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________________ वृध ४७६ -प्रेरक० घुमावq (२)आचरवु (३) वर्णन करवानी शैली (कौशिकी, निर्वाह करवो (४) वर्णवी बताव, सात्वतो, आरभटी अने भारती) (५) टपकावq (आंसु) (१३) शब्दनी अर्थ सूचवनारी शक्ति वृत ('वृ' न भू० कृ०) वि० वरेखें; (अभिधा, लक्षणा, व्यंजना) पसंद करेलु (२) ढांकेलं; छुपावेलु वृत्तिचक्र न० परस्पर वर्तावनी परि(३) वीटळायेलं; घेरावेलु । पाटी; एक बीजा साथेनुं वर्तन वृति स्त्री० पसंद करवू ते (२) छुपा- वृत्तिभंग पुं० आजीविकानो अभाव वq ते (३) याचवू ते (४) वाड वृत्तिभाज वि० होमादि रोजिदा व्यापार वृत्त ('वृत्' न भू० कृ०) वि० थयेलं; के पुण्य-पाप आदि प्रवृत्ति करनाएं बनेलं; अस्तित्वमा आवेलु (२)पूरुं वृत्तिवैकल्य न० जओ 'वत्तिभंग' थयेलु (३) आचरेलु (४)व्यतीत; वृत्र पुं० इंद्रे मारेलो एक राक्षस (अंधभूत (५) गोळ आकारन (६) मृत कारन मूर्त रूप) (२)वादळ ; मेघ (७) दृढ ; स्थिर (८) ढांकेलं (९) वृत्रशत्रु, वृत्रहन पुं० इंद्र न० घटना; बनाव (१) अहेवाल; वृत्वन् पुं. आकाश वृत्तांत; समाचार (११)धंधो; रोज वृथा अ० फोगट; व्यर्थ; नाहक; गार (१२) वर्तन; आचरण (१३) अघटितपणे ; मूर्खताथी ; खोटी रीते सद्वर्तन (१४) रूढि; परंपरा (१५) वृथाकार पुं० मिथ्या- खाली देखाव; वर्तुळ (१६) छंद वास्तविक नहीं पण आभासरूप एवं वृत्तचूड (-ल), वृत्तचौल वि० चूडा यथामति वि० मिथ्या बुद्धिवाळु; मूर्व करण - वाळ उतारवानो संस्कार थयो वृद्ध ('वृध्' नुं भू० कृ०)वि० वधेलु; होय तेवू मोटु थयेलु (२) घरटुं (३) वर्धा आ कार गयेल के मोट थयेलं (समासने अंते वृत्तवत् वि० चारित्रवान (२) गोळ उदा० 'वयोवृद्ध'; 'ज्ञानवृद्ध') (४) वृत्तशस्त्र वि० शस्त्रविद्यामां पारंगत एवं वृत्तसमाप्तिलिपि स्त्री० हस्तप्रतने अंते मोटं (५) भेगं थयेलं (६) डायु; समजणुं (७) पुं० घरडो माणस (८) मुकाती नागरी 'छ' जेवी गोळ आदरपात्र माणस . आकृतिओ होय तेवं गोळ वृद्धयुवति स्त्री० कुट्टणी (२) दायण वृत्तानुपूर्व वि० धीमे धीमे सांकडं धतुं (प्रसूति करावनारी) वृत्तानुवतिन् वि० आज्ञापालक वृद्धश्रवस् पुं० इंद्र वृत्तांत पुं० घटना ; बीना (२) समाचार वृद्धि स्त्री० वधवते; विकास'; वधारो (३)अहेवाल (२) चंद्रनी कळानुं वय ते (३) वृत्ति स्त्री० अस्तित्व (२) अमुक समृद्धि (४) उन्नति (५) व्याज (६) स्थितिमा होg - रहे ते ; स्थिति (३) नफो (७) कापी नाखवू ते (८) पीडा क्रिया; गति (४) वर्तन (५)व्यव- वृद्धिमत् वि० वृद्धि पामत (२)समद्ध साय ; धंधो (६)जीवनयात्रा; निर्वाह वृध १ आ० वधq; वृद्धि थवी (२) (७) पगार; वेतन (८) व्यवहार; चालु रहे; टकवू (३) ऊंचु चडवू वर्ताव (९)विवरण; व्याख्या (१०) (४) ('दिष्ट्या ' माथे) अभिनंदनने गोळ फरवू ते (११) चक्रनो घेरावो पात्र थq (५) १० उ० बोलवू (६) (१२) भिन्न रसोमा उपयोगी मानेली प्रकाश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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