________________
स्य
२००
त्रिवशंद्र त्यज् १५० तजवं; छोडी देवू (२) त्रिक वि० तेवडु; त्रणगणुं (२) न.
आपq (३)थी अळगा रहेQ-थर्बु त्रिपथ; त्रिभेटो (३) त्रिपुटी त्याग पुं० तजq ते ; छोडी देवं ते (२) त्रिकाल न० वर्तमान, भूत, भविष्य -
दानमां आपी देवं ते (३) औदार्य ए त्रण काळ (२)प्रातःकाळ, मध्याह्न, त्यागिन् वि० त्याग करनारु (२) दानी सायंकाळ -ए त्रण काळ
(३) फळनी आशा त्यागनारु । त्रिकालज्ञ, त्रिकालदशिन् वि० त्रणे त्याजित वि० त्याग करावायेलु (२) काळना ज्ञानवाळं; सर्वज्ञ
उपेक्षा करावायेलु (३)-विनानुं थयेलु त्रिकालम् अ० त्रण वखत ; त्रण वार त्याज्य वि० त्यागवा योग्य
त्रिकूट पुं० लंकानो एक पर्वत त्रप् १ आ० शरमावू
त्रिकोण पुं० त्रण खूणावाळी आकृति त्रपा स्त्री० शरम; लज्जा
त्रिगण पुं० धर्म-अर्थ-काम -ए त्रण अपु न० कलाई (२) सीसुं
पुरुषार्थोनो समुदाय त्रय वि० त्रण प्रकार- (२) त्रण गणुं त्रिगुण वि० (सत्त्व, रजस्, तमस् -ए) (३) न० वणनो समूह
त्रण गुणवाळं (२) त्रण दोरानुं बनेलं त्रयस् ('त्रि' नुं प्रथमा ब० व०) वि. (३) त्रणगणुं (४) पुं० ब० व० त्रण त्रण (संख्यावाचक शब्दनासमासमां; गुणो (सत्त्व, रजस्, तमस्) (५) उदा० 'त्रयोदश', 'त्रयश्चत्वारिंशत्) न० प्रकृति ; प्रधान (सांख्य०) त्रयी स्त्री० त्रण वेदोनो समूह (ऋग- त्रिचतुर वि० (ब० व०) त्रण के चार यजुर्- साम) (२) त्रणनो समूह त्रिजगत् न०, त्रिजगती स्त्री० स्वर्गअयोधर्म पुं० वेदोमां उपदेशेलो धर्म मृत्यु-पाताळ -ए त्रण लोक के कर्तव्य (यज्ञकर्म)
त्रिणता स्त्री० धनुष्य प्रस् १, ४ प० वासवू; कंपवू; धूजवू त्रिणाक पुं० स्वर्ग
(२)बीवू; डरवु (३)-थी दूर नासवू त्रितय न० वणनो समुदाय त्रस वि० जंगम [ऊडतुं देखातुं) त्रिदश पुं० देव प्रसरेणु पुं० रजकण (सूर्यना हेरियामां त्रिदशगोप पुं० गोकळगाय ; इन्द्रगोप त्रस्त ('त्रस्' नुं भू० कृ०) वि० बीनेलं; त्रिदशपति पुं० इंद्र त्रासेलं; भयभीत
त्रिदशपुंगव पुं० विष्णु त्रस्न वि० भयभीत; भयथी धूजतुं त्रिदशवधू, त्रिदशवनिता स्त्री० अप्सरा त्राण ('त्रै' ने भू० कृ०) वि० रक्षेलं त्रिदशवर्मन् न० आकाश रक्षित (२) न० रक्षण; बचाव (३) त्रिदशाचार्य पुं० बृहस्पति आधार; आश्रय न० रक्षण त्रिदशाधिप पुं० इंद्र त्रात ('त्रै'नुं भू० कृ०) वि० रक्षेलं (२) त्रिदशाधिपति पुं० शिव त्रातृ वि० रक्षण करनारुं ।
त्रिदशाध्यक्ष पुं० विष्णु त्रास पुं० भय; डर
त्रिदशायुध न० वज्र (२) मेघधनुष्य त्रासन वि० भयप्रद (२) न० भय त्रिदशालय, त्रिदशावास पुं० स्वर्ग
पमाडवो ते (३) डराववानुं साधन । (२) मेरु (३) देव त्रासित वि० भय पमाडेलु; डरावेलु त्रिदशांकुश न० वज़ त्रि वि० त्रण
त्रिदशेंद्र पुं० इंद्र (२) शिव
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org