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________________ वास ४४१ वास्तव्य मसालावाळं करवू; आथर्बु (३) ४ आ० जुओ 'वार' वास पुं० सुगंध; गंध (२) निवास; रहेठाण (३) घर (४) वस्त्र वासक वि० सुगंधित करनारु (२) वसावनाएं (३) पुं० सुगंध (४) न० कपडां; वस्त्र वासकसज्जा स्त्री० मुलाकाते आवनार प्रियतमने मळवा सज्ज थई रहेली स्त्री (नायिका) [ओरडो वासका स्त्री निवासस्थान (२) सूवानो वासगृह न० अंदरनो ओरडो (२) सूवानो ओरडो; शयनगृह वासतांबूल न० सुगंधी पदार्थोवाळं पान वासतेय वि० रहेवा योग्य वासतेयी स्त्री० रात (२) घर वासन न० सुवासित करवं ते (२) रहेQ ते (३)निवासस्थान (४) पेटीकरंडियो-वासण इ० (५) कपडां; वस्त्र (६) ढांकण वासना स्त्री० स्मृतिमाथी प्राप्त थतुं ज्ञान (२) पूर्वे करेलां सारां नरसां कर्मोनो रहेतो संस्कार (३) कल्पना (४) अज्ञान; खोटो ख्याल (५) इच्छा; अपेक्षा; वलण (६) गमवू ते; रुचि (७) सुगंधित करवु ते । वासपर्यय पुं० रहेठाण बदलवू ते वासभवन न० निवासस्थान; घर वासयष्टि स्त्री० पाळेला पंखीने बेसवा माटेनी लाकडी के थंभ वासयोग पुं० अबील [वारो वासर पुं०, न० दिवस; वार (२) वासरमणि पुं० सूर्य वासरसंग पुं० प्रभात [पुं० इंद्र वासव वि० वसुओ संबंधी (२)इंद्रनुं(३) वासवदत्ता स्त्री उज्जयिनीना राजानी पुत्री; वत्सराज उदयननी पत्नी वासवदिश् स्त्री० पूर्वदिशा वासवानुज पुं० विष्णु; श्रीकृष्ण वासवि पुं० इंद्रनो पुत्र जयंत (२)अर्जुन (३) एक वानरनुं नाम वासवी स्त्री० व्यासनी माता वासवेय पुं० व्यास वासवेश्मन न० जुओ 'वासगृह' वासस् न० वस्त्र; कपडां(२)पडदो वासंत वि० वसंतऋतुनु; वसंत ऋतुमां __थतुं (२) युवान (३) काळजीवाळू; खंतील (४) पुं० मलयानिल वासंतिक वि० वसंत ऋतु- (२) पुं० विदूषक (३) नट वासंती स्त्री० एक फूलवेल (सुगंधी फूलवाळी) (२)एक वसंतोत्सव वासंतीपूजा स्त्री० चैत्रमासमां थती दुर्गानी पूजा वासागार न० जुओ 'वासगृह' । वासि पुं०, स्त्री० फरसी-वांसलो वासित ('वास्' नुं भू० कृ०) वि० सुगंधित करेलु (२) आलु; मसालो चडावेलु (३) वस्त्रो पहेरेलु (४) वसवाट करायेलं (५) स्वच्छ करेलु (६) न० पक्षीओनो कलरव । वासिता स्त्री० जओ 'वाशिता' वासिष्ठ वि० वसिष्ठy [नदी वासिष्ठी स्त्री० उत्तरदिशा (२)गोमती वासी स्त्री० जुओ 'वाशी' वासुकि, वासुकेय पुं० सर्पोनो राजा वासुदेव पुं० (वसुदेवनो वंशज) श्रीकृष्ण (२) कपिल ऋषि वासू स्त्री० कन्या; जुवान छोकरी (मुख्यत्वे नाटकमां वपराय छे) वास्तव वि० वास्तविक; खरं वास्तवा स्त्री० प्रभात वास्तविक वि० साचुं; खरं वास्तव्य वि० रहेतुं; वसतुं; वतनी (२) रहेवा योग्य (३) पुं० रहेवासी निवासी (४) न० निवासस्थान; घर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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