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________________ निर्मूलन ૨૪૬ निर्वाण निर्मूलन न० समूळ विनाश; निकंदन रंगीन पट्टा के चाठां विनानु ; सादं निर्मुज २५० लूछी नाखवू; साफ करवू (४)पारखी न शकाय तेवं निर्मष्ट वि० लछी नाखेल निर्लक्ष्य वि० अदृश्य निर्मोक पुं० मुक्त करवं ते (२) चामडी; निर्लज्ज वि० शरम विनानुं चामडु (३) सापनी कांचळी निलठन न० लूंटवू ते; खेंची लेवं ते निर्मोक्ष पुं० मुक्ति; छुटकारो । निर्वचन वि० चूप (२) दोपरहित; निर्यत् १० उ० बदलो लेवो के वाळवो अनिंद्य (३)न० प्रसिद्धि ; ख्याति (४) (२)पार्छ वाळवू (३) क्षमा करवू ___ व्युत्पत्ति (५)प्रशंसा (४) बक्षिस करQ निर्वचनम् अ० चूपकोथी ; बोल्या विना -प्रेरक० झूटवी जवं; खेंची लेवू निर्वप् १ प० छांटवू; रेडवू (२) निर्यत् वि० बहार नकळतुं वेर (बीज) (३) अर्पण कर (४) निर्या २ प० बहार जवू (२) व्यतीत पितृओनुं तर्पण कर थQ; पसार थर्बु (समय) निर्वपण न० पितृतर्पण करवं ते (२) -प्रेरक० हांकी काढवू (२) अनुष्ठान अर्पण करवं ते (३) बक्षिस ; दान शरू कर निर्वर्ण १० उ० निहाळीने जोवू निर्याण न० जवा नीकळवते; प्रस्थान निर्वस् १५० बहार के परदेश वसवू (२) अदृश्य-लप्त थवं ते (३) मृत्यु (२) वसवाटनो समय पूरो करवो (४) मोक्ष (५) हाथीनी आंखनो -प्रेरक० देशनिकाल करवू खूणो (६)पगे बांधवानुंदोरडु (ढोरने) निर्वह १५० पार पडq; सफळ थर्बु निर्यात वि० बहार नोकळेलु (२) बाजुए (२) पूरुं थg (३)-थी निर्वाह करवो मूकेलु (धन) (३) पूरुं परिचित -प्रेरक० पूरे कर ; पार पाडवू (२) निर्यातन न० पाछं आपवं ते (थापण व्यतीत करवू (समय) इ०) (२) देवू पार्छ वाळवं ते (३) निर्वहण न० अंत; समाप्ति (२) छेवट वेर लेवु ते (४) मारी नाखवू ते सुधो नभावq ते (३) नाटकना वस्तुने निर्यातित वि० पाछं आपलं कटोकटी उपर के छेवटनी भूमिका निर्यास पुं०, न० वृक्ष वगेरेमाथी झरतो उपर लावq ते (नाटय०) रस (२)अर्क निर्वा २ प० फूक ; पवन नाखवो (२) नियुंह पुं० टोच उपरनी घुमटी (२) टाढा थq; टाढा पडवू (३) फूंक अर्क (३) खूटी (४) दरवाजो (५) मारीने ओलवी नाखवू; बुझाई जर्बु फूलनो कलगी (६) कबूतर वगेरेने (४) शांत पडवू - थर्बु बेसवा भीतमां रखातुं लाकडं निर्वाच्य वि० कहेवाने अयोग्य (२) निर्योग पुं० पोशाक; शणगार (२) अनिंद्य ; दोषरहित गायो बांधवानुं दामण निर्वाण ('निर्वा' न भू० कृ०) वि० निर्योगक्षेम वि० अप्राप्तनी प्राप्ति अने ओलवी नाखेलं (२) मुक्त (३) मृत प्राप्तनी रक्षानी इच्छामाथी मुक्त ; कई (४) आथमेल (५) शांत थयेलंमेळववा-साचववानी भांजगड विनानुं पडेलु (६) न० बुझाई जq ते (७) निर्लक्षण वि० शुभ लक्षणो विनानुं अदृश्य थवं ते (८) मृत्यु (९) अंतिम (२) अगत्यनु नहि तेवू; तुच्छ (३) मुक्ति (१०)संपूर्ण शांति - तृप्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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