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________________ समक्ष ५१७ समरेख समक्ष वि. प्रत्यक्ष; नजर सामेनुं समन्वय पुं० अनुक्रम (२) अरसपरस समक्षम् अ० -नी नजर सामे; -नी संबंध (३) तात्पर्य हाजरीमां समन्वि २५० अनुसरवू; पाछळ के साथे समगति पुं० पवन जवू (२) परिणाम तरीके पाछळ समग्र वि० बधुं; आखं; पूरेपृरुं (२) आववं; परिणाम कल्पवृं जेनी पासे बधं ज छे तेवू; कशी समन्वित वि० युक्त (२)पाछळ आवतुं; ऊणप विनानुं क्रममां पाछळ जोडायलं होतुं । समचतुरस्र वि० चोरस समभिधा ३ प० संबोधq; कहेवू(२) समज पुं० पशुपंखीनो समुदाय के टोळं जाहेर करवू समता स्त्री० एकाग्रता; अभेद (२) समभिहार पुं० पुनरावर्तन (२)एक साथे 'सरखापणुं; समानता (३) निष्पक्षता - भेगें लेवं ते (३) वधारो; आधिक्य समतिक्रम् १ उ० ओळंगी जq; उल्लं समम् अ० साथै; सोबतमां (२)सरखी घन कर, (२) चडियाता थq (३) रीते (३) समान भावे (४) एक साथे व्यतीत करवू (समय) (५) तमाम (६) प्रमाणिकपणे समती [सम् + अति+इ] २ प० पार करी जवू (२) चडियाता थवं (३) समय पुं० वखत; काळ (२)प्रसंग; बाजुए राखq; त्यागवू (४)पसार करवू तक (३) उचित समय; योग्य काळ समतीत वि० पसार थयेलु; व्यतीत (४) करार; संकेत (५)रूढि ; चालतो थयेलं (समय) आवेलो आचार(६) शरत (७) नियम; समत्व न० जुओ 'समता' कायदो (८) प्रतिज्ञा (९) निशानी; समद वि. उन्मत्त; झनून के आवेशवाळं इशारो (१०) आज्ञा; सूचना (११) (२) मद झरवाने कारणे मत्त बनेलं सोगंद; कसम (१२) मर्यादा; हद; समदर्शन, समदर्शिन वि० समान नजर सीमा (१३) सिद्धांत (१४) अंत; राखनाएं; निष्पक्ष निर्णय (१५) सफळता; आबादी; समदुःख वि० बीजाना दुःखे दुःखी उन्नति; समृद्धि (१६) मुश्केलीओनो थनारुं; दुःखमां भागी बननाएं। अंत (१७) भाषण समदुःखसुख वि० सुख अने दुःखमां समयक्रिया स्त्री० करार करवो ते समानपणे भागीदार बननारं समयच्युति स्त्री० उचित समय चूकवो ते समधिक वि० अत्यंत; पुष्कळ (२) समयपरिरक्षण न० संधि के करारनुं सामान्य करतां वधी जतुं; असाधारण पालन करते समधिगम् १ प० [समधिगच्छति ] पासे समयविद्या स्त्री० ज्योतिषशास्त्र जवू (२) अभ्यास करवो (३) प्राप्त समया अ० योग्य समये (२) नियत करवू (४) चडियाता थवू; वधी जदूं समये (३) -नी वच्चे; दरम्यान समध्व वि० साथे मुसाफरी करतुं (४) नजीक ; पासे [आचार समनीक न० युद्ध समयाचार पुं० रूढि; चालतो आवेलो समनुज्ञा ९ उ० मंजूर राखवू; कबूल समर पुं०, न० युद्ध; लडाई राखq (२)जवा देवू; विदाय करवू समरभूमि स्त्री० रणभूमि ; समरांगण (३)क्षमा करवी [गुस्से थयेलं समरशिरस् न० लडाईनो मोखरो समन्यु वि० दिलगीर; गमगीन (२) समरेख वि० सीधुं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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