________________
६३४
परिशिष्ट २ करतां सुंदर लाग्यो, एटले तेने जते लई ८०. बधिरकर्णजपन्याय : बहेराना आव्यो. वरने कोण वखाणे ? वरनी मा. कानमां गुसपुस - अरण्यरुदन जेवी ७०. न्यग्रोधबीजन्यायः वडनुं बीज नकामी प्रवृत्ति. देखवामां नानु होय छे, पण तेमांथी ८१. बीजवृक्षन्यायः, बीजांकुरन्यायः के मोटु वृक्ष थाय छे ?
बीजमांथी वृक्ष पेदा थाय छे, अने ७१. पदातिन्यायः शेतरंजनी रमतमां वृक्षमाथी बीज थाय छे. कयुं पहेलू प्यादानुं सोगर्छ सीधुं चाले छे, पण ए शी रीते नक्की थाय? ईंडु पहेलू आगळना सोगठाने मारवार्नु होय
के पंखी पहेलुं ? त्यारे वांकुं पण जई शके छे, तेम ८२. ब्राह्मणग्रामन्यायः ब्राह्मणो वधारे दुर्जन सीधो जतो होय तो पण क्यारे वसता होय तेथी आखं गाम ‘ब्राह्मणवांको थई घा करशे, ते कही न शकाय. ग्राम' कहेवाय; परंतु तेथी तेमां बीजा ७२. पंकप्रक्षालनन्यायः कादवमां वर्णो छ ज नहि एवं नथी होतुं. मुख्य खरडाईने पछी धोवा जवू, तेना करतां वस्ती ब्राह्मणनी छे एटलं ज समजवू. पहेलेथी ज न खरडावू सारे.
८३. भक्षितेऽपि लशुने न शांतो व्याधिः ७३. पंग्वंधन्यायः आंधळो अने पांगळो लसण अभक्ष्य छे छतां ते पण खाधुं; परस्पर सहायथी मजल पूरी करी परंतु रोग तो छतांय मटयो नहि. शके. आने 'अंधपंगुन्यायः' पण कहे छे. ८४. भस्मनि आज्याहुतिः राखमां घी ७४. पंजरचालनन्यायः एक पांजरामां होमवं. व्यर्थ प्रवृत्ति. पुरायेलां अगियार पंखी जो परस्पर ८५. भिक्षुपादप्रसारणन्यायः भिक्षा मळीने प्रयत्न करे, तो पांजराने मागवा आवीने आखो पगपेसारो खसेडी जई शके; पण छूटो छूटो करे - आंगळी आपतां पंजो पकडे. -विरोधी प्रयत्न करे, तो कशंन थाय. आरबना ऊंटनी वात. ७५. पाटच्चरलंठिते वेश्मनि यामिक- ८६. भिल्लीचंदनन्यायः भीलडी चंदननां जागरणम् चोर चोरी करी जाय लाकडां बाळीने रोटला घडे. भीलडी त्यार पछी पहेरेगीर जागतो चोकी
चंदनना वनमां ज़ रहेती होय तेने करवा बेसे.
ए लाकडानी शी किंमत ? ७६. पिपीलिकागतिन्यायः कीडीनी ८७. भूलिंगशकुनिन्यायः हिमालय पासे गति धीमी होय छे, छतां ते सतत भूलिंग पंखी थाय छे; आखो वखत चालती रहे तो झाडनी टोच उपरना 'मा साहसम्' (साहस न करो!) फळनो स्वाद पण चाखे.
एवो उच्चार काढया ज करे छे. ७७. पिष्टपेषणन्यायः दळेलाने फरी छतां जाते तो सिंह शिकार करी मांस दळवू - मिथ्या प्रवृत्ति.
खातो होय त्यारे तेना दांतमां भरायल ७८. पुष्टलगुडन्यायः आगळना भसता मांसना टुकडा काढी खावा तराप कूतरा उपर लाठी नाखीए, तो आस- मारे छे. बीजाने उपदेश आपवो, पासनां बीजां कूतरां पण चूप थई पण पोते तो तेम न करवू-पोथीमांना जाय के भागी जाय.
रीगणां जेवं. ७९. प्रधानमल्लनिबर्हणन्यायः मुख्य ८८. मधु पश्यसि दुर्बुद्धे प्रपातं नानुमल्लने हरावीए एटले पछी बाकीना पश्यसि मध लेवा झाडनी पातळी तो हारी गया ज समजवा.
डाळी सुधी जनारो मध सामे ज नजर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org