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१३७ कुहु स्त्री० कोयलनो अवाज (२) अमावास्या
कुंभी स्त्री० नानो घडो (२) दोणी कुहुकंठ, कुहुरव पुं० कोयल
(रांधवानी) कुहू स्त्री० जुओ 'कुहु'
कुंभीनस पुं० एक जातनो झेरी साप कुहेडिका, कुहेडी, कुहेलिकास्त्री०धुम्मस कुंभीपाक पुं० एक नरक कुंकुम न० केशर
कुंभीर बुं० लांबा मोवाळो मगर (गंगानो) कुंचन न० वांकुं- त्रांसुं वळवू ते कुंभीरक, कुंभील, कुंभोलक पुं० चोर कुंचिका स्त्री० कूत्री [वळेलु; वांकु कूकुर पुं० कूतरो कुंचित ('कुंच्'न भू० कृ०) वि० वांकु कूच पुं० स्तन [(दुःखनो) कुंज १५० कूजq [स्थान; लतामंडप कूज् १५० कूजर्बु (२) ऊहकारो करवो कुंज पुं०, न० वेला वगेरेथी छवायेलु कूज, कूजन, कूजित न० कूजर्बु ते । कुंजकुटीर पुं० लतागृह; लतामंडप कूट वि० खोटुं; मिथ्या (२) पुं०, न० कुंजर पुं० हाथी (२) (समासने छेडे) कूड; ठगाई; छेतरपिंडी (३)पर्वतनी ते ते वर्गमां सर्वथी श्रेष्ठ (उदा० टोच ; शिखर (४ ) ढगलो; समूह (५) 'नरकुंजर')
न समजाय ते जे कई होय ते (रहस्य, कुंठ वि० बुर्छ (२) आळसु (३) मूर्ख कोयडो इ०) (६) हरणने पकडवानो कुंठित ('कुछ'नु भ००)वि० बुर्छ (२) फांदो - जाळ (७) छुपावेलु हथियार
शिथिल ; निर्बळ [कुंडी; पात्र --गुप्ति (८)हयोडो; घण (९) शहेरनो कुंड पुं०, न० होज (२) यज्ञनी वेदी (३)
दरवाजो कुंडक पुं०, न० माटीनी कुंडी (पात्र) कटक न. कपट ; छेतरवं ते (२) ऊंचाण कुंडल पुं०, न० काननू घरेणुं (२) (३) हळ, फळ - कोश गळानुं घरेणु (३) हाथर्नु घरेणुं (४) कूटकार पुं० जूठो साक्षी दोरडानो वींटो
कूटकृत् वि० छेतरनारे; कपटी (२) कुंडिका स्त्री० कूडी; कुंडु (२) कमंडळ खोटो दस्तावेज बनावनाएं कुंत पुं० भालो
कूटच्छपन् पुं० ठग कुंतल पुं० माथाना वाळ ; झूल'; लट कूटतुला स्त्री० खोटां त्राजवां । कुंद पुं०, न० एक जातनो मोगरो (२)
कूटपालक पुं० कुंभार (२) कुंभारनो न० तेनुं फूल [एक राशिनुं नाम निमाडो-भट्ठी कुंभ पुं० घडो (२) हाथी, गंडस्थळ (३) कूटपाश, कूटबंध पुं० फांदो; फांसो कुंभक पुं० प्राणायाम वखते श्वास रूंधी कूटमान न० खोटां काटलां राखवो ते
कूटयुद्ध न० कपटी युद्ध ; अधर्मर्नु युद्ध । कुंभकार पुं० कुंभार
कूटरचना स्त्री० जाळ ; फांसो (२) कुंभज, कुंभजन्मन्, कुंभयोनि, कुंभसंभव कपटजाळ के युक्ति पुं० अगस्त्य ऋषि (२) वसिष्ठ ऋषि कूटसाक्षिन् पुं० जूठो साक्षी (३) द्रोणाचार्य
कटस्थ वि० टोच पर - ऊंचामां उंचा कुंभा स्त्री० वेश्या
स्थळे ऊभेलं (वंशावळीमां) (२)श्रेष्ठ कुंभिका स्त्री० नानो घडो
(३)सर्व काळे एकरूप रहेनारुं; अचळ कुंभिन् पुं० हाथी
(४)पुं० परमात्मा
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