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स्थाने
स्थलचर
५७३ जमीन उपर ऊगतुं कमळ (दिवसना मददमां-पडखे ऊभा रहे (१३) प्रकाशमां ऊघडे छे)
आचरवू; अमल करवो (१४) १ आ० स्थलचर वि० भूमि उपर चालनारं -नी सलाह मानवी (१५) जात स्थलपा न० जुओ 'स्थलकमल' । समर्पवी (संभोग माटे) स्थलवम॑न् न० जमीनता मार्ग (जळ
-प्रेरक परणांववं (२) दीक्षा मार्गथी ऊलटुं) [लडाई आपवी; उपदेश आपवो (३)टकी रहे स्थलविग्रह पु० सरखी जमीन उपरनी
तेम करवू स्थलस्थ वि० सूकी जमीन उपर ऊभेलु
स्थाणु वि० निश्चल; स्थिर; स्थावर स्थली स्त्री० सूकी जमीन; कठण जमीन
(२) पुं० शंकर (३) थांभलो (४) (२) जमीननो कुदरती भाग (जेम के खींटी (५)थूणकुं; ठूछं; थडियुं वननो) (३) जुओ ‘स्थलीदेवता' । स्थाणभत वि० स्थिर बनेलं; गतिहीन स्थलीदेवता स्त्री० ते स्थळनी अधिष्ठाता बनेलु (झाडना थूणका पेठे) देवता
[सूनारं स्थातृ वि० ऊभुं रहेढुं; चालतुं नहि तेवू स्थलीशायिन् वि० खुल्ली जमीन उपर स्थान न० ऊभा रहेवू ते; चालु रहे स्थलेशय वि० सूकी जमीन उपर सूनाएं
ते; वसवं ते (२)चालवू-खस, नहि स्थविर वि० निश्चल ; स्थिर (२)वृद्ध;
ते (३) स्थिति; दशा (४)स्थळ (५) प्राचीन (३)पुं० वृद्ध पुरुष ; डोसो (४) पद; होदो (६) मोभो; दरज्जो (७) भिखारी [भव्यता-गंभीरतावाळू रहेठाण; घर (८) प्रवेश (९) शहेर स्थविराति वि० वद्ध के वडीलनी
(१०) विषय; हेतु (११) प्रसंग; स्थविरा स्त्री० डोसी
कारण (१२) योग्य स्थळ (१३)वर्णोस्थविष्ठ वि० अत्यंत स्थूल'; मोटुं
च्चारनुंस्थान (उर, कंठ, शिर, जिह्वा('स्थूल'नु श्रेष्ठतादर्शक रूप)
मूल, दांत, नासिका, होठ, तालु - ए स्थवीयस् वि० वधारे स्थूल (स्थूल ' नुं
आठ) (१४) तीर्थस्थान (१५) स्थिर तुलनात्मक रूप)
दशा; वचली दशा (१६) आश्रम स्थंडिल न० जमीननो टकडो (यज्ञ माटे
(जीवननो) (१७) भूमि (१८) पोषण सरखो करेलो); यज माटेनी भूमि
स्थानक न० स्थिति; प्रसंग; विशिष्ट (२) उज्जड खेतर (३) ढेफांनो
प्रसंग(२)शहेर (३)पद; होद्दो ढगलो(४) हद; सरहद (५) स्थळ ;
स्थानकुटिकासन न० गृहत्याग जगा (जेम के, घर आगळनी)
स्थानचिंतक पुं० सिपाईओना मुकाम स्थंडिलेशय पुं० यज्ञनी भूमि उपर
अने खावापीवा वगेरेनो बंदोबस्त खुल्लामां सूनार तपस्वी
राखनारो अमलदार स्था १५० तिष्ठति ऊभुं रहेवू (२)
स्थानभ्रष्ट वि० नोकरी के होदामांथी रहेवू; वसवू (३) बाकी रहेवू (४)
बरतरफ करेलु (२) उचित स्थानमांथी राह जोवी (५)अटक; थोभवं (६)
खसेडायलं बाजुए रहे; मनमा राखq (७)होवू स्थानिक वि० ते स्थानने लगतुं (८) अनुसरवू; आज्ञामा रहेQ (९) स्थानिवद्भाव पुं० मुळ स्वरूप जेवी रोकावू; निग्रह थवो (१०) जीववं
स्थिति (११) आधार राखवो (१२) स्थाने अ० उचित होय तेम ; योग्य रीते
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