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स्वर्गीय
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स्वादिष्ठ स्वर्गीय वि० दैवी; स्वर्गने लगतुं (२) स्वस्तिकपाणि वि० स्वस्तिक आकारे स्वर्ग लई जनारु
हाथ करनारु (२) हाथमां मांगळिक स्वर्गोकस् पुं० देव
वस्तुओवाळं स्वर्ग्य वि० जुओ 'स्वर्गीय
स्वस्तिमत् वि० सुखी; सुरक्षित स्वर्ण न० सोनुं (२) सोनानो सिक्को स्वस्तिवाचन, स्वस्तिवाचनक, स्वस्तिस्वर्णकाय पुं० गरुड
वाचनिक न० यज्ञादि धार्मिक क्रियास्वर्णकार पुं० सोनी
ओनी शरूआतमां करातो प्रारंभिक स्वर्णनाभ पुं० शालग्राम
विधि (२) शुभेच्छाओ अने आशीर्वादो स्वदृश पुं० इंद्र (२) अग्नि (२) सोम सहित फूल वगेरे अर्पवां ते स्वर्धनी स्त्री० स्वर्गगंगा
स्वस्त्ययन वि० शुभ; मांगलिक (२) स्वर्भानु पुं० राहु
न० समृद्धि मेळववानो उपाय-मार्ग स्वर्भानुसूदन पुं० सूर्य
(३) मंत्र वगेरे विधिथी अनिष्ट दूर स्वोषित् स्त्री० अप्सरा
करवं ते (४) ब्राह्मणने दक्षिणा आप्या स्वर्लोक पुं० स्वर्ग
पछी ते जे आशीर्वाद आपे ते स्वर्वधू स्त्री० अप्सरा
स्वस्थ वि० स्वाश्रयी; पोताना ज स्ववैद्य पुं० अश्विनीकुमारोनुं नाम
प्रयत्न उपर आधार राखतुं (२) स्वल्प वि० अति अल्प-थोड़ें
दृढ ; स्थिर; निश्चयी (३) स्वतंत्र स्वल्पक वि० घणुं थोडं (माप के
(४)तंदुरस्त; सुखी (५)संतुष्ट संख्यामां); घणुं नानुं स्वल्पबल वि० घणुं दुर्बळ
स्वस्थान न० पोतानुं घर के स्थान स्ववश वि० पोताने वश के पोताना
स्वस्नीय पुं० भाणेज काबूमां होय तेवू (२) स्वतंत्र
स्वस्रीया स्त्री० भाणी; भाणेजी स्वविषय पुं० पोतानो देश ; पोतानुं घर
स्वस्त्रेय पुं० भाणेज स्ववृत्ति वि० स्वप्रयत्ने ज आजीविका
स्वस्रयी स्त्री० जुओ ‘स्वस्रीया'
स्वहस्त पुं० पोताना हस्ताक्षर चलावतुं होय तेवं
स्वहस्तिका स्त्री० कुहाडी स्वसा, स्वस स्त्री० बहेन । स्वस्ति स्त्री० हित; कल्याण (२) अ०
स्वहित वि० पोताने लाभदायक एवं
(२) न० पोतान हित, लाभ के स्वार्थ 'सारं थाओ', 'भलु थाओ' ए अर्थनो उद्गार (पत्रनी शरूआतमां वपराय छे)
स्वंज १ आ० [स्वजते ] भेटवू; आलिस्वस्तिक पुं० साथियो; एक सद्
गन करवु (२) वीटळावं भाग्य-सूचक आकृति (२) जेनाथी स्वंत वि० सुखी अंत के छेवटवाळू सद्भाग्य प्राप्त थवा मांडे एवी वस्तु
स्वाकृति वि० सुडोळ; घाटील (३) चार रस्ता भेगा मळे ते स्थान
स्वागत न० 'भले पधार्या एवं अभिनंदन (४) चोकडी पडे तेम हाथ ऊभो अने स्वातंत्र्य न० स्वतंत्रता तलवार आडो एम गोठववा ते (५) एक स्वाति (-ती)स्त्री० पंदरमुं नक्षत्र (२) जातनो चारण; बंदीजन (६) पुं० स्वाद पुं० रसनेंद्रियथी थतो अनुभव न० एक आसन (योग०) (७) बेठक; (२) रस; आनंद (३) चाखवू ते पीठ (देव माटे तैयार करेल)(८) स्वादिष्ठ वि० घणुं ज स्वादु ('स्वादु' नुं खास आकारनं मकान के मंदिर श्रेष्ठतादर्शक रूप)
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