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[चालु वपराशना वषु शब्दो]
अकंपन पुं० जुओ पृ० ५९७
अखिन्न वि० थाकेलं के कंटाळेलं न अकालकुसुम न० असमये खीलेलं फूल होय तेवू (२) थाक न लागे तेवू (अनिष्टसूचक) [शके तेवं अगज वि० पर्वत के वृक्षमां उत्पन्न अकालक्षम वि० विलंब सहन करी न थयेलु के थतुं (२) पर्वतोमा रखडतुं अकालजलदोदय पुं० असमये वादळनुं अगजा स्त्री० पार्वती घेरावं ते (२) धूमस
अगजाजानि पुं० शिव (पार्वतीना पति) अकालज्ञ वि० समय के असमयनो विचार अगम वि० चाली न शके तेवू न करतुं
__[पामतुं अगम्यरूप वि० जेनुं स्वरूप अनुपम के अकांडपातजात वि० जन्मीने तरत नाश अज्ञेय छे तेवू अकीति स्त्री० अपकीर्ति [अपार्थिव अगस्ति, अगत्स्य पुं० जुओ पृ० ५९७ अकुलीन वि० हलका कुळy (२) दैवी; अगस्त्योदय पुं० भादरवा महिनाना अकूज वि० अवाज विना-; चूप
अंत भागमां अगस्त्य-मंडळनो उदय अकृशलक्ष्मी वि० पूर्ण समृद्धिवाळं (२) थवो ते (त्यारथी पाणी स्वच्छ बनवा स्त्री० पूर्ण आबादी
लागे छे) अकृष्टपच्य वि० खेड्या विना ऊगतुं अगंड पुं० हाथ-पग विनानुं धड अक्क पुं० घरनो खूणो
अगाधसत्त्व वि० अगाध बळवाळं अक्लिष्टवर्ण वि० स्पष्ट संभळाय के अगढ वि० स्पष्ट; खुल्लु समजाय तेवा शब्दोवाळू
अगोचर वि० इंद्रियातीत; अगम्य (२) अक्षय्यभुज पुं० अग्नि
न० इंद्रिय गोचर नहीं एवी वस्तु (३) अक्षरभूमिका स्त्री० लखवा माटेनुं माहिती के ज्ञाननो अभाव (४) ब्रह्म फलक - पाटियुं इ०
अग्निकार्य न० अग्निमां होम करवो ते अक्षरशिक्षा स्त्री० गुह्य मंत्राक्षरोनुं अग्निचित् पुं० नियमित होम करनारो
शास्त्र (२) ब्रह्मतत्त्वनो सिद्धांत अग्निदायक वि० आग लगाडनाएं (२) अक्षरार्थ पुं० शब्दोनो अर्थ - मर्म
भूख लगाडनाएं अक्षसूत्र न० मणकानी माळा
अग्निधारण न० अग्निमां विधिपूर्वक अक्षिस्पंदन न० आंख फरकवी ते नियमित होम करवो ते अक्षोभ्य पुं० क्षोभ न पामे तेवू
अग्निप्रस्कंदन न० अग्निमां होम अखंडम् अ० अखंडपणे; सतत
करवाना कर्तव्य- उल्लंघन ६३९
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