुं० डमरू (२) आगळियो हुत ('हुनुं भू० कृ०) वि० होमेलु (२) आहुति अपाई होय तेवू (३)पु० शिव (४) न० आहुति हुतभुज, हुतवह प० अग्नि हुताग्नि वि० आहुति अी होय तेवू (२) पुं० यज्ञनो अग्नि हुताश, हुताशन पुं० अग्नि (२) शिव हुताशनी स्त्री० फागणनी पूनम हम अ० प्रश्न, संमति, संशय, क्रोध, याद, मंत्रोक्त उच्चार, निवारण - आ अर्थो सूचवतो उद्गार हुर्छन न० कपट; कुटिलपणुं हुल १ प० जर्बु (२) संताडवू हुल पुं० एक जात, ओजार के छरी हुलहुली स्त्री० स्त्रीओनो आनंददर्शक उद्गार हलिहुलि स्त्री० लग्न वखत संगीत (२) घूरकवु ते; गरज, ते हुहु, हुहू पुं० एक गंधर्व हुंक ('हुम्' एम गर्जना करवी) है अ० आमंत्रण, तिरस्कार, शोक "अने गर्व - ए अर्थ बतावतो उद्गार हण पुं० जंगली माणस; परदेशी (२) ए लोकोना देशमा प्रचलित सोनानो एक सिक्को [देशना लोको हूणाः पुं० ब० व० एक देश अथवा ते हूत ('' नुं भू० कृ०) वि० बोलावेलु; ___ आमंत्रेलु [ते (३)नाम हूति स्त्री० बोलाव, ते (२)पडकार, हून पुं० जुओ 'हूण' उद्गार) हुम् अ० जुओ 'हुम् ' (गुस्सो दर्शावतो Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हूहू हूड, हूहू पुं० एक गंधर्व हृ १ उ० लई जवुं (२) दूर उपाडी जवुं (३) लूट, चोरवं (४) दूर करवुं; मटाडवु; नाश करवो ( ५ ) आकर्षवु; जीती लेवु; वश करवुं (६) मेळववुं; प्राप्त करवुं ( ७ ) पाछळ पाडी देवुं; चडियातुं थवं ( ८ ) परणवुं हृच्छय पुं० कामदेव (२) प्रेम ( ३ ) अंतर्यामी हणिया स्त्री० ठपको (२) शरम हृणीते आ० ( गुस्से थवु; शरमावुं; शरमिंदु बनवुं ) हृणीया स्त्री० जुओ 'हृणिया ' हृत् वि० (समासने अंते ज ) लई जतुं, आकर्षतुं दूर करतुं इ० हृत ('हृ' नुं भू० कृ० ) वि० लई जवायेलं (२) पकडायलं (३) आकर्षायेलं ( ४ ) स्वीकारायेलं इ० हृतसर्वस्व वि० जेनुं सर्वस्व हरी लेवायुं छे तेवुं [ लेवायो होय तेवुं हृतसार वि० सार के उत्तम अंश हरी हृतोत्तर वि० निरुत्तर करायेलुं हृत्पिड पुं०, न० हृदय हृत्सार पुं० धैर्य; धीरज ५९३ हृद् न० (प्रथम पांच रूप नथी; द्वितीया ब०व० थी 'हृदय' ने बदले विकल्पे मुकाय छे) मन; हृदय ( २ ) छाती ( ३ ) आत्मा ( ४ ) कोई पण वस्तुनुं हार्द हृदय न० ज्यांथी लोही शरीरमां धकेलाय छे ते अवयव (२) हैयुं; दिल; अंत:करण (३) छाती (४) प्रेम; स्नेह ( ५ ) कोई पण वस्तुनो अंतर भाग के सार भाग (६) गुप्त विद्या; साचुं के दिव्य ज्ञान (७) वेद (८) इरादो ( ९ ) अहंकार हृदयग्रंथि पुं० जेना वडे आत्मा बंधाय ( अविद्या) (२) जेथी हृदयने पीडा थाय ते हृदयग्राहिन् वि० हृदयने आकर्षे तेवुं हृदयज्ञ वि० हृदयनी गुप्त वात जाणनारुं हृदयदौर्बल्य न० हृदयनी दुर्बळता हृष्टमानस हृदयप्रमाथिन् वि० हृदयने मथी नाखे - फाडी नाखे बुं हृदयप्रस्तर वि० क्रूर; क्रूर हृदयनुं हृदयवेषिन् वि० हृदय वींधी नाखे तेवुं हृदयशल्य न० हृदयनो घा; हृदयमां वागेल कांटो (२) तेना जेवी पीडा करतो हृदयनो रोग हृदयसंमित वि० छाती जेटलुं ऊंचं हृदयस्थ वि० हृदयमा रहेलुं; हृदयमां संघरेलु हृदयंगम वि० हृदयने स्पर्शे-कंपावे तेवुं (२) सुंदर (३) आकर्षक; मधुर ( ४ ) उचित (५) प्रिय [ हृदयवाळं हृदयालु वि० कोमळ हृदयनुं; मायाळु हृदयेश, हृदयेश्वर पुं० पति हृदय वि० हृदयने प्रिय [ भमरो हृदावर्त पुं० घोडानी छाती पर वाळनो हृद्गत वि० हृदयमां- मनमा रहेलुं; चितवेलुं (२) न० इरादो हृद्देश पुं० हृदयस्थान; हृदयनो भाग हृद्रोग पुं० हृदयनो रोग ( २ ) शोक; चिता (३) प्रेम वि० हृदयपूर्वक होय तेवुं (२) प्रिय (३) आहलादक; रम्य (४) मायाळु ) भावे तेवुं; रुचिकर [ दुःखावो हृल्लेख पुं० ज्ञान (२) तर्क ( ३ ) हृदयनो हुल्लेखा स्त्री० चिंता; अफसोस हृष १, ४ ५० हर्ष पामवो (२) रोमांच खडां थवां हृषित ('हृष् ' नुं भू० कृ० ) वि० प्रसन्न - खुश - हर्षित थयेलुं ( २ ) रोमांच खडां थयां होय ते हृषीक न० इंद्रिय [ स्वामी) हृषीकेश पुं० कृष्ण; विष्णु ( इंद्रियोनो हृष्ट ('हृष् 'नं भू० कृ० ) वि० आनंदित; हर्षित (२) रोमांचित हृष्टचित्त, हृष्टमनस्, हृष्टमानस वि० प्रसन्न; खुश थयेला अंतरवाळु Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हृष्टरूप ५९४ हैमन हृष्टरूप वि० खुशीमा आवी गयेलू; हेमाद्रि पुं० सुमेरु पर्वत खुशमिजाज हेमात पुं० जंगली चंपो (२) धंतूरो हृष्टि स्त्री० आनंद; सुख ; प्रसन्नता हेमांक वि० सोनाथी सुशोभित हे अ० संवोधन, आह्वान, मत्सर, असं- हेमांग वि० सोनानुं मति -ए अर्थ दर्शावतो उद्गार हेमांभोज, हेमांभोरुह न० सोनेरी कमळ हेक्का स्त्री० हेडकी हेय वि० त्याज्य हेड् १ आ० अवगणवू; तिरस्कारदुं (२) हेर न० एक जातनो मुगट (२) हळदर १ प० वींटq; घेरवु (३) पहेरवं. (३) आसुरी माया हेति पुं०, स्त्री० शस्त्र; आयुध (२) हेरक पुं० जासूस; गुप्तचर प्रहार (३) सूर्यकिरण (४)प्रकाश; तेज हेरंब पुं० गणेश (५) ज्वाळा (६) साधन; ओजार हेरंबजननी स्त्री० पार्वती हेतु पुं० कारण ; प्रयोजन; निमित्त (२) हेरिक पु० जासूस; गुप्तचर मूळ ; उत्पत्तिस्थान (३) अनुमान कर- हेरुक पुं० रुद्रनो एक गण (२) गणेश • वानुं तार्किक कारण (४) तर्कशास्त्र हेल १ आ० अवज्ञा करवी (५) संसार; प्रपंच (जीवात्माना हेलन न०, हेलना स्त्री० अवहेलना; बंधD कारण) (६) किंमत; मूल्य तिरस्कार हेतुक वि० उत्पन्न करतुं (समासने अंते) हेला स्त्री० अवज्ञा; तिरस्कार (२) (२) पुं० कारण (३) साधन (४) शृंगारचेष्टा; विलास (३) आनंद; तर्कशास्त्री लीला (४) उत्कट कामवासना (५) हेतुगर्भ वि० सकारण; सहेतुक अनायास; सरळता; सहेलाई (६) हेतुदुष्ट वि० तर्कसंगत नहि एवं चांदनी हेतुना अ० -ने कारणे; -ना हेतुथी हेलि पुं० सूर्य (२)स्त्री० शृंगारचेष्टा; हेतुवाद पुं० वादविवाद ; चर्चा (२) कपट विलास (३) आलिंगन (४) वरघोडी (३) शंकाशीलता के नास्तिकताथी हेवाक पुं० इंतेजारी; आतुरता तर्क उठाववो ते हेतोः अ० –ना कारणथी हेवाकिन् वि० आतुर; इंतेजार हेत्वाभास पुं० भ्रामक हेतु (न्याय०) हेष १ आ० हणहणवू; गर्जवं हेम, हेमक न० सोनुं हेष पुं०, हेषा स्त्री०, हेषित न० घोडानुं हेमकुंभ पुं० सोनानो घडो हणहणवू ते; हणहणाट हेमकूट पुं० एक पर्वत हेषिन् पुं० घोडो [अने भीमनो पुत्र हेमकेश पुं० शंकर हैडिब, हैडिबि पुं० घटोत्कच; हिडिंबा हेमगिरि पुं० सुमेरु पर्वत हैतुक पुं० तर्क करनारो; बुद्धिवादी हेमन् न० सोनुं (२) धंतूरो (२) नास्तिक हेममालिन् पुं० सूर्य हैम वि० ठंडीने लगतुं; ठंडु (२) हिमथी हेमल पुं० सोनी (२) कसोटीनो पथ्थर __थयेलु (३) सोनानुं बनेलु (४) सोनेरी हेमसूत्र, हेमसूत्रक न० गळानुं एक घरेणुं . रंगनुं (५) पुं० शिव (६) न० हिम; हेमंत पुं०, न० छ ऋतुओमांनी एक; झाकळ ठंडीनी ऋत् (मार्गशीर्ष अने पोष हैमन वि० ठंड ; ठंडीने लगतं (२)हेमंत ए बे महिना) ऋतु संबंधी (लांबू; जेम के रात्रि) Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैममुद्रा (३) शियाळामां थ] ; शियाळाने लगतुं (४) सोनानु; सोनानुं बनेल (५) पुं० हेमंत ऋतु हैममुद्रा, हैममुद्रिका स्त्री० सोनामहोर हैमवत वि० बरफवाळं (२) हिमालय पर्वतमांथी नीकळतुं (३) हिमालयमां रहेतु; हिमालय संबंधी (४) न० भारत । हैमवतिक वि० हिमालयमा रहेतुं हैमवती स्त्री० पार्वती (२) गंगा हैमंत, हैमंतिक वि० शियाळानु; ठंडु (२) हेमंत ऋतुमां थतुं; हेमंत ऋतु संबंधी (३) न० एक प्रकारना चोखा हैयंगव, हैयंगवीन न० आगला दिवसना दूध, घी (२) ताजु माखण . हैरण्य वि० सोना-; सोनानुं बनेलं हैरण्यवासस् वि० सोनानां पीछांवाळं (जेम के बाण) हैरिक पुं० चोर हैहय पुं० यदुराजानो प्रपौत्र; सहस्रार्जुन हैहयाः पुं० ब० व० एक देशनुं नाम'; ते देशना लोकोतुं नाम हो अ० आह्वान, संबोधन, के आश्चर्य -ए अर्थमां वपरातो उद्गार होड़ १ आ० अनादर करवो होड पुं० तरापो; होडी होढ न० चोरायेलो माल होतृ वि० होम करना(२)पुं० यज्ञ वखते ऋग्वेदनी ऋचाओ गानारो पुरोहित (३)होम-यज्ञ करनारो (४)अग्नि होत्र न० आहुति (२) यज्ञ होत्रा स्त्री० स्तुति (२) ऋत्विज होत्रिन् पुं० होम करनारो ऋत्विज । होत्री स्त्री० होम करनार (शिवनां आठ स्वरूपोमां- एक) होम पं० अग्निमां होम करीने देवोने आहुति अर्पवी ते (२)आहुति (३) यज्ञ । होमतुरंग पुं० यज्ञनो घोडो होमधेनु स्त्री० आहुति माटे दूध आपनारी गाय ह्रीत होम्य न० घी (२) होम द्रव्य होरा स्त्री० राशिनो उदय (२) राशि के लग्ननो अ? भाग (३) अढी घडी; कलाक (४) जेन्मकुंडली के ते परथी भविष्य भाखवानी विद्या [पोंक होलक पुं० ओळा; चणाना पोपटानो होलाका, होलिका, होली स्त्री० होलीनो उत्सव (२) फागण सुद पूनम हनु २ आ० लई लेवू; लूटी लेवू (२) छुपाववु; संताडवु (३) संताई जर्बु अ० गई काले; काले शस्तन वि० गई कालनु खाडो ह्रद पुं० धरो; ऊंडु सरोवर (२) ऊंडो ह्रदिनी स्त्री० नदी (२) वीजळी ह्रस् १ प० अवाज करवो (२) क्षीण थवू; अदृश्य थर्बु ह्रसित ('ह्रस्'न भू० कृ०) वि० अवाज करेलु (२) ट्रॅकुं करेलु हसिष्ठ वि० सौथी अल्प ('ह्रस्व'नु श्रेष्ठतादर्शक रूप) हनीयस् वि० (बेमां) वधारे अल्प ('ह्रस्व'नुं तुलनात्मक रूप) ह्रस्व वि० अल्प; थोडं (२) वामगुं; नीचुं (३) ट्रॅकुं [करवी हाद १ आ० अवाज करवो; गर्जना ह्राद पुं० घोंघाट; अवाज; गर्जना ह्रादिनी स्त्री० इंद्रनुं वज्र (२) नदी (३) वोजळी ह्रास पुं० अवाज; घोंघाट (२) घटवू ते; क्षीणता (३) नानी संख्या (४) अछत हिणीयते आ० जुओ 'हृणीयते' हिणीया स्त्री निंदा; ठपको (२) शरम; लज्जा ह्री ३ प० शरमावू; विनय देखाडवो ___-प्रेरक० शरमिदं करवू ही स्त्री० शरम ; लज्जा ह्रीण, ह्रीत ('ह्री' नुं भू० कृ०)वि० शरमावेलु Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होति ह्रीति स्त्री० शरम; लज्जा ह्रीनिषेव वि० शरमाळ ह्रीपद न० शरमनुं कारण ह्रीमूढ वि० शरमथी विह्वळ बनी गयेलुं ह्रीयंत्रणा स्त्री० शरमनो संकोच ह्रीवेर, ह्रीवेल न० एक प्रकारनी सुगंधी, (वीरणनो वाळो ) हेपण न० शरमिंदु करवुं ते ( २ ) [पाडी दीघेलुं ह्रेषित वि० शरमिंदु करेलुं ( २ ) पाछळ हृषु १ आ० हणहणवुं [हणाट हेषा स्त्री०, लेषित न० घोडानो हणह्लाद् १ आ० आनंद पामवुं ( २ ) अवाज करवो (३) आनंददायक नीवडवुं ५९६ ह्लाद, ह्लादक पुं० आह्लाद; आनंद ह्लादन न० आनंद पामवुं ते ( २ ) आनंद आपवो ते ह्लादित वि० आनंद पामेलं ह्लादिन् वि० आनंद आपतु (२) मोटा अवाजवाळु ह्वल १ ५० जनुं (२) हालवु; धूजवं (३) ठोकर खावी; गबडवुं - प्रेरक० धुजाववु; हलावबुं ह्वान न० बोलाववुं ते ( २ ) अवाज ; बूम (३) पडकार (युद्ध माटे) ह्वे १० बोलाववुं; नाम दईने बोलाववुं ( २ ) पडकावुं (३) हरीफाई करवी (४) याचबुं Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकंपन ५९७ अमरकंटक परिशिष्ट १: विशेषनाम-सूची [म्यक्तिओ तथा स्थळो वगेरेनां विशेषनाम] अकंपन पुं० एक राक्षस; रावणनो दूत. लेवा आव्या; त्यारे तेमणे तेमने अगस्ति, अगस्त्य पुं० एक प्रख्यात ऋषि; बाळक बनावी दीधा हता. मित्रावरुणना पुत्र. ऊंचा विंध्य पर्वतने अनंतशयन न० त्रावणकोर; श्रीरंगआडो पाडी, ओळंगीने दक्षिण तरफ पट्टन. (अनंत - शेषनाग उपर सूतेला गया. दक्षिण तरफ आर्य संस्कृति लई विष्णुनां मंदिरोनुं धाम) जनार ते प्रथम पुरुष गणाय. तेमनी अनिरुद्ध पुं० श्रीकृष्णना पुत्र प्रद्युम्ननो पत्नीनुं नाम लोपामुद्रा. समुद्रमा रहे- पुत्र; बाणनी पुत्री उषा (ओखा) नी नारा कालकेय राक्षसनो समुद्र पी साथे गुप्त रीते लग्न करेलु. जईने तेमणे नाश करेलो. अनुराधपुर न० सिलोननी प्राचीन अघ पुं० कंसना पक्षनो असुर; श्रीकृष्णे राजधानी. बुद्धगयाथी बोधिवृक्षनी तेनो वध कर्यो हतो. डाळी लावीने अशोकना पुत्र महिंदे अज पुं० सूर्यवंशी राजा; रघुनो पुत्र अहीं रोपेली. अने दशरथनो पिता. तेनी राणीनुं अनूपदेश पुं० नर्मदा नदी उपर आवेलो नाम इंदुमती; जेना अणधार्या मृत्युथी प्रदेश; दक्षिण माळवा, हैहय, महिष, अजे करेलो विलाप कालिदासे 'रघुवंश' अने माहिषक नामे पण ओळखाय महाकाव्यमां वर्णव्यो छे. छे. राजधानी माहिष्मती. सहस्रार्जुन अजामिल पुं० कान्यकुब्जनो एक तेनो राजा हतो. ब्राह्मण. पछी एक शूद्र स्त्रीनी लते अपरांत पुं० उत्तर कोंकण. शूप्पारक चडी गयो हतो. मरती वखते तेना तेनी राजधानी. अशोकनो एक शिलापुत्र नारायणने बोलाववा जतां तेने लेख आ भागमां ताजेतरमा मळी भगवाननुं नाम याद आव्या जेवू थयु आव्यो छे. अने ते सुधरी गयो. अप्पय्य दीक्षित पुं० अलंकार विषेना अत्रि पुं० एक प्रजापति; सप्तर्षिमांना ग्रंथ 'कुवलयानंद' ना कर्ता. दक्षिण एक ; अनसूया तेमनां पत्नी; दत्तात्रेय हिंदमां जन्मेला; १७ मा सैकाना तेमना पूत्र. पूर्वार्धमां थई गया. अदिति स्त्री० दक्षनां पुत्री; कश्यपनां अभिमन्यु पुं० अर्जुन अने सुभद्रानो पत्नी; विष्णु-इंद्र वगेरे देवोनां माता. पुत्र. विराट राजानी पुत्री उत्तराने बार आदित्यो तेमना पुत्र. परणेलो. परीक्षित तेनो पुत्र. अनसूया स्त्री० अत्रिऋषिनां पत्नी; महाभारतना युद्ध वखते कौरवोनो दत्तात्रेय-दुर्वासानां माता; महा पति चक्रव्यूह तेणे एकलाए भेद्यो खरो; व्रता तथा तपस्विनी गणाय छे. ब्रह्मा- पण पछी कौरवपक्षी छ बळियाओए विष्णु-महेश पोतानी पत्नीओना कहे- भेगा थई तेने हण्यो. वाथी तेमना पतिव्रतापणानी परीक्षा अमरकंटक पुं० एक पर्वत. नर्मदा नदी Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमरसिंह तेमांथी नीकळे छ. गोंडवननी मेकल पर्वतमाळानो भाग छे. 'मेघदूत' ना १७ मा श्लोकमां वर्णवेल आम्रकूट आ हशे . अमरसिंह पुं० प्रसिद्ध कोशकार. विक्रमादित्यना दरबारनां नव रत्नोमांनो एक गणाय छे. ते जैन हतो. पांचमा सैकामां थई गयो. तेना प्रसिद्ध 'अमरकोश' मां आशरे १५९२ अनुष्टुप छंदना श्लोको छे अने संस्कृत भाषाना २५००० शब्दोनो अर्थ ते आपे छे. ५९८ अमर, अमरुक, अमरू पुं० ' अमरु - शतक' नो कर्ता. आठमा सैकानो आनंदवर्धन तेनो उल्लेख करे छे. शंकराचार्य कामशास्त्र शीखवा ते राजाना मृत शरीरमां पेठा हता एम कहेवाय छे. अरट्ट पुं० जुओ 'आरट्ट ' अरुण पुं० कश्यप - विनतानो पुत्र. सूर्यनो सारथि. गरुडनो मोटो भाई, संपाति अने जटायुनो पिता. प्रसवकाळ पहेलां जन्म्यो होवाथी तेने चरण नहोता. अरुंधती स्त्री० वसिष्ठनी पत्नी. कर्दमनी पुत्री पतिव्रतापणाना आदर्शरूप गणाय छे. लग्नविधि वखते सप्तर्षि - मांना वसिष्ठना तारा पासे आवेला अरुंधतीना तारानुं दर्शन तेथी वरबहु कराववामां आवे छे. अर्जुन पुं० ( १ ) कार्तवीर्य, सहस्रार्जुन. परशुरामे तेने हणेलो. (२) पांच पांडव पैकी कुंतीना त्रण पुत्रांनो श्रीजो. कुंतीने इंद्रथी प्राप्त थयेलो. गांडीवधारी. श्रीकृष्णे तेना सारथि थईने महाभारतना युद्ध वखते गीता उपदेशेली. अलकनंदा स्त्री० (१) हिमालयमां आवेल वसुधारामां आ नदीनुं मूळ छे. गंगाने मळे छे. (२) गंगा नदीनुं नाम. अहिच्छत्रा अलिंद पुं० पूर्वं तरफनो देशविशेष. अवंति ( - ती) स्त्री० आजनुं उज्जयिनी. हिंदुओनां सात पवित्र नगरोमांनुं एक. त्यां मरवाथी मोक्ष प्राप्त थतो मनाय छे. ( अयोध्या - मथुरा- मायाकाशी - कांचि - अवंतिका - द्वारावती. ) मालवदेश (माळवा) नी राजधानी. अश्मक पुं० आ प्राचीन देश क्यां आव्यो हशे ते चोक्कस कही शकातुं नथी. अशोकना वखतमां ते महाराष्ट्रनो भाग हतो. बौद्धो जेने अस्सक कहे छे ते गोदावरी अने माहिष्मतीनी बच्चे नर्मदा नदी उपर आव्यो; तेनी राजधानी प्रतिष्ठान. ते त्रावणकोरनुं प्राचीन नाम पण छे. अश्वघोष पुं० बौद्ध लेखक. ईसवी सन - ना प्रथम सैकामां थयो हशे . 'बुद्धचरित' तेनो जाणीतो ग्रंथ. अश्वत्थामन् पुं० द्रोणाचार्यनो पुत्र. चिरंजीवी गणाय छे. पांडवोना सूतेला पांच पुत्रोने तेणे मारी नाख्या हता. तेथी थयेला युद्ध वखते तेणे ब्रह्मास्त्र छोड्युं हतुं. अश्वपति पुं० ( १ ) सावित्रीनो बाप ; मद्रदेशनो राजा. (२) कैकेयीनो पिता. अश्विनीकुमार पुं० सूर्यने संज्ञाथी थयेला जोडका पुत्रो. देवोना वैद्य तरीके प्रसिद्ध छे. अष्टावक्र पुं० कहोड ऋषिनो पुत्र. पिता गुस्से थई शाप आपवाथी आठ अंगे वांको जन्म्यो हतो. असिक्नी स्त्री० पंजाबनी एक नदी - चिनाव. अहल्या स्त्री० गौतम ऋषिनी पत्नी. इन्द्रे छेतरी तेनुं पातिव्रत्य नष्ट क होवाथी शाप पामी ते शल्या बनी गई हती. रामे. तेनो पाछो उद्धार कर्यो अहिच्छत्रा स्त्री० द्रुपद राजानी नगरी Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५९९ अंगद उत्तर पंचाल (रोहिलखंड) -नी राजधानी. अंगद पुं० (१) वालिनो पुत्र. रामे तेने रावणने त्यां विष्टि करवा मोकल्यो हतो. (२) दशरथ-पुत्र लक्ष्मणनो पूत्र. अंगिरस पुं० ब्रह्माना १० मानस पुत्रोमांना एक; सप्तर्षिमांना एक; बृहस्पतिना पिता. अंजना स्त्री० केसरी वानरनी पत्नी; हनुमाननी माता. मरुत् देव (पवन) तेने देखी मोहवश थई गया हता; पण ते तेमने वश न थई. पछी मात्र मरुत् देवनी कामेच्छाथी ज तेने पवनना जेवो बळवान पुत्र थयो. हनुमान तेथी मारुति पण कहेवाय छे.. अंतर्वेदि (-दी) स्त्री० गंगा-यमुना वच्चेनो, प्रयागथी हरद्वार सुधीनो पवित्र प्रदेश. अंधक पुं० (१) एक असुर. तेने हजार माथां हता. स्वर्गमांथी पारिजात वृक्ष हरी जवा गयो त्यारे शिवे तेने मार्यो हतो. (२) यदुनो वंशज अने श्रीकृष्णनो पूर्वज. तेना भाई वृष्णि साथे ते अंधक-वृष्णिओना प्रसिद्ध कुळनो पूर्वज गणाय. अंध्र पुं० आजनो तेलंगण प्रदेश. पश्चिमे घाट, उत्तरे गोदावरी, दक्षिणे कृष्णा. अंबरीष पुं० मनुवैवस्वतनो पौत्र अने नाभागनो पुत्र. मोटो विष्णुभक्त गणाय छे. (२) सगरनो वंशज अने दशरथनो पूर्वज; त्रिशंकुनो पुत्र. अंबष्ठ पुं० तक्षशिलानी पूर्वे आवेलो प्रदेश तथा तेना वतनी. आजनो लाहोर तरफनो प्रदेश. अंबा स्त्री० काशीराजानी पुत्री. तेनी बे बहेनो साथे भीष्म तेने विचित्रवीर्य आभीर साथे परणाववा हरी लावेला; पण तेनी सगाई शाल्वराज साथे थयेली होवाथी भीष्मे तेने पाछी मोकली; पण ते राजाए बीजाने घेर गयेली तेने स्वीकारवा ना पाडी; भीष्मे पण पोताना ब्रह्मचर्यव्रतने कारणे तेनी साथे परणवा ना पाडी. आथी भीष्मनुं वेर वाळवा तेणे शिवने आराध्या. बीजे जन्मे ते शिखंडी तरीके भीष्मना मृत्युन कारण थई. अंबालिका स्त्री० (जुओ अंबा) काशी राजानी त्रीजी कन्या; पांडुनी माता. अंबिका स्त्री० (जुओ अंबा) काशी. राजानी बीजी कन्या; धृतराष्ट्रनी माता. आनर्त पुं० (१)वैवस्वत मनुनो पौत्र; शर्यातिनो पुत्र; एक सूर्यवंशी राजा. (२)हाल, सौराष्ट्र ; द्वारका (आनर्त नगरी) तेनी राजधानी; पछी वलभी तेनी राजधानी बन्यु. प्रभासतीर्थ तेमां आव्यु. आनर्तपुर, आनंदपुर न० उत्तर गुजरातन आजनुं वडनगर. ह्यएनत्सांगे तेनी मुलाकात लीधी हती. आपगा स्त्री० मद्र देशनी एक नदी; आजनी अयक; तेने कांठे शाकल नगर आव्यु हतुं. आभीर पुं० भारतना पश्चिम किनारा उपरनो देश (तापीथी देवगढ सुधीनो); गुजरातनो दक्षिण-पूर्व प्रदेश. आ प्रदेश चोक्कस क्यां आव्यो ते कहेवातुं नथी. महाभारतमा (२.३१) जणाव्या प्रमाणे आभीरो दरिया किनारा नजीक अने सरस्वती (सोमनाथ-गुजरात नजीकनी)नदीने किनारे रहेता हता. एक श्लोकमां जणाव्युं छे के कोंकणनी दक्षिणे, तापीना पश्चिमी किनारे विंध्य पर्वतमा आभीर देश छे. Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारट्ट आरट्टपुं० पंजाबनी उत्तर-पूर्वमां आवेलो देश; तेना घोडाओ माटे जाणीतो. (रावळपिंडीमां गुजरातना लोको हजु पोताना देशने हैरत के ऐरत देश आरण्य, आरण्यक पं० उज्जैन अने विदर्भनी दक्षिणे आवेलो देश; तगर तेनी राजधानी. आर्जीकीया स्त्री० विपाशा नदी (पंजाबनी बियास) आर्यभट्ट पुं० प्रसिद्ध ज्योतिषी. जन्म ई० स० ४७६. तेमनो प्रसिद्ध ग्रंथ 'आर्यसिद्धांत' उच्च गणितने आधारे रचायो छे. आर्यावर्त पुं० पूर्व अने पश्चिम समुद्र वच्चेनो, तथा उत्तरे हिमालय अने दक्षिणे विंध्य पर्वतनी वच्चेनो प्रदेश; आर्योर्नु रहेठाण. आर्यावर्त अने दक्षिणापथनी वच्चे नर्मदा नदी सरहद रूप. इक्षुमती स्त्री० कालिंदी नदी. रोहिल खंडना कुमाऊंमां थईने अने कनोज प्रदेशमां थईने वहेती. इक्ष्वाकु पुं० सूर्यवंशनो प्रथम राजा; वैवस्वत मनुनो पुत्र. इरावती स्त्री० पंजाबनी रावी नदी. इंदुमती स्त्री० अजराजानी पत्नी. दशरथनी माता. इंद्रजित् पुं० रावणनो पुत्र; महापराक्रमी योद्धो. छवटे लक्ष्मणने हाथे मरायो. इंद्रप्रस्थ न० यमुनाने डाबे कांठे आवेलं प्राचीन नगर; युधिष्ठिरनी राजधानी. अत्यारनुं जूनुं दिल्ही (जोके जमणे किनारे छे) ए नगरना स्थान तरीके गणावाय छे. उग्रसेन पुं० मथुरानो राजा; कंसनो पिता. उज्जयंत पुं० रैवतक पर्वत; आजनो गिरनार. उर्वशी उज्जयिनी स्त्री० माळवामां आवेल आज- उज्जैन; विक्रमादित्यनी राजधानी. हिन्दुओनी सात पवित्र नगरीओमांनी एक ('अवंति'); हिंदुओर्नु प्रथम याम्योत्तर वृत्त त्यांथी पसार थाय छे. उत्कल पुं० आजनुं ओरिसा. (ताम्रलिप्तनी दक्षिणे अने कपिशा नदी सुधी विस्तरेलो प्रदेश.) कटक अने पुरी तेनां मुख्य शहेर छे. कलिंगनो उत्तरनो भाग पण ते कहेवातुं ('उत्कलिङ्ग'); वैतरणी नदी तेनी उत्तरनी हद. उत्तर पुं० विराट राजानो पुत्र. उत्तरकुरु पुं० जगतना नव विभागोमांनो एक. हिमालयनी पेली बाजुए आवेलो मनाय छे तथा त्यां नित्यसुख प्रवर्ते छे एम कहेवाय छे. उत्तरकोसल पुं० अयोध्याप्रांत. उत्तरपंचाल पुं० रोहिलखंड. उत्तरा स्त्री० विराट राजानी पुत्री; अभिमन्युनी पत्नी. उत्तानपाद पुं० ध्रुवनो पिता. उदयन पुं० वत्सदेशनो राजा. उज्जयिनीनो राजा चंडमहासेन तेने पोताना नगरमा ठगीने लई आव्यो, पण उदयन पोताना प्रधाननी मददथी चंडमहासेननी पुत्री वासवदत्ता साथे नासी छूटयो. पछी राजकीय कारणोथी मगधना राजा प्रद्योतनी पुत्री पद्मावती साथे पण तेनु लग्न गोठववामां आव्यु. तेनी राजधानी कौशांबी. उर्वशी स्त्री० बदरिकाश्रममां तप करता नर-नारायणने लोभाववा इंद्रे अप्सराओ मोकली; त्यारे नारायणे पोताना उरुमाथी उर्वशीने पेदा करी, जेने जोईने पेली अप्सराओ शरमाई गई. एक वार शाप पामी उर्वशी पृथ्वी उपर आवी त्यारे पुरूरवाना प्रेममां पडी. अने तेनी पत्नी तरीके रही. Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उलूपी ६०१ कपिल उलपी स्त्री० नागकन्या; अर्जुन शीखवता द्रोणाचार्यनी मतिनी स्थापना गंगामां स्नान करतो हतो त्यारे तेने करी तेणे धनुर्वेद साध्यो. पछी क्षत्रियोने जोई मोहित थई ने तेने पाताळमां कनडे नहि ते माटे गुरुदक्षिणा तरीके खेंची गई. अर्जुनथी तेने एक पुत्र द्रोणाचार्ये तेनो अंगूठो मागी लीधो. थयो - इरावान्. ओघवती स्त्री० सरस्वतीना सात उशनस् पुं० दैत्योना आचार्य; तेमने प्रवाहोमांनो बीजो; तेनी पासे ज काव्य के शुक्राचार्य पण कहे छे.. महाभारतनुं युद्ध थयेलं. उशीनर पुं० (१) कंदहार देश.(२) भोज ककुत्स्थ पुं० सूर्यवंशी राजा; इक्ष्वाकु देशनो राजा; शिबिनो पिता. नो पौत्र. असुरो सामेनी लडाईमां उषा स्त्री० बाणासुरनी पुत्री; अनि- इंद्रे तेने मददे बोलावेलो. पछी इंद्रे रुद्धनी पत्नी. (जुओ अनिरुद्ध) सांढनुं रूप लई तेने पोतानी खूध ऊर्मिला स्त्री० जनकनी औरस पुत्री; उपर सवारी करावी, अने तेणे दशरथपुत्र लक्ष्मणनी पत्नी. असुरोने हराव्या. तेथी ते (ककुद्) ऋक्षवत् पुं० जुओ 'ऋष्यवत्' खूध उपर सवारी करनार (स्थ) ऋतुपर्ण पुं० इक्ष्वाकु वंशनो एक राजा. कहेवाय छे. तेनी पछी बधा सूर्यवंशी नळराजा बाहुक रूपे तेने त्यां रहेला. राजाओ 'काकुत्स्थ' नामे पण. ओळनळ तेमनी पासेथी पोतानी अश्व- खाय छे. विद्याना बदलामां अक्षविद्या- जूगटुं कच पुं० देवोना गुरु बृहस्पतिनो पुत्र; रमवानी विद्या शीखेलो. असुरोना आचार्य शुक्राचार्य पासे ऋषिक पुं० कांबोजनी उत्तरे आवेलो संजीवनी विद्या शीखवा रहेलो. एक देश. शुक्राचार्यनी पुत्री देवयानी तेना ऋष्यमूक पुं० पंपा सरोवर पासे मतंग प्रेममां पडेली; तेणे अनेक वार कचने पर्वत शिखर. वालिथी छुपातो असुरोना रोषमाथी बचावरावेलो. सुग्रीव त्यां रहेतो हतो. तुंगभद्राने कणाद पुं० वैशेषिक दर्शनना प्रवर्तक कांठे अणगुंदीथी आठ माईल दूर छे. एक ऋषि. (तेमना दर्शनने 'कणऋष्यवत् पुं० सात कुलाचल पर्वतोमांनो अणुनो वाद' कही शकाय.) एक. नर्मदा किनारे (रेवा प्रांत) कण्व पुं० कश्यपना कुळमां उत्पन्न थयेल आवेलो. एक ऋषि. मालिनी नदी तीरे तेमनो ऋष्यशंग पं० विभांडक मुनिना पुत्र; आश्रम ; शकुंतलाने तेमणे उछेरेली. जंगलमां ज ऊर्या होई तेमणे कदी कद्र स्त्री० कश्यपनी पत्नी; सोनी स्त्री जोई न हती. अंगदेशना लोमपाद माता; शेष, वासुकि, कर्कोटक राजाए पोताने त्यांथी अनावृष्टि दूर तक्षक, अनंत इ० तेना पुत्रो. करवा तेमने एक वेश्या द्वारा लोभावी कनखल न० एक तीर्थ; हरद्वारथी के पोताना राज्यमां आण्या. दशरथ माईल दूर आवेलं छे. राजाने तेमणे संतान माटे यज्ञ कपिल पुं० सांख्य शास्त्रना प्रवर्तक करावेलो. मुनि. कर्दम-देवहुतिना पुत्र. सगरन एकलव्य पुं० निषाद राजानो पुत्र; अश्वमेधना अश्वने शोधवा नीकळेल क्षत्रिय सिवाय बीजाने धनुर्विद्या न ६० हजार पुत्रोने तेमणे बाळी नाखेला Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कपिलवस्तु ६०२ काम्यक वन कपिलवस्तु न० बुद्धनुं जन्मस्थान; कद्रु इ० ने परण्या. देव, दैत्य, दानव, उत्तर प्रदेशना बस्ति जिल्लाना उत्तर- सर्प इ० पुत्रो तेमनाथी थया. पश्चिम भागमां आवेल भुइल ते छे । कंबोज पुं० जुओ 'कांबोज'. एम गणाय छे. कंस पुं० यादववंशीय उग्रसेन राजानो कपिशा स्त्री० (१) काबुला नदीनी पुत्र; मथुरानो राजा. तेनी बहेन उत्तरनो प्रदेश. पाणिनी जेने कापिशी (काकानी दीकरी) देवकी श्रीकृष्णना कहे छे ते; उत्तर अफघानिस्तान.(२) पिता वसुदेवने परणावेली. जरासंधनी ओरिसानी सुवर्णरेखा नदी. (३) कन्या वेरे ते परणेलो. बंगाळना मिदनापुर जिल्लामांथी वहेती कान्यकुब्ज पुं० कनोज. काली नदीने कासाई नदी. (जुओ 'सुह्म'). किनारे. गाधिराजानी राजधानी कयाधु स्त्री० हिरण्यकशिपुनी स्त्री; अने विश्वामित्रनुं जन्मस्थान. पछी प्रह लादनी माता. घणां राज्योनी राजधानी बनेलं. करतोया स्त्री० 'सदानीरा' पण कहे- काम पुं० कामदेव; तेनी पत्नी रति. वाय छे. रंगपुर, दिनाजपुर अने शिवने पार्वती तरफ मोहित करवा बोगरा जिल्लाओ वच्चे थईने वहेती प्रयत्न करवा जतां शिवे तेने त्री पवित्र नदी. बंगाळ अने कामरूप लोचन उघाडी भस्मीभूत करेलो. ए बे राज्यो वच्चेनी सरहद. पछी ते श्रीकृष्णना पुत्र प्रद्युम्न तरीके करूष पुं० अयोध्या अने मिथिला ए जन्म्यो. वसंत ऋतु तेनो मित्र गणाय छे; बेनी वच्चेनो देश. अने ते पांच फूलरूप बाणोवाळो कर्ण पुं० कुंतीने लग्न पहेलां सूर्यथी 'पंचशर' गणाय छे. थयेलो पुत्र. धृतराष्ट्रना अधिरथ कामधेन स्त्री० समुद्रमंथन वखते नामना सारथिए तथा तेनी पत्नी नीकळेलां चौद रत्नोमांनुं एक. ते राधाए उछे रेलो. तेथी ते 'सूतपुत्र' वसिष्ठने त्यां रहेती. इच्छित वस्तु के 'राधेय' नामे पण ओळखाय छे. ते आपती. कलिंग पं० ओरिसानी दक्षिणे गोदा- कामरूप पुं० आसाम. करतोया नदीथी वरीना मुख सुधी विस्तरतो प्रदेश. आजना आसामना छेडा सुधी विस्तरेखें ब्रिटिश अमल हेठळना उत्तर सरकार. राज्य. उत्तरे हिमालय अने पूर्वमां कलिंगनगर तेनी राजधानी-- चीननी सरहद सुधी ते विस्तो हशे. दरियाकिनाराथी थोड़ी दूर आवी हती. तेनो राजा दुर्योधननी मददे किरातो कदाच आजनी राजमहेन्द्री होय. अने चीन लोकोनुं सैन्य लईने आवेलो. कल्हण पुं० 'राजतरंगिणी' नो कर्ता. तेनी प्राचीन राजधानी 'प्राग्ज्योतिष'. काश्मीरना जयसिंह राजा (११२९- ('लौहित्य' अथवा ब्रह्मपुत्रानी बीजी ११५०)नो समकालीन. ए ग्रंथमां बाजुए.) काश्मीरना घणा राजाओनी माहिती कामाख्या स्त्री० आसामनुं गौहत्ति. मळे छे. तेने प्राग्ज्योतिषपुर गणवामां आवे छे. कश्यप पुं० कर्दमपुत्री कळाथी मरीचिने काम्यक वन न० इंद्रप्रस्थनी पश्चिमे थयेल पुत्र. दक्षनी १३ पुत्रीओ- सरस्वती नदीने किनारे आवेलुं बन. अदिति, दिति, दनु, सिंहिका, विनता, पांडवो वनवास दरम्यान त्यां घणा Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्तवीर्य दिवस रहेला. आ वन कुरुजांगल देशमां आवेलुं गणातुं. कार्तवीर्य पुं० एक यदुवंशी राजा. तेने हजार हाथ दत्तात्रेयनी कृपाथी मळेला. माहिष्मती तेनी राजधानी. परशुरामे तेने पोताना पितानी गाय हरवा बदल मारेलो. तेनुं 'अर्जुन' के 'सहस्रार्जुन' नाम पण जाणीतुं छे. ते न्याय अने धर्मी राज्य करतो एम प्रसिद्ध छे. कार्तिकेय पुं० शिवना पुत्र. शिवनुं वीर्य अग्निमां नाखेलुं ते झीली न शक्यो तेथी तेणे तेने गंगामां नाख्युं ( शर- बरुना झुंडमां ते पड्धुं होवाथी कार्तिकेयनुं नाम 'शरजन्मन् ' पण छे.) त्यांथी ते वीर्य ६ कृत्तिकाओ गळी गई; तेमणे दरेके एक एक पुत्रने जन्म आप्यो; पण पछी ते बधानी एक आकृति थतां छ माथां अने बार हाथवाळी आकृति थई. तेथी कार्तिकेय षण्मुख कहेवाय छे. ते देवोना सेनानी छे, अने तारकासुरनो तेणे नाश करेलो. मनुं वाहन मोर. कालकवन न० बिहारनी राजमहल टेकरीओ. आर्यावर्तनी पूर्वनी हद आनाथी बंधाती. कालकेय पुं० एक असुर वृत्रासुरने इंद्रे मार्यो त्यारे ते समुद्रमां छुपाई गयो. रात्रे बहार नीकळी सौने त्रास आपतो. अगस्त्ये समुद्र शोषीने तेनो नाश करेलो. ६०३ कालयवन पुं० एक यवन राजा. श्रीकृष्णनो अने पांडवोनो शत्रु. कालिदास पुं० 'अभिज्ञानशाकुंतल', 'विक्रमोर्वशीय', 'मालविकाग्निमित्र', 'रघुवंश', 'कुमारसंभव', 'मेघदूत' अने 'ऋतुसंहार'ना विख्यात कर्ता. तेमना समय विषे निश्चितता नथी. लोकपरंपरा तेमने विक्रमादित्य राजाना दरबारमा मूके छे, जेमनो विक्रम संवत कुब्जा ( ई० स० पू० ५६ ) गणाय छे. पण केटलाक विद्वानो विक्रमादित्यना संवत्ने ई० स० ५४४ मां मूके छे. छतां, चोथा सैकाना गुप्त राजाओना अमलमां कालिदास थयेला एम घणा विद्वानो माने छे. तेमना निवासस्थान बाबत पण मतभेद छे. काश्यपपुर न० मुलतान; रावी नदीना जूना वहेण आगळ. hiatry स्त्री० कांजीवरम्. मोक्षदायक मनाती सात पुरीओमांनी एक. चोल राजाओनी राजधानी. कांपिल्य न० द्रुपदराजनी दक्षिण पंचालमां आवेली नगरी. आजनुं कांपिल, बुदाऊं अने फरुकाबादनी वच्चे गंगानदीना जूना वहेण आगळ छे. कांबोज पुं० आजनो उत्तर अफघानिस्तान प्रदेश. घोडा अने शाल माटे प्रसिद्ध. किरात पुं० सिलहट अने आसाम मळीने थतो देश. ऋग्वेदमां पण आ प्राचीन प्रदेशना लोकोना नामनो उल्लेख आवे छे. fafoner स्त्री० वालि अने सुग्रीवनो देश; तथा तेनी राजधानीनुं नाम. मैसूर अने हैदराबादनी वच्चे ते प्रदेश आव्यो कहेवाय. तुंगभद्राने कांठे हंपी - विजयनगर पासे किष्किंधा नगरीनुं स्थळ बतावाय छे. किनर, किंपुरुष पुं० जंबुद्वीपनो एक विभाग - वर्ष; हिमालयनी उत्तरे. कीकट पुं० मगध देश; आजनुं बिहार. कुबेर पुं० धननो देवता; यक्षो अने किन्नरोनो राजा. रावणनो ओरमान भाई. कैलास तेनो वास; त्रण पग, आठ दांत अने आंखने बदले पीळु चाटुं एवो कदरूपो आकार. कुब्जा स्त्री० कंसनी खूंधी जुवान Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुरु दासी. कंस माटेनुं चंदन लई जती हती त्यारे कृष्णे तेनी पासे ते चंदन माग्युं. तेणे खुशीथी आप्युं. कृष्णे तेने पछी सीधी बनावी दीधी. कुरु पुं० (१) चंद्रवंशीय कौरव-पांडवोनो मूळ पुरुष. तेणे कुरुक्षेत्र वसाव्यं. (२) दिल्हीनी आसपासनो एक देश . तेनी राजधानी हस्तिनापुर. कुरुक्षेत्र न० (१) ब्रह्मावर्तनी पश्चिमे आवेला देशनुं नाम. (२) कुरुदेशनुं प्रसिद्ध स्थान; त्यां महाभारतनुं युद्ध थयेलुं; कुरुराजाए त्यां तप करेलु; सरस्वती अने दृषद्वती नदीओनी वच्चे आवेलुं छे. कुरुजांगल न० कुरु प्रदेशनी वायव्ये आवेलो एक देश; हस्तिनापुर तेमां आवेलूं. कुरपंचाल पुं० कुरुप्रदेशनी पूर्वे आवेलो एक देश. . कुलिंद पुं० गढवाल ( सहरानपुर जिल्ला समेत); दिल्हीनी उत्तरे. कुलूत पुं० जालंधर दोआबनी उत्तरपूर्वे आवेलो शतद्रुना जमणा कांठानो प्रदेश. नगरकोट तेनी राजधानी. कुशस्थली, कुशावती स्त्री० दक्षिणकोशल देशनी राजधानी; नर्मदानी उत्तरे, पण विध्यनी दक्षिणे; बुंदेलखंडनुं रामनगर ते हशे . कुसुमपुर न० पाटलिपुत्र. कुंडिनपुर न० विदर्भनी राजधानी; a नदीथी अमरावती सुधी पथरायेली होवानुं कहेवाय छे. कुंतल पुं० चोल देशनी उत्तरे आवेलो देश. तेने कर्णाट पण कहेता; कल्याणी तेनी राजधानी; हैदराबादनो दक्षिणपश्चिम भाग. कुंतिभोज पुं० एक राजा; कुंतीनो पिता. शूर राजानो मित्र. पोताने संतति ६०४ ਲੈਟਮ न हती तेथी शूरराजानी कन्या कुंतीने तेणे दत्तक लीवेली. कुंती स्त्री० यदुवंशी शूर राजानी कन्या; कुंतिभोजे दत्तक लीघेली. पांडु राजानी पत्नी. कर्ण, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुननी माता. कुंभकर्ण पुं० रावणनो नानो भाईवर्षमा छ महिना ऊंध्या करतो. कृतवर्मन् पुं० यदुवंशी योद्धो; कौरव पक्षे महाभारतना युद्धमां कृपाचार्य, अश्वत्थामा अने कृतवर्मा एटला ज बच्या हता. यादवास्थळी वखते सात्यकिए पछी तेने हणेलो. कृपाचार्य पुं० अश्वत्थामानो मामो; कौरवोने पक्षे लडेलो; सात चिरंजीवीओमानो एक. कृशाश्व पुं० ( १ ) एक ऋषि अने प्रजापति. (२) नाट्यशास्त्रना एक आचार्य. (३) अस्त्रविद्याना एक आचार्य. कृष्ण पुं० वसुदेव-देवकीना पुत्र; विष्णुना आठमा अवतार; कंसना भाणेज; कुंतीनी सगाईथी पांडवोना मामात भाई था. कृष्णद्वैपायन पुं० व्यासजी ; पराशरना पुत्र ; काळा होवाथी कृष्ण; सत्यवतीनी कुंवारी अवस्थामा जन्मेला तेमने द्वीप उपर छोडो दीधेला तेथी द्वैपायन; वेदोनी व्यवस्था करनार तेथी 'व्यास' कृष्णा स्त्री० द्रौपदी. केकय पुं० बियास अने सतलज वच्चेनो देश. कैकेयीनो पिता आ देशनो राजा. केकयी स्त्री० कैकेयी कैकसी स्त्री० रावणनी माता. कैकेयी स्त्री० दशरथनी पत्नी (त्रणमांनी एक ) ; भरतनी माता. कैटभ पुं० एक बळवान असुर; तेने विष्णु मारेलो तेथी तेमनुं नाम 'कैटभारि' पण छे. Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुर्जर कोशल ६०५ कोशल, कोसल पुं० एक देश; उत्तर बळरामना जातसंस्कार तेमणे करेला. अने दक्षिण एवा तेना बे विभाग हता. मोटा ज्योतिषी. उत्तर कोशलनी राजधानी श्रावस्ती गंगा स्त्री० भारतनी पवित्र नदी तथा अने दक्षिण कोशलनी अयोध्या. तेनी अधिष्ठाता देवता. ते देवता कौशल्या, कौसल्या स्त्री० दशरथनी ब्रह्माना शापथी पृथ्वी उपर आवी अने पत्नी; रामनी माता. शंतनु राजानी प्रथम पत्नी बनी. कौशांबी स्त्री० वत्स देशनी राजधानी. तेने आठ पुत्रो थया, तेमांनो सौथी अत्यारना कोसम नजीक (अलाहा- नानो भीष्म. ('भगीरथ' तथा 'जन' बादनी उपर ३० माईल) आवेली; पण जुओ) यमुनाने डाबे किनारे. गाधि पुं० विश्वामित्रना पिता. इंद्रनो कौशिकी स्त्री० बिहारनी एक नदी अवतार. ('पारा'); दरभंगानी पूर्वे. तेने गाधिपुर न० कनोज. कांठे ऋष्यशृंगनो आश्रम हतो. गांधार पुं० (कंदहार) भारत अने क्षेमेंद्र पुं० ११ मा सैकानो एक ईरान वच्चनो देश. काबुल नदीने काश्मीरी लेखक; 'भारतमंजरी', किनारे तथा खोसपस (कुनार) अने 'बृहत्कथामंजरी' वगेरेनो कर्ता. सिंधु नदीनी वच्चे आवेलो. तेनी खर पुं० एक राक्षस; रावणनो राजधानीओ पुरुषपुर (पेशावर) अने संबंधी; जनस्थानमा रहेतो हतो. तक्षशिला. रामे तेने वनवास वखते हण्यो हतो. गांधारी स्त्री० गांधार देशना राजा खरोष्ट्र आज- काशगर. सुबळनां पुत्री अने धृतराष्ट्रनां पत्नी; खांडव (वन, प्रस्थ) न० कुरुक्षेत्र कौरवोनां जननी. पति अंध होवाथी प्रदेश- एक वन; अर्जुने तेने बाळयु पोते पण लग्न बाद आंखे पाटा बांधी हतुं; त्यां पछी पांडवोए इंद्रप्रस्थ राखतां. राजधानी वसावेली. गिरिव्रजपुर न० बिहारनुं राजगिर. गणेश पुं० शिव अने पार्वतीना पुत्र; मगधनी प्राचीन राजधानी. बौद्ध मस्तक हाथीनु; सर्व मांगलिक कार्यो- ग्रंथोमां तेनुं 'राजगृह' नाम आवे छे. नी शरूआतमा तेमनी स्तुति थाय छे. गुणाढ्य पुं० भारतनो आगेवान परशुराम साथेनी लड़ाईमां एक वार्ता-लेखक. तेनी मूळ बृहत्कथा दंतूशळ तूटी गयेलो तेथी 'एकदंत' 'पैशाची प्राकृत'मां लखायेल. तेना पण कहेवाय छे. उंदर तेमनुं वाहन. उपरथी सोमदेवे 'कथासरित्सागर' व्यासजी पासे बेसी 'महाभारत'नी रच्यू. ई. स. ना प्रथम सैकामां हस्तप्रत तेमणे लखेली. गोदावरी तीरे प्रतिष्ठानमां थई गयो. गरुड पुं० कश्यप अने विनतानो पुत्र, गुर्जर पुं० गुजरात. पहेलां तेमां खानअरुणनो नानो भाई. पक्षीओनो राजा देश अने माळवाना मोटा भागनो अने सर्पोनो दुश्मन. सफेद मुख, लाल समावेश थतो. ह्य एनत्सांगना समयमां पांखो, अने सोनेरी शरीर. विष्णुनुं सौराष्ट्रनो समावेश तेमां नहोतो वाहन. करातो. आज- मारवाड ते वखते उपाध्याय. कृष्ण 'गुर्जर' नामथी ओळखातुं. Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०६ चाणक्य गह पुं० शंगवेरनो किरात राजा. थयेलो पत्र. घडा जेवं माथं अने रामनो भक्त. वाळ नहि, तेथी आq नाम पडेलु. कर्णे गोकर्ण न० दक्षिण भारतनुं शंकरखें । अर्जुनना वध माटे राखेली 'शक्ति' पवित्र तीर्थ. छेवटे आना पर वापरवी पडेली. गोकुल न० नंदनुं गाम. कृष्ण अने चर्मण्वती स्त्री० रजपुतानानी चंबल बलराम नानपणमां त्यां ऊछरेला. नदी. रंतिदेव राजाए करेल अनेक गोन पुं०(१)पंजाब. काश्मीरना गोनर्द यज्ञोमां, तेनो किनारो वधेरेली गायोनां राजाए तेने जीतेलो,तेना नाम उपरथी. चामडांथी छवाई.गयेलो, एटले तेनु आ (२) अयोध्यानुं गोंड. पतंजलि नाम पडलं. (महाभाष्यकार), जन्मस्थान. चंद्रकेतु पुं० दशरथपुत्र लक्ष्मणनो बीजो गोपराष्ट्र पुं० नासिक जिल्लानो पुत्र. (बोजु नाम चित्रकेतु.) इगतपुरी विभाग. केटलाक तेने चंद्रप्रभ न० (१) मेरुपर्वत उपरनुं एक दक्षिण कोंकण माने छे. सरोवर. त्यांथी जंबू नदी नीकळती गोमती स्त्री० काशी पासे एक नदी. कहेवाय छे. (२) कैलासनी ईशानमां गोमंत पुं० एक पर्वत; जरासंधना हिमालयन एक शिखर. त्रासे कृष्ण अने बळराम त्यां थोडो । चंद्रभागा स्त्री० (१) चिनाब नदी. वखत रहेला. (अथवा झेलम अने चिनाबनुं भेगु गोमंतक पुं० गोवा प्रांत. नाम.) लडाखनी दक्षिणे लोहित्य गोवराष्ट्र पुं० जुओ 'गोपराष्ट्र' सरोवरमांथी तेनो उगम. (२)पंढरपुर गोवर्धन पुं०(१) वंदावन नजीक, मथुरा आगळनी भीमा नदी. जिल्लानो एक पर्वत. कृष्णे तेने उद्धरेलो चंद्रवती स्त्री० मध्यप्रदेशना ललितपुर तेथी श्रीकृष्ण 'गोवर्धनगिरिधारी' जिल्ला, चंदेरो. चेदि देशना राजा कहेवाय छे. (२) नासिक जिल्लो. शिशुपालनी राजधानी. नासिक पासे गोवर्धन नामे गाम पण छे. चंद्रहास पुं० केरळ देशना राजा गोवर्धनाचार्य पुं० 'आर्यासप्तशती'नो सुधार्मिकनो पुत्र. तेनी वार्ता बहु कर्ता. बंगाळना लक्ष्मणसेननो प्रसिद्ध छे. अश्वमेधना अश्व साथे राजकवि. 'गीतगोविंद' ना कर्ता आवेला कृष्ण-अर्जुन साथे तेने स्नेह जयदेवनो समकालीन. थयेलो. गौड, पुण्ड्र आखा बंगाळने पूर्व गौड अने चंपा स्त्री०(१) अंग देशनी राजधानी. उत्तर कोशलने उत्तर गौड कहेता. भागलपुरथी चार माईल पश्चिमे. गोंडवन ते पश्चिम गौड. कावेरीनो (२) सियाम. (३) टोन्किन अने किनारो ते दक्षिण गोड. कंबोडिया. (४) अंग अने मगध देश घटकर्पर पुं० 'घटकपरकाव्य' नो कर्ता. वच्चे वहेती एक नदी. (५) चंबा घणा तेने कालिदासनो समकालीन प्रदेश. गणे छे. पण बीजातेने कालिदासनी पूर्वे चाणक्य पुं० बीजं नाम 'कौटिल्य.' थई गयेलो माने छे. 'नीतिसार' नामे 'कौटिलीय अर्थशास्त्र' नो कर्ता. बीजं काव्य पण तेणे लख्युं छे. बीजुं नाम विष्णुगुप्त के विष्णुशर्मा. घटोत्कच पुं० हिडिंबा राक्षसीने भीमथी नंद वंशने उखेडीने चंद्रगुप्त मौर्यने Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०७ जरासंध चाणूर मगधना सिंहासने बेसाड्यो (ई० स० पूर्व ३२१). चाणूर पुं० कंसनो एक मल्ल. श्रीकृष्णे तेने मारेलो. चार्वाक पुं० एक राक्षस; दुर्योधननो मित्र. पांडवोनो शत्रु. (२) एक नास्तिक मतप्रवर्तक जडवादी. चित्रकट पुं० प्रयागनी दक्षिणे १० माईले आवेलो डुंगर. तेनी उत्तरे मंदाकिनी नदी. वनवास दरम्यान रामचंद्रजी अहीं थोडंक रहेला; भरतनी भेट अहीं थयेली. चित्ररथ पुं० गंधर्वोनो राजा. चित्रांगद पुं० शंतनु अने सत्यवतीनो पुत्र. नानपणमांज गंधर्वोए वनमां मारी नाखेलो. विचित्रवीर्यनो मोटो भाई. चित्रांगदा स्त्री० अर्जुननी पत्नी; बभ्रुवाहननी माता. चेदि पुं० (१) यदुवंशीय राजा. तेना उपरथी देश तेम ज वंशनुं ते नाम पडेल. (२) एक देश; विदर्भनी ईशानमां. हाल- बुंदेलखंड. पांडवोना समये त्यांनो राजा शिशुपाल हतो. चेर पुं० मैसूर, कोइंबतूर, सालेम, दक्षिण मलबार, त्रावणकोर अने कोचीन एटला प्रदेशोनो तेमा समावेश थतो. चेर नाम केरळनुं भ्रष्टरूप कहेवाय. ई० स० त्रीजाथी ७ मा सैका सुधी आ राज्य आगळ आव्यु इ० ना कर्ता. दिल्हीना शाहजहान बादशाहना वखतमां थई गया. १६२० थी १६६० सुधीमां तेमनो मुख्य प्रवृत्तिकाळ कहेवाय. जटायु, जटायुस् पुं० एक पक्षीराज. अरुणनो नानो पुत्र ; दशरथनो मित्र, रावण सीताने लई जतो हतो त्यारे तेणे सामनो कर्यो हतो. जनक पुं० (१) विदेहवंशीय राजाओगें सामान्य नाम. (२) सीताना पालक पिता. जनमेजय पुं० अर्जनपूत्र अभिमन्युनो पौत्र. तेना पिता परीक्षित सर्पदंशयी मृत्यु पाम्या हता तेथी तेणे सर्पसत्र आरंभेलो. पछी आस्तिक मुनिए ते बंध करावेलो. जनस्थान न० दंडकारण्यनो भाग. पंचवटी त्यां आवेली. केटलाक पंचवटीने नासिक पासे माने छे; केटलाक वेनगंगा साथे गोदावरी मळे छे त्यां आवेली माने छे. वनवास वखते राम त्यां रहेला. जमदग्नि पुं० एक ऋषि; परशुरामना पिता. जयदेव पुं० (१) 'गीतगोविंद' नो कर्ता. बंगाळना वीरभूम जिल्लानो वतनी. १२ मा संकामां थई गयो हशे. (२) (पीयूषवर्ष) 'चंद्रालोक' अने 'प्रसन्नराघव' नो कर्ता. १२ मा सैकाथी वधु प्राचीन नथी. जयद्रथ पुं० सिंधुदेशनो राजा. धृतराष्ट्रनी कन्या दुःशलानो पति. द्रौपदीनुं काम्यकवनमांथी हरण करी गयेलो. अभिमन्युनो कोठायुद्धमां तेणे वध करेलो. पछी अर्जुनने हाथे हणायो. जरासंघ पुं० पुरुकुलना बृहद्रथ राजानो पुत्र.बे माताथी बे टुकडा रूपे जन्मेलो; जरा नामनी राक्षसीए ते सांधीने एक बनावेलो. मगध देशनो राजा. कंसनो ससरो. चोल पुं० (१) कोरोमंडळ किनारो.तेनी एक राजधानी कांचिपुर. पछीथी आ राज्य दहेज तरीके पांड्य राज्यमां गो. (२) कावेरीना किनारा उपर आवेलुं राज्य ; मैसूरनो दक्षिण भाग. पछीथी ते कर्णाटक नामे ओळखायो. जगन्नाथ पंडित पुं० एक अर्वाचीन लेखक. 'रसगंगाधर', 'भामिनीविलास' Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जह नु ६०८ तिलोत्तमा जह नु पुं० एक चंद्रवंशी राजा. यज्ञ तक्षशिला स्त्री० पंजाबना रावळपिंडी करतो हतो त्यारे गंगानदी, पाणी जिल्लामां आवेलं. एक वखत गंधार फरी वळ्यु. तेथी ते आखी गंगा पी देशनी राजधानी; त्यां ई० स० ना गयो. पछी देवो अने ऋषिओए स्तुति पहेला सैका सुधी उत्तर हिंदतुं प्रसिद्ध करतां तेणे कानमांथी तेनो प्रवाह विश्वविद्यालय हतुं. नीकळवा दीधो. तेथी गंगानुं नाम तमसा स्त्री० (१) कोसल देशनी एक 'जाह्नवी' पडt. नदी. सरयूथी ऊगमणी बाजु १०-१५ जंबुद्वीप पुं०, न० पृथ्वीना सात महा- माईल दूर आवेली. दशरथ राजाए द्वीपोमांनोप्रथम.मेरु पर्वतनी आसपास तेने तीरे श्रवणकुमारने मारेलो. (२) गोळ थाळी जेवो ते आवेलो छे. तेनी रेवा प्रांतमांथी ईशान बाजए वहीने आसपास लवण समुद्र वीटळायेलो छे. भागीरथीने मळनारी नदी. तेने कांठे जालंधर पुं० बियास अने सतलज वाल्मीकिनो आश्रम हतो. वच्चेनो देश. ताम्रपर्णी स्त्री० (१) बौद्धग्रंथोमां सिलोजांबवत् पुं० एक वानर. लंकानी चढाई ननुं प्रसिद्ध नाम. (२) पांड्य देशनी एक वखते रामनी सेनानो एक सेनापति. नदी. (तिनेवेलीमां आवेली तंबरवरी.) (२) रीछोनो राजा. तेनी पासे तेना मुखमां मोती मळतां. स्यमंतक मणि आवेलो. कृष्णे तेने ताम्रलिप्त न० 'सुह्म' (पश्चिम बंगाल)नी युद्धमा हराव्यो एटले तेणे मणि साथे राजधानी. आजनुं तामलक; कलपोतानी पुत्री जांबवती पण श्रीकृष्णने कत्ताथी नैऋत्यमा ४२ माईल दूर. अी दीधी. तारक पुं० एक राक्षस. ब्रह्मानुं वरदान जांबवती स्त्री० श्रीकृष्णनी पत्नी; हतुं के सात दिवसना बाळक सिवाय सांबनी माता. कोईथी न मरे. पछी कार्तिकेये जन्म जीमूतवाहन पुं० विद्याधरोनो राजा. बाद सात दिवसे तेने मार्यो. तेना त्रण 'नागानंद' नाटकनो नायक. मोटो पुत्रोए वसावेलांत्रण नगरो ते 'त्रिपुर परोपकारी अने उदार अंतःकरण- कहेवाय छे. वाळो हतो. तारा स्त्री० (१) वालिनी स्त्रीनुं नाम; जैमिनि पुं० व्यासना एक शिष्य; अंगदनी माता.(२)हरिश्चंद्रनी राणीनुं पूर्वमीमांसादर्शनना कर्ता. नाम; तारामती.(३) बृहस्पतिनी एक ज्योतिर्मठ पुं० शंकराचार्ये स्थापेला स्त्री. चा रमठोमांनो एक (बदरीनाथ पासे). तारामती स्त्री० हरिश्चंद्रनी राणी; झारखंड पुं० छोटानागपुर प्रदेश. बीर- तारा. रोहितकुमारनी माता भूम अने बनारस वच्चेनो आखो डुंग- तिमिध्वज पुं० इंद्रे मारेलो असुर राळ प्रदेश. (संताल परगणा सहित.) (शंबरासुर); दशरथ राजा ते युद्धमा तक्ष पुं० दशरथपुत्र भरतनो पुत्र. इंद्रनी मददे गयेला; त्यां कैकेयीए तेणे तक्षशिला नगर स्थाप्युं हतुं. तेमनुं जीवन बचावीने बे वरदान तक्षक पुं० एक सर्प. परीक्षित राजाने मेळवेलां. दंश करेलो. जनमेजयना सर्पसत्रमाथी तिलोत्तमा स्त्री० एक अप्सरा. विश्वाजीवतो रहेलो. मित्रे सुंद अने उपसुंद बे राक्षस Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रिकूट ६०९ दंडकारण्य भाईओना विनाश माटे सर्जेली. दक्षिणापय पुं० भारतनो दक्षिण भाग; तेनाथी मोहित थई ते बंने आपसमां नर्मदाथी दक्षिणे आवेलो. लड़ीने नाश पाम्या. दत्त, दत्तात्रेय पुं० अत्रि अने अनसूयाना त्रिकूट पुं० (१) पूना जिल्ला, जुन्नर. त्रण पुत्रोमांना एक. ज्यांथी कई बोध टॉलेमी तेनुं नाम 'तगर' जणावे छे. मळ्यो तेवी जडचेतन अनेक वस्तुओने (२) सिलोनना दक्षिण-पूर्व खूणे तेमणे गुरुस्थाने स्थापेली. आवेलो एक पर्वत. दधीच पुं० एक ऋषि; अथर्वण ऋषित्रिगर्त पुं० जालंधर प्रदेश. प्राचीन ना पुत्र. वृत्रासुरना वध माटे पोतानां काळमां ते सूका निर्जळ प्रदेश तरीके अस्थि इंद्रने आप्यां; इंद्रे ते अस्थिओळखातो. लुधियाणा-पतियाला वज्र बनावरावी वृत्रने मार्यो. वगेरे भाग. दनु स्त्री० कश्यपनी एक स्त्री; दानवोनी त्रिपुर न०, त्रिपुरी स्त्री० नर्मदा किनारे माता. आवेलुं आज- 'तेवर' - जबलपुरथी ६ दमयंती स्त्री० विदर्भ देशना राजा माईल दूर. शिवे त्रिपुरासुरने मारी भीमनी पुत्री; नळराजानी राणी. तेनां त्रण पुरोनो नाश करेलो. दमिल पुं० केरळ; मलबार किनारो त्रिवेणी स्त्री० गंगा-यमुना-सरस्वती ए अथवा दक्षिण मलबार. सिलोन त्रण नदीनो संगम - प्रयाग (नागद्वीप)नी नजीक आवेलो. त्रिशंकु पुं० इक्ष्वाकु कुळनो सूर्यवंशी दरद काश्मीरनी उत्तरे आवेलो एक राजा; हरिश्चंद्रनो पिता. सदेहे देश. दर्दिस्तान.. स्वर्गे जवा विश्वामित्र पासे यज्ञ दर्भवती स्त्री० गुजरातनुं डभोई. कराव्यो; पण इंद्रे तेने पेसवा न दीधो दशपुर न० एक प्राचीन नगर; रंतिअने पाछो नीचे गबडाव्यो. विश्वामित्रे देवनी राजधानी. आजनुं धोळपुर. तेने नीचे आवतो रोक्यो; अने अधवच अवंतिथी उत्तरे. केटलाक तेने नवं स्वर्ग वगेरे रचवा मांडयु. आथी माळवा, मंदसोर गणे छे. अंतरियाळ स्थिति माटे त्रिशंकुनो दशरथ पुं० इक्ष्वाकु कुळना एक सूर्यदाखलो अपाय छे. वंशी राजा; रामना पिता. कौशल्या, त्वष्ट पुं० एक प्रजापति; विश्वकर्मा; सुमित्रा, कैकेयी ए प्रण राणीओ. देवोनो शिल्पी. इंद्रे तेना पुत्रने मार्यो कौशल्याथी राम, सुमित्राथी लक्ष्मण तेथी इंद्रनुं वेर लेवा तेणे वृत्रासुरने अने शत्रुघ्न तथा कैकेयीथी भरत उत्पन्न कर्यो हतो. दक्ष पुं० ब्रह्माना दश मानसपुत्रोमां एवा चार पुत्र. प्रथम. तेनी एक पुत्री सती, शंकर दशार्ण पुं० माळवानो पूर्व भाग. वेरे परणावेली. शंकर साथे वेर थतां तेनी राजधानी विदिशा (आज तेणे यज्ञमां सतीने तथा शंकरने भिलसा)- वेत्रवती नदीने किनारे. न बोलाव्या. छतां सती त्यां गई दशार्णा स्त्री० माळवानी एक नदी. अने अपमान थतां यज्ञमां बळी मरी. हालनी दशान. शंकरे पछी तेना यज्ञनो ध्वंस कर्यो. दशाह पुं० यदुवंशीय राजा. तेना सती बीजा जन्ममां पार्वती थईने उपरथी 'दाशार्ह' नामर्नु कुळ. शंकरने फरी पाम्यां. दंडकारण्य न० (१) विध्य अने शैवाल Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंडिन् ६१० पर्वतोनी वच्चेनो प्रदेश. तेनो एक भाग दूषण पुं० खर राक्षसनो जनस्थान'जनस्थान' नामे ओळखातो. (२) वासी एक सेनापति. बुंदेलखंडथी कृष्णा नदी सुधीनो। दृषद्वती स्त्री० अंबाला अने सरहिंदजंगलनो प्रदेश. मां थईने वहेती नदी, हवे रजपूतानावंडिन् पुं० 'दशकुमारचरित' अने ना रणमां लुप्त थाय छे. कुरुक्षेत्रनी 'काव्यादर्श' नो कर्ता. सातमा सैकामां दक्षिण सरहद; आर्यावर्तनी पूर्व थयेलो गणाय. सरहद; सरस्वती नदीने पहेलां वंतपुर न० कलिंगनी प्राचीन राजधानी. मळती हती. ओरिसान पुरी. सिलोन लई जवा देवकी स्त्री० उग्रसेनना भाई देवकनी पहेलां बुद्धनो दांत त्यां राखवामां पुत्री. वसुदेवनी पत्नी; श्रीकृष्णनी आवेलो. माता. बाक्षिणात्य पुं० दक्षिण भारत; विंध्य देवगिरि पुं० (१) चर्मण्वती नदी पर्वतथी दक्षिणनो भाग. नजीकनो एक पर्वत.(२)दौलताबाद. वारुक पुं० श्रीकृष्णनो सारथि. दारुकावन, दारवन न० नागेश नामना देवयानी स्त्री० दैत्योना गुरु शुक्राचार्यनी ज्योतिलिंगवाळं जंगल. मराठवाडामां. एकनी एक लाडली दीकरी. (जुओ वाशाह पुं० यदुवंशीयकुळ. कच); ययाति राजाने परणेली. वाशेरक पुं० माळवा देश. पोतानी दासी तरीके साथे आणेली दिति स्त्री० दैत्योनी माता; कश्यपनी शर्मिष्ठा साथे राजाने गुप्त प्रेम करतो एक पत्नी; दक्षनी पुत्री. जोई, तेने अकाळ वृद्धावस्थानो शाप दिलीप पुं० (१) सूर्यवंशीय राजा; अपावेलो. शर्मिष्ठाना पुत्र पुरुए पछी भगीरथनो पिता (२) रघुनो पिता; पोतानी जुवानीना बदलामां ययातिनी पत्नी सहित तेणे नंदिनी गायनी सेवा वृद्धावस्था लई लीधेली. करीने रघु पुत्र मेळव्यो. देवहति स्त्री० कर्दम ऋषिनां पत्नी; दुर्योधन पुं० धृतराष्ट्र - गांधारीनो सांख्याचार्य कपिलनां माता. कपिले पुत्र. सो कौरवोमां मोटो. तेमने आत्मज्ञान उपदेश्यु हतुं. दुर्वासस् पुं० अत्रि-अनसूयाना पुत्र; मिल पुं० जुओ 'दमिल' क्रोधनी मूर्ति सम गणाय छे. शकुंतलाने द्रविड पुं० दक्षिणनो देश ; कृष्णा अने तेमणे शाप आपेलो. पोलर नदी वच्चेनो. गोदावरीनी दुष्यंत पुं० चंद्रवंशी, पुरुकुळमां जन्मेलो दक्षिणनो आखो कोरोमंडळ किनारो राजा. सर्वदमन - भरतनो पिता; तेमां आवी जाय. पण सामान्य रीते शकुंतलानो पति. कावेरीनी पारनो देश गणाय. कांची दुःशला स्त्री० दुर्योधननी बहेन; तेनी राजधानी. जयद्रथनी पत्नी. द्रुपद पुं० पांचाल देशनो राजा; दुःशासन पुं० धृतराष्ट्रना सो पुत्रोमांनो धृष्टद्युम्न, शिखंडी ई० छ पुत्रो अने एक. द्यूत पछी द्रौपदीने सभामां द्रौपदीनो पिता. द्रोणाचार्यनो सहपाठी. खेंची लावी तेनां चीर तेणे खेंचेलां. पण पछी द्रोणाचार्य ज्यारे ते मित्रता भीमे तेना साथळ भागवानी तथा याद करी धन मागवा आवेला, त्यारे तेनुं लोही पीवानी प्रतिज्ञा लीधेली. तेणे तेमनुं अपमान करेलं ; द्रोणे अर्जुन Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रोण ६११ मारफत तेने पकडी मंगावेलो. दक्षिण- नकुल पुं० माद्रीनो पुत्र; पांडवोमांनो पंचाल देश तेनो रहेवा दई,तेने जीवतो चोथो. अश्विनीकुमारनो अंश. अति जवा दीधेलो. यज्ञ मारफते द्रोणनो सुंदर गणातो. वध करनार धृष्टद्युम्न पुत्र पछी तेणे नचिकेतस् पुं० गौतम गोत्रना अरुणि मेळव्यो. मांकंदी, छत्रवतो, कांपिल्य, ऋषिनो पुत्र. यमराजा पासेथी वर अहिच्छत्रा आदि नगरोतेणे वसावेलां. दानमा आत्मविद्या मेळवी लाव्यो हतो. द्रोण पुं० पांडव कौरवोना प्रसिद्ध नमुचि पुं० इंद्रनो मित्र एवो एक असुर. शस्त्राचार्य. अश्वत्थामा तेमनो पुत्र. छुपी रीते इंद्रनुं बळ पी जतो. इंद्रे तेनो द्रौपदी स्त्री० पंचाल देशना द्रुपद पछी वध करेलो. राजानी पुत्री (तेथी 'पांचाली'); नरक पुं० भूमिपुत्र एक असुर. तेना पांचे पांडवोनी पटराणी. अत्याचारोथी जगत पीडित थत द्वारवती स्त्री०. गुजरातनुं द्वारका. श्रीकृष्णे तेनो नाश कर्यो. तेना अंत:मथुराथी भागी आव्या बाद श्रीकृष्णनी पुरमाथी १६१०० केदी स्त्रीओने राजधानी. श्रीकृष्णे छोडावी. ते बधी तेमने द्वैतवन न० सरस्वती नदीने किनारे पति तरीके पछी वरी हती. मरुधन्वा देश नजीक आवेलं; पांडवो नरनारायण पं० बदरिकाश्रममां तप वनवास वखते थोड़ो वखत त्यां रहेला. करता बे प्राचीन ऋषिओ. इंद्रे तेमने मीमांसक जैमिनिनु वतन. मोहित करवा अप्सराओ मोकली, घनकटक अत्यानुं आंध्र प्रदेश त्यारे नारायणे जांघमांथी उर्वशीने बेझवाडा. ई० स० पू०. २०० थी उत्पन्न करो अने ते बधीने शरमावी. जाणीतुं हतुं. नर ए अर्जुन अने नारायण ए धनंजय पुं० 'दशरूप' नो कर्ता. श्रीकृष्ण एम पण कहेवाय छे. अलंकार अने नाट्यशास्त्रनो प्रमाणभूत लेखक. धारना मुंज राजानो नल पुं० (१) निषध देशनो राजा; दरबारी; ई० स० १० मा सैकाना दमयंतीनो पति. (२) एक वानर, पूर्वार्धमां थई गयो. जेणे राम माटे सेतु बांधेलो. धन्वंतरि पुं० समुद्रमंथन वखते उत्पन्न नलकूबर पुं० कुबेरनो पुत्र. तेना थयेला १४ रत्नोमांनुं एक. आयुर्वेदना भाई मणिग्रीव साथे ते नारदना प्रवर्तक; देववैद्य. हाथमां अमृतकुंभ शापथी अर्जुनवृक्ष रूपे गोकुळमां लईने प्रगट थयेला. अवतरेलो. बंनेनो श्रीकृष्णे खांडगियो धरणीकोट जुओ 'धनकटक'. भरावीने उद्धार कर्यो. धर्म, धर्मराज पुं० युधिष्ठिर. पांडवोमां नहुष पुं० पुरूरवानो पौत्र. एक राजा. मोटा. कुंतीना त्रण पुत्रोमांना एक. ययातिनो पिता. थोड़ो वखत इंद्रपद धर्मारण्य न० गया जिल्ला- बौद्ध तीर्थ. मळेलं. ते वखते इंद्रपत्नी शचीनी धवलगिरि पुं० ओरिसानी धौली टेकरी. कामना करवा जतां सप्तर्षिना शापथी त्यां अशोकनो शिलालेख छे. साप रूपे अवतरेलो. धृतराष्ट्र पुं० कौरवोनो पिता. जन्मांध. नंद पुं०(१)गोकुळनो अधिपति. वसुदेवनो गांधारी पत्नी. बीजी एक वैश्य स्त्रीथी __ मित्र; बळराम-कृष्णनो पालक पिता. युयुत्सु नामनो पुत्र. यशोदा तेनी स्त्री. (२) पाटलि.. Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंदनवन ६१२ पंचवटी पुत्रनो राजा; नंदवंशनो मूळ पुरुष. पद्मपुर न० भवभूति कवि-जन्मस्थान. तेने चंद्रगुप्ते चाणक्यनी मददथी अमरावतीथी थोडे दूर चंडपुर (चांदा) मारी मौर्यवंश स्थाप्यो. नजीक. नंदनवन न० इंद्रनुं उपवन - बगीचो. पद्मावती स्त्री० माळवाना 'नरवार' नंदिग्राम पं० अयोध्यानी पासेन एक (नलपुर)तरीके ओळखावाय छे. सिंधु गाम. राम वनवासमांथी पाछा न नदीने कांठे. भवभूतिना 'मालतीफर्या त्यां सुधी भरत त्यां रहेलो. माधव' नाटकनी भूमि. मंदिनी स्त्री० वसिष्ठ पासेनी काम- पयोष्णी स्त्रो० विध्याद्रिमांथी नीकळती धेनुनी पुत्री - गाय. एनी सेवाथी एक नदी. नळ राजाए तेने कांठे यज्ञ दिलीपने पुत्र थयो. करेलो. आजनी पूर्णा. नारद पुं० (१) प्रख्यात देवर्षि. वीणा- परशुराम पुं० भृगुवंशीय जमदग्नि वादक. हरिकीर्तन करनार. कलहप्रिय. ऋषिना पुत्र. विष्णुना अवतार. देव-मनुष्य वच्चे आवजा करनार. कार्तवीर्य राजाना पुत्रोए तेमना पितानो (२) एक स्मृतिकार. वध करेलो, तेथी तेमणे २१ वार नारायण पुं० (१)जुओ 'नरनारायण'. पृथ्वी निःक्षत्रिय करेली. रामचंद्रे तेमनुं (२) 'हितोपदेश' नो कर्ता; १४ मा तेज हरेलं. पितानी आज्ञाथी माता सैकामां थयो होय. रेणुकानो शिरच्छेद करेलो. निमि पुं० इक्ष्वाकुनो एक पुत्र. जनक पराशर पुं० वसिष्ठना पुत्र. तेमने सत्य नो पूर्वज. तेणे मिथिलानो वैदेह वंश वतीथी व्यास पुत्र जन्मेला. स्थाप्यो हतो. परीक्षित् पुं० अभिमन्युनो पुत्र; अर्जुननो निषध पुं० (१) नळराजाना देशनुं नाम. पौत्र. गर्भावस्थामा हतो त्यारे श्रीकृष्णे तेनी राजधानी अलका, अलकनन्दा तेने अश्वत्थामाना ब्रह्मास्त्रथी बचानदी उपर आवेली. उत्तर हिंदना वेलो. तेनो पुत्र जनमेजय. तेना कुमाऊँनो भाग हशे. (२) जंबुद्वीपनो राज्यकाळथी कळियुग बेठेलो कहेएक वर्षधर पर्वत. वाय छे. तक्षकनागना दंशथी मरण नील पुं० (१) वानर सेनापति (रामनो). पामेलो. तेणे ते वखते 'भागवत'नी (२) दक्षिण हिंदनो एक पर्वत. कथा सांभळेली. नैमिषारण्य न० प्राचीन ऋषिओनू परुष्णी (पुरुष्णी)स्त्री० पंजाबनी रावी निवासस्थान एवं एक वन. अहीं नदी. वेदकालीन दाशराज्ञ युद्ध त्यां सौतिए महाभारत संभळावे . उत्तर थयेलं. प्रदेशमां गोमती नदीने डाबे किनारे पंचजन पुं० एक असुर. शंखरूपधारी आवेलं. एवा तेने श्रीकृष्ण मारेलो. नैषध पुं० निषध देशनो राजा-तळ. पंचनद पुं० पंजाबदेश. शतद्रु, विपाशा, पतंजलि पुं० पाणिनिनां सूत्रो अने इरावती, चन्द्रभागा अने वितस्ता कात्यायनना वार्तिक उपरना महा- -ए पांच नदीओनो देश. भाष्यनो कर्ता. पोगसूत्र पण तेमनां पंचवटी स्त्री० नाशिक पासे गोदावरीना लखेलां कहेवाय छे. ई० स० पू० उत्तर किनारे आवेलु तीर्थस्थळ. त्यां बीजा सकामां थयेल मनाय छे. वडनां मोटां पांच झाड हतां. Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचाल ६१३ प्रतिष्ठान पंचाल पुं० यमुना अने मंगानी वच्चेनो पांड्य पुं० भारतनी दक्षिणनी अणीए प्रदेश. उत्तरपंचाल (रोहिलखंङ)नी आवेलो देश... चोलदेशनी दक्षिण राजधानी अहिच्छत्रा. ते प्रदेश द्रोणा- पश्चिमे. मलय पर्वत अने ताम्रपर्णी चार्ये द्रुपद पासेथी लई लोधो हतो. नदी. अत्यारर्नु तिन्नेवेल्ली. रामेश्वरदक्षिणपंचाल (अंतर्वेदी) नो राज- नो पवित्र टापु आ राज्यमां आवे. धानी कांपिल्य. ए भाग द्रुपद पासे पुरु पुं० चंद्रवंशनो छठ्ठो राजा. बाकी रह्यो. ययातिनो नानो पुत्र,मिष्ठाथी थयेलो. पंपा स्त्री० बेलारी जिल्लामां आवेल कौरवो अने पांडवोनो पूर्वज. ययातिनी एक प्रसिद्ध सरोवर तथा तुंगभद्राने वृद्धावस्थानो अदलोबदलो तेणे पोतानी मळती नदीनुं नाम. पंपा नदी ऋष्यमूक जुवानी साथे करेलो. पर्वतमांथी नीकळे छे. पुरुषपुर न० पेशावर. गांधारनी पाटलिपुत्र न० गंगा अने शोण नदीना राजधानी. कनिष्क राजाए। तेने संगम उपर आवेलु मगधनुं राजधानी- राजधानी बनावेली.. . शहेर. तेने कुसुमपुर पण कहेता. ई. स. पुरूरवस् पुं० बुधनो इलाथी थयेलो पुत्र. पूर्वे ४८० मां ते वैशालिना बज्जीओ चंद्रवंशी राजाओनो मूळ पुरुष. तेना नो सामनो करवा बंधायेलं. मौर्यो अने उर्वशी साथेना प्रेमनी कथा 'विक्रमोगुप्तोनी समृद्ध राजधानी. छठ्ठा र्वशीय' नाटकमां छे. सैकाथी तेनी पडती थवा लागी अने पुरोचन पुं० दुर्योधननो म्लेच्छ मंत्री. युएनत्सांगे तेने जोयुं त्यारे ते एक तेणे पांडवोने बाळी नाखवा लाक्षागृह सामान्य गामडुं बनी गयुं हतुं. बांधेलं. पांडवो ते गृहन सळगावी पाणिनि पुं० व्याकरणनां सूत्रो लखनार चाल्या गया त्यारे तेमा ते बळी मूओ. प्रसिद्ध मुनि. पुलस्त्य पुं० ब्रह्मदेवना मानसपुत्र. पारसीक पु० ईरान देश, तथा तेनो तेमना पुत्र अगस्त्य. वतनी. वायव्य सरहदनी पारना देशोना पुलिददेश पुं० बुंदेलखंडनो पश्चिम वतनी माटे पण ते शब्द वपराय छे. प्रदेश अने सागर जिल्लो मळीने पारिपात्र, पारियात्र पुं०(१) विंध्य पर्वत- बनतो देश. . नो पश्चिम भाग. भारतना पश्चिम पुंडदेश (पौंड्र) पुं० एक देश : पूर्वे किनारानो मोटो भाग. रामायणमां करतोया, पश्चिमे कौशिकी, उत्तरे तेने पश्चिम समुद्र उपर आवेल हेमकुट पर्वत अने दक्षिणे गंगा नदी. कह्यो छे. (२) सात कुलाचल पर्वतो- पृथु पुं० वेन राजानो प्रसिद्ध पुत्र. मांनो एक. तेणे पृथ्वीने सपाट बनावी. पृथ्वीने गाय पार्वती स्त्री० हिमालय-मेनानी पुत्री कल्पीने अनेक रत्न अने औषधिओ रूपे जन्मेलां सती. कालिदासना दोही. तेना उपरथी 'पृथ्वी' ए नाम 'कुमारसंभव'मां तेमना शिव साथेना पड्युं . लग्ननी वात छे. प्रतिष्ठान न० (१) पुरूरवानी राजधानी. पांडु पुं० एक राजा; पांडवोनो पिता; प्रयागनी सामे. गंगायमुनाना संगम धृतराष्ट्रनो नानो भाई. कुंती अने उपर. (२)औरंगाबाद - मराठवाडामाद्री बे राणीओ. मां आवेलं पैठण. गोदावरीने किनारे. Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छे. प्रद्युम्न ६१४ शक संवत (ई. स. ७८) प्रवर्तावनार वनमणि लई आवी अने अर्जुनने शालिवाहन त्यां जन्मेलो. सजीवन कर्यो. प्रद्युम्न पुं० श्रीकृष्ण-रुक्मिणीनो पुत्र, बल, बलभद्र, बलराम पुं० वसुदेवना शंकरे मदनने बाळी नाख्यो त्यार पछी पुत्र बळराम. रोहिणीना पुत्र.श्रीकृष्णते प्रद्युम्न तरीके जन्म्यो हतो. ना मोटा भाई. शेषना अवतार मनाय अनिरुद्धनो पिता. छे. गदायुद्धमां निष्णात. भीम अने प्रद्योत पुं० उज्जयिनीनो राजा. तेनी दुर्योधन तेमनी पासे गदायुद्ध शीखेला. पुत्रीने वत्सराज परण्यो. हळ-मुसळ तेमनुं शस्त्र गणाय छे. प्रमीला स्त्री० स्त्रीराज्यनी स्वामिनी. बलि पुं० प्रहलादना पुत्र विरोचननो अश्वमेध यज्ञ वखते अश्व पाछळ पुत्र. बाणासुरनो पिता. विष्णुए अर्जुन गयेलो त्यारे तेनी साथे लडेली. वामन अवतार धारण करी तेने हार्या बाद अर्जुननी पत्नी थई. पाताळमां दबाव्यो. चिरंजीवी गणाय प्रयाग न० गंगा यमुनाना संगम उपरनुं प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र. बाण पुं० (१) बाणासुर'. बलिराजानो प्रस्रवण पुं० 'जनस्थान'मां आवेलो एक पुत्र. तेनी कन्या उषा (ओखा). पर्वत. अनिरुद्ध तेने परणेलो. (२) बाणभट्ट; प्रह्लाद पुं० हिरण्यकशिपु-कयाधुनो 'हर्षचरित', 'कादंबरी' इ. नो कर्ता. मोटो पुत्र. मोटो विष्णु भक्त. नरसिंह कान्यकुब्जनो हर्षवर्धन राजा तेनो अवतार तेने बचाववा थयेलो. मित्र-आश्रयदाता. हयएनत्सांगे (ई.स. प्राग्ज्योतिष न० नरकासुरना पुत्र भग ६२९-६४५) तेना राज्यकाळy दत्तनुं नगर. कामरूपनुं प्राचीन नाम. वर्णन कर्य छे; एटले बाण कवि ७ मा प्लक्ष पं० पृथ्वीना सात द्वीपोमांनी एक. सैकाना उत्तरार्धमां थयो होय. फल्गु स्त्री० एक नदी. तेना कांठे गया बाल्हीक, बाहीक पुं० जुओ ‘वाहलिक' क्षेत्र आवेलुं छे. बाहुक पुं० (१) सगर राजानो पिता. बक पुं० एक असुर. जटासुरनो पुत्र. (२) नळराजा ऋतुपर्णनो सारथि एकचक्रा नगरी पासेना वनमां थयो ते वखते तेणे धारण करेलु नाम. रहेनारो. तेनो भीमे वध कर्यो हतो. बिल्हण पुं० महाकाव्य ‘विक्रमांकदेवबदरिकाश्रम, बदरी हिमालयनी पर्वत चरित', 'चौरपंचाशिका' 'बिल्हणमाळामां एक शिखर. त्यां नर-नारा चरित' अने 'कर्णसंदरी' नो कर्ता. यण, मंदिर छे - अलकनंदाना काश्मीरी ब्राह्मण. 'कर्णसंदरी' ए पश्चिम किनारे. अणहिलवाडना राजा कर्णदेव (ई. बभ्रुवाहन पुं० अर्जुन अने चित्रांगदानो स. १०६४-७४) ना विद्याधरपुत्र. मणिपुरनो राजा. अश्वमेध कुमारी कर्णसुंदरी साथेना प्रेमलग्ननी वखते अर्जुन अश्व पाछळ त्यां गयेलो; नाटिका छे. ते ११ मा सैकाना त्यारे बभ्रुवाहन वंदन करवा आव्यो. उत्तरार्धमां थई गयो. तेने अर्जुने टाणो मार्यो. पछी लडाई बुद्ध पुं० बौद्ध मतना प्रवर्तक. शाक्यसिंह थई; तेमां अर्जुन ठार थयो. अर्जुनपत्नी नामे पण ओळखाय छे. 'सिद्धार्थ उलपी पछी शेषनाग पासेथी संजी कुमार' गृहस्थाश्रमनुं नाम. कपिल Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारवि (पाणिनिनां व्याकरण सूत्रोनी उपर) लखनार. १७ मा सैकामां थई गया. भरत पुं० ऋषभदेवनो मोटो पुत्र. तेना उपरथी अजनाभवर्षतुं भरतवर्ष नाम पड्यु. तेज पछी जडभरत नामे ओळखायो. (२) दशरथ-कैकेयीनो पुत्र. रामनो भक्त. (३) पुरुवंशीय दुष्यंत अने शकुंतलानो पुत्र. ते चक्रवर्ती थयो हतो. (४) नाट्य अने संगीत शास्त्रना प्रवर्तक. भरतवर्ष (भारतवर्ष) पुं० हिंदुस्तान. दुष्यंत-शकुंतलाना पुत्र भरत चक्रवर्ती उपरथी. पहेलां तेनुं नाम हिमाह्ववर्ष हतुं. वस्तुमां जन्म. विष्णुनो नवमो अवतार पण गणाय छे. बुध पुं० पुरूरवानो पिता; चंद्रनो पुत्र. बृहस्पति पुं० देवोना आचार्य. तेमनी पत्नी तारानुं सोम (चंद्र) हरण करी गयो. ब्रह्माए पाछी अपावी; पछी तेने पुत्र बुध जन्म्यो जेने तेणे चंद्रनो पुत्र कह्यो. ते बध पछी चंद्रवंशी राजाओना वंशनो स्थापक बन्यो. बोपदेव पुं० 'मुग्धबोध', 'कविकल्पद्रुम' आदिना कर्ता. हेमाद्रिनो समकालीन. देवगिरिना यादव राजाओना दरबारमा जता आवता हता. १३ मा सैकाना उत्तरार्धमां थई गया. ब्रह्मन् पुं० हिंदु त्रिमूर्तिना प्रथम ; स्रष्टाविधाता कहेवाय छे. विष्णुना नाभिकमळमाथी प्रगट थयेला. पुत्री सरस्वती. स्वयंभ. प्रथम मरीचिने उत्पन्न कर्या. तेमनी पछी कश्यप - विवस्वत् – मनु ए क्रमे मानव सृष्टि उत्पन्न थई. ब्रह्मपुरी स्त्री० काशीक्षेत्र. ब्रह्मावर्त पुं० (१) सरस्वती अने दृषद्वती नदी वच्चेनो देश. (२) कानपुर नजीक गंगा किनारे आवेलू बिथुर (तीर्थ). भगदत्त पुं० प्राग्ज्योतिष देशनो राजा. नरकासुरनो पुत्र. कौरवपक्षीय. गजयुद्धमां कुशळ.. . भगीरथ पुं० सगरनो प्रपौत्र. तेणे - तप करी गंगाने स्वर्गमांथी पृथ्वी उपर आणी, जेथी कपिल मुनिना शापथी भस्मीभूत थयेला सगरपुत्रोनो उद्धार थाय. भट्टनारायण पुं० 'वेणीसंहारनो' कर्ता. ७ मा सैकाना पूर्वार्धमां थई गयो. भट्टि पुं० 'भट्टिकाव्य' नो कर्ता. ई. स. ५०० थी ६०० वच्चे थई गयो.. भट्टोजीदीक्षित पुं० 'सिद्धांतकौमुदी' भरद्वाज पुं० एक ऋषि. द्रोणाचार्यना पिता. भरुकच्छ पुं० भरूच. यज्ञ वखते बलिराजाने वामने आ स्थाने पाताळमां दबावेलो भर्तृहरि पुं० (१) शृंगार-नीति-वैराग्य शतकोनो कर्ता. एमनं नाम दंतकथाओमां अटवायेलं छे. केटलाक तेमने ई० स० ना पहेला के बीजा सैकामां मुके छे; केटलाक छळा के सातमामां. (२) व्याकरणशास्त्री; 'वाक्यपदीय'नो कर्ता. बौद्ध हतो; ई० स० ६५१ मां गुजरी गयो.. भवभूति पुं० 'महावीर चरित', 'मालतीमाधव' अने 'उत्तररामचरित 'नो कर्ता. विदर्भनो वतनी, कान्यकुब्जना यशोवर्माना [जेने काश्मीरना ललितादित्ये (ई. स. ६९३-७२९)हरावेलो राजदरबारमा अवरजवर. तेथी ई० स० ७ मा सैकाना अंतमां थयेलो मनाय. भागीरथी स्त्री० गंगा नदी; भगीरथ राजा स्वर्गमांथी लावेला तेथी. भारवि पुं० 'किरातार्जुनीय' महाकाव्य Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मगध भास ६१६ नो कर्ता. अर्थगौरववाळी शैली माटे जाणीतो. ७मा सैकाना प्रारंभमां थई गयो. भास पुं० 'स्वप्नवासवदत्त', 'प्रतिज्ञायौगंधरायण' वगेरे नाटकोनो कर्ता. ई. स. १९१२ पहेलां मात्र कालि दास अने बाण कवि मारफते करायेली .. प्रशंसा ज जाणीती हती; १९१२-१५ वच्चे तेनां १३ नाटको केरलमांथी जडी आव्यां. ई० स० पूर्वे ५ मा सैकामां थई गयेलो मनाय छे. भास्कराचार्य पुं० 'सिद्धांतशिरोमणि' नामे ज्योतिष तथा गणित विषेना ग्रंथनो कर्ता. (तेना ४ विभाग तेलीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित अने गोलाध्याय.) १२ मा सैकानो. भीम पुं०(१)विदर्भ देशनो राजा; दमयंतीनो पिता. (२) पांडव भीमसेन. भीमसेन पुं० पांडवो पैकी बीजो. कुंतीना त्रण पुत्रोमां वचलो होवाथी 'मध्यम' पण कहेवाय छे. गदायुद्धमा कुशळ. दुःशासने द्रौपदी- अपमान कर्य हतुं तेथी तेना लोहीथी द्रौपदीनी छूटी वेणी बांधवानी प्रतिज्ञा लीधेली. 'वेणीसंहार' नाटकमां ते वस्तु छे. हिडिंबा राक्षसीथी घटोत्कच पुत्र. भीष्म पुं० शंतनु राजाना गंगाथी थयेला पुत्र. शंतनुने पछी सत्यवती (मत्स्यगंधा) साथे परणवू हतुं तेथी सत्यवतीना पालक पितानी मागणीथी, सत्यवतीना पुत्रने गादी मळे ते सारु, आजन्म ब्रह्मचारी रहेवानी प्रतिज्ञा तेमणे लीधी हती. पांडव-कौरवोना 'पिता-मह' होवाथी भीष्मपितामह नामे ओळखाय छे. भीष्मक पुं० विदर्भ देशनो राजा; रुक्मिणीनो पिता. भग पुं० एक ब्रह्मर्षि. ब्रह्माना मानस-पुत्रोमांना एक. जमदग्नि - परशुराम इ० एमना वंशमां थया. ब्रह्मा-शंकर-विष्णु ए त्रणमांथी कोण श्रेष्ठ एनी परीक्षा करवा गया. ब्रह्माए तेमनो बरोबर सत्कार न कर्यो, तेथी तेमने शाप आप्यो के, तमाएं पूजन नहि थाय ; शंकर पत्नी साथे होई तेमनो सत्कार करवा न आव्या एटले तेमने शाप आप्यो के तमे लिंगरूपे पूजाशो. विष्णु सूतेला हता तेमने छातीमा लात मारी जगाड्या, तो ते ऊलटा 'तमने वाग्युं तो नथी ?' -कहीने तेमनी सारवार करवा लाग्या. तेथी देवो-मनुष्योमां तमारु पूजन थशे, एवो आशीर्वाद तेमने आप्यो. भगुकच्छ, भगक्षेत्र जुओ 'भरुकच्छ' भोज पुं०(१) विदर्भ देशनो राजा. अज राजानो ससरो. (२)कुंतिभोज राजा; यादव ; कुंतीने दत्तक लेनारो. (३) माळवानो (धारा नगरीनो) एक राजा. संस्कृत विद्यानो पुरस्कर्ता. ११ मा सैकाना प्रारंभमां थयो. 'सरस्वतीकंठाभरण' इ० नो कर्ता. भोजकट न० विदर्भनी बीजी राजधानी. रुक्मिणीना भाई रुक्मिए स्थापी. तेने 'भोजपुर' पण कहेछे. भोज राजाओ विदर्भ उपर पण राज्य करता हता. भोजपति पुं० कंस. भोजपाल भोपाल. धारना भोजराजे बंधावेला बंध उपरथी. भोजपुर न० (१) जुओ 'भोजकट'. (२) मथुरा; भोजराजाओनी प्राचीन राजधानी. मगध पुं० दक्षिण बिहार. तेनी प्राचीन राजधानी. 'गिरिव्रज' (राजगृह) -पांच टेकरीओनी अंदर वसेली (विपुलगिरि, रत्नागिरि, उदयगिरि, शोणगिरि अने वैभार). तेनी बीजी राजधानी ते पाटलिपुत्र. मगधनुं बीजु नाम 'कीकट' पण छे. मगध एक Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणिपुर वखत गंगानी दक्षिणे पण विस्तरेलो हतो. सिंगभूम सुधी. मणिपुर न० बभ्रुवाहनना राज्य कलिंग नी राजधानी. सरोवरना मुख आगळ बंदर. मत्स्यदेश पुं० विराट राजानो देश. धोलपुरनी पश्चिमे. पांडवो तेमां रोहितक अने शूरसेनोना देशमां थईने यमुनाना किनारेथी दाखल थया हता. वैराट तेनी राजधानी (आज- बैरात. जैपुरथी ४० माईल उत्तरे). मद्र पुं० पंजाबनो एक देश. रावी अने चिनाबनी वच्चे. तेनी राजधानी शाकल. मधु पुं० (१) एक राक्षस. तेने विष्णुए मारेलो तेथी तेमनुं नाम 'मधुसूदन'. (२) यदुवंशीय एक प्रसिद्ध कुळ. तेथी श्रीकृष्णतुं नाम 'मधुपति'. मधुपुर न० मथुरा. मधुवन न० यमुनाना तीरे आवेलं एक वन. तेमां मधु नामनो राक्षस रहेतो हतो. आ वननो ज पछी शूरसेन देश थयो. शत्रुघ्ने त्यां मथुरा स्थापी. मध्यदेश पुं० कुरुक्षेत्रमा सरस्वती, अल्हाबाद, हिमालय अने विध्य वच्चेनो प्रदेश. पंचाल, कुरु, मत्स्य, यौद्धय, पटच्छर, कुन्ति अने शरसेन -आ देशोनो समावेश मध्यदेशमां थतो. मध्व पुं० एक वैष्णव पंथना प्रवर्तक आचार्य. ब्रह्मसूत्र उपर भाष्य रच्युं छे. मनु पुं० प्रजापति. स्वायंभुव. मनुष्योमानवोनो पिता. दरेक कल्पमा १४ मनु थाय. प्रथम मनु ते स्वायंभुव मनु. सातमा मनु वैवस्वत मनु (सूर्यथी जन्मेला) कहेवाय छे. ते अत्यारनां प्राणीओना उत्पादक कहेवाय छे. विष्णुए मत्स्यावतार लईने तेमने मल्लदेश पूरमांथी बचावेला. ते अयोध्याना सूर्यवंशी राजाओना स्थापक छे. दरेक मनुनो समय 'मन्वंतर' कहेवाय छे. तेवां १४ मन्वंतर होय छे. दरेक मन्वंतरनो समय ४,३२०,००० मानववर्षनो गणाय अर्थात् ब्रह्माना दिवसनो १४ भो माग. मम्मट पुं० 'काव्यप्रकाश' नो कर्ता. काश्मीरनो वतनी पण बनारसमां शिक्षण लीधेलु. ११मा सैकामां थयेलो. मय, मयासुर पुं० असुरोनो शिल्पी. खांडववन बाळती वखते तेने अर्जुने बचावी लीधेलो; तेथी तेणे पांडवोने राजसभा बांधी आपेली. मयूर पुं० 'सूर्यशतक' नो कर्ता. बाणनो निकटनो संबंधी अने बने हर्षना दरबारमा साथे. मरीचि पुं० कश्यपना पिता; दश प्रजापति पैकी एक. मर पुं०, मरुस्थली स्त्री० मारवाड. सिंधनी पूर्व- महारण. आखा रज पूताना माटे पण ए नाम वपराय छे. मलज, मलद पुं० अयोध्या अने मिथिला ए बेनी बच्चेनो देश. शहाबाद जिल्लानो पूर्व भाग. ताटका राक्षसी त्यां रहेती हती. मलय पुं० भारतनी सात मुख्य पर्वतमाळाओमांनी एक. घणुंखरूं तेने मैसूरथी दक्षिणे लंबाती अने त्रावणकोरनी पूर्व सरहद बांधती घाटनी पर्वतमाळा गणवामां आवे छे. त्यां चंदननां झाड खूब थाय छे. भवभूति एम कहे छ के, तेनी आसपास कावेरी नदी वीटळाती. ('कावेरीवलयितम्'.) कालिदास मलय अने दर्दुर ए बे पर्वतोने दक्षिण भूमिना बे स्तनो कहे छे. मल्लदेश पुं० मुलतान जिल्लो. तेनी राजधानी मुलतान. Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१८ मल्लिनाथ मल्लिनाथ पुं० कालिदास, माघ,भारवि वगेरेना ग्रंथोनी जाणीती टीका लखनार, आंध्रना कोलाचल कुळनो तेलुगु ब्राह्मण. १४ मा सैकामां थयानो अंदाज छे. महाकाल पुं० उज्जयिनीमां आवेलं शंकर- स्थान; बार ज्योतिलिंगमांनुं एक. माल्यवत् माधव पुं० (१) मधु यादवनो वंशज (सात्यकि तथा श्रीकृष्ण माटे वपराय छे).(२) माधवाचार्य; प्रख्यात ऋग्वेद भाष्यकार सायणाचार्यना भाई. तेमनुं 'विद्यारण्य' नाम पण प्रसिद्ध छे. विजयानगरना हिंदु राज्यनी स्थापना तेमणे करेली. मानस न० हाटक (लडाख) प्रदेशमा आवेल सरोवर. तेनी उत्तरे उत्तरकुरुनो हरिवर्ष आवेलो गणाय छे. किन्नरोना धाम तरीके प्राचीन काळमां जाणीतुं; वर्षा ऋतु आवतां हंसो त्यां चाल्या जता कहेवाय छे. माया स्त्री० गौतमबद्धनी माता. माया, मायापुरी स्त्री० हरद्वार अने कनखल. अहीं दक्षयज्ञ थयेलो, जेमां सतीए पोतानी जातने होमी दीधी हती. मायावती स्त्री० प्रद्युम्ननी पत्नी. पूर्वजन्मनी रति. मारीच पुं० एक राक्षस. सुंद अने ताटकानो पुत्र. सुवर्णमृगनुं रूप धारण करी, सीताहरणमां तेणे रावणने मदद करेली. महाकोसल पुं० उत्तरे अमरकंटक आगळना नर्मदाना मूळ-स्थानथी मांडीने दक्षिणे महानदी सुधीनो, अने पश्चिमे वैनगंगाथीं मांडीने पूर्व हरडा अने जोंक नदीओ सुधीनो प्रदेश. महानदी स्त्री० बंगाळना उपसागरने मळती एक नदी.. महेंद्र पुं० भारतनी सात मुख्य पर्वतमाळाओमांनी एक; महानदी अने गोदावरी वच्चेनी पूर्व तरफनी आखी घाटमाळा. गंजमने महानदीनी खीणथी जुदी पाडनार 'महेंद्रमाल'. रामे तेजोहरण कर्या पछी परशुराम त्यां चाल्या गया हता. महोदय न० कनोज (कान्यकुब्ज).७ मा सैकामां ते घणुं प्रसिद्ध स्थान हतुं. रामायणमां तेनो उल्लेख छे. मंदाकिनी स्त्री० चित्रकूट नजीकनी एक नदी... माकंदी स्त्री० द्रुपदे पांचाल देशमा गंगाना किनारे स्थापेली नगरी. माघ पुं० "शिशुपालवध' नो कर्ता. उपमा, अर्थगौरव अने पदलालित्यनो स्वामी गणाय छे. ७ मा सैकाना पूर्वार्धमां थयो गणाय छे. मातंग पुं० आसामना कामरूपनी दक्षिण-पूर्व आवेलो प्रदेश. हीरानी खाणो माटे प्रसिद्ध. माद्री स्त्री० शल्य राजानी बहेन; पांडु- नीबीजी पत्नी; नकुल-सहदेवनी माता. मारुति पुं० हनुमान ; अंजना वानरीने वायु (मरुत्) थी थयेल पुत्र. रामना परम भक्त. आजन्म ब्रह्मचारी. मालव पुं० (१)७ मा-८मा सैका पहेलां आ प्रदेश अवंती नामे ओळखातो; तेनी राजधानी उज्जयिनी. १० मा सैकामां तेनी राजधानी धारानगर. (२) मल्लोनो देश; तेनी राजधानी मुलतान. मालिनी स्त्री० (१) चंपानगरी.(२) पश्चिम रोहिलखंडनी एक नानी नदी. आने कांठे कण्वनो आश्रम हतो. माल्यवत् पुं० एक पर्वत. (मध्य एशियामां?)(२) किष्किधा नजीक एक नानो पर्वत. वालिना वध पछी राम Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहिषक लक्ष्मण त्यां वर्षाकाळ पूरो थता सुधी रहेला. माहिषक पुं० नर्मदा किनारानो एक देश. तेनी राजधानी माहिष्मती. माहिष्मती स्त्री० नर्मदा किनारे आवेलु एक शहेर; आज, मंडला; कार्तवीर्यनी नगरी. (२) किष्किधानी दक्षिणे आवेलुं एक शहेर. मिथिला स्त्री० विदेह देशनी राजधानी. (जुओ ‘विदेह'.) दरभंगा जिल्लानुं जनकपुर. मुर पुं० नरकासुरना पक्षनो एक राक्षस. तेने श्रीकृष्णे मारेलो तेथी तेमनुं नाम 'मुरारि' प्रसिद्ध छे. मुरारि पुं० रामायणनी वार्ता उपरथी ७ अंकना नाटक 'अनर्घराघव'नो कर्ता. ८ मा सैकाना अंतमां के ९ मानी शरू आतमां थई गयो. मेकल पुं० अमरकंटक पर्वत. नर्मदा त्यांथी नीकळती होवाथी तेनुं नाम 'मेकलकन्यका' छे. विंध्य पर्वतमाळानो एक भाग. मेघनाद पुं० रावणपुत्र इंद्रजित्. मेनका स्त्री० एक अप्सरा. तेणे विश्वामित्रना तपनो भंग कयों; ते बंनेनी पुत्री ते शकुंतला. मेना स्त्री० हिमालयनी पत्नी. मेरु पुं० सुवर्ण पर्वत मनाय छे. सातद्वीपोनी मध्यमां. सूर्य तेनी प्रदक्षिणा करतो मनाय छे. मैनाक पुं० एक पर्वत. हिमालय-मेनानो पुत्र. इंद्रे बीजा पर्वतोनी पांखो तोडी नाखी त्यारे ते दक्षिण समुद्रमां छुपाई गयो एटले तेनी पांखो रही गई छे. मोहिनी स्त्री० समुद्रमंथन वखते नीकळेला अमृतने असुरोना कबजामांथी काढी लाववा विष्णुए धरेलो स्त्रीरूप अवतार. युधाजित् यज्ञपुर न० ओरिसान जैपुर. वैतरणी नदीने कांठे. छठठा सैकामां स्थपायेलं. यदु पुं० ययाति अने देवयानीनो मोटो पुत्र. यादवोनो पूर्वज. ययाति पुं० नहुषनो पुत्र. शुक्राचार्यनी पुत्री देवयानी तथा असुरराजनी पुत्री शर्मिष्ठा ए बे राणीओ. देवयानीने यदु अने तुर्वसु ए बे पुत्र ; शर्मिष्ठाने द्रुहयु, अनु अने पुरु. शर्मिष्ठा देवयानीनी दासी तरीके आवेली पण ययातिए गुप्त रीते तेने पत्नी बनावी तेथी शुक्राचार्ये तेने वृद्धावस्था प्राप्त थवानो शाप आप्यो. पुरुए ए वृद्धावस्था स्वीकारीने पिताने फरी जुवानी प्राप्त करावी. यवद्वीप पुं० जावा. तेने 'पूर्वकलिंग' पण कहेता. याज्ञवल्क्य पुं० एक ब्रह्मर्षि; वैशंपायनना शिष्य. तेमने मैत्रेयी अने कात्यायनी बे स्त्रीओ हती. वाजसनी शाखाना प्रवर्तक. मोटा ब्रह्मनिष्ठ. देवरात-जनकने ब्रह्मविद्या आपेली. यामुनगिरि पुं० (१)हिमालयनुं शिखरं. त्यां पांडवो थोडो समय रहेला. अजगररूप धारी नहुष त्यां भीमने गळी गयेलो, त्यारे धर्मे तेने छोडावेलो. (२)गंगा तथा यमुना वच्चेनो एक पर्वत. यास्क पुं० चोथा वेदांग ‘निघंटु' उपरनी टीका 'निरुक्त 'नो कर्ता. वैदिक शब्दो अने मंत्रोना अर्थ समजावे छे. भारतनो अग्रणी भाषाशास्त्री कहेवाय. ई. स. पूर्वे ८मा के ७मा सैकामां थई गयो. युगंधर पुं० कुरुक्षेत्र नजीक आवेलो यमुनाना पश्चिम किनारा उपरनो प्रदेश. युधाजित् पुं० केकय देशना अश्वपति Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युधिष्ठिर ६२० रेवती राजानो पुत्र ; कैकेयीनो भाई. भरतनो राम पुं० (१) परशुराम.(२) दशरथमामो. कौशल्याना पुत्र रामचंद्र. (३) श्रीयुधिष्ठिर पुं० 'धर्मराज' नाम पण छे. कृष्णना मोटाभाई वलराम. पांच पांडवोमां मोटा.. रामगिरि पुं० नागपुरनी २४ माईल युयुत्सु पुं० धृतराष्ट्र ने वैश्य दासीथी उत्तरे आवेल रामटेक. (२) अथवा थयेलो पुत्र. महाभारतना युद्ध वखते छोटानागपुरना सिरगुजामा आवेल पांडवोना पक्षमा हतो. रामगढ. कालिदास 'मेघदूतना वातने युयुधान पुं० सात्यकि; यादव योद्धो; रामगिरिथी शरू करे छे. तेने शैवलपांडवोना पक्षनो. गिरि पण कहे छे. . यौधेय पुं० वितस्ता (झेलम) अने रावण पुं० पुलस्त्यना पुत्र विश्रवा सिंधु वच्चेनो देश. अने कैकसीनो पुत्र; लंकानो राजा. रघु पुं० सूर्यवंशीय दिलीपराजानो पुत्र. मयासुरनी पुत्री मंदोदरी तेनी स्त्री. अजनो पिता; दशरथनो दादो. ते कुबेर पासेथी पुष्पक विमान पडावेलं. एटलो बधो प्रख्यात थयो के, तेना तेणे करेलु सीताहरण वगेरे कथा उपरथी रघुवंश नाम ऊ, थयु. 'रामायण'नुं वस्तु छे. रघुनंदन, रघुनाथ पुं० रघुवंशमां उत्पन्न राहु पुं० विप्रचित्ति अने सिंहिकानो थयेल श्रीरामचंद्र ; रघुना कुलमां सौथी श्रेष्ठ होवाथी. पुत्र. दानव. अमृत देवोने वहेंचात हतुं त्यारे गुप्त वेशे देवोमा पेसी अमृत रसातल न० सात पातालमांनु एक. पीवा लागेलो. पण सूर्य-चंद्र तेने पश्चिम तार्तरी - हूणोना देश तरीके जोई गया. तेथी विष्णुए तेनुं गर्छ ओळखाय छे. कापी नांख्यु. गळा सुधी अमृत गयेलं, रंतिदेव पुं० पुरुवंशीय राजा. तेगे तेथी तेनो तेटलो भाग अमर थयो. ते गोसव नामनो यज्ञ करेलो. तेमां एटलां सूर्यचंद्रने वेर राखीने ग्रसे छे. बधां पशु वधेरायेलां के तेमनां चामडामांथी चर्मण्वती नदी उत्पन्न थई रुक्मिणी स्त्री० विदर्भ देशना राजा एम कहेवाय छे. भीष्मकनी पुत्री. श्रीकृष्णनी पत्नी. राजगृह न० (१) राजगिर. मगधनी तेनो विवाह प्रथम शिशपाळ वेरे प्राचीन राजधानी. (२) पंजाबमां ठरावेलो. तेथी श्रीकृष्ण साथे शिशुबियास नदीना उत्तर किनारे आवेल पाळने वेर थयेलं. राजगिरि. केकय राजाओनी राजधानी. रुद्रट' पुं० 'काव्यालंकार', 'शंगारराजशेखर पुं० 'बालरामायण', 'बाल तिलक' आदिनो कर्ता. ९मा सैकामां भारत', 'काव्यमीमांसा' आदिनो थई गयेलो. कर्ता. १०मा सैकाना पूर्वार्धमां थई रेणुका स्त्री० परशुरामनी माता; गयेलो. जमदग्निनी पत्नी. चित्ररथ गंधर्व प्रत्ये राढ जुओ 'सुह्म'. आसक्त थवाथी जमदग्निए तेनो राधा स्त्री० कर्णनी पालक माता. वध करवा पुत्रोने हुकम कर्यो. परशुअधिरथ सारथिनी पत्नी. तेना उपरथी रामे पितानी आज्ञानुं पालन करी कर्णनुं नाम 'राधेय' पण छे. कर्ण- तेनो वध कर्यो हतो. नाम 'सूतपुत्र' पण तेथी ज पडघु छे. रेवती स्त्री० बळरामनी पत्नी. Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रेवा रेवा स्त्री० नर्मदा नदी. रैवत, रैवतक पुं० गिरनार पर्वत. रोहिणी स्त्री० वसुदेवनी पत्नी ; बळरामनी माता. रोहित पुं० हरिश्चंद्र - तारामतीनो पुत्र. लक्ष्मण पुं० (१) दशरथ - सुमित्रानो पुत्र. राम साथे वनवास गयेलो. रावणना पुत्र इंद्रजितनो वध करेलो. (२) दुर्योधनो पुत्र, अभिमन्युए तेने महाभारतना युद्धं वखते हणेलो. लक्ष्मणा स्त्री० दुर्योधननी कन्या. कृष्णपुत्र सांब तेने हरी गयेलो. लक्ष्मणावती स्त्री० ( १ ) गोड देशनी राजधानी. गंगाने डाबे किनारे. ( २ ) अयोध्या प्रांतनुं लखनौ. लव पुं० राम-सीतानो पुत्र. कुशनो भाई. तेनी राजधानी श्रावस्ती. लंका स्त्री० रावणनी राजधानी, कुबेर पासेथी रावणे जीती लीधेली. लाढ पुं० मही अने तापी नदीनो वच्चेनो दक्षिण गुजरात. खानदेशनो समावेश तेमां थतो. सुरत, भरूच, खेडा अने वडोदरानो केटलोक भाग तेमां आवे. ६२१ लोपामुद्रा स्त्री० अगस्त्य मुनिनी पत्नी. विदर्भराजनी कन्या. लोमपाद पुं० चंद्रवंशीय बृहद्रथनो पुत्र. तेना राज्यमां बार वर्ष अनावृष्टि थतां ऋष्यशृंग मुनिने पोताना राज्यमा लावी वृष्टि करावेली. अंग देशनो राजा; दशरथनो मित्र. लोमश पुं० एक ऋषि वनवास दरम्यान पांडवो साथ तीर्थयात्रा करेली अने तेमने अनेक इतिहास संभळावेला. लौहित्य पुं० ब्रह्मपुत्रा नदी. वज्र पुं० श्रीकृष्णना पौत्र अनिरुद्धनो पुत्र. सर्व यादवोनो संहार थतां ए ज बाकी रह्यो हतो. तेने अर्जुन इंद्रप्रस्थ लई गयो. वंग वडवा स्त्री० विश्वकर्मानी पुत्री संज्ञा ; सूर्यनी पत्नी. वडवा - घोडीरूपे फरती हती ते वखते अश्वरूपधारी सूर्यथी तेने अश्विनीकुमारो रूपी बे पुत्रो जन्म्या हता. वत्स पुं० प्रयागनी पश्चिमे आवेलो एक देश. कौशांबी तेनी राजधानी. उदयन तेनो राजा. वत्सला स्त्री० अभिमन्युनी पत्नी. बळरामनी पुत्री, वररुचि पुं० कवि अने वैयाकरणी. विक्रम राजानां नव रत्नोमा एक गणाय छे. केटलाक तेने पाणिनिनां सूत्री उपर वार्तिक लखनार कात्यायन गणे छे. वराहमिहिर पुं० प्रसिद्ध ज्योतिषशास्त्री; ८ 'बृहत्संहिता' - नो कर्ता. परंपरा तेने विक्रमादित्य राजानां नव रत्नोमा एक गणावे छे. ते ई. स. ना छठ्ठा सकामां थई गयो होय तेम लागे .. वर्धमान पुं० (१) बंगाळनुं अत्यार बर्दवान. ( २ ) सौराष्ट्रनुं अत्यारन् वढवा. (३) कथासरित्सागर 'मां जणाव्या प्रमाणे अल्हाबाद अने बनारस वच्चे आवेलुं. वलभी स्त्री० सौराष्ट्र-गुजरातनुं बंदर अने राजधानीनुं शहेर. ७मा सैकामां पश्चिम भारतमां ते बौद्ध विद्यापीठनंं मथक हतुं. वसिष्ठ पुं० एक प्रख्यात ब्रह्मर्षि. मित्रावरुणना पुत्र. तेमने त्यां कामधेनु हती. ते अंगे विश्वामित्र साथै वेर थयेलं. सूर्यवंशी राजाओना कुलगुरु. वसुदेव पुं० यदुवंशीय शूर राजाना पुत्र. श्रीकृष्ण अने बळरामना पिता. वंग पुं० पूर्वबंगाळ. ('गौड' नाम उत्तर बंगाळनुं छे.) तेने 'समतत' पण कहे छे. एक वखत त्रिपुरा अने गारो टेकरीओनो पण तेमां समावेश थतो. Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाकाटक ६२२ विदुर वाकाटक पुं० बंगाळना अखात अने मां तेने प्रद्योतनी पुत्री कही छ; श्रीशैल्य पर्वत (दक्षिण हैदराबाद) ‘कथासरित्सागर'मां तेने उज्जयिवच्चेनो देश. आना राजाओ २५०- नीना चंडमहासेननी पुत्री कही छे. ५२५ दरम्यान विदर्भ उपर राज्य वत्सराज उदयन तेनुं हरण करी करता हता. गयेलो. भवभूति एम जणावे छे के वात्स्यायन पुं० 'कामसूत्र'नो कर्ता. तेनो संजय राजा साथे विवाह थयेलो ई. स. पूर्वे २ जा सैकामां थई गयेलो पण ते पोते उदयनने वरेली. सुबंधुनी केटलाक माने छे, तो केटलाक तेनो वासवदत्ता वळी जुदी ज कथानी समय ई. स. ना ४था सैकामां मूके छे. नायिका छे. वामन पुं० विष्णुनो पांचमो अवतार. वासुकि पुं० प्रसिद्ध सर्पराज - नाग. बलिराजानो निग्रह करवा माटे कश्यपनो पुत्र. ठींगणुं रूप धरेलुं. त्रण पगलांमां वालिक, वाहलीक अंत्यार- बल्ख. त्रिलोक व्यापी लई, बलिने पाताळमां रामायणमा जणाव्या प्रमाणे आ देश दबावेलो. अयोध्या अने केकयनी वच्चे आवेलो. वामनभट्ट बाण पुं० 'पार्वतीपरिणय', तेनुं बीजुं नाम 'बाल्हीक' पण छे. 'नलाभ्युदय' वगेरेना कर्ता. बाण 'त्रिकांडशेष' ना जणाव्या प्रमाणे कवि जेवी शैली होवाथी 'अभिनव वाहलिक अने त्रिगर्त एक ज देशनां बाण' तरीके ओळखाय छे. त्रिलिंग नाम छे. देशना वेन भूपालना दरबारनो कवि. विचित्रवीर्य पुं० भीष्मनो ओरमान १५मा सैकाना पूर्वार्धमां थई गयो. भाई; धृतराष्ट्र-पांडुनो पिता. तेना वारणावत न० हस्तिनापुर नजीक एक मृत्यु पछी तेनी पत्नी अंबिका अने स्थळ. अंबालिकाथी व्यासजीए ए बे पुत्रो वाराणसी स्त्री० बनारस. वारणा अने उत्पन्न करेला. असि नदीना संगम उपर छे. पण वितस्ता स्त्री० जेलम नदी. पहेलां गंगा अने गोमतीना संगम उपर विदर्भ पुं० अत्यारनुं वराड. प्राचीन हतुं. काशी देशनी राजधानी. समयनुं महान राज्य. कृष्णाना किनावालि पुं० मोटो वानर राजा. सुग्रीवनो राथी मांडीने नर्मदाना किनारा सुधीनुं. मोटो भाई. रामे तेनो वध करी, तेनी कुंडिनपूर प्राचीन राजधानी. वरदा पत्नी ताराने सुग्रीव साथे परणावी. नदी तेना बे भाग पाडती. उत्तरना वाल्मीकि पुं० आदि कवि. रामायणना भागनी राजधानी अमरावती; अने कर्ता. नारदे तेमने भक्तिने मार्गे दक्षिणनी प्रतिष्ठान. पुराणोमां आवता वाळेला. सीतानो परित्याग कर्यो भोज राजाओ विदर्भना हता. प्राचीन त्यारे ते आ ऋषिना आश्रमे रहेलां समयमां भोपाल तथा नर्मदानी उत्तरे अने तेमणे तेमना बे पुत्रो लवकुशने भिलसानो समावेश विदर्भमां थतो. उछेरेला अने तेमने पछी रामायण विदिशा स्त्री० माळवानुं भिलसा. शीखवेलं. प्राचीन दशार्ण देशनी राजधानी. वासवदत्ता स्त्री० अनेक लोककथाओ भोपाळनी ईशानमा ३० माईल उपर. तेनी आसपास गूंथाई छे. 'रत्नावली' विदुर पुं० विचित्रवीर्यनी पत्नी Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदेह ६२३ विध्याटवी अंबिकाए पोताने बदले व्यासजी पासे थईने पेठेला. (दशानी उत्तरे.) मोकलेली दासीना पुत्र. नीतिज्ञ तथा तेनी राजधानी वैराट ते आजनुं व्यवहारकुशळ. धृतराष्ट्र तथा कौरवोने बैरात जैपुरथी उत्तरे ४० माईल. तेमणे पांडवो साथे विरोध न करवा (तेने मत्स्यदेश पण कहे छे.) खूब समजावेला. विरोचन पुं० प्रह्लादनो पुत्र; बलिविदेह पुं० मगधनी उत्तर-पूर्वमां आवेलो राजानो पिता. देश. तेनी राजधानी मिथिला (अत्यारनुं विशाखदत्त पुं० 'मुद्राराक्षस' नाटकनो दरभंगा जिल्लानु जनकपुर). कर्ता. तेनो समय ५ माथी नवमा प्राचीनकाळमां नेपाळनो भाग, सैकानी वच्चे अनिश्चित छे. तिरहूट जिल्लानो उत्तरनो भाग विशाखा स्त्री० बौद्ध काळमां अयोतथा चंपारणनो उत्तर-पश्चिम भाग ध्यानुं नाम. ते आजनुं लखनौ छे एम पण तेमां गणातो. बुद्धना वखतमां ते पण कहेवामां आवे छे. वज्जीओनो देश गणातो. तेना राजा विशाखापत्तन न० आजनुं विझागाजनकनी पुत्री होवाथी सीता वैदेही पट्टम. गणाती. विशाला स्त्री० (१) उज्जयिनी (२) विद्यानगर न० तुंगभद्रा नदी उपरनुं बिहारना मुझफ्फरपुरमा आवेलु हंपी - विजयनगर. बेसाड. बौद्धकाळनुं वैशाली. विनता स्त्री० कश्यपनी पत्नी; दक्ष विश्वनाथ पुं० ‘साहित्यदर्पण'ना कर्ता. 'काव्यप्रकाश'ना टीकाकार. ई. स. प्रजापतिनी पुत्री; तेने अरुण अने १३८४मां तेमनो साहित्यदर्पण ग्रंथ गरुड ए बे पुत्र थयेला. लखायेलो. विनशन न० एक तीर्थ. सरहिंद जिल्ला विश्वामित्र पुं० चंद्रवंशी गाधिराजान। रेती, रण. सरस्वती नदी अहीं आगळ पुत्र; क्षत्रिय होई तपोबळथी ब्रह्मर्षि रेतीमां लुप्त थई गई. थया; वसिष्ठ साथे वेर चालेलु; विनाशिनी स्त्री० गुजरातनी बनास तेमना तपनो भंग करवा इंद्रे मेनका नदी. मोकलेली; तेथी शकुंतला नामे कन्या विपाश, विपाशा पंजाबनी बियास नदी. जन्मेली. त्रिशंकुने स्वदेहे स्वर्गमां जदूं महाभारत (१.१७९)मां तेना नामनी हतुं; विश्वामित्रे तेने यज्ञ कराव्यो; उत्पत्ति जणावी छ : वसिष्ठजी पुत्र- देवोए तेने न पेसवा दीधो त्यारे तेमणे शोकथी पाश बांधी आ नदीमां अंतरियाळ बीजं स्वर्ग रच्यु हतुं. आत्महत्या करवा पडेला; पण नदीए ताटका राक्षसी तेमना यज्ञनो भंग तेमने पाश तोडी किनारे पहोंचाडेला. करती तेथी रामनी मदद लीधेली; विभांडक पुं० ऋष्यशंगना पिता. तेने मारी पछी जनकने त्यां जतां विराट पुं० (१) मत्स्य देशनो राजा. सीता साथे रामनुं लग्न थयु. पांडवो गुप्तवास तेने त्यां रहेला. तेनी विंध्याचल पुं० विंध्य पर्वत. कन्या उत्तरा अभिमन्यु वेरे परणावी. विध्याटवी स्त्री० विंध्य पर्वतमाळानी (२) विराट देश धोलपुरनी पश्चिमे पश्चिम बाजु दक्षिण तरफ आवेलू आवेलो. पांडवो तेमां यमनाना कांठेथी मोटुं वन. खानदेश अने औरंगाबादनो रोहितको अने शूरसेनोना देशमा घणो भाग तेमां आवे. Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्र ६२४ शता वृत्र पुं० त्वष्ट्र प्रजापतिना पुत्र विश्व- वैशंपायन पुं० एक ऋषि. याज्ञवल्कयना रूपने इंद्रे मार्यो, तेथी इंद्रने मारवा मामा तथा गुरु. व्यासजीना एक अग्नि पासेथी तेमणे मेळवेलो पुत्र. प्रख्यात शिष्य. पुराणो संभळाववामा पछी तेने इंद्रे वज्रथी मार्यो हतो. निपुण. जनमेजयने महाभारत संभवृषकेतु पुं० कर्णना पुत्रनुं नाम. ळावेलं. वृषपर्वन् पुं० असुरोनो राजा; शर्मि- वैशाली स्त्री० (तिर्हत) मुझफ्फरपुर ष्ठानो पिता. शुक्राचार्यनी मददथी जिल्लाना दक्षिण भागमां आवेलो तेणे देवो साथे युद्ध करेलु. प्राचीन प्रदेश. तेनी उत्तरे विदेह अने वृष्णि पुं० यदुवंशीय एक राजा. दक्षिणे मगध. वैशाली तेनी राजधानी. श्रीकृष्णना पूर्वज. व्यास पुं० पराशरथी सत्यवतीने (कुंवारी वेणा, वेणी, वेण्या, वेण्या स्त्री० (१) अवस्थामां) थयेल पुत्र. वेदोनो कृष्णाने मळती एक नदी.(२)नागपुर विभाग करनार. महाभारतना कर्ता. जिल्लानी वैनगंगा नदी; गोदावरीनी तेमणे विचित्रवीर्यनी स्त्रीओमां शाखा. धृतराष्ट्र अने पांडु ए पुत्रो उत्पन्न वेत्रवती स्त्री० विध्याद्रिमांथी नीकळती कर्या. तेमने जन्मती वखते माताए नदी. हालनी बेटवा (माळवामां). नदीनी वच्चेना द्वीपमां तजी दीधेला वेन पुं० सूर्यवंशी राजा; पृथुनो पिता. तेथी ते 'द्वैपायन' अने काळा होवाथी यज्ञनी बंधी फरमावतां ऋषिओए 'कृष्ण द्वपायन' नामे पण ओळखाय छे. तेनो वध करेलो. व्रज पुं० मथुरा नजीक आवेलं गोकुल. वेस्सनगर न० (भोपाल) सांचि नजीकनुं आजनुं बेसनगर. भिलसाथी त्यां बचपणमां श्रीकृष्ण नंदने घेर ऊछरेला. त्रण माईल दूर. बेस अने बेटवाना। संगम उपर. दशार्णनी प्राचीन शकस्थान न० सिस्तन, ज्यां शको राजधानी. पहेलवहेला आवीने वस्या. वैजयंत न० निमिराजानी नगरी. शकुनि पुं० गांधार देशना सुबल राजानो मिथिलानुं जूनुं नाम. पुत्र. गांधारीनो भाई. दुर्योधननो वैजयंती स्त्री० उत्तर कानडा, बन मामो. एणे दुर्योधनने द्यूत रमवा वासी. कदंबोनी राजधानी. केटलाक प्रेर्यो हतो. कपटद्यूत रमवामां कुशळ. तेने दक्षिणना विजयदुर्ग तरीके सहदेवने हाथे मार्यो गयो. ओळखावे छे. शकुंतला स्त्री० विश्वामित्र- मेनकानी वैतरणी स्त्री० आ नामनी घणी नदीओ कन्या. मेनका जन्म पछी तेने छोडी छे. महाभारतमां कलिंग देशमां गई; तेथी कण्व ऋषिए तेने उछेरी. आवेली एक वैतरणीनो उल्लेख छे. दुष्यंत साथे गांधर्वविवाह कर्या. बीजी दंतुरानो ऊगम नासिक पासे छे. सर्वदमन - भरत तेनो पुत्र. .. वैद्यनाथ पुं० अत्यारनापंजाबनो कांगरा शक्ति पुं० वसिष्ठ-अरुंधतीनो पुत्र; जिल्लो. तेने कीरग्राम पण गणवामां पराशरनो पिता. आवे छे. शतQ पुं० पंजाबनी सतलज नदी. वैवस्वत पुं० सातमा मनु. इक्ष्वाकुना वसिष्ठ त्यां डूबी मरवा गयेला त्यारे पिता. हालमां तेमनो मन्वंतर चाले छे. ते नदी सेंकडो प्रवाहोमां छिन्नभिन्न Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शत्रुघ्न ६२५ शिबि थई गई अने तेमने डूबवा न दीधा. शंबर पुं० एक असुर. तेने कृष्णपुत्र तेथी ते नाम. पहेलांनुं नाम हैमवती. प्रद्युम्ने मारेलो. शत्रुघ्न पुं० दशरथ-सुमित्रानो पुत्र. शाकटायन पु० यास्क अने पाणिनि तेणे लवणासुरने मारेलो. शूरसेन पहेलांनो एक वैयाकरणी. देश स्थाप्यो. मथुरा तेनी राजधानी. शाकद्वीप पुं०, न० शक जातिनो देश. शरयू स्त्री० सरयू नदी. मध्य एशियाना तुर्कस्तान सहितनो शरवण न० हिमालयमां शिव-पार्वतीनुं तातरी देश. शक लोकोने स्काइथियन क्रीडास्थान. कोई पुरुष त्यां जाय लोको गणवामां आवे छे. तो स्त्री थई जाय एवी पार्वतीए शाकल पुं० मद्र देशनी राजधानी. मर्यादा बांधेली. इल राजा त्यां जई लाहोर विभागनुं सियालकोट ते होय इला बनी गयो हतो. एम कहेवाय छे. शरावती स्त्री० (१) साबरमती नदी. शाक्य पुं० गौतमबुद्ध. (२) सरस्वती, बीजूं नाम. शालिवाहन पुं० शक प्रवर्तावनार राजा. शर्मिष्ठा स्त्री० असुरराज वृषपर्वानी ई. स. ७८ ना वर्षथी तेनो संवत कन्या. तेणे देवयानीने बचपणनी चालु थयो हतो. . तकरारमा कुवामां धकेलेली. ययातिए शालिहोत्र पुं० अश्वशास्त्रनो रचनार. देवयानीने बचावी. पछी देवयानीए कपिलनो पुत्र. पोताना पिता शुक्राचार्य द्वारा असुर शाल्मलिद्वीप पुं०, न० चाल्डिया, मेसोराजाने धमकावी शर्मिष्ठाने दासी तरीके मेळवी. पछी ययातिए तेनी पोटेमिया के आसीरिया. पृथ्वीना सात साथे छूपुं लग्न करेलु. द्वीपो (विभागो) मांनो एक. शल्य पुं० मद्र देशनो राजा. माद्रीनो शाल्व पुं० (१) जोधपुर-जयपूर अने भाई. कौरवोना पक्षमां तेने जवू पडेल. अलवरना अंशो मळीने थतो प्रदेश. तेने कर्णनो सारथि बन्यो. महाभारतना 'मृत्तिकावती' पण कहेता. तेनी राजयुद्धमा १८ मे दिवसे कौरवोनो धानी शाल्वपुर ए आज, अलवर. सेनापति थयेलो. युधिष्ठिरे तेनो वध (२) शाल्व देशनो एक राजा. काशीको हतो. राजनी कन्या अंबा तेने मनथी वरेली शंकराचार्य पुं० वेदांतमतना प्रसिद्ध तेथी भीष्मे तेने पाछी मोकलेली. पण आचार्य. ब्रह्मसूत्र उपरना 'शारीर बीजाथी जितायेली तेने तेणे न भाष्य 'ना कर्ता. ई. स. ७८८-८२०. स्वीकारी. (३) शाल्व देशनो एक ३२ वर्षनी उमरे देहांत. केटलाक राजा. रुक्मिणीना लग्न वखते कृष्ण तेमने छठ्ठा के सातमा सैकामां पण तेने हराव्यो. मके छे. शिखंडिन् पुं० द्रुपदनो पुत्र. भीष्म शंख पुं० (१) एक स्मृतिकार. प्रत्येनुं वेर लेवा अंबा ज (जुओ लिखितनो भाई. (२) शंखासुर. तेने 'शाल्व') बीजे जन्मे शिखंडी थई. मत्स्यावतारमा विष्णुए मारेलो. तेने आगळ राखीने अर्जुने भीष्मनो शंतनु पुं० चंद्रवंशी राजा. गंगाथी वध करेलो. अश्वत्थामाने हाथे मरायो. भीष्म अने सत्यवतीथी चित्रांगद तथा शिबि पुं० (१) एक चंद्रवंशी राजा. विचित्रवीर्य पुत्रो. ययातिनो दौहित्र. तेनी दानशीलतानी Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिशुपाल ६२६ सती परीक्षा करवा इंद्र अने अग्नि बाज न्य पुं०(१)विष्णुना रथना चार घोडा अने होलानुरूप धारण करीने आवेला. पैकी एक.(२)पांडवपक्षीय एक राजा. (२) जयद्रथना ताबानो देश. सिंधुनी शैवल पुं० विध्याचळनी दक्षिणे अडोपश्चिमे. अड आवेलो एक पर्वत. शिशुपाल पुं० दमघोषनो पुत्र. चेदि शोण पुं० एक महानद. गौडवनमाथी देशनो राजा. पुराणो प्रमाणे हिरण्य- नीकळी पटणा आगळ गंगाने मळे छे. कशिपु अने रावण रूपे पण ए ज शोणा स्त्री० अयोध्या अने मिथिला अवतरेलो. पांडवोना राजसूय यज्ञ वच्चेनी एक नदी. वखते अत्यंत निंदा करवा बदल शोणितपुर नं० बाणासुरनी नगरीनुं श्रीकृष्णे तेनो वध कर्यो. नाम. शुक पुं० व्यासना पुत्र. जन्मथी ज शौनक पुं० नैमिषारण्यवासी कुलपति तत्त्वज्ञानी अने ब्रह्मचारी. रंभाए ऋषि. तेमणे सूतने भारतादि इतिहास तेमने मोहित करवा निष्फळ प्रयत्न संभळावेलो. करेलो. व्यासे तेमने भागवत शीखव्यु; श्रावण पुं० पोतानां वृद्ध मातापिताने पछी तेमणे परीक्षितने संभळाव्यु. तीर्थयात्रा कराववा नीकळेलो एक शुक्र पुं० भृगु ऋषिना पुत्र; च्यवनना जुवान वैश्य. दशरथे भूलथी तेने भाई. दैत्योना गुरु. इंद्रकन्या जयंती मारतां, पुत्रवियोगनो शाप मळेलो. तेमनी पत्नी. देवयानी तेमनी पुत्री. श्रावस्ती स्त्री० उत्तर कोशलनी राजशूद्रक पुं० 'मृच्छकटिक' नाटकनो कर्ता. धानी. त्यां लव राज्य करतो हतो. तेने ई. स. ना पहेला सैकामां थयो हशे. शरावती पण कहे छे. अयोध्यानी शूर पुं० (१) मगध देशनो राजा; उत्तरे आवेल सहेतमहतने तेना सुमित्रानो पिता. (२) वसुदेव, कुंती, अवशेष रूपे ओळखावाय छे. श्रुतश्रवा (शिशुपालनी माता)नो श्रीक्षेत्र न. ओरिसानुं पुरी. पिता. शिशुपालनो मातामह. श्रीपर्वत, श्रीशैल पुं० दक्षिणनो एक शूरसेन पुं० एक देश. शत्रुघ्ने तेनी पर्वत. कृष्णा जिल्लामा कृष्णा नदीने राजधानी मथुरा स्थापेली. किनारे आवेलो छे. शर्पणखा स्त्री० रावणनी बहेन. दंडका- सगर पुं० सूर्यवंशी राजा, रामनो पूर्वज. रण्यमा रहेती हती. राम उपर मोहित तेना अश्वमेध यज्ञना अश्वनी पाछळ थयेली. लक्ष्मणे तेनुं नाक कापी नाखेलं. नीकळेला तेना ६०,००० पुत्रो कपिल पछी तेणे सीता, हरण कराव्यु. मुनिना शापथी भस्मीभूत थयेला, शूरक पुं० थाणा जिल्ला- सोपारा. त्यारे तेमना उद्धार माटे तेनो वंशज अपरांत (उत्तर कोंकण) देशनी भगीरथ गंगाने तप करी पृथ्वी उपर प्राचीन राजधानी. परशुरामे समुद्र लावेलो. हटावी पोताने रहेवा माटे करेलु सगरना अश्वनी शोध वखते तेना स्थान. पुत्रोए पाताळमां जवा खाडो खोदेलो, शंगवेर पुं० गंगाना उत्तर किनारे तेथी समुद्रनी हद वधी गई अने ते मिरझापुर नजीकनूं एक नगर. 'सागर' कहेवायो. निषादोनो राजा गृह त्यां रहेतो. सती स्त्री० दक्ष प्रजापतिनी कन्या; Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्यभामा ६२७ शिवनां पत्नी. पिताने घेर यज्ञ वखते पतिनुं अपमान थयेलं जोई, अग्निमां देहत्याग कर्यो. बीजे जन्मे ते ज पार्वती बन्यां. सत्यभामा स्त्री० सत्राजित्नां पुत्री; श्रीकृष्णनां पत्नी. तेमने माटे पारिजात वृक्ष स्वर्गमांथी लाववा श्रीकृष्णे इंद्र साथे युद्ध करेलुं. सत्यवत् पुं० शाल्वदेशना धुमत्सेननो पुत्र; सावित्रीनो पति. मृत्यु बाद सावित्री तेने यमराज पासेथी छोडावी लावेली. सत्यवती स्त्री०(१) गाधिराजानी कन्या; विश्वामित्रनी बहेन; जमदग्निनी माता. (२) त्रिशंकुनी पत्नी; हरिश्चंद्रनी माता. (३) उपरिचर वसुने मत्स्य स्त्रीथी थयेल कन्या. ते मत्स्यगंधा,योजनगंधा इ० नामे पण जाणीती छे. कुंवारी अवस्थामां पराशर ऋषिथी तेने व्यास पुत्र थयेला. शंतनु राजा साथे लग्न बाद तेने चित्रांगद अन विचित्रवीर्य बे पुत्र थया. सत्राजित् पुं० सत्यभामानो पिता; सूर्य पासेथी तेने स्यमंतक मणि मळयो हतो. तेमांथी रोज आठ भार सुवर्ण नीकळतुं. ते मणि मेळववा घणां युद्धो थयेलां. सत्यवत पुं० 'त्रिशंकु'. सदानीरा स्त्री० करतोया' नदी. सन, सनक, सनत्कुमार, सनंदन पुं० ब्रह्मदेवना चार मानस पुत्रो. समतट पुं० भागीरथीनी पूर्वमां अने पंडनी दक्षिणे आवेलो प्रदेश. तेनी राजधानी कर्मान्त (कोमिल्ला नजीक). समंतपंचक न० कुरुक्षेत्र नजीकनुं स्थळ. त्यां परशुरामे क्षत्रियोनो संहार करी लोहीना पांच धरा भरेला. सरयू स्त्री० अयोध्या नजीक वहेती नदी. तेने गोग्रा पण कहे छे. सांदीपनि सरस्वती स्त्री० एक नदी. ते गंगाजमुनाने प्रयाग पासे गुप्त रीते मळी त्रिवेणी-संगम बने छ एम कहेवाय छे. कुरुक्षेत्र आ नदीने किनारे आवेलं. सहदेव पुं० पांच पांडवोमांथी पांचमो; माद्रीनो पुत्र. खड्गयुद्धमां निष्णात. ज्योतिषमां निपुण. सह्य पुं० सह्याद्रि. संजय पुं० धृतराष्ट्रनो सारथि अन मंत्री. तेणे महाभारतनुं युद्ध दिव्यदृष्टिथी नजरे जोई धृतराष्ट्रने वर्णवी बतावेलं. संज्ञा स्त्री विश्वकर्मानी पुत्री; सूर्यनी पत्नी; यम, यमुना, वैवस्वत अने अश्विनीकुमारो-ए तेनां संतान. संपातिन् पुं० अर्णनो पुत्र; जटायुनो भाई. सीताने रावण लंका लई गयो छ ए खबर सुग्रीवने तेणे आपेली. संरोचन पुं० गोमती नदी नजीकनो एक पर्वत. सात्यकि पुं० यदुवंशी योद्धो. पांडवोना पक्षमा रहेलो. सायण पुं० वेदोनो सुप्रसिद्ध भाष्यकार. ई. स. १३७० ना अरसामां थई गयो. सारस्वत पुं० एक प्रदेश; इंद्रप्रस्थनी पश्चिमे. पश्चिम-मत्स्य अने मरु भूमिनी वच्चे, सरस्वतीने कांठे. साल्व पुं० एक देश - शाल्व. सावित्री स्त्री० मद्र देशना अश्वपतिराजानी कन्या; सत्यवाननी पत्नी. महापतिव्रता. पति मरण पामतां ते यमनी पाछळ गयेली अने अनेक प्रकारे प्रयत्न करी पतिना जीवने पाछो लावेली. सांदीपनि पुं० बळराम-कृष्णना अध्यापक. गुरुदक्षिणा तरीके तेमणे पंचजन असुर वडे हरायेलो पोतानो पुत्र मागेलो. श्रीकृष्ण समुद्रमा जई, असुरने मारी तेने छोडावी लावेला. Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सांब ६२८ हरिश्चंद्र सांब पुं० कृष्ण-जांबवतीनो पुत्र; हतं. सुह्मना लोकोने राढ पण दुर्योधननी कन्या लक्ष्मणानो पति. कहेवामां आवे छे. सिंधु पुं० सिंधु नदी. (२) सिंध प्रांत. सेक पुं० चंबलनी दक्षिणे अने अवंतीनी सिंधु-सौवीर पुं० जुओ ‘सौवीर' उत्तरे आवेलो एक देश. सीता स्त्री० सीरध्वज जनक राजानां सोमदेव पुं० 'कथासरित्सागर 'नो पालित पुत्री; श्रीरामनां पत्नी; संपादक. (गुणाढयनी पैशाची 'बृहत् जमीन खेडती वखते जनकने मळेलां. कथा' उपरथी.) काश्मीरना 'अनंत' सीरध्वज पुं० विदेहवंशीय जनक राजा- राजानो (१०२९-१०६४) दरबारी. ओमांना एक. मिथिला राजधानी. सौराष्ट्र पुं० 'आनर्त' पण कहेवाय छे. सीतानो पालक पिता. तेनी पोतानी द्वारकाने पण 'आनर्त नगरी' कहे छे. कन्या ऊर्मिला, लक्ष्मण वेरे परणावेली. प्राचीन द्वारका मधुपुर नजीक अर्थात् सुग्रीव पं० वानरोनो राजा; वालिनो (द्वारकाथी) ९५ माईल दक्षिण-पूर्व भाई. सीतानी शोधमां तथा रावणने अने रैवतक पर्वत (गिरनार )नी नजीक हराववामां रामने मदद करेली. आवेली. सौराष्ट्रनी बीजी राजधानी सुदामन पुं० एक अत्यंत दरिद्री ब्राह्मण. वलभी. प्रख्यात प्रभास सरोवर पण श्रीकृष्णनो गुरुभाई. दरिया किनारे ए ज प्रदेशमा आवेलं. सौवीर पुं० आजनो सिंध प्रांत. केटलाक सुनीय पुं० शिशुपाल. सुबल पुं० गांधार देशनो राजा; लेखको तेने सिंधु अने झेलम वच्चे आवेलो गणे छे. शकुनि अने गांधारीनो पिता. सुबंधु पुं० ‘वासवदत्ता' नो कर्ता. स्यमंतक पुं० सत्राजिते सूर्य पासेथी वाणनो समकालीन. मेळवेलो एक मणि. रोज आठ भार सुवर्ण आपतो. तेने कारणे घणी खटपट सुभद्रा स्त्री० कृष्ण-बळरामनी बहेन. जागेली. श्रीकृष्णने पण संडोवावं अर्जननी पत्नी, अभिमन्युनी माता. दुर्योधन वेरे परणाववानी बळरामनी पडेलं. स्यंदिनी स्त्री० गोमतीने मळनारी एक इच्छा हती. पण अर्जुने श्रीकृष्णनी नदी; आजनी साई. संमतिथी यतिवेश धारण करी तेनुं स्रुघ्न पुं० स्थानेश्वर (कुरुक्षेत्र)नी हरण करेल. ईशाने ३०-४० माईल उपर आवेलो सुमित्रा स्त्री० मगध देशना शूर नामना ___ एक प्रदेश.. राजानी कन्या; दशरथनी बीजी पत्नी. हनुमत्, हनूमत् पुं० जुओ 'मारुति'. लक्ष्मण अने शत्रुघ्न ए बे पुत्र. (२) 'हनूमन्नाटक 'ना कर्ता. आ सुमेरु पुं० गढवालनो रुद्र-हिमालय नाटक हनुमाने पोते लखेलु कहेवाय छे. पर्वत. त्यां गंगा नदीनो ऊगम छे. हरिद्वार न० गंगा हिमालय छोडी बदरिकाश्रमनी नजीक. परंपरा प्रमाणे सपाट प्रदेशमा प्रवेशे छे त्यां आवेलं केदारनाथ पर्वत मूळ सुमेरु गणाय छे. प्रसिद्ध तीर्थस्थळ. सुवेल पुं० लंकानो त्रिकूट नामनो पर्वत. हरिश्चंद्र पुं० इक्ष्वाकुवंशीय राजा. सुह्म पुं० बंग देशनी पश्चिमे आवेल त्रिशंकुनो मोटो पुत्र. . विश्वामित्रे एक देश. तेनी राजधानी ताम्रलिप्त, तेना सत्यवादीपणानी परीक्षा करेली. जे प्राचीनकाळमां मोटुं बंदरी मथक तारामती राणी. रोहित पुत्र. Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हर्ष पुं० 'नागानंद', 'रत्नावली', अने 'प्रियदर्शिका' ए त्रण नाटकोनो कर्ता. माळवाना हर्ष राजाए पोते आ नाटको लख्यां कहेवाय छे. पण धावक' अने बाण जेवा तेना दरबारी कविओए लख्यां हशे एम मनाय छे. हलायुध पुं० 'कविरहस्य' (धातुओनो कोष) नो कर्ता. साथे साथे तेमां राष्ट्र कट राजा कृष्णराज त्रीजा (ई. स. ९४०- ९५६)नां गुणगान चाले छे. तेनो बीजो ग्रंथ 'अभिधानरत्नमाला' (कोष). ते दशमा सैकामां थई गयो. हस्तिन् पुं० चंद्रवंशी पुरुकुलोत्पन्न एक राजा. तेणे हस्तिनापुर स्थापेलं. हस्तिनापुर न० 'हस्ती' राजाए स्थापेलं नगर; कौरवोनी राजधानी. मीरतथी अग्निखूणे २२ माईल दूर, तथा बिजनोरथी नैऋत्य खुणे गंगाना दक्षिण किनारे आव्युं हतुं. अत्यारे गंगाना प्रवाहमां नामशेष थई गयुं छे. हिडिब पुं० एक राक्षस. भीमे तेने मारेलो. ह्लादिनी हिडिंबा स्त्री० हिडिंब राक्षसनी बहेन. भीमनुं रूप देखी मोहित थई तेने परणी. घटोत्कच तेनो पुत्र. हिरण्यकशिपु पुं० प्रह्लादनो पिता राक्षस राजा. कश्यप-दितिनो पुत्र. नृसिंहरूप धरी विष्णुए तेनो वध कर्यो. हिरण्यबाहु पुं० शोणनद. हिरण्याक्ष पुं० हिरण्यकशिपुनो भाई. तेने वराहअवतार लई विष्णुए मार्यो. हूण पुं० हिन्दुस्ताननी वायव्ये आवेलो __ एक देश अने तेना लोक. हेमकट पुं० हिमालयनी उत्तरे आवेलो एक पर्वत. कालिदास तेने पूर्व अने पश्चिम सागरने स्पर्शतो कहे छे. कैलास पर्वतनुं बीजु नाम.. हैहय पुं० खानदेश, औरंगाबाद अने दक्षिण माळवानो भाग मळीने बनतो प्रदेश. तेने 'अनुप देश' पण कहे छे. तेनी राजधानी माहिष्मती. हादिनी, ह्लादिनी स्त्री० पश्चिमे केकय अने पुर्वमां शतद् (सतलज) नदी वच्चे आवेली नदी. केकयथी अयोध्या जतां भरतने ते ओळंगवी पडली. Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट २ : न्यायसंग्रह १. अजाकृपाणीयन्यायः बकरीनुं आवq ग्रहण कराववी पडे, अने पछी, ते अने तरवारनुं पडवं. जुओ 'काक- नहि पण तेनी पासेनी सूक्ष्म वस्तु ते तालीयन्याय'. खरी वस्तु छे, एम समजाव, ते. २. अजागलस्तनन्यायः बकरीना गळा ८. अर्धकुक्कुटीन्यायः अर्धी मरघडी आगळ स्तननी दींटडी जे जे होय खावी छे पण खरी अने बाकीनी अर्धी छे ते. ते आंचळ नथी; खाली ईंडां माटे राखी मूकवी छे - ए ते मांसनी के चामडीनी गांठ जेवू होय बने ? 'हसवं ने लोट फाकवो' - छे. कशा उपयोगनी नहि एवी ए बंने साथे केवी रीते संभवे ? वस्तु माटे आ दाखलो अपाय छे. ९. अर्धजरतीयन्यायः जो कोई वस्तु ३. अजातपुत्रनामोत्कीर्तनन्यायः पुत्र स्वीकारवी होय तो आखी स्वीकारवी जन्म्यो नथी, ते पहेलां नाम पाडवानी जोईए; अने त्यागवी होय तो आखी धमाल. तेना जेवी हास्यास्पद प्रवृत्ति ज त्यागवी पडे - अर्धी स्वीकारवी ४. अयमपरो गण्डस्योपरि स्फोटः अने अर्धी त्यागवी एम केम बने ? पहेलेथी ज गुमडुं होय, तेना उपर वळी कोई अर्ध-वृद्ध प्रौढ स्त्री होय, तेनुं बीजा गूमडानो सोजो थाय ! एक मुख हजुं पूरेपूरे वृद्ध न थयु होय तेथी मुश्केली होय अने तेने माथे बीजी स्वीकार, होय, अने तेनां बाकीनां उमेराय तेने माटे. अंगो न गमे तेवां थयां होय तेथी ५. अरण्यचन्द्रिकान्यायः गाढ जंगलमां त्यागवां होय, एम केम बने ? कां तो चांदनी रेलाती होय, तेने जोनार आखी त्यागो अथवा आखी स्वीकारो. भोगवनार कोण? एम कदरदान १०. अर्धवैशसन्यायः अर्धं (अंग) काप, भोक्ता विनानी वस्तु नकामी ज. (अने अधुं जीवतुं रहे एम इच्छवं)६. अरण्यरोदनन्यायः अरण्यमां गमे एवी व्यर्थ प्रवृत्ति. अर्धकुक्कुटीन्यायः' तेटलं रुदन करे, तो ते सांभळे कोण तथा 'अर्धजरतीयन्यायः' जेवू. अने मददे आवे कोण? ए प्रमाणे ११. अशोकवनिकान्यायः रावण सीताने निरर्थक प्रवृत्ति माटे. लंकामां लई गयो, त्यारे तेनी पासे ७. अरुंधतीप्रदर्शनन्यायः सप्तर्षिमां घणां उपवनो हतां छतां अशोकवसिष्ठना तारा साथे बहु झांखो एवो वनिकामां ज तेमने शा माटे राख्यां, अरुंधतीनो तारो छे. एने बताववो एनुं कशुं कारण आपी शकातुं नथी. होय, तो प्रथम तो पासेनो मोटो तेम अनेक मार्गो सामे होय तेमांथी (वसिष्ठनो) तारो बताववो पडे कोई अमुक ज मार्ग शाथी लीधो, अने पछी तेनी साथेनो नानो तारो - ए- कशुं कारण न आपी शकाय. ए अरुंधती - एम कहेवू पडे छे. १२. अश्मलोष्टन्यायः रू करतां माटीनुं तेम कोई पण सूक्ष्म वस्तु समजाववा ढे फु कठण कहेवाय; पण माटीनू प्रथम तो बिनअगत्यनी स्थूल वस्तु ढे' पथरा करतां पोचूं कहेवाय. Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यायसंग्रह तेम बन्ने वस्तुओ खराब होय, छतां २०. अंधपरंपरान्यायः एक आंधळाने एकनी अपेक्षाए बीजी कोई सारी बीजो आंधळो दोरे, तेने बीजो आंधळो कही शकाय - एवो अर्थ. 'पाषाणेष्टक- दोरतो होय - एना जेवी वले, अंधन्यायः' अर्थात् पथ्थर करतां ईंट पोची. श्रद्धाथी वगर विचार्ये बीजाने अनु१३. अस्नेहदीपन्यायः तेल वगरनो सरनारनी थाय. दीवो एनी मेळे बुझाई जाय. तेम २१. आकाशमुष्टिहननन्यायःआकाशने पाछळथी प्रेरनार बळ न रहे, एटले मुक्का मारवा जेवो मिथ्या प्रयत्न. आगळनी प्रवृत्ति आपोआप थंभे. २२. आम्रसेकपितृतर्पणन्यायः आंबाने १४. अहिकुंडलन्यायः साप अने तेनां पाणी मळे अने पितओने अंजलि पण : गूचळां एक ज वस्तु छे. एक ज 'एक कांकरे बे पक्षी मारवां'. सापने फणा तथा तेनां एक-बे-त्रण २३. आशामोदकतप्तन्यायः (कल्पनाना एम गूचळांनी रीते भले गणावो, लाडवा, लाडवानी वातोथी तृप्त पण 'घाट घड्या पछी नामरूप थq) 'आकाशी घोडा दोडाववा', जूजवां, अंत तो हेमनुं हेम होय.' 'शेखचल्लीनी कल्पनाओ' - 'वातोनां १५. अंतःपिकान्यायः वच्चेना ऊमरा वडां'. उपर मकेलो दीवो बने बाज प्रकाश २४. इतो व्याघ्र इतस्तटीःआ बाज वाघ आपे. जुओ 'देहलीदीपन्यायः' ने बीजी वाजु कराड. बने बाजु मोत. १६. अंधकवर्तकीयन्यायः आंधळानो २५. उष्ट्रकंटकभक्षणन्यायः ऊंट कांटा पग अकस्मात् बटेर पक्षी उपर पडे ते. खाय त्यारे पोताना मोमांथी लोही जुओ ‘काकतालीयन्यायः' नीकळे, एनो स्वाद कांटानो ज माने १७. अंधगजन्यायः आंधळाओ हाथीना अने कांटाने वधु स्वादथी खावा जाय. एक एक अंगने अडकीने ते ते अंग २६. उष्ट्रलगुडन्यायः ऊंट जे लाकडीनो जेवो हाथीने गणे ते : कान पकडनारो भार ऊंचकतुं होय, ते लाकडीथी ज हाथीने सूपडा जेवो कहे; सूंढ पकड- तेने मार पडतो होय. सामो प्रतिपक्षी नारो साप जेवो कहे; पग पकडनारो एवी दलीलो करे के जे तेने ज थांभला जेवो कहे इ०. हाथीनुं साचुं चूप करवामां काममां आवे. स्वरूप वर्णववा समग्न हाथीनुं ज्ञान होवू २७. ऊषरवृष्टिन्यायः ऊखर जमीनमां जोईए. ईश्वरनी बाबतमां पण ए ज वरसाद शा कामनो? रीते जुदा जुदा वाद होय छे. २८. कदलीफलन्यायः केळने फळ १८. अंधगोलांगलन्यायःआंधळो माणस बेसे एटले तेनो नाश थाय; खच्चरी मार्ग जाण्या वगर भटकतो होय, गर्भ धारण करे एटले तेनुं मोत थाय. तेने गायनुं पूछडं पकडावी देवू, 'आने २९. कदंबकोरकन्यायः, कदंबमुकुलपकडीने चाल्यो जा; तारे जवानुं छे त्यां न्यायः कदंब वृक्षने बधी डाळीए एक जशे'. पछी जे अनर्थपरंपरा सरजाय सामटां फूल फूटी नीकळे छे. (एकसाथे ते. खोटा वादोनुं पूछडं अंधश्रद्धाथी बनती क्रियाने जणाववा वपराय छे.) पकडनारानी पण एवी वले थाय. ३०. कफोणिगुडन्यायः कोणीए गोळ ! १९. अंधदर्पणन्यायः आंख वगरनाने बाळकने गोळ आपे पण कोणी उपर दर्पण! -निरर्थक प्रवृत्ति. जुओ लगाडे; पेलाने हाथवेतमा लागे पण 'अरण्यरोदनन्यायः', 'जलताडनन्यायः'. चाटे ज शी रीते! Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३२ परिशिष्ट २ ३१. करविन्यस्तबिल्वन्यायः हाथमा ४३.क्षीरदग्धजिह्वान्यायः दूधनो दाझयो बीला जेवू (स्पष्ट) छाश फूंकीने पीए. ३२. कंठचामीकरन्यायः गळामां ज ४४. क्षीरनीरन्यायः बे वस्तुओ एकबीजी हांसडी, अने आखू गाम खोळी वळे. साथे एटली बधी भळी जाय के जेम बगलमां छोकरं अने गाममां खोळे. दूध अने पाणी. तल अने तांदळानो ३३. कंबलनिर्णेजनन्यायः कामळाने संबंध एथी ऊलटो होय छे : झट पग उपर पछाडे, तेथी कामळानी जुदो पाडी शकाय तेवो. धूळ पण ऊडी जाय अने पोताना पग ४५. खलेकपोतन्यायः खळा उपर पण साफ थाय. एक कांकरे बे पक्षी. कबूतरनुं टोळं ऊतरे अने दाणा साफ ३४. काकतालीयन्यायः कागनं बेसवं करी जाय, तेमां नानां मोटां कोणे अने ताडनुं पडवू. बे क्रियाओ अचानक नुकसान कर्य ए न कही शकाय. साथे बने, तेथी एकने बीजी, कारण तेम एक कार्य अनेक कारणोथी थयु न कही शकाय. होय, त्यां अमुक कारणथी थयुं एम ३५. काकदंतगवेषण (-परीक्षा)न्यायः जुदुं न बतावी शकाय. कागडाना दांत गणवा जेवी मिथ्या ४६. गगनाविदन्यायः 'आकाशमा प्रवृत्ति. कमळनुं फूल' - तेना जेवी असंभवित वात. ३६. काकपिकन्यायः कागडो ने कोयल ४७. गड्डरिकाप्रवाहन्यायः गाडरनुं टोळं रूप-रंगे सरखां; पण गावानुं आवे अंधपणे एकनी पाछळ बीजं एम त्यारे फेर जणाय. दोडघु ज जाय. ३७. काकाक्षिगोलकन्यायः कागडाने ४८. गुडजिहिकान्यायः ताळवे गोळ एक ज डोळो होय छे (एकाक्ष); लगाववो. दवानो कडवो चूंटो पिवपरंतु जरूर प्रमाणे ते एक आंखमाथी राववा, वाळकने मोमां गोळ लगावे. बीजी आंखमा सरकावी लावे छे ----- ४९. घटीयंत्रन्यायः जुओ ‘कृपयंत्रएवी मान्यता छे. (एक कांकरे बे घटिकान्यायः' पक्षी जेवी वात माटे वपराय छे.) ५०. घट्टकुटीप्रभातन्यायः नाक न ३८. काचमणिन्यायः देखावमां सरखा, भर पडे माटे गाडावाळो रातने पण गुणमा फेर, वखते दूर फरीने जवा जाय, अने ३९. कूपमंडूकन्यायः कूवामांनो देडको. सवार थाय त्यारे जुए तो चकरावामां संकुचित दृष्टिवाळाने बहारनी फरी बराबर टोल-नाकानी ओरडी विशाळतानी शी खबर होय ? पासे ज आवीने ऊभो होय ! ४०. कृपयंत्रघटिकान्यायः रेंटना घडानी ५१. धुणाक्षरन्यायः कीडाए कोरेला पेठे चडती-पडतीना वाराफेरा थया लाकडामां के पुस्तकना पानामां कोई ज करे. अक्षरनी आकृति अकस्मात् थई होय ४१. कृतक्षौरस्य नक्षत्रपरीक्षा हजामत तेना जेवू. करी लीधा पछी, नक्षत्र पूछवा जवं. ५२. चौरापराधान्मांडा निग्रहन्यायः परण्या पछी वरनी परीक्षा करवी. पाडाने वांके पखालीने डाम. मांडव्य ४२. क्षते क्षारम् घा उपर मीठु मुनि मौनव्रती हता. राजाना सेवको भभरावq. 'दाझ्या उपर डाम.' चोर शोधता त्यां आव्या अने मुनिने Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यायसंग्रह ६३३ पूछवा लाग्या. मुनि बोल्या नहि, पण लई लेवी अने बीजीने वेठी लेवी के चोर एमना ज आश्रममां संताई रहेला पडती मूकवी. पकडाया एटले मुनिने पण शूळी उपर ६२. नटांगनान्यायः रंगभूमि उपर नटी चडावी दीधा. जेनी पत्नीनो स्वांग भजवती होय तेनी ५३. जलताडनन्यायः पाणी वलोववा वह कहेवाय ; सीता बनी होय तो राम जेवी मिथ्या प्रवृत्ति. बननारा नटनी, अने मंदोदरी बनी ५४. तक्रकौंडिन्यन्यायः बधा ब्राह्मणोने होय तो रावण बननारा नटनी. दहीं आपवान होय, पण एकला ६३. नष्टाश्वदग्धरथन्यायः बे जणा कौडिन्य ने छाश आपवा जेवो अपवाद बे रथमां बेसी दूरनी मुसाफरीए करवो ते. नीकळ्या होय; तेवामां मार्गमा एकना ५५. तिलतंडुलन्यायः डांगर अने तल घोडा मरी जाय अने बीजानो रथ भागी जाय, तो एकना बाकी रहेला घोडा भेगां न मळे ; अने भेळवीए तो पण झट जुदां पाडी शकाय. 'क्षीरनीर अने बीजाना बाकी रहेला रथथी बने न्यायः' थी ऊलटुं. मळी मुसाफरी पूरी करी शके. जेम, आंधळो अने पांगळो, एकनी आंख ५६. तुषकंडनन्यायः ढूणसां खांडवा जेवो मिथ्या प्रयत्न. अने बीजाना पगथी बने मळी पोतानु काम चलावी शके. ५७. तुष्यतुदुर्जनन्यायः दुर्जन- मों चूप ६४. न हि विवाहान्तरं वरपरीक्षा करवा एक वखत तेनी वात स्वीकारी परण्या पछी वरनी जात न पुछाय. लेवी, अने पछी योग्य रीते तेनो जवाब ६५. न हि सहस्रणाप्यन्धैः पाटच्चरेभ्यो वाळवो. दुर्जन साथे कोई वातनी गृहं रक्ष्यते आंधळा हजार भेगा थाय, बाबतमां जके चडवाथी ते वध जक्की पण तेओ चोरथी घरने शी रीते बचावे? थाय ; तेनां करतां तेनी वात स्वीकार्या ६६. न ोष स्थाणोरपराधो यदेनजेवं करी तेने ठंडो पडवा देवो, अने मन्धो न पश्यति आंधळो ठुठं न जए पछी तेने योग्य जवाब वाळवो. अने तेनी साथे अथडाय, एमां ठूठानो ५८. दग्धबीजन्यायः भुजेलं बी पछी शो वांक? ऊगे नहि. कारणनो नाश थतां कार्यनी ६७. निर्धनमनोरथन्यायः निर्धन माणस आशा नहि. कल्पनाना घोडा दोडावे, तेना जेवू. ५९. दंडापूपिकान्यायः लाकडी पडी, शेखचल्लीना तरंग जेवु. तो तेनी साथे बांधेला रोटला पण ६८. नीरक्षीरन्यायः हंस जेम दूध-पाणी पड्या ज गणवा जोईए. भेगां होय तेमांथी दूध जुदं पाडीने ६०. देहलोदीपन्यायः बे ओरडानी पी जाय छे तेम सारासारनो विवेक वचला ऊमरा उपर मूकेलो दीवो करवो. बंने बाजुना ओरडाने प्रकाश आपे.(एक ६९. नृपनापितन्यायः राजाए हजामने क्रियाथी बे परिणाम नीपजे ते माटे.) राज्यमांथी सुंदरमां सुंदर छोकरो ६१. धान्यपलालन्यायः धान्य साथै शोधी लाववा कहयुं ; हजाम बधे फरी फोतरां होय ज. पण धान्य लईने वळयो, पण कोई छोकरो तेने नजरमां फोतरां फेंकी देवाय.तेम जे बे वस्तुओ न आव्यो. छेवटे, पोतानो छोकरो साथे ज मळे तेम होय, तेमांथी कामनी (जे कदरूपो ज हतो) ते सौ Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३४ परिशिष्ट २ करतां सुंदर लाग्यो, एटले तेने जते लई ८०. बधिरकर्णजपन्याय : बहेराना आव्यो. वरने कोण वखाणे ? वरनी मा. कानमां गुसपुस - अरण्यरुदन जेवी ७०. न्यग्रोधबीजन्यायः वडनुं बीज नकामी प्रवृत्ति. देखवामां नानु होय छे, पण तेमांथी ८१. बीजवृक्षन्यायः, बीजांकुरन्यायः के मोटु वृक्ष थाय छे ? बीजमांथी वृक्ष पेदा थाय छे, अने ७१. पदातिन्यायः शेतरंजनी रमतमां वृक्षमाथी बीज थाय छे. कयुं पहेलू प्यादानुं सोगर्छ सीधुं चाले छे, पण ए शी रीते नक्की थाय? ईंडु पहेलू आगळना सोगठाने मारवार्नु होय के पंखी पहेलुं ? त्यारे वांकुं पण जई शके छे, तेम ८२. ब्राह्मणग्रामन्यायः ब्राह्मणो वधारे दुर्जन सीधो जतो होय तो पण क्यारे वसता होय तेथी आखं गाम ‘ब्राह्मणवांको थई घा करशे, ते कही न शकाय. ग्राम' कहेवाय; परंतु तेथी तेमां बीजा ७२. पंकप्रक्षालनन्यायः कादवमां वर्णो छ ज नहि एवं नथी होतुं. मुख्य खरडाईने पछी धोवा जवू, तेना करतां वस्ती ब्राह्मणनी छे एटलं ज समजवू. पहेलेथी ज न खरडावू सारे. ८३. भक्षितेऽपि लशुने न शांतो व्याधिः ७३. पंग्वंधन्यायः आंधळो अने पांगळो लसण अभक्ष्य छे छतां ते पण खाधुं; परस्पर सहायथी मजल पूरी करी परंतु रोग तो छतांय मटयो नहि. शके. आने 'अंधपंगुन्यायः' पण कहे छे. ८४. भस्मनि आज्याहुतिः राखमां घी ७४. पंजरचालनन्यायः एक पांजरामां होमवं. व्यर्थ प्रवृत्ति. पुरायेलां अगियार पंखी जो परस्पर ८५. भिक्षुपादप्रसारणन्यायः भिक्षा मळीने प्रयत्न करे, तो पांजराने मागवा आवीने आखो पगपेसारो खसेडी जई शके; पण छूटो छूटो करे - आंगळी आपतां पंजो पकडे. -विरोधी प्रयत्न करे, तो कशंन थाय. आरबना ऊंटनी वात. ७५. पाटच्चरलंठिते वेश्मनि यामिक- ८६. भिल्लीचंदनन्यायः भीलडी चंदननां जागरणम् चोर चोरी करी जाय लाकडां बाळीने रोटला घडे. भीलडी त्यार पछी पहेरेगीर जागतो चोकी चंदनना वनमां ज़ रहेती होय तेने करवा बेसे. ए लाकडानी शी किंमत ? ७६. पिपीलिकागतिन्यायः कीडीनी ८७. भूलिंगशकुनिन्यायः हिमालय पासे गति धीमी होय छे, छतां ते सतत भूलिंग पंखी थाय छे; आखो वखत चालती रहे तो झाडनी टोच उपरना 'मा साहसम्' (साहस न करो!) फळनो स्वाद पण चाखे. एवो उच्चार काढया ज करे छे. ७७. पिष्टपेषणन्यायः दळेलाने फरी छतां जाते तो सिंह शिकार करी मांस दळवू - मिथ्या प्रवृत्ति. खातो होय त्यारे तेना दांतमां भरायल ७८. पुष्टलगुडन्यायः आगळना भसता मांसना टुकडा काढी खावा तराप कूतरा उपर लाठी नाखीए, तो आस- मारे छे. बीजाने उपदेश आपवो, पासनां बीजां कूतरां पण चूप थई पण पोते तो तेम न करवू-पोथीमांना जाय के भागी जाय. रीगणां जेवं. ७९. प्रधानमल्लनिबर्हणन्यायः मुख्य ८८. मधु पश्यसि दुर्बुद्धे प्रपातं नानुमल्लने हरावीए एटले पछी बाकीना पश्यसि मध लेवा झाडनी पातळी तो हारी गया ज समजवा. डाळी सुधी जनारो मध सामे ज नजर Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यायसंग्रह राखे छे पण नीचे पडी जान जशे ते जोतो नथी. ८९. मर्कटमदिरापानादिन्यायः मूळे मांकडु, तेमां दारू पीधो, (अने पछी वींछी करड्यो ) - हवे कूदाकूदमां शी मणा रहे ? ९०. मंडूकप्लुतिन्यायः देडकानो कूदको . बच्चेनो क्रम छोड़ी झट आगळी वात उपर ठेकडो मारवो ते. (सारं न गणाय ) . ९१. मात्स्यन्यायः मोटुं माछलुं नानाने गळे - ए न्याय. बळियाना बे भाग. ९२. यः कुरुते स एव सुंक्तेकरे ते भोगवे. ९३. यत् करभस्य पृष्ठे न माति, तत् कंठे निबध्यते ऊंटनी पीठ उपर न माय तेने तेनी डोके बांधे. दुःखमां दुःख उमेराया ज करे. ९४. याचितकमंडनन्यायः घरेणांथी सारा देखावुं. ९५. यादृशो यक्ष स्तादृशो बलिः जेवो यक्ष तेवा तेने बाकळा. छापना देवने कपासियानी आंखो. मागेलां ९६. वटे यक्षन्यायः वडना झाडमां भूत रहे छे - एवी लोकवायका ज चाल्या करे छे; कोईए नजरे जोयुं होतुं नथी. ९७. वदतोव्याघातः पोतानी ज वातनुं खंडन पोते ज करे तेना जेवुं - जेम के, मारी मा वांझणी छे, मारो बाप ब्रह्मचारी छे इ०. ९८. वध्यधातकन्यायः उंदर ए बिलाडी माटे भक्ष्यरूप छे; तेथी ते बे प्राणीओ साथे न रही शके. ते प्रमाणे जे बे वस्तुओ एक साथे न रही शके ते बताववा आ न्याय वपराय. ९९. वनसिंह - व्याघ्र न्यायः वन सिंहने आधार आपे छे अने सिंहथी वनने रक्षण मळे छे, तेम एकबीजाने टेकारूप बनती वे वस्तुओ बताववा. ६३५ १००. वरमद्य कपोतः श्वो मयूरात् आजनुं ( ध्रुव) कबूतर कालना ( अध्रुव) मोर करतां वधु सारं. १०१. वराटकान्वेषणे प्रवृत्तश्चिन्तार्माण लब्धवान् खोवायली कोडी शोधवा जतां चिंतामणि जडवो. १०२. विक्रीते करिणि किमंकुशे विवाद: हाथी वेची दीधा बाद अंकुश माटे तकरार शा माटे ? १०३. विषकृमिन्यायः विष बीजाओने घातक नीवडे, पण तेमां ज जन्मता अने वधता जंतु माटे तो आधाररूप जथा छे; एक जणनुं झेर ते बीजाने अमृत. १०४. विषवक्षन्यायः झेरी झाड पोते वावीने ऊछैर्यु होय, तो पछी पोताने हाथे शी रीते कापी नंखाय ? १०५. विहंगमन्याय: कीडी धीमी चाले; तेना करतां वांदरुं एक झाडथी बीजा झाड उपर कदी जलदी रस्तो कापे. पण पंखी तो सीधी लीटीमां ऊडी सौथी वहेलुं पहोंचे उत्तम अधिकारीनुं दृष्टांत. १०६. वीचितरंगत्यायः समुद्रमां एक मोजुं बीजा मोजाने आगळ धकेले छे, अने एम छेवटे सौ किनारे पहोंचे छे. १०७. वृक्षप्रकंपनन्यायः झाड उपर चडेलाने नीचे उभेलाओमांथी एक एक डाळी हलाववानुं कहे, बीजो जीने, अने जो त्रीजीने इ० ; पछी पेलो आखुं झाड ज हलावे, तो सौने पोते मागेली डाळी हलावी एम लागे. एक ज प्रयत्ने अनेकने संतुष्ट कराय. १०८. वृद्धकुमारी - वाक्य ( - वर ) न्यायः परण्या वगर रही गयेली कोई प्रौढाने देव वरदान मागवानुं कहे अने ते एम मागे के, 'मारा पुत्रो सोनानी थाळीमां कढेला दूधनी खीर खाय' ; तो तेमां पति, पुत्र, ढोरढांख, सोनं-रूपं बधुं एकसाथ एक वाक्यमां मागी लीधुं तेम. Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माटे. ६३६ परिशिष्ट २ १०९. वृद्धिमिष्टवतो मूलमपि ते घरमां कशं नथी.' पण सासु ते नष्टम् व्याज खावा गयो ने मूडी पण जोई पोतानी वडाई स्थापवा पेला खोई आव्यो. लेने गई पूत और भिखारीने पाठो बोलावे छे अने ते खो आई खसम. आवे त्यारे कहे के, ‘जा, घरमां ११०. व्यालनकुलन्यायः साप अने कशुं नथी.' तेना जेवं. नोळिया वच्चे जातिगत वेरनो ११८. सिकताकुपवत् रेतीमां कूवो ज संबंध छे तेम; बे बाबतो वच्चे खोदता जाओ तेम पुरातो ज जाय. स्वभावगत विरोध होय ते बताववा. ११९. सिकतातैलन्यायः रेती पीलीने १११. शरपुरुषीयन्यायः बाण छोडयुं ते तेल काढवा जेवू – असंभवित. वखते ज दीवाल उपरथी माणसे मों १२०. सिंहावलोकनन्यायः सिंह आगळ ऊंचं कर्यु अने तेने वाग्यु – एम वधता पहेलां डोकु पार्छ फेरवी नजर 'कागर्नु बेसबुं अने ताडनुं पडवू' करतो रहे छे तेम - पुनरावलोकन जेवी अणधारी बनती वात. ११२. शलभन्यायः पतंगियुं दीवानी १२१. सुभगाभिक्षुकन्यायः सुभगा एटले ज्योतना प्रकाशनी अदेखाई करी तेने घरमा वडी सत्तावाळी सासु. जुओ ओलववा पोतानी पांख तेना उपर ‘श्वश्रूनिर्गच्छोक्तिन्यायः'. फफडाववा जाय छे अने नाश पामे १२२. सूचिकटाहन्यायः लुहारने कोई छे. तेम मूर्खताथी मोत तरफ धसी सोय बनाववायूँ कहे, अने बीजो जनार माटे. कढाई बनाववान कहे. तो ते पहेलां ११३. शशविषाणन्यायःससलानं शींगड़ नानुं - जलदी थनार (सोयनु) काम - जेवी असंभव वात. 'आकाश-कुसुम' ज हाथमा ले, तेम. ११४. शाखाचंद्रन्यायः जो पेली डाळ १२३. स्थालीपुलाकन्यायः तपेलीमां उपर चंद्र देखाय - एम कही स्थूल चोखा रंधाता होय तो तेमांनो कोई के नजरे देखाती वस्तुने आधारे एक दाणो पण दबावी जोईने आखी दूरनी सूक्ष्म वस्तु बतावाय छे ते. तपेलीना चोखा रंधाया छे के नहि 'अरुंधतीप्रदर्शनन्यायः' . ते जाणी शकाय छे तेम. ११५. शान्ते कर्मणि वेतालोदयः कोई १२४. स्थूणानिखननन्यायः थांभलो के अनिष्ट दूर करवा होम-विधि करी खीलो रोपवो होय, तो हलावी रहीए ने बेताल डोकियं काढे ; तेम हलावीने अंदर धकेलवामां आवे छे, प्रयत्न करी एक अनिष्ट दूर करी के बराबर स्थिर थयो के नहि तेनी रहीए ने बीजु मोटुं अनिष्ट आवीने खातरी करवामां आवे छे, तेम ऊभं रहे, ते माटे. पोतानी वातनुं वारंवार बीजां पूरक ११६. शीर्षे सर्पो देशान्तरे वैद्यः साप दृष्टांतोथी समर्थन करवू ते. तो माथे आवीने ऊभो छे अने वैद्य १२५. हस्तामलकन्यायः हाथमा रहेल आमळू जेम स्पष्ट जोई शकाय छे, ११७. श्वश्रूनिर्गच्छोक्तिन्यायः भिखारी तेम जे परिणाम स्पष्ट देखी शकातुं भीख मागवा आव्यो होय, तेने वहु होय, तेने माटे वधु समर्थननी जरूर एम कहीने पाछो काढे के, ‘जा, नथी रहेती. परदेशमा छे. Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३ : संख्यावाचक शब्द एक वि० एक द्वात्रिंशत् स्त्री० बत्रीस द्वि वि० बे त्रस्त्रिशत् स्त्री० तेत्रीस त्रि वि० त्रण चतुस्त्रिशत् स्त्री० चोत्रीस चतुर वि० चार पंचत्रिंशत् पांत्रीश पंचन वि० पांच षत्रिंशत् स्त्री. छत्रीस षष् वि० छ सप्तत्रिंशत् स्त्री० साडत्रीस सप्तन् वि०. सात अष्टात्रिंशत् स्त्री० आडत्रीस अष्टन वि० आठ नवत्रिंशत् स्त्री०, एकोनचत्वारिंशत् नवन् वि० नव स्त्री०, ऊनचत्वारिंशत्, स्त्री०, एकानदशन् वि० दश (-स) चत्वारिंशत् स्त्री० ओगणचाळीस एकादशन् वि० अगियार चत्वारिंशत् स्त्री० चाळीस द्वादशन् वि० बार एकचत्वारिंशत स्त्री० एकताळीस त्रयोदशन् वि० तेर द्वाचत्वारिंशत् स्त्री०, द्विचत्वारिंशत् चतुर्दशन् वि० चौद स्त्री० वेताळीस पंचदशन वि० पंदर त्रयश्चत्वारिंशत् स्त्री०, त्रिचत्वारिंशत् षोडशन वि० सोळ स्त्री० तेताळीस सप्तदशन वि० सत्तर चतुश्चत्वारिंशत् स्त्री० चुमाळीस अष्टादशन् वि० अढार पंचचत्वारिंशत् स्त्री० पिस्ताळीस नवदशन् वि०, एकोनविंशति स्त्री०, षट्चत्वारिंशत् स्त्री० छेताळीस ऊनविंशति स्त्री०, एकानविंशति स्त्री० सप्तचत्वारिंशत् स्त्री० सुडताळीस ओगणीस अष्टाचत्वारिंशत् स्त्री०, अष्टचत्वाविशति स्त्री० वीस रिंशत् स्त्री० अडताळीस एकविंशति स्त्री० एकवीस नवचत्वारिंशत् स्त्री०, एकोनपंचाशत् द्वाविंशति स्त्री० बावीस स्त्री०, ऊनपंचाशत् स्त्री०, एकान्नत्रयोविंशति स्त्री० तेवीस पंचाशत् स्त्री० ओगणपचास चतुविशति स्त्री० चोवीस पंचाशत् स्त्री० पचास पंचविशति स्त्री० पचीस एकपंचाशत् स्त्री० एकावन षड्विंशति स्त्री० छव्वीस द्वापंचाशत् स्त्री०, द्विपंचाशत् स्त्री० सप्तविंशति स्त्री० सत्तावीस अष्टाविंशति स्त्री० अठ्ठावीस त्रयःपंचाशत् त्रिपंचाशत् स्त्री० त्रेपन नविंशति स्त्री०, एकोनत्रिंशत् स्त्री० चतुःपंचाशत् स्त्री० चोपन ऊत्रिंशत् स्त्री०, एकान्नत्रिंशत् स्त्री० पंचपंचाशत् स्त्री० पंचावन ओगणत्रीस षट्पंचाशत् स्त्री० छप्पन त्रिंशत् स्त्री० त्रीस सप्तपंचाशत् स्त्री० सत्तावन एकत्रिंशत् स्त्री० एकत्रीस अष्टापंचाशत्,अष्टपंचाशत् स्त्री० अठ्ठावन बावन Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३८ नवपंचाशत्, एकोनषष्टि, ऊनषष्टि, एकान्नषष्टि स्त्री० ओगणसाठ षष्टि स्त्री० साठ एकषष्टि स्त्री० एकसठ द्वाषष्टि, द्विषष्टि स्त्री० बासठ त्रयः षष्टि, त्रिषष्टि स्त्री० त्रेसट चतुष्षष्टि स्त्री० चोसठ पंचषष्टि स्त्री० पांसठ षट्षष्टि स्त्री० छासठ सप्तषष्टि स्त्री० सडसठ परिशिष्ट ३ अष्टाषष्टि, अष्टषष्टि स्त्री० अडसठ नवषष्टि, एकोनसप्तति, ऊनसप्तति, एकान्नसप्तति स्त्री० अगणोसित्तेर सप्तति स्त्री० सित्तेर एकसप्तति स्त्री० इकोतेर द्वासप्तति द्विसप्तति स्त्री० बोतेर त्रयस्सप्तति, त्रिसप्तति स्त्री० तोतेर चतुस्सप्तति स्त्री० चुंमोतेर पंचसप्तति स्त्रो० पंचोतेर षट्सप्तति स्त्री० छोतेर सप्तसप्तति स्त्री० सित्तोतेर अष्टसप्तति, अष्टसप्तति स्त्री० इठोतेर नवसप्तति, एकोनाशीति, ऊनाशीति, एकान्नाशीति स्त्री० अगण्याएंशी अशीति स्त्री० एंशी एकाशीति स्त्री० एकचाशी द्वयशीति स्त्री० ब्याशी त्र्यशीति स्त्री० त्याशी चतुरशीति स्त्री० चोर्याशी पंचाशीति स्त्री० पंचाशी षडशीति स्त्री० छयाशी सप्ताशीति स्त्री० सित्याशी अष्टाशीति स्त्री० इठ्ठयाशी नवाशीति, एकोननवति, ऊननवति, एकान्ननवतिं स्त्री० नेव्याशी नवति स्त्री० नेवुं एकनवति स्त्री० एकाणुं द्वानवति, द्विनवति स्त्री० बाणुं त्रयोनवति, त्रिनवति स्त्री० ताणुं चतुर्नवति स्त्री० चोराणुं पंचनवति स्त्री० पंचाणुं षण्णवति स्त्री० छन्नु सप्तनवति स्त्री० सत्ताणुं अष्टानवति, अष्टनवति स्त्री० अठ्ठाणुं नवनवति स्त्री०, एकोनशत न०, ऊनशत न०, एकान्नशत न० नव्वाणुं शत न० सो सहस्र, दशशत न० १००० अयुत न० १०,००० लक्ष न०, लक्षा स्त्री० १००,००० प्रयुत न० १,०००,००० कोटि स्त्री० १०,०००,००० अर्बुद न० १००,०००,००० अन्ज न० १,०००,०००,००० खर्व पुं०, न० १०,०००,०००,००० निखर्व पुं०, न० १००,०००,०००,००० महापद्म पुं० १,०००,०००,०००,००० शंकु पुं० १०,०००,०००,०००,००० जलधि पुं० १००,०००, ०००, ०००, ००० अंत्य न० १,०००, ०००,०००,०००, ००० मध्य न० १०,०००,०००,०००,०००, ००० परार्ध न० १००, ०००, ०००, ०००, ०००,००० Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [चालु वपराशना वषु शब्दो] अकंपन पुं० जुओ पृ० ५९७ अखिन्न वि० थाकेलं के कंटाळेलं न अकालकुसुम न० असमये खीलेलं फूल होय तेवू (२) थाक न लागे तेवू (अनिष्टसूचक) [शके तेवं अगज वि० पर्वत के वृक्षमां उत्पन्न अकालक्षम वि० विलंब सहन करी न थयेलु के थतुं (२) पर्वतोमा रखडतुं अकालजलदोदय पुं० असमये वादळनुं अगजा स्त्री० पार्वती घेरावं ते (२) धूमस अगजाजानि पुं० शिव (पार्वतीना पति) अकालज्ञ वि० समय के असमयनो विचार अगम वि० चाली न शके तेवू न करतुं __[पामतुं अगम्यरूप वि० जेनुं स्वरूप अनुपम के अकांडपातजात वि० जन्मीने तरत नाश अज्ञेय छे तेवू अकीति स्त्री० अपकीर्ति [अपार्थिव अगस्ति, अगत्स्य पुं० जुओ पृ० ५९७ अकुलीन वि० हलका कुळy (२) दैवी; अगस्त्योदय पुं० भादरवा महिनाना अकूज वि० अवाज विना-; चूप अंत भागमां अगस्त्य-मंडळनो उदय अकृशलक्ष्मी वि० पूर्ण समृद्धिवाळं (२) थवो ते (त्यारथी पाणी स्वच्छ बनवा स्त्री० पूर्ण आबादी लागे छे) अकृष्टपच्य वि० खेड्या विना ऊगतुं अगंड पुं० हाथ-पग विनानुं धड अक्क पुं० घरनो खूणो अगाधसत्त्व वि० अगाध बळवाळं अक्लिष्टवर्ण वि० स्पष्ट संभळाय के अगढ वि० स्पष्ट; खुल्लु समजाय तेवा शब्दोवाळू अगोचर वि० इंद्रियातीत; अगम्य (२) अक्षय्यभुज पुं० अग्नि न० इंद्रिय गोचर नहीं एवी वस्तु (३) अक्षरभूमिका स्त्री० लखवा माटेनुं माहिती के ज्ञाननो अभाव (४) ब्रह्म फलक - पाटियुं इ० अग्निकार्य न० अग्निमां होम करवो ते अक्षरशिक्षा स्त्री० गुह्य मंत्राक्षरोनुं अग्निचित् पुं० नियमित होम करनारो शास्त्र (२) ब्रह्मतत्त्वनो सिद्धांत अग्निदायक वि० आग लगाडनाएं (२) अक्षरार्थ पुं० शब्दोनो अर्थ - मर्म भूख लगाडनाएं अक्षसूत्र न० मणकानी माळा अग्निधारण न० अग्निमां विधिपूर्वक अक्षिस्पंदन न० आंख फरकवी ते नियमित होम करवो ते अक्षोभ्य पुं० क्षोभ न पामे तेवू अग्निप्रस्कंदन न० अग्निमां होम अखंडम् अ० अखंडपणे; सतत करवाना कर्तव्य- उल्लंघन ६३९ Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्निमुख ६४० अतिदिश् अग्निमुख पुं० देव (२) ब्राह्मण (३) अघ पुं० जुओ पृ० ५९७ । अग्निहोत्री (४) माकण अचलकन्यका, अचलसुता स्त्री० पार्वती अग्नियोग पुं० चार वाजु अग्नि अने अचिरांशु स्त्री० वीजळी उपर सूर्यनो ताप - एम पांच अग्नि अचितितोपनत वि० अणधार्यु के अणतपवारूपी तपस्या चितव्यु थतुं के वनतुं अग्निविहरण न०, अग्निविहार पुं० अज पुं० जुओ पृ० ५९७ अग्निमां आहुति अर्पवी ते अजननि स्त्री० उत्पत्ति ज न थवी ते अग्निशरण, अग्निशाल न० अग्निहोत्रनु (अस्तित्व न होवू ते) स्थान अजप पुं० नियमित के विधिसर जप अग्निशिख वि० टोचे अग्निवाळं न करनारो ब्राह्मण अग्निष्ठ न० रसोडु [धुमाडो अग्निसख, अग्निसहाय पुं० पवन (२) अजाकृपाणीयन्यायः जओ पृ० ६३० अग्निसाक्षिकम् अ० अग्निने साक्षी अजागलस्तनन्यायः जुओ पृ० ६३० तरीके राखीने (करेलु लग्न) अजाजि (-जी) स्त्री० जीएं [६३० अग्निसात्कृ ८ उ० बाळी नाखवू; भस्मी अजातपुत्रनामोत्कीर्तनन्यायः जुओ पृ० भूत करवू अजामिल पुं० जुओ पृ० ५९७ अग्निसुत, अग्निसून पुं० कार्तिकेय । अजाविक न० घेटाबकरां वगेरे जानवर अग्न्यगार, अग्न्यागार पुं०, न० होमनो अजिह्मगामिन वि० सरळ ; सीधं; प्रमाणिक (वांकुं न चालना) अग्नि राखवावें स्थान अग्रकेश पुं० आगळना वाळ अजीवनि स्त्री० मरण; मृत्यु अग्रदूतिका स्त्री० आगळथी संदेश अतऊर्ध्वम् अ० जुओ ‘अतःपरम्' लावनारी दूती अतटप्रपात पुं० ऊभी भेखड के कराड अग्रपातिन् वि० पहेलां थतुं के बनतं उपरथी पडवं ते अग्रपाद पुं० पगना पहोंचानो आगळनो अकितागत, अकितोपनत वि० -टोचनो भाग ओचितुं आवी पडेलु अग्रप्रदायिन् वि० अगाउथी आपतुं अतःपरम् अ० आनाथी आगळ; आथी अग्रभागिन् वि० (शेष रहेलानो) प्रथम वधु; आनाथी पछी भाग लेनाएं के तेनो दावो करनाएं अतिकोप वि० क्रोधरहित; शांत अग्रभाव पुं० आगळ - प्रथम होवू ते । अतिगहक न० ऊंचं घर (२) अगाशी अग्ररंध्र न० छिद्र के बाकोरानो शरू अतिचिरम् अ० घणुं मोडं होय तेम आतनो के टोचनो भाग (२) लांबा समय सुधी अग्रशोभा स्त्री० शिखरोनी शोभा (२) अतिच्छेद पुं० अतिशय अंतर श्रेष्ठ शोभा अतिजित वि० पूरेपर हरावेलं अग्रसंख्या स्त्री० प्रथम स्थान के पद अतितष्णा स्त्री० वधारे पडतो लोभ अग्रसंध्या स्त्री० वहेली सवार; मळसकुं अतिथिधर्म पं० आतिथ्यनो हक के अग्राक्षि न० तीक्ष्ण नजर; त्रांसी अधिकार (२) अतिथि प्रत्ये बजावनजरे जोवू ते वानुं कर्तव्य अग्रेसरिक पुं० (मालिकनी आगळ अतिदिश् ६ प० सोपी देवं ; आपी देवू चालनारो) सेवक (२) नेता (२) अन्यने लागु करवं Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतिधर्म अतिधर्म पुं० ऊंचामां ऊंचो धर्म; मोटामा मोटो धर्म अतिपात्य वि० विलंब करवा योग्य; मुलतवी राखवा योग्य अतिप्रसक्ति स्त्री० अति आसक्ति ( २ ) मर्यादा उल्लंघन करवुं ते (३) भळते ठेकाणे नियम खेंचीने लगाडवो ते (४) अतिव्याप्ति ( ५ ) शब्दाळुता; लांबु लांबु - कंटाळो आवे तेवुं बोलवु ते (६) निकट संबंध अतिबला स्त्री० एक वनस्पति (औषधि) ( २ ) विश्वामित्रे रामने शीखवेल शक्तिशाली विद्या के मंत्र अतिब्रू २ उ० अपमान करवु गाळ भांडवी (२) चर्चा करवी अतिभर, अतिभार पुं० भारे बोजो अतिभारिक वि० भारे बोजारूप एवं अतिमान वि० अमाप ; अति विस्तृत (२) पुं० उद्धताई; अति गर्व ( ३ ) विस्तार; हद अतिराग पुं० उत्साह; उमंग अतिलंघन न० अति उपवास करवा ते (२) उल्लंघन अतिधिन् वि० भूलचूक करनारं ( अभिनय आदिमा ) बिनजरूरी उमेरो अतिलोल वि० अति नाजुक अतिवक्तृ वि० वातोडियं अतिवर्धन न० करवो ते अतिविस्तर पुं० अति विस्तार अतिशक्ति स्त्री० शक्ति बहारनुं ते अतिशस्त्र वि० शस्त्र करता पण वधु ईजा करनाएं अतिशायन न० पाछळ पाडी देवु ते ; श्रेष्ठता ; चडियातापणुं अतिसक्ति स्त्री० निकट संबंध के सांनिध्य ( २ ) भारे आसक्ति अतिसर्ग पुं० दान ( २ ) परवानगी; ६४१ अद्यश्वीन रजा ( ३ ) काढी मूकवं ते; विदाय ( ४ ) कृपा; महेरबानी अतिसर्पण न० जोरथी -खसवं ते सर्व वि० सर्व करतां चडियातुं (२) सर्वथी पर अत्यच्छ वि० सदाचारी; शीलवान अत्यंतीन वि० अत्यंत चालनारुं के अति arat चालनारुं (२) लांबो समय टकी रहेनारुं [ पाडी देतुं अत्यादित्य वि० सूर्यना तेजने पाछळ अत्वारूढ वि० अतिशय वधी गयेलुं ( २ ) न० अति ऊंचं स्थान ; अति उन्नति अत्यारूढि स्त्री० अति उन्नति अत्र पुं० जुओ पृ० ५९७ अथर्वविद् पुं० अथर्ववेदनो जाणकार अदत्तपूर्वा वि० स्त्री० पहेला जेनो विवाह नथी थयो तेवी अदर्शन न० जोवुं नहि ते ( २ ) दर्शननो अभाव के लोप ( ३ ) उल्लेखनी अभाव (४) अज्ञान अदान वि० कंजूस, दान न करे तेवुं (२) मदन झरतो होय तेवुं अदिति स्त्री० जुओ पृ० ५९७ अदूर वि० दूर नहि तेवुं; नजीक (२) न० नजीकपणुं; सांनिध्य अदृष्टकर्मन् वि० बिनअनुभवी अदृष्टपुरुष पुं० वच्चे मध्यस्थी राख्या विना वने पक्षे जाते ज करेली सुलेह् अदेवमातृक वि० नहेरो वगेरेथी पाणीनी सींचाई थती होय तेवुं (देव अर्थात् वरसादथी ज नहि ) अदेशकाल पुं० अनुचित स्थळ अने समय अदोष वि० निर्दोष (२) लेखनना दोषनो अभाव (३) पुं० दोष न होवो ते अदोह पुं० जे समये दोहवुं शक्य नथी समय ( २ ) दूध न देवुं ते अद्यतनीय वि० आजनं; अद्यतन अद्यश्वीन वि० आजकालमा बने ते Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अद्रव्य ६४२ अनवकाशिका अद्रव्य न० नकामी के तुच्छ वस्तु अध्वर वि० अकुटिल ; शास्त्रोक्त (२) (२) अपात्र शिष्य भंग के उल्लंघन न थयेलं; अखंड अद्विकुक्षि पुं० पर्वतनी गुफा के खीण (३) ईजा के हिंसा न करतुं; अहिंस्र अद्रिसार वि० पर्वत जेवू कठण (२) (४) पुं० यज्ञ पुं० लोढुं [अति कठण अध्वान वि० चूप; मूंगु अद्रिसारमय वि० लोखंडन बनावेलु (२) अन् २ ५० श्वास लेवो (२) जीवq; अद्वंद्व वि० भेदबुद्धि के वेर विनानुं हाल-चालवू अधिकरणभोजक पुं० अदालतनो अधि- अनक्षरम् अ० एके शब्द बोल्या विना; कारी; न्यायाधीश मूंगा मूंगा [नथी तेवं अधिकरणमंडप पुं० अदालतनो ओरडो अनन्यगुरु वि० जेनाथी मोटुं बीजं कांई अधिकरणिक पुं० न्यायाधीश (२) अनन्यज, अनन्यजन्मन् पुं० कामदेव सरकारी कर्मचारी ते अनन्यदृष्टि वि० स्थिरताथी-एकाग्रपणे अधिज्यता स्त्री० पणछ चडावेली होवी जोतुं अधित्वत् अ० तारा उपर अनन्यपरता स्त्री० एकांतिक भक्ति के अधिदीधिति वि० अति तेजस्वी आसक्ति [आसक्त नहिं तेवू अधिमर्म अ० मर्मस्थाने अनन्यपरायण वि० अन्य (स्त्री) मां अधिया २ प० भागवू; नासी छूट अनन्यशासन वि० (पोता सिवाय) बीजो कोई जेनो राजा नथी तेवू अधियोध पुं० उत्तम योद्धो के वीर अनन्यसदृश वि० अनुपम ; जेनी समान अधिरुह वि० (समासने अंते) -नी बीजं कोई नथी तेवू अनन्यसाधारण, अनन्यसामान्य वि० अधिरूषित वि० चंदन वगेरेनो लेप असाधारण; बीजा कोईने लागु न करेलं [करनारो पडतुं होय तेवू (२) एकनिष्ठ अधिरोह पुं० हाथी उपर सवारी अनपत्यता स्त्री० निःसंतानपणु अधिवास् १० पुं० सुवासित करवू अनपार्थ वि० सकारण एवं अधिधि १ उ० व्यापq; पथरावू (२) अनप्सरस्, अनप्सरा स्त्री० अप्सरा जेवू चडवू (३) उपर मूकवू नहीं ते; अप्सराने उचित नहि ते अधिश्री वि० ऐश्वर्यवान; श्रेष्ठ अनभिवादक वि० विरोधी ; असंमत अध्यग्नि अ० अग्निनी साक्षीए; अग्नि अनभ्यंतर वि. अणजाण; अज्ञ समक्ष अनभ्यावृत्ति स्त्री० पुनरावर्तन न कर, अध्यर्ध वि० अर्धं वधारे होय तेवू; दोढुं ते; फरीथी न करवू ते अध्यवसित वि० निर्णय करेलु अनभ्र वि० वादळ विनानुं अध्यवसिन् वि० व्रतधारी अनम्र वि० उद्धत; गर्विष्ठ अध्यंच् वि० श्रेष्ठ ; उत्तम अनराल वि० वांकु नहि तेवू; सीधुं अध्यारोपण न० ऊंचं करवू ते; ऊभुं अनयेय वि० अमल्य करवू ते (२)चडावq के आरोपवू ते अनर्थसंशय पुं० जोखमभरेलु काम; अध्याशय पुं० बीजकोश; कर्णिका महान अनिष्ट (२) पैसानुं जोखम अध्वनीन,अध्वन्य वि० मुसाफरी करवाने न होवू ते [रहेवानुं तप शक्तिमान; वेगे मजल कापतुं अनवकाशिका स्त्री० एक पगे ऊभा उपर ऊगतुं Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनवधान ६४३ अनीलवाजिन् अनवधान वि० लक्ष विनानु; बेध्यान; मळेलं (३) भावि; भविष्य काळy काळजी विना- (२) न० दुर्लक्ष (४) न० भावि समय; भविष्य अनवन वि० रक्षण न आपतुं अनागतविधात पुं० भविष्यने माटे अनवम वि० हीन नहि तेवू; उच्च तैयारी राखनाएं के संघरो करनाएं अनवरतम् अ० सतत अनातुर वि० आतुर के उत्सुक नहि तेवू अनवसर वि० अवकाश के फुरसद वगरनुं (२) थाकया विनानुं (३) नीरोगी; (२) उचित काळ विनानुं (३) न०, पुं० आरोग्यवान फुरसद न होवी ते (४) उचित समय अनात्मज्ञ, अनात्मवेदिन वि० आत्मन होवो ते [दुराचारीपणुं ज्ञान विनानुं (२) पोतानी जातने न अनवस्थान न० संदिग्धता;अनिश्चय(२) जाणनार के समजनार; मुर्ख ; अज्ञान अनवस्थित वि० अस्थिर; चंचळ (२) अनात्मसंपन्न वि० मूर्ख – अज्ञ (२) बदलायेलु ; पलटायेलु (३) व्यभिचारी आत्मवान के निग्रही नहि तेवू (४) रहेवा माटे असमर्थ एवं अनादर वि० आदर विनानुं (२) पुं० अनवस्थितम् अ० क्रममां नहि तेम; तिरस्कार ; अपमान (३) सहेलाई ; अव्यवस्थितपणे [रसोडु __ मुश्केली के महेनत न पडवी ते अनस न० गाडु (२) रांधेलं अन्न (३) अनादृत वि० अनादर करायेलु; अनादर अनसूया स्त्री० जुओ पृ० ५९७ पामेलं (२) परवा न करतुं अनसूयु वि० असूया के अदेखाई विनानुं अनार्यसमाचार पुं० दुराचार; दुर्वर्तन अनालोक वि० बीजा वडे प्रकाशित अनहंवादिन वि० गवरहित; नम्र नहि तेवं; स्वयंप्रकाश अनंगद वि० प्रेम अथवा काम उत्पन्न अनावाप वि० नवं कशुं न मेळवनार करनाएं (२) कडु के वलय विनानु। अनाशिन् वि० अविनाशी; अव्यय अनंतक वि० अंत विनानु; नित्य अनास्वादित वि० चाख्यं के भोगव्युं न अनंतगुण वि० अनंत गुणोवाळ (२) होय तेवं असंख्य [के छेडा विनानुं अनाहार पुं० उपवास; भूख्या रहे ते अनंतपार वि० अनंत विस्तारवाळं ; पार अनियंत्रण वि० नियंत्रण के अंकुश अनंतर वि० पछी- (२) नजीकचं (३) विनान; स्वतंत्र अंतर वगरनु; अखंड (४) न० नजीक अनिरिण वि० खाडा-टेकरा विनानुं पणुं; सांनिध्य अनिरुद्ध पुं० जुओ पृ० ५९७ अनंतरज पं० पोतानी तरत पहेलां के अनिर्लोकित वि० बराबर विचार्यु के पछी जन्मेलो (औरस) भाई तपास्युं न होय तेवू अनंतविजय पुं० युधिष्ठिरनो शंख अनिर्वाण वि० नवरावेलुं नहि तेवू अनंतशयन न० जुओ प० ५९७ अनिविद वि० थाकेलं नहि तेवू अनाकाश वि० पारदर्शक नहि तेवू (२) । अनिर्वेद पुं० खिन्नता के हताशानो पारदर्शक आकाश विनानुं अभाव; आत्मविश्वास ; हिंमत अनाकुल वि० स्वस्थ; आकळं नहिं अनिविष्ट वि० न परणेलु तेवू (२) क्रमसर एवं अनीर्ष वि० ईर्ष्या न करतुं अनाकंद वि० वेदनाथी मढ बनेलं अनील वि० श्वेत [वाळो) अनागत वि० नहि आवेलं (२) नहि अनीलवाजिन् पुं० अर्जुन (सफेद अश्वो Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनीहा ६४४ अनुराधपुर अनीहा स्त्री० उपेक्षा; बेदरकारी अनुनादिन् वि. पडघो पाडतुं अनुकाम वि० स्वेच्छा मुजबनू (२) अनुनायिक वि० मनावनाएं कामनायुक्त (३)पुं० योग्य इच्छा अनुनिशीथम् अ० मधराते अनुकामम् अ० स्वेच्छा मजब अनुनीति स्त्री० अनुनय अनकामीन वि० स्वेच्छा मुजब जनाएं अनुनय वि० अनुकूळ एवं सांत्वन पमाडे के वर्तनाएं तेवु(२)जेनो अनुनय करवो जोईए ते, अनुकलयति प० (मनाव; रीझव) अनुपदिन् वि० अनुसरतुं (२)-ने शोधतूं अनुकलित वि० आदरातिथ्य करेलु ; अनुपपन्न वि० अयोग्य ; अघटित सत्कारेलु अनुपस्कार वि० अध्याहार न करवो अनुकंद १ प० –ना अवाजनो जवाब पडे तेवं आपवो;-नी पाछळ अवाज करवो अनुपस्कृत वि० असल ; अकृत्रिम (२) अनुक्षणम् अ० दरेक क्षणे; सतत रांधेलु नहि तेवू (३) संशयरहित अनुक्षपम् अ० दरेक राते (४)स्वार्थ के प्रयोजन विनानुं अनगीत न० -ना जवाबमां गावं ते अनुपातिन् वि० परिणामरूपे आवतुं अनुगुणयति प० (अनुकूळ बनावq; के प्राप्त थतुं (२) पुं० अनुयायी मनावयु) अनुप्रकीर्ण वि० पूरेपूरे छवाई गयेलं अनुघटन न० -नी साथे जोडवं ते अनप्रवण वि० अनकळ; आनंददायक अनुचरित वि० अनुसरायेलं; सेवायेलु अनुप्रवाद पुं० अफवा ; लोकवायका अनुजन पुं० परिजन ; परिवार अनुप्रसद् -प्रेरक० खुश करवू- मनाव, अनुजन्मन् पुं० नानो भाई अनुप्रहित वि० पाछळ मोकलेल अनुज्ञात वि० परवानगी के संमति अनुप्लु १ आ० –नी पाछळ दोडवू; आपेलु (२)शीखवेलु; भणावेलु अनुसरQ अनुज्ञान न० परवानगी; संमति अनुभाषितृ वि० जवाबमां बोलतु के कहेतुं अनुतर्ष पुं० तरस ; पीवानी इच्छा (२) अनुमंत वि० अनुमति आपनाएं; थवा तृष्णा (३) मद्य ; दारू देनाएं अनुत्तरंग वि० मोजांथी कंपतुं नहि अनुमंत्र १० आ० मंत्र वगेरे बोली विदाय तेवू; स्थिर; अक्षुब्ध करवू; आशीर्वाद आपी विदाय करवू अनुत्सूत्र वि० सूत्र के नियम बहारनुं अनुमात्रा स्त्री० निर्णय ; निश्चय नहि तेवू; अनियमित नहि तेवू अनुमार्गम् अ० मार्गे; रस्ते अनुदार विल पत्नीने वळगी रहेतुं के अनुयात्र न०, अनुयात्रा स्त्री० अनुयायी पत्नी वडे अनुसरातुं (२) अनुकूळ के वर्ग (२) पाछळ जवु - अनुसरवू ते लायक पत्नीवाळं अनुयात्रिक पुं० अनुयायी; हजूरियो। अनुदित वि० न कहेलु के उच्चारेलू अनुयुक्त वि० पगारदार शिक्षक पासे (२) उदय न पामेलु ; न देखातुं भणतुं अनुद्धत वि० उद्धत नहि तेवं ; विनयी अनुयुंजक वि० अदेखं ; ईर्ष्याळ अनुद्रष्ट्र वि० हितेच्छु; हित करनाएं अनुयोक्त पुं० पगारदार शिक्षक अनुध्येय वि० शुभेच्छा दर्शाववा योग्य; अनुरागवत् वि० प्रेममां पडेलु ; आसक्त कृपा करवा योग्य अनुराधपुर न० जुओ पृ० ५९७ Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुरूप ६४५ अपमार्ग अनुरूप वि० -ना जेवू (२) तुल्य (३) अनेडमूक वि० बहेरुं अने मंगु योग्य (४) न० सादृश्य; सरखापणुं अनहस पुं० समय ; काळ [रायेलं (५) उचितपणुं अनैतिह्य न० परंपराथी नहि स्वीकाअनुरोधन न० संमति (२) आग्रह अनौद्धत्य न० उद्धतपणानो अभाव (२) अनुलालित वि० खुश के प्रसन्न करायेलं समता; शांति ढळेलं अनुलीन वि० छुपायेलुं (२) चोटेलं अन्यसंक्रांत वि० बीजा तरफ वळेलु के अनुलोमग वि० सीधी लीटीमां जनाएं अन्यान्य वि० अन्योन्य; परस्पर अनुलोमार्थ वि० अनुकळ बोलनाएं। अन्योन्यकार्य न० संभोग; मैथुन अनुवंश पुं० पेढीनामुं; वंशवृक्ष अन्वक्षम् अ० पछीथी; त्यार पछी अनुवाक्या स्त्री० देवताना आहवान अन्वयवत् वि० कुलीन (२) संबंधवाळं; माटे होता वडे बोलाती ऋचा परिणामे आवतुं अनुविषय पुं० स्वाद अन्ववाय पुं० वंश; जाति; कुळ अनुवृत्त वि० अनुसरतुं (२) सतत चालु अन्ववेक्षा स्त्री० विचार; गणतरी रहेतुं (३) क्रमशः वर्तुलाकार एवं अन्वारभ् १ आ० आरंभ करवो (२) अनुवेशन न० मोटा भाईना लग्न पहेलां स्पर्श करवो नाना भाईनां लग्न थाय ते अन्वारुह, १ प० -नी पाछळ चडवू अनुशासनपर वि० आज्ञांकित;आज्ञाधीन (चिता उपर) (२) आरोहण करवू अनुष्ण वि० ठंडु; शीतळ अन्विष्ट वि० अन्वेषण करेलं; शोधेलं अनुसरण न० पूंठ पकडवी ते अन्वीक्षिक वि० भलु इच्छनाएं; हिताअनुसंहित वि० बारीक तपास करेलु हितनी दरकार करनाएं (२) जोडायेलं; संबद्ध (३) –अनुसार अन्वेषिन्, अन्वेष्ट वि० तपास करतुं; शोधतुं; खोळतं होय तेवू अपघन पुं० अवयव; अंग अनुसारक, अनुसारिन् वि० अनुसरतुं अपत्रपिष्णु वि० शरमाळ ; लज्जाळु (२) पीछो पकडतुं (३) -ने पाले अपथप्रपन्न वि० आडे मार्गे चडेलु (२) पडतुं (४) बारीक तपास करतुं खोटे मार्गे वापरेलं अनुसत वि० -ने अनुसरतुं (२) वहेतुं ; अपथ्यकारिन् वि० अपराधी (२) शत्रुसरतुं (३) –नो आशरो लेतुं वट दाखवनाएं अनूपदेश पुं० जुओ पृ० ५९७ । अपघूमत्व न० धुमाडा विनानुं होवू ते अनच (-च) वि० ऋग्वेदनो अभ्यास नहि अपध्वंसज पुं०, अपध्वंसजा स्त्री० मिश्र करना; जनोई धारण न करवाथी -हलका वर्णनी व्यक्ति (मानो वर्ण वेदोना अध्ययन माटे लायक नहि एवं पिताना वर्ण करतां ऊंचो होय तेवं) अनृतवाच, अनृतवादिन् वि० जूठं अपनस वि० नाक विनानुं बोलनारं होवाथी) अपनिधि वि० गरीब अनेकप पुं० हाथी(संढ अने मोथी पीतो अपपयस वि० पाणी विनानं अनेकमुख वि० वीखरायेलं; जुदी जुदी अपभय वि० भयरहित; निर्भय दिशाओमां जतुं अपमन्यु वि० शोकमुक्त अनेकाग्र वि० अनेक कामोमां व्यग्र एवं अपमार्ग पुं० आडरस्तो (२) पंपाळवू (२) मूंझायेलं ते; हाथ फेरववो ते Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपमूषित अपमृषित वि० असह्य ; अणगमतुं अपयान न० नासी छूटवू ते (२) उपेक्षा; बेदरकारी (हाथ, पग इ०) अपरगात्र न० गौण अवयव के अंग अपरथा अ० बीजी रीते [आगळ अपरापरम् अ० उत्तरोत्तर; आगळ ने अपरांत पुं० जुओ पृ० ५९७ अपरिक्रम वि० आसपास फरवाने अशक्तिमान एवं [कर्यु होय तेवू अपरिनिष्ठित वि० बराबर स्थापित न अपरिसंस्थित वि० कोई जगाए स्थिर न रहेतुं एवं अपरोप पुं० गादीएथी उठाडी मूकवू ते अपर्याप्तवत् वि० असमर्थ अपर्वन वि० पर्वनो दिवस न होय तेवू (२) योग्य समय के मोसम विनानुं अपलापिन् वि० छुपावतुं; ढांकी देतुं अपलाषुक वि० तरस अथवा तृष्णाथी मुक्त एवं (२) तरस्यु अपवत्सय बहु लाड नहीं तेम बहु बेदरकारी नहीं एम सावचेतीथी वर्तवू अपवल्गित वि० टींगावेलु; लटकावेलं अपवाद पुं० निंदा; गाळ (२) आळ ; कलंक (३) सामान्य नियममां बाध (४) हुकम; आज्ञा (५) हरणोने लोभाववा वगाडातुं वाद्य अपवादिन वि० अपकीर्ति करतुं ; निंदतुं (२) विरोध करतुं अपवारक पुं० पडदो; आड अपवाहित वि० हांकी काढेलं;दूर करेलु अपविघ्न वि० विघ्न के अंतराय विनाअपविद्या स्त्री० अज्ञान; माया; अविद्या अपवोढ़ वि० लई जना; दूर करनाएं अपश्री वि० सौंदर्य के शोभा विनानुं अपष्ठु अ० खोटी रीते; असत्य रीते अपसार पुं० बहार नीकळवू ते; नासी जवं ते (२) बहार नीकळवानो मार्ग अपसत वि० नीचे पडेलं के गरेल (२) फेलावेलु (३) छोडेलुं; फेंकेलं अप्रतिमानुष अपसृष्ट वि० जेणे छोडी के तजी दी, छे तेवं [कोई पण भाग अपस्कर पुं०,न० पैडां सिवायनो गाडीनो अपस्नात वि० स्वजनना मृत्यु पछी स्नान कर्यु होय तेवू (बीजी उत्तरक्रिया करवा माटे) अपस्पश वि० जासूस विनानुं [वाळू अपस्मारिन् वि० फेफळं-वाईना व्याधिअपहार पुं० लावतुं ते; लई आवq ते अपहारिन् वि० लई जनाएं; उपाडी जनाएं (२) चोरी जनाएं अपाकरिष्णु वि० दूर करनाएं (२) पाछळ पाडी देनाएं; चडियातुं अपाकृत वि० दूर करेलु (२) विनानुं रहित [नीपजती लागणी अपाकृति स्त्री० क्रोध, भय वगेरेथी अपात्रभृत् वि० नालायकने पोषतुं अपानृत वि० साचुं; खरं [स्त्री अपांसुला स्त्री० सती; अव्यभिचारिणी अपिपरिक्लिष्ट वि० खूब हेरान थयेलं अपुष्कल वि० पुष्कळ नहि तेवू (२) हीन; अधम अपुंस्का स्त्री० पति विनानी स्त्री अपूदिन वि० पत्नी साथे पहेलां परिणीत जीवन न भोगव्यु होय तेवू अपृथक्त्वन् वि० (पुरुष अने प्रकृतिनो) भेद न करी शके तेवू अपेक्षिन् वि०' –नी राह जोतुं ; अपेक्षा राखतुं; दरकार करतुं अपोहित वि० दूर करेल (२) खंडन करेल अप्रकाश वि० प्रकाशित नहि एवं अप्रकाशम, अप्रकाशे अ० छूपी रीते; छानी रीते अप्रख्यता स्त्री० अपकीर्ति अप्रतिभट वि० बिनहरीफ एवं अप्रतिम वि० अनुचित अप्रतिमान वि० बिनहरीफ; अनुपम अप्रतिमानुष वि० असाधारण Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रतिशासन ६४७ अभिनिष्पत् अप्रतिशासन वि० हरीफ राजा विनानु; अभिधार पुं० घी (२) यज्ञमां आहुति एकचक्री एवं उपर घी रेड, ते अप्रदक्षिणम् अ० डाबामांथी जमणुं होय अभिचारक, अभिचारिन् वि० मेली तेम (२) प्रतिकूळ होय तेम विद्यानो प्रयोग करना अप्रधान वि० मुख्य नहि तेवू; गौण अभिजनन वि० पोताना खानदानने अप्रवृत्त वि० कामे नहि लागेलुं (२) छाजे तेवू नहि प्रेरेलु (३) अनुचित अभिजनवत् वि० ऊंचा कुळनु;खानदान अप्रसक्त वि० निर्विघ्न ; रुकावट विनानुं अभिजुष ६ आ० सेवq; वारंवार जq अप्रसहिष्णु वि० (-ने माटे) असमर्थ अभिज्ञता स्त्री० ज्ञान; समज । अप्रसिद्ध वि० अजाण्यं ; अगत्य विनानुं अभिज्ञात वि० जाणतुं; समजतुं (२) असामान्य अभिज्ञानाभरण न० ओळखाण -यादअप्रस्ताविक वि० अप्रस्तुत दास्त तरीके आपेलं घरेणुं (वींटी) अप्रहत वि० हणायेखें -घवायेलुं नहीं अभिडीन न० -नी तरफ ऊडवू ते तेवू (२) खेडाया विनानु; पडतर अभितड् १० प० मार; ठोकवू (३) नवं-कोरे (वस्त्र) अभितप् १ प० तपाववं; गरम करवू अप्राप्तयौवन वि० यौवनने प्राप्त नहि (२) संताप, थयेल; पुख्त वय- नहीं तेवू अभिताप पुं० संताप अफलप्रेप्सु वि० फळेच्छारहित अभितान वि० खूब रातुं एवं अफल्गु वि० लाभकारक; उत्पादक अभिद्रुह ४ प० द्रोह करवो; धिक्कारवू; अबंधुकृत वि० सगां संबंधीओथी नहि ईजा करवा इच्छयूँ करायेलं; स्वाभाविक रीते ज विकसेलं अभिद्रोह पुं० द्रोह; कावतरं (२) अबाह्य वि० बाह्य नहि तेवू; अंदरनुं क्रूरता; जुलम (३) निंदा; गाळ (२) परिचित ; प्रवीण [अग्नि (४) दुःख ; त्रास अबिंधन पुं० वडवाग्नि; समद्रमा रहेलो अभिधायिन् वि० व्यक्त करतुं; अर्थ अबुद्धम् अ० अजाण्ये ; बुद्धिपूर्वक नहि बतावतुं (२) कहेतुं; जणावतुं [मागवू ते अभिधाव १ प० -नी तरफ दोडवू; अभययाचना स्त्री० अभयदान के रक्षण हुमलो करवो अभाविन् वि० न बनवानुं के न थवानुं एवं अभिनभः अ० आकाश तरफ;आकाशमां अभिकर्षण न० खेतीनुं ओजार । अभिनम्र वि० खूब नीचुं झूकेलं-वळेलं अभिकाम वि० प्रेमासक्त; कामातुर अभिनिर्मुक्त वि० सूर्यास्त समये ऊंघतुं अभिक्रमण न० हुमलो; चडाई (२)पासे _अने कर्तव्यकर्मो न बजावतुं जवू ते प्रसिद्ध कर, अभिनिर्वृत्ति स्त्री० सिद्धि; पूर्णता अभिख्या २ प० -प्रेरक जाहेर करवू अभिनिविष्ट वि० तत्पर; परायण अभिगुप् १० प० बचावq; रक्षण करवू (२)दृढ़ ; स्थिर (३)युक्त; संपन्न (४) अभिगुप्ति स्त्री० संरक्षण (२) निग्रह जक्की; दुराग्रही (५) प्रवीण अभिगृध्न वि० लोभी अभिनिवेशिन् वि० आसक्त; परायण अभिग १ प० –ने गाई संभळाव, (२) आसक्ति करावतुं (२) गीतोथी गाजतुं करवू अभिनिष्पत् १५० बहार नीकळवू Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिनिष्यन्द अभिनिष्यन्द पुं० टपकवुं ते; झरवुं ते अभिनीति स्त्री० चेष्टा; हावभाव ( २ ) मैत्री; स्नेह अभिनुन वि० व्यथित; क्षुब्ध अभिनेय वि० भजववा लायक एवं अभिपत्ति स्त्री० पासे जनुं ते (२) समाप्ति ( ३ ) रक्षण ( ४ ) उपपत्ति; समर्थन अभिपद्म वि० अति सुंदर अभिपरिप्लुत वि० डूब गयेलं; परिपूर्ण; व्याप्त ( २ ) आक्रमण पामेलुं; - थी व्याकुळ बनेलुं [ नाश अभिपात पुं० संचार ; गति ( २ ) मृत्यु ; अभिपांडु वि० करमायेलु; निस्तेज अभिपूज् १० प० पूजा करवी ( २ ) संमानव; मान्य राखबुं अभिपू ३, ९ प० पूरवुं; भरी काढवु अभिप्रणी १प० मंत्रो वडे पवित्र कर अभिप्रवृत् १ आ० नी पासे जनुं के पहोंच ( २ ) -मां पडवुं; -ने मळवु अभिप्रवृत्त वि० -मां प्रवृत्त थयेलं; मंडेलु; मचेलु अभिप्लु ४ आ० - नी तरफ कूदवुं (२) ऊभराववुं; तरबोळ करवुं डुबाडवु अभिबल न० युक्तिथी तपास के परीक्षा करवी ते (काव्य ० ) अभिभत्सित वि० तिरस्कृत अभिभा २ प ० चळकवु; प्रकाशवं अभिभाषिन् वि० - नी साथे वात करतुं ने संबोधतुं अभिभू पुं० अहंकार अभिभूष १० उ० शोभा अर्पवी अभिमनस् वि० इच्छावाळु आतुर अभिमनायते आ० ( खुश थवं प्रसन्न थबुं; उत्सुक थवुं ) , 1 अभिमन्यु पुं० जुओ पृ० ५९७ अभिमर्शक, अभिर्माशिन्, अभिमर्षक, अभिमषन् वि० स्पर्श करतुं ( २ ) हुमलो ६४८ अभिशंकित करतुं ; बळात्कार करतु; संभोग करतु अभिमान न० प्रमाण अभिमुखता स्त्री० हाजरी; सांनिध्य (२) अनुकूळ होवापणुं अभिमुखयति प० ( खुश करवुं; प्रसन्न करवुं; वश करवुं ) अभिरक्ष १ प० रक्षण करवुं मदद करवी ( २ ) शासन करवुं अभिरक्षा स्त्री० बधी बाजुएथी रक्षण अभिराष् - प्रेरक० प्रसन्न करवु अभिराधन न० मनाववुं ते; खुश करवुं ते अभिरुचित पुं० प्रेमीजन [ करेलुं अभिलक्षित वि० चिह्नोवाळु ( २ ) पसंद अभिलक्ष्य वि० लक्षमां लेवा लायक (२) ताकवानुं होय एवं (३) चिह्नथी अंकित करवा लायक अभिलंघ् १,१० प० ओळंगी जवुं; कूदी जवं (२) उपर धसी जबुं ( ३ ) उल्लंघन करवुं अभिलाव पुं० लणणी; कापणी अभिलाषक, अभिलाषिन्, अभिलाषुक वि० उत्कट अभिलाषावाळं अभिली ४ आ० - मां प्रवेशबुं -मां छुपाaj अभिलीन वि० वळगेलुं (२) आलिंगतुं अभिवक्तृ वि० तोछडाईपी बोलनारं अभिविक्रम वि० पराक्रमी; शूरवीर अभिवीज् - प्रेरक० पंखो नाखवो अभिवृष् १ ५० वरसवुं ; छंटकाव करवो अभिवृष्ट वि० वरसाद के छंटकाव थयो होय ते 1 अभिशप १ उ० शाप आपको अभिशस्त वि० खोटो आक्षेप - आरोप मुकायो होय ते अपमानित ( २ ) हमलो करायेलु; ईजा करायेलुं अभिशंक १ आ० शंका करवी ( २ ) -थी डरबुं अभिशंकित वि० वहेमीलु; शंकाशील (२) डरतुं Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिषक्त अभिषक्त वि० (भूतना) वळगाडवाळं (२) पराजित; अपमानित (३) निंदित; शापित अभिषवण न० स्नान अभिषु ५ प० जळसिंचन करवं; छंटकाव करवो; भींजववं अभिषेचन न० जळसिंचन (२) राज्याभिषेक (३) राज्याभिषेकनी सामग्री अभिष्टुत वि० स्तवन के स्तुति करेलु अभिसर पुं० अनुयायी; हरियो (२) साथी; सोबती अभिसरि (-री) स्त्री० अनुसर, ते (२) मददे चडवं ते अभिसंबंध पुं० संबंध ; संपर्क अभिसायम्, अभिसायार्कम् अ० सूर्यास्त समये ; सांज टाणे अभिसारण न० प्रियतमने संकेत प्रमाणे मळवा जq ते [हुमलो करतुं अभिसारिन् वि० मळवा जतुं; धसी जतुं; अभिसांत्व् १० प० आश्वासन आपq अभिस्नेह पं० आसक्ति; स्नेह । अभिनवंत वि० रेलावतुं ; बक्षतुं अभिहार पुं० उपाडी जq ते;लूटी जq ते; चोरी जq ते (२) हुसलो(३)शस्त्रसज्ज थवं ते (४) नजोक लावq ते अभीप्सिन् वि० अभीप्सा-इच्छा राखतुं अभूयःसंनिवृत्ति स्त्री० फरीथी संसारमा पाछा न आवq ते; मोक्ष अभूत वि० भाडे के रोजीए नहीं राखलं (२) नहि पोषेलु अभ्यक्त वि० लेप करेल; खरडेलं अभ्यनुज्ञात वि० संमति आपेलं; मंजूर राखेलु (२) कृपा करेलु अभ्यमित्रम् अ० दुश्मन सामे के तरफ अभ्यमित्रीण, अभ्यभित्र्य पुं० दुश्मननो वीरतापूर्वक सामनो करनारो। अभ्यता स्त्री० सांनिध्य ; समीपता अभ्यर्थनीय, अभ्यर्थ्य वि० विनंती के अमातृक आजीजी करवा लायक; जेने विनंती करवी पडे तेवू अभ्यवहारमंडप पुं० भोजनखंड अभ्यवहित वि० दबायेलं; बेसाडी दीधेलु (धूळ इ०) अभ्यसूयति प० (द्वेष करवो; ईर्ष्या करवी) [वारंवार अभ्यस्तम् अ० आथमवा तरफ (२) अभ्यंतरीकरण न० प्रवेश के परिचय कराववो ते (२)गुप्त वात कहेवी ते (३) निकट- मित्र बनावq ते (४) अंदर (पेटमां) नाखवू ते अभ्याकर्ष पुं० पडकार करवा छाती ठोकवी ते [आच्छादन विना अभ्याकाशम् अ० खुल्लुं होय तेम; अभ्यागमन न० आगमन; मुलाकात अभ्यासयोग पुं० चित्तने एक स्वरूपमां परोव ते [होय तेवू अभ्युपस्थित वि० मददमां के सोवतमां अभ्युपाश्रय पुं० शरण; आशरो अभ्रघन पुं० वादळांनो समूह अभ्रविलायम् अ० जेम वादळां वेराई जाय तेवी रीते समूह अभ्रवृंद न० वादळांनी हारमाळा के अभ्रावकाश वि० वरसाद वखते पण खुल्लामा रहेनाएं [राक्षस इ० अमनुष्य पुं० माणस नहि ते-पिशाच, अमरकंटक पुं० जुओ पृ० ५९७ अमर्त्य वि० दिव्य ; अमर (२)पुं० देव अमलपतत्रिन् पुं० हंस; जंगली हंस अमलयति प० (निर्मळ-शुद्ध करवू; उज्ज्वळ करवु) अमलिन वि० निर्मळ ; पवित्र अमंत्रतंत्र वि० मंत्रतंत्रना प्रयोग विनानुं अमंद वि० जड नहि तेवू; चपळ; चालाक (२) अति; पुष्कळ ; उग्र अमात् वि० अपरिमित; अमर्यादित अमात, अमातक वि० मा विनानुं Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अमानित्व अमानित्व न० नम्रता; आत्मस्तुति न करवी ते अमितविक्रम वि० अपार पराक्रमवाळं अमित्रक न० शत्रुनुं कार्य; अपकार अमित्रता स्त्री० दुश्मनावट; वेर अमित्रायते आ० ( दुश्मननी जेम वर्तवुं ; धिक्कारखुं) अमृज वि० शोभा शणगार विनानुं अमृतरस पुं० अमृतरूपी के अमृत जैवो रस (२) ब्रह्म अमृता स्त्री० शरीरमा रहेली पांच नाडीओमांनी एकनुं नाम अमृतायते आ० ( अमृत जेवुं थवं नीवडं) अमृषोद्य न० सत्य वाणी अमृष्टभोजिन् वि० स्वादिष्ट भोजन नहि जमनाएं [ न शकाय तेवुं अमोच्य वि० छूटी न शके तेवुं; छोडी अयत् वि० प्रयत्न न करतुं अयत्नलभ्य वि० सहेलाईथी प्राप्त थाय तेबुं [ असामान्य अयथापूर्व वि० अपूर्व; अप्रतिम ; अयथार्थ वि० अर्थ विनानुं; निरर्थक (२) असंबद्ध; अनुचित ( ३ ) खोटुं अयमपरो गण्डस्योपरि स्फोट: जुओ पृ० ६३० अयवत् वि० भाग्यशाळी; सद्भागी अयःकणप न० लोखंडना गोळा फेंकतुं एक प्रकारनुं अस्त्र [ मळेलुं अयाचितोपस्थित वि० माग्या विना अयान्वित वि० भाग्यशाळी; सद्भागी अयुगसप्ति पुं० ( सात घोडावाळो ) सूर्य अयुग्मच्छद पुं० सप्तपर्ण वृक्ष अयोगुड पुं० लोखंडनो गोळो ( २ ) लोखंडना गोळावाळु एक हथियार अयोदंड पुं० लोखंडनी गदा अरघटी स्त्री० रेंट उपरनो घडो अरट्टु पुं० जुओ ‘आरट्ट ' ६५० अर्थकृत्य अरण्यचंद्रिकान्यायः जुओ पृ० ६३० अरण्यधर्म पुं० जंगली अवस्था के दशा ( २ ) वानप्रस्थ धर्म अरण्यरोदनन्यायः जुओ पृ० ६३० अरण्यसद् वि० वनमां रहेतुं; वनवासी अरविंदनाभ पुं० विष्णु ( जेनी नाभि के दूंटीमांथी नीकळेला कमळमांथी ब्रह्मा प्रगट थया हता) [ कदर विनानुं अरस वि० नीरस; स्वाद विनानुं ( २ ) अराग वि० राग के आसक्ति विनानुं अराम वि० अळखामणुं; अप्रिय अरालपक्ष्मन् वि० चक्रना आरा पेठे फेलाती पांपणोवाळं [ शाळी शत्रु अरिभद्र पुं० मुख्य के सौथी वधु बळअरिष्टताति स्त्री० कल्याणपरंपरा अरिष्टशय्या स्त्री० सुवावडीनो खाटलो अरिहन् पुं० शत्रुनुं निकंदन करनारो अरुण पुं० जुओ पृ० ५९८ अरुणिमन् पुं० लालाश; लाल रंग अरुंधती स्त्री० जुओ पृ० ५९८ अरुंधतीप्रदर्शनन्यायः जुओ पृ० ६३० अरूपहार्य वि० रूपथी आकर्षी के जीती न शकाय तेवुं [ अदृश्य अरूपिन् वि० आकृति रहित ( २ ) अरोगत्व न० तंदुरस्ती; आरोग्य अर्कप्रकाश वि० सूर्य समान प्रकाशित अर्कमूल पुं० आकडानुं मूळ अर्गलित वि० आगळाथी बंध करेलुं अर्चनीय, अर्चयितव्य वि० पूजवा लायक; आदरणीय [ प्रकाश अचि स्त्री० प्रकाशनुं किरण (२) तेज; अचित वि० पूजेलुं; सत्कारेलुं अर्च्य वि० जुओ ' अर्चनीय ' अर्जुन पुं० जुओ पृ० ५९८ अर्णस् न० पाणी; मोजुं; प्रवाह अर्णोरुह न० कमळ अर्थकार्य न० दरिद्रता अर्थकृत्य न० धंधोरोजगार; कामकाज Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्थकोविद अर्थकोविद वि० निपुण; अनुभवी अर्थगृह न० खजानो अर्थदर्शन न० पदार्थोने जोवा ते अर्थपद न० पाणिनि - सूत्रोनुं वार्तिक अर्थवत्ता स्त्री० संपत्ति ; धन; मिलकत अर्थविद्या स्त्री० व्यवहारज्ञान अर्थविभावक वि० धन आपनारं अर्थसंग्रह, अर्थ संचय पुं० धन, मिलकत के खजानो मेळववो के संघरवो ते अर्थहारिन् वि० धन चोरनारं अर्थाधिकार पुं० संपत्तिनी सोंपणी अर्थानुयायिन् वि० शास्त्र अनुसरतुं अर्थापत्ति स्त्री० जेने न स्वीकारीए तो वस्तुस्थितिनो खुलासो न ज मळी शके एवं अनुमान ( न्याय ० ) ( २ ) एक अलंकार, जेमां एक बात कहेवाथी बीजी वातनी सिद्धि निःशंक छे, एम बताववामां आवे छे ( काव्य ० ) अर्थिभाव पुं० याचकपणुं ( २ ) याचना अर्थिसात् अ० याचकोने आपी दीधुं के हेंची दीधुं होय तेम अर्धकुक्कुटीन्यायः जुओ पृ० ६३० अर्धजरतीयन्यायः जुओ पृ० ६३० अर्धपाद पुं० पाद (बार आंगळ ) नो अर्धा भाग अर्धपुलायित पुं० अर्धी ठेकडो भरातो होय तेवी ( घोडानी ) गति अर्धरथ पुं० रथमां बेसीने लडतो पण पूरो कुशल नहि तेवो योद्धो अर्धरात्र पुं० मध्यरात्रि (२) बार कलाकनी रात्रि अर्धवैशस न० अधूरुं खून ; अर्धी हत्या अर्धवैशसन्यायः जुओ पुं० ६३० अहार पुं० ६४ सेरनो हार अर्धहारिन् वि० अर्धो भाग रोकतुं अर्धाक्षि न० तीरछी नजर - कटाक्ष अर्धासि पुं० एक बाजु धारवाळी नानी तरवार ६५१ अवचर अलकनंदा स्त्री० जुओ पृ० ५९८ अलकसंहति स्त्री० वाळनी लटो अलकांत पुं० वाळनी लटनो छेडो अलक्ष्मन् वि० अशुभ चिह्नोवाळु अलक्ष्यजन्मता स्त्री० जन्मस्थान अज्ञात हो अलभ्य वि० प्राप्त न करी शकाय तेवुं अलय वि० भटकतुं; घरबार विनानुं (२) अविनाशी अलवण वि० मीठा विनानुं अलंघनीयता स्त्री० ओळंगी न शकाय के पासे जई न शकाय तेवा होवु ते अलंतराम् अ० अत्यंत अलंबुष पुं० तुंबडुं (२) घटोत्कचे मारेलो एक राक्षस ( ३ ) रावणनो प्रधान ( ४ ) आंगळीओ फेलावेलो पंजो अलाघव न० क्षुद्रतानो अभाव; उदारता अलास्य वि० नृत्यरहित अलिकलेखा स्त्री० कपाळ उपरनुं चिह्न अलिंदा: पुं० ब० व० जुओ पृ० ५९८ अलीकसुप्त, अलीकसुतक न० ऊंघवानो ढोंग करवो ते अलुप्त वि० कापी नहि नाखेलुं ; ओछु नहि करेलुं ( २ ) सुरक्षित अलोलुप वि० तृष्णा दिनानुं अल्पच्छद वि० ओछां वस्त्रवाळु अल्पता स्त्री०, अल्पत्व न० नानापणुं; सूक्ष्मता (२) बालिशता; तुच्छता अल्पविषय वि० मर्यादित क्षेत्रवाळु; मर्यादित शक्तिवालुं अवकर्णन न० सांभळवु ते; श्रवण अवखंड १० प० कापवु; टुकडा करवा (२) क्षीण थवुं; व्यतीत थ अवगल् १ प० सरकी पडवुं; नीकळी पडवुं अवगुंठ् १० प० ढांकवुं छुपाववु; वींटाळव अवगुंठनवत् वि० बुरखावाळु अवचर पुं० परिचारक Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवचाय अवचाय पुं० चूंटg के वीणवू ते अवचूर्णित वि० चूरो करेलु अवच्छद पुं० ढांकण; आच्छादन अवजय पुं० पराजय; -नी उपर विजय अवज्ञात वि० अनादर-अपमान करेलु अवतति स्त्री० व्यापq ते । अवतप् १ प० -नीचे तेज फेंकबुं ते -प्रेरक० तपावq; प्रकाशित करवं अवतमस न० झांखो अंधकार; अंधाएं अवतस् अ० नीचे; पाताळमां अवतंसक पुं० काननुं घरेणुं (२) कोई पण घरेणु [वापर) अवतंसयति प० (कानना घरेणा तरीके अवताडन न० कचरी नाखवू ते; रोळी नाखवू ते अवतारण न० नीचे ऊतरे तेम करवू ते (२) वळगाड (भूतप्रेतादिनो) (३) (ग्रंथनी) प्रस्तावना; उपोद्घात् (४) अवतरण ; प्रागटय अवधूपित वि० धूपथी सुवासित एवं अवनतांग वि० नीचे झूकता अवयवोवाळं (सुंदरतानी निशानी) अवनम्र वि० नमेलं; झुकेलं अवनाम पुं० पगे पडवं ते (२) नीचे नमावq ते अवनामिन् वि० नीचे नमतुं अवनिज् ३ उ० धोवं; साफ करवू -प्रेरक० धोई कढावq (२)व्यापq; भरी काढQ अवनिपति, अवनिपाल पुं० राजा अवनीध्र पुं० पर्वत [जवा योग्य अवनेय वि० लई जवा योग्य; दोरी अवपत् १ प० नीचे पडवू ; नीचे ऊतरवं; उपर धसी जवू अवपतित वि० नीचे पडेलु; गरी पडेलु अवपाशित वि० जाळमां पकडेलु के पाशमां जकडेलं अवप्लुत वि० कूदी पडेलु (२) नाठेलु अवलंबिन् अवबंध ९ प० बांधवू; जकडवू अवबुद्ध वि० जाणेलं; शीखेलु अवबोधित वि० जगाडेलु अवभंग वि० हरावतुं; नमावतुं (२) खंडित करेलु; ईजा पमाडेलु अवभंज ७ प० भांगी नाखवू; तोडी पाडवू [अंकुशने न गांठे) अवमतांकुश पुं० मदमां आवेलो हाथी (जे अवमर्दन वि० कचरी नांखतुं ; पीसी नाखतुं (२) न० दबाववं-चंपी करवी ते (३) दमन; कचरी नाखवू ते अवर्मादन् वि० ठार मारनाएं अवमर्ष पुं० हुमलो (२) आलोचना; तपास अवमानिन् वि० अवगणना करतुं; तिरस्कार करतुं ; किंमत ओछी आंकतुं अवमूर्च्छ शांत पडवू (तकरारनुं) अवमृद् ९ प० कचरी नाखवू; पीसी नाखवं अवया २ उ० जाणवू; समजवू (२) टाळवू; दूर करQ अवरक्षणी स्त्री० घोडाओने बांधवानुं दोरडु अवरजा स्त्री० नानी बहेन अवरुण वि० तूटेल; भांगेलं (२)रोगिष्ठ अवरुदित वि० जेना उपर आंसु पडयां होय तेवू अवरुद्धिका स्त्री० अंतःपुरमा अळगी राखेली स्त्री [घालतुं अवरोधक वि० विघ्न करतुं (२) घेरो अवरोधन न० घेरो (२) विघ्न; डखल (३) अंतःपुर (राजमहेलतुं) (४) पत्नी; राणी अवरोधिका स्त्री० अंतःपुरनी स्त्री अवरोपित वि० उखेडी नाखेलु (२) नीचे उतारी पाडेलु अवलग्न वि० वळगेल; संबद्ध; लटकतुं अवलंबिन् वि० लटकतुं (२) अवलंबन लेतुं (३) आधार आपतुं Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मवली ६५३ अवृक्ष अवली ४ आ० चोटवू; लटकवू (२) अविगान, अविगीत वि० विसंवाद रहित वळवू; नमवू (३) -मां छुपाएँ। अविचारणीय वि० विचार्या के प्रश्न अवलुप् ६ उ० [अवलंपति-ते] उपर पूछया विना पालन करवा योग्य । धसी जq (जेमके, शिकार उपर) अविच्छिन्न वि० सळंग होय तेवू; (२) खाई जवू; गळी जर्बु (३) अखंडित (२) सामान्य कचरी नाखवू; दबावी देवू अविज्ञेय वि० जाणी के ओळखी न अवलोकक वि० -नी तरफ जोतुं; -ने शकाय तेवू जोवा इच्छतुं अवितकित वि० नहि कल्पेखें अवलोकिन् वि० जोतुं; निहाळतुं अवितृ वि० रक्षणहार अवशप्त वि० शापित अविद अ० ओ रे! ओ रे! अवशिका स्त्री. स्वतंत्र एवी स्त्री अविदित वि० जाण्या विनान; अजाणमां अवष्टंभमय वि० सोना-; सोनेरी (२) ज गयुं होय तेवू एंटवाळ; बहादुरीवाळू अविदूर वि० नजीक होय तेवू अवसादक वि० खेद-थाक-मूर्छा करतुं अविधवा स्त्री० जेनो पति जीवतो अवसादिन वि० हताश थ]; बेसी होय तेवी स्त्री पडतुं; मूछित थतुं अवसुप्त वि० ऊंघेलं अविधा अ० 'धाजो!' 'धाजो!' अवसृ.१ प० व्यापq; फेलावू (एवो मदद माटेनो पोकार) अवस्कन्न वि० हमलो करायेलं; बळा अविधि वि० विधि के नियम प्रमाणे त्कार करायेलुं न होय तेवं (२) पुं० ब्रह्म (जेनो [करतुं अवस्कंदिन वि० हुमलो करतुं; बळात्कार निर्देश न करी शकाय) अवस्नात वि० नाहेलं पाणी अविधेय वि० काबुमां न रखाय तेवू अवस्फूर्ज अवाजथी भरी काढवू अविनाश पुं० अमृतत्व; मोक्ष ; निर्वाण अवस्फजित न० गर्जना [काढवू अविनिर्णय पुं० अनिश्चय अवहस् १ प० हांसी करवी; हसी अविप्रहत वि० अवर-जवर विनान अवहसन न० हांसी; ठेकडी अवियुक्त वि० संयक्त; अविभक्त अवहास्य वि० हांसी करवा लायक अविरलित वि० खूब नजीक होय अवहीन वि० त्यजायेलं; छोडी दीधेलं; तेवू; वच्चे अंतर विनानुं पाछळ केलं अविरुद्ध वि० विरुद्ध के विसंगत नहि अवंति (-ती) स्त्री० जुओ पृ० ५९८ तेवू (२) योग्य ; उचित अवाप्तव्य वि० मेळववा योग्य अविरोध पुं० सुसंगतता; विरोधी न अवार्य वि० दूर करी न शकाय तेवू; होवू ते (२) डखल के रुकावटनो वारी न शकाय तेवू अभाव [विनान अविकारिन् वि० बदलाय नहि तेवू; अविलुप्त वि० अक्षत; ईजा पाम्या अफर (२) वफादार अविश्वस्त वि० विश्वासु न होय तेवू; जविक्षत वि० अखंडित; ईजा न पामेलु विश्वास न करवा लायक अविक्षित वि० ईजा न पामेलु; ओछु अवीक्षिन् वि० न जोतुं; जोवा न न थयेलं [तेवू पाम्युं होय तेवू अविक्षोभ्य वि० अजेय; क्षोभ न पामे अवृक्ष वि० झाड विनानुं Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवृथार्थ ६५४ अष्ठीला अवृथार्थ वि० सफळ; निरर्थक नहि अभाव (२) जेठ अने अषाढ महिना तेवं [योग्य (चालता होवा ते) अवेक्षणीय वि० आदरणीय; विचारवा अशन्य न० खाली न होवू ते (२) अवेक्षमाण वि० जोतुं; निहाळतुं एकलुं न रहे माटे साथे मोकलवानुं ते अवेक्षा स्त्री० जोवू ते; निहाळवू ते अशेषयति प. संपूर्ण रीते पूरं करवू (२) लक्ष; काळजी अशोकवनिका स्त्री० अशोकवृक्षोनी अवेदनाज्ञ वि० पीडा नहि जाणनाएं वाटिका के उपवन अव्यक्तमति वि० जेनुं स्वरूप प्रगट अशोकवनिकान्यायः जुओ पृ० ६३० के स्पष्ट नथी तेवू अश्नीतपिबता स्त्री० खानपान माटे अव्यक्तादि वि० जेनो आरंभ अप्रगट (उजाणीमां) आमंत्रण छे एवं; जेनी पूर्वनी स्थिति जोई अश्मक पुं० जुओ पुं० ५९८ शकाती नथी एवं अश्मकाः पुं० ब० व० ते देशना लोको अव्यक्तिक वि० अव्यक्त; अप्रगट । अश्मकुट्ट, अश्मकुट्टक पुं० वानप्रस्थ अव्यथिन् वि० वेदना के पीडाथी अश्मलोष्टन्यायः जओ प०६३० रहित (२) पीडा न करतुं (३) अश्रुति वि० कान विनानुं (२) पुं० भयरहित; निर्भय साप (३) स्त्री० न सांभळवू ते; अव्यपेक्षा स्त्री०असावधानता; बेकाळजी विस्मृति अव्ययात्मन् वि० अविनाशी; नित्य अश्रुपूर्ण वि० आंसु भरेलु स्वरूपवाळू (२) पुं० आत्मा अश्रुमुख वि० आंसु रेलावतुं अव्याक्षेप पुं० विलंब के मूंझवणनो अश्वकर्णक पुं० एक वृक्ष; साग अभाव अश्वचर्या स्त्री० घोडाओनी संभाळ अव्याहृत न० मौन [अविच्छिन्न अश्वतीर्थ न० गंगा नदीने किनारे अव्युच्छिन्न वि० सतत - चालु एवं; कान्यकुब्ज नजीक आवेलुं एक तीर्थ अवत वि० धार्मिक विधि के विधान अश्वत्थामन् पुं० जुओ पृ० ५९८ न पाळतुं होय एवं अश्वपति पुं० जुओ पृ० ५९८ । अशकुन पुं०, न० अपशुकन अश्वमेधिक वि० अश्वमेध माटे योग्य; अशकुनीभू अपशुकन बनी रहेQ। अश्वमेध संबंधो अशम् अ० कल्याणकर न होय तेम अश्ववाजिन वि० घोडानी शक्तिवाळू अशस्त्र न० जे शस्त्र नथी ते (रणमां अश्ववार पुं० अश्वपाल; घोडानी शस्त्रथी थयेलं मरण यशस्वी गणाय) देखरेख राखनारो अशांत वि० शांति विनानु; जंप विनानुं अश्विनीकुमार जुओ पृ० ५९८ अशिथिल वि० ढीलं नहि तेवू; दृढ अश्वीय वि० अश्व संबंधी (२) न० (२) असरकारक; खातरीवाळ घोडाओनो समूह अशिरस्क वि० मस्तक विनानुं अष्टपादिका स्त्री० एक फूल-वेल अशिशिररश्मि पुं० सूर्य अष्टादशन् वि० अढार अशीतल वि० गरम ; उष्ण । अष्टावक्र पुं० जुओ पृ० ५९८ अशीतिभाग पुं० एंशीमो भाग अष्टाशीति स्त्री इठ्याशी अशुचिता स्त्री० गंदकी; स्वच्छतानो अष्ठीला स्त्री० गोळ पथ्थर Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ असको ६५५ अस्तब्ध असको वि० आ के ते(२)आ दुष्ट; असांनिध्य न० नजीक नहि होवापणुं; ए दुष्ट [सिद्धांत के आचार गेरहाजरी [नहीं ते असत्पथ पुं० खराब मार्ग (२) खराब असांप्रदायिक वि० परंपरा प्रमाणेअसत्यसंध वि० वचन नहि पाळनाएं; असि अ० 'तुं' के 'ते' (एवा अर्थमां) दगाबाज [फेंकवु ते । असिक्नी स्त्री० जुओ पृ० ५९८ असन पुं० एक वृक्ष (२) न० नाखवू- असिचर्या स्त्री० शस्त्रोनो अभ्यास असपत्न वि० हरीफ पत्नी-शोक विनानुं असितनयन वि० काळी आंखोवाळं (२) हरीफ के दुश्मन नहि तेवू; असितयवन पुं० कालयवन (यादवोनोमित्रताभर्यु (३) शत्रुरहित ; निष्कंटक कृष्णनो एक प्रबळ शत्रु) असमग्रम् अ० पूरेपूरुं नहीं तेम; अधूरुं असिताश्मन् पुं० नीलम असमय पं० मोसम के ऋतू न होवी । असिद्धार्थ वि० कृतकृत्य नहि बनेलं; ते (२) योग्य नहि तेवो समय पोतानुं लक्ष्य सिद्ध न थयुं होय तेवू असमान वि० अजोड; अनुपम असिधारा स्त्री० तलवारनी धार असमाप्त वि० अपूर्ण; अधूरे असिहस्त पुं० जमणा हाथमा राखेली असमायुक्त वि० बराबर नाथेलं के तलवारथी मारवू ते पलोटेलुं नहीं तेवू असुतर वि० दुस्तर; पार न कराय तेQ असवर्ण वि० जुदी जाति के वर्णन असुभंग पुं० प्राणनो नाश; मृत्यु असह्यपीड वि० सहन न थई शकतेवी असुमत् वि० जीवतुं (२) पुं० जीवतुं पीडावाळं प्राणी [नाशवंत असंकल्पित वि० नहि कल्पेलं असुरक्ष वि० रक्षण करवं मुश्केल; असंगचारिन वि० रुकावट विना फरतुं असुरगृह, पुं० देव (असुरनो शत्रु) असंपूर्ण वि० अपूर्ण; आंशिक असुलभ वि० मुश्केलीथी प्राप्त थाय तेवू असंबोध पुं० अज्ञान असुसू पुं० बाण; शर [अनुचित असंभेद्य वि० संबंधमां न लाववा जेवू असुंदर वि० सुंदर नहि तेवू (२) असंमुख वि० विमुख असूय वि० नाखुश असंरोध पुं० ईजा न करवी ते असूयति प० (ईर्ष्या करवी; नाखुश असंविदान वि० अज्ञानी; मूर्ख थएँ; गुस्से थवू) असंवृत वि० उघाडु; खुल्लु असूर्त वि० अप्रेरित (२) अंधारियु असंशब्द्य वि० बोलवा के उल्लेख (३) अवरजवर विनानु; अजाण्यु करवाने अयोग्य असृष्टान्न वि० अन्नदान विनानुं असंसक्त वि० असंबद्ध (२) अनासक्त असेवितेश्वरद्वार वि० धनवानोनां असंहार्य वि० रोकी न शकाय तेवू (२) आंगणां न सेवतुं - न याचतुं बीजे के अवळे मार्गे न दोराय तेवू असौम्यकृत् वि० त्रास आपनाएं असाद वि० नहि थाकेलं; अश्रांत अस्तकरुण वि० निर्दय असारता स्त्री० रस के सार विनाना अस्तगिरि पुं० अस्ताचळ होवापणुं; तुच्छता (२) तात्त्विकता अस्तनिमग्न वि० आथमेलं ; अस्त पामेलं न होवी ते अस्तब्ध वि० दृढ नहि तेवू (२) असाहसिक वि० साहस न करतुं; चालाक ; चपळ ; थाकेलं नहि तेवू (३) अविचारीपणे न वर्ततुं हठीलुं के दुराग्रही नहि तेवू; नम्र Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अस्तम् अस्तम् अ० घेर (२) अस्ताचळ उपर ( ३ ) दूर थाय के अंत आवे तेम अस्तमित वि० आथमी गयेलुं; अंत आव्यो होय तेवुं ; दूर थयुं होय तेबुं अस्तरुषु वि० जेनो क्रोध शांत थयो छे तेबुं [ वीखरायेलुं अस्तव्यस्त वि० वेरणछेरण; आमतेम अस्तशिखर पुं० अस्ताचळनी टोच अस्तसमय पुं० आथमवानी वेळा (२) आखरी घडी. अस्तसंख्य वि० असंख्य अस्त्रग्राम पुं० हथियारोनो ढगलो-समूह अस्त्रभृत् पुं० अस्त्र फेंकनारो; अस्त्रधारी अस्त्रयंत्र न० एक प्रकारनुं अस्त्र अस्त्रवेद पुं० अस्त्र फेंकवानी विद्या अस्त्रिन् वि० अस्त्र वडे लडतुं; अस्त्रधारी अस्थायिन् वि० कायमी नहीं तेवु; नाशवंत अस्थास्तु वि० अधीरुं अस्थिबंधन न० स्नायु [ अत्यंत कठोर अस्थिभेदिन् वि० हाडकाने भेदे तेवुं - अस्थिस्नेह पुं० मज्जा अस्नेहदीपन्यायः जुओ पृ० ६३१ अस्पृष्ट वि० स्पर्श कर्या विनानुं ( २ ) ( शब्दथी ) उल्लेखित नहि तेवुं अत्र पुं० खूणो अस्वर वि० खराब अवाजवाळु ( २ ) अस्पष्ट के धीमा अवाजवाळु अस्वाधीन वि० अस्वतंत्र; पराधीन अहरादि पुं० परोढ; सवार अहदिवम् अ० दररोज ; दिवसे दिवसे अहल्या स्त्री० जुओ पृ० ५९८ अहंजुषु वि० पोतानो ज विचार करना अहं पूर्व वि० प्रथम होवानी इच्छावाळं अहं वि० अहंकारी; स्वार्थी अहंवादिन् वि० पोताने विषे ज कहेतुं ; अहंकारी [ तेवुं होवापणुं अहार्यत्व न० कोई हरी जई न शके ६५६ अंतरय अहिकुंडलन्यायः पुं० जुओ पृ० ६३१ अहिच्छत्रा स्त्री० जुओ पृ० ५९८ अहितहित न० सारं नरसुं अहिमदीधिति, अहिममयूख, अहिमरोचिस् पुं० सूर्य [ शून्यमनस्क अहृदय वि० हृदय विनानुं ( २ ) बेध्यान; अहेतु वि० निष्कारण; कृत्रिम नहि तेवुं; स्वाभाविक अह्न पुं० दिवस ( ' अहन् 'नुं समासमा थतुं एक रूप; जेमके, 'मध्याह्न' ) अही वि० निर्लज्ज (२) स्त्री ० निर्लज्जता अंकुशग्रह पुं० ( हाथीनो) महावत अंगद पुं० जुओ पृ० ५९९ अंग संहति स्त्री० शरीरनो बांधो ; शरीरनी सुरेखता [ राजा - - कर्ण अंगाधिप, अंगाधीश पुं० अंगदेशनो अंगारिन् वि० वेचवा माटे कोलसा तैयार करनारं अंगिरस पुं० जुओ पृ० ५९९ अंगुलित्र, अंगुलित्राण न० बाणावळीओ पछी आंगळीने बचाववा पहेरे छे ते खोळी [ कदनुं अंगुष्ठमात्र वि० अंगूठा जेटलं; तेटला अंघो अ० गुस्सो के दिलगीरी बतावनार उद्गार [वाळी स्त्री अंचित स्त्री० वांकी के सुंदर भमरोअंजना स्त्री० जुओ पृ० ५९९ अंजलिक पुं० अर्जुनना एक बाणनुं नाम (२) उंदरना मुखना आकारनुं बाण अंजलिकर्मन् न० हाथ जोडवा ते; नम्रताथी नमस्कार करवा ते अंजलिका स्त्री० नानी उंदरडी अंजलिकावेध पुं० युद्धनो एक व्यूह अंडक न० नानुं ईंडु (२) घूमट अंतरज्ञ वि० रहस्य के तत्त्व जाणनारं; डा. ; शाणुं ( २ ) अगमचेतीवाळु अंतरतस् अ० अंदर; वचमां अंतरय पुं० अंतराय Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंतरयति ६५७ आकृष्टिमंत्र अंतरयति प० (अंतराय करवो; विरोध (२) सरल (नामनां) वृक्षो अंदर करवो; दूर खसेडी काढवू; धकेलधुं; आवेलां होय तेवू वच्चे आवे तेम करवं; बदली काढवू) अंतेवासित्व न० शिष्य होवापणं अंतरस्थ वि० अंदर रहेलुं (२) बच्चे अंतोष्ठ पुं० अधरोष्ठ; नीचलो होठ आवतुं होय तेवू (३) अंतरमां बेठेलू अंत्यावसायिन् पुं० हलकामां हलकी (जीव) जितुं के फरतुं वर्णनो माणस (चांडाल ने निषादी अंतरिक्षगत वि० आकाशमा-हवामां स्त्रीथी थयेलो) अंगिरम, अंतगिरि अ० पर्वतमा । अंधक पुं० जुओ पृ० ५९९ अंतर्जानुशय पुं० ढींचण वच्चे हाथ अंधकवर्तकीयन्यायः जुओ पृ० ६३१ राखीने ऊंधनारो अंधगजन्यायः जुओ पृ० ६३१ अंतर्दीपिकान्यायः जुओ पृ० ६३१ अंधगोलांगूलन्यायः जुओ पृ० ६३१ अंतधि स्त्री० देखाता बंध थर्बु ते अंधदर्पणन्यायः जुओ पृ० ६३१ अंतर्भ १५० -मां समावेश थवो अंधपरंपरान्यायः जुओ पृ० ६३१ अंतर्मदावस्थ वि० मद झरवानी दशा अंध्राः पुं० ब० व० जुओ पृ० ५९९ अंदर छुपाई रही होय तेवू; मदमत्त अंबरलेखिन् वि० गगनचुंबी ; खूब ऊंचं थवानी तैयारीमा होय तेवं वस्त्र अंतर्वस्त्र, अंतर्वासस् न० अंदर पहेरवान अंबरीष पुं० जुओ पृ० ५९९ अंतर्वेदि (-दी) स्त्री० जुओ पृ० ५९९ अंबरीषक पुं० गुप्त अग्नि अंतश्चर वि० अंदर व्यापेलं - फरतुं अंबष्ठाः पुं० ब० व० जुओ पृ० ५९९ अंतसंश्लेष पुं० सांधो; जोडाण अंबा स्त्री० जुओ पृ० ५९९ अंतःकोप पुं० आंतरिक क्षोभ (२) अंबालिका स्त्री० जुओ पृ० ५९९ आंतरिक गुस्सो अंबिका स्त्री० जुओ पृ० ५९९ अंतःपातित, अंतःपातिन् वि० अंदर अंबुक्रिया स्त्री० पितओने जलांजलि दाखल करेलु के आवेल (२)-मां अंबुवेग पुं० पाणीनो मोटो प्रवाह समावेश थतो होय तेवू अंबकृत न० रीछनो हणहणाट अंतःप्रकृतिप्रकोपज वि० आंतरिक अंभोजयोनि पुं० ब्रह्मा (विष्णुना विखवादथी जन्मेलं नाभिकमळमां जन्मेला) अंतःसरल वि० अंदरखाने सरळ एवं अंमय वि० जलमय ; पाणीनुं बनेलं आ आकंप १ आ० भ्रूजवं; कंपवू आकुलत्व न० भीड (२) व्याकुळता आकंप पुं० भ्रूजवू - कंपवू ते आकुलीकृ ८ उ० भीड करवी; भरी आकंपित वि० धृजेलं; कंपतुं काढवू (२) व्याकुळ कर, आकाशजननी स्त्री० किल्लानी दीवा- आकुंचन न० वांका वाळवू ते ; संकोचवू लमा राखेलं बाकू के संकोचावं ते (२) ढगलो करवो ते; आकाशबद्धलक्ष वि० नजरे न देखाती भेगुं करवू ते (३) एक लश्करी हिलचाल चीज तरफ नजर ताकी होय तेवू आकृष्टि स्त्री० आकर्षण (२) खेंचीने (पागल) वाळवू ते (धनुष्य) [मंत्र आकाशमुष्टिहननन्यायः पुं० जुओ पृ० आकृष्टिमंत्र पुं० आकर्षण करवा माटेनो Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आकेकर ६५८ आदाय आकेकर वि० अर्धं बंध तथा अर्धं आज्यपाः पुं० ब० व० पितृओनो एक खुल्लु एवं (आंख) वर्ग (वैश्यलोकोना) आकोप पुं० हळवो गुस्सो आज्ञाकरत्व न० दासपणु; पराधीनता आकौशल न० कुशळतानो अभाव आज्ञाभंग पुं० हुकम उथापवो ते आक्रांतितः अ० बळजबरीथी आटरूष पुं० एक वृक्ष (अरडूसी) आक्रीडपर्वत पुं० क्रीडा के विहार माटेनो आढयंकरण वि० श्रीमंत बनावनाएं (नानो के कृत्रिम) पर्वत आढयंभविष्णु वि० श्रीमंत बनतुं; आखंडलसूनु पुं० इंद्रनो पुत्र (अर्जुन) अग्रणी बनतुं आख्यात न० प्रयाण करवा माटे शुभ आतपलंघन न० ल लागवी ते मुहूर्त कहेवं ते (मंत्रेला दुंदुभिना आतपवत् वि० सूर्यनो प्रकाश पडतो ध्वनि उपरथी) होय तेवू आख्यायक वि० कहेतुं; समाचार आतपवारण न० छत्र; छत्री आपतुं (२) पुं० संदेशवाहक; दूत आतिथेयी स्त्री० परोणागत (३) छडी पोकारनारो [आपतुं आतिशयिक वि० पुष्कळ ; अतिशय आख्यायिन वि० कहेतं; समाचार आतिष्ठदग अ० गायो दोहवाय त्यां आगत न० आगमन; आवी पहोंचवं ते __ सुधी (सांज पछी कलाक के दोढ आगस्कृत् वि० अपराधी कलाक सुधी) आगस्त्यायन वि० अगस्ति संबंधी आत्मकर्मन् न० स्वकर्तव्य आगरव वि० अगरु संबंधी [ऋत्विज आत्मकृत वि० पोते करेलं आग्नीध्र पुं० यज्ञनो अग्नि सळगावनार- आत्मघातिन् वि० आत्महत्या करनाएं आग्नेय वि० अग्नि संबंधी; अग्नि- आत्मत्राण न० आत्मरक्षण (२) (२) अग्नि जेवू (३)अग्नि प्रज्वलित सिपाई; संरक्षक [होय ते करे तेवू (घी इ०) (४) जठराग्नि आत्मना सप्तम पुं० पोते जेमा सातमो वधारना; (५) न० कृत्तिका नक्षत्र आत्मलाभ पुं० जन्म; उत्पत्ति; मूळ (६) भस्म लगावीने स्नान करवू ते आत्मवत्ता स्त्री० आत्मसंयम (२) आचमनधारिन्, आचमनवाहिन् पुं० शाणपण पाणी भरनारो आत्मवर्य वि० पोताना पक्षनु - वर्गआचारधूमग्रहण न० विधि अनुसार आत्मशक्ति स्त्री० पोतानुं बळ के तेज धुमाडो श्वासमां लेवो ते आत्मसम वि० बरोबरियु; पोताना सरखं आचारलाज पुं० (ब० व०) वधाववा आत्मसंस्थ वि० आत्मामां स्थिर एवं माटे फेंकाती पाणी (राजा इ०ने) आत्मभरि वि० पेटभरं; आपमतलबी आचार्योपासना न० गुरुसेवा [ते आत्मानुगमन न० सेवामां जाते हाजर आचांति स्त्री० मों धोवा कोगळो करवो रहेवं ते आचेष्टित न० माथे लीधेलं; करेलं आत्मोदय पुं० पोतानी उन्नति आच्छादनवस्त्र न० नीचेना भाग उपर आत्रेयी स्त्री० अत्रिकुळमां जन्मेली स्त्री पहेरातुं वस्त्र (उत्तरीयथी ऊलटुं) (२) अत्रिनी पत्नी (३) सगर्भा स्त्री आच्छादिन् वि० ढांकतुं; छुपावतुं (४) रजस्वला स्त्री आच्छुरित वि० मिश्रित (२) नखना मादाय अ० लईने ('साथे' एवा अर्थमां उझरडावाळू पण वपराय छे) Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदालन्य आदालभ्य न० निर्भयता आदितः अ० शरूआतमां; प्रारंभथी आदित्सु वि० लेवानी इच्छावाळं आदिदेव पुं० मुख्य-प्रथम देव(नारायण, विष्णु, शिव, ब्रह्मा) आदिपूरुष पुं० सृष्टिनो अधिष्ठाता (२) विष्णु (३) श्रीकृष्ण आदिभव वि० सौथी प्रथम उत्पन्न थयेलु (२) पुं० ब्रह्मा (३)विष्णु (४)मोटो भाई आदिष्टिन वि० हकम करनारं (२) पुं० शिष्य ; ब्रह्मचारी (ब्राह्मणवर्णनो) (३) प्रायश्चित्त करनारो आदृश १ प० जोवू; निहाळवू -प्रेरक० दर्शावQ [सुधी आदृष्टिप्रसरम् अ० दृष्टि पहोंचे त्यां आदेशकृत पुं० गामनो मुखी आदौ अ० प्रथम ज; प्रथमथी आद्यकालिक वि० मात्र वर्तमान जोनाएं आर्मिक वि० धर्म विरुद्धD; अन्यायी आधाराधेयभाव पुं० आधार के पात्रनो आपेली के मूकेली वस्तु साथेनो संबंध के तेना उपर थती असर आधिरथि पुं० कर्णनुं नाम आष १०प० थोभाववू; अध्धर राख, आधेय न० आधान; मूकवू ते । आनर्तपुर न० जुओ पृ० ५९९ आनर्ताः पुं० ब० व० जुओ पृ० ५९९ आनंदपुर जुओ पृ० ५९९ आनंदि पुं० आनंद; सुख । आनाह पुं० बांधवं ते (२) मळ के मूत्रनो अवरोध [प्रमाणे आनुपूर्येण अ० एक पछी एक; क्रम आनुयात्र न० अनुचर; परिवार आनुसूय वि० अनुसूयाए आपेलं आपगा स्त्री० जुओ पृ० ५९९ आपगेय पुं० नदीनो पुत्र ; भीष्म आपणवीथिका स्त्री० दुकानोनी पंक्ति; बजार आपव पुं० वसिष्ठ आयामवत् आपातदुष्प्रसह वि० जेनो हुमलो असह्य [असह्य एवं आपातदुःसह वि० पहेला हुमला वखते आपूर्ण वि० पूर्ण आप्यान वि० जाडु; मजबूत; स्थूल (२) खुश ; संतुष्ट (३)न० विकास; वृद्धि (४) प्रेम [उमर आबाल्य न० बाळपण सुध्धां (एवी) आब्रह्म अ० ब्रह्मापर्यंत; ब्रह्मा सुध्धां आभंग न० थोडीक वांकी वळेली आकृति आभीराः पुं० ब० व० जुओ पृ० ५९९ आमकुंभ पुं० काची माटीनो घडो आमज्वर पुं० एक प्रकारनो ताव (जेमां बाफ-परसेवो लाववो जोईए) आमलक न० आंबळं आमंत्रित न० वातचीत (२) संबोधन आमिक्षा स्त्री० गरम दूध अने दहींमिश्रण आमित्र वि० शत्रुपक्षीय आमीलन वि० आंखो मींचवी ते आमोदन न० आनंदित करवू ते (२) सुगंधित करवू ते आम्नातिन् वि० वेदविद् ; वेदाभ्यासी अम्नायवत् वि० परंपरागत शास्त्रज्ञानयुक्त आम्रसेकपितृतर्पणन्यायः पुं० जुओ पृ० आम्रड् -प्रेरक० पुनरावृत्ति करवी आयतलेख वि० लांबी रेखावाळं आयतायति स्त्री० लांबो वखत टकी [ते समये आयतीगवम् अ० गायो घेर पाछी फरे आयथातथ्य न० यथायोग्य- यथोचित न हो, ते आयल्लक पुं० अधीराई; उत्कंठा आयस्त वि० पीडा के त्रास पामेलु (२) ईजा पामेलुं (३) न० मोटो प्रयास आयान न० आगमन (२) स्वभाव (३) घोडानो एक शणगार आयामवत् वि० लांबू; विस्तृत _ रहेवं ते Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आयामिन् आयामिन् वि० निग्रह करतुं ( २ ) लांबु दीर्घ (स्थळ के समयनो दृष्टिए) आयासक वि० थकवे तेवुं; कंटाळा भरेलुं [ करतुं ; मयतुं आयासिन वि० थाकेल ( २ ) प्रयास आयुध ४ आ० लडवु, हुमलो करवो आयुधपाल पुं० शस्त्रागारनो रक्षकअधिष्ठाता आयुध पिशाचिका स्त्री० हथियार वापरवानी चळ; लडाईनो आवेश आयुधागार न० शस्त्रो राखवानो ओरडो आयुधीय पुं० योद्धो आयुः शेषजीवित वि० जे हजु लांबु जीववानुं छे ते आयुःशेषता स्त्री० हजु जीववानुं बाकी होय तेवी स्थिति आरकूट पुं० न० पित्तळ आरट्ट पुं० जुओ पृ० ६०० आरण्य, आरण्यक पुं० जुओ पृ० ६०० आरभ्य अ० - थी मांडीने के शरू करीने आरव पुं० बूमाबूम (२) अवाज आवडडिम पुं० एक जातनुं ढोल आरालिक पुं० रसोइयो ( २ ) मदमत्त हाथीओने अंकुशमां राखनारो आरोण वि० पूरेपूरुं सुकाई गयेलुं आरुच् - प्रेरक० पसंद पडवुं; गमबुं आरोपयितृ वि० ( शरीर उपर ) धारण करना; पहेरनारुं आरोपित वि० चडावेलु (२) मूकेलं (३) पणछ चडावेलु आर्जीकिया स्त्री० जुओ पृ० ६०० आर्जुनि पुं० अर्जुननो पुत्र ( अभिमन्यु ) आत्विजीन वि० ऋत्विजना स्थान माटे योग्य एवं [ उतारवा ) आर्द्रपृष्ठ वि० पाणी छांटेलुं (थाक आर्द्रभाव पुं० भीनाश (२) पीगळी जबुं ते ( हृदयनुं) आर्द्रयति प ० ( भीनुं करवुं ) ६६० आशंकित आर्यभट्ट पुं० जुओ पृ० ६०० आर्यावर्त पुं० जुओ पृ० ६०० आल पुं० विष (झेरी प्राणीए काढलं.) (२) छळकपट आलानिक वि० हाथी बांधवाना थांभला तरीके काम देतुं आलीढा स्त्री० रजस्वला स्त्री आलू ९ उ० ( हळवेथी) चूटवुं आलेख्यसमर्पित वि० चीतरेलुं आलोकनीयता स्त्री० ( चित्रनी पेठे ) जोवा-निहाळवानी दशा, स्थिति के योग्यता आवप् १ उ० वेरवुं; विखेखु ( २ ) araj ( ३ ) आहुति आपवी ( ४ ) विधि के अनुष्ठान करवुं (जेम के श्राद्धनुं) - प्रेरक० कापी नाखवं; मूंडवुं (२) ओळ; व्यवस्थित करवुं आवरीत वि० ढांकना आवरीवस् वि० ढांकी देनारुं आवर्तिन् वि० पार्छु फरनारं आवस्थिक वि० परिस्थितिने अनुरूप एवं आवारित वि० चारे बाजुए व्याप्त आविमंडल वि० ( पूरा ) वर्तुळनो आकार प्रगट करतुं ( जलदी बाण छोडवाथी, धनुष्य ) आविलयति प० ( दूषित - मलिन करवुं ) आवीरजा स्त्री० रजस्वला स्त्री आवृत वि० ढांकेल छुपावेलुं (२) घेरालु (३) ढंकायेलुं; व्याप्त (४) पूर्ण ते आव्यक्त वि० स्पष्ट ; समजी शकाय आव्य ४ प० वींध; घायल कर (२) पहेरवुं ( ३ ) ताकीने फेंक (४) फेंकी देवुं ( ५ ) घुमाववुं ( ६ ) हांकी काढ आशक न० खावुं आशंकित वि० जेनो डर राख्यो होय तेवुं ( २ ) शंका राखी होय तेवुं Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आशंकिन् आशंकिन् वि० डर राखतुं; शंका करतुं (२) शंका के भयवाळु आशंसित आशंसिन् वि० इच्छतुं; आशा राखतुं ( २ ) जाहेर करतुं आशाजनन वि० आशा प्रेरतुं [ ६३१ आशामोदकतृप्तन्यायः पुं० जुओ पृ० आशितंभव वि० ० तृप्त करे - धरवे तें (२) न० तेवुं अन्न ( ३ ) न०, पुं० संतोष ; तृप्ति आशिजित वि० खणखण अवाज करतुं (जेम के, हाथपगनां घरेणां ) आशी स्त्री० सापनी दाढ आश्चर्यभूत वि० अद्भुत [ छंटकाव आश्चोतन, आइच्योतन न० सिंचन; आश्य १ आ० सुकावुं; जामी जवं आश्रमगुरु पुं० संप्रदायनो मुखियो आश्रयणीय वि० आशरो लेवा योग्य ( २ ) आचरवा - अनुसरवा योग्य आश्रयिन् वि० - ने आशरे रहेलुं (२) - ते लगतुं; - ना संबंधी ( ३ ) आशरो लेतुं; भजतुं आश्रु ५ प० ध्यानथी सांभळवु (२) वचन आप ( ३ ) स्वीकारवुं पात्र - प्रेरक० आकर्ष; वश करवु आश्वासक वि० विश्वासपात्र ; भरोसा[ करतुं आषाढन् वि० खाखरानो दंड धारण आषाढी स्त्री० अषाढ महिनानी पूनम आसनबंधधीर वि० बेसवाना निश्चयवाळं; स्थिरपणे बेसतुं आसनमचडक न० वीर्य आसनचर पुं० आसपास पासे फरतुं आसन्नपरिचारक पुं० हजूरियो; अंग रक्षक [छे तेबुं आसन्नशरीरपात वि० जेतुं मृत्यु नजीक इक्षुमती स्त्री० जुओ पृ० ६०० इक्ष्वाकु पुं० जुओ पृ० ६०० ६६१ इ इच्छु आसमुद्रांतम् अ० दरिया किनारा सुधी आसंजन न० शरीर उपर पहेरवुं ते (२) वळगवुं - गूंचवावुं ते आसंदी स्त्री० आरामखुरशी ( २ ) सभागृहनुं ऊंचं आसन आसंबाध वि० रूंधायेलुं; व्याप्त आसंसार, आसंसृति अ० सांसारिक जीवनना अंत सुधी; संसारना अंत सुधी ( २ ) आखा. सांसारिक जीवनमां; संसारमा बधे आसिजित वि० खणखणाट करतुं (जेम के, हाथपगनां घरेणां ) आसुरी स्त्री० राक्षसी आस्कंदन न० हुमलो; बळात्कार (२) उपर चडवुं ते; उपर पग मूकवो ते (३) तिरस्कार आस्कंदिन वि० हुमलो करतुं आस्थाननिकेतन न० सभागृह आस्फोटित न० ताळी पाडवी ते (२) हाथ थाबडवा ते आस्माक वि० आपणुं; अमारं आस्त्राव पुं० घा (२) वहेवुं ते आहवन न० यज्ञ आहितुंडिक पुं० मदारी; गारुडी आहिंड् १ आ० भटकवु; रखडवुं आहूतीकृ होम आहुतीभू बलिदान बनवुं आंगारिक पुं० कोलसा पाडनारो ( झाड कापी-सळगावीने) आंजलिक पुं० अर्धचंद्राकार बाण आंजलिक्य, आंजल्यक न० याचना माटे हाथ जोडवा [ ध्रुजाववुं आंदोलय प० हलाववुं; ; हींच; आंध्य न० अंधापो इच्छारत न० इच्छा मुजबनी क्रीडा इच्छु वि० इच्छुक ; इच्छा राखतुं Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतरेतरयोग इतरेतरयोग पुं० एकबीजा साथे संबंध इतिहासनिबंधन न० दंतकथामूलक रचना इतिहासवाद पुं० दंतकथा इतो व्याघ्र इतस्तटी जुओ पृ० ६३१ इत्थंगते अ० आ परिस्थितिमां इरावती स्त्री० जुओ पृ० ६०० इरिण पुं० बरु (२) न० ऊखर जमीन इषुप्रयोग पुं० बाण फेंकवं ते . इष्टकाचित वि० ईंटोनं बनेल इष्टजन पुं० स्नेहीजन; प्रेमीजन (स्त्री के पुरुष) उच्छलत् इंदुमती स्त्री० जुओ पृ० ६०० इंदुवत न० चांद्रायणव्रत इंद्रगोप, इंद्रगोपक पुं० गोकळगाय (एक जीवडु) इंद्रजित् पुं० जुओ पृ० ६०० इंद्रप्रस्थ न० जुओ पृ० ६०० इंद्रयज्ञ पुं० इंद्रने निमित्त एक उत्सव (२) वर्षाऋतु इंद्राणी स्त्री० इंद्रनी पत्नी इंद्रियवर्ग पुं० इंद्रियोनो समूह । इंधन न० बळतण (२) वासना ई ईक्षणश्रवस् पुं० साप; सर्प (आंख ए जेने कानरूप छे) . ईजिकाः पुं०ब०व० एक जातिना लोक ईप्सु वि० प्राप्त करवानी इच्छावाळू (बीजी विभक्ति साथे, अथवा समासमां) ईषत्कार्य वि० सहेलाईथी-थोडा प्रयत्ने थई शके तेवू ईषादंड पुं० हळनो हाथो ईषादंत पुं० हळनो हाथो (२) दंतूशळ उक्थ्य वि० उत्पादक (२) स्तुत्य (३) स्तुति सहित एवं उक्षतर पुं० गोधो; बळद उखा स्त्री० तपेली; हांडी उख्य वि० तपेलीमां रांधेलं उपदंड वि० कठोर; क्रूर (२) पुं० कडक शासन उग्रपूति वि० उत्कट गंधवाळं उग्रसेन पुं० जुओ पृ० ६०० उच्च पुं० ऊंचे स्थान उच्चक्षुस् वि० आंखो ऊंची करी होय तेवू; ऊंचे जोतुं उच्चगिर् वि० मोटा अवाजवाळू उच्चसंश्रय वि० उच्च स्थान वाळू (ग्रह माटे) उच्चंड वि० भयंकर; उग्र (२) झडपी (३) मोटा अवाजवाळु (४) क्रोधी उच्चारणज्ञ पुं० भाषाशास्त्री उच्चित्र वि० स्पष्ट देखातां चित्रोवाळू उच्चुंब्य अ० ऊंचुं करीने चुंबन करीने उच्चैर्भुजतरु वि० हाथ पहोळा कर्या होय तेवा आकारनां वृक्षवाळू उच्चस्तमाम् अ० अतिशय ऊंचं होय तेम (२) घणे मोटेथी उच्चस्तराम् अ० वधु ऊंचे होय तेम उच्छलत् वि० ऊछळतुं; कूदतुं; Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उच्छित्ति ६६३ उत्पाटिन् (२) प्रकाश ; हालतुं (३) देखातुं; उत्तमवता स्त्री० पतिव्रता स्त्री नजरे पडतुं उत्तमाधममध्यम वि० उत्तम कोटीजें, उच्छित्ति स्त्री० उच्छेद; नाश हीन कोटी, अने मध्यम कोटिनुं उच्छंगित वि० ऊंचां शिंगडांवाळू उत्तर पुं० जुओ पृ० ६०० उच्छषण न० शेष वधेलु - रहेलुं ते उत्तरकुरवः पुं० ब०व० जुओ पृ०६०० उच्छायिन् वि० ऊंचं उत्तरकोसलाः पुं०ब०व० कोसल देशनो उच्छि -प्रेरक० वधारवं (२)ऊंचुंकरवू उत्तरनो भाग [आच्छादन उच्छ्वसन न० ऊंडो श्वास लेवो ते उत्तरच्छद पुं० पथारी उपरनी चादर(२) (२) ऊंचुं थq - ऊपसवं ते (३) उत्तरण न ओळंगq - पसार करवू ते ' ढीलुं थर्बु ते; छूटी जq ते उत्तरदायक वि० उद्धत; सामो जवाब उच्छ्वासिन् वि० श्वास लेतुं (२) आपतुं ऊछळतुं; ऊंचे-नीचुंथतुं (३)निसासा उत्तरपंचालाः पुं० जुओ पृ० ६०० नाखतुं (४) झांखु पडतुं; ऊडी जतुं उत्तरवस्त्र न० उपर पहेरवानो झम्भो उज्जयंत पुं० जुओ पृ० ६०० उत्तरंग पुं० ऊंचं चडेलं मोजें उज्जयिनी स्त्री० जुओ पृ० ६०० उत्तरा स्त्री० जुओ पृ० ६०० उज्जिहाना स्त्री० एक नगरी । उत्तराधरौ पुंद्वि०व० उपरनो अने उतथ्यानुज पुं० बृहस्पति (देवोना नोचेनो ओठ . आचार्य) उत्तरारणि स्त्री० अग्नि प्रगटाववा उतूलाः पुं० ब०व० एक जातिना लोको . वपरातां अरणिनां बे लाकडांमांथी उत्कयति प० (उत्कंठित करवू; उद्विग्न रवैयानी पेठे फेरववानुं उपरनुं लाकडं करवू) उत्तंस वि० जीभने उत्तेजक एवं; उत्कल पुं० जुओ पृ० ६०० चटाकेदार (२) पुं० जुओ पृ० ९२ उत्कंठते आ० (आतुर थवू; झंख) उत्तंसयति प० (वाळने बांधवा; कलगी उत्कंप वि० कंपतुं (२) पुं० कंप; तरीके वापर; शोभावq) ध्रुजारी; क्षोभ उत्तानपाद पुं० जुओ पृ० ६०० । उत्कार पुं० धान्य ऊपणवू ते (२) उत्तानशय वि० चत्तुं सूतेलं . धान्यनो ढगलो करवो ते उत्तानित वि० ऊंचुकरेलु (२) उघाडेलु उत्कूर्चक वि० हाथमां कूचडो होय तेवू (३) फेलावेलु उत्कूलित वि० किनारे धकेलायेखें। उत्तेजना स्त्री० उश्केरवं ते (२) धार उत्कोचिन् वि० रुश्वतखोर; लांचियु ___ काढवी ते उत्क्रुष्ट न० बूम; पोकार उत्थात वि० उत्पन्न थतुं; ऊठतुं उत्क्रोशपात पुं० एक प्रकार- नृत्य उत्थानशीलिन् वि० उद्यमी उत्क्लेद पुं० भीनुं थर्बु ते उत्थाथिन् वि० ऊठतुं ; बहार नीकळतुं; उत्क्वथ् -कर्मणि० काढानी रीते देखातुं उकाळावं - ऊकळवू उत्पतित वि० ध्वस्त; नष्ट [ऊडतु उत्क्षेपण न० ऊंचकवू - ऊंचुं करवं ते उत्पतिष्णु वि० ऊंचे जतुं; ऊछळतुं; उत्खचित वि० गूंथेलं - वणेलुं - जडेलु उत्पाटिन् वि० (समासने अंते) उखेडी उत्तमगुण वि० उत्तम गुणवाळं; श्रेष्ठ नाखतुं; खेंची काढतुं Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्पातपवन ६६४ उत्पातपवन, उत्पातवात पुं० आंधी उत्पादित वि० उत्पन्न करेलं उत्पीडग न० दाबवू; दबाव उत्सवसंकेताः पुं० ब० व० हिमालयमां वसती एक जंगली जातिना लोको उत्संकलित वि० परवानगी आपेलं उत्संगित वि० संबंध-संसर्गमां आवेखें; सहित ; व्याप्त (२) खोळामां लीधेलं उत्सास्ति वि० नाश करेलु (२) तेल वगेरेयी मालिश करेल के सुगंधित करेलु [माटेनी योजना उत्साहवृत्तांत पुं० उत्साहित करवा उत्साहहेतुक वि० उद्यम करवा उत्साहित करनाएं उत्सुकयति प० (उत्सुक के आतुर करवू) उत्सूर्यशायिन् वि० सूर्योदय समये पण ऊंघतुं - सूई रहेतुं उत्सेकिन वि० ऊभरातुं; अतिशय एवं (२) गर्विष्ठ ; उद्धत उत्स्वप्नायते आ० (ऊधमां वात करवी; अमूझणने कारणे स्वप्नु आवq) उदकक्रिया स्त्री० पितृतर्पण; पितओने जलांजलि अर्पवी ते उदकग्रहण न० पाणी पीवं ते उदकप्रदेश पुं० जळसमाधि लेवी ते उदकशील वि० स्नान करनारुं उदगावृत्ति स्त्री० उत्तरमाथी पाछा फरव ते उदयनज पुं० हाथ जोडवा ते ; अंजलि उदनयति प० (स्पष्ट देखाई आवे तेम प्रगट करवू) उदन्यति प० (पाणी सींचवू; तरस्या थवू) उदमंथ पुं० जवनुं पाणी - एक मिश्रण उदयक्रम पुं० क्रमे क्रमे वधारवू ते उदयगिरि पुं० जुओ 'उदयाद्रि' उदयन पुं० जुओ पृ० ६०० उदयाद्रि पुं० उदयाचळ (सूर्य-चंद्र ज्यांची ऊगता मनाय छे ते पूर्व तरफनो पर्वत. तेथी ऊलटो अस्ताचल) उदयिन् वि० ऊंचे चडतुं (२) नीकळतुं; वहेतु उदयेंदु पुं० इंद्रप्रस्थ नगर उदवज पुं० पाणीना धोध के झापटा रूपी बज उदवसित न० घर; निवासस्थान . उदवास पुं० पाणीमां ऊभा रहे के वसवं ते उदवासिन् वि० पाणीमां ऊभु रहेतुं उदश्वित् न० दहीं जेटलं ज पाणी मेळवीने करेली जाडी छाश उदानी आ० उन्नत - ऊंचं करवू उदारचरित वि० उत्तम चरित्रवाळं उदारदर्शन वि० सारा देखाववाळं (विशाळ आंखोवाळु) उदारधी वि० असाधारण बुद्धिशाळी (२) उदारचरित [अलौकिक उदाररमणीय वि० भव्य अने रम्य; उदारवृत्तार्थपद वि० उत्तम शब्द, अर्थ अने छंदवाळू उदारसत्त्वाभिजन वि० उत्तम चारित्र अने कुळवाळू उदासित वि० निरपेक्ष; उदासीन उदीर्णवेग वि० अतिशय वेगवाळू उदूढ वि० परणेलं (२) मेळवेलं; प्राप्त करेलु (३) ऊंचुं; ऊपसेलु (४) पुष्ट ; जाडं (५) अतिशय उदेजय वि० कंपावनाएं; ध्रुजावनाएं उदेजया स्त्री० मूंझवण; क्षोभ उदेष्यत् वि० वधतुं; उदय पामतुं उद्गद्गदिका स्त्री० निसासा नाखवाते उद्गाढ वि० ऊंडु; गाढ; पुष्कळ उद्गुर ६ आ० धमकाववा माटे अवाज के शस्त्र ऊंचां करवां - उगामवां उद्गुर्ण वि० उगामेलु उद्घ पुं० उत्तमता; श्रेष्ठता (समासने ___ अंते; उदा० 'ब्राह्मणोद्ध' उत्तम के श्रेष्ठ ब्राह्मण) (२) सुख (३) अग्नि Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्घट्टित उद्घट्टित वि० उघाडी नाखेलुं (ताळु इ० खोलीने) (२) जुदु - छूटुं पाडेलुं उद्घन पुं० सुतार लाकर्ड घडती वेळा नीचे राखवा वापरे छे ते डीमचुं उद्घर्षण न० घसवुं ते (२) कठण पदार्थथी चामडी घसवी ते उदंडित वि० ऊंचुं करेलुं (दंड इ० ) उद्दान न० पकडवं ते; बांधवुं ते (२) वश करते [ कलंक चडावीने उदूध्य अ० जाहेरमा आळ मुकीने - उद्देशतः अ० दृष्टांतरूपे ; सारांशमां ( २ ) स्पष्टताथी; उद्देशीने उद्धारकविधि पुं० परत करवानी रीत ( करजने) उधृति स्त्री० उद्धार (पापमांथी) उद्ध्य पुं० एक नदीनुं नाम उद्बंधनी स्त्री० गळे फांसो खावानुं दोरडुं [ काढवु उब्बूह, १, ६ प० ऊंचं करवुं; बहार उद्भावयित वि० ऊंचे चडावनारूं; उन्नतिकर उद्भ्रम् १, ४ प० भटकवुं भमवु उद्यति स्त्री० उद्यम उद्यमन न० ऊंचुं करवुं ते (२) उद्यम (३) प्रयोग; उदाहरण उद्यमभृत् वि० उद्यम करनारं उद्यमित वि० उद्यम करवा प्रेरायेलुं उद्यानपाल पुं० माळी ; बगीचानो रक्षक उद्योजित वि० चडी आवेलुं; एकठं थयेलुं ( वादळ ) उद्रिक्तचेतस वि० उच्च के उदार चित्तवाळु (२) गर्विष्ठ उद्वम् १ ५० वमन करबुं; ऊलटी करवी (२) उच्चारखुं ( वरदान ) ; पाडवुं ( आंसु ) उद्वह्नि वि० तणखा फेंकतुं उद्वाश् रडतां रडतां पोकावुं उद्वांत वि० वमन करेलुं (२) च्युत थयेलुं; नीकळी पडेलुं ६६५ उपक्षेपण उद्वेगकर वि० उद्वेग करावना; चिंता के क्षोभ उपजावनारुं उद्वेजयितृ वि० उद्वेग करावे तेवुं उन्नतत्व न० उन्नतपणुं भव्यता उन्नतिमत् वि० ऊपसी आवेलुं; भरावदार (२) ऊंचुं; भव्य उन्नद् १ प० मोटेथी गर्जवुं उन्नम्र वि० ऊंचं (२) टटार उन्नस वि० ऊंचा नाकवाळं उन्नाथ पुं० ढगलो (२) ऊंचाई उन्नाल वि० दांडो ऊंचो देखातो होय तेवुं उन्नेय वि० अनुमान करवा योग्य उन्मज्जक पुं० गळा सुधी पाणीमां रही तप करना [ करवुं उन्मनीकृ ८ उ० क्षुब्ध, खिन्न के अस्वस्थ उन्मनीभू १ प० क्षुब्ध, खिन्न के अस्वस्थ थवुं [ फांदो उन्माथ पुं० तीव्र वेदना ( २ ) जाळ; उन्मादयितृक वि० उन्मत्त मोहित करे ते - उन्मार्गम् अ० ऊंधे रस्ते; अवळे मार्गे उन्मार्जन न० लुछी काढवुं - भूसी काढबुं - दूर करवुं ते उन्मीलित वि० उघाडे लुं(२)खीलेलुं; विकसेलुं (३) चीतरेलुं उन्मुखता स्त्री० इंतेजारी; उत्कंठा उन्मूलवि० मूळमाथी उखेडी नाखेलुं उन्मेषिन् वि० चमकतुं उपकर्ण १० उ० सांभळवं उपकर्मन् न० जनोई देती वखते बटुकनुं माथु संघवामां आवे छे ते विधि उपकारक वि० उपकार करना; मददगार उपक्रम्य वि० हाथमां लेवा - प्रारंभ करवा योग्य ( २ ) मटाडी शकाय बुं (रोग) उपक्षय पुं० शिव (२) खर्च ; व्यय उपक्षेपण न० उपेक्षा; बेदरकारी ( २ ) निंदा (३) फेंकवुं - नीचे नाखवुं ते Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपगति ६६६ उपरोधक उपगति स्त्री० नजीक जq ते; पासे भवदूं; साक्षात् करवू .. आवq ते उपनम्र वि० पासे आवतुं; हाजर थतुं उपगामिन् वि०. नजीक आवतुं . उपनिधि पुं० थापण तरीके सोपेली उपग्रस् १५० ग्रसी- गळी जवं. वस्तु (२) कपट; छळ उपग्राह्य वि० अनुग्रह करवा के उपनिर्गमन न० बहार जवानो मार्च नोकरीमा चालु राखवा योग्य (२) उपनिवेशित वि० वसावेलुं; स्थापेलु पुं० नजराणुं राखेलु - [लागवू उपघ्रा प० सूंघवू; मों. वडे स्पर्श . उपनिषेव् आ० -मां लीन थq; - उपचक्र पुं० एक प्रकारन चक्रवाक पंखी उपनेतव्य वि० पासे लाववा योग्य (२) उपचर्य वि० सेवाचाकरी के आदर नोकरीए राखवा योग्य . करवा लायक उपन्यस्त न० छाती आगळ हाथ उपचारपद न० केवळ खुश करवा वाप- राखवा ते (लडवानो एक दाव) रेल - औपचारिक - शब्द उपप्रलोभन न० ललचावq ते (२) उपच्छंद पुं० आवश्यक साधनसामग्री लांच; बक्षिस - (२) समजावट; आजोजी उपप्लविन वि० संकटग्रस्त ; पीडित (२) उपजप १ प० कानमां खानगी रीते जुलम सहन करतुं समजावीने पोताना पक्षमा लई लेवू उपप्लव्य न० मत्स्यदेशनी राजधानी (२) दगो, कावतरं के बळवो करवा उपभृ ३ उ० वहन करवं; ऊंचकवू माटे उश्केर उपमाद्रव्य न० उपमा आपवा वपराती उपजिगमिषु वि० नजीक जवा इच्छतुं वस्तु उपजीव्य वि० निर्वाहनुं साधन पूरे उपमद् ९ उ० मर्दन करवं; कचरी पाडनाएं (२) पुं० जेमांथी पोताने नाखवू; टुकडा करवा; नाश करवो लखाण माटेनुं वस्तु के सामग्री मळी उपमेखलम् अ० ढोळाव के बाजु उपर रहे ते (३) न० निर्वाहनुं साधन उपयाच् १ उ. याचना करवी; मागवू उपतट पुं० धार; किनारी; सरहद उपयाचित वि० याचेलं; मागेल (२) उपतपन वि० संतापना; पीडनाएं न० याचना; आजीजी (३) देवनी उपदातृ वि० आपनाएं; बक्षनाएं बाधा तरीके मानेली वस्तु (बलिदान उपदीक ८ उ० बक्षिस तरीके आपवू तरीके आपवानी) (४) बाधा; मानता उपदृश् १ प० जोवू; निहाळवू उपयाचितक न० जुओ 'उपयाचित' न० -प्रेरक० दर्शावq; बतावq (२) उपयाज पुं० यज्ञोना पुरवणी मंत्र : रजू करवं; जाण करवं; -सामे मूकवू उपरथ्या स्त्री० नानो रस्तो (घोरी उपदेशता स्त्री० नियम; सिद्धांत (२) __ मार्गथी ऊलटो) शिक्षण; उपदेश उपरितल न० उपरनो भाग उपधानीय न० उशीकुं उपरुद्ध वि० डखल-रुकावट-अटकायत उपधायिन् वि० उशीका तरीके वापरतुं करायेलं (२) ढंकायेलं; आच्छादित; उपधृ १, १० प० धारण करवू; टेको छुपायेलं (३) पुं० केदी; बंदीवान आपवो; वहन करवू (२) मानवू; उपरोधक वि० अटकायत-रुकावट धार; गणवू (३) समजवू; अनु- करनाएं (२) घेरतुं; वीटळातुं Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६७ उपरोधिन् उपरोधिन् वि० रुकावट-अटकायत करनार उपलक्ष्य वि० मेळववा योग्य; प्राप्त करी शकाय तेवू (२) प्रशंसनीय ; भलामण करवा योग्य उपली ४ आ० नजीक पडवू; वळगq उपवद् १ आ० मनावq; समजाव; खुशामत करवी करवं उपवर्ण १० प० विगतवार वर्णन उपवस् १५० निवास करवो (२) उपवास करवो [रागनुं मंडाण उपवहन न० गावानुं शरू करता पहेलां उपवंचित वि० छेतरायेलं; निराश करायेलं उपवीज १५० पंखो नाखवो उपवीणयति प० (देव समक्ष वीणा वगाडवी) उपवीणित न० वीणा साथे गावं ते उपशम् ४ प० शांत पडवू; शांत थर्बु (२) बंध पडq (अग्नि, अवाज, कोप) उपशल्य पुं० भालो; खीलो (बारणानों) उपशाय पुं० वाराफरती सूq ते (पहेरो भरतां) उपशायिन् वि० नजीक सूतेलु (२) ऊंघतुं; सूतुं (३) शांत पाडतुं (४) वाराफरती जागीने पहेरो भरतुं उपशर वि० शूर करतां हीन कोटी, उपशोभा स्त्री० शोभाशणगार उपशोष पुं० सूकवी नाखवू ते ; करमावी नाखवं ते उपसर पुं० सळंग पंक्ति (२) गर्भाधान माटे पासे जq (सांढ-) उपसर्या स्त्री० गर्भाधान माटे तैयार थयेली गाय उपसंग्रह. ९५० अनुभवq; वेठवू (२) स्वीकारवू (३) पकडवू (४) कबजे लेवू (५) जीती लेवू; मनावी लेवू (६) भेटवू [होय तेम उपसंध्यम् अ० लगभग संध्याकाळ उपाग्निका उपसंभाष पुं० वार्तालाप; वातचीत (२) सांत्वन [शोभीतुं; पूर्ण उपसंस्कृत वि० रांधेलं; तैयार करेलु (२) उपसंहित वि० युक्त; सहित (२)संबंधी उपसांत्व १० प० शांत पाडवू उपस्कार पुं० पूर्ति; पुरवणी (२) अध्याहार (३) शणगारवं ते (४) शणगार (५) स्वाद इ० माटेनी मसालानी वस्तु [छोडतुं उपस्नुत वि० दूझतुं; दूधनी धारा उपस्नेह पुं० भीनुं थवं ते उपस्नेहयति प० (स्नेह करतुं थाय तेम करवू) उपस्पृश् ६५० स्पर्श करवो (पाणीने); नाह (२)कोगळा करवा (३) छांटवू उपस्मृति स्त्री० स्मृतिशास्त्रनो गौण ग्रंथ (१८ मनाय छ) [उष्णता उपस्वेद पुं० परसेवो (२) गरमी; उपहतदृश् वि० झंखवाई गयेलं; आंधळं थई गयेलं उपहन २ प० मारवं; ठोकवू (२) व्यय करवो; नाश करवो (३) -मां खोस (४) पाठ करी जवामां भूल करवी उपहव पुं० आमंत्रण; बोलाव ते उपहस्तिका स्त्री० पानसोपारीनो वाटवो उपहारिन् वि० आपतुं; वक्षतुं ; लावतुं (२) होमतुं; वधेरतुं; बलिदान आपतुं [वानो बलि उपहार्य न० देव-पित आदिने आपउपहास्यता स्त्री० उपहास के हांसीने पात्र थवा के होवापर्यु उपह्वर पुं० एकांत स्थान (२) सांनिध्य उपह्वे १ आ० आह्वान करवू (२) बोलाव, उपाकृत वि० मंत्रथी पवित्र करेलु (२) अशुभ (३) उपयोगमा लीधेलु (४) पीड़ित; व्याकुळ [पत्नी उपाग्निका स्त्री० विधिसर परणेली Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपाघ्रा चूमवं ६६८ ऊर्ध्ववाल उपाघ्रा प० सूंघq (२)होठ लगाववा; उरुजन्मन् वि० खानदान कुटुंबमां जन्मेलु [मशहूर थयेलं उरुसत्त्व वि० महा बळवान उपात्तवर्ण गीतमां गायलं; गीतमां उर्वशी स्त्री० जुओ पृ० ६०० उपाधि पुं० अवेजी; बदलीमां मूकेलो उलपी स्त्री० जुओ पृ० ६०१ माणस [आलिंगेलं उललध्वनि पुं० लग्नादि उत्सव वखतनो, उपाश्लिष्ट वि० पकडेलं; जकडेलं ; खास करीने स्त्रीओना गीतनो उपासंग पुं० सांनिध्य (२) ढगलो (३) ध्वनि हाथी, घोडा उपर मुकातो भाथो उल्बणरस पुं० वीर रस उपासीन वि० -नी नजीक बेठेलु (२) उल्लक पुं० एक प्रकारनो दारू सरभरा करतुं उल्ललयति प० (ऊछळवू; कूदq) उपास्तमन न० सूर्यास्त उल्लंबू (उद्+लंब्) टटार ऊभा रहे, उपास्ति स्त्री० उपासना; सेवा; पूजा उल्लापिक वि० दर्शावतुं; सूचवतुं उपास्थित वि० चडेलु; ऊभेलं (२) (२) पुं० लेप; थर तहेनात-सरभरा-पूजा करतं (३) उल्लेखिन् वि० खणतुं ; खोतरतुं तृप्त थयेल के करेलु उशनस् पुं० जुओ पृ० ६०१ उपांतिक न० नजीकचें; पासेनुं उशीनर पुं० जुओ पृ० ६०१ उपेयिवस् वि० पासे गयेलुं के पहोंचेलं उषा स्त्री० जुओ पृ० ६०१ [६३१ उपोढ वि० वृद्धिंगत; संचित (२) उष्ट्रकंटकभक्षणन्यायः पुं० जुओ पृ० नजीकनु; नजीक लावेलु (३)आरंभेलु उष्ट्रलगुडन्यायः पुं० जुओ पृ० ६३१ (४) परणेलु उष्णवारण पुं०, न० छत्री; छत्र उपोढा स्त्री० बीजी-मानीती स्त्री उष्णा स्त्री० गरमी (२) पित्त । उभयविभ्रष्ट वि० बनेमांथी भ्रष्ट उष्णालु वि. गरमी सहन न करी थयेलं; बंने गुमावी बेठेलं शकतुं; गरमीथी त्रासेलु उभयवेतन वि० विश्वासघाती; बंने उष्णीषिन् वि० मुगटधारी पक्ष पासेथी पैसा लेतुं उष्णोदक पुं० गरम पाणी (२) अंगमर्दक उमाकांत पुं० शिव उष्णोष्ण वि. अत्यंत गरम उरच्छद पुं० छातीनुं बख्तर उस्ता स्त्री० उषा; परोढ (२) गाय उरुकीर्ति वि० प्रख्यात; जाणीतुं उंछ पुं० (खेतरमां पडेला) दाणा उरुग्राह पुं० मोटो निग्रह वीणवा ते ऊविशति स्त्री० ओगणीस ऊनाशीति स्त्री० अगण्याएंशी ऊरी अ० संमति के स्वीकार बतावे (जुओ उररी') ऊरूद्भव वि० साथळमांथी जन्मेलं ऊर्जमेष वि० अति बुद्धिशाळी ऊर्ध्वकर्ण वि० ऊभा करेला कानवाळू ऊर्ध्वपाद न० एक प्रकारनुं नृत्य ऊर्ध्वमूल वि० ऊंचे मूळवाळं ऊर्ध्ववाल न० चमरीपुच्छ Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊर्ध्वशोषम् ऊर्ध्वशोषम् अ० उपरनुं सूकवी नाखे तेम ऊर्मिका स्त्री० मोजुं (२) आंगळीए पहेरवानी एक जातनी वींटी (पाणीना तरंगनी जेम चमकती ) ऊर्मिला स्त्री० जुओ पृ० ६०१ ऊषरवृष्टिन्यायः पुं० जुओ पृ० ६३१ ऋक्षवत् जुओ पृ० ६०१ ऋक्षहरीश्वर पुं० सुग्रीव ( रींछो अने वानरोनो राजा ) ऋज्वायत वि० सीधुं - टटार एवं ऋणकर्तृ वि० देवुं करनारं ऋणनिर्मोक्ष पुं० ऋणमांथी मुक्त थवुं ते ( पूर्वजो इ०ना) ऋतुजुष स्त्री० ऋतुकाळे समागम करती स्त्री (जेथी संतान थाय ) ऋतुपर्ण पुं० जुओ पृ० ६०१ ऋद्धित वि० समृद्ध करेलुं एक न० मन ( २ ) एकम एककुंडलिन् पुं० कुबेर एकचित्त न० एक विषय उपर चित्तनुं एकाग्र थवं ते ( २ ) एकमती एक वि० एकलुं जन्मेलुं (२) एकलुं ऊगेलं (वृक्ष) एकताल वि० एक ज ताडवृक्षवाळं एकपक्ष पुं० एक पक्ष ( २ ) एक दृष्टिबिंदु एकपदे अ० अणधार्यं; ओचितुं एकपिंग, एकपिंगल पुं० कुबेर ( एक आंखने बदले पीळं चाठं, पार्वती उपर कुदृष्टि करवाने लीधे शापथी थयेलुं ) एकपुरुष पुं० परमात्मा; परमपुरुष ६६९ ऋ ए ऊषरायते आ० थबुं - जेथी थई शके) एकसंस्थ (ऊखर जमीन जेवा वासनाओ ऊभी न ऊष्मप वि० गरमागरम अन्ननी वराळ पीतुं ( २ ) पुं० पितृओनो एक वर्ग ऊष्माण न० वराळ ऋद्धिमत् वि० समृद्ध ऋभु पुं० देव (२) देवो जेने पूजे छे ते देव (३) देवोना अनुचरोनो एक वर्ग ( ४ ) रथकार ऋश्य पुं० धोळा पगवाळं हरण ऋषभक पुं० एक पर्वत ( २ ) सांढ ऋषिक पुं० जुओ पृ० ६०१ ऋष्यमूक पुं० जुओ पृ० ६०१ ऋष्यवत् पुं० जुओ पृ० ६०१ ऋष्यशृंग पुं० जुओ पृ० ६०१ एकपुष्कर पुं० एक वाजित्रनुं नाम एकप्रहारिक विo एक ज प्रहारथी मृत्यु पामेलुं एकरथ पुं० प्रखर योद्धो एकरश्मि वि० प्रकाशमान एकरूपता स्त्री० समानता एकलव्य पुं० जुओ पु० ६०१ एकवेणीधरा स्त्री० पतिना वियोगमां केशने सेंथो पाड्या विना एक ज जूडामां बांधी राख्या होय तेवी स्त्री एकशल्य पुं० एक प्रकारनी माछली एकस्थ वि० एक स्थळे केंद्रित थयेलं; एक ज व्यक्तिमा रहेलुं एकसंस्थ वि० एक स्थळे रहेतुं Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकस्थान एकस्थान न० ए ज स्थान (२) नजीक - नजीक आवेलुं - ऊभेलुं होवुं ते एकादशन् वि० अगियार एकानविंशति स्त्री० ओगणीस एकासाशीति स्त्री० अगण्याएंशी एकावली स्त्री० मोती के मणकानी एक ज सेर एकाहार्य वि० एक ज आहारवाळं; भक्ष्याभक्ष्यनो भेद न करतुं एकांश पुं० जुदो विभाग - खंड एकैकम् अ० एक पछी एक एकोनविंशति स्त्री० ओगणीस एकोनाशीति स्त्री० अगण्याएंशी ऐकगुण्य न० सादा एकमरूप होवुं ते ( बेगणुं - त्रण गणुं नहीं ) ऐकमुख्य न० पूरेपूरुं मालकीपणुं (२) ताबेदारी ऐकांतिके एकांतमां; खानगीमां ऐक्ष्वाक पुं० इक्ष्वाकुनो वंशज ( २ ) इक्ष्वाकुना वंशजोनो देश ओघवती स्त्री० जुओ पृ० ६०१ ओजायते आ० ( पराक्रम दाखववुं ) ओत वि० वाणानी रीते वणायेलुं ओतप्रोत वि० ताणा - वाणानी पेठे वाईने एक थयेलुं ओरंफ पुं० मोटो वलूरो - घसरको औक्षक न० बळदोनो समूह औचथ्य वि० उतथ्यना वंशनुं - गोत्रनुं औडव वि० ताराओनुं ६७.० ऐ ओ औ औत्पातिक एतद्योनिन् वि० ए ज जेनुं समान उत्पत्तिस्थान छे बुं एता स्त्री० हरणी एतावन्मात्र वि० एटला कदनुं; एटलं एधित वि० वधेलुं; विकसेलं ( २ ) उछेरवामां आव्युं होय तेवुं; उछेरैल एवमादि वि० एवा गुणधर्मवाळं; एवा प्रकारनुं एवंगुण वि० एवा गुणवाळं एवंप्राय वि० ए प्रकारनुं; ए जातनुं एवंवादिन् वि० एम बोलतुं एब् १ उ० पासे जवुं (२) सरकवूं (३) जाणवुं ऐषीक वि० बरु के नेतरनुं बनावेलु ऐंगुद वि० इंगुदी वृक्षनुं (२) न० इंगुदीनं फळ ऐंद्रशिर पुं० एक जातनो हाथी ऐंद्राग्न वि० इंद्र अने अग्नि संबंधी ऐंधन वि० बळतणथी उत्पन्न थयेलं (अग्नि) ओषधिज पुं० अग्नि ओषधिप्रस्थ पुं० हिमालयनी राजधानी ओष्ठावलोप्य वि० होठ वडे खवाय तेबुं ओंकार पुं० ॐ प्रणव (२) तेनो उच्चार ( ३) प्रारंभ; शरूआत (ला० ) औत्तंक वि० उत्तंक मुनिनुं औत्पातिक न० भावि उत्पात के अनिष्ट सूचवनारं Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औदक औदक वि० जळचर; जळवासी औदका स्त्री० पाणीथी वींटळायेली नगरी औदरिक वि० जेनुं पेट फूली गयुं छे तेवुं औदर्य वि० गर्भाशयनुं ( २ ) गर्भाशयमां पडेलं (३) पुं० पुत्र औदुंबर वि० उंबराना वृक्षनुं ( २ ) तांबानं (३) न० उंबरानुं फळ -उमरडुं (४) तांबानुं पात्र औपनीविक वि० नीवि - पेट उपर पहेरेला वस्त्रनी गांठ नजीकनुं; त्यां राखेलुं औपयिक पुं०, न० उपाय औपवास्य न० उपवास ककुत्स्थ पुं० जुओ पृ० ६०१ ककुभ पुं० अर्जुन वृक्ष ( २ ) न० कुटज - वृक्षनुं पुष्प कक्कोली स्त्री० कंकोलनो छोड कच पुं० जुओ पृ० ६०१ कच्छांत पुं० सरोवर के नदीनी किनार उपरनी भेजवाळी जगा कज्जलित वि० काजळवाळं - काळं करेलुं के थयेलुं कटपूतना स्त्री० पिशाचीओनो एक प्रकार; एक पिशाच योनि कटभू स्त्री० हाथीनुं गंडस्थल कटांत पुं० गंडस्थलनो छेडानो भाग कटिका स्त्री० केड; कमर कटीरक न० कूलो; ढगरो कटुक न० कडवी वाणी (२) कडवाश (समासने अंते 'खराब' अर्थमां. उदा० दधिकटुकम् - खराब दहीं ) कठकालापाः पुं० ब०व० ( यजुर्वेदती ) कठ अने कालाप शाखाना अनुयायीओ ६७१ कदर्थीकृत १०८) औपसंध्य वि० प्रातःकाळ संबंधी औपस्थितिक पुं० अनुचर; सेवक औपहारिक न० बलि; आहुति; दान औपेंद्र वि० उपेंद्र संबंधी (जुओ पृ० [ कामळो और न० घेटानुं मांस ( २ ) ऊननो औजित्य न० मोटाई; महानता और वि० पृथ्वीतुं धरतीनुं औशीर न० पंखो के चामरनो हाथो (२) पथारी ( ३ ) बेसवानुं आसन (४) उशीर - वीरणवाळानो लेप (५) वीरणवाळो (६) वि० वीरणवाळानं बनावेलुं [ के प्रकाश औषसातप पुं० वहेली सवारनो तडको क कठिन न० कोदाळी ( २ ) माटीनी हांडी कठिनता स्त्री० कठोरता; क्रूरता कठोरगर्भ वि० पुख्त गर्भावस्थावाळु कठोरयति प ० ( मंजरीओ के कळीओथी भरी काढवुं; खिलाववुं ) कठोरित वि० व्यायाम परिश्रमथी दृढ़ के मजबूत बनावेलुं कडंकर, कडंगर पुं० जुदां जुदां कठोळनी asa ( २ ) एक जातनी गदा कणाद पुं० जुओ पृ० ६०१ कण्व पुं० जुओ पृ० ६०१ कथनिक पुं० कथाकार; वार्ताकार कथंवीर्य वि० कया सामर्थ्यवाळु कथानायक, कथापुरुष पुं० वार्तानुं मुख्य पात्र [ विक भाग कथामुख न० वार्ता के कथानो प्रास्ताकथोद्धात पुं० वार्ता के कथानी शुरूआत - प्रारंभ [ तिरस्कारबुं) कदर्थयति प ० ( कनडवुं; क्लेश आपवो; कदर्थीकृत वि० तिरस्कृत Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कदलीफलन्यायः ६७२ फलमगोपवधू कदलीफलन्यायः जुओ पृ० ६३१ करकृतात्मन् वि० दरिद्र; रंक (मांड कदंबकोरकन्यायः, कदंबमुकुलन्यायः हाथमां आवे तेनाथी निर्वाह करतुं) जुओ पृ० ६३१ करटमुख न० हाथीनुं गंडस्थळ ज्यांथी कदंबानिल पुं० वर्षा ऋतु (२)कदंबनां फाटे छे ते जगा पुष्पोथी सुवासित एवो पवन करतोया स्त्री० जुओ पृ० ६०२ कदंबी स्त्री० एक छोड (देवडांगर) करविन्यस्तबिल्वन्यायः जुओ पृ० ६३२ कद्रथ पुं० खराब रथ के वाहन करंबित वि० मिश्रित [हाथी कद्रू स्त्री० जुओ पृ० ६०१ [नीच फरिवर, करीश्वर पुं० गजराज; श्रेष्ठ कद्वद वि० खराब के खोटं बोलतु (२) करुणम् अ० दयाजनक रीते कनककदली स्त्री० केळनो एक प्रकार करूष पुं० कलुषितता; गंदकी (२) कनकदंडिका स्त्री० सोना- म्यान जुओ पृ० ६०२ कनखल न० जुओ पृ० ६०१ कर्का स्त्री० सफेद घोडी कनप पुं० एक अस्त्र - शक्ति कर्ण पुं० एक वृक्ष (२)जुओ पृ० ६०२ कनयति प० (नान करवू; घटाडवू) कर्णक पुं० सफेद वाळ; पळियु कनीयस् पुं० नानो भाई कर्णचूलिका स्त्री० एरिंग कर्णजाह न० कान- मूळ कन्यकाजन पुं० युवान कन्या कर्णज्वर पुं० काननी पोडा कन्यागर्भ पुं० कुंवारी कन्यानो दीकरो कर्णमागम् काने पहोंचq; जाण थवी कन्याभक्ष्य न० कन्यानी याचना करवी ते कर्णमल न० काननुं मूळ कन्यामय वि० कन्यारूपी कर्णलता स्त्री० काननो पुट कन्यारत्न न० अत्यंत सुंदर कन्या कर्णस्रोतस न० काननो मेल- मळ कन्यावतस्था स्त्री० ऋतुधर्ममां आवेली कर्णदा ध्यानथी सांभळवू - रजस्वला स्त्री कर्णीरथ पुं० स्त्री माटेनी बंध पालखी कन्यांतःपुर न० अंतःपुर कर्णीसुत पुं० कर्णीनो पुत्र - मूलदेव कप पुं० राक्षसोनो एक वर्ग (चोरविद्यानो प्रवर्तक) कपटपटु वि० छळकपट के हाथचालाकी कर्दमित वि० कादववाळू (२) कादव मां कुशळ एवं [वाळी सुलेह जेवू घट्ट ययेलुं - जामेलं कपालसंधि पुं० बने पक्षे समान शरतो कर्पर पुं० काचबानुं पीठ उपरतुं हाडकुं कपित्थ न० छाश; तक्र कर्मगति स्त्री० भाग्य के दैवनी गति कपिल पं० जुओ पृ० ६०१ कर्मचंडाल, कर्मचांडाल पुं० अत्यंत हीन कपिलवस्तु न० जुओ पृ० ६०२ कर्म करनाएं कपिशा स्त्री० जुओं पृ० ६०२ कर्मचोदना स्त्री० अमुक कर्म करवा कपिशित वि० रतूमडु बनी गयेलं माटेनो विधि के नियम (२) धर्मकृत्य (तपवाथी) करवा माटेनो प्रेरक हेतू कपोलपत्र न० गाल उपर चीतरेलं चित्र कर्मज वि० कर्म करवाथी परिणमतुं कफोणिगुडन्यायः जुओ पृ० ६३१ - प्राप्त थतुं (२) पुं० स्वर्ग (३) कबंध पुं०, न० पाणी नरक (४) कळियुग कमित पुं० पुरुष; नर; पति कलमगोपवधू स्त्री० डांगरना क्यारडाकयाधु स्त्री० जुओ पृ० ६०२ नी रखवाळण Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कलविशुद्ध ६७३ कामधेनु कलविशुद्ध वि० मधुर अने स्पष्ट कंदल न० ए नामनुं फूल कलविक पुं० एक जातनी चकली (२) कंबलनिर्णेजनन्यायः जुओ पृ० ६३२ डाघ [घटवू ते कंबोजाः पुं० ब० व० जुओ 'कांबोज' कलाक्षय पुं० चंद्रनी कळानुं क्षीण थq- पृ० ६०३ कलाभृत् पुं० चंद्र कंस पुं० जुओ पृ० ६०२ लिंगाः पुं०व०व० एक प्रदेश- नाम कंसकृष् पुं० श्रीकृष्ण (कंसने हणनार) अने तेना लोको; जुओ पृ० ६०२ काकतालीयन्यायः जुओ पृ० ६३२ कलिंदजा स्त्री० यमुना नदी काकवंतगवेषणन्यायः जुओ पृ० ६३२ कलुषमानस वि० दुष्ट मनवाळू; अनिष्ट काकपिकन्यायः जुओ पृ० ६३२ करवानी इच्छावाळु [करवू काकमद्गु पुं० एक जातनी जळकूकडी कलुषीकृ ८ उ० मेलु, झांखु के कलुषित काकयव पुं० अंदर दाणो न होय तेवो कल्प पुं० बळ ; सामर्थ्य वांझियो यव (पोपटुं) कल्पसूत्र न० सूत्रोना रूपमा जुदा जुदा काकाक्षिगोलकन्यायः जुओ पृ० ६३२ विधिओनो संग्रह काक्ष न० गुस्साभरी तीरछी नजर कल्याणी स्त्री० पवित्र गाय काचमणिन्यायः जुओ पृ० ६३२ कवरीभर पुं० सुंदर मोटो अंबोडो काज न० लाकडानी मोगरी (हथोडी) कवलयति प० (खावू;कोळियो करी जवू) कात्यायन पुं० पाणिनिनां सूत्रो उपर कशात्रय न० घोडाने चाबुक मारवानी वार्तिक लखनार विख्यात वैयाकरणी त्रण रीत कादल वि० 'कदली' जातना हरणर्नु कश्यप पुं० जुओ पृ० ६०२ काद्रवेय पुं० एक प्रकारनो साप कष्टतपस् वि० कठोर तपस्या करतुं कानिष्ठिका स्त्री० नानी आंगळी कस्थूलिका स्त्री० ओस; झाकळ कानिष्ठिनेय पुं० सौथी नाना संतानकंकवदन न० पकड; सांडशी; चीपियो संतान (२) सौथी नानी पत्नी- संतान कंकेलि पुं० एक जातनुं वृक्ष (शरदमां कान्यकुब्ज पुं० जुओ पृ० ६०२ फूल बेसे छे) कापालिकत्व न० क्रूरता; बर्बरता कंटक पुं० वांस (के तेवू बीजं झाड) कापालिन् पुं० शिव (२) दोष (३) कारखानु (४) मकर कापाली स्त्री० खोपरीओनी माळा; (कामदेवनुं ध्वजाचिहन) मुंडमाळा (२) चालाक स्त्री कंटकम पुं० कांटाने झाड कापिल वि० कपिलनु; कपिले प्रवर्तावेलु कंठचामीकरन्यायः जुओ पृ० ६३२ । कापिशायन न० मद्य; दारू कंठत्र पुं० हार; कंठी [समान) काम पुं० जुओ पृ० ६०२ कंठनाल न० गळं; कंठ (कमळनी नाळ कामचारिन् वि० यथेच्छ विहरतुं (२) कंठवतिन् वि० कंठे आवेलु (बहार स्वच्छंदी (३) मनस्वी नीकळवानी तैयारीमां होय तेवू) कामज पुं० क्रोध कंठसूत्र न० एक प्रकारचें गाढ आलिंगन कामजित वि० कामविकारने जीतनाएं कंडूयति (-ते) (वलूर,; खंजवाळवू) (२) पुं० स्कंद (३) शिव कंड्यनक पुं० कान खोतरवानी सळी कामदुघ वि० दरेक इच्छा पूरी पाडनारं कंडूयित वि० वलूरनाएं; खंजवाळनाएं कामधेनु स्त्री० जुओ पृ० ६०२ Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६७४ कामरसिक कामरसिक वि० कामी [पृ०६०२ कामरूपाः पुं० ब०व० जुओ कामरूप', कामा स्त्री० कामना; इच्छा कामाख्या स्त्री० जुओ पृ० ६०२ कामाश्रम पुं० कामदेवनो आश्रम कामेश पुं० बधा धननो मालिक; सर्वधनसंपन्न (२) कुबेर काम्यक पुं० एक वन के सरोवरनुं नाम; जुओ पृ० ६०२ काम्यगिर वि० मधुर अवाजवाळं कायक्लेश पुं० शरीरनी तकलीफ; शरीरने पीडा कारणता स्त्री० कारण होवू ते कारणबलवत् वि० हेतुने कारणे दृढ एवं कारणात् अ० -ने कारणे कारणिक वि० न्यायाधीश; परीक्षक(२) कारणरूप; कारणभूत (३) उपदेशक; शीखवनाएं [कराववानुं कारयितव्य वि० कराववानु; अमल कारावर पुं० चामडियो; मोची(निषाद बाप अने वैदेही स्त्रीथी जन्मेलो मिश्र जातिनो मनुष्य) कारीर वि. वांस के बरुना फणगावाळू कारक पुं० कारीगर (सुतार-वणकर हजाम-धोबी-मोची) कारूष न० क्षुधा; भूख (२) पुं० व्रात्यवैश्य पिता अने वैश्य मातानो वचली वर्णनो माणस कार्तयुग वि० कृतयुग - सत्ययुग संबंधी कार्तवीर्य पुं० जुओ पृ० ६०३ कातिकेय पुं० जुओ पृ० ६०३ कार्पटिक पुं० विश्वासु अनुचर (२) यात्राळ (३) पवित्र नदीओन पाणी वहन करीने निर्वाह करनारो माणस (४) यात्रीओनो संघ (५) अनुभवी माणस (६) चालाक के कपटी माणस कार्मणत्व न० वशीकरण कार्यापेक्षिन् वि० कोई कार्य सिद्ध कालिंग करवाना ध्येयवाळं उष्ण कार्शानव वि० अग्नि संबंधी (२)अति काल न० लोखंड (२) एक सुगंध कालकटंकट पुं० शंकर कालकवन न० जुओ पृ० ६०३ : कालकेय पुं० जुओ पृ० ६०३ . । कार्यक्षम वि० विलंब सहन करी शके तेवू [करवो ते कालक्षेप पुं० विलंब (२) समय पसार कालखंड न० काळजूं . कालज्येष्ठ वि० उमरमां मोटें कालत्रय न० त्रण काळ (भूत, वर्तमान, अने भविष्य) कालदष्ट वि० मृत्युग्रस्त; मरवानी तैयारीमां होय तेवू [चक्र कालपर्यायः पुं० काळनी गति; काळनं कालबंधन वि० काळने अधीन । कालमुख पुं० वांदरानी एक जात कालयवन पुं० जुओ पृ० ६०३३ कालयोगतः अ० काळनी गति के मर्यादा अनुसार साप कालसर्प पृ० काळो अने भयंकर झेरी कालसंकर्षिन् वि० काळ - समयने ट्रंकुं करनाएं (जम के तेवो मंत्र के विद्या) कालसंग पुं० विलंब कालसार वि० काळी कीकीवाळू कालंजर पुं० बुंदेलखंडनो एक पवित्र पर्वत (तपस्या माटे जाणीतो) कालापक न० 'कातंत्र' व्याकरण कालाघ्र पुं० एक जातनी केरी . कालांग वि० काळा-भूरा रंगनुं (जेम के तरवार) कालांजन न० एक जातनुं काजळ कालिदास पुं० जुओ पृ० ६०३ कालिय पुं० यमुनानो एक मोटो नाग (श्रीकृष्णे तेने नाथ्यो हतो) कालिंग पुं० कलिंग देशनो राजा (२) ते देशनो एक साप (३) हाथी Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालीयक ६७५ कालीयक पुं०,न० कृष्णागुरु (२)पीळं। कियदेतद् शा उपयोगर्नु ? चंदन (३) एक जातनी हळदर कियदरम् अ० केटले दूर? कावेरी स्त्री० दक्षिण भारतनी एक कियन्मात्र पुं० नजीवी -तुच्छ वस्तु नदी (२) वेश्या (३) हळदर किराताः पुं० जुओ पृ० ६०३ ।। काशेय वि० काशी संबंधी; काशीमां किराती स्त्री० किरात जातिनी स्त्री जन्मेलु [एक छोड (२) चामर ढोळनारी दासी (३) काश्मरी स्त्री० गांभारीनामे ओळखातो पार्वती (४) कुट्टणी काश्मल्य न० मानसिक विषाद ; हताशा किर्मीर वि० काबरचीतरा वर्णन (२) काश्मीरक वि० काश्मीरमा जन्मेलं के पुं० भीमे मारेलो एक राक्षस (३) उत्पन्न थयेलु नारंगीनुं झाड काश्मीरपंक पुं० कस्तूरी किर्मीरित वि० रंगबेरंगी; काबरकाश्यपपुर न० जुओ पृ० ६०३ चीत९ (२) वच्चे वच्चे भळयु होय काश्यपेय पुं० दारुक (कृष्णनो सारथि) तेवू - मिश्रित (२) सूर्य (३) बार आदित्योनुं नाम किलकिलायति (-ते) (दांत ककडाववा; (४) गरुड (५) देवो अने दानवो दांत घसीने अवाज करवो) काष्ठभर पुं० लाकडान अमुक वजन किकिचित न० प्रेमावेशमा हसवूकाष्ठभंगिन पुं० लाकडानो कीडो रडवु-रिसावू ते (प्रेमी साथे) काष्ठभारिक पुं० लाकडां ऊंचकनारो किष्किधा स्त्री० जुओ पृ० ६०३ कांचनसंधि पुं० समान शरतोए कराती किष्कु पुं० स्त्री० एक हाथ जेटलं उत्तम सुलेह [चहेरावाळी स्त्री २४ आंगळy माप (२) मापवानो गज कांचनांगी स्त्री० सुवर्ण समान रंगना किकार्यता स्त्री० 'शुं करवु' एनी समज कांचीगुणस्थान न० कंदोरो ज्यां पहेराय न पडे तेवो प्रसंग छे ते कमरनो के नितंबनो भाग किंकृते अ० शा माटे कांचीपुरी स्त्री० जुओ पृ० ६०३ किचन्य न० मिलकत कांदिग्भूत वि० दिग्मूढ ; गाभएं; किनर पुं० जुओ पृ० ६०३ नासभाग करतुं किनरी स्त्री० किंनर स्त्री कांदिश् वि० नासभाग करतुं किंपुरुष पुं० जुओ पृ० ६०३ कांपिल्य न० जुओ पृ० ६०३ किविवक्षा स्त्री० बदनामी; जूठी निंदा कांपिल्ल, कांपिल्लक पुं० एक जातनुं कीकटाः पुं० ब० व० जुओ पृ० ६०३ वृक्ष (२) एक सुगंध (शुंडारोचनी) कीकस पुं०, न० हाडकुं कांबोज पुं० कांबोजदेश (२) ते देशनो कीटावपन्न वि० कोडा पडेल; जीवडांए वतनी (३) ते देशना घोडानी जात । कोरी खाधेलं [के तुच्छ जंतु कांबोजास्तरण न० धाबळो; कामळो कीटिका स्त्री० नानो कीडो (२) अल्प कांस्य पुं०,न० पित्तळनो के कांसानो कीर्णवर्त्मन् वि० रस्ता उपर वीखरातुं प्यालो पडे तेम करतुं कांस्यदोह, कांस्योपदोह वि० कांसानो । कु २ प० गणगणवू ; गुंजारव करवो हांडो भरीने दूध आपतुं (एक टंके) (२) ९ उ० [कुनाति, कनाति, कियच्चिरम् अ० केटला समय सुधी कुनीते, कूनीते] चीस पाडवी Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुक ६७६ कुविक्रम कुक १ आ० लेवू; स्वीकार; पकडवू कुमारीपुर न० कुंवारी कन्याओ माटेने कुकुराः पुं०ब०व० दशार्ह देशनुं नाम __ ओरडो के अंतःपुर (जुओ पृ० ६०९) (२) यादवोनी कुमुदानन्द वि० (राते खीलतां)कमळोने एक जातिना लोक आनंद आपनाएं- विकसावनाएं कुकूलाग्नि पुं० ढूणसांनो अग्नि कुरंट पुं० एक पीळं फूल । कुक्षिगत वि० पेटमां – कूखमां होय तेवू कुरु पुं० जुओ पृ० ६०४ कुक्षिज पुं० पुत्र [दुराचारी कुरुक्षेत्र न० जुओ पृ० ६०४ । कुचर वि० प्रवास करतुं (२) चोर; कुरुजांगल न० जुओ पृ० ६०४ कुटकारिका, कुटहारिका स्त्री० दासी- कुरुनंदन पुं० अर्जुन नोकरडी [बुद्धिवाळं कुरुपंचालाः पुं० ब०व० जुओ पृ० ६०४ कुटिलमति, कुटिलाशय वि० दुष्ट कुरुराज पुं० दुर्योधन कुटीचक पुं० एक जातनो भिक्षु कुरुविंद पुं०,न० माणेक; रत्न [नाएं (अजाण्या गाममां घेरघेर भिक्षा कुलकलंकित वि० कुळने कलंक लगाड़मागीने जीववाना व्रतवाळो) कुलक्षय पुं० कुळ के वंशनो नाश कुटुंबकलह पुं०, न० कुटुंब साथे थयेलो कुलगृह न० सारं घर; खानदान घर झघडो (२) कुटुंबनो आंतरिक झघडो कुलघ्न वि० कुळघातक; वंशनो नाश कुटुंबभर पुं० कुटुंबनो भार; कुटुंबनी करनाएं [कठोळ संभाळ राखवानो बोजो कुलत्थ पुं० कळथी; एक जातनुं हलकुं कुट्टिम पुं०, न० नाना पथ्थर जडेली कुलदूषण वि० कुळने कलंक लगाडनाएं -फरसबंधी जमीन कुलधर्म पुं० कोई पण कुळनो पोतानो कुडमल न० बाणना फळानी अणी आगवो धारो, रूढि के आचार कुतप पुं० दिवसनुं आठमुं मुहर्त कुलनाशन न० कुळनो नाश करना ते (पंदरमाथी) [सिद्धांत कुलवत पुं०, न० कुळमां चालतुं आवेलं कुतर्क पुं० खोटी दलील (२) नास्तिक व्रत के नियम [स्त्री कुतूहलिन् वि० कुतूहल, उत्कंठा के कुलस्त्री स्त्री० ऊंचा कुळनी-खानदान उत्सुकतावाळं [हेतुवाळू कुलाभिमानिन् वि० कुळ के वंशकूतोनिमित्त वि० कया कारण अथवा अभिमान राखनाएं बेसते कुथ पुं० कुश; दर्भ कुलायनिलाय पुं० माळामां ईंडांने सेववा कुनख न० नखनो रोग कुलांकुर पुं० कुळनो वंशज कुबेर पुं० जुओ पृ० ६०३ कुलिशकर पुं० इंद्र (हाथमां वज कुब्ज पुं० वांकी (कटार जेवी) धारण करनार) तरवार (२) पीठ उपरनी खूध (३) कुलिंदाः पुं० ब०व० जुओ पृ०६०४ एक जातनुं माछलुं ।जतुं कुलताः पुं० ब० व० एक देश के तेना कुब्जगामिन् वि० वांकुंचकुंजतुं विमार्गे राजाओ (जुओ पृ० ६०४) कुब्जलीला स्त्री० खूधा माणसनी चाल कुवम पुं० सूर्य के रीतभात कुवलयित वि० नीलकमळथी शणगारेलं कुब्जा जुओ पृ० ६०३ कुवलयिन् वि० नीलकमळवाळं कुमारी स्त्री० कुंवारी कन्या (१० थी कुविक्रम पुं० खोटी जगाए दर्शावलं १२ वर्षनी) (२) छोकरी; पुत्री पराक्रम Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पणन कुवेधस् ६७७ कृताकृत कुवेधस् पुं० दुर्दैव; कमनसीब कुंतिभोज पुं० जुओ पृ० ६०४ कुशचीर न० दाभनु बनावेलु वस्त्र कुंती स्त्री० जुओ पृ० ६०४ कुशध्वज पुं० जनक राजानो नानो भाई कुंभकर्ण पुं० जुओ पृ० ६०४ कुशमुष्टि स्त्री० दाभनी झंडी कुंभीनसी स्त्री० रावणनी बहेनतुं नाम कुशलिन् वि० सुखी; समृद्ध (२) एक कुंभोदर पुं० शिवना एक पार्षदनुं नाम हलकी कारीगर वर्णन कुंभोलूक पुं० एक जातनुं घुवड कुशस्थली स्त्री० जुओ पृ० ६०४ ।। कू १ आ० [कवते], ६ आ० [कुवते] कुशाग्रीय वि० दर्भना अग्रभाग जेवं; बूम पाडवी; चीस पाडवी । सूक्ष्म - तीक्ष्ण [पृ० ६०४) कूटलेख पुं० बनावटी के खोटो दस्तावेज कुशावती स्त्री० कुशनी राजधानी (जुओ कूपमंडूकन्यायः जुओ पृ० ६३२ कुशील वि० खराब स्वभाववाछु; खराब कूपयंत्रघटिकान्यायः जुओ पृ० ६३२ चारित्र्यवाळु [जमीन कृकल पुं० एक जातनुं पंखी (२) कुष्ठल न० खराब स्थळ (२)धरती; पाचनक्रियामां मदद करतो प्राणकुसुमचित वि० पुष्पोनो ढगलो जेना वायु (३) काचिडो; सरडो उपर करवामां आवेलो होय तेवू; कृतकम् अ० ढोंग करीने ; देखाव करीने पुष्पोथी व्याप्त [वृक्ष कृतक्रिय वि० कृतकृत्य कुसुमद्रुम पुं० पुष्पोथी भरपूर छवायेलं कृतक्षौरस्य नक्षत्रपरीक्षा जुओपृ० ६३२ कुसुमपुर न० पाटलिपुत्र (जुओ पृ० कृतजन्मन् वि० जन्म आपेलं; पेदा ६०४) [करवां करेलु; बीज वावेलुं . कुसुमय प० पुष्पित करवू; फूल उत्पन्न कृततीर्थ वि० सुगमताथी जई शकाय कुसुमशयन न० फूलोनी पथारी - शय्या तेवू करेलु (२) तीर्थयात्रा करेलु (३) गुरु पासे अभ्यास करतुं होय तेवू (४) कुसुमशर पुं० कामदेव कुहलि पुं० नागरवेलनुं पान उपायो शोधवामां पावरधुं । कुहकाल पुं० महिनानो छेल्लो दिवस; कृतनिश्चय वि० जेणे निश्चय कर्यो अमावास्या (ज्यारे चंद्र न देखाय) होय तेवू [हुमलो अने सामनो कृतप्रतिकृत न० आघात अने प्रत्याघात; कुंजरग्रह पुं० हाथीने पकडनारो । कृतप्रयोजन वि० जेणे पोतानो धारेलो कुंजरारोह पुं० महावत हेतु प्राप्त कर्यो छे तेवू कुंडधार पुं० एक मेघ (२) एक नाग कृतवर्मन् पुं० जुओ पृ० ६०४ कुंडपाय्य पुं० यज्ञ कृतव्यावृत्ति वि० पदच्युत करेलु; कुंडलना स्त्री० (शब्दनी) आसपास उतारी मुकेलं कुंडाळं करवू ते (तेने छोडी देवानो कृतशौच वि० पवित्र थयेलू छे के विचारवानो नथी एम दर्शाववा) कृतसंकेत वि० संकेत के वायदो कर्यो कुंडलीकरण न० धनुष्यने अति जोरथी होय तेवू [होय तेवू खेंचq ते (जेथी ते वर्तुळ जेवू देखाय) कृतसंस्कार वि० संस्कारविधि कर्यो कुंडिनपुर न० जुओ पृ० ६०४ कृतहस्तता स्त्री० कुशळता (२) शस्त्र कुंडोनी स्त्री० मोटा अडणवाळी गाय वापरवामां कुशळता; बाणावळीपर्यु (२) पुष्ट स्तनवाळी स्त्री कृताकृत वि० थोडं करेल अने थोडु नहि कुंतलाः पुं० ब० व० जुओ पृ० ६०४ करेलु (अधूरुं) (२) पुं० परमात्मा Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृतोदक ६७८ कोपयिष्णु कृतोदक वि० नाहेलं होय तेवं केलिपल्लव न० क्रीडा माटेनुं तळाव कृतोपकार वि० मदद के अनुग्रह कर्यो केलिवन न० क्रीडा माटेनुं उपवन कृत्य न० सुतार वगेरे कारीगरनुं ओजार केलिशयन न० क्रीडा के आराम माटेनो कृत्रिमपुत्रक पुं० ढींगली पलंग के सोफा कृत्रिमपुत्रिका स्त्री० दत्तक लीधेली पुत्री केलिसदन न० क्रीडास्थान:क्रीडा माटेनो कृप पुं० कृपाचार्य; जुओ पृ० ६०४ खानगी ओरडो कृपाणिका स्त्री० कटार; जर्मयो केवलता स्त्री० मोक्ष; अद्वैतभाव कृशगव वि० दूबळी गायोवाळू। केवलात्मन् वि० केवळ अद्वैत स्वरूपवाळं कृशर पुं० तल चोखानी दूधगां रांधेली केशकारिन् वि० केश ओळवा-गूंथवार्नु खीचडी [न आपनाएं काम करनाएं कृशातिथि वि० अतिथिने पूरतुं भोजन केशग्रह पुं० माथाना केशथी पकडq ते कृशाश्व पुं० जुओ पृ० ६०४ [नफो (रतिक्रीडामां के युद्धमां) कृषिफल न० खेतीनी ऊपज; खेतीनो केशबंध पुं० केशनो बंध; केश बंधाय कृष्ण पुं० जुओ पृ० ६०४ ते माटेर्नु मुकुट इ० साधन (२) कृष्णगति पुं० अग्नि नृत्य वखते हाथनी एक मुद्रा कृष्णच्छवि स्त्री० काळं वादळ (२) केशशल न० वाळनो एक रोग काळियार मृगनुं चामडु केशशला स्त्री० वेश्या कृष्णद्वैपायन पुं० जुओ पृ० ६०४ ।। केशसंवाहन न० वाळ ओळवा ते कृष्णमृग पुं० काळो मृग; काळियार केसर न० बकुल वृक्षरों पुष्प कृष्णा स्त्री० मच्छलिपट्टण आगळ केसरि पुं० हनुमानना पितानुं नाम समुद्रने मळती दक्षिणनी नदी केसरिणी स्त्री० सिंहण कृष्णायते आ० (श्याम-काळं करवू) कैकसी स्त्री० रावणनी मातानुं नाम कृष्णायस न० लोढुं'; लोखंड कैकेयी स्त्री० जुओ पृ० ६०४ कृसर पुं० जुओ 'कृशर'; तल-चोखानी कैटभ पुं० जुओ पृ० ६०४ दूधमां रांधेली खीचडी कैतक वि० केतकीन फूल केकयाः पुं० ब०व० एक देश (जुओ कतवक न० जूगटुं; जुगार प० ६०४) के तेना लोको कैतववाद पुं० जूठ; जूठाणु केकयी स्त्री० कैकेयी कैदारिका स्त्री० खेतरनो समूह केतयति प० (दर्शाव; बोलावq; कैरातक वि० किरातोन; किरात संबंधी सलाह आपवी; समय नक्की करवो) कैलातक न० एक प्रकारनो दारू केदारखंड न० पाणीने रोकवा करेलो कैशिकी स्त्री० नाटकनी चार शैलीनानो बंध के पाळी ओमांनी एक (कौशिकी) केन अ० शेनाथी; केवी रीते कैंकिरात पं० विलासी-कामी पुरुष केरलाः पुं० ब०व० दक्षिण हिंदनो एक कोकनदिनी स्त्री० रातुं पोयj देश (आजनुं मलबार) के तेना वतनीओ कोकामंख न० एक पवित्र तीर्थ केलिकला स्त्री० क्रीडाकुशळता; काम- कोक्काण वि० कोंकणर्नु क्रीडाना हावभाव (२) सरस्वतीनी कोपजन्मन् वि० क्रोधथी उत्पन्न थयेलं वीणा . [थयेलं कोपना स्त्री० क्रोधी स्त्री [राखतुं के लिकुपित वि० कामक्रीडामां गुस्से कोपयिष्णु वि० गुस्से करवानो इरादो Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोयष्टिक ६७९ क्रोडीक कोयष्टिक पुं० एक पंखी (२) नानुं कौंकाः, कौंकणाः पुं० ब० व० एक देश, (घोळं) बगला जेवं पंखी तेना लोको के तेना राजाओ। कोशलाः पुं० ब० व० कोशल देश के कौंजर न० योगीओनुं एक आसन तेना वतनीओ (जुओ पृ० ६०५) । क्रतुद्विष् पुं० राक्षस (२) रावण कोशवारि न० देवमूर्ति नवरावेलु पाणी क्रथकैशिकाः पुं० ब० व० एक देश (पोतानी सच्चाईनी परख करावा (विदर्भ) आरोपी त्रण वार पीए छे) ऋमयोगेन अ० क्रमपूर्वक ; योग्य क्रमे कोशातकी स्त्री० पटोलि (परवळ ऋमिक वि० आनुवंशिक; वंशपरंपरागत काकडी-डोडी)नो वेलो क्रमुक पुं० सोपारीनुं झाड कोष्ठी घेरी लेवू; वींटी वळवू क्रव्याद पुं० शिकारी प्राणी(जेम के वाघ) कोसलनक्षत्र न० एक नक्षत्र ऋशयति प० (दुर्बळ - कृश बनाववू) कोसलाः पुं० ब० व० कोशल देश के कंदित वि० जेनी समक्ष धा नाखी तेना लोको (जुओ पृ० ६०५) होय - पोकार को होय तेवू कोंकणाः पुं०ब०व० सह्याद्रि अने समुद्र क्रियापवर्ग पुं० कार्यनी समाप्ति (२) वच्चेनी पट्टीवाळो प्रदेश के तेना लोक मोक्ष; कर्ममांथी मुक्ति कौक्कुट वि० कूकडा क्रियायज्ञ पुं० धार्मिक विधि - संस्कार कौतुकमंगल न० लग्नविधि (जेम के गर्भाधान संस्कार) कौतुकवत् अ० कुतूहलथी क्रियार्थ वि० कोई प्रयोजन माटे जरूरी कौतुकागार पुं० विलासक्रीडानुं स्थान -उपयोगी एवं [करवू ते कौतुकिता स्त्री० कुतूहल ; उत्कंठा कौतुकिन वि० आनंदोत्सव माणतुं क्रियासमभिहार पुं० कोई कार्य वारंवार कौत्स पुं० वरतंतुनो एक शिष्य क्रियासंक्रांति स्त्री० पोतानुं ज्ञान बीजाने शीखववं ते [उपवन कौमारचारिन् वि० संयमी; ब्रह्मचारी कौमारबंधकी स्त्री० वेश्या क्रीडाकानन न० क्रीडा-विहार माटेनें कौमारिक वि० पुत्री उपर प्रेम राखतुं क्रीडाकोप पुं० कृत्रिम गुस्सो (२) पुं० कन्याओनो बाप क्रीडाकौतुक न० नकामुं कुतूहल (२) कौमुदीमुख न० चांदनीनुं दर्शन क्रीडा; विलास (३) मैथुन कौरव पुं० कुरुनो वंशज क्रीडामयूर पुं० क्रीडा - आनंद माटे कौलटेय न० जारकर्म पाळेलो मोर कौलाल पुं० कुंभार [पृ० ६०४) क्रीडाशैल पुं० क्रीडा – विहार माटे कौलत पुं० कुलूत देशनो राजा (जुओ बनावेलो कृत्रिम पर्वत कौशल्या स्त्री० जुओ पृ० ६०५ Qच् पुं० हंस जेवू एक पक्षी कौशांबी स्त्री० जुओ पृ० ६०५ क्रूरकर्मन् वि० घातकी कृत्य करनाएं कौशिकी स्त्री० जुओ पृ० ६०५ (२) ऋरदृश् वि० अनिष्ट नजरवाळ ; जेनी नाट्यलेखननी चार शैलीमांनी एक नजर पडतां अनिष्ट थाय तेवू (२) कौसल्य वि० कोसल देशना लोकोनुं पुं० शनि के मंगळ ग्रह कौसल्या स्त्री० जुओ पृ० ६०५ क्रूरम् अ० भयंकर रीते कौसुम न० फूलनो पराग (२)कांसाजळ क्रोडी स्त्री० भंडण; डुक्करी कौसुंभ पुं० कसूंबानुं फूल क्रोडीक आलिंगनमां लेवं; भेटवू Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रोधमूच्छित ६८० खर कोधमूच्छित वि० गुस्साथी गांडा जेवू क्षीरकुंड न० दूध दोहवानुं वासण बनी गयेलं होय एवं क्षीरदग्धजिह्वान्यायः जुओ पृ० ६३२ क्रौंचवर्ण पुं० एक जातनो घोडो क्षीरनीरन्यायः जुओ पृ० ६३२ क्लिश्नत् वि० दूर करतुं क्षीरस्निग्ध वि० दूध जेवा रसथी चीक' क्लेशित वि० व्यथित - भीनुं बनेल क्लेशिन् वि० व्यथा के ईजा पमाडतुं क्षीरोमि पुं० क्षीरसागरनुं मोजें क्लोम न० मूत्राशय (२) फेफसुं। क्षुद्रक पुं० एक जातनुं बाण क्वत्य वि० कयां क्षुद्रता स्त्री० नानापर्यु; तुच्छता (२) क्वथन न० उकाळवू ते सूक्ष्मता क्वथित वि० उष्ण; ऊकळतुं क्षुधाशांति स्त्री० भूखनी तृप्ति थवीक्षत्रवेद पुं० धनुर्विद्या धराई जq ते क्षत्रियका स्त्री० क्षत्रिय स्त्री क्षुब्ध पुं० वलोववानो रवैयो क्षत्रियहण (-न) पुं० परशुराम क्षुरप्रमाला स्त्री० चंद्रकळाना आकारना क्षत्रिया, क्षत्रियिका स्त्री० क्षत्रिय स्त्री मणकाओनो हार क्षपण न० उपवास (२) शरीरनुं दमन क्षुरभांड न० हजामनी कोथळी (३)अशौच ; सूतक (४)नाश करवो ते क्षत्रिय वि० खेतर संबंधी (२) बीजा क्षपाट पुं० निशाचर; राक्षस जन्ममां मटे तेवू; आ जन्ममां न क्षययुक्ति स्त्री० विनाश करवानी तक मटे तेवू (३) पुं० याचक क्षवथु पुं० उधरस; छींक (२) गळामां क्षेपणीय न० गोफण जेवू पथ्थर वगेरे खरखरी बाझवी ते फेंकवानुं हथियार क्षार न० खार क्षारक पुं० पक्षी पकडवानी जाळ क्षेप्त वि० फेंकनारे; मोकलनाएं क्षारक्षत वि० सूरोखारथी नुकसान क्षेप्य वि० -मां मूकवा लायक (२) पामेलं फेंकवा - नाखवा लायक क्षितिधेनु स्त्री० पृथ्वी रूपी गाय क्षेमाश्रम पुं० गृहस्थाश्रम क्षितिवर्धन पुं० शब; मडहूँ क्षेमेंद्र पुं० जुओ पृ०६०५ क्षितिसुत पुं० वृक्ष (२) विष्णुए मारेलो क्षोदक्षम वि० तपास के कसोटीमांटकी नरकासुर (३) कीडो (४) मंगळग्रह शके तेवू (२) नक्कर; दृढ क्षितीश्वर पुं० राजा क्ष्माय १ आ० कंपाव; ध्रुजाव क्षिप्न वि० -फेंकतुं (२)मारतं; हणनाएं वेडन न० अस्पष्ट उच्चार करवो ते क्षीणबल वि० जेनुं जोर के बळ क्षय (२) गणगणवू ते; सुतवाट करवो पाम्यं छे तेवू (जेम के रोग) के सिसोटी जेवो अवाज करवो ते ख खग वि० आकाशमां गतिवाळं खट्वयति प० (खाटलानी जेम उपयोग करवो) खड्गधारा स्त्री० तलवारनी धार खधूप पुं० दारूगोळाथी फेंकातुं बाण खनित्रक न०, खनित्रिका स्त्री० नानी कोदाळी [स्थानमा रहेतो हतो) खर पुं० रावणनो ओरमान भाई (जन Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खरकंडूयन खरकडून न० (घाने खण्या करे तेनी पेठे ) बगडेलाने वधु बगाडवं ते खरायित न० गधेडानुं वर्तन खरी स्त्री० गधेडी (२) खच्चरी खरीवात्सल्य न० खच्चरीनुं बच्चा प्रत्येनुं वात्सल्य (बच्चुं जन्मतां मा मरी जती होवाथी नकामुं गणाय) खर्जूरी स्त्री० खजूरनुं झाड खलीकृत वि० अपमानित करेलुं; बदमाशनी जेम वर्तवामां आव्युं होय तेव गगनारविंदन्यायः जुओ पृ० ६३२ गज् १ प० गर्जवु; बराडवु ( २ ) मदमत्त थ ६८१ गजच्छाया स्त्री० सूर्यग्रहण समये श्राद्ध माटे योग्य एवो अमुक समय गजनासा स्त्री० हाथीनी सूंढ गजपति पुं० ऊंचो उत्तम हाथी ( २ ) हाथीनो मालिक के महावत गजपुष्पी स्त्री० एक फूल; नागपुष्पी गजमुख, गजवक्त्र, पुं० गणेश गजवत् वि० हाथीओ युक्त गजवदन पुं० गणपति गजसाह्वय न० हस्तिनापुर गरिकाप्रवाहन्याय: जुओ पृ० ६३२ गणपूर्व पुं० मुखियो ( टोळी के वर्गनो) गणभर्तृ पुं० शंकर (२) गणेश (३) टोळी के वर्गनी मुखियो गणवल्लभ पुं० सेनानायक गणित न० गणवं ते; तेनुं शास्त्र The fao गणी शकाय तेवुं गणेश पुं० जुओ पृ० ६०५ गतिमत् वि० गति करी शके तेवुं ; गतिमान ( २ ) साधनसंपन्न ( मिलकत, पुस्तको इ० ) गभस्तिनेमि पुं० विष्णु ग गलु खलेकपोतन्यायः जुओ पृ० ६३२ खंडशर्करा स्त्री० खडी साकर खंडितविग्रह वि० जेनुं अंग खंडित थयुं छे तेव् खांडव न० जुओ पृ० ६०५ खांडवराग पुं० एक प्रकारनी मीठाई खेलगमन, खेलगामिन् वि० विलासपूर्ण के राजवी चालवाळु शरीर न० छायापुरुषनुं शरीर खोरक पुं० जानवरना पगनो एक रोग गमक पुं० स्वरना उत्थाननो प्रकार ( सात छे; संगीत० ) गम्य पुं० ( कामभोग माटे स्त्री जेने मेळवी शके तेवो) लंपट - कामी पुरुष गरल्लि पुं० ( गळानो) घरघर अवाज गरुड पुं० जुओ पृ० ६०५ गर्धन न० इच्छा; लालच गर्भग्राहिका स्त्री० दाई; दायण गर्भभर्मन् पुं० गर्भनुं पोषण गर्भसंभूति स्त्री० गर्भ रहेवो ते गर्व १ प०, १० आ० गर्व करवो ( 'गर्वित ' एवं भू० कृ० ज वपराय छे) गवित वि० गर्विष्ठ (२) न० गर्व गलग्रह पुं०, गलग्रहण न० गळं दाबवुं ते (२) एक रोग (गळानो) (३) कृष्णपक्षनी ४थी, ७ मी, ८ मी, ९ मी अने १३ मी तिथि गलवार्त वि० गळाना काममां ( खूब खाईने पचाववामां ) समर्थ एवं गलहस्तित वि० गळेथी पकडेल गलितक पुं० नृत्यनो एक प्रकार गलितनखदंत वि० नख अने दांत पडी गया होय तेनुं (वृद्ध) [ तेवुं गलितयौवन वि० युवानी चाली गई होय गलु पुं० एक मणि ( चंद्रकांत ) Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गल्वर्क ६८२ गृहपोषण गल्वर्क पुं० बिलोरी काच (२) मणि गुडक पुं० गोळो; गोळ आकार- जे (३) दारू पीवानुं पात्र [शिंगडु कांई होय ते गवल न० जंगली पाडो (२) पाडानुं गुडजिहिकान्यायः जुओ पृ० ६३२ गवानत न० गायना जठा सोगन खावा ते गडशंगिका स्त्री० गोळा फेकवानं यंत्र गवामय पुं० एक यज्ञ (एक वर्ष सुधी गुणज्ञ वि० गुणनी कदर करनारुं चालतो) [(ते आपवानुं एक व्रत) गुणभोक्त वि० पदार्थोना गुणोने गवाह्निक न० गायनुं एक दिवसनुं खाण जाणनार के भोगवनाएं गवेधुका स्त्री० एक जातवें घास गुणवत् वि० गुणवान; गुणी; उत्तम गंगा स्त्री० जुओ पृ० ६०५ गुणाढय पुं० जुओ पृ० ६०५ गंडफलक न. पहोळो गाल गुणानुराग पुं० बीजाना गुणो तरफ गंडस्थली स्त्री० गाल प्रेम के तेमनी कदर गंडष न० एक जातनो दारू गुण्य वि० गुणोवाळं (२) गणवा के गंभीरवेदिन वि० मदमत्त (हाथी); गुणाकार करवा योग्य अंकुशने न गणकारतुं गुरुतल्प पुं० आचार्यनी पथारी (पत्नी) गंभीरा स्त्री० ते नामनी एक नदी (२)आचार्यनी पत्नी साथे व्यभिचार गाढालिंगन न० गाढ आलिंगन गुरुतल्पग, गुरुतल्पिन् पुं० आचार्यनी गाढांगद वि० चपसीने वेसतुं कडु के पत्नी साथे व्यभिचार करनारो कंकण पहेयु होय तेवू गुरुत्व न० जुओ 'गुरुता' (पृ० १५८) गाढोग वि० अत्यंत उद्विग्न के पीडित गुरुश्रुति स्त्री. (गायत्री) मंत्र गात पुं० गवैयो गुर्जर पुं० जुओ पृ० ६०५ ।। गात्रयष्टि स्त्री० पातळू- नाजुक शरीर गुलच्छ पुं० गुच्छ; झूमखं; झुंड मात्रावरण न० ढाल गुल्फदन वि० चूंटी सुधी पहोंचतुं गाधि पुं० जुओ पृ० ६०५ । गुल्मिन् वि० जूथ के झुंडमां ऊगतुं गाधिपुर न० कनोज; जुओ पृ० ६०५ गह पुं० जुओ प०६०६ गप्तता गामुक वि० गति करतुं; जतुं गूढत्व न० (अर्थनी) गहनता (२) गाध वि० गीध पक्षीन गूढम् अ० गुप्त रीते . गावासस् पुं० गीधनां पीछांवाळु बाण गृध् ४ प० (-प्रेरक०) लालसावाळू गांडीमय वि० गेंडा- बनावेलु (अर्जुन- के लोलुप करवू (२)आ० छेतरवू धनुष्य) गृध्य वि० लुब्धपणे इच्छेलु गांधर्वशाला स्त्री० संगीतशाळा गृहकपोत पुं० घरमा पाळेलं कबूतर गांधर्वशिक्षा स्त्री० संगीत । गृहकर्मदास पुं० घरकाम्नो नोकर गांधार पुं० जुओ पृ० ६०५ गृहकर्मन् पुं० घरना व्यवहारनी बाबत गांधारी स्त्री० जुओ पृ० ६०५ (२)घरमां प्रवेश वखते करवानो विधि गिरिचर वि० पर्वतमा फरतुं-विचरतुं गृहजन पुं० कुटुंब; कुटुंब- माणस; गिरिजाधव, गिरिजापति पुं० शंकर (खास करीने) पत्नी गिरिधातु पुं० गेरु गृहदेवता स्त्री० घरनी देवता (२) गिरिव्रजपुर न० जुओ पृ० ६०५ (ब० व०) घरना देवोनो एक वर्ग गिरिस्रवा स्त्री० पर्वतमांथी नीकळती गहदेहली स्त्री० घरनो उंबरो नदी के झरj गृहपोषण न० घरनुं भरणपोषण Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गृहबलिभुज् गृहबलिभुज् पुं० कागडो (२) चकलो गृहयज्ञ पुं० गृहस्थ (२) घरमा करवानो एक यज्ञ गृहशुक पुं० घरमा पाळलो पोपट गृहाचार पुं० घरनो व्यवहार गृहीतनामन् वि० नाम दईने बोलावेलुं गृहीतार्थ वि० अर्थ जाणतुं गृहीभू घरनी गरज सारखी गुंजन पुं० गाजर (२) लाल मूळो (३) गांजो ( ४ ) न० झेरी बाणथी माला प्राणीनं मांस गोकुल न० जुओ पृ० ६०६ गोग्रह पुं० गायो घेरवी ते - पकडवी ते गोजीव वि० ढोर पाळीने आजीविका करनाएं (गवळी) पुं० एक ऋषि (अहल्याना पति) ( २ ) न्यायदर्शनना प्रवर्तक आचार्य गोधर्म पुं० खुल्लामां मैथुन आचरवा रूपी पशुओनी रीत गोनर्द पुं० जुओ पृ० ६०६ गोपराष्ट्र पुं० जुओ पृ० ६०६ गोपालिका स्त्री० गोवाळण गोपित न० गाय- बळदनुं पित्त (जेमांथी गोरोचन बने छे ) गोप्रतर पुं० ढोर नदी पार करी शके तेवुं स्थान ( २ ) सरयू नदी उपरनुं एक तीर्थ गोमती स्त्री० सिंधु नदीने मळती एक नदी जुओ पृ० ६०६ ( २ ) गोहत्याना प्रायश्चित्त माटे जपवानो वैदिक मंत्र गोमंत पुं० जुओ पृ० ६०६ गोमंतक पुं० गोवा प्रांत ; जुओ पृ० ६०६ गोमिन् पुं० चारण (वैश्य) (२) ढोरनो मालिक गोमूत्रक वि० वांकुंकुं जतुं (२) पुं० वैदूर्यमणि (३) न० गदायुद्धनो एक पैंतरो के मंडळ ६८३ ग्लास्नु गोमेध पुं० गाय होमीने करातो एक यज्ञ गोरथ पुं० बळदगाडी गोलांगूल पुं० काळा शरीरनो, लाल मों ने गायना जेवी पूंछडीवाळो एक वानर गोवर्धन पुं० जुओ पृ० ६०६ गोविकर्तृ पुं० गायने मारनारो ( २ ) खेडूत ( धरती खेडनारो) गोविषाणिक पुं० एक वार्जित्र गोव्रत वि० ए नामनुं व्रत पाळनारो ( गमे त्यां सूनुं, गमे ते खवडावे ते खावुं इ० ) गोशीर्ष पुं० न० एक प्रकारनं पीळं चंदन (२) एक प्रकार अस्त्र ( वाण ? ) गोसव पुं० गाय होमीने करतो एक यज्ञ (कलियुगमां नथी करातो) गौड पुं० जुओ पृ०६०६ (२) ( ब०ब० ) ते देशना लोक गौडी स्त्री० काव्यरचनानी एक रीतिवृत्ति-शैली गौल्मिक पुं० वन जंगलनो निरीक्षक गौष्ठीन न० पहेलां गायोनो वाडो होय ते स्थान ग्रहपति पुं० चंद्र (२) सूर्य ग्रहपीडा स्त्री० ग्रहण ( २ ) ग्रह द्वारा थती पीडा ग्रामधान्य न० खेडेलुं अनाज; भात; डांगर ग्रामविशेष पुं० (षड्ज आदि संगीतना ) स्वर ( संगीत ० ) ग्रामवृद्ध पुं० गामनो घरडो माणस ग्रामाक्षपटलिक पुं० गामनो पटेलियो ग्रामाधिप पुं० गामनो मुखियो ग्राम्यमृग पुं० कूतरो ग्रासीक गळी जबुं; कोळियो करी जवुं rore froथालुं Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घटीयंत्रन्यायः ૬૮૪ चद्रप्रभ घटीयंत्रन्यायः जुओ प० ६३२ घटोत्कच पुं० जुओ पृ० ६०६ घट्टकुटी स्त्रो० जकातनुं नाकुं घट्टकुटीप्रभातन्यायः जुओ प० ६३२ घनीभू १ प० गाढुं बनवं; ऊंडु बनवू घनोरू स्त्री० घन साथळवाळी स्त्री घंटाकर्ण पुं० शिव, स्कंद के कुबेरनो गण (चैत्र महिनामां पूजन थाय छे) (२) एक राक्षस घंटाल पुं० हाथी घातस्थान न० वधस्थान (ज्यां कतल कराय) घांटिक पुं० घंट बगाडनारो घुणक्षत वि० कीडाए कोरी खाधेलं घुणाक्षरन्यायः जुओ पृ० ६३२ घूत्कार पुं० 'घू' 'धू' एवो अवाज घृताची वि० घी भरेलु (२) पाणीवाळं (३) चमकतुं (४) स्त्री० रात्री (५) सरस्वती (६) स्वर्गनी एक अप्सरा घृताचिस् पुं० भभूकतो अग्नि चकोरवत न० चंद्रनां किरणोनुं पान करवानी चकोर पक्षीनी टेव चकोराय आ० चकोर पक्षीनी जेम वर्तवं चक्रतुंड पुं० एक जातनी माछली चक्रभ्रांति स्त्री० पैडान गोळाकार फरवं ते यंत्र चक्राश्मन न० पथ्थरोने दूर नाखवानुं चक्रीकृ ८ उ० वर्तुल बनावq ; धनुष्यनी जेम गोळ वाळवू चक्रीवत् पुं० गधेडो करनारं चक्षुर्हन वि० मात्र दृष्टिपातथी ज नाश चटकामख पं० चकलीना मख जेवा। अग्रभागवाळं एक प्रकार- बाण चटुलय प० आम तेम हलाव। चटुलाय आ० मनोहर गति के चाल वाळू होवू चतुरशीति स्त्री० चोर्याशी चतुर्दशन् वि० चौद चतुर्मुख वि० चार मुखवाळू (२) पुं० ब्रह्मा (३) न० चार मों (४) चार द्वारवाळू घर [जोड्या होय तेवू चतुर्युज वि० जेने चार (घोडा वगेरे) चतुश्चत्वारिंशत् स्त्री० चुंमालीस चतुश्चित्य पुं० चोतरो- ओटलो चतुष्पष्टि स्त्री० चोसठ चतुस्त्रिशत् स्त्री० चोत्रीश चतुस्सप्तति स्त्री० चुंमोतेर चतुःपंचाशत् स्त्री० चोपन चपलाजन पुं० चंचळ स्त्री चरणपतित वि० पगे पडेलं चर्चर न० दांतनो कचकचाटभर्यो __ अवाज ; दांत पीसवानो अवाज चर्मण्वती स्त्री० जुओ पृ० ६०६ चर्मावकर्तृ पुं० मोची [करेली चांच चंचुपुट चंचपुट पुं०, न० पक्षीनी बंध चंडि स्त्री० दुर्गा; पार्वती [स्त्री चंडी स्त्री० क्रोधी स्त्री ; उग्र कोपवाळी चंडीश पुं० शंकर चंडीशमंडन न० कालकूट विष (ए झेर शंकरे कंठे धारण कयु होवाथी) चंडीश्वर पुं० शंकर चंदनपंक पुं० चंदननो लेप चंद्रकेतु पुं० जुओ पृ० ६०६ चंद्रप्रभ न० जुओ पृ० ६०६ Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंद्रभागा ६८५ जडयति चंद्रभागा स्त्री० जुओ पृ० ६०६ चित्ररथ पुं० जुओ पृ०६०७ चंद्रवती स्त्री० जुओ प०६०६ चित्रलेख वि० रम्य रेखाओवाळु ; ऊंची चंद्रशिला स्त्री० चंद्रकांत मणि कमानोवाळू चंद्रहास पुं० जुओ पृ० ६०६ चित्रशिखंडिन पुं० साप्त ऋषिओनं चंपा स्त्री० जुओ प० ६०६ उपनाम (मरीचि, अंगिरस, अत्रि, चाटुशत न० सेंकडो प्रिय वाक्य ; घणी पुलस्त्य, पुलह, ऋतु अने वसिष्ठ) ज खुशामद चित्रारंभ पुं० चित्रनी रूपरेखा चाणक्य पुं० जुओ पृ० ६०६ चित्रापितारंभ वि० चित्रमा चीतरेलं चाणूर पुं० जुओ पृ० ६०७ चित्रांगद पुं० जुओ पृ० ६०७ चातुर्होत्र न० चार पुरोहितोनो समुदाय चित्रांगदा स्त्री० जुओ पृ० ६०७ चामरग्राहिणी स्त्री० राजाना मस्तक चित्रीयते आ० (आश्चर्य पमाडवू; उपर चामर ढोळनार स्त्री आश्चर्यनो विषय बनवू - थर्बु) चारित्रदेवता स्त्री० पवित्रतानी देवी चिपिटघ्राण, चिपिटनासिक वि० चपटा चारी स्त्री० भ्रमण नाकवाळं [करवी चार्वाक पुं० जुओ पृ० ६०७ चिरायति ५० विलंब करवो; ढील चांदनिक वि० चंदनथी करेल शोभा- चीनवासस् न० रेशमी वस्त्र वाळु; चंदनरसथी महे कतुं चीरक पुं० एक मोटु पक्षी [तम९ चित्तनाथ पुं० हृदयनो देव; स्वामी चोरि स्त्री० नेत्र ढांकवान वस्त्र (२) चित्तयोनि पुं० कामदेव चुचुक वि० बोलवामां तोतडातुं चित्तरक्षिन् वि० बीजानुं मन राखवा चूतयष्टि पुं० आंबानी डाळ तेनी इच्छा प्रमाणे वर्तनाएं चेदयः पुं० ब० व० जुओ पृ० ६०७ चित्रकट पुं० जुओ पृ० ६०७ चेर पुं० जुओ पृ० ६०७ चित्रकृत्य न० चित्रकाम चोलाः पुं० ब० व० जुओ प० ६०७ चित्रभाष्य न० कूटनीतिपूर्ण वाणी चौरापराधान्मांडव्यनिग्रहन्यायः जुओ चित्रयोधिन् वि० आश्चर्यकारक युद्ध १० ६३२ करनारु (२) पु० अर्जुन चौर्यरत न० गुप्त मैथुन छत्रीक-नो छत्रीनी जेम उपयोग करवो छनच्छन् अ० (पाणीनां टीपां पडवानो) छमछम अवाज थाय तेम छलयति प० (छेतरवं; ठगएँ) छंबंकारम् अ० निष्फळ थाय तेम जगत्स्वामित्व न० आखा जगत उपर चक्रवर्तीपणं जज पुं० सैनिक; योद्धो जटायु, जटायुस् पुं० जुओ पृ० ६०७ जटिलय जटा गूथवी; कलगीवाळं करवू; भरी काढवू जठरज्वलन न० क्षुधा; भूख जडयति प० (जड बनावी देवें) Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टंकित जनक ६८६ जनक पुं० जुओ पृ० ६०७ जातिगद्धि स्त्री० जन्म धारण करवो ते जनमेजय पुं० जुओ पृ० ६०७ जातुष वि० लाखन बनेल के बनावेल जनस्थान न० जुओ पृ० ६०७ जापक पुं० जप करनारो जन्मप्रतिष्ठा स्त्री० माता (२)जन्मभूमि । जालंधर पुं० जुओ पृ० ६०८ जमदग्नि पुं० जुओ पृ० ६०७ जांबवत् पुं० जुओ पृ० ६०८ जयदेव पुं० जुओ पृ० ६०७ जांबवती स्त्री० जुओ पृ० ६०८ जयद्रथ पुं० जुओ पृ० ६०७ जिल्लिकाः पुं० ब० व० ए जातना लोक जया स्त्री० (विश्वामित्र रामने शीख- जिह्येतर वि० मंद के जड नहि तेवू वेली) मंत्रविद्या जीमूतवाहन पुं० जुओ पृ० ६०८ जयाजयो पुं० द्वि० व. जय-पराजय जीवग्राहम् अ० जीवतुं होय तेम जरासंध पुं० जुओ पृ० ६०७ जीवंती स्त्री० एक मिष्टान्न जलज न० कमळ जति स्त्री० गति; त्वरा जलजासन पुं० ब्रह्मा (कमळना आसन- जूर् ४ आ० -नी उपर क्रोध करवो वाळा) मुंभक पुं० एक जातनो राक्षस (२) जलताडनन्यायः जुओ पृष्ठ ६३३ तेने दूर करवानो मंत्र जलपथ पुं० दरियानी मुसाफरी जैमिनि पुं० जुओ पृ० ६०८ जलशय्या स्त्री० पाणीमां सूई रहे। ज्ञातिचेल न० नीच कुळमां जन्मेलो ते (एक व्रत) ज्ञातेय न० बंधुकृत्य ; सगाने छाजे जलस्थाय पुं० तळाव; सरोवर तेवू काम जल्पाक वि० वातोडियु ज्ञानयज्ञ पुं० तत्त्ववेत्ता; ज्ञानी जह्न, पुं० जुओ पृ० ६०८ ज्ञानाग्नि पुं० ज्ञानरूपी अग्नि जंबद्वीप पुं०, न० जुओ पृ० ६०८ । ज्येष्ठामूल पुं० जेठ महिनो जंबूप्रस्थ पुं० एक गामनुं नाम ज्येष्ठिनय वि० मोटी के मानीती जंभक पुं० औषधोपचार (२) दगाबाज पत्नीथी जन्मेलं माणस (३) बिजोरं ज्वरगंड पुं० एक रोग जंभसाधक वि० वैद्यकना ज्ञानवाळं ज्वल पुं० अग्निनी ज्वाळा; झाळ जाटासुरि पुं० अलंबुष नामनो राक्षस ज्वालालिंग न० शंकर- ए नामनुं धाम झणझणायमान, झणझणायित वि० झणकार करतुं झलझल पं० आंजी नाखे तेवो चळकाट (घरेणानो) झषध्वज पुं० कामदेव; मकरकेतु झिल्लिक पुं० तमा टंकित वि० बांधेलु; जकडेलं Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८७ तिलधेनु ४ पुं० ठणठणाट (गागर गवडतां थाय ते) डिका स्त्री० पांखोवाळं नानुं जीवडुं ढौकित वि० नजीक आणेलं तक्रकौंडिन्यन्यायः जुओ पृ० ६३३ तक्ष पुं० जुओ पृ० ६०८ तक्षक पुं० जुओ पृ० ६०८ तक्षन् पुं० सुथार तक्षशिला स्त्री० जुओ पृ० ६०८ तटभू स्त्री० किनारो तटय पुं० शंकर तदात्व न० वर्तमान समय तदानींतन वि० त्यारनु; ते वखतर्नु तद्गुण पुं० कोई पण वस्तुनोगुण के धर्म तपस्यति प० (तपस्या करवी) तपोयज्ञ पुं० तपरूपी यज्ञ करनारो तपोर्थीय वि० तप कर्या करवा निर्मायेलं तप्तवालुका स्त्री० ब०व० गरम रेती तमसा स्त्री० जुओ पृ० ६०८ । तरलयति प० (कंपावq; डोलायमान करवू) तरलित वि० हालतं; कंपतुं तरंगवती स्त्री० नदी तरुणयति प० (वधार; फेलाव) तरुणायते आ० (जुवान रहे;ताजु रहे) तरुवल्ली स्त्री. वेल गाडी तलक पुं० सळगता अंगारावाळी नानी तलबद्ध वि० हाथ उपर चामडानुं मोजें पहेयुं होय तेवू (धनुर्धारी) तलवारण न० धनुर्धारीए पहेरवानुं चामडान मोजें ताम्रधातु पुं० तांबुं ताम्रपर्णी स्त्री० पृ० ६०८ ताम्रलिप्त न० जुओ पृ० ६०८ ताम्रोष्ठ, ताम्रौष्ठ पुं० लाल परवाळा जेवो होठ तारक पुं० जुओ ६०८ तारकसूदन पुं० कार्तिकेय (तारक राक्षसने हणनार) . तारणेय पुं० सूर्यनो उपासक तारस्वर वि० तीणा अवाजवाळू तारा स्त्री० जुओ पृ० ६०८ तारामती स्त्री० जुओ पृ० ६०८ तार्किकत्व न० तर्कवाद; फिलसूफी तार्ण वि० तृण संबंधी; तृण- बनावेलु तांबलाधिकार पुं० तांबूलनी पेटी उपाडवानुं काम तिक्तायते आ० (कडवो स्वाद लागवो) तिमिध्वज पुं० जुओ ६०८ तिरयति प० (खलेल करवी, रुकावट करवी; छुपाववृं) तिलतंडुलन्यायः जुओ पृ० ६३३ तिलधेनु स्त्री० तलनी गाय बने तेटला के गाय ढंकाई रहे तेटला वस्त्रमा Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तिलोत्तमा ६८८ त्रिवृत् समाय तेटला तल (गोदान तरीके तैलपूर वि० तेल पूरवाथी सळगतुं ब्राह्मणने आपवा ते) रहेत (दीपक) (रत्नो दीवा. तरीके तिलोत्तमा स्त्री० जुओ पृ० ६०८ काम दे ते 'अतैलपूर दीपक' कहेवाय) तीक्ष्णरस पुं० विष; झेरी प्रवाही तैलप्रदीप पुं० (तेलनो) दोवो (२) सूरोखार तोयाग्नि पुं० वडवानल तीवद्युति पुं० सूर्य तोयाधार पुं० सरोवर; जळाशय तुच्छयति प० (खाली के कंगाळ करवं) तोयोत्सर्ग पुं० वरसाद [सुमेळ तुत्थ् १० उ० छाई देवू; ढांकी देवं तौर्यत्रिक न० नृत्य गीत अने वाजिबनो तुभ् ४,९ ५० हणवू; प्रहार करवो त्रयस्त्रिशत् स्त्री० तेत्रीस तुरंगम पुं० घोडो त्रयःपंचाशत् स्त्री० ओपन तुरंगमेध पुं० अश्वमेध यज्ञ त्रयःषष्टि स्त्री० वेसठ तुरीयजाति पुं० शूद्र (चतुर्थ वर्ण) त्रयीसंवरण न० गुप्त राखवानी त्रण तुलागुड पुं० (शस्त्र तरीके वपरातो) क्रियाओ (पोतानां छिद्र, शत्रुना एक जातनो गोळो छिद्रनी तपास, मसलत) तुनिंदास्तुति वि० निंदा अने प्रशंसामां त्रस न० जंगम प्राणीओनो समूह समान बुद्धिवाळं (२) वन (३) पशु-प्राणी तुषकंडनन्यायः जुओ पृ० ६३३ । त्रिकूट पुं० जुओ पृ० ६०९ तुषारकण पुं० हिमकण; झाकळबिंदु त्रिगर्त पुं० जुओ पृ० ६०९ तुष्यतुदुर्जनन्यायः जुओ पृ० ६३३ त्रिजटा स्त्री० एक राक्षसी (रावणे तुहिनय प० बरफथी आच्छादित करवू अशोकवाटिकामां सीता उपर पहेरो तुहिनरुचि पुं० चंद्र(शीतळ किरणवाळो) भरवा राखी हती, पण सीता प्रत्ये तुंदिलीकरण न० जाडु-फूलेलं करवू ते भाव राखती हती) तुंबी स्त्री० तुंबडीनो वेलो त्रिणाचिकेत पुं० यजुर्वेदना अध्वर्यु-यज्ञनो तूर्यमय वि० वादित्रनु एक भाग(२)तेने लगता व्रतनुं अनुष्ठान तणज्योतिस् न० रात्रे चळकती एक करनारो (३) नाचिकेत अग्निर्नु वनस्पति (ज्योतिष्मती) अनुष्ठान त्रण वखत कयुं होय तेको तृणता स्त्री० धनुष्य (२) तुच्छता त्रिदशीभूत वि० देव बनेलं तृणपीडम् अ० दोरडं आमळती वखते त्रिपंचाशत् स्त्री० वेपन तांतणा अमळाय तेम (कुस्तीनो दाव) त्रिपुर न० जुओ पृ० ६०९ तृणभुज वि० तृणभक्षी त्रिपुरदाह पुं० त्रण नगरोन दहन तृणभूत वि० तणखला जेवू; बधी (शंकरे करेलु) प्रकारनी ताकात छीनवी लीधेलं त्रिपुरद्विष्, त्रिपुरहर पुं०शंकर (त्रिपुरनो तणय प० तणखलानी जेम तुच्छ गणवू नाश करनार) तृप्तियोग पुं० संतोष त्रिपुरी स्त्री० जुओ पृ० ६०९ तैलक्षौम न० एक जात तेलिया कपड़े विभाग पुं० क्रीजो भाग (जेनी राख घा उपर लगाडाय छे) त्रिमूर्धन् पुं० एक राक्षस तैलपायिन् पुं० एक जातनो वंदो (२) त्रिवृत् पुं० त्रण दोरानो कंदोरो (२) तलवार त्रण सेरनुं ताविज Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रिवेणी ६८९ . वाक्षायण्य त्रिवेणी स्त्री० जुओ पृ० ६०९ त्रिसामन् वि० त्रण साम (वेदमंत्र) त्रिशंकु पुं० जुओ पृ० ६०९ गाना त्रिशाख वि० त्रण करचलीवाळं; त्रुटि पुं०, त्रुटी स्त्री० एक अति सूक्ष्म त्रण वांक पड्या होय तेवू समयनुं माप (क्षणनो चोथो भाग) त्रिषष्टि स्त्री० श्रेसठ त्वपत्र न० तज; दालचीनी त्रिसंध्यम् अ० सवार, बपोर अने। त्वक्सार पुं० वांस (२) तज; दालचीनी सांजनी संध्याओ वखते स्वरम् अ० त्वराथी त्रिसाधन वि० त्रण प्रकारनी कारणता- स्वष्ट पुं० जुओ पृ० ६०९ वाळं त्सरुमार्ग पुं० तलवारना आटापाटा द दक्ष पुं० जुओ पृ० ६०९ दक्षविध्वंस पुं० शंकर दक्षिणापथ पु० जुओ पृ० ६०९ इग्षबीजन्यायः जुओ पृ० ६३३ दत्त पुं० दत्तात्रेय (जुओ पृ० ६०९) दत्तनृत्योपहार वि० नृत्यनी भेट आपेलं दत्तात्रेय पुं० जुओ पृ० ६०९ दस्त्रिम वि० दानन; दानमां मळेलु दषिकुल्या स्त्री० दहींनो प्रवाह दधीच पुं० जुओ पृ० ६०९ दमयंती स्त्री० जुओ पृ० ६०९ दमिल पुं० जुओ पृ० ६०९ दरद पुं० जुओ पृ० ६०९ दरीभूत् पुं० पर्वत दरीमुख न० गुफारूपी मों (२) जुओ 'दरिमुख' (पृ० २०४) दर्भवती स्त्री० जुओ पृ० ६०९ दशकंठारि पुं० राम (रावणना शत्रु) दशगुणित वि० दशनी संख्याथी गुणेलं; दशग] दशधर्म पुं० व्यथा दशपुर न० जुओ पृ० ६०९ दशमुखरिपु पुं० राम (रावणना शत्रु) दशयोजन न० दश योजन जेटलं अंतर दशरथ पुं० जुओ पृ० ६०९ वशरश्मिशत पुं० सूर्य(हजार किरणवाळो) दशवर्ग पुं० (पोताना तेम ज शत्रुना) अमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, कोश अने दंड-ए पांच पांच वर्ग दशशताक्ष पुं० इंद्र (हजार आंखवाळो) दशाधिपति पुं० दश माणसोनो जमादार दशार्णा स्त्री० जुओ पृ० ६०९ दशार्णाः पुं० ब० व० जुओ पृ० ६०९ दशाह पुं० जुओ पृ० ६०९।। दलौ पुं० द्वि० व० देवोना वैद्य-बे अश्विनीकुमारो दहन न० दाह; बाळq ते दंडकारण्य न० जुओ पृ० ६०९ दंडकाष्ठ न० लाकडानो दंडो दंडनिधान न० क्षमा; माफी वंडापूपिकान्यायः जुओ पृ० ६३३ दंडिन् पुं० जुओ पृ० ६१० वंतपुर न० जुओ पृ० ६१० दंतप्रवेष्ट न० दंतूशळनी खोळी दंतवेष्ट पुं० दंतूशळ उपर- कडं (२) अवाळु; पेढुं दंतादंति अ० एकबीजाने दांत वडे बचकां भरीने (लडवं) दंध्वन पुं० जेमांथी सिसोटी वाग्या करे छे तेवू नेतर - बरु भोलि पुं० इंद्रनुं वज़ दाक्षायण्य पुं० सूर्य Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ U दुर्विद दाक्षिणात्य ६९० दाक्षिणात्य पुं० जुओ पृ० ६१० दिश्य वि० दिशाने लग; दिशामां दानवज पुं० वैश्यवर्णन उपनाम आवेलु (२) परदेशचें; बहारनुं दारुक पुं० जुओ पृ० ६१० दिष्टभाज् पुं० देव दारुकावन न० जुओ पृ० ६१० दीक्षित पुं० यज्ञनो प्रारंभविधि करतो दारुण न० (मृग,पुष्य, ज्येष्ठा अने मूल ऋत्विज के पुरोहित (२)शिष्य (३) ए) प्रतिकूळ नक्षत्रोनो वर्ग जेणे के जेना पूर्वजोए ज्योतिष्टोम जेवा दारुवन न० दारुकावन (जुओ पृ०६१०) यज्ञविधि कर्या होय ते [स्त्री दार्दुर वि० दर्दुर पर्वतर्नु दीपिकाधारिणी स्त्री० दीवो ऊंचकनारी दाशार्हाः पुं० ब० व० दशाह राजाना दीप्तकिरण पुं० सूर्य वंशजो; यादवो दीप्तनिर्णय पु० निश्चित परिणाम दाशेरक पुं० जुओ पृ० ६१० दीर्घतपस् पुं० गौतम (अहल्याना पति) दासजन पुं० दास; नोकर दीर्घतमस् पुं० उतथ्य ऋषिनो पुत्र (ते दासता स्त्री० दासपणुं; गुलामी गुरुना शापथी आंधळो थयो हतो) दासमीयाः पुं० ब० व० एक देश अने दीर्घयज्ञ वि० लांबा समय सुधी यज्ञ करतुं तेना लोको (२) उच्च वर्णनी स्त्रीने दीर्घाकृ ८ उ० लांबं करवू; लंबाव शूद्रथी थयेलां संतान दुकलपट्ट पुं० सुंदर रेशमी वस्त्रनो फेंटो दिग्देश पुं० दूरनो प्रदेश (२) प्रदेश दुरारोप वि० जेनी पणछ चडाववी दिग्बंध पुं० दिशा-यंत्रथी दिशाओ मुश्केल होय तेवू (धनुष्य) नक्की करी लेवी ते दुरावर्त वि० प्रतीति कराववं मुश्केल दिति स्त्री० जुओ पृ० ६१० [इच्छा होय तेवं दिधीर्षा स्त्री० टेको के आधार आपवानी दुर्गतता स्त्री० दुर्दशा दिलच्छिद्र न० राशि के नक्षत्र (२) दुर्गतरणी स्त्री० सावित्री अर्धा दिवसने प्रारंभे के अंते चंद्रन दुर्गसंस्कार पुं० जूना किल्ला- समारकाम स्थळांतर थवं ते दुर्जनायते आ० (दुष्ट बनवू; वैरी बनवू) दिनलाथ पुं० सूर्य दिवस दुर्जनीकृ निंदापात्र के दोषित बनाववं दिनस्पश न० त्रण दिवसने स्पर्शतो चांद्र दुर्जातजायिन् वि० फोगट जन्म धारण दिलीप ० जुओ पृ० ६१० करनालं; व्यर्थ जीवनवाळं दिवसीय रात्रिने दिवसमां पलटी नाखवी दुर्जातबंधु पुं० आपत्तिने वखते साथे दिवाकीर्ति पुं० वाळंद; हजाम (२)घुवड रहेनारो (३) हलका वर्णनो माणस; चांडाल दुर्बाध वि० निवारी न शकाय तेवू दिवानिशन अ० दिवसे अने राते दुर्मनायते आ० (खिन्न के दुःखी थर्बु, दिव्य पुं० दैवी सत्त्व; देव (२) जव मूंझाएँ) (३) यम दुर्मर्षित वि० उश्केरेलु ; चडावेलु दिव्यमानुष पुं० उपदेवता दुर्योधन पुं० जुओ पृ० ६१० दिव्यरस पुं० पारो (२) प्रेम दुर्लक्ष्य न० खराब लक्ष्य दिव्यौषधि स्त्री० सापर्नु झेर उतारी दुर्वासना स्त्री० दुष्ट भावना के इच्छा नाखे तेवी अलौकिक शक्तिवाळी दुर्वासस् पुं० जुओ पृ० ६१० वनस्पति दुर्विद वि० अज्ञेय; अगम्य Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुश्च्य वन दुश्च्यवन पुं० इंद्र दुष्ठ वि० दुःखी; कंगाळ; पीडित (२) बीमार (३) अ० खोटी रीते; खोटुंज दुष्यंत पुं० जुओ पृ० ६१० दुःखलव्य वि० भेदतुं के कापवं मुश्केल होय तेवू दुःखीयति प० (पीडावं; दुःखी थq) दुःखोच्छेद्य वि० जिता के उखेडी नाखवू नुश्केल एवं दुःशला स्त्री० जुओ पृ० ६१० दुःशासन पुं० जुओ पृ० ६१० दूतमुख वि० प्रतिनिधि द्वारा बोलतुं दूतयति प० (दूत तरीके मोकलवू) दूत्य न० दूत तरीकेनुं काम दूरपातन न० दूर रहेला निशानने वींध, ते दूरीभू दूर थQ; अळगा थq दूरे कृदूर करवू; तजवू दूरे तिष्ठतु (भले थाय ; कांई परवा नहि) दूर्वांकुर पुं० दरोनी कुमळी कुंपळ के कुमळं पान दूषण पुं० जुओ पृ० ६१० दृगृष (दृश् + रुध) वि० दृष्टिने रोकतुं दृढनाहिन वि० मक्कम; आग्रही दृढधन्विन् पुं० बाणावळी दढमुष्टि वि० कंजूस (२) पुं० तरवार (३) सखत मूठी दृढीकार पुं० समर्थन; पुष्टि दृश्यस्थापित वि० झट नजरे चडे ते रीते मूकेलं वृषद्वती स्त्री० जुओ पृ० ६१० देवकी स्त्री० जुओ पृ० ६१० देवगिरि पुं० जुओ पृ० ६१० देवताप्रतिमा स्त्री० देवनी मति देवयात्रा स्त्री० देवनी मूर्तिनो वरघोडो देवयानी स्त्री० जुओ पृ० ६१० देवव्रतत्व न० ब्रह्मचर्य व्रत देवशत्रु पुं० असुर; राक्षस द्राधयति देवसात् अ० देव स्वरूपे देवसात् भू देव बनी जq देवसेना स्त्री० देवोन सैन्य (२) स्कंद - कार्तिकेयनी पत्नी देवहूति स्त्री० जुओ पृ० ६१० देवातिदेव पुं० श्रेष्ठ देव (२) विष्णु (३) शिव (४) बुद्ध देवानुचर पुं० देवनो हजूरियो [वेद देवार्पण न० देवने चडावेली वस्तु (२) देशकालम् अ० समय अने स्थळ मुजब देशकालौ पुं० द्वि० व० समय अने स्थळ देहलोदीपन्यायः जुओ पृ० ६३३ ।। देहांतरप्राप्ति स्त्री० अन्य शरीर के बीजो जन्म प्राप्त थवो ते देप वि० दीवान दैवी स्त्री० दैव विवाहनी रीते परणेली स्त्री (२)वि० स्त्री० देव संबंधी दैष्टिक वि० दैव के नियतिथी नक्की ___ थयेलु (२) पुं० नियतिवादी; बधुं नसीबथी नियत थयेलु छे एवं माननारो दोहददुःखशीलता स्त्री० गर्भावस्था दोहदधूप पुं० खातर तरीके वपरातुं एक सुगंधी द्रव्य दौस्थ्य न० दुःखी स्थिति निवास, घसद पं० देव द्यूतकरमंडली स्त्री०, द्यूतमंडल न० जुगारीओनी मंडळी (२) जुगारीनी आसपास दोरेलु वर्तुल (देवू न चूकवी दे त्यां सुधी तेनी बहार न जई शके) द्यूतलेखक पुं०, न० जुगारनी होड नोंधनारो [बांधनारो खोकार पुं० शिल्पी (ऊंचा महेलो द्रढयति प० (सखत बांधवू; समर्थन करवू; टेको आपवो) मिल पुं० जुओ पृ० ६१० द्रविडाः पुं० ब० व० जुओ पृ० ६१० वाघयति प० (लांबु करवू, विस्तारवू; विलंब करवो) Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद ६९२ द्रुपद पुं० जुओं पृ० ६१० द्विवक्त्र पुं० एक जातनो राक्षस (२) द्रोण पुं० जुओ पृ० ६११ बे मोवाळो साप द्रौपदी स्त्री० जुओ पृ० ६११ द्वैतवन न० जुओ पृ० ६११ द्वंद्वमोह पुं० सुखदुःखादि द्वंद्वोथी थतो द्वैधीभाव पुं० बे भाग पडवा-पाडवा ते मोह (२)द्विधा-संशयथी उत्पन्न थती (२) बे भाग होवापणुं (३) शंका; मूंझवण [वरस चाले तेवू अनिश्चय (४) आ के ते' एम बेमांथी द्वादशवार्षिक वि० बार वरसन; बार शं स्वीकारQ ते न समजावं ते (५) द्वारवती स्त्री० जुओ पृ० ६११ बहारथी जुएं अने अंतरथी जुईं एम द्विचरण वि० बे-पगाळं; बे पगवाळं 'बेवडी रमत' (६) सैन्यना बे भाग द्विचंद्रमति पुं० (तिमिर नामना आंखना पाडीने शत्रुनी पजवणी करवी ते रोगथी) बे चंद्र देखावानो भ्रम द्वैपक्ष न० बे पक्ष पडी जवा ते द्विबाहु पुं० मनुष्य द्वघक्ष वि० बे आंखवाळू धनायति प० (धननी इच्छा करवी) धनाशा स्त्री० धननी आशा-इच्छा धन्वन पं० एक झाड (धमासो) धन्वंतरि पुं० जुओ पृ० ६११ धर्म, धर्मराज पुं० जुओ पृ० ६११ धर्मारण्य न० जुओ पृ० ६११ (२) तपोवन धर्षणा स्त्री० धर्षण; अपमान (२) अत्याचार ; बळात्कार (३) पराभव; पराजय धवलगिरि पुं० जुओ पृ० ६११ धातुमय वि० लाल धातुओथी भरेलु धातुरस पुं० धातुन बनावेलु प्रवाही (लखवा माटे) धान्यपलालन्यायः जुओ पृ० ६३३ धान्वंतर्य न० धन्वंतरि देवतावाळो होम धामकेशिन, धामनिधि पुं० सूर्य घाय्या स्त्री० ईंधण; बळतण (२) यज्ञनो अग्नि सळगाववानो होय त्यारे गवाती ऋचा धारय पुं० देवादार धाराश्रु न० आंसुओर्नु पूर धुर्यता स्त्री० आगेवानी; नेतृत्व धूपग्रह पुं० धूपदानी धूपति पुं० एक प्रकारनी सिगरेटबीडी जथो धूमलता स्त्री० गूंचळां वळतो धुमाडानो धूलिहस्तयति (धूळवाळा हाथ करवा) धृतगर्भ वि० गर्भ धारण कर्यो होय तेवू धृतराष्ट्र पुं० जुओ पृ० ६११ धृतिगृहीत वि० धृतियुक्त; अडग धृति कृ अडग रहेवू; स्थिर रहेवू; तृप्ति के संतोष मेळववां धति बंध धीरज दाखववी; मक्कमता बताववी; मन स्थिर करवू) धैर्यकलित वि० दृढ; स्थिर धोरणि, धोरणी स्त्री० सततपणुं; परंपरा तेवं धौतमूल वि० जेनां मूळ धोवायां होय ध्यानयोग पुं० एकध्यान थवारूपी योग ध्रु १,६ प० स्थिर थर्बु (२) जवू; खसवु (३) निश्चितपणे जाणवू (४) हणवू ध्व १५० वांकुं वाळवू (२) हणवू Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किचन ६९३ नित्यवैरिन् नकिंचन वि० अति दरिद्र-गरीब नकुल पुं० जुओ पृ० ६११ ।। नक्तमाल पुं० एक वृक्ष (करंज) नसायुध पुं० वाघ नगराध्यक्ष पुं० मुख्य पोलीस अधि कारी; कोटवाळ नग्नाचार्य पं. बंदीजन; चारण नचिकेतस् पुं० जुओ पृ० ६११ नचिर वि० लांबो समय नहि तेवू नटांगनान्यायः जुओ पृ० ६३३ नड्बल न० पुष्कळ बरुवाळो प्रदेश नमनीय वि० आदरणीय नमचि पं० जुओ पृ० ६११ । नयनत्व न० आंखोनी दशा-स्थिति नरक पुं० जुओ पृ० ६११ [६११ नरनारायणौ पुं० द्वि० व० जुओ पृ० नद्धि (न + ऋद्धि) पुं० आपत्ति; तंगी नल पुं० जुओ पृ० ६११। नलकूबर पुं० जुओ पृ० ६११ नष्टाश्वदग्धरथन्यायः जुओ प० ६३३ नस्थ न० छींक लावे तेवी वस्तु न हि विवाहान्तरं वरपरीक्षा जुओ पृ० ६३३ न हि सहस्रेणाप्यन्धैः पाटच्चरेभ्यो गृहं रक्ष्यते जुओ पृ० ६३३ । नहुष पुं० जुओ १० ६११ नह्येष स्थाणोरपराधो यदेनमन्धो न पश्यति जुओ पृ० ६३.३ नंद पुं० जुओ पृ० ६११ नंदनवन जुओ पृ० ६१२ नंदिग्नाम घु० जुओ पृ० ६१२ नंदिनी स्त्री० जुओ पृ० ६१२ नंद्यावर्त पुं० एक आकृति (२) ते आकृतिमां बांधेलु मकान (पश्चिममा द्वार न होय तेवू) (३) ते आकारपात्र-थाळी नाकनायक पुं० इंद्र नाकिन् पुं० देव नागकेतु पुं० कर्ण नागराज पुं० मोटो हाथी (२) शेषनाग नाडीचक्र न० शरीरमां (मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर इ०) नाडीओनां १६ चक्रोनो समूह नापितोच्छिष्टता स्त्री० हजामत पछी स्नान न करवू ते नामत्याग पुं० नाम छोडी देवं ते नायकायते आ० (हारना मध्यमणिनो भाग भजववो ते; आगेवाननो भाग भजववो ते) नारक पुं० नरक (२) नरकनो जीव नारद पुं० जुओ पृ० ६१२ नारायण पुं० जुओ पृ० ६१२ नार्पयति (राजाने सोंपी देवें-मिलकत) नावनिक वि० नवम नासत्ययुग न० सत्ययुग (२)बे अश्विनी कुमारनुं जोडक नास्तिक्य न० नास्तिकपणुं निकुलीनका, निकुलोनिका स्त्री० वंश परंपरामां आवेली कोई पण कळा; विशिष्ट कोन के जातिनी कळा (२) ऊडवानी एक रीत निक्षेपकणिक पं० जेने त्यां मालसामान थापण तरीके मूकवामां आवे तेवो वेपारी निगडयति प० (सांकळथी जकडवूनिगुप् संताडवू; छुपावq निग ६ प० गळी जवं; खाई जर्बु निग्रंथि पुं० पुस्तकनु पूर्छ मिजबोध पुं० आत्मज्ञान; अध्यात्म ज्ञान नितांतकठिन वि० तीव्र नित्ययुक्त वि० निरंतर लवलीन रहेतुं नित्यवैरिन् वि० सनातन शत्रु बांधवू) Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नित्यसत्त्वस्थ ६९४ निष्प्रचार नित्यसत्त्वस्थ वि० हमेशां सात्त्विक निर्मन्यु, निर्मन्युक वि० क्रोधरहित वृत्तिवाळू ; नित्य सत्य वस्तु विष स्थित निमंत्र वि० वेद-मंत्र न भणेलु (२) नित्याभियुक्त वि. निरंतर समाधि- __ मंत्र बोल्या विनानुं (विधि) युक्त चित्तवाळं [वर्षाऋतुनुं निर्मानमोह वि० मान अने मोहरहित निदाघवार्षिक वि० उनाळानुं अने निर्मास वि० मांसरहित निबंद्ध पुं० लेखक (२)टीकाकार निमिति स्त्री० रचना; सर्जन; कृति निमय पुं० अदलोबदलो; विनिमय निर्मुमुक्षु वि० मोक्षने झंखतुं निमा ३ आ० मापq; तुलना करवी निर्वत्सल वि० (संतान प्रत्ये) वात्सल्य (किंमतनी) विनानुं निमि j० जुओ प० ६१२ । कारण निर्वात पुं० पवन विनानुं स्थळ निमित्तनैमित्तिक न० (द्वि०व०) कार्य निर्वारित वि० निवारेल निमित्तमात्र न० मात्र निमित्तरूप निविचेष्ट वि० उद्यम रहित; हाल्या एवं ते करतुं चाल्या विनानुं नियमस्थ वि० नियम पाळतुं; तपस्या निविनोद वि० आनंद-प्रमोद विनानुं निराकृति पुं० अंगोपांग सहित वेदा निश्षिय वि० घर के रहेठाणमांथी भ्यास न को होय तेवो ब्रह्मचारी काढो मुकायल (२) क्षेत्र न होय (२) यथोचित स्वाध्याय न करनारो तेवं (३) विषयभोगमा अनासक्त ब्राह्मण (३)पंच महायज्ञ न करनारो निविषयोत वि० घरबार विनानु करायल बागलं जिरादान वि० कशु ज न लेतुं - निर्वीर वि० वीरो-बहादुरो वगरन (२) स्वीकारतुं (बुद्धनुं विशेषण) निर्वीरा स्त्री० पति-पुत्र भरी गया निराधार वि० अनाथ [ते होय तेवी स्त्री निरायजस्व न० ट्रंकु-सांकडं-नानु होवू नियाजम् अ० निखालसताथी निराशक पं० हताश निहारिन् वि० दूर सुधी फेलातुं (२) निराहार वि० आहार वयरनं ; उपनासी सुगंधी (३) पुं० बीजी गंधने दवावी निरुकान चु० नियोग विधिथो थयेलो दे तेवी गंध ~ क्षेत्र पुत्र निलिंद पुं० देव मिल्ट वि० रूढ; प्रचलित . निसिपाभित्र पुं० इंद्र निर्बल १५० गळी-टपकी-झरी जवू निवासरचना स्त्री० इमारत निर्गुर वि० घर विनानुं निविड वि० निबिड; गाढं करनाएं निर्जय पुं० पूरेपूरो विजय निवृत्तमांस वि० निरामिष आहार निर्माणका स्त्री० प्रायश्चित्त .. निशानिशम वि० दरेक राते; दररोज निर्दरासिन् वि० पर्वतनी गुफामां निषद् स्त्री० यज्ञदीक्षा (२) यज्ञकर्मनी रहेला देवता वगेरेनुं निरूपण करनार कृति निसपनोरथन्यायः जुओ पृ० ६३३ निषध पुं० जुओ पृ० ६१२। निधिन् वि० आग्रही; जक्की निषंगिन वि० आसक्त; वळगेलुं (२) नितीका अ० मांखीओ वगरनुं होय · भाथावाळू (३) तरवारवाळं तेम; निर्जन होय तेम । निष्प्रचार वि० एक जगाएं स्थिर निर्मत्सर वि० अदेखाई विनानुं रहेनारे; हालचाल न करनाएं Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निष्प्रताप निध्यता वि० तेल के प्रभाव विनानु निहाइ पुं० अवाज; ध्वनि मोकाश मि० सदृश मूळ गोतिबीज न० राजकारण-खटपटनु गोर न० कदंः, वृक्षलु कूल नारकीरल्यायः जुओ पृ० ६३३ मीराषिः वि० प्रकाश मील पुं० जुओ पृ० ६१२ नसभा सत् अ० संभवतः नबनापितयः जुओ १० ६३३ । अधिष वि. जेनी आंखमां वाहक झेर छे तेवू (ब्राह्मण) नैमिषारण्य न० जुओ पृ० ६१२ मैक्षिक न० घरव जरीनुं कोई पण साधन के वासण परिचुंबन नैषध पुं० जुओ पृ० ६१२ नोदस्ति वि० प्रेरना; धकेलनाएं चोमोजायः जुओ पृ० ६३४ कु पुं० एक जातनुं हरण (२) ऋष्यशृंग मुनि न्यंग पुं० निशान (२) प्रकार (३) कलंक न्यंच १५० नीचे जवं; बळी जवू (२) व्यतीत थवं; घटवं न्यंच जि० नोचे वळेलु (२) नीच; हलकुं; क्षुद्र (३) आखं (४) ऊबडु संत पुं० पश्चिमनी दाजु (२) नजीकपणु न्यायनि पुं० शंकर (न्याययुक्त दानवाळा) जिनाएं पक्षहत वि० पक्षाघात थयेलं; एक बाहुए लकवो थयेलं पसार पं० पत्रवाडिये एक ज वार भोजन लेदारो साली स्त्री० समुह पघंटा स्त्री० तीव्र अवाजवाळो घंट पगस्त्री स्त्री० वेश्या घोडो पतत्रिन , पंजी (२) वाण (३) पतत्रिवर पुं० गरुड (पंखोओमां श्रेष्ठ) पतं.लि पुं० जुओ पृ० ६१२ पत्ररकेटु पुं० विष्णु (पत्ररथ-पंखी, तेजना राजा गरुड जेनी ध्वजामां छे) पथोरवेशम पं० भोमियो पदासिन्यायः जुओ पृ० ६३४ । पद्मावती स्त्री० जुओ पृ० ६१२ पयत्यति, पयायते (दूधनी जेम वहेवू प्राप्त थर्बु) पयोष्णी स्त्री० जुओ पृ० ६१२ । परकलत्राभिगमन न० परस्त्री साधे व्यभिचार परगुण पुं० बीजानो गुण । परथा अ० अन्यथा; बीजी रीते परदुःख न० पारकानुं दुःख पर पडनक्षक वि० पारक अन्न खाईने जीवनाएं (दास) (२) बीजानुं खाई जनाएं परपिंडरत वि० बीजानुं अन्न खाई परलोकरिधि पुं० अग्निसंस्कार परशुधाल पुं० जुओ पृ० ६१२ पराभाष पुं० पराभव पराशर पुं० जुओ पृ० ६१२ परिमित वि० सुशोभित ; शणगारेलु परिकालयित वि० बीटळातुं परिखेद पुं० थाक; परिश्रम परिग्राहक वि० कृपा दाखवतुं परिघ्रा १५० खूब जोरथी के वारंवार चुंबवू योग्य परिचार्य वि० सेववा के परिचर्चा करवा परिचीर्ण वि० पूजित; सेवित परिचुंबन न० प्रेमपूर्वक चुंबन कर ते Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिडीन परिडीन न० गोळ कुंडाळं करतां ऊडवं ते (पक्षीनी ऊडवानी एकरीत) परितर्कण न० विचारणा; विमर्श परित्यागिन् वि० परित्याग करनाएं (संन्यासी) [सूकवी नाखवू परिदह. १ प० पूरेपूर बाळी नाखवू; । परिदिव, परिदेव १, १० प० विलाप करवो; शोक करवो परिपठ -प्रेरक० भणाववं; शीखव, परिपणित वि० सोगन लीधेलं; वचन आपेलं कर ते परिपूरण न० भरी काढवू ते; परिपूर्ण परिपृच्छिक, परिपूष्टिक वि० आग्रह करीने आपे त्यारे ज लेनाएं परिबर्हण न० परिवार (२) मालमता; सामग्री (३) वृद्धि (४) आराधना परिबाध् १ आ० कनडवू; पीडवू परिभविन् वि० पराभव-अपमान करनाएं (२) अपमान वेठनाएं (३) जीतनारे; हरावनाएं परिमर्द पुं० दवाव-कचरवं-छंदवू ते (२) विनाश (३) ईजा करवी ते (४) आलिंगवू ते (५) वापरी नाखवू - भोगवी नाखवू ते परिमंडल न० गोळ कुंडाळं (२) दडो (३) पैडानी नेमि . परिरक्षण न० संरक्षण ; जाळवणी (२) वळगी रहे - उल्लंघन न कर ते परिवर्तक वि० गोळ फरे तेन करतुं (२) बदलो करतुं (३) गोळ फरतुं (४) अंत लावतुं पास फरतुं परिवर्त्य वि० वारंवार आवतुं ; आसपरिवाप पुं० मुंडन (२) वावणी (३) जलाशय (४) साधनसामग्री (५) । परिवार (६) वाणी; पौंवा (७) थोभवानुं स्थळ परिवीज १ आ० पंखो नाखवो परिवेष्ट पुं० पीरसनारो (२) आहुति आपनारो पंचत्वं गम् परिशेष पुं० बाको रहेg ते (२) अंत; विनाश (३) समाप्ति (४) पुरवणी परिसंख्या स्त्री० गणतरी (२) सर वाळो; कुल संख्या जगा परि न० आंतरो के बाउ करेली परिद पु० धबकारो; हलनचलन (२) जुओ पृ० २७२ परिस्फुर ६ प० धबकg; कंपy परीक्षित् पुं० जुओ पृ० ६१२ परुणी स्त्री० जुओ पृ० ६१२ पर्यवस्थात पुं० विरोधी; सामावाळियो पर्यश्रुनयन वि० आंसु ददडती आंखोवाळू पर्याकुलत्व न० अस्तव्यस्त होबापगुं पर्यागल १ प० चोमेर गळवू- टपकवू पर्वकार पुं० बेषांतरधारी; बहुरूपी पर्वसंधि पुं० पूनम अने पडवानी संधि पर्षद्वल पुं० परिषदनो सभ्य पन्छीही स्त्री० जुवान गाय; बाल गर्भिणी गाय पस्त्य न० निवासस्थान; रहेठाण ; घर पस्पश पुं० पतंजलिना महाभाष्यना प्रथम अध्यायनं प्रथम आह्निक (२) उपोद्घात ('अ-पस्पशा' एटले प्रथम आह्निक वगरनी शब्दविद्या; तेम ज 'अप-स्पशा' एटले जासूस विनानी राजविद्या) पंकाक्षालनन्यायः जुओ पृ० ६३४ पंकयति प० (कादववाळं करवू; डहोळं करवू) पंक्तिदूष पुं० जेनी साथे एक पंगते जमवा बेसी न शकाय तेवो; पंगतने अमडावनारो पंक्तिशः अ० पंक्तिसर पंग्वंधन्यायः जुओ पृ० ६३४ पंचजन पुं० जुओ पृ० ६१२ पंचतंत्र न० विष्णुशर्मा रचित पांच प्रकरणवा नीतिशास्त्र पंचत्यभाप्, पंचत्वं गम् मरी जवू (पांच महाभूत छूटां पडी जवां) Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचत्वं नी ६९७ पित्तभेद पंचत्वं नी मारी नांखवू; नाश करवो पारशवी स्त्री० शूद्र स्त्रीथी थयेली पंचनद पुं० जुओ पृ० ६१२ [चाल ब्राह्मणनी पुत्री पंचर्चावदुप्रसृत न० नृत्यमा एक प्रकारनी पारश्वधिकरान पुं० परशुराम पुत्र पंचवटी स्त्री० जुओ पृ० ६१२ पारसबपुं० शूद्र स्त्रीथी थयेलो ब्राह्मणनो पंचष वि० (ब०व०) पांच अथवा छ । पारसीक पुं० जुओ पृ० ६१३ पंचसट पुं० वच्चे वच्चे वाळनी पांच लट पारिपात्र पुं० जुओ पृ० ६१३ राखीन मूंडी नाखेलो पारिभद्र पुं० देवदारनुं वृक्ष (२) मंदार पंचार रस न० मंडणि ऋषिए बनावेलं वृक्ष (३) कडवो लोमडो एक सरोवर पारिमाण्य न० वेरावो; परिघ पंचाल पुं० जुओ पृ० ६१३ । पारियात्र पुं० जुओ पृ० ६१३ पंचांगविनिर्णय पुं० राजनीतिनां पांच पार्थिवपुत्रपौत्र पुं० युधिष्ठिर राजा अंग (जुओ पृ० २७७) बराबर छे (पार्थिवपुत्र-सूर्य, तेनो पुत्र यम-धर्मके नहि तेनो निश्चय राज, तेनो पुत्र) पंपरबालनन्यायः जुओ प० ६३४ पार्वती स्त्री० जुओ पृ० ६१३ पंपा स्त्रो० जुओ पृ० ६१३ पार्षत पुं० द्रुपद (२) धृष्टद्युम्न पाकयज्ञ पुं० घरमां करातो सादो यज्ञ पार्वती स्त्री० द्रौपदी (पार्षत-द्रुपदनी पाकशासन पुं० इंद्र (पाक नामना पुत्री) हांडी राक्षसने हणनार) पालिका स्त्री० पाळी-छरी(२)पळी(३) पासवरलुंठिते वेश्मनि यानिकजाग पावकीय वि० सळग; अग्निमय रमम् जुओ पृ० ६३४ पावन न० पावन - पवित्र करवू ते पाटलिपुत्र जुओ पृ० ६१३ पावित वि० पावन - शुद्ध करेलु पाणिनि पुं० जुओ पृ० ६१३। पाशफपीठ न० जुगार खेलवानुं घर पातालमुख न० पाताळना मों जेवो के मेज मोटो खाडो पाशुपाल्य न० पशु पाळवां-उछेरवां ते पांवलेय वि. भोजन वखते एक ज पातित्य न० जातिभ्रष्टता पंक्तिमा बेसवा योग्य . पात्रयति प० (पाणी पीवाना वासण पांचालेय पुं० द्रौपदीनो पुत्र तरीके वापर) पांचाल्य पुं० द्रुपद (पांचालोनो राजा) पात्रसंचार पुं० भोजन-समारंभ वखते पांडु पुं० जुओ पृ० ६१३ । वासणो मूकवां ते पांडुसोपाक पु० ते नामे एक मिश्र जाति पाज पुं० शूद्र पांड्य पुं० जुओ पृ० ६१३ पादरक्षाः पुं०ब०व० रणांगणमां हाथीना पाथदुर्गा स्त्री० रस्ता उपरनी देवता पगर्नु रक्षण करता सशस्त्र सैनिको पांसुविकर्षण न० जमीन उपर थतुं पादाष्ठील पुं० पगनो गूडो-नळो मुष्टियुद्ध; कुस्ती-दंगल (२) रेतीमां पानप वि० दारूडियु रमवू ते पापक पुं० पापी माणस (२) अनिष्ट पिचंड पुं०, न० उदर; पेट असर करनार ग्रह [जन्मेलु पितृमेध पुं० पितृओने उद्देशीने करवामां पापवंश दि० भ्रष्ट - पापी कुळमां आवतो यज्ञ ; पितृतर्पण [पित्तक्षोभ पारवये वि० शत्रुपक्षन पित्तभेद पुं० पित्त धातुनी विकृति; Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९८ पिपीलिकागतिन्यायः पिपीलिकागतिन्यायः जुओ पृ० ६३४ पिशंग वि० पींगळो रंग। पिशुन पुं० चाडियो; निंदाखोर (२) नारद (३) कागडो पिष्टपेषणन्यायः जुओ पृ० ६३४ . पिष्टातक पुं० अबील; सुगंधी चूर्ण पीठमदिका स्त्री० नायिकाने तेना प्रेमीनो संग प्राप्त करवामां मदद करनार सखी पील पुं० परमाणु (२) बाण (३) हाथी (४) ताडनुं थड (५) ताडनुं झुंड (६) पीलुन झाड पुटीक पडियानो आकार बनाववो; संपुटनो आकार बनाववो पुण्यक न० स्त्री पतिनो प्रेम जाळवी राखवा तथा पुत्र मेळववा जे व्रत करे छे ते [प्रकारनी रीत पुनर्जीन न० पक्षीनी ऊडवानी एक पुरमार्ग पुं० नगरनो रस्तो- मार्ग पुरंदरक्ष्माधर पुं० महेंद्र पर्वत (जुओ पृ० ६१८) पुरु पुं० जुओ पृ० ६१३ पुरुषपुर न० जुओ पृ० ६१३ । पुरुषशीर्षक पुं० चोरन एक साधन (भोतमां पाडेला वाकामां खोसवानुं बनावटी माथु) पुरूरवस् पुं० जुओ पृ० ६१३ पुरोचन पुं० जुओ पृ० ६१३ पुलस्त्य पुं० जुओ पृ० ६१३ पुलिददेश पुं० जुओ पृ० ६१३ पुष्टलगुडन्यायः जुओ पृ० ६३४ पुष्पदंत पुं० शिवनो एक गण (२) महिम्नस्तोत्रनो कर्ता (३) वायव्य खूणानो दिग्गज [वींटण पुस्तकास्तरण न० हस्तलिखित पुस्तकनु पुस्तिकापूलिक पुं० हस्तप्रतोनो संग्रह पंगवकेतु पुं० शंकर (ध्वजमां वृषभवाळा) पुंड्रदेश पुं० जुओ पृ० ६१३ प्रतिमात्रा नाग पुं० मनुष्योमां हाथी - श्रेष्ठ एवो ते (२) सफेद हाथी (३) सफेद कमळ (४) नागकेशर वृक्ष (५) एक वृक्ष (६) जायफळ पूर्वपितामह पुं० पूर्वज [(२५ मुं) पूर्वप्रोष्ठपदा स्त्री० पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र पूर्वसंध्या स्त्री० प्रभात; परोढ पृथामिन् वि० द्वैतवादी पेषीक दळवं; कचर, पौनव पुं० पुनर्लग्न करेली विधवानो पुत्र (२) स्त्रीनो बीजो पति [ते प्रकांडक पुं० थड (२)कोई वर्गन श्रेष्ठ प्रश्विद् गुंजवू ; गाजवू; सुसवाट करवो प्रघाण पुं० घरना दरवाजा आगळy कमानदार ओरडा जेवू बांधकाम प्रचषाल न० यज्ञस्तंभ उपरनो चक्र जेवो शणगार [पडी जq ते प्रच्युति स्त्री० च्यव-गबडवूते;-मांथी प्रणयवत् वि० प्रेमपूर्ण (२) झंखतुं । प्रतक् १० उ० अनुमान करवू (२) धारवं; मानवू [शोक प्रतिकामिनी स्त्री प्रेममा हरीफ स्त्री; प्रतिकारविधान न० दवा वगेरे उपचार प्रतिपक्षकामिनी, प्रतिपक्षलक्ष्मी स्त्री० सपत्नी; शोक प्रतिपत्तिपराङ्मुख वि० हठीलं; जक्की प्रतिपत्तिविशारद वि० चतुर; होशियार प्रतिपल्लव पुं० सामे आवेली - वधु लंबाती डाळी प्रतिपाण पुं० होड; सामी होड प्रतिपात्रम् अ० दरेक पात्रना संबंधमां प्रतिप्रास्थानिक वि० अध्वर्युना मददनीशन प्रतिबंद्धता स्त्री० खंडन; विरोध प्रतिबंधु पुं० समान दरज्जानो माणस प्रतिबू २ उ० जवाब आपवो प्रतिमाचंद्र पुं० चंद्रन प्रतिबिंब .. प्रतिमात्रा स्त्री० माया-प्रयोगनी सामेनो (तेना निवारण माटेनो) माया-प्रयोग Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिवप् प्रतिवप् १ प० वादधुं (२) रोपवुं (३) जडबुं; सखत चोटाडवु प्रतिविधातव्यम् 'सावचेती रासवी जोइए'; 'सामां पगलां लेवां जोईए' प्रतिशाखा स्त्री० डाळीमांथी फूटेली डाळी; उपशाखा प्रतिष्ठान न० जुओ पृ० ६१३ प्रतीप पुं० दुश्मन; विरोधी ( २ ) शंतनु राजाना पिता; भीष्मना दादा प्रत्यधिदेवता स्त्री० सामे के नजीक रहेती कुळदेवी प्रत्यरि पुं० बरोबरियो शत्रु ( २ ) जन्मनक्षत्रथी ९ मुं, १४ मुं के २३ मुं नक्षत्र (३) स्वनक्षत्रथी दिननक्षत्र सुधीनी संख्याने नवे भागतां पांचमी तारा प्रत्याम्नाय पुं० प्रतिनिधि; अवेजी प्रत्याश्वास पुं० श्वास लेवो ते; विश्रांति प्रद्युम्न पुं० जुओ पृ० ६१४ प्रद्योत पुं० जुओ पृ० ६१४ प्रधानमल्लनिबर्हणन्यायः जुओ पृ० ६३४ प्रपंचन न० निरूपण; विस्तार प्रपंचयत प० ( विस्तारथी समजाववुं ) प्रब्रू २ उ० जाहेर करवुं ( २ ) पोकार ( ३ ) कहेवुं ( ४ ) शीखववुं ( ५ ) प्रशंसा करवी प्रभाववत् वि० शक्तिशाळी ( २ ) भव्य प्रमहस् वि० महा तेजस्वी के प्रभाववाळु प्रमिला स्त्री० जुओ पृष्ठ ६१४ प्रमृष्टि स्त्री० लुछवं - मांज-साफ क प्रयाग न० जुओ पृ० ६१४ बक पुं० जुओ पृ० ६१४ बदरिकाश्राम पुं० जुओ पृ० ६१४ बदरीतपोवन न० बदरिकाश्रम पासेनुं तपोवन ६९९ बलराम प्रलंबबाहु वि० नीचेनी बाजु लटकता हाथवाळं [ पेट प्रण न० सीधो ढोळाव ( २ ) कराड (३) प्रश्नपूर्वकेन अ० परीक्षा पछी ० आगळ लंबावेलो आंगळी प्रसृष्टा स्त्री० (२) लडाईमा एक दाव (आखा शरीरने सकंजामां लें ) प्रस्फुरिताषर वि० नीचलो होठ कंपतो होय तेवुं प्रस्रवण पुं० जुओ पृ० ६१४ [ तेवुं प्रहतमुरज वि० ढोल-मृदंग वागतां होय प्रह्लाद पुं० जुओ पृ० ६१४ प्रह्वल १ प० कंप; धूजबुं प्राग्ज्योतिष न० जुओ पृ० ६१४ प्राची स्त्री० पूर्व दिशा प्राजित पुं० सारथि [ मानना प्राज्ञमानिन् वि० पोताने पंडित - डाहधुं प्रातिकूलिक वि० प्रतिकूळ के विरोधी एवु [ मुख्यत्वे प्राधान्यतः अ० मुख्य मुख्य होय एम; प्रायश्चेतन न० प्रायश्चित्त प्रार्च् १ ५० प्रशंसा करवी - प्रेरक ० संमानवु; पूजवुं प्रार्थनासिद्धि स्त्री० इच्छा पूर्ण थवी ते प्रियदत्ता स्त्री० पृथ्वी ( मांत्रिक नाम ) प्रीतिच्छेद पुं० आनंदनो नाश प्रैष्य न० नोकरी; चाकरी; दासत्व प्रोड्डी ( प्र + उद् + डी ) ऊंचे ऊडबु प्रोद्दीप्त वि० सळगतुं; वळतुं प्रोन्नत वि० शक्तिशाळी; मजबूत प्लक्ष पुं० जुओ पृ० ६१४ [वाळी) लायित वि० पार करावनाएं ( होडी बधिरकर्णजपन्यायः जुओ पृ० ६३४ बभ्रुवाहन पुं० जुओ पृ० ६१४ बल, बलभद्र, बलराम पुं० जुओ पृ० ६१४ Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बलहंत ७०० बलहंत पुं० इंद्र (वल राक्षसने हणनार) बलि पुं० जुओ पृ० ६१४ बलिपुष्ट पुं० कागडो बहिर्वृत्ति स्त्री० बहारनी बाजु;बहारनो देखाव बाण पुं० जुओ पृ० ६१४ बाणासनयंत्र न० एक प्रकारर्नु धनुष्य (यांत्रिक करामतथी बाण छोडतुं) बाल्वज वि० बाल्व पासवें बनावेलु (वैश्यनो कंदोरो) बालहीक, बाहीक पुं० जुओ पृ० ६१४ बाहुक पुं० जुओ पृ० ६१४ बाहकंटक न० लडाईनो एक प्रकार (बच्चेथी चीरी नाखवू ते) बिसकंठिका स्त्री० बगली बीजवृक्षन्यायः, बीजांकुरन्यायः जुओ पृ० ६३४ भ्रांतिमत् बुक्क् १५०, १० उ० भस, बुद्ध पुं० जुओ पृ० ६१४ बुद्धिग्राह्य वि० बुद्धिथी अनुभवाय एवं; बुद्धिथी ग्रहण करवा योग्य बुध पुं० जुओ पृ० ६१५ बृहस्पति पुं० जुओ पृ० ६१५ बैल्व वि० बीलाना झाडर्नु ब्रह्मदूषक वि० वेदने जूठा पाडनाएं ब्रह्मन् पुं० जुओ पृ० ६१५ ब्रह्मराक्षस पुं० एक प्रकारचें भूत (जे ब्राह्मण परस्त्रीनुं तथा ब्राह्मणनी भिलकतनुं हरण करे ते मरीने अरण्य के निर्जळ देशमां एवं भूत थाय) ब्रह्मावर्त पुं० जुओ पृ० ६१५ ब्रह्मांजलि पुं० वेदपाठनी शरूआतमां तेम ज अंते गुरुने हाथ जोडवा ते ब्राह्मणग्रामन्यायः जुओ पृ० ६३४ भक्षितेऽपि लशुने न शांतो व्याषिः जुओ भीम पुं० जुओ पृ० ६१६ पृ० ६३४ भीमसेन पुं० जुओ पृ० ६१६ भगघ्न पुं० शंकर (भग-आदित्यनी भीष्म पुं० जुओ पृ० ६१६ आंखो फोडनार) भीष्मक पुं० जुओ पृ० ६१६ भट्टार वि० संमाननीय ; आदरणीय भूमिपति पुं० राजा; सम्राट भरत पुं० जुओ पृ० ६१५ भलिंगशकुन पुं० पंखीनी एक जात भरतवर्ष पुं० जुओ पृ० ६१५ (पर्वतमां थती) भरद्वाज जुओ पृ० ६१५ . भूलिंगशकुनिन्यायः जुओ पृ० ६३२ भर पुं० सुवर्ण; सोनू (२) पति (३) भूषा स्त्री० आभूषण (२) रत्न शिव (४) विष्णु भृगु पुं० जुओ पृ० ६१६ । भरुकच्छ पुं० जुओ पृ० ६१५ भक्ष्याश्रम पुं० संन्यासाश्रम (२) भस्मनि आज्याहुतिः जुओ पृ० ६३४ ब्रह्मचर्याश्रम भागीरथी स्त्री० जुओ पृ० ६१५ भोज पुं० जुओ पृ० ६१६ भार्योढ वि० परणेलु (पुरुष) भोजपति पुं० जुओ पृ० ६१६ भिक्षुपादप्रसारणन्यायः जुओ पृ० ६३४ । भ्रांतिमत् वि० गोळ फरतुं (२) भ्रममां भिल्लीचंदनन्यायः जुओ पृ० ६३४ पडेलु Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मगध ७०१ मृगराज मगध पुं० जुओ पृ० ६१७ मणिपुर न० जुओ पृ० ६१७ मत वि० मानेलं; धारेलू; गणेलू (२) संमान करेलु (३) ध्यान करेल (४) इच्छेलु (५) संमति आपेलं मत्स्यदेश पुं० जुओ पृ० ६१७ मदनकलह पुं० मैथुन; संभोग मवावस्था स्त्री० मद झरवानी स्थिति (२) पीधेली दशा (३) कामोन्मादनी दशा मद्र पुं० जुओ पृ० ६१७ मधु पुं० जुओ पृ० ६१७ मधुपकिक पुं० संमानित अतिथिना सत्कार-विधि वखते स्तुतिगान के मंगळगान करनारो मषु पश्यसि दुर्बुद्धे प्रपातं नानुपश्यसि जुओ पृ० ६३४ मधपुर न० मथुरा मधुवन न० जुओ प० ६१७ मध्यदेश पुं० जुओ पृ० ६१७ मनु पुं० जुओ पृ० ६१७ ।। मनोवहा स्त्री० हृदयनी मध्यमां रहेली एक नाडी मय, मयासुर पुं० जुओ पृ० ६१७ मरीचि पुं० जुओ पृ० ६१७ मर्कटमदिरापानादिन्यायःजुओपृ०६३५ मलज, मलद पुं० जुओ पृ० ६१७ मलय पुं० जुओ पृ० ६१७ मल्लदेश पुं० जुओ पृ० ६१७ महाकाल पुं० जुओ पृ० ६१८ महाकोसल पुं० जुओ पृ० ६१८ महाडीन न० पक्षीनी ऊडवानी एक रीत [प०६१८ महानदी स्त्री० मोटी नदी (२) जुओ महापथिक वि० राजमार्ग के धोरीमार्ग उपर जकात उघरावनाएं (२) मोटी मुसाफरीओ करतुं [ग्रंथोनो समूह महास्मृति स्त्री० षडंगो अने स्मतिमहेंद्र पुं० जुओ पृ० ६१८ महोदय न० जुओ पृ० ६१८ मंडुकप्लुतिन्यायः जुओ पृ० ६३५ मंदाकिनी स्त्री० जुओ पृ० ६१८ माकंदी स्त्री० जुओ पृ० ६१८ माघ पुं० जुओ पृ० ६१८ । माठर पुं० व्यास (२)एक ब्राह्मण (३) दारू गाळनारो (४) सूर्यनो एक अनुचर - परिपाश्विक (५)एक गोत्र मात्स्यन्यायः जुओ पृ० ६३५ माद्री स्त्री० जुओ पृ० ६१८ माधव पुं० जुओ पृ० ६१८ मानस न० जुओ पृ० ६१८ माया स्त्री० जुओ पृ० ६१८ माया, मायापुरी स्त्री० जुओ पृ० ६१८ मायावती स्त्री० जुओ पृ० ६१८ मारीच पुं० जुओ पृ० ६१८ मारुति पुं० जुओ पृ० ६१८ मालव पुं० जुओ पृ० ६१८ मालिनी स्त्री० जुओ पृ० ६१८ माल्यवत् पुं० जुओ पृ० ६१८ माहिषक पुं० जुओ पृ० ६१९ माहिष्मती स्त्री० जुओ पृ० ६१९ मिथिला स्त्री० जुओ पृ० ६१९ मीदवस. वि० उदार; दानेशरी (२) वीर्यस्राव करतुं (३) शिव मुट १५०,१० उ० कचरी-छंदी नाखवं (२) मारी नांखवू मुनिता स्त्री० वानप्रस्थपणुं मुर पुं० जुओ पृ० ६१९ मुरारि पुं० जुओ पृ० ६१९ मगराज पुं० सिंह Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेकल मेकल पुं० जुओ पृ० ६१९ मेघनाद पुं० जुओ पृ० ६१९ मेनका स्त्री० जुओ पृ० ६१९ मेना स्त्री० जुओ पृ० ६१९ मेरु पुं० जुओ पृ० ६१९ मेषशृंग पुं० एक जातनुं वृक्ष मेहन न ० मूतरखं ते (२) मूतर ( ३ ) पुरुषनी इंद्रिय ७०२ यक्ष्मिन् वि० क्षयरोगी [ शिष्य यजमानशिष्य पुं० यज्ञ करनार ब्राह्मणनो यज्ञपुर न० जुओ पृ० ६१९ यज्ञसंस्तर पुं० यज्ञनी ईंटो गोठववी ते यत् करभस्य पृष्ठे न माति तत् कंठे निबध्यते जुओ पृ० ६३५ यथास्व वि० पोतपोतानुं यदु पुं० जुओ पृ० ६१९ ययाति पुं० जुओ पृ० ६१९ यः कुरुते स एव भुंक्ते जुओ पृ० ६३५ याचितकमंडनन्यामः जुओ पृ० ६३५ रक्ताशोक पुं० लाल रंगनुं अशोक पुष्प रक्षाकरंडक न० जुओ 'रक्षाकरंड' ( पृ० ४०३ ) रघु पुं० जुओ पृ० ६२० रघुनंदन, रघुनाथ पुं० जुओ पृ० ६२० रघुवंश पुं० रघुराजाओनो वंश ( २ ) न० ए नामनुं कालिदासकृत महाकाव्य रथंतर न० साम मंत्र; सामगान ( २ ) 'अहं ब्रह्मास्मि' ए महावाक्य रसातल न० जुओ पृ० ६२० रंतिदेव पुं० जुओ पृ० ६२० रंध्रागत न० घोडाना गळानो एक रोग रागखांडव पुं० चोखानी गोळपापडी य मैत्रायण न० सर्व प्रत्ये मित्रभाव मैत्री स्त्री० मित्रता; निकट संबंध मैनाक पुं० जुओ पृ० ६१९ मोक्षिन् वि० मुमुक्षु मोहपरायण वि० मोहमां पडेलं; मूढ बनेलुं मोहिनी स्त्री० जुओ पृ० ६१९ म्लानमुख वि० हताश; खिन्न राहु याज्ञवल्क्य पुं० जुओ पृ० ६१९ यादृशी यक्षस्तादृशो बलिः जुओ पृ० ६३५ यामुनगिरि पुं० जुओ पृ० ६१९ युगंधर पुं० जुओ पृ० ६१९ युधाजित पुं० जुओ पृ० ६१९ युधिष्ठिर पुं० जुओ पृ० ६२० युयुत्सु पुं० जुओ पृ० ६२० युयुधान पुं० जुओ पृ० ६२० योगयुक्त वि० योगमा लीन यौधेय पुं० जुओ पृ० ६२० राजगृह न० जुओ पृ० ६२० [ जिवाई राजपिंड पुं० राजा तरफथी मळती राजपौरुषिक पुं० राजसेवक राजी स्त्री० पंक्ति; रेखा राज्यतंत्र न० राजवहीवट ; तेनुं शास्त्र राढपुं० सुह्म (जुओ पृ० ६२८) राधा स्त्री० जुओ पृ० ६२० राम पुं० जुओ पृ० ६२० रामगिरि पुं० जुओ पृ० ६२० रावण पुं० जुओ पृ० ६२० शिवर्धन वि० संख्यामा उमेरो करना (२) निरुपयोगी ; व्यर्थ (ला० ) राहु पुं० जुओ पृ० ६२० Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रीति रीति स्त्री० स्त्री० रसोत्पत्तिमां उपकारक एवी पदरचना वगेरेनी चार शैलीमांनी दरेक ( वैदर्भी, गौडी, पांचाली, लाटिका) रुक्मिणी स्त्री० जुओ पृ० ६२० रुचक पुं० बिजोरुं (२) कबूतर रूपज्ञ वि० दृश्य पदार्थों जोई ७०३ शकनारुं रूपोपजीवन न० सुंदर रूप वडे आजीविका मेळववी ते (२) पातळा लक्ष्मण पुं० जुओ पृ० ६२१ लक्ष्मणा स्त्री० जुओ पृ० ६२१ लघुमन् ४ आ० तुच्छ मानवुं लट्वाका स्त्री० एक जातनुं पक्षी लब पुं० जुओ पृ० ६२१ लंका स्त्री० जुओ पृ० ६२१ लाढ पुं० जुओ पृ० ६२१ लाभ्य वि० मेळवावा योग्य एवं लावण वि० लवणवाळं वचा स्त्री० वज (मूळ) वज्र पुं० जुओ पृ० ६२१ वटे यक्षन्यायः जुओ पृष्ठ ६३५ asar स्त्री० जुओ पृ० ६२१ वत्स पुं० जुओ पृ० ६२१ वत्सला स्त्री० जुओ पृ० ६२१ वध्यघातकन्यायः जुओ पृ० ६३५ वनसिंह - व्याघ्र न्यायः जुओ पृ० ६३५ वरमद्य कपोतः श्वो मयूरात् जुओ पृ० ६३५ वराटकान्वेषणे प्रवृत्तश्चितामणि लब्धवान् जुओ पृ० ६३५ [ बटेर पक्षी वर्तका, वर्तकी स्त्री० एक प्रकारनं ल व वाराणसी वस्त्रनी पडदा पाछळ चामडानी आकृतिओथी नाटक देखाडवं ते रेणुका स्त्री० जुओ पृ० ६२० रेतज न० संतान रेवती स्त्री० जुओ पृ० ६२० रेवा स्त्री० जुओ पृ० ६२१ रैवत, रैवतक पुं० जुओ पृ० ६२१ रोहिणी स्त्रो० जुओ पृ० ६२१ रोहित पुं० जुओ पृ० ६२१ रोहिण पुं० चंदन वृक्ष ( २ ) वडनुं झाड लोकोक्ति स्त्री० कहेवत; उखाणुं लोपामुद्रा स्त्री० जुओ पृ० ६२१ लोमपाद पुं० जुओ पृ० ६२१ लोमश पुं० जुओ पृ० ६२१ लोहकुंभि स्त्री० लोढानी कढाई लोहचर्मवत् वि० लोखंडनां पतरांथी मढेलु ढकलु लौहित्य पुं० जुओ पृ० ६२१ वर्षरात्र पुं० वर्षाऋतु वसिष्ठ पुं० जुओ पृ० ६२१ वसुदेव पुं० जुओ पृ० ६२१ वट पुं० घोडो (२) बळदनी बूंध (३) वाहन (४) जुओ पृ० ४२५ वंग पुं० जुओ पृ० ६२१ वानिमित्त न० भविष्यकथन ( खास करीने रोग अंगे ) वाद्य पुं० जवनी घाणी वामदेव्य न० एक साममंत्र अने तेनी विद्या (तेमां परस्त्रीसंग इ० होय छे ) वामन पुं० जुओ पृ० ६२२ वाराणसी स्त्री० जुओ पृ० ६२२ Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वातिका ७०४ शतगुणित वातिका स्त्री० समाचार (२) धंधो- विशाला स्त्री० जुओ पृ० ६२३ रोजगार विश्वामित्र पुं० जुओ पृ० ६२३ वालि पुं० जुओ पृ० ६२२ । विषकृमिन्यायः जुओ पृ० ६३५ वाल्मीकि पु० जुओ पृ० ६२२ विषमस्थ वि० आपद्ग्रस्त (२) पहोंची वासवदत्ता स्त्री० जुओ पृ० ६२२ न शकाय तेवं वासुकि पुं० जुओ पृ० ६२२। विषवृक्षन्यायः जुओ पृ० ६३५ वाह्निक, वाह्नीक जुओ पृ० ६२२ विहंगमन्यायः जुओ पृ० ६३५ विक्रीते करिणि किमंकुशे विवादः जुओ विध्याटवी स्त्री० जुओ पृ० ६२३ पृ० ६३५ वोचितरंगन्यायः जुओ पृ० ६३५ विचित्रवीर्य प० जुओ पृ० ६२२ वीणादंड पुं० वीणानो दांडो वितस्ता स्त्री० झेलम नदी सिर्जवं वृक्षप्रकंपनन्यायः जुओ पृ० ६३५ विताय १ आ० फेलावq ; विस्तार; वृक्षाधिरूढ़ पुं० वेली वृक्षने वीटळाय विदर्भ पुं० जुओ पृ० ६२२ ते रीते स्त्रीए करेलुं आलिंगन विदिशा पुं०. जुओ पृ० ६२२ । वृत्र पुं० जुओ प० ६२४ [६३५ विदुर पुं० जुओ पृ० ६२२ वृद्धकुमारी-वाक्य (-वर)न्यायःजुओप० विदेहाः पुं० ब० व० जुओ पृ० ६२३ वृद्धभाव पुं० वृद्धावस्था पृ०६३६ विद्राण वि० जागतुं रहेलं; न ऊंघेलं वृद्धिमिष्टवतो मूलमपि ते नष्टम् जुओ (२) जगाडेलु (४) हताश ; उदास वृषकेतु पुं० जुओ पृ० ६२४ विमिन् वि० अनृत; असत्य (२) वृषपर्वन् पुं० जुओ पृ० ६२४ जुदा प्रकारनुं वृष्णि पुं० जुओ पृ० ६२४ विनता स्त्री० जुओ पृ० ६२३ वेणा, वेणी, वेण्या, घेण्या स्त्री० जुओ विनशन न० जुओ प०६२३ प० ६२४ विपाश, विपाशा स्त्री० जुओ पृ० ६२३ ।। वेदवाद पुं० कर्मकांड (२) वेदनी चर्चा विप्रलू चूंटवं; तोडQ वेन पुं० जुओ पृ० ६२४ विमृश ६ प० स्पर्शवं; हाथ फेरववो वैजयंत न० जुओ पृ० ६२४ (२) विचारवू (३) परीक्षा करवी वैतरणी स्त्री० जुओ पृ० ६२४ विराज पुं० मंदिरनो एक आकार वैवस्वत पुं० जुओ पृ० ६२४ विराट पुं० जुओपृ० ६२३ [लीधेलं वैशंपायन पुं० जुओ पृ० ६२४ विरिक्त वि० मलत्याग करेलु; जुलाब वैशाली स्त्री० जुओ प० ६२४ विरोचन पुं० जुओ पृ० ६२३ व्यतियु २ प० भेळव; मिश्रित करवं विलिंगस्थ वि० नहि समजवान एवं; व्याल-नकुल-न्यायः जुओ पृ० ६३६ न समजाय ते व्यास पुं० जुओ पृ० ६२४ विशाखा स्त्री० जुओ पृ० ६२३ व्रज पुं० जुओ पृ० ६२४ शकटो: स्त्री० सपाट जमीन शकस्थान न० जुओ पृ० ६२४ शकुनि पुं० जुओ पृ० ६२४ शकुर वि० पाळेलं; पलोटेलु शकुंतला स्त्री० जुओ पृ० ६२४ शतगुणित वि० सो गणुं थई गयेलु Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शतद्रु ७०५ सत्याभामा शत पुं० जुओ पृ० ६२४ शाल्मलिद्वीप पुं०, न० जुओ पृ० ६२५ शतरुद्रिय न० रुद्राध्याय; महाभारतनुं शाल्व पुं० जुओ पृ० ६२५ [६३६ एक शिवस्तोत्र शांते कर्मणि वेतालोदयः जुओ पृ० शत्रुघ्न पुं० जुओ पृ० ६२५ शिखंडखंडिका स्त्री० चूडाकरण संस्कार शफरक पुं० पेटी; पात्र शिखंडिन् पुं० जुओ पृ० ६२५ शबरबल न० पहाडी लोकोनुं सैन्य शिथिलायते आ० (ढीलं-शिथिल थई शब्दादि वि० शब्द जेमां प्रथम छे जवू) तेवं (इंद्रयोना पांच विषय) शिबि पुं० जुओ पृ० ६२५ शरपुरुषीयन्यायः जुओ पृ० ६३६ शिशुपाल पुं० जुओ पृ० ६२६ शरयू स्त्री० सरयू नदी शीर्षे सर्पो देशांतरे वैद्यः जुओ पृ०६३६ शरवण न० जुओ पृ० ६२५ शुक पुं० जुओ पृ० ६२६ शराग्नि पुं० पांत्रीसनी संख्या शुक्र पुं० जुओ पृ० ६२६ शरावती स्त्री० जुओ पृ० ६२५ शूर पुं० जुओ पृ० ६२६ शर्मिष्ठा स्त्री० जुओ पृ० ६२५ शूरसेनाः पुं० ब० व० जुओ पृ० ६२६ शलभन्यायः जुओ पृ० ६३६ शूर्पणखा स्त्री० जुओ प० ६२६ शल्य पुं० जुओ पृ० ६२५ । शृंगवेर जुओ पृ० ६२६ शशविषाणन्यायः जुओ पृ० ६३६ शैब्य पुं० जुओ पृ० ६२६ शंकराचार्य पुं० जुओ पृ० ६२५ शैवल पुं० जुओ पृ० ६२६ शंकुकर्ण वि० अणीदार कानवाळू (२) शोण पुं० जुओ पृ० ६२६ पुं० गधेडो शोणा स्त्री० जुओ पृ० ६२६ शंख पुं० जुओ पृ० ६२५ शोणितपुर न० जुओ पृ० ६२६ शंतनु पुं० जुओ पृ० ६२५ शोधनक पुं० फोजदारी अदालतनो शंबर पुं० जुओ पृ० ६२५ अधिकारी शाकद्वीप पुं०, न० जुओ पृ० ६२५ शाकल पुं० जुओ पृ० ६२५ शौनक पुं० जुओ पृ० ६२६ शाक्य पुं० जुओ पृ० ६२५ श्मशानवाट पुं० स्मशाननो वाडो शाखाचंद्रन्यायः जुओ पृ० ६३६ श्रावण पुं० जुओ प० ६२६ शातोदरी स्त्री० पातळी कमरवाळी स्त्री श्रावस्ती स्त्री० जुओ पृ० ६२६ शारद्वती स्त्री० कृपाचार्यनी पत्नी (कृपी). श्रीपर्वत, श्रीशैल पुं० जुओ पृ० ६२६ शार्दूलविक्रीडित न० वाघनी रमत; श्रुतिमंडल न० काननो पुट (२) वाघनुं वर्तन (२) एक छंद संगीतना नादो, आलुं चक्र शालिवाहन पुं० जुओ पृ० ६२५ श्वभूनिर्गच्छोक्तिन्यायः जुओ पृ० ६३६ शालिहोत्र पुं० जुओ पृ० ६२५ शिवत्रिन् वि० पतियु सकलवर्ण वि० क अने ल (+ह = कलह) वाळं; कजियो करतुं सगर पुं० जुओ पृ० ६२६ सती स्त्री० जुओ प० ६२६ सत्त्वस्य पुं० योगी सभामा स्त्री० जुओ पृ० ६२७ Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्यवत् ७०६ सेक सत्यवत् पुं० जुओ पृ०६२७ साधुता स्त्री०, साधुत्व न० सारापणुं; सत्यवती स्त्री० जुओ पृ० ६२७ पवित्रता सत्यव्रत पुं० जुओ पृ० ६२७ साधुमन् ४ आ० सारुं के उत्तम मानवं सत्राजित् पुं० जुओ पृ०६२७ सायण पुं० जुओ पृ० ६२७ सदानीरा स्त्री० जुओ पृ० ६२७ सारस्वत पुं० जुओ प० ६२७ सन, सनक पुं० जुओ पृ० ६२७ साल्व पुं० जुओ पृ० ६२७ . सनत् पुं० ब्रह्मा [एक सावित्री स्त्री० जुओ पृ० ६२७ . सनत्कुमार पुं० ब्रह्माना चार पुत्रोमांना सांदीपनि पुं० जुओ पृ० ६२७ . सनत्सुजात पुं० ब्रह्माना सात मानस सांब पुं० जुओ पृ० ६२८ पुत्रोमांना एक. [भवत्' पृ० १८८ सिकताकूपवत् जुओ पृ० ६३६ सभवत् स० ना०, वि० पुं० जुओ 'तत्र- सिकतातैलन्यायः जुओ पृ० ६३६ समज्ञा स्त्री० कीर्ति सिध्मा स्त्री० कोढनो डाघ; रक्तसमतट पुं० जुओ पृ० ६२७ [करवू पित्तनो डाघ (२) दम-श्वासनो रोग समद् (सम+अद) खाई जवं; भक्षण सिंधु पुं० जुओ पृ० ६२८ । समस्थ वि० सुखी संजोगोमा होय तेवू सिंधुसौवीराः पुं० ब० व० जुओ पृ० समंतपंचक न० जुओ पृ० ६२७ ६२८ सरयू स्त्री० जुओ प० ६२७ सिंहावलोकनन्यायः जुओ पृ० ६३६ सरस्वती स्त्री० जुओ पृ० ६२७ सीता स्त्री० जुओ पृ० ६२८ सर्वस्वार पुं० एक यज्ञ (जेमां असाध्य सीरध्वज पुं० जुओ पृ० ६२८ रोगथी कंटाळेलो यजमान आत्महत्या सुग्रीव पुं० जुओ पृ० ६२८ करे छे) सुडीनक न० पक्षीनी ऊडवानी एक रीत सहदेव पुं० जुओ पृ० ६२७ सुदामन पुं० जुओ पृ० ६२८ सह्य पुं० जुओ पृ० ६२७ । सुनीथ पुं० जुओ पृ० ६२८ संज्ञा स्त्री० जुओ पृ० ६२७ सुबल पुं० जुओ पृ० ६२८ संडीन न० पक्षीनी ऊडवानी एक रीत सुभगंमन्य वि० पोतानी जातने भाग्यसंधि ६ प० संधि करवी शाळी मानतुं संपातिन् पुं० जुओ पृ० ६२७ . सुभगाभिक्षुन्यायः जुओ पृ० ६३६ संपूजन वि० प्रशंसा करतुं; स्तुति करतुं सुभद्रा स्त्री० जुओ पृ० ६२८ संयोगविधि पुं० जीव अने ब्रह्मन ऐक्य सुमनीभू सुखी- निश्चित थर्बु प्रतिपादन करतुं वेदांतदर्शन सुमित्रा स्त्री० जुओ पृ० ६२८ संवांछ् अभिलाषा राखवी; वांछq सुमेरु पुं० जुओ पृ० ६२८ सुरेभ वि० मधुर अवाजवाळं संशब्द १० उ० -ने बोलावq- संबोधq सुवेल पुं० जुओ पृ० ६२८ संसुप्त वि० सूतेलं; ऊंघेलं सुह्माः पुं० ब० व० जुओ पृ० ६२८ संस्व १ आ० दुःख आपq (मात्र सूचिकटाहन्यायः जुओ पृ० ६३६ 'संस्वरिषीष्ठाः' बीजो पुरुष एक- सूचिन् पुं० जासुस (२) एक प्रकारनुं वचन- रूप जाणमां छे) बाण __ -प्रेरक० पीडवू; कनडवू सूत्रकर्मविशेषज्ञ पुं० वणकर सात्यकि पुं० जुओ पृ० ६२७ सेक पुं० जुओ पृ० ६२८ Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सौभाजन ७०७ हृदयाविष सौभांजन पुं० सरगवानुं झाड स्थणानिखननन्यायः जुओ पृ० ६३६ सौराष्ट्र पुं० जुओ पृ० ६२८ स्नाता स्त्री० रजस्वला थईने नाहेली सौवीर पुं० जुओ पृ० ६२८ स्त्री स्थाणव वि० वृक्षोना थडनुं बनतुं; स्पर्शन न० स्पर्शेद्रिय वृक्षोना थडमांथी मळतुं स्यमंतक पुं० जुओ पृ० ६२८ स्थालीपुलाकन्यायः जुओ पृ० ६३६ स्यंदिनी स्त्री० जुओ पृ० ६२८ स्थिरकर्मन् वि० उद्यमी; कर्ममां मच्यु जुन्न पुं० जुओ पृ० ६२८ रहे। स्वरिवामधू स्त्री० अप्सरा हनुमत्, हनूमत् पुं० जुओ पृ० ६२८ हरिद्वार न० जुओ पृ० ६२८ हरिश्चंद्र पुं० जुओ पृ० ६२८ हस्तामलकन्यायः जुओ पृ० ६३६ हुंकार पुं०, हुंकृति स्त्री० 'ह', 'ह' एवो उद्गार(२) धमकी-पडकारनो उद्गार(३)गर्जना (४) धनुष्यनो टंकारव हुंभा स्त्री० ढोरनुं भांभर ते हृदयाविष् वि० हृदय वींधी नाखे तेवू - Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ગૂજરાત વિદ્યાપીઠનાં કેટલાંક પ્રકાશનો ૧.૭૫ ૧.૫૦ 6 6 ૩૦,૦૦ ૪.૦૦ ૨.૨ ૫. – | a & e _ (U ૩,૫૦ | ૧૮,૦૦ ૩૫.૯ ૦ a ૧ પર માંડૂકયોપનિષદ મૅકોલે કે ગાંધીજી? મહાવીર સ્વામીનો આચાર ધર્મ મહાવીર સ્વામીનો સંયમ ધર્મ દોઢ સદીનો આર્થિક ઇતિહાસ પ્રાચીન અર્થવિચાર ગુજરાતીમાં બાળસાહિત્ય ગુજરાતી- ભીલી વાતચીત ભાષા વિવેચન અખંડ ભારતમાં સંસ્કૃતિનો ઉપ:કાળ ઇતિહાસ સંશોધન ઇતિહાસની વિભાવના કવિજીવન કાવ્ય પરિચય ભા. ૧ કાંતણવિદ્યા ગુજરાતનો સાંસ્કૃતિક વારસો દસ્તાવેજો : વાચન અને મુશ્કેલીઓ ધમ્મપદ (નવનીત) પાશ્ચાત્ય નાટ્યસાહિત્યનાં સ્વરૂપો મધર ટેરીઝા વસતિ શિક્ષણ શીખ ધર્મદર્શન સમૂહજીવન कन्नड भाषा साहित्य संस्कृति गांधीजी और कर्णाटक गुजरातकी हिन्दुस्तानी काव्यधारा ' 'o | ૧૧ ૦ ૦ ઉ૫.૦૦ ૩૬.૦૦ 8 o ૪.૫૦ o o o o o o ૩ . ૦ ૦ o o For Private & Personal use only Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ખિસ્સાકોશ આ લધુકોશમાં, જેમની જોડણી જોવી પડે એવા તેરથી ચૌદ હજાર શબ્દોની વ્યાકરણ સાથે માત્ર જોડણી આપવામાં આવી છે. લેખકો, વિદ્યાર્થીઓ, શિક્ષકો વગેરેને એ ખૂબ ઉપયોગી થશે. (રૂ. 8.00) ગુજરાતી-હિંદી કોશ સંપાદક : મગનભાઈ દેસાઈ લોકોપયોગિતાને ધ્યાનમાં લઈને, હિંદી શિક્ષણ અને પ્રચારની ગુજરાતની માગને પહોંચી વળે એટલી શબ્દસામગ્રી એટલે લગભગ 25 હજાર જેટલા શબ્દો આ. કોશમાં સંઘરાયા છે. હિંદી - હિંદુસ્તાની ભાષાનો સવિશેષ ઉપયોગ, શબ્દપ્રયોગ, શબ્દોની વ્યાખ્યા, તેના પર્યાય વગેરેથી સભર રાષ્ટ્રભાષાના અભ્યાસીઓને આ કોશ ઘણો ઉપયોગી છે. (છપાય છે.) હિન્દી-ગુજરાતી કોશ સંપાદક : મગનભાઈ પ્રભુભાઈ દેસાઈ - હિન્દીનો ગુજરાતમાં વ્યાપક પ્રચાર થઈ રહ્યો છે અને હજારો પરીક્ષાર્થીઓ એની પરીક્ષાઓમાં સામેલ થાય છે, ત્યારે આ કોશ ખૂબ ઉપયોગી થઈ પડશે. સુધારેલી - વધારેલી આની ચોથી આવૃત્તિમાં નવા ઉમેરવામાં આવેલા શબ્દો પુરવણીમાં આપવામાં આવ્યા છે, લેખકો, વિદ્યાર્થીઓ, શિક્ષકો વગેરેને આ કોશ ખૂબ ઉપયોગી થશે. e પુષ્ઠ 819 (રૂ. 100.00). Jam Eco ntematon P e rsonal use only www.jamelibrary.org