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________________ तर्जनी १९२ तंडि ठपको (३) शरमिंदं करवू ते ; पाछळ तस्थु वि० स्थावर ; स्थिर पाडी देवु ते (४) गुस्सो तंच ७ प० संकोचावं; संकुचित करवू तर्जनी स्त्री० अंगठा पासेनी आंगळी तंडुल पुं० चोखा (२) छडेलु धान्य जित ('तर्जुन भ००) वि० धमका तंति स्त्री० पंक्ति; हार (२) दोरी; वेलु (२)ठपको अपायेलु (३)शरमिदं दोरडु (३) गाय (४) वणकर करायेलं (४) न० धमकी तंतिपाल पुं० गोवाळ (४)संतति तर्ण, तर्णक पुं० वाछरडु तंतु पुं० तांतणो (२) दोरो (३) पाश तर्पण न० तृप्त करवू ते (२) तृप्ति; तंतुक पुं० दोरो; दोरडु (समासने अंते) संतोष (३) रोज करवाना पंच तंतुकीट पुं० रेशमनो कीडो महायज्ञोमांनो एक-पितृयज्ञ तंतुनाभ पुं० करोळियो तर्पित वि० तृप्त थयेलं तंतुवाद्य न० तारवाळू वाद्य तर्ष पुं०, तर्षण न० तृषा; तरस (२) तंतुवाय पुं० करोळियो (२) वणकर इच्छा [अभिलाषावाळं तंत्र १० उ० शासन करवू; राज्य तषित, तर्षुल वि० तरस्युं (२) चलावq (२) व्यवस्थित राखq तह, १५० ईजा करवी (२) कतल कर, तंत्र न० साळ (२) दोरो(३) हार; ओळ तहि अ० ते समये; त्यारे (२) तो; (४) मुख्य मुद्दो (५) सिद्धांत (६) ए बाबतमा परिवार (७) शास्त्र (८) अधीनता तल पुं० न० तळियु ; नीचेनो भाग (२) (९) प्रकरण; भाग (१०) साधना के सिद्धि माटे मंत्रतंत्रादिना प्रयोग सपाटी (समासने छेडे घणी वार अर्थमां निरूपतो ग्रंथ (११)कुळ ; वंश (१२) कशा फेरफार विना पण वपराय छे; औषध; तेने लगतो मंत्र (१३) व्यवउदा० 'भूतल') (३) झाड के कोई पण स्था; प्रबंध; नियमन (१४) सैन्य वस्तुनी नीचेनो भाग; तेनी छाया के आशरो (४) न० अरण्य ; वन (५) (१५) समूह (१६) वस्त्र (१७) कुटुंबपोषण (१८) शासन; सत्ता हेतु; मूळ (६) तळाव (७) डाबा (१९) कांई पण कार्य करवानो साचो हाथे पहेरातुं चामडा मोजें क्रम के युक्ति तलातल न० सप्त पाताळोमांनुं चोथु तंत्रक पुं० धोया विनानुं कोरं वस्त्र तलिन वि० पातळं; सूक्ष्म (२)नीचेगें; तंत्रण न० कुटुंबपोषण (२) शासन; तळेनु (३) न० बिछानु; पथारी नियंत्रण; प्रबंध तलिनोदरी स्त्री० पातळी केडवाळी स्त्री तंत्रि स्त्री० तंतु; दोरो; तार (२) तल्पपुं०,न० शय्या; पथारी (२) पत्नी धनुष्यनी पणछ (३) वीणा (३) मिनारो (४) संरक्षक तंत्रिन् वि० तंतुनु; तंतुवाळू तल्पल न० हाथीनी पीठy हाडकुं तंत्रिल वि० राजकाजमां मग्न तल्लिका स्त्री० कुंची तंत्री स्त्री० जुओ 'तंत्रि' तस्कर पुं० चोर (२) (समासने अंते) तंद्रा स्त्री० आळस ; सुस्ती ; थाक (२) तुच्छ -तिरस्कार पात्र (उदा० 'जलद- ऊंघणशीपणुं थाकेलं तस्कर') (३) कान तंद्रालु वि० ऊंघणशी; तंद्रावाळे (२) तस्करता स्त्री० चोरी (२) सांभळवू ते तंद्रि स्त्री० आळस ; सुस्ती; घेन (२) तस्थिवस् वि० ऊभेलु; स्थिर; स्थावर थाक; मी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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