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________________ . [थवू अनिष्ट अनिष्ट वि० नहि इच्छेलु (२) नहि इच्छवा जोग; बूरु (३) न० संकट; दुःख; आपत्ति आवे तेQ अनिष्टानुबंधिन् वि० पाछळ अनिष्टो अनिष्टापत्ति स्त्री० न इच्छेलं मळवू के आवी पडवं ते अनिद्रिय न० बुद्धि (२) मन अनोक पुं०, न० लश्कर; सेना (२) युद्ध (३) समूह पहेरेगीर अनीकस्य पुं० सैनिक (२) सशस्त्र अनीकिनी स्त्री० सेना; लश्कर (अक्षौहिणीनो दशमो भाग) अनीति स्त्री० नीति विरुद्ध आचरण अनीप्सित वि० नहि इच्छेलं अनीश वि० स्वामी के उपरी विनानुं (२) सत्ता के काबू वगरनु; अस्वतंत्र अनीश्वर वि० जेनो कोई स्वामी नथी तेवू- स्वतंत्र (२) असमर्थ (३) ईश्वर संबंधी नहि तेवू (४) ईश्वरमां न मानतुं अनीश्वरवाद पुं० ईश्वर नथी एवो वाद अनीह वि० निःस्पृह (२) आळसु अनु अ० पाछळ, साथे, परिणामरूपे, नीचे, नानु, तरफ, नजीक, पछीनु, जेवू --एवा अर्थमां वपराय छे लगोलग अनुकच्छम् अ० भेजवाळा भागनी अनुकरण न० नकल करवी ते अनुकंप १ आ० दया बताववी अनुकंपा स्त्री० दया; सहानुभूति अनुकंपित वि० अनुकंपा दर्शावायेलं अनुकंप्य वि० अनुकंपा करवा योग्य अनुकार पुं० अनुकरण [आवतुं अनुकारिन् वि० अनुकरण करतुं ; मळतुं अनुकीर्ण वि० व्याप्त; पूर्ण जाहेरात अनुकीर्तन न० कहेवं ते; वर्णन (२) अनुकूल वि० फावे तेवं; सगवडवाळू (२)हितकर; माफक; रुचतुं; पथ्य अनुकृ ८ उ० अनुकरण करवू; नकल करवी (२) बदलो आपवो अनुगै अनुकृत वि० अनुकरण करायेलं;-नी समान करायेलं (२) न० वळतो घा अनुकृति स्त्री० अनुकरण करवू ते __ अनुक्त वि० नहि कहेवायेलु (२)अपूर्व; सांभळवामां न आवेलं अनुक्रम् १ उ० [अनुक्रामति - क्रमते, ४ प० [अनुक्राम्यति ] पाछळ पाछळ जवू; अनुसरवु (२) गणतरी आपवी अनुक्रम पुं०. एक पछी एक आवq ते; क्रम (२)पुस्तकादिना विषयोनी अनुक्रमणिका (३) रोजनो अभ्यास अनुक्रमणिका, अनुक्रमणी स्त्री० सांकळियु; अनुक्रम अनुक्रुश १ प० -नी तरफ के पाछळ बूम पाडवी "-प्रेरक० शोक दाखववामा सामेल अनुक्रोश पुं० दया; सहानुभूति अनुग वि० अनुसरनारु (२)पुं० अनुचर अनुगत वि० अनुसरतुं; पाछळ जतुं (२) युक्त; सहित (३) व्याप्त; पूर्ण अनुगति स्त्री० अनुसरयूँ - अनुकरण करवू ते (२) संमति अनुगम् १५० [अनुगच्छति ] पाछळ पाछळ जवू; अनुसरवु (२) आचर; अमल करवो (३) -मां शोधq; -मां रखड, (४) अनुकरण करवू; मळतुं आवq (५) आवी पहोंचq (समय) अनुगम पुं०, अनुगमन न० पाछळ जवू ते ; अनुसरण (२)समजवु-पकडवू ते (३)पतिनी पाछळ स्त्रीन सती थवं ते अनुगजित न० गर्जनानो पडघो अनुगामिन् वि० अनुसरनाएं; अनुयायी अनुगिरम् अ० पर्वतनी बाजुए अनगुण वि० सरखा गुणवार्छ; अनुरूप (२) अनुकूळ; प्रिय अनुगुणम् अ० सानुकूळ होय तेम अनुगै १ प० गावामां साथ आपको (२) (काव्यमां) गाईने प्रसिद्ध करवू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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