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गृहबलिभुज्
गृहबलिभुज् पुं० कागडो (२) चकलो गृहयज्ञ पुं० गृहस्थ (२) घरमा करवानो एक यज्ञ
गृहशुक पुं० घरमा पाळलो पोपट गृहाचार पुं० घरनो व्यवहार गृहीतनामन् वि० नाम दईने बोलावेलुं गृहीतार्थ वि० अर्थ जाणतुं गृहीभू घरनी गरज सारखी गुंजन पुं० गाजर (२) लाल मूळो (३) गांजो ( ४ ) न० झेरी बाणथी माला प्राणीनं मांस गोकुल न० जुओ पृ० ६०६ गोग्रह पुं० गायो घेरवी ते - पकडवी ते गोजीव वि० ढोर पाळीने आजीविका करनाएं (गवळी)
पुं० एक ऋषि (अहल्याना पति) ( २ ) न्यायदर्शनना प्रवर्तक आचार्य गोधर्म पुं० खुल्लामां मैथुन आचरवा रूपी पशुओनी रीत गोनर्द पुं० जुओ पृ० ६०६ गोपराष्ट्र पुं० जुओ पृ० ६०६ गोपालिका स्त्री० गोवाळण गोपित न० गाय- बळदनुं पित्त (जेमांथी गोरोचन बने छे )
गोप्रतर पुं० ढोर नदी पार करी शके तेवुं स्थान ( २ ) सरयू नदी उपरनुं एक तीर्थ
गोमती स्त्री० सिंधु नदीने मळती एक नदी जुओ पृ० ६०६ ( २ ) गोहत्याना प्रायश्चित्त माटे जपवानो वैदिक मंत्र गोमंत पुं० जुओ पृ० ६०६ गोमंतक पुं० गोवा प्रांत ; जुओ पृ० ६०६ गोमिन् पुं० चारण (वैश्य) (२) ढोरनो मालिक
गोमूत्रक वि० वांकुंकुं जतुं (२) पुं० वैदूर्यमणि (३) न० गदायुद्धनो एक पैंतरो के मंडळ
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ग्लास्नु
गोमेध पुं० गाय होमीने करातो एक यज्ञ गोरथ पुं० बळदगाडी गोलांगूल पुं० काळा शरीरनो, लाल मों ने गायना जेवी पूंछडीवाळो
एक वानर
गोवर्धन पुं० जुओ पृ० ६०६ गोविकर्तृ पुं० गायने मारनारो ( २ ) खेडूत ( धरती खेडनारो) गोविषाणिक पुं० एक वार्जित्र गोव्रत वि० ए नामनुं व्रत पाळनारो ( गमे त्यां सूनुं, गमे ते खवडावे ते खावुं इ० )
गोशीर्ष पुं० न० एक प्रकारनं पीळं
चंदन (२) एक प्रकार अस्त्र ( वाण ? ) गोसव पुं० गाय होमीने करतो एक
यज्ञ (कलियुगमां नथी करातो) गौड पुं० जुओ पृ०६०६ (२) ( ब०ब० ) ते देशना लोक
गौडी स्त्री० काव्यरचनानी एक रीतिवृत्ति-शैली
गौल्मिक पुं० वन जंगलनो निरीक्षक गौष्ठीन न० पहेलां गायोनो वाडो होय ते स्थान
ग्रहपति पुं० चंद्र (२) सूर्य ग्रहपीडा स्त्री० ग्रहण ( २ ) ग्रह द्वारा थती पीडा
ग्रामधान्य न० खेडेलुं अनाज; भात; डांगर ग्रामविशेष पुं० (षड्ज आदि संगीतना ) स्वर ( संगीत ० )
ग्रामवृद्ध पुं० गामनो घरडो माणस ग्रामाक्षपटलिक पुं० गामनो पटेलियो ग्रामाधिप पुं० गामनो मुखियो ग्राम्यमृग पुं० कूतरो ग्रासीक गळी जबुं; कोळियो करी जवुं rore froथालुं
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