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________________ . . संवार संवार पुं० संकोचावं ते (२) गोठवणी (३) विघ्न (४) ढांक-बंध करवू ते संवावदूक वि. अत्यंत मळतुं आवतुं; अतिशय समान संवास पुं० साथे रहेQ ते (२) सोबत (३) घर; रहेठाण(४)मेदान (भेगा थवा के रमतगमत माटे) [नार नोकर संवाहक पुं० शरीर मसळनार के दबावसंवाहन न०, संवाहना स्त्री० भार वहन करवो ते (२)हळवे हळवे दबावq ते संवाहित वि० खसेडायेलू; हलावायेखें संविग्न ('संविज्' - भू० कृ०) क्षुब्ध; चिंतित (२) बीनलं (३) आम तेम हालतुं के ऊछळतुं संविज् ७ प०, ६ आ० भयथी कंपवू संविज्ञान न० ज्ञान; पूरेपूरी समज संवित्ति स्त्री० अनुभव; ज्ञान; समज । संविद् २ आ० जाणवू (२) ओळखवू (३) अनुभवq (४) तपासवू (५) ६ उ० प्राप्त करवू -प्रेरक० जाणे तेम करवू संविद स्त्री० ज्ञान; बुद्धि (२)अनुभव; समज (३) करार; संकेत (४)आचार; रूढि (५) खुश करवं ते (६)वातचीत (७) मित्रता; ओळखाण (८)एकमती संविदात वि० जाणकार; बुद्धिशाळी (२) सुसंगत संविष स्त्री० गोठवण; तैयारी संविधा ३ उ० करवू; आचरवु (२) गोठवq (३) मूकवू (४)नीमवू (५) हुकम करवो (६) उपयोगमा लेवं संविधा स्त्री० व्यवस्था; गोठवण'; तैयारी (२) जीवनव्यवस्था; जीवनपद्धति [आयोजन संविधान न० व्यवस्था; गोठवण (२) संविधानक न० नाटकना वस्तुनी के तेना प्रसंगोनी गोठवणी । संविषि पुं० गोठवणी; तैयारी संवेशन संविभक्त वि. जुईं पाडेलु; भाग पाडेलं संविभज् १ उ० जुदुं पाडवू (२) भाग पाडवो; वहेंचर्चा संविभा २ प० चितव, संविभाग पुं० भाग; हिस्सो (२) वहेंचवू ते; आप, ते संविभागिन् पुं० भागीदार; हिस्सेदार संविश् ६ प० प्रवेशq (२) सूई जवू; ऊंघg (३) संभोग करवो संविष्ट ('संविश्' -भू० कृ०)वि०सूतेखें; ऊंधेलु (२) साये बैठेलु (३) कपडा पहेरेलु [वीटेलं;घेरायेलं संवीत वि० पहेरेलु (२) ढांकेलं (३) सं १, ५, ९ उ० छुपावq; ढांकवृं (२) सामनो करवो; दबाव संवत् १ आ० तरफ वळवू के जq (२) हुमलो करवो (३)बनवू; थq (४)पूर्ण करवं; सिद्ध करवं संवृत वि० ढांकेल आच्छादित (२) छुपावेलु (३) बंध करेलु (४) न० एकांत - गुप्त स्थान [राखनाएं संवृतमंत्र वि० पोतानी योजनाओ गुप्त संवृति स्त्री० ढांकतुं ते; छुपावq ते संवत्त वि० थयेलं; बनेलं संवृद्ध वि० वधेलं; विकसेलू संवृद्धि स्त्री० पूरेपूरो विकास - वृद्धि (२) बळ; ताकात संवृष् १ आ० वध (२)परिपूर्ण कर, -प्रेरक० उछेर, संवेग पुं० खळभळाट; उश्केराट (२) अति वेग; झडप (३) तीव्र वेदना संवेदन न०, संवेदना स्त्री० ज्ञान (२) अनुभव; वेदना संवेल्लित वि० संवर्धित संवेश पुं० सूई जq ते (२)स्वप्न (३) संभोग (४) सूवानो ओरडो(५)बेसवानुं स्थान [आसन संवेशन न० सूई जवूते (२)संभोग (३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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