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________________ परिवेष २७२ परिस्पंद परिवेष पु० जुओ 'परिवेश' परिष्कर पुं० शणगार; अलंकार परिवेषक पुं० पीरसनारो नोकर परिष्कार पुं० अलंकार; शणगार (२) परिवेषण न० जुओ ‘परिवेशन' रांधवं ते (३) राचरचील परिवेष्ट १ आ० आच्छादन कर। परिष्कृ ८ उ० शणनार (२) साफ -प्रेरक० वीटळावं; वींटवू करवू; मांजवं परिवेष्टन न० वीटळावं ते (२) परिष्कृत वि० शणगारेल (२) संस्का आच्छादन (३) पाटो खेंची बांधवो ते रेलु (३) स्वच्छ करेलु (४) रांधेलु परिव १ प० परिव्रज्या लेवी (५) मांजेलं परिव्रज्या स्त्री० एक जगाएथी बीजी परिष्यंद पुं० रेलो; वहेळो (२)झमवू ते जगाए विचर - फरता रहेवू ते (२) परिष्वक्त वि० आलिंगेल; भेटेलु घर छोडी संन्यासी थर्बु ते परिष्वज १ आ० आलिंगवं परिवाज (-ज),परिव्राजकपं० संन्यासी परिष्वजन न०, परिष्वंग पुं० आलिपरिशब्दित वि० जणावेल; उल्लेखेल गन (२) स्पर्श ; संसर्ग परिशंक १ आ० शंका लाववी (२) परिष्वंज् १ आ० [परिष्वजते ] आलिंधारवं; कल्पवं (३) बीवं गन करवं; भेटवू परिशंका स्त्री० शंका; अविश्वास (२) परिष्वंजन न० जुओ ‘परिष्वजन' आशा; अपेक्षा परिसमाप्त वि० पूरुं थयेलु (२) परिशंकिन वि० बीतुं; डरतुं केन्द्रित थयेलं परिशिष् ७ प० बाकी रहेवा देवु (२) परिसर पुं० सीमा; हद (२) (नगर, (स्थळनो) त्याग करवो पर्वत वगेरेनी) आसपासनी भूमि परिशिष्ट वि० बाकी रहेल; वधेलं (३) नस; शिरा (४) पहोळाई। (२) समाप्त (३) न० पुरवणी परिसर्पण न० आसपास घूम के फरवू ते परिशीलन न० स्पर्श ; संसर्ग (२) गाढ परिसंख्या २ प० गणतरी करवी संपर्क; अभ्यास परिसंख्यान न० गणतरी परिशुद्ध वि० शुद्ध करेलु (२) मुक्त परिस. १ प० आसपास वहेवू (२) थयेलु के करेलु (३) चूकवी दीधेलु - चारेकोर फरवू परिशुद्धि स्त्री० पूरेपूरुं शुद्ध करवू ते परिस्कंद १ प० आमतेम कूदवू (२) साचापणु; खरापर्यु परिस्कंद वि० बीजाए उछेरेल (२) परिशुष ४ प० सुकाई जवं; शोषावू पुं० पालित संतान (३) नोकर (४) परिशुष्क वि० पूरेपूरुं सुकाई गयेलं अंगरक्षक परिशन्य वि० तद्दन खाली (२)-थी परिस्कंध पुं० समुदाय; समूह तद्दन रहित परिस्त ५ उ०, परिस्त ९ उ० पाथरवू परिश्रम पु० थाक; तकलीफ (२) (२) ढांक यत्न; उद्यम (३) परिणाम परिस्तोम पुं० हाथी उपर नाखवानी परिश्रय पुं० सभा (२) आश्रय झल (२) एक यज्ञपात्र परिश्रुत वि० सांभळेलु (२)विख्यात परिस्पंद पुं० फरकवू-भ्रूजवू ते (२) परिषद स्त्री० सभा; बेठक ; मंडळी वाळने फूल वगेरेथी शणगारवा ते (३) परिषेक पुं०, परिषेचन न० सींचq- शणगार (४) चालु राखq ते (५) छांटq - रेडवु ते पराक्रम; बहादुरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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