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माटे.
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परिशिष्ट २ १०९. वृद्धिमिष्टवतो मूलमपि ते घरमां कशं नथी.' पण सासु ते नष्टम् व्याज खावा गयो ने मूडी पण जोई पोतानी वडाई स्थापवा पेला खोई आव्यो. लेने गई पूत और भिखारीने पाठो बोलावे छे अने ते खो आई खसम.
आवे त्यारे कहे के, ‘जा, घरमां ११०. व्यालनकुलन्यायः साप अने कशुं नथी.' तेना जेवं. नोळिया वच्चे जातिगत वेरनो ११८. सिकताकुपवत् रेतीमां कूवो ज संबंध छे तेम; बे बाबतो वच्चे खोदता जाओ तेम पुरातो ज जाय. स्वभावगत विरोध होय ते बताववा. ११९. सिकतातैलन्यायः रेती पीलीने १११. शरपुरुषीयन्यायः बाण छोडयुं ते तेल काढवा जेवू – असंभवित. वखते ज दीवाल उपरथी माणसे मों १२०. सिंहावलोकनन्यायः सिंह आगळ ऊंचं कर्यु अने तेने वाग्यु – एम वधता पहेलां डोकु पार्छ फेरवी नजर 'कागर्नु बेसबुं अने ताडनुं पडवू' करतो रहे छे तेम - पुनरावलोकन जेवी अणधारी बनती वात. ११२. शलभन्यायः पतंगियुं दीवानी १२१. सुभगाभिक्षुकन्यायः सुभगा एटले ज्योतना प्रकाशनी अदेखाई करी तेने घरमा वडी सत्तावाळी सासु. जुओ ओलववा पोतानी पांख तेना उपर ‘श्वश्रूनिर्गच्छोक्तिन्यायः'. फफडाववा जाय छे अने नाश पामे १२२. सूचिकटाहन्यायः लुहारने कोई छे. तेम मूर्खताथी मोत तरफ धसी सोय बनाववायूँ कहे, अने बीजो जनार माटे.
कढाई बनाववान कहे. तो ते पहेलां ११३. शशविषाणन्यायःससलानं शींगड़ नानुं - जलदी थनार (सोयनु) काम
- जेवी असंभव वात. 'आकाश-कुसुम' ज हाथमा ले, तेम. ११४. शाखाचंद्रन्यायः जो पेली डाळ १२३. स्थालीपुलाकन्यायः तपेलीमां उपर चंद्र देखाय - एम कही स्थूल चोखा रंधाता होय तो तेमांनो कोई के नजरे देखाती वस्तुने आधारे एक दाणो पण दबावी जोईने आखी दूरनी सूक्ष्म वस्तु बतावाय छे ते. तपेलीना चोखा रंधाया छे के नहि 'अरुंधतीप्रदर्शनन्यायः' .
ते जाणी शकाय छे तेम. ११५. शान्ते कर्मणि वेतालोदयः कोई १२४. स्थूणानिखननन्यायः थांभलो के अनिष्ट दूर करवा होम-विधि करी खीलो रोपवो होय, तो हलावी रहीए ने बेताल डोकियं काढे ; तेम हलावीने अंदर धकेलवामां आवे छे, प्रयत्न करी एक अनिष्ट दूर करी के बराबर स्थिर थयो के नहि तेनी रहीए ने बीजु मोटुं अनिष्ट आवीने खातरी करवामां आवे छे, तेम ऊभं रहे, ते माटे.
पोतानी वातनुं वारंवार बीजां पूरक ११६. शीर्षे सर्पो देशान्तरे वैद्यः साप दृष्टांतोथी समर्थन करवू ते. तो माथे आवीने ऊभो छे अने वैद्य १२५. हस्तामलकन्यायः हाथमा रहेल
आमळू जेम स्पष्ट जोई शकाय छे, ११७. श्वश्रूनिर्गच्छोक्तिन्यायः भिखारी तेम जे परिणाम स्पष्ट देखी शकातुं भीख मागवा आव्यो होय, तेने वहु होय, तेने माटे वधु समर्थननी जरूर एम कहीने पाछो काढे के, ‘जा, नथी रहेती.
परदेशमा छे.
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