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लोकहास्य अल्पता; नानापणुं (३)समयनो एक लोकमार्ग पुं० रूढि सूक्ष्म विभाग (बे कळा जेटलो) लोकयज्ञ पुं० लोकमां नामना माटेनी लेष्ट पुं० ढे'
इच्छा; लोकैषणा लेह पुं० चाटनारो; चाखनारो। लोकयात्रा स्त्री० लोकव्यवहार (२) लेह्य वि० चटाय तेवू; चाटवा योग्य रूढ़ि (३) संसारयात्रा (४) आजी
(२) चाटीने खावानी वस्तु (३) अन्न विका; निर्वाह लेंड न० लींडी; लीडु
लोकरव पुं० लोकवायका; किंवदंती लोक १ आ० जोवु (२)१० उ० दीपवू; लोकरावण वि० लोकने पीडनाएं
प्रकाशq (३) जाणवू (४) निहाळवं लोकवचन न० लोकवायका; किंवदंती लोक पुं० भुवन; विश्वनो विभाग (स्व- लोकवर्तन न० जगतनो जेनाथी निर्वाह र्ग-पृथ्वी--पाताळ ए त्रण; के चौद थाय छे ते साधन ['लोकवचन' अथवा सात) (२) भूलोक ; पृथ्वी (३) लोकवाद पुं०, लोकवार्ता स्त्री० जुओ मानवजात (४) प्रजा (५) समुदाय; लोकविरुद्ध वि० लोकमतथी ऊलटुं वर्ग (६) प्रदेश; प्रांत (७) लोकोनो
लोकविश्रुत वि० प्रख्यात; विश्वविख्यात सामान्य व्यवहार (८) निजस्वरूप
लोकविसर्ग पुं० जगतनो अंत (२) (९)प्रकाश (१०) भोग्य वस्तु (११)
जगतनुं सर्जन [रूढि (२)गपसप चक्षुरिंद्रिय (१२) इंद्रियविषय
लोकवृत्त न० जगतनो सामान्य व्यवहार; लोककंटक पुं० दुर्जन मनुष्य
लोकवृत्तांत, लोकव्यवहार पुं० सामान्य लोककांत वि० लोकप्रिय
रुढि ; लोकाचार (२) घटनाओनो क्रम लोकगति स्त्री० माणसोनुं वर्तन
लोकश्रुति स्त्री० किंवदंती; लोकवायका लोकचारित्र न० लोकोनो व्यवहार
(२) चोतरफ प्रसिद्धि लोकतंत्र न० जगतव्यवहारतुं चक्र
लोकसंग्रह पुं० आखं विश्व (२) जगतनुं लोकत्रय न०, लोकत्रयी स्त्री० स्वर्ग
हित-कल्याण (३)लोकने संतुष्ट करवा मृत्यु - पाताळ ए त्रण लोक ।
ते (४) लोक साथेना संबंधथी मळतो लोकधात पुं० शिव लोकनाथ पुं० ब्रह्मा (२) विष्णु (३)
अनुभव
_ [युक्त शिव (४) राजा; सम्राट (५) बुद्ध
लोकसंपन्न वि० व्यावहारिक डहापणथी लोकप पुं० जुओ 'लोकपाल'
लोकसंवाघ पुं० लोकोनी भीड; लोकनो लोकपक्ति स्त्री. लोकमां आदर-कीर्ति
अवर-जवर [साक्षी छे तेवू लोकपथ पुं०, लोकपद्धति स्त्री० जगतनी
लोकसाक्षिक वि० आ जगत जेनुं चालु रीत - व्यवहार
लोकसाक्षिकम् अ० साक्षीओनी समक्ष लोकपरोझ वि० जगतथी छानुं-अदृश्य
लोकसाक्षिन् पुं० ब्रह्मा (२) अग्नि लोकपाल पुं० दिकपाल (२) राजा
लोकसात् अ० लोकोना भला माटे लोकपितामह पुं० ब्रह्मा
लोकसाधारण वि० लोकप्रचलित लोकप्रवाद पुं० लोकवायका
लोकसीमातिवतिन वि० अलौकिक लोकमत वि० लोकने पोषनाएं - लोकस्थिति स्त्री० संसारदशा (२) टकावनाएं
संसारव्यवहार (३) जगतनुं टकी लोकभावन, लोकभाविन वि० जमतनं रहेवापणुं (४) सार्वत्रिक नियम हित करनारं- वधारनाएं .
लोकहास्य वि० लोकोमा हास्यपात्र एवं
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