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पंक्तिपावन
मूत्र
पंक्तिपावन पुं० पवित्र ब्राह्मण (आखी पंगतने पवित्र करनार मनाय छे ) पंक्तिरथ पुं० दशरथ राजा पंगु वि० पांगळं, लुलुं पंचक वि० पांचनुं बनेलं; पांचने लगतुं (२) पुं० न० पांचनो समूह पंचगव्य न० गायनुं दूध, दही, घी, अने छाण - ए पांच वस्तुओ पंचगुणाः पुं० ब० व० इंद्रियोना पांच विषयो (रूप, रस, गंध, स्पर्श अने शब्द ) पंचगुणी स्त्री० पृथ्वी पंचतत्त्व न० पंचमहाभूत (पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, आकाश ) पंचतपस् पुं० पंचाग्नि तपनारो तपस्वी पंचत्वंगत वि० मृत ( पंचमहाभूतनी स्थिति पालुं )
पंच वि० ( ब०व०) पांच (समासनी शुरूआतमां आवे त्यारे न् ऊडी जाय छे) पंचनख पुं० पांच नखवाळु प्राणी (हाथी, ससल, काचबो, मगर, सिंह, वाघ इ० ) पंचनद पुं० हालनो पंजाब ( शतद्रु - सतलज, विपाशा - बियास, ईरावतीरावी, चंद्रभागा - चिनाब, वितस्ताजेलम, ए पांच नदीओनो प्रदेश ) पंचपदी स्त्री० पांच पगलां साथे भरवां ते पंचप्राणाः पुं० ब० व० शरीरना पांच वायुओ- प्राणो (प्राण, अपान, व्यान, उदान अने समान)
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तेज
पंचबाण पुं० कामदेव (अरविंद, अशोक, आंबामोर, नवमल्लिका अने नीलोत्पल - ए पांच फूलरूपी बाणवाळो ) पंचभूत न० पृथ्वी, जल, वायु, आकाश - ए पांच महाभूत पंचम वि० पांचमुं (२) चतुर (३) सुंदर ( ४ ) पुं० संगीतना सप्तकमां पांचो स्वर (कोयलनो स्वर ) पंचवटी स्त्री० पींपळो, आमळी, आसोपालव, वड अने बीली - ए पांच वृक्षोनो
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पंचांग
समूह (२) नाशिक पासे आवेल दंडकारण्यनो एक भाग (त्यां राम वनवास ह्या हता) [ इंद्रियोनो समूह पंचवर्ग पुं० पांचनो समूह ( २ ) पांच पंचवीरगोष्ठ न० सभामंडप
पंचवृत्तिता स्त्री० पांच इंद्रियो उपर आधार राखवो ते
पंचशर पुं० कामदेव (जुओ 'पंचबाण' ) पंचशाख पुं० हाथ ( २ ) हाथी पंचशिख पुं० सिंह [नीकोवाळं) पंचस्रोतस् न० मन (पांच इंद्रियो रूपी पंचाग्नि पुं० पांच पवित्र अग्निनो समुदाय ( दक्षिण, गार्हपत्य, आहवनीय, सभ्य अने आवसथ्य) (२) ए पांच अग्नि राखनार गृहस्थ
पंचात वि० (चार बाजु) चार अग्नि अने उपर सूर्य ए पांच अग्नि वडे तप करनारुं
पंचातिग वि० मुक्त पंचानन पुं० शिव (२) सिंह (पहोळं मुख होवाथी) (३) (समासने अंते ) ते ते विद्यामां पारंगत (उदा० 'तर्कपंचानन' ) पंचामृत न० दूध, दही, घी, मध, साकर - ए पांचनुं मिश्रण ( २ ) पंचमहाभूतोनो समूह पंचायतन न०, पंचायतनी स्त्री० ० गणपति, विष्णु, शंकर, देवी अने सूर्य - ए पांच देवोनो समुदाय पंचाली स्त्री० ढींगली; पूतळी पंचाशत्, पंचाशति स्त्री० पचास पंचास्य पुं० शिव ( २ ) सिंह पंचांग वि० पांच अंगवाळु (जेम के 'प्रणाम' : बाहु, जानु, शिर, वक्षस्, दृष्टि वडे करतो; अथवा 'अभिनय': चित्त, अक्षि, भ्रू, हस्त, पाद वडे करातो; अथवा 'राजनीति': कार्यारंभ, पुरुष अने द्रव्यनुं साधन, देशकाळ, मुश्केली
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