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आधार (होम माटे) (५) अर्प; प्रेर; उपदेश (६) रचवू ; उत्पन्न करवं (७) प्रयत्न; उद्यम (८) थापण; अनामत (९) मैथुन ; गर्भाधान आधार पुं० टेको; अवलंबन (२)आश्रय; मदद (३) पात्र; वासण (४) झाडना मूळनी आसपासनो क्यारो आधि पुं० मानसिक पीडा (२) शाप;
आपत्ति; दुर्भाग्य (३) घरेणे मकवं ते;गीरो मूकवं ते (४)स्थळ; स्थान आधिकरिणक पुं० न्यायाधीश आधिक्य न० वधारो (२) श्रेष्ठता आधिदैविक वि० अधिष्ठाता देवोने । लगतुं (२) दैवकृत (सुख-दुःख) आधिपत्य न० अधिपतिपणुं; उपरीपणुं आधिभौतिक वि० पंचमहाभूतने लगतुं (२, भूतप्राणीने लगतुं स्वामित्व आधिराज्य न० साम्राज्य; संपूर्ण आधुनिक वि० हालन; वर्तमान समयनुं आधूत न० हलावेलु (२) क्षुब्ध ; धूजतुं आधृ १०प० धारण करवु (२) टेको
आपवो आधोरण पुं० हाथीनो महावत अथवा आध्मा १५० [आधमति] धमण धमवी; फुलावq (२) फूंकवू (शंख इ०)
-कर्मणि फुलावं आध्मात वि० लेलु; भरपूर ; व्याप्त (२) घणुं वधी गयेलं (३) अवाजथी भरायेलु (४) बळी गयेलु; दग्ध आध्मान न० धमq ते; फूंकवं ते (२) वधी के फूली जq ते (३) बडाई आध्यात्मिक वि० आत्मा संबंधी; आत्मतत्त्व संबंधी (२) मन वडे थयेलु (दुःख, शोक, मोह इ०) आध्यायिक वि० वेदाध्ययनमां रत आध्ये १५० ध्यान धरQ (२) स्मरण करवू (३)चिंतन करवं; याद करवं आध्वनिक वि० प्रवासी; वटेमार्ग
आनण्य आनक पुं० ढोल ; नगारुं (युद्धमुं) (२) गर्जना करतुं वादळ आनत वि० नमेलं; प्रणाम करेलु (२) नीचे नमेलुं (३) नम्र आनति स्त्री० नमवू ते (२) नमस्कार; प्रणाम (३) नम्रता आनद्ध वि० बांधेलु (२) मढेलं आनन न० मुख; चहेरो (२) पुस्तकनो विभाग-खंड आनम् १५० प्रणाम करवा (२) नमवू; नमी पडवू (३) नीचा पडवं आनयन न० लावद् - आणवू ते (२)
यज्ञोपवित (जनोई) आपq ते आनंतर्य न० तरत ज पछी आववं ते. (२) छेक निकटता; (देश-काळनी) वचगाळो न होवो ते आनंत्य न० अनंतता (२) शाश्वतता
(३) उत्तम लोकनी प्राप्ति । आनंद १५० आनन्द पामवं; खुश थवं आनंद पुं० हर्ष; प्रसन्नता (२) परब्रह्म (३) न० परब्रह्म आनंदन वि० आनंददायक;सुखकारक आनायिन् पुं० माछीमार आनी १५० लई आव; लावद् (२)
उत्पन्न करवू (३) (स्थितिने)पमाड, आनीति स्त्री० पासे लई जq ते आनुकूल्य न० अनुकूलता ; सगवड (२) कृपा; महेरबानी आनुजीव्य न० सेवकनो आचार आनुपूर्व न०, आनुपूर्वी स्त्री०, आनुपूर्वी न० परिपाटी; क्रम आनुयात्रिक पुं० अनुचर : अनुयायी आनुषंगिक वि० अमुकना संबंधवाळु; सहवर्ती (२) गौण ; प्रासंगिक (३) सूचित; ध्वनित (४) अनिवार्य; अपरिहार्य (५) आसक्त; वारंवार जतुं आवतुं (६) समान; सरखं आनृण्य न० देवामांथी मुक्त थर्बु ते
[सवार
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