________________
शंख
शल्यक
४९५ सहदेवनो मामो (२) पुं०; न० (२) शुकनियाळ; शुभ (३) उत्तम भालो (३) बाण (४) कांटो (५) (४) हणायेलु (५) घवायेलु खींटी; खीलो (६) न० शरीरमा शस्त्र न० हथियार (२) ओजार (३) बहारथी खूपेली अने पीडा करती वस्तु लोखंड; पोलाद (६) हृदयदारक पीडा करतुं कांई पण शस्त्रग्राहिन वि० शस्त्र धारण करनारं शल्यक पुं० बाण ; तोमर (२) कांटो शस्त्रन्यास पुं० शस्त्र हेठां मूकवां-छोडी (३) साहुडी (४) व्याध
देवां ते शल्यकवत् वि० अणीदार मोवाळं शस्त्रपूत वि० रणभूमि उपर शस्त्र वडे शल्यत्रोत वि० बाणथी वींधायल हणायेलं होवाथी दोषरहित एवं शल्यित वि० वींधायलं
शस्त्रभृत् पुं० शस्त्रधारी; योद्धो शल्ल १५० जq
शस्त्रव्यवहार पुं० शस्त्रनो अभ्यास शल्लकी स्त्री० साहुडी (२) एक झाड शस्त्रसंपात पुं० एकदम शस्त्रो पडवा (हाथीओने बहु गमे छे)
के वरसवा लागवां ते शव पुं०; न० शब; मडहूँ
शस्त्रिका, शस्त्री स्त्री० छरी; कटार शवाश वि० मडदं खानालं
शस्य वि० वखाणवा लायक शश् १ प० कूदवू; ठेकडो भरवो
शस्य न० धान्य; अनाज (२) छोड के शश पुं० ससलु (२) चंद्रमा देखातो मृग
झाडनो पाक के फळ शशधर, शशभृत्, शशलक्ष्मण,शशलांछन
शंक १ आ० शंका करवी (२)बीयूँ (३) पुं० चंद्र (मृगना चिह्नवाळो) अविश्वास करवो (४)मानवू; धारQ शशविषाण, शशशृंग न० . ससलानुं
शंकनीय वि० शंका करवा योग्य (२) शिंगडु (असंभवित वस्तु)
__ कल्पवा योग्य शशांक पुं० चंद्र
शंकर वि० कल्याणकर; शकनियाळ शशांकलेखा स्त्री० बीजनो चंद्र
(२) पुं० शिव (३) शंकराचार्य शशिकला स्त्री० चंद्रनी कळा
शंका स्त्री० शक; संदेह; वहेम (२) शशिकांत पुं० चंद्रकांत मणि (२) भय ; डर (३) आशा; अपेक्षा (४) न० पोय|
भ्रम; खोटी मान्यता शशिज पुं० बुधग्रह
शंकित ('शंक' नुं भू० कृ०) वि० शंका शशिन् पुं० चंद्र
करेलु (२)अविश्वासु (३) संदिग्ध (४) शशिप्रभ वि० चंद्रना जेवा तेजवाळं
डरतुं; बीनेलं (५) निर्बळ; अदृढ शशिमौलि, शशिशेखर पुं० शिव
शंकिन वि० शंका करतुं; वहेम राखतुं; शश्वत् अ० निरंतर; सदा; हमेश (२)
(समासने अंते) (२) जोखम भरेलू वारंवार [जातनो मालपूडो । शंकु पुं० बाण; भालो; कटार (२) शष्कुली स्त्री० काननी नळी (२) एक थांभलो (३) खींटी; खीलो (४) बाणनी शष्प न० कुमळू घास
अणी (५) झाडनु ठूठे (६) १०,००० शष्पभुज, शष्पभोजन पुं० घास खानारं अबजनी संख्या प्राणी
प्राणी वधेर ते शंख पुं०, न० एक जातना दरियाई शसन न० कतल करवी ते (२) यज्ञमां प्राणीन कोटलं, जेने फंकीने वगाडशस्त ('शंस्' नुं भू० कृ०) वि० प्रशंसेलु वामां आवे छे (२) कपाळ उपरन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org