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________________ हरिण. चंदन (वृक्ष के लाकडु) (२) पांच देववृक्षोमांनुं एक हरिण वि० फीकुं; धोळाश पडतुं पीछे (२)पीळाश पडतुंधोळं (३) किरणोवाळू (४) पुं० मृग; हरण (५) सूर्य (६)विष्णु (७)शिव(८)धोळो रंग हरिणक पुं० हरण; मृग [वाळो) हरिणलांछन पुं० चंद्र (हरणना चिह्नहरिणाक्ष वि० हरण जेवी आंखवाळू (२) पुं० शिव वाळी स्त्री हरिणाक्षी स्त्री. हरण जेवी सुंदर आंखोहरिणांक पुं० चंद्र हरिणी स्त्री. हरणनी मादा; मृगली (२)स्त्रीओना चार वर्गमांनो एकचित्रिणी हरिणीदश वि. हरण जेवी आंखोवाळू (२)स्त्री० हरण जेवी आंखोवाळी स्त्री हरित वि० लीलुं; लीलाश पडतुं (२) पीछं; पीळाश पडतुं (३) लीलाश पडतुं पीळू (४)पुं० लीलो के पीळो रंग (५) सूर्यनो घोडो (६) झडपी घोडो (७) पुं०, न० घास (८) दिशा; प्रदेश (९) खूणो; दिशा हरित वि० लोलु; लीला रंगनुं (२) घेरुं भूरूं; नील रंगनुं (३) पिंगळा रंगर्नु (४) पुं० लीलो रंग (५) सिंह (६) एक जातवें घास हरितक न० लीलु घास हरितच्छद वि० लीलां पानवाळं हरितहरि पुं० सूर्य हरिताल न० हरताल ; एक उपधातु हरित्तति पु० दिकपाल हरिदश्व पुं० सूर्य हरिवंत पुं० दिगंत; दिशानो छेडो हरिवंतराणि (हरित् + अंतराणि) न० ब० व० जुदी जुदी दिशाओ; जुदा जुदा प्रदेशो हरिद्रा स्त्री० हळदर हरिन्मणि पुं० लीलम मणि हर्षवर्धन हरिप्रिय पुं० कदंब वृक्ष (२)शंख (३) शिव [पृथ्वी हरिप्रिया स्त्री० लक्ष्मी (२) तुलसी (३) हरिरोमन् वि० अति युवान (कोमळ वाळवाळू) हरिवल्लभा स्त्री० लक्ष्मी (२) तुलसी हरिवाहन पुं० गरुड (२)इंद्र (३)सूर्य हरिवाहनदिश् स्त्री० पूर्व दिशा हरिशर पुं० शंकर (त्रिपुर बाळवा शंकरना बाण तरीके विष्णु थया हता) हरिश्चंद्र पुं० एक सूर्यवंशी राजा (सत्य वादी तरीके प्रसिद्ध छे) हरिसख पुं० गंधर्व हरिसुत, हरिमूनु पुं० अर्जुन (इंद्रनो पुत्र) हरिहय पुं० इंद्र (२) सूर्य (३) गणेश । हरिहेति स्त्री० सुदर्शन चक्र (२)मेघ धनुष्य हरिहेतिहूति पुं० चक्रवाक पक्षी हरीतकी स्त्री० हरडे; हीमज हर्त वि० हरण करनारूं; लूटी जनाएं (२)पुं० चोर; डाकु हर्म्य न० महेल; हवेली [ओरडो हर्म्यतल, हर्म्यपृष्ठ न० महेलनो उपरनो हर्म्यस्थल न० महेलनो ओरडो हर्यक्ष पुं० सिंह (२) कुबेर (३) शिव (४) हिरण्याक्ष हर्यश्व पुं० इंद्र (२)शंकर हर्ष पुं० हरख ; आनंद (२) रोमांच (३) तीव्र इच्छा हर्षगर्भ वि० आनंददायक [गयेलं हर्षजड वि० अति आनंदथी स्तब्ध थई हर्षण वि० हर्ष उपजावनाएं (२) रोमांच खडां करे तेवू(३)पुं० कामदेवनां पांच बाणमांनुं एक (४) न० आनंद; हर्ष (५) हर्ष उपजाववो ते (६) लश्करनो जुस्सो प्रेरवो ते हर्षदोहल पुं०, न० कामवासना हर्षवर्धन पुं० उत्तर हिंदनो एक महान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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