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प्रणिपातरस
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प्रतिकार प्रणिपातरस पुं० आयुधो साथे बोलातो प्रतरण न० ओळंगq ते एक मंत्र
प्रतर्क पुं० तर्क ; धारणा प्रणिहन् २ प० वध करवो (२) नीचं प्रतान पुं० डूंक; कुंपळ (२) वेलो
नमावq (हाथ) (३) वधु धीमेथी (नीचे फेलातो) (३) विस्तार । 'बोलवू ('अनुदात्त' करतां)
प्रताप पुं० गरमी; ताप (२) तेज; प्रणिहित वि० मूकेलं ; स्थिर करेलु (२) कांति (३) रुआब (४) सामर्थ्य ; फेलावेलु (३) सोंपेल (४) एकाग्र प्रभाव; पराक्रम थयेलं (५) स्वीकारेल (६) मोक- प्रतार पुं० पार लई जर्बु ते (२) ओळंगी लेलं; प्रेरेलु (७) निश्चित
जवं ते (३) ठगर्बु-छेतर ते प्रणी १५० दोरवं (लश्कर) (२)अर्पण प्रतारक वि० ठगनाएं; छेतरनारुं करवू (३) लई जवु; स्थापवु (४) प्रतारणा स्त्री० ठगाई; छेतरपिंडी पवित्र करवं (मंत्रोथी) (५) नाखवू प्रतारित वि० छेतरेखें; ठगेलं (दंड) (६) विधान करवू (७) रचq प्रति अ० क्रियापदो पूर्वे '-नी तरफ', (ग्रंथ) (८) सिद्ध करवू; उपजावq '-नी दिशामां', '-फरीथी', 'ऊलटुं', (९) स्थितिए पहोंचाडवं (१०) 'पार्छ ', -नी उपर' -ए अर्थ बतावे दर्शाववं (११) फेंक ; प्रेरवं; छोडवू (२) नामोनी पूर्वे, सादृश्य', 'विरोधी', (१२) दूर करवू; नाश करवो 'ऊलटुं', 'हरीफ' -ए अर्थ बतावे (३) प्रणी वि० बनावनाएं; रचनाएं
अलग उपसर्ग तरीके (द्वितीया साथे) प्रणीत वि० -नी समक्ष लावेलं; अर्पल '-नी तरफ', 'नी सामे','सरखामणी(२) –ने पमाडेलु (३) आचरेलु मां', 'प्रमाणमां', 'नजीक', 'समये', (४) विधान करेल (५) फेंकेलु ; 'दरम्यान', '-ना पक्षमां-तरफेणमा', मोकलेलं (६) मंत्र वडे संस्कारलं 'हर-दरेक', '-ना संबंधमां', 'ना प्रणुत वि० वखाणेलं; प्रशंसा करेलु मते', -ना अभिप्राये', '-नी समक्ष'-ए प्रणुद् ६ प० हांक; हांकी काढवू अर्थ बतावे (४) (पंचमी साथे) प्रणुन्न वि० हांकवामां आवेलु (२) ' ने बदले', '-ना प्रतिनिधि रूपे', हांको काढेलं
-ए अर्थ बतावे (५) अव्ययीभाव प्रणय वि० दोरी जवाय तेवू; वश; समासमां 'दरेकमां', 'हरेकमां', '-नी
अधीन (२) पामवा - मेळववा योग्य दिशामां' -ए अर्थ बतावे प्रणोदित वि० हांकेलं; प्रेरेलु
प्रतिकर पुं० बदलो वाळवो ते प्रतत वि० फेलायेल ; विस्तरेलु
प्रतिकर्तव्य न० बदलो लेवो ते प्रततम् अ० निरंतर; सतत
प्रतिकर्मन् न० प्रतीकार; बदलो; वेरनी प्रतन् ८ उ० विस्तारवं ; फेलाव, (२) वसूलात (२) इलाज ; उपाय (३) दर्शावq (३) रचq (४) अनुष्ठान करवू शरीरनां शोभा-शणगार (४) विरोध (यज्ञर्नु) [(२) अल्प; तुच्छ (५) तपस्या (६) प्रायश्चित्त प्रतनु वि० घणुंज पातळं; कृश; सूक्ष्म प्रतिकलम् अ० सतत प्रतप् १ प० तप ; सळगq; प्रकाशq(२) प्रतिकाय पुं० प्रतिस्पर्धी; शत्रु (२)
शेकवू (३)तपस्या करवी (४)पीडवू निशान; लक्ष्य (३)प्रतिमा; मूर्ति । प्रतप्त वि० गरम थयेलं (२) पीडित; प्रतिकार पुं० प्रत्युपकार (२) बदलो त्रास पामेलं (३) तप आचरेलु। लेवो ते (३) रोग वगेरेनो उपचार
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