________________
श्रवस्
५०७ श्रवस् न० कान (२) कीति (३)धन श्रीखंड पुं०, न० चंदन (४) अवाज (५) स्तोत्र ।
श्रीधर, श्रीपति पुं० विष्णु श्रव्य वि० सांभळवा लायक ; प्रशंसापात्र श्रीपर्वत पुं० एक पर्वत श्राद्ध वि० श्रद्धाळू (२) न० पितृओनी श्रीपुत्र पुं० कामदेव तृप्ति माटे श्रद्धाथी करवानी तर्पण- श्रीफल न० बीलु (२) नारियेळ क्रिया (३) श्राद्धक्रियामा अपातुं दान श्रीमत् वि० धनवान (२)भाग्यशाळी; श्राद्धय वि० श्राद्धने योग्य ।
सुर्खः (३) सुंदर (४) सुप्रसिद्ध श्राव पुं० लक्षथी सांभळवं ते (२)वहेवू श्रीवत्स पुं० विष्णु (२)विष्णुनी छाती के झमयूँ ते
उपरनुं चिह्न (वाळनो भमरो) । श्रावक पुं० सांभळनारो (२) शिष्य श्रीवत्सकिन् पुं० छातीमां वाळना (३) जैन के बौद्ध मतनो अनुयायी भमरावाळो घोडो श्रावण वि. कान संबंधी (२) वेदे श्रीवत्सलक्ष्मन पुं० विष्ण [माणस फरमावेलु (३) पुं० श्रावण महिनो श्रीवल्लभ पु. भाग्यशाळी के सुखी (४)न० संभळावq ते; जाहेर करते श्रीवृक्ष पुं० बीलीन झाड (२)पीपळानुं श्रावस्ति, श्रावस्ती स्त्री० गंगानी उत्तरे झाड (३)घोडानी छातीए अने माथे आवेलुं एक शहेर
होतुं वाळनुं गूंछळु [गूछळावाळू श्रावित वि० कहेलं; संभळावेलं श्रीवृक्षकिन छातीए ने माथे वाळना श्राव्य वि० सांभळवा लायक ('दृश्य'थी श्रु ५ ५० सांभळवू (२) अभ्यास ऊलटुं) (२)सांभळी शकाय तेवू (३) करवो; शीखवू संभळाववा के जाहेर करवा योग्य
-कर्मणि [श्रूयते शास्त्रनी आज्ञा श्रांत ('श्रम्' नु' भूः कृ०) वि० थाकेलं होवी; शास्त्रमा कहयु होवू
(२) शांत पडेलु (३) पुं० तपस्वी -प्रेरक० संभळावq; माहितगार धि १ उ० पासे जवं (२) आशरो लेवो करवं (३) स्थितिए पहोंचवू (४)-ने -इच्छा० [शुश्रूषते] सांभळवानी वळगवू (५) -नो आधार राखवो (६)
इच्छा करवी (३) शुश्रूषा-सेवावसवू (७) योजq; उपयोगमा लेवू चाकरी करवी श्रित ('श्रि' न भू० कृ०) वि० आशरा श्रुत ('श्रु' न भू० कृ०) वि० सांभमाटे पहोंचेलं (२)-नो आधार लेतुं; ळेलं (२) सांभळवामां आवतुं (३) -ने आधारे रहेलं
जाणेलं; समजेलं (४) प्रसिद्ध श्रित वि० जुओ 'शृत'; रांधेलु; भूजेलं जाणीतुं (५) कहेवातुं; नामथी ओळश्री स्त्री० संपत्ति; समृद्धि (२) खातुं (६) वचन आप्यु होय तेवू लक्ष्मीदेवी (३) राजलक्ष्मी (४) (७) न० सांभळवानो विषय (८) पदवी; होहो (५) सौंदर्य; शोभा वेद (९) विद्या (१०) सांभळवानी क्रिया (६) वर्ण; देखाव (७) त्रण वेदनो श्रुतधर वि० सांभळेलु याद राखे तेवू; समूह (८) सरस्वतीदेवी (९) देव यादशक्तिवाळं वगेरेनां नाम पूर्वे मंगळवाची शब्द श्रुतवत् वि० वेदशास्त्र जाणनाएं तरीके मुकाय छे (उदा० 'श्री राम') श्रुति स्त्री० सांभळवू ते (२) कान श्रीकंठ पुं० शंकर (२) भवभूति कवि (३) अफवा; किंवदंती (४) समा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org