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________________ पाणमास २९५ प्रकार पौर्णमास वि० पूनमने लगतुं (२) प्रकथ् १० उ० जाहेर करवू; जणावq पुं० ते दिवसे करातो विधि प्रकर पुं० ढगलो; समूह (२)झूमखं; पौत, पौतिक वि० (वावकूवा इ० गुच्छो (३) सहाय (४) धोवं ते बनाववा रूपी) पुण्यकर्म संबंधी प्रकरण न० प्रसंग; विषय (२) ग्रंथनो पौर्व,पौर्वक वि० पूर्वन ; भूतकाळy (२) विभाग; अध्याय (३)कोई पण बाबत पूर्व दिशा संबंधी (३) परंपरागत उपरनो संपूर्ण व्यवहार-मामलो (४) पौर्वदेहिक, पौर्वदैहिक वि० पूर्व प्रस्तावना (५) कशुं करवानुं खास जन्मने लगतुं; पूर्व जन्ममां करेलु विधान करतुं वचन (६) कविकल्पित पौर्वापर्य न० पूर्वापर होवापणुं; क्रम वस्तुवाळं दशअंकी नाटक पौर्वाहिक वि० पूर्वाह्लने लगतुं प्रकरी स्त्री० पछीना भागने समजाववा पौविक वि० आगळy; पहेलांनुं (२) दाखल करेली उपकथा (नाटय०) पूर्वजोनू (३) प्राचीन प्रकर्ष पुं० श्रेष्ठता; उत्कर्ष (२)आधिपौलस्त्य पुं० रावण (२) कुबेर क्य; तीव्रता (३) बळ ; शक्ति (४) पौलोम पुं० इंद्र (पौलोमीनो पति) लंबाई (५) आत्यंतिकता पौलोमी स्त्री० शची; इंद्राणी (पुलोमा प्रकल् १० उ० अनुसर; पाछळ जवू राक्षसनी पुत्री) (२) प्रेर, (३) ईजा करवी पौषध पुं० उपवासनो दिवस प्रकल्पित वि० रचेलं (२)निश्चित करेलू पौषी स्त्री० पोष महिनानी पूनम (३) आणेलु के रेडेल (आंसु) प्रकंप १ आ० कंपवू; भ्रूजवू पौष्कर वि० नील कमळ संबंधी पौष्टिक वि० पुष्टिकारक प्रकंप पु० धूजवू- कंपवू ते (२)तीव्र कंप के ध्रुजारो पौष्प वि० फूलन; फूल संबंधी पाँडरीक वि० कमळनुं बनावेलु; कमळ प्रकंपन वि० कंपावनाएं; ध्रुजावनाएं (२) पुं० पवन; वंटोळ (३) न० संबंधी [शंखनुं नाम (३)तिलक जोरदार आंचको के कंप पौड़ पुं० एक देशनु नाम (२) भीमना प्रकाम वि० कामुक; विषयी (२) पोस्न वि० पुरुषने योग्य (२) मरदानगी अत्यंत; घj; इच्छा मुजबर्नु वाळ (३) न० मरदाई; पुरुषपणुं प्रकामतः अ० मरजी मुजब (२) राजीप्ये १ आ० वृद्धि थवी; वधq। खशीथी खानाएं प्र अ० धातुओनी पूर्वे 'आगळ', 'दूर' प्रकामभुज वि० घराई जवाय त्यां सुधी ए अर्थमां वपराय (२) विशेषणोनी प्रकामम् अ० घणुं; अत्यंत होय तेम (२) पूर्वे 'अतिशय', 'पुष्कळ' -ए अर्थमां ययेष्टपणे (३)मरजीयी; इच्छाथी वपराय (३) नामोनी पूर्वे 'आरंभ', प्रकार पुं० भेद ;जात (२)रीत; तरेह 'लंबाई', 'ताकात', 'अधिकता', 'तीव्र प्रकालन वि० नाश करनारु(२)पाछळ ता', 'संभव - मूळ', 'पूर्णता', 'वियोग', पडतुं ; पीछो पकडतुं (३)न० संहार 'उत्कर्ष', 'इच्छा', 'भक्ति', 'विराम' प्रकाश् १ आ० प्रकाशवं (२) देखावू; -ए अर्थमां वपराय [नजरे पडे तेवू नजरे पडवू (३) -ना जेवू देखावं प्रकट वि० खुल्लु; स्पष्ट ; जाहेर (२) -प्रेरक० देखाडवू; प्रगट करवू (२) प्रकटम् अ० स्पष्ट ; खुल्लं; जाहेरमां खुल्लू करवू (३) जाहेर करवू; जणाप्रकटयति प० (दर्शावq; प्रगट कर) वq (४)प्रकाशित-तेजवाळं कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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