________________
भेरि
३५९ भेरि(-री) स्त्री० नगारुं; ढोल भोगभूमि स्त्री स्वर्ग इ० लोक (ज्यां भेरुंड वि० भयंकर; बिहामj(२)पुं० कर्मोनां फळ ज भोगववानां होय छे) एक पक्षी
भोगवत् वि० उपभोग के आनंद आपनाएं भेषज वि० मटाडे तेवं; नीरोगी बनावे (२) सुखी; समृद्ध (३) कंडाळां के तेवू(२)न० दवा; औषध (३) उप- वळांकवाळ (४) पुं० साप (५) पर्वत चार; उपाय
भोगवती स्त्री० पातालगंगा (२)नागण भैक्ष वि. भिक्षा वडे जीवतं (२)न०
भोगावली स्त्री० चारणे करेली स्तुति भीख (३) भीखीने मेळवेलं होय ते । भोगिन वि० खानारूं; भोगवतुं (२)अनुभैक्षभुज् पुं० भिखारी; याचक भवतुं; वेठतुं (३)वापरनालं; मालिक भक्षव वि० भिक्षुक संबंधी
(आत्रण अर्थोमां, समासने छेडे) (४) भैभवृत्ति स्त्री० भीखीने जीवq ते वळांक के कुंडाळांवाळू (५) मोटा भलक न० भिखारीओनो समुदाय विपुल शरीरवाळू (६) फणावाळु (७) भैक्य न० भीखीने मेळवेलुं अन्न इ० कामभोगमां आसक्त (८) समृद्ध; भैम वि० भीम संबंधी(२) भयंकर परा- धनवान (९) पुं० साप (१०) राजा
क्रम करनारं (३) पुं० भीमनोवंशज भोगिराज पुं० शेषनाग भैमी स्त्री० दमयंती (भीमराजानी पुत्री) भोग्य वि० भोगववा योग्य (२) अनुभवभैरव वि० भयंकर; बिहाम'(२)पुं० वा के वेठवा योग्य (३) लाभदायक शिवनुं एक स्वरूप (३)भय ; डर(४) भोग्यवस्तु न० भोगपदार्थ न० भय; डर
भोज वि० भोग आपनारु (२) भोगनुं भैरवी स्त्री० दुर्गानुं एक स्वरूप जीवन जीवनारुं (३) पुं० धारानगरी भैषज न० दवा; औषध
(माळवा)नो एक प्रसिद्ध राजा भैषज्य न० उपचार करवोते; दवा भोजकुल न० विदर्भ- वराडना भोजकरवी ते (२) दवा; औषध
राजाओनो वंश भोक्त वि० खानारु; भोगवनारु (२) भोजन वि० खवरावतुं; पोषतुं (२) अकअनुभवनारु (३) पुं०मालिक ; भोगव- रांतियुं खानाएं (३)न० खावानी वस्तु नार (४) पति (५) प्रियतम
(४)खावं ते(५) उपयोगमां लेबु ते भोग पुं० खावं ते (२) भोगवतुं ते (३) (६)उपभोगनो कोई पण पदार्थ (७) परिणाम ; फळ(४) मालकी (५) आवक; समृद्धि; मिलकत [भोजन लाभ (६)-नी उपर शासन करवान
भोजनविशेष पुं० स्वादु के विशिष्ट होते (७) कामभोग (८) भोगपदार्थ भोजनाच्छादन न० भोजन अने वस्त्र (९)भोज्य पदार्थ (१०) मूर्तिने धरावेलु भोजनाधिकार पुं० भोजन इ. उपर भोजन (११) वांक; वळांक (१२) देखरेख राखवा- काम के अधिकार सापनी फेलावेली फणा
भोजनीय वि० खावा योग्य (२)खवभोगकर पुं० उपभोग के आनंद आपनार राववायोग्य(आश्रित)(३.)न० भोजन भोगतष्मा स्त्री० कामभोग के संसार- भोजाः पुं० ब०व० एक जातिना लोक भोगनी तृष्णा
भोजिन् वि० (समासने छेडे) खातं, भोगधर पुं० साप
भोगवतुं के मालिक एवं(२) खवरावतुं; भोगपति पुं० जिल्ला के प्रांतनो हाकेम पोषतुं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org