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सनाथ ५१५
सप्तषि सनाथ वि० रक्षक, मालिक के स्वामी- सपाद वि० पगवाळू (२) चोथो भाग वाळू (२) सहित; युक्त (३) भरपूर; (पाद) वधु होय तेवू; सवायु पूर्ण; भीडनाळ (जेम के, सभा) सपिंड पुं० (पिंडदान जेने मळे ए संबंध. सनाथीकृ ५० स्वामी- मालिकवाळू वाळो -- सात पेढी सुधीनो) सगो करवु (२) रक्षण आप
सप्तच्छद पुं० एक वृक्ष सनाभि वि० एक योनिन (२) संबंधी; सप्तजिह्व, सप्तज्वाल पुं० अग्नि (काली ज्ञातिनुं (२) समान; सदृश (३) पुं० कराली, मनोजवा, सुलोहिता, सुधूम्रसगो भाई(४) (सात पेढी सुधीनो) सगो वर्णा, उग्रा अने प्रदीप्ता -ए सात सनामक, सनामन् वि० एकसरखा ज्वाळाओवाळो) नामवाळू; एक ज नामवाळं
सप्ततंतु पुं० यज्ञ सनिकार वि० अपमान युक्त ।
सप्तति स्त्री० सित्तेर सनिविशेष वि० उपेक्षा युक्त; भेदभाव सप्तदीधिति पुं० अग्नि विनानु; परवा विनानु
सप्तद्वीपा स्त्री० पृथ्वी (जंबू, प्लक्ष, सनिर्वेदम् अ० हताशपणे; खिन्नताथी शाल्मलि, कुश, क्रौंच, शाक, पुष्कर सनित वि० आपेलं (२) मेळवेलं
-ए सात द्वीपोवाळी) सनीड(-ल) वि० एक ज माळामां (साथै) सप्तन् वि० सात (हमेशां ब० व०) __ रहेतुं (२) नजीक-पासे होय तेवू सप्तनाडीचक्र न० वरसाद जाणवा माटे सन्न ('सद्' नुं भू० कृ०) वि० बेठेलं; दोरातुं एक चक्र आडु पडेलु (२) खिन्न;हताश (३)क्षीण सप्तपत्र पुं० एक वृक्ष (४) नीचुं नमी गयेलं (५) नजीकनुं सप्तपदी स्त्री० लग्न वखते वरकन्याने (६) धीम; ऊंडु (अवाज)
पवित्र अग्निनी आसपास सात पगलां सन्मान (सत् + मान) पुं० सज्जनोनुं भरवानो विधि मान के आदर
सप्तपर्ण पुं० एक वृक्ष सन्मित्र न० सारो मित्र
सप्तपर्णी स्त्री रिसामणीनो छोड सपक्ष वि० संबंधी (२) पक्षवाळं (३) सप्तपाताल न० अतल, वितल, सुतल, एक ज पक्षनु (४) समान; सदृश (५) महातल, रसातल, तलातल अने पाताल पुं० अनुयायी (६) सगु; संबंधी --ए सातेनो समह सपत्न वि० विरोधी; वेरी (२) पुं० सप्तप्रकृति स्त्री० (ब० व०) राजा, दुश्मन ; हरीफ
प्रधान, मित्र, कोश, राष्ट्र, दुर्ग अने सपत्नी स्त्री० शोक; पतिनी बीजी पत्नी सैन्य -ए राज्यनां सात घटको सपत्नीक वि० पत्नी साथे होय तेवं सप्तमात स्त्री० ब्राह्मी, माहेश्वरी. सपत्राकृ८ उ० अत्यंत घायल करवू कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी (आखं बाण पीछां साथे अंदर पेसे तेटलु) अने चामुंडा - आ सात माताओनो सपत्राकृत वि० (आखं बाण पीछां साथे समूह
अंदर घुसे ते रीते) सखत घायल करेलं सप्तरुचि पुं० अग्नि ; जुओ 'सप्तजिह्व' सपदि अ० क्षण वारमा (२) जलदीथी सप्तर्षि पुं० (ब० व०) मरीचि, अत्रि, सपरिहारम् अ० संकोच साथै
अंगिरस्, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु अने सपर्या स्त्री० पूजा (२) सेवा
वसिष्ठ - आ सात ऋषिओ (२)
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