SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०४ र १५० चीस पाडवी; बूम पाडवी (२) मोटेथी जाहेर करवू (३) आनंदथी बूम पाडवी (४) वगाडवू; अवाज करवो रटित न० बूम; चीस रण १ प० रणकार करवो; खखड, रण पुं०, न० युद्ध (२) रणांगण रणक्षिति स्त्री०, रणक्षेत्र न०, रणक्षोणी, रणक्षोणी, रणक्ष्मा स्त्री०, रणखल पुं० रणभूमि; लडाई मेदान रणत् वि० युद्ध करतुं (२) अवाज करतुं (३) गमन करतुं; जतुं रणत्कार पुं० रणको; रणकार (२) अवाज (३) गुंजारव रणधुर्(-रा) स्त्री० युद्धनो मोखरो रणपंडित वि० युद्धकुशळ (२)पुं० योद्धो रणभ, रणभूमि स्त्री० लडाईनु मेदान रणमूर्धन् पुं० युद्धनो मोखरो (२) लश्करनी आगली हरोळ रणरणक पुं०, न राग; प्रेम (२) चिंता; उद्वेग ; चचराट (प्रिय वस्तु माटे) (३) पुं० कामदेव । रणलक्ष्मी स्त्री० युद्धनी देवता (२) युद्धमा जीतवा के हारवार्नु भाग्य रणशिरस, रणशीर्ष न० जुओ 'रणमूर्धन्' रणशौंड वि० युद्धमां कुशळ । रणाजिर न० रणभूमि । रणातिथि पुं० रणभूमि उपरनो महेमान । (जेनी साथे लडq जोईए) रणातोद्य न० रणभूमिर्नु नगारुं रणापेत वि० रणभूमिमांथी भागी गयेलं रणांग न० हथियार; तरवार रणांगण (-न) न० रणभृमि रणांतकृत् पुं० विष्णु रणित न० रणकारो रत ('रम् ' नुं भू० कृ०) वि० खुश; संतुष्ट (२) अनुरक्त; आसक्त (३) न० आनंद (४) संभोग रति स्त्री० आनंद; तृप्ति; प्रीति (२) आसक्ति; अनुराग (३)प्रेम (४) रतिसुख ; संभोग (५) कामदेवनी पत्नी रतिकर वि० आनंद आपनारु (२) अनुरक्त; कामी [जनारी रतिदूति (-ती) स्त्री० प्रेमनो संदेश लई रतिपति, रतिप्रिय, रतिरमण पुं० काम देव; मदन [जेमा छे ते रतिसर्वस्व न० रतिसुखनुं सर्वोत्तम तत्त्व रत्न न० मणि वगेरे कीमती पथ्थर (२) रत्न जेवं मूल्यवान जे कंई ते (३) ते ते वर्गमां श्रेष्ठ होय ते रत्नगर्भा स्त्री० पृथ्वी रत्नच्छाया स्त्री० रत्नोनो प्रकाश रत्ननख पुं०रत्नजडित हाथावाळी कटार रत्ननाभ पुं० विष्णु रत्ननिधि पुं० समुद्र (२) मेरु पर्वत रत्नपारायण न० रत्नोनी पराकाष्ठा रूप एवं ते; बधां रत्नोमां श्रेष्ठ एवं ते रत्नप्रदीप पुं० रत्नरूपी दीवो रत्नवत् वि. रत्नोवाळं; रत्नोथी भरपूर (२) रत्नोथी सुशोभित रत्नषष्ठी स्त्री० अमुक पखवाडियानी छठ्ठी तिथिए पाळवानुं एक व्रत के उपवास (एक ग्रीष्मवत) रत्नसानु पुं० मेरु पर्वत . रत्नसू वि० रत्नो पेदा करनारुं (२) स्त्री० पृथ्वी रत्नाकर पुं० रत्ननी खाण (२) समुद्र रत्नाचल पु. लंकामांनो एक काल्पनिक पर्वत (मेघगर्जना थतां जे रत्नो पेदा करे छे); 'रत्नरोहण' पर्वत रत्नाढय वि० रत्नोथी भरपूर रत्नावली स्त्री० मोतीनी माळा रत्नि स्त्री० कोणी (२) कोणीथी मांडीने वाळेली मूठी सुधीनुं अंतर के माप (३) पुं० वाळेली मूठी रथ पुं० उपर घूमटवाळं सवारीनुं एक वाह्न (२) लडाई माटर्नु घोडा जोडेलं एक वाहन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy